Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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નાટક સમયસારના પદ
૫૮૯
6 મોક્ષ દ્વાર છે
प्रतिशत (होड२) बंधद्वार पूरौ भयौ, जो दुख दोष निदान। अब बरनौं संक्षेपसौं, मोखद्वार सुखथान ।।१।।
મંગલાચરણ સવૈયા એકત્રીસા) भेदग्यान आरासौं दुफारा करै ग्यानी जीव,
आतम करम धारा भिन्न भिन्न चरचै । अनुभौ अभ्यास लहै परम धरम गहै,
करम भरमको खजानौ खोलि खरचे, यौही मोख मुख धावै केवल निकट आवै,
पूरन समाधि लहै परमको परचै। भयौ निरदौर याहि करनौ न कछु और,
ऐसौ विश्वनाथ ताहि बनारसी अरचै ।।२।।
સમ્યજ્ઞાનથી આત્માની સિદ્ધિ થાય છે. (સવૈયા એકત્રીસા) काहू एक जैनी सावधान है परम पैनी,
ऐसी बुद्धि छैनी घटमांहि डार दीनी है। पैठी नो करम भेदि दरव करम छेदि,
सुभाउ विभाउताकी संधि सोधि लीनी है।। तहां मध्यपाती होय लखी तिन धारा दोय,
एक मुधामई एक सुधारस-भीनी है। मुधासौं विरचि सुधासिंधुमैं मगन भई,
ऐती सब क्रिया एक समै बीचि कीनी है।।३।।

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