Book Title: Kalashamrut Part 5
Author(s): Kanjiswami
Publisher: Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust
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નાટક સમયસારના પદ
શરીરમાં ત્રણલોકનો વિલાસ ગર્ભિત છે. (સવૈયા એકત્રીસા) याही नर-पिंडमैं विराजै त्रिभुवन थिति,
याहीमैं त्रिविधि परिनामरूप सृष्टि है । याहीमैं करमकी उपाधि दुख दावानल,
याहीमैं समाधि सुख वारिदकी वृष्टि है ।। याहीमैं करतार करतूतिही मैं विभूति,
यामैं भोग याहीमैं वियोग या घृष्टि है। याहीमैं विलास सब गर्भित गुपतरूप,
ताहीकौं प्रगट जाके अंतर सुद्दष्टि है । । ४६।।
આત્મવિલાસ જાણવાનો ઉપદેશ. (સવૈયા તેવીસા) रे रुचिवंत पचारि कहै गुरु,
तू अपना पद बूझत नांही । खोजु हियें निज चेतन लच्छन,
है निजमैं निज गूझत नांही । । सुद्ध सुछंद सदा अति उज्जल,
मायाके फंद अरुझत नांही । तेरौ सरूप न दुंदकी दोही मैं,
तोही मैं है तोहि सूझत नांही । । ४७ ।।
આત્મસ્વરૂપની ઓળખાણ જ્ઞાનથી થાય છે. (સવૈયા તેવીસા) केई उदास रहैं प्रभु कारन,
केई कहैं उठि जांहि कहींकै । केई प्रनाम करें गढ़ि मूरति,
केई पहार चढै चढ़ि छींके ।। केई कहैं असमानके ऊपरि,
केई कहैं प्रभु हेठि जमींकै । मेरो धनी नहि दूर दिसन्तर,
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