Book Title: Kaise Soche Author(s): Mahapragna Acharya Publisher: Jain Vishva Bharati View full book textPage 4
________________ प्रस्तुति प्रस्तुत पुस्तक में तीन प्रश्नों की विशद चर्चा की गई है१. कैसे सोचें ? २. हृदय-परिवर्तन के सूत्र क्या हैं ? ३. भय-मुक्ति के उपाय क्या हैं ? ० कैसे सोचें ? मनुष्य मन वाला प्राणी है, इसलिए वह सोचता है। सोचना मन का काम है। पशु भी मन वाला प्राणी है, पर उसका नाड़ी-संस्थान विकसित नहीं होता, इसलिए उसमें सोचने की क्षमता भी विकसित नहीं होती। मनुष्य का नाड़ी-संस्थान विकसित होता है, इसलिए वह सोचने की उच्चतम भूमिका तक जा सकता है। शरीर और मन का परस्पर गहरा संबंध है। शरीर से मन प्रभावित होता है और मन से शरीर प्रभावित होता है। मन शरीर को अधिक प्रभावित करता है। इस पारस्परिक प्रभाव के अध्ययन के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया कि मनुष्य का चिन्तन विधायक या रचनात्मक होता है तब शरीर भी स्वस्थ रहता है। निषेधात्मक चिन्तन शारीरिक विकृति भी पैदा करता है। मोहनीय कर्म या मूर्छा से जुड़ा हुआ सारा का सारा चिन्तन निषेधात्मक होता है। मूर्छा की उपशांति के क्षणों में होने वाला चिन्तन विधायक बन जाता है। विधायक चिन्तन से सामाजिक और मानवीय संबंधों में सुधार होता है। उससे विकास और प्रगति का पथ प्रशस्त हो जाता है। निषेधात्मक भावों से सामाजिक और मानवीय संबंधों में कटुता पैदा होती है, प्रगति का पथ अवरुद्ध हो जाता है। प्रेक्षाध्यान के अभ्यास से निषेधात्मक भाव कम होते जाते हैं और विधायक भाव बढ़ते चले जाते हैं। ० हृदय-परिवर्तन विश्व का समूचा विकास परिवर्तन का विकास है। जो जैसे है वैसे ही रहे तो विकास सम्भव नहीं होता। मनुष्य बाहरी परिस्थिति को बदलने में बहुत सफल हुआ है। उसे आंतरिक परिस्थिति के बदलाव में उतनी सफलता नहीं मिली है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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