Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतसागर बाथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड-१.१.१७) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts (Vol. 1.1.17) शहजठमाण बुदाणावादयामा बदरिमीणमिवमा वादमरावत णानामाझिाड आचार्य श्री कैला सससागरसूरि ज्ञानामांदिर कौवा ती For Private and Personal Use Only सामनाavinal मश्रामाटामा AISA Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १७ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.१७) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची • आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमृतं तु विद्या प्रकाशक श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५४० ० वि.सं. २०७० ० ई. २०१४ For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १७ Acārya Shri Kailāsasāgarasūri Smṛti Granthasūci - Ratna 17 ● सह संपादक 0 पं. रामप्रकाश झा डॉ. हेमंत कुमार पं. गजेन्द्र पढियार पं. अरुण कुमार झा कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.१७ Kailāsa śrutasāgara Granthasūci : 1.1.17 ● संपादक मंडल O पं. नवीनभाई वी. जैन पं. संजयकुमार आर. झा Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग 0 केतन डी. शाह For Private and Personal Use Only ● संपादन सहयोग ● परबत ठाकोर ब्रिजेश पटेल संजय गुर्जर दिलावरसिंह विहोल Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न १७ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर स्थित श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृत सूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची • वर्ग - १ : जैन साहित्य खंड - १७ के आशीर्वाद व प्रेरणा आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Sri Dēvarddhigaņi Kşamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I: Manuscripts Catalogue Class - I: Jain Literature ___Volume - 17 Blessings & Inspiration of Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Publishers Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, (Guj.) India 2014 For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 17 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.17 Preserved in Śri Dēvarddhigani Kșamāśramaņa Hastaprata Bhāņdāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir ००:Publisher Vir Samvat 2540, Vikram Samvat 2070, A.D. 2014 O Edition : First प्रकाशन सौजन्य : श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर Shri Jain Shwetamber Nakoda Parshwanath Tirth, Mevanagar O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth O Publisher : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382007. (Guj.) INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org E_mail: gyanmandir @ kobatirth.org O Price: Rs. 1500/O ISBN: 81-89177-00-1 (Set) 978-81-89177-68-3 (Vol.17) OPrinter: Navprabhat Printing Press, Ahmedabad * उपलक्ष श्रुतोद्धारक आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ में चातुर्मास प्रवेश के पुनीत प्रसंग पर वि. सं. २०७०, आषाढ शुक्लपक्ष, तृतीया, सोमवार, दि. ३०-०६-२०१४ For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || अहम् नमः ।। मंगल कामना तीर्थंकरों की वाणी में सरस्वती का निवास है. श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंफित किया है; ऐसे जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखनेवाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित नियुक्तिकार-भाष्यकार-चूर्णिकार-टीकाकार एवं ग्रंथों के प्रतिलेखक आदि श्रमण समूह का भी मैं ऋण स्वीकृतिपूर्वक पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण करके अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का गाँवों से शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग भी लुप्तप्राय हुए. इन सभी कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सर्वप्रथम सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमद् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों व विविध प्रान्तों में विहार करके ग्रन्थों को संग्रह करने का कार्य प्रारंभ हुआ और धीरेधीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए भी इस ज्ञानमंदिर में आधुनिक साधनों का सुभग समन्वय हुआ है. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के साथ-साथ इस सूची में समाविष्ट अधिकांश ग्रंथों की मूलसूची बनाने का जो भगीरथ कार्य मुनि श्री निर्वाणसागरजी ने किया है तथा इस कार्य के लिए योग्य मार्गदर्शन देकर पंन्यास श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. अन्य मुनिराजों ने भी जो यथायोग्य बहुमूल्य सहयोग दिया है, उन सबकी मैं हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. ज्ञानमंदिर के निदेशक श्री कनुभाई शाह की देखरेख में पंडितवर्ग ने जिस सूझ व धैर्य के साथ अस्तव्यस्त हस्तप्रतों को व्यवस्थित करने एवं प्रतों के बारीक अध्ययनपूर्वक अतिविवरणात्मक सूचीकरण के इस कार्य को उत्तरोत्तर गति प्रदान की, वह अपने आप में अनूठा व इतिहाससर्जक कार्य है. श्री नवीनभाई जैन, श्री संजयकुमार झा, श्री रामप्रकाश झा, डॉ. हेमंत कुमार, श्री गजेन्द्र पढियार, श्री अरुण कुमार झा आदि सभी पंडितवरों, प्रोग्रामर श्री केतनभाई शाह एवं सभी सहयोगी कार्यकर्ताओं को मेरा हार्दिक धन्यवाद है. संस्था के अध्यक्ष श्री सुधीरभाई मेहता, ज्ञानमंदिर में चल रही विविध गतिविधियों की देख-रेख करनेवाले अन्य ट्रस्टीगण व कारोबारी सदस्य सभी को उनकी बहुमूल्य सेवाओं के लिए हार्दिक आशीर्वाद देता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैन-जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. ग्रन्थों के संरक्षण, सूचीकरण व प्रस्तुत १७वें खंड के प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करनेवाले श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर एवं समस्त ट्रस्टीगण के प्रति भी धन्यवाद देता हूँ. बड़ी संख्या में पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ लिया जा रहा है, जो बड़ी ही प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार के सूचीपत्र कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची का १७वाँ खंड प्रकाशित होने जा रहा है, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक नया सोपान है. मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वद्जन इस ग्रंथसूची से महत्तम लाभान्वित होंगे. संस्था अपने विकासपथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पभसागर सरि For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी, श्रुतप्रवाहक पूज्य गणधर भगवंतों, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्रीमद् बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के श्री देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के १७वे खंड को श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर की पुण्यमयी धरा पर परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के चातुर्मास प्रवेश महोत्सव के पावन प्रसंग पर चतुर्विध श्रीसंघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबातीर्थ परिवार अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानभंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं के रक्षक ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है. यह ज्ञानभंडार इस भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रख-रखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के अधिकतर शिष्य-प्रशिष्यों का अपना योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों के सूचीकरण हेतु वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सूझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य पंन्यास श्री अजयसागरजी तथा यहाँ के पंडितवर्यों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य आचार्य भगवंत के अन्य विद्वान एवं प्रज्ञाशील शिष्यों का भी इस पूरी प्रक्रिया में विविध प्रकार का सहयोग प्राप्त होता रहा है, जिससे ज्ञानमंदिर की प्रवृत्तियों को विशेष बल एवं वेग मिलता रहा है. इस अवसर पर संस्था ज्ञात-अज्ञात सभी सहयोगियों व शुभेच्छुकों की अनुमोदना करते हुए हार्दिक कृतज्ञता व्यक्त करती है. सभी के मिलेजुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. ___पंडितों के साथ करीब तीस कार्यकर्ताओं के माध्यम से, श्रीसंघ के व्यापक हितों से संबद्ध ज्ञानमंदिर की अनेकविध प्रवृत्तियों के संचालन के लिए निरंतर बड़ी मात्रा में धनराशि की आवश्यकता रहती है. किसी भी प्रकार के सरकारी या अन्य किसी भी अनुदान को न लेकर मात्र संघों व समाज की ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा कार्यरत इस संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियाँ निरंतर गतिशील रहती हैं. इस भगीरथ कार्य हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का भी आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो इस कार्य को आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर साभार-धन्यवाद दिया जाता है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में चल रहे श्रुतभक्ति के प्रत्येक कार्य में हमारे वर्तमान ट्रस्टीगण एवं कारोबारी सदस्य तो अत्यन्त उत्साही व सक्रिय रहे ही हैं, साथ-साथ ज्ञानमंदिर को आज की ऊँचाईयों तक पहुँचाने में भूतपूर्व ट्रस्टीयों एवं कारोबारी सदस्यों का भी जो महत्त्वपूर्ण योगदान प्राप्त हुआ है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची-जैन हस्तलिखित साहित्य के इस १७वें खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस १७वें रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. __ श्री सुधीरभाई यु. महेता - प्रमुख श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट - कोबातीर्थ, गांधीनगर For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नाकोडा पार्श्वनाथ नाकोडा भैरवनाथ सौजन्य श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची प्रकाशन के अविरत सिलसिले में परम श्रद्धेय राष्ट्रसन्त आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के चातुर्मास प्रवेश महोत्सव के पावन प्रसंग पर प्रकाशित हो रहे इस १७वें रत्न का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रस्तुत भाग में संस्कृत, प्राकृत व देशी भाषाओं में आगमिक, धार्मिक, कर्मसिद्धान्त, साहित्य आदि व आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक, व्याकरण, न्यायदर्शन, छन्दोग्रंथादि, रास, कथा-चरित्रादि विषय विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. कतिपय स्तवन-स्तोत्र, औपदेशिक-सुभाषित पद आदि की लघुकृतियाँ भी अपने कलेवर में विविध विषयों को समेटी हुई दृष्टिगोचर होंगी. छोटी से छोटी कृतियाँ भी महत्त्वपरक होने के कारण उन्हें निश्चय ही योग्य स्थान प्राप्त हुआ है. आगम व अन्य साहित्य की मूल, टीका, अवचूरि आदि महत्वपूर्ण कृतियाँ प्रचुर मात्रा में अप्रकाशित ज्ञात हो रही हैं, इसी प्रकार देशी भाषाओं की रास आदि अनेक कृतियाँ भी अप्रकाशित प्रतीत हो रही हैं. अनेक विद्वानों की कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. हस्तप्रतों के वर्गीकरण से लेकर सूचीकरण तक का संपूर्ण कार्य बडा ही जटिल व कष्टसाध्य होता है, परंतु उनमें समाहित महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ, जो अद्यावधि विद्वद्वर्ग की नजरों से ओझल थीं, उन्हें आपके कर-कमलों में समर्पित करने का यह सुंदर परिणाम हमारे लिये अपार संतोषदायक सिद्ध हो रहा है. जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण करना; एक बहुत ही जटिल व महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सबसे बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रंथालयों में अपनायी गई, मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर, यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व पुरासामग्री; इस तरह छ: भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. इसमें प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री; इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्त्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्धकर एकीकरण का कार्य कर दिया गया है. प्रस्तुत सूची के पूर्व के सभी खंडों की तरह इस खंड में समाविष्ट अधिकांश प्रतों की मूल सूची तो श्रुतसेवी पूज्य मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने वर्षों की मेहनत से बनाई थी. उसीको आधार रखकर हमने यह संपादनकार्य किया है. मुनिश्री के हम चिरकृतज्ञ हैं. समग्र कार्य के दौरान श्रुतोद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक पूज्य पंन्यासप्रवर श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व मार्गदर्शन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के अन्य शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. इस ग्रंथसूची के आधार से सूचना प्राप्त कर श्रमणसंघ व अन्य विद्वानों के द्वारा अनेक बहुमूल्य अप्रकाशित ग्रंथ प्रकाशित हो रहे हैं, यह जानकर हमारा उत्साह द्विगुणित हो जाता है; हमें अपना श्रम सार्थक प्रतीत होता है. प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने व त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के सभी कार्यकर्ताओं को हार्दिक धन्यवाद. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानीपूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित् भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरुद्ध किसी भी तरह की प्रस्तुति के लिए हम त्रिविध मिच्छामि दुक्कडं देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रह गई भूलों की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और अधिक बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, ताकि अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल if For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना ... प्रकाशकीय ......... .............................॥ प्राक्क थन ................................................................ अनुक्रमणिका......... .........................iv प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ................... ....... v-vi 1 सूचाकरण सहयाग साजन्य एव सादर ग्रंथ समर्पण ....................................vii-viii हस्तप्रत सूची... ....................... ........१-४८० परिशिष्ट : कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या.......................४८१-५९६ १. संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकति क्रमांक सची परिशिष्ट - १... ............४८१-५३८ २. देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से कृति परिवार सह प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ ..... ............... ५३९-५९६ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं, उन सबका विस्तृत विवरण व टाइप सेटिंग संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ vi एवं परिशिष्ट परिचय संबंधी सूचनाएँ भाग ७ के पृष्ठ ४५४ पर हैं. कृपया वहाँ पर देख लें. प्रस्तुत खंड १७ में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. 0 प्रत क्रमांक - ६८४५२ से ७२८७० इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किए जाने के कारण वास्तविक रूप से ३३५४ प्रतों की सूचनाओं का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल ३२६४ कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ३९९५ कृतियों का इस सूची में समावेश हुआ है. 0 सूची में उपरोक्त कृतियाँ कुल ६५०५ बार आई हैं. For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत ...... ......... (+) #..... कृति नाम के अंत में विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर टबार्थ व श्लोक संग्रह जैसी समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति दर्शक संकेत. कृति/प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, इत्यादि विभक्ति सूचक. प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक. ..प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता सूचक. - इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. कर्ता-कर्ता के शिष्य-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, संशोधित - शुद्धप्राय - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के चिह्नयुक्त प्रत, यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद - संधि सूचक - वचन विभक्ति - क्रियापदसूचक चिह्न आदि वाली प्रत. कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व तीनों की लघुवृत्ति. . प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में प्रत की अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से प्रत की उपयोगिता में कमी का सूचक. इस हेतु प्र.वि. में निम्न सूचनाएँ हो सकती हैं. मूल पाठ का, टीकादि का, मूल व टीका का, टिप्पणक का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं, मिट गये हैं, पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की स्याही फैल गई है. पत्र जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं, हो गये हैं. ..... कृति परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में उर्ध्वाक्षरों से प्रत की अपूर्णता सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. (--)............आदिवाक्य अनुपलब्ध. अप.............अपभ्रंश (कृति भाषा) अंतिमवाक्य (कृतिमाहिती) आ. ......... आचार्य (विद्वान स्वरूप) आदिः........ आदिवाक्य (कृतिमाहिती) उप. ........... प्रत प्रतिलेखन उपदेशक. (प्र. ले. पु. विद्वान) उपा......... उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) ऋ. ......... ऋषि (विद्वान स्वरूप) क........... कवि (विद्वान स्वरूप) कुं..............कुंडली (कृति स्वरूप) कुल ग्रं........ मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्वग्रंथाग्र परिमाण - प्रत व पेटाकृति विशेष में. कुल पे......... कुल पेटाकृति (प्रतमाहिती स्तर) क्रीत............ प्रत को खरीदनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) को.............. कोष्टक (कृति स्वरूप) ग........... गणि (विद्वान स्वरूप) गडी............गडी किए हुए पत्रों वाली प्रत. गद्य............ गद्यबद्ध (कृति प्रकार) गा..............गाथा (कृति परिमाण) गु. .............गुजराती (कृति भाषा) गुटका ........बंधे पत्रों वाली प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) क्वचित् गोटका शब्द भी प्रयुक्त होता है. अंतिः ........ आतमवाक्ष For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गृही............. गृहीत. आदान-प्रदान में प्रत को प्राप्त करने | वाला (प्र. ले. पु. विद्वान) गोल ...........गोल कुंडलाकार प्रत. (प्रतमाहिती स्तर) ग्रं. ............. ग्रंथाग्र (कृति परिमाण) जै..............जैन कृति (कृति परिशिष्ट) जै.क........जैन कवि (विद्वान स्वरूप) जैदे.............जैन देवनागरी (प्रत लिपि) ते............. जैन श्वेतांबर तेरापंथी कृति. (कृति परिशिष्ट) दत्त.............आदान-प्रदान में प्रत देनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) दि. .......... जैन दिगंबर कृति. (कृति परिशिष्ट) देना............देवनागरी (प्रत लिपि) पं...............पंजाबी (कृति भाषा) पं. .......... पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) पठ. ............ पठनार्थ. जिसके पढ़ने हेतु प्रत लिखी या लिखवाई गई हो. (प्र. ले. पु. विद्वान) प+ग ..........पद्य व गद्य संयुक्त (कृति प्रकार) पद्य............पद्यबद्ध (कृति प्रकार) पा........... पाठक (विद्वान स्वरूप) पु. हिं..........पुरानी हिंदी (कृति भाषा) पू. वि. ........ पूर्णता विशेष (प्रतमाहिती, पेटाकृति माहिती व कृतिमाहिती स्तर) पूर्व......... कृतिमाहिती में वर्ष प्रकार सूचक 'वि.' 'श.' आदि के बाद संवत् प्रवर्तन के पूर्व का वर्ष दर्शक. .............. पृष्ठ सूचना पृष्ठ सूचना (प्रत माहिती स्तर पर व पेटाकृति स्त र पर) पे. नाम. ...... प्रतगत पेटाकृति नाम पे. वि. ......... प्रतगत पेटाकृति विशेष पै...............पैशाची प्राकृत (कृति भाषा) प्र. वि.......... प्रत विशेष. प्रले............ प्रतिलेखक, लहिया, (प्रतिलेखन पुष्पिका. प्रत, पेटाकृति, कृति माहिती स्तर पर.) प्र. ले. पु..... प्रतिलेखन पुष्पिका की - (प्रत/पेटाकृति/कृति स्तर) ('सामान्य, मध्यम' आदि उपलब्धता सूचक.) प्र.ले.श्लो...... प्रत, पेटाकृति व कृति हेतु प्रतिलेखक द्वारा लिखित प्रतिलेखन श्लोक (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) प्रा...............प्राकृत (कृति भाषा) प्रे.............. प्रतलेखन प्रेरक. (प्र. ले. पु. विद्वान) बौ..............बौद्ध कृति (कृति परिशिष्ट) म...............मराठी (कृति भाषा) महा. ..........महाराष्ट्री प्राकृत (कृति भाषा) मा. ............मागधी प्राकृत (कृति भाषा) मा. गु.........मारुगुर्जर (कृति भाषा) मु. .......... मुनि (विद्वान स्वरूप) मु..............मुस्लिम धर्म (कृति परिशिष्ट) ...........जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक कृति (कृति परिशिष्ट) यं...............यंत्र (कृति स्वरूप) रा........... राजा (विद्वान स्वरूप) .............राजस्थानी (कृति भाषा) राज्यकाल.... जिस राजा के राज्य शासनकाल में प्रत लिखी गई हो. राज्ये........... जिस आचार्य के गच्छनायकत्व काल में प्रत का लेखन हुआ हो. लिख.......... प्रत लिखवाने वाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) ले. स्थल..... लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) वा........... वाचक (विद्वान स्वरूप) वि.............. विक्रम संवत् (वर्ष माहिती) (प्रे. ले. पु., कृति रचना वर्ष) विक्र............ विक्रेता - प्रत का. (प्र. ले. पु. विद्वान) वी........... वर्ष संख्या के पूर्व होने पर 'वीर संवत' यथा वी. २०००. वर्ष संख्या पश्चात् होने पर 'वी सदी'. यथा-८वी सदी. (७१०-८००) (प्र. ले. पु., कृति रचना वर्ष) वै........... वैदिक कृति. (कृति परिशिष्ट) व्याप.......... व्याख्याने पठित -विद्वान द्वारा. (प्र. ले. पु. विद्वान) श............ शक संवत् (वर्ष माहिती - प्र. ले. पु. कृति रचना वर्ष) श्राव......... श्रावक (विद्वान स्वरूप) श्रावि........ श्राविका (विद्वान स्वरूप) श्रु............. श्रोता द्वारा व्याख्यान में श्रुत. (प्र. ले. पु. विद्वान) श्वे. ............जैन श्वेतांबर कृति (कृति परिशिष्ट) ..............संस्कृत (कृति भाषा) सम............ समर्पक ज्ञानभंडार को प्रत समर्पित करनेवाला. (प्र. ले. पु. विद्वान) सा.......... साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) स्था............जैन श्वेतांबर स्थानकवासी (कृति परिशिष्ट) हिं. ............हिंदी (कृति भाषा) For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० सुकृत के सहभागी ० करण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), || १३. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसिएसन इन नॉर्थ अमेरिका, पालडी अहमदाबाद | "जैना" हस्ते डॉ. प्रेमचंदजी गडा अमेरिका २. श्री शांतिलाल भुदरमल अदाणी परिवार,अहमदाबाद || १४. श्री एम. जे. फाउन्डेशन मुंबई ३. बाबु श्री अमीचंद पन्नालाल आदीश्वर ट्रस्ट, वालकेश्वर || १५. श्री कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई मुंबई || १६. श्री सांताक्रुज जैन तपगच्छ संघ, श्री कुंथुनाथ जैन ४. शेठ श्री झवेरचंद प्रतापचंद सुपार्श्वनाथ जैन संघ, पार्श्वनाश जैन संश। देरासर मार्ग, सांताक्रुज (वे.) मुंबई वालकेश्वर मुंबई || १७. श्री महावीर जैन श्वे. मू. पू. संघ, पालडी अहमदाबाद ५. श्री प्लेजेंट पैलेस जैनसंघ मुंबई || १८. श्री श्वे. मू. पू. जैन संघ, नानपुरा, सुरत ६. श्री गोवालिया टैंक जैनसंघ मुंबई || १९. श्री आंबावाडी मू. पू. जैन संघ अहमदाबाद ७. श्री प्रेमलभाई कापडिया || २०. श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ श्वे. मू. पू. जैन संघ, आरे रोड, || गोरेगाँव ८. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव मुंबई मुंबई | २१. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ, जयनगर, बेंग्लोर ९. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्दर्न केलिफोर्निया अमेरिका २२. श्री आदिनाथ जैन श्वे. मंदिर ट्रस्ट, चिकपेट, बेंग्लोर १०. श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद २३. श्री महुडी जैन श्वे. मू. पू. ट्रस्ट, महुडी ११. श्री शंभुकुमार कासलीवाल २४. श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल एन्ड चेरीटीज़, मुंबई मुंबई १२. शेठ मोतीशा जैन रिलीजियस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट २५. श्री जुह स्कीम जैन संघ, विलेपार्ले (वे.) मुंबई मुंबई २६. श्री शांतिनाथ देरासर जैन पेढी, श्री शंखे. पार्श्व., बावन जिनालय, देवचंदनगर रोड, भायंदर (वे.) थाणा मुंबई मुंबई हस्तप्रत सूचीकरण में आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. श्री कांदिवली जैन श्वे. मू. पू. संघ २. श्री राजस्थान जैन श्वे. मू. पू. संघ कांदिवली (वे.) मुंबई कोईम्बत्तूर vi For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (० सुकृत के सहभागी हस्तप्रत सूचीकरण में १ से १७ भाग के आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. रमेशकुमार चोथमलजी, तारादेवी रमेशकुमार & सन्स || १०. श्री भवानीपुर मूर्तिपूजक जैन श्वेताम्बर संघ कोलकाता २. श्री जैन श्वेतांबर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || ११. श्रीमती तारादेवी हरखचंदजी कांकरिया परिवार ३. घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. कोलकाता देवराजजी जैन चेन्नई || १२. श्री सांताक्रुज जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन संघ मुंबई ४. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || १३-१४. डॉ. विनय के. जैन - प्रेसीडेन्ट (जीवदया फाउन्डेशन), ५. मांडवला (राज.) निवासी संघवी मुथा मोहनलालजी यु.एस.ए. रघुनाथमलजी सोनवाडीया परिवार चेन्नई || १५. शेठ श्री संवेगभाई लालभाई परिवार अहमदाबाद ६. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ, मेवानगर || १६. श्री विजय देवसर संघ श्री गोडीजी महाराज जैन टेम्पल ७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || | एन्ड चेरीटीझ, पायधुनी, मुंबई ८. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर || १७. श्री जैन श्वेताम्बर नाकोडा पार्श्वनाथ तीर्थ मेवानगर ९. शेठ श्री आणंदजी कल्याणजी पेढी अहमदाबाद , सादर समर्पण - कल्याणस्वरूप तीर्थंकरों द्वारा स्थापित श्रमणप्रधान चतुर्विध श्रीसंघ के कर कमलों में... जिनके द्वारा यह श्रुत परंपरा अक्षुण्ण रही. ००० viii For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ श्री महावीराय नमः ॥ ॥ श्री बुद्धि - कीर्ति - कैलास - सुबोध - मनोहर - कल्याण- पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ॥ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ " ६८४५२. (*) चौवीसजिन आयुमान व पट्टावली, संपूर्ण वि. १८७७, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्रले. मु. मोतीविजय, अन्य. मु. सुमतिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२८x१२, ११-१४४३८). १. पे. नाम. २४ जिन आयुष्य विचार, पृ. १अ, संपूर्ण, पे. वि. वस्तुतः किसी प्रत का अंतिम पत्र है, इसके पूर्वपत्र में १ से १९ जिन का आयुमान होना चाहिये. २० से २४ जिन आयुमान के बाद पत्रानुक्रम १ से ५ में पट्टावली लिखकर पत्र का उपयोग किया गया है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वरसनो आउखो जाणवा २४, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मुनिसुव्रत स्वामी के आयुष्य से लिखा है.) २. पे. नाम. पट्टावली तपागच्छीय, पृ. १अ ५आ. संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चोथा आराना वरस ३ तिन अंति: श्रीविजयजिनेंद्रसूरि.. ६८४५३. (+#) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२८४१२, ४X४०). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर समरीने; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - २ की गाथा-९ अपूर्ण तक है.) पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीउपासगदशांगसूत्र, अंति: (-). ६८४५४. (+#) शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास व पार्श्वनाथजीरो चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१ (१)=५, कुल पे. २, प्रले. मु. भागचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२८४१२, १६४३८). १. पे. नाम. सेत्रुंजगिर उधार, पृ. २अ-५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., प्रले. मु. भागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्म, वि. १६३८, आदि (-); अंति नयसुंदर० दरसण जय करो, ढाल १२, गाथा-१२०, ग्रं. १७०, ( पू. वि. गाथा- २३ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरो चउढाल्यो, पृ. ५अ- ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चौडालिया, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य वि. १७२६, आदि आज सफल दिन माहरो रे, अंतिः भीनो रे मे दीठो दीठो, ढाल ४. ६८४५५. (#) श्रेणिकराज ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८४१२, १८x४०-४५ ). श्रेणिकराजा रास *, मा.गु., पद्य, आदि: समगधदेशना अधिपति, अंति: (-), (पू.वि. ढाल ७ तक है.) ६८४५६. धर्मनाथज्ञानप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२८४१३, १३३६-४०). धर्मजिन स्तवन- आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७१६, आदि: चिदानंद चित चिंतनुं अंति विनयविजय रसपूर, गाथा- १३८. ६८४५७. (+) समयसारनाटककलश सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९१४, कार्तिक कृष्ण, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२५ - २ (१ से २) = १२३, ले. स्थल, रामपुरा, प्रले ॐकार पठ. मु. सुखलाल (गुरु आ. देवीचंद) गुपि आ. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने लेखन काल के लिये "अंगरेज विद्ध्वंस हुवौ जणी शाल लिखी" का उल्लेख किया है., पदच्छेद सूचक लकीरें.. जैदे., (२८x१३, १३-१६x४५ ). " समयसार - आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वामृतचंद्रसूरे, अधिकार १२ श्लोक-२६०, (पू.वि. श्लोक ५ से है.) For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कर इसा छे शब्दराशि, (पू.वि. श्लोक-४ की टीका अपूर्ण से है.) ६८४५८. (#) श्रीपालचरित्र रास-खंड-१-३, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रावण शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५२, प्रले. पंन्या. रुपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१२, १०-१३४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेलि कवियण तणी; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ६८४५९. रास, चौपाई व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५, कुल पे. ४२, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३५-३९). १.पे. नाम. गौतम प्रश्नोत्तर बार आरानुं स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:बार आरा. १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: कही तपगछ मंगल करु, ढाल-१२. २. पे. नाम. नवतत्त्व चौपाई, पृ. ४आ-१४आ, संपूर्ण, ले.स्थल. मुनराबंदर, पे.वि. हुंडी:नवतत्त्वचो. शीतलनाथजी प्रसादात्. मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर प्रणमी; अंति: गणतां संपति कोडि, ढाल-९. ३. पे. नाम. जीवनी उत्पत्तिनी सज्झाय, पृ. १५अ-१७आ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:उतपतीनी. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जीव आपणी मन; अंति: रत्नहरष० सुवि सार ए, गाथा-७२. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-क्रोध परिहार, पृ. १७आ-१८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडुआं फल छे क्रोधनां; अंति: उदयरतन उपसम रस नाही, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मान परिहार, पृ. १८अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीइं; अंति: उदयरतन० देसवटो रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-माया परिहार, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं बीज जाणजो; अंति: ए मारग छे शुद्ध रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. पंडित. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: लोभ न करीये प्राणीया; अंति: भावसागर० सयल जगीस रे, गाथा-८. ८. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तुमे लक्षण जोजो लोभ; अंति: लोभ तजे तेहने सदारे, गाथा-७. ९.पे. नाम. पंचेद्री सज्झाय, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आपु तुजने शीख चतुरनर; अंति: जिनहर्ष० सुख सास्वता, गाथा-७. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद-निद्रात्याग, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. मु. कनकनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: निंदरडी वेरण हुइ; अंति: हो मुनि कनकनिधान के, गाथा-८. ११. पे. नाम. इरीयावहीना जीवभेद मिछामि दुकडंनी सज्झाय, पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण. जीवभेद सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद चितमा धरि; अंति: जिनवचन सदा सद्दहै, ढाल-२, गाथा-२०. १२. पे. नाम. रहनेमि सज्झाय, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमि; अंति: ते सिवनारी वरसे रे, गाथा-१२. १३. पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २२आ-२४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवारीया तेणे; अंति: सहजसुंदरनी वाण, गाथा-१७. १४. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पियुजी पियुजीरे; अंति: नेम भेटे आशा फली, गाथा-७. १५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २५अ, संपूर्ण. वा. भक्तिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुजीरे प्रभुजी; अंति: भक्तिसागर० पामवी, गाथा-६. १६. पे. नाम. सोलसासतीनी सज्झाय, पृ. २५अ-२६अ, संपूर्ण. सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन साची सुलसा; अंति: विमल गुण गाय रे, गाथा-१०. १७. पे. नाम. थुलिभद्रकोसवेस्यानी सज्झाय, पृ. २६अ-२६आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मलार साध; अंति: लीला लखिमी घणी जी, गाथा-१७. १८.पे. नाम. आतमप्रतिबोध सिझाय, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: कुंभ काचो काया कारमी; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. १९. पे. नाम. आत्मसंबलरूपणी सिझाय, पृ. २७अ-२९अ, संपूर्ण. आत्महितशिक्षा सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: वैकुंठ पंथ बीहामणो; अंति: भीम० दुक्कडं तास, गाथा-५७. २०.पे. नाम. जीवरास, पृ. २९अ-३०आ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छुटे तत्काल, ढाल-३, गाथा-३६. २१. पे. नाम. क्षमाछत्रीसी, पृ. ३०आ-३२आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: आदर जीव क्षमागुण; अंति: समयसुंदर०संघ जगीस जी, गाथा-३६. २२. पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. ३२आ-३३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गोतम सूणो; अंति: भाखो वेण रसाल, गाथा-२१. २३. पे. नाम. मृगापुत्र सज्झाय, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण. मु. सिंहविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीव नगर सोहामणु; अंति: होजो तास प्रणाम रे, गाथा-२४. २४. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल लीधो जी, गाथा-८. २५. पे. नाम. बाहुबलीमुनि सिझाय, पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: राजतणा अति लोभीया; अंति: समयसुंदर गुण गायो रे, गाथा-७. २६. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. ३५आ, संपूर्ण. वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धारणी मनावे रे मेघ; अंति: समयसुंदर० भवतणां पाए, गाथा-५. २७. पे. नाम. नेमनाथराजेमती सिझाय, पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, श्राव. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमझंजीव सि; अंति: रूपचंद०पातक जाय नासी, गाथा-११. २८. पे. नाम. रुखमणी सिझाय, पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: राजसागर रंगे भणेजी, गाथा-१४. २९. पे. नाम. आत्म सिझाय, पृ. ३६आ-३७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय- आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्म, आदि: मायाने वश खोटुं बोले, अंतिः नित्यलाभ० लही रे, गाथा १४. ३०. पे. नाम. जंबूकुमार सिज्झाय, पृ. ३७-३८अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी वसे; अंति: सिद्ध० गुण गाया रे, गाथा - १४. ३१. पे. नाम. आत्मसिख्या, पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण. निंदात्याग सज्झाब, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि जीवड़ा तु म करे रे, अंतिः सहिजसुंदर० उछो रे बोल, गाथा-६. ३२. पे नाम, काया सिझाय, प्र. ३८-३९अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय - काया, मु. जीवतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी, अंति: जीवति० कोइ दुख न लागे, गाधा ११. ३३. पे. नाम. आत्म गीत, पृ. ३९अ - ३९आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदिः सुखकर हितकारी रे सुण, अंतिः ते पामे संपदा रे, गाथा- १५. ३४. पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. ३९आ-४०आ, संपूर्ण. मु. वसता मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: पुन संजोगे मानव भव, अंति: मोक्षतणा अधिकारी रे, गाथा - १३. ३५. पे. नाम रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. ४० आ-४९आ, संपूर्ण. मु. पुनव, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वारु वसै जी; अंतिः पुणो० पामे निरवाण रे, गाथा - २२. ३६. पे. नाम. आत्मप्रतिबोध सज्झाय, पृ. ४१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण रूअडो; अंति: सहजसुंदर उपदे रे, गाथा- ६. ३७. पे नाम, मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ४९ आ-४२आ, संपूर्ण मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदिः समदम गुणना आगरु जी, अंति: राज० तणी रे सज्झाय, गाथा-१४. ३८. पे. नाम. सिद्धशिला स्तवन, पृ. ४२-४३अ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि; गोतमस्वामी पुछा करी; अंतिः पामे सुख अथाग हो, गाथा १६. ३९. पे. नाम. श्रावक गुण २१नी सज्झाय, पृ. ४३अ - ४४आ, संपूर्ण. २१ श्रावकगुण सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि कही मिलसे श्रावक अंतिः समयसुंदर लाधो जी, गाथा - २१. ४०. पे. नाम. साधुना सत्यावीस गुण सज्झाय, पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचे इंद्री रे अह, अंतिः श्रीविजयदेवसूरीसोजी, गाधा ९. ४१. पे. नाम. कुटुंब सज्झाय, पृ. ४५-४५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु., पद्य, आदि: नाहलो न मांने रे, अंति: जोज्यो पंडित विचार, गाधा- ११. ४२. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ४५आ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अविनाशीनि सेजडीयें; अंति: रूपचंद० बंधांणी जी, गाथा-६. ६८४६०. (*) अंजनासती रास, संपूर्ण वि. १८४१ मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ५३, ले. स्थल. टुंकरवाड, प्र. मु. राजकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वजिन प्रशादात् प्रतिलेखक ने प्रारंभ में 'पंडित विनयकुशलगणिगुरुभ्यो नमः " लिखकर लेखन शुरु किया है. कृतिकार शांतिकुशल के गुरु भी विनयकुशल गणि है. अतः इनके ही परंपरावर्त्ती किसी लेखक लिखी जाने की संभावना है. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. प्र. ले. श्रो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७.५४११.५, ', ११x२०-२५). अंजनासुंदरी रास, मु. शांतिकुशल, मा.गु, पद्य, वि. १६६७, आदि: सरस वचन वर वरसती, अंति: लखमी तस परि बास रे गाथा ५९७. " 7 ६८४६१. (*) सिद्धांतसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५९, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६.५४११.५ १५४४६). "" For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: एक बोलनो विचार; अंति: (-), (पू.वि. पंचदश बंधन विचार तक है.) ६८४६२. (#) सीमंधरजिनविज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ४४३२-४०). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिब; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४९ तक है.) ६८४६३. (+#) गजसिंहनृप रास-सीलमहात्म्ये, संपूर्ण, वि. १८५८, कार्तिक शुक्ल, २, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७, पठ. मु. केसर; प्रले. ग. फतेविजय गणि; गुभा. ग. कुशलविजय गणि (गुरु ग. भावविजय गणि); गुपि.ग. भावविजय गणि; गुभा. ग. शांतिविजय गणि (गुरु ग. माणिक्यविजय); गुपि.ग. माणिक्यविजय (गुरु ग. दोलतविजय गणि); ग. दोलतविजय गणि (गुरु ग. जिनविजय गणि); ग. जिनविजय गणि (गुरु उपा. कीर्तिविजय); उपा. कीर्तिविजय, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १६४३८). गजसिंहनृप रास-सीलमहात्म्ये, मु. देवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: प्रथम ईष्ट पदेष्ट जे; अंति: देव० सुख लच्छी रसाल. ६८४६४. (+#) चंद्रराजा रास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, १३४४४-४९). श्रीचंदराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धराधिमहिज; अंति: (-), (पू.वि. उल्लास-३ ढाल-६ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ६८४६५. (+#) समयसार नाटक सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६४-१३८(१ से ९३,९६ से १२३,१२९ से १३२,१३५ से १४३,१५२ से १५४,१६३)=२६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, १३४३६-४२). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बंधद्वार-देहान्तर्गत त्रिभुवनस्थितिविचार सवैया अपूर्ण से षडायतन अधिकार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) समयसार नाटक-अर्थ, पुहिं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६८४६६. (#) मौनएकादशी, चौमासी व ज्ञानपंचमी देववंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३, कुलपे. ४, ले.स्थल. कलोल, प्रले. त्रीभोवन मोहनलाल बारोट लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १३४४३-४७). १.पे. नाम. चौमासी देववंदन सविधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "ऋषभजिन आराधनार्थं चैत्यवंदन करूं" तक लिखा है.) २. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व देववंदन, पृ. १अ-७आ, संपूर्ण. पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नगर गजपूर पुरंदर; अंति: (१)रूपविजय० मुजरो लीजीए, (२)वीयराय संपूर्ण कहेवो. ३. पे. नाम. चौमासीपर्व देववंदन, पृ. ७आ-१६आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विमलकेवलज्ञान कमला; अंति: पद्म० सामलनु चेइरे. ४. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, पृ. १७अ-२३आ, संपूर्ण. ___ आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५. ६८४६७. विद्याविलासनरिंद चउपही, संपूर्ण, वि. १८५५, माघ कृष्ण, १४, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २४, ले.स्थल. टुकरवाड, प्रले.मु. प्रवीणकुशल (गुरु मु. राजकुशल); गुपि.मु.राजकुशल (गुरु पं. जगरूपकुशल); पं. जगरूपकुशल (गुरु पं. वर्द्धमानकुशल); अन्य.पं. मोहनविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीगोडीजी प्रसादात् श्रीशांतिनाथ स्वामि., जैदे., (२६.५४११, ११-१२४३४-३७). कर For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १५१६, आदि: गोइम गणहर पइ नमिइ; अंति: आज्ञासुंदर० सुख मिलइ, गाथा-३६३. ६८४६८. (+) वीसस्थानकगुणन काउसग्गप्रमुख विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४१२, ९४२७-३०). २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., आदि: (१)श्रीमदर्हतमानम्य, (२)तिहां प्रथम शुभ; अंति: हजार दोय गुणनो कैणो. ६८४६९. (2) जंबूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८४९, कार्तिक शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. कोटानगर, प्रले. मु. धीरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१२, ११४३०). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पार्श्वनाथं प्रणम्य, (२)श्रीपरमेश्वर वर्द्ध०; अंति: (१)भवंति भविता सदा, (२)मंगलिकनो करणहार हो. ६८४७०. (2) वछराजहंसराज चउपई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४०-४८). हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६८०, आदि: आदीश्वर आदि करी; अंति: जिनोदयव्हस अने वछराज, खंड-४, गाथा-९००, (वि. ढाल ४८) ६८४७१. रामयशोरसायन चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६०-२३(१ से २३)=३७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १५४५३). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., पद्य, वि. १६८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२० गाथा-१२ अपूर्ण से ढाल-४७ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६८४७२. (#) ऋषभ चरित, संपूर्ण, वि. १८६१, पौष शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. २५, ले.स्थल. जेतपुर, प्रले. श्राव. पूंजा प्रागजी गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रत के अंत में प्रतिलेखक ने 'मोढे छेडो दइने जतना सहित भणज्यो भणावज्यो' का उल्लेख किया है., मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १४४४०). आदिजिन चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: रायचंद० कथाने ___ अनुसार, ढाल-४७. ६८४७३. श्रावकपाक्षिक अतिचार व जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, ११४२७). १.पे. नाम. चौमासी संबच्छरी पडिकमणैरा बडा अतीचार श्रावकरा, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १२आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६८४७४. चोमासाचौदश देववंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-२(१ से २)=१७, प्रले. अमृतलाल विश्वनाथ वैद्य जानि; पठ. श्रावि. उजम बेहेन, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२, १०४३५-३८). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्म० सामलनुं चैत रे, (पू.वि. आदिजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६८४७५. (+#) सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-४(१ से ४)=१०, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १८४४२-४६). १.पे. नाम. खंधकमुनि चौढालीयो, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण. खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर सासणनो धणीजी; अंति: करणी हो करजो सब कोय, ढाल-४, गाथा-१०३. २.पे. नाम. आषाढभूति पंचढालिया, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org आषाढभूति पंचढालिया - सम्यक्त्वविषये, रा., पद्य, आदि: आषाढभूतनी वारता कहु, अंति: जुं सीझै सब काम, ढाल -५, गाथा - ११६. ३. पे. नाम. ४ मंगल ढाल, पृ. १० आ-१४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि; चौथो मंगल चीन धरो अंतिः ते मुक्तनगर ले जाय, ढाल ६. ४. पे. नाम. शिवपुर सज्झाच, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अहो सिद्धसीला सगलारो, अंति: आवागमण निवार जी, गाथा - १७. ६८४७६. (८) ज्ञानविलास व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २२-६ (१ से २,८,१५,१८,२१) = १६, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२, ११३०-३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. ज्ञानविलास, पृ. ३अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. मु. ज्ञानानंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. पद ७ गाथा १ अपूर्ण से पद ७८ गाथा ३ अपूर्ण तक हैं. प्रारंभ, बीच-बीच के व अंतिम पाठ नहीं है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: पुरिसादानी पासजिनेसर; अंतिः जिनचंद शिवसुख पायारे, गाथा-५, संपूर्ण. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२अ - २२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- फलवर्द्धितीर्थ, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०८, आदि: वामानंदन नितप्रति; अंति: नि० करो महाराया रे, गाथा ५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- बहिपुर, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नंदन जगजन; अंति: जिनचंद० सुख पाया रे, 3 गाथा ५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: वामानंद जगजन वंदन, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ६८४७७. (७) गजसिंहराय चरित्र, संपूर्ण, वि. १६०३ आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ११ ले स्थल. तिजारानगर, " प्र. मु. विवेकविलास ( मलधार); राज्यकालरा. सलेम साह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२, १८५५). गजसिंधकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., पद्य वि. १५५६, आदि पासजिणेसर पर नमी अंति: (१) सुंदरराज० इम , पावंति, (२)चरित्र मननइ उच्छाहि, खंड-४, गाथा-४२१. ६८४७८. (#) ऋषिदत्तानी चउपड़, संपूर्ण, वि. १८६६, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. १७, ले. स्थल. कीसनगढ़, प्रले. मु. रामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७X१२, २२X४२-४५). ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६४, आदि: सासणनायक सिमरतां; अंति: चोथमल० जै जैकारो जी, ढाल ५७. ६८४७९. (+) धनाधींगडमलरी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३३, मध्यम, पृ. १५, ले. स्थल. रत्नगढ, प्रले. मु. दलीचंद ऋषि (गुरु मु. मेघराजजी स्वामी); गुपि. मु. मेघराजजी स्वामी (गुरु मु. जीतमलजी स्वामि); मु. जीतमलजी स्वामि, अन्य. मु. नवलजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित - ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२७X१२, २३X७६). धन्नाअणगार चौपाई, मु. जयजश, मा.गु., पद्य, वि. १९३१, आदि : आदिनाथ आदे करी; अंति: (१) जयजश० आस ग्रह्यौ, (२)वारता जयजश करण पुनीत, ढाल ४१. ६८४८०. (#) मानतुंगमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२.५, १३४३७-४०). " मानतुंगमानवती रास, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि: गुण गिरूयो धणी प्रबल, अंति: (-), (पू. वि. डाल- १२ गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८४८१. (i) स्तवनचोवीसी, संपूर्ण, वि. १८२१, पौष शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. १६, ले. स्थल. राजधन्यनगर, प्रले. मु. कुशलविजय (गुरु ग. सत्यविजय); पठ. मु. गुणचंद (गुरु मु. नाथा); गुपि. मु. नाथा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, ११X३५). स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १७७६, आदि: ऋषभ जिनिंदसु प्रीतडी अंतिः देवचंद पद० समाजो जी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तवन- २४. ६८४८२. (#) चौवीसदंडक बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, १५x२९-३२). २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व गर्भज मणुसा; अंति: आरण अचुतइंद्र १०. ६८४८३. (+*) द्वादशव्रतविधौ जिनपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित कुल ग्रं. १२४ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७४११.५, ९४२७-३२). " १२ व्रतपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य, अंति: ( १ ) जग जस पडह बजायो 3 रे, (२) टालवा १२४ दीवा करीई, ढाल १३, गाथा-१२४. ६८४८४. (+) २४ दंडक ३० द्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १७, प्र. वि. संशोधित, दे., (२७४१२, ११४३५) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजो अंतिः जीव अनंतगुणा अधिक. ६८४८५. (*) अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१२.५, १४४४२). अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: इष्टदेव प्रणमी करी; अंति: विनय० जोतसु जोत मिलाय, डाल-९, गाथा-२४२. ६८४८६. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह विधिसहित अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १९-५ (१ से ४,१८) = १४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७११.५, ११X३४-३९). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु., सं., प+ग, आदि (-) अंति: (-), (पू. वि. रात्रीपीषध लेने की विधि से संथारा विधि तक है.) " ६८४८७. (+) प्रियंकरनृपकथामध्यगत काव्यो, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे., (२७.५X११.५, ८४३१-३४) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा के चयनित काव्य, प्रा., सं., पद्य, आदि: चित्तानुवर्तिनी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २८० अपूर्ण तक है.) ६८४८८. (+) धर्मशीमुनिकृत जीवठाणा व थोकडा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४०, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२७४१२, ७-१२x२६-३२). १. पे. नाम. धर्मसीमुनिकृत जीवठाणा सह टबार्थ व बालावबोध, पृ. १आ-१६अ, संपूर्ण, ले. स्थल अमदावाद, प्रले. श्राव. कचराभाई गोपालदास शाह, प्र.ले.पु. सामान्य. जीव १० स्थान द्वार विचार, मु. धर्मसी, प्रा., पद्य, आदि: जीव ठाणं नाम लक्खाणं; अंति: जीव अनंत पदेशी खंधे, गाथा - १०. जीव १० स्थान द्वार विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जी० जीवनुं स्थानक, अंति: पुदगल जाय ने आवे. जीव १० स्थान द्वार विचार - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो चउद प्रकारना, अंति जीवठाणे मनुष ए ५. २. पे. नाम. थोकडा संग्रह, पृ. १६आ, संपूर्ण, ले. स्थल. विसलपुर, प्रले. श्राव. रंगजीभाई (पिता श्राव. अमथाभाई); गुपि. श्राव. अमथाभाई; अन्य. संतोकबाई; श्रावि. रतनबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. थोकडा संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्टक में लिखा गया है.) ६८४८९. (M) द्रव्यप्रकाश भाषा, संपूर्ण, वि. १८८४ वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १६. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे.. (२७.५x१२.५, १६x४८). द्रव्यप्रकाश, ग. देवचंद्र, पुहिं. पद्य वि. १७६७, आदि: अज अनादि अक्षयगुणी, अंति: देवचंद० पूरन भयो गरंध, द्वार- ३, गाथा - २६८. For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६८४९०. चौमासीपर्व देववंदन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(४)=१२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२७.५४१३, १३४३३). चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (पू.वि. शाश्वताजिन चैत्यवंदन अपूर्ण तक है व बीच में सुमतिजिन चैत्यवंदन गाथा-३ अपूर्ण से चंद्रप्रभजिन स्तुति अपूर्ण तक नहीं है.) ६८४९१. भवणद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, दे., (२७४१२, १२४३७-४३). नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहली नारकी असंख्याता; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जबुद्वीपनी जगती बराबर" तक लिखा है.) ६८४९२. (+#) २४ दंडक ३० द्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-३(१ से ३)=१०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x११,१६x४७). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लेस्याद्वार अपूर्ण से सोपनोप्यद्वार अपूर्ण तक है) ६८४९३. (+) जंबूकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८१, आश्विन शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १९, ले.स्थल. पीपार, प्रले. मु. भारमल ऋषि; अन्य. मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, २२४५५-६०). जंबूस्वामी चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: तिण कालै ने तिण समै; अंति: सारा गुण छे वसेख हो, ढाल-४६. ६८४९४. (4) चोबीसठाणाना बोल, संपूर्ण, वि. १८७१, चैत्र शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. शाहेपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि. मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, २५४७-१९). २४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., आदि: गई इंदिए काय जोए वेए; अंति: ४३ जोग १४ टल्या. ६८४९५. (+) दंडकचोवीसना द्वार २६, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रावण कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १३, लिख. श्रावि. नाथीबाई; अन्य. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, १४४३८-४१). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदिः सरीरोगाहण संघयण; अंति: २ सिद्ध अयोगी. ६८४९६. (+) क्षेत्रसमाससंक्षेप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, प्रले. मु. रूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१३, १७४४०-४६). क्षेत्रसमास विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१)हिवे काइक जंबुद्विप, (२)जंबूद्वीप माहे छ; अंति: सूत्रथी जाणवो. ६८४९७. सांबप्रद्युम्न प्रबंध, संपूर्ण, वि. १८५०, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. वेरावळपटण, प्रले. पं. नवलसागर; पठ.पं. शिवहसजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीगोडीपार्श्वनाथाय नम, जैदे., (२७४१२, १५४४०-४७). सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६५९, आदि: नेमीसर गुणनिलो; अंति: समयसुंदर सुजस जगीस ए, खंड-२, गाथा-५३५, (वि. ढाल २२) ६८४९९. २० स्थानक व नवपद विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, १२-१५४४८). १. पे. नाम. २० स्थानक विधि, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आराधनाविधि, पं. भोजसागर पाठक, मा.गु., प+ग., वि. १७९४, आदि: पंचतीर्थी पधरावे पंच; अंति: भोजादिसा चंद्रसंज्ञे. २. पे. नाम. नवपद ओली विधि, पृ. १४अ-१५आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम पडिकमणां बे; अंति: कही वासक्षेप करवो जी, (वि. इसमें उपा० यशोविजयजी रचित नवपद ढाल व देवचंद्रजी रचित नवपद उलाला के पाठ समाहित है.) ६८५००. (+) प्रतिष्ठाविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, ११-१५४३०-४०). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य स्वस्ति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिष्ठास्थापन लग्न उत्तममध्यमाधम चक्र तक लिखा है.) ६८५०१. (#) अध्यात्म पदसंग्रह व अध्यात्म गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४५०). For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. आनंदघन बहोतरी, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्यौ सौवे उठ जाग बाउ; अंति: प्रभु० जन रावरौ थकौ, पद-१०८. २.पे. नाम. अध्यात्म गीत, पृ. १०अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जब लगि विषय घटा न घट; अंति: जेणइ विषयवेल कटी, गाथा-५. ६८५०२. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९१७, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १०, प्रले. प्रेमचंद भोजक; पठ. श्रावि. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१२, १३४३३). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि० तत्र; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ६८५०३. (+#) देवकीनी ढाल, संपूर्ण, वि. १८९५, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. मु. मूलजी ऋषि; पठ. श्राव. नानजी उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विक्रम १८९० बैसाख शुद १५ को लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १५४३३-३६). देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजीणंद समोसर्या; अंति: लहस्ये भवनो पार रे, ढाल-१९, गाथा-३०७. ६८५०४. (+) शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११.५, २१४६५-७०). शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सासननायक समरियै; अंति: दुक्कडं छसोय, ढाल-२९, गाथा-५०५. ६८५०५. (#) निर्वाणकांड व पंचमंगल स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७९-७२(१ से ७२)=७, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ९४३०-३३). १.पे. नाम. निर्वाणकांड, पृ. ७३अ-७३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पछा सो लहइ णिव्वाणं, गाथा-४७, (पू.वि. गाथा-२१ से है.) २. पे. नाम. पंचमंगल गीत, पृ. ७३आ-७९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि पंच परम गुरु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण तक ६८५०६. स्नात्रपूजा व सिद्धचक्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १९०१, ?, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. छुवाडा, प्रले. ग. भाग्यविजय (गुरु पं. कनकविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४१२, १४४४५-४९). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूर्वबाजोट उपर पूजी; अंति: देवचंद्र सुसोभता, ढाल-८, गाथा-६०. २. पे. नाम. सिद्धचक्रपूजा विधि, पृ. ९आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: रूपाना पूजणा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., विमलेसर यक्ष एवं चक्रेश्वरी देवी के प्रसन्न होने का प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है.) ६८५०७. (+) गुणठाणा इकवीसद्वार, संपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन कृष्ण, ६, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. दीपचंद (गुरु मु. टोडरमलजी); गुपि. मु. टोडरमलजी; पठ. सा. कुनणंजी (गुरु सा. कुसाला आर्या); गुपि. सा. कुसाला आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, २३४५४). १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार १ लखण २; अंति: मिथ्यात्व जीव जाणवा. ६८५०८. (#) रोहिणीतपस्तुति व ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, आश्विन शुक्ल, ७ अधिकतिथि, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, ले.स्थल. विसलनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, ७-११४३६-४०). १.पे. नाम. रोहिणीतपस्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: सकल भवि मंगल करै, ढाल-६, गाथा - ६८. ६८५०९. (+) पुद्गलगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, १२x२९-३२) पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: संतो देखीये बे परगट; अंति: चिदानंद सुखकारी, गाथा - १०८. ६८५१० () जंबूस्वामी रास, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पठ. सा. लालबाई, श्रावि. संधुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७११.५, १३x४७-५०). जंबूस्वामी रास, मु. रत्नसिंहसूरि - शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५१६, आदि: समरीय सामिणि सारदाए; अंति: स्वामी जंबूकुमार, गावा- ११३. ६८५११. रूपीअरूपी व धर्मअधर्म बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९२९, माघ शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, दे., (२७.५X१२, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१x४५-५०). १. पे. नाम, रूपीअरूपी १७९ बोलसंग्रह, पृ. १अ- ३आ, संपूर्ण १७९ रूपी अरूपी बोल संग्रह, मा.गु, गद्य, आदि: जीव रूपी के अरूपी, अंति: साहुकार बाका नरे नथी. २. पे. नाम धर्म अधर्म १०१ बोलसंग्रह, पृ. ४-५ अ, संपूर्ण, (२६४१२, १२४३४) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि जिनेंद्रपूजा गुरू: अंतिः पुन्यतरो फलमिदृशं १७१ बोल संग्रह - धर्मअधर्म, मा.गु., गद्य, आदि: थीरी गति कांइ मनुष्य; अंति: ते रच्यो ते धर्म. ६८५१२. (+#) धर्मोपदेश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: एहवो एक धर्मोपदेश; अंति: अवतार पामीने जिणकुं. ६८५१३. (*) प्रतिष्ठाकल्प, संपूर्ण, वि. १९६४, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ८, ले. स्थल. नागोर, प्रले. जयगोपाल मारवाड़ी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७.५x१२, १३४३९). " जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, आदि: सुमुहूते गृहसन्मुख, अंति: कर्पूरस्नात्रं. ६८५१४. आवकाराधना, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे. (२७१२.५, १६५३९). " श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञं प्रभु; अंति: जैनधर्मोस्तु मंगलम्, अधिकार ५. ग्रं. १६६. ६८५१५. (+#) दंडकद्वार तीस बोल, अपूर्ण, वि. १८९५, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. २५-१३ (१ से ९,११,१७ से १९) = १२, प्रले. सा. छगोजी (गुरु सा. लीलाजी); गुपि. सा. लीलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२७.५४१२, १५-१९४३४-३८). महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: (-): अंति: ( अपठनीय), (पू. वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.. वि. अंतिम वाक्य अवाच्य है.) ११ ६८५१६. शालिभद्र सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक नहीं है. दे.. " For Private and Personal Use Only (२७X१३, ६-१२X४३-४८). १. पे नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गोवाल तेणें भव खीरनो, अंतिः आहणी उपर भार भरत गाथा-२९ २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - व्यसन विकार परिहार, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्म, आदि: हणीवा होक्का पीवतां अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १०९ तक लिखा है.. वि. गाथांक व्यतिक्रम में है एवं गाथांक ९५ से किसी अन्य प्रतिलेखक के द्वारा लिखा प्रतीत होता है.) ६८५१७. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१ (१) ६, पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे. (२७४१२, ११४३७-४०). केशीगीतमगणधर संवाद रास, मु. अवेसंगजी, मा.गु, पद्य, वि. १८४८, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. डाल-४ गाथा-८ अपूर्ण से ढाल -१० गाथा- ९ अपूर्ण तक है.) " " Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८५१८.() शेव्रुजय तीर्थोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३१-३४). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर प्रमंडन; अंति: दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-११९, ग्रं. १७०. ६८५१९. (+) आठकर्मप्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९३७, मार्गशीर्ष कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. अहमदाबाद नागोरीशाला, प्रले. शिवशंकर पंचगोड; अन्य. सा.डाइबाई आर्या (गुरु सा. संतोकबाइ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २५०, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२७.५४१२, १२४३३-३६). १.पे. नाम. आठ कर्मप्रकृति विचार, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: पेहलु ज्ञानावरणीय; अंति: गोत्रनी १६ अंबायनि. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ९अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ६८५२०. (+#) थावच्चापुत्रनी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १९x४०-४४). थावच्चामुनि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९१, आदि: जिनवर आया जाणिनइ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२०, गाथा-४ तक है.) ६८५२१. (+) नेम चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४११.५, १८४४८). नेमिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, आदि: एकदिवस संखराजान रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-११ गाथा-१७ तक लिखा है.) ६८५२२. (2) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. मु. मांडण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, १२-१४४३९). २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिणंदा ऋषभजिणंदा; अंति: मानविजय नितु ध्यावे, स्तवन-२४. ६८५२३. (+#) पार्श्वजिन पंचकल्याणक अष्टप्रकारीपूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १३४४४). पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: श्रीशंखेसर पासजी; अंति: वंछित दाय सहायो रे, ढाल-८. ६८५२४. संजयाना बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. कृष्णजी वेलजी दवे; अन्य.सा. रूपबाई आर्या, प्र.ले.प. सामान्य, दे., (२७७१३, १३४४२). संजया विचार-भगवतीसूत्रे-शतकर५उद्देश, मा.गु., गद्य, आदि: पन्नवणा १ वेयरागे; अंति: तेथी सामा० ना संखे०५, द्वार-३७. ६८५२५. (+) उपधानतप विधि, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रावण शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. मुंबई, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१३, १५४४६-४९). उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम शुभदिवसे पोषध; अंति: नित्थार पारगाहोह. ६८५२६. (4) त्रैलोक्यसार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १२४३९). त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६२७, आदि: सरसति सद्गुरू सेवु; अंति: धरी मूगते जाय, गाथा-१५२. ६८५२७. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(१)-६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२७.५४१३, १३४३३). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-१३ अपूर्ण से ढाल-१० गाथा-४ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १३ ६८५२८. (a) विमलशाह श्लोको, संपूर्ण, वि. १८६३, ज्येष्ठ कृष्ण, १२. गुरुवार, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल, मॅसाणा, प्रले. पं. चतुरसागर गणि लिख. ग. शिवहंस, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२७४१२, १५X३५-३८) विमलमंत्री लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि सरसती सांमण वे करजोड, अंतिः भार सीरो सारी, गाथा - १०९. ६८५२९. (+#) विमलशाह श्लोको, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्रले. पं. गंभीरसौभाग्य, पठ. मु. प्रेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X११, १२X३७-४० ). विमलमंत्री लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं वे करजोड, अंतिः विनीतविमल सलोको गायो, गाथा- १११. ६८५३०. (+#) औपदेशिक पद संग्रह व पुद्गलबतीसी, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २३, ले. स्थल नाणानगर, प्रले. मु. दौलतरूचि, पठ. मु. माणिक्यविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. हुंडी में प्रतनामांतर्गत उपदेशशतक व वैराग्यशतक भी लिखा मिलता है परन्तु मान्य १००-१०० गाथावाला शतक नहीं, बल्कि उपदेशप्रद व वैराग्यप्रद पद संग्रह है.. संशोधित प्रायः शुद्ध पाठ-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (९०२) भणजो गुणजो वांचजो, दे., (२७X११, १३x४४-४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. कुगुरुसाधु पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: कछु कछु साधु कहे तब, अंति: लोकिक किर्ति लहे, गाथा-४. २. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक पद - मनचंचल परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जानिये सुध सती तबगुण, अंति: तेजला अमृतसुखद अती, गाधा-४. ३. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. १अ संपूर्ण मु. अमृतविजय, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: मानु में बाकुं मुनी, अंति: गर्व विमुक्त गुनी, गाथा-४. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद- विषयविकार परिहार, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: विषय जोहे बच्यो; अंति: लालच ते न लच्यो, गाथा-४. ५. पे. नाम. धर्मधुतारा साधु पद पृ. १ अ १आ, संपूर्ण धर्मधुतारासाधु पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धीग धीग तेओने ते; अंतिः सुखना भोगी न एतो, गाथा - ११. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु, पद्य, आदि: भणी भणीने मत भूल रे; अंतिः मोहनुं छेदने मूल रे, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद - मातृपितृसेवा, पृ. १आ - २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नथी नथी कोईनो नेह; अंति: अंतर समजो जो एह रे, गाथा-५. ८. पे. नाम संसार असारतानिरूपक पद, पृ. २अ संपूर्ण मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि नधी नथी कोई नथी सगु; अंति: अमृत रुपी० पंथ पक्षी, गाथा-४. ९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मननो मार्यो मरे पोते; अंतिः धृतिमति कीर्ति धरे, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद - परोपकार, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: करि करिने शुभ काम; अंति: अमृत सुख अभिराम रे, गाथा- ४. ११. पे. नाम. औपदेशिक पद - निजधर्मपालन, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि धरि धरिनें निज धर्म, अंति: सुंदर अमृत सर्म रे, गाथा-४. १२. पे. नाम औपदेशिक पद मानवभव दुर्लभता, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: तजी तजीने खरु तत्त्व; अंति: सुख० अनंत अजत्व रे, गाथा-४. १३. पे. नाम, औपदेशिक सज्झाय-साध्वाचार, पृ. २आ, संपूर्ण मुनिगुण गरबो, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मनने वश करे ते मुनी, अंति: अमृत सुखभोगी परात्मा, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४ www.kobatirth.org १४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ - ३अ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साचा समरधो तेओ ज, अंतिः अमृत सुख एज वरे छे, गाथा-८. १५. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३.अ, संपूर्ण, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भुंडा धरी धरी भेखरे, अंतिः अमृत सुख आवे सरे, गाधा-७. १६. पे नाम औपदेशिक सज्झाय-पाखंड परिहार, पृ. ३अ- ३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मुंडे भुंडाने मुंडे, अंति: तत्व न जेहने तुंडरे, गाथा - ६. १७. पे नाम औपदेशिक सज्झाय मिथ्या प्रदर्शन परिहार, पृ. ३आ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय मिथ्या प्रदर्शन परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्म, आदिः प्रगट्या बहु पाखंड, अंतिः चालें कपटमां चंड रे, गाथा-६. १८. पे. नाम औपदेशिक पद समता भाव, प्र. ३आ-४अ, संपूर्ण, औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साधु ते तो साचो रे; अंति: मुनिवेस दसे साधु, गाथा- ४. १९. पे नाम औपदेशिक पद- वैराग्य, पृ. ४अ, संपूर्ण औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वेगलो छे वेराग रे, अंति: अमृत सुख अनुराग रे, गाथा- ६. २०. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - दुराचार परिहार, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. " औपदेशिक सज्झाय- दुराचार परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लालची ललनाना लाखो अंतिः सुखना तो ए अधिकारी, गाथा ८. २१. पे नाम औपदेशिक सज्झाय परनारी परिहार, पृ. ५अ संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ कृष्ण, १२. शुक्रवार, औपदेशिक सज्झाव परनारी परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पसु परे पासमा ते, अंतिः सुखने तो ते अनुसारी, गाथा-८. २२. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- लोभ परिहार, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण, प्र.ले. श्लो. (१२५८) एक पोथी दूजी पद्मणी. औपदेशिक सज्झाय- लोभ परिहार, पं. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: वाणिया का जीवने जप, अंतिः दौलत० ए रखे रखडे, गाथा - १३. २३. पे. नाम. पुगलवत्तीसी, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण, वि. १९५७, ज्येष्ठ कृष्ण, १४, रविवार, पं. दोलतरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १९५५, आदि: हो जीउरा पुद्गल संग, अंति: दिवसे वरत तजे जेकारो, गाथा-३३. ६८५३१. (+#) प्रदेशीराजा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. रिया, प्रले. मु. रतनचंद, अन्य. मु. दौलतराम ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७१२.५, २४X६२-६८). प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७७, आदि: तिण कालनै तिण समै; अंति: कही सूत्रथ रे, ढाल - २२. ', ६८५३२. सुरसुंदरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ८-२ (१ से २) = ६, ले. स्थल. नोक-थली, प्रले. मु. मेघराजजी स्वामी (गुरु मु. जीतमलजी स्वामि); गुप. मु. जीतमलजी स्वामि, पठ. श्राव. फोजमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७.५११.५, २६४६४). सुरसुंदरी चौपाई. मु. धर्मवर्धन, मा.गु, पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: धर्मवर्द्धन० उमंगे जी, खंड-४, गाथा- ६१३, (पू. वि. ढाल -५ अपूर्ण से है., वि. ढाल - ४०.) " ६८५३३. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित. दे. (२७४१२, २०-२३X५०-५३). बोल संग्रह प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि दया पालै सो दान, अंति (-), (पू.वि. ५ सुमति ९ गुपति थोकडा के बाद पाठ- ९ तक है.) For Private and Personal Use Only ६८५३४. (+४) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७४-६९ (१,५ से १७,१९ से ७३) ५. पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५x१२, १५X३९-४३). . Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "अचेलक की परिभाषा" अपूर्ण से "राजकुमार के रोगोपचार के लिये तीसरे वैद्य के आगमन, "आणंदमुनि प्रसंग" से "कपिल एवं वासुदेव प्रसंग" व "वसुमति एवं भगवान महावीर" प्रसंग अपूर्ण से "नंदराजा के दीक्षा एवं तप" प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६८५३५. सूक्तमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७९-७२(१ से ८,११ से २२,२४ से ३९,४१,४३ से ६६,६८ से ७८)=७, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२८x१२, १३४४४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-१, श्लोक-११ तक, श्लोक-२५ से २६ तक, श्लोक-६४ से वर्ग-३ श्लोक-१ तक, श्लोक-२७ से २९ तक एवं वर्ग-४ श्लोक-१५ से १८ तक सूक्तमाला-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६८५३६. (+) तेरद्वार चर्चा, संपूर्ण, वि. १९४५, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु. रामचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, १७-२१४२५-३०). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मूल १ दृष्टं २ कोण ३; अंति: तलावरुप मोक्ष जाणवो. ६८५३७. (#) सोलस्वप्न सज्झाय व दीपोत्सवकल्प का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९२, फाल्गुन शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ९-१(४)=८, कुल पे. २, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. जयविजय गणि (गुरु पं. अमृतविजय गणि); पठ. पं. विनयविजय गणि (गुरु पं. जयविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ प्रसादात्, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १३४४०-४३). १. पे. नाम. सोलस्वप्न सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: १६ सुपन चंद्रगुप्त; अंति: लोक दूखी थास्यै, गाथा-१६. २.पे. नाम. दिपोत्सव कल्प का बालावबोध, पृ. १आ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध कथा, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: मांगलीक माला विस्तरउ, (पू.वि. गौतम के प्रश्नों का उत्तर देते हुए महावीर जंबूस्वामी के मोक्ष के प्रसंग अपूर्ण से स्वर्गगामी, मोक्षगामी साधु-साध्वियों की संख्या का प्रसंग अपूर्ण तक नहीं है.) ६८५३८. (#) योगविधि यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.६,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ९-१२४३४-३८). योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: आवश्यकसूत्र स्कंधे; अंति: अने रानवी आता कल्पई, (वि. यंत्र सहित) ६८५३९. गोचरी के वयालीस दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (२७४१२.५, १०x२९-३३). गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, आदि: जो माहात्मा केही; अंति: एषणा सुमती कहीजे. ६८५४०. नवतत्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदे., (२७.५४१२, १३४३८-४३). नवतत्त्व स्तवन, ग. भाग्यविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: श्रीअरिहंतना पायजुगल; अंति: समक्षे चित्तमे धरी, अध्याय-९, गाथा-१६७. ६८५४१. (+#) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. अहमदनगर, प्रले. ग. माणिक्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४४६-४९). स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकर सेवना; अंति: मोहन० विसवाविस रे, स्तवन-२४. ६८५४२. (#) अंजनासती चौपाई, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रावण शुक्ल, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. वडलू, प्रले. मु. माणेकलाल (गुरु मु. मेघराजजी स्वामी); गुपि. मु. मेघराजजी स्वामी (गुरु मु. जीतमलजी स्वामि); मु. जीतमलजी स्वामि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११.५, २१४७०-७३). ____ अंजनासुंदरी चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: अंजणा मोटी सती पाल्य; अंति: तो उगया मुगत मझार कै, गाथा-१५०. ६८५४३. (+) जीवविचार प्रकरण का हिस्सा-गाथाचतुष्क सह अनुवाद व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८६, आषाढ़ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५, प्रले.पं.रंगसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५-३९). For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६ www.kobatirth.org 1 कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण- हिस्सा गाथा २३ - २६, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सव्वे जलथलखयरा समुछि, अंतिः जं अत्थि भणिमो गाथा-४. जीवविचार प्रकरण हिस्सा गाथा २३-२६- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि हिवे पूरवला तियंचन, अंति; ते संभवइ तेहवं. जीवविचार प्रकरण- हिस्सा गाथा २३ - २६ - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कर्मभूमि १ दर्शन २; अंति: कहियई छड़ते किम, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८५४४. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., ( २६१२, १२३२-३५). स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु., पच, वि. १८वी, आदि: मुक्तालंकारविकारसार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "जन्मकल्याणक प्रसंग" तक लिखा है.) ६८५४६. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदे., (२७.५X१२, ७X३१). श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणम्मिअ, अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रासुक जल से स्नान निषेध प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६८५४७. समोसरण शतक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. सा. पूजीबाई आर्या, पठ. सा. प्ररूपबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर पाँच इंद्रियों के विषय में लिखा गया है., जैदे., (२७.५X१२, १५X३५). समवसरणद्वार भगवतीसूत्रे शतक ३०, मा.गु., गद्य, आदि: जीवाय १ लेस २ पखी ३: अंति: उद्देशानी पैरे जाणवो. ६८५४८. आद्रकुमार चौपाई व थावच्चाकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. गोकलचंद, पठ. मु. गोरधन (गुरु मु. राजेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५४१२, ११४३५-३९). १. पे. नाम. आर्द्रकुमार चौपाई, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: शांतिकरण शांतिकरो; अंतिः नवनिधि थाय रे, ढाल - ३, गाथा - २६. २. पे. नाम. थावच्चाकुमार चोढालीयो, पृ. ४आ- ७आ, संपूर्ण, प्रले. भट्टा. गोरधनजी, प्र.ले.पु. सामान्य. थावच्चाकुमार चौढालियो, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: द्वारामती नयरी बसे, अंतिः श्रीसंघ फलजो आस, ढाल-४, गाथा-५३. ६८५४९. (+) २४ दंडक २३ द्वार यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. पेज - १८, संशोधित., जैदे., (२७X१२, ५X६०-६७). २४ दंडक २३ द्वार यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ६८५५०. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७६, आश्विन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ६, प्रले. मु. वीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२, १४X३७-४०). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रमण संघतिलकोपम, अंतिः श्रीसंघर्ष वधामणा, गाथा - १२५. ६८५५१. (#) स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. पं. शिवचंद्र, पठ. सा. ज्ञानश्रीजी (गुरु सा. केसरश्रीजी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२७१२, १९३२). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु, पद्य, आदि: पुष्कलवई विजये जयो; अंतिः वाचक जश इम बोले रे, स्तवन- २०. ६८५५२. तीर्थमाला स्तवन अपूर्ण, वि. १८७६, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ९-१ (१) = ८, ले. स्थल, जगाणा, प्रले. राघवजी गोर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७१२, १३X३२). शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८४०, आदि (-); अंति: अमृत०नमो गिरिराया रे, ढाल - १०, (पू. वि. ढाल - ३ गाथा ४ अपूर्ण से है.) ६८५५३. वीर्यभेद विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदे. (२६४१२, १२-१५X३४-३७). "" वीर्यभेदविचारसंग्रह - विविध आगमोद्भूत, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभगवतिसूतरें लब्ध, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण पाठ संपराय बंध अपूर्ण तक लिखा है.) ६८५५४. दानशीलतपभावना चोढालीयो, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ८-२ (३,७) = ६, ले. स्थल. पालीतणा, लिख. पं. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २६.५X१२, १२x२२-२७). For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० १७ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (१) प्रथम जिनेसर पाय, (२) प्रथम जिनेसर पाय नमी; अंति: समृद्धि सुप्रसादो रे, ढाल - ४, गाथा- १०१, ग्रं. १३५, (पू. वि. ढाल - २ गाथा- २ अपूर्ण से गाथा- ६ अपूर्ण तक एवं डाल-४ गाथा १८ अपूर्ण से डाल-४ अंतिम दुहा के गाथा-६ अपूर्ण तक नहीं है.) ६८५५५. गौतमपृच्छा चौपाई व कमलावतीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, जैदे., (२७.५X१२, १०X३३-३६). १. पे. नाम गौतमपृच्छा चौपाई, पृ. १अ ८आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: लावण्य० जनवचने वस्यु, गाथा-१२९. २. पे. नाम. कमलावतीसती सज्झाय, पृ. ८- ९अ. संपूर्ण. मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहिं राणी कमलावती, अंतिः जीवडा हो गुणह निधान, गाथा- १०. ६८५५६. (+) लावणी व गहुँली संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१२ (१ से २, ४ से ८,१० से १२, १५, १७)=७, कुल पे. १७, पठ. श्रावि. उमेदकोर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७१२.५, १२x२८-३२). १. पे. नाम. सामान्यजिन लावणी-धुलेवामंडण, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिन लावणी-धुलेवामंडन, मु. रुपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जस सुख लीला वरस्यें, गाथा-७, (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि: पंचरूप, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पृ. ९अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करस्यें एक अवतार, गाथा-९, (पू.वि. गाथा-७ से है.) ४. पे. नाम. १४५२ गणधर चैत्यवंदन, पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण. गाथा ६. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: गणधर चोराशी कह्या; अंति: वंदन जब लग घटमां सास, ५. पे. नाम. दिवाली चैत्यवंदन, पृ. ९आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धाचल शिखरे चढी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - ७ तक है.) ६. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. १३अ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. सिद्धचक्रजीनी स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राम कहे नित्यमेव, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. दीपावली पर्व देववंदन, पृ. १३अ १३आ, संपूर्ण दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर, अंतिः कहे नय ते गुणखाण. ८. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १३आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मनोहर मुरति महावीर, अंतिः जिनशासनमां जयकार करे, गाथा ४. ९. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १३-१४अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जय जय भवि हितकर वीर, अंति: गुण पूरो बंछित आस, गाथा-४. १०. पे. नाम. दीपावलीपर्व स्तवन, पृ. १४अ १४आ, संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीमहावीर मनहरू, अंति: ज्ञानविमले कहि गाथा - ९. ११. पे नाम, गौतमस्वामी चैत्यवंदन, पृ. १४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि: नमो गणधर नमो गणधर अंति: (-). ( पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण तक " है.) १२. पे नाम, गौतमगणधर चैत्यवंदन, पृ. १६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only 1 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: नय करे प्रणाम रे, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) १३. पे. नाम. दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दुःखहरणी दीपालिका रे; अंति: ज्ञानविमल० गुण खाण, गाथा-९. १४. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तवन, पृ. १६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुणजो साजन संत पजुसण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) १५. पे. नाम. पर्युषणपर्व स्तुति, पृ. १८अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: जिनेंद्रसागर जयकार, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) १६. पे. नाम. दीवालीपर्व स्तवन, पृ. १८आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: माहरे दिवाली थई आज; अंति: भणे जी आवागमन निवार, गाथा-५. १७. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धचक्र नमी पूजी; अंति: वीर विघन हणीये, गाथा-५. ६८५५७. (+#) ज्ञानपंचमी देववंदन, अपूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ.८-२(१ से २)=६, प्रले. मु. भाईचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२, १४४३५-४०). ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५, (पू.वि. २८ खमासणा की पीठिका की गाथा-३ अपूर्ण से है.) ६८५५८. तेरद्वार बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६.५४१२, १२४३३-३७). १३ द्वार बोल-नवतत्वरूपीअरूपी, रा., गद्य, आदि: गाथा मूल द्रष्टांत; अंति: (-), (पू.वि. ७वां द्वार अपूर्ण तक है.) ६८५५९. (#) श्रावकपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राणीग्राम, प्रले. मु. गौतमसागर (तपागच्छ-सागरशाख), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२, १३४३२-३५). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणइ; अंति: चिहुप्रकार माहि. ६८५६३. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदे., (१५.५४१४, १४४२२-२५). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम सर्वोतम; अंति: पूजा करेजे. ६८५६५. (#) स्नेहलीला व पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३०-२४(४ से २७)-६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१३, ८x११). १.पे. नाम. स्नेहलीला, पृ. १अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रसकराय, पुहिं., पद्य, आदि: एक समैं व्रज वासकी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. २८अ-३०अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: गर्गनामा० पाशककेवली, श्लोक-४४५, (पू.वि. पाशा अंक-४३४ अपूर्ण से है.) ६८५७९. (+) अन्नपूर्णा स्तोत्र, त्रिपुरादेवी स्तोत्र व साधुगुण सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३१-१८(१ से १६,२२,२५)=१३, कुल पे. ६, प्रले. मु. वखता; राज्यकालरा. सेरसिंघ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२) मंगलं लेखकानांच, (५२०) जिहां लग मेरु अडग्ग है, (१२३४) जज विहिणा लिहिय, (१२३५) यादृशं पुस्तकानं च, जैदे., (१५४१३, १२४२०). १. पे. नाम. औपदेशिक चौपाई, पृ. १७अ-२१आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. औपदेशिक चौपाई-काम क्रोध लोभादि परिहार, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ८५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: नमो कल्याणदे देवि नम; अंति: यत्नेन गोपयेत्, श्लोक-११. ३. पे. नाम. त्रिपुरादेवी स्तोत्र, पृ. २४अ-२४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ सं., पद्य, आदि: ईश्वरी त्रिपुरा चंडी; अंति: देवी ईश्वरी वरदायिनी, श्लोक-११. ४. पे. नाम. राजारानीसंवाद सज्झाय, पृ. २६अ-२७अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ अपूर्ण से है व २५ अपूर्ण तक लिखा है.) ५. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. २८अ-३१अ, संपूर्ण. मु. कुशलकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: ईण कलिकाले एहवा मुनि; अंति: पामें अमर विमांण जी, ढाल-५, गाथा-४०. ६.पे. नाम. मुंहपत्ती विचार, पृ. ३१आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. __ मुहपत्ती विचार, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु तणा पय प्रणमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६८५८९. (#) भांगा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x१४, २०४५-१५). देवलोक व नारकीजीवादि भांगासंग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ६८५९१. श्रुत बाराखडी व अक्षरबत्रीशी, अपूर्ण, वि. १९४०, मध्यम, पृ. ८-३(२ से ४)=५, कुल पे. २, प्रले. राधेलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९.५४१२.५, १२४३१). १.पे. नाम. श्रुत बाराखडी, पृ. १अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम नमो अरिहंत; अंति: छंद कहै छतीस, गाथा-७७, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से ५४ अपूर्ण तक नहीं २. पे. नाम. अक्षरबत्रीशी, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. अक्षरबत्रीसी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कक्का ते किरिया करो; अंति: जे पामे भवपार, गाथा-३३. ६८६०२. (+) चौवीश तीर्थंकरों के नाम, नक्षत्र, राशि, लंछणादि व वैदिकज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, प्र.वि. पत्र-८*४ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१७४१४, ४५-५२४१०-२१). १.पे. नाम. चौवीश तीर्थंकर के नाम राशि नक्षत्रादि विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर के नाम-गण-योनि-नक्षत्र-राशि-लंछनयंत्रादि सहित, मा.गु.,सं., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. वैदिक ज्योतिष, पृ. २अ-८आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: कन्या तोल अली सूर्यब; अंति: मे करण सुभहे. ६८६०४. (#) स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७४, मध्यम, पृ. २१, कुल पे. ५, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. पं. तिलोकचंद; पं. दयाचंद; पठ. आलमचंद वेगड, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१२.५, १०x१४-१७). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं श्रीगुरु पाय; अंति: भगति भाव प्रशंसीयो, ढाल-३, गाथा-२५. २.