Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan
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(૧૯ર) કર્મ પ્રકૃતિ યંત્ર ગણિતમાલા. तिहा समयवाससयसमए। केसवहारो दीवो-दहिआ. उतसाइपरिमाणं ॥८५॥ दव्वे खित्ते काले, भावे चउह दुह बायरो सुहुमो; होइ अणंतुस्सप्पिणि-परिमाणो पुग्गलपरहो ॥८६॥ उरलाइसत्तगेणं, एगजिओ मुअइ फुसिअ सबअणू। जत्तिअकालि स थूलो, दव्वे सुहुमो सगन्नयरा ॥८७॥ लोगपएसोसप्पिणि-समया अणुभागबंधठाणा य, जहतह कममरणेणं, पुट्ठा खिताइ. थूलिअरा ॥ ८॥ अप्पयरपयडिबंधी, उक्कडजोगी अ सन्निपजत्तो, कुणइ पएसुक्कोसं, जहन्नयं तस्स वच्चासे ॥८९॥ मिच्छअजयचउआऊ, बितिगुणविणुमोहिसत्तमिच्छाई। छण्हं सतरस सुहुमो, अजया देसा वितिकसाए ॥१०॥ पणअनिअट्टीसुखगइ, नराउसुरसुभगतिगविउविदुगं । समचउरंसमसायं, वइर मिच्छो व सम्मोह पयलादुजुअल-भयकुच्छातित्थ सम्मगो सुजई। आहारदुर्ग सेसा, उक्कोसपएसगा मिच्छो ॥९२॥ सुमुणी दुन्नि असन्नी, निरयतिगसुरा
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