Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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પ૯૦
નાટક સમયસારના પદ
वणी -
जैसै छैनी लोहकी, करै एकसौं दोइ। जड़ चेतनकी भिन्नता त्यौं सुबुद्धिसौं होई।।४।।
સુબુદ્ધિનો વિલાસ (સર્વ વર્ણ લઘુ ચિત્રકાવ્ય ઘનાક્ષરી) धरति धरम फल हरति करम मल,
__ मन वच तन बल करति समरपन । भखति असन सित चखति रसन रित,
लखति अमित वित करि चित दरपन ।। कहति मरम धुर दहति भरम पुर,
गहति परम गुर उर उपसरपन। रहति जगति हित लहति भगति रति,
चहति अगति गति यह मति परपन ।।५।।
સમ્યજ્ઞાનીનું મહત્વ (સર્વ વર્ણ ગુરુ. સવૈયા એકત્રીસા) राणाकौसौ बाना लीनै आप साधै थाना चीन,
दानाअंगी नानारंगी खाना जंगी जोधा है। मायाबेली जेती तेती रेतमैं, धारेती सेती,
फंदाहीकौ कंदा खौदै खेतीकौसौ लोधा है।। बाधासेती हांता लोरै गधासेती तांता जोरै,।
बांदीसेती नाता तोरै चांदीकौसौ सोधा है। जाने जाहो ताही नीकै मानै गही पाही पीकै,
ठानै बातें डाही ऐसी धारावाही बोधा है।।६।।
જ્ઞાની જીવ જ ચક્રવર્તી છે (સવૈયા એકત્રીસા) जिन्हकै दरब मिति साधन छखंड थिति,
बिनसै विभाव अरि पंकति पतन हैं। जिन्हकै भगतिको विधान एई नौ निधान,

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