पे. नाम. ज्ञानपंचमी लघुस्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण, वि. १८७४, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. मु. तिलोकचंद (परंपरा मु. अमरचंद); मु. दयाचंद; पठ. आलमचंद वेगड, प्र.ले.पु. सामान्य.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचिम तप तुम्है करो; अंति: समयसुं०पांचमो भेद रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. ५आ-९अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक, अंति: जंपैलालविजय निसदिस, गाथा-९. ४. पे. नाम. महावीरजिन पारणु, पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत अनंत गुण; अंति: जी तेह नहि सनमाल, गाथा-२८. ५.पे. नाम. मुनिमालिका स्तवन, पृ. १३अ-२१आ, संपूर्ण. ग. चारित्रसिंह, मा.गु., पद्य, वि. १६३६, आदि: ऋषभ प्रमुख जिन पाय; अंति: सदा कल्याण कल्याण, गाथा-३६. For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८६०५, (४) पंचकल्याणक त्रिशष्टिशलाकापुरुष स्तुति व साधारणजिन पद, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, ले. स्थल. आदरीयाणा, प्रले. श्राव. कचरादास; अन्य. हणुतचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१६x१३, १७-२१४१४-१८). १. पे. नाम. पंचकल्याणक मंगल, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १९०७, माघ शुक्ल, २, प्रले. हणुता, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. रूपचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पणमिवि पंच परमगुरु; अंति: जिनपतिदेव चोसंघह जयो, ढाल - ५, गाथा - २५. २. पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुष स्तुति, पृ. ७अ, संपूर्ण. त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., पद्य, आदि: नाभेयादि जिनः; अंतिः कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. रामचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: अष्टद्रव्य को मैथांन; अंति: सीरनाया प्रभु, गाथा-४. ६८६०६. समेतशिखर स्तवन व पार्श्वजिन पदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९१, माघ शुक्र. १५. मध्यम, पृ. १५-१ (११) =१४. कुल पे. ११. प्र. वि. गुटके का पत्र है. पत्र के अ साइड में पत्रांक दिया गया है. जैदे. (१६४१२.५, १०x९-१८). १. पे. नाम. सिखरगिरि स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९९, आदि: समेतशिखर गरि ध्यावो; अंति: कांइ खूब आनंद सुखधार, गाथा- ७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. मु. आनंद, मा.गु. पच, आदि सांवरीया हो नाथ डोरी, अंतिः खूबआनंद० लील विलास, गाथा-५. ३. पे. नाम समेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: सेवामें सिखर गिर, अंति: है खूब आनंद सिरनामी, गाथा - ६. ४. पे. नाम. समेतशिखरतीर्थ पद, पृ. ३-४अ संपूर्ण सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदिः आज गई थी सिखरगिर ऊपर, अंति: आनंद गुण रस पीधो रे, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-५. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ - ५आ, संपूर्ण. मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: वंदीजे प्रभु पास जाय, अंति: राज प्रभूजी नांमीया, गाथा - ९. ६. पे. नाम. वीसजिन स्तवन- समेतशिखर, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण, वि. १८९१, माघ शुक्ल, १५. २० जिन स्तवन- समेतशिखर, मु. आनंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: तीरथपति शिखरजी भजीये; अंति: आनंद भावना भावे रे, गाथा- ११. ७. पे नाम. वासुपूज्यजिन पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: चंपापुरी वासपूज्य रे, अंतिः आवे चाहत खून कल्याण, गाथा- ६. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद-वाराणसीमंडन, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. मु. आनंद, मा.गु., पद्य, आदि: बनारसी प्रभु पासजी, अंति: खूब करै तुझ ध्यान, गाथा - ५. २. पे. नाम महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ- ९अ, संपूर्ण. मु. आनंद, मा.गु., पच आदि पावापुरी महावीर रे; अंतिः सेवा खूब आनंद सुखधार, गाथा-६. 1 १०. पे. नाम वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ९अ १०अ संपूर्ण. वासुपूज्यजिन पद, मु. आनंद, मा.गु, पद्य, आदि वासुपूज्य बलिहारी हो, अंति: आनंद० अविचल लील अपार, गाथा ५. ११. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १२अ १५ अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. 1 मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य वि. १७६९, आदि (-) अंतिः कांति० मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५, (पू.वि. ढाल - २, गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ६८६०७. गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-१ (२) -६, पू. वि. बीच के पत्र हैं. जैदे. (१८४१३, ११४१७-२० ). For Private and Personal Use Only יי Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१ गाथा-६ अपूर्ण से ढाल-६ गाथा-४१ अपूर्ण तक है.) ६८६०८. (4) अष्टप्रकारी व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२-४४(१ से ४४)=८, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४१३, १८x११-१४). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ४५अ-५२आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१३, आदि: श्रुतधर जस समरें सदा; अंति: उत्तम पदवी पावोरे, ढाल-८. २.पे. नाम. नवपद पूजा, पृ. ५२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडीपासजी नित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ६८६०९. (#) श्रावक सज्झाय व शांतिनाथ स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६३-५४(१ से १८,२४ से ५९)=९, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१४, १०-१३४१२-१८). १.पे. नाम. श्रावक सज्झाय, पृ. १९आ-२२आ, संपूर्ण. श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात; अंति: करनी छे दुखहरनी एह, गाथा-२२. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २२आ-२३अ, संपूर्ण. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समरो संत जिणंद सखी; अंति: गत थित पईये रे सखी, गाथा-५. ३. पे. नाम. औषधसंग्रह, पृ. ६०आ-६३आ, संपूर्ण. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६८६१२. () स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८८, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४१-९(१ से ७,१३,२८)=३२, कुल पे. १२, ले.स्थल. चित्रकुट, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१२, १०x१२-१५). १.पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा-२३, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. अंकावली, पृ. ९अ-२०अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पहाडा, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के कुछ पाठांश नहीं हैं.) ३. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. २०आ-२१आ, संपूर्ण. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक राजा तणौ रे; अंति: जिनहर्ष० त्रिकाल जी, गाथा-९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण, वि. १८८८, वैशाख कृष्ण, ५. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंति: जिनप्रतिमासु नेह, गाथा-७. ५. पे. नाम. जीव आयुमान, पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण. विविध जीवों के आयुप्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य आयुष व. १२०; अंति: २४ विडाल वर्ष १२. ६. पे. नाम. बार परषदनी संख्या, पृ. २४अ, संपूर्ण. १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ साधुनी परषदा १; अंति: वैमानिक देवी एवं १२. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २४आ-२५आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पासजिणेसर तुमने; अंति: लालचंद० करि दूरै, गाथा-७. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-बीबडोद मंडण, पृ. २६अ-२७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बीबडोद मंडण, मु. गोडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७६४, आदि: सुणो हो सांवलीया; अंति: गोडीदास० इण मूरतै, गाथा-७. ९.पे. नाम. दृष्टांत श्लोकसंग्रह, पृ. २७अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक-धार्मिक दृष्टांतश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दाने बिक्र भूपति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक संख्या-२ तक है., वि. श्लोक संख्या-१ का दो बार प्रयोग किया गया है.) १०. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २९अ-३१आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८८८, श्रावण कृष्ण, ९, ले.स्थल. चित्रकुट. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: (-); अंति: चोथमल० संसार समुंदर, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-४ से ११. पे. नाम. सूर्य स्तोत्र, पृ. ३२अ-३३अ, संपूर्ण. सूर्याष्टक, क. सिंह, सं., पद्य, आदि: रक्तवर्ण महातेजो; अंति: च भवेजन्मनि जन्मनि, श्लोक-११. १२. पे. नाम. सामायिक लेने की विधि, प्र. ३३अ-३३आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहि; अंति: पछे पच्चखांण करीजै. ६८६१३. (#) चैत्यवंदनादि विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-३(२,२३ से २४)=२४, कुल पे. ७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१२, ९-१८x१३-१६). १.पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. नमस्कार महामंत्र अपूर्ण से नमोत्थुणं अपूर्ण तक नहीं है., वि. चैत्यवंदन, सामायिक लेने व पाडने की विधि सहित है.) २.पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १७आ-१८आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिनेसर केरोशीश; अंति: लावण्यसमय० संपति कोड, गाथा-९. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १९अ, संपूर्ण. प्रभात पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, आदि: उग्गएसूरे नमुक्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., साढपोरिसी के पच्चक्खाण अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. मन वचन व काया के १८ दोष, पृ. १९आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहि.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. ४ विकथा, मन वचन काया के १८ दोष इत्यादि का मिच्छामि दुक्कडम् दिया गया है.) ५. पे. नाम. मुंहपत्तिना बोल, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थतत्व साचौ; अंति: तीन जीमणे पगै परिहरु. ६. पे. नाम. प्रतिक्रमण विधि, पृ. २०आ-२२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामयक लीजै पछी; अंति: (-), (पू.वि. चत्तारि अठह संदोय वंदीयाजीणवरा-सूत्र अपूर्ण तक है.) ७. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. २५अ-२७अ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६८६१४. (2) नमस्कारमहामंत्र, प्रतिक्रमणसूत्र, नवतत्त्व प्रकरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३६, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४४१३, १२-१५४१७). १.पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंति: पढम हवइ मंगलं, पद-९. २.पे. नाम. चौवीशतीर्थंकर के नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेवजी; अंति: महावीरजी २४. ३. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-१३अ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदेस; अंति: दोय नमोत्थुणं कहना. For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० www.kobatirth.org ६८६९५. (#) ४. पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण का बालावबोध, पृ. १३अ - ३६आ, संपूर्ण. " नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीवतत्त; अंति: दान१ शील२ तप३ भावना४. ) स्नात्र पूजा, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१७४१२.५, १४१७-२० ). स्नात्रपूजा विधिसहित ग. देवचंद्र, मा.गु. पद्य वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन, अंतिः मोक्षसीख्यं श्रयंति, ढाल -८, गाथा- ६०. " ६८६१६. (A) उत्तराध्ययन स्वाध्याय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम पू. ३४-१४ (१ से १४ ) = २०, कुल पे. २१, ले. स्थल नाडुलाई, प्रले. मु. राजसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१६४१२.५, १२-१६x२५-३०). १. पे. नाम. उत्तराध्ययन स्वाध्याय, पृ. १५ अ- २७आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उत्तराध्ययनसूत्र- विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति उदयविजय नवनिधि धाय, सज्झाय ३६, (पू.वि. सज्झाय-३ से है.) २. पे. नाम. नवकार स्वाध्याय, पृ. २८अ - २८आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुजी लीजइ श्रीअरि; अंति: स भणु नवकारनो के रास, गाथा - २१. ३. पे. नाम. स्युलिभद्र सज्झाय, पृ. २८आ- २९अ, संपूर्ण. मु. उत्तमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो तुम गुणें; अंति: उत्तमसागर० भलै आव्या, गाथा-८. ४. पे. नाम, राजिमतीरथनेमि सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अग्निकुंडमां निजतनुं; अंति: ज्ञानविमल गुणमाला, गाथा-५. ५. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २९अ-२९आ, संपूर्ण. गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- भीडभंजन, पृ. ३०अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्म, वि. १८वी, आदि आंखडीए मि आजरे, अंति: उदय० आविसर तुठा रे, गाधा- ७. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. २९आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि; आप अरूपि होई के अंति: तुझ पद पंकज सेव हो, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि भीडभंजन पासजी प्रभु अंतिः चरणयुगलनी सेव हो, गाथा- ९. ८. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. ३०अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: तारक तुं त्रणि लोकनो; अंति: उदयरतन० नीकांत मां, गाथा-३. ९. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिराज कुं सदा मेरी अंतिः मेरे ओर न विचारना रे, २३ गाथा-८. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- पुरुषादानी, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: दीनानाथ को दयारस, अंतिः ज्ञानविमल० करो रे, गाथा- ८. ११. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३०-३१अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं, पद्म, आदि: जास्यां जी जिनराज, अंतिः ज्ञानविमल० सरासुं जी, गाथा- ३. " १२. पे. नाम. साधारणजिन आंगी स्तवन, पृ. ३१अ संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: झमक जोर बनी छे रे; अंतिः ज्ञानविमल० भवि वृंद, गाथा ६. १३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ३१अ संपूर्ण, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो पार्श्वनाथ, अंति: संघ आवे बहु धसमसीया, गाथा- ७. १४. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ३९अ- ३१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, उपा. उदयरतन, मा.गु., पद्य, आदि: गोडी पासजी दरीसण; अंति: उदयनी पूरो आसरे, गाथा-६. १५. पे. नाम. अरनाथजिन स्तवन, पृ. ३१आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु ताहरो ताग न; अंति: उदयरतन भवोभव भेंट हो, गाथा-७. १६. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. ३१आ-३२अ, संपूर्ण. मु. जीतचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासपूज्यजिन; अंति: इम जीत वदे नितमेवरे, गाथा-५. १७. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३२अ-३२आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो शांतिजिणंद; अंति: इम उदयरतननी वाणी, गाथा-१२. १८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३२आ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ सरीखा मेवासीने; अंति: उदयरतन० पाए लागुं, गाथा-८. १९. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. ३२आ-३३आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक; अंति: बोले लालविजे निसदीस, गाथा-१८. २०. पे. नाम. अजितसिंहजी महाराज गीत, पृ. ३३आ-३४आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: त्रिकुटबंध आचार चिहु; अंति: जणिजणि तरणतां तप तेज, गाथा-९. २१. पे. नाम. औपदेशिक कविता, पृ. ३४आ, संपूर्ण. ___ कवित्त संग्रह, क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: यह चांपो पतिसाह भाई; अंति: गद० रात फुलवांदरे, गाथा-१. ६८६१७. (4) वैकुंठपंथ व पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१३, १४४१९-२३). १. पे. नाम. वैकुंठपंथ सज्झाय, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. मु. भीम, मा.गु., पद्य, वि. १६९९, आदि: वैकुंठ पंथ बीहामणो; अंति: ह्यो ते तमे करजो माफ, गाथा-५९. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६. ६८६१८. उत्तपत्तिबहत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (१६४१४, १५४१८-२२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जोय जीव आपणी; अंति: कहै मुनि श्रीसार ए, गाथा-७२. ६८६२०. (4) पार्श्वजिन छंद, कुंडलिया व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. ६,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१२.५, १२४१६-२०). १.पे. नाम. औपदेशिक कुंडलिया, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. क. गिरधर, मा.गु., पद्य, आदि: हंसा तो सरवर गया; अंति: रणे कुडी सीची कोइली, गाथा-२१. २.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण, वि. १९५९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, प्रले. खेमा जोषी, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास संखेश्वरो; अति: संखेश्वरा आप तुठा, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. दिलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: मनधरी शारदमातजी वली; अंति: दलहर०गायो रे लाला, गाथा-१०, (वि. अंतिम गाथा में गाथांक नहीं लिखा है.) ४. पे. नाम. पहाड़ा, पृ. ९अ-११आ, संपूर्ण. पहाडा, अज्ञा., को., आदिः (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: झुडबुड जंगली जाइ; अंति: कुंभाडै खोइया, गाथा-१. For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६. पे. नाम. कालभैरवाष्टक स्तोत्र, पृ. १३अ-१४अ, संपूर्ण. __ शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: देवराजसेव्यमानपावनां; अंति: वस्य सन्निधौ ध्रुवम्, श्लोक-९ ६८६२१. (#) शेजय रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१४, १०x१२-१५). शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: सुणतां आनंद थाय, ढाल-६, गाथा-११२. ६८६२२. (+) औपदेशिक लावणी व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-१३(१,३ से ५,७ से ८,१३ से १९)-७, कुल पे. ६, प्रले. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (१३.५४१३.५, १०-१३४१३-१७). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: से अनभवे पद भायो, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक लावणी-आत्मोपरि, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. जिनदास, पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: भवि विरलो कोई आने, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: गइ सब तेरी सील समता; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक है.) ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखौ टुटा ने सांधो; अंति: जालोर सहर मझार रे, गाथा-८. ५.पे. नाम. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, पृ. ११अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल नयरी वसे जी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. २०अ-२०आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिः (-); अति: कुशल रिद्ध वंछित लहै, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) ६८६२३. (#) गौतमस्वामी व शत्रुजयतीर्थ रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१३.५, १२-१६४१८-२३). १.पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: कल्याण करौ, गाथा-४६. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थरास, पृ. ७अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६८६२४. (#) स्तवन, पदव सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१४.५, १३४१६-२१). १. पे. नाम. आगम स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रुत अतिहि भलो संघ; अंति: क्षमाकल्याण सदा पावै, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद-पुण्योपरि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पारकी होड मत कर रे; अंति: द्रव्य कोटानकोटी, गाथा-३. ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. औपदेशिक सज्झाय-दान शील तप भावना, मा.गु., पद्य, आदि: मानो पिया मोरी बात; अंति: हीजी पायो परमानंद, गाथा-१२. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. __मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणेसर प्रीतम; अंति: आतमरे अनंदघन पद एह, गाथा-६. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुं रे; अंति: आनंदघन मत अंब, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: संभवदेव ते धुर सेवो; अंति: अनूप आनंदघन रस रूप, गाथा-६. ६८६२५. परदेशीराजा चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१५४१४.५, १३४१७-२०). केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमी श्रीअरिहंत; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ६८६२६. (#) सीमंधरस्वामी व ज्ञानपंचमी स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८२, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ५, ले.स्थल. अहिपुर, प्रले.पं. वत्सराज; अन्य. ऋ. गंभीरचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१४.५, १२४१२-१५). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुण सनेही साजन; अंति: जिनचंद० प्रेम अभंग, गाथा-१०. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: मोरे मनमानी ग्यान; अंति: नाहीं पल छिन एकधरी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथसारथिसार; अंति: चंड नंदतु यूयमखंड, श्लोक-५. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४अ-६आ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारदमात नमुं सिरनामी; अंति: वंछित फल निश्चैपावै, गाथा-२१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. अमृतधर्म, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन त्रिभुवनपति; अंति: हो जी पाउं पद कल्याण, गाथा-५. ६८६५२. (+#) जैनपंचांग संवत् १८७९-१९८०, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित लिया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४११.५, १६४१६-३०). जैन पंचांग, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चेत्र सित्तात्. १८७९; अंति: ४४ उ २३। व्र१४ । १३. ६८६५५. (#) पाशाकेवली भाषा, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (१६.५४११, ९-१०x१८-२०). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. पाशांक-४४४ का फलादेश अपूर्ण तक है., वि. किनारी खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ६८६५७. विहरमानजिन स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (१३४१२.५, १२४१२). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधिर जिनवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन-७ तक लिखा है.) ६८६५८. (+) वीसवहिरमान अढीद्वीप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२०, माघ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. मंमई बंदर, प्रले. गंगाराम; पठ. श्राव. हिमतरामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (१३४११, १२४१२). विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुद्धे; अंति: नेहधर ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-३६. ६८६६०. लीलावतीचौपाई व झांझरियामुनि चौपाई, अपूर्ण, वि. १७६८, मध्यम, पृ. २९-६(१,४ से ७,९)=२३, कुल पे. २, जैदे., (१४.५४१३, १६-१८x२३-२४). १.पे. नाम. लीलावती चौपाई, पृ. २अ-२९आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं., वि. १७६८, आश्विन शुक्ल, ८, ले.स्थल. थोभ, प्रले.पं. सुंदरदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा. मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: (-); अंति: लाभवर्द्धन० सुखकार, ढाल-२९, (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१० से है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) २.पे. नाम. झांझरियामुनि चौपाई, पृ. २९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० www.kobatirth.org २७ मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदिः आदीसर जिनवर तणा चरण; अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८६६१. (*) पार्श्वनाथजीनी निसाणी, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (१) ०६, ड श्रावि, गुलाबबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे., (१४X१३, ९-१०X१५-१६). पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष गावंदा है, गाथा - २७, (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६८६६२. (i) पार्श्वजिन स्तवन, आदिजिन लावणी व सत्रुंजयतीर्थ स्तवनादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १७-२(१,५)=१५, कुल पे. ५, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (१४X१२.५, ११x१५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, पृ. २अ - ९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम एक व बीच के प नहीं हैं. मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: प्रितिविमल० मंगल करू, ढाल-५, गाथा-५६, (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण से है व बीच में गाथा - २८ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक नहीं है . ) २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीतपोविचारगर्भित महावीरजिणंद बृहत्स्तवन, पृ. ९अ - १३आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुपाय, अंतिः समवसुंदर० प्रसंसियङ, ढाल-३, गाथा २५. ३. पे. नाम ऋषभदेवजीरी लावणी, पृ. १३आ- १५अ, संपूर्ण. आदिजिन लावणी-केसरियाजी, मु. लालदास, मा.गु., पद्य, आदि: नाभी के नंदन तुम दुख; अंति: लालदासां पास खडा, गाथा - ९. ४. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. १५ अ- १६अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु, पद्य, आदि अंग उमाहो मोने अति, अंतिः प्रेम घणो जिनचंद रे, गाथा- ७. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- पल्लविया, पृ. १६ - १७अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि; परम पुरुष परमेसरु रे, अंतिः रंग० अविचल पद निरधार, गाथा ७. ६८६६३. आतमनिंद्या, संपूर्ण, वि. १८९३ माघ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. शंकर गुसाई (पिता जतिसंग), प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., ( १२.५X१२, १५२० ). आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, आदि: हे आत्मा हे चेतन ऐ; अंति: ज्ञानसार० गुन प्रवीन. ६८६६४. (+) श्रावकपाक्षिक अतिचार व कमलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३२, श्रेष्ठ, पू. १३ कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक गिनकर लिखा गया है. प्रतिलेखक ने शिवविजयगणि गुरुभ्यो नमः लिखकर लेखन प्रारंभ किया है., संशोधित., जैवे., (१५.५४१३.५, १४४१४-१५). १. पे. नाम. श्रावकपाक्षिक अतिचार तपागच्छीय, पृ. १अ ११आ, संपूर्ण वि. १७३२, पौष कृष्ण, ३, गुरुवार संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणे, अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम, कमलावतीसती सज्झाय, पृ. १२अ १३अ, संपूर्ण. मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कहि राणी कमलावती सुण, अंतिः छ जीवडा हो गुणहनीधान, गाथा- १०. ६८६६८. (+) सिद्धांतचंद्रिका वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X१४, १४-१७X३३-४५). सिद्धांतचंद्रिका - सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: पुराणपुरुषं ध्यात्वा; (पू. वि. सर्वनाम अधिकार "तेन तव पुत्र" पाठांश तक है.) ६८६८९. (+) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३X११.५, ६X३७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य अंति: (-), (पू.वि. श्लोक ७७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only अंति: (-), Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८६९४. (2) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८४६, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ.६, ले.स्थल. वीठुजानगर, प्रले.मु. दलीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ११४२६-३४). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवति; अंति: सिद्ध फलै कष्ट टलै. ६८७२७. स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ११, जैदे., (१४.५४१४, १७४२२). १.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ औषधवैद्यक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: गिरिवरमें ज्यु सुरगि; अंति: ऋद्धि० तारो दिन दयाल, गाथा-५. ३. पे. नाम. मंत्र तंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. सिद्धचक्र विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सिद्धचक्रयंत्र संक्षिप्त पूजन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (वि. यंत्र सहित.) ५. पे. नाम. अन्नपूर्णा स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: नित्यानंदकरी पराभयकर; अंति: देहि च पार्वति, श्लोक-१२. ६. पे. नाम. ६४ योगणी स्तोत्र, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं ऐं, अंति: सर्वोपद्रव नाशिनी, श्लोक-११. ७. पे. नाम. भैरवाष्टक, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., पद्य, आदि: यं यं यं यक्षरूपं दश; अंति: यत्र देवो महेश्वर, श्लोक-९. ८. पे. नाम. नरसिंघ स्तोत्र, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.. लक्ष्मीनृसिंह स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पयोनिधि; अंति: न दुर्गति भवेत्, श्लोक-१४. ९. पे. नाम. गणेश स्तोत्र, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: उमागंगजकर्णवक्रा; अंति: सर्वसिद्धा गणनायक, श्लोक-९. १०. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वस्तोत्र, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण.. ___ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु, श्लोक-११. ११. पे. नाम. पंचचक्र स्तोत्र, पृ. ७आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रालेयामल बिंदु; अंति: धावंतमनु धावतम्, श्लोक-५. ६८७५७. गंहुली, कथा व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ.८, कुल पे. ४, दे., (१६४१२.५, ११x११). १.पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणऋषिने वंदणा; अंति: कहै जिनहरष सुजाण रे, गाथा-९. २. पे. नाम. मुद्राहारी दरिद्र व द्रमक कथा, पृ. ३अ-६अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: विशाला नगरी मे कोइक; अंति: पाली मोक्षे गयो. ३. पे. नाम. करकंडुमुनि सज्झाय, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानयरी अतिभली हु; अंति: प्रणम्या पातक जाय रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. मु. विवेक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूजयणाथी चाले; अंति: विवेक कहे एक तारी, गाथा-७. ६८७७६. वास्तुमंजरी रूपाधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २८, जैदे., (२५.५४१५, १२-१५४२७-३०). वास्तुमंजरी, सूत्रधार नाथजी खेतजी, सं., पद्य, आदि: उद्यदादित्यसंकाशं; अंति: षास्त्रापाशकैरपरामपि, अधिकार-३. For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org (#) २९ ६८७८१. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले. स्थल. चाटसूनगर, प्रले. मु. रामचंद्र ऋषि (गुरुमु, कल्याणसागर, विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष); गुपि मु. कल्याणसागर (विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४X१४, १०X२३-२७). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य, अंति: मिच्छुमि. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६८७८२. (#) त्रिपुराभवानी व पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. २, प्रले. मु. गुमानसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (२४४१४, १२x२३). १. पे. नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि ऐंद्रस्यैव शरासनस्य अंतिः भवंति चिरकालम्, श्लोक-२४. २. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. ४आ - ७आ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र, अंति: पद्मावती स्तोत्रम्, श्लोक-२५. ६८८१२. (*) वैद्यजीवन सह टिप्पण, संपूर्ण वि. १७९६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, सोमवार, मध्यम, पृ. ३८, ले. स्थल, रामपुरा, प्रले. मु. गुलाबचंद (गुरु आ. हठुरत्नसूरि); गुपि. आ. हठुरत्नसूरि (गुरु आ. हीररत्नसूरि); आ. हीररत्नसूरि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २२x१३, ७X२३). वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., पद्य, आदि प्रकृति सुभगगात्रं अंति; लोलिम्मराजः कविः, विलास ५. वैद्यजीवन - टिप्पण, मु. रूपसौभाग्य, सं., गद्य, आदि: स्वभावेन शोभायमान; अंति: रूपसौ० जीवनटिप्पणम्. ६८८३०. (४) जातकपद्धति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., ( १९.५x११.५, ९X२०-२३). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य परमात्मदेव, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३३ तक लिखा है.) ६८८४९. (+) सिद्धांतचंद्रिका सह सुबोधिनीटीका आख्यातवृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १२०, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१४, १०X३४-३८). सिद्धांतचंद्रिका, प्रक्रिया, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. भ्वादि से लकारार्थप्रक्रिया.) सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६८८५२. सिद्धांतरत्न शब्दानुशासन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैये. (२८x१४, १३४४६) सिद्धांतरत्निका व्याकरण, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्गुरुपदाम्भोजं; अंतिः अनन्तः शब्दवारिधिः. ६८८७१. हैमलघुप्रक्रिया, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-२ (१ से २ )+१ (६) = १०. पू. वि. बीच के पत्र हैं. दे., (२८x१३.५, ७X३२-३५). " सिद्धमशब्दानुशासन- हमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं., गद्य वि. १७१०, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. संज्ञाधिकार सूत्र - १३ अपूर्ण से व्यंजन संधि सूत्र- १४ की वृत्ति अपूर्ण तक है.) ६८९०४. सामुद्रिकशास्त्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८५, पौष कृष्ण, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. २३, ले. स्थल. लिंबडी, . केसरचंद (गुरु पठ. पं. रत्नविजय (गुरु ग. नेमविजय); गुपि. ग. नेमविजय (गुरु ग. रविविजय); ग. रविविजय; प्रले. मु. मु. खेमचंद); गुपि. मु. खेमचंद (गुरु मु. रुपचंद); मु. रुपचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्रीशांतिनाथजी प्रसादात्. पंन्यास मुक्तिविजयजी के प्रत पर से लिखे जाने का उल्लेख मिलता है., कुल ग्रं. ७४५, प्र.ले. श्लो. (४५८) जब लग मेरु महीधर, (१२३१) याद्रसं पूस्तके द्राश्वा, (१२३६) ज्या लग्ये हूं सायरचंद्र, जैदे., (२६×१४, ६x२५). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: कूक्षं कुक्षी सवक्ष, अंति: वृद्धस्त्री तदनंतरम्, अध्याय ३, श्लोक १९८, ग्रं. २००. सामुद्रिकशास्त्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वमायु परीक्षाश्च, अंति: कहिये निश्चे तिम हीज, ग्रं. ४७०. ६८९०५. (+) सिद्धांतचंद्रिका वृत्ति समास प्रकरण से कारक प्रकरण तक, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८४+१ (५४) = ८५, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७१५, १७३०). सिद्धांतचंद्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८९१०. (+#) ज्योतिषसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७ १४.५, ९४३०-३३). ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: लग्नं लग्नपतिर्बलान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३०५ तक है.) ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लग्न कै विषैलग्नपति; अंति: (-). ६८९५०. (+#) भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. हंडी: भ० दी०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १०४३३-३६). १. पे. नाम. ज्योतिष, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदि: अश्वीन्यामांगनंदा; अंति: स्वातिमुख्यात्, श्लोक-१. २. पे. नाम. भुवनदीपक, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण. आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: सारस्वतं नमस्कृत्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ___ श्लोक-१५९ अपूर्ण तक है.) ६८९५६. भुवनदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है., जैदे., (२३४१४, ७४२८-३२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदि: (-); अंति: श्रीपद्मप्रभुसूरिभिः, श्लोक-१७५, (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण से है.) ६८९६०. (+#) उववाइयउपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३५). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १२६७. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदित्वा श्रीजिनं, (२)तिणी कालि चोथा आराने; अंति: सुख पाम्या थका. ६८९६१. (4) थूलभद्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४३७-४०). स्थूलिभद्रमुनि रास, मु. विनयप्रभु, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: वंदु वीर जिणंदना; अंति: रिध समृध तस गेह, ढाल-१७. ६८९६२. (4) नवकारमहिमा कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पठ. सा. वरबाई; सा. वैराग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४१). नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एह श्रीनउकार भावसहित; अंति: जना मोक्ष लहिसिइं, कथा-६. ६८९६३. (+) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं.७००, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: अपुणागमं गइ त्तिबेमि, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २) ६८९६५. (+#) प्रश्नव्याकरणांग सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, माघ शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ११६, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि; अन्य. मु. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, ४४३६-४३). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरहताणं० जंबू; अंति: सरीरधरे भविस्सइति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)तत्र प्रश्नव्याकरणं, (२)जंबू० हे जंबू एह; अंति: अनंता सुख पामे. ६८९६६. (#) चतुर्विंशतिजिन गीत व विहरमानजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-८(१ से ६,८,११)-६, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३४-३७). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन गीत, पृ. ७अ-९अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हिव करी आप समान रे, स्तवन-२४, (पू.वि. अरजिन गीत से है व नमिजिन गीत अपूर्ण से महावीरजिन गीत अपूर्ण तक नहीं हैं.) २. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवन, पृ. ९अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हियडउं हेजालूयउं; अंति: (-), (पू.वि. स्तवन-६ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक नहीं है.) । ६८९६७. (+#) गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १५८९, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. कुतबपुरनगर, प्रले. पं. विजयमाणिक्य गणि (गुरु पं. माणिक्यमंगल गणि); गुपि.पं. माणिक्यमंगल गणि (गुरु पं. सुमतिमाणिक्य गणि); पं. सुमतिमाणिक्य गणि; पठ. श्रावि. पूराई (माता श्रावि. सोमाई); गुपि. श्रावि. सोमाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४२८-३६). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५४५, आदि: सकल मनोरथ पूरवइ, अंति: मोरु मन वसिउं, गाथा-१२१. ६८९६८.(+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १३४४३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२०, गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ६८९६९. (+) गुरुआशातनादि कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६९-५६(१ से ३८,४०,४२ से ४६,४८ से ५८,६५)=१३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १९४६०-६५). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गुरुआशातना कथा अपूर्ण से कुमार कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.)। ६८९७०. (#) कल्पसूत्र सह व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६७-४९(१,३ से २०,२३,२८,३४ से ५८,६० से ६२)=१८, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४-१३४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पीठिका के किंचित् भाग अपूर्ण से राजा सिद्धार्थ के द्वारा त्रिशलारानी के स्वप्नफल कथन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६८९७१. (+#) प्रास्ताविक काव्य, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-२(१,१२)=१७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४-१७४४१-४४). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-७ अपूर्ण से है, श्लोक-२७८ तक लिखा है व बीच-बीच के श्लोक नहीं हैं.) ६८९७२. (+) दंडकनामा २९ द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, ले.स्थल. जोधपुर मारवाड, प्रले. गेरमल पुनमचंद; अनराज बालमुकनजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गुदी रे मोले में प्रत लिखे जाने का उल्लेख है., संशोधित., दे., (२५.५४११, ११४४०-४३). २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणाधिका. ६८९७३. (+#) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३३-३६). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहजिण पमुह चउवीस; अंति: मन आणंदे संथुआ, ढाल-७, गाथा-८८. ६८९७६. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४९+१(६४)=१५०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ५-१५४३८-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवो माहरो; अंति: एतलै गुरुभक्ति जाणवो. For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै श्रीमहावीरदेव; अंति: तेमने न राखिवो. ६८९७७. (+#) सिंदरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १७९३, फाल्गुन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. बोरनडी, प्रले. मु. जयसौभाग्य (गुरु पं. नेमसौभाग्य); गुपि.पं. नेमसौभाग्य (गुरु मु. मेघसौभाग्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ५४३०-३३). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम, द्वार-२२, श्लोक-१००. ६८९७८. (+#) दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६२, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २७, ले.स्थल. महिमदावादनगर, प्रले.ग. रामविजय (गुरु आ. राजविजयसूरि, तपागच्छ); गुपि. आ. राजविजयसूरि (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ); राज्ये आ. विजयदेवसूरि (गुरु आ. विजयसेनसूरि); गुपि. आ. विजयसेनसूरि (गुरु गच्छाधिपति हीरविजयसूरीश्वर); गच्छाधिपति हीरविजयसूरीश्वर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३८-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भवियाणं बोहणट्ठाए, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका २) ६८९७९. (+#) साधुवंदना वगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९१, भाद्रपद कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १८, कुल पे. २, प्रले. वा. हर्षकुशल (गुरु मु. समयसुंदर शिष्य, खरतरगच्छ); गुपि.मु.समयसुंदर शिष्य (गुरु उपा. समयसुंदर गणि',खरतरगच्छ); उपा. समयसुंदर गणि** (गुरु उपा. सकलचंद्र, खरतरगच्छ); पठ.पं. सुमतिकुशल (गुरु वा. सुमतिधर्म, बृहत्खरतर गच्छ); गुपि. वा. सुमतिधर्म (बृहत्खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, १४-१७४४०-५०). १.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १आ-१८अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९७, आदि: शांतिनाथ जिन सोलमउ; अंति: समयसुंदर० प्रसादोरे, ढाल-१८, गाथा-५१९. २.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १८अ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पूर्वं व्यस्त समस्त; अंति: सुद्धबुद्धीहिं, गाथा-३. ६८९८०. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. १०, प्रले. मु. शिवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १२४२५-३०). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शांति सुहंकर साह्यबो; अंति: तो कवि वीरथी जाणुं, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. जसविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गंधारी माहावीर जिणंद; अंति: जसविजय शुभकारी, गाथा-४. ३. पे. नाम. रोहिणी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, ग. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रोहिणी नक्षत्र जे; अंति: रतनविजय गुण गाता जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. दीपोच्छवी स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: एक दीवाली परव पनोतु; अंति: सकल संघ आणंदा जी, गाथा-४. ५.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आनंदानकमस्तिरदसयति; अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: शुधर्मदेवलोक पेहलुं; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ७. पे. नाम. पर्वपर्युषण स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पर्युषण पुण्ये; अंति: अमर० करेय वधाई जी, गाथा-४. ८. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अंगदेश चंपापुरवासी; अंति: उदयरतन० नीत दीवाली, गाथा-४. ९. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: श्रीसंघ विघन निवारी, गाथा-४. १०.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. रंग, पुहिं., पद्य, आदि: आदि जिणंद नमे निरयंद; अंति: रंग० हु प्रभु तेरो, गाथा-६. ६८९८१. (+) नवस्मरण व लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३९-४२). १.पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ-१०अ, संपूर्ण. मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: जैन जयति शासनम्, गाथा-६, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ६८९८२. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र व साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४०-४३). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. ६८९८३. (+) स्तवन व गंहुली संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५२, कार्तिक शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ११, पठ.सा. देवश्री (गुरु सा. अमरश्री), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४२८-३२). १.पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: राति दिवस नित सांभरे; अंति: पद्मने मंगलमाल लाल, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम तोरण आवीने: अंति: कहे पद्म पालीओरे. गाथा-१३. ३. पे. नाम. सुमतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिनाथ सुहकरू; अंति: थकी लहो सुख अव्याबाध, गाथा-३. ४. पे. नाम. प्रातःकाल मंगल, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रात:मंगल पद, मु. पद्म, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी ते निज गुरु; अंति: पद्म एहवा तो होइजो, गाथा-१७. ५.पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमां चिंतवेरे; अंति: खिमा० मुगति मझारि तो, गाथा-९. ६.पे. नाम. नंदीसूत्र भास, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने भूल से वास भास नाम दिया है. नंदी भास, मा.गु., पद्य, आदि: वैशाख सुदि एकादशी; अंति: दीठ जगतगुरु राजे छे, गाथा-४. ७. पे. नाम. वासक्षेप भास, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने भूल से नंदी भास नाम दिया है. मा.गु., पद्य, आदि: झमकारो रे मादल वाजै; अंति: जस विस्तरे परिमल खास, गाथा-३. ८. पे. नाम. बरासज्ञानपूजन भास, पृ. ४अ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: वाणुंवाऊणे उग्यो; अंति: गुरु जिनशासन जयकार, गाथा-३. ९.पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ग. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सूरति धरमजिणंदनी; अंति: खिमाविजय० अविकार, गाथा-४. १०. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-घोघाबिंदरमंडन नवखंडा, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घोघाबिंदर गुणमणि; अंति: खीमाविजय जिनत्राताजी, गाथा-१. ११. पे. नाम. गुरुगुण गंहुली, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. गुरुगुण गहुंली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गुहली करो गुरु आगले; अंति: जसविजय० भव पार रे, गाथा-८. ६८९८५. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. १६, अन्य. मु. नानवर्द्धन शिष्य (गुरु पं. नानवर्द्धन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १५४४३-४७). १.पे. नाम. आर्द्रकुमार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. क. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा प्रीतडली इम; अंति: लबधि कहइ कर जोडिरे, गाथा-१५. २. पे. नाम. वयरस्वामी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. वज्रस्वामी-रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पदमिणी पोयणि पातली; अंति: लबधि० मुनि तेह, गाथा-२०. ३. पे. नाम. धन्नाशालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धिनधिन धन्ना सालिभद; अंति: लबधि० ते रयणी दिह रे,गाथा-१३. ४. पे. नाम. खंदकुमारमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. खंधकमुनि सज्झाय, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: नाम लीइं सवि पाप; अंति: गायो गुरुगुण युगति, गाथा-१९. ५.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ते गिरुआरे भाई ते; अंति: लबधी० पय प्रणमीजे रे. गाथा-६. ६. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कां नवि चिंते हो चित; अंति: लबधि० सुख पामइ अपार, गाथा-७. ७. पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आप अजुयालयो आतमा ए; अंति: कहे लबधि विचार रे, गाथा-६. ८. पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-नरभव दर्लभता, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चेतन चेतो चितहिं; अंति: लबधि० न पाउंरे, गाथा-७. ९.पे. नाम. गुरुगुण ३६ सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेमि प्रणमो रे सगु; अंति: कीजइ तास प्रणामो रे, ___ गाथा-७. १०. पे. नाम. रामचंद्र ३५ परीआनाम सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. रघुवंशीय ३५ राजा पट्टावली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आहे जेसलमेरी जाणीइ; अंति: लालविजय० गुण लेई भणउ, गाथा-११. ११. पे. नाम. तमाकु सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती विनवे; अंति: तेहने कोडि कल्याण, गाथा-१८. १२. पे. नाम. दयोपरि सज्झाय, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सयल तीर्थंकर करु रे; अंति: विवेकचंद एह विचार, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १३. पे. नाम. भीमसेनचंद्रावतीमुनि सज्झाय, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: जस मुखि सोहि सरसति; अंति: ते शिवपुरि अंगणि, गाथा-१९, (वि. इस प्रत में कर्ता का उल्लेख नहीं है.) १४. पे. नाम. भवदत्तभवदेवर्षि स्वाध्याय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण, ले.स्थल. पाटण. नागिलाभवदेव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: भवदत्त भाइ धरि आविओ; अंति: रेकवियण वंदइ पाय रे, गाथा-८. १५. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: संवेगी साधु सोहामणा; अंति: लबधि० जयु जगि जयवंत, गाथा-२३. १६. पे. नाम. नंदमणियारनी सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नंदमणियार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बहुगुण पूरण जे हुइ; अंति: लबधिविजय० गुरपाय रे, गाथा-२०. ६८९८६. अर्हन्ननामसहस्र समुच्चय, संपूर्ण, वि. १८७७, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. मु. वल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४३५). अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: अर्हन्नामापि कर्ण; अंति: महानंदैक कारणं, प्रकाश-१०. ६८९८७. (+#) विक्रमादित्यखापरचोर चौपाई, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १७, प्रले. पं. मलूकचंद्रमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४६-५०). विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंति: तेहने सदा हुइ कल्याण, ढाल-२७, गाथा-५८५, ग्रं. ६०५. ६८९९१. (2) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. पं.साधुविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६-१९४३९-४६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: यह जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीमदाप्तौ प्रणम्या; अंति: तीर्थंकरे कहिउँ छइ. ६८९९२. (+#) विद्याविलासनृप चौपाई, संपूर्ण, वि. १६९७, आश्विन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. हीररत्न (गुरु ग. राजसिंह, खरतरगच्छ); गुपि.ग. राजसिंह (गुरु मु. विमलविनय, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. गूजरदे, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४५३-५६). विद्याविलास चौपाई, ग. राजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवर मुखवासिनी; अंति: राजसिह० सुख भरपूर, ढाल-१९, गाथा-६४२. ६८९९३. (+) मदनश्रेष्ठी चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१०.५, १३४४४). मदनश्रेष्ठी चरित्र, मु. छगन मुनि, पुहि.,सं., पद्य, वि. १९८४, आदि: दानं ख्यातिकरं सदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३६९ तक लिखा है.) ६८९९४. मोकलि आराधना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९५, चैत्र कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. सत्यपुरनगर, प्रले. ग. शुभविजय पंडित (गुरु ग. नयविजय पंडित, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४३८-४४). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ भयवं; अंति: लहंतितेसासयं सुखं, ग्रं. २४५, (वि. गाथा क्रमानुसार नहीं लिखे हैं.) पर्यंताराधना-बालावबोध*मा.गु., गद्य, आदि: अतिचार आलोज्यो हिवै; अंति: तीर्थनो ध्यान करज्यो. For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६८९९९. (4) नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५७, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ५०, ले.स्थल. राज्ञपुर, प्रले. मु. उत्तमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ४४२१-२५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: जैनं जयति शासनं, स्मरण-९, संपूर्ण. नवस्मरण-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंत नमस्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भक्तामर स्तोत्र, श्लोक-११ सेटबार्थ नहीं लिखा है. पुनः श्लोक-२७ का टबार्थ आंशिक रूप से लिखा है.) ६९००१. (+) शीलप्रकाश रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-१(६)=६, प्र.वि. प्रतिलेखकने गाथांक सुधारा है., संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४०). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिल प्रणाम करुउ जिन; अंति: वले अनेरा ग्रंथथी, गाथा-७८, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४९ अपूर्ण से ६७ अपूर्ण तक नहीं हैं., वि. प्रतिलेखक ने कर्ता नाम वाली अंतिम गाथा की कुछ कडियाँ बिना लिखे ही कृति संपूर्ण कर दिया है.) ६९००२. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३२, पौष शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. १२, प्रले. मु. चंद्रविजय (गुरु ग. सत्यविजय गणि); गुपि.ग. सत्यविजय गणि (गुरु ग. गजेंद्र गणि); ग. गजेंद्र गणि; पठ. मु. फतेचंद शिष्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिण; अंति: संतिसूरि सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीमत्पार्श्वजिनं, (२)भुवण क० त्रिणि भुवन; अंति: ए जीवविचार उद्धर्यो, (ले.स्थल. दधालिया) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. उपयुक्त स्थलों पर कहीं कहीं बालावबोध भी है.) ६९००३. (+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४३९-४५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरहंताणं जंब: अंति: सरीर धरे भविस्सईति, अध्याय-१०, गाथा-१२५०. ६९००४. अणुत्तरोववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७३, मध्यम, पृ. १२, जैदे., (२६४११, ६x४१-४९). अनुत्तरोपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: अयमढे पण्णत्ते, अध्याय-३३. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालनै विषै ते काल; अंति: ए अर्थ कह्यो, ग्रं. ६००. ६९००५. (+) उपाध्यायजीजसविजयजीकृत वीसी, संपूर्ण, वि. १९०१, आषाढ़ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक लिखित-श्री ऋषभदेवजी प्रसादात., संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १५४३२-४१). विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पुष्कलवई विजये जयो; अंति: वाचक जश इम बोले रे, स्तवन-२०. ६९००६. (+#) स्थूलिभद्रमुनिकथा व नवरसो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३००, मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३४११, १४-१६४३५). १. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. रा., प+ग., आदि: सरसती सामण पाय नमि; अंति: थाने जावण देउं नहीं. २. पे. नाम. थुलभद्रजीरो नवरसो, पृ. ३आ-९आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: उदयरतन०सगला फल्या जी, ढाल-९. For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९००७. पोषधविधि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, जैवे. (२६४११.५, १६x४२). १. पे. नाम. पौषधविधि - अष्टप्रहरी, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: रात्रिने पाछिलै बि, अंति: शेष आहार आप करे. २. पे. नाम. दिन ऊगे पीछे पोसह ल्यै सो विधि, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. पौषध विधि * संबद्ध, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: घर थकी निश्चिंत थई, अंतिः थंडिला नही पडिले है. ३. पे. नाम. रात्रिसंबंधी चौपुहरी पोसानो विधि, पृ. ४-५अ, संपूर्ण. आवश्यक सूत्र - पौषध विधि - चउप्रहरी, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: तिहां जिणै प्रथम चौ; अंति: वली सामायिक न लेवे. " ६९००९ () नवतत्त्वभेद, पर्याप्ति व प्राणनाम, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. वे., (२५.५४१२, ९X२४-२६). १. पे. नाम. नवतत्त्वना भेद, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव अजीव पुन पाप आसव, अंति: मोख ए तीण आदरवा जोग. २. पे. नाम. ६ पर्याप्ति नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः आहारपरज्या शरीर; अंति: भाषापरज्या मनपरज्या. ३. पे. नाम. १० प्राण नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सोइंद्री प्राण अंतिः सासुसासन आवखोबलप्राण, , ६९०१०. साधुसमाचारी, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रावण कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल, नागोरनगर, प्रा. मु. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री ऋषभजिन प्रशादात्, दे., (२५.५४११.५, १३४३८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदि हिवे वर्षाकाल आव्ये अंति: (१) एहवो कहता हूवा (२) आठमो अध्ययन जाणिवो. ६९०११. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९६६, फाल्गुन कृष्ण, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५x११, १३४४४-४८). स्तवनचौवीसी, आव, विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि; श्रीआदीश्वरस्वामी हो; अंति विनेचंद० पूरण करी, स्तवन- २४. ६९०१४ (+) देवकीपुत्र स्वरूप विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४८, कुल पे, १९८, ले. स्थल, लसकर, प्रले. मु. अचलसुंदर, पठ. श्राव आनंदरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२७१२, १४X३९-४४). १. पे. नाम. चक्रवर्ती गती वासुदेव गती, पृ. १अ, संपूर्ण. " चक्रवर्ती वासुदेवादि गत्यादि विचार, प्रा. मा.गु., पग, आदि: अडेव गया मुक्ख, अंतिः चक्की केसी य चक्की य गाथा - ९. २. पे. नाम. ९ निधान स्वरूप विचार, प्र. १ अ- १ आ. संपूर्ण प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: (१) नेसण्ये पंडूअए२ (२) निधान माहे जयवंता अंतिः अधिष्ठायक एहवा निधान, ३. पे. नाम. चतुर्दशरत्न स्वरूप, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. १४ रत्न विचारचक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन १ खडगरतन २ अंति: बीस रत्न हुवै ४२०. ४. पे. नाम. ९ निधानादि विचार गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. ३७ ५. पे. नाम. वासुदेवरत्न नामानि, पृ. ३अ, संपूर्ण. ७ रत्न विचार - वासुदेव, मा.गु, गद्य, आदि: चक्र धनुष खड्ग मणि, अंतिः जोजन जेनी धुनी हुवइ. ६. पे. नाम जघन्योत्कृष्ट चक्रि वासुदेवादि मान गाथा, पृ. ३.अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जंबूदीवे चक्की, अंति: एमेव य केशवाइया, गाथा - १. प्रा., पद्य, आदि: नवजोयण वित्थिन्ना, अंतिः पंचाशत्यति कोटय, गाथा- २ (वि. बृहत्शत्रुंजय माहात्म्य का संदर्भ दिया गया 3 है.) For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७. पे. नाम. देवगतिविचार गाथा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: एगदिणे जे देवा चवंति; अंति: दीवुदहि तिरियं तु, गाथा-३. ८.पे. नाम. राजलोक मान गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मेल्हेइ सुउमाओ को वि; अंति: दिवसमुदंतिमो जलही, गाथा-२. ९. पे. नाम. ४५ आगम श्लोकसंख्यामान गाथा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ४५ आगम कुलश्लोक संख्यामान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पणयालिसं आगम समग्गा; अंति: पंचसया चेव चउयाला, गाथा-१. १०. पे. नाम. द्रव्यगुण विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: गुणाणं सामदोयव्वं; अंति: दृश्यते एव. ११. पे. नाम. मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गुणणो, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक ५अपर समाप्त होता मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणj, सं., को., आदि: जंबूद्वीप भरत खेत्रे; अंति: श्रीवर्धमाननाथाय नमः. १२. पे. नाम. कल्याणक टीपणा, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १३. पे. नाम. जन्मकल्याणकादि दिन तिथि संख्या, पृ. ५आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: चवण जमण २ चउथ सवि; अंति: सर्व दिन २२२ तिथी ९९. १४. पे. नाम. २० स्थानकतप गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत १ सिद्ध २; अति: सुय१९ पयवणे२० वीसा, गाथा-२. १५. पे. नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. ६अ, संपूर्ण. __प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: १ नमो अरिहंताणं देव; अंति: २००० गुणणो जाणवो. १६. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्रं, पृ. ६आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमहाण; अंति: सिद्धचक्क नमामि, गाथा-६. १७. पे. नाम. १७० उत्कृष्टजिन नाम, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. १७० जिन विजयतपविधि गणj, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप प्रथम; अंति: ए विजय तप कहीजै. १८. पे. नाम. उपवास गाथा, पृ. ७आ, संपूर्ण.. चयनित गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: पुढवी आउ वणस्सइ बारस; अंति: (-), गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र एक गाथा ही लिखी है.) १९. पे. नाम. रीषमंडलनी टीका, पृ. ८अ, संपूर्ण. ऋषिमंडल प्रकरण-टीका का देवकीपुत्र स्वरूप विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (१)अनाकजसा१ अनंतसेन२, (२)पढमो अणियजसोच्चिय १; अंति: बेटी सोमा परणीया. २०. पे. नाम. असन पान खादिम स्वादिम अणाहारी वस्तु नाम, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीरु भाक्षप्रवचन; अति: इक्षुर पहुआ३ सूखडी४. २१. पे. नाम. जीव उपजणरी खान ८, पृ. ८आ, संपूर्ण. जीवोत्पत्ति विचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंडीया पंखी सर्प नउल; अंति: उवाइया देवता नारकी. २२. पे. नाम. काउस्सग्ग १९ दोष, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: घोडानी परै एक पग; अंति: वानरनी परै होठ हलावै. २३. पे. नाम. दुविहारे कल्पते, पृ. ९अ, संपूर्ण. दविहार ग्राह्य वस्तु नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सुठ१ मीरचीर पीपल३; अंति: वीडलवण४९ सूचल५० २४. पे. नाम. १८ भार वनस्पति मान, पृ. ९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ मा.गु.,सं., गद्य, आदि: एक भार की तरे मणे; अंति: आके १८ भार वनस्पति. २५. पे. नाम. गणित विचार, पृ. ९अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अगुणसट्ठिसयसहस्सा; अंति: वरसे तुटीतांग कहीए. २६. पे. नाम. मान उन्मान प्रमाण, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पाणीनी भरी कुडी ते; अंति: आंगुली मुष्णीक हुवै. २७. पे. नाम. तीर्थंकरना दाननो इधकार, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण. वरसीदान मान, मा.गु., गद्य, आदि: दिन प्रतै एक कोडनै; अंति: दैपुणा बी पोहर लगी. २८. पे. नाम. संक्षातानो मान, पृ. १०अ-११आ, संपूर्ण. ___अनुयोगद्वारसूत्र-संख्यात असंख्यात अनंत मान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)पाला ४ ते मध्ये पाला, (२)पालो एकलाख जोजन लाबो; अंति: तिवारै मझम अनंता. २९. पे. नाम. आवश्यक विवरण, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. ६ आवश्यक विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम सामायकावश्यक; अंति: ते पच्चक्खाणावश्यक६. ३०.पे. नाम. ५ इंद्रिय विषय, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: स्पर्शनेंद्रियना आठ; अंति: २३ विषय २७ पीण हुवै. ३१. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १२अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई है. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: अडफासा सत्तसरा; अंति: य भोयण समोसरणा. ३२. पे. नाम. १२ पर्षदा विचार, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)तीर्थंकर धर्मोपदेश, (२)ते माहेली तीन परषदा; अंति: (१)परषदा बैठी सांभलै, (२)३६३पाखडी०जनने भोलावै. ३३. पे. नाम. ३६३ पाखंडीमत, पृ. १२आ, संपूर्ण. ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भगवानना दरबार बाहिर; अंति: कही मूढजननै भोलावै. ३४. पे. नाम. ६ द्रव्यभेद विचार, पृ. १२आ, संपूर्ण. ६ द्रव्य भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मुठी माहे जीवना भेद; अंति: ११ फुल माहे पामीए. ३५. पे. नाम. ४ जिन भांगा, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: नामजिणा जिणनामा ठवण; अंति: भावजिणा समवसरणत्था, गाथा-१. ३६. पे. नाम. जलबींद्वादि में स्थित जीव परिमाणादि गाथा संग्रह, पृ. १३अ, संपूर्ण. जलबिद आदि में स्थित जीव परिमाणादिगाथा, प्रा., पद्य, आदि: अमलग पमाणे पुढवीकाए; अंति: चवहा पंचेंदिया जीवा, गाथा-८. ३७. पे. नाम. नवकारवाली १०८ मणीया परमार्थ, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: बारसगुण अरिहंता; अंति: (१)मरणं उवसगाहरणं च२७, (२)मणीया नोकरवालीना, (वि. प्रारंभ में लिखा है-"तीर्थोद्गालि प्रकीर्णे नौकरवालीना १०८ मणीया हुवै तेहनो परमार्थ") ३८. पे. नाम. १८ दूषण रहित देव, पृ. १३आ, संपूर्ण. अरिहंत स्तुति-१८ दोष निवृत्तिरुप, प्रा., पद्य, आदि: अन्नाण१ कोहर मय३ माण; अंति: नमामि देवाहिदेवं तम्, गाथा-२. ३९. पे. नाम. समूर्छिमपंचेंद्रियमनुष्य उत्पत्तिस्थान, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उच्चारे पासवणे२ खेले; अंति: मुच्छिमामणुअ पंचेंदि, गाथा-२. ४०. पे. नाम. सप्तधातु नाम, पृ. १४अ, संपूर्ण. ७धातु नामादि विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: अय १ तंब २ तओ ३ सीसग; अंति: साद्या कृत्रिमा पुनः. ४१. पे. नाम. पंचमकाल अंतस्थिति विचार, पृ. १४अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचमकाल अंतस्थिति विचारगाथा, प्रा., पद्य, आदि: घोडमुह मत्स्यभक्षण; अंति: सव्वओ सिज्झइ भरहे, गाथा-६. ४२. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई है. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: युगमान पाचै वरसे एक; अंति: एहना प्रदेश असंख हुइ. ४३. पे. नाम. पात्र विचार, पृ. १४आ, संपूर्ण. पात्रविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तुंबय दारु मट्टी; अंति: जइणं भणीयं जिणवरेहिं, गाथा-१. ४४. पे. नाम. समवसरण मान, पृ. १४आ, संपूर्ण. समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: बारस जोयण उसहो उसरणं; अंति: पासे पण कोस चउ वीरे, गाथा-१. ४५. पे. नाम. मुक्त्यासन, पृ. १४आ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसनवर्णन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उसहो अरिष्टनेमि वीरो; अंति: वाघारिय पाणिणो सव्वे, गाथा-१. ४६. पे. नाम. जिनमातापिता गति विचार गाथा, पृ. १४आ, संपूर्ण.. सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., पद्य, आदि: उसभपिया नागेसु सेसाण; अंति: माहिंदे अट्ठ बोधव्वा, गाथा-२. ४७. पे. नाम. अछेरो, पृ. १४आ, संपूर्ण. १०८ एकसमयसिद्धगाथा, प्रा., पद्य, आदि: रिसहो रिसहस्स सुया; अंति: इक्कम्मि समयम्मि, गाथा-१. ४८. पे. नाम. महावीरजिन पश्चात् समययुक्त विच्छेदादिभाव गाथा, पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चउरासीइसहस्सा वासा; अंति: कालगसूरिहंतो ठविया, गाथा-१. ४९. पे. नाम. जिनबिंबस्थापना पूजाधिकार, पृ. १५अ, संपूर्ण. जिनमूर्तिपूजामत सिद्धिगाथा, प्रा., पद्य, आदि: जो कारवइ जिणाणं ति; अंति: अप्पणा देवसक्खियं, गाथा-५, (वि. ठाणांगसूत्र का संदर्भ दिया गया है.) ५०. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा, पृ. १५अ, संपूर्ण. १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ५१. पे. नाम. ५ प्रमाद नाम, पृ. १५अ, संपूर्ण. ५ प्रमादनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मजं विषय कषाया; अंति: जीवं पाडती संसारे, गाथा-१. ५२. पे. नाम. १३ काठिया गाथा, पृ. १५अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: आलस मोह अवन्ना थंभा; अंति: कोउहला१२ रमणा१३, गाथा-१. ५३. पे. नाम. ८ कर्मकृत जघन्यस्थिति, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. ८ कर्मविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इह नाण१ दसणावरणे२; अंति: एवं बंध ठीइ माणं, गाथा-४. ५४. पे. नाम. २४ जिन पूर्वभवकृत सुकृत विचार, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. __मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभदेव धन०घी दान; अंति: पाणी देइ श्रीमाहावीर. ५५. पे. नाम. साढापचवीस आर्यदेसना नाम, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेस राजगृहनगर; अंति: तिहां अश्वमुख मनुष. ५६. पे. नाम. २३ पदवी विचार, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चक्र१ छत्रर दंड३; अंति: राम५ ए पांच वरजीने. ५७. पे. नाम. गति अपेक्षा मृत्यु परिभाषा विचार, पृ. १७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: देवता मरै तिवारे; अंति: परलोक पोतो कहीए. ५८. पे. नाम. १० स्थापना प्रकार सह बालावबोध, पृ. १७अ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, आदि: कट्ठकमे १ पोत्थकमे २; अंति: अक्षे ९ वराडे १०. For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)दस प्रकारे स्थापना, (२)काष्टकै विषै भाव; अंति: (१)कोइक कवडा विशेष, (२)अन्यथा स्थापना सुजै. ५९. पे. नाम. आगमनामादिविचार संग्रह, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. आगमनामादिविचार संग्रह *, मा.गु.,प्रा.,सं., पद्य, आदि: अपरं च भगवंत ४५; अंति: सूत्र मध्ये रह्यो छै. ६०. पे. नाम. अष्टांगयोग स्वरूप विचार, पृ. १८अ, संपूर्ण. अष्टांगयोगस्वरूप विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अहिंसादि पंचम महा; अंति: अथवा समता भाव. ६१.पे. नाम. १५ कर्मभूमि देश खंड विचार, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. १५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ५४लाख ४०हजार सर्वे; अंति: विषे आरिज ३४० अनारज. ६२. पे. नाम. साढा २५ आर्यदेश नाम ठाम, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेश राजगृही नगरी; अंति: क्षत्रिकुंडथी कोस ५०. ६३. पे. नाम. तंदुल मत्स्य विचार, पृ. १९आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: तुंदली मछ सातमी नरग; अंति: परिणामै मरी नरकै जाय. ६४. पे. नाम. कर्मप्रश्नोत्तर बोल विचार, पृ. १९आ-२०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीव समय समय प्रतै कर; अंति: अंत्य बैह समय हुवै. ६५. पे. नाम. १७ संयमभेद नाम, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: सत्तरसविहे संजमे; अंति: प्रकार असंजम कहीयै. ६६. पे. नाम. १० प्रकार जीवपरिणाम, पृ. २१अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: गइ परिणामे१ इंदि; अंति: रित्त प० ९ वेद प० १०. ६७. पे. नाम. १० प्रकार अजीवपरिणाम, पृ. २१अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: बंधण परिणामे१ गइ; अंति: अगुरुलघु प९ सद्द प१०. ६८. पे. नाम. ८ योनि संग्रह, पृ. २१अ, संपूर्ण.. ८ जीवभेद नाम, प्रा., गद्य, आदि: अंडया१ पोउआर जराउआ३; अंति: गब्भया७ उवाइया८. ६९. पे. नाम. सिद्ध के ३१ गुण, पृ. २१अ, संपूर्ण. ३१ गुण सिद्ध के, मा.गु., गद्य, आदि: इगतीसं सिद्ध गुणा; अंति: श्री सिद्धभगवंत थया, (वि. प्रतीकात्मक एक प्राकृत वाक्यसूत्र लिखा है और श्रीसमवायांगसूत्र का संदर्भ दिया गया है) ७०. पे. नाम. सिद्धानामष्टौ गुणाः, पृ. २१अ, संपूर्ण. ८ सिद्धगुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाणं च १ दंसणं चेव २; अंति: वीरीयं ८ होइ, गाथा-१. ७१. पे. नाम. समवायांगसूत्र मध्ये ८ कर्मनी ९७ प्रकृति, पृ. २१अ, संपूर्ण. ९७ कर्मउत्तरप्रकृति, मा.गु., गद्य, आदि: ५ ज्ञानावरणी; अंति: ५ अंतरायनी एवं ९७, (वि. समवायांगसूत्र का संदर्भ दिया ___ गया है.) ७२. पे. नाम. समवायांगसूत्र हिस्सा १७ प्रकार मरणाधिकार सूत्र सह बालावबोध, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. समवायांगसूत्र-हिस्सा १७ प्रकार मरणाधिकार सूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सतरसविहे मरणे; अंति: पाउवगम मरणे१७. समवायांगसूत्र-हिस्सा १७ प्रकार मरणाधिकार सूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आवायमरणे कहतां; अंति: हाथ पग हलावे नहीं. ७३. पे. नाम. धन्नाअणगार संयमपर्याय प्रतिश्वासोश्वास फलगणना, पृ. २१आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार श्वासोश्वास प्रमाण, मा.गु., गद्य, आदि: धन्ने अणगारे नवमासी; अंति: देवतानो सुख भोगवै छै. ७४. पे. नाम. गुणस्थानकेषु अल्पबहुत्व, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. १४ गुणस्थान अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, आदि: थोडा उवशांत ११माना; अंति: धणी तेथी अनंतगुणा. ७५. पे. नाम. ७ गरणा गाथा सह अर्थ, पृ. २२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७ गरणा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सुद्धो सावय गेह वर; अंति: घी५ तिल्ल६ चुन्नायं७. ७ गरणा गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मीठापाणीनो १ खारा; अंति: आटारो ७ ए सात गलणा. ७६. पे. नाम. श्रावक घर ९ चंद्रवा, पृ. २२अ, संपूर्ण. श्रावक के घर में ९ चंद्रवा का विधान, मा.गु., गद्य, आदि: पाणीहारे १ उखल उपर; अंति: देरासरे ९. ७७. पे. नाम. प्रायश्चितविधान गाथा सह अर्थ, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. प्रायश्चितविधान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अखंडिअचारित्तो वय; अंति: अरिह ९ सिद्धे १०, गाथा-१, (वि. श्राद्धकल्प ग्रंथ का संदर्भ दिया गया है.) प्रायश्चितविधान गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अखंड अविराधिक; अंति: आलोयणादि कल्पै नहीं. ७८. पे. नाम. आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, पृ. २२-२३अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सर्वथी थोडा चरित; अंति: खपावीनै मोक्ष पोहचै. ७९. पे. नाम. नव अनंता विचार, पृ. २३अ, संपूर्ण. ९ प्रकार अनंता, मा.गु., गद्य, आदि: (१)सूत्र माहे नव अनंता, (२)पहिलै अनंतै अभव्य१; अंति: सिद्ध सहत सर्वजीव ९. ८०. पे. नाम. केवली आहारादि प्रश्नोत्तर, पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)केवलीने आहार न माने, (२)प्रथम शुक्लध्यानरा ४; अंति: कदाग्रही जाणवा. ८१. पे. नाम. ५ चारित्र विचार, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सामाइक विशेष विना; अंति: ए ११ चारित्र जाणवा. ८२. पे. नाम. षड्द्रव्य स्वरूप, पृ. २५अ-३७अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जीवद्रव्य ते जीव; अति: संस्थान अयोधनवत् ५. ८३. पे. नाम. द्रव्यलक्षण विचार, पृ. ३७अ-३७आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सत द्रव्यलक्षणजे; अंति: जिम सकल वात सुधरे. ८४. पे. नाम. पांच संजमाधिकार, पृ. ३७आ-४०अ, संपूर्ण. ५ निग्रंथ प्रकार विचार-पुलाकादि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम पुलागनिर्ग्रथ; अंति: उदै मिथ्या पामै. ८५. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र बोल, पृ. ४०अ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: मनुक्षलोक मध्ये; अंति: अर्द्ध करतां एक रहै. ८६.पे. नाम. मानुषोत्तर आयुविचारादि बोल संग्रह, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई बोल संग्रह *,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तथाहि द्विविधा जंतवः; अंति: भेउ भणिओ समासेणं, (वि. शुक्ल-कृष्णपाक्षिकजीव, मानुषोत्तर बाह्याभ्यंतर भाव व सोपक्रम निरुपक्रम आयु विचारादि दिया गया है.) ८७. पे. नाम. नवतत्त्व २७६ भेद विचार, पृ. ४०आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: नवतत्वना भेद २७६ ते; अंति: एवं अठ्यासी अरुपी, (वि. संक्षिप्त भेद गीनती) ८८. पे. नाम. भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, पृ. ४०आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: कतिविहेणं भंते परिसह; अंति: परिसहा समोयरांति ते०. (वि. परिषह प्रश्नोत्तर) ८९. पे. नाम. सचित्त अचित्त जल पच्चक्खाण विचार, पृ. ४१अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सुगडांग सातमा७; अंति: पूछ कालमान जाणवो, (वि. सुयगडांग अध्ययन ७ का संदर्भ दिया गया है) ९०. पे. नाम. चातुर्मासिक श्रावक नियम गाथा, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: सम्मत्त१ सामाइयरे२; अंति: सावय चउमासिया नियमा, गाथा-७. ९१. पे. नाम. अधममध्यमोत्तम देहमान श्लोक, पृ. ४१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अधमो नवति प्रोक्तो; अंति: सोत्तम परिकीर्तित, गाथा-१. ९२. पे. नाम. मेरुपर्वत ४ शिला जिनजन्माभिषेकस्थान वर्णन, पृ. ४१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० www.kobatirth.org सं., गद्य, आदि: तत्र चूलकायं पांडक, अंति: एवमेव ज्ञातव्यम्. ९३. पे, नाम, अणगल पाणी धोवण विचार, पृ. ४९आ, संपूर्ण 7 अणगल जलविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अणगलेणं नीरेणं वत्वं अंति: तस्स होइ निरत्थयम्, गाथा- १. ९४. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ४१आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई है. गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि खजूरमूजपत्तेयं जो अंति: हुति जीवा असंखया, गाथा- २ (वि. दंडासन विचार गाथा व दिवल गाथा है.) ९५. पे, नाम, जिनकल्याणक बोल संग्रह, पृ. ४२अ संपूर्ण, पे. वि. वह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई है. बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: निशीथे श्रीऋषभावि, अंतिः तित्खगति पयन्नम्म (वि. समान १०क्षेत्र जिनकल्याणक विचार. संदर्भ-तीर्थोद्गालिक प्रकीर्णक दिया गया है. ) ९६. पे. नाम. देवसीप्रतिक्रमण समय विचार पृ. ४२अ संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदिः साजे पडिकमणो की वरि; अंतिः रात्र सीम ताइ सूजै, ९७. पे. नाम. मेरुपर्वत मान, पृ. ४२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१) मेरुपर्वत लाख जोयण, (२) धुर भद्रसाल वन, अंति: ठाम रतनमय जाणवी. ९८. पे. नाम. ७ जीवी नाम, पृ. ४२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१) सूचगडांग, (२) जातजीवी १ कुलजीवी २ अंति: गुणजीवीध सूत्रजीवी ७. १९. पे नाम, विगयप्रमाण गाथा, पृ. ४२अ - ४२ आ. संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: प्रशस्त तीन ३ राग छै; अंतिः स्वजन१ धन२ सरीर राग ३. १०१. पे नाम, सावद्य निरवद्य क्रिया परिणाम चतुभंगी, पृ. ४२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सावद्यक्रिया सावद्य; अंति: ( १ ) निर्वद्य परिणाम४, (२) चवदमै गुणठाणै पायौ. १०२. पे नाम बेइंद्रिय रूधीरप्रश्न विचार, पृ. ४२आ, संपूर्ण विगय विचार, प्रा.,सं., पद्य, आदि: क्षीर१ दधी २ नवनीतां३; अंति: दोवियडे फाणिए दुन्ने, गाथा - २, (वि. दूसरी प्राकृत गाथा के लिए आवश्यकसूत्र का संदर्भ दिया गया है) १००. पे. नाम. ३ प्रकार प्रशस्त अप्रशस्त राग, पृ. ४२आ, संपूर्ण. बेइंद्रिय रुधिरप्रश्न विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: बेंद्री माहे लोइ; अंति: माहे लोही कह्यौ, (वि. स्थानांगसूत्र के मूलपाठ का संदर्भ दिया गया है.) १०३. पे. नाम. देव मूलोत्तरदेहकार्य विचार, पृ. ४२-४३ अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जे देवता देवलोकमाहे; अंतिः पएसिराय एवं वयासी, (वि. राजप्रश्नीयसूत्र का संदर्भ पाठ ि है.) १०४. पे. नाम. सम्यक्त्वधारी व्यवहार विचार, पृ. ४३अ, संपूर्ण. मा.गु, गद्य, आदि: श्रावकनै सम्यक्त्वनै, अंतिः दूषण कोइ नही जाणता. १०५. पे. नाम चक्षुहीन को केवलज्ञानप्राप्ति प्रश्न विचार, पृ. ४३अ - ४३आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चक्षुहीननै केवलज्ञान; अंति: जीम हुवै तिम प्रमाण. १०६. पे. नाम. सामायिक पौषधादि में द्रव्यपूजागीत प्रश्न विचार, पृ. ४३आ, संपूर्ण मा.गु., गद्य, आदि: पौषध सामाइक लीधै; अंति: कहै ते प्रमाण. ४३ १०७. पे नाम, नारीयोनि जीवोत्पत्ति विचार, पृ. ४३-४४अ संपूर्ण, पे. वि. यह कृति एक से अधिक बार जुड़ी हुई है. प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: जिम मनुष्यानी स्त्री, अंतिः निर्द्धार करज्यो. १०८. पे. नाम. सचित्त अचित्त विचार सज्झाय, पृ. ४४-४५आ, संपूर्ण. मु. विनयविमल, मा.गु., पद्य, आदि: प्रवचन अमरी समरी सदा, अंति: विनयविमल कहे सिज्झाय, गाथा-२५. १०९. पे. नाम गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा सह अर्थ, पृ. ४५ आ-४६अ, संपूर्ण. गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि; चठ इक्क दु पण पंच य अंतिः भिय तिय दोणि गच्छंति. For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउ कहतांच्यार पैडा; अंति: चवदमाथी मोक्ष जावै. ११०. पे. नाम. पंचसंग्रह हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा सह व्याख्या, पृ. ४६अ, संपूर्ण. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छा अविरय देसा; अंति: नाणाजीवेसु नवि होति. पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, आदि: मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश; अंति: गाथा व्याख्यानम्. १११. पे. नाम. उपोद्घातनियुक्ति, द्वार-२६ , गाथा-१४० से १४१, पृ. ४६अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११२. पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथा कथाप्रमाण, पृ. ४६आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथा कीसाढे तीन करोड कथा का विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दोयसेकोडी छयालीसकोडि; अंति: समवायांगे कह्यो है. ११३. पे. नाम. ११ गुणस्थानक आरोहावरोह कोष्ठक विचार, पृ. ४६आ, संपूर्ण. ११ गुणस्थानक आरोहअवरोह कोष्टक विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनादि मिथ्यात१; अंति: जावै आगै पिण जाणवो. ११४. पे. नाम. ५६३ जीव भेद गाथा सह बालावबोध, पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण. ५६३ जीव भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नारयतिरि नरं देवा चउ; अंति: एए सव्वेवि देवाणं, गाथा-५. ५६३ जीव भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथवी सूषम बादर२; अंति: १९८ भेद जाणवा. ११५. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४७आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई है. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: सव्वट्ठा उ नियमा; अंति: बहु वेयणा निययं. ११६. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण रूपी अरूपी मिश्र भेद, पृ. ४७आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी मिश्र भेद, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जीवो१ संवर२ निज्जर३; अंति: पावा४ मिस्सोय अजीवो, गाथा-१. ११७. पे. नाम. पंचशतानिषष्ट्यधिकान्यजीवानां भेदानि, पृ. ४७आ-४८अ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां प्रथम अरूपीना; अंति: भेद थया ५६०. ११८. पे. नाम. ३० अरूपीना भेद, पृ. ४८अ-४८आ, संपूर्ण. रूपीअरूपी बोल, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: धर्मास्तिकाय द्रव्य; अंति: पुद्गलरो स्वभाव छै. ६९०१५. आषाढभूति चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८३१, फाल्गुन शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ.८, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. ग. चतुरविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); गुपि.ग. ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय); पं. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७.५४११.५, १५४४३). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंति: न्यानसागर कल्याणो रे, ढाल-१६, गाथा-२१८. ६९०१६. (+) बावीस परिसह, अंगुलमान विचार व शिखामण बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ७, प्र.वि. पत्रांक गिनकर लिखे हुए है., संशोधित., दे., (२४४१२, १५४३९). १. पे. नाम. बावीस परिसह विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति का २२ परिषह उदय हेतुभूत कर्म विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पन्नाअन्नाणपरिसह; अंति: युग्म परिषहाभावः. २. पे. नाम. अंगुलमान विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अनंत परमाणु तणै; अंति: समवसरणादिक मवीयै. ३.पे. नाम. १९ शिखामण बोल, पृ. ३अ, संपूर्ण. १९ औपदेशिक बोल, रा., गद्य, आदि: १ वात करतां आपने; अंति: कुसामदी न करणी. For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४. पे. नाम. १९ शिखामण बोल, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. १९ औपदेशिक बोल, रा., गद्य, आदि: १ बोलीये बंध नहीं; अंति: सामो न बोलीजे. ५. पे. नाम. २१ शिखामण बोल-धार्मिक, पृ. ४अ, संपूर्ण. २१ औपदेशिक बोल-धार्मिक, रा., गद्य, आदि: १ चतुर्विध संघरा; अंति: करे तो महापापी कहीये. ६.पे. नाम. २१ शिखामण बोल, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. २१ औपदेशिक बोल, रा., गद्य, आदि: १ वहीखाता मे खतपांना; अंति: करतां गाली काढणी नही. ७.पे. नाम. २३ शिखामण बोल, पृ. ५अ, संपूर्ण. २३ औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ धर्म ठिकाणे झूठ न; अंति: तो महापापी कहीजे. ६९०१७. (+) प्रास्ताविक काव्य, नवतत्त्व व जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ७४३७-४२). १. पे. नाम. प्रास्ताविक काव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ काव्य संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अ० विधौ विधुमुखी फणि; अंति: को विहात्वम् समर्थः, गाथा-४. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बुद्धबोहिक्कणिक्काय, गाथा-५०, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व जाणवा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभ व बीच-बीच की कुछेक गाथाओं का ही टबार्थ लिखा है.) ३. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन प्रकाशित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ से २१ अपूर्ण तक का टबार्थ नहीं लिखा है.) ६९०१८. (+) संशयवचनविच्छेदनरास, अढीद्वीपमनुष्यसंख्या व पूर्ववर्षमान विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, कुल पे. ३, अन्य. भट्टा. विद्यामंदि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३७). १.पे. नाम. शंसयवचनविच्छेदन रास, पृ. १आ-१४अ, संपूर्ण. संशयवचनविच्छेदन रास, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव निरंजन ध्याईइं; अंति: सुमतिकीरति होइ भवतार, अधिकार-५, गाथा-२३७. २.पे. नाम. अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा सह बालावबोध, पृ. १४आ, संपूर्ण. अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सत्तादि नवदि दो दो; अंति: माणसु रासिं पमाणं तु, गाथा-२. अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ७९२२८१६२५१४२२६४३३७५९; अंति: द्वीप मध्ये मनुष्य. ३. पे. नाम. पूर्ववर्षमान विचार, पृ. १४आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: दशसून्यसमायुक्तै रस; अंति: एतले वरसे एक पूर्व, गाथा-१. ६९०१९. (+) शीयलनववाडि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४२५). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: श्रीनेमिजिन चरणयुग; अंति: जिनहरख० तुमे सेवयो, ढाल-११, गाथा-९७. ६९०२०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १२४३३). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: उदय० थकी नवनिधि थाय, सज्झाय-३६, (पू.वि. अध्ययन-२ की सज्झाय से है.) For Private and Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९०२१. (+#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४२१). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ६९०२२. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १८९६, आषाढ़ शुक्ल, १४, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. पूर्णानगर, प्रले. मु. हर्षसागर; पठ. प्रेमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वप्रभु प्रासादात्, जैदे., (२५४११.५, १२४३३). स्नात्र पूजा, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चउत्तिसे अतिसय जुओ; अंति: देववचंद० सूत्र मझार. ६९०२३. (+) चंद चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९१-२(२६,५५*)=८९, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १७४४२-४५). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: मोहनविजये० गुण चंदना, उल्लास-४, गाथा-२६६१, ग्रं. ३७७६, (संपूर्ण, वि. ढाल-१०८) ६९०२४. (+) पंचज्ञान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.७, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x६७-७७). पंचज्ञान विचार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण जिणवरिंद; अंति: (-), (पू.वि. अवधिज्ञान वर्णनाधिकार गाथा-८५ से तक है., _ वि. कोष्ठक भी दिए गए है.) ६९०२५. (4) इलाचीकुमार चौपाई-भावविषे, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, प्र.वि. कुल ग्रं. २६७, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). इलाचीकुमार चौपाई-भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदाई सदा; अंति: न्यानसागर०अजुयाले छे, ढाल-१६, गाथा-१८७, ग्रं. २६७. ६९०२६. (#) पर्यंताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२, ६४३१-३५). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. पर्यंताराधना-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: गुरु नमस्करीनइ गिलाण; अंति: लहइ ते साश्वतो सुख. ६९०२७. (+) सिंदूरप्रकरण व मासदशा विचार, संपूर्ण, वि. १९५७, भाद्रपद कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. २, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. मु. जितमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., ., (२५४१२.५, १०४३४). १. पे. नाम. सिंदूर प्रकरण, पृ. १अ-१३अ, संपूर्ण. सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोम० मार्ग समाचरेत्, द्वार-२२, श्लोक-१०१. २. पे. नाम. मासदशा विचार, पृ. १३अ, संपूर्ण. ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: रवी का २० सांसुख; अंति: ७० बहु सुख पावै. ६९०२८. (+) नवस्मरण, अपराधक्षमा स्तोत्र, २४ जिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९२२, आश्विन कृष्ण, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, कुल पे. ११, ले.स्थल. खीवसर, पठ. मु. मूलचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १२४३३). १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १आ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने साते सिमरन नाम लिखा है. ___ मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: णमो अरिहताणं णमो; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, स्मरण-९, (वि. उवसग्गहर स्तोत्र भंडार गाथा के साथ दिया गया है.) २. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. १४आ-१५आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक-१९. ३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्व स्तोत्रम्, पृ. १५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. 6 . For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४. पे. नाम. शनी स्तोत्रम्, पृ. १५आ-१६अ, संपूर्ण. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: य: पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: पीडान भवंति कदाचन, श्लोक-९. ५. पे. नाम. गुरु स्तोत्रम्, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण. बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ब्रहस्पती; अंति: (१)शुप्रतीतस्य प्रजायते, (२)विदधतां सततं मम मंगल, श्लोक-६, (वि. क्रमशः दी गई गाथा सं.-६ नवग्रह स्तुति है.) ६. पे. नाम. जिनपंजर मंगलमाला स्तोत्रम्, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: (१)कमलप्रभ० पूरणाय, (२)श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ७. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: कर्तव्यं सर्वदा जने, श्लोक-२२. ८. पे. नाम. दर्शणाष्टक स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. जिनेंद्रदर्शनाष्टक, सं., पद्य, आदि: दर्शनात् दुरित ध्वंस; अंति: जिनं देवदेवं, श्लोक-१३. