Book Title: Kalpsutravrutti Subodhikabhidhana
Author(s): Vinayvijay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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कल्प.
"000000000000000000000000000000000000000000
तत्थ से पुवागमणेणं पुवाउत्ते भिलिंगसूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए-नो कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए ॥३४॥ तत्थ से पुवागमणेणं दोवि पच्छाउत्ताई, एवं नो से कप्पंति दोवि पडिगाहित्तए-जे से तत्थ पुव्वागमणेणं पुवाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए, जे से तत्थ पुवागमणेणं पच्छाउत्ते से नो कप्पइ पडिगाहित्तए ॥३५॥
(तत्थ से पुवागमणेणं पुब्बाउत्ते भिलिंगसूत्रे पच्छाउत्ते चाउलोदणे ) तत्र गृहे तस्य आगमनात् प्राक् पूर्वायुक्तः मसूरादिदालिः पश्चादायुक्तः तण्डुलौदनः, तदा ( कप्पइ से मिलिंगसूत्रे पडिगाहित्तए) कल्पते तस्य मसूरादिदालिः प्रतिग्रहीतुं ( नो से कप्पइ चाउलोदणे पडिगाहित्तए) नो तस्य कल्पते तण्डुलौदनं प्रतिग्रहीतुं ॥ ३४ ॥ ( तत्थ से पुवागमणेणं दोवि पच्छाउत्ताई एवं नो से कप्पइ दोवि पडिगाहित्तए ) तत्र गृहे तस्य आगमनात् प्राक् द्वावपि प्रतिग्रहीतुं (जे से तत्थ पुवागमणेणं पुब्बाउत्ते से कप्पइ पडिगाहित्तए ) यत् तस्य तत्र आगमनात् प्राक् पूर्वायुक्तं तत् कल्पते प्रतिग्रहीतुं (जे से तत्थ पुवागमणेणं पच्छाउत्ते नो से कप्पइ पडिगाहित्तए ) यत् तस्य तत्र आगमनात् प्राक् पश्चादायुक्तं न तत् कल्पते प्रतिग्रहीतुं ॥ ३५ ॥
0000000000000000000000000000000000000000000,
५५॥
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