Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan

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Page 175
________________ ( १६२ ) प्रति यत्र गतिमा अचख्खु-सेसिंदिअओहिकेवलेहिं च; दंसणमिह सामन्नं, तस्सावरणं तयं चउहा ॥१०॥ सुहपडिबोहा निदा, निदानिदा य दुख्खपडिबोहा; पयला ठिओवविठ्ठस्स, पयलपयला उ चंकमओ ॥११॥ दिणचिंति. अत्थकरणी, थीणद्धी अद्धचकिअद्धबला; महुलित्तखग्गधारा-लिहणं च दुहा उ वेअणि ॥१२॥ ओसन्नं सुरमणुए, सायमसायं तु तिरिअनिरएसु; मजंव मोहणीअं, दुविहं दंसणचरणमोहा ॥१३॥ दंसणमोहं तिविहं, सम्मं मीसं तहेव मित्थत्त; सुद्धं अद्धविसुद्धं, अविसुद्धं तं हवइ कमसो॥१४॥ जियअजियपुण्णपावा -सवसंवरबंधमुख्खनिजरणा; जेणं सद्दहइ तयं, सम्म खइगाइबहुभेअं॥१५॥ मीसा न रागदोसो, जिणधम्मे अंतमुहु जहाअन्ने; नालियरदीवमणुओ, मिच्छं जिणधम्मविवरीअं ॥१६॥ सोलसकसाय नवनो-कसाय दुविहं चरित्तमोहणिअं; अणअपच्चख्खाणा, पच्च. ख्खाणा य संजलणा ॥ १७ ॥ जाजीववरिसचउमास -पख्खगा निरयतिरिअनरअमरा; सम्माणुसव्वविरई, अहखायचरित्तघायकरा ॥१८॥ जलरेणुपुढवीपवयराईसरिसो चउविहो कोहो; तिणिसलयाकडिअसेलत्थंभोवमो माणो ॥१९॥ मायावलेहिगोमुत्ति-मिंढसिंगघणवंसिमूलसमा; लोहो हलिदखंजण-कदमकि

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