Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan
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મૂળ ચતુર્થ કર્મગ્રંથ. ( १७५) सुहुमे दस वेअसंजलणतिविणा। खीणुवसंति अलोभा, सजोगि पुव्वुत्त सग जोगा ॥ ५८ ॥ अपमत्ता सत्तह, मीसअपुत्वबायरा सत्त । बंधइ छस्सुहुमो एगमुवरिमा बंधगाजोगी ॥ ५९॥ आसुहमं संतुदए, अवि मोहविणु सत्त खीणमि । चउ चरिमदुगे अह उ, संते उवसंति सत्तुदए ॥६०॥ उइरंति पमत्ता , सगढ़ मीसह वेअ आउ विणा। छग अपमत्ताइ तओ, छ पंच सुहुमो पणुवसंतो ॥ ६१ ॥ पण दो खीण दु जोगी, णुदीरयु अजोगि थोव उवसंता। संखगुण खीण सुहुमा-निअट्टिअपुत्व सम अहिआ॥६२॥ जोगि अपमत्त इअरे, संखगुणा देसुसासणा मीसा। अविरइ अजोगिमिच्छा, असंखचउरो दुवेणंता ॥३॥ उवसमखयमीसोदय-परिणामा दु नव द्वार इगवीसा। तिअभेअ सन्निवाइअ, सम्मं चरणं पढमभावे ॥६४॥ बीए केवलजुअलं, सम्मं दाणाइलद्धिपण चरणं। तइए सेसुवओगा, पण लद्धी सम्मविरइदुगं ॥६५॥ अन्ना. णमसिद्धत्ता-संजमलेसाकसायगइवेया । मिच्छं तुरिए भवा-भवत्तजिअत्त परिणामे ॥ ६६ ॥ चउ चउगईसु मीसग-परिणामुदएहिं चउ सखइएहिं। उवसमजुएहिं वा चउ, केवलि परिणामुदयखइए ॥६७॥ खयपरिणामि सिद्धा, नराण पणजोगुवसमसेढीए। इअ पनर

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