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निःस्पृही और अप्रमत्त साधक
जिनशासन में अपूर्व लोकप्रियता और ऊँची प्रतिष्ठा पाने के बावजुद भी आचार्यश्री ने अपने स्वार्थ के लिए कभी उसका उपयोग नहीं किया । इतना सारा मान-सम्मान होते हुए भी आपका जीवन अत्यंत सादगी पूर्ण था । किसी भी प्रकार की आकांक्षाओं, अपेक्षाओं और शिकायतों से आप हमेशा परे थे । उग्रविहार और शासन की अनेक प्रवृत्तिओं में व्यस्त होते हुए भी आप अपने आत्मचिन्तन, स्वाध्याय
और ध्यानादि आत्मसाधना के लिए पूरा-पूरा समय निकाल लेते थे । शारीरिक प्रतिकूलताओं के बीच भी आप आत्महित के लिए सदा जाग्रत रहते थे । आप श्री के जीवन का एक ही महामंत्र था- 'आत्मश्रेय के लिए हमेशा जाग्रत रहो ।'
शासन-प्रभावना
शासन के महान प्रभावक के रूप में आचार्यश्री सदियों तक भुलाए नहीं जा सकेंगे । आपश्री के वरद हाथों से हुई शासन प्रभावना का तो एक लम्बा इतिहास है ।
आपश्री के हाथों लगभग ६३ अञ्जनशलाकाएँ, ८० जिनमदिरों की प्रतिष्ठा, अनेक जिनमंदिरों का जीर्णोद्धार, ३० से भी अधिक उपधानतप की आराधनाएँ आदि शासन-प्रभावना के अनेक कार्य सम्पन्न हुए । आप श्री के हाथों से अञ्जन हुई मूर्तियों की संख्या ९००० से भी अधिक है।
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