Book Title: Kalpsutravrutti Subodhikabhidhana
Author(s): Vinayvijay,
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
View full book text
________________
करप.
1+0000000000000000000000000000000000000000000000000004
से तं पणगसुहुमे २ ॥ से किं तं बोअसुहुमे ? बी० पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा,-किले जाव सुकिल्ले, अस्थि बीअसुहुमे कणियासमाणवन्नए नामं पण्णत्ते, जे छउमत्थेणं जाव पडिलेहियब्वे भवइ ? से तं बीअसुहुमे ३ ॥ से किं तं हरियसुहुमे ? ह. पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा,-किढे जाव
सुकिल्ले, अस्थि हरिअसुहुमे पुढवीसमाणवन्नए नामं पण्णत्ते, पन्नत्तेत्यत्र नाम प्रसिद्धौ ( से तं पणगसहमे ) स सूक्ष्मपनकः ॥ ( से किं तं बीअसहमे ) अथ कानि तत् सूक्ष्मबीजानि, गुरुराह ( बीयसुहुमे पंचविहे पन्नत्ते ) सूक्ष्मबीजानि पञ्चविधानि प्रज्ञप्तानि ( तंजहा) तद्यथा (किण्हे जाव सकिल्ले ) कृष्णानि यावत् शक्कानि ( अत्थि बीअसहमे कणियासमाणवण्णए नाम पण्णते) सन्ति सूक्ष्मबीजानि, कणिका नखिका ' नहीउं' इति लोके तत्समानवर्णानि नाम प्रज्ञप्तानि (जे छउमत्थेणं जाव पडिलेहियव्वे भवइ) यानि छद्मस्थेन यावत् प्रतिलेखितव्यानि भवन्ति (से तं बीअसुहुमे) तानि सूक्ष्मबीजानि ॥ (से किं तं हरियसुहुमे) अथ कानि तत् सूक्ष्महरितानि, गुरुराह ( हरियसुहुमे पंचविहे पन्नत्ते) सूक्ष्महरितानि पञ्चविधानि प्रज्ञप्तानि (तं जहा ) तद्यथा (किण्हे जाव सुकिल्ले ) कृष्णानि यावत् शुक्लानि ( अस्थि
ta ao deodocdeococacolada gooeae00000000000
Jain Education Int!
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618