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथं नमस्तु; अंति: सिद्धि सुखं भवेत्, श्लोक-१५. १०. पे. नाम. अपराधखिमा स्तोत्र, पृ. १९अ-२०आ, संपूर्ण. जिनापराधक्षमापना स्तोत्र, मु. मूलचंद, सं., पद्य, आदि: ॐकार आद अविगत अतीत; अंति: मूलचंद पार्श्वनाथं, श्लोक-१७. ११. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्रम्, पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमजिनं नाम संभव; अंति: सुखनिधानं० निवास, श्लोक-८, (वि. कोष्ठक भी दिया गया है.) ६९०२९. (+#) संग्रहणीसूत्रम्, संपूर्ण, वि. १८०६, माघ शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १३, प्रले. पं. सत्याब्धि; पठ. श्राव. पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: वीरजिण तित्थं, गाथा-३१५. ६९०३०. (+#) संग्रहणीसूत्र, १७ धान्यगाथा व २४ जिनभवसंख्या श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, कुल पे. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४६६-७०). १.पे. नाम. संग्रहणीसूत्र, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ: अंति: वीरजिण तित्थं. गाथा-२७७. २. पे. नाम. सप्तदशधान्यानि गाथा, पृ. ५आ, संपूर्ण. १७ धान्य गाथा, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कणानां लक्षप्रमाणं; अंति: अयसि१६ सणा१७, गाथा-३. ३. पे. नाम. २४ जिनभवसंख्या श्लोक, पृ. ५आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयजिने त्रयो; अंति: रित्थंभवाः शंभवाः, श्लोक-१. ६९०३१. (+) चतुर्विंशतितीर्थंकर पंचपंचकल्याणक द्विपंचाशिका, संपूर्ण, वि. १९२९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ८४३२). २४ जिन पंचकल्याणक बावनी, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १६०१, आदि: श्रीगुरुपाय प्रणमउं; अंति: पार्श्वचंद्रेण० संखे, ढाल-२४, गाथा-५२, (वि. एक एक गाथा की भी ढाल है.) ६९०३२. (+) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १८६८, फाल्गुन कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ५, प्रले. भैरदास जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने अंत में श्री भेरूनाथप्रसादात, श्रीबटुकाय नमः, श्रीगोराजी साह इत्यादि लिखा है., संशोधित. कुल ग्रं. २०१, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४१-४६). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: गर्गो० तथा पाशक ढालन, श्लोक-१८६. For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९०३३. (+#) आचारांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ३-१०४२१-२५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं० इहमेगे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९०३५. (4) पंचकल्याणकमहावीर स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-१(५)=६, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४.५४१२, ८x२६). महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण वंदु; अंति: नामे लही अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-५६, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-३ अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक नहीं है.) ६९०३६. (+) आचारांगसूत्र-द्वितीय श्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६१, फाल्गुन कृष्ण, ११, मंगलवार, मध्यम, पृ. ११५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६.५४११.५, ६४३५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: विप्पमुच्चइ त्तिबेमि, (प्रतिपूर्ण, वि. आचारांग विषयक आलावा सटबार्थ संलग्न है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इ० एम बे० कहु छौ, ग्रं. ५००३, प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९०३७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४४, माघ शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ६२+१(४३)=६३, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. जीवणविजय गणि; अन्य. मु. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री शांतिनाथ प्रसादात्., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ५४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: सिजंभव०निच्चलाहोसु, अध्ययन-१०, (वि. चूलिका-२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: धर्म केवली भगवंतनो; अंति: धर्म हुती चलावउ नही, ग्रं. ३२००. ६९०४३. लीलावती भाषा, संपूर्ण, वि. १७८५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१, ले.स्थल. खीवसर, प्रले. आ. हरचंद्र (गुरु आ. सिद्धसूरि); गुपि. आ. सिद्धसूरि; पठ. श्राव. हरकिसन (गुरु मु. दयारत्न); गुपि.मु. दयारत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२६४११, १४४४०). लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: सोभित सिंदूर पुर; अंति: लालचंद० जन सुखकाज, अध्याय-१६, गाथा-७०७. ६९०४५. (+-) अभिधानचिंतामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६x४४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्याहतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः, कांड-६. ६९०४८. (#) दीवालीका देववांदवानी विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्रले. जेठालाल; पठ. सा. सोभागश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४१०.५, १०४३०). दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: वीरजिनवर वीरजिनवर; अंति: ज्ञानविमल० गुणखांणि. ६९०४९. (+#) विक्रमसेनलीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७९८, आषाढ़ शुक्ल, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ५३-११(२ से ५,७,९,११ से १२,१८,२१,२४)=४२, ले.स्थल. पालडी, प्रले. पं. हर्षविजय (गुरु मु. माणिक्यविजय); गुपि. मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. मुक्तिविजय गणि); पं. मुक्तिविजय गणि (गुरु उपा. मानविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४३८). For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास, अंति: नामे नवनि रे, ढाल - ६४, (पू.वि. ढाल - १ गाथा- २ अपूर्ण से ढाल -५ गाथा- १३ अपूर्ण, ढाल-६ गाथा - १२ से ढाल -७ गाथा-१० तक व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६९०५१. (#) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४१२.५, ६४३२-३६). " वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पच, वि. १७२६, आदि सरस्वतीं हृदि, अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पुरुषार्थकरण श्लोक-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) वैद्यवल्लभ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसारदा प्रतइ हृदि; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९०५२. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले. स्थल. सिरदारशहर, प्रले. मु. केसरिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४१२.५, ७x४८). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पह निगंधाण, अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि, उद्देशक- ६, (वि. १९७८, श्रावण कृष्ण, १४, मंगलवार ) बृहत्कल्पसूत्र - टवार्थ में मा.गु., गद्य, आदि: नो० नकल्पड़ नि०साधना, अंतिः कहु ति तिनविधि करि (वि. १९७८, भाद्रपद कृष्ण, १, शुक्रवार) , ४९ ६९०५३. चौबीसदंडक तौसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६ वे. (२४.५४१२, १२४३२). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणा अधिक. ६९०५४. प्रायच्छित विधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, दे. (२५x११.५, ११४४०). " श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं अंतिः क्षमाकल्याणसाधुना. ६९०५५. केशीगीतमनाप्रनोनी डालो, संपूर्ण, वि. २१वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, गु. (२५४११.५, १५४३६-३९). केशीगौतमगणधर संवाद रास, मु. अदेसंगजी, मा.गु., पद्य, वि. १८४८, आदि: वांदी जिन चोवीसने; अंति: अदेसंग० लहे रसाल रे, ढाल - १४, गाथा - २१६. 3 " ६९०५६. (*) आनंदश्रावक संधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११.५, ११४३७)आनंदश्रावक संधि, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १६८४, आदि : वर्द्धमानजिनवर चरण; अंति: पभणइ मुनि श्रीसार, ढाल - १५, गाथा - २५२. ६९०५७. (+#) अंजनासती चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्रले. सा. चनणा, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे. (२४४१२, १६x४३-४६) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., पद्म, आदि: पहले कडावै हो पायनमः अंतिः नै सिरोमणि गावीयै, ढाल २२, गाथा- १६५. ६९०५८. (+#) अनुत्तरोववाईसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, १३X३५-४० ). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए अंतिः तहा णेयव्वं, अध्याय-३३. ६९०५९. (#) द्वादशभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९६९ माघ शुक्ल ५, श्रेष्ठ, पृ. ९. ले. स्थल, पालीताणा, प्रले. लालजी शवजी ठक्कर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२, १०X३३-३६). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिनेसर पय नमी, अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल १३, गाथा - १२८. ६९०६०. पार्श्वनाथसहस्रनाम, संपूर्ण, वि. १९५१, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ७, ले. स्थल. राजनगर, प्रले. जीवणसिह, पठ. मु. वृद्धिविजय (गुरु मु. विनयविजय); गुपि. मु. विनयविजय, अन्य. मु. रमणीकविजय यति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीधर्म्मनाथ प्रसादात्., दे., ( २६. ५X१२, १५X३७). पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्म, आदिः पार्श्वनाथ जिन: अंतिः रेधते सौख्यदा वरा. For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९०६१. (+) गौतमस्वामी स्तोत्र, मंत्र-यंत्रादि जाप विधिसहित, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-९(१ से ५,८,१२,१५ से १६)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२, १३४३२-३७). १.पे. नाम. गौतमस्वामी मंत्रजाप साधन विधि, पृ. ६अ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गौतमस्वामी मंत्र-यंत्र जापविधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मंत्रगर्भ तेवश्चायम्, (पू.वि. प्रारंभिक कुछ अंश नहीं हैं.) २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १४आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: ॐ नमस्त्रिजगन्नेतु; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-९ अपूर्ण तक है. मात्र अंतिम दो पद नहीं है.) ३. पे. नाम. बाहुबली मंत्रजाप साधन विधि, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ३ गर्भ व्यत्ययः, (पू.वि. प्रारंभिक कुछ अंश नहीं हैं.) ६९०६२. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१,६)=५, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १०४३०). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितजिन स्तवन से विमलजिन स्तवन गाथा-३ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६९०६३. (#) योगशास्त्र- प्रकाश ३ से ४, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१०(१ से ७,१० से १२)=६, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३-१७४३८-४२). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रकाश-३ श्लोक-१० अपूर्ण से प्रकाश-४ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ६९०६४. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, कुल पे. ४०, दे., (२४४१२, १३४३६-४०). १.पे. नाम. पंचमआरा सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहै गोयम सूणो; अंति: भाख्या वयण रसालोरे, गाथा-२१. २.पे. नाम. १० बोल सज्झाय, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिनवर; अंति: श्रीसार० रतन बहुमोल, गाथा-२१. ३. पे. नाम. कुगुरुपच्चीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. मु. रत्नविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु करि परखा कीजे; अंति: रत्नविजय इम बोले जी, गाथा-२५. ४. पे. नाम. असज्झाय सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. ऋषभविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंति: वहेला वरसो सिद्धि, गाथा-११. ५. पे. नाम. नवपद सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदिः सुरतरुने सुरमण थकी; अति: जी अखय अमर जिनचंद, गाथा-७. ६.पे. नाम. कुमति सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अबके जोग मील्यो छे; अंति: राममुनि० काज सुधारो, गाथा-१४. ७. पे. नाम. मेतारजमुनि सज्झाय, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. राजविजय, पुहिं., पद्य, आदि: शमदमगुणना आगरू जी; अंति: राज० तणी रेसज्झाय, गाथा-१४. ८. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: सुर नर प्रसंशा करे; अंति: कवियण० सांतिकुमारो, गाथा-१६. ९. पे. नाम. होलिकापर्व सज्झाय, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: नवगाटी नवल वर पाया; अंति: राखे सबसे वात अधुरी, गाथा-१६. १०. पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी श्रीजिनराजतणी; अंति: सहीने पोहता शिवपुरी, गाथा-४१. ११. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ महावीरजिन स्तवन-तपवर्णन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कीयो छे मास पांच दिन; अंति: समयसुंदर सुखकार, गाथा-१०. १२. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. मु. ठाकुरसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी रे धन्ना; अंति: लही हे वीरजिणवर कही, गाथा-२१. १३. पे. नाम. पांचपांडव सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: हस्तिनागपुर वर भलो; अंति: मुज आवागमण निवार रे, गाथा-१९. १४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-नारी, पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: मुरख कुंभावे नहि रे; अंति: आगे इच्छा थांरि रे, गाथा-१७. १५. पे. नाम. मरुदेवीमाता सज्झाय, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मरुदेजीयो माता कहे; अंति: वरत्या जय जयकारो रे, गाथा-१७. १६. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. १२अ-१३अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संजम लेवा संचर्या रे; अंति: नयविमल० धन अवतार, गाथा-१६. १७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. जिनदास, मा.गु., पद्य, आदि: तुने संसारी सुख किम; अंति: जिनदास महामुश्किल जो, गाथा-९. १८. पे. नाम. चित्रसंभूति सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चित्र कहे ब्रह्मराय; अंति: कवियण शिवपद लेसी हो, गाथा-२०. १९. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १४अ-१५अ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७१, आदि: राणी राजुल करजोडी; अंति: कांतिगाय श्रीकार रे, गाथा-१६. २०. पे. नाम. नंदीषेण सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नयरीनो वासी; अंति: तस हरखे नामुंशीश हो, ढाल-३, गाथा-१२. २१. पे. नाम. देवानंदामाता सज्झाय, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., पद्य, आदि: देवदाणव तिर्थंकर गणध; अंति: सकल० एतो मेरि अमा, गाथा-१२. २२. पे. नाम. धन्नाअणगार सज्झाय, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामीने वीनहु; अंति: धनाजी आज नही काल, गाथा-१३. २३. पे. नाम. ५ महाव्रत सज्झाय, पृ. १७अ-१८आ, संपूर्ण. __मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवैरे; अंति: कांतिभणै ते सुख लहे, ढाल-५. २४. पे. नाम. रुक्मणीसती सज्झाय, पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में रत्नविजय कृत कुगुरुपच्चीसी की मात्र अंतिम गाथा लिखी गई है. मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: जाइ राजविजे रंगे भणे, गाथा-१४. २५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु; अंति: नित आनंदघन सुख थाइ, गाथा-१०. २६. पे. नाम. अढार नातरानी सज्झाय, पृ. १९आ-२१अ, संपूर्ण. १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहेलां ने समरुं पास; अंति: काई हेतविजय गुण गाय, ढाल-३, गाथा-३६. २७. पे. नाम. पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण. पंडित. जीवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक सुखकरु वंदी; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) २८. पे. नाम. थूलीभद्रनी सज्झाय, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण. स्थुलिभद्र सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीथुलिभद्र मुनिगुण; अंति: तेहने करीए वंदना जो, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांत उपर, पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांत गर्भित, मु. रतनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी फुल सी देह पलक, अंति: इनसे खरी अविलासारे, गाथा-५, (वि. कर्ता नाम अस्पष्ट है.) ३०. पे. नाम. मोक्ष सज्झाय, पृ. २२आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: मोक्षमारग महारुं; अंति: मुत्तिनो गुण जाण रे, गाथा-५. ३१. पे. नाम. जंबूस्वामी सज्झाय, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण. आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत स्वामिने विनवू; अंति: भणे जंबू नामे जयकार, गाथा-१५. ३२. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २३आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, रा., पद्य, आदि: हलाहल कलजुग चल आयो; अंति: कहे धर्मध्यान कीजे, गाथा-१०. ३३. पे. नाम. अवंतिसुकुमाल सज्झाय, पृ. २३-२४अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: संयमथी सुख पामीये; अंति: हणवा करम कठोर कु, गाथा-९. ३४. पे. नाम. सुगुरुपच्चीसी, पृ. २४अ-२५आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरू पिछाणो इणि; अंति: शांतिहर्ष उछरंगजी, गाथा-२५. ३५. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. २५आ-२६आ, संपूर्ण. इलापुत्र सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नामिलापुत्र जाणीए; अंति: करे समयसुंदर गुण गाय, गाथा-२७. ३६. पे. नाम. केसीगौतम संवाद, पृ. २६आ-२७अ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ए दोय गणधर प्रणमिये; अंति: रुपविजय गुण गाय रे, गाथा-१६. ३७. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २७अ-२८अ, संपूर्ण. वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन नेमकुमर समुद्र; अंति: समय० चउदीस वो आरवीजत, (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३८. पे. नाम. पार्श्वजिन थाल, पृ. २८अ-२८आ, संपूर्ण. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: माता वामादे बोलावे; अंति: सौभाग्य० गीत रसाल, गाथा-९. ३९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २८आ-२९अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-बोरनगर मंडण, मु. केसरविजय, रा., पद्य, वि. १९४१, आदि: पारस थारि निरखण दो; अंति: जगत मे केसरविजयकारि, गाथा-१०. ४०.पे. नाम. मनस्थिरिकरण सज्झाय, पृ. २९अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: क्या करु मन थिर नही; अंति: आनंदघन पीवणहारा रे, गाथा-५. ६९०६५. (2) शोभन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले.स्थल. मागरोल, प्रले.मु. नेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. गोडीजी साहेबजी सत् छे., द्विपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १६x४२-४५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६. ६९०६६. (+) स्तवनचौवीशी, ज्ञानोपदेशी दुहा व शांतिप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९३९, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ८, कुल पे. ३, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. देवकृष्ण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (२५.५४१२, २०४५५-५८). १.पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण. श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., पद्य, वि. १९०६, आदि: श्रीआदिश्वर सामी हो; अंति: महास्तुति पूरण करी, स्तवन-२४. For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org २. पे. नाम. ज्ञानउपदेशी दूहा, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण. आलोचना विचार, मा.गु, पद्य, आदि: सिद्ध श्रीपरमातमा, अंतिः पावे मुकति समाध, गाथा-२७. ३. पे. नाम. शांतिप्रकाश, पृ. ६अ - ८आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, वि. १९३६, आदि प्रेम सहित बंद, अंतिः निरमल ग्यानसमाधि, गाथा- १३१. " ६९०६७. (+) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९११, भाद्रपद कृष्ण, २. गुरुवार, मध्यम, पृ. ६३, ले. स्थल. अलायनगर, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५x१२.५, ११४२५-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२) तेणं कालेणं० समणे, अंति: उबव॑से ति बेमि, व्याख्यान - ९, ग्रं. १२१६. ६९०६८. (+#) सिंदूरप्रकरण सह टिप्पण व स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८९८, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ६४-३० (१ से ३०) + १ (४३) ३५, कुल पे ६ प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१२.५, ८-१२X३०-३४). १. पे नाम. सिंदूरप्रकरण सह टिप्पण, पृ. ३१अ ४३अ, संपूर्ण. सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: मुक्तमार्ग समागतं, द्वार- २२, श्लोक-१०१. सिंदूरकर - टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. नीतिशतकादि श्लोक संग्रह, पृ. ४३अ -५७आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने हुंडी में वैराग्यशतक लिखा है, परन्तु सर्वाधिक श्लोक नीतिशतक के मिलते हैं, किंचित् वैराग्यशतक के हैं. है.) ३. पे. नाम. २४ जिनगर्भित मंत्र, पृ. ५७आ-५८आ, संपूर्ण. नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदि: बोद्धारो मत्सरग्रस्त, अंति: (-), श्लोक-१६५, (वि. इसके अतिरिक्त वैराग्य, दानादि औपदेशिक श्लोकों व अन्य बोल संग्रह का संकलन किया गया है. जिसका श्लोकानुक्रम प्रतिलेखक ने क्रमशः दिया जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: सर्वातिशयसंपूर्णान्; अंति: जैनेन्द्र० तथालिखत्, श्लोक-१७. ४. पे. नाम, पंचपरमेष्ठी नमस्कार श्लोक संग्रह, पृ. ५८आ, संपूर्ण. ५३ श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: नमोर्हत्सिद्धाचार्यो, अंतिः प्रथमं भवति मंगलम्, श्लोक-२. ५. पे. नाम. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. ५८ आ. ६४अ, संपूर्ण. अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी - १३वी, आदि: अर्हन्नामानि कर्णा अंतिः पठनाज्जपात, प्रकाश १० श्लोक-११७. ६. पे. नाम. शीतलाष्टक स्तोत्र, पृ. ६४अ - ६४आ, संपूर्ण. शीतलाष्टक, सं., पद्य, आदिः ॐ अस्य श्रीशीतला स्त; अंति: श्रद्धान्विताय च श्लोक-१४. , ६९०६९. शीयलनववाड व दशवैकालिक ढाल, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, दे. (२४.५४१३, १५५२५-२८). १. पे. नाम. शीयलनववाड, पृ. १अ-७अ, संपूर्ण, वि. १९५१, कार्तिक शुक्ल, ७, रविवार, ले. स्थल. खीचंद, प्रले. पं. दलिचंद (उपकेशगच्छ); पठ. श्राव. रतनलाल पारेख, प्र.ले.पु. सामान्य. शीलनववाड डाल, मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रणमुं पंचपरमेष्ठि, अंति: अगरचंद० सुधार री माई, ढाल - १०. २. पे. नाम. दशवैकालिक ढाल, पृ. ७अ ११ आ. संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु, पद्य, वि. १७१७, आदि; धरम मंगल महिमा निलो अंतिः जेसी जय जय रंग, अध्याय- १०. ६९०७० (+) जीवाभिगमसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ३८३+२ (१५५, १७४) = ३८५, ले. स्थल, सवाई जयनगर, प्रले. मन्नालाल ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित - टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. १५४००, जैदे., (२४x१२, ६५३१-३५). For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० णमो; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२, ग्रं. ४७५०. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७७२, आदि: प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंति: असंसारी जीव कह्या, ग्रं. १०६५०. ६९०७१. (+#) जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३४, कार्तिक शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. ३०५+१(४४)=३०६, प्रले. सेवादास वैष्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. ४८००, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ८४३३-३६). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं चउवीस; अंति: सेत्तं सव्वजीवाभिगमे, प्रतिपत्ति-१०, सूत्र-२७२, ग्रं. ४८००. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीवीरजिनं नत्वा, (२)ण. नमस्कार हवो माहर; अंति: जीव संसारी कह्या. ६९०७२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९८५, पौष शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. १५०+१(१५०)=१५१, ले.स्थल. जोधपुर मारवाड, प्रले. रामकृष्णदास ललितरामजी वैष्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. बढते पत्र को १५० अनुमानित के रूप में माहिती भरी गई है. प्र.ले.स्थल-चांदपोल के बाहर., संशोधित., दे., (२५४११.५,७-२३४६२-७३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पुव्वरिसी एव भासंति, अध्ययन-३६. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीमहावीरदेवने वारे, (२)सं० संयोग बे प्रकारे; अंति: एहवा वचन भाष्यकार नो. ६९०७३. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९६, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १२७, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३१३१, जैदे., (२५४११.५, ४४२१-२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: भवियाणं बोहणट्ठाए, अध्ययन-१०, (वि. चुलिका-२.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीमहावीर, (२)हिवे विघ्न टालवाने; अंति: प्रतिबोधवानै अर्थे. ६९०७४. (+) महानिशीथसूत्र सह टबार्थ- अध्ययन १ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, ८-२३४४५-५३). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरहताणं सुयं; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: न० नमस्कार होवो अरि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९०७५. (+#) उवाइउपांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५४४१). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेण० चंपा०; अंति: सुही सुहं पत्ता, सूत्र-४३. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: सुख पाम्या थका छइ. ६९०७६.(+) नवतत्त्व चउपई, संपूर्ण, वि. १९२२, पौष कृष्ण, १४, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २८, ले.स्थल. मुंबइबंदर, प्रले. वा. विनयसागर (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १५४४९-५२). नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १५७५, आदि: आदि नमी आणंदहपूरि; अंति: भावसागर० विबुध नर, गाथा-९४८. ६९०८३. (+#) आयुर्वेदसारसंग्रह व कर्मविपाकआयुर्वेदशास्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७, कुल पे. २, प्र.वि. उदाहरणार्थ विविध यंत्र-चक्र सहित., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१६, १९४३१-३५). १. पे. नाम. आयुर्वेदसार संग्रह, पृ. १आ-१६आ, संपूर्ण. पुहि.,सं., पद्य, आदि: श्रीसर्वज्ञ च नम; अंति: अहोरात्रि मांहि मरै. २.पे. नाम. कर्मविपाक आयुर्वेदशास्त्र, पृ. १७अ-२७आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ सं., पद्य, आदि: रोगकर्मोद्भवाः; अंति: चिकित्सामाचरेत्ततः. ६९०८९. (4) वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रावण कृष्ण, ९, रविवार, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. मलाड, प्रले. मु. रूपचंद (गुरु मु. शिवसागर); गुपि. मु. शिवसागर (गुरु पं. ललितसागर); पं. ललितसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. 'यंत्र व कोष्ठक सहित., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१४.५, ७४३८-४२). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदि: सरस्वतीं हृदि; अंति: परोपकाराय विहितोयम्, विलास-९. वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसरस्वती देवता; अंति: परोपकाराने० किधो छे. ६९०९८. (+#) जातकदीपीका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, ज्येष्ठ शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. पारकरनगर, प्रले. हेमराज शामजी ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१४, ६४३१-३६). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदि: प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंति: एषा जातकदीपिका, श्लोक-१०६. जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य के० पार्श्व; अंति: नामे पद्धति जाणवी. ६९०९९. (4) नारचंद्र ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१५, १६-१९४३४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: प्रतिष्ठार्कादिवारगा, श्लोक-३०२. ६९१०१. (4) श्रीपालराजा चौपाई सहटबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१५, ९-२०४३४-३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: (-), (पू.वि. खंड-४ ढाल-११ गाथा-९ तक है.) श्रीपाल रास-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच बीच की कुछ गाथाओं के ही टबार्थ हैं तथा अव्यवस्थित हैं.) श्रीपाल रास-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच बीच की कुछ गाथाओं के ही बालावबोध हैं तथा अव्यवस्थित हैं.) ६९१०२. (+#) चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-५(२,४ से ५,१७ से १८)=१५, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१४.५, १४४३०-३३). चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: (-), (पू.वि. आरंभ से प्रथम व्याख्यान तक, प्रतिक्रमण का महत्त्व सेनट की कथा अपूर्ण तक, नट कथा में तीर्थंकर की आज्ञानुसार प्रतिक्रमण करने का महत्त्व प्रसंग से जीतशत्रु राजा एवं सीता रानी कथा अपूर्ण तक है.) ६९१०३. (+#) नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१५, १६४३२). नवकार रास, मु. राजरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: श्रीरिषभादि चउवीस; अति: सुख पामइ सकल जगीस, ढाल-४५, गाथा-७०२. ६९१०४. चैत्यवंदन, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. १९, जैदे., (२५.५४१४, १४४३६). १.पे. नाम. बीजतिथि चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: राग द्वेष बे अरिहणी; अंति: राजेंद्र महाज्योते, गाथा-७. २.पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: बीज दिने शुभ उदये; अंति: राजेंद्र तुझ जाचे जी, गाथा-४. ३.पे. नाम. बीजतिथि स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद पादांबुजे; अंति: राजेद्र० ते कुंण चीज, गाथा-१६. ४. पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: बीज दिने भवी बीज-; अंति: राजेंद्र० अन्य वीभाव, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५.पे. नाम. पंचमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमी दिन परपंचने; अंति: राजेंद्र जयजयकार, गाथा-९. ६. पे. नाम. पंचजिन स्तुति, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. ५जिन स्तुति, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अपराजितथी आवि उपना; अंति: राजेंद्र०सुत खंती जी, गाथा-४. ७. पे. नाम. पंचमीतिथि स्तवन, पृ. ४अ-६अ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९५८, आदि: समरि श्रुतदेवी सूरि; अंति: राजेंद्र० अमृत सूवे, ढाल-२, गाथा-४७. ८. पे. नाम. पंचमीतिथि सज्झाय, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे म्हारे प्रणमी; अंति: राजेंद्र ज्ञानवानने, गाथा-१४. ९.पे. नाम. अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: आराधो दिन अष्टमी; अंति: राजेंद्र० करो भक्ति, गाथा-९. १०. पे. नाम. अष्टजिन पद, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण.. ८ जिन पद, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जुगलाधर्म निवार्यो; अंति: राजेंद्र० वेरी जी, गाथा-४. ११. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः श्रुत देव्या सुगुरु; अंति: राजेंद्र०अविनास हो, गाथा-११. १२. पे. नाम. अष्टमीतिथि सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलासुत प्रभु वीर; अंति: तिथि अष्टमी वखाणी हो, गाथा-११. १३. पे. नाम. एकादशीतिथि चैत्यवंदन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पशु अनुकंपाइ करी; अंति: राजेंद्र० सीव बहुयार, गाथा-९. १४. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: हरी प्रश्ने जिननेम; अंति: राजेंद्र० ख्याति जी, गाथा-४. १५. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तवन, पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण. मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १९५८, आदि: प्रणमुपद युग जेहना; अंति: तत्त्वराजेंद्र उलसी, गाथा-१५. १६. पे. नाम. एकादशी स्वाध्याय, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. एकादशीतिथि सज्झाय, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: तिथि एकादशी मगसर सुद; अंति: राजेंद्र०उदधि तरस्ये, गाथा-८. १७. पे. नाम. सप्तव्यसन परिहार, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-सप्तव्यसन परिहार, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवाणी कादंबिनी; अंति: राजेद्र० भव पारो रे, गाथा-८. १८. पे. नाम. श्रावक के १४ नियम सज्झाय, पृ. ११आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-श्रावक के १४ नियम, मु. राजेंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: भक्ति रूप जे भगवति; अंति: राजेंद्र० सादरे, गाथा-१३, संपूर्ण. १९. पे. नाम. द्वादशव्रत अतिचारनिरूपण गर्भित सज्झाय-श्रावक, पृ. १२आ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रावक द्वादशव्रत अतिचारनिरूपणगर्भित सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: भविमन मानस हंसना; अंति: (-), (पू.वि. सातवें गुणव्रत तक है.) ६९१०५. (4) पांडव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१४, १५४३३). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१४ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ६९१०६. (E) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१९, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ८, प्रले. मु. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३, ११४२५-२८). For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६९१०७. (+) जंबूगुण रत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९७४, वैशाख शुक्ल, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १५, ले.स्थल. पोलोदी पोकण, प्रले.मु. घीसालाल (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५-२५.५४१३.५, ३०४५७-६०). जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., पद्य, वि. १९२०, आदि: शासनपत वृधमांननो भजन; अंति: सेवो थायसे कल्याण ए, ढाल-३५, (वि. अंत में यंत्रादि दिये गए है.) ६९१०८. (+#) जंबूकुमार रास, अपूर्ण, वि. १८५५, चैत्र शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३४-१(४)=३३, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. ग. जीतकुशल (गुरु ग. दीपकुशल); गुपि.ग. दीपकुशल (गुरु ग. न्यानकुशल); ग. न्यानकुशल (गुरु ग. रत्नकुशल); ग. रत्नकुशल (गुरु ग. वीनीतकुशल); ग. वीनीतकुशल; पठ. मलुकनाथ ठाकोर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. आदीश्वरजी प्रसादात्, गोडीचाजी प्रसादात्. माणिभद्राय नमः., संशोधित. कुल ग्रं. १५७५, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (४२२) भणजो गुणज्यो राखीजो, जैदे., (२५४१४, १४४३०-३५). जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: प्रणमी पासजिणंदना; अंति: नितु कोण कल्याण छे, ढाल-३६, गाथा-६०९, ग्रं. १०३५, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-५ गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) ६९१०९. (+) पंचमीतपस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४४१३.५, १२४२५-२८). ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९३, आदि: सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम भाग, कलश अपूर्ण तक है.) । ६९११०. ऋषिमंडलपूजा, वीसस्थानक तप व वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. १८८५, फाल्गुन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३, ले.स्थल. लखनउ, प्रले.पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१४, १४-१७४३४-३९). १. पे. नाम. ऋषिमंडल पूजा, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: श्रीऋषभाय नमः; अंति: ये नमः ८ ह्रीं क्रौं. २. पे. नाम. वीसस्थानकतप विधि, पृ. ३अ-१०अ, संपूर्ण. २० स्थानकतप विधि, सं., गद्य, आदि: अशोकवृक्षप्रातिहार्य; अंति: नोकारवाली २० गुणनी. ३. पे. नाम. वीसस्थानक स्तवन, पृ. १०अ-१३आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: जिनमुखपंकजवासिनी; अंति: ज्ञानविमल० समाणी जी, ढाल-६, गाथा-८०. ६९१११. चंदनबाला चौपाई, चेलणारानी चौपाई व धन्नाकाकंदी चौढालिया दिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९७४, कार्तिक शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. १३, कुल पे. १०, प्रले. मु. घीसालाल (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में बीजक दिया हुआ है., दे., (२५४१३.५, २३४५०-५५). १.पे. नाम. चंदनबाला चौपाई, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चंदनबालासती चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: फणिमणि मंडित नील तन; अंति: रतन० भवपारो रेलो, ढाल-८. २. पे. नाम. चेलाणाराणी चौपाई, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसमा महावीरजी; अंति: दयाचंद० मरणरी खामी, ढाल-१३. ३. पे. नाम. धनाजीमहाराजरी ढाल, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. धन्नाकाकंदी चौढालिया, म. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: नवे अंग तीजे वरग मे; अंति: रायचंदजी रे परसादथी, ढाल-७. ४. पे. नाम. कीरतधजराजारी ढाल, पृ. ५आ-६आ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु. हीरालाल, पुहि., पद्य, वि. १९३१, आदि: श्रीश्रीआदजिनेसरु; अंति: हीरालाल गया हुवा सीध, गाथा-६९. ५.पे. नाम. होली को चौढालियो, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पूरष राजा; अंति: विनयचंदजी कहे करजोडी, ढाल-४. ६. पे. नाम. वज्रसेठ चौढालियो, पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने विजयसेठ विजयासेठानीको चौढालीयो नाम लिखा है. मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६९, आदि: सील बड़ो संसार; अंति: चंदरभाणजी० अभंगो जी, ढाल-४. ७. पे. नाम. जिनपालजी रो चौढालियो, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., पद्य, आदि: अनंत चौवीसी आगे हुई; अंति: वीर वचन अवधारो, ढाल-४, गाथा-६२. ८. पे. नाम. दानशीलतपभावना रोचौढालियो, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: सिद्धि सुखसादो रे, ढाल-४, गाथा-११०, ग्रं. १३५. ९. पे. नाम. दशार्णभद्रराजानो चौढालियो, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, वि. १७८६, आदि: सारद समरु मनरली समरु; अंति: कुशल सीस गुण गावीयै, ढाल-४. १०. पे. नाम. खंधकजी रोचौढालियो, पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण. खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: नमुंवीर सासनधणीजी; अंति: ही मिच्छामिदुक्कडम, ढाल-४. ६९११२. (4) स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १८८९, ?, ज्येष्ठ कृष्ण, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. मास के स्थान पर शुक्र लिखा हुआ है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, १६४३३-३६). स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पूर्वे बाजोट उपरे; अंति: संपदा निज पामे तेह. ६९११३. (+) नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९४४, वैशाख कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २०, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१३.५, ११४२५-२८). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, रा., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंति: सिद्धा अनेक सिद्धा. ६९११४. देववंदन विधि-१८ स्तुति, संपूर्ण, वि. १९४४, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. हेमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३,११४२७-३२). देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि तसोतरि; अंति: के पारे सो लिखे है. ६९११५. (#) समयसार नाटक-अधिकार १ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१४, २३४१३-१६). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: करम भरम जग तिमिर हरन; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९११६. (2) देवकीगजसुकुमाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९४३, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१४, ११४२६-२९). गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: अरीठ नौमी नेम हुवै; अंति: खेवोपार हे माय जी, ढाल-१२. ६९११७. प्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-२(२ से ३)=७, प्रले. पं. पद्मविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१३.५, १२४२८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पंचिंदिय संवरणो तह; अंति: करि मिच्छामि दुक्कड, (पू.वि. पाठांश-"कितियवंदीयमहिया जे लोगसउतमासि "से "वीयावयचगराणं समदीवीसमायगराण" के बीच के पाठ नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९११८. अक्षयतृतीया व होलीकापर्व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, पठ. जडाव, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१३.५, १३४३०-३३). १.पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९४४, चैत्र शुक्ल, १, शुक्रवार. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खु; अंति: आतम कारज सास्या. २. पे. नाम. होलिका व्याख्यान, पृ. ४आ-६आ, संपूर्ण, वि. १९४४, चैत्र शुक्ल, ४. होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: र्व मनोरथ सिद्ध थायै. ६९११९. (+#) २४ ठाणा विचार, संपूर्ण, वि. १९७४, आश्विन कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ५, प्रले. मु.घीसालाल (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१३.५, ३५४६०-६३). २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ इंद्रि काय जोग; अंति: ४३ पाव २४ जोग बरजौवा. ६९१२०. (+) दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. सहिजराजसर, प्रले. मु. देवचंदजी; पठ.सा. प्रतापा (गुरु सा. अखुजी); गुपि. सा. अखुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१३.५, १२४२१-२५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: समृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-१०१, ग्रं. १३५. ६९१२१. (4) विंशतिस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९१६, चैत्र कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. १६, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१४, १२४३५). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: सुखसंपतिदायक सदा; अंति: जनपंक विखंडनाय, पूजा-२०. ६९१२२. (4) पद्मावती आराधना, काया व आयुष्य सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, ज्येष्ठ कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१३, ११४२४). १.पे. नाम. जीव रास, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहै पापथी छूटै ततकाल, ढाल-३, गाथा-३५. २.पे. नाम. काया सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, महम्मद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा काइ; अंति: ये लेखो साहब रेहाथ, गाथा-९. ३.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: आऊखौ तुटै नै सांधो; अंति: सूत्रथी विसतार रे, गाथा-९. ४. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण.. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम इलापुत्र जाणीइ; अंति: करे समयसुंदर गुण गाय, गाथा-९, (वि. बीच-बीच की चयनित नौ गाथाएँ ही लिखी है.) ६९१२३. (+#) सत्तरभेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(५)=६, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. गीरधारीदास आतमारामजी वैष्णव, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१३.५, १२४३०-३५). १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंतमुखकजवासिनी; अंति: सकलमुनि० मरभेहणउरे, ढाल-१७, (पू.वि. ११वीं पूजा अपूर्ण से १३वीं पूजा अपूर्ण तक नहीं है.)। ६९१२४. (4) पंचइंद्रिय चौपाई व गुणमंजरी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९९-९०(१ से ९०)=९, कुल पे. २, प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४४१४, १८-२७४१२-१५). १.पे. नाम. ५ इंद्रिय चौपाई, पृ. ९१अ-९६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: (-); अंति: बसे सबको मंगल होय, ढाल-६, गाथा-१५५, (पू.वि. गाथा-६७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गुणमंजरी चौपाई, पृ. ९६आ-९९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __मा.गु., पद्य, आदि: परम पंच परमेष्ठिको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org ६९१२५. बारभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ६, ले. स्थल. प्रतापगढ, मु. मोतीचंदजी अंबावजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. २०५ जैदे. (२४४१५, १५X३५). प्रत्ये कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पासजिणेसर पाय नमी सह, अंति: भणी जेसलमेर मझार, ढाल - १३, गाथा - १२७, ग्रं. २००. ६९१२६. आदिजिन, पार्श्वजिन व साधारणजिन पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ४५, दे., (२३x१४, ११x२०-२३). १. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: रूप वण्यो आछो नीको; अंतिः भेट्यो सकल जनम नेको, गाथा ५. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज नाम तेरा राखु; अंति: जिनहर्ष० जिया ही राखै, गाथा-५. ३. पे नाम. साधारणजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, वि. १८३९, आदि लागो मारो वीर जिणंदा, अंति: सफल कीयो अवतार, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जालम जोगीडासु लागी, अंति: तन मन करु कुरुवाण रे, गाथा-३. ५. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. राजनंदन, हिं, पद्य, आदि: छबि चंद्राप्रभु की अंतिः रजनंद तुमारो गुणसमरण, गाथा-३. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं, पद्य, आदि मेरो मन वश कर लीनो, अंति लालचंद० पूरो बंछित आस, गाथा ५. ७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. पद्मविजय, पुहिं., पद्य, आदि: मेरो दिल वस कीयो, अंतिः पदम की चित हर जाय, गाथा ४. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: निरमल होय भजले प्रभु, अंतिः क्षमाकल्याण अपार, गाधा-५. ९. पे नाम औपदेशिक पद, पृ. ३अ, संपूर्ण, मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ए जिनके पाय लाग रे, अंति: आनंदघन पाए लागरे, गाथा - ३. १०. पे. नाम ऋषभ सतुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण आदिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु, पद्य, आदि: जयो स्वामी ऋषभ जिणंद, अंतिः शीस नमै लालचंदजी, गाथा-४, ११. पे. नाम. पार्श्वजिन पद- गोडीजी, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कनकसुंदर, पुहिं, पद्य, आदि साचो साहिब निरधारी, अंतिः कमलसुंदर तुझ बंदा, गाथा-५. १२. पे नाम, सुमतिजिन पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. आनंदरूप, रा., पद्य, आदि: सुमति महाराज म्हांनु, अंति: आणंदरूप० पार उतार, गाथा-३. १३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ४अ ४आ, संपूर्ण. मु. विमल, मा.गु, पद्य, आदि: चालो सखी वंदन जईये, अंति हेते पूजो रिषभ जिणंद गाथा ४. १४. पे नाम. आदिजिन पद, पृ. ४आ-५अ संपूर्ण , For Private and Personal Use Only पं. रत्नसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: अखीया सकल भई मे अंतिः रतनसुंदर० जय जयकार गाथा ६. १५. पे. नाम महावीरजिन पद पावापुरी तीर्थ, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. महावीरजिन पद-पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: पावापुर पुखरा चालौ, अंति: नवल० प्रभुसुं नेहरा, गाथा - ५. १६. पे नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मेरे करो इसी अंति: गुणविलास करो आप सरीस, गाथा-३. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १७. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: दरवाजा तेरेखोल रे; अंति: बनारसी० है छवि जोर, पद-४. १८. पे. नाम. सम्मेतशिखरगिरि पद, पृ. ६अ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. नवलदास, पुहि., पद्य, आदि: शिखरगिरि पूजन जाना; अंति: नवल चित लाना रे, गाथा-३. १९. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वांके गढ फोज चढी है; अंति: तो पकड मगाएं चोर, गाथा-४. २०. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण. मु. सेवक, ब., पद्य, आदि: तोमी देखो महाराज; अंति: सेवक दरसन पाइलो, पद-७. २१. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. ७अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सांवलो मानु भावदा; अंति: अरज है भवजल पार उतार, गाथा-४. २२. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ७आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथसुत सांभलौ; अंति: खेम० करी भवसागर तारौ, गाथा-५. २३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. मु. साधुकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: देखो माइ आज रिषभ घर; अंति: साधुकीरति गुण गावे, गाथा-३. २४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: रुप भलो जिनजी कौ; अंति: चंद० जगजीवन सबही को, गाथा-४. २५. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. मु. भुवनकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: मो मन वीर सुहावे; अंति: भुवनकीरत गुण गावे, गाथा-३. २६. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. ८आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: मेरे मन मानी साहिब; अंति: लोह कनक करि लेवा, गाथा-३. २७. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण, पे.वि. इसकी शेष गाथाएँ पत्रांक १०अपर लिखी गई हैं. आदिजिन मरुदेवीमाता पद, मु. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: ललाजी तुम तो भए हो; अंति: रूप प्रभु लय लागी, गाथा-३. २८. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण, पे.वि. इसकी शेष गाथाएँ पत्रांक ९आ पर लिखी गई हैं. ग. महिमराज, मा.गु., पद्य, आदि: जाग जगमुगटमणि नाभि; अंति: महिमराज दुख फंदा, गाथा-३. २९. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. मु. हर्षचंद, पुहिं., पद्य, आदि: उठत प्रभात नाम जिनजी; अंति: हरखचंद० संपत वढाइए, गाथा-४. ३०. पे. नाम. आदिजिन पद-विक्रमपुर मंडण, पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण, पे.वि. इसकी शेष गाथाएँ पत्रांक ९आ पर लिखी गई आदिजिन पद-विक्रमपुरमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभजिनंद सुखकंद आनंद; अंति: रसम श्रीजिनलाभसूरिंद, गाथा-३. ३१. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण, पे.वि. इसकी शेष गाथाएँ पत्रांक ९अपर लिखी गई हैं. मु. गुणविशाल, पुहिं., पद्य, आदि: अब मोहि तारोगे; अंति: गुणविशाल० प्रतिपाल, गाथा-३. ३२. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. जीतरंग, पुहिं., पद्य, आदि: जीया चतुर सुजाणी; अंति: जीतरंग गुण गाय रे, गाथा-४. ३३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. ११अ, संपूर्ण. मु. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नेम न जाणे मोरी पीर; अंति: फाड्या चीवर झरररर, गाथा-५. ३४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर साहिबा; अंति: जिनहरख० सुख लालरे, गाथा-५. ३५. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. ११आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मु. खुशालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: देखोजी आदीसर स्वामी; अंति: चंदखुस्यालजु गाया है, गाथा-४. ३६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: आज तो हमारे भाग वीर; अंति: चित आनंद वधाए हैं, गाथा-४. ३७. पे. नाम. साधारणजिन पद, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: तू ही निरंजन इष्ट; अंति: दास निरंजन तेरा रे, गाथा-३. ३८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाती, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: उठोने मोरा आतमराम; अंति: लाभउदय०सिद्ध वधाई रे, गाथा-५. ३९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ हीयडो हेजालुवो; अंति: कहेजी मत विसार, गाथा-७. ४०. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: श्रीसीधाचलगिर भेटीया; अंति: प्रभूप्यारा रे, गाथा-५. ४१. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १४अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: प्यारी पास की देखी; अंति: हे भवदुख ताप मिटाय, गाथा-३. ४२. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. श्राव. सबलसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: सुनिये सीमंधर स्वामि; अंति: करीने कीजे आप समाना, गाथा-४. ४३. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १४आ, संपूर्ण. मु. आनंदवर्द्धन, पुहि., पद्य, आदि: आदि जिणंद मया करो; अंति: आनंदवर्द्धन० आसा रे, गाथा-४. ४४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, वि. १७२२, आदि: अमल कमल जिम धवल; अंति: जिनचंद्र० सफल फली ए, गाथा-९. ४५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर जिनवर; अंति: देवचंद्र पद पावे रे, गाथा-९. ६९१२७. (#) रात्रिभोजन चौपाई, अपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र शुक्ल, ७, रविवार, मध्यम, पृ. १२-५(१ से ५)-७, ले.स्थल. वीलावस, प्रले. मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१४, १६x२८-३५). रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७२३, आदि: (-); अंति: संघ सकल चित्तनंदैजी, ढाल-२८, (पू.वि. ढाल-५ गाथा-८ अपूर्ण से है.) ६९१२८. (2) अक्षयतृतीया व मौनएकादशीव्रत व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१३.५, १६४२८-३२). १.पे. नाम. अक्षयतृतीया व्याख्यान, पृ. १आ-५अ, संपूर्ण, वि. १९१३, वैशाख शुक्ल, १४, गुरुवार, प्रले. मु. देवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: उसभस्सय पारणए इक्खु, अंति: आतम कारज सार्या. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, पृ. ५अ-१०आ, संपूर्ण, वि. १९१४, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, रविवार, ले.स्थल. फलोधीनगर, प्रले. श्राव. देवचंद गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. मौनएकादशीपर्व व्याख्यान-सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमिऊण; अंति: सकल सुख विभागी थाइ. ६९१२९. (#) ढाल सागर, अपूर्ण, वि. १७३७, पौष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १७४-३३(२८ से ५९,६१)=१४१, ले.स्थल. ब्राहनपुर, प्र.वि. कुल ग्रं.५५५७, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१४.५, ३०x१६-१९). For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: श्रीजिन आदिजिनेश्वरू; अंति: गुणसूरि० रंग वधामणो, खंड-९, ग्रं. ५७५०, (पू.वि. ढाल-८ गाथा-२१ अपूर्ण से ढाल-३८ गाथा-४० अपूर्ण तक एवं ढाल-३८ गाथा-६० अपूर्ण से गाथा-७९ तक नहीं है., वि. ढाल १५१) ६९१३०. (#) ज्ञानचोपड, संपूर्ण, वि. १८५४, कार्तिक शुक्ल, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, ले.स्थल. उंझा, प्रले. मु. खेमरत्न; मु. हेतरत्न; गुभा. मु. माणक्यरत्न (गुरु मु. ज्ञानरत्न, बिवंदणीकगच्छे); गुपि. मु. ज्ञानरत्न (परंपरा उपा. मालदेवजी, बिवंदणीकगच्छे); अन्य. उपा. मालदेवजी (बिवंदणीकगच्छे); पठ. श्राव.खेंगारजी; गुभा. श्राव. रूपाजी; श्राव. प्रेमाजी; श्राव.खेताजी (पिता श्राव. दीपचंदजी); गुपि. श्राव. दीपचंदजी (पिता श्राव. कलाजी); श्राव. कलाजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७X१५, ५-८x१८-२३). ज्ञान चोपड, मा.गु., को., आदि: (१)एह माहें जे ऊँचू आवि, (२)इम संसारीक कामना; अंति: विधारण ज्ञान की बाजि. ६९१३१. (+) सुक्तमुक्तावली, संपूर्ण, वि. १९५५, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. २१, ले.स्थल. घ्राणपुर, प्रले. मु. रतनचंद (गुरु पं. मनोहरसागर); गुपि.पं. मनोहरसागर (गुरु पं. पुण्यसागर); पं. पुण्यसागर (गुरु पं. मनमोहनसागर); पं. मनमोहनसागर (गुरु मु. रविंद्रसागर); मु. रविंद्रसागर (गुरु पं. जीतसागर); पं. जीतसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., प्र.ले.श्लो. (१४) जलाद्रक्षेत् तैलाद्रक्षेत्, दे., (२७४१३, १०४३०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवल्लीवृंद; अंति: मनोविनोदाय बालानां, वर्ग-४, श्लोक-१७५. ६९१३२. (+#) पंचमेरू पूजा, संपूर्ण, वि. १९२४, भाद्रपद शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. ६१, प्रले. फतेलाल सोनी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१५, ११४२३-२६). पंचमेरु पूजा विधान, जै.क. टेकचंद, पुहि., पद्य, आदि: वानी पूजौ देवां केरी; अंति: शास्त्र० समझि लेना, पूजा-५. ६९१३३. (+) सुखविपाक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९८३, श्रावण शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. बीनातट, प्रले. मु. विमलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५४१३, १२४३३-३६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९१३४. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४५, माघ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४३, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. कुल ग्रं. २१७६, जैदे., (२८४१४, १७४४४-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: सम्मएत्ति बेमि, अध्ययन-३६, ग्रं. २०००. ६९१३५. (+#) पद्मावती आराधना, भक्तामर स्तुति व गौतमगणधर रासादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१५, १४४४२-४६). १. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *,प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: तित्थरा गणहारि सुख; अंति: मंगलीक माला वस्तरइ. २. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: कहे पापथी छूटे ततकाल, ढाल-३, गाथा-४२. ३. पे. नाम. भक्तामर स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ आदिनाथमहंतरिहंत; अंति: सुदयामृतधर्मपालान्, श्लोक-४. ४. पे. नाम. गौतमगणधर रास, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामीरास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल; अंति: नित नित मंगल उदय करो, गाथा-४८. ६९१३६. () बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१४.५, १८४३०-३३). For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जीव बिहु प्रकारे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-७ तक लिखा है.) ६९१४०.(+) श्रीपालराजा चौपाई सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १२३, ले.स्थल. मोटी माराड, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु गच्छाधिपति अमृतकुशल); गुपि.गच्छाधिपति अमृतकुशल (गुरु ग. रामकुशल); ग. रामकुशल (गुरु ग. रत्नकुशल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१४.५, ४४३३). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२७, (संपूर्ण, वि. ढाल ४१) श्रीपाल रास-टबार्थ *,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पामस्य निश्चयजी, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., खंड-३ ढाल-६ गाथा-२७ अपूर्ण सेटबार्थ लिखा गया है.) ६९१४१. (+) गजसिंहनृपरास, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रावण कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५२, ले.स्थल. धोलका-गोधीनगर, प्रले. ग. जतनकुशल (गुरु ग. अमृतकुशल); गुपि.ग. अमृतकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१४.५, १४४३७-४०). गजसिंहनृप रास-सीलमहात्म्ये, मु. देवरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८१५, आदि: प्रथम ईष्ट पदेष्ट जे; अंति: देव० सुख लच्छी रसाल, खंड-४, गाथा-१५१८, (वि. ढाल ५१) ६९१४२. वीसविहरमान स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्रले. कल्याणदास भगत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२९४१५.५, १२४३९). विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधिर जिनवर; अंति: देव० महोदय वृंदो रे, स्तवन-२०. ६९१४३. उदयस्वामित्व यंत्र, संपूर्ण, वि. १८९०, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. कपुरविजय; पठ. सा. तेजश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२८.५४१५, २-१३४८-३८). उदयस्वामित्व यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: ५ ज्ञानवरणी ९; अंति: रि जाति एवं १२ लाभै. ६९१४५. (4) पर्यंताराधना सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१५, १३४२७). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, ग्रं. २४५. पर्यंताराधना-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीर नमस्कार; अंति: आवी मुक्तिइं जास्यइ. ६९१४६. (4) आदीतवार कथा, शीलप्रकाश रास व चंदनमलयागिरिरास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४२-२१(१ से २१)=२१, कुल पे. ३, ले.स्थल. लाबाघोह, प्रले. मु. जसराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१५, १४४३०). १. पे. नाम. आदितवार कथा, पृ. २२अ-२७आ, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ४, रविवार. आदित्यवार कथा, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहनाह प्रणमौ; अति: नर सुरंग देवता होय, गाथा-१५३. २. पे. नाम. सील रास, पृ. २७आ-३५अ, संपूर्ण, वि. १७७९, आश्विन शुक्ल, ५, गुरुवार. शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिली प्रणाम करूं; अंति: श्रीविजयदेवसूरि, गाथा-६९, ग्रं. २५१. ३. पे. नाम. चंदनमलयागिरि रास, पृ. ३५आ-४१आ, संपूर्ण. मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीविक्रम; अंति: भद्रसेन सुवंछित भोग, अध्याय-५, गाथा-१७३. ६९१४७. आर्द्रकुमार रास, संपूर्ण, वि. १९१३, कार्तिक शुक्ल, १४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. वर्द्धमानपुर, पठ. अणदा गणेश वोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्यामलाजी प्रसादात्, कुल ग्रं. ४५१, दे., (२९x१५, १६४५०). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना; अंति: कही० दोलती गेहे रे, ढाल-१९, गाथा-२९२, ग्रं. ४५१. जास्प३. For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९१४९. (+) बारव्रत पूजा, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १०, ले.स्थल. दाठापुर, प्रले. वालजी राजगोर; पठ. मु. वखतकुशल (गुरु पं. मोहनकुशल गणि); गुपि.पं. मोहनकुशल गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७X१५, १२४२९-३२). १२ व्रतपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: उच्चैर्गुणैर्यस्य; अंति: १२४ अतिचार टालवा, ढाल-१३, गाथा-१२४. ६९१५०. कुमत्युत्थापन चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, जैदे., (२५.५४१४, १५४२२-२५). कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि., गद्य, आदि: मनोमती झूठी प्ररुपणा; अंति: लाभवको अर्थ कह्यौ है. ६९१५३. (#) सिंदुरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १९८५, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले.स्थल. सायलपुरपत्तन, प्रले. मु. सिरेमल्ल (गुरु मु. मोतीविजय); गुपि. मु. मोतीविजय; पठ. मु. हेमचंद्र (गुरु पंन्या. मोतीविजय); गुपि.पंन्या. मोतीविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पार्श्वजिनप्राशादेन लिखिताम्., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९.५४१५.५, १५४३८-४६). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सुक्तिमुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-९९. ६९१५४. नंदीश्वरद्वीप पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १९, दे., (२७४१६, १०४३५-४०). नंदीश्वरदीप पूजा, पुहि.,सं., प+ग., आदि: यहकर दीपसु मध्य भाग; अंति: संपजौ जैजैजै जिनराय. ६९१५८. (#) चर्चाशतक सह अनुवाद, संपूर्ण, वि. १९४२, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १००, प्रले. कृष्णचंद्र ब्राह्मण गुर्जरगोड; पठ. अमालाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१६, १२४२२). चरचाशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., पद्य, आदि: (१)जै सर्वज्ञ अलोक लोक, (२)परमेष्ठी पांचौ; अंति: जीवभाव हम सरदहा, दोहा-१०४. चर्चाशतक-अनुवाद, श्राव. हरजीमल, पुहिं., गद्य, आदि: जै कहिये जैवते; अंति: हुई निश्चै आया. ६९१५९. (+) श्रीपालकथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, फाल्गुन कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७५, ले.स्थल. राजाढंढ, प्रले.पं. चयनसौभाग्य (गुरु पं. प्रेमसौभाग्य); गुपि.पं. प्रेमसौभाग्य (गुरु पं. देवेंद्रसौभाग्य); पं. देवेंद्रसौभाग्य; पठ. मु. केसरचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४.५४१७, १०४३४-३७). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: नायजता कहा एसा, गाथा-१३४०, ग्रं. १६७५, (वि. प्रतिलेखनपुष्पिका श्लोक को गाथा-१३४१ के रूप में लिखा गया है.) सिरिसिरिवाल कहा-टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., गद्य, वि. १८०६, आदि: (१)स जयति सिद्धसमूहो, (२)अरिहंतादिक नवपदनई; अंति: जाणतां थकां कथा एह.. ६९१६०. (+) वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९६८, भाद्रपद कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४३, प्रले. मु. मिश्रीलाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१४, १५४३०). २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., आदि: श्रीमदर्हतमानम्य; अंति: अनंत सुख अनुभवै. ६९१६१. दस का पांत्रिसबोल, संपूर्ण, वि. १९७४, भाद्रपद अधिकमास कृष्ण, ३, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, दे., (२३४१४.५, १०४३२). १० का ३५ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहले बोले १० यतिधर्म; अंति: के अंदर कह्यो है. ६९१६७. संमेतशिखरमहात्म्य प्रस्तावना व संक्षेप, संपूर्ण, वि. १९६३, कार्तिक शुक्ल, १३, सोमवार, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, प्रले. श्राव. चंदरलाल चौधरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यह पुस्तक क्षुल्लक ब्रह्मचारी धर्मदासजी इन्होंने पंडित श्रीधर शिवलालजी के ज्ञानसागर छापखाना में छपी पुस्तक पर से नकल की गयी है., दे., (२३.५४१६.५, १२४२६-३२). १.पे. नाम. सम्मेतशिखर प्रस्तावना, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखर माहात्म्य-प्रस्तावना, संबद्ध, पुहिं., गद्य, आदि: हम निश्चय करिकै लिखत; अंति: बहत समझ लेता है. २.पे. नाम. सम्मेतशिखर वचनिका, पृ. ३अ-११अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्मेतशिखर माहात्म्य-प्रश्नोत्तरात्मक वार्तिकरूप वचनिका, संक्षेप, पुहिं., प+ग., आदि: (१)स्वयं सिद्ध परमातमा, (२)येही मध्यलोक मे लक्ष; अंति: लघुकरि निज काज. ६९१७०. (#) दशलक्षण उद्यापन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१७.५, १२४२८-३२). १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, पुहि.,सं., पद्य, आदि: विमलसुगुन समृद्धि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., क्षमापूजा अपूर्ण तक लिखा है.) ६९१७१. (#) तत्वार्थसूत्र सह भाषाटीका, संपूर्ण, वि. १९४२, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३८, ले.स्थल. मलारणा, प्रले. उत्तमचंद व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टबार्थ भाषाटीका शैली में लिखित है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१६.५, १३४३०-३३). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ , पुहिं., गद्य, आदि: (१)त्रैकाल्यं द्रव्यषट्, (२)त्रैकाल्य कहतां तीन; अंति: मात्र वर्णन कीया ६९१८३. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला- देवकांड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, अन्य. पं. नानवर्द्धन (गुरु पं. हेतवर्द्धन); गुपि.पं. हेतवर्द्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, ११४३२-३६). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९१८४. (+) आत्मप्रबोध, बीजक व जंबूद्वीपगणित विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७३+१(३०)=१७४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४१२, १५४४२-४५). १.पे. नाम. आत्मप्रबोध, पृ. १आ-१६९आ, संपूर्ण, वि. १९५३, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, प्रले. रीद्धीकरण जोसी, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग., वि. १८३३, आदि: अनंतविज्ञानविशुद्ध; अंति: सद्बोधभक्तिभृता, प्रकाश-४, श्लोक-१८१. २.पे. नाम. आत्मप्रबोध बीजक, पृ. १७०अ-१७३अ, संपूर्ण. आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, आदि: तत्राद्य प्रकाशे यथा; अंति: ग्रंथो विनिर्मितः. ३. पे. नाम. जंबुद्वीपपरिधि विचार, पृ. १७३अ, संपूर्ण. जंबूद्वीपगणित विचार, मा.गु., गद्य, आदि: भरतने देश साधता १साठ; अंति: अंगुल जघन्य २५ अंगुल. ६९१८५. (+#) पेतालीसआगमबोल एकावनबोलसार, संपूर्ण, वि. १८९२, आश्विन शुक्ल, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. ३६, ले.स्थल. लखडवास, प्रले. मु. खुशालविजय; अन्य. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. शांतिनाथ जिनालय., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१३, १३४३१-३४). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थंकर; अंति: आऊखावालाने औपशमि, प्रश्न-१५१. ६९१८६. (+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पूर्ण, वि. १९०१, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ६, रविवार, मध्यम, पृ. १७-१(१)=१६, ले.स्थल. वालुचर, लिख. मु. अबीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२४.५४१३, १३४२६). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सर्वेष्टार्थसिद्धिः, (पू.वि. श्रावकों __के प्राथमिक कर्तव्य विचार से है.) ६९१८७. सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, प्रले.पं. मेघविजय गणि; पठ. श्राव. कसना साह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२.५, ८४३१-३५). सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामी सीमधर विनती; अंति: जसविजय बुध जयकरो, ढाल-११, गाथा-१२५, ग्रं. १८८. For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९१८८.(+) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ+बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले.ग. चतुरविजय (गुरु ग. ऋद्धिविजय); गुपि.ग. ऋद्धिविजय (गुरु पं. प्रमोदविजय); पं. प्रमोदविजय; अन्य. मु. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१२, ७-१४४३२-३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: (१)वंदामि जिणे चउवीसं, (२)करी मिच्छामि दुक्कड, (वि. १८३०, पौष शुक्ल, ८) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ+बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७५१, आदि: (१)श्रीजसविजयगुरुणां, (२)बार गुणे करि सहित; अंति: (१)प्रति मंगलीक भणी, (२)मिथ्या फोकट होज्यौ, (वि. १८३०, माघ कृष्ण, ८) ६९१८९. (#) वीसस्थानकपद पूजा, संपूर्ण, वि. १९००, मार्गशीर्ष शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. वडगांमनगर, प्रले. अमौलक वखतराम भोजक; पठ. श्राव. ठाकरसी साहा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१३, १२४३०-३५). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: लक्ष्मी०सयलसंघ जयकरू, ढाल-२०. ६९१९०. (+) उवाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८८, ले.स्थल. पोहकर्ण, प्रले. पं. जीवणविजय गणि (गुरु मु. ऋद्धिविजय); गुपि. मु. ऋद्धिविजय (गुरु ग. प्रमोदविजय); अन्य. मु. रत्नवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ९३३५, जैदे., (२७X१२.५, ६४३६-४०). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०; अंति: सुहीसुहं पत्ता, सूत्र-४३, ग्रं. १६००, (वि. १८३७, ___आश्विन शुक्ल, १, शुक्रवार) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१)वंदित्वा श्रीजिनं, (२)तिण कालि चउथा अरानइं; अंति: सुख पाम्या थका, (वि. १८३७, कार्तिक कृष्ण, २, रविवार) ६९१९१. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, ६, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्रले. श्राव. जेसिंग साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक द्वारा प्रारंभ में "पंडित श्रीलाभसागरगणिचरणकमलेभ्यो नमः" का उल्लेख मिलता है., संशोधित., दे., (२७७१३, ११४२६-२९). महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंति: हंसराज० ए मुझ जगगुरु, ढाल-१०, गाथा-६४. ६९१९२. (+#) धर्मविषयेधर्मसार धर्मबुद्धिचउपई, संपूर्ण, वि. १८२७, कार्तिक कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १४, ले.स्थल. पुष्पावतीनगर, प्रले. पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१२, १७४४७-५५). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७४२, आदि: प्रथम जिणेसर परगडो; अंति: लालचंद० सुख सुजस लहै, ढाल-३९, गाथा-५५३. ६९१९३. पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१३(१ से १३)=६, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३, ९४३०). १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १४अ-१८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति, (पू.वि. "सव्वेसि पिअंमि अंगबाहिरे" पाठ से है.) २.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणानि, पृ. १८आ-१९आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदिसह; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ६९१९४. (+#) विविधव्रतसंबद्ध कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १११-१०१(१ से ८७,८९ से ९२,९६ से १०३,१०८ से १०९)=१०,पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२५.५४१३, १७४३७-४२). कथा संग्रह, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. वत्सराज कथा अपूर्ण से प्राणातिपात विरमणव्रत दृष्टांत कथा अपूर्ण तक है व बीच-बीच के आंशिक पाठ नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९१९५. ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९४६, पौष कृष्ण, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल. कमालपुरा, प्रले.मु. चेलाजी माहात्मा; अन्य.सा. चतुरश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभवनाथजी प्रसादात्., दे., (२५४१२.५,१३४३३). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो ग्यानावरणीकर्म; अंति: धर्मनो उद्यम करवो. ६९१९७. (+) कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका- वाचना १ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १३४४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानस्य, (२)तस्मिन्काले चतुर्था; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९१९८. (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह भाषाटीका व तत्त्वार्थसूत्र बीजक, संपूर्ण, वि. १९०७, वैशाख कृष्ण, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. १२३, कुल पे. २, अन्य. श्राव. अनंदरूपजी सेठ,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, दे., (२५.५४११.५, १५४३६-४०). १.पे. नाम. तत्त्वार्थसूत्र सह सर्वार्थसिद्धिटीका की भाषाटीका, पृ. १आ-१२३अ, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति की भाषाटीका, पुहिं., गद्य, आदिः (१)मोक्षमार्गस्य नेतारं, (२)सम्यक् शब्द तीनौ जाइ; अंति: सो भी सिद्धपदवी पावै.. २. पे. नाम. तत्त्वार्थसूत्र बीजक, पृ. १२३आ, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बीजक, पुहि., गद्य, आदि: पहली ध्याय मैं दर्शन; अंति: को सरूप बतायो छै. ६९१९९. (+) उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०६, कार्तिक शुक्ल, १५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ९३, ले.स्थल. नलखेडा, प्रले. गणेश ब्राह्मण; लिख. श्राव. हठीसिंह पोरवाल; अन्य. श्राव. लखमीचंद नरखेडावाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. कुल ग्रं. ३५००, प्र.ले.श्लो. (१२१३) यथा प्रत्य तथा लिख्यतं, दे., (२५४१२.५, ५४३०-३६). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: दिवसेसु अंगं तहेव, अध्ययन-१०, ग्रं. ८१२. उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणकालणं चउथो आर; अंति: तिमज पूर्वली परे. ६९२००. (+) प्रद्युम्नचरित्र महाकाव्य, संपूर्ण, वि. १९६१, आश्विन कृष्ण, ४, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १४६, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. गेरमल पुरोहित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१३, १२४३०-३३). प्रद्युम्नचरित्र महाकाव्य, उपा. रत्नचंद्र, सं., पद्य, वि. १६७४, आदि: राज्यलक्ष्मीाय; अंति: रत्नचंद्र इति चरितम्, सर्ग-१७, ग्रं. ३५६९. ६९२०२. (4) ऋषिमंडल स्तोत्र पूजनविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, प्रले. भवानीराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.१६२४ में लिखी किसी प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१३, ९४२६-२९). ___ ऋषिमंडलमंत्र कल्प, मु. गुणनंदि मुनींद्र, सं., प+ग., आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: ग्रंथी० मंगलप्रदे. ६९२०३. (+) निरयावलिकासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८३+१(२३)=८४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. कुल ग्रं. ११०९, दे., (२५४१२, ७४२७-३०). कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंति: सुयस्कंधो सम्मत्तो, अध्ययन-१०, (वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, १, गुरुवार, ले.स्थल. अलायग्राम, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य) For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९ कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ते कालना अवसर्पणी; अंति: अनुसारइं जाणवा, (वि. १९०४, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, ले. स्थल. अलायनगर, प्रले. पं. उत्तमविजय (गुरु पं. नेमविजय); गुपि. पं. नेमविजय (गुरु मु. उदयविजय); मु. . उदयविजय (गुरु पं. सकलविजय); पं. सकलविजय (गुरुग. सुमतिविजय); ग. सुमतिविजय (गुरु ग. लक्ष्मीविजय); ग. लक्ष्मीविजय (गुरु उपा. लावण्यविजय, तपगच्छ); उपा. लावण्यविजय (गुरु गच्छाधिपति विजयदेवसूरि, तपगच्छ गच्छाधिपति विजयदेवसूरि (तपगच्छ) पठ मु. पुण्यविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत) ६९२०४ (+*) जंबूद्वीपसमास प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९ ४ ९ से ११, १७) =१५. पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३, ६x२७-३०). " वृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण सजलजलानिभरसण अंति: (-). (पू. वि. गाथा ६३ अपूर्ण से ८८ अपूर्ण तक, १३३ अपूर्ण से १४३ अपूर्ण तक व १६१ अपूर्ण से आगे की गाथाएँ नहीं है.) बृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनड़ जलसहित अंति: (-)६९२०५. ज्ञानपंचमी देववंदनविधि, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रावण अधिकमास शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १२, ले. स्थल. पेथापुरनगर, प्रले. श्राव. साकरचंद नाहालचंद पारेख, पठ. श्रावि. अचरतबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीसुविधिनाथ प्रसादे दे., (२९.५X१३.५, ११x२७-३३). ज्ञानपंचमी पर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: प्रथम बाजोठ मांडिइ अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज, पूजा-५. ६९२०६. (#) देवकी रास, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. १२. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२९.५X१४, १३X३३-३६). देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनेमजिणंद समोसर्य, अंति: (-), (पू.वि. ढाल - १८, गाथा- ९ अपूर्ण तक है.) ६९२०७ (+) सीमंधरजिनविज्ञप्ति स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, कार्तिक शुक्ल, १०, शनिवार, मध्यम, पृ. ७६, ले. स्थल, पादलिप्तनगर, प्रले. पं. न्यानचंद (गुरु पं. रुपचंद, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. पं. रुपचंद (गुरु ग. रामवल्लभ, बृहत्खरतरगच्छ); ग. रामवल्लभ (बृहत्खरतरगच्छ); प्रले. पं. लालचंद (बृहत्खरतरगच्छ); पठ. श्राव. गलाजी सेठ, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्री सिद्धक्षेत्र प्रसादात्., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२९x१३, ३X२७-३०). सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सीमंधर साहिब आगइ अंति: शास्त्र मर्यादा भणी, ढाल १७, गाथा- ३५४, ग्रं. ३५४. सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा - टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (१) प्रणम्य पार्श्वदेव, (२) सीमंधरस्वामी पूर्व अंति: गहिला छे ते डाहा छ. ग्रं. १२०१, ६९२१४ (#) लीलावती भाषानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २४-१ (१) २३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २८x१५, १२X३०-३३). लीलावती भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय- २, गाधा- ९ अपूर्ण से अध्याय- १५, गाथा-३७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६९२१६. २४ जिन चैत्यवंदन विधिसहित अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे., (२७.५X१५.५, ११x२५-२८). २४ जिन चैत्यवंदन, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि आदिदेव अलवेसरु, अंति: (-), (पू. वि. शांतिजिन चैत्यवंदन, गाथा- २ अपूर्ण तक है., वि. विधि सहित.) ६९२१७ (#) प्रस्ताविकदुहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२७४१०.५, १६x४७-५०). For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: पर्बदाह कागा हनसो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-२३ तक है.) ६९२२०. पाशा शुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदे., (२७४१४, १७४३१). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: जोजै सकुन मध्यम छै. ६९२२१. पाशा सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९५२, ज्येष्ठ अधिकमास कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ७, ले.स्थल.सीयांण, अन्य. मु. मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सीयाणा के पोसाल में प्रत लिखे जाने का उल्लेख है., दे., (२७.५४१४.५, १३४२६). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ उत्तम थानक लाभ; अंति: जोजै सकुन मध्यम छै. ६९२३६. (+#) रामविनोद व औषधनिर्माण विधि, संपूर्ण, वि. १८२०, फाल्गुन कृष्ण, ११, सोमवार, मध्यम, पृ. १०१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१०३८) ज्यां लग मेरु अडग है, जैदे., (२५४१५, १६४२७-३१). १.पे. नाम. रामविनोद, पृ. १आ-१०१अ, संपूर्ण. - पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धदायक सलहीय; अंति: रामविनोद विनोदसु, समुद्देश-७, गाथा-१६१७, ग्रं. ३३२५. २. पे. नाम. औषधिनिर्माण विधि, पृ. १०१अ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भागी भूगडा भाडंगी; अंति: तैल मीठो सेर इक. ६९२५०. (+#) ढोलामारू चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,६)=६, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३, १३४२७-३०)... ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दोहा-४१३ अपूर्ण से ५०४ अपूर्ण तक व ५३७ अपूर्ण से ५४७ अपूर्ण तक है.) ६९२५१. (+) पासाकेवली व अंगस्फुरण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२.५, १५४३२-३६). १. पे. नाम. पाशाकेवली, पृ. १अ-६आ, संपूर्ण. मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंति: यामेन तथैक दिवसेन तु, श्लोक-१६७. २. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. मु. हीररत्न, मा.गु., पद्य, आदि: माथै फुरके पुहवीराज; अंति: वाणि जिसी गुरु भणी, गाथा-२१, (वि. इस प्रत में कर्ता का नाम नहीं लिखा है.) ६९२५५. रामविनोद ग्रंथ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २२-१(२१)=२१, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२२.५४१२.५, १२४२०). रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सिद्धबुद्धिदाता; अंति: (-), (पू.वि. समुद्देश-३, सन्धि सन्निपात अपूर्ण से रुग्दाह अपूर्ण तक व चित्तभ्रमलक्षण अपूर्ण से आगे नहीं है.) ६९२६२. पाशा शुकनावली, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१(१)=१७, जैदे., (२०४१४,११४१७-२०). पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ महाउत्तम अहो; अंति: हुवै सुकन उत्तम छै, संपूर्ण. ६९२७६. सनिसर छंदादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ५, दे., (२८.५४१४, १३४३०). १.पे. नाम. सनीसरजीनो छंद, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति सामिण मति दिओ; अंति: ललितसागर इम कहे, गाथा-३१. २. पे. नाम. माणिभद्रजीनो छंद, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण, वि. १९५५, आश्विन कृष्ण, ३. माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामणी पाय; अंति: आपो मुझ सुख संपदा, गाथा-४२. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि अनुलोम विलोम मंत्रसाधन विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अरिहंताणं; अंति: कहीइंते प्रमाणे करे. For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: श्रीपार्श्व जिणचंद, गाथा-१३. ५.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणिमहामंत्रगर्भित विधि सहित, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेद्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. विधि अपूर्ण है., वि. विधि सहित.) ६९२८९. (+) महाबलमलयासुंदरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १४४३८-४३). मलयासुंदरी रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: श्रीशांतिसर सोलमउ; अंति: पभणे जिनहर्ष विचार, ___ खंड-४, गाथा-३००६, (वि. ढाल १४८.) ६९२९०. (+#) श्रुतस्कंधमंडल विधानपूजन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१९(८ से २६)=१७, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१४, ९-१२४२५-३५). श्रुतस्कंधमंडलविधान पूजन, मु. हजारीमल, पुहिं.,सं., प+ग., आदि: श्रीजिनवाणी भवतिरण; अंति: मल्लहजारी० शिवपद पाय, (पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं., आचारांगसूत्र पूजा के बाद दशवकालिकसूत्र पूजा अपूर्ण तक नहीं है., वि. अंत में कर्ता परिचय लिखा है.) ६९२९१. (#) उपदेश बावनी, अपूर्ण, वि. १८६१, ज्येष्ठ शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५९-५२(१ से ५२)=७, ले.स्थल. पालणपूर, लिख. श्राव. डुगर फूलचंद मेता; श्राव. मानचंद फूलचंद मेता; श्राव. प्रथ्वीराज फूलचंद मेता; राज्यकालरा. पीरखानजी; अन्य. राजे महमद जमादार; फरीदखान जमादार, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१४.५, १७७३४-३६). अक्षरबावनी, वा. किसनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७६७, आदि: (-); अंति: किसन कीनी उपदेशबावनी, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) ६९२९९. धर्मपरीक्षारास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४६-२०८(१ से १०५,१०७ से ११२,११५ से ११६,११९ से १२०,१२७ से १२८,१३१,१३३ से १३८,१४१ से २०६,२१० से २१५,२१७ से २१९,२२१,२२४,२२६,२२९ से २३१,२३९ से २४१)+२(२२२,२४२)=४०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२३४१२.५, १०x२६). धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३७२ अपूर्ण से २४६१ अपूर्ण तक है व बीच-बीच की गाथाएँ नहीं हैं.) ६९३०२. (#) लीलावतीसुमतिविलास रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१३, २५-२८x१४-१८). लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६७, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-१४ अपूर्ण से ढाल-१०, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ६९३०३. (4) अजितसेनकनकावती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१३.५, १२x२६-२९). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणापुस्तकधारणी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४३ की गाथा-४ तक है.) । ६९३२९. पाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९२०, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, बुधवार, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. विजापुर, प्रले. हरिभाई बारोट; अन्य. पं. आणंदविजय (गुरु ग. रविविजय, तपागच्छ); गुपि.ग.रविविजय (गुरु ग. कुंअरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१९.५४१५, १६४२२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: बादर जाणतां अजाणतां. ६९३३४. (+) छंद, स्तवन, भास व विवाहलो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-७(१ से ७)=५, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२१४१४, १४४२८). For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. शांतिनाथ छंद, पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर० शिवसुख पावे, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सरस्वती छंद, पृ. ८आ-१०आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: आस्या फलस्ये ताहरी, गाथा-३७. ३. पे. नाम. नवपद स्तवन, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मात मया करो; अंति: विमल नामे आणंदोरे, गाथा-११. ४. पे. नाम. संवत्सरी भास, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तवन, मु. अमीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: कल्पसुत्र पूजो उछरंग; अंति: अमीयवीजय थावो रसीया, गाथा-८. ५. पे. नाम. नंदी भास, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: वैशाख सुदि एकादशी; अंति: द्यो जिन आणि, गाथा-३. ६. पे. नाम. गुरुभास फुलडा, पृ. १२अ, संपूर्ण. बरासज्ञानपूजन भास, मा.गु., पद्य, आदि: वाणुं वाऊणे उग्यो; अंति: गुरु जिनशासन जयकार, गाथा-३. ७. पे. नाम. नेमिजिन विवाहलो, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: हवे विवाह सामग्री; अंति: वीर० नगिना नेम रे, गाथा-१२. ६९३३५. चिदानंद बहोतरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४१४.५, १२४२४-२८). चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पिया परघर मत जावो; अंति: (-), (पू.वि. पद-३१ तक है.) ६९३३६. (4) पडिकमणादि विधि, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २०-१(१)=१९, प्र.वि. अंत में इक्ष्वाकुवंश के कुलव्रत सम्बन्धी एक अपूर्ण श्लोक लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१४, १३४२९-३५). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (अपूर्ण, पू.वि. सामायिकविधि अपूर्ण से है.) ६९३३९. (+) रत्नपाल चोपाई, संपूर्ण, वि. १८५२, फाल्गुन कृष्ण, १३, मंगलवार, मध्यम, पृ. ५५, ले.स्थल. अंजारनगर, प्रले. मु. मनजी ऋषि (लुंकागच्छ); अन्य. मु. भीमजी ऋषि; मु. प्रेमजी ऋषि; मु. जगन्नाथ ऋषि (गुरु मु. आसकरण ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं. २२१४, अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१४, १९४३२-३५). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में दुर; अंति: मोहनविजये विलासेजी, खंड-४, गाथा-१३७२, (वि. ढाल ६६.) ६९३४०. (#) श्लोक, दहा व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २६, कुल पे. २५, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखा है.. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४१४, १४-१७४२६-३०). १.पे. नाम. विमलमंत्री श्लोक, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण, वि. १८३०, आषाढ़ कृष्ण, १४, प्रले. ग. सरूपकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य. __ पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समरूं बे करजोड; अंति: विनीतविमल गुण गायो, गाथा-१११. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ८अ-९आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सेवो प्रीत सुसील की; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कवित्त-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: लाखेणो सोहावो जिनजी; अंति: पासजीनी जाणे मोहनवेल, गाथा-६. For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४. पे. नाम. गर्भावास सज्झाय, पृ. १०अ, संपूर्ण. जीवहित सज्झाय-गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गरभावासमांहि चिंतवे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ५. पे. नाम. औपदेशिक रेखता, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. __पुहि.,सं., पद्य, आदि: डेढ जात रे डुढीया; अंति: माघ कवि कालिदास, गाथा-५. ६. पे. नाम. नवकारनी सज्झाय, पृ. ११अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभुसुंदर सीस रसाल, गाथा-८. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ८. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. १२अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहीयां मोरी चालो; अंति: ऋद्धिहरष जोडि हाथ, गाथा-१२. ९. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्तुंजानो वासी; अंति: ज्ञानवि० मारा राजेदा, गाथा-६. १०. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १२आ, संपूर्ण. वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पशुपकार सुण्या पछे; अंति: मिलस्ये नेणोनेण के, गाथा-७. ११.पे. नाम. पार्श्वनाथजी निसाणी, पृ. १३अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपत्तिदायक सुरनर; अंति: युं कवि मान कहता हे, गाथा-२७. १२. पे. नाम. कर्मविपाकफल सज्झाय, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: ऋद्धि० करममहाराजा रे, गाथा-१६. १३. पे. नाम. ऋषभदेवजीरो छंद, पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण.. __ आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रमोदरंगकारणी कला; अंति: गुणसूरि० सिद्ध पाईए, गाथा-८. १४. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलि सनतकुमार हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) १५. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. १७अ-१७आ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ; अंति: चरणप्रमोद० बहुपामीए, ढाल-५, गाथा-११. १६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १८अ-१८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., पद्य, आदि: महिमंडण सुणि श्रवण; अंति: खेमकुसल० इण परी कहे, गाथा-१३. १७. पे. नाम. बुद्धि रास, पृ. १८आ-२०अ, संपूर्ण. आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमवि देवि अंबाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५० अपूर्ण तक लिखा है.) १८. पे. नाम. जन्मकुंडली विचार, पृ. २०आ, संपूर्ण. पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). १९. