Book Title: Kalpsutravrutti Subodhikabhidhana
Author(s): Vinayvijay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कल्प.
सयो.
||५२६॥
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श्यामेव युक्तं, दिनगणनायां त्वधिकः मासः कालचूलेत्यविवक्षणादिनानां सप्ततिरेवेति कुतः समवायाङ्गवचनबाधा इति, यतो यथा चतुर्मासकानि आषाढादिमासप्रतिबद्धानि तथा पर्युषणापि भाद्रपदमासप्रतिबद्धा तत्रैव कर्त्तव्या, दिनगणनायां अधिकमासः कालचूलेत्यविवक्षणाद् दिनानां पञ्चाशदेव, कुतोऽशीतिवार्त्तापि, न च भाद्रपदप्रतिबद्धत्वं पर्युषणाया अयुक्तं, बहुवागमेष तथा प्रतिपादनात् तथाहि-अन्नया पज्जोसवणादिवसे आगए अज्जकालगेण सालिवाहणो भणिओ भद्दवयजुण्हपंचमीए पज्जोसवणा, इत्यादि पर्युषणाकल्पचूर्णी, तथा-तत्थ य सालिवाहणो राया, सो अ सावगो, सो अ कालगजं तं इंतं सोऊण निग्गओ अभिमुहो, समणसंघो अ, महाविभूइए पविट्ठो कालगज्जो, पविटेहि अ भणिअं 'भद्दवयसुद्धपंचमीए पज्जोसविज्जाइ,' समणसंघेण पडिवण्णं, ताहे रण्णा भणिअं, तदिवसं मम लोगाणुवत्तीए इंदो अणुजाए(णे)अब्बो होहित्ति साहुचेइए ण पज्जुवासिस्सं, ते छट्ठीए पजोसवणा किज्जउ, आयरिएहिं भणिअं, न वट्टति अइक्कमिउं, ताहे रण्णा भणिअं, अणागयचउत्थीए पज्जोसविंति, आयरिएहिं भणिअं, एवं भवउ, ताहे चउत्थीए पज्जोसवितं, एवं जुगप्पहाणेहिं कारणे चउत्थी | पवत्तिआ, सा चेवाणमया सब्बसाहूणमित्यादिश्रीनिशीथचूर्णिदशमोद्देशके, एवं यत्र कुत्रापि पर्युषणानिरूपणं तत्र
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