Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan
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(૬) કમ પ્રકૃતિ યંત્ર ગણિત માલા भुंभलाईअं। विग्धं दाणे लाभे, भोगुवभोगेसु विरिए अ ॥५२॥ सिरिहरिअसमं एअं, जह पडिकूलेण तेण रायाई। न कुणइ दाणाईअं, एवं विग्घेण जीवो वि ॥५३१ पडिणीअत्तणनिन्हव उवघायपओसअंतराएगं। अचासायणयाए, आवरणदुर्ग जिओ जयई ॥५४॥ गुरुभत्तिखंतिकरुणा-वयजोगकसायविजयदाणजुओ। दढधम्माई अजइ, सायमसायं विवजयओ ॥ ५५ ॥ उम्मग्गदेसणामग्ग-नासणादेवदवहरणेहि। दंसणमोहं जिणमुणि-चेइअसंघाइपडिणीओ ॥ ५६ । दुविहंपि चरणमोहं, कसायहासाइविसयविवसमणो; बंधइ निर. याउ महा-रंभपरिगहरओ रुदो ॥ ५७ ॥ तिरिआउ गूढहिअओ, सढो सप्तल्लो तहा मणुस्साऊ । पयईई तणुकसाओ, दाणई मज्झिमगुणो अ॥५८॥ अविरयमाइ सुराउं, बालतवोऽकामनिजरो जयई। सरलो अगारविल्लो, सुहनामं अन्नहा असुहं ॥५९॥ गुणपेहो मयरहिओ, अज्झयणज्झावणाई निच्चं। पकुणइ जिणाइभत्तो, उच्चं नीअं इअरहा उ ॥६०॥ जिणपू.
आविग्घकरो, हिंसाइपरायणो जयइ विग्घं। इअकम्म विवागोऽयं, लिहिओ देविंदसूरीहिं ॥ ६१ ॥

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