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. २१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमिजिन स्तवन, आ. जयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सहेलि तोरण आयो हे; अंति: जयदेवसूरी कहे एम, गाथा-९. २०. पे. नाम. गजसुकुमाल सज्झाय, पृ. २१अ-२१आ, संपूर्ण.. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. जिनहर्ष गणि, मा.गु., पद्य, आदि: गजसुकमाल वयरागियो; अंति: जिनहरष कहे चितलाय, गाथा-८. २१. पे. नाम. साधारणजिन पद-औपदेशिक, पृ. २१आ, संपूर्ण, वि. १८३०, आश्विन कृष्ण, ८, गुरुवार. आ. दयासूरि, पुहि., पद्य, आदि: क्यूं न भजो भगवंत; अंति: दयासूरि० तरण जिणंद, गाथा-५. २२. पे. नाम. सनत्कुमारसाधु सज्झाय, पृ. २२अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं., पे.वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुड़ी है. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर० नित समरिए, गाथा-७, (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण से लिखा है.) २३. पे. नाम. पक्षीशकुन विचार, पृ. २३अ-२३आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग., आदि: हंसना शकुन तो कलियुग; अंति: उपर पडै तो कलेस थाइ. २४. पे. नाम. राजावली, पृ. २४अ-२६अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. मात्र प्रतीक पाठ दिया है.) २५. पे. नाम. तारादेवी सज्झाय, पृ. २६अ, संपूर्ण. तारादेवी सज्झाय-शीलपालनविषये, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, आदिः शतिय भणै ब्राह्मण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६९३४२.() सज्झाय, स्तवन व रास संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-३२(१ से ३२)=१३, कुल पे. ७, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१३-१५.०, १४४२८). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना संवाद, पृ. ३४अ-३९अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मानजी ऋषि (गुरु मु. जैतसिंह),प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पाय नमी; अंति: समयसु० सुप्रसादोरे, ढाल-४, गाथा-१०१. २. पे. नाम. इलापुत्रनी सज्झाय, पृ. ३९आ, संपूर्ण. ___ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लब्धिविजय गुण गाय, गाथा-८. ३. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. ३९आ-४०अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, क. आसो, पुहि., पद्य, आदि: बालपणो तोरे रामत मे; अंति: आसो० नही आवैरे साथ, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-काया, पृ. ४०अ-४०आ, संपूर्ण. वनमाली सज्झाय, मु. पद्मतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: काया रे वाडी कारमी; अंति: पदमतिलक० खोड जलागै, गाथा-८. ५. पे. नाम. भूलो मनभमरा सज्झाय, पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मनभमरा काय भमै; अंति: लीयो कणदोरो छोड, गाथा-९. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण. मु. शोभाचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७८९, आदि: प्रभु अरज करुं करजोड; अंति: सोभाचंद० सुख पायो हो, गाथा-९. ७. पे. नाम. नेमराजीमती रास, पृ. ४२अ-४५आ, संपूर्ण. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी नेम; अंति: पुण्यरतन० जिणंद कै, गाथा-६७. ६९३४३. (#) चौवीसजिन अष्टप्रकारीपूजा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-३(१ से ३)=६, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२१४१५, ११४१७-२२). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन पूजा-अष्टप्रकारी, पृ. ४अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, रामचंद्र, पुहिं., प+ग., आदि: (-); अंति: रामचंद्र शिवतिय वरई, (पू.वि. धूपपूजा अपूर्ण से २.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन पूजा-अष्टप्रकारी, पृ. ६अ-९आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा-प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, रामचंद्र, पुहि., प+ग., आदि: सुषमदखम थिति मेटी; अंति: (-), (पू.वि. आदिजिन स्तवन, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ६९३४४. (#) मंगलकलश रास, संपूर्ण, वि. १९२३, चैत्र शुक्ल, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४६, ले.स्थल. खीवाणदी, प्रले. उपा. शिवचंद (गुरु मु. उदयचंद, कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ); पठ.मु. उदयचंद (कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (१९x१४, १७X२२). मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७४९, आदि: प्रणमुंसरसति स्वामी; अंति: दीप० नवेइ निध्यान रे. ६९३४५. (+#) भुवनभानुकेवली चरित्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८७-२(१,२०)=८५, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१३, १५४२७-३०). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., राजा चंद्रमौलि के राजदरबार में प्रवेश से है व सुभद्र के द्वारा राजा से निवेदन करने के प्रसंग अपूर्ण तक लिखा है. बीच में जीव का भवभ्रमण अपूर्ण तक नहीं है.) ६९३४६. () एलाचीकुमार छढालियु, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रावण शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १५, ले.स्थल. भुजनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x१४.५, १४-१७४१२). इलाचीकुमार छढालियु, मु. माल, मा.गु., पद्य, वि. १८५५, आदि: मात मया करो सरस्वती; अंति: मालमुनि गुण गाय, ढाल-६. ६९३४७. विविधबोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, जैदे., (१८x१५.५, १८४३४-४०). बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९३४८. (2) रमल शुकनावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-५(१ से ५)=६, अन्य. मु. हेमसागर (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४१३.५, १५४२२-२६). रमल शुकनावली, पुहिं., गद्य, आदि: अरे यार वहुत दिन; अंति: धीरा सब वात भली हुवी, संपूर्ण. ६९३४९. () स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९६१, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ६-१(५)=५, कुल पे. ९, प्रले. मु. मोतीलालजी (गुरु आ. जवाहरलालजी, स्थानकवासी); गुपि. आ. जवाहरलालजी (स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०x१२.५, १५४२६-३०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रामरतन शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: लारे लागो रे यो पाप; अंति: रामरतन० समता राची रे, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९३६, आदि: गुराजीने ग्यान दियो; अंति: प्रसादे हीरालाल गाया, गाथा-५. ३. पे. नाम. रावणमंदोदरी सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. सोभागमल मुनि, रा., पद्य, वि. १९४०, आदि: कहे मंदोदरी सुण पिया; अंति: सोभागमल० अभ्यास हो, गाथा-१७. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १९६१, भाद्रपद शुक्ल, २. __ औपदेशिक दोहा संग्रह*, पुहि., पद्य, आदि: एक समय भागहित वाजत; अंति: राम ताहि बिध रहिए, दोहा-४. ५.पे. नाम. ११ गणधर स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम इन्द्रभूति स्तवन लिखा है. मु. आसकरण, मा.गु.,रा., पद्य, वि. १८४३, आदि: श्रीइंद्रभूतिना; अंति: वंदु अग्यारे गणधार, गाथा-१३. ६.पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमस्वामी पूछा करे; अंति: नवि कहे सुख अथाग हो, गाथा-१६. ७. पे. नाम. नेमिजिन लावणी, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: तुम तजकर राजुलनार तज; अंति: जिनदास सुनो जिनवर रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८. पे. नाम. शालीभद्र सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. शालीभद्रमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: राजा सेणक घरे आया; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ९. पे. नाम. अईमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: (-); अंति: गाया हीरालाल हो, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६९३५०. (#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. पं. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१४.५, १३४१८). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: सयल संघ आणंद करो, गाथा-५४. ६९३५१. (#) मौनएकादशी व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक नहीं लिखे हैं, पाठ के आधार पर अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१८x१५, ११x१४). १.पे. नाम. मौनएकादशी सज्झाय, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: जगपति नायक नेमिजिणंद; अंति: जिनविजय जयसिरी वरी, ढाल-४. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पृ. ५आ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उतपति जो जो आपणी मन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६७ अपूर्ण तक है.) ६९३५२. (#) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८-२(१,७)=६, कुल पे. ८, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५.५४१४.५, १२-१५४१९-२२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन बारमासो, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनहर्ष सदा आणंद रे, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गोडीपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, आदि: मूरति मननी मोहनी सखी; अंति: हेत कहे ध्रमसीहरे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ सोहलो, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-जन्मोत्सव, मु. मान, पुहिं., पद्य, आदि: बहु हुवो उछाह वणारसी; अंति: मान कहै पूरै मन आस, गाथा-४. ४. पे. नाम. नेमनाथ गीत, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काई रीसाणा हो नेम; अंति: मुगति पुहति मारा लाल, गाथा-९. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन छप्पय, पृ. ४आ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पुहिं., पद्य, आदि: बुझरक पारसनाथ तुरा०; अंति: (-), (पू.वि. पद-११ अपूर्ण तक है.) ६.पे. नाम. नेमिजिन सज्झाय, पृ. ८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. ज्ञानप्रवीण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञानप्रवीण सखी पठई, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. चिंतामणिपार्श्व स्तवन, पृ. ८आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. कमलरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण श्रीचिंतामणि; अंति: कमलरतन० मुगतिवधू जौ, गाथा-३. ८. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ८आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, आदि: मोहन पास को मुख नीको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ तक ६९३५३. (+) पद्मावती स्तोत्र व मंत्रजापविधि, संपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १०, कुल पे. ३, प्रले. ग. उमेदविजय; पठ. मु. भागचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९.५४१४, १३४२३-२६). For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १.पे. नाम. पद्मावतीदेवी मंत्रजाप विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पद्मावती मंत्र व जापविधि, सं., प+ग., आदि: ॐ अस्य श्रीपद्मावती; अंति: रुद्रतुल्यो न संशयः. २.पे. नाम. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, पृ. २अ-१०अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: प्रतिपालनाय, श्लोक-१३५. ३. पे. नाम. पद्मावतीदेवी स्तोत्र, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. ___ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रीकुरुकंडदड; अंति: हर्ष० पूजो सुखकारणी, गाथा-९. ६९३५४. (#) भक्तामर बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९x१५, १८x१०). भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो वृषभनाथाय; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम कुछ अंश नहीं लिखा है.) ६९३५५. (#) चैत्यवंदन, स्तवन व दोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०८, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १५-१०(१ से १०)=५, कुल पे. ९, ले.स्थल. भाणपुर, प्रले. मु. किसनसागर; पठ. मु. देवसागर (गुरु मु. किसनसागर); अन्य. श्राव. सेवाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१८.५४१४, ११४१६-२०). १.पे. नाम. १६ सती नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: जैनो धर्मोस्तु मंगलं, श्लोक-२. २. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. ११अ, संपूर्ण. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. लघुराशि नाम, पृ. ११आ, संपूर्ण. १२ राशि वर्णमाला, मा.गु., गद्य, आदि: आला मेष१ ओ वा वृष२; अंति: दा चा झा था मीन. ४. पे. नाम. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: यावत् गंगास्तुरंगी; अंति: समीपेसु भवंति सर्वे, श्लोक-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १२आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-,सं., पद्य, आदि: पिता माता बंधु तुझ; अंति: मृत्यु जन्म फलाष्टकं, श्लोक-२. ६. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: प्रह उठी प्रभाते; अंति: रायचंद०आठु जिन जपतां, गाथा-९. ७. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १४अ-१४आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७०, आदि: श्रीमंदरजिन वंदं; अंति: रीष लालचंदजी० जिनराज, गाथा-८. ८. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १५अ-१५आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने चंद्रप्रभुजिन स्तवन नाम लिखा है. क. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणो चंदाजी सीमधर; अंति: पद्मविजय० अतिनूराय, गाथा-८. ९.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १५आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहि., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-२. ६९३५६. (+) अर्बुदाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, कार्तिक शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. अजीमगंज, प्रले. मु. अबीरचंद; पठ. श्रावि. दया बीबी; श्रावि. महताब बीबी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२०४१२.५, ६४१२). अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूजीनी; अंति: आवै रूपचंद बोलैरे, गाथा-२२. ६९३५७. (#) जिनकुशलसूरि स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-३(४,८,१४)=१६, कुल पे. ७, प्रले.पं. कल्याणरंग (गुरु मु. नेमिरंग); गुपि. मु. नेमिरंग (गुरु पं. रत्नसुंदर); पं. रत्नसुंदर (गुरु मु. श्रीवर्द्धन); मु. श्रीवर्द्धन; पठ. श्राव.खेमचंद मयाचंद शा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२०४१३, ११-१५४२३-२८). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि छंद, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं माता सरसती; अंति: विजैसंघ लीला वरी, गाथा-३१. २. पे. नाम. अढारदोष नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८ दोषरहित अरिहंत विचार, प्रा., मा.गु, गद्य, आदि: अग्यानरहित? क्रोध, अंतिः रहित१७ हास्यरहित १८. , ३. पे. नाम. बारव्रत नाम, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाणिवह मुसावाए अदत्त; अंति: ( - ), ( पू. वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ४. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई, पृ. ५अ १२आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ व बौच के पत्र नहीं हैं., वि. १७५४, कार्तिक कृष्ण, ७, रविवार. शालिभद्रमुनि चौपाई. मु. मतिसार, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: (-); अंति: मनवंछित फल लहिस्यइजी, ढाल २९, गाथा - ५११, (पू.वि. ढाल - २४ की गाथा - १३ अपूर्ण से है.) ५. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १३अ - १३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. "" आ. अभयदेवसूरि, प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहवण वरकप्प अंति: (-) (पू. वि. गावा-८ अपूर्ण तक है.) ६. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. १५अ - १९अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७६२, चैत्र कृष्ण, ५, गुरुवार. उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: (-); अंति: वृद्धि कल्याण करो, गाथा- ४१, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७. पे. नाम. चारचोवीसीनाम स्तवन, पृ. १९अ - १९आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ४ चौवीशी जिननाम स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जागि सवारौ समरि तुं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ६९३५८. (+) नेमजिन चोवीसचोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२१x१४, १४x२०-२५). गोपी संवाद- चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पच, वि. १८३९, आदि: सुण वासडली वैरण थई, अंतिः अमृत गुण गाया चोक-२४. ६९३५९, (*) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १४. कुल पे १५, प्र. वि. प्रतिलेखक ने कुछ पत्रों में पत्रांक नहीं लिखे हैं, अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२०x१४, ११x१९-२२) " १. पे. नाम संभवजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो विनति; अंतिः मान० वीनती छे छेक, गाथा-८. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपासजी प्रगट; अंति: मानविजय० तुज पाया रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ- ३अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- २आ स्वाही फूटने के कारण खाली हैं. मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हांरे हुं तो पुजीस, अंतिः रामविजय० पोती जगीस, गाथा-५. " ४. पे. नाम. शीतलनाथनो तवन, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- ३ आ स्याही फूटने के कारण खाली है. शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेजानंदी; अंति: जिनविजय आनंद सुहावे, गाथा ६. ५. पे. नाम. सुमतिशांतिनाथनो तवन, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक-४आ स्वाही फूटने के कारण खाली है. सुमतिजिन व शांतिजिन स्तवन, मु. रामसागर, मा.गु., पद्य, आदि: भवि तमे वंदो रे सुमत; अंति: राम जपे गुणवृंदा, गाथा - ६. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५अ ६अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- ५ आ स्याही फूटने के कारण खाली है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलग अजित जिणंदनी; अंति: मोहन० जिन अंतरजामी, गाथा-५. ७. पे. नाम. महावीरनो तवन, पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- ६आ स्याही फूटने के कारण खाली है. महावीरजिन स्तवन, वा. कुसलसागर, मा.गु., पद्य, आदिः आव सहेली धाव बहेली, अंतिः कुशल संपदा पाइये रे, For Private and Personal Use Only गाथा-७. ८. पे. नाम. सेडुंजानो तवन, पृ. ८अ ९अ, संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- ८आ स्याही फूटने के कारण खाली है. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, आव. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि पारी ते पीउने वीनवुं अंतिः लीबो० आ भव पार उतार, गाथा ६. ९. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ९अ. संपूर्ण, वि. १८६९ माघ शुक्ल, २. , Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदिः आज उजम छे रे अधको अंति: हरखे० ए तो अंतरजामी, गाथा- ४. १०. पे. नाम. नेमनाथनो तवन, पृ. १०अ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदि: घरे आवोने नेम; अंतिः रुपचंद० सवि फल्वा रे, गाथा-६. ११. पे नाम, अनंतनाथनो तवन, पृ. १०अ ११अ संपूर्ण, पे. वि. पत्रांक- १० आ स्याही फूटने के कारण खाली है. अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अनंत जिणेसरसु कर्यो, अंति: जस० मुझ प्रेम महत रे, ७९ गाथा-५. १२. पे नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १२अ संपूर्ण. , मु. कवियण, मा.गु., पद्म, आदि; शांतिजिणेसर सोलमा रे, अंतिः (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ६ तक लिखा है., वि. स्याही फूटने के कारण प्रतिलेखक ने आगे की गाथाएँ नहीं लिखी है.) १३. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १३अ संपूर्ण ! आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि आजनो आजनो आजनो रे, अंतिः जिनलाभसूरंद ० काजनो रे, गाथा-४. १४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- मुनरामंडन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, आदि; वंदना वंदना वंदना रे, अंति (-) (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३ अपूर्ण तक लिखा है.) १५. पे, नाम, पारसनाथनो तवन, पृ. १४अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: वालाजी पंचम मंगलवार, अंति: उदेरतन एम भणे रे लोल, For Private and Personal Use Only गाथा ५. ६९३६१. (d) स्तवन व सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८६० फाल्गुन कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १९-७( ७ से १३ ) = १२, कुल पे. ११, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७X१६, १४X१५). १. पे. नाम. नमस्कार मंत्र, पृ. १अ संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र, शाश्वत, प्रा., पद्य, आदि: णमो अरिहंताणं; अंतिः पढमं हवई मंगलम्, पद- ९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. मु. दीपसौभाग्य, मा.गु, पद्य, आदि जे जे आदि जिनंद आजि, अंतिः दीपसौभाग्य को री, गाथा १५ (वि. प्रतिलेखक ने गाथांक नहीं लिखा है.) ३. पे नाम, ५ तीर्थजिन स्तवन, पृ. २अ ४अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, आदि आदे हे आदे हे आदि जि, अंति: लावण्यसमै इम भ ए. गाथा- ११. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण. मा.गु, पद्य, आदि: हस्तिनगरपुर दीपतो रे अंति लाल वो सार असार जी, गाथा- ११. ५. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण. आ. विजयदेवसूरि, मा.गु. पच, आदिः सीतल जिन सहज सूरंगा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. मात्र गाथा - १ अपूर्ण लिखा है.) ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ७. पे नाम, अंतरिक्षपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १४-१५अ अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: (-); अंति: दरिसण हु वंछु सदा, गाथा - ५२, (पू. वि. गाथा - ३४ से है.) ८. पे. नाम. मृगापुत्र स्वाध्याय पू. १५ अ- १६आ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु. पच, आदि: परसुग्रीव सोहामणो अंतिः त्र गोखा रतन जडाई हो, गाथा- १७. ९. पे नाम. सूरजजीनो सिलोको, पृ. १६ आ-१८ अ, संपूर्ण. Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूर्य सलोको, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती सामण करुजी; अंति: नही को थाहरैजी तोलै, गाथा-१९. १०. पे. नाम. तारालोचननी सज्झाय, पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा. तारादेवी सज्झाय-शीलपालनविषये, मु. कनकसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: सतीय भणै ब्राह्मण; अंति: न खंडू काय खंडस्यू, ढाल-१३, गाथा-१४. ११. पे. नाम. ऋषभदेवजिन थुई, पृ. १९आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदो ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाय, गाथा-४. ६९३६२. भक्तामर व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, कुल पे. २, जैदे., (२२.५४१५, ११x१९). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २अ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८६७, चैत्र शुक्ल, १. ___ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ७अ-११आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण तक है.) ६९३६५. (+) दादासाहब की आरती, पूजा व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-३(१ से ३)=७, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१६.५४१५, ११x१७). १.पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ४अ-६अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८५३, आदि: (-); अंति: त्संस्तुवैः संस्तुतं, ढाल-८, (पू.वि. दीपपूजा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि आरती, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. मु. लाभवर्द्धन, पुहिं., पद्य, आदि: जय जय सद्गुरु आरती; अंति: गुरु चरण कमल बलिहारी, गाथा-९. ३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि पद, पृ. ६आ-८अ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: दादा चिरंजीवो सेवक, अंति: जिनचंद० मनवंछित फलजो, गाथा-११. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दादा सुख दीयै जाणी; अंति: अमर आपणडौ जाणीजै, गाथा-११. ५. पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. ग. दयाभक्ति, पुहिं., पद्य, आदि: आज हर्ष भयौ संघसकल; अंति: दयाभक्ति० फल पावै, गाथा-११. ६.पे. नाम. जिनकुशलसूरि स्तवन, पृ. १०आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. कुसल कवि, रा., पद्य, आदि: हांजी काइ अरज करु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६९३६६. (2) मौनएकादशी स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५०, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१७४१५,१०x१२-१५). १. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: लहे ते मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२५. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पृ. ९अ, संपूर्ण.. मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: सौभाग्य० सुखकंदा जी, गाथा-१. ६९३६७. (+#) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. *प्रतिलेखक ने पत्रांक नही लिखा है, पाठ के आधार पर पत्रांक दिए गए हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६४१५, १३४१५). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर विमल; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१२, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ६९३६८. देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रावण शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. वाली, प्रले. श्राव. देवीचंद; पठ. श्राव. धुलाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१८.५४१५, १९४१३-१७). For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org ८१ देवसिराई प्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सामायिक पारने की विधि अपूर्ण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९३६९, (-) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ११३-१४ (१ से १४) =९९, कुल पे. ३०, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१८४१५, ११४११-१४). "" १. पे नाम, रत्नागर भास, पृ. १५ अ-१५ आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. वि. १८४९ चैत्र अधिकमास शुक्ल, ५० " गुरुवार, ले. स्थल. मस्कत, प्रले. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य. शिवजीकुमार, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति: दसमी ढाल रसाल, ढाल १०. गाथा ४५, (पू. वि. गाथा ३९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमनाथनो नवरस, पृ. १६अ २४आ, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र अधिकमास शुक्ल, १०, मंगलवार. नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु, पद्य, आदिः समुद्रविजय सुत चंदलो अंतिः प्रभु उतारो भवपार, डाल-९, गाथा ४०. ३. पे. नाम. एलाचीकुमारनो रास, पृ. २५अ-२६आ, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ११, बुधवार. इलाचीकुमार सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु, पद्य, आदि नामे एलाचीपुत्र जाणी, अंतिः एम कीरतविजय गुणगाय, गाथा - १२. ४. पे नाम, स्थूलभद्र सज्झाय, पृ. २७अ-३२आ, संपूर्ण स्थूलिभ नवरसो, उपा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा, अंति: रे उदयरत्न कहे एम, ढाल - ९, गाथा- ६७. ५. पे. नाम. पाशाकेवली. पृ. ४३अ ४८आ, संपूर्ण. पाशाकेवली - भाषा *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: १११ श्री अश्वनीनु; अंति: माहालबधी फल दीसे. ६. पे. नाम. चोवीसजिन प्रभाती, पृ. ४९अ ४९आ, संपूर्ण वि. १८४१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १. २४ जिन प्रभाति, ग. तेजजी, मा.गु., पद्य, आदि: सासनपत चोवीसमा जे अंतिः तेजसी चोवीसे अभीधान, गाथा-४. ७. पे. नाम. नेमराजमती सज्झाय, पृ. ५० अ- ५१आ, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ३. नेमराजिमती सज्झाब, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: कपूर हुवे अति उजलो, अंति: पहुंता बंछित कोड, गाथा-८. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ५२अ-५३अ, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र अधिकमास कृष्ण, ४. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअह रीत सुमाडो अंतिः अहरीअ तजी मागे लेखु, गाथा-८. ९. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर, पृ. ५३-५४अ, संपूर्ण, वि. १८४१, चैत्र. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो, अंति: उदय० आप तुठो, गाथा-७. १०. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. ५४-५५आ, संपूर्ण वि. १८४१ वैशाख कृष्ण, ३, शुक्रवार. सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तु तो महाविदेह खेत्र, अंति: काहन० नीत ताहरा जी, गाथा - ९. ११. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ५६-५७अ, संपूर्ण, वि. १८४१, वैशाख कृष्ण, ३, ले. स्थल. मसकत. अजितजिन स्तवन- चोथा आरा, मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जिनवर वारो; अंति: उल्लासे तेजसंग भासे, गाथा-५. १२. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ५७आ-५९अ, संपूर्ण, वि. १८४९, वैशाख कृष्ण, ४, पे. वि. डुगरशी आसकरण द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाला, अंतिः रूपविजय० सुख अभोग जी, गाथा-८. १३. पे नाम, अईमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. ५९ आ-६२आ, संपूर्ण वि. १८४९ वैशाख कृष्ण, ६, शनिवार, पे. वि. प्रतिलेखक ने कृति नाम महावीर स्वामी सज्झाय लिखा है. अमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने अंतिः ते मुनिवरना पाया, गाथा- १८. १४. पे नाम, ऋण तत्त्वनी सज्झाय, पृ. ६३अ ६८अ संपूर्ण वि. १८४९ वैशाख कृष्ण, ९, बुधवार, पे. वि. डुंगरशी आसकरणजी के द्वारा लिखित प्रत की प्रतिलिपि, त्रण For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेश्वर; अंति: राममुनि० एह सज्झाय, गाथा-२७. १५. पे. नाम. परनारी परिहार सज्झाय, पृ. ६८आ-६९अ, संपूर्ण, वि. १८४१, वैशाख कृष्ण, ९. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: नेह न कीजे रे जीव; अंति: कविजन कहे०सुख भोग जी, गाथा-५. १६. पे. नाम. आदिजिन प्रभाती, पृ. ६९आ-७०अ, संपूर्ण, वि. १८४१, वैशाख कृष्ण, १०. आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., पद्य, आदि: आज तो बधाइ राजा नाभि; अंति: निरंजन आदेसर दयालरे, गाथा-६. १७. पे. नाम. सुविधिजिन पद, पृ. ७०आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मुजरा साहिब मुजरा; अंति: रूप० निरंजन केरा रे, गाथा-३. १८.पे. नाम. सेजानुंतवन, पृ. ७१अ-७२आ, संपूर्ण, वि. १८४१, आषाढ़ कृष्ण, २. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्यारी ते पीउडाने; अंति: लखमीविजे० मोरा साहला. गाथा-७. १९. पे. नाम. जंबूस्वामीनुं चौढालिया, पृ. ७२आ-८३अ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीगुरु पदपंकज नमी; अंति: गंगमुनि० ते सुख लहसे, ढाल-४, गाथा-४७. २०. पे. नाम. पारसनाथजी तवन, पृ. ८३आ-८६आ, संपूर्ण, वि. १८४१, आषाढ़ कृष्ण, ५. पार्श्वजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., पद्य, आदि: वंछित पूरण पास नंदन; अंति: पारस गुण मनरली रे, गाथा-५. २१. पे. नाम. अजितनाथनुंतवन, पृ. ८७अ-८८अ, संपूर्ण, वि. १८४१, आषाढ़ कृष्ण, ५. अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., पद्य, आदि: अजित जिनेसर देव; अंति: खुसालमुनि०गुण गाय रे, गाथा-५. २२. पे. नाम. साधारणजिन प्रभाती, पृ. ८८आ-८९आ, संपूर्ण, वि. १८४१, आषाढ़ कृष्ण, ६. मु. देवकरण, पुहिं., पद्य, आदि: जाकी रखा करे भगवंतजी; अंति: अरिहंतनाम शरणा साखी, गाथा-१०. २३. पे. नाम. जंबूसामीनी सज्झाय, पृ. ९०अ-९२आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सहसकिरण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसरने हुं पाय; अंति: सहसकरण ताहरा रे, गाथा-११. २४. पे. नाम. रेवतीनी सज्झाय, पृ. ९३अ-९४आ, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रावण शुक्ल, १. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिहासन राणी; अंति: वल्लभ० हरष अपार रे, गाथा-१०. २५. पे. नाम. गोडीपारसनाथनुंतवन, पृ. ९५अ-९५आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगोडीचा रेतु; अंति: लागी छे रे भवभवी रे, गाथा-८. २६. पे. नाम. नेमराजुलनो लेख, पृ. ९६अ-९९आ, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रावण कृष्ण, १३. नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीरेवंत; अंति: रूपविजय उलास गावेरे, गाथा-१९. २७. पे. नाम. गोडीपारसनाथजीना तवन, पृ. १००अ-१०१अ, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रावण कृष्ण, ६.. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: लाखीणो सुहावो जननी; अंति: केसर० पासजी हो लाल, गाथा-९. २८. पे. नाम. श्रीसंभवनाथनुं तवन, पृ. १०१आ-१०२आ, संपूर्ण, वि. १८४१, भाद्रपद शुक्ल, १, ले.स्थल. मसकत, प्रले. मु. देवकरण, प्र.ले.पु. सामान्य. संभवजिन स्तवन, मु. जिनभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिनसुं प्रीतडी; अंति: जिनभद्र० विनतडी, गाथा-१२. २९. पे. नाम. रीषभदेवनो विवालो, पृ. १०३अ-१०४अ, संपूर्ण. आदिजिन विवाहलो, मु. प्रेम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीप्रणमुंआदेसर; अंति: प्रेम० सरवे सुख थाए, गाथा-७. ३०. पे. नाम. थावच्चाकुमार चोढालीया, पृ. १०४अ-११३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. थावच्चाकुमार चौढालियो, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: द्वारामती नगरी वसे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-१० अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९३७०. (+#) स्तवन व सज्झायसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, कुल पे. ४, प्र. वि. अंत में किसीने औपदेशिक पद का एक गाथा लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३१२, १८३८-४२). १. पे. नाम. स्तवनचौवीसी, पृ. १अ ८आ, संपूर्ण, प्रले. पं. कपूरविजय, पठ. ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. आनंदघन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु, पद्य, वि. १८५ आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम, अंति: आनंदघन प्रभु जाग रे, स्तवन- २४. २. पे. नाम. देहरा स्तवन, पृ. ८- ९अ, संपूर्ण, वि. १८५३, कार्तिक कृष्ण, ९, सोमवार, ले. स्थल. कैलवाडा, प्रले. पं. कपूरविजय, पठ. पं. चतुरविजय, राज्यकालरा भीमसिंहजी राणा, प्र.ले.पु. सामान्य, पे. वि. शांतिजिन प्रसादात् जिनमंदिरफल स्तवन, मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धपदने नमी मनरंग; अंति: इम कवि मान कहै करजोड, गाथा - १२. ३. पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. ९अ- ९आ, संपूर्ण मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समोवसरण बेठा भगवंत, अंति: समयसुंदर कहि द्याहडी, गाथा- १३. ४. पे. नाम. आठमनी सज्झाय, पृ. ९आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंति: वाचक देव सुसीस, गाथा- ६. ६९३७१, () धन्नामुनि व आवककरणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८९५, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ८. कुल पे, २, ले. स्थल नागोरनगर, पठ. श्राव. शिवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अबरखयुक्त पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३X१३.५, ७X१७). १. पे नाम. धन्नामुनि सज्झाय, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. अन्ना अणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., पद्य, आदि काकंदीवासी सकज भद्रा, अंतिः कल्वाणसु रंगइ रे, ढाल - २, गाथा - १५. २. पे. नाम. श्रावककरणी सज्झाय, पृ. ४अ-८अ, संपूर्ण, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावक तुं उठे परभात, अंति: करणी दुखहरणी छे एह, गाथा २२. ६९३७२ तिलोकसुंदरी चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, दे. (२०x१२, २०४७-५० ). त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., पच, वि. १८११, आदि अरिहंत सिद्ध अनंतगुण अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल - ११, गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ६९३७३ () भक्तामर स्तोत्र सह बालाववोध, अपूर्ण, वि. १७९६, श्रावण शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३० - ३ (६, १७ से १८) = २७, ले.स्थल. संग्रामपुर, प्रले. ऋ. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X११.५, १४-१७X२०-२३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-२ व श्लोक २० से २४ अपूर्ण तक नहीं है. ) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५२७, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: स्व आपण बरे (पू.वि. लोक-२ के बालावबोध अपूर्ण से १९ के बालावबोध अपूर्ण तक व १९ के बालावबोध अपूर्ण से २३ के बालावबोध अपूर्ण तक नहीं है.) ६९३७४. सेतुंजाउद्धार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, ले. स्थल. सांडेरावनगर, जैवे. (२१.५x१२.५, १८४३०-३३). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: विमल गिरिवर मंडन, अंति: देही दंसण जयकरो, ढाल - १२, गाथा - ११४. ६९३७५. (+#) तपना नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे., (२२.५X१२.५, १२X३२). तपावली, मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमन१ एकासणुं२: अंतिः एहवा वचन कह्या For Private and Personal Use Only יי Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९३७६. (+) पार्श्वजिन विवाहलो, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-१४ ( ४,८ से १०,१३ से १४,१७ से २४) +२ (१,२६)=१५, पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२३x१३, ८x२५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन विवाहलो, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: स्वस्ति श्रीदायक, अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१, गाथा-५ अपूर्ण से ढाल १८, गाथा- २ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ६९३७७. (४) शालिभद्रचीपई व शीयल रास, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २३ कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२२x१३, २१-२५४१९). १. पे. नाम. शालिभद्र चौपाई, पृ. १अ-२३आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु, पद्म, वि. १६७८, आदि: शासननायक समरीई, अंतिः मनवंछित फल लहस्यइजी, ढाल - २९, गाथा-५११. २. पे नाम, शीयल रास. पू. २३आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ प्रणाम करूं, अंति: (-), (पू. वि. ढाल १, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६९३७८. गोडीपार्श्वजिन वृद्धस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १५+१(१३) = १६, जैवे. (१९.५x१२, ६४१२-१५). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी, अंति: प्रीतविमल० अभिराममंतै, ढाल -५, गाथा - ५५. ६९३७९, (४) स्तवन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १८२९, पौष कृष्ण, १३ मंगलवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. ११, प्र. वि. अक्षरों 7 की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१२, १०x२५-३०). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: काय रे जीव मनमैं; अंति: जिहर्षसूरि० रंगरली, गाथा - ९. २. पे. नाम. अणगारसत्यावीसगुण सज्झाय, पृ. १- ३अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., पद्य, आदि: सकल देव जिणवर अरिहंत, अंति: मोखसुख निश्चल करा, गाथा - १६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- नाकोडा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: अपणे घर बेठा लील करो; अंति: समयसुंदर० गुण जोडो, गाथा-८. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. मु. ५. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४अ ५अ, संपूर्ण विक्रम, मा.गु., पद्य, वि. १७२१, आदि: प्रथम आदजिणंद वंदित; अंति: विक्रम० सुख जे भणं, गाथा-४. मु. भोज, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासजिणंद, अंति: भोज भणै०कल्याणनी कोड, गाथा - ११. ६. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मन मधुकर मोही रह्यो; अंति: जिनराज० कर जोडि रे, गाथा-५. ७. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि जगजयवंता जाणीवे; अंतिः सेव्या पुहचै मन कोड, गाथा-८. ८. पे. नाम थंभनपुरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ६अ ७अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन- स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास; अंतिः श्रीपारशनाथ चोसालो, गाथा-८, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथाओं को एक गाथा बनाकर लिखा है.) ९. पे. नाम. सरस्वतीमाता छंद. पृ. ७अ-८आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदिः ॐकार धरा उधरणं; अंति: करण वदे हेम इम दीपती, गाथा - १६. For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १०. पे. नाम. सारना दुहा, पृ. ८आ-१५आ, संपूर्ण.. नवग्रहद्वादशराशि फल, सार कवि, पुहिं., पद्य, आदि: युं विचार ज्योतिष; अंति: सारबुद्धि अनुसार, दोहा-१०८. ११. पे. नाम. शारदाभगवती माता छंद, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी छंद, मु. मनरूप कवि, मा.गु., पद्य, आदि: वरदायक ब्रह्मासुता; अति: मनरूप० सदा परमेश्वरी, गाथा-९. ६९३८०.(+) लावणी,पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९५८-१९६२, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ९,प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित., दे., (१९.५४१२, २३४३१). १. पे. नाम. चंदराजा की लावणी, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण, वि. १९५८, प्रले. मु. हीरालाल (गुरु मु. जवाहरलाल, स्थानकवासी), प्र.ले.पु. सामान्य. चंद्रराजा लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, वि. १९५६, आदि: मुनिसुव्रत माहाराज; अंति: श्रावगलोग वसे ग्यानी, (वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) २.पे. नाम. तपपद सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, वि. १९६२. मु. रायचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: तप वडो रे संसार में; अंति: रायचंद०तीज मुझारी रे, गाथा-१५. ३. पे. नाम. सीतासती सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जलजलती मलती घणी रे; अंति: नीत प्रणमीजे पाय रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भूलो मन भमरा केइ; अंति: लेखो साहिब हाथ, गाथा-९. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: वटाउरे बित गई ओ; अंति: खोल देखो दोय नेण, गाथा-३. ६. पे. नाम. दानशीलतपभावना सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण.. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजिए; अंति: मोक्ष तणा फल पाय रे, गाथा-६. ७. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. कुशलचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: महावीर स्वामीने सीवर; अंति: कुशलचंददुःख दूर हरी, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-युवावस्था, मु. रतनचंद, रा., पद्य, आदि: जोबनीयारी मोजां फोजा; अंति: आराधो सुख सेती रे, गाथा-६. ९. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, मु. अभयराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओ भव रतनचिंतामणी; अंति: अनंत जीव भव तरीया रे, गाथा-१३. ६९३८१. (2) चोबोली रास, संपूर्ण, वि. १७७८, फाल्गुन शुक्ल, सोमवार, मध्यम, पृ. १४, ले.स्थल. घाणोरा, प्रले. पंन्या. दोलतविजय; अन्य. मु. कांतिविजय (तपगछ); मु. अमृतविजय; मु. जसवंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०४११.५, १५४२६-२९). विक्रमचौबोलीरास-पुण्यफलकथने, वा. अभयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: वीणा पूस्तक धारणी; अंति: __ अभय० मिंदर कजइ कही, ढाल-१७. ६९३८२. (+#) चंद्रराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३९, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१२, १२-१६४३०-३६). चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रथम धरा धवति प्रथम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., उल्लास-२, ढाल-१०, गाथा-१ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९३८३. दामनक चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रावण शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. देसणोक, प्रले. मु. प्रतापमलजी महाराज, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (१७.५४१४, १८x१७-२०). दामनक चरित्र, रा., गद्य, आदि: जीवन मारै दया पालै; अंति: थोडै करता घणो हुवै. ६९३८४. स्तवनचोवीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदे., (१५.५४१४, १२-१५४१७-२१). स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवालहो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंद्रप्रभजिन स्तवन अपूर्ण तक लिखा है.) ६९३८६. जीवगत्यादि बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६८-५५(१ से ५२,५८ से ५९,६२)=१३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (१६४१४, १५-१८x१२-१५). बोल संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) ६९३८७. विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पू.वि. पत्रांक बाद में किसीने १ से ८ लिखा है, परंतु कृति अपूर्ण होने के कारण पत्रांक २ से भरा है., जैदे., (१६४१३.५, १४४११-१४). बोल संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., बीच-बीच के पाठ हैं.) ६९३८८. (#) अंतरीकपार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७९१, पौष कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. वापिनगर, प्रले. पंन्या. कांतिविजय (गुरु पं. लब्धिविजय गणि); गुपि.पं. लब्धिविजय गणि (गुरु पं. अमरविजय गणि); पं. अमरविजय गणि (गुरु पं. केसरविजय गणि); पं. केसरविजय गणि (गुरु पं. लक्ष्मीविजय गणि); पठ. श्राव. वेलजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१४.५४१३, १७४१४-१९). पार्श्वजिन वृद्धछंद-अंतरिक्ष, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मयाकरी आपो; अंति: जयो पास जय जय करण, गाथा-५१.. ६९३९१. (+) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८१, चैत्र कृष्ण, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. १३२, ले.स्थल. वीसलनगर, प्रले. पंन्या. वीरविजय गणी (गुरु पं. रूपविजय); गुपि.पं. रूपविजय; लिख. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. कुल ग्रं.६६६५, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७३३) जला रक्षे थला रक्षे, (९९५) भगन पृष्टि कटी ग्रीवा, जैदे., (२९x१३.५, ११-१८४३२-४७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउ अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-५०८. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नत्वा अरिहंतादि; अंति: वीरनो तीर्थ जिनशासनो. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: एतले मन वचन काया; अंति: हे लगि एह चिरंजीवउ. ६९३९३. (+#) सामुद्रिकशास्त्र सह बालाबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २४, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१३, १३४३७-४२). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: ताम्रौ नव सुसंश्यते, अध्याय-३६, श्लोक-२७६, संपूर्ण. सामुद्रिकशास्त्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पुरुष स्त्रीना लक्षण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१२३ तक का बालावबोध लिखा है.) ६९३९४. (+) कर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२८, माघ कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ८८, कुल पे. ४, प्रले. पं. भीमराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५४१३.५, १५४४१-४९). १. पे. नाम. कर्मविपाक सह बालावबोध, पृ. १अ-३०अ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६०. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयोमार्गस्य वक्ता; अंति: मतिचंद्र०बालावबोधिनी. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह बालावबोध, पृ. ३०अ-४७आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह तं वीर, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, म. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: वीरं बोधनिधिं धीर; अंति: देवेंद्र० वांद्या छे. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व सह बालावबोध, पृ. ४७आ-५६अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: देविंद कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वशर्मप्रदं नत्वा; अंति: त्त्व बहुश्रुति जाणै. ४. पे. नाम. षडशीति सह बालावबोध, पृ. ५६अ-८८आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य शिरसा वीरं, (२)जिन कहियै रागद्वेष; अंति: (१)मतिचंद्र० कृतिहेतवे, (२)शास्त्र देखीने. ६९३९५. (4) आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८८८, आश्विन कृष्ण, ६, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४५, ले.स्थल. पालीनगर, प्रले.सा. अमरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. सं. १८८०, माघ शुक्लपक्ष, जया तिथि, गुरुवार को खरतरगच्छाचार्य श्रीजिनचंद्रसूरिजी के शिष्य के द्वारा लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है. पूर्व प्रतिलेखक ने कृति की प्रशस्ति गाथा भी लिखी है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१२४४) कट कूबडी कर वेगडी, जैदे., (२६४१३.५, १९४३७-४२). ___ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: प्रथम भव्य जीवनै; अंति: तिथि सफल फली मन आस. ६९३९६. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१४, ४४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२७ अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र-टिप्पण, पुहिं., गद्य, आदि: (१)पुनः कथंभूतः जिनपाद, (२)फेर कैसे हैं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१७ तक के टिप्पण लिखे हैं.) ६९३९९. (+) सुसढ कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१३, ५४३३-३८). सुसढ चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: जे श्रीपरमाणंदमय; अंति: करेह जयणविय धम्मकमा, गाथा-५१८. ६९४००. (+) गाथासहस्री व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८५, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२८x१३.५, ७४३५-४३). १.पे. नाम. गाथासहस्री, पृ. १अ-८४आ, संपूर्ण. मु. समयसुंदर, प्रा.,सं., पद्य, वि. १६८६, आदि: पडिरुवायचउद्दस; अंति: याख्याने वाच्यमानोसौ, श्लोक-८९२. २. पे. नाम. प्रवचनसारोद्धार गाथा-१०४० से १०५२, पृ. ८४आ-८५अ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ३. पे. नाम. साधुआचार गाथा संग्रह, पृ. ८५अ-८५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधुआचार गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदि: आलोअणा१ पडिक्कमणे२; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ६९४०१. (+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमंजरी टीका, पूर्ण, वि. १९५९, आश्विन कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. ६५-१(१)=६४, ले.स्थल. प्रहलादपुर, प्रले. पं. राजेंद्रसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., दे., (२८.५४१३, १५४४७-५३). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: कृतसपर्याः कृतधियः, श्लोक-३२, (पू.वि. "भणनाद्वचनातिशयः अमर्त्यपूज्यमित्यने" पाठ से है.) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वामंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: (-); अंति: सास्त्यत्र सम्यग्यतः, (पू.वि. श्लोक-१ की व्याख्या अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९४०२. (+#) विक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४३, चैत्र कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३२, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, दे., (२९x१४, १३४४२-४५). विक्रमनृप चरित्र, मु. राजमेरु, सं., प+ग., आदि: सुवर्ण गजराजगामिनं; अंति: पार्श्वदेव प्रसादतः. ६९४०३. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-५(१ से ५)=२६, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२९x१४, ७-१२४३३-३७).. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीर के निर्वाण प्रसंग अपूर्ण से सुमतिनाथ के मोक्ष वर्णन तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९४०४. (+#) संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८९४, कार्तिक कृष्ण, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १२८-१०६(१ से १०६)=२२, ले.स्थल. भालुसणा, प्रले. ग. राजविजय (गुरु पं. चतुरविजय); गुपि.पं. चतुरविजय (गुरु पंन्या. हेमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन तिथि- किसी अंक की जगह "नंदने" का उल्लेख मिलता है., संशोधित. कुल ग्रं. ६६६५, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (७३३) जलारक्षे थला रक्षे, (७९९) भग्नपृष्टी कटिग्रीवा, जैदे., (२९.५४१४, २-६४३६-३९). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नंदउ जा वीरजिण तत्थं, गाथा-५०८, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-२४ से है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थ जिनशासनो, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहवीरं जीवउ, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ६९४०५. प्रतिमाशतक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५५, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३७, प्रले. श्राव. हरनारायण लोढा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (३०x१४.५, १४४४६-५०). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रश्रेणि नता; अंति: व्यक्तयुक्तिः, श्लोक-१०४. प्रतिमाशतक-लघुवृत्ति, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १७९३, आदि: लक्ष्मीपुण्यगृहेणहिल; अंति: र्णेयं वृत्तिरुत्तमा. ६९४०६. (+#) श्रीपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १८९५, पौष कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३७-१(१)=३६, ले.स्थल. लसकर, प्रले. मु. उदयभान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१४, १५४३८-४१). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः (-); अंति: कृतंच जयकीर्त्तिना, प्रस्ताव-४, (पू.वि. मदनसुंदरी के रूप-गुण का वर्णन एवं नामकरण प्रसंग से है.) ६९४०७. (+) कर्मग्रंथ-१ से६, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रावण कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. ३८, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९.५४१४, ६x४५-४८). १.पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ सह टबार्थ, पृ. १आ-६आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीरजिन वांदीनइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ क्रमशः नहीं यत्र-तत्र लिखा गया है.) २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ६आ-९आ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिण; अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४. ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ९आ-११आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, गाथा-२५. ४. पे. नाम. षडशीतिकारयश्च चतुर्थः कर्मग्रंथ, पृ. ११आ-२१अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८८. ५. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रंथ, पृ. २१अ-३०आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं धुवबंधोदय; अंति: देविंदसूरि०आयसरणट्ठा, गाथा-१००. ६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रंथ, पृ. ३०आ-३८आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगूणा होइ नओईउ, गाथा-९३. ६९४०८. (+#) अष्टाह्निका महोत्सव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२, ले.स्थल. रामपुरा, अन्य. मु. सुखदेव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९४१५, ११४३२-३७). __पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदि: स्मृत्वा पार्श्व; अंति: विलसितानंदहेतुसकामन्, श्लोक-५९७. ६९४०९. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७-७(१,२९ से ३४)=३०, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्रले. पं. भाग्य (गुरु मु. कनक); गुपि. मु. कनक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२८x१३.५, ६-१३४३१-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संप्रतिराजा दृष्टांतकथा अपूर्ण से उत्सर्पिणी प्रथम आरावर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-कथा संग्रह*,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ६९४१०. (4) धर्मलाभ श्लोक सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२८x१५, ५४३०-३४). धर्मलाभ श्लोक, सं., पद्य, आदि: देवानामपि दुर्लभो; अंति: श्रीधर्मलाभोस्ति, श्लोक-१, संपूर्ण. धर्मलाभ श्लोक-टीका, सं., गद्य, आदि: अस्माकं अस्मत्संबंधि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के कुछ अंश नहीं हैं.) ६९४११. (+#) शृंगारवैराग्यतंरगिणीसह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११,प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१४.५,१०-१५४३६-४४). शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: धर्मारामदवाग्निधूम; अति: निशमेति नाश, श्लोक-४६. शृंगारवैराग्यतरंगिणी-सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., गद्य, वि. १७८०, आदि: श्रीपार्श्वनाथ; अंति: वृंद नतपादांबुजद्वये. ६९४१२. संघयणिसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २९-४(३,१४,२२ से २३)=२५, दे., (२६४१४, ५४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२५ अपूर्ण तक लिखा है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमि कहतां नमस्कार कर; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., टबार्थ यत्र-तत्र लिखा गया है.) ६९४१३. (+) दशवैकालिकसूत्र की नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १९४१, वैशाख कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. राजपुर, उप. आ. राजेंद्रसूरि '; अन्य. श्राव. लालचंद्र; श्राव. वेरचंद्र; श्रावि. लच्छी (पति श्राव. पूनमचंद्र); श्राव. पूनमचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (३०x१४, १६४५६). दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धिगइमुवगयाणं; अंति: चरण गुणट्ठितो साहू, गाथा-४४६. For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९४१४. (+) शृंगारवैराग्यतरंगीणी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२७.५४१४.५, १५४३६-४१). शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: धर्मारामदवाग्निधूम; अंति: निशमेति नाशं, __ श्लोक-४६. शृंगारवैराग्यतरंगिणी-सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., गद्य, वि. १७८०, आदि: श्रीपार्श्वनाथं; अंति: वृंद नतपादांबुजद्वये. ६९४१५. (+) धन्यकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७९१, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १७, ले.स्थल. साहिजहांनाबाद, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२९.५४१४, ११४४१). धन्यकुमार चरित्र, मु. ब्रह्मनेमिदत्त, सं., पद्य, आदि: श्रीमंतं जिनं नत्वा; अंति: गुरुजीयात्सती भूतले, अधिकार-४, श्लोक-३८४. ६९४१६. (+) लोकतत्त्व निर्णय, संपूर्ण, वि. १९५८, पौष शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९x१३.५, १५४४८). लोकतत्त्वनिर्णय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्यैकमनेक; अंति: मिदं हि किमिहेश्वरेण, श्लोक-१२६. ६९४१७. (+) विजययंत्र विधि, संपूर्ण, वि. १९६७, पौष शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. अजिमगंज, प्रले. ग. भावमुनि (खरतर गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८x१५, १७-२०४४१-४४). विजययंत्रआम्नायलेखन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: श्रीइंद्र महाराज; अंति: देवीरा नाम लिखनां. ६९४१८. (+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (३०x१४.५, ७X४५-४८). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंति: बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, संपूर्ण. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ , पुहिं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गेण दातव्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभ के पत्रों में टबार्थ लिखा है.) ६९४१९. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व ऋषभदेव स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८४६, पौष कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. २४-२(१ से २)=२२, कुल पे. ३, ले.स्थल. जालोरनगर, प्रले. पं. लब्धिसागर (गुरु पं. प्रधानसागर); गुपि. पं. प्रधानसागर (गुरु पं. आगमसागर); पं. आगमसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१३.५, ५४४७-५२). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, पृ. ३अ-१४आ, संपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: णमो अरिहंताणं णमो; अंति: १ ए गाथा काउसग्ग. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अढार दोष रहित अरिहंत; अंति: साधुए गाथा ध्यावै. २. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे. मू. पू., पृ. १४आ-१९अ, संपूर्ण. साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताण० करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (वि. पच्चक्खाण, पौषहविधि एवं संथाराविधि आदि सहित है.) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माहरो नमस्कार अरिहंत; अंति: करनइं प्रते वादु. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १९आ-२४आ, संपूर्ण.. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलु पणमिअ देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-२१. आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिवारे मोटो कार्य; अंति: उपाध्याय कहै इम भणै. ६९४२१. (#) पंचमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९१-८४(२ से ८५)-७, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ पंचमीतिथि स्तवन, मु. वर्धमान ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १४८४, आदि: सारद प्रणमुपाय सकल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से ५६ अपूर्ण तक एवं गाथा-६३ अपूर्ण से अंत तक नहीं है.) ६९४२२. (+) वसुधारा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १२४३१-३६). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: शृणोति भोगं च करोति. ६९४२३. (#) कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह टबार्थव बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५४३१-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-टीका *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध* मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९४२४. (+) वीरजिनदीवालीमहोत्छव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२,१०४३६-३९). महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रमणसंघतिलकोपम; अंति: श्रीसंघहर्ष वधामणा, ढाल-१०, गाथा-१२०. । ६९४२५. दशवकालिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९५१, कार्तिक कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ८, दे., (२६४१२, १०४३८). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरूपदपंकज नमी; अंति: गायो सफल जगीसइ रे, सज्झाय-११. ६९४२६. (+) चउसरणपईन्ना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, माघ शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १०, प्रले. कृष्ण सोढा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, ५४२७-३०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्यजोगस पापयुक्त; अंति: सुखनो वेणहार छे. ६९४२७. पंचप्रतिक्रमणसूत्र विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५१-४१(१ से ३५,३८ से ४३)=१०, जैदे., (२५४१२, ७४२३-२८). पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. श्रावक के पाक्षिक अतिचार अपूर्ण से अढार पापस्थानक अपूर्ण तक एवं पगामसज्झायसूत्र अपूर्ण से है.) । ६९४२८. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५४-४८(१ से ४६,४८ से ४९) ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ७-१३४३४-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., महावीर प्रभु को संयमकाल में प्राप्त गुणों के वर्णन प्रसंग से पर्याय वर्णन प्रसंग अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., सुदंष्टदेवकृत उपसर्ग प्रसंग से पर्याय वर्णन प्रसंग तक हैं व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच के पत्र हैं. ६९४२९. (+) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४५, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. हीरविजय गणि; अन्य. मु. विवेक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७.५४१३, १३४२७-३२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चड्या पड्यानो अंतर; अंति: जस० मति नवी काची रे, गाथा-४२. २. पे. नाम. यतिधर्म सज्झाय, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: भाव जती तेहने कहो; अंति: ते पामे वसात्, गाथा-३२. ३. पे. नाम. वेषविडंबक सज्झाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. साध्वाचारदोष सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती भगवती भारती; अंति: वेहेला सीवसुख देशे, गाथा-२५. For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९४३०. (+#) कल्पसूत्र सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १४९-६(१ से ४,७० से ७१)=१४३, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२९x१४, १०४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., राजा सिद्धार्थ के सभा प्रवेश प्रसंग तक है व स्वप्न पाठकों के सभा प्रवेश प्रसंग से पार्श्वनाथ चरित्र प्रारंभ तक है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. ६९४३१. (+) सप्तसंधान महाकाव्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, प्रले. बटुकप्रसाद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२९.५४१३, ९४३८-४१). सप्तसंधान महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १७६०, आदि: श्रीनाभिजन्मान्वयपद; अंति: प्रतिष्ठित, सर्ग-९, ग्रं. ४४२. ६९४३२. फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, दे., (२९x१२, ८४३२). फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १७८२, आदि: नत्वा पार्श्वजिनेशाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चतुर्थ भंग तक लिखा है., वि. अंतिम पत्र पर संपदविजयजी महाराज ने __ अपने गुरु हसविजयजी की वंदना की है. अंत में "संवत- १४२२ श्रावन मासे" का उल्लेख मिलता है. जो अस्पष्ट है.) ६९४३३. (+) वास्तुराज व वास्तुविद्या, संपूर्ण, वि. १९७४, श्रावण शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १६, कुल पे. २, ले.स्थल. बुरहानपुर, प्रले. मु. जया (गुरु मु. हर्षमुनि); गुपि.मु. हर्षमुनि (गुरु आ. मोहनमुनि); आ. मोहनमुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२९x१३.५, १६-१८४५८-६८). १. पे. नाम. वास्तुराज, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. श्राव. राजसिंह सूत्रधार, सं., गद्य, आदि: ध्याते यस्मिन्नमोहो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्याय-१३ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. वास्तुविद्या, पृ. ११आ-१६आ, संपूर्ण. विश्वकर्मा, सं., गद्य, आदि: मेरुणां च तथा शृंग; अंति: अनमच्छंका समोद्भवं. ६९४३४. (#) प्रतिष्टाकल्प विधि, संपूर्ण, वि. १९५६, पौष शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३९, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. श्राव. हरगोविंद मोती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विक्रम-१८१८ फाल्गुन कृष्ण पक्ष तिथि-११ रविवार को लिखी गई ग्रन्थ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२) मंगलं लेखकानांच, दे., (२९.५४१४, १४४३०-३५). जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर; अंति: श्रृंखलामुद्रा. ६९४३५. शांतिक विधि, संपूर्ण, वि. १९७३, भाद्रपद कृष्ण, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. बालापुर, प्रले.पं. जयमुनि (गुरु मु. मोहनमुनिशिष्य, चंद्रकुलीन), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२९x१३.५, १५४६०-६७). शांतिक विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तत्रादौ गुरुह्य; अंति: वासोब्रूते न शंसयः. ६९४३६. (+) सयंमश्रेणिनी सज्झाय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९८, माघ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८.५४१५, ३४३३-३६). संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना; अंति: ध्यानमा ध्यायोरे, ढाल-२, गाथा-२१. संयमश्रेणिविचार स्तवन-टबार्थ, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवंदनतं नत्वा; अंति: एराई निश्रेय. ६९४३७. (+) दंडक प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४१५, १-१५४२४-३२). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९४३८. कल्पसूत्र व्याख्यान-७, संपूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २२, दे., (२८.५४१३.५, १३४४१). कल्पसूत्र-अनुवाद, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९४३९. कल्पसूत्र व्याख्यान-९, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, दे., (२८.५४१३.५, १३४३२-३६). १.पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान-७, पृ. १आ-१३आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: है सो आराधवा योग्य, प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १३आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह *, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: किं मूर्ख प्रसंगे. ६९४४०. (+#) आगमगतविविध प्रश्नोत्तरादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.७७२, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१४, १५४४६-४९). आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ३७ देवतानां शरीर०; अंति: सिद्धांतोहं जाणिवा. ६९४४१. (+) चिदानंद बहोत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२९x१४, १३४३४-४२). चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: पिया पर घर मति जावो; अंति: (-), (पू.वि. पद-२५ तक है.) ६९४४२. (#) सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१४, ११४३०-४७). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-१, गाथा-८ अपूर्ण से __ वर्ग-२ गाथा- ४ अपूर्ण तक है.) ६९४४३. (2) रत्नपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१(३)=१२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३.५, १२-१६४३०-३३). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: रीषभादिक जिन नमु; अंति: (-), (पू.वि. खंड-१, ढाल-२ गाथा-१० अपूर्ण से ढाल-३, गाथा-११ अपूर्ण तक एवं खंड-२, ढाल-४, गाथा-१० अपूर्ण तक नहीं है.) ६९४४४. आगमिकविविधविषयविचार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२९.५४१४.५, १३४३९). आगमिकविविधविषयविचार टिप्पण, प्रा.,सं., प+ग., आदि: सिरिरिसहाइ जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी काल के वृद्धि-हानि प्रसंग वर्णन तक है.) ६९४४५. पार्श्वनाथ व्रतकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२९x१४.५, १३४२९-३२). __ आदित्यवार कथा, मा.गु., पद्य, आदि: रिसहनाथ प्रणमो जिनंद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३२ अपूर्ण तक है.) ६९४४६. (+#) कर्मग्रंथ- छठानो विचार, संपूर्ण, वि. १९२९, मध्यम, पृ. २१,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९x१४.५, १५-२३४२१-४१). सप्ततिका कर्मग्रंथ-विचार, मा.गु., गद्य, आदि: बंधोदय सत्ता भांगा; अंति: समकाले निवर्ते, (वि. कोष्ठक में विवरण भी दिये गए हैं.) ६९४४७. (+) सप्तस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२९x१५.५, ७X१९-२३). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भयहर स्तोत्र- गाथा-७ तक लिखा है.) ६९४४८. (+#) षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१(१)=१३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९.५४१४.५, ६x२५-२९). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं.. सामायिक लेने की विधि अपूर्ण से बारहवें व्रत की विधि अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. लोगस्स सूत्र तक टबार्थ लिखा है.) ६९४४९. (+#) प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं. ८२०, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१५,१५४२६). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: शुभ मुहूर्त जोइने; अंति: गच्छ२ स्वाहा. ६९४५०. संस्तारकप्रकीर्ण सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९३५, आषाढ़ कृष्ण, १०, मंगलवार, मध्यम, पृ. २९, ले.स्थल. मुंबई, प्रले. नथुराम ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., दे., (२८.५४१५, १-१४४३७-४४). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: सुहसंकमणं मम दिंतु, गाथा-१२१. संस्तारक प्रकीर्णक-विवरण, आ. भुवनतुंगसूरि; आ. रक्षितसूरि आर्य, सं., गद्य, आदि: अहँ नमः शसितति शेष; अंति: विबुधैर्विशेषेण. ६९४५१. (+#) प्रतिक्रमण सामाचारी-विधिपक्षगच्छ, संपूर्ण, वि. १८९८, आश्विन अधिकमास कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. पालीनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८.५४१३, १३४२६). प्रतिक्रमण सामाचारी-विधिपक्षगच्छीय, प्रा.,सं., गद्य, आदि: तत्रादावनगारस्य दैवस; अंति: उत्तरदिसे० रीते करवा. ६९४५२. स्नात्रपूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. २, जैदे., (२८x१३.५, ११४३५-३८). १. पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (१)नमोअरिहताणं० नमोर्ह, (२)चोउतिसय अतिसय जुओ वच; अंति: देवचद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. २. पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. ६अ-८आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदिः (१)स्वस्ति श्रीसुख, (२)गंगा मागध क्षीरनिधि; अंति: दर्शनसल्लभंते, ढाल-८, श्लोक-८. ६९४५४. () बृहत्क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८५०, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. पालनपुरनगर, प्रले. मु. माणिकचंद ऋषि; पठ. मु. प्रेमचंद ऋषि (गुरु मु. रामजी ऋषि); गुपि. मु. रामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१३.५, १०४३०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीर जयसेहरपय पईट्ठि; अंति: कुसलरंगमयं पसिद्धं, अधिकार-६, गाथा-२६४, (वि. बीच-बीच में प्रक्षेप गाथाएँ लिखी है जिसका गाथांक अलग से लिखा है.) ६९४५५. (+) द्रव्यसप्ततिकासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२९.५४१५, ४-८x२०-२४). द्रव्यसप्ततिका, वा. लावण्यविजय, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: मंगलमालं कुणउ णिच्चं, द्वार-७, गाथा-७१. द्रव्यसप्ततिका-छाया, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: गलमालां करोतु नित्यं. ६९४५६. (+) तीस द्वार, अपूर्ण, वि. १९४६, श्रावण शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २६-२(२,२३)=२४, ले.स्थल. विरमगाम, प्रले. श्राव. माणेकचंद खेतसी झवेरी; पठ. श्रावि. मंछीबाई घेला भूदर गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादे., संशोधित., दे., (२९.५४१५, १२४२०-२९). २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनंतगुणा अधिक, (पू.वि. बीच के पाठांश नहीं हैं.) ६९४५७. (+#) नवाणुंप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५.प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे., (२९x१६, १४४२६-३०). ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८८४, आदि: श्रीशंखेश्वर पासजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-८, दूहा १ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९४५८. जीव ५६३ भेद यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२+३(१ से ३)=१५, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२७.५४१५, ८x१८-२१). ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ६९४५९. (+#) सर्वप्रतिष्टा विधि, संपूर्ण, वि. १८९७, माघ शुक्ल, ७, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २०, ले.स्थल. पाली, प्रले. पं. ज्ञानधर्ममुनि; पठ.मु.रूपराज (गुरु मु. हेमसागर, संवेगी); गुपि. मु. हेमसागर (संवेगी); अन्य. मु. चेनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२९x१४.५, १६४३८-४३). जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, उपा. देवीचंद, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)प्रणम्य स्वस्तिऋद्धि, (२)तिहां प्रथम भव्य शुभ; अंति: धवल मंगल गावै. ६९४६०. (+) लग्नशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, प्रले. खुसालराम पटेल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२८.५४१३.५, १२४३७-४०). लग्नशुद्धि, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अवितहसव्वाएसं नमिउं; अंति: सोहिंतु तं विउसा, गाथा-१३३. ६९४६१. (+) आध्यात्मबिंदु सह व्याख्या-प्रथमद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१५, ५४२४-२८). अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: ब्रूमः किमध्यात्ममहत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२६ तक लिखा है.) अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदि: (१)अनंतविज्ञानविभूति, (२)वयमध्यात्ममहत्व; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९४६२. (+#) चिंतामणिकल्प,पार्श्वनाथ स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९९५, कार्तिक कृष्ण, ३, सोमवार, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ८, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले. मोहनलाल श्रीमालि ओझा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७७१३.५, १६४५१-५४). १. पे. नाम. चिंतामणिकल्प, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. धर्मघोषसूरि, सं., पद्य, आदि: किंचिद् गुरूणां वदन; अंति: चिंतामणी जगत्प्रभोः, श्लोक-४५. २. पे. नाम. चिंतामणि संप्रदाय, पृ. २अ-४अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: लेखिन्याः कथिताविधिः. ३. पे. नाम. भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाय, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र-भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: जयसाली गंभीरश्च; अंति: च आदेशः प्राप्यते. ४. पे. नाम. कल्पद्रुम मंत्राम्नाय, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: कल्पद्रुम मंत्ररुचेव; अंति: धनधान्यादि लाभः. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनतीर्थ, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. आ. तरुणप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीस्तंभनस्तंभन; अंति: शरणं मम यच्छतु, श्लोक-११. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. रत्नकीर्ति, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पासनाहं विसहर; अंति: संथवणं पासनाहस्स, गाथा-७. ७. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण. मु. कमलप्रभ, प्रा., पद्य, आदि: जस्स फणिंद फणो होई; अंति: कमलप्पह गुरु पसायाओ, गाथा-७. ८. पे. नाम. चिंतामणिबृहत्कल्प विशेषाम्नाय, पृ. ६अ-८अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम श्रीपार्श्वनाथ; अंति: सिद्ध मनोवंछित थाय. ६९४६३. पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, दे., (२६.५४१४.५, ८४३२). पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: प्रीतिप्रपालनै किम्, शतक-१०, श्लोक-११६. ६९४६४. (#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१७, फाल्गुन कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १६, प्रले. मु. धनसुख; पठ. पं. राजरुप, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२६.५४१४, ३४२६). For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमजिन कन्नमस्कार; अंति: मान० एहवो प्रगट कीधो. ६९४६६. परब्रह्मोत्थानस्थल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, दे., (२८x१३, १४४३९-४३). परब्रह्मोत्थापनस्थल, आ. भुवनसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भुवनसुंदर० तत्पदोः, (पू.वि. "अथानुमानागम्यः प्रपंच" अनुमान विवरण अपूर्ण से है.) ६९४६७. (+) भरटकद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९३६, आश्विन कृष्ण, २, मध्यम, पृ. ११, ले.स्थल. लखनउ, अन्य. मु. गुणचंद्र ऋषि (गुरु मु. गोकलचंद ऋषि, विजयगच्छ); गुपि.मु. गोकलचंद ऋषि (विजयगच्छ); प्रले. कालीचरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. "|| रूपीयो लिखाई पेटे दीना" ऐसा उल्लेख है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२७४१४, १-३४४३). भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: समे कार्ये हि सर्व; अंति: वृष्टौ जटीपुए. ६९४६८. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-१(१)=८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१३.५, ४४२७-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-३ अपूर्ण से हैं.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४१ तकटबार्थ लिखा है.) ६९४६९. (#) चैत्यवंदनभाष्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६+१(२)=१७, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ले.स्थल. गढभैंसरोडदुर्ग, प्रले. मु. केवलसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्र.ले. श्लोक अपूर्ण तक हैं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१४, ५४४०-५३). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, संपूर्ण. भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वंदित्तु क० वांदीने; अंति: निराबाध एहवा सुख, संपूर्ण. ६९४७०. नवत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९६८, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ६, दे., (२८x१५, १०४३९-४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: दुचक्की केसचक्कीय, गाथा-९९. ६९४७१. (+#) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५, प्र.वि. उत्तराध्ययन सूत्र अधययन-१८ की एक गाथा को मंत्र के रूप में दर्शाया गया है व सामान्य मंत्र दिये गये हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३, ३४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: अणंतभागो य सिद्धिगओ, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवा जो मांही चेतना; अंति: भाग सिद्ध गयौ छे. ६९४७२. (+) तत्त्वार्थसारदीपक-ध्यानस्वरूप- अध्याय ५, संपूर्ण, वि. १९५६, वैशाख शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. पाली, प्रले. मु. लिखमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७७१३.५, १३४३४). तत्त्वार्थसार, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९४७३. (4) प्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ- लोंकागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १०, प्रले. श्राव. नानचंद उकरडा दोसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१४.५, १७४३६-४०). आवश्यकसूत्र-लोंकागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. आवश्यकसूत्र-लोंकागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह काबालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० अरिहंतने ते; ___ अंति: गुरु समीपे अथवा पासे. ६९४७४. प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, कुल पे. ६, जैदे., (२६४१३.५, १५४२६-३०). १. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-११अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: जैनंजयति शासनं. २. पे. नाम. बीजतीथि स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरोमनोरथ माय, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याण जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. ११आ-१२अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. ५. पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम, श्लोक-४. ६. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: प्यारो लागे आछो लागे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ६९४७५. (4) श्रमणसूत्र व आहारदोष सह बालावबोध- लोंकागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९०९, पौष शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १४, कुल पे. २, ले.स्थल. हालारदेश(नवानगर, प्रले. श्राव. नानचंद उकरडा दोसी; राज्यकालरा. जामविभाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ-त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१४.५, १७X४२-४५). १.पे. नाम. पगामसज्झायसूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-१२अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: निवर्तवा वांछुउ; अंति: तिर्थंकर चौवीसने. २.पे. नाम. आहारना ९६ दोष सह बालावबोध, पृ. १२अ-१४आ, संपूर्ण, पे.वि. इस कृति का कुछ अंश पत्रांक १अपर लिखा है. आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदि: आहाकम्मे१ उद्देसिकर; अंति: स्साए९५ पारियासियए९६. आहार के ९६ दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवे ९६; अंति: (-). ६९४७६. (+#) स्तोत्र व जिनसहस्त्र नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८९-१८९०, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ८, कुल पे. ५, ले.स्थल. वडलु, प्रले. मु. कस्तूरहंस (गुरु ग. प्रधानहंस); गुपि.ग.प्रधानहंस (गुरु ग. युक्तिहंस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१४, १७४३१). १. पे. नाम. लघु स्तवराज, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८८९, चैत्र शुक्ल, ११. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐंद्रस्यैव शरासनस्य; अंति: भवंति चिरकालम्, श्लोक-२४. २.पे. नाम. चतुषष्टियोगीनी स्तव, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ दिव्ययोगी महायोगी; अंति: सर्वग्रह निवारणे, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. जिनअपराधक्षमा स्तोत्र, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. जिनअपराधक्षमापन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐकार आदं अविगत अतीतं; अंति: धारितं ध्यान चिंताम, श्लोक-१६. ४. पे. नाम. शीतलाष्टकदेवी स्तोत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. शीतलाष्टक, सं., पद्य, आदि: ॐ अस्य श्रीशीतला; अंति: तलाष्टक दैवी स्तोत्र, श्लोक-१४. ५.पे. नाम. जिनसहस्रनाम, पृ. ४आ-८आ, संपूर्ण. अर्हनामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी-१३वी, आदि: (१)एषःप्रत्यक्षोपदिष्टः, (२)अर्हन्नामानि कर्णा; अंति: (१)पठनाजपात्, (२)एकादशशमशतस्यफलप्रकाश, प्रकाश-११, श्लोक-११८. For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९४७७. (+) सिंदूरप्रकर सह बालावबोध+कथा, अपूर्ण, वि. १८६४, वैशाख शुक्ल, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३१, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. प्र.ले. वर्ष प्रदेशीराजा की कथा के अंत मे लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१४, १-२१४३७-४६). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदुर प्रकर स्तपः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१५ अपूर्ण तक सिंदूरप्रकर-बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बालावबोध श्लोक-४ से लिखा है व श्लोक-१५ तक है.) ६९४७८. (+-) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ४)=६, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१४, ९४२९-३४). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन-लघु, पृ. ५आ-७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., पे.वि. पेज ५अकोरा है. अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवल्लह० विथुणंतह, गाथा-१७, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सर्वाधिष्टात् स्मरण, पृ. ७अ-९अ, संपूर्ण. गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंति: निट्ठियट्ठो सुही होइ, गाथा-२६. ३. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १०अ, संपूर्ण, पे.वि. पेज १०आ पर परचुरण कृति लिखी गई है. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ____ अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है., वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ६९४७९. (+2) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १२, ले.स्थल. सिहोरनगर, लिख. पं. पद्मरुचि गणि (गुरु पं. कुंअररुचि गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (५६०) जलात् क्षेत् थला क्षे, (८३९) जादृसं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२७४१३, १४४३३). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सूरिःश्रीमानदेवश्च, (वि. १० पच्चक्खाण, संथारापोरसी सहित तथा अंत में चउक्कसायसूत्र बाद का लिखा हुआ है.) ६९४८०. (+) धूर्ताख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१४.५, १३४३२-३६). धूर्ताख्यान-पद्यानुवाद, आ. संघतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: समस्ति भारते वर्षे; अंति: पुनस्तुषवसाकुलम्, श्लोक-३९६. ६९४८१. (+#) नवस्मरणादि स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रावण शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. १५, कुल पे. ३, ले.स्थल. मुंबइ, पठ. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पठनार्थे विद्वान बाद का लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१३, १२४३५-३८). १. पे. नाम. नवस्मरण स्तोत्र, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: मोक्ष प्रतिपद्यते, स्मरण-७, (वि. संतिकरं व बडीशांति नहीं लिखा है.) २.पे. नाम. लघु शांति, पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: स्तूयमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ३. पे. नाम. बृहत् शांति, पृ. १२आ-१५अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ६९४८२. (+#) श्रावक आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१३.५, १२४२३). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रभु; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५. For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९४८३. (+) ज्ञाताधर्मसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-द्विपाठ., जैदे., (२७७१३.५, १७४४५-४९). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ श्रेणिक राजा सभा प्रवेश प्रसंग अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर; अंति: (-). ६९४८४. कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६२, दे., (२७.५४१३.५, १७७३४-४४). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वाचना-८ के प्रारंभिक अंश तक लिखा है.) ६९४८५. (+#) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, संपूर्ण, वि. १७८०, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१४, १२४३५). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., पद्य, आदि: नमः समयसाराय; अंति: वामृतचंद्रसूरेः, अधिकार-१२, श्लोक-२७८. ६९४८६. (+) योगशास्त्र, संपूर्ण, वि. १९१६, भाद्रपद कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५३, ले.स्थल. इंदोर, प्रले. सवाईराम मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१३.५,११४३३). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: श्रीहेमचंद्रेण सा, प्रकाश-१२. ६९४८७. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, दे., (२६४१४, १३४३३-३६). देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: सुहायसाअम्हसयापसत्था. ६९४८८. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, मध्यम, पृ. २४, ले.स्थल. नवानगर बंदर, प्रले. श्राव. नानचंद उकरडा दोसी; राज्यकालरा. रणमल्ल जाम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. १७९६ की प्रति उपर से प्रतिलिपि की गई है., त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२६४१४, १४४२७-३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५३, (वि. १९०८, आषाढ़ शुक्ल, २) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवा कहेता जीवतत्त्व; अंति: घणा जीव मोक्षे गया, (वि. १९०८, ___ कार्तिक कृष्ण, ८, शनिवार) ६९४८९. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, दे., (२६.५४१३.५, १६४४६-५८). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रस्ताव-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६९४९०. (+#) होलीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८१, माघ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ.८, ले.स्थल. पालनपूर, प्रले. ग. हेमसोम (गुरु मु. अभयसोम); गुपि.मु. अभयसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसंभव प्रसादात्, श्रीपल्लवीहा प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१४, ४४३४-४०). होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदि: ज्ञानं विकाशय विधेहि; अंति: कात्यादिविजयोलिखत्, श्लोक-३४. होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९२, आदि: हे भविन हे प्राणिन; अंति: कांत० नामे लिखतो हवो. ६९४९१. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१३.५, ४४२९-३५). For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६१ अपूर्ण तक है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १७३२, आदि: सावद्य योगनी विरति; अंति: (-). ६९४९२. (4) प्रतिष्ठाशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३.५, ११-१६४२७-४०). प्रतिष्ठाशास्त्र, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रणम्य भक्त्या ऋषभं; अति: (-). ६९४९३. