Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan

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Page 187
________________ (१७४) કમ પ્રકૃતિ યંત્ર ગણિતમાલા दया अट्ठ तेरससु ॥७॥ सत्तट्ट छेग बंधा, संतुदया सत्त अठ्ठ चत्तारि । सत्तट्ट छ पंच दुगं, उदीरणा सन्नि पज्जते ॥ ८ ॥ गइ इंदिए य काए, जोए वेए कसाय नाणेसु । संजम दंसण लेसा, भव सम्मे सन्नि आहारे ॥ ९ ॥ सुरनरतिरिनिरयगई, इगबिअतिअवउपनिंदि छक्काया, भूजलजलणानिलवण तसा य मणवयणतणुजोगा ||१०|| वेअ नरित्थिनपुंसा, कसाय कोहमयमा - यलोभति । मइसुअवहिमणकेवल, विभंगमइसुअनाणसागारा ॥ ११ ॥ सामाइअछे अपरिहार, सुहुमअहख्खायदेसजयअजया । चख्खु अचख्खु ओही- केवलदंसण अणागारा ॥ १२ ॥ किण्हा नीला काऊ, तेऊ पहा य सुक्क भविअरा । वेअग खइगुवसम मिच्छमीस सासाण सन्निअरे ॥ १३ ॥ आहारेअर भेआ, सुरनिरयविभंगमइसुओहिदुगे । सम्मत्ततिगे पम्हा, सुक्का सन्नी सन्निदुगं ॥ १४ ॥ तमसन्नि अपज्जजुयं, नरे सबायरअपज तेउए । थावरइगिंदि पढमा, चउ बार अन्नि दुदु विगले ॥ १५ ॥ दस चरिम तसे अजया- हारगतिरितणुकसायदुअनाणे । पढमतिलेसा भविअर - अचख्खुन पुमिच्छि सव्वेवि ॥१६॥ पजसन्नी केवलदुगे, संजममणनाणदेसमणमीसे । पण चरिम पज्ज वयणे, तिय छ व पजिअर चख्खुंमि ॥ १७ ॥ ·

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