Book Title: Kaise Soche Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 5
________________ हृदय-परिवर्तन तब घटित होता है जब आंतरिक परिवर्तन होता है। आंतरिक परिवर्तन के तीन अंग हैं - भाव का परिवर्तन, विचार का परिवर्तन और रसायनों का परिवर्तन। भाव विचार को पैदा करता है। विचार भाव को पैदा नहीं करता। जैसा भाव वैसा विचार। जब भाव बदलता है तो विचार भी बदलता है और मन भी बदलता है। जब विचार और मन बदलते हैं तब आंतरिक रसायन भी बदलते हैं। यहीं से हृदय-परिवर्तन प्रारंभ होता है। भाव, विचार और रसायनों के बदलने की प्रक्रिया एक अनुस्यूत प्रक्रिया है। यह आश्रव-शोधन की प्रक्रिया है। यह हृदय-परिवर्तन की प्रक्रिया है। इसके पांच सूत्र हैं-- १. एकाग्रता का अभ्यास २. समता का अभ्यास ३. जागरूकता का अभ्यास ४. वस्तु-निष्ठ आकर्षण का परिवर्तन ५. मिथ्यादृष्टिकोण का परिवर्तन । ० भय-मुक्ति भय की उत्पत्ति के चार मूल स्रोत हैं१. सत्त्वहीनता २. भय की मति ३. भय का सतत चिंतन ४. भय के परमाणुओं का उत्तेजित होना। भय की पांच प्रतिक्रियाएं हैं-रोग, बुढ़ापा, मरण, विस्मृति और पागलपन । भय-मुक्ति के साधन कौन-कौन से हैं और प्रेक्षा-ध्यान की प्रक्रिया उन साधनों के क्रियान्वयन में कैसे सहयोग करती है-यह सब इस अध्याय में विवृत है। ___ मैंने चिन्तन की प्रक्रिया के कुछ सूत्र, हृदय-परिवर्तन के कुछ उपाय और भय-मुक्ति के कुछ साधनों की चर्चा प्रस्तुत पुस्तक में की है। इस विचार-मंथन की प्रक्रिया में आचार्यश्री तुलसी का सारस्वत अनुग्रह और मुनि दुलहराजजी का सम्पादन-कौशल प्रत्यक्ष है। चिंतन की धारा में एक निमज्जन उन्मज्जन का हेतु बन सकेगा। -आचार्य महाप्रज्ञ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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