Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 464
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२५५३. बुध रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वडग्राम, प्रले. पं. योग्यसागर (गुरु पं. भक्तिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात, जैवे. (२५x१२ १२४३५-३९). प्र.वि. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी देवी अंबाई पं, अंति: तेहना टलै कलेस तो, गाथा- ६३. ७२५५५. (#) औपदेशिक पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५x११.५, १९३२-४५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तु निरंजन इष्ट हमेरा; अंति: रूपचंद० होवे फेरा रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. वीतराग पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम गरीबन के नीवाज; अंति: रूपचंद० चरण तेरे आए, गाथा - ३. २. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने 'औपदेशिक सज्झाय' नाम लिखा है. मु. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बहोत रोज से जस्ते, अंति: भानुचंद० घर आया बे, गाथा- ६. ३. पे नाम, साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने 'औपदेशिक पद नाम लिखा है. मु. आनंदघन, पु,ि पद्य वि. १८वी, आदि रे धरिया रे बाउरे, अंतिः आनंदघन० कोइक पावे, पद-३. " 7 ६. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण पठ. मु. मूढशिक्षा पद, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे मूरख जन बाउ रे; अंति: जिनसमुद्र० गुण गावे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. . कनिराम, ४४९ सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक - १. ७२५५६. (#) सामान्यविशेषात्मक वस्तुव्यवस्थापनिकाद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३X३८). सामान्यविशेषात्मक वस्तुव्यवस्थापनिकाद्वात्रिंशिका, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानामित: अंति: परतीर्थिकास्ते, द्वात्रिंशिका - २, श्लोक - ६४. " ७२५५७. (#) द्वाषष्ठिमार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२ (१ से १२) = १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जीवे. (२५.५x१०.५, ३५x१६-२२). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअ२ काए३ जोए४; अंति: ६ सन्नि २ आहारे २, संपूर्ण. ७२५५८. (#) पार्श्वनाथसंवेगरस चंद्रउला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल पाटण, प्रले. पं. रविवर्द्धन, पठ. ग. धनवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२४१०५ १६x४९). संवेगरस चंद्रावला, मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरिंद नमई सदा, अंति: लीछा नइ आपो भगवंत, गाथा-४९. ७२५५९. (४) दशार्णभद्र व पार्श्वजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप For Private and Personal Use Only गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १२X३०). १. पे नाम, दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आविः सारदा बुधदायक सेवक, अंतिः बोले लालविजय निस वीस, गाथा- १८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: कवि रूपनो० प्राण आधार, गाथा - ५. ७२५६०. (#) विजयदेवसूरीश्वर भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. पानबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५४११ ९x१८-२२) विजयदेवसूरि भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कामणगारो रे गुरुजी; अंति: रायनो रंगकुशल करजोडि, गाथा-६. ७२५६१. सिद्धचक्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५x११.५, १४४४०). "" सिद्धचक्र उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: रूपाना पूजणा; अंतिः इत्यादि सर्व करवा. ७२५६२. चित्तोडगढ गजल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पुष्पिका पद्यमय है., जैदे., (२५.५X११, २०X५०-५३).

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