Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 583
________________ ૫૭૦ નાટક સમયસારના પદ સમ્યક્ત્વનાં આઠ અંગોનું સ્વરૂપ. (સવૈયા એકત્રીસા) धर्ममैं न संसै सुभकर्म फलकी न इच्छा, __ असुभकौ देखि न गिलानि आनै चितमैं। सांची दिष्टि राखै काहू प्रानीको न दोष भाखै, चंचलता भानि थिति ठानै बोध वितमैं ।। प्यार निज रूपसौं उछाहकी तरंग उठे, एई आठौं अंग जब जागै समकितमैं। ताहि समकितकौं धरै सो समकितवंत, वहै मोख पावै जौ न आवै फिरि इतमैं ।।६० ।। ચૈતન્ય નટનું નાટક (સવૈયા એકત્રીસા) पूर्व बंध नासै सो तो संगीत कला प्रकासै, नव बंध संधि ताल तोरत उछरिकै। निसंकित आदि अष्ट अंग संग सखा जोरि, समता अलाप चारी करै सुर भरिकै।। निरजरा नाद गाजै ध्यान मिरदंग बाजै, छक्यौ महानंदमै समाधि रीझि करिकै। सत्ता रंगभूमिमैं मुकत भयौ तिहूं काल, नाचै सुद्धदिष्टि नट ग्यान स्वांग धरिकै।।६१ ।। प्रतिशu (हो२) कही निरजराकी कथा, सिवपथ साधनहार। अब कछु बंध प्रबंधकौ, कहूं अलप विस्तार ।।१।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609