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प्रस्ताव: ]
हरिउ न सकइ सा तवह ॥ ८२ ॥
कहइ मुणी से धम्मं तं सा सोऊण साविया जाया । तह राय - निउगं वज्जिऊण पचक्खड़ अबंभं ॥ ८३ ॥ मग तिन्नि वि पुनि चउमासि, गुरुपसि वचिहिं गुरु वि किं चि ताण संमाणु दंसह, तहं दुष्करकार यह सागउत्ति संमुहं सासह, थूलभद्दु इंत नियवि गुरु कय गुरु सम्माणु । दुक्कर- दुक्कर- कारगह सागर भणइ पहाणु ॥ ८४ ॥ सुणिवि तिन्नि विखमग गुरुवयणु, सामरिस चिंतंति मणि थूलभद्दु मंतिस्स नंदणु, तिण एअह गुरु कुणइ गुरुअ-माणु हियआहिनंदणु,
अह बीअइ पाउस - समइ दुक्कर-तव-मय-मत्तु । कोसाघरि गुरु वारिउ वि सीह - गुहा- मुणि पत्तु ॥ ८५ ॥ मुणि निअच्छि कोस चिंतेइ,
इह नृण मह एइ घरि
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स्थूलिभद्र कथा |
थूलभद्द - मुणि-पुंगवह | कोस - मोहर, पीण - पउहर,
थूलभद्द-मच्छरु वर्हत,
ता मृदु अप्पह परह न वि विसेसु जाणइ निरुत्तर,
काय हंसह खर- करहि खज्जोअह सूरस्सु । एरंडह चंदणतरुहु कास-मसीसिअवस्सु ॥ ८६ ॥ सो वि उववण- गेहि तहि ठाइ, कोसा वि उवसंतमण मुणिहि पासि परिमुक-पाविण, अविभूसिअ भूसिअ व
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