Book Title: Kumarpal Charitra Sangraha
Author(s): Muktiprabhsuri
Publisher: Singhi Jain Shastra Shikshapith

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Page 11
________________ किञ्चित् प्रास्ताविक इस संग्रहमें संकलित एवं प्रकाशित कृतियोंका कुछ परिचय निम्न प्रकार है (1) संक्षिप्त कुमारपालचरित। इनमें पहला जो चरित है वह बहुत ही संक्षिप्त और साररूप है / इसके कुल 221 श्लोक है / इसका कर्ता कौन है सो बात नहीं हआ। पाटणके भंडारों में इसकी दो-तीन पुरानी प्रतियां हमारे देखनेमें आई, जिनमें सबसे जो पुरानी प्रति है वह वि. सं. 1385 की लिखी हुई कागजकी प्रति है / इस प्रतिके कुल 8 पत्र हैं जिनमें प्रथमके 6 पत्रों में यह संक्षिप्त कुमारपालचरित लिखा हुआ है और पिछले दो पन्नोंमें एक श्रावक और श्राविकाके व्रतग्रहणविषयक प्रकरण हैं। इसके अन्तमें जो उल्लेख है वह इस प्रकार है "संवत् 1385 वर्षे वैशाख वदि 2 रवौ सूराश्रावकेण परिग्रहपरिमाणं गृहीतम् / " इससे इतना तो निर्णित होता है कि उक्त प्रतिमें जो यह कुमारपाल चरित लिखा हुआ है इसकी रचना, इस समयसे पहलेकी है। कितनी पहलेकी है इसका निर्णय करनेका अभी तक और कोई पुष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध नहीं हुआ। परंतु इसमें जो संक्षिप्त चरितवर्णन है वह बहुत ही व्यवस्थित, संबद्ध और किसी प्रकारकी अतिशयोक्तिसे अस्पृष्ट है। अतः इसकी रचना कुमारपालकी मृत्युके बाद बहुत थोड़े ही समयमें हुई हो, ऐसा अनुमान किया जाय, तो उसमें हमें कोई बाधक प्रमाण नहीं दिखाई देता / इस चरितमें कुमारपालका, राज्यप्राप्तिके पूर्व तकका ही, चरित्र दिया गया है। राज्यप्राप्तिके बादका कोई वर्णन इसमें नहीं है / अन्तके 5 श्लोकोंमें सिर्फ इतना ही सूत्ररूपसे सूचित किया गया है कि-"राज्यगादी पर बैठने बाद कुमारपालने पहले उन सब अपने उपकारी जनोंको बुलाया और उनका यथोचित आदर-सन्मान किया। फिर बादमें यथासमय, आमके वृक्षों परका कर लेना माफ किया, निःसन्तान मरनेवालेके कुटुंबोंकी संपत्तिका जप्त करना बन्ध किया, सातों देशोंमें, सातों व्यसनोंका सेवन निषिद्ध किया, और 12 वर्ष पर्यंत सब प्राणियोंकी हिंसाका परिहार कराया। उत्तरमें तुरुष्क देश पर्यंत, पूर्वमें गंगाके तीर पर्यंत, दक्षिणमें विन्ध्याचल और पश्चिममें समुद्र पर्यंतकी पृथ्वी अपने शासनमें अधिकृत कर, और उसे जैन मन्दिरोंसे अलंकृत करके जैन धर्मका बाराधन करता हुआ वह वर्गमें गया / " कुमारपालके पूर्व जीवनके विषयमें जितना भी वर्णन अन्यान्य चारित्रों-प्रबन्धों आदिमें मिलता है उन सबमें हमें प्रस्तुत चरितगत वर्णन अधिक प्रमाणभूत और तथ्यरूप मालूम देता है / अन्यान्य चरित्र और प्रवन्ध लेखकोंने इसीके आधार परसे बहुत कुछ अपना वर्णन पल्लवित करके लिखा है। उदाहरणके तोर पर, प्रस्तुत संग्रहमें ही जो 2 रा चरित सोमतिलक सूरिकृत दिया गया है उसके प्रारंभका जो 195 श्लोक जितना भाग है वह इसी चरितका संपूर्ण शब्दशः अवतरण रूप है / इसी तरह उसके बाद, जो बडा चरित्रात्मक 3 रा कुमारपालप्रबोध प्रबन्ध है उसमें भी, कुमारपालके पूर्व जीवनका वर्णनात्मक भाग बहुत कुछ इसीके आधार परसे लिखा गया है और इसके बहुत सारे श्लोक मी उसमें यथावत् उद्धृत किये गये हैं। जिनमण्डन गणिकृत कुमारपालप्रबन्धमें भी इसके बहुतसे श्लोक उद्धृत हैं। इससे ज्ञात होता है कि उन अन्यान्य चरित्र-प्रबन्ध लेखकोंने इस संक्षिप्त चरितको कुमारपालके पूर्व जीवनके वर्णनके लिये विशेष आधारभूत और मौलिक मान कर, इसका पूरा उपयोग किया है / अतएव कुमारपालके चरित्रात्मक साधनोंमें यह एक बहुत प्रमाणभूत प्रबन्ध सा है इसमें कोई सन्देह नहीं / (2) सोमतिलकसूरिकृत कुमारपालचरित संग्रह का २रा चरित है वह सोमतिलकसूरिरचित है। ये आचार्य रुद्रपल्लीय गच्छके संघतिलकसूरिके शिष्य थे। यधपि इसमें इसकी रचनाके समयका ज्ञापक कोई निर्देश नहीं किया गया है तथापि सोमतिलकसूरिकी अन्य प्रन्यरचना परसे इनका निश्चित समय ज्ञात है, अतः इस चरितका रचनासमय अनुमानसे उस समयके आसपास सहज ही में समझा जा सके ऐसा है।

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