Book Title: Kailashsagarsuriji Jivan yatra
Author(s): Mitranandsagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir किया था, फलस्वरूप काशीराम शुरू से ही धार्मिक एवं सुसंस्कारी थे । वे अपने माता-पिता, गुरुजनों एवं बड़ों के प्रति अत्यंत आदर रखते थे। विनम्रता और मृदुभाषिता जैसे गुण तो उन्हें अपने माता-पिता की ओर से विरासत में मिले थे । काशीराम जब पाटशाला में थे, तभी उन्हें स्थानकवासी मुनि श्री छोटेलालजी म. का परिचय हुआ था । शुरू से ही आपको आत्मसंशोधन की जिज्ञासा थी, जो मुनिश्री के परिचय में आकर और ज्यादा सुदृढ़ बनी, इतना ही नहीं, आगे चलकर मुनि श्री के पास दीक्षित बनने की भावना भी उनमें जाग्रत हुई । माता-पिता को इस बात का पता चलते ही तत्काल उन्होंने काशीराम को सांसारिक संबंधों में बांधने का निर्णय ले लिया और रामपुरा फूल निवासी शांतादेवी नामक एक सुन्दर-सुशील कन्या के साथ काशीराम का विवाह कर दिया । काशीराम प्रारम्भ से ही इसके लिए उत्सुक एवं इच्छुक नहीं थे, परन्तु मातापिता के अत्यधिक आग्रह के खातिर मात्र उनको सन्तोष देने के लिए उन्हें विवाह करने का स्वीकार करना पड़ा । पुस्तक पठन की अभिरुचि इस अरसे में काशीराम का आना-जाना मुनिश्री छोटेलालजी म. के पास होता रहा । वे मुनिश्री के पास से नियमित रूप से कोई धार्मिक पुस्तक अपने घर लाते और एक दिन में ही पूरी तरह पढ़कर उसे दूसरे दिन मुरक्षित लौटा देते । www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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