Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 429
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२२५४. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १०४३४-३६). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारै ठांम; अंति: कांति सुख पामे घj, ढाल-२, गाथा-२३. ७२२५६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०,१५-१७४५३). १. पे. नाम. रोहिणीतपस्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवति सामणीए; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २. पे. नाम. गतिमाश्रीत्य अल्पबहुत्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत केवलन्यान; अंति: जिम देखु परतिखपणे, ढाल-३, गाथा-१८. ३. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय पयकमल सुभ भावि; अंति: पुण्यसाग० आराहउ मुदा, गाथा-२१. ७२२५८. (+) जंबुद्वीपपरिधि विचार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३२). जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: विखंभवग्गदह गुण; अंति: (-). जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: शकलेन समानेतव्यं; अंति: तत्वात्केलगम्यम्. ७२२५९. स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१०.५, १२४३७-३९). १. पे. नाम. आमलकी क्रीडानुंस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-आमलकी क्रीडा, मु. बाथा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: के वर्धमान खेलेरे; अंति: बाथा० सिवरमणी तदारे, गाथा-९. २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोती ऋषि; पठ.सा. कुवरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: सीतलजिनवर देव सुणो; अंति: गणि मेघराज० मारा लाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूझ हीयडो हेजालुवो; अंति: जिनराज० मुको विसार, गाथा-७. ४. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: माया वाहीया जगत वलुध; अंति: मुगत गया सहु साखी, गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी तोरा प्रणमीय; अंति: जपता वाधो छे प्रेम, गाथा-९. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरथमा अजोध; अंति: रायचंद० क्रिपानाथ, गाथा-१९. ७२२६०. (#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र-पगामसज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ.मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७२२६१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. धनसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४२-४५). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: परम गुरू जैन कहो किम; अंति: जैनदशा जस ऊंची, गाथा-९. २.पे. नाम. रेन्टीयानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only

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