Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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૫૮૪
નાટક સમયસારના પદ
भूख सहै प्यास सहै दुर्जनको त्रास सहै,
थिरता न गहै न उसास लहै छनकौ। पराधीन धूमै जैसौ कौल्हूको कमेरौ बैल,
तैसौई स्वभाव या जगतवासी जनकौ।।४२ ।।
સંસારી જીવોની હાલત. (સવૈયા એકત્રીસા) जगतमैं डोलैं जगवासी नररूप धरै,
प्रेतकेसे दीप किधौं रेतकेसे थूहे हैं। दीसैं पट भूषन आडंबरसौं नीके फिरि,
फीके छिनमांझ सांझ-अंबर ज्यौं सूहे हैं।। मोहके अनल दगे मायाकी मनीसौं पगे, ___डाभकी अनीसौं लगे ओसकेसे फूहे हैं। धरमकी बूझ नांहि उरझे भरममांहि,
नाचि नाचि मरि जांहि मरीकेसे चूहे हैं।।४३ ।।
ધનસંપત્તિનો મોહ દૂર કરવાનો ઉપદેશ. (સવૈયા એકત્રીસા) जासौं तू कहत यह संपदा हमारी सो तौ,
साधनि अडारी ऐसैं जैसे नाक सिनकी। ताहि तू कहत याहि पुन्नजोग पाई सो तौ,
नरककी साई है बड़ाई डेढ़ दिनकी।। घेरा मांहि पस्यौ तू विचारै सुख आंखिनकौ,
माखिनके चूटत मिठाई जैसै भिनकी। एते परि होहि न उदासी जगवासी जीव,
जगमैं असाता है न साता एक छिनकी।।४४।।
લૌકિકજનોનો મોહ દૂર કરવાનો ઉપદેશ. (દોહરા) ए जगवासी यह जगत्, इन्हसौं तोहि न काज। तेरै घटमैं जग बसै, तामैं तेरौ राज।।४५।।

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