Book Title: Karmvada
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 9
________________ २२० जैन धर्म और दर्शन रखा है। कर्म-शास्त्र को जैन साहित्य का हृदय कहना चाहिए । यों तो अन्य विषयक जैन-ग्रन्थों में भी कर्म की थोड़ी बहुत चर्चा पाई जाती है पर उसके स्वतंत्र ग्रन्थ भी अनेक हैं। भगवान् महावीर ने कर्मवाद का उपदेश दिया। उसकी परम्परा अभी तक चली आती है, लेकिन सम्प्रदाय-भेद, सङ्कलना और भाषा की दृष्टि से उसमें कुछ परिवर्तन अवश्य हो गया है। १. सम्प्रदाय भेद-भगवान् महावीर का शासन श्वेताम्बर और दिगम्बर इन दो शाखाओं में विभक्त हुअा। उस समय कर्मशास्त्र भी विभाजित सा हो गया । सम्प्रदाय भेद की नींव, ऐसे वज्र-लेप भेद पर पड़ी है कि जिससे अपने पितामह भगवान् महावीर के उपदिष्ट कर्म-तत्त्व घर, मिलकर विचार करने का पुण्य अवसर, दोनों सम्प्रदाय के विद्वानों को कभी प्राप्त नहीं हुआ। इसका फल यह हुआ कि मूल विषय में कुछ मतभेद न होने पर भी कुछ पारिभाषिक शब्दों में, उनकी व्याख्याओं में और कहीं-कहीं तात्पर्य में थोड़ा बहुत भेद हो गया, जिसका कुछ नमूना पाठक परिशिष्ट में देख सकेंगे-देखो, प्रथम कर्मग्रन्थ का परिशिष्ट । २. संकलना-भगवान् महावीर के समय से अब तक में कर्मशास्त्र की जो उत्तरोत्तर संकलना होती आई है, उसके स्थूल दृष्टि से तीन विभाग बतलाये जा सकते हैं। (क) पूर्वात्मक कर्मशास्त्र- यह भाग सबसे बड़ा और सबसे पहला है। क्योंकि इसका अस्तित्व तब तक माना जाता है, जब तक कि पूर्व-विद्या विच्छिन्न नहीं हुई थी। भगवान् महावीर के बाद करीब ६०० या १००० वर्ष तक क्रमिक-हास-रूप से पूर्व विद्या वर्तमान रही। चौदह में से श्राठवाँ पूर्व, जिसका नाम 'कर्मप्रवाद है वह तो मुख्यतया कर्म-विषयक ही था, परन्तु इसके अतिरिक्त दूसरा पूर्व, जिसका नाम 'अग्रायणीय' है, उसमें भी कर्म तत्त्व के विचार का एक 'कर्मप्राभृत' नामक भाग था। इस समय श्वेताम्बर या दिगम्बर के साहित्य में पूर्वात्मक कर्मशास्त्र का मूल अंश वर्तमान नहीं है । (ख) पूर्व से उद्धृत यानी श्राकररूप कर्मशास्त्र--यह विभाग, पहले विभाग से बहुत छोटा है तथापि वर्तमान अभ्यासियों के लिए वह इतना बड़ा है कि उसे आकर कर्मशास्त्र कहना पड़ता है। यह भाग, साक्षात् पूर्व से उद्धृत है ऐसा उल्लेख श्वेताम्बर, दिगम्बर दोनों के ग्रन्थों में पाया जाता है। पूर्व में से उद्धृत किये गए कर्मशास्त्र का अंश, दोनों सम्प्रदाय में अभी वर्तमान है। उद्धार के समय संप्रदाय भेद रूढ़ हो जाने के कारण उद्धृत अंश, दोनों सम्प्रदायों में कुछ भिन्न-भिन्न नाम से प्रसिद्ध हैं। श्वेताम्बर सम्प्रदाय में १ कर्मप्रकृति, २ शतक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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