Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
નાટક સમયસારના પદ
પ૯૩
આત્મ-અનુભવનું દૃષ્ટાન્ત (સવૈયા તેવીસા) ज्यौं नट एक धरै बहु भेख,
कला प्रगटै बहु कौतुक देखै। आपु लखै अपनी करतूति,
वहै नट भिन्न विलोकत भेखै।। त्यौं घटमैं नट चेतन राव,
विभाउ दसा धरि रूप विसेखै। खोलि सुद्दष्टि लखै अपनौं पद,
दुंद विचारि दसा नहि लेखै।।१४ ।।
હેય-ઉપાદેય ભાવો ઉપર ઉપદેશ (છંદ અડિલ્સ) *जाके चेतन भाव, चिदानंद सोइ है।
और भाव जो धरै, सौ औरौ कोइ है।। जो चिनमंडित भाउ, उपादे जाननैं
त्याग जोग परभाव, पराये माननैं।।१५।।
જ્ઞાની જીવ ચાહે ઘરમાં રહે, ચાહે વનમાં રહે, પણ મોક્ષમાર્ગ સાધે છે.
(सवैया मेत्रीस) जिन्हकै सुमति जागी भोगसौं भये विरागी,
परसंग त्यागी जे पुरुष त्रिभुवनमैं। रागादिक भावनिसौं जिनिकी रहनि न्यारी,
कबहूं मगन है न रहैं धाम धनमैं ।। जे सदैव आपको विचारै सरवांग सुद्ध,
जिन्हकै विकलता न व्यापै कहूं मनमैं। तेई मोख मारगके साधक कहानै जीव,
भावै रहौ मंदिरमैं भावै रहौ वनमैं ।।१६।।

Page Navigation
1 ... 604 605 606 607 608 609