Book Title: Kaumudimitranandrupakam
Author(s): Ramchandrasuri, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 234
________________ दशमोऽङ्कः कोऽयं प्रियसम्पर्कनिमित्तं क्लेशाभ्युपगमः ? अभ्युपगच्छ स्वच्छेन चेतसा सत्यावपातस्य भगवतः पञ्चबाणस्य पुरुषोपहारम्, येनायं प्रसद्य प्रयच्छति ते प्रियपतिम् । अपि च यस्यैवायं भगवाननङ्गः स्वयं स्रजमुपनेष्यते स एव ते पतिः । लम्बस्तनी - वत्से ! भोदु एदं, पिच्छ भयवदो पहावं । (वत्से ! भवत्वेतत् पश्य भगवतः प्रभावम् 1 ) सिद्धाधिनाथ: - (कामाभितापमभिनीय) अस्यां मृगीदृशि दशोरमृतच्छटायां, देव: स्मरोऽपि नियतं वितताभिलाषः । एतत्समागममहोत्सवबद्धतृष्ण माहन्ति मामपरथा कथमेष बाणैः ? ।। १२ ।। (पुनरात्रेयीं प्रति) नतशतमखकामिनीप्रसूनच्युतमकरन्दकरम्बितांहिपद्माम् । तुम प्रियमिलन हेतु इतना कष्ट क्यों सहन कर रही हो? स्वच्छ मन से सत्यनिष्ठ भगवान् कामदेव को पुरुष की बलि प्रदान करो, जिससे प्रसन्न होकर ये तुम्हें तुम्हारा प्रिय पति प्रदान करेंगे और भगवान् कामदेव जिसके भी गले में स्वयं माला डाल देंगे वही तुम्हारा पति होगा । लम्बस्तनी - पुत्रि! बलि प्रदान करो और फिर भगवान् कामदेव का प्रभाव देखो । १८१ सिद्धाधिनाथ - (कामसन्ताप का अभिनय करके) आँखों में अमृतवर्षा करने वाली इस मृगनयनी में निश्चय ही कामदेव भी अनुरक्त हो गये हैं, अन्यथा इसके समागमरूपी महोत्सव के अभिलाषी मुझको बाणों से आहत क्यों कर रहे हैं ? ।। १२ ।। (पुन: आत्रेयी से ) हे मृगनयन ! ब्रह्मा, विष्णु और शङ्कर भगवान् द्वारा जिनके नाम का जप किया जाता है ऐसे भगवान् कामदेव की, (प्रणाम करने हेतु ) झुकी हुई इन्द्र की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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