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व अतीतचौवीसीजिन नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१४, १२४३०). १. पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण. पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: जैनं जयति शासनम्. २. पे. नाम. अतीतचौवीसीजिन नाम, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: केवलन्यांनी १; अंति: (-), (पू.वि. २०वे तीर्थंकर तक है.) ६९४९४. (+) स्तोत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०-११(१ से ११)=९, कुल पे. ७, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३, ११४२९-३५). १.पे. नाम. सप्तस्मरण, पृ. १२अ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. मुनीलाल (गुरु मु. गणेशदास, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: भवे भवे पास जिणचंद, स्मरण-७, (पू.वि. स्मरण-६ गाथा-९ तक नहीं है.) २. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र, पृ. १२आ-१३आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशात; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ३. पे. नाम. वृद्ध शांति, पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा. ४. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १५आ-१६आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अह; अंति: श्रीकमल प्रभाख्यः, श्लोक-२४. ५. पे. नाम. नवग्रह शांतिकारक जिन स्तोत्र, पृ. १६आ-१७अ, संपूर्ण. ___ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिर्विनिर्मितः, श्लोक-१२. ६.पे. नाम. सप्तत्तरसत्तरसत्तजिन स्तोत्र, पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ७. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १८अ-२०आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण तक है.) ६९४९५. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थव व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९४१, फाल्गुन शुक्ल, १३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९८, प्रले. श्राव. हीरालाल गंभीरचंद सोनी; श्राव. पन्नालाल गंभीरचंद सोनी; श्राव. भगवान गंभीरचंद सोनी; पठ.मु. मोतीविजय (गुरु मु. -जसविजय); गुपि. मु. -जसविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४१५, ५-११४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: पिण रागद्वेष न राखइ. कल्पसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: नमो क० माहरो नमस्कार; अंति: आगै एहवौ कहता हुआ. ६९४९६. (+-2) सप्ततिकानामा षष्ठकर्मग्रंथ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २६,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२९x१५.५, ११४३९-४५). For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १०१ सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: (-), (अपूर्ण, __ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३६ तक लिखा है.) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.ग., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१ से १० तक का बालावबोध नहीं लिखा है.) ६९४९७. (+) नेमिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१५, ५४२३-२६). नेमिजिन स्तुति, रा. भरतचक्रवर्ती, सं., पद्य, आदि: श्रीशैवेय जयामेयगुण; अंति: देव सः तवस्तववंदनात्, श्लोक-३२. ६९४९८. नेमिनाथ स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदे., (२८x१५, ५४२४-२८). नेमिजिन स्तोत्र, आ. सुदर्शनसूरि, सं., पद्य, आदि: शुभात्मनां लोचन गोचर; अंति: सुदर्शन० गताद्यभूतिः, श्लोक-२२. ६९४९९. विमलनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८, जैदे., (२८x१५, ५४२२). विमलजिन स्तोत्र, म. विमल, सं., पद्य, आदि: अथान्यदा मया युक्तो; अंति: भक्ति निर्झरः, श्लोक-५०. ६९५००. (+) पार्श्वनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-१(१)-५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१५, ५४२६-२९). पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मघोष, सं., पद्य, आदि: कस्तूरीतिलकं भुवः; अंति: त्रिलोकी विभो, श्लोक-१६, (संपूर्ण, वि. प्रथम श्लोक व द्वितीय श्लोक का कुछ अंश बाद में किसी अन्य प्रतिलेखक ने लिखा है.) ६९५०१. समोवसरण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, फाल्गुन कृष्ण, १, शनिवार, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. श्राव. जेशींघ साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२९x१५, ४४२७-३०). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्तवुना करुq केवल; अंति: मोक्षपद प्रते करो. ६९५०२. अध्यात्मगीता सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९४५, ज्येष्ठ शुक्ल, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १४-३(२,४,१०)=११, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. श्राव. पोपट खीमचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२९x१५.५, ३४३५-३८). अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रणमीइ विश्वहित जैन; अंति: रमणी मुणी सुप्रतीता, गाथा-४९, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक, गाथा-१० अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक एवं गाथा-३२ अपूर्ण से ३६ अपूर्ण तक नहीं है.) अध्यात्मगीता-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: विश्व क० जे जगत तेने; अंति: कीधी स्व परने अर्थे. ६९५०३. (+) जीवविचार सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३१, फाल्गुन कृष्ण, मध्यम, पृ. ८, प्रले. जेसींघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि. १७५० में लिखित ग्रंथ की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (३०x१४.५, ६x२१-२६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: शांतिसू०सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदिप; अंति: तरूपीओ समूद्र तेहथी. ६९५०४. (+#) मुहपत्तीचर्चा-निर्णयसूत्रपाठ व अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३०x१५, ५-१२४३९-५०). जिनमत मुनिलिंगवेष प्रबोधक सूत्र, मु. बुद्धिविजय, पुहि.,प्रा., पद्य, आदि: श्रीउत्तराध्ययनजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-३३ तक लिखा है.) ६९५०५. कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४७-१७(१.५ से ११,१३,२१,२७ से २८,३० से ३२,३४,४६)+१(१८)=३१, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१५, ८x२५). कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ६९५०७. (+#) गांगेयपृष्टभंगकावचूरि व पताकाज्ञानम्, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१५, १०-१६४२७-५२). १. पे. नाम. गांगेयभंग प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वद्धमाणं; अंति: सरणपरिसिंहियमटुं, गाथा-२४. गांगेयभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदित्वा वर्धमानं; अंति: बाहुल्यान्नलिखिताः. २. पे. नाम. पताकाज्ञानम्, पृ. ६अ-१३आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक) उद्देश ३३गत गांगेयभांगा का-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: गांगीया अणगारना भाग; अंति: ते नव संयोगी जाणवा, (पू.वि. यंत्रादि अपूर्ण, वि. यंत्र सहित) ६९५०८. (4) पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९५२, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. ३१, ले.स्थल. वीरमगाम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१४.५, ५४३३-३६). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: तेसिं सिवसायरेमभत्ती, ग्रं. ३६०. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकर प्रते वांदउ; अंति: देवी ते मंगल करो, ग्रं. १३०७, (वि. अंतिम पृष्ठ पर यंत्रादि दिये गए हैं.) ६९५०९. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. वीरमगाम, प्रले. मुलजी रामनारायण जानी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२७४१५, ४४२९-३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाउ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिण भुवन नइ विषइ, अंति: सिद्धांतसमुद्र थको. ६९५१०. प्रतिष्ठा कल्प, संपूर्ण, वि. १९९५, वैशाख कृष्ण, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २३, ले.स्थल. वीजापुर, दे., (२६.५४१५, १४४३२). जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम एक सौने आठ १०८; अंति: हस्तलिका कार्या. ६९५१२. (+#) बृहत्संग्रहणी वदंडकसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १७७६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ५७, कुल पे. २, प्रले. मु. राजसागर (गुरु उपा. भुवनसोम, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. भुवनसोम (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१५, ५४३०-३५). १. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १आ-५२आ, संपूर्ण, वि. १७७६, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, गुरुवार, ले.स्थल. भुजपत्तन. आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१९. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: छै तां सीम नंदउ. २. पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. ५३अ-५७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ ऋषभ; अंति: (-). ६९५१३. (+#) श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१४, १२४३७-४०). श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति,सं., गद्य, वि. १८६८, आदि: प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंति: श्रीसद्गुरु प्रसादतः, प्रस्ताव-४. ६९५१४. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८८१, फाल्गुन शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. ५८-१(१)=५७, पठ. मु. जयचंद्र (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२८x१३, ११४३२-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, व्याख्यान-९, ग्रं. १२१६, (पू.वि. भगवान महावीर का देवानंदा के गर्भ में अवतरण प्रसंग अपूर्ण से है.) ६९५१५. (+) भूवनभानुकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रावण शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ५३, प्रले.पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१४, १६४३७-४०). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः (१)इयजंज संसारे रमणिज्, (२)अस्तीह जंबूद्वीपे; अंति: नरेंद्रर्षिः केवली, ग्रं. १८००. For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १०३ ६९५१६. (+#) सन्मतिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. ५५+१(३४)=५६, ले.स्थल. मुमोइ(मुंबई), प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, ११-१९४२७-३२). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंति: संविग्गसुहाहिगम्मस्स, कांड-३, गाथा-१६७. सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: शास्यते जीवादयः; अंति: सन्मतेर्विवृतिः कृता, कांड-३. ६९५१७. (+#) बारसासूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४९-२(१ से २)=४७, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१४, १४४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ऋषभदत्त ब्राह्मण द्वारा स्वप्नफल कथन अपूर्ण से क्षमापना वर्णन सूत्र अपूर्ण तक है.) ६९५१८.(+) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८+२(१०,२६)=३०, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४१४, ५४१२-१६). कल्पसूत्र-कल्पद्रमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (प.वि. वीरनिर्वाण प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६९५१९. (+) सूयगडांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९०३, पौष शुक्ल, ४, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६१, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. २२०, दे., (२७४१४, १३४३६). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज; अंति: विहरति त्ति बेमि, अध्याय-२३, ग्रं. २१००. ६९५२०. (+) कल्पसूत्रव्याख्यान १-६ सह कल्पलता टीका, संपूर्ण, वि. १९२९, पौष शुक्ल, २, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ११६, ले.स्थल. मक्सुदाबाद अजीमगंज, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-द्विपाठ-संशोधित., दे., (२६४१३.५, ३-१८x२२-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), ग्रं. १२१६, प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति: (-), ग्रं. ७७००, प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९५२१. (+#) नवस्मरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०८, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ३६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१४, ४-५४२९-३३). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं हवइ; अंति: जैन जयति शासनं, (संपूर्ण, वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा है.) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमो बारगुणे करी सहित; अंति: थाउस देव० कला होय, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तिजयपहुत्त का टबार्थ नहीं लिखा गया हैं.) ६९५२२. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र-प्रथम श्रुतस्कंध सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रावण शुक्ल, १४, बुधवार, मध्यम, पृ. ५८, ले.स्थल. घाणोराव, प्रले.पं. रंगसागर (गुरु पं.सरूपसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२३२) मंगलं लेखकानां च, (१२३७) जलात् रक्षैस्तैलाद्रः, (१२३८) जिहां ध्रुसायरचंद रवि, जैदे., (२५४१४, ६४३७-४०). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झेज्झ; अंति: भयं तारोत्ति बेमि, अध्ययन-१६. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छकाय, स्वरूप जाणी; अंति: राखणहार छइ तेणे कहिउ. For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (#) ६९५२३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९ वी, मध्यम, पृ. ८८-७० (१ से ६०, ६५ से ६६, ६८,८१ से ८७) = १८, पू. वि. बीच-बीच हैं., प्र.वि. हुंडीः कासूा, कासूत्रा, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१४, ८-१३X१९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. महावीर जिन जन्मोत्सव वर्णन से स्थविरावली पूर्ण है बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) ६९५२४. (५) उपदेशमाला प्रकरण सह हेयोपादेय वृत्ति, संपूर्ण वि. १८८७, फाल्गुन कृष्ण, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०३, ले.स्थल. लखमनपुर, प्रले. पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१३.५, १५X३८-४२). उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो, अंति: दायव्वा बहुसुयाणं च गाथा-५३८. उपदेशमाला - हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: हेयोपादेयार्थोपदेश; अंति: साधनपरः खलु जीवलोकः, ग्रं. ९५००. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९५२५. (*) दिवाली कल्प, संपूर्ण, वि. १८८५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. १२, प्रले. पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि विजयगच्छ); गुपि आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ); राज्यकाल आ जिनचंद्रसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५५१३.५, १४४३३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: याण वल्लि फलदा भवंतु, श्लोक-३१३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण से है., वि. जिनप्रभसूरि रचित दीपावलीपर्व कल्प के पाठांश भी मिलते है.) ६९५२६. (+) योग्यचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१३.५, ५x२२-२९). योग्यचिंतामणि, मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शारदादेवी अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं, अधिकार- २, श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) योग्यचिंतामणि- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य० नमस्कार, अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ तक बार्थ लिखा है.) ६९५२७. नंदीसूत्र, संपूर्ण वि. १९१० भाद्रपद शुक्ल, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २९ प्रले. कालीचरण, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७४१४, १०x३५-४०). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि जयह जगजीवजोणी वियाणओ, अंति से तं परूक्षनाणं, सूत्र -५७, गाथा- ७००. ६९५२८ (+) वैराग्यशतक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, २ श्रावण शुक्ल, ३ शनिवार, मध्यम, पृ. ८, ले. स्थल. सोहीनगर, प्र. सा. सुंदरजी आर्या (गुरु सा. नंदोजी महासती) गुपि. सा. नंदोजी महासती (गुरु सा. लिछमाजी महासती); सा. लिछमाजी महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की फैल गयी है, जै. (२६.५x१३, ७४३९-४५) "" वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जीवो सासयं ठाणं, गाथा-१०४. वैराग्यशतक - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार असार अप्रधान, अंति: स्थानक कुण मोक्षरुप. ६९५२९. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५ - २ (७ से ८) = २३, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., ( २६.५X१३, ४X३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किहं, अंति: (-). (पू. वि. अध्ययन- ३ , गाथा-१२ अपूर्ण से अध्ययन-४ गाथा- २ अपूर्ण तक एवं अध्ययन-५ गाथा-१ के पश्चात् नहीं है.) दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ *, मा.गु, गद्य, आदि: ध० श्रीजिनधर्म, अंति: (-). ६९५३१. उपसर्गहरस्तोत्र की टीका, संपूर्ण वि. १९७० श्रावण कृष्ण, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १२, ले. स्थल, मुंबई, प्रले. श्राव. हरगोवन मोतीराम भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६.५X१४.५, ११X३०-३३). For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: धरणेंद्रं नमस्कृत्य अंतिः मिथ्यादुष्कृतम्, लिय. श्रावि. गुलाबबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६४१५, १२४३२). . १. पे. नाम. नवस्मरण, पृ. १अ १३आ, संपूर्ण. ६९५३२. नवस्मरण, सरस्वतीबीजमंत्र व औपदेशिक पद संपूर्ण वि. १९३५, वैशाख शुक्ल, १. शुक्रवार, मध्यम, पृ. १३, कुल पे. ३ ले. स्थल. सुरत, प्रले. पं. हिम्मतविजय पं. हर्षविजय पठ श्रावि. रत्नकोरबाई (माता श्रावि. गुलाबबाई); मु. भिन्न भिन्न कर्तुक, प्रा. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: जैनं जयति शासन, स्मरण - ९, (वि. कल्याणमंदिर स्तोत्र नहीं लिखा गया है.) २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, पृ. १३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः ॐ असिआउसान, अंतिः असिआउसानमः स्वाहा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १३आ, संपूर्ण, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु नाम की उपदी अंति के जलबल भये अंगार, गाथा-३. ६९५३३. (#) औपदेशिकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, औपदेशिक सवैया व परनारीपरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ५, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X१३.५, ४x२७-३२). १. पे. नाम. व्याख्यान संग्रह, पू. १अ ५अ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह प्रा. मा.गु., रा. सं., गद्य, आदि: देवपूजा दया दानं अंतिः जलं चलुकं प्रमाणं, " 19 व्याख्यान संग्रह-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीअरिहंतनी पूजा; अंतिः चलु समान जाणीयो छे. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- चिंतामणि, पृ. ५अ संपूर्ण. יי १०५ सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य; अंतिः पार्श्व जिनेश्वरम्, श्लोक-३. पार्श्वजिन चैत्यवंदन- चिंतामणि- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हे पार्श्वनाथ नमस्तु, अंति: भवना कष्ट मट्या रे. ३. पे. नाम औपदेशिक सवैया, पृ. ५आ, संपूर्ण मु. गंग, पुहिं, पद्य, आदि; कलंगरि तो खेत कहां अंतिः कुं गज पे न तोराइई, सवैया- १. ४. पे. नाम औपदेशिक सज्झाव- परखी त्याग, पृ. ५आ, संपूर्ण. "" मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नर चतुर सुजाण परनारी; अंति: तो चाखो अनुभव सुखडली, गाथा-६. ६९५३४. (+#) भक्तामरस्तोत्र सह मंत्र टीका, संपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १२ प्रले. शिवचरण शुक्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६१४, ११x२९-३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमीलि, अंति: समपैत्रु लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहं णमो अंतिः सर्वकार्य सिद्ध होय, मंत्र- ४८. (+) नवतत्त्व सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- पंचपाठ., दे., ( ४x२५-२८). ६९५३५. (२५.५X१३.५, नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा- ६८ अपूर्ण है.) नवतत्व प्रकरण- टीका, मु. नेतृसिंह कवि, सं., गद्य, आदिः अत्र जैनशासने नवतत्त अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा १३ के दवार्थ अपूर्ण तक लिखा है.) ६९५३६, (+) बंधस्वामित्व व पडशीति नव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २००-१९१(१ से १९१) ९, कुलपे, २, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१३.५, ३X२०). १. पे. नाम. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १९२अ- १९४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र हैं. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४बी, आदि: (-); अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउ, गाथा २५, (पू. वि. गाथा- १७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. १९५अ - २००आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ६९५३७. (+) पंचम कर्मग्रंथ सह अवचूरि व टिप्पण, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३४-२२२(१ से २२२)=१२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ., अ., (२५४१४, ५४२३-२६). शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं धुवबंधोदय; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-५७ अपूर्ण तक है.) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नमिअजिण० मिथ्यात्व; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. शतक नव्य कर्मग्रंथ-टिप्पण, पुहिं., गद्य, आदि: श्री तीर्थंकर; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६९५३८. (+) प्राकृतलक्षण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०६, पौष शुक्ल, १५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २८, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. फतेहकरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पंचपाठ-त्रिपाठ-संशोधित., दे., (२५४१४,७४२१-२५). प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा वीरं; अंति: भाषाश्च प्रकीर्तिताः, विधान-४. प्राकृतलक्षण-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रकर्षण नत्वा प्रण; अंति: (१)प्रकृति लोप संधयः, (२)जवालं पापकर्दमं. ६९५४०. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, कार्तिक कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ११, दे., (२५.५४१३.५, ४४३२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५१. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवनुं स्वरूप ते जीव; अंति: हजी सिद्धि गयो छे. ६९५४१. वर्षप्रबोध, संपूर्ण, वि. १९१६, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, शनिवार, मध्यम, पृ. १११, ले.स्थल. इंदोर, प्रले. सवाईराम मोतीराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३५००, दे., (३०x१४, १३४३४-४०). वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १७३२, आदि: श्रीतीर्थनाथवृषभं; अंति: हिताद्वालस्य पालनात्, अध्याय-१३, श्लोक-३५००. ६९५४२. (+) सम्यक्त्वपरीक्षा सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८५७, फाल्गुन कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ३१९-१(२४१*)=३१८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-द्विपाठ-त्रिपाठ-संशोधित. कुल ग्रं.११३१५, प्र.ले.श्लो. (१८१) मंगलं लेखकस्यापि, (११६०) तैलात् रक्षेत् जलात्र क्षेत्, (११९६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (१२१९) यावन्मेरू महीधरो विजयतेरत्न प्रभायां, (१२२०) मेरू महीधर ज्या लग्ये, (१२२१) यावन्ल्लवण समुद्रो यावन्नक्षत्र मंडितां मेरू, जैदे., (२८.५४१३.५, १४-१७४३५). सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथेश; अंति: मिथ्यादुःकृतमस्तु, संपूर्ण. सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., गद्य, वि. १८१३, आदि: प्रणम्य कहेता; अंति: दुक्कडं होज्यो, संपूर्ण. ६९५४३. (-) कल्पसूत्र सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १९४३, आश्विन शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. १६४-२(१,१६३)=१६२, ले.स्थल. चीताखेडा, प्रले. उत्तमचंद रुपचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२८x१४.५, १०४३३-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (संपूर्ण, वि. पाठ प्रतिकात्मकरूप से लिखा गया है.) कल्पसूत्र-बालावबोध *, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: पुत्रवृद्धि होसी, (पूर्ण, पृ.वि. "पर्युषण पर्व महात्म्य वर्णन" से है.) कल्पसूत्र-कथा संग्रह *मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ६९५४४. (#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १३६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१५, ४-८x२०-२४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. त्रिशला माता के द्वारा देखे गए स्वप्नों के वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तेणे कालि अवसर्पिणी; अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानजिनं; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९५४५. (+) प्रज्ञापनासूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १९३९-१९४१ श्रेष्ठ, पृ. ३३५. प्र. वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., दे., (२७१३.५, १-१३x४६-५५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं णमो अंतिः सुही सुहं पत्ता, पद- ३६, सूत्र- २१७६, * , ग्रं. ७७८७, (वि. १९३९ आषाढ़ शुक्ल, ६, बुधवार) प्रज्ञापनासूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि: जयति नमदमरमुकुटप्रति अंतिः सुखिनः संतस्तिष्टति, 1 पद- ३६, ग्रं. १४००० (वि. १९४१, वैशाख कृष्ण, ले. स्थल. राजपुर) ६९५४६, (+) वासुपूज्य चरित्र, संपूर्ण वि. १९२८ आषाढ़ कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. १७३ ले. स्थल, अजीमगंज, प्रले. नारायणदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२७.५४१४, १४४३८). १०७ वासुपूज्यजिन चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य वि. १२९९, आदि: अर्हतं नौमि नाभेयं अंतिः नीताकग्रंथसंपूर्णम्, सर्ग-४, लोक-५४४७. ग्रं. ५६५१. ६९५४७. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५२, पौष शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ५५, प्रले. श्राव. पुसाल; पठ. श्राव. मेघजी, प्र.ले.पु. सामान्य, वे., (२७४१४, १४४२७-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं नमो अंतिः उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९, ग्रं. १२१६. ६९५४८, (A) कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९११, पौष कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ८९, ले. स्थल, मांगरोल, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. कुल ग्रं. १२१६, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३.५, ९X२३-३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं नमो अंति: उवदंसेइ ति बेमि, व्याख्यान- ९, प्र. १२१६. ६९५४९, () स्थानांगसूत्र सह टवार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११५, प्र. वि. त्रिपाठ, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैसे. (२७४१४.५, ३-६३०-४० ). " स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः सुवं मे आउस तेणं भग, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थान-४ उद्देशक-१ तृतीय अंतक्रिया वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे में सांभल्यु छे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थान- २ उद्देश - ३ सूत्र- ८८ अपूर्ण तक लिखा है.) स्थानांगसूत्र- टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्थान-२ उद्देश-३ सूत्र-८८ अपूर्ण से स्थान ४ उद्देशक- १ तृतीय अंतक्रिया वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ६९५५०. (+#) वर्द्धमान देशना, संपूर्ण, वि. १९६३, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १६८, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठालाल चुनिलाल लहिया लिख. श्राव. गुलाबश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२५४१३, १२X३१-३५). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: अस्मिन् जंबूद्वीपे; अंति: राजकीर्तिगणिना, उल्लास- १०, ग्रं. ४३००. ६९५५१. विंशतिस्थानकविचारामृत संग्रह, संपूर्ण, वि. १८८७, चैत्र शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ९८, ले. स्थल, लखलेड, प्रले. पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६१३, १३x४१). विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., पद्य, बि. १५०२, आदि: श्रीभूर्भुवः स्व, अंतिः वाच्यमानो निरंतर, कथा-२०. ६९५५३. कल्याणमंदिर व भक्तामर स्तोत्र पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१ (४) = ६, कुल पे. २, जैदे., (२२x१३, For Private and Personal Use Only १३x२८). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, पृ. १अ ३ आ. अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. कल्याणमंदिर स्तोत्र - पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., ; जै. क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदिः परम ज्योति परमातमा; अंति: (-). (पू.वि. गाथा ३८ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र का पद्यानुवाद, पृ. ५अ-७आ, अपूर्ण, पू. वि. बीच के पत्र हैं. Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र - पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ६ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) ६९५५५. (-) गुणस्थानक चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१२ (१ से १२) = ५, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे. (२१x१४.५, १३x२९). १४ गुणस्थानक चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५० अपूर्ण से १९२ अपूर्ण तक है.) ६९५५९, (+) षट्पुरुष चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५३, चैत्र शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. ३७, ले. स्थल, अमृतसर, प्रले. मु. चंदनविजय (गुरु मु. बुद्धविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. बुद्धविजय (तपागच्छ); अन्य. मु. मोहनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., (२३.५X१३, ११X३० ). षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमंकर, सं., गद्य, आदि: श्रीअर्हतञ्चतु; अंतिः श्रयिणं विचारम्. ६९५६०. (+) सिंदूरप्रकरण सह टिप्पण व प्रास्ताविक गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१ (१) १३, कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२१X१५, ११x२५-३० ). १. पे. नाम. सिंदूर प्रकरण सह टिप्पण, पृ. २अ १४अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम् द्वार २२ श्लोक-१००, (पू. वि. श्लोक - ९ अपूर्ण से है.) सिंदूरप्रकर-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण. काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., पद्म, आदि (-); अंति: (-), (वि. औषध व अलग अलग दूहाओं का संग्रह) ६९५७३. (+) सिंदूरप्रकरण, संपूर्ण, वि. १८९७ भाद्रपद कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३३ ले. स्थल अलवर, प्रले. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०x१४, ७X१७-२०). सिंदूरकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः, अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००. ६९५७५. () पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८८९ कार्तिक कृष्ण, ३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ५, ले. स्थल. हलसुरी, प्रले. रामगोपाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२x१४.५, ११x२०). पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाण; अंतिः प्रसीद परमेश्वरी, श्लोक-३१, (वि. श्लोक सं.५ से ७ पत्रांक १अ पर लिखा है.) ६९५७८. चोवीसतिर्थंकर वंदना, संपूर्ण वि. १९१० चैत्र कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ६, ले. स्थल. ओरंगाबाद, वे., (२३.५४१३.५, १५X३३). २४ जिन मातापिता, आयु, देहमान, पर्याय, शासनकाल, शासनदेव, संपदादि बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरीषभनाथसामी सरवा, अंति: त्रिकाल वंदणा होज्यो. ६९५८०. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा - व्याख्यान १ से ८, संपूर्ण वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. १४३, प्रले. पं. गौतमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२५.५X१४, ६-१४X३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो अंति: (-) (प्रतिपूर्ण, पू. वि. ऋषभदेव चरित्र तक.) कल्पसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि बारे गुणे करी सहित अंति: (-), प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, मा.गु, गद्य, आदि (१) श्रीचतुर्विंशतिजिनान, (२) पुरिमचरिमाणकप्पो अंति: (-), प्रतिपूर्ण ६९५८१. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८२-१४ (१,१०,१३,८९ से ९९ ) +१ (२७)=३६९, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२४X१२.५, १२X४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन- १ गाथा- २ से अध्ययन- ३६ गाथा - ७० तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ "" उत्तराध्ययनसूत्र- सूत्रार्थदीपिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-). ६९५८२. कल्पसूत्र सह सुवोधिका टीका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१०, प्र. वि. द्विपाठ- त्रिपाठ, जैदे. (२५x१३, १२४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे, अंति: उबव॑से ति बेमि, व्याख्यान- ९. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं. गद्य वि. १६९६, आदि: प्रणम्य परमश्रेयस्कर, अंति: विद्वज्जनैराश्रिता. יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९५८३. (+) शीलोपदेशमाला सह शीलतरंगिणी टीका, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २१७+१(७६)=२१८, ले. स्थल. लखनेउ, प्रले. पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसा (विजयगच्छ). प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जै, (२५.५x१३, १२-१६५३६-४०). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि : आबालबंभयारिं नेमि; अंति: आराहिय लहह बोहिसुहं कथा ४३, गाथा- ११५. " शीलोपदेशमाला - शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, आदिः यस्योपदेशसमये दशनांश; अंतिः श्रियो मंदिरम्. " ६९५८४, (+) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, पूर्ण, वि. १८८७ पौष शुक्ल ५, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ९३-२ ( २९ से ३०) =९१, ले. स्थल. लक्ष्मणपुर, प्रले. पं. धर्मचंद्र (गुरु आ. कांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ. कांतिसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२५.५४१३.५, १२-१६४३५-४२). सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, सं., पद्य, आदि: सम्यक्त्वशुद्धये, अति: प्रोल्हादबन्वोलवं सर्ग-७, ग्रं. ३३५२, (पू. वि. सर्ग -२ श्लोक-४२ अपूर्ण से १११ अपूर्ण तक नहीं है.) ६९५८५. (७) श्रावकपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८८, कार्तिक कृष्ण, ५. गुरुवार, मध्यम, पू. ३७-२ (१०,१६)=३५, ले. स्थल. खेरालुनगर, प्रले. भूषण भावसार, लिख. श्राव. रवचंद खुसालचंद धामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१३.५, ११x२५-२८). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह -तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: नमो अरिहंताणं; अंतिः पुज्यमाने जिनेश्वरे, (पू. वि. बीच-बीच के पाठांश नहीं है. वि. बीच-बीच में तिथियों की स्तुतियाँ भी लिखी है.) ६९५८६. भक्तामरस्तोत्र सह मंत्र व यंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४६-७ (६, १९, २६, ३५, ४१, ४४ से ४५) = ३९, दे., (२४X१४.५, १४x२१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक- ९, २१, २६ व ३५ नहीं है., वि. श्लोक-४२ तक लिखा है.) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं अर्ह णमो अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. मंत्र श्लोक ४२ तक लिखा है.) भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, सं., वं. आदिः (-); अंति: (-) (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, श्लोक-४६ तक यंत्र हैं.) ६९५८७. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९०४, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २६+१ (१९) = २७, प्र. वि. संशोधित. दे., (२५.५४१३, . १०९ ६९५८८. बृहत्संग्रहणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १५ वे. (२५४१४, १२x२९) ६-१०x१७-२३). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. पद्य वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः, अंतिः सोमप्रभ० मुक्तावलीयम्, द्वार- २२, " श्लोक-१००. For Private and Personal Use Only बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक " द्वारा अपूर्ण., गाथा - २४३ तक लिखा है.) ६९५८९, (+) सौभाग्यपंचमी कथा, संपूर्ण वि. १९५३, मार्गशीर्ष कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. ५. प्र. वि. संशोधित दे. (२३.५४१३.५, "" १३X२९). सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन, अंति: कार्यो भवद्भिरद्भुतं. Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९५९०. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१)=१७, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२४४१४, १२-१५४२९-३१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१ गाथा-११ से है व अध्ययन-६ गाथा-६४ तक लिखा है.) ६९५९१. (+) भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-८(१ से ७,१२)=१४, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३२-३४). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदन भाष्य-गाथा-३६ से प्रत्याख्यान भाष्य-गाथा-१७ तक है व बीच के पाठ नहीं हैं.) भाष्यत्रय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अति: (-). ६९५९२. (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ व दंडक प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१३.५, ५४२६-३०). १.पे. नाम. नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: सह परभवगा न सेसट्ठ, गाथा-७७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, रा., गद्य, आदि: जीवतत्व१ अजीवतत्वर; अंति: साथ परभव नही जावे हे. २.पे. नाम. दंडक प्रकरण, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ६९५९३. संघयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९७०, ज्येष्ठ, ४, शनिवार, मध्यम, पृ. १०, दे., (२४४१५, १६x४४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: जा वीरजिण तित्थं, गाथा-३१८. ६९५९४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ६, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४१४, ७४२८-३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मंगलीकनु घर उदार; अंति: मोक्षनी पामी छइ. ६९५९५. अंतरिक्षपार्श्वनाथ माहात्म्य, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, दे., (२५.५४१४, १६४३७). अंतरिक्षपार्श्वनाथ माहात्म्य, ग. भावविजयगणि, सं., पद्य, वि. १७१५, आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: तदंतरिक्ष कृपात्मकम्, श्लोक-१४४. ६९५९६. (+) वाग्भटालंकार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६४१४, ७४२४-२७). वाग्भटालंकार, जै.क. वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: श्रियं दिशतु; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., परिच्छेद-४, श्लोक ३२ अपूर्ण तक लिखा है.) वाग्भटालंकार-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच में अवचूरि लिखी है.) ६९५९७. (+) पाक्षिकसूत्र व पक्खी खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. २, ले.स्थल. वलभीनगर, प्रले. मु. चतुर्भुज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१४, १४४२८-३१). १.पे. नाम. पाक्षिक सूत्र, पृ. १अ-९अ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. २. पे. नाम. क्षामणकसूत्र, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियंच मे जंभे; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १११ ६९५९८. सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९६६, रसरसांकेंदु, श्रावण कृष्ण, १४, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ११, प्रले. मु. रामलाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (५२) पोथी प्यारी प्राणथी, (३०७) मंगलं लेखकस्यापि, (४५०) जल की शोभा कमल है, दे., (२४४१३.५, ११४३३). सिंदरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: सोमप्रभ०मुक्तावलीयम, द्वार-२२, __ श्लोक-१००. ६९५९९. (+) गुरूतत्त्वविनिश्चय सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४-२०(१ से २०)+४(३९,४९,५७,९३)=८८, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२१.५४११.५, २७४४६). गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: परगुणगहए पवटुंता, उल्लास-४, गाथा-९०५, (पू.वि. गाथा-१२० अपूर्ण से है.) गुरुतत्त्वविनिश्चय-स्वोपज्ञटीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: दोष इति सर्वमवदातम्, उल्लास-४. ६९६००. (+) स्नात्रपूजा व अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., दे., (२३४१२.५, ९४२०). १.पे. नाम. स्नात्रपूजा विधिसहित, प्र. १अ-१२अ. संपूर्ण. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चौतीसे अतिसै जूओवचन; अंति: देवचंद० सूत्र मझार, ढाल-८, गाथा-६०. २. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा, पृ. १२अ-१९आ, संपूर्ण. मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: स्वस्ति श्रीसुख; अंति: क्लेशक्षयाकांक्षया, ढाल-८, श्लोक-८. ६९६०१. काव्य सुभाषित, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. प्रसिद्धकुशल (गुरु पं. विद्याकुशल गणि); गुपि. पं. विद्याकुशल गणि (गुरु पं. हीरकुशल गणि); पं. हीरकुशल गणि; पठ. मु. आबाजी ऋषि, प्र.ले.पु. मध्यम, दे., (२३४१२, ५४२६-३०). सूक्तावली, सं., पद्य, आदि: राज्यं निःसचिवंगत; अंति: यथादलं कैलव कर्णयति, श्लोक-१३६. ६९६०२. (+#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२-३२(१ से २,४ से ८,२४ से २७,३१ से ५१)=२०, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४१२, ४४२४-२८). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ से १२ अपूर्ण, ३६ अपूर्ण से ११३ अपूर्ण, १३५ अपूर्ण से १५४ अपूर्ण व २८४ से २९० अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ६९६०३. (+) अजितशांतिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ.७, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२१.५४१३, ९४२०-२३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ६९६०४. (#) नवतत्त्व प्रकरण व सुलसानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२.५, १४४२६). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ-६अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-१०१. २. पे. नाम. सुलसाश्राविका सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. ___ मु. कल्याणविमल, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन सुलसा साची; अंति: कल्याणविमल गुणगेहरे, गाथा-१०. ६९६०५. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३३, माघ कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ५, ले.स्थल. कोरटानगर, प्रले. उपा. शिवचंद; पठ. मु. मोतीचंद (कमलकलशागच्छ-पोशाल गच्छ); अन्य. श्राव. दीपचंद; उपा. उदयचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२२४१२.५, १२४२८). For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ६९६०६. (+) सूत्रकृतांग, महावीरजिन स्तुति व दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४९, आषाढ़ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ९, कुल पे. ३, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. मु. मणिलाल (गुरु मु. माणकचंद ऋषि); गुपि.मु. माणकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., (२१४११.५, १२४३६). १.पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र- अध्ययन-५ से६, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ५आ-७अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: विरूवो सुहभागीय, गाथा-१६. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से ४, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. अध्ययन-४ का मात्र पद्यभाग है.) ६९६०७. (#) भक्तामरस्तोत्र मंत्रसाधनविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२०.५४१३, १३४३०-३५). भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सोहं तथापि तवभक्ति०; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ से श्लोक-४२ अपूर्ण तक मंत्रसाधन विधि है., वि. सभी श्लोकों के प्रतीक पाठ दिए गए हैं.) ६९६०८. (+#) नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ७, ले.स्थल. मेशाणा (महेशाणा, प्रले. पं. प्रेमविजय गणि; पठ. श्राव. जयसिंघ राजचंद; अन्य. मु. लक्ष्मीविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे, जैदे., (२१४१३,१३४२८-३२). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: नये न के अधूरी रे, पूजा-९. ६९६०९. सिद्धांतसार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, दे., (२१४१२.५, ६४२७). सिद्धांतसारशतक, पं. विवेकविजय, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगाणि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __अपूर्ण., गाथा-६३ तक लिखा है.) । ६९६१०. सकलाहत्व बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. ६, कुल पे. २, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्रले. पं. हरखविजय; पठ. श्रावि. रत्नबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (४५१) कष्ट पडे हो परणीया, दे., (२०४१२, १०x२०-२३). १.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष कृष्ण, १, शनिवार. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-३१. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. ३आ-६आ, संपूर्ण, वि. १९३४, पौष कृष्ण, ११, मंगलवार. सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ६९६११. अंतरिक्षपार्श्वनाथ माहात्म्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४१३.५, १६-१९४२५-३०). पार्श्वजिन माहात्म्य-अंतरिक्ष, ग. भावविजयगणि, सं., पद्य, वि. १७१५, आदि: प्रणम्य परमानंद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२१ अपूर्ण तक है.) ६९६१२. (#) शांतिपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८७६, माघ शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४१३, ११४२९-३२). शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ननु संघादीनां विघ्नो; अंति: दूरतो यांति. ६९६१३. (4) पार्श्वजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र कृष्ण, २, मंगलवार, मध्यम, पृ. ६, ले.स्थल. फलवर्धिका, प्रले. मु. दीपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (१८x११.५, ५४१९). For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: सयलभुअनीवीअंजलीणो, गाथा-२१. नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा प्रणतसुरगणस्य; अंति: सकलभुवनाच्चित चरणः. ६९६१४. ग्रहशांतिविधि व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६४, फाल्गुन शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७, कुल पे. २, ले.स्थल. लसकर, प्रले. रामचरण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (१८x१२, १०x२५). १.पे. नाम. आचारदिनकर का शांतिकाधिकार ३४वां उदय ग्रहशांति विधि, पृ. १अ-१२आ, संपूर्ण. आचारदिनकर-नक्षत्रग्रहशांतिक विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., आदि: तत्र पूर्वं ग्रह; अंति: पठेत् शांत्यर्थम्. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १२आ-१७अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा.,सं., पद्य, ई. १२००, आदि: जसुमासणदेविपसायकयाभय; अंति: पार्श्वस्तोत्रमेतत्, गाथा-३७. ६९६१५. (+) आतुर पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (१९x११, ९x१९-२४). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: देसिक्कदेस विरउ सम्म; अंति: खयं सव्वदुक्खाणं, गाथा-६०. ६९६१६. (2) प्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-७(१ से ६,९)=१६, कुल पे. ५, ले.स्थल. भाणपुर, पठ. मु. देवसागर (गुरु मु. कृष्णसागर); प्रले. मु. कृष्णसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (१७.५४१३, १२४१८-२२). १. पे. नाम. साधुश्रावक प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. ७अ-२१अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, (पू.वि. स्नातस्या स्तुति श्लोक-२ अपूर्ण से है व बीच के पाठांश नहीं है., वि. अंत में "वरकनक" के पाठ कहने हेतु प्रतीकपाठ देकर संकेत किया है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा-वचनमहत्वविषयक, पृ. २१अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: वचन विचारी बोलीय वचन; अंति: वचन मरद की पाम, दोहा-१. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. २१आ-२२अ, संपूर्ण, वि. १९०८, फाल्गुन शुक्ल, १४. ____ मा.गु., पद्य, आदि: रिषभ अजित संभव; अंति: वरते जी कोड कल्याण, गाथा-८. ४. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, पृ. २२अ-२३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सरस्वती महाभागे वरदे; अंति: पूजनीया सरस्वती, श्लोक-६. ५. पे. नाम. १४नियम गाथा, पृ. २३आ, संपूर्ण. १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: (१)राखणो होव ते राख, (२)उचर सदा राख धरणा राख, गाथा-१. ६९६१७. (+) बृहत्स्वयंभू स्तोत्र व समंतभद्र प्रशस्ति श्लोक, संपूर्ण, वि. १७९१, कार्तिक शुक्ल, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. २२, कुल पे. २, प्रले. पंडित. सेवाराम (गुरु आ. गुलालकीर्ति); गुपि. आ. गुलालकीर्ति; पठ. श्राव. गुलाबराय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (१६.५४१४.५, ११४१५). १. पे. नाम. बृहत्स्वयंभूस्तोत्र, पृ. १अ-२२अ, संपूर्ण. आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: (१)नताखंडलमौलीनां, (२)स्वयंभुवा भूतहितेन; अंति: बुधप्रह्लादचेतस्यलम्, स्तुति-२४, श्लोक-१४४. २. पे. नाम. समंतभद्रप्रशस्ति श्लोक, पृ. २२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानमकलंक; अंति: जैन निपँथवादी, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९६१८. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८०२, आश्विन शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. ९, ले.स्थल. देवगढ, प्रले.मु. दानसुंदर (गुरु पंन्या. रूपसुंदर गणि, वडतपा); गुपि. पंन्या. रूपसुंदर गणि (वडतपा); पठ. श्राव. कपूरजी केशवजी भुता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंतिम पत्र पर बाद का अन्यलिखित अस्पष्ट व अपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१५४१३, १२४१५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४८. ६९६१९. (+) महाभारत सुभाषित संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९४७, वैशाख शुक्ल, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१४(१ से ८,१३ से १४,२२ से २४,३२)=२०, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२१३) भणजो गुणजो वाचजो, दे., (१५.५४१४, १८x१७-२०). १.पे. नाम. महाभारत सुभाषित श्लोक संग्रह सह बालावबोध, पृ. ९आ-३४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. महाभारत-अहिंसादि सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: त्यक्त्वा सुखी भवेत्, श्लोक-२७३, (पू.वि. श्लोक-१-६८, १०५-११९, १७३-१९७ व २५८ से २६७ नहीं है.) महाभारत-अहिंसादि सुभाषित संग्रह का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते सदा सुखी रहै. २. पे. नाम. नारीसंगपरिहार दोहा, पृ. ३४अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: चिरपट बोलै सुणोरे; अंति: दिनदिन काया छीजै, दोहा-१. ६९६२०. (4) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (१८x१२, ६-२०४१६-२०). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पुक्खरवरदीवड्डे पाठ अपूर्ण तक लिखा है.) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतने; अंति: (-), (अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पंचिंदिय संवरण अपूर्ण पाठ तक टबार्थ लिखा है.) ६९६२१. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १८, दे., (१७.५४१२, ६४११-१५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३९ अपूर्ण तक लिखा है.) ६९६२२. (#) तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७३, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, सोमवार, मध्यम, पृ. १९, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१६.५४१२.५, ९४२०-२५). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदि: (१)मोक्षमार्गस्य नेतार, (२)सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: (१)चउगइदुक्खं णिवारेइ, (२)बहुतत्त्वतः साध्याः, अध्याय-१०, (वि. अंत में फलश्रुति गाथा दी गयी है.) ६९६२३. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २४, दे., (१६४१२, ९x१४). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (वि. सूत्रक्रम में अन्तर है.) ६९६२४. भक्तामर व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, कुल पे. २, ले.स्थल. लखनेउ, दे., (१४४१३.५, ९-१३४१५). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण, वि. १९४०, प्रले. मु. गोकुलचंद्र (विजयगच्छ पूर्णिमापक्ष); पठ. श्राव. सुगणचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. नवग्रहशांतिकारक जिन स्तोत्र, पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिर्विनिर्मितः, श्लोक-१२. ६९६२५. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०-२(१,६)=८, कुल पे. ३, प्र.वि. पाठ के अनुसार पत्रांक क्रमबद्ध न होने से काल्पनिक पत्रांक दिया गया है., संशोधित., दे., (१२.५४१०.५, ८x१३). १ . 1 For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: (-); अंति: जिनलाभ० बहु शुभमनै, गाथा-१३, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, पृ. ३आ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. विहरमानजिन स्तवनवीसी, पृ. ७अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवजसाजिन स्तवन से अंतिम प्रशस्ति ढाल गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६९६२६. खरतरगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८९२, दृगनिधिसिद्धिचंद्रके, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३०, श्रेष्ठ, पृ. २, अन्य. गच्छाधिपति जिनसौभाग्यसूरि (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३१). पट्टावलीखरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: सौभाग्य प्रवत्तौ, श्लोक-१४. ६९६२७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन २७ से २८, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, १३४३७-३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९६२८. (+) पाक्षिक खामणा, प्रतिक्रमणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४४२). १.पे. नाम. पाक्षिक खामणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. २.पे. नाम. पाक्षिक प्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण विधि , संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मुंहपत्ती वंदणय; अंति: चउम्मासेय वरिसेय. ३. पे. नाम. गुरुवंदना विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इरियावहिआ गम्मणो मुह; अंति: वंदणा गछपति पाय करत, गाथा-३. ४. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंत महीवनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-३. ५. पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसिन्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ६.पे. नाम. ८ कर्मस्थिति विचार गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाणे सणावरणे वेयणि; अंति: एयं बंधस्स ठिइमाणम्, गाथा-३. ७. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दो चेव नमोक्कारे; अंति: छप्पाणे चरमे चत्तारि, गाथा-२. ८. पे. नाम. ३२ अनंतकाय गाथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सव्वाओ कंदजाइउ सूरण; अंति: परिहरियव्वा पयत्तेण, गाथा-५. ९. पे. नाम. २२ अभक्ष्य गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पंचोवरि चउविगई हिम; अंति: अभक्खाण बावीसम्, गाथा-२. १०. पे. नाम. गोचरी आलोअण गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: कालो य गोअरचरिआ; अंति: वितहायरणे अइयारा, गाथा-३. ६९६२९. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ से १२ तक है) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९६३०. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४११.५, ११४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) ६९६३१. (+) उपधानमालापहिरावण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ११४४३). उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: शुभमुहूते पूर्व; अंति: (-), (पू.वि. देववंदन विधि तक है.) ६९६३२. वीरथुई अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२४.५४१०.५, १३-१५४४३). १. पे. नाम. वीरथुई अध्ययन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूल; अति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ६९६३३. (+) पंचप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अबरखयुक्त स्याही से लिखित., संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जंकिंचिसूत्र से लोगस्ससूत्र अपूर्ण तक है.) ६९६३४. (+) पुद्गलपरावर्तनादि बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, ३४४६७). १.पे. नाम. भगवतीसूत्र शतक-१२ उद्देश-४ पुद्गलपरावर्त विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१२ उद्देश-४ गत पुद्गलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नामद्वार१ गुणर डंड; अंति: तेहनीना एवं समजवो. २. पे. नाम. २२ मोक्षगामी विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. २३ शीघ्र मोक्षगामी बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १मोखरी वांछा करे सो; अंति: दे ते वेगो मोख जाइ. ३. पे. नाम. ११ अंग नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: आचारांगसूत्र १; अंति: प्रश्न विपाकसूत्र११. ४. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ भरत ८४लाख पुरब आउष; अंति: ब्रह्म० ७धनुष देहमान. ५. पे. नाम. समुर्छिममनुष्योत्पत्ति १४ स्थान विचार, पृ. २आ, संपूर्ण. १४ स्थान समुर्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वडिनिती में १ लघुनित; अंति: आहावमण मै १४. ६. पे. नाम. चतुर्भंगी रूपीअरूपी बोल संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९६३५. (+) कर्मविपाकनव्य कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १४४४०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण तक है.) ६९६३६. गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, आश्विन कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. राणपुर, प्रले. मु. अमीकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ४४३५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभी मनुष्य होइ ते; अंति: अनेक श्रावकनी परि. For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९६३७. चोत्रीसअतिशय, २५ साधुउपकरण व ५ मिथ्यात्व नाम, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X११.५, ७X३६) १. पे नाम, ३४ अतिशय सह टवार्थ, पृ. १अ २अ संपूर्ण समवायांगसूत्र - हिस्सा ३४ अतिशय समवाय, प्रा., गद्य, आदि: चोत्तीसं बुद्धा सेसा, अंति: खिप्पामेव उवसमंति समवायांगसूत्र - हिस्सा ३४ अतिशय समवाय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि बुद्ध कहितां, अंतिः ज्वरादिक ते उपसमै २. पे. नाम. २५ साधु उपकरण सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधुसाध्वी १४ उप्रकरण, प्रा., पद्य, आदि पत्तं पत्ताबंधी पाय अंतिः ए अज्जाणं पणवीसंतु, गाथा- ७. साधुसाध्वी उपकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पातरुं झोली बांधवानी, अंति: पचवीस जांणवा. ३. पे. नाम. ५ मिथ्यात्व नाम सह टवार्थ, पृ. २आ. संपूर्ण ५ मिध्यात्वभेद नाम, सं., गद्य, आदि: अभिगृहितर अणभिगृहितर अंतिः संशयमिथ्या०४ अनाभोगप ५ मिथ्यात्वभेद नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवइ मिथ्यात्वना ५; अंति: अज्ञान लोकरूढ५. ६९६३८. (*) उत्तराध्ययनसूत्र अध्यययन- १७, संपूर्ण वि. १९१३, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे., ( २६ ११, १०X३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ६९६३९. (+) क्षेत्रसमासजंबूद्वीपाधिकार विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X१२, १४X३६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बृहत्क्षेत्रसमास - जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभन्द्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि ईअ जोयणसहस्सनवर्ग, अंतिः निसहस्स घणगणियम्, गाथा - ३७, (वि. गाथापरिमाण में वैविध्य.) ६९६४०. चैत्रीपूनमदेववंदन विधि व जिनभवन ८४ आशातना गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६X११, १७-२१x४२). १. पे. नाम. चैत्रीपूनम देवबंदन विधि, पृ. १अ २अ, संपूर्ण चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि उस्सप्पिणीहि पढमं अंति: तीर्थयात्राफलं भवेत्, (वि. चैत्री पूर्णिमा की दो विधियाँ संकलित है.) " २. पे. नाम. जिनभवन ८४ आशातना सह अवचूरि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि खेलं १ केलि २ कलि ३; अंतिः वज्जे जिणिदालये, गाथा-५, ११७ संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः तत्र जिनभवने इहमिदं अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण तक अवचूरि है.) "" ६९६४१. रोहिणीतपफल कथा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. जैदे. (२६५१२.५, १७४३९). रोहिणीतपफल कथा, मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्रीवासुपूज्यमानम्य अंति: (-), (पू. वि. रोहिणी पूर्वभव वर्णन अपूर्ण तक है.) ६९६४२. उवसग्गहर, गौतमस्वामि स्तोत्र व अरिहंतपद जपविधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, दे., (२६x१२, १०X३३-३५). १. पे. नाम. उपसर्गहर स्तोत्र, प्र. १- १आ, संपूर्ण. गाथा - १४. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदिः ॐ नमस्त्रिजगन्नेतु अंति: भव सर्वार्थसिद्धये श्लोक ९. ३. पे. नाम. अरिहंतमंत्रजप विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा १३. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. पद्य, आदि उवसगहरं पासं पासं, अंति: उवसमंतु मम स्वाहा, 13 For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमस्कार महामंत्र-हिस्सा नमो अरिहंताणं पद का अरिहंतपद पुरश्चरण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ओं नमो अरिहंताणं ए; अंति: मनोरथ थाय ते फले. ६९६४३. पंचमी व अष्टमीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंन्या. मुक्तिविमल, सं., पद्य, आदि: नम्राखंडलमंडलैः कृतम; अंति: दद्यान्नृणां मंगलम्, श्लोक-४. २.पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पंन्या. मुक्तिविमल, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्वीरजिनेश्वरेण; अंति: सिद्धायिका सिद्धये, श्लोक-४. ६९६४४. लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मु. नेथी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३०-३३). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-२९. ६९६४५. पद्मावती स्तोत्र व आराधन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले. ग. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, १४४५०). १.पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२७, (पू.वि. श्लोक-१४ से है.) २.पे. नाम. पद्मावतीदेवी आराधन विधि, प्र. २आ, संपूर्ण.. मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ आँ क्रौँ ह्रीं ऐं; अंति: मनवंछितकार्यसिद्धि. ६९६४६.(+) चोत्रीसअतिशय सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, ४-६x४२-४६). समवायांगसूत्र-हिस्सा ३४ अतिशय समवाय, प्रा., गद्य, आदि: चोत्तीसं बुद्धाइ सेस; अंति: खिप्पामेव उपसमंति. समवायांगसूत्र-हिस्सा ३४ अतिशय समवाय की टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदि: चतुस्त्रिंशन्स्थानक; __ अंति: राधास्तदुपशमो भाव. ६९६४७. (+) ४७गोचरीदोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, २४४१). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ २; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६. गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मी ते कहीइंजे; अंति: ४७ साधुनई वर्जवा. ६९६४८. इरीयावही कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, ४४३१-३४). इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: पणमीअसिरिवीरजिणं; अंति: जीव निच्चंपि, गाथा-१२. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणाम करीनइं; अंति: जीवो सर्वने सदैव. ६९६४९. ज्ञाताधर्मकथांगगतमेघकुमारदीक्षाप्रसंग व उपस्थापना अधिकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३२-३६). १.पे. नाम. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-१ सूत्र-३५ मेघकुमार दीक्षा प्रसंग, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. उवट्ठावणा अधिकार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. उपस्थापना अधिकार-दीक्षाविधिगत, प्रा., गद्य, आदि: इयाणिं मुंडावणा सोहण; अंति: तियं कारवेज्जति. ६९६५०. पंचमीतप व लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. सा. रुखमाजी; पठ. श्रावि. सिणगारदे, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२.५, ११४२७). १.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन-लघु, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पांचम तप तुम्हे करो; अंति: समयसु०पांचमो भेदरे, गाथा-५. २. पे. नाम. लघुशांति स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ६९६५१. सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२६४११, ११४२५). For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरजिन नेत्रयोः, श्लोक-३२. ६९६५२. मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. १८०८, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १२४४१). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते अतीत; अंति: मुक्ति पारंगताय नम. ६९६५३. (+#) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६७३, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. महिमामेरु (गुरु ग. सुखनिधान); गुपि.ग. सुखनिधान; पठ. श्रावि. सुंदरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १३४४१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. ६९६५४. (+) शनीश्चर स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१८, फाल्गुन शुक्ल, ५, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. दसोर, प्रले. मु. हरखचंद ऋषि; पठ. श्राव. हुकमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११, १०४२८). १. पे. नाम. शनिश्चर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जत्पुरा राजभृष्टाय; अंति: नवग्रह सं स्वाहा, श्लोक-१०. २. पे. नाम. बृहस्पति स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ ब्रहस्पती; अंति: प्रीते तस्य जायते, श्लोक-५. ३. पे. नाम. चोवीसमाराज को स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवास, श्लोक-८, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ६९६५५. चिंतामणिपार्श्वजिन स्तोत्र व सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. सोजितनगर, प्रले. पं. कपूरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १२४३५). १.पे. नाम. चिंतामणीपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८४८, भाद्रपद शुक्ल, ९. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पार्श्व पातु वो; अंति: प्राप्नोति स श्रियम्, गाथा-३३. २.पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण, वि. १८४८, भाद्रपद शुक्ल, ११. सं., पद्य, आदि: प्रणम्य शारदादेवी; अंति: चाप्नोति वांछितं, गाथा-१४. ६९६५६. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. अरटवाडा, प्रले. मु. रामविजय; पठ. मु. खुशालविजय (गुरु मु. रामविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४४०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ६९६५७. (+) जीवाराधना, संथाराविधि व देवागासिक पच्चक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, ११४३९). १. पे. नाम. जीवाराधना, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि अणंते परभव; अंति: लोभं पिजंतहा दोष, गाथा-८५, (वि. विधिसहित. अंतर के पाठों का संक्षिप्तीकरण किया गया है.) २. पे. नाम. संथारा विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जो सागारी अणसण करै; अंति: सव्व समाहिव० वोसरामि, (वि. विधिसहित.) ३. पे. नाम. देशावगासी, पृ. २आ, संपूर्ण. देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: वत्तियागारेणं वोसरइ, (वि. विधिसहित.) ६९६५८. (+) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १७४५२). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अथ मार्गशीर्ष; अंति: प्रसादानं माला भवतु. ६९६५९. (+) जयतिहअण स्तोत्र व स्तंभनकपार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५४११.५, ९४२१-२३). १. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुअणवरकप्परुक्ख; अंति: अभय० विन्नवइ अणिंदिय, गाथा-३०, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा-६ से २८ तक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. स्तंभनकपार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्तंभनक, प्रा., पद्य, आदि: जय महायस जय महायस; अंति: समुन्नइ निमित्तम्, गाथा-२. ६९६६०. (+#) आत्मपरिग्रहिकउपदेसातस्वाध्याय व नेमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मेसाणा नगर, प्रले. मु. चतुरविजय (गुरु मु. नवलविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मनरंगाजी प्रशादात्., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४०). १.पे. नाम. आत्मपरिग्रहउपदेशात स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-आत्मपरिग्रह, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: द्वोरांरांद्वोरिहे; अंति: चतुर सुगुण सनेह, गाथा-९. २.पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: विनतडी अवधारोहो; अंति: कहे सुंदर कर जोडी, गाथा-७. ६९६६१. (+) कुलजाति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०.५, १०४३६). साधु हेतु भिक्षाग्रहण योग्य अयोग्य कुलजाति विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वरीयति कहेता; अंति: पिंडवायं चरे मुणी, (वि. आचारांगसूत्र, उत्तराध्ययनसूत्र, दशवैकालिकसूत्र आदि आगम ग्रंथ से उद्धृत है.) ६९६६४. (+) गौतमस्वामि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. व्यालपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, ११४२९). गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्र; अंति: श्रेयांसि भूयांसि नः, श्लोक-११. ६९६६५. (#) जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, १०४२८). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ६९६६६. (+) सामायिक ३२ दोष गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ६४३५). सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: अविवेओ जसकित्ती; अंति: वसे सव्व सुहलच्छी, गाथा-३, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अविवेके सामायिक करै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ६९६६७. पार्श्वनाथ स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२, १०४२३). पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रेनें कि धप; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ६९६६८. (4) पार्श्वजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. कुंडलग्राम, प्रले. मु. दुलीचंद; अन्य. मु. खूबचंदजी (गुरु मु. नराणजी); गुपि.मु. नराणजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. खूबचंदजी की प्रत पर से प्रतिलिपि की गई है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १०४३३). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-श्रृंखलाबंध, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., पद्य, आदि: सर्वदेवसेवितपदपद्म; अंति: जैनचंद्रे:०तावन्मुदे, श्लोक-७. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिनरी सेवा; अंति: रिद्धीकीरत० मोहे रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी अष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) ४. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काजलवरणौ हे सखी दीठो; अंति: कर कवो उपाडी कंत, गाथा-२. .) For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९६६९. पार्श्वजिनस्तवन व नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४०, ज्येष्ठ शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. माणक्य मुनि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५४११, ११४२७). " १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. वखता, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीचंतामण पासजिन अंतिः वखत० रे ए सेवक अरदास, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा ५. २. पे. नाम. नवग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि शुभं, श्लोक-११. ६९६७०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- २६, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६.५x१२, १०x३८). 1 ; उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाथा ४३ अपूर्ण से है.) ६९६७१. (+) अवसर्पिणीउत्सर्पिण्यादिविविधविषय विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५ (१ से ५ ) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X१०.५, १९X५३). १२१ विविधविचार संग्रह, प्रा., सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अवसर्पिणी- उत्सर्पिणी विचार से सामायिक विचार तक है.) ६९६७२. (+०) पद्मावती आलोयणा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. मोरू, पठ. मु. प्रेमसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १५X४२). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवइ राणी पदमावती; अंति: कहइ पाथ छुटइ ततकाल, ढाल -३, गाथा-३३. ६९६७३. पार्श्वजिन स्तुति संग्रह व प्रत्याख्यान सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ८-७(१ से ७) = १, कुल पे. ३, जैये. (२६४१०, ११४४४). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति - पलांकित, पृ. ८अ संपूर्ण. सं., पद्म, आदि: श्रीसर्वज्ञं ज्योति, अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ८अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमुत्तम वस्तु, अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. ८आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगए अब्भत्त, अंतिः बोसरामि भणिज्यो ६९६७५ () मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन व सीमंधरस्वामी स्तवन, संपूर्ण वि. १८७२, चैत्र शुक्ल, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. प्रांतिज, प्रले. मु. खुशालचंद ऋषि; पठ. श्रावि. गलालबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२४.५x१२, १४४३४-४६). १. पे. नाम. मुनिसुव्रतस्वामी स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., पद्य, आदि: वरसे वरसे वचन सुधा, अंति: हंस कहे ० समकित छोड, गाथा - ९. २. पे. नाम. श्रीमंधरस्वामीनो स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तु तो माहविदेहना; अंति: कान० नित ताहरा जी, गाथा- ९. ६९६७६, (+) गुणस्थानक्रमारोह सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११.५, १५X४६). For Private and Personal Use Only गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४४७, आदि: गुणस्थानक्रमारोह अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य वि. १४४७, आदि: अहं पदं हृदि, अंति: (-). ', Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९६७८. गौतमस्वामिमंत्रादि जापविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१२, १५४४२-४६). १.पे. नाम. गौतमस्वामी मंत्र-जाप विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: प्रवेशे च महत्वं च. २.पे. नाम. अपराजिता मंत्र-जाप विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ अजिए अपराजिए; अंति: लाभ सौभाग्य युगलं. ३. पे. नाम. वासुपूज्य मंत्र-जाप विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: शुभाशुभं दृश्यते. ४. पे. नाम. वर्द्धमान मंत्र-जाप विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ वीरे वीरे महावीरे; अंति: द्यूतादिषु अजेयो इति. ६९६७९. (+) दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४४२-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अध्ययन-३ अपूर्ण तक है.) ६९६८०. (+) चारित्र विधि, संपूर्ण, वि. १८७५, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि; पठ. मु. सुखलाल ऋषि (गुरु मु. वीरचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १७४३५). चारित्र विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: प्रथम सचित्त वस्तु; अंति: पावकम्मं न बंधइ. ६९६८१. (+) अष्टोत्तरीस्नात्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४३३). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है.) तीर्थमाला स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९६८२. (+#) एकाक्षरनाममाला व स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४४४-६२). १.पे. नाम. एकाक्षर नाममाला, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-६ अपूर्ण तक लिखा है.) २.पे. नाम. थूलभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. कनककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: थूलभद्रमुनिसर मंदिर; अंति: कनककुशल०बावनी लिखाणा, गाथा-१३. ६९६८३. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१२, १४४३४-३७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-२८. ६९६८४. (+) चिंतामणीपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ८४४६). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि: नमद्देवनागेंद्रवृंदा; अंति: चिंतामणि पार्श्वनाथः, श्लोक-७. ६९६८५. (4) दसपच्चकखाण, संपूर्ण, वि. १८७५, आश्विन कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नौतनपुर, प्रले. मु. भाणजी ऋषि; पठ. मु. देवजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पार्श्वनाथजी प्रसादात् लिखूछे., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७X४२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उगे सूरे नोकारसीयं प; अंति: सहसागारेणं वोसिरामि. ६९६८६. (+) अर्हत्पूजन विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४३६). For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १२३ आचारदिनकर-शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., आरम्भ व अन्त के कुछ भाग नहीं हैं.) ६९६८७. (+) आलावा पत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १६४५४). आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: धांगुलं पंचनव भागाः, (पू.वि. जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति के आलापक अपूर्ण से है.) ६९६८८.(+) वैराग्यशतक सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४८). वैराग्यशतक,प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ से १५ तक है.) वैराग्यशतक-टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., गद्य, वि. १६४७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ की टीका अपूर्ण से गाथा-१५ की टीका अपूर्ण तक है.) ६९६८९. (+#) पार्श्वपद्मावतीमंत्रविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११, २१४५६-६१). पद्मावतीदेवी जापमंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: ॐ अमृते अमृताय अमृता; अंति: (-), (पू.वि. अंत के कुछ पाठ नहीं हैं.) ६९६९०. गौतमपृच्छा सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२८x११, ९४३०). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि: वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक की टीका है.) ६९६९१. (+) होलिका व्याख्यान व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७X४४). १.पे. नाम. होलिकापर्व व्याख्यान, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: यतो धर्मस्ततो जयः, श्लोक-६५. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), श्लोक-५. ६९६९२. (#) हर्षकुलगणिनां शतार्थीबिरदधारिणा रिषिमतिउत्पत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४३). हर्षकुलगणिनां शतार्थीबिरुदधारीनां रिषिमतिउत्पत्ति विवरण, सं., गद्य, आदि: संवत् १५८६ वर्षे पं.; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पूज्य हेमविमलसूरि के पाटण से राजनगर चातुर्मासार्थ पधारने के वर्णन तक लिखा है.) ६९६९३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९-७(१ से ६,८)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित.. जैदे., (२५.५४१०, १३४३७-४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५, गाथा-२५ अपूर्ण से अध्ययन-७. गाथा-६ अपूर्ण तक व अध्ययन-१०, गाथा-५ से ३२ अपूर्ण तक है.) ६९६९४. (#) लघुशांति स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३७). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-बालावबोध, ग. दयाकीर्ति वाचक, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेवाचार्य; अंति: तेहनउपद स्थानक पामइ. ६९६९५. (+) पार्श्वनाथ निसाणी, सिंह मर्कट कथा व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, १४४४०). १.पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी निशानी, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणहरष कहदा है, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे. नाम. सिंहमर्कट कथा, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पंडितोपि वरं शत्रु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१६ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सत्यं सत्वं सदाचारः; अंति: कार्येषु तृणवत्, श्लोक-३. ६९६९७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२५-१२३(१ से १२३)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ६x४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३५, गाथा-२९ अपूर्ण से अध्ययन-३६, गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९६९८. (+) संकाशश्रावककथा व क्षुल्लककुमार कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २.प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५४). १.पे. नाम. संकाशश्रावक कथा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: पमायमित्त दोसेणं; अंति: मोक्षलक्ष्मीः , गाथा-७१. २. पे. नाम. क्षुल्लककुमार कथा, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयंति जितमत्सराः; अंति: सर्वैरपि महात्मभिः, श्लोक-२२. ६९६९९. (+#) साधुपाक्षिकादि अतिचार व पाक्षिक क्षामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १६४५२). १.पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणमि आचरणं; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. साधुपाक्षिकक्षामणा सूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: पियं च मे जंभे; अंति: (१)मणसा मत्थएण वंदामि, (२)सत्थार पारगा होह, आलाप-४. ६९७००. (+) संथारापोरिसीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१०.५, ७४३६). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीही ३ नमो खमासमणा; अंति: इय सम्मत्तं मएगहियं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुनमस्कार; अंति: सम्यक्त्वमइ ग्रहिउ. ६९७०१. (+) लोकनालिद्वात्रिंशतिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. देवसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३४-३८). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा ज लोय; अंति: धम्मकित्तिन इह भिसं, गाथा-३२. ६९७०२. (+) लघुशांतिस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५६, चैत्र शुक्ल, १, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जिहानावाद, प्रले.पं. सुमतिसौभाग्य; पठ. श्राव. देवीदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३५-४२). लघशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (१)सूरि श्रीमानदेवश्च, (२)स्तूयमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शांतिं श्रीशांतिनाथ; अंति: थका जिनेश्वर प्रतइ, (पठ. रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य) ६९७०३. (+) लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. भादोसडानगर, पठ. फता, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४९.५, १०४३४). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १२५ ६९७०४. (+) २७ भवनिबद्धमहावीरजिन चरित्र व उदायन कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११,१५४६३). १.पे. नाम. महावीरस्य सप्तविंशतिभवनिबद्धं संक्षिप्त चरित्रं, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. २७ भवनिबद्ध संक्षिप्त महावीरजिन चरित्र, सं., गद्य, आदि: पश्चिम महाविदेहे; अंति: मोक्षं जगाम. २. पे. नाम. उदायनराजा कथा-क्षमापना विषये, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: वीतभये नगरे महसेनादि; अंति: क्षामणं विधेयं. ६९७०५. संथारापोरसी, २४ मांडला व प्रतिक्रमण सूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२३.५४१०, ११४३४). १. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-१०. २. पे. नाम. २४ मांडला, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: दूरे उच्चारे पासवणे; अंति: (१)पासवणे अणहीयासे ३, (२)करइ एवं २४ जाणिवा. ३. पे. नाम. संथारा उवट्टणकी, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पसारणकी अछुक्कविसयकायकी" पाठांश तक लिखा है.) ४. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का सव्वसवि सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९७०६. (+#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३.५४९.५, १५४४९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ६९७०७. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, ११४४२). __ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ६९७०८. जिनपंजर स्तोत्र व जिनरक्षा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, १२४३१). १.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जैनरक्षा स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनरक्षा स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१८. ६९७०९. (+#) महादेव स्तवनं, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पठ. श्राव. लक्ष्मीचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३५). महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३४ अपूर्ण से है.) ६९७१०. श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १०x२८). श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पगर पाणी पंथ सर उपर; अंति: तो कटोती मइ गंग है. ६९७११. पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२३.५४१०.५, १५४३८-४२). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन द्यौ सरसती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९७१२. (+#) ६३ सलाकापुरुष विचार, कर्मपरिसह विचार व २४ जिन देहमानादि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१०.५, १५४६२). १. पे. नाम. ६३ शलाका पुरुष वक्तव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: भरहो। सगरो२ मघवं३; अंति: केसव सव्वे अहोगामी, गाथा-१७. २. पे. नाम. कर्म परिसह विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ परिसह उदयहेतुभूत कर्म विचार, मा.गु., गद्य, आदि: मोहनीय कर्मना २; अंति: बंध९ रोग१० तृणपरिसह. ३. पे. नाम. २४ जिन नाम, आयु, देहमान,चक्रि,वासुदेव समय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ६९७१३. (+) अनशन आलापक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. १७, जैदे., (२३४९, १०४३९). अनशन आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: इअसंमत्तं मए गहिअं. ६९७१४. (+) कातंत्रविभ्रम की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४१०, १४४३९). हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., गद्य, वि. १६२५, आदि: नत्वा जिनेंद्र स्व; अंति: (-), (पू.वि. "गीर स्वरहीनं० नाम्यंता" पाठांश तक है.) ६९७१५. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०, ८४५२). पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसंखेसर पासजी तुझ; अंति: नित चाहे दीदार रे, गाथा-८. ६९७१६. (+) शनिश्चर स्तुति व नेमराजिमति सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. समदरडी, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११, १२४३०). १. पे. नाम. शनिश्चर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. य. उदैराम; पठ. मु. रायचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: समरदेव शनिराय थायै; अंति: हेम० सुप्रसन शनीश्वर. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, प्रले. मु. पदमा; पठ. मु. रायचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: नेम कांइ फिर चाल्या; अंति: जिनहरख पयंपे हो, गाथा-८. ६९७१७. (+-) ऋषिमंडल स्तोत्र-रक्षात्मक गाथाएँ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२०x१०, १२४३२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. प्रारंभिक गाथा संपूर्ण लिखकर बाकी के समान पाठ प्रतिकात्मकरूप से लिखे गये हैं.) ६९७१८. (+#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४१०, १४४२८). सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, वि. १५२७, आदि: कमलभूतनया मुखपंकजे; अंति: विबुध सुमति श्रेया, श्लोक-११. ६९७१९. (+#) तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १२४४१). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ६९७२०. (+) नवग्रहगर्भितपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ९x१९). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरिन पीडति, गाथा-१०. ६९७२१. (+) शीलवतोच्चारण आलापक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४९.५, १८४५२). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नांदि मांडीइ अख्याणा; अंति: पच्चक्खाण कराविवं. For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , आदिः (-) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १२७ ६९७२२. (#) ज्ञानपंचमी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४७). ज्ञानपंचमी स्तोत्र, म. कीर्तिराज, प्रा., पद्य, आदि: वंदामि नेमिनाह पंचम; अंति: कित्तिराय मणोहरो, गाथा-११. ६९७२३. (2) थूलिभद्र स्वाध्याय नवरसो, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रावण शुक्ल, १, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले.ग. भूपतिसागर (गुरु ग. कांतिसागर पंडित); गुपि.ग. कांतिसागर पंडित; पठ. श्राव. भगवानजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक लिखित-श्रीकांतिसागर गणि गुरुभ्यो नमोनमः, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४५२). स्थूलिभद्रमुनि नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ सगला फल्या रे, ढाल-९, गाथा-७१.. ६९७२४. (#) अरिहंतादिवंदना स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४९.५, १५४३९). अरिहंतादि वंदना स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: सिरि उसहाइ जिणंदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ अपूर्ण तक लिखा है., वि. हाशिया में भी लिखा गया है.) ६९७२५. (+) स्थानांगसूत्र-स्थान-४ उद्देश-३ दूहसेजासुहसेजा सूत्राधिकार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०,१५४४३). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९७२६. (+) सम्यक्त्व कौमुदी कथा, अपूर्ण, वि. १७७८, कार्तिक कृष्ण, ३, बुधवार, जीर्ण, पृ. ३९-३८(१ से ३८)=१, प्रले. मु. देवेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४६). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४५७, आदि: (-); अंति: धर्मो विधीयतां, पद-४४४, (पू.वि. "लक्ष्मीविक्षितोहमद्य पूर्वजाम गृहं प्राप्ता" पाठांश से है.) ६९७२७. (+) राजप्रश्नीयसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३५-३८). राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदि: (१)नमो अरिहंताणं० नमो, (२)प्रणमत वीरजिनेश्वर; अंति: (-), (पू.वि. "सर्वासु दिक्षु विदिक्षु च प्रचुरा" पाठांश तक है.) ६९७२८. साधुप्रतिक्रमण सूत्र, अष्टमी स्तुति व दीपमाला स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८१८, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ५, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. लालचंद (गुरु मु. दयाल); गुपि.मु. दयाल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१०,११४३९). १. पे. नाम. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८१८, माघ शुक्ल, १, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. पं. लालचंद (गुरु मु. दयाल); गुपि.मु. दयाल, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू.वि. अबोही परिआणामि पाठांश अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. जिनलाभसूरिस्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अगण्य पुण्य पीयूष; अंति: जयंतु जगती तले, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जिनलाभसूरि स्तुति, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गछपत तुझ श्रावक घणा; अंति: श्रीजिनलाभजिनसूरि, गाथा-१. ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहे; अंति: विहसंति कल्याणदाता, गाथा-४. ५. पे. नाम. दीपमाला स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: पापायां पुरि चारु; अंति: जिनचंद्र० क्रीडितं, श्लोक-४. ६९७२९. (+) समुद्रसंख्या, ४५ आगमनाम श्लोकसंख्या व १४ रत्न विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १६४३८). चिह्न-संशोकिाटीका, अपाम गृहं प्राप्ता For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२८ www.kobatirth.org १. पे नाम, समुद्र संख्या विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. समुद्रसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: समुद्र २०९७१५२०००००, (पू.वि. घृतवरसमुद्र से है.) २. पे. नाम. ४५ आगम श्लोक संख्या, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः १ आचारांग २५००२ सुक, अंति: ७०० अनुयोगद्वार ८२. ३. पे नाम, चक्रवर्ती १४ रत्न विचार, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १४ रत्न विचार- चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, आदि: सेणावइ गाहावइ: अंति: (-), (पू.वि. रत्न- १३ खड्गरत्न तक है. वि. रत्ननाम सूचक एक प्राकृत गाथा भी लिखी गई है.) ६९७३० (+) निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २१-२० (१ से २०) = १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. वे. (२६४११.५, १२x६०). भगवतीसूत्र - टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहन्नपय; अंति: (-), (पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण का बालावबोध, मा.गु. गद्य, आदि: जीव प्रदेश जघन्यपदे१; अंति: (-), पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९७३१. (#) विद्वद्गोष्ठी व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " (२५.५X११, ११४३८). १. पे. नाम. विद्वगोष्ठी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., पद्य, आदि: श्रीभोजराज सभायां अंतिः नैव च किदृशाः स्युः, २. पे नाम. सुभाषित लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: विवेकात्प्राप्यते, अंति: मुक्तिराप्यते श्लोक - १. ६९७३२. (+) संतिकरं, तिजयपहुत्त व नमिऊण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १८x४९). יי श्लोक-२१. १. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः शंतिकरं शंतिजिणं जग, अंतिः मुणिसुंदर० पयं परमं गाथा- १३. २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ३. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिठण पणय सुरगण, अंति: (-), (पू.वि. गाथा १७ अपूर्ण तक है.) ६९७३४. गौतमस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५.५४८, १०४४४). 1 गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति, अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक - ९. ६९७३५. शाश्वताअशाश्वता चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८८७, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. जैतसी गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५८.५, १०x४३). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंतिः सततां चित्तमाणंदकारी, श्लोक - ९. ६९७३६. (+) पुण्यपापकुलक व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६X१०, १३x४५). १. पे. नाम. पुण्यपाप कुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: छत्तीसदिणसहस्सा; अंति: (१) जिणकित्ति० उज्जमह, ( २ ) संखा गब्भय मणुस्साणं, गाथा-२१, (वि. गाथा - २१वी दुबारा लिखी गई है. पश्चात् "२३१००३४५०००१२०" लिखा गया है.) २. पे नाम, सिद्धजीव संख्या, पृ. १आ. संपूर्ण, प्रा., पद्य, आदि: इया होई सि पुच्छा, अंति: (-), गाथा - १, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९७३७. (#) नपुंसकदीक्षामोक्षादि विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४९). नपुंसकदीक्षामोक्षादि विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (१)भगवत्याद्यभिप्रायेण, (२)श्रीभगवत्याद्यभिप्रा; अंति: बहुश्रुता वा विदंति. ६९७३८. सिद्धचक्र स्तोत्र, स्तवन व उद्यापनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५४). १. पे. नाम. सिद्धचक्रस्य मूलमंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र मूलमंत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँ, अंति: असिआउसा नमः. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसंनाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धचक्कं नमामि, गाथा-६. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण मणकामणा; अंति: महंताण कल्लाणगं, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्रं, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: विज्जाहर किन्नर असुर; अंति: पयडउ भविय सुहनिहाण, गाथा-४. ५. पे. नाम. सिद्धचक्र उजमणा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: वलय ३ प्रथम वलये पदल; अंति: सर्व नालिकेर ढोइयइ. ६९७३९. (4) आर्द्रकुमार चतुष्पदी, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १७४५४). आर्द्रकुमार चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: शांतिकरण शांतिसरू; अंति: मानसागर० निधि थाय रे, ढाल-३, गाथा-२७. ६९७४०. (4) पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३६-४३). पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, मु. रत्नसोम, सं., पद्य, आदि: श्रीगीर्वाणप्रणता; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) ६९७४१. जंबूद्वीपसंग्रहणी व महावीरजिन स्तव, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०.५,१५४४७). १. पे. नाम. जंबूद्वीपसंग्रहणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिण सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तव-बृहत्, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ____ आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ६९७४२.(+) भाषाभेद विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १५४४१). प्रज्ञापनासूत्र-टीकागत ४२ भाषाभेद विचार, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण वीरनाह; अति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ तक है.) ६९७४३. (+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, स्तोत्र, स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १२४३३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: सिद्धचक्क नमामि. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: भत्तिजुत्ताण सत्ताण; अंति: चक्क महताण कल्लाणगं, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जिण सिद्ध सूरि; अंति: कुणतु कल्लाणं, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवनं, पृ. २आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ६९७४४. (+#) लघुशांति स्तवनं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४४४). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ६९७४५. (+) ग्रहशांति स्तोत्र व चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवः, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७X४२). १. पे. नाम. नवग्रहशांतिकं, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिविधिश्रुता, श्लोक-११. २.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवः, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ६९७४६. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८.५४१२.५, १४४४८). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाण, गाथा-६३. ६९७४७. (+) क्रियागुप्तचतुर्विंशतिजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १६x६५). चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु. सागरचंद्र, सं., पद्य, आदि: जगति जडिमभाजि व्यंजि; अंति: तां क्रियां गुप्तकैः, श्लोक-२५. ६९७४८.(+) अष्टापदस्यऋषभ स्तवनं, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. छबीलजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३८, दे., (२७४१२, १०४३६). आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअष्टापद ऊपरे जाण; अंति: भाण० फले सघली आस के, गाथा-२३. ६९७४९. (+) देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण कथानक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१०.५, २०४४९). देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण कथानक, सं., गद्य, आदि: एकदा राजगृहनगर्यां; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., द्वितीय पूर्वसूत्रपाठ प्रसंग अपूर्ण तक है.) ६९७५०. (+) परमेष्ठीगुण, मिथ्यात्वभेद व अष्टभंगी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्र १४२ हैं., संशोधित., जैदे., (२१४९.५, २०x१३). १.पे. नाम. ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: मरणं उवसग्गसहणं च. २.पे. नाम. मिथ्यात्व २१ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. २१ मिथ्यात्त्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: लौकिक देवगत मिथ्या; अंति: मुत्तसन्ना २१. ३. पे. नाम. ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: न जाणइ न आदरइ न पालइ; अंति: श्रावक३ सुश्राविका४. ६९७५१. (+) पोरसी साढपोरसि आदि का कालप्रमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (४२४९, २१४१६). प्रतिलेखनकालमान गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: आसाढे मासे दुप्पया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १३१ ६९७५२. योगचिंतामणि, अपूर्ण, वि. १७९१, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ८२-८१(१ से ८१)=१, ले.स्थल. रासेड, प्रले. मु. पुण्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. ३०५०९, जैदे., (२२४१९, १३४३२). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: सप्तमको मिश्रकाध्याय, अध्याय-७, (पू.वि. सात आशय स्थान अपूर्ण से है., वि. अंत में रिक्त स्थान पर देवनागरी लिपि में उर्दू की आयात लिखी गई हैं.) ६९७५३. साधुपाक्षिकादि अतिचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३४९.५, १६x४७). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ६९७५४. (+#) सीमंधरजिन गीत व संघयणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१०, १४४३६). १. पे. नाम. सीमंधरजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: पूर्व पुष्कलावती बीज; अंति: मुगत मिलन केरी आस, गाथा-९. २. पे. नाम. बृहत्संग्रहणी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) ६९७५५. सिद्धसारस्वत् स्तव, गणेश स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४१०, १२४४२). १.पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: (-); अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३, (पू.वि. श्लोक-११ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. गणेश स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. गणपति अष्टक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सिद्धिं च आप्नुयात्, श्लोक-१०, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-८ अपूर्ण से लिखा है.) ३. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ऋ. वेद व्यास, सं., पद्य, आदि: जपाकुसुमसंकासं; अंति: व्यासो० न संशयः, श्लोक-१३. ६९७५६. नेमिनाथ बारमासो, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक कृष्ण, ११, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२३.५४११, १४४३५). नेमिजिन बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: समदबीजैजीरा पुत खोटी; अंति: भार मुक्त पधार्याजी, गाथा-१७. ६९७५७. (2) रावणमंदोदरी सज्झाय व आदिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्राव. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२३.५४१०.५, १७X४०). १. पे. नाम. रावणमंदोदरी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहि., पद्य, आदि: कहे मंदोदरी सुण पिया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आसकरण, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: ऋषभजिणेसर तुमैन; अंति: ऋष आसकरणजी इम भणै, गाथा-८. ६९७५८. श्रीचंदराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.८३-८०(१ से८०)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४३८). चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-१८ गाथा-२०९६ अपूर्ण से ढाल-२३ गाथा-२१६६ अपूर्ण तक है.) ६९७५९. रजोहरणमुखवस्त्रिका विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२८x१३, १३४३५). रजोहरणमुखवस्त्रिका विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: बत्तीसंगुल दीह; अंति: वस्त्रिका करणीयेति, (वि. प्रवचनसारोद्धार टीका का आधार दिया गया है.) ६९७६०. एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७.५४१२.५, ६४४९). मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: क्षपति विपदः पंचकमदः, श्लोक-४. ६९७६१. कालज्ञान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२१.५४७.५, ११४३९). १. पे. नाम. कालज्ञान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कालज्ञान आम्नायसहित, सं., प+ग., आदि: दीपोत्सवस्य कृष्ण; अंति: अतिसारेण मरणं भवति. २.पे. नाम. आयुष्यलक्षण श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: लक्ष्म लक्षणो लक्षत; अंति: मते आयुप्रमाणं सदा, श्लोक-६. ६९७६२.(+) आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७.५४११, १०४५५). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: चरणगुणट्ठिओ साहू, गाथा-२५२०, ग्रं. २८००, (पू.वि. गाथा-५९ अपूर्ण से है.) ६९७६३. स्त्रीहितशिक्षा गुंहली व मौनएकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राधनपुर, जैदे., (२७.५४१२, १४४३३). १.पे. नाम. स्त्रीहितशिक्षा गुंहली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. विबुधविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सोल करी सणगार सोहागण; अंति: हो लाल वधारो नेगसु, गाथा-६. २. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम बोले ग्रंथ; अंति: लालविजय० विघन निवारी, गाथा-४. ६९७६४. (+) नमस्कारमहामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, १२४३३). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: णमो लोए सव्वसाहुणं, पद-५, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध , मा.गु., गद्य, आदि: नमो कहता नमस्कार हो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., आचार्य के ३६ गुणों के वर्णन तक है.) ६९७६५. (+) पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३४). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: सकल पदारथ पूरवइ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१९ अपूर्ण तक ६९७६६. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १५४६८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पत्र हैं., पाक्षिक खामणा दो अपूर्ण से ६ स्थूल अपूर्ण तक है.) ६९७६७. (#) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४७.५, ३४३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-५ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: दुर्गति पडतां जीवनइ; अंति: (-). ६९७६८. (+) गुरुउपदेशजिनपूजादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, १४४४६-४८). उपदेशरत्नाकर-स्वोपज्ञवृत्ति-चयनित, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: एवं केषु वि जीवेषु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पत्र-१४९ तक के चयनित पाठांश हैं.) ६९७६९. (+) द्विविधवनस्पति विचार, संपूर्ण, वि. १५९१, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४३). द्विविधवनस्पति विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: वणस्सइ काइया दुविहा; अंति: सुय एसा आणा जिणंदाणं. ६९७७०. (+) साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८.५४११.५, १३४६५). साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: नम्राखिलाखंडलमौलि; अंति: स्ताद्वर्द्धमानो मम, श्लोक-३३. For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९७७१. (+) शांतिनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, ११४३७). शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., पद्य, आदि: नाना विचित्रं बहुदुख; अति: दृश्यकार्येषु नित्यं, श्लोक-९. ६९७७२. बीजतिथि सज्झाय, दूहा व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२६.५४११.५, १३४४१). १.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भव्य जीवने; अंति: नित विविध विनोद रे, गाथा-८. २. पे. नाम. प्रहेलिका, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रहेलिका संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: केने काइवलूहो केने; अंति: वहे गधो बारे नाह, गाथा-५. ३. पे. नाम. गर्भ परीक्षण, पृ. १आ, संपूर्ण. __ ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: रवीराहुश्च रास्यंकौ; अंति: बे वधे तो स्त्री. ४. पे. नाम. औपदेशिक दोहे- मानव भव, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९७७३. (+) पर्युषण चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, १०४३५). पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पजुषण गुणनीलो; अंति: शासने पामो जयजयकार, गाथा-९. ६९७७४. (+) ऋषभजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. अमरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १०४४१). १.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन-धुलेवामंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसरसतीने सुपसाय; अंति: हर्ष कहे हेतइं करीजी, गाथा-७. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिपुरष श्रीआदिस जिन; अंति: हर्ष सदा विलसंत रे, गाथा-८. ६९७७५. ज्ञानपदगुण वंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७७१३, १३४४३). ५१ ज्ञानगुण विचार, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीश्रोत्रंद्रिय; अंति: केवलज्ञान गुणाय नमः. ६९७७६. (#) गणधरवंदन गुंहली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पलासूयानगर, प्रले.मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ११४४६). गणधरवंदन गहंली, आ. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीरे कामनी कहे सुण क; अंति: वीर सासन सिणगार रे, गाथा-८. ६९७७७. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रावण अधिकमास कृष्ण, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. साणंदनगर, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री अमीझरापार्शव्नाथ प्रसादात्., जैदे., (२६.५४१२, १४४३१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. ६९७७८. (2) बृहत्संग्रहणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२०.५४९.५, ९४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण से ६९ अपूर्ण तक ६९७७९. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ चूलिका१-२, संपूर्ण, वि. १६४०, चैत्र कृष्ण, १०, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, लिख.ऋ. करमण मोरबीया; अन्य. सा. राई आरजा; सा. रुपाइ आर्या; सा. लीला आर्या (गुरु सा. रुपाइ आर्या), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२९x१२.५, ७४४३). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९७८०. (+#) पार्श्वनाथस्तवन व चिंतामणीमंत्रराज कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२९x१२, १०४३३). १.पे. नाम. धरणेद्रपद्मावतीमंत्रसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित-मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: नमो भगवते श्रीपार्श; अंति: सर्वेपि पूर्यंते. २. पे. नाम. चिंतामणीमंत्रराजकल्प, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. चिंतामणीमंत्र राजकल्प, सं., पद्य, आदि: नत्वा प्रणतनागेंद्र; अंति: चिंतामणी जगत्प्रभोः, गाथा-४५, (वि. यंत्र सहित) ६९७८१.(+) सकलार्हत् स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रावण शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. गिरधरशंकर भोजक; लिख. श्रावि. अभयकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (९०४) जब लग मेरू थिर रहें, दे., (२७.५४११.५, १०४३१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-३४. ६९७८२. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, आषाढ़ शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीठोरानगर, प्रले. गणपतराव आबाजी अजनाडकर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४११.५, १०x४१). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्व सिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ६९७८३. (#) वनमालाकथानक व सोमवतीअमावस्या कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२९x१२, १६x६२). १. पे. नाम. वनमालाकथानक, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. वनमाला कथानक-धर्मप्रभावोपरि, सं., पद्य, आदि: सम्यक्त्वरत्नं यत्ने; अंति: धर्ममूलं हि दर्शनं, गाथा-१५९. २.पे. नाम. सोमवतीअमावस्या कथा, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: शरतल्पगतं भीष्म; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१९ अपूर्ण तक है.) ६९७८५. श्रीपाल चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२८.५४१२.५, ५४२८). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं झायित; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ६९७८६. संवेगद्रुमकंदली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१२.५, १५४४८). __ संवेगद्रमकंदली, आ. विमलाचार्य, सं., पद्य, आदि: दूरीभूतभवार्तिभिः; अंति: बद्धो भवद्भ्योंजलिः, श्लोक-५२. ६९७८७. (+) लघुदंडक, संपूर्ण, वि. १९४०, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. विदासर, अन्य. श्राव. रामसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२७.५४१२, २४४४५). २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीर १ अवगाहना २; अंति: जाणवा सिद्धजोग नथी. ६९७८८. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. इल्लोलनगर, प्रले. मु. लक्ष्मीविजय, पठ. श्रावि. सांकलीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२८x१२, १२४३७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ६९७९२. प्राकृतलक्षण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२८.५४१२, ८x१९-२५). प्राकृतलक्षण, क. चंड कवि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा वीरं; अंति: (-), विधान-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "द्वित्रिशब्दाभ्यां जस्" सूत्र तक लिखा है.) ६९७९३. (+#) लघुशांति, सकलार्हत, पाक्षिक स्तुत्यादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १४-१०(१ से ९,११)=४, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२८x१२.५, १३४३८). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: पूज्यमान० जयति शासनं, श्लोक-१९, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण तक है.) ३. पे. नाम. पंचमीतिथी स्तुति, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: ए सफल हुए निज कायतो, गाथा-४, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा हैं.) ४. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १२अ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तुति, पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निसदीस, गाथा-४. ६. पे. नाम. चतुर्दशीतिथि स्तुति, पृ. १२आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धिः, श्लोक-४. ७. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रह उठी वंदु ऋषभदेव; अंति: ऋषभदास गुण गाइ, गाथा-४. ८. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ९.पे. नाम. अजितशांति स्तव, पृ. १३आ-१४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ६९७९४. (+) लघुसंग्रहणी सह टबार्थ व कर्णिकागणना श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. शिवराम; पठ.पं. साकरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२८.५४११.५, ५४३३). १.पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० नमस्कार करी; अंति: रची हरिभद्रसूरिइ. २.पे. नाम. कर्णिका काढवानां श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. कर्णिकागणना श्लोक, सं., पद्य, आदि: विषमात्पदतस्स; अंति: द्विगुणी कृतंदलयेत, श्लोक-२. ६९७९५. (+) ऋषभजिन स्तुत्यादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४९, ४८x२१). १. पे. नाम. ऋषभदडंक स्तुति, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आदिजिनदंडक स्तुति, मु. सौभाग्यसागर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्वस्त अस्वःकरीरादि, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयं योगिध्येय; अंति: कासार श्रीसारंग, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सारंगशब्द पर्यायविचार, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्ण १ तुरंगम २; अंति: १४ घातक १५ कमल १६. ४. पे. नाम. सारंगशब्द पर्यायश्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. ग. भावसागर, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाश्वहस्ति मृग; अंति: कथयति बुधा क्रमेण, श्लोक-१. ५. पे. नाम. वैदिक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).. ६९७९६. (+) अनुयोगद्वारसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४१-१४०(१ से १४०)=१, प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, १८x२७-३१). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रकरण-३८, ग्रं. १४००, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., मूल पाठ पूर्व के पत्रों में समाप्त होने की संभावना है.) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: रचिता प्रभृति वृत्ति, ग्रं. ५७००, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., "मनंतरभावितत्तकारणमित्यादि" सूत्र से है.) ६९७९७. (+#) ज्ञानक्रिया संवाद, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५०). ज्ञानक्रिया संवाद, सं., गद्य, आदि: श्रीमद्भिः कानि कानि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., नौवीं क्रिया अपूर्ण तक ६९७९८. पाक्षिकप्रतिक्रमण सह टबार्थ व सामायिकना ३२ दोष, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ४४३२). १. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्ति वंदणीय; अंति: सव्वे पक्खिपडिक्कमणं. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवसियं पडिकणो; अंति: खामणा आयारिय उवझाए. २. पे. नाम. सामायिकना ३२ दोष, पृ. १आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: दस मनरा दोष वर्जणा; अंति: दोष ३२ वर्जणा. ६९७९९. (+#) देवसिप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्र १४२, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१२, २७-३०x१३-१६). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पहली तो थापनाजी करणी; अंति: सांति कहनी इरियावही. ६९८००. (+#) पंचमीतपनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८६२, आश्विन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १२४३९). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सयल सुखदाया रे, ढाल-५, गाथा-१६. ६९८०१. नवपद सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४११.५, ११४३२). नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती माता मया करो; अंति: विमल० नामे आणंदोरे, गाथा-११. ६९८०२. (+) ५६३ जीवभेद श्लोक, छंद व रूपीअरूपी जीवअजीव भेदगाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४१३, १३४४७). १.पे. नाम. ५६३ जीवभेद श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रोक्ता नैरयिका; अंति: (-), श्लोक-४. २. पे. नाम. त्रिभंगी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सौभाग्यसूरि त्रिभंगी छंद, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: यौ तपगच्छनायक सुंदर; अंति: लक्ष्मी०आसीसं गणधारं, गाथा-६. ३. पे. नाम. जीवअजीव के रूपीअरूपीभेद गाथा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १३७ रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्माधम्मागासा तिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्म जे तेहनो अस्ति; अंति: (-). ६९८०३. चोत्रीस अतिशय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १३४४३). समवायांगसूत्र-हिस्सा ३४ अतिशय समवाय, प्रा., गद्य, आदि: चोत्तीसंबुद्धाइ सेस; अंति: क्खिप्पामेव उवसमंति. ६९८०४. (#) जिराउलापार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १९४४२). पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: जिराउला मंडण श्रीजिन; अंति: लावण्य०नवनिधि आंगणे, गाथा-३८. ६९८०५. स्तवन, स्तुति व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ८, जैदे., (२६.५४११.५, १२४२८). १.पे. नाम. बीजतिथि स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: सरस वचन रस वरसती; अंति: तस घर लील विलास ए, ढाल-३, गाथा-१६. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीमंदिरजीनी वीनती; अंति: चतुर कहे गुण गेह, गाथा-९. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: वरधमान जीनवर वलि; अंति: चतुर० सूख करीयेजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, प्र. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. चतुरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: प्रभूगुण प्रीत ए ताह; अंति: चतुर० वरसे मेहरे, गाथा-७. ५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: धोबीडा तुं धोजे मननु; अंति: सहज० छे अमृत वेल रे, गाथा-६. ६. पे. नाम. आत्मशिक्षा सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. मु. चतुरविजय (गुरु मु. नवलविजय); पठ. मु. भवान ऋषि; मु.रूपा, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. भाण, मा.गु., पद्य, आदि: मारग वहे रे उतावलो; अंति: भाण० आतमा ओलगो जगनाथ, गाथा-८. ७. पे. नाम. केशी गौतमगणधर संवाद सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीस जनेसर पासना केसी; अंति: सीस उदयरस रंगेरे, गाथा-८. ८. पे. नाम. महावीरजिन परिवार स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर सासनसार; अंति: वाचक विमलवीजय जयकार, गाथा-५. ६९८०६. गौतम अष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३८). गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ६९८०७.(+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययनर-३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. कडवीबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९८०८.(+) त्रेवीसपदवी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४५, पौष शुक्ल, ९, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पंन्या. गौतमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५४२९). २३ पदवीगाथा, प्रा., पद्य, आदि: चऊदस्स रयणा चक्की; अंति: तमम्मि सम्महयगयपत्ती, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २३ पदवी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: चउदरत्न १४ चक्रवर्ति; अंति: त्रणज पदवी पामइ सही. ६९८०९ पद्मावतीदेवी व सरस्वतीदेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२६११.५, १६x४८). १. पे नाम समहिमान्वितमंत्रयुक्त पद्मावती स्तोत्र, पृ. पद्मावती स्तोत्र - समहिमान्वित मंत्रयुक्त, सं., पद्य, २. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं., पद्य, आदिः ॐ शुभ्रा शुभ्रविचा; अंति: सलोके नात्र संशयः, श्लोक-११. ६९८११. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२७.५x१२, १२-१४४४८). १. पे. नाम. तुंगियानगर जिनभक्ति श्रावकोपदेश वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १अ १आ, संपूर्ण. १अ-१आ, आदि; श्रीमत्पार्श्वस्यमहि अंतिः भजस्वंत शीलयुक्तः, श्लोक-११. प्रा. गद्य, आदि: तेणं० जाव तुंगी आए नयः अंतिः वत्थाइहि पूआ कायव्वा. " २. पे नाम. जिनालयादि में आचार भंग आलोयणा, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. निशीथसूत्र - हिस्सा जिनालयादि में आचारभंग आलोयणा, प्रा., गद्य, आदि से भयव्वं तहारूव समण, अंतिः पायचीतं हवीजा ३. पे नाम. सगरचक्रवर्ती पुत्र कथा, पृ. ९आ, संपूर्ण अंति: अष्टापदतीर्थ रक्षा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (१) अष्टापद पर्वते सगरचक, (२) गाउ आठ सुधी हेठो धरत, . (१) हजारने सामटा बाल्या, (२) पछे तो ग्यानी गम्य. ६९८१२. पंचमीतिथि व गोडीपार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. पं. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२५.५४१२, १४४३१). १. पे नाम. पंचमीतिथि स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, मा.गु., पद्य, आदि: पंचरुप करी मेरुशिखर, अंति: हरयो विघन हमारा जी, गाथा-४. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति गोडीजी, पृ. १आ, संपूर्ण, " पार्श्वजिन स्तुति - गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस, अंति: भाणनी जयत करेवी, गाथा-४. ६९८१३. (+) पंचमी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४१२, १५४३५). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिनेश, अंति: संघ सकल सुखदाय रे, ढाल - ५, गाथा - १६. ६९८१४. (*) काव्यकल्पलता सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२७X११.५, १६X५१). कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रतान-२ श्लोक- ८२ अपूर्ण से प्रतान-४ श्लोक-२ तक है.) कविशिक्षा - काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., गद्य, वि. १३वी आदि (-); अंति: (-). ६९८१५. (#) पार्श्वजिन स्तवनसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १२x३१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदिः परम पुरुष परमेस्वरु; अंति: अविचल पद निरधार, गाथा-७. २. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जैदे.. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन पास वडे धमचक, अंतिः विमल पसाई ० वजाऊला, गाथा- ६. ६९८१६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. (२६.५X११, २०x४५). For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १३९ पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "इच्छामि पडिक्कमिउं पगास सिज्झाय" पाठ से ___ "नेयाउयं संसुद्ध" पाठ तक है.) ६९८१७. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, ले.स्थल. पादलिप्तगाम, प्र.वि. श्रीआदीस्वरजी प्रसादात्, जैदे., (२६.५४११,७-११४३०-३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३५ अपूर्ण से है.) ६९८१८. (4) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७.५४११, २५४३१-३४). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "चत्तारि मंगलं" से "इरियावही" अपूर्ण तक पाठ है.) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९८१९. (+) मत स्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १५४५३). विविध गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय, प्रा.,सं., गद्य, आदि: स्व रक्षणे केचिद्देव; अंति: पासो तह संपई दसमो. ६९८२०.(+) सात स्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४४२). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तोत्र गाथा-१ अपूर्ण से गाथा १५ तक हैं.) ६९८२१. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-५, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. खोडाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १४४४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९८२२. चंद्रसूर्यमंडलक्षेत्रविष्कंभानयनविधिवत्रणलोक जिनबिंबसंख्या, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १५४६४). १.पे. नाम. सूर्यचंद्रमंडल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: सूर्यस्य दक्षिणोत्तर; अंति: ५१० स्थिता ४६६१. २. पे. नाम. त्रणलोकजिनबिंब संख्या, पृ. १आ, संपूर्ण. शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-), (वि. अंकमय भाषा.) ६९८२३. (2) औपदेशिकसज्झाय व आबूतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १६४३४). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. नित्यलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: मायाने वश खोटुं बोले; अंति: तेहथी अनुभव लहियेरे, गाथा-१४. २. पे. नाम. आबुतीर्थ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीमरुदेवीमातना केश; अंति: कहें उत्तम जयकार, गाथा-१७. ६९८२४. षद्रव्यपरिणाम सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४३६-४१). ६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: परणामी १ जीव २ मुत्त; अंति: सब गदमिय रहीय पवेसो, गाथा-१ ६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: छ द्रव्यमे विषै; अंति: माहि मिल जावै नही. ६९८२५. गुरु स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्रावि. पानबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पलविहा पारसनाथ प्रसादात्., जैदे., (२६.५४११.५, ९४२९). ओसवंशगच्छाधिपति सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मारी अरज सुणीजे हो; अंति: हो दोलित अति घणी, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९८२६. (+) दीवालीविचार व यंत्रफल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४२). १.पे. नाम. दीवाली विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व के आधार से वर्षफल, मा.गु., गद्य, आदि: दीवाली आदित्यवारी; अंति: ते पण जोईइ एणी रीते. २. पे. नाम. यंत्रफल विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसइ पय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ तक लिखा है.) ६९८२७. (+) जिननमस्कार व स्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १४४३७). १.पे. नाम. जिन नमस्कार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: मरालायर्यते नमः, श्लोक-२६. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति-प्रार्थना, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनात् दुरितध्वंसी; अंति: साक्षात् सुरद्रुमः, श्लोक-१. ६९८२८. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ७X४३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं० चंपाए; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: ते० तेणंकाल चवथा आरा; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९८२९. भावना विलास, संपूर्ण, वि. १८८७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. बुचकला, प्रले. पं. उमेदचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १५४४७). १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रणमि चरणयुग पास; अंति: बुद्धि न होइ विरुद्ध, गाथा-५२. ६९८३०. राजप्रश्नीयसूत्र-प्रदेसीराजा का आलावा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १०४३९). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "सोहमेकपे सुरीयाभे विमाणे उवो वाय सभाए जाव उवंवण्णे" पाठ तक लिखा है.) ६९८३१. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. ऊजेणनगर, प्रले.पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पारसनाथजी प्रसादात., जैदे., (२६४१२, १५४४५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-५०. ६९८३३. औपदेशिकश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रसंख्या नहीं दी गई है., दे., (२६.५४१२.५, ९४२५). श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मनोवाक्कायतस्त्यागो; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., "ब्रह्मचर्य्यन्तु भावयेत्" तक है, श्लोकांक नहीं लिखा है.) ६९८३४. (+) विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १४४३४). १.पे. नाम. २६ बोल श्रावक मर्यादा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. __प्रा., गद्य, आदि: उल्लण १ दंतवण २ फल ३; अंति: बहुतमोवायुः. २. पे. नाम. भावितीर्थंकरजीव गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रवचनसारोद्धार-भावितीर्थंकरजीव गाथा, हिस्सा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: पढमंच पउमनाहं सेणिय; अंति: चउवीसं भद्द जिणनाह, गाथा-२४. For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १४१ ६९८३५. (+) अन्योक्तिमुक्तावली की टीका-परिच्छेद ३ श्लोक २ से १६, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७.५४११.५, १७४६८). अन्योक्तिमुक्तावली-टीका*,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९८३६. (+) चिंतामणिपार्श्व स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, ८x२४). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ६९८३७. (+) स्वप्नविचार व सम्यक्त्वादिव्रतआरोपण विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १८४४८). १. पे. नाम. स्वप्न विचार-आगमोक्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्वप्नविचार श्लोकसंग्रह-आगमोक्त, सं., पद्य, आदि: स्वप्न पाठकेषु एगयउ; अंति: कर्णे प्रविष्य वदेत, श्लोक-३४. २. पे. नाम. ७२ स्वप्न विचार, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: इत्थि वा पुरिसो वा; अंति: माहास्वप्न ३० जाणवा. ३. पे. नाम. सम्यक्त्वादिव्रत आरोपण विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. व्रतआरोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (१)अह भते दंसण विसोहि, (२)अन्नं भेते दित्थामे; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ६९८३८. (#) नवस्मरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२, १०x२९). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संतिकरं स्तोत्र गाथा ६ अपूर्ण तक लिखा है., वि. नवकार, उवसग्गहर, तिजयपहुत्त तथा संतिकरम् स्तोत्र ६९८३९. (#) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ९)=२, ले.स्थल. रामपुरानगर, प्रले. निहालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, संपूर्ण. ६९८४०. (+) वीरस्तवन सह शब्दार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५४४२). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं महा; अंति: पढउ कयं अभयसूरीहि, गाथा-२३. महावीरजिन स्तव-बृहत्-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जइजो क० कल्याण वर्तउ; अंति: रहित हुइ अने सुखपामइ. ६९८४१. (+) अहिंसाकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१३, ५४३९). अहिंसा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: तत्थ पढमं अहिंसा; अंति: विसिट्ठ तक्खा अहिंसा. अहिंसा कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त० तिहा प० प्रथम संव; अंति: विसिष्ट अ० दया कही. ६९८४२.(+) नेमिनाथ व त्रणचौविसी स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नही है., पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १६४५१). १. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जे भवितै नवि फिरइ, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. त्रणचौवीसी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अतीतअनागतवर्तमानचौवीशीजिन स्तवन, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: पणमी गणहर गोयम पाय; अंति: वाचकवर मतिशेखर००, गाथा-२६, (वि. अंतिमशब्द दुर्वाच्य है.) ६९८४३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-३ व ५, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. मु. गांगजी ऋषि; अन्य. श्रावि. मोतीबाई,प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ व २ गलत लिखा है वास्तव में पाठ अध्ययन-५ की गाथा-२४ अपूर्ण से पत्रांक ३ लिया है., संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३५). For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-४ संपूर्ण एवं अध्ययन-५ गाथा-२४ अपूर्ण तक नहीं है.) ६९८४४. (+) चौविस दंडक, संपूर्ण, वि. १९२७, पौष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १५४३६-४०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊंचउवीस जिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४४. ६९८४५. स्थिवरावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४६). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणं वुच्छं, गाथा-५०. ६९८४६. (+) विविध बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १४, प्र.वि. ग्रंथ के पेज नंबर अंकित नही है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४५७-६०). १.पे. नाम. ६४ कला स्त्री, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ स्त्री ६४ कला नाम, सं., गद्य, आदि: नृत्य ओचित्य चित्र; अंति: प्रश्नप्रहेलिका. २.पे. नाम. पुरुष लक्षण ३२ सह शब्दार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण.. ३२ लक्षण श्लोक-पुरुष, सं., पद्य, आदि: सप्तरक्त षडुन्नतः; अंति: लक्षणाःपुरुषः, श्लोक-१. ३२ लक्षण श्लोक-पुरुष-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नख १ चरण २ पाणि ३ रस; अंति: नाभि सत्वं गभीरम्. ३. पे. नाम. पुरुष लक्षण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कुलीन शीलवान् दाता; अंति: सुस्वर सुकांति पुरुष. ४. पे. नाम. ३३ रत्नजाति नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.. ३० अतिरत्नजाति नाम, सं., गद्य, आदि: पद्मराग १ पुप्फराग २; अंति: सौभाग्य३२ चिंतामणि३३. ५. पे. नाम. ३६ प्रकार के युद्ध नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सेल्ल१ भल्ल२ बावल्ल३; अति: हल३५ मुसल३६. ६. पे. नाम. ७२ कला नाम, पृ. १आ, संपूर्ण.. ७२ कला नाम श्लोक-पुरुष, सं., पद्य, आदि: लिखित १ पठित २ संख्य; अंति: अब्द७१ नामालयः७२, (वि. प्रतिलेखकने श्लोकांक नहीं लिखा है.) ७. पे. नाम. गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: हुंनंदेद्रियरूद्रकाल; अंति: जाताः स्वकीयाग्रहात्, श्लोक-१. ८. पे. नाम. १४ रत्ननाम, पृ. २आ, संपूर्ण. १४ रत्ननाम श्लोक, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मी कौस्तुभ; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम, श्लोक-१. ९. पे. नाम. १८ पुराण नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. १८ पुराणनाम श्लोक, सं., पद्य, आदि: अष्टादश पुराणानि; अंति: ब्रह्मांड च ततःपरम्, श्लोक-४. १०.पे. नाम. १४ विद्यानाम श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शिक्षा १ कल्प; अंति: ह्येताश्चतुर्दशः, श्लोक-१. ११. पे. नाम. विविध श्लोक संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: आरनालगलदाह शंकया; अंति: वारणवायवेच, श्लोक-१३, (वि. आयुर्वेद, शस्त्रास्त्र आदि विविधि विषयों के श्लोक संग्रह.) १२. पे. नाम. १८ लिपि नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: हंसलिवी१ भूअलिवी२; अंति: चाणक्की१७ मूलदेवीय१८, गाथा-२. १३. पे. नाम. ८ पर्वत नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: विंध्य पारिजात शुक्त; अंति: वलय७ हिमवत८, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४. पे. नाम. विविध नाम संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. बोल संग्रह *, प्रा., मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. नवनिधि, ८ दिग्गजा, ११ रूद्र ७ ऋषि पंचधास्नात्र व ४ राजनीति आदि के नाम दिये गये हैं.) ६९८४७. (+) वीरजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, ६X३८). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भगवं; अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. अंत पत्र नहीं हैं., गाथा - २१ अपूर्ण तक है.) महावीरजिन स्तव - बृहत् - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंता वर्त्तइ श्रमण, अंति: (-), पूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ६९८४८. (+) विचारषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. पत्तन, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६X११, १२x१८-३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा ४२. ६९८४९. (+#) मौनएकादशीमाहात्म्य कथानक, संपूर्ण, वि. १८२८, मार्गशीर्ष, ७, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. राजनगर, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११.५, १२X३५). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीर नत्वा, अंतिः समाराधनतत्परः समभवन्६९८५०. (+) जंबूद्वीप संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९४२, कार्तिक शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) १ ले स्थल. राधणपुर, प्र. वि. श्री आदीनाथाय नमः श्रीशांतीनाथाय नमः श्रीगोडीजी नमः, संशोधित. वे. (२६.५४१२, ११४२४-३०). १४३ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा- ३०, ( पू. वि. गाथा - २१ अपूर्ण से है.) ६९८५१. (+) स्तुतिसंग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ - टिप्पणयुक् विशेष पाठ., जैदे., (२६×११.५, १२X५७). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्लि, अंतिः श्रेयः सुखास्पदं, श्लोक- ५. साधारणजिन चैत्यवंदन अवचूरि, सं., गद्य, आदि हे श्रीजिन त्वं जय अंति: आस्पदं त्वं कुरु, २. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति सह टीका, पृ. १आ - २आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदिः संसारदावानलदाहनीर, अंति देहि मे देवि सारम्, "" श्लोक-४. संसारदावानल स्तुति- टीका, सं., गद्य, आदि: वीरं वर्द्धमानस्वामि; अंति: देहि मे देवि सारम्. ३. पे. नाम. स्नातस्था स्तुति सह अवचूरि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः स श्रीवर्द्धमानो जिन अंति: मदजलं कथं समंतात्. ६९८५२. (-) प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. जेठा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२७X१२.५, ८X३४). प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन, अंतिः मयका प्रणीता श्लोक-३७. प्रज्ञाप्रकाशषट्त्रिंशिका - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बुद्धि प्रकाशने अर्थ, अंति: जीवना हितने करणे. ६९८५३. (+) प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैदे. (२७४११. १७४७१). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: जनणि प्रसवि जगि पुत; अंति: (-), (पू. वि. दयामहिमा श्लोक-१५ तक है. वि. अलग-अलग अनुक्रमाको में विविध विषयपरक सुभाषित श्लोक लिखे गए हैं.) " For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९८५४. (+) श्लोकसंग्रह जैनधार्मिक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१३, १७४३७). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक ,प्रा.,सं., पद्य, आदि: सोहारलता; अंति: प्राणाजन्मनि, श्लोक-७०, संपूर्ण. ६९८५५. वीरथुईअध्ययन, गाथासंग्रह व दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. पेटांक १ व २ की गाथाएँ क्रमशः हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १५४४७). १.पे. नाम. वीरथुई अध्ययन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणामाहणा; अंति: हिवइ आगमिसंति तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: पव्वजा अथगहणंच, गाथा-१६. ३. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन १ से ३, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९८५६. (+) पार्श्वनाथ सिलोको, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., ., (२६४१२, १७४३५). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल; अंति: चवदे राजरो अंतरजामी, गाथा-५७. ६९८५७. (+) आगमादिपरिमाण विवरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१३, १९४६४). आगमादि ग्रंथों व उनकी सूत्रवृत्ति आदि के ग्रंथपरिमाण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: एगारस अंगाई बार; अंति: (-), (पू.वि. भत्तपरिण्णा का परिमाण अपूर्ण तक है.) ६९८५८. शांतिजिन व पार्श्वजिनस्तुति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, १६४५२). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अंही कूर्मयुगं करौ; अंति: ऋद्धमेनं जिनम्, श्लोक-१. शांतिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: एनं जिनं ऐऋध्वमिति; अंति: रंपरा भवंति भविकानां. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति सह टीका, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: जिण पास पयच्छउ वंछिय, गाथा-२. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: चउक्कसाएत्ति भुवन; अंति: तया लांछितश्चिह्नितः. ६९८६०. जंबूस्वामी गहुँली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ११४२५-३०). जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजब कियो मुनिराय लघु; अंति: सुणि पामें शिवराज, गाथा-७. ६९८६१. () सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, ११४३०). सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तोहे नमुनमुं समेतस; अंति: रिद्ध० चैत्यवंदन करी, गाथा-७. ६९८६२. वीरस्तुति अज्झयण, संपूर्ण, वि. १८९२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. साहेपुरा, प्रले. मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); गुपि. मु. गाढमल (गुरु मु. सामीदास); मु. सामीदास (गुरु मु. दीपचंद); मु. दीपचंद (अज्ञा. मु. लालचंदजी); मु. लालचंदजी (गुरु मु. जीवराजजी); मु. जीवराजजी, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१२.५, १९४३७). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमिस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९८६३. (+) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १६५६, श्रावण शुक्ल, २, गुरुवार, मध्यम, पृ. १०-९(१ से ९)=१, ले.स्थल. जेसलमेर दुर्ग, प्रले. श्राव. कचराभाई जीवाभाई संघवी; राज्यकालरा. भीमजी राउल; पठ.ऋ. श्रीपाल (गुरु मु. गल्ल ऋषि, श्रीमल्लजी); गुपि. मु. गल्ल ऋषि (श्रीमल्लजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है. पत्रांक का भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित., प्र.ले.श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (५१८) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेत्, (१२४६) वंक ग्रीवा कटिरभग्ने, जैदे., (२६४११,७X४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. ६०००, (पू.वि. मूल पाठ नहीं है. मात्र प्रतिलेखन पुष्पिका है.) ६९८६४. झांझरीयामुनि व सीखामण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. मु. विद्याविजय; मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७४३२). १. पे. नाम. झांझरीयाऋषि सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७५६, आदि: सरसती चरणे सीस नमा; अंति: भाव०साभलता आणंद के, ढाल-४, गाथा-४३. २. पे. नाम. सीखामणनी सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. आत्महितशिक्षा सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे तो जो प्र; अंति: उदयरतन० इम बोले रे, गाथा-६. ६९८६५. (+) आदिजिनेंद्र स्तोत्र, परमात्मस्वरूप स्तवन व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६६, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. राधणपुर, अन्य.मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४३८-४४). १. पे. नाम. आदिजिनेंद्र स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: महानंद लीलासरो; अंति: स्फुरदर्शन श्री, श्लोक-७. २.पे. नाम. परमात्मस्वरूप स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चिदानंदरूपं सुरूपं; अंति: तच्छिशुननामा, गाथा-३१. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण... औषधवैद्यक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: काकिन्या पत्रमूलं; अंति: तत्प्रलेपाद्भवंति. ६९८६६. चौदनियम व श्रावकचौदप्रकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ४४३६). १.पे. नाम. चौदनियम सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: न्हाण१३ भत्तिसु१४, गाथा-१. १४ श्रावक नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त पाणी काचु; अंति: दिन प्रति संभारीइ. २. पे. नाम. श्रावक चौद प्रकार सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ श्रावकभेद श्लोक, सं., पद्य, आदि: मृत् १ चालिनी २ महिष; अंति: भुवि चतुर्दशधा भवंति, श्लोक-१. १४ श्रावकभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुखे भेदवा योग्य; अंति: यगडांगे भगवतिसूत्रे. ६९८६७. (+#) श्रावकइकवीसगुण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. साहाजी; पठ. मु. पानाचंदजी ऋषि (गुरु मु. तेजपाल ऋषि); गुपि. मु. तेजपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१२, ४४२३). २१ श्रावक गुण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्मरयणस्स जुग्गो; अंति: इगवीस गुणो हवइ सड्ढो, गाथा-३. २१ श्रावक गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मरतनने योग्य; अंति: शुध श्रावक कहीये. ६९८६८. (+) धर्मरत्नप्रकरण की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५८). धर्मरत्न प्रकरण-सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सज्ज्ञानलोचनविलोकित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ की टीका अपूर्णतक है.) For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६९८६९. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. पत्रांक का भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४३८). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: सोमप्रभमुक्तावलीयम्, द्वार-२२, श्लोक-१००, (पू.वि. गाथा-८८ अपूर्ण से है.) ६९८७०. (+#) सौधर्मवैमानिक विमान प्रकार मानादि विचारसंग्रह विविधग्रंथोद्धृत, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८१-८०(१ से ८०)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, २१४५९-६२). विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: अन्नेविमो हुत्ति, (पू.वि. सौधर्म वैमानिक विमान प्रकार मान विचार से है.) ६९८७१. (+) स्नात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४०). स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चोतिसे अतिसय जुओ वचन; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ अपूर्ण तक है.) ६९८७२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, प्रले. मु. वीरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १३४२८-४०). १.पे. नाम. प्रमादवर्जन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-प्रमादवर्जन, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अजरामर जग को नहि; अंति: यथी हुए परम आणंदो रे, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: कायापुर पाटण मोकलू; अंति: सहजसुंदर एम उपदेश रे, गाथा-६. ३. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसीया राचौ रे दान तण; अंति: तिलकविजय जयकार, गाथा-५. ४. पे. नाम. अढारपापस्थानक सज्झाय-हिंसा व मृषावाद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: पापस्थानक पहिलुं कहि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ५.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जीव वारु छु मारा; अंति: शांति० आवागमण निवार, गाथा-५. ६.पे. नाम. श्रावक बारव्रत सज्झाय-३रा व्रत, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९८७३. (+#) दस संज्ञा सह टीका व पाखंडीगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६x४२-४७). १. पे. नाम. प्रज्ञापनासूत्र का हिस्सा दससंज्ञा सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-संज्ञा पद, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: कइणं भंते संणणाओ; अंति: ओहसन्ना लोगसन्नेति, गाथा-१, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-संज्ञा पद की टीका, सं., गद्य, आदिः (१)आसां च प्रतिषेधेस्य, (२)नो शब्देन प्रतिषेध; अंति: (-), __(अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंत के कुछ अंश नहीं लिखे हैं.) २.पे. नाम. पाखंडीविवरणगाथाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तोत्र-पाखंडीविचारगर्भित, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवजसेण पणयंति; अंति: पुणो विवाहंतिनोए, गाथा-९. ६९८७४. (+) भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ४४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ से ६ तक है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १४७ ६९८७५. (+#) मकरध्वज चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५-५४(१ से ५४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४४०). मकरध्वज चरित्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. लाभ-४, श्लोक-४१अपूर्ण से लाभ-८, श्लोक-८३ अपूर्ण तक ६९८७६. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-३२(१ से ३२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४१). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "कम्माणं खउवसामणा इहा" पाठ से "रवेसाणाविह पत्त कट्ठ तण" पाठ तक है.) ६९८७८. (+#) कल्पसूत्र व्याख्यान व कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांकवाला भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १३४३९-४३). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. २४ जिन अंतरा अपूर्ण है.) ६९८७९. (+) इंद्रियपराजय शतक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ९४३५). इंद्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदि: सुच्चिय सूरो सोचेव; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ६९८८०.(+) नारचंद्रटिप्पण विचार व आठवर्ग नाम, अपूर्ण, वि. १९४६, फाल्गुन शुक्ल, ४, रविवार, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. अजयदुर्ग, प्रले. य. तिलोकचंद्र; अन्य. मु. किसनचंद (गुरु मु. श्रीचंद); गुपि. मु. श्रीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्., पदच्छेद सूचकलकीरे-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२.५, ८४३८). १.पे. नाम. नारचंद्रज्योतिष टिप्पणक, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: ज्यु अजरामर थाइ, (पू.वि. मात्र अंतिम श्लोक का टिप्पण है.) २. पे. नाम. आठवर्ग नाम, पृ. ११अ, संपूर्ण. अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आई ऊ ए ओ गरुड क ख ग; अंति: ल व मृग स ष स ह घेटो, श्लोक-२. ६९८८१. (+) एकाक्षर नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४११.५, १९४६१). एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: नाममालिकामतनोत्, श्लोक-५०. ६९८८२. कर्मकुलक व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. भीमजी; अन्य. सा. वरजुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४४३). १. पे. नाम. कर्म कुलक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तिखलूक्किक्क मल्लस्स; अंति: रहनिछंमि विपाकऊण, गाथा-२३. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. केसवदास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्णतक लिखा ६९८८३. चतुराईनीवात, नेमिजिनस्तुति व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८४, पौष शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. राजविजय गणि (तपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १७७५२). १. पे. नाम. चतुराईनी वात, पृ. १अ, संपूर्ण. चतुराई की वात, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: एक दिन राजा भोजने; अंति: तुंछे राजा भोज. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४८ www.kobatirth.org मा.गु., पद्य, आदि: सुरियसुरवंदु पाय; अंतिः सदा तै वौमादेविइ, गाथा- ४. ३. पे. नाम. गर्भउत्पति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमजुजी सीखामण दीजे; अंति: रूपचंद गुण गावे छे, गाथा-७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९८८४. गौतमकुलक सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, जैदे., (२५.५X११, ६x४५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ११ अपूर्ण तक है.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्धनइ, अंति: (-). ६९८८५. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१२, ११४३४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. गौतम, मा.गु., पद्य, आदि: भाव भले भवि पांचमी, अंति: गौतम० शिवपुर राज रे, गाथा- ८. ६९८८६. (+) गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९९, माघ शुक्ल, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. केवलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५४१२ २२-२६४५२). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदिवा ब्रह्मवादिनी, अंति: प्रीतविमल० अभिराममंतै, ढाल-५, गाथा-५५. युक्त "" ६९८८७, (+) कार्यस्थितिप्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१०.५, ४X६०). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) कायस्थिति प्रकरण- टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: हे जिनेंद्र तव दर्शन; अंति: (-). ६९८८८, (+) कुलकसंग्रह व सामायिकवत्रीसदोष सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, ७X३२). १. पे. नाम. इरियावही कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ - २आ, संपूर्ण. इरियावही कुलक, प्रा., पद्य, आदि: चउदस पय अडसत्ता तिसय, अंतिः जीव निच्वंपि, गाथा-१२, संपूर्ण. इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीव ताहरो उद्धार थाइ (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ से १२ तक का टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. पौषध कुलक सह टबार्थ, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण. पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य वि. १५वी आदि छत्तीसदिवस सहस्सा, अंतिः धम्मम्मि उज्जमहो, " गाथा - १६. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवे सो वर्षना दिन अंतिः विषे उद्यम करो करावो. ३. पे नाम. सामायिक बत्रीसदोष गाथा सह टवार्थ, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी १ अथिरासणं; अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १ अपूर्ण मात्र है.) सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: पालखीइं न बेसी, अंति: (-). יי ६९८८९, (+) स्थानांगसूत्र स्थानक ९ सूत्र- ८७२ से ८७६ महापद्मतीर्थंकर चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. सा. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५.५X११, ११४३६-३९). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि; (-); अंति (-), प्रतिपूर्ण ६९८९०. (+#) कल्याणमंदिरस्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२६४१०५, ६४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि कल्याणमंदिरमुदार, अंति: (-), ( पू. वि. गाथा - २० अपूर्ण तक है.) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण क० मंगलिक; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १४९ ६९८९१. (+) भक्तामरस्तोत्र व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८५०, वैशाख अधिकमास शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. २, ले.स्थल. विकानेर, पठ.सा.संतोषाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४३२). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) ६९८९२. (+) आत्मानुशासन व औपदेशिक श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७० शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. पं. अमरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३४). १. पे. नाम. आत्मानुशासन, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. ग. पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदि: सकलत्रिभुवनतिलकं; अंति: भाद्रपदिकायाम्, श्लोक-७७. २. पे. नाम. षड्व्याघात श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक, सं., पद्य, आदि: आलस्यं स्त्रीसेवा; अंति: षट्व्याघात् महत्वस्य, श्लोक-१. ६९८९३. (+) विपाकसूत्र-श्रुतस्कंध-२ सुखविपाक, संपूर्ण, वि. १९७४, वैशाख कृष्ण, १२, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, १६x४५-४८). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: से संजहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण. ६९८९४. (#) पाक्षिकनमस्कार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, माघ शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जगत्तार्णिनगरी, प्रले. पं. रामहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ५४३२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२९. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: भावथी प्रणाम करु छु. ६९८९५. (+) भावारिवारण व दरियरसमीर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३३). १.पे. नाम. भावारिवारणसमसंस्कृत स्तोत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. ___ महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. २. पे. नाम. दुरियरयसमीर स्तोत्र, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीर मोहपको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ६९८९६. (+#) आर्यवसुधारा धारिणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४५४). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ६९८९७. (+) भक्तामर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १०४३७). - भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ६९८९८. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-६(१ से ६)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११.५, १७४४६). For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. बंदिसूत्र, गाथा - १७ अपूर्ण से अजितशांतिस्तोत्र, गाथा- २३ अपूर्ण तक है.) ६९८९९. (०) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५-१ (१) ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११, १५X४५). "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण से ८९ अपूर्ण त है.) " ६९९००. (*) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x११, १३x४२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., पग, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ, अंति: ( - ). ( पू. वि. भक्तामर स्तोत्र, गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ६९९०१. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., ( २५. ५X११.५, १०X२४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा ५१. ६९९०२. दानशीलतपभावनाकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रावण कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. वीकानेर, प्रले. रामगोपाल महात्मा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, ६x४६-५२). " दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण अंतिः असोगनाम० खमंतु तेणं, गाथा ४९. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर, अंति: हुइ ते आचार्य खमज्यो. ६९९०४. मेघमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-४ (२ से ३, ५ से ६ ) = ४, पू. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५x१०.५, १६४५३). मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, प्रा. सं., मा.गु, पद्य, आदिः तियसिंदनरिंदनयं पणमि, अंति: (-), (पू. वि. वैशाख मास फल ५ अपूर्ण से आषाढ मास फल २७ अपूर्ण तक, भाद्र मास फल ११ अपूर्ण से मृगसर मास फल ८ अपूर्ण तक व फाल्गुण मास फल ७ अपूर्ण से अंत तक नहीं है.) ६९९०५. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२५.५x११, १२४३८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ६९९०६. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- ३१, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १३X३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ६९९०७. (+) शीतलनाथ विनती, २४ जिनस्तोत्र व नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५. ५X११.५, १७५०). १. पे. नाम. शीतलनाथ विनती पृ. १ अ १आ, संपूर्ण " शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सखी नवी नवेरी भगति, अंति: भगति लहइ सुख संपतिडा, गाथा- १७. २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि ; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८, (वि. यंत्र सहित) ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. देवकुशल, मा.गु., पद्य, आदि हां रे वाहला नेमीसरि, अंतिः पाम्यो नाम थारे जो गाथा-७, ६९९०८. (+) जैनसम्मतशैवमार्गीय श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५४११, १४४५३). जैनसम्मतशैवमार्गीय श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: तथायजुर्वेदे वैश्व; अंति: तत्फलं जायते किलौ, श्लोक-२३. For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १५१ ६९९०९. अंजनशलाका स्तवन, अपूर्ण, वि. १९११, श्रावण कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ७-५(१ से ५)=२, प्रले. गंगादास, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०४३६). शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्रंक स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विरवीज्यय माहाराज रे, ढाल-७, (पू.वि. ढाल-६ गाथा-५ अपूर्ण से है.) ६९९१०. (+) पाक्षिकप्रतिक्रमण संक्षिप्तविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १४४३०). प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वंदेतु कही जै जठाताइ; अंति: कहीजे वडीशांत कहीजे. ६९९११. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-९ नमिपवज्जा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य.पं. चोथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १९४५८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. ६९९१२. (4) सिद्धपदस्तवन, पार्श्वजिनस्तोत्र व चामुंडा गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४५०). १. पे. नाम. सिद्धपद स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जगतभूषण विगत दूषण; अंति: ते सिद्धदर्शनम्, गाथा-१३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. आनंदपुर, प्रले. मु. मुक्तिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभ: अंति: पार्श्वजिनं सिवं, श्लोक-७. ३. पे. नाम. चामुंडा गीत, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. चामुंडादेवी गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सुप्रसन्न मुझ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ६९९१३. (#) पार्श्वनाथ पूजा, पार्श्वजिन स्तवन व जिनदर्शन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४१५-६४). १.पे. नाम. पार्श्वनाथ पूजा, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: जय जय जगत उधारणं शिव; अंति: तुम गुणमाला कंठधर. २. पे. नाम. कपिसैन्यमान, पृ. १अ, संपूर्ण. कपिसैन्यमान गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: रावण ऊपर राम कटक; अंति: कपि बैठा केतो भणौ, गाथा-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आस तुमारी हो पासजी; अंति: जुगत संभारी हो, गाथा-७. ४. पे. नाम. जिनदर्शन, पृ. १आ, संपूर्ण. परमात्म स्तुति, सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: हन्यते जिनदर्शनात, श्लोक-६. ६९९१४. विपाकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, ६४३९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक कुछ पंक्तियों के टबार्थ नहीं लिखे गए हैं.) ६९९१५. सकलकुशलवल्लिचैत्यवंदनसूत्र सह अर्थव टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७.५४१२, १३-१५४२२-३२). सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इहां श्रीअरिहंत; अंति: श्रीशांतिनाथ स्वामी. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टीका, सं., पद्य, आदि: युस्माकं क० तुमारे; अंति: (अपठनीय). ६९९१६. (+) सोलकारण श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४३). १. पे. नाम. सोलकारण श्लोक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ कारण श्लोक-असत्यादि, सं., पद्य, आदि: असत्यसहिताहिंसा; अंति: सिद्धिसौख्यार्णवं, श्लोक-१८. २. पे. नाम. आशीर्वाद श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: आरोग्य बुद्धिविनय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ श्लोक-२ तक लिखा है.) ६९९१८. चतुर्विंशतिजिननमस्कार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, प्रले.ग. बुद्धिकुशल; पठ. मु. विकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ४४४५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-३२, (पू.वि. श्लोक-३० अपूर्ण से है.) । त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: भद्रमंगलीक दिउ. ६९९१९. (+) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७६४, माघ कृष्ण, ३०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १२९-१२८(१ से १२८)=१, प्रले. मु. हरदत्त ऋषि (गुरु मु. देवदत्तजी ऋषि, विजयगच्छ); गुपि. मु. देवदत्तजी ऋषि (गुरु मु. मोहणजी ऋषि, विजयगच्छ); मु. मोहणजी ऋषि (गुरु मु. जसवंतजी ऋषि, विजयगच्छ); मु. जसवंतजी ऋषि (गुरु भट्टा. कल्याणसागरसूरि, विजयगच्छ); भट्टा. कल्याणसागरसूरि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ६४३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि, ग्रं. १२१६, (पू.वि. अध्ययन-८ सूत्र-६४ मात्र है.) ६९९२०. विचारषट्त्रिंशिका की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२७४११.५, १३४५०). दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्, (पू.वि. गाथा-३६ की अवचूरि अपूर्ण से है.) ६९९२१. (+) चौमासी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, १२४३६). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: सामाइकावश्यक पौषधानि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ की व्याख्या अपूर्ण तक है.) ६९९२२. (+) आठ कर्मबांधवाना लक्षण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४२७). ८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावर्णनी १; अंति: अंतरायकर्म ८. ८ कर्म नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञानावरणी कर्म किम; अंति: बंधवाना लक्षण जाणिवा. ६९९२३. आचार्य के ३६ गुण, आशीर्वचन व सुभाषितश्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४११, १३४४७). १.पे. नाम. आचार्य के ३६ गुण, पृ. १आ, संपूर्ण. ३६ प्रकार आचार्यगुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पडिरुवा १ तेजस्सिणो; अंति: चादुवालसभावणाभावग्गा. २. पे. नाम. आशीर्वचन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. आशीर्वाद श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: दीर्घायुरस्तु; अंति: सततं जिनभक्तिरस्तु, श्लोक-२. ३. पे. नाम. सुभाषितानि, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९९२४. आगमिक आलापकादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १७४५०). १. पे. नाम. विविध विषयक आगमिक आलापक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: आभिग्गहियं किल दिखीय; अंति: अंतरे पावइ सो मुख्यं, (वि. गाथा-२५.) २. पे. नाम. गर्भज मनुष्यसंख्या गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सत्तेवय कोडीओ लक्खा; अंति: संखागब्भाण मणुयाणं, गाथा-४. ३. पे. नाम. लवण विचार-व्यवहारनियुक्तिगत, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतोष्णजल लवणादिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खइयं खओवसमियं वेअग; अंति: गिम्हे मासोवरि लवणम्, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६९९२५. (+) विविधविचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. , प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११, १७४६२). विविधविचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जीवाजीवाभिगमसूत्र से उद्धृत १७ भेदी पूजा विचार अपूर्ण से अष्टप्रकारी पूजा विचार तक है.) ६९९२६. (+) नवतत्त्व प्रकरण संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, भील्लपुर, प्रले. मु. गंभीरसौभाग्य पठ मयाराम भोजक, www.kobatirth.org १७५४८). १. पे. नाम विश्वकर्मावतार- अध्याय २९, पृ. १अ २अ संपूर्ण विश्वकर्मावतार, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण २. पे. नाम, जैनाचार वर्णन उमा महेश संवाद, प्र. २अ २आ, संपूर्ण. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., ( २६ ११, १४४४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवा १ जीवा २ पुण्णं अंतिः १३ क१४ णिक्काय१५, गाथा-५४. ६९९२७. (+) विश्वकर्मावतार व जैनाचार वर्णन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२७४११.५, - (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , " जैनाचारवर्णन - उमामहेश संवादगत, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (अपठनीय), प्रतिपूर्ण. ६९९२८. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. जैदे. (२६.५x११, १२X४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: संजोगाविष्पमुकस्स, अंति: (-) (पू.वि. अध्ययन- १ गाया- ४१ अपूर्ण तक है.) ६९९२९ भैरवपद्मावतीकल्प सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २) २. पू. वि. बीच के पात्र हैं., जैवे., (२६.५X११.५, ११X३१). भैरवपद्मावती कल्प, आ. महिषेण, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-) (पू.वि. परिच्छेद १ श्लोक ५ अपूर्ण से परिच्छेद-२ श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) भैरवपद्मावती कल्प- टीका, मु. बंधुषेण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९९३०. चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २ ) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जैदे., יי वे. (२६१२.५, ११४२५). १. पे नाम, जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण (२६X११, ११X३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा - २६ अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक है.) ६९९३१. नवतत्त्व व जीवविचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३- १(१) = २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X१०.५, १३X३५-४०). १. पे नाम, नवतत्व प्रकरण, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं, प्रा., पद्य, आदि (-); अंतिः बुद्धबोहिकणिक्काय, गाथा-५२ (पू.वि. गाथा - २७ अपूर्ण से है.) आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः श्लोक-२५. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. २आ, संपूर्ण. १५३ २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ३अ - ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: (-), (पू. वि. गाथा २० अपूर्ण तक है.) ६९९३२. (४) जिनपंजरस्तोत्र व दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, 7 दुहा संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-): अंति: (-). ६९९३३. . (+) सीमंधरजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., ५X४९). For Private and Personal Use Only सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीसीमंधर साहिब, अंति: (-) (पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है, गाथा-५ अपूर्ण तक है.) जैवे. (२६.५४१३, Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: (-), पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ६९९३४. (+) दशवैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १४४४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ सूत्र-३३ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) ६९९३५. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६८-१६६(१ से १६६)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ५४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३४ गाथा- ५५ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-११ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९९३६. (+) जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१३, ४४२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: कैसे हैं भगवान महावी; अंति: (-). ६९९३७. (+) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ६x४१). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: विमलेन० किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमी करी श्रीमहावीर; अंति: हूती कहि एकनइ अलंकरइ. ६९९३८. षडावश्यक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५, १६४३०-३३). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (१)नमो अरिहंताणं नमो, (२)इच्छामी खमासमणो; अंति: मिस्वु धेर्नमुस्तूनं. ६९९३९. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, ११४३४-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रूद्दाउ सुय समुद्दाओ, गाथा-५२. ६९९४०. (+) वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-६(१ से ६)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४४१-४७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण से ९९ अपूर्ण तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ अपूर्ण सेटबार्थ लिखा है.) ६९९४१. कर्पूरचक्र व उपकूलकचक्रं, अपूर्ण, वि. १९१८, कार्तिक शुक्ल, ७, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ६-३(२ से ४)=३, कुल पे. २, दे., (२६.५४१२, ११-१३४४३-४५). १.पे. नाम. कर्पूर चक्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ___प्रा., पद्य, आदि: पणमिय पयारवंदे तिलुक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. उपकूलकचक्रं, पृ. ५अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कूलकचक्रादि विवरण श्लोक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (पू.वि. कूपचक्र विधि अपूर्ण से है, वि. यंत्र सहित) ६९९४२. (+#) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६९-६६(१ से ६६)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४१२, ५४३२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३७ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ समवायांगसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९९४३. (+#) दंडकप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, पौष कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. प्रतिलेखक का उद्गार अपूर्ण लिखा गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११, ६x६५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४१. दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. नेतृसिंह, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ चउवीस; अंति: ही लिखी आत्मा कइ हेतु. ६९९४४. (+) कठोरवचन कथा वरौद्ररूप कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १०x४०-४२). १. पे. नाम. कटुवचन कथा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ___ कटुवचन कथा- चंद्रसूर्य, सं., गद्य, आदि: मातृपुत्रयो चंद्रसूर; अंति: इभ्सुतः कथमसंजसम. २. पे. नाम. रौद्ररूप कथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. रौद्ररूप कथा-हिंसाविचार विषे, सं., गद्य, आदि: कोपि रंकः पुरालोके; अंति: मृत्वा नरकं गतः. ६९९४५. (+) भावारिवारणस्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५०). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरं नुवामि णूत स्तव; अंति: टिं देहीति भावार्थः. ६९९४७. सामायिक के ३२ दोष, २२ अभक्ष्यगाथा व ३२ अनंतकायगाथादि संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. मु. लब्धिहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४५). १.पे. नाम. सामायिक के ३२ दोष सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पल्लत्थी १ अथिरासणं; अंति: वसे सव्व सुह लच्छी, गाथा-३. सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पालठी नवा लइ अथिरा; अंति: सुखलक्ष्मी होइ सही. २.पे. नाम. २२ अभक्ष्य गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबर चउविगई हिम; अंति: वजह अभक्ख बावीसं, गाथा-२. २२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वड पीपल उंबरि अंजीर; अति: ए बावीस अभक्ष वर्जवा. ३. पे. नाम. ३२ अनंतकाय गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सव्वाउ कंदजाई सूरण; अंति: परिहरियव्वा पयत्तेण, गाथा-५. ३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सर्वकंद मात्रनी जाति; अंति: परिहरवा यत्नइ करीनइ. ४. पे. नाम. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेल १ केलि २ कलि ३; अंति: वेजे जिणिंदालये, गाथा-४. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्लेष्मा १ रामति २; अंति: उत्तम श्रावक जाणवउ. ५. पे. नाम. भाष्यगाथा त्रय सह टबार्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण. चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा कायोत्सर्ग के १२ आगार, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अन्नत्थ आइ बारस; अंति: समणीण स वहु सडढीणं, गाथा-३. चैत्यवंदनभाष्य-हिस्सा कायोत्सर्ग के १२ आगार-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अन्नत्थ आदइ देइनइ; अंति: स वह सढीण. ६. पे. नाम. औपदेशिक गाथा- पाप कर्म परिहार सह टबार्थ, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कोडाकोडीउ पंचासी कोड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची _ जैनगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बे कोडा कोडि पंचासी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९९४८. (+) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १८७६, वैशाख शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्रले.ऋ. जेतसी नानजी, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३३). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: स सयल संघ मंगल करोए, ढाल-६, गाथा-६६, (पू.वि. ढाल-१ गाथा-२१ अपूर्ण से है.) ६९९४९. शांतिजिनस्तवन व नवपद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ में वीरविजयजी कृत नेमजिन विवाहलो का मात्र एक गाथा एव अंत में हीरविजयजी लिखा है., दे., (२५४१२, १२४२५-२८). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणंद जुहारीइ; अंति: मेरे प्यारे शांति, गाथा-७. २. पे. नाम. नवपद आराधना विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिले पदे नमो अरिहंत; अंति: खमासण २० नोकारवाली. ६९९५०. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४६). कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरवाक्यानुमतं; अंति: यच्छंतु संघे अनघे, श्लोक-६५. ६९९५१. (+) दीक्षादान विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३८). विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी-हिस्सा प्रव्रज्या विधि की छाया, सं., गद्य, आदि: (१)ननु दीक्षादान विधि, (२)श्रावकः कदाचिच्चारित; अंति: (१)अत्र संग्रह गाथा, (२)वास उस्सग्गो. ६९९५२. (+) ४७ एषणा दोष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १४४४१-५०). ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, आदि: अत्र प्रथमाया; अंति: चत्वारिंशदोषा भवंति. ६९९५३. (+#) धर्मध्यान अधिकार व अजीव ५६० भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. हूंडी: धर्मध्यान., संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १९४५४). १. पे. नाम. स्थानांगसूत्र-धर्मध्यान अधिकार सह बालावबोध, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-हिस्सा धर्मध्यान अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: धम्मे चउव्विहे; अंति: संसाराणुपेहा. स्थानांगसूत्र-हिस्सा धर्मध्यान अधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २.पे. नाम. ५६० अजीव भेद गाथा सह बालावबोध, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: धम्माधम्मागासा तिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए रूपी पुद्गलना भेद; अंति: (-). ६९९५४. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११३-११०(१ से १०८,११० से १११)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४१०, ६४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली-"तह सोमे" पाठांश से "थेरे अज्झ भद्दे एएसिणं दुण्ह थेरा" पाठांश तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६९९५५. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, ५४३३-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोगविरई उक्कित; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण तक है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावद्य सपाप मन वच का; अंति: (-). ६९९५६. षड्दर्शनस्वरूप व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १०४४४). For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org " १. पे नाम. विविध दर्शन गच्छ गोत्र जाति विचार पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. मा.गु. सं., गद्य, आदि: श्वेतांबरर दिगंबरर अंतिः वेदपाठं मन्यतेष २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: रसा पुण तित्तर कडुर; अंतिः सिणिद्ध७ डक्खड८, गाथा- १. ६९९५७. (+) श्रीपालमयणा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११, १५X३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 3 श्री पालमयणा सज्झाब, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ७ अपूर्ण से २२ अपूर्ण तक है.) ६९९५९. (+) अष्टमीतिथि स्तवन, नेमराजिमती सज्झाय व आदिजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-६ (१ से ६) = १, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२६४११, १५x४२). १. पे नाम. अष्टमी वीर स्तवनम्, पृ. ७अ अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: कांति सुख पामे घणो, ढाल -२, गाथा - २४, (पू.वि. ढाल - २ गाथा - १३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम. नेमनाथ जिन स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जल थल जलधर पूरवै सखी, अंति: मेघ० सुकृत सुगाल रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. नेमनाथजी स्तवन, पृ. ७आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन- लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., पद्य, आदि: कांइ हठ मांड्यो छे; अंति: हरखचंद० मुगत रे वास, १५७ गाथा- ७. ४. पे नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीउडा जिन चरणांरी, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ६१९६० (+) कालग्रहण विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६४१०.५, १६५०). कालग्रहण विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: इरियावहि प्रतिक्रम्य अंतिः नवकार कहड़ पारी, (संपूर्ण, वि. अंत में पूर्वोत्तरपश्चिम मंडल स्थापनाचार्य स्थापन योग्य सचित्र उल्लेख है.) ६९९६१. (*) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-३५, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न - संशोधित., जैदे., (२६X११, ११३५). .जे. (२५.५x११. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९९६२. (+) सूत्रकृतांगसूत्र- श्रुतस्कंध - महावीर स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., १३४३३). