Book Title: Kailashsagarsuriji Jivan yatra
Author(s): Mitranandsagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 28
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इनमें से पूज्य पंन्यास श्री सूर्यसागरजी म. सा. एवं पूज्य प्रवर्तक श्री इन्द्रसागरजी म. सा. का स्वर्गवास आचार्यश्री की विद्यमानता में ही हो गया था । पृज्य आचार्यश्री का 30 से भी अधिक प्रशिष्यादि परिवार है । जिसमें पृज्य आचार्यश्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. का नाम विशेष उल्लेखनीय है । इसके अतिरिक्त पूज्य आचार्यश्री के आज्ञानुवर्ती साधु-साध्वियों का भी विशाल समुदाय है । मृत्यु विजेता वि. सं. २ ० ४ १, जेट सुदि २ के दिन प्रातःकाल का प्रतिक्रमण पूर्णकर, प्रतिलेखन करने के लिए आचार्य श्री ने कायोत्सर्ग किया । बस, वह कायोत्सर्ग पूर्ण हो, उससे पहले आचार्यश्री को जीवन-यात्रा ही पूर्ण हो गयी । सब देखते ही रह गए, और पूज्य आचार्यश्री ने सबके बीच से अनन्त विदाई ले ली। इससे पहले कि कायोत्सर्ग का विराम आता, पूज्य आचार्यश्री के जीवन का ही विराम आ गया । जिस चतुर्विशति स्तव में 'समाहि वर मुत्तमं दितु' जैसे मंगल शब्दों द्वारा समाधिमय मृत्यु की प्रार्थना की जाती है, उसी चतुर्विशति स्तव के कायोत्सर्ग में पृज्य आचार्यश्री ने सनाधिमय मृत्यु प्राप्त की । जिस मृत्यु के विचार मात्र से व्यक्ति भयभीत हो जाता है, वही मृत्यु आचार्यश्री के चरणों में झुक गई । मानों ऐसा लगा कि पूज्य आचार्यश्री के सामने मृत्यु ही मर गई । पृज्य आचार्यश्री का अंतिम www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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