Book Title: Kailashsagarsuriji Jivan yatra
Author(s): Mitranandsagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 20
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir काशीराम की प्रबल वैराग्य-भावना देखकर आचार्य -श्रीने उन्हें अपने शिष्य मुनिराजश्री जितेन्द्रसागरजी म. सा. के पास दीक्षा लेने का सुझाव दिया । आचार्यश्री के सुझाव के अनुसार काशीराम ने पूज्य तपस्वी मुनिरत्न श्री जितेन्द्रसागरजी म. सा. के चरणों में अपना जीवन समर्पित कर दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा के पश्चात् काशीराम का नाम 'मुनिश्री आनंदसागरजी' रखा गया । संयम यात्रा में एक अवरोध काशीराम ने अपने परिवारजनों को सूचित किये बिना दीक्षा ग्रहण की थी, फलस्वरूप काशीराम के दीक्षित बन जाने के समाचार सुनकर उनके परिवारजन गुजरात आए और उन्हें तुरन्त घर लौटने का अनुरोध किया । परन्तु मुनिश्री आनंदसागर जी इसके लिए बिलकुल तैयार नहीं थे । यह देखकर उनके परिवारजन उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध जबरदस्ती पूर्वक घर ले गए। घर जाने के बाद काशीराम ने अपने परिवारजनों को बहुत समझाया। वे हर समय घर में ही रहते । प्रतिदिन पौषध कर स्वाध्याय-चिन्तन-मनन में ही समय व्यतीत करते । पुनः गृहवास के दौरान उनका जीवन संसार में भी साधु की तरह था । वे संसार से बिलकुल अलिप्त थे । काशीराम की प्रबल वैराग्य-भावना, उनकी दिनचर्या एवं संसार से एकदम अलिप्त जीवन देखकर परिवारजनों को भी झुकना पड़ा । उन्होंने काशीराम को दीक्षा ग्रहण करने की www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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