Book Title: Kalpsutravrutti Subodhikabhidhana
Author(s): Vinayvijay, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 568
________________ कल्प. 00000000000000000000000000000000000000000000000000 रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिज्जा, जहा से तत्थ पाणिसि दए वा दगरए वा दगफुसिआ वा नो परिआवज्जइ ॥ २९॥ वासावासं पज्जो० पाणिपडिग्गहस्स भिक्खुस्स जंकिंचि कणगफुसियमित्तंपि निवडेति, नो से कप्पइ गाहावइकुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ॥३०॥ गृहिभिः स्वनिमित्तमाच्छादितानि गृहाणि उपागच्छेत् ( रुक्खमूलाणि वा उवागच्छिना) वृक्षमूलानि वा उपा गच्छेत् ( जहा से तत्थ पाणिसि दए वा दगरए वा दगफुसिया वा नो परिआवज्जइ ) यथा तस्य तत्र पाणी दकरजांसि महान्तो बिन्दवः, दगफुसिआ फुसारं अवश्यायालघवो बिन्दवो वा न विराध्यन्ते, पतन्ति वा, यद्यपि जिनकल्पिकादेर्देशोनदशपर्वधरत्वेन प्रागेव वर्षोपयोगो भवति, तथा चाईमुक्ते गमनं न सम्भवति, तथापि छद्मस्थत्वात कदाचिदनपयोगोऽपि भवति ॥ २९ ॥ उक्तमेवार्थ निगमयन्नाह-(वासावासं पज्जोसवियस्स) | चतुर्मासकं स्थितस्य ( पाणिपडिग्गहियस्स भिक्खुस्स ) पाणिपात्रस्य भिक्षोः (जकिंचि कणगफुसियमित्तंपि | निवडेति) यत्किञ्चित् कणो लेशस्तन्मात्रकं पानीयं कणकं तस्य फुसिआ फुसारमानं तस्मिन्नपि निपतति (नो से | 0.00000000000000000000000000000000000000000000000 ॥५५० Jain Education indi For Private Personal Use Only Mw.jainelibrary.org

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