Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan

View full book text
Previous | Next

Page 183
________________ (૧૭૦) કમ પ્રકૃતિ યંત્ર ગણિત માલા पणसीइ सजोगि, अजोगि दुचरिमे देवखगइगंधदुगं। फास वन्नरसतणु-बंधणसंघायपण निमिणं ॥३१॥ संघयण अथिर संठाण-छक्क अगुरुलहुचउ अपजतं; सायं व असायं वा, परितुवंगतिग सुसर निअं॥३२॥ बिसयरिखओ अचरिमे, तेरसमणुअतसतिगजसाइजं; सुभगजिणुच्चपणिदिअ, सायासाएगयरछेओ ॥३३॥ नरअणुपुविविणा वा, बारस चरिमसमयंमि जो खविउं। पत्तो सिद्धिं देविंद-वंदिअं नमह तं वीरं ॥३४॥ | ॥ अथ बंधस्वामित्व नामा तृतीय कर्मग्रंथ ॥ | बंधविहाणविमुक्कं, वंदिय सिरिवद्धमाणजिणचंदं । गडआईसं वच्छं, समासओ बंधसामित्तं ॥१॥ गड इंदिए य काए, जोए वेए कसाय नाणे य; संजम दसण लेसा, भव सम्मे सन्नि आहारे ॥२॥ जिणसुरविउवाहारदु, देवाउ य निरयसुहमविगलतिगं; एगिदि थावरायव, नपु मिच्छं हुंड छेवठं ॥३॥ अणमझा. गिइसंघयण, कुखगइनियइत्थिदुहगथीणतिग। उज्जोअ तिरिदुगंतिरि-नराउ नरउरलदुगरिसहं ॥४॥ सुरइगुणवीसवजं, इगसउ ओहेण बंधहिं निरया। तित्थविणा मिच्छि सयं, सासणि नपुचउविणा छनुइ ।५।

Loading...

Page Navigation
1 ... 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218