Book Title: Karm Prakruti Ganitmala
Author(s): Devshreeji, Hetshreeji
Publisher: Vitthalji Hiralalji Lalan
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1. अथ कर्मस्तवनामा द्वितीय कर्मग्रंथ ॥
तह थुणिमो वीरजिणं, जह गुणठाणेसु सयलकम्माई । बंधुदओदीरणया सत्तापत्ताणि खविआणि ॥१॥ मिच्छे सासण मीसे अविरय देसे पमत्त अपमते । निअहिअनि अट्टि सुहु-मुत्रसमखीणसजोगिअजोगिगुणा ॥२॥ अभिनवकम्मग्गहणं, बंधो ओहेण तत्थ वीससयं । तित्थयराहारगदुग- वजं मिच्छंमि सतरसयं ॥ ३॥ नरयतिग जाइथावर चउ हुंडायव छिवठ्ठन पुमिच्छं । सोलंतो इगहिअसय, सासणि तिरिथीणदुहगतिगं ४ अणमज्झागि संघयण - चउनिउज्जोअकुखगइत्थित्ति; पणवीसंतो मीसे, चउसयरि दुहाउअ अबंधा ॥ ५ ॥ सम्मे सगसयरि जिणा - उबंधि वइरनरतिअबिअकसाया; उरलडुगंतो देसे, सत्तठ्ठी तिअकसायंतो ॥६॥ तेवहि पमते सो ग अरइ अधिरदुग अजस अस्सायं । वच्छिन छच्च सत्त व, नेइ सुराउं जया निहं ॥ ७ ॥ गुणसहि अप्पमत्ते, सुराउ बंधंतु जइ इहागच्छे | अन्नह अट्ठावण्णा, जं आहारगदुगं बंधे ॥८॥ अडवन्न अपुवाइंमि, निद्ददुगंतो च्पन्न पणभागे । सुरदुगपणिंदिसुखगइ - तसनवउरलविणुतणुवंगा ||९|| समचउ

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