Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan

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Page 176
________________ મૂળ પ્રથમ કગ્રંથ. ( ११ ) मिरागसामाणो (सारिच्छो) ॥ २० ॥ जस्सुदया होइ जिए, हास रई अरइ सोग भय कुच्छा; सनिमित्तमन्नहा वा, तं इह हासाइमोहणियं ॥ २१|| पुरिसित्थितदुभयं पइ, अहिलासो जवसा हवइ सो उ; थीनरनपुवेउदओ, फुंफुमतणनगरदाहसमो ॥ २२ ॥ सुरनरतिरिनिरयाउ, हडिसरिसं नामकम्म चित्तिसमं; बायालतिनवइविहं, तिउत्तरसयं च सत्तठ्ठी ||२३|| गइजाइतणुउवंगा, बंधणसंघायणाणि संघयणा ॥ संठाणवण्णगंधरस - फास अणुपुविविहगगई ॥ २४ ॥ पिंडपयडित्ति चउदस, परघाउस्सासआय वुज्जोयं (अं); अगुरुलहुतित्थनिमिणो - वघायमिअ अड पत्ते ॥ २५॥ तसबायरपज्जत्तं, पत्तेयथिरं सुभं च सुभगं च; सुसराई - ज्जजसं तस - दसगं थावरदसं तु इमं ॥ २६ ॥ थावरसुहुमअपजं, साहारणअथिरअसुभदुभगाणि; दुस्सरणाइज्जाजस - मिअ नामे सेअरा वीसं ॥२७॥ तसचउ थिरछक्कं अथिर-छक्क सुहुमतिण थावरचउक्कं; सुभगतिगाइ विभासा, तयाइसंखाहि पयडीहिं ॥ २८ ॥ वन्नचउ अगुरुलहुचउ, तसाइदु-ति चउर छक्कामिच्चाई; इअ अन्नावि विभासा, तयाइसंखाहि पयडीहिं ॥२९॥ गइआईण उ कमसो, चउपणपणतिपणपंचछछक्कं; पणदुगपणठ्ठचउदुग, इअ उत्तरभेयपणसठ्ठी ॥ ३० ॥

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