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________________ ४५९ प्रस्तावः] स्थूलिभद्र-कथा । सो पेच्छंतह तीइ तमु खित्तु खालि अपसत्थि ॥ ९१ ॥ समणु दुम्मणु भणइ तो एउ, बहु मुल्लु कंबलरयणु कीस कोसि ! पइ क्खालि खित्तउ, देसंतरि परिभमिवि मई महंत-दुक्खेण पत्तउं, कोस भणइ महापुरिस! तुहं कंबलु सोएसि । जं दुल्लहु संजम-खणु हारिस तं न मुणेसि ॥ ९२॥ जं परीसह सहिवि बावीस, पंचिंदियवसि करिवि धरिवि जोगु चलु मणु निरुभिवि, दुन्निग्गह-कोह-मय माय-लोभ-मत्सरु निरंभिवि, पंचमहव्वयभरु वहवि पई संचिउ चारित्तु । तं आरामु व हुअवहिण मण-खोहेण पलित्तु ॥ ९३ ॥ जाउ वासवधणु व दुग्गिज्झ, किंपागु व मुह-महुर विसहर व्व विस्सास-वजिअ, महर व्व मइ-मोहकर गिरिणइ व्व नीयाणुलग्गिअ, तहं वेसहं पत्थण-घणिण किं व भंजसि तव-नाव । भव-सायर-मजंत-जण-तारण-पयड-पहाव ॥ ९४ ॥ इअ कोसा-उवएसामय-रसुच्छिन्न-मयण-मुच्छेण । मुणिणा भणियं भद्दे ! तुह वयणं साहु साहु त्ति ॥९५॥ मिच्छामि दुक्कडं तं अबंभ-विसयम्मि जं तुम वुत्ता। सा भणइ तुमं धन्नो जेण मणं ठावित्रं मग्गे ॥ ९६ ॥ वित्ति पाउसि गयउ गुरु-पासि, कय-पाय-पणमणु समणु मुणिवि सव्वु नाणेण सूरिहि, निन्भच्छिउ तोभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001873
Book TitleKumarpal Pratibodh
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorJinvijay
PublisherCentral Library
Publication Year1920
Total Pages564
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size11 MB
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