Book Title: Kaumudimitranandrupakam
Author(s): Ramchandrasuri, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 245
________________ १९२ कौमुदीमित्रानन्दरूपकम् उपनतमित्र-कलत्रः सन्तप्तारामचन्द्रकरविशदाम्। आसाद्य यशोलक्ष्मी परां स्वतन्त्रश्चिरं भूयाः।।१८।। ।।इति दशमोऽङ्कः समाप्तः।। ।।प्रबन्धशतकर्तुर्महाकवेः श्रीरामचन्द्रस्य कौमुदीमित्रानन्दं प्रकरणं समाप्तम् ।। मित्र और भार्या से सतत युक्त रह कर और सन्तप्तों को सुखी करने वाली चन्द्रिका के समान धवल एवं उत्कृष्ट यश:स्वरूपा लक्ष्मी को प्राप्त कर आप चिरकाल तक स्वतन्त्र रहें।।१८।। ।।दशम अङ्क समाप्त।। ।।प्रबन्यशतकर्ता महाकवि रामचन्द्रसूरिप्रणीत कौमुदीमित्रानन्द नामक प्रकरण समाप्त हुआ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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