Book Title: Keet Patango ki Ascharyajanak Baten
Author(s): Rajnish Prakash
Publisher: Vidya Vihar

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Page 55
________________ मकडी का जाला कितना निराला उपेक्षित और सुनसान जगहो के अलावा जहाँ मनुष्य सफाई नहीं रखते, वहाँ मकडी अपना जाला बनाती है तथा वह बिन बुलाए मेहमान की तरह बस जाती है और उसे अपना घर बना लेती है। ससार की सबसे बडी मकडी का नाम 'थेराफोसा लेबलाडी' तथा सबसे छोटी मकडी का नाम 'पाटू मारप्लेसी' है। शिकार को फंसाने के बाद मकडी एक बार फिर लार से उसके आस-पास जाला बनाकर उसे मार डालती है। वह अपने शिकार को पूरा नहीं खाती, केवल उसका नरम भाग चूसती है। वह बहुत-सा भोजन इकट्ठा कर उसे आराम से खाती रहती है और सुस्त पड़ी रहती है। मकडी की शारीरिक बनावट बहुत जटिल होती है। आपने पढा होगा कि छिपकली की पूँछ टूटने पर दूसरी पूँछ निकल आती है, उसी प्रकार मकडी की टॉग टूटने पर दूसरी टॉग निकल आती है। खेतो मे मिट्टी के साथ जाले बनाकर मकडी वहाँ हानि पहुँचानेवाले कीटो को खाकर किसानो को लाभ पहुंचाती है। यह भी आश्चर्यजनक है कि दूरबीनो मे लगाए जानेवाले तार मकडी के जाले के बने होते हैं। मधुमक्खियाँ - जिनके गुणों से मानव आदिकाल से परिचित रहा है मधुमक्खियो मे सर्वाधिक सामाजिक भावना पाई जाती है। इनके छत्ते में जो अनुशासन देखने को मिलता है, उसकी तुलना केवल सेना के अनुशासन से ही की जा सकती है। शहद में विटामिन, शकर, तत्त्व, एजाइम्स आदि होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। इसलिए शहद आदिकाल से मिठाई के रूप मे काम मे आ रहा है। किसी समय शहद मिठाई के रूप मे बॉटा जाता था। मधुमक्खियो के एक छत्ते 540 कोट पतगों को आश्चर्यजनक बातें

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