Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust

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Page 605
________________ ૫૯૨ तातै जीव दरबकौ चेतना आधार है । । १० ।। નાટક સમયસારના પદ (छोहरा) चेतन लक्षन आतमा, आतम सत्ता मांहि । सत्तापरिमित वस्तु है, भेद तिहूं मैं नांहि । । ११ । । आत्मा नित्य छे. (सवैया तेवीसा) ज्यौं कलधौत सुनारकी संगति, भूषन नाम कहै सब कौई । कंचनता न मिटी तिहि हेतु, वहै फिरि औटिके कंचन होई ।। त्यौं यह जीव अजीव संजोग, भयौ बहुरूप भयौ नहि दोई। चेतनता न गई कबहूं, तिहि कारन ब्रह्म कहावत सोई । । १२ । । સુબુદ્ધિ સખીને બ્રહ્મનું સ્વરૂપ સમજાવે છે. (સવૈયા તેવીસા) देखु सखी यह ब्रह्म विराजीत, याकी दसा सब याहीको सोहै । एकमैं एक अनेक अनेकमैं दुंद लियै दुविधामह दो है ।। आपु संभारि लखै अपनौ पद, आपु विसारिकै आपुहि मोहै । व्यापकरूप यहै घट अंतर, ग्यानमैं कौन अग्यानमैं को है । । १३ ।

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