Book Title: Kailashsagarsuriji Jivan yatra
Author(s): Mitranandsagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 25
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निःस्पृही और अप्रमत्त साधक जिनशासन में अपूर्व लोकप्रियता और ऊँची प्रतिष्ठा पाने के बावजुद भी आचार्यश्री ने अपने स्वार्थ के लिए कभी उसका उपयोग नहीं किया । इतना सारा मान-सम्मान होते हुए भी आपका जीवन अत्यंत सादगी पूर्ण था । किसी भी प्रकार की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और शिकायतों से आप हमेशा परे थे । उग्रविहार और शासन की अनेक प्रवृत्तिओं में व्यस्त होते हुए भी आप अपने आत्मचिन्तन, स्वाध्याय और ध्यानादि आत्मसाधना के लिए पूरा-पूरा समय निकाल लेते थे । शारीरिक प्रतिकूलताओं के बीच भी आप आत्महित के लिए सदा जाग्रत रहते थे । आप श्री के जीवन का एक ही महामंत्र था- 'आत्मश्रेय के लिए हमेशा जाग्रत रहो ।' शासन-प्रभावना शासन के महान प्रभावक के रूप में आचार्यश्री सदियों तक भुलाए नहीं जा सकेंगे । आपश्री के वरद हाथों से हुई शासन प्रभावना का तो एक लम्बा इतिहास है । आपश्री के हाथों लगभग ६३ अञ्जनशलाकाएँ, ८० जिनमदिरों की प्रतिष्ठा, अनेक जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार, ३० से भी अधिक उपधानतप की आराधनाएँ आदि शासन-प्रभावना के अनेक कार्य सम्पन्न हुए । आप श्री के हाथों से अञ्जन हुई मूर्तियों की संख्या ९००० से भी अधिक है। www.kobatirth.org For Private And Personal Use Only

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