Book Title: Kailashsagarsuriji Jivan yatra
Author(s): Mitranandsagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक दिन मुनिश्री ने सहज में ही उनसे पूछा 'काशीराम ! तुम मात्र पुस्तक ले जाकर पुनः ले आते हो या उसे पढ़ते भी हो ।' काशीराम ने नम्रता पूर्वक कहा 'आप पुस्तक से कोई भी प्रश्न पूछ लीजिए । में पढ़ता हूँ या नहीं, यह स्वयं सिद्ध हो जाएगा ।' यह जवान सुनकर मुनिश्री को बहुत प्रसन्नता हुई । काशीराम की याद शक्ति इतनी अपूर्व थी कि वे जिस किसी पुस्तक को एक या दो बार पढ़ते वह उन्हें पूरी तरह याद रह जाती । जीवन परिवर्तन करनेवाली वह पुस्तक काशीराम जन्म से ही स्थानकवासी मान्यता के होने के कारण पहले से ही मूर्तिपूजा के कट्टर विरोधी थे । कई बार वे मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के लोगों के साथ चर्चा में भी उतर जाते थे । मूर्ति को पत्थर कहकर स्वयं के मन का विरोध भी वे कई बार प्रकट करते थे । प्रतिदिन की भांति एक दिन काशीराम एक पुस्तक अपने घर लाए । संयोग वश उस दिन मुनिश्री के ध्यान में यह नहीं रहा कि काशीराम कौनसी पुस्तक अपने घर ले गया है । वह पुस्तक मूर्तिपूजा के सन्दर्भ में थी । पुस्तक में जगह-जगह शास्त्रों के सन्दर्भ, आगमों के अवतरण देकर यह सिद्ध किया गया था कि मूर्तिपूजा शास्त्र सम्मत है । इतना ही नहीं, स्थानकवासी सम्प्रदाय को मान्य ऐसे ग्रन्थों से भी कई उदाहरण देकर यह प्रमाणित किया गया था कि मूर्तिपूजा करनी चाहिए । www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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