Book Title: Karmvada
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Darshan_aur_Chintan_Part_1_2_002661.pdf

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Page 18
________________ .. कर्मवाद ૨૨E ८-कर्म से छूटने के उपाय अब यह विचार करना जरूरी है कि कर्मपटल से आवृत अपने परमात्मभाव को जो प्रगट करना चाहते हैं उनके लिए किन-किन साधनों की अपेक्षा है। जैन शास्त्र में परम पुरुषार्थ---मोक्ष—पाने के तीन साधन बतलाये हुए हैं-(१) सम्यग्दर्शन, (२) सम्यग्ज्ञान और (३) सम्यगचारित्र । कहींकहीं ज्ञान और क्रिया, दो को ही मोक्ष का साधन कहा है। ऐसे स्थल में दर्शन को शानस्वरूप---ज्ञान का विशेष-समझ कर उस से जुदा नहीं गिनते। परन्तु यह प्रश्न होता है कि वैदिक दर्शनों में कर्म, ज्ञान, योग और भक्ति इन चारों को मोक्ष का साधन माना है फिर जैनदर्शन में तीन या दो ही साधन क्यों कहे गए ? इसका समाधान इस प्रकार है कि जैनदर्शन में जिस सम्यक्चारित्र को सम्यक् क्रिया कहा है उसमें कर्म और योग दोनों मार्गों का समावेश हो जाता है। क्योंकि सम्यक्चारित्र में मनोनिग्रह, इन्द्रिय-जय, चित्त-शुद्धि, समभाव और उनके लिए किये जानेवाले उपायों का समावेश होता है। मनोनिग्रह, इन्द्रिय-जय आदि सात्विक यज्ञ ही कर्ममार्ग है और चित्त-शुद्धि तथा उसके लिए की जाने वाली सत्प्रवृत्ति ही योग मार्ग है। इस तरह कर्ममार्ग और योगमार्ग का मिश्रण ही सम्यक्चारित्र है । सम्यग्दर्शन ही भक्ति मार्ग है, क्योंकि भक्ति में श्रद्धा का अंश प्रधान है और सम्यग्दर्शन भी श्रद्धा रूप ही है। सम्यग्ज्ञान ही ज्ञानमार्ग है। इस प्रकार जैन दर्शन में बतलाये हुए मोक्ष के तीन साधन अन्य दर्शनों के सब साधनों का समुच्चय है । ६-आत्मा स्वतंत्र तत्त्व है कर्ग के संबन्ध में ऊपर जो कुछ कहा गया है उसकी ठीक-ठीक संगति तभी हो सकती है जब कि आत्मा को जड़ से अलग तत्त्व माना जाय । आत्मा का स्वतन्त्र अस्तित्व नीचे लिखे सात प्रमाणों से जाना जा सकता है ( क ) स्वसंवेदनरूप साधक प्रमाण, (ख) बाधक प्रमाण का अभाव, (ग) निषेध से निषेध-कर्ता की सिद्धि, (घ) तर्क, (ङ) शास्त्र व महात्माओं का प्रामाण्य, च) आधुनिक विद्वानों की सम्मति और (छ) पुनर्जन्म । (क) स्वसंवेदनरूप साधक प्रमाण- यद्यपि सभी देहधारी अज्ञान के श्रावरण से न्यूनाधिक रूप में घिरे हुए हैं और इससे वे अपने ही अस्तित्व का संदेह करते हैं. तथापि जिस समय उनकी बुद्धि थोड़ी सी भी स्थिर हो जाती है उस समय उनको यह स्फुरणा होती है कि 'मैं हूँ। यह स्फुरणा कभी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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