Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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નાટક સમયસારના પદ
त्रिगुनके भेद मानौ चौदह रतन हैं । । जिन्हकै सुबुद्धिरानी चूरै महा मोह वज्र,
पूरै मंगलीक जे जे मोखके जतन हैं । जिन्हकै प्रमानि अंग सौहै चमू चतुरंग, तेई चक्रवर्ती तनु धरैं पै अतन हैं ।।७।।
नव लस्तिना नाम (छोहरा)
श्रवन कीरतन चिंतवन, सेवन बंदन ध्यान । लघुता समता एकता, नौधा भक्ति प्रवान । । ८ । ।
જ્ઞાની જીવોનું મંતવ્ય (સવૈયા એકત્રીસા) *कोऊ अनुभवी जीव कहै मेरे अनुभौमैं,
लक्षन विभेद भिन्न करमको जाल है । जानै आपा आपको जु आपुकरि आपुविषै,
उतपति नास ध्रुव धारा असराल है ।। सारे विकलप मोसौं न्यारे सरवथा मेरौ,
निचै सुभाव यह विवहार चाल है । मैं तौ सुद्ध चेतन अनंत चिनमुद्रा धारी,
प्रभुता हमारी एकरूप तिहुं काल है । ।९ ।।
આત્માના ચેતન લક્ષણનું સ્વરૂપ (સવૈયા એકત્રીસા) निराकार चेतना कहावै दरसन गुन,
साकार चेतना सुद्ध ज्ञान गुनसार है । चेतना अद्वैत दोऊ चेतन दरब मांहि,
सामान विशेष सत्ताहीको विसतार है । । कोऊ कहै चेतना चिहन नांही आतमामैं,
चेतनाके नास होत त्रिविध विकार है । लक्षनकौ नास सत्ता नास मूल वस्तु नास,
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