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा १९ अपूर्ण तक है.) ६९९६३. (*) विचारकुलक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. शिवनिधान, अन्य आ. कीर्त्तिरत्नसूर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११, ७x४४). " पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी आदि छत्तीसदिणसहस्सा वास, अंति: (१) धम्मम्मि उज्जमह, (२) चत्तारिया य वरिसेणं, गाथा- १७. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: छत्तीससहस्र दिहाडा, अंति: (१) विषइ उद्यम करउ, (२) श्रीकीर्तिरत्न०ए तवन, प्र.ले.पु. सामान्य, ६९९६४. (+) हैमविभ्रमसूत्रम्, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११, १२X४२). हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदिः कस्य धातोस्ति वादीना, अंतिः चान्यदक्षेवयममीवयम्, श्लोक-२१. ६९९६५. () पंचपरमेष्ठिआदि आशातना विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे., (२६४५, १२x६१). For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचपरमेष्ठि आदि आशातना विचार, प्रा., सं., गद्य, आदि: तत्र अरहंताणं आसायणा; अंति: देवीनामाशातना तथैव. ६९९६६. (+) स्थूलभद्र, अरणिकमुनि व नंदिषेणमुनिआदि सज्झायसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-४ (१,४ से ६) = ३, कुल पे. १०, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६११, १६x४० ). १. पे नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. , औपदेशिक सज्झायनिंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु, पद्य, आदिः (-); अंतिः सहजसुंदर० ओछा रे बोल, गाथा-६, ( पू. वि. गाथा - ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. हितोपदेश सज्झाय, पृ. २अ संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि एक घर घोडा हाथीयाजी, अंतिः लावन्य पुण्य पसाय रे, गाथा- १२. ३. पे. नाम. पंचेंद्री सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: काम अंध गजराज अगाध, अंति: जिनहर्ष० सुख सासता, गाथा- ६. ४. पे. नाम, सीता सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: छोडी हो पिउ छोडि, अंति: मन भावे धरी जी, गाथा- ११. ५. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल वासो वसेजी; अंतिः सार्यां आतम काज रे, गाथा - २०. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय - निंदात्याग, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय- निंदात्यागविषये, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परतात; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा है.) ७. पे. नाम. अरणक सज्झाय, पृ. ७अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. अरणिकमुनि सज्झाय, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कीरतसूर इण परि भणे ए, गाथा-१६, (पू. वि. अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) " ८. पे. नाम. नववाड सज्झाय- पंचमवाड सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ९. पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि राजगृही नवरीनो वासी, अंतिः मेरुविजय० कोइ तोले हो, ढाल-३, गाथा- १२. १०. पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. ७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., पद्य, आदि: लाछल दे मात मल्हार, अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ६९९६७. पद्मप्रभव आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०-८ (१ से ८)= २, कुल पे. २, जैदे. (२६४११.५ १५X४३). १. पे. नाम. पद्मप्रभजिन स्तवन- नाडोलमंडन, पृ. ९अ - ९आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनेंद्र० एम आसिस ए, गाथा- १५, (पू. वि. गाथा - ३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. ९आ - १० आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदेश्वर प्रणमुं; अंति: (-), (पू. वि. गाथा- ४५ अपूर्ण तक है.) ६९९६८. (+) हितोपदेश, भरतबाहुबली व दानादिसज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-४ (१ से २,४ से ५ )=२, कुल " पे. ८, प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २६११, १५X४०). १. पे. नाम. हितोपदेश स्वाध्याय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय- निंदात्यागविषये, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: एह हित सीख माने, गाथा - ९, (पू. वि. गाथा- ६ से है.) २. पे. नाम. राजिमतीसती सज्झाय, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं, पद्य, आदि; तोरण आयो हे सखि नेम; अंतिः जिनसागर करे जिका, " गाथा - १३. For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ गाथा - ९. ७. पे नाम, हितोपदेश सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. www.kobatirth.org ३. पे. नाम. राजिमती स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. शिवचंद, रा., पद्य, आदि: ज्यो तुमे चाल्या शिव; अंति: होयो भव पार उतार रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे मात दिओ; अंति: (-), (पू. वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ५. पे. नाम. भरतबाहुबली सज्झाय, पृ. ६अ, संपूर्ण मु. विमलकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: बाहुबलि चारित्र लीयो; अंति: कीरतविमल सुख थाय, गाथा - ११. ६. पे. नाम. इलापुत्रसाधु सज्झाय, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु, पद्य, आदि नाम इलापुत जांणिये; अंति: लबधविजय गुण गाय, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक सज्झाय-कर्मोदये सुखदुख विषये, मु. ज्ञान, मा.गु., पद्य, आदि: सुख दुख सरज्या पामीय, अंति: न्यान० सदा सुखकार रे, गाथा- ९. ८. पे. नाम. दान सज्झाय, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. तिलकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रसिया राचो रे दान, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ६९९६९. () गोडीजी व चिंतामणिपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५X११, १०X२४). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. मु. दीपविजय, मा.गु, पद्य, आदिः लाखीणो सोहावें जिनजी अंतिः दीप० बंदु श्रीजही. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, वि. १७वी, आदिः आणी मनसुध आसता देव अंतिः रोग सोग सवी जासी दूर गाथा ६. ६९९७०. नेमराजुल ढाल, संपूर्ण, वि. १८७१, ज्येष्ठ कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १, जैये. (२६११, ११४३०). नेमराजिमती सज्झाय, दानमल, रा., पद्य, आदि: श्रीजादुपतजीरी सुरत, अंति: दानमल ति ढाल जोडी, गाथा- ९. ६९९७१. (+) आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५x१०, १३४३५). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः सुवं मे आउसं० इहमेगे अंति: (-), (पू. वि. श्रुतस्कंध १ अध्ययन-१ उद्देश-१ अपूर्ण तक है.) १५९ ६९९७२ (१) अरणिकमुनि, मेतारजमुनि व हितोपदेशादि सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१० (१ से १०) = ४, कुल पे. ६, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १७x४५). १. पे. नाम. हितोपदेश स्वाध्याय, पृ. ११अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. तृष्णा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विघन विना निरवाणी, गाथा - ११, ( पू. वि. गाथा- ४ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. राजिमतीरहनेम स्वाध्याय, पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण. गाथा - १७. ५. पे. नाम. अरहणमुनि स्वाध्याय, पृ. १३अ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: देखी मन देवर का अंति: ऋद्धिहर्ष कहै एम, गाथा-२०. ३. पे नाम, मेघरथराजासाधु स्वाध्याय, पृ. १९आ- १२आ, संपूर्ण मेघरवराजा सज्झाय- पारेवडाविनती, मा.गु., पद्म, आदि दया बरोबर धर्म नही; अंति: संत सुखी अणगारो जी, गाथा - ३४. ४. पे. नाम. मेतारजसाधु स्वाध्याय, पृ. १२आ- १३अ, संपूर्ण. मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि धन धन मेतारजमुनि जणि अंति: राम० लहीये उत्तम ठाम, For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: एक दिन अरणिक जाम; अंति: कीरतसूरि० परि भणे ए, गाथा-२४. ६. पे. नाम. दशार्णभद्रसाधु सज्झाय, पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद सुख बुधदाइ सेवक; अंति: पयंपे लालविजय निशदीस, गाथा-१८. ६९९७३. (#) नंदीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४१०.५, १५४५५). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४१ अपूर्ण तक ६९९७४. (+) शोभनस्तुति सूत्र, अपूर्ण, वि. १७१४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ११, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, ले.स्थल. ईदलपुर, प्रले. ग. तेजविजय (गुरु ग. श्रीविजय); गुपि. ग. श्रीविजय; पठ. मु. लावण्यविजय; राज्यकालभट्टा. विजय राजसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५४११, ९४२८-३८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. महावीरजिन स्तुति गाथा-३ अपूर्ण से है.) ६९९७५. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-द्विपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, २४२९). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम सूत्र अपूर्ण मात्र है.) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीसिद्धार्थनराधिप, (२)नमो अरिहंताणं० माहरो; अंति: (-). ६९९७६. (+-) सामायिकसूत्र सह टबार्थ व नमिराजर्षि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. हुडी: सामाईकनी गाथा., अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ७४३१). १. पे. नाम. सामाइकग्रहण सूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण... आवश्यकसूत्र-हिस्सा करेमिभंते सूत्र, प्रा., प+ग., आदि: करेमिभंते सामाइअं; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. आवश्यकसूत्र-हिस्सा करेमिभंते सूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: करसु भक्त करी सामाइक; अंति: आतमाए ते वोसिरावु. २. पे. नाम. सामायिक पारवानी गाथा सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा सामाइअवयजुत्तो सूत्र, प्रा., पद्य, आदि: सामाइअवय जुत्तो जाव; अंति: मिच्छामि दुक्कडं, गाथा-४. आवश्यकसूत्र-हिस्सा सामाइअवयजुत्तो सूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सामाइक मेइ जुतो लेउ; अंति: ते मिछाम दोकडं. ३. पे. नाम. नमिराजर्षि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो मिथुला नगरीनो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ६९९७७. (+) कल्पसूत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११. ११४३४). कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६८०, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. प्राथमिक भूमिका अपूर्ण तक है.) ६९९७८. (+#) रत्नाकरपंचविंशतिका सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४४३). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ तक For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १६१ रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीलक्ष्मी तणउ; अंति: (-). ६९९७९. (+) व्यवस्थापत्र व सीखामण, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, ४०x२२). १. पे. नाम. सामाचारी व्यवस्थापत्र-खरतरगच्छीय, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८६३, आश्विन शुक्ल, १५, प्रले. पंन्या. सुमतिवर्धन (गुरु ग. विनीतसुंदर, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु.,सं., गद्य, वि. १७१८, आदिः (१)संवत् १७१८ मिते, (२)तत् श्रीखरतरगणवासि; अंति: सीख द्यै सही सही. २.पे. नाम. उपाध्याय श्रीभद्रसारजी शिष्योनु सीखामण, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक बोल, उपा. भद्रसार, रा., गद्य, आदि: १ इष्टदेव ऊपरी मन; अंति: (-), (पू.वि. बोल-६३ तक है.) ६९९८०. (+#) राजसिंघरास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-४२(१ से ४२)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्र- ४३-४४ पर पत्रांक- २४-२५ भी अंकित है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १५४३७). राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८२०, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४८ गाथा-५ अपूर्ण से ढाल-५२ गाथा-८ अपूर्ण तक है) ६९९८१. दशवैकालिकसूत्र की शिष्यबोधिनीटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-३८(१ से ३८)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४१०, १५४५१). दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-८ गाथा-९ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक की टीका है.) ६९९८२. (+#) पडिकमणारी विध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पत्र १४२, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १७४१७). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: पैली वनणाः नवः ईरीया; अंति: लो० सिजाय क० नव३. ६९९८३. (+#) जिनकुशलसूरिअष्टक, नवपदस्तुति व मंत्रादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १०x२९). १. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मीसौभाग्यविद्या; अंति: भूयात्सतां श्रेयसे, श्लोक-९. २. पे. नाम. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, पृ. २अ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते; अंति: ह्रीं श्रीं नमः. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नखीनां च नदीनां च; अंति: विनायकाः, श्लोक-३. ४. पे. नाम. नवपदजी की थुई, पृ. २आ, संपूर्ण. नवपद स्तुति, आ. जिनहससूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंसुखकारी; अंति: गावै श्रीजिनहससूरीस, गाथा-४. ६९९८४. पार्श्वजिन स्तवन, हरियाली, शील सज्झाय आदिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ६, जैदे., (२३.५४१०.५, १८४६६). १.पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: हर्षकीरत० घरि अवतरइ, ढाल-३, गाथा-२४, (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरतरू जग; अंति: मेघ० त्रीभुवन तीलो, गाथा-५. ३. पे. नाम. श्रीरांणपुराजीनुं स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन- राणपुरमंडन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु, पद्य, आदि: हो प्रिऊडा रांणपुरार, अंति: जैनेंद्र० भरावो हो, गाथा ६. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. मु. जीवणविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: साहिब गोडी पासजिणंद, अंतिः जीवण० लहे गुण गावता, ढाल २, " गाथा - १०. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन हरीयाली, पृ. ३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. हितविजय, मा.गु., पद्य, आदि: एक पुरुष मे नवलो अंतिः हित पभणे गुण रागे रे, गाथा-५. ६. पे नाम, सिद्धिवधू सज्झाय, पृ. ३अ संपूर्ण. पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु. पद्य, आदि: सिद्धवधूनी बात रे हु, अंतिः लब्धि कहे सुखशात रे, गाथा- ९. ६९९८५. () तिजयपहुत्तस्तोत्र व मंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२३.५x९.५, ९X२८). १. पे. नाम. सित्तरस्य जत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, पे. वि. सत्तरीसय यंत्र भी दिया गया है. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. व्याधिअग्निभयादि निवारण मंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: संग्राम सागर करींद्र; अंतिः घरघरं च पारुषः. ६९९८६. (+#) सकलार्हत्स्तोत्र व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. १, प्रले. पं. सुबुद्धिकुशल गणि अन्य. ग. भीमविजय गणि (गुरु पं. श्रीविजय गणि); पं. श्रीविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखकने श्लोक २६ की जगह २७ लिखा है., संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३x१०, १३X३८). १. पे नाम. चैत्यवंदना चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, पे. वि. यह कृति इस प्रत के साथ एक से अधिक बार जुडी हुई है. 1 त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (१) श्रीवीरजिननेत्रयोः, (२)श्रीवीर भद्रं दिशः, श्लोक-२८. ६९९८७ प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पत्र १x२, दे. (२४४७, १४५१९). " प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू. पू. *, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, नमुत्थुण जिणानं जावयाणं पाठांश से उवसग्गहां गाथा- २ तक) ६९९८८. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५x१०, १७३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं. पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, " 1 लोक-४४. ६९९८९. राजुलरहनेमि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित लिया गया है, जैदे (२४.५X११, ७X२३-४०). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: निर्मल सुंदर देहरे, गाथा-८ (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) ६९९९०. षड्दर्शनविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैवे. (२४.५x१०.५, १२४३८). षडदर्शन विचार, सं., पद्य, आदि: जैनं मीमांसक बौद्ध, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ८ तक लिखा है.) षडदर्शन विचार - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जैनदर्शन १ मीमांसकदर, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६९९९१. (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पू. ४-१ (१) ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५.५x१०.५, "" १३४३५). For Private and Personal Use Only , י Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १६३ पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नफल-१२३ अपूर्ण से ३३४ अपूर्ण तक है.) ६९९९२. (+#) स्तंभनकपार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८५०, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. रतलाम, पठ. बालचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १०४३७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: अभय० विन्नवइ आणदिय, गाथा-३०. ६९९९३. (+) सप्तोपधानक्रिया विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १७४५८). उपधान विधि-सप्तोपधान, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ननु सप्तसु उपधानेषु; अंति: पुन्नाविगइ पारणविधि, अध्याय-७. ६९९९४. २४ दंडक व सम्यक्चारित्र विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १२४३९). १. पे. नाम. २४ दंडक विचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: नेरईया१ असुराइ१०; अंति: ४ बत्रीस जघन्यसा०३२, (वि. कोष्टक सहित.) २. पे. नाम. सम्यक्चारित्र विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., प+ग., आदि: सम्मत्तचरणसहिया सव्व; अंति: जे सन्नी ते महावेयणा. ६९९९६. (+) होलीकथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२). होलिकापर्व कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभस्वामिनइं वंद; अंति: धर्म तिहां जय छै. ६९९९७. (+#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नारदीपुर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, १५४३५-४५). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: विनय० कल्याण करो, गाथा-६७. ६९९९८. (+) लघुशांति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. गंगकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ४४२७-३५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेव आचार्य; अंति: पामइ च कहतां वली. ६९९९९. (#) लघुशांति सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१०.५, ३४४६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरि श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमानदेव आचार्य; अंति: कहतां स्थानक पामइ. लघुशांति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. टबार्थ के साथ-साथ कहीं-कहीं बालावबोध भी है.) ७००००. (+) पौषधविधि, पोरसीविधि व काठिया नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०, १२४३७). १.पे. नाम. पोसह लेवा पारवा विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमी; अंति: (-). २. पे. नाम. संथारापोरसी भणावानी विधि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-११. ३. पे. नाम. तेरे काठीया नाम, पृ. अ४, संपूर्ण. १३ काठिया गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आलस्स१ मोहर वन्ना३; अंति: कतूहलार रमणा१३, गाथा-१. ७०००२. (+) तिजयपहुत्तस्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७५४, कार्तिक शुक्ल, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४४७). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासं अट्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (वि. १७५४, कार्तिक शुक्ल, ९, गुरुवार) For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: कृत्वा चतुर्णां; अंति: हर्षकी० वृत्तिमातनुत, (वि. १७५४, कार्तिक शुक्ल, ८, सोमवार) ७०००४. २० स्थानकतपविधि व तपगछनी १८ शाखानाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १६४३८-४४). १.पे. नाम. वीसथानक तिर्थंकरगोत्रबंध विधि, पृ. १अ, संपूर्ण.. २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं हजार२; अंति: तप भाव सुद्धथी करवू. २. पे. नाम. तपगच्छनी १८ साखा नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. तपागच्छीय १८ शाखा, सं., पद्य, आदि: भूयास्युर्विजयप्रभा; अंति: कुशलानंदेकदं दासता, श्लोक-१. ७०००५. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४९). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), (पू.वि. स्तुति-२० तक है.) ७०००६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८१, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. जूठा अमरशी; पठ. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४३५). _भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४८. ७०००७. (#) रत्नाकरपच्चीशी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ५४३५). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणलक्ष्मी मंगलीक; अंति: श्रेयकारी प्राथु. ७०००८. चौबीस तीर्थंकरनामछंद व दूहासंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, पठ. मु. प्रेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१२४५) लिखन पढन अर चातुरी, दे., (२५४११, १२४२०-३५). १.पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीरिषभनाथजी; अंति: श्रीमहावीरजी, अंक-२४. २.पे. नाम. १६ सती छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ सतीस्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जिनस्तुति संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: ते वंदू निसदीस, गाथा-८. ७०००९. (+) जयसिंहसूरिलिखितपत्र व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, २३४७२). १. पे. नाम. जयसिंहसूरि लिखित पत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. जयसिंहसूरिलिखित पत्र, आ. जयसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: दुर्वादिगर्व सर्वस्व; अंति: प्रोज्जासयत्येषभो, श्लोक-११. २. पे. नाम. प्रतिमास्वरूप विचार श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमाविचार श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आनीताब्दशतं यस्याद्य; अंति: कुलधण नासाइया जम्हा, श्लोक-२७. ३. पे. नाम. ३२ अनंतकाय विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ अनंतकाय गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: सर्वैवकंदजातिरनंतकाय; अंति: पिंडालु कोकंदभोदे३२. ४. पे. नाम. २२ अभक्ष्य विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: पंचोदुंबरी वटपिप्पलो; अंति: पातादि दोष संभवात्. ५. पे. नाम. षट्काय जीवविचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १६५ ७००१०. पाखीप्रतिक्रमणविधि व पाखी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२६.५४११, १३४४२). १.पे. नाम. पाखीपडिकमणा विधि, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पक्खियं समाप्तं, (पू.वि. चार खामणा से है.) २. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: देवसिउं वंदेतु कहीने; अंति: पभणि जास्यूरे, गाथा-११. ७००११. (+) अष्टाह्निका व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२८x१३, ९४३०). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: शांतीशं शांतिकर्ता; अंति: (-), (पू.वि. सामायिक पूजादि कर्तव्य अपूर्ण तक है.) ७००१२. (+) कर्मस्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. कलकत्ता, प्रले. मु. गोकुलचंद्र ऋषि; पठ. मु. गुलाबचंद ऋषि (परंपरा मु. गोपीलाल ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-पदच्छेद सूचक लकीरें., अ., (२६.५४१२.५, ६४३१-३६). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: देविंद० नमह तं वीर, गाथा-३४, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: तह० तामे तेसे थुणिमो; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ अपूर्ण तक लिखा है.) ७००१३. (+) कालसत्तरि, संपूर्ण, वि. १६३१, फाल्गुन शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्रावि. लालबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१०.५, ११४३३-४५). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विज्जाणंद; अंति: धम्मघोष० किमवि भणिअं, गाथा-७४. ७००१४. (+) सत्तरी सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४४१). सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: पूरेऊणं परिकहींतु, गाथा-७६, संपूर्ण. सप्ततिका कर्मग्रंथ-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-७२ तक टिप्पण लिखा है.) ७००१५. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १०४३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ७००१६. (+) गांगेयभंग प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(४)=४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४५७). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक ९ उद्देश ३३ गत गांगेयभांगा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "सर्वभांगा ३६५८ जाणवा" तक का पाठ है.) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतकए उद्देश ३३गत गांगेयभांगा का-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ७००१७. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, २-९४७७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं० इच्छा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अब्भुट्ठियो सूत्र तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक द्वारा बीच-बीच में टबार्थ लिखा है.) ७००१८. (+) क्षेत्रसमास प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४११.५, १३४४०). लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजल जलहर; अंति: समत्ताइ दुक्खाई, गाथा-९६. ७००१९. साधुपाक्षिकादि अतिचार व पाक्षिक खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, दे., (२७.५४१२.५, ११४३९). १. पे. नाम. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. २. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण.. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ७००२०. (+) विपाकसूत्र द्वितीयश्रुतस्कंध, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४२). विपाकसूत्र-हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: सेसं जहा आयारस्स, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रथम अध्ययन अपूर्ण से है.) ७००२१. (+) कर्मग्रंथ ३ व ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२४, कार्तिक कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६.५४१२, ४४४०). १. पे. नाम. बंधसामित्व सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्क; अंति: देविंदसूरि० सोउं, गाथा-२४, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: बंध जो कर्मबंध तिसकी; अंति: सोपंक सहिये, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच-बीच में टबार्थ नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिय जिणं जियमग्गण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७००२२. (#) भक्तामर स्तोत्र सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, ९x४०-४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय). ७००२३. (#) भगवतीसूत्र-शतक१२ उद्देशर, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११, ११४३२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७००२४. (4) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. लालजी ऋषि; अन्य. श्रावि. केसर बाई; मु. जैमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ७००२५. पंचनमस्कार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७.५४१२.५, १२४४३). पात्रकेसरिस्तोत्र, आ. विद्यानंदस्वामी, सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रगुण संस्तुति; अंति: केवल श्रीविभूत्या, श्लोक-५०. ७००२७. (2) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२.५, १३४३४). For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १६७ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७००२८. (+) राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ७X४०). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-७ अपूर्ण से सिरिवच्छणंदियावत्तवद्ध" पाठ तक है.) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७००२९. (#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १०४३६). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७००३०. (+) सूक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. श्राव. ऋषभचंद शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ४४३६). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली पुष्कर; अंति: समं धमेहिं उजमह, गाथा-३२. सुभाषित श्लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल क० समस्त कुसल; अंति: थाओ जिम उत्तरोत्तर. ७००३१. (2) ललितांगकुमार कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१ से २,४ से ५)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४१२.५, १५४४४). ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठांश हैं.) ७००३२. (+) पुद्गलपरावर्तना विचार सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. सरूपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३.५४१२, ६४३९). पुद्गलपरावर्त्त विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दव्वे खित्ते काले०; अंति: पुग्गल परियट्ट भेआओ, गाथा-११. पुद्गलपरावर्त विचार गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: कम्मा० सर्वस्तोकः; अंति: पिणीभिर्निवय॑ते. ७००३३. (4) प्रवज्या विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, १७४४०). दीक्षा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: मूलपुनर्वसुस्वाति; अंति: दिशाइ विहार करावीइ. ७००३४. (+) अरिहंतवाणी के पांत्रीसगुण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११.५, ५४३५). ३५ वाणीगुण श्लोक, सं., पद्य, आदि: संस्कारवत्वं१ औदात्य; अंति: त्रिंशच्चवाग्गुणाः, श्लोक-७. ३५ वाणीगुण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संस्कृतादिक लक्षणे; अंति: वाणीना ३५ गुण. ७००३५. कालिकाचार्य कथा संग्रह व भरतेश्वरवृत्ति की रचनाप्रशस्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. श्रीपत्तन (पाटण, प्रले. ग. गुणकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४४४). १.पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. हिस्सा, ग. शुभशील, सं., प+ग., वि. १५०९, आदिः (-); अंति: पाल्य स्वर्गं गताः, (पू.वि. मात्र अंतिम पाठ हैं.) २. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. हिस्सा, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: जितशत्रुरन्यत्र; अंति: जिनधर्मं चांगीचकार. ३. पे. नाम. भरतेश्वरबाहुवली-वृत्ति की प्रशस्ति, पृ. ४आ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, ग. शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदि: (-); अंति: तमोर्हदादिसाक्षिकम्, (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रशस्ति लिखा है.) ७००३६. (+) पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. मानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १२४३५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६८ " "" ७००३७. (*) साधारणतीर्थंकर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६.५x११.५, ९४३९). २४ जिन स्तोत्र- पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदिः आदौ नेमिजिनं नौमि, अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. ७००३८. पच्चक्खाण संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. लिंबडी (झालावा, प्रले. मु. रामवर्द्धन, पठ. सा. ज्ञानश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५४१२, १३x४१). " प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू. वि. एकासणा पच्चक्खाण तक लिखा है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ७००३९. भरहेसर सज्झाय, स्तवन व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैये. (२६४११.५, १४४३३). १. पे. नाम. भरहेसर सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय, अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा- १३. २. पे नाम, नेमिजिनचोमासुं स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्म, आदि मोरा सम म जावो रे, अंतिः रूप० मलवानु दल साचु गाथा ५. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण **, श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः विना अभ्यासे विष्यं अंतिः गोष्टी दरिद्रता, श्लोक १. ७००४०. (+) स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७१२.५, १०x२५). १. पे नाम, त्रिकालभाव वंदना, पृ. १अ संपूर्ण " मा.गु., पद्य, आदि: पढो मंत्र नवकार ताप, अंति: प्राणी कांई पढै, पद- १. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वर. पू. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः श्रीसंखेसरपास जिणेसर, अंतिः सयल रिपु जीपतो, गाथा-५ ३. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मंगल कलागुण नीलो, अंति: (-), (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण तक है.) ७००४१. जंबूस्वामी चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. दे. (२६.५x१२, १०x३५). जंबुस्वामी चरित्र, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानतीर्थेश, अंति: (-), (पू. वि. श्लोक-१० तक है.) ७००४२. श्रावकपाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., ( २६.५X११.५, ११×३३). आवकपाक्षिक अतिचार- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०, अंति: (-) (पू. वि. ज्ञानाचार स्थूल अपूर्ण तक है. ७००४३. दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पंचपाठ, जैवे. (२६.५४१०.५, ७४२६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- १ गाथा-३ अपूर्ण से अध्ययन-२ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) दशवेकालिकसूत्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). ७००४४. (#) शांतिजिन स्तवन व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६X१२.५, १२X३१). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: सिद्धी भणई सीसो, गाथा - १४. २. पे, नाम, दूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं, पद्य, आदि; किहां कोवल किहां अंब, अंतिः निगुण पथर हम जाण, दोहा-५. For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७००४५. (+) पार्श्वजिन चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुलपे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, ११४३९). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरं, श्लोक-७. ३. पे. नाम. जिनस्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: नेत्रानंद करी भवोदधी, अंति: वंदेहमादीश्वरम्, गाथा-२, संपूर्ण. ७००४६. वीर स्तुति व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४८.५, २३४१४). १. पे. नाम. वीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नताशेषलेष; अंति: भायः स्वर्णकांति, श्लोक-४. २. पे. नाम. औषध व मंत्रसंग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७००४७. जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३३). १.पे. नाम. जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., पे.वि. पत्रांक नहीं लिखा है, कृति अपूर्ण दर्शाने हेतु ५ दिया है. मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: फले हो जपे समयप्रमोद, गाथा-६९, (पू.वि. गाथा-६२ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र ३ श्लोक का संकलन किया है., वि. समयसार प्रकरण के बीच के ३ लिखा है.) ७००४८. एकादशीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२७.५४१२.५, ८x२१). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिकानयरी समोसर्य; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७००४९. जीवद्रव्यादि लक्षण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, १३४३९). जीवद्रव्यादि लक्षण, सं., पद्य, आदि: तत्वातत्व स्वरुपज्ञं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३१ अपूर्ण तक है.) ७००५०. (+#) शत्रुजयकल्प व शत्रुजय चैत्यपरिपाटी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पत्रांक नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, २०४६६). १. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ कल्प, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुय धम्मकित्तियं तं; अंति: लहु सितुंजय सिद्धिं, गाथा-३९. २.पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, पृ. १आ, पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. सं., पद्य, आदि: नरेंद्रमंडलमणिमय; अति: तत्तीर्थयात्राफलम, श्लोक-२४, (संपूर्ण, वि. अंतिम पद खंडित है.) ७००५२. (+) ज्ञानपंचमी स्तुति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२.५, ८४४०). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीनेमिनाथ जेते; अंति: (-), पूर्ण. ७००५३. (+) दशवैकालिकसूत्र- अध्ययन-१सेअध्ययन-३कीगाथा-१, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४१२, ८-१०४३५). For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७००५४. (+) पंचजिन स्तुति, पार्श्वजिन स्तोत्र व शांतिजिन मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित जीवे. (२७४११, ११४३३). १. पे नाम, पंचजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण, कलाकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं अंतिः अम्ह सया पसत्था, गाथा ४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणी, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., पद्य, आदि; नमो देवनागेंद्रमंदार, अंतिः चिंतामणीपार्श्वनाथम्, श्लोक-७. ३. पे नाम, शांतिजिन मंत्र. पू. १आ. संपूर्ण. " मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह में, उ. पुहिं., प्रा., मा.गु. सं. पण, आदि: ॐ ह्रीँ० शांतिनाथ, अति: नमोस्तु ते स्वाहा. ७००५५. नवपदपूजा स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१३) -३, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं, जैदे. (२७४१२, १२४३३). नवपद पूजा, पंन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३८ आदि (-); अंति: (-) (पू. वि. सिद्धपदपूजा दोहा १ अपूर्ण से उपाध्यायपद पूजा दोहा १ अपूर्ण तक ज्ञानपद पूजा दोहा-३ अपूर्ण से अंतिम नवमपद पूजा की ढाल तक है व प्रशस्ति कलशगाथा नहीं है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७००५६. (#) शत्रुंजयउद्धार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-८ (१ से ८) = १, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. मू पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, १०x३४). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु. पच, वि. १६३८ आदि (-) अंति: (-) (पू. वि. ढाल १० अपूर्ण से डाल - १२ अपूर्ण तक है., वि. प्रत में रचना संवत् १६३५ मिलता है.) ७००५७. (+) आत्मरक्षामंत्र व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ.. ( २६X१२, १०X३० ). जैदे., १. पे नाम, आत्मरख्यामंत्र स्तव, पृ. ९अ. संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि, अंतिः व्याधि० नापि कदाचनः, श्लोक ८. २. पे. नाम, ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवर हो जिनवर ऋषभजि; अंति: उत्तम० पूरो मननी आश, गाथा-५. ७००५८. (+) वागर्थसंबंधस्थापनवाद स्थल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. वेलजी ऋषि (गुरु मु. नानजी ऋषि, लुंकागच्छ); गुपि. मु. नानजी ऋषि (गुरु मु. जसराज ऋषि, लुकागच्छ); मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुकागच्छ); मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुकागच्छ); मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुकागच्छ); पठ. मु. खीमजी ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. लिखावट से वस्तुतः प्रत २०वी की प्रतीत होती है, संभवतः संवत् १७५९ में लिखी प्रत की प्रतिलिपि होनी चाहिये, पदच्छेद सूचक लकीरें, दे. (२७४११ २३४५९). वागर्थसंबंधस्थापनवाद स्थल, सं., गद्य, आदि: अनुदिनमखर्वसर्वांन, अंति: तन्निराकरण प्रवासेन. ७००५९ द्वात्रिंशिका कल्प, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन व श्लोक कवित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. मु. बालसागर (तपागच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., ( २६४१०.५, १४४४४). १. पे. नाम. द्वात्रिंशिकाकल्प, पृ. १आ, संपूर्ण. ', सं., प+ग, आदि: प्रणम्य श्रीमहावीर अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मंत्रसाधन विधि अन्तर्गत नियमपालन वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे नाम, शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. ९आ, संपूर्ण आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेत्रुजानो वासी; अंति: नयणविमल० पार उतारो, गाथा-६. ३. पे नाम, प्रास्ताविक सुभाषित संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण औपदेशिक लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: कुचित् दंतालतोमुरख, अंति: अब तोडी नहीं तुरंत, श्लोक-२. ४. पे. नाम. पद्मिन्यादि नारीलक्षण कवित्त, पृ. २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org हिं, पद्य, आदि: पुष्पगंध पद्मनी सेहज; अंतिः एह लक्षण है संखणी, गाथा ४. ७००६०. तिजयपहुत्त व सकलभयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैवे. (२६.५x११, १२४३०-३५). १. पे. नाम. सिततरीसयजिन स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम, अंति: निब्भतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. सकलभयहर स्तोत्र, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण, अंतिः नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ७००६१. (#) भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३- १ ( १ ) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५X१२.५, १८x४८). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चैत्यवंदनभाष्य गाथा - ४१ अपूर्ण से प्रत्याख्यानभाष्य गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) ७००६३. () चैत्यवंदन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अशुद्ध पाठ, जैदे., (२७X१२.५, ७X१९). १. पे. नाम. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय - जयउ सामि सूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन नमस्कार-स्तंभनक, प्रा., पद्य, आदि: जयमायस जयमायस जय महा; अंति: जिण भविया भीमभवोत्थु, गाथा - १. ३. पे नाम, पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. ४. पे. नाम. थंभणापार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण (२६X११, ६X३५-३७). १. पे. नाम. भावना कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ - ३अ, संपूर्ण. भावना कुलक, प्रा., पद्य, आदि: निसाविरामे परिभावयाम, अंति: निवाण सुह लहति, गाथा-२२. भावना कुलक-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि राति जावे करीनि जीव, अंतिः मोक्षरूप सुख लहीएत. २. पे. नाम. १४ राज नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति - स्तंभन, प्रा., पद्य, आदि: श्रीथंभणट्ठियपाससामि; अंति: सो जिनपास पयथउ वंछिय, गाथा-२. ७००६४ (+) भावना कुलक, बोल व प्रास्ताविकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित, जैये., 1 १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, आदि: साते नरगे सात राज, अंति: मोख्य सगला लगइ चउदमु " ३. पे. नाम. १८ दोषरहित तीर्थंकर बोल, पृ. ३आ, संपूर्ण. १७१ १८ दोषरहित अरिहंत विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: अनाण१ कोहर मय३ माण४; अंति: नमामि देवाधिदेवतम्. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: तिथयरं तं समत खाय सत, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण गाथा ६ तक लिखा है.) ७००६५. (+४) कालविचारसत्तरी सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. मु. रामकीर्ति ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६X११, १५४२७-५५). For Private and Personal Use Only कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदणयं विज्जाणंद, अंति: कालसरूवं किमवि भणियं, गाथा- ७३. कालसप्ततिका - अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. आंशिक अवचूरि है.) ७००६६. प्रतिमानिश्चलभावकरण स्तवन व शांतिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे. (२६४१२, १०x३३). Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. प्रतिमानिश्चलभावकरण स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनप्रतमा हो जिन; अंति: समय० प्रतीसुनेहे, गाथा-७.. २.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सांत करो श्रीसिंघ मै; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७००६७. ऋषिमंडल स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, जैदे., (२८x१२.५, ४४३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-३ अपूर्ण से है व श्लोक-२३ तक लिखा है.) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७००६८. (+#) कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८४-८१(१ से ८१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६-१४४३५-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सिद्धार्थराजा द्वारा देवपूजा, दानादि कार्य प्रसंग अपूर्ण से अतिथि आदि के सन्मान प्रसंग अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७००६९ (+#) महादंडक स्तवन व प्रास्ताविकगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४१२, ३-११४१५-२७). १.पे. नाम. महादंडकविचारयुक्त जिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अति: सामि अणुत्तरपयं देसु, गाथा-२१. महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: असंख्येयकोटाकोटी; अंति: भावतः संदेवसंख्येयः. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: संखातीउक्कोसपयिमणु; अंति: सांडि पहिलओ अंकंतु, गाथा-२. ७००७१. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र विधिसहित, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५४११, १५४३७). साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., आदि: पडिकमणु करवा मोर; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभिक पाठ से अतिचार पाठ अपूर्ण तक व १८ पापस्थानकगत बोल ७वे पापस्थानक मान से पगामसज्झाय प्रारंभिक पाठ तक ७००७२. (#) साधुसाध्वीउपकरणसंबद्ध आगमिकपाठ संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (३६.५४११.५, ११४३८). साधुसाध्वी उपकरण संबद्ध आगमिकपाठ संग्रह, प्रा., गद्य, आदि: जंपिय समणस्स सुविहिं; अंति: पडिण्णिक्खमिति. ७००७३. ओगणत्रीसीभावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९९०, भाद्रपद कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७४११, ५४४१). २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः संसारमि असारे नत्थि; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाण, गाथा-२९. २९ भावना प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असाररूप छइ; अंति: दुक्खनी मुकीइ सही. ७००७४. (+-2) कल्याणमंदिर स्तोत्र व पार्श्वनाथ चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण.. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गयी है. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १७३ ७००७५. (#) वृष्णिदशा सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११. १६x४६-५२). वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं समए; अंति: मइरित्तं एक्कारससुवि, अध्ययन-१२. ७००७६. (+) षष्ठीशतक सह शब्दार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४५६). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरिहं देवो सुगुरू; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९६ अपूर्ण तक है.) षष्ठिशतक प्रकरण-शब्दार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेव सुसाधुगुर; अंति: (-). ७००७७. गणिविद्या प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२७.५४१२.५, १३४५२). गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: वुच्छं बलाबलविहिं; अंति: नायव्वो अप्पमत्तेहिं, गाथा-८२. ७००७८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्रले. मु. जसा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण से है.) ७००७९. आवश्यकनियुक्तिभाष्य-पंचविधप्रत्याख्यानादि सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२६.५४११.५, ५४२८). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एसो य असइ दोसा..मइधीरपुरिसेंहिंति" पाठ तक लिखा है., वि. पंचविध प्रत्याख्यान, छ स्थान, गणिस्वरूप कथनादि.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७००८०. (+) समवायांगसूत्र-३०मोहनीयस्थानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, ६४३२). समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: जे तावि तसे पाणे; अंति: महामोहं पकुव्वई, गाथा-३४. समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे जीव त्रसप्राण आदि; अंति: पूजार्था महामोह करइं. ७००८१. प्रश्नोत्तररत्नमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१०.५, ७X३४). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता कंन भूषयति, श्लोक-२९. ७००८२. (+) उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ६x४६). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से ४५ अपूर्ण तक है.) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अति: (-). ७००८३. (+#) सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तुतिअध्ययन सह शीलांकी टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. जसराज ऋषि (गुरु मु. धर्मसिंह, लुंकागच्छ); गुपि. मु. धर्मसिंह (गुरु मु. सिद्धराज ऋषि, लुंकागच्छ); मु. सिद्धराज ऋषि (गुरु मु. हाथी ऋषि, लुंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-संशोधित-प्रायः शुद्ध पाठ-टिप्पणयुक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२.५, ४४४३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७००८४. (+#) आलोयणआराधना, आराधनाविधि व सुपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४११, १५४३४). १.पे. नाम. आलोयण आराधना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७४ www.kobatirth.org आलोयणा आराधना, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: एगेंदिवाणं जं कहवी, अंति: उवठ्ठठ सव्वभावेण २. पे. नाम. अंतिम आराधना विधि, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., प+ग, आदि: हवइ अदार पापस्थानक, अंतिः तिविहेण वोसिरीयं. ३. पे, नाम, सुपार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गजमुख, मा.गु., पद्य, आदि: तेरो हुं सेवक तुम्ह, अंति: गजमुख गुण गाया, गाथा-५. ७००८५ (+) विविधग्रंथोद्धृतविनय, स्थानपद व कर्मपद व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत., जैवे. (२५.५४११. १९४६१) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विनय, स्थानपद व कर्मपदादि व्याख्यान संग्रह - विविधग्रंथोद्धृत, प्रा.सं., प+ग, आदि: (१) दव्वं पज्जवविजय दव्व, (२) नयास्तवस्यात्पद, अंति: (-) (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. आयुष बंधकाल विवेचन अपूर्ण तक लिखा है। " प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुत्रं पावा, अंतिः परियहो चैव संसारो, गाथा २७. . ७००८६. ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. पदमचंद, प्र. ल. पु. सामान्य, जैवे. (२६.५x१२.५, १३x२७). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यंताक्षरसंलक्ष्य, अंतिः परमानंद नंदितः, श्लोक ८४. ७००८७. चतुःशरण, संपूर्ण वि. १८०६, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३ मंगलवार श्रेष्ठ, पृ. ३ ले. स्थल बढवांण, प्रले. ग. जयविजय प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, १५X३१). " "" चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुह सुहाणं, गाथा - ६३. ७००८८. () जयतिहुअण स्तोत्र व नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे २ प्रले. उपा. अनंतहंस (गुरु मु. जिनमाणिक्य, तपागच्छ); गुपि. मु. जिनमाणिक्य (गुरु आ हेमविमलसूरि तपागच्छ) पठ. ग. सिद्धांतवीर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५x११.५, १२X५८). १. पे नाम, जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प, अंतिः अभयदेव० आनंदिअ गाथा ३०. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. ७००८९. नमिऊण स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८१२ फाल्गुन शुक्ल, ५, शनिवार, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल सुरतिबंदर, प्रले. मु. दीपनिधान (गुरुग. शिवसागर, अंचलगच्छ); गुपि. ग. शिवसागर (गुरु ग. लक्ष्मीसागर पंडित, अंचलगच्छ); ग. लक्ष्मीसागर पंडित (गुरु ग. देवसागर पंडित, अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X११, ५X४०). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण, अंति: अहिणा थुणामि भत्तीए, गाथा-२६. नमिऊण स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमीन देवताना अंति: पूजा सदा सर्वदा करु. ७००९०. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१० (१ से १०) = ३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. यंत्र- कोष्ठक सहित.., संशोधित. जै (२६.५x१०.५, १५४३९-४४). "" "" बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: (-): अंति: (-). (पू.वि. गाथा- १३९ अपूर्ण से १८६ अपूर्ण तक " है.) For Private and Personal Use Only ७००९१. (+) द्विजवदनचपेटांकुश, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५४११, १९५६७). , "" द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: वस्तुतत्व विहीनानामा, अंतिः तिष्ठति विप्राः ७००९२. (+) संथाराविधिपोरसि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पूर्व से जारी पत्रांक को सुधारक पत्रानुक्रम दिया है., संशोधित, जैवे. (२६.५४११.५ ३x२६). , संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इय सम्मतं मए गहियं, गाथा - १३. संधारापोरसीसूत्र - टवार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: त्रिकरण शुद्ध पाप; अंतिः मई ग्रहिउं लाघडं ७००९३. (+) अजितशांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. भाग्यनगर, प्रले. मु. ज्ञानसोम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४११, १०५३३). , Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १७५ अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ७००९४. (+#) अमरसेनवयरसेन कथानक, संपूर्ण, वि. १६६७, मध्यम, पृ. ४, प्रले.ऋ. देवनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, १८४४६-४९). अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदि: (१)जायइ सुपत्तदाणं भोगा, (२)अत्रैव भरते उसभपुर; अंति: भवे सिद्धिं यास्यतः. ७००९५. (+) दशवैकालिकसूत्र-चूलिकाद्वय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, आश्विन, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. सुनाम, प्रले. मु. नागरिमल्ल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: मुच्चइ त्ति बेमि, प्रतिपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: शिष्य प्रतइ कहइ छइ, प्रतिपूर्ण. ७००९६. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. आगरा, प्रले.मु. विद्यानिधान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ५-८x२४-३६). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणदसणेति० जिनदर्शन; अंति: न भ्रमते भ्रमतः. ७००९७. (+) विजययंत्र विधि, संपूर्ण, वि. १८२९, पौष शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले.पं. कीर्तिहेम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४३). विजययंत्रआम्नायलेखन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इंद्र प्रोवाच संतु०; अंति: ७२९ लघुयंत्रं. ७००९८.(+) ३०महामोहनीयकर्मस्थान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. श्राव. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल व बालावबोध लेखनकाल में काफी अंतराल प्रतीत होता है., पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११.५, ११४२६). दशाश्रुतस्कंधसूत्र-हिस्सा नवमदसा ३०महामोहनीय कर्मस्थान, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (१)तेणं कालेणं० मोहणि, (२)जे केइ तसे पाणे वारि; अंति: मितित्थिया त्तिबेमि, गाथा-३५. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-हिस्सा नवमदसा ३०महामोहनीय कर्मस्थान का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: महामोह कहतां अष्ट; अंति: महामोहनी कर्म बांधइ. ७००९९. (+) बृहत्संग्रहणी की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, २२४५२-५५). बृहत्संग्रहणी-अवचूर्णी, सं., गद्य, आदि: नमिऊ आदौ शास्त्रकार; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४९ अपूर्ण तक है.) ७०१००.(+) बलदेववासुदेवचक्रवर्ति बोलगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १०४३५). बलदेववासुदेव चक्रवर्तिबोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचसय अद्धपंचम बायाल; अंति: बलदेवाणं जहा संखम्, गाथा-१६. ७०१०१. (+) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११, १३४३५-३९). प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दिसि १ गइ २ इंदिअ ३; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७०१०२. (+) औपदेशिक सज्झाय व प्रतिक्रमण सूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, २०x१६-३५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दोय भेद मित्थात्त; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण तक लिखा २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुहि., पद्य, आदि: जासुतुं कहे संपदा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र बीच की कुछ गाथाएँ लिखी है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ४. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: इच्छाकारेण संदेसह भग; अंति: सिद्धिं मम दिसंतु. ७०१०३. (+) प्रत्याख्यानसूत्र विवरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२.५, १२४५०). प्रत्याख्यानसूत्र-विवरण, सं., गद्य, वि. १२४४, आदि: तत्र पौरुषी पूर्व; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., मात्र प्रारम्भिक कुछ अंश ही लिखे हैं., वि. विविध ग्रंथोद्धृत.) ७०१०४. पार्श्वजिनअष्टक व औपदेशिक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९६३, त्रिककायानिधीचंद्र, चैत्र, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. अजीमगंज, पठ. कृष्णलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १५४३६). १. पे. नाम. पार्श्वजिन अष्टक-महांत्रगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्देवेंद्रवृंदा; अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८. २.पे. नाम. औपदेशिकश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: शारंगी सिंहशावं; अंति: धर्मकीर्तियशंस्थिरः, श्लोक-३. ७०१०५. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, ९x४४). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७०१०६. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२७४१२, ११४३८). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२६. ७०१०७. (+) प्रस्ताविकश्लोकादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ५, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४१२, १६४५६). १.पे. नाम. प्रास्ताविकश्लोक संग्रह, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: अर्थी दोषान्न पश्यति, श्लोक-७७, (पू.वि. श्लोक-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पुरुषस्त्रीषोडशशृंगार वर्णन, पृ. ३आ, संपूर्ण. १६ शृंगार नाम, सं., पद्य, आदि: क्षौर मज्जन वस्त्र; अंति: शृंगारकाः षोडशः, श्लोक-२. ३. पे. नाम. १४ रत्न नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ रत्ननाम श्लोक, सं., पद्य, आदि: लक्ष्मी कौस्तुभ; अंति: कुर्यात् सदा मंगलम्, श्लोक-१. ४. पे. नाम. चरणसत्तरी-करणसत्तरी गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वय ५ समण धम्म १०; अंति: अभिगाहो चेव करणं तु, गाथा-२. ५.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अधिकारपदं प्राप्य; अंति: वह्निमुपैति शांतिम्, श्लोक-२. ७०१०८. (+) कल्याणमंदिरस्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४३). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा-२१ से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जयसागर, सं., पद्य, आदि: धर्ममहारथ सारथसारं; अंति: चंडं नंदतु यूयमखंडं, श्लोक-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-करहेटक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., पद्य, आदि: आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण; अंति: मे हृदि मेरुधीरम्, श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १७७ ४. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७०१०९. महावीरजिन स्तवन व मृगापुत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, २०४४२). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: सासण नायक सुखकारी ज्; अंति: चर्मजीणेसर जीवरा जडी, गाथा-१३. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: श्रीमहावीर अंतर्यामी; अंति: चोथमल० धर हंस कोडी, गाथा-१५. ३. पे. नाम. मृगापुत्र स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: सुग्रीवनयर सोहामणो; अंति: गोषां रतन जडाय हो, गाथा-१९. ७०११०. (+) भाष्यत्रय की अवचूर्णि, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ४-२(१,३)=२, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ३१४९३-९९). भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीसोमसुंदरसूरिभिः, (पू.वि. चैत्यवंदन भाष्य गाथा-२२ अपूर्ण से ४० अपूर्णतक व प्रत्याख्यान भाष्य, गाथा-२२ अपूर्ण से नहीं है.) ७०१११. भिक्खूप्रतिमापंचाशक व दूसमदंडिका प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१०.५, १९४४८). १. पे. नाम. भिक्खूप्रतिमा पंचाशक सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचाशक प्रकरण-हिस्सा भिक्षुप्रतिमा पंचाशक-गाथा-१३, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पच्छागच्छमईई एनं; अंति: जासत्त उसत्त मासीए, गाथा-१. पंचाशक प्रकरण-हिस्सा भिक्षुप्रतिमा पंचाशक-गाथा-१३ की टीका, सं., गद्य, आदि: पश्चान्मास पूरणानंतर; अंति: श्रद्धावृध्यर्थं. २.पे. नाम. दूसमदंडिका प्रकरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दूसमदंडिका-बृहत्, आ. मतिप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अवसर्पिणि उस्सपिणि; अंति: मइपभसूरीहिं संकलीया, गाथा-६१. ७०११३. (+#) दशवैकालिसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ६,८ से १२)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४४५). दशवैकालिकसुत्र, आ. शय्यंभवसुरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), (प.वि. उद्देश-१. अध्ययन-५. गाथा-४८ अपूर्ण से ८२ अपूर्ण तक व उद्देश-२, अध्ययन-७, गाथा-३२ अपूर्ण से अध्ययन-८, गाथा-६ अपूर्ण तक ७०११४. बिंबप्रवेश विधि व योग विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १९४५४). १. पे. नाम. बिंबप्रवेश विधि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ____ मा.गु.,सं., प+ग., आदि: पहिला मुहूर्त भलु; अंति: नाम १०८ वार स्मरे. २. पे. नाम. योगोद्वहन विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: पसत्थे खित्ते जिणभवण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., द्वादशांगी आराधना अपूर्ण तक लिखा है.) ७०११५. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. मलुकचंद; मु. जसराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ५४५३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभीया मनुष्य; अंति: आनंदादि दशश्रावकवत्. ७०११६. (+) बोल आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ४८४२०). For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे नाम, बोल संग्रह, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: भणावर ते विचारी जोजो, (पू. वि. प्रारम्भ के पाठांश नहीं हैं., वि. यह बोल संग्रह पत्रांक- ३आ पर भी जारी है.) २. पे. नाम. वीरशासने प्रमुख घटना व काल, पृ. २अ -३आ, संपूर्ण. प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: संवत् ४७० विक्रमात्; अंति: आदरी ते पूछीयइ छइ. ७०११७. अनाथीऋषि कुलक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, जैवे. (२६११, ११४४१) अनाथीमुनि कुलक, प्रा., पद्य, वि. १४बी, आदि: पणमिअ सामिअ बौर जिणि अंतिः तसु जम्म पवितु, गाथा- ३५. ७०११८, (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x११, , १६X५७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०११९. आवश्यकसूत्र - निर्युक्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६X११, १३x४८). ! " भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-): अंति: (-) (पू. वि. शतक- ७, उद्देश ९ सूत्र- ३७१ अपूर्ण से ३७५ अपूर्ण तक है.) आवश्यक सूत्र- निर्बुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि जयह जगजीव जोणी विआण, अंतिः (-), पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. ७०१२०. (*) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६.५x११, १८६६). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन- अर्बुदगिरिमंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १६वी, आदि: श्रीअर्बुदाचल विभूषण, अंति: ये बोधि लाभाव भूयात् श्लोक-३३. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तोत्र, पृ. १आ- २अ, संपूर्ण. " नेमिजिन स्तोत्र - गिरिनारमंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं. पद्य वि. १५वी, आदिः श्रीमदैवतकाभिधान; अंतिः श्रुतेसावनतम् लोक-१७. ३. पे. नाम. स्तंभनपार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र स्तंभन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी आदिः स्फुरत्केवलज्ञानचारु, अंति: देवसुंदर ० संपदस्तम्, श्लोक-२५. ७०१२१. (+) इगुणत्रीसी भावना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे., (२७४११.५, ११x२६). , २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे, अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं, गाथा-२९ २९ भावना प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: ए संसार असार रूप छइ, अंति: दुखहूथी मूकाइ सही. ७०१२३. (*) साधु प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२६.५x११, १७x४९). " साधु प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे. मू. पू., संबद्ध, प्रा., सं., प+ग, आदि: करेमि भंते सामाइयं; अंतिः नित्थारपारगाहोह. ७०१२४. संस्तारकपोरसि सह अवचूर्णि संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे. (२६४११.५, १२४४८). " संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि, अंति: इअ समत्तं मए गहिअं, गाथा - १४. संधारापोरसीसूत्र- अवचूर्णि सं., गद्य, आदि: प्रथम पौरुष्यां स्वा, अंतिः अन्यथा यथासमाधनमिति ७०१२५. कल्पसूत्र सह व्याख्यान + कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६२ - ६० (१ से ६०) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., For Private and Personal Use Only (२६११.५, ६-१५X३०-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. त्रिशला रानी के द्वारा भगवान महावीर के गर्भपोषण से लेकर उनके जन्म प्रसंग अपूर्ण तक का वर्णन है.) कल्पसूत्र व्याख्यान+कथा में सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७०१२६. (+) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७-५ (१ से ५) = २, पृ. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैदे., " " (२६X११, ११x४०). उपदेशमाला. ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: (-): अंति: (-) (पू. वि. गाथा ७६ अपूर्ण से ११८ अपूर्ण तक है.) ७०१२० () सुदर्शनमुनि सज्झाय, चतुर्विंशतिजिन स्तव व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. जेठा ऋषि (गुरु मु. वेलजी ऋषि); गुपि. मु. वेलजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५X११.५, १५X३७). १. पे. नाम. सुदर्शनमुनि सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु, पद्य, आदि: वीरजिणंद विराजता, अंतिः प्रेममुनि जयकारी रे, गाथा - २१. २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १आ- २अ संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि; आदौ नेमिजिनं नौमि अंतिः सुखनिधानं ० निवासम, लोक ८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. १७९ सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभु, अंतिः पार्श्वजिनं सिवं, श्लोक ७. ७०१२८. (+) लघुशांति, संपूर्ण वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे (२६४१२, ८x२३). , लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति, अंतिः श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक-१९. ७०१२९. (+) सिद्धांत स्तव व २४ जिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. वा. अमृतसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - संशोधित, जैदे., । १४४४४). (२६४११, १. पे. नाम सिद्धांत स्तव, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरुभ्यः श्रुत, अंति: तत्समागमनोत्सवम्, श्लोक-४६. २. पे नाम, २४ जिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र - पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि आदी नेमिजिनं नौमि अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८, (वि. अंत में यंत्र भी लिखा है.) " ७०१३०. (*) कर्मविपाक कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२६.५X११.५, ११x४०). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ -१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी १४वी, आदि सिरिवीरजिणं वंदिय अंति: (-), ( पू. वि. गाथा ४३ अपूर्ण तक है.) ७०१३१. (*) विषापहारक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. पुनमचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित., दे., (२७१२.५, १५X४३). विषापहार स्तोत्र, जै. क. धनंजय कवि, सं., पद्य, ई. ७वी, आदि: स्वात्मस्थितः सर्वगत, अंतिः सुखानि यशोधनंजयं च, श्लोक-४०. For Private and Personal Use Only ७०१३२. (*) पोषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८५६ पौष कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. जेसलमेरदुर्ग, प्रले. पं. मनरूपविजय (गुरु पं. भक्तिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीमदिष्टजिनप्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. प्र. ले. श्रो. (१२३३) जबलगि मेरू अडिग हे जैवे. (२६.५४११. १६४३९). " पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., पद्म, आदि: ध्यात्वा वामेयमर्हत अंतिः शीघ्रं रचयां चकार श्लोक- ७५. ७०१३३. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं. दे., ( २६.५X११.५, १२X४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से ३३ अपूर्ण तक है.) ७०१३४. उत्तराध्यायनसूत्र अध्ययन - ३६, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६X१२, १८x४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: (-): अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. गाधा- ७६ अपूर्ण तक है.) Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०१३५. महावीरस्वामी २७ भव वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४१०.५, १९४६२). महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: हिवै श्रीमहावीरदेवनै; अंति: (-), (पू.वि. उन्नीसवें भव अपूर्ण तक है., वि. बीच में कल्पसूत्र माहात्म्य गाथा व उनका टबार्थ लिखा है.) ७०१३६. (+) दानषट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११,१४४४५). दानषविंशिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: दातुरिधस्य; अंति: सुश्रावक श्रीकरम्, श्लोक-३६. ७०१३७. जैनगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक ७६ लिखा है., जैदे., (२७४१२, १३४३९). जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जइहतिणी मणूसा; अंति: भवणांतरमेव चउगइओ, गाथा-१२. ७०१३८. (+#) कुलकर कोष्टक व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १६४५९). १.पे. नाम. कुलकर कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. ७ कुलकर स्त्रीनाम देहमान आयु वर्णादि कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वीरं अरिट्ठनेमिं पास; अंति: जूएअइत्यनुक्रमः, गाथा-३३. ७०१३९. (4) पार्श्वचंद्रसूरि पट्टपरंपराप्रशस्ति पत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ३२४२१). पार्श्वचंद्रसूरि पट्टपरंपराप्रशस्ति पत्र, सं., पद्य, आदि: स्वस्ति श्रीपार्श्व; अंति: हेतुरूपा भवंतु नः, श्लोक-२५. ७०१४०. कृष्णवासुदेव ऋद्धिवर्णनादिविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. वस्तुतः पत्रांक-५३ है, किंतु विषय व पत्र देखने से छुटक पत्र प्रतीत होता है., जैदे., (२५.५४१०.५, २०४५२). १. पे. नाम. कृष्णवासुदेव ऋद्धिवर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सात रत्न आठ सहस्र; अंति: नेमकुमार आव्या परणवा. २. पे. नाम. पौषधभेद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सोयं पोसहो आहाराइभेए; अंति: पमज्जित्ता असुरसुरं. ३. पे. नाम. चक्रवर्तीकृत १३ स्थानक अट्ठम विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चक्रवर्ति १३ ठामे; अंति: शेष सेनानी करइ. ४. पे. नाम. तीर्थंकरगोत्र, अनागततीर्थंकर जीवादि विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. विचार संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०१४१. (#) योगविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६.५४१२, २२४५५). योगोद्वहन विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गुरुप्रति अंग योग हेतु खमासणा से रात्रि अनुष्ठान विधि प्रारंभ तक है.) ७०१४२. (+) शांतिजिनादि कायोत्सर्ग विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१०, १२४५२). शांतिजिनादि कायोत्सर्ग आराधना विधि, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: यदह्रि० शांतिनाथआरा; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चंदेसुनिम्मलवरा० लोगस्स चतुष्क पाठ तक लिखा है.) ७०१४३. (+) चातुर्मासिक अभिग्रह व चातुर्मासिक नियम, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४५२). १.पे. नाम. चातुर्मासिक अभिग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नाणे तह दसणे चरित्त; अंति: अतिहीणं संविभागंच, गाथा-२५. २. पे. नाम. श्राद्धानां चातुर्मासिक नियमा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ चातुर्मासिक श्रावक नियम गाथा, प्रा.सं., पद्य, आदि: यथा द्विस्त्रिपूजा; अंतिः शकटादिवाहन नियमाः, गाथा-७. ७०१४४. (#) महावीरजिन स्तुति व बीजतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री पार्श्वनाथ प्रसादे, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे, (२६.५x११.५, ११४२८). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण मु. अमृतविजय, मा.गु, पद्य, वि. १८वी, आदि मन बांध्युं महावीरजी, अंतिः दुख सबी भाजे छे, गाथा- ६. २. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रसाली जी, गाथा ४. मु. वीरसागर, मा.गु., पद्म, आदि: पुरवदिसि उतरदिसि अंतिः वीरसागर ७०१४५. प्रज्ञापनासूत्र-पद-३ अल्पबहुत्व, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, जैवे. (२६४११, १३४४६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. पद- ३, द्वार- १, सूत्र - २६० अपूर्ण है.) ७०१४६. दशवैकालिकसूत्र - द्रुमपुष्पिकाध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. श्राव. हिराचंद, पठ. श्राव. जगजीवनभाई; अन्य. सा. मीठीबाई स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२७४११.५, ८४२७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०१४७. पृथ्वीचंदसागरचंद चौडालियो, संपूर्ण, वि. १९४७, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १. ले. स्थल, केकिद, प्रले. श्रावि. लीछमाबाई, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२५.५X११.५, २०×५१). पृथ्वीचंदसागरचंद चौढालिया, मा.गु., पद्म, आदिः श्रीजिनवीर जिणेसरु, अंतिः नृपत पूरबलो अधिकार, ढाल ४, गाथा ४२. ७०१४८. अवंतीसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५.५X१२, १८x४२). अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगणहर गौतमसामजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., डाल-४, गाथा २० तक लिखा है.) ७०१४९. (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन -१ से २, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. सुजाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६.५x१२.५, १६X३०-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, बी. रवी, आदिः धम्मो मंगलमुक्किहं, अंति: (-), प्रतिपूर्ण ७०१५०. अंतिमआराधनाविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६×११, ११x४१). अंतिम आराधना संग्रह, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरिआविही पडिकम, अंति: (-), (पू. वि. सर्वजीव क्षमापना (संसारंमि अणते) पाठ तक है.) ७०१५१. अध्यात्म बत्तीसी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५४११.५, १९४३६). " " अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहिं., पद्य, वि. १६८५, आदि: अजर अमर तिहा, अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा - २८ अपूर्ण तक है.) ७०१५२. तपभावना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्रावि. लछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६X१२, २२X४६). तप भावना, रा. गद्य, आदि: धनसांमी अठारह अधगवी, अंति: यांरा भाव चालीया है. 5 ३. पे नाम. सुभाषितानि, पृ. १आ, संपूर्ण ७०१५३. (+) राजेंद्रसूरि स्तुति व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैवे (२६.५x११, १७६१). " १. पे. नाम. राजेंद्रसूरि स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. विजयक्षेमसूरि, सं., पद्य, आदिः धो धों धिधिकतां, अंतिः चिरंजीवो रविचंद लगि श्लोक-१०. २. पे. नाम सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण औपदेशिक सवैया संग्रह, पुहिं, पद्य, आदि: (-); अंति: (-). सुभाषित लोक संग्रह #. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, १८१ For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०१५४. (+) जिनाज्ञा व गुरुगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४१२, ११४२५). १. पे. नाम. जिनाज्ञा सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: जिनआणा सिर वहीयै; अंति: क्षमा० पसायै लहियै, गाथा-९. २. पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: आज आनंद मुज अतिघणौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ३ अपूर्ण तक है.) ७०१५५. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. वाचक द्वारा पेंसिल से संशोधित प्रति., दे., (२६.५४१२, १३४३५). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीज बोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ७०१५७. (+) जीवादिगणित संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. क्र. देवदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १२४३२). जीवादिगणित संग्रह गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जोयण सहस्स नवगं; अंति: यसत्तसट्ठी कला सत्त, गाथा-१९. ७०१५८. (+) राजप्रश्नीयसूत्र-प्रदेशी का सल्लेखणामरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३७). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. २१००, प्रतिपूर्ण. ७०१५९ (+#) वैराग्य पंचवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१०.५, १३४३८). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. ७०१६०. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७ ११.५, १५४६२). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आयंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३, ग्रं. १५०. ७०१६१. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११, १८४३८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउव्वीसं, गाथा-५०. ७०१६२. (+) पार्श्वनाथ लघुस्तोत्र, प्रतिक्रमणसूत्रविधि व पुष्पांजलि स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४११.५, १९४५५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ लघुस्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लघुस्तोत्र-रावण, सं., पद्य, आदि: पार्श्वपदांबुजातं; अंति: तोरावण पार्श्वनामा, श्लोक-७. २. पे. नाम. पुष्पांजलि स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: केवललोकितलोकालोक; अंति: मुक्तिलयं कुरुते, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: वंदामि जिने चउवीसं ९; अंति: भुवनदेवी० ध्यान करे. ४. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सो गुरुदेव लिपैनछि; अति: एकरता विन खाबरतीको, गाथा-३. ७०१६३. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र व चौसठयोगिनी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१०.५, ११४३८). १.पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम, श्लोक-८, (वि. यंत्र सहित) २. पे. नाम. ६४ योगिनी स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं; अंति: ोपद्रिव्यनाशनी, श्लोक-११, (वि. यंत्र सहित) ७०१६४. () श्रावक ४ प्रकार पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्रले. मु.पंचायण ऋषि; अन्य. मु. इसरदास (गुरु मु. लालचंद ऋषि); श्राव. इसरदास कोजूरामजी; श्राव. मानो, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११, ११४३५). ४ श्रावक प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: (-); अंति: तसुंसांभलजो नरनारजी, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ७०१६५. चतुर्दशस्वप्नानि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४११.५, ११४४६). १४ स्वप्नफल श्लोक, सं., पद्य, आदि: गजेन विश्वस्योडीरो; अंति: रभावीते स्वामिनी दश, श्लोक-४. १४ स्वप्नफल श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: गजेन० गज हस्तिनइ; अंति: वमाहि जाणितओ हुस्यइ. ७०१६६. (+) चक्रवर्तिसमृद्धिस्वरूपनिरूपण व पोरसिगाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., दे., (२६.५४११.५, १४४३६). १.पे. नाम. चक्रवर्तियो की ऋद्धि, पृ. १अ, संपूर्ण. चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: षट्खंड भरतक्षेत्र; अंति: चक्रवर्ति ऋद्धि. २.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: पोरसि चउत्थ छट्टे; अंति: पाछेहियो ढेधइये, गाथा-१६. ७०१६७. सिद्धदंडिका स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४२). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: आदितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. ७०१६८. (+) ५ समवाय विचार व सारस्वतव्याकरण की टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कच्छ देशे भुजनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १६x४९). १.पे. नाम. ५ समवाय विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: कालो सहावो नियई; अंति: समवायेन मान्या. २.पे. नाम. सारस्वत व्याकरण की टीका, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक का नाम अस्पष्ट है. सारस्वत व्याकरण-टीका*, सं., गद्य, आदि: प्रणम्येति द्वादश पद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक दो श्लोक की टीका है.) ७०१६९. (+) दानशीलतपभावना व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १६x४०). १.पे. नाम. दानशीलतपभावना, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. दानशीलतपभाव सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भावसु जिन उतरो भवपार, गाथा-३७, (पू.वि. अंतिम गाथा-३७ अपूर्ण है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. नथमल, रा., पद्य, आदि: सुणोनरनारी वाता प्रत; अंति: परो कियो आपन आडो आसी. ७०१७०. (+) सर्वजीव१० संज्ञा, षटलेश्या व विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. सभी कृतियों की गाथाएँ क्रमशः हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४११.५, १७४६१). १.पे. नाम. १० संज्ञा नाम, पृ. ४अ, संपूर्ण.. सर्वजीव की १० संज्ञा, हिस्सा, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. षट् लेश्या विचार, पृ. ४अ, संपूर्ण. षट्लेश्या लक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: कन्हाइ जाए नरयं नीला; अंति: शुक्ल लेश्या विधीयते, श्लोक-६. ३.पे. नाम. विचार संग्रह, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. विविधविचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जईया होही पुच्छा; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २३ अपूर्ण तक लिखा है., वि. सूर्यप्रज्ञप्ति से उद्धृत) For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०१७१. (+) तीर्थंकरदानविचार श्लोक, उपदेशमाला व औपदेशिक गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२७४१२, १०४५०). १. पे. नाम. तीर्थंकरदानविचार श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एवं दलंति हाणं जिणवर; अंति: सेसादाणाउमुणियव्वा, श्लोक-५. तीर्थंकरदानविचार श्लोक-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वखान वेलातिशय ४ वेरन; अंति: एदान देवानी विधि. २.पे. नाम. उपदेशमाला-गुरुवर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपदेशमाला-चयनित गाथा संग्रह, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: भद्दो विणीयवणिओ पढम; अंति: धारिज्जइ संपयं सयलं, गाथा-५. ३.पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह*,प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. जंबूप्रज्ञप्ति-टीका से उद्धृत) ७०१७२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन २०, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२, १२-१५४३५-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०१७३. होलिकापर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, फाल्गुन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. दीपबिंदर, प्रले. पं. तिलोक सौभाग्यजी (देवसूरगछे), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ७४४६). होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति: विज्ञानां वाचनोचितः, श्लोक-४९. होलिकापर्व कथा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीमहावीरने नमीने; अंति: सर्वनै वाचनार पुरुषै. ७०१७४. (4) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, आश्विन शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लांगुलपुर, प्रले. पंन्या. जीतरत्न; पठ. मु.खीमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४३५-४२). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: तस्य पद्मावती स्वयं, श्लोक-३२. ७०१७५. (4) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४)=४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १०४३०-३५). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-२ अपूर्ण से सूत्र-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०१७६. (#) सिद्धचक्रस्तुति व आयंबिलतप सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४२३). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: केसर० तुज लली लली, गाथा-८, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आयंबिलतप सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: समरी सुतदेवी सारदा; अंति: भाखे विनयविजय उवझाय, गाथा-११. ७०१७७. (+) कर्मग्रंथ-१ से ३ की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ३३४११०). १.पे. नाम. कर्मविपाक की अवचूरि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: कुदेशनाभिः, (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण से है., वि. मूल के मात्र प्रतीकपाठ दिये गए हैं.) २.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य की अवचूरि, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तह० गुणस्थानेषु; अंति: चरमसमये व्यवच्छेदः, (वि. मूल के मात्र प्रतीकपाठ दिये गए हैं.) For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. पे नाम, बंधस्वामित्व की अवचूर्णि पृ. ४अ ५आ, संपूर्ण बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: सम्यम्बंधस्वामित्व, अंति: देशद्वारेण भणनात् (वि. मूल के मात्र प्रतीकपाठ दिये गए हैं.) . ७०१७८. (+) दशवैकालिकसूत्र - चूलिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. माडणहाथी (गुरु मु. काहनजी ऋषि); गुपि मु. कानजी ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे. (२६.५x१२, ६४३८). दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा चूलिका, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गद्य, आदि: इह खलू भो पवइण्णं; अंति: मुच्चई तिबेमि, प्रतिपूर्ण १८५ दशवैकालिकसूत्र - हिस्सा चूलिका का टवार्थ, आ. शय्यंभवसूरि, मा.गु, गद्य, आदिः इह खलु निश्चिइ भो; अंतिः व सघलाइ दुखी मुकाइ, प्रतिपूर्ण. ७०१७९ (+) जीवद्रव्यादिलक्षण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित. वे. (२७४१२, ५X४०). जीवद्रव्यादि लक्षण, सं., पद्य, आदि: तत्वातत्व स्वरुपज्ञं; अंति: लढमेकानेकात्मध्रुवम्, श्लोक-४६. जीवद्रव्यादि लक्षण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवादिक पुद्गलादिक; अंति: वंछक साधु तेणे भाववा. ७०१८०. (+) स्नातस्या स्तुति सह टीका, अपूर्ण, वि. १६८२, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४-१ (१) = ३, ले. स्थल. दीपबिंदर, प्रले. मु. रविकुशल (गुरु ग. दयाकुशल); गुपि. ग. दयाकुशल (गुरु ग. कल्याणकुशल), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित, जैदे., (२५X११, १- ३X३३-४०). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक - ४, (पू. वि. सूत्र - २ अपूर्ण से है.) पाक्षिक स्तुति- अवचूरि, ग. विवेकहर्ष, सं., गद्य, वि. १६वी, आदि: (-); अंति: शिशुना जयहर्षनाम्ना. " ७०१८१. वीरथुई अध्ययन, पंचपद स्तुति सह टवार्थ व आगमिक विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२७.५X११.५, ५x५१). १. पे नाम वीरथुई सह टवार्थ, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण, अंतिः आगमसंति त्तिचेमि, गाथा २९. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० नरकनां दुख अंतिः कालइ सिध थास्यइ. २. पे. नाम. पंचमहाव्रत सह टवार्थ, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण महावीर जिन स्तुति, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: पंचमहल्वयसुव्ववमूल, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ तक ही लिखा है.) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पंच महाव्रतरूप सु०; अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ३. पे. नाम. आगमिक विचार संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. विभिन्न आगमों से संकलित ) ७०१८२. (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १४८४, ज्येष्ठ शुक्ल १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल, चीजुआ, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., ( २६११, १६x४८-५२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण, अंतिः हारताराबलक्षेमदा, स्तुति- २४, श्लोक- ९६. स्तुतिचतुर्विंशतिका - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भव्या० हे नाभिनंदन, अंति: लोके सवेवि संबंध: ७०१८३. आश्रवत्रिभंगी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वे., (२७४१२.५, ५४३३). आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: पणमिय सुरिंदपूजिय, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है., वि. यंत्र सहित) ७०१८४. पुच्छिस्सुणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मुलाधाजी ऋषि (गुरु मु. आणंदजी ऋषि); पि. मु. आनंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२६.५४११, ५४३५-३८). For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति आगमिस्संति तिबेमि, गाथा २९, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूधर्मास्वामी प्रते, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १५ तक टबार्थ क्रमशः है उसके पश्चात् यत्र-तत्र है.) ७०१८५. (*) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैवे. (२६४११, १३५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः अणीगयद्धा अनंतगुणा, गाथा-१२२. ७०१८६. (+) भाव प्रकरण सह टिप्पण व सम्यक्त्व विचार, संपूर्ण, वि. १८६७, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ७, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले. स्थल, साणंदनगर, प्रले. मु. लब्धिविजय, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२८x१३, १३x४३). १. पे. नाम. भाव प्रकरण सह सं. टिप्पण, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरिय नयणो आणंद, अंति: विजयविमल० पुव्वगंथाओ, गाथा - ३०. भाव प्रकरण- टिप्पण *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे नाम, ५ भाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, पृ. २- ४आ, संपूर्ण ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदिः उपसमीक कहेतां कर्म्म, अंतिः थकी विस्तार जाणवो. ७०१८७. (+) गौतमऋषि कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., । ५५२६). (२७X१२.५, गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा, अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थने; अंतिः सेवई आत्मासुख लहई. ७०१८८. नवतत्त्व प्रकरण व समकित के ६७ बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२६X११.५, ९x३६). १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-५०. २. पे. नाम. समकित के ६७ बोल नाम, पृ. ४आ, संपूर्ण. ६७ समकित बोल नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सद्दहणा १ फरसणा २; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ८ वें बोल तक लिखा है.) ७०१८९. अढीद्वीपवीसविहरमान स्तवन, सनत्कुमार सज्झाय व सकोसला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२६x१२, १२Xx३९). १. पे. नाम, विहरमान २० जिन स्तवन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: बंदु मन सुध विहरमाण, अंतिः नेहधर भ्रमसी नमे, डाल-३, गाथा - २६. २. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करै; अंति: कहइ गायां सुख पावइ, गाथा १६. ३. पे. नाम. कीर्तिध्वज राजा सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: कीरतधज राजान सूरज; अंति: क्षमाकर भवसायर तिरै, गाथा - १५. ७०१९०. शत्रुंजय स्तोत्र व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. पेथापुर, प्रले. जेठा चुनिलाल लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२७.५४१२.५, १३४४१). १. पे. नाम. शत्रुंजय स्तोत्र संग्रह, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तोत्र-शत्रुंजयतीर्थमंडण, सं., पद्य, आदि: पूर्णानंदमयं महोदयमय; अंति: नाभिजन्मा जिनेंद्र:, श्लोक-१०. For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १८७ २.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: श्रेय संकेतशाला; अंति: नंदित णिपालउ. ७०१९१. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. १७, जैदे., (२५.५४१२, २१४५९). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ऋ. जेतसी, मा.गु., पद्य, वि. १८७३, आदिः (-); अंति: सांभलजो सहु नरनारी, (पू.वि. अंत की १० गाथाएँ हैं., वि. गाथा संख्या नहीं लिखी है.) २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नवकार तणी महिमा सुणौ; अंति: सहसु ईम भागया जिराजौ, गाथा-१२. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-काल महिमा, रा., पद्य, आदि: इण कालरो भरोसो भाई; अंति: भरोसो भाईरेको नहीं, गाथा-११. ४. पे. नाम. सामायक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. सामायिक सझाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुर संग करो भवखाण: अंति: वेगिगरज सरसिरे. गाथा-१८. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: कर गुजरान गरीबी में; अंति: पापी नरग में सडता है, गाथा-४. ६. पे. नाम. औपदेशिक पद-कपट विचार परिहार, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-कपटविचार परिहार, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: थारा गट माहे नारी; अंति: समुद्र तारे मुरारी, गाथा-४. ७. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, पृ. ३अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, कबीरदास संत, पुहि., पद्य, आदि: रनवन सेती जडीयम गाई; अंति: होली जीम दीयो पूफाई, गाथा-५. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद-मिथ्याभिमान परिहार, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मिथ्याभिमान परिहार, कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: तेरा तन का तनक भरोसा; अंति: ऐसा है गुरुग्याना रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. काया पद, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-जीवकाया, कबीर, पुहि., पद्य, आदि: वेलु की भीत तन का; अंति: भज पार उतारो रे, गाथा-४. १०. पे. नाम. औपदेशिक पद- रागद्वेष परिहार, पृ. ३अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-रागद्वेष परिहार, भर्तृहरि, पुहिं., पद्य, आदि: ऊँचा मिंदर धवलसकेरा; अंति: मुगत जावणारी आसाएवे, दोहा-६. ११. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- श्रावकाचार सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. श्रावकाचार सज्झाय, पुहि., पद्य, आदि: भर्म गाँठ नही भागी; अंति: पिण उटकटा लोभावै, दोहा-७. १२. पे. नाम. जैवंतीनी ढाल, पृ. ३आ, संपूर्ण. मृगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, आदि: सुनो भोजाई कैझवती; अंति: निज बुधश्री हो, गाथा-१७. १३. पे. नाम. शिवपुरनगर सज्झाय, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: गोतम सामी पुछा करै न; अंति: पामे सुख अथाग हो, गाथा-१६. १४. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति प्रशंसा करे; अंति: कहे गाया सुख पावे, गाथा-१७. १५. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: आउखौ तूटो साधौ लगै; अंति: चोथमल० जालौर मझार रे, गाथा-८. १६. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: मेतो पूरब सूकरत ना क; अंति: कुमर इसो मन चितवै, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७.पे. नाम. धन्नाऋषि सज्झाय-काकंदी, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरवाणी रे धना; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७०१९२. समकित ६७ बोल आदि गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८५१, श्रावण शुक्ल, ४, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ९, ले.स्थल. लांघणज, प्रले. मु. गलालविजय; पठ.मु. रायचंद (गुरु पं. गलालविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२.५, ८४४०). १.पे. नाम. समकित ६७ बोलभेद सह टबार्थ, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विणय१० गुरुमुणाईअं, गाथा-२, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा का चतुर्थ पाद है.) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: खायक समकीतना धणीने. २.पे. नाम. ५७ भेद कर्मबंध विचारगाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. ५७ भेद कर्मबंधगाथा, प्रा., पद्य, आदि: पणमीच्छवार अवीरई; अंति: बंधो हवई सगसतभेएहिं, गाथा-१. ३. पे. नाम. ८ कर्म विचारगाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. ८ कर्मविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इह नाण दंसणावरण वेय; अंति: चउ तिसय दु पणविहं, गाथा-१. ४. पे. नाम. १४ गुणठाणानाम गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: मिच्छे सासण मीसे; अंति: खीण सजोगी अजोगी, गाथा-१. ५. पे. नाम. ८४ लाख नरकावास गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: तीस पणवीस पनरस दस; अंति: लक्खाय सत्तसूवी, गाथा-१. ६. पे. नाम. ४ निक्षेप विचारगाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ, संपूर्ण. ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: नामजिणाजिणनामा ठवण; अंति: भावजिणा समवसरणत्था, गाथा-१. ४ निक्षेप विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नामजिनने नाम थकी जाण; अंति: वीदमान विचरता होय ते. ७. पे. नाम. जिनभवन १० आशातना नामगाथा सह टबार्थ, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., पद्य, आदि: तंबोल पाण भोयण वाहण; अति: अवज्जे जिणनाह जगइए, गाथा-१. जिनभवन १० आशातना गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पानसोपारी पाणी पीवू; अंति: नाथनी आसातना दस. ८. पे. नाम. ४ दुर्लभता गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगाणी; अंति: संयमम्मिय वीरिअं, गाथा-१. ९. पे. नाम. औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: एगदियाइं जाईसु; अंति: पवजा अत्थगहणेणं, गाथा-५. ७०१९४. तिजयपहुत्त व नमिऊण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. प्रत्रांकाभाव में अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२६४१२.५, १२४३६). १.पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निभंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७०१९५. (#) भावनाश्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४५-५१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) ७०१९६. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१०, १२-१६४४६-५९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. हेमंत ऋतु के फाल्गुण कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि को महावीर के केवलज्ञान का वर्णन है.) For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १८९ ___ कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०१९७. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय व जमाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, १९४३७). १. पे. नाम. सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि: सुरपति परसंसा करइ; अंति: पाम भवतणौ पारो, गाथा-२३. २. पे. नाम. जमाली सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: शासन नायक श्रीवीर; अंति: णरो नाम लिया निस्तार, गाथा-११. ७०१९८. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४४२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: यथाशक्ति श्रीसर्वज्ञ; अंति: देशनादीयते इति थापना. ७०१९९. (+#) वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४३). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: यः परात्मा पर; अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-३ अपूर्ण तक है.) ७०२००. (+#) विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३४-३३(१ से ३३)=१, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, २१४५८). विचार संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: व्यवहारशुद्धि वुहरइ, (पू.वि. आवश्यकनियुक्ति से उद्धत विचार अपूर्ण से है., वि. विभिन्न ग्रन्थों से उद्धृत) ७०२०२. (+) संतिकर स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ९४३६). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. ७०२०३. (+) महावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ८-१२४४५). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: सत्तुमित्तेसुवावि, गाथा-२१. ७०२०४. (+) औपदेशिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७९०, फाल्गुन कृष्ण, १४, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३०, जैदे., (२६४११.५, १३४३६). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जीवदया जिण धम्मो; अंति: (१)परिग्धंग परायण, (२)वाहनासीनविग्रहः, श्लोक-२१. ७०२०५. (#) जिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. प्रेमकुवरबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १२४३२). पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडणो; अंति: तणौ धीर करे गुणग्यान, गाथा-७. ७०२०६. (+) सिद्धचक्र चैक्यवंदन व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, १०४३१). १.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसंनाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धचक्क नमामि, गाथा-६. २. पे. नाम. नवपद स्तवन, प्र. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानविमल, मा.गु., पद्य, वि. १८८९, आदि: भवि भक्ति धरी नवपद; अंति: आनंद० उच्छव सुविलासी, गाथा-७. ७०२०७. (+) गुरु स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. कुल ग्रं. ३७, दे., (२६.५४११.५, ११४३७). प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: गोयम सोयम जंबूप्पज्झ; अंति: विहे धम्मसेणं सुसम, (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०२०८. जिनभवन १० व ८४ आशातना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. हेमराज ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, ४४२६). १. पे. नाम. जिनभवन १० आशातना, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनभवन १० आशातनागाथा, प्रा., पद्य, आदि: तंबोल पाण भोयण वाहण; अंति: वजे जीणमंदीरस्सतो, गाथा-१. २.पे. नाम. जिनभवन ८४ आशातना सूत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेल केलिकलिकला; अंति: वेज्जे जिणिंदालये, गाथा-५. ७०२०९. (+#) ज्वालामालीनीस्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, १२४३१). ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीचंद; अंति: (-), (पू.वि. "सर्वदैत्यान्विध्य" पाठ तक है.) ७०२१०.(+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. मोतीलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२, १४४३६-४२). __ जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ७०२११. पर्यंताराधना प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्रले. पं. नयनसुंदर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ११४४८). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से ४७ तक नही है.) ७०२१२. कालविधि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १६-१९४६५-८६). कालग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: वाघाई अवरत्ती; अंति: खमा० मिच्छामिदुक्कडं. ७०२१३. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १६९४, श्रावण शुक्ल, १०, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्रले. सा. चंदा आर्या (गुरु सा. सुगणादे आर्या); गुपि.सा.सुगणादे आर्या; पठ. सा. जगीसा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १४४४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., श्लोक-८ अपूर्ण से है.) ७०२१४. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७७७, आश्विन कृष्ण, १२, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. जालोर, प्रले. ग. कांतिविजय (गुरु पंडित. प्रेमविजय, तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४०-५०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. ७०२१५. (+#) उपसर्गहर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. मथुरा, प्रले. आ. महासिंघा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२.५, २१४५२). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मिथ्यादुःकृतमिति, अपूर्ण. ७०२१६. (+#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४२-४८). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नवकार३ कहीजै करेमि; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं. ७०२१८. संसारदावानल स्तुति सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. द्विपाठ., दे., (२५.५४११, २४३६). For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण से ४ अपूर्ण तक लिखा है.) संसारदावानल स्तुति-टीका*सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७०२१९. (+) अजितशांति स्तव कीटीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २२४७०-७२). अजितशांति स्तव-टीका*,सं., गद्य, आदि: अजितनामकं जिनं जित स; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक की टीका है.) ७०२२२. (+) नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४३-४७). धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., पद्य, आदि: तन्नमामि पर ज्योति; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७० अपूर्ण तक है.) ७०२२३. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४१०, ११४३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१२ गाथा-२२ अपूर्ण से अध्ययन-१३ गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७०२२४. (+) दशपच्चक्खाण आगारविधि, संपूर्ण, वि. १८७१, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, १, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. धामली, प्रले. पंन्या. तिलोकहंस (गुरु पंन्या. यूक्तहस), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३८). पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: धारणा प्रमाणे जाणवौ. ७०२२५. (#) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. निहाल (गुरु मु. दोलतराम); गुपि. मु. दोलतराम; पठ.सा. कामाहजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ५४५०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लोधा नरा अथपरा हवंति; अंति: न सेवीतं शुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभी न० मनुष्य; अंति: अनेक श्रावक जाणवा. ७०२२६. (+#) मेघकुमारनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१०.५, ९४३६). मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद समोसर्या; अंति: यहु संसारु असारु, गाथा-२१. ७०२२७. (+) शत्रुजय माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४३९). शत्रुजय माहात्म्य, सं., पद्य, आदि: किं तपोभिर्जपैः किं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५२ ___ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०२२८. उपदेशरत्नमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, जैदे., (२५४११, १३४४०). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: उवएसमालमिलमिणं, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-१० तक नहीं है.) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: अनंत सौख्य लहउ. ७०२२९. (+) नमस्कार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३७). नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्टि नमुक्कार; अंति: महिम सिद्धि सुह, श्लोक-३२. ७०२३०.(+) नेमिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२७४१२.५, १७४५५). नेमिजिन चरित्र, प्रा., गद्य, आदि: अनया कयाइ सिरिअरिठ्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अथ संजमविहि निसुणेह तेणं कालेणं" तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०२३१. (+) २४ दंडक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १७४४८). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७०२३२. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. श्रीपाल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १२४३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ७०२३३. (+) वैराग्यशतक सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८-१५(१ से १३,१५,१७)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७२ अपूर्ण से ७८ अपूर्ण, गाथा-८५ अपूर्ण से ८८ अपूर्ण तथा गाथा-९६ अपूर्ण से १०२ तक हैं.) । वैराग्यशतक-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०२३४. (+) पाक्षिकसूत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, २४x७०). १. पे. नाम. पाक्षित सूत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे अतित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: परसमयतिमिरतरणिं भव; अंति: मे मंगलं देवि सारं, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: जयतु सा जिनशासनदेवता, श्लोक-४. ७०२३५. संभवजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १०४३२). संभवजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: साहिब सांभलो विनति; अंति: तणी ए विनती विवेक, गाथा-७. ७०२३६. (+) आचारदिनकर-चैत्यप्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १८८१, माघ शुक्ल, १०, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १४-११(१ से ११)=३, ले.स्थल. अमदावाद(नागोरीश, प्रले. पं. राजेन, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४२). जिनप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०२३७. (#) पोषवद १० कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १४४५०). पौषदशमीपर्व कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य पार्श्वनाथां, (२)सकल मंगलवेलि वधारवा; अंति: विदेहे मोक्ष जास्ये. ७०२३८. (+) तिजयपहुत्त स्तोत्र व लघुशांति स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४५-५१). १. पे. नाम. तिजयपहत्त स्तोत्र की टीका, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. तिजयपहत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: तिजयेति अहं जिनेंद्र; अंति: हर्षकी वृत्तिमातनुत. २. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र सह टीका, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ तक है., वि. प्रथम गाथा संपूर्ण लिखा है तथा उसके बाद की गाथाओं का मात्र प्रतीक पाठ लिखा है.) लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदि: श्रीपार्श्व सर्व; अंति: (-). ७०२३९. सकलार्हत् स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४११.५,७४३५). For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १९३ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सासकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: भावतोहं नमामि, श्लोक-२८, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: समस्त श्रीअरिहंतनइ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-११ तक का टबार्थ लिखा है.) ७०२४०. जयतिहुयण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७१०, श्रावण शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. सेत्रावा, प्रले. मु. माणिक्यरत्न (गुरु मु. प्रेमहर्ष); गुपि.मु. प्रेमहर्ष (गुरु पं. कनकविमल गणि); पं. कनकविमल गणि (गुरु मु. कल्याणलाभ, खरतरगच्छ); मु. कल्याणलाभ (गुरु ग. कल्याणधीर, खरतरगच्छ); ग. कल्याणधीर (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ); आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु गच्छाधिपति जिनहससूरि, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. रंभादे; अन्य. भगवती; मानसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, जैदे., (२५.५४११, १३४३३-४०). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: अभयदेव विनवइ अणंदीय, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-३ से है.) ७०२४१. विविधतप विधि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६.५४११, ११४५१). १.पे. नाम. वीसस्थानकतप ग्रहण विधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: इहा विस्तारविधै नंदी; अंति: सुणावी वासक्षेप कीजै. २.पे. नाम. पंचमीअट्टमीएकादशी लेवारी विधि, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. तिथिप्रमुख तपविधि, मा.गु., गद्य, आदि: शुभ दिन राई प्रायच्छ; अंति: (-), (पू.वि. "सुयस्स भगवओ करेमिकाउ" तक ७०२४२. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४४५). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. मात्र-२ गाथा तक चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, आदि: इदमध्ययनं परमपद; अंति: (-). ७०२४३. मेघकुमार चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९२०, आश्विन शुक्ल, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्रले. लछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, २२४४४). मेघकुमार चौढालिया, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जातीसमरणग्यान रे, ढाल-५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-२ गाथा ९ अपूर्ण से है.) ७०२४४. (#) पंचेद्रिस्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १४४३५). पंचेंद्रिय स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रोतेंद्रि नीज बस; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०२४५. (+) सगरचक्रवर्तीप्रतिबोध व बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १६४५२). १. पे. नाम. सगरचक्रवर्ती प्रतिबोध-अनित्यता, पृ. ५अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: राजन सगर पश्यत्वं; अंति: भव कारणम्. २. पे. नाम. त्रिदंडी विवरण, पृ. ५अ, संपूर्ण. त्रिदंडी विवरण श्लोक, सं., पद्य, आदि: अथात्र समये प्राप्त; अंति: स्थगिताशेष दिग्मुखः, श्लोक-६. ३. पे. नाम. द्वीप वर्णन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. द्वीपवर्णन, सं., पद्य, आदि: संध्याकारो मनोल्हादः; अंति: (-), (पू.वि. लेशतश्चाधिकं भवेत्" पाठ तक है.) ७०२४६.(+) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, प्रले.ग. अनंतविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १६४५०). For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १९४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडं, (पू.वि. "महाकप्पसुयं उववाईयं" पाठ से है.) ७०२४७. (+) सिद्धचक्र चैत्यवंदन व जिनाभिषेक कलश, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, दे. (२६.५४१२, १२x४४)१. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जियंतरंगारिगणेसुनाणे; अंति: तवेहा गमियं निरासं, गाथा-८. २. पे. नाम. जिनाभिषेक कलश, पृ. १अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मा.गु., सं., पद्म, आदिः ॐ ह्रीं श्री परमात्म; अंति: (-) (पू. वि. मात्र किंचित् प्रारंभिक अंश है.) ७०२४८. (+) वंदितुसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१(१) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६.५४११.५, ७५३३). वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा १३ अपूर्ण से २७ तक है.) दिसूत्र - टीका * सं., गद्य, आदि (-): अंति: (-). " ७०२४९. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र व श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, दे., (२५X१२, १३३३ ). १. पे. नाम. धर्ममूल श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. धर्ममूल श्लोक - जिनोपदिष्ट, सं., पद्य, आदि: त्रैकाल्यं द्रव्यषड, अंति: सवैसुद्ध दृष्टी, श्लोक - १. २. पे. नाम. भगवती आराधना, पृ. १अ, संपूर्ण. आ.शिवार्य, सं., पद्म, वि. रवी, आदिः सिद्धे जयप्पसिद्धे अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रारंभ के दो श्लोक लिखे हैं.) ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. विविध स्तुतिसंग्रह - प्रार्थना, सं., पद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंतिः वंदे तदगुण लब्धये, श्लोक - १. ४. पे. नाम. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי वा. उमास्वाति सं. गद्य, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान, अंति: (-), (पू. वि. अध्याय ३ श्लोक-१४ अपूर्ण तक है.) ७०२५०. (४) षट्द्रव्यगाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, वे (२५४११.५, १८x१३). जैनगाथा संग्रह", प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०२५१. (#) नोकारस्मरणे राजसिंहरत्नवती कथा, अपूर्ण, वि. १८११ श्रावण शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ५-१ (१) ४, प्र. वि. कुल ग्रं. १२५, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५x११.५, १३४३०). नमस्कार महामंत्र- कथा संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: दोई जणा मोक्ष पामिसी (पू. वि. राजसिंह के जातिस्मरण ज्ञान से है.) ७०२५२. कानडकठियारा चौपाई, अपूर्ण, वि. १८८६, मार्गशीर्ष कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४-२ (१ से २)=२, जै, (२५x११.५, १२X४०). कान्हडकठियारा रास - शीयलविशे, मु. मानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४६, आदि (-); अंति: मानसागर० दिन वधते रंग, ढाल -९, (पू. वि. डाल-८, गाथा ३९ अपूर्ण से है.) ७०२५३. (*) पाखीखामणा व समकित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११, १२५३६). १. पे. नाम क्षामणकसूत्र. पू. १अ १आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा. गद्य, आदि: पिवं च मे जं भे, अंति: मणसा मत्वरण वंदामि, आलाप ४. २. पे नाम, समकित सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. . जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: चाखो रे नर समकित अंति: सद्गुरु यागे रे, गाथा- ६. ७०२५४. प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १(१ ) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, मु. १३४३६). For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ जिनबिंबप्रवेश स्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रीसंघ को दान देने से लेकर शांति स्तव पाठ तक है) ७०२५५. (+) पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १०४३०). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वः पातु वो; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) ७०२५६. (+) जीवस्थापना पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पंन्या. प्रतापविमल गणि (गुरु पं. दानविमल गणि); गुपि.पं. दानविमल गणि; पठ. श्रावि. माणिकी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १५४३५-४५). जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवो अणाइनिहणो; अंति: समत्तं निच्चलं तस्स, गाथा-२६. ७०२५७. जिनकुशलसूरिकृत स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४३५). पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७०२५८. पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१०.५, १०४३०). पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७०२५९. (+) भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८४४, पौष शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. रूपचंद; पठ. सा. केसरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११,१०४३१). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. ७०२६०. वंकचूलचौपाई व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. मांडलगढ, प्रले. बरदीचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१०.५, ३४३३). १.पे. नाम. वंकचूल चौपाई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८९१, आदि: वंकचूल भाखि कह्या कथ; अंति: रतनचंदजी० सुविशालै, ढाल-६. २.पे. नाम. राज्य की २७ शोभा गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वापी वप्र विहार वरण; अंति: सरवरं राज्यं० शोभते, गाथा-१. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक-अन्नमहिमा, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राज्यं कुंजर चामरादि; अंति: सखि एकोपि अन्नं विना, श्लोक-१. ७०२६१. पार्श्व-पद्मावती स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र सह विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. लाल स्याही से लिखा है., दे., (२७४१२.५, १५४४५). १. पे. नाम. पार्श्व-पद्मावती स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं कलिकुंड दंड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ तक लिखा है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-आराधना विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं तं नमह; अंति: कलिकुंडस्वामिने नमः, श्लोक-४, (वि. आराधनाविधि सहित.) ७०२६२. दानशीलतपभावना कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२६४११.५, १४४३९). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: (-), (पू.वि. शीलकुलक, गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७०२६४. (+#) चारित्रसागरेणगृहीता: नियमाः, संपूर्ण, वि. १८७३, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.पं. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मुनिश्री चारित्रसागर के द्वारा गुरु के निकट ग्रहण किये हुए नियमों का संग्रह., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ३४४२३). For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चारित्रसागर गृहीता नियम, पं. चारित्रसागर, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनेंद्राणां गुर; अंति: साधुनै अवश्य टालणी. ७०२६५. (+) सिद्धिदंडिका सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२७४११.५, ९४३८). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३, (वि. कोष्ठक सहित.) ७०२६६.(+) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२७.५४१२.५, १३४४२). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ___ददातु, श्लोक-११. ७०२६७. (4) पार्श्वनाथस्तोत्र व कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११,१३४३९). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं० ॐ; अंति: मम फलहेउ स्वाहा, गाथा-१३. २. पे. नाम. जैन यंत्रसंग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७०२६८.(+) महालक्ष्मीस्तवादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-३२ लिखा है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६४५७). १.पे. नाम, महालक्ष्मी स्तव, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आद्य प्रणवस्ततः; अंति: सर्वदा भूतिमिच्छता, श्लोक-११. २. पे. नाम, महालक्ष्मी मंत्रमय स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: ॐ चंद्रप्रभ पादाब्ज; अंति: वरदे शिवसार पद्ये, गाथा-६. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., पद्य, आदि: नत्वोपासित चरणं कमठे; अंति: कविकुलप्रभुतया घटते, श्लोक-११. ४. पे. नाम. अट्टेमट्टेमंत्रयुक्त श्रीपार्श्वस्तव, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-अट्टेमट्टेमंत्रयुक्त, सं., पद्य, आदि: कल्याण कारण गण प्रथम; अंति: तस्यष्टसिद्धिर्जिनः, गाथा-१०. ७०२६९. शीलव्रतउच्चार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. राघव ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, १०x२९). ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते दिव्वं मेहु; अंति: तियागारेणं वोसिरामि. ७०२७०. (+) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३-११०(१ से १०८,११० से १११)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ८४३७). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. निषधवर्षधर पर्वत के वर्णन अपूर्ण से गंधमादन वक्षस्कार पर्वत के वर्णन अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०२७१. (+) भगवतीसूत्र, शतक-२,उद्देश-५,सूत्र११से२६, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४३८-४६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७०२७२. (+#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ६४३६-४१). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमी करी चउवीस तीर्थं; अंति: (-). ७०२७४. (+#) महावीर स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६२५, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल वटीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४१०.५, ७४५०). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टि दयालो मयि, श्लोक-३०. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भाव अंतरंग वयरी; अंति: दृष्टि विस्तारउ. ७०२७५. आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२०(१ से १९,२१)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, ८४५३). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५, उद्देशक-३ अपूर्ण से ५ अपूर्ण तक व अध्ययन-६, उद्देशक-१ अपूर्ण से ३ अपूर्ण तक है.) ७०२७६. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १९४७०). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. पाक्षिकसूत्र अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ७०२७७. (+2) प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३०-३२). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता किं न भूषयति, श्लोक-२९. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणमी करी तीर्थंकर; अंति: सर्व कहिहुइ अलंकरइं. ७०२७८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५५-५१(१ से ८,११ से ५१,५३ से ५४)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, गाथा-१५ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक, अध्ययन-१४, गाथा-८ अपूर्ण से १५ अपूर्ण तक वगाथा-२९ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०२७९. (+) गांगेयाधिकार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८७९, फाल्गुन शुक्ल, ११, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. धर्मविलाश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१२, ५-७४२६). गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु वड्डमाणं; अंति: सरण परेसिं हियमटुं, गाथा-२५. गांगेयभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वंदित्तुत्ति वंदित्व; अंति: बाहुल्यान्नलिखिताः. ७०२८०. (+) गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४२७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा० लोभी नर अत्थ; अंति: पालीनइ अनंत सुख पामइ. ७०२८१. (+) औपदेशिकदृष्टांतकथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१५४३७). कथा संग्रह**, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मतः सकल मंगलावल; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१०६ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०२८२. (+) भक्तामर स्तोत्र सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१५(१ से १५)=३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, ४४३९-४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३३ अपूर्ण से है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रकारइ ते मानतुंग. ७०२८३. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२४.५४१२, १६४३३). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्याय-३, सूत्र-१४ अपूर्ण से अध्याय-९, सूत्र-२५ अपूर्ण तक है.) ७०२८४. (+) चउमासी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १५४३७). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कालिकाचार्य दृष्टांत अपूर्ण तक लिखा है.) ७०२८५. संस्तारक प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११, ११४३६). संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __ अपूर्ण., गाथा-५५ तक लिखा है.) । ७०२८६. दंडक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२४.५४११,११४३०-३५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४७. ७०२८७. (+) जीवविचार प्रकरण सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. भावविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, ६४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवन माहि प्रदीप; अंति: समुद्रमांहि थिकउ. ७०२८८.(+) दीपोत्सवकल्प, सिद्धपंचाशिका व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १७४६८). १.पे. नाम. दीपोत्सव कल्प, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., प+ग., आदि: उप्पायविगमधुवमयमसेस; अंति: सोहेयव्वो सुयहरेहिं, गाथा-१३२. २. पे. नाम. सिद्धपंचाशिका प्रकरण, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण.. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरीहिं, गाथा-५०. ३. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मन्ये पूर्व भवे कर्म; अंति: योधान्नमामितान्. ७०२८९. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, ११४४०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ७०२९०. दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन १ से ४, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११, १५४४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०२९१. उपदेशरत्नकोश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३९). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: सुहलछी वछय रमइ सिछाए, गाथा-२५. ७०२९२. ज्ञानपंचमी स्तुति, दंडक स्तुति व २४जिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२७४११.५, १६x४०). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org יי सं., पद्म, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच, अंतिः सिद्धायिका नायिका श्लोक-४. २. पे नाम. दंडक स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: रुचितरुचि महामणि; अंति: सद्यादलं भारती भारती, श्लोक-४. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि नाभे अजित वासुपूज्य अंति: (-) (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ७०२९३. तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२७१२, ११X५६). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि तिजयपहुत्तपयासय अड अंतिः निब्यंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ७०२९४. संदेह समुच्चय, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., ( २६११, २१x६८). संदेह समुच्चय, आ. ज्ञानकलशसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्भूतभावि प्रविकाशन, अंति: (-), (पू. वि. श्लोक-६९ तक है.) ७०२९५. दशाश्रुतस्कंधसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे. (२७११, ११X५७). दशाgतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: सुर्यमे आउसंतेण भगवया, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, दशा-२, सूत्र ८ अपूर्ण तक लिखा है.) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९९ ७०२९६. (+) गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १९५३, पौष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. वासबेहड, प्रले. पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२, १०x३३). " गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूति वसुभूत, अंति: लभते नितरां क्रमेण श्लोक - ९. ७०२९७. (+) परनारीपरिहार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें. वे. (२६४११.५, १७४४४). परनारीपरिहार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: हां रे मारा चतुर; अंति: ध्यान दिल धारो रे, गाथा-२९. ७०२९८. (#) दशवैकालिकसूत्र, साधुस्तुति, सवैया व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. मु. मुगतिचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७.५X१२, १४x२९). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १ से २, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. साधुस्तुति सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, हिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: ज्ञान को उजागर सहज; अंति: नमस्कार कर्यो है, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं. प्रा., मा.गु, पद्य, आदि शत म छोडीश मीत तुं, अंतिः मेट न सके कोय, गाथा - १. ७०२९९. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६४१२.५, १२४३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २७ अपूर्ण तक है.) ७०३००. कृष्णवासुदेव रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-३ (१ से २,५ ) = ४, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६X१२, ११x४०). कृष्णवासुदेव रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल - ३, गाथा २४ अपूर्ण से ढाल - १०, गाथा-७ अपूर्ण तक है, व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७०३०२. भक्तामर स्तोत्र मंत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दे. (२६४११, ८४४१). भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो वृषभाव, अंति (-) (पू. वि. मंत्र-३ अपूर्ण तक है.) ७०३०३. (F) विपाकसूत्र- श्रुतस्कंध २, अध्ययन- १ सुबाहु अध्ययन, अपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४)= १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे (२६.५४११, ७X४२). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "पुप्फउज्जाणं जेणेव कयमाल " पाठ अपूर्ण से है.) ७०३०४. आयंबिलपच्चक्खाण व दूहासंग्रह, संपूर्ण वि. १८१५, वैशाख शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पं. २, जैदे. (२६४११. १४४५२) For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: असित्थेण वा वोसिरई. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: ग्राहवति वितर्क; अंति: विवर्जितो० धर्म विना. ७०३०५. (+) साधुआचार स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हई है-संशोधित., जैदे.. (२६४११, १३४४८). अन्नायउंछ कुलक, प्रा., पद्य, आदि: अन्नायउंछगहणे कयचित; अंति: सुगगइ त्ति बेमि, गाथा-२८. ७०३०६. (+) वासुपूज्यचरित्र बीजक, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १४-१७४७०). वासुपूज्यजिन चरित्र-बीजक, सं., गद्य, आदि: विमलबोध मंत्री; अंति: ज्वालितो मुनिः. ७०३०७. लावणी संग्रह, अपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ४, ले.स्थल. भरतपुर, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७०१) जब लग मेरु अडग है, दे., (२६४११,१०४३४). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. ३अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. __ अखेमल, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जिनकु विनति अखेमल की, गाथा-१०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. २४ तीर्थंकर नाम, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ १ अजीत २; अंति: श्रीमहावीरजी, अंक-२४. ३. पे. नाम. लावणी चर्चरी, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. __ साधारणजिन स्तवन, पुहिं., पद्य, आदि: रमता रमता भमता भमता; अंति: निसा वासर गुण गावै, गाथा-८. ४. पे. नाम. नेमिनाथ दोहा छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, पुहिं., पद्य, आदि: समुद्रविजय राजा तिहा; अंति: महाव्रत को लियो, दोहा-४. ७०३०८. (+) संतिकरम् व तिजयपहुत्त सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १३४३६). १.पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: मुणिसुंदर० पयं परमं, गाथा-१३. २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुतपयासय अठमहा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७०३१०. गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, १०-१७४४८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: नी सेवितु सोहं लहंति, गाथा-२०. ७०३११. (#) उवसग्गहरस्तोत्र व उवसग्गहरस्तोत्र का टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, आश्विन शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. भावविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. द्विपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १५४४७). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-०७. २. पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र का टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहो बुधाः अहं; अंति: साहरउं इसी परिस्तविउ. ७०३१२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१० से ११, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०३१३. आश्वासपदव देवताओं के पाँचप्रकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, ७४३८). १.पे. नाम, आश्वासपद सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org स्थानांगसूत्र - आश्वास पद, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: भारण्णं बहमाणस्स अंति: एगे आसा पण्णत्ते. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थानांगसूत्र- आवास पद-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भारवाहक ते पुरुष, अंतिः विसामानो धानक को. २. पे. नाम. देवताओं के पाँच प्रकार सह टबार्थ, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १२ उद्देश ९ देवों के ५ प्रकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि कई विहेणं भंते देवा, अति: (१) भावदेवा सेवं भंते, (२) प्रकारना देवपरुया. २०१ भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १२ उद्देश ९ देवों के ५ प्रकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केतला प्रकारना है; अंति (१) कहीइ भावदेव ५ सेवते (२) देव का छह. ७०३१४. (+) उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन - ६ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दे., (२५.५X११, ५४३५). उत्तराध्ययन सूत्र - हिस्सा अध्ययन-६, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि: जावतिविजा पुरिस्सा, अंतिः वियाहिए ति बेमि, गाथा-१८, संपूर्ण. उत्तराध्ययन सूत्र - हिस्सा अध्ययन-६ का टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि जा० जेतला अविजा०; अंतिः ज्ञातपुत्र महावीरे, संपूर्ण. ७०३१५. उववाइसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ११३-१११ (१ से ३२, ३४ से ११२) = २, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं.. दे., (२६x१२.५, ६x२७). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अल्पाहार की मात्रा एवं उणोदरी की चर्चा अपूर्ण से भिक्षाचरी एवं गोचरी के अनेक प्रकार अपूर्ण तक एवं उदारिक एवं आहारक शरीर के व्यापार वर्णन अपूर्ण से सत्य एवं मृषा वचन की चर्चा अपूर्ण तक है.) ७०३१७. प्ररूपणाविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२५x११, १६-१८x४५-५५). " प्ररूपणाविचार संग्रह, सं., गद्य, आदि: अविभागपरिच्छेद, अंतिः भावान्नक्रियते. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०३१६. वीरस्तुति अध्ययन व सुभाषितश्लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, १, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. नवानगर, प्रले. मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. देवचंद ऋषि); अन्य, मु. देवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १५X३८). १. पे नाम, सूत्रकृतांगसूत्र- प्रा. हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १अ २आ, संपूर्ण सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सुणं समणा; अंतिः आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा - २९. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: चोखे चीते तप करो दया, अंति: (-), गाथा-२, (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ७०३१८. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १८x४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७०३१९. जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. दे., (२५.५४१२, ९४२८). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीँ अह, अंतिः श्रीकमलप्रभाख्यः, श्लोक-२५. ७०३२० (+४) एकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. रंगसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५X१२.५, १९५२). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीर नत्वा, अंतिः मोक्षसुखं आपवान् Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०३२१. (+) आवश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, ७४४२). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-२ अपूर्ण से अध्ययन- ४ सूत्र-१६ अपूर्ण तक है.) आवश्यकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-)... ७०३२२. (+) चरणसित्तरी बोल व एगुणत्रीसी भावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४४३-४६). १. पे. नाम. चरणसित्तरी बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, आदि: महाव्रत ५ संयम १७; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ७० बोल विवरण अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. २९ भावना प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं, गाथा-२९. २९ भावना प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: संसार असाररूप छइ; अंति: दुःख थकी मूकाई सही. ७०३२३. (+#) भक्तामरस्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ११४४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: किल इति संभावने; अंति: समुपैति आवइ. ७०३२४. (+) भक्तामरस्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-३(१ से ३)=४, प्रले. मु. नारायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५४३५-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., श्लोक-२० अपूर्ण से है.) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संपदामइ ते पुरुष, पू.वि. अंत के पत्र हैं. ७०३२५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९-४६(१ से ४६)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ५४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-९ अपूर्ण से अध्ययन-६ गाथा-३ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७०३२६. () क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१०, १०४३२). लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण सजल जलहर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक है.) लघुक्षेत्रसमास-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमिऊण कहेता नमस्कार; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७०३२७. (+) आदिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१) ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४९.५, १२४४४). आदिजिन चरित्र, प्रा.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ७वें भव का वर्णन अपूर्ण से केवली महिमा वर्णन तक है.) ७०३२८. (+) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०४३५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २०३ ७०३२९. (+) पार्श्वजिनमहिम्नस्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सुज्ञाननगर, पठ. मु. ऋषभचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पार्श्वनाथ प्रसादात्, संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२). पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., पद्य, वि. १८५७, आदि: महिम्नः पारं ते परम; अंति: रघुनाथ० मोद भरतः, __श्लोक-४१. ७०३३०. (#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ११४३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणतगुणा, गाथा-४४. ७०३३१. पौषिकदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८३३, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६.५४१२, १५४४१). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति: इदं कथानकं कृतं. ७०३३२. कातंत्रविभ्रमसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ३४४४). हैमविभ्रम, सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्ति वादीना; अंति: इव दुर्वदकः सभायां, श्लोक-२२, (पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है., श्लोक-६ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक नही है.) हैमविभ्रमसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: ममामी मिले अनोक्ताः, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं ७०३३३. अशनअनंतकायविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६४११, ४-९x४६). अशनअनंतकाय विचार, प्रा., पद्य, आदि: असणं पाणगंचेव खाइम; अंति: परिहरियव्वा पयत्तेण, गाथा-३२. अशनअनंतकाय विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: चतुर्विध चिहु; अंति: अनंतकाय जाणिवा. ७०३३४. (+) भगवतीसूत्र, शतक-१८ उद्देश-२, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४११.५, १५४४०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), ग्रं. १५७५२, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१३६ तक लिखा गया है.) ७०३३५. (+#) उपाधि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११, १५४६०-६४). उपाधि प्रकरण, सं., गद्य, आदि: उपाधिस्तु साधना; अंति: अतोनेदन दूषणमिति. ७०३३६. (+#) औपपातिकसूत्र-अंतिम २२ गाथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ५४२८). औपपातिकसूत्र-अंतिम २२ गाथा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: चिट्ठति सुहं पत्ता, गाथा-२२, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५ अपूर्ण से है.) औपपातिकसूत्र-अंतिम २२ गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुख पाम्या थका, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७०३३७. (+#) महावीरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७००, आश्विन शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. ४, प्रले. पं. विमलहर्ष (गुरु मु. देवरतन); गुपि.मु. देवरतन (गुरु ग. देवकीर्ति, खरतरगछ); ग. देवकीर्ति (खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. इंद्रा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ६x४५). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. दरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दुरिय० दुरित कहता; अंति: सूचविउ चरित्र कीधउ. ७०३३८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११, ७४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०३३९. (+) पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अमदावाद, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१०.५, ११x१२-४७). For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान, अंति: विजयमुनिचंद्रसूरि. ७०३४०. (+) लघुशांति सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६४, फाल्गुन कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. निलयसुंदर गणि (गुरु ग. पद्म गणि, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. ग. पद्मम गणि (गुरु ग. तिलककमल गणि, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित., जैदे., (२५.५X१०, १६x४५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांतिनिशांत अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. लघुशांति स्तव - टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं. गद्य वि. १६४४, आदि: सर्व सर्वसिद्ध्यर्थ, अंतिः यायात् प्राप्नुयात्. ७०३४१. क्षमाछत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. अचलाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२५.५x१०.५, १६X५८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु, पद्य, आदि आदरि जीव क्षमागुण अंतिः चतुर्विध संघ जगीस जी, गाथा - ३६. ७०३४२. (+) भगवतीसूत्र व दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२५x१२, ५४४५). १. पे नाम, भगवतीसूत्र सह टवार्थ शतक १ उद्देशक ७, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक-१ उद्देश-७ विग्रहगति व देवच्यवन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: देवे णं भंते अंति: भंते सेवं भंते ति. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक- १ उद्देश- ७-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दि० देवता इ ते; अंति: छइ गर्भना वक्तव्यता. २. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-८ गाथा- ३००-३७४, पृ. ४आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०३४३. (+) पार्श्वजिन पद, औपदेशिक श्लोक व दंडक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी- १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. मु. सिवा ऋ. खुशालचंद्र (खरतरगच्छ), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित, जै, (२५x१०.५, ५X४८). १. पे. नाम. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, प्रा., पद्य, आदि: चिंतामणि जिनराय सुमण, अंतिः हरिय सुह संपया, गाधा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक लोक, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १८५९, वैशाख कृष्ण, १३, प्रले. ऋ. खुशालचंद्र (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. श्लोक संग्रह पुहिं. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-२. **, ३. पे. नाम. दंडकविचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण, वि. १७७५, मार्गशीर्ष कृष्ण, १२, शनिवार, प्र. मु. सिवा. प्र.ले.पु. सामान्य. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४०. ९x२५). १. पे नाम, शांतिस्तव, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनई चउवीस, अंतिः हितनी करणहा... ७०३४४. () लघुशांति व भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., ,जैदे. (२१.५४९.५, लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शतं शंत निशतं शतं, अंतिः पूज्यमानो जनेश्वरी, श्लोक-१७. २. पे. नाम. भयहरस्तोत्र, पृ. २अ -४अ, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमियोण पणय सुरगण सुड, अंति: तस दुरे नासंती, गाथा - २४. ७०३४५. (#) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११, १३X३१). मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीमहावीरं नत्वा; अंतिः केचिद्दिवं जग्मुः. ७०३४६. (+) एकविंशतिस्थानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३३, कार्तिक शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. रायचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, जैदे. (२६११, ७x४४). For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २०५ २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाण नयरी २; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६. २१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे विमान थकी चवी; अंति: समय साधारणइ कह्या. ७०३४७. (+) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ६४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-४ अपूर्ण तक है.) ७०३४८. धर्मपरीक्षा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२६.५४१२, १२४४६). धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति दिगंबर, सं., पद्य, आदि: श्रीमान्नभस्वत्त्रय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., परिच्छेद-२ गाथा-९ तक लिखा गया है.) ७०३४९. (+) दंडक प्रकरण की स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. वणारस, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १५४४७). दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामयं; अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्, ग्रं. २१६. ७०३५०. (+#) होली कथानक, संपूर्ण, वि. १८५२, माघ कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. राज्ञपुर, प्रले.पं. मनोहरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७X४४). होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: श्रीविंध्यकाख्यपुरे, श्लोक-१३८. ७०३५१. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले.पं. चतुरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, १६x४५). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतः श्रावक तणे; अंति: करी मिच्छामि दुक्कड. ७०३५२. (+) विचारगाथा आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७X४२). १. पे. नाम. विचार गाथा, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. विचारसार प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: बारस गुण अरिहंत सिद: अंति: (-). गाथा-४२. (वि. प्रतिलेखकने ४२ गाथा में ही कृति संपूर्ण कर दी है.) २. पे. नाम. विहरमानजिनलंछन गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वसह १ गय २ हरिण; अंति: वीसाइक्कमेण नायव्वा, गाथा-२. ३. पे. नाम. भरतजिनभव गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. २४ जिनभवगाथा-भरतक्षेत्र, प्रा., पद्य, आदि: उसह १ ससि २ संति ३; अंति: दसगवीसाय तिन्निभवा, गाथा-१. ४. पे. नाम. नवकारजाप फल, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जपत अरिहंत जे हाथ; अंति: आवी नमै तेह पाई, गाथा-७. ७०३५३. (+) भगवतीसूत्र शतक-११, उद्देश-१३, सूत्र-५३० से ५३२, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सूत्र-५३२ अपूर्ण तक है.) ७०३५४. (#) औदयिक, औपशमिक, क्षायिकादि संयोगी भांगा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४१५-४४). संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: जीव पारिमाणिक३, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., स्त्रीवेद, नपुंसकदेवद से है., वि. यंत्र-कोष्ठक सहित है.) For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०३५५. (+) एकाक्षरी नाममाला व पर्यायवाची शब्दकोष, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७४३१). १.पे. नाम. एकाक्षरी नाममाला, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि, आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: नाममालिकामतनोत्, श्लोक-५०. २. पे. नाम. पर्यायवाची शब्दकोश, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यतिश्चंद्रो मृगः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जल के पर्यायवाची नाम तक लिखा ७०३५६. (+) रत्नाकरपच्चीशी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११,५४३४). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेयः कहेता कल्याण; अंति: सम्यक्त्वप्रार्थये. ७०३५७. (+#) सिद्धपंचाशिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४११.५, ९४४१). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध सिद्धत्थसुअं; अंति: लिहियं देविंदसूरीहिं, गाथा-५०, (पू.वि. गाथा-१८ से ३४ नही है.) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नवरं सिद्धं निष्ठिता; अंति: (अपठनीय). ७०३५८. पक्खीखामणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. नारायणजी नथ्थुभाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, ५४३०-३७). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-५. क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छु छु हे क्षमा; अंति: समुद्रथी पारगामी हो. ७०३५९. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४२-३९(१ से ३९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०, ११४४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२१ गाथा-२३ से अध्ययन-२३ गाथा-२० तक है.) ७०३६०. (+#) कातंत्रविभ्रमसूत्र व सेटअनिट्कारिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. अमरा ऋषि (गुरु मु. जसवंत ऋषि); गुपि. मु. जसवंत ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११,११४३३). १.पे. नाम. हैमविभ्रम, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: कस्य धातोस्ति वादीना; अंति: इव दुर्वदकः सभायां, श्लोक-२९. २. पे. नाम. सेट् अनिट्कारिका, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. सिद्धहेमशब्दानुशासन-सेट् अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: हर्ष० मुनीश्वरैः, श्लोक-२०. ७०३६१. (+) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. १७-१४(१ से १४)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३६-४२). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. उच्चारभूमिशोधन समाचारी अपूर्ण से चंडप्रद्योत क्षामणा अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २०७ ७०३६२. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६३, आषाढ़ शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. कंटालिया, प्रले. मु. वेणीदास ऋषि; पठ. मु. देवीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११४५५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७०३६३. (+) विनयकुलम्, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. वीरा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १०x२९). विनय कुलक, प्रा., पद्य, आदि: विणओ जिणसासणे मूलं; अंति: सारं संलेहणा मरणं, गाथा-१३. ७०३६४. कषायभेद व केवलज्ञान के भेद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११,११४३८). १. पे. नाम. कषाय के २४ भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ भेद कषाय वर्णन, प्रा., गद्य, आदि: अनंतानुबंधी क्रोध१; अंति: पुरुषवेद८ नपुंसकवेद९. २.पे. नाम. नंदीसूत्र-केवलज्ञान प्रकार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. १५ सिद्धभेद प्रकार से लिखा है व द्रव्यादि अपेक्षा केवलज्ञान वर्णन अपूर्ण तक है.) ७०३६५. (+) साधुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२८x११.५, १६x४७-५४). साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवरने करूं; अंति: आणंदविमल निरमली. गाथा-१६. ७०३६६. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. स्थविरावली, सूत्र-२०२ से २०६ अपूर्ण तक ७०३६७. (+) दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६९५, फाल्गुन शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३५-३४(१ से ३४)=१, ले.स्थल. वांसा, प्रले. मु. धर्मसी ऋषि (गुरु मु. हरजी ऋषि); गुपि.मु. हरजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ५४४७). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: अपुणागमं गए त्तिबेमि, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., अध्ययन-१०, गाथा-१३ अपूर्ण से है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: एहवी मोक्षगति पामइ, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. ७०३६८. (+) ढुंढकशिक्षा सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १५४३४). ढुंढक हितशिक्षा स्तवन, मु. भद्रबाहु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रुतदेवीतणे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७०३६९. (+) भैरुजी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९३६, कार्तिक शुक्ल, २, शनिवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. अबीरचंद जती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१२, ११४३६). भैरवजी स्तोत्र-रतनपुरीमंडन, मु. गोविंद, मा.गु., पद्य, आदि: करणभीर जन रिद्धिकरण; अंति: करजोडी गोविंद कथ, गाथा-१४. ७०३७०. भक्तामर पद्यानुवाद व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५-१(३)=४, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १४४३०-३७). १. पे. नाम. भक्तामर पद्यानुवाद, पृ. १अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि: आदिपुरष आदीसजिन आदि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. ४अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. बीच के पत्र हैं. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक है.) TO For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०३७१. (+) वैदरभीसती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१५४४४). दमयंतीसती रास, उपा. सुमतिहंस, मा.गु., पद्य, वि. १७१३, आदि: (-); अंति: सुमतिहस० संघ जयकारा, गाथा-१२४, (पू.वि. गाथा-३२ अपूर्ण से है.) ७०३७२. (+) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ३४३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, आदि: साची वस्तुनो स्वरूप; अंति: (-). ७०३७३. (+#) भगवतीसूत्र शतक-१२ उद्देश-७, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११, १२४४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सूत्र-५५१ अपूर्ण तक है.) ७०३७५. (+) सूत्रकृतांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१९(१ से १९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ७४३३). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-३ गाथा-१४ से __ अध्ययन-४ गाथा-४ तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०३७६. (+) महानिशीथसूत्र-अधययन-५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ४४३१). महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-५, सूत्र-२९ "अणंतेणं कालेणं जा अतीता अन्ना" पाठांश से "थंभसहस्सुसिए" पाठांश तक है., वि. धम्मसिरि अंतिम तीर्थंकर का उल्लेख है.) महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ७०३७७. (+) सूत्रकृतांगसूत्र प्रथमश्रुतस्कंध सह टबार्थ व बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७४-७३(१ से ७३)=१, कुल पे. २, पठ. मु. आबाजी ऋषि; अन्य. मु. डुंगरसी ऋषि; मु. नैणसी ऋषि; दत्त. मु. प्राणलालजी (गोंडल संप्रदाय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. वि.२००० में मुनि प्राणलालजी के द्वारा डुंगरशी स्वामी के पुस्तकालय में दिए जाने का उल्लेख है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४३४). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र प्रथम श्रुतस्कंध सह टबार्थ, पृ. ७४अ-७४आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१६, गाथा-३ अपूर्ण से है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. २. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ७४आ, संपूर्ण. बोल संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०३७८. (+#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. देवता, नारकादि के कोष्ठक दिये गये हैं., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४११, १५४३३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७०३७९. शेजेजय रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२६४११.५, १२४३०-३७). शत्रुजयतीर्थरास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ७०३८०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन-३, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४११.५, १०४३२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २०९ ७०३८१. (+) सुयहीलुप्पत्ती अज्झयणं, अपूर्ण, वि. १७८७, माघ कृष्ण, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १०४३४). ___ वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: दढचित्ता होह पइदियह, (पू.वि. "कालंकिच्चाए पुढवीए पढमपयरंमि" पाठ से है.) ७०३८२. (+) जीवनिर्गमन आलापक, जैनगाथा व बावीस परीषह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १६६४, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, बुधवार, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ४४३४). १.पे. नाम. जीवनिर्गमन आलापक सह टबार्थ, पृ. १३अ, संपूर्ण. जीवनिर्गमन आलापक, प्रा., गद्य, आदि: पंचविहे जीवसनिजाण; अंति: संघगई पज्जावसाणे भवइ. जीवनिर्गमन आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीव निकलवाना स्थानक; अंति: ते देवगामी हुई. २.पे. नाम. सचित्त अचित्त गाथा, पृ. १३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: पंच अभिगमण करी वंदवू; अंति: छमूकेई मूडमुंचेई, गाथा-१. ३. पे. नाम. बावीसपरिषह सह टबार्थ, पृ. १३आ, संपूर्ण. २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, आदि: खुहोपिवासा सीहनदंसा; अंति: पंता अन्नाण सम्मत्तं. २२ परिषह नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भूख त्रिषा सीतोष्ण; अंति: तत्त्व थिकउ डोलइ नही. ७०३८३. (+) आगमादिविचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०, १२४३५). विचार संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अयिन्नं भंते अइयाचक; अंति: (-), (पू.वि. "आदरिन पालि संविज्ञपाक्षिक" पाठ तक है.) ७०३८४. धूर्ताख्यान सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १६-२३४३८-५८). धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से ६ तक है.) धूर्ताख्यान-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०३८५. (+#) अजितशांति स्तव सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०.५, ७x३४). अजितशांति स्तव-हस्वादि छंदपरिमाण गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक है.) अजितशांति स्तव-टीका*, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७०३८६. सूत्रकृतांगसूत्र प्रथमश्रुतस्कंध सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६१, कार्तिक शुक्ल, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२-५१(१ से ५१)=१, प्रले. मु. ऋषभहस (गुरु मु. उदयहस); गुपि. मु. उदयहस, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, ४४३७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-१६, गाथा-३ अपूर्ण से है.) सूत्रकृतांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण. ७०३८७. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५९-२५८(१ से २५८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ५४३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३६, गाथा-३२ अपूर्ण से ४१ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०३८८.(+) पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. १९-१७(१ से १७)=२, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १४४३३). For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवराणी पदमावती; अंति: पापथी छूटे ते ततकाल, ढाल-३, गाथा-३६, संपूर्ण. ७०३८९. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११.५, ५४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन क० स्वर्ग; अंति: (-). ७०३९०. निरयावलिकासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, ८४४८). कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वर्ग-१, अध्ययन-१ चेडा राजा के द्वारा कोणिक राजा के दूत को दिए गए उत्तर से लेकर दूत के मुख से चेडा राजा का उत्तर सुनकर कोणिक राजा के द्वारा युद्ध की घोषणा तक का पाठ कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०३९१. (+) स्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, १६४५८). स्नात्रपूजा विधिसहित, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: असुरिंद सुरिंदाणं; अंति: नंदउ दुरिय पणासयदूरि. ७०३९२. जयतिहुयण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पत्र के दोनों ओर पत्रांक लिखे हैं., दे., (२६.५४१२.५, ५४२४). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुअणवरकप्परुक्ख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ तक लिखा है.) ७०३९४. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२८x१२, ५४३८). अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-१, वर्ग-१, सूत्र-६ अपूर्ण तक है.) ७०३९५. सिद्धचक्र नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८९३, कार्तिक शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव. खूबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ९४३८). नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंति: सिद्धिचक्कं नमामि, पूजा-९. ७०३९६. (+) लघुशांति व बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले.ग. प्रतापविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२.५, १३४४७). १. पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. २. पे. नाम. बृहत्शांति स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जैन जयति शासनम्. ७०३९७. (+) कर्मग्रंथ-१ से ४, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, २६-३१४७३-८६). १. पे. नाम. कर्मविपाकसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: सिरिवीरजिणं वंदिय; अंति: लिहिओ देविंदसूरिहिं, गाथा-६२. २. पे. नाम. कर्मस्तव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वंदियं नमहं तं वीरं, गाथा-३४. For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २११ ३. पे. नाम. बंधस्वामित्व, पृ. २अ, संपूर्ण.. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: तेअं कम्मत्थयं सोडे, गाथा-२४. ४. पे. नाम. षडशीति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: लिहियो देविंदसूरीहिं, गाथा-८६. ७०३९८. (+) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-५, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १०४३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण तक है.) ७०३९९. (+) दूसमदंडिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. तेजा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४३३). दुसमदंडिका-लघु, आ. मतिप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अवसप्पिणि उसप्पिणि; अंति: मइपहसूरिहिं संकलिया, गाथा-२८. ७०४००. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. दो पत्रों को जोड़कर लिखा गया है., जैदे., (२६.५४११. १६x४१). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७०४०१. (4) पुण्यप्रकाश स्तवन व दसपच्चक्खाण, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२६४११, ११४४०). १.पे. नाम. पुण्यप्रकाश स्तवन, पृ. ४अ-५अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., प्रले. मु. नित्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: नाम पुण्यप्रकास ऐ, ढाल-८, (पू.वि. ढाल-७ गाथा-४ से २. पे. नाम. दस पच्चक्खाण, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. एकासणा बिआसणा पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) ७०४०२. (+#) महावीरजिन स्तुति सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२६.५४११.५, ४४२७). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ से १२ अपूर्ण तक है.) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७०४०३. (+) दसपच्चक्खाण व व्याख्यान सज्झाय विधि, अपूर्ण, वि. १८५२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १२४३२). १. पे. नाम. दस पच्चक्खाण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. २.पे. नाम. व्याख्याने सझाय करवानी विधि, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. व्याख्यान वाचन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावहियं; अंति: (-). ७०४०५. (2) धर्मरत्नप्रकरण-भावसाधुलक्षण वर्णन सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. पंचपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२७४१२, १३४३७). धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४५ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची धर्मरत्न प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. शांतिसूरि, सं., गद्य, वि. १२७१, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७०४०६. (+#) गजसुकमाल सज्झाय व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२.५, १६४३९). १.पे. नाम. गजसुकमाल सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: जोधाणे ऋषि चोथमल गाई, गाथा-२०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पास चिंतामणि जेम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है) ७०४०७. (+) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ७X२७). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. चत्तारिसरणं पवज्जामि तक का पाठ है.) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्व मंगलिक पंचपरमे; अंति: (-). ७०४०८. भक्तामर स्तोत्र, चैत्यवंदन व दूहा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १२४४१). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. जैनदुहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: भविजन पूजा करज्यो रे; अंति: कुमति दूरे हरज्यो रे, गाथा-१. ७०४०९. उत्तराध्ययनसूत्र अध्याय-९, अपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. सवाईजयपुर, प्रले. सहजराम सवाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १०४३८). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नमीराय रिसित्ति बेमि, गाथा-६२, (पू.वि. गाथा-४४ अपूर्ण से है.) ७०४१०. लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२४.५४११.५, १०४३०). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण से है.) ७०४११. (4) पंचमी व चतुर्दशीतिथि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४५४). १.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २.पे. नाम. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७०४१२. पार्श्वनाथ व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, २५४२२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: देंद्रेकि धुप मप; अंति: दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४. २.पे. नाम. नवपद स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २१३ ७०४१३. (+) नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. रूपसागर (गुरु ग. विनयसागर); गुपि.ग. विनयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२७४१२.५, ११४३५). नेमिजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: सुविशाल शिवालयजात; अंति: दूषण भवभवसंभव भयहरं, श्लोक-९. ७०४१४. पार्श्वजिन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. कुल ग्रं. २९, जैदे., (२६४११.५, १६४५२). पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दीओ सरसती एह; अंति: धरमसीह ध्याने धरण, गाथा-२६. ७०४१५. शक्रस्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-४५(१ से ४५)=१, जैदे., (२६४११, ५४३६). शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमोत्थुणं अरिहताण; अंति: संपत्ताणं नमो जिणाणं, गाथा-१०, संपूर्ण. शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हो अरिहंतने; अंति: नमस्कार० सर्वसिद्धने, संपूर्ण. ७०४१६. (+) आचारांगसूत्र अध्याय-१, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ११४४१). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पृ.वि. अध्ययन १ उद्देशा १ अपूर्ण से उद्देशा २ अपूर्ण तक है.) ७०४१७. साधुअतिचारादि सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४३८). १. पे. नाम. साधुदेवसिक अतिचार, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ठाणे कमणे चंकमणे; अंति: ते मिच्छामि दुकडं. २.पे. नाम. साधुरात्रिक अतिचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: तस्स मिच्छामी दुकडं. ३. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्न पाणे; अंति: (१)वीतहं आयरणं आयारो, (२)गुरु कहे तहत्ती, गाथा-१. ७०४१८. (+#) वीरथुई अध्ययन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१०.५, १५४४६). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमेसति त्तिबेमि, गाथा-२९. ७०४१९. (+) अभिधानचिंतामणि बीजक व वीर स्तवादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. प्रतिलेखकने पत्रांक.१ लिखा है परंतु प्रथम कृति अपूर्ण होने के कारण पत्रांक २ लिया गया है.,संशोधित.,जैदे., (२६४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. अभिधानचिंतामणी का बीजक, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१८ अपूर्ण से है व २१ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. वीर स्तव, पृ. २अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, सं., पद्य, आदि: सिद्धपुराभिध नगर; अंति: तस्य च मौनपुरम्, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. भद्रापुत्र तपवर्णन गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वद्धमाणजिण सीसो भद्द; अंति: साहुवितीमुतमातम्हा, गाथा-५. ४. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुखस्य पंचचिह्नानि; अंति: भवितायत्रावयोः संगमः, गाथा-५. ५. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०४२०. () गीत, पद व कवित्त संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४४२-४९). १. पे. नाम. कृष्णभक्ति गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं., पद्य, आदि: कौन करे पतीआरो; अंति: मीराबाई०चल्यो वनझारो, पद-५. २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: घरे आवोरे पूर्छ एक; अंति: मुगत गया भली भातडली, गाथा-४. ३.पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मोहल चढी मोरा नाथनी; अंति: रूपचंद० छै खुसाली रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक कवित्त, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. देवरूप, पुहिं., पद्य, आदि: बाजंदा पुठ पठाण; अंति: देवरूप० कुंलख देख, दोहा-१०. ५. पे. नाम. शृंगारिक कवित्त, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. पुहिं., पद्य, आदि: केशरी की खोल मांही; अंति: (-), (पू.वि. दोहा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०४२१. (+) पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १५४३६). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि० पंचविहे आयार; अंति: (-), (पू.वि. स्थूल-४ तक है.) ७०४२२. (+) २२ परिसह सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., दे., (२७४११.५, १३४४४). २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: श्रीआदेसर आद दे चोवी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२ गाथा-५ तक लिखा है.) ७०४२३. नमिउण स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१०, १७४६०). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ से ९ तक है.) नमिऊण स्तोत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०४२४. २८ लब्धि नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पत्रांक-१अपर साधु आचार के विषय में सामान्य टिप्पणी लिखी गई है., जैदे., (२५.५४१०.५, ५४३५). २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आमोसहि१ विप्पोसहि२; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७०४२५. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४१०, १०४३६). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७०४२६. (+) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीलाडा, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४९). महावीरजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: दसमा सरग थकी चव्या; अंति: असुभ करम करे दूर जी, गाथा-२२. ७०४२७. (+#) भगवती सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४४३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-१ उद्देस-१ सूत्र-१९ अपूर्ण से सूत्र-२१ अपूर्ण तक है.) ७०४२८. बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४१५-२६). १. पे. नाम. तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि बलवर्णन गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: सोलसराय सहस्सा सव्व; अंति: अपरिमियबला जिणवरिंदा, गाथा-५. तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि बलवर्णन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिव वीर्यांतराय क्षय; अंति: अधिकू इस्यउ भाव. For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २१५ २. पे. नाम. अनंता बोलना भेद, पृ. १आ, संपूर्ण.. ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्ध अनंता१नीगोद; अंति: एक आउखा प्राहण होइ. ७०४२९. (+) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१०, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१०.५, ११४२९-३८). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१० दुमपत्तयं, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: गए गोयमि त्ति बेमि, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) ७०४३०. (#) १४ श्रोता चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, २०४५२). १४ श्रोता चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-७ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-२० तक है., वि. परिमाण ढाल गिनकर लिखा गया है.) ७०४३१. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नाना चौटा, प्रले. गंगादास आतमाराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२,११४३९). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ७०४३२. (+) कायस्थितिप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ४४४१). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दंसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जह क० जिम तुहक०; अंति: संपदा प्रति दिओ. ७०४३३. (+) विपाकसूत्र द्वितीयश्रुतस्कंध सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-४२(१ से ३९,४३ से ४५)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५४२६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., भगवान महावीर की पर्षदा "तेण कालेणं समणे भगवं महावीरे" वर्णन अपूर्ण से सुबाहुकुमार के देवलोक गमन तक है.) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७०४३४. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४४, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले. मु. जेठमल ऋषि; पठ. मु. काशी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १२४३१). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७०४३५. (+) श्रावक आराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४१२, १५४४८). श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५. ७०४३७. (+) नमस्कारमहामंत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. श्राव. अमरसी; पठ.पं. हर्षनंदन गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०, १३४३७). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: पढमं हवइ मंगलं, पद-९. नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: भणी सिद्ध वडा कहियइ. ७०४३८. (+) सिंदूरप्रकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ८x२९). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०४३९. (+) कल्पसूत्र की पीठिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १५४५८). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.ग., गद्य, आदि: सकलार्थ सिद्धिजननी; अंति: प्रमाण हस्ती संख्या . ७०४४०. थंभणापार्श्वनाथ नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२७४१२.५, १०४३२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: विण्णवइ अणिदिय, गाथा-३०. ७०४४१. (+) श्रावकाराधना व नवकार विवरण, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६४५०). १.पे. नाम. श्रावक आराधना, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत; अंति: मुनिषडरसचंद्रवर्षे, अधिकार-५. २. पे. नाम. नवकार विवरण, पृ. ४आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. अक्षर घिस जाने के कारण आदि-अंतिमवाक्य अवाच्य हैं.) ७०४४२. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८६-८२(१ से ५५,५७ से ८३)=४, अन्य.सा. चनणा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ११४४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: सम्मएत्ति बेमि, अध्ययन-३६, (पू.वि. अध्ययन-२८ गाथा-३६ से अध्ययन-३६ तक है व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७०४४३. (+) वीरथुई अध्ययन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक शुक्ल, १३, रविवार, मध्यम, पृ. ७-३(१ से ३)=४, प्रले. मु. देवकरण; पठ. श्रावि. बाई झवेर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११.५, ४४१९-२५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१२ अपूर्ण से है.) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: काले इम हुंकहुं छु, पू.वि. प्रारंभ व बीच-बीच के पत्र नहीं हैं. ७०४४४. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्रले. मु. उत्तमसागर (गुरु मु. गुणसागर); गुपि. मु. गुणसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ५४४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-११अपूर्ण से है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ते महिथी उधों. ७०४४५. दसपच्चकखाण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२५४११.५, १०४२७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ७०४४६. (#) स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२५.५४११, १८४५९-६०). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउस तेणं; अंति: (-), (पू.वि. ठाण-२ अपूर्ण तक है.) ७०४४७. (+) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७X४५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-४६ अपूर्ण तक है.) ७०४४८. दानादि कुलक, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १५४५१). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अति: (-), (पू.वि. कुलक-२ गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७०४४९. (+) आदिजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४११, १२४४३