Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 454
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२४५९. दशवैकालिकसूत्र की सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, १३४२९). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा नीलो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७२४६०. (+#) महावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३३). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: पढह कयं अभयसूरीहिं, गाथा-२२. ७२४६१. नवकारमंत्ररी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४२-४५). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: लभर्देविजै० मंगलमालै, गाथा-७. ७२४६३. (+#) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १४४३३). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्तिवंदणय; अंति: सदा ए पडिकमणो छइ. ७२४६५. (#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१५४४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ७२४६६. (2) भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२५). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहा तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ७२४६७. (+#) ढुंढकमतनिरसन चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि.,प्रा., गद्य, आदि: दुढियो कहे हु; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एक दिन पुरिमतालनगर वाहिर वीरस्वामी इति इत्यर्थ बोल अधुरा छे" इतना लिख कर प्र.ले. नाम व स्थल लिख दिया है.) ७२४६८. (+#) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी में प्रतिलेखक ने सात स्मरण ऐसा लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमिउण स्तोत्र श्लोक-२२ अपूर्ण से अजितशांति गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ७२४७०. (4) चौबोलीवार्ता व सझाय, अपूर्ण, वि. १७८३, भाद्रपद कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. वडलुनगर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १५४४५-४८). १.पे. नाम. चौबोली वार्ता, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७८३, भाद्रपद कृष्ण, ३, ले.स्थल. वडलूनगर. चोबोल प्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उजेणीपुर आवीयो, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१५ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुगुणां केरी प्रीतडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक लिखा है.) ७२४७१. विविध बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२५४११.५, १६४५०). १. पे. नाम. दश बोल दुर्लभता, पृ. १अ, संपूर्ण.. १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै मनुष्यभव; अंति: वीर्य फेरवणो दुर्लभ, अंक-१०. २. पे. नाम. ११ बोल आरंभपरिग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ आरंभपरिग्रह बोल, रा., गद्य, आदि: पहिलै बोले जीव आरंभ; अंति: केवलज्ञान पामें, अंक-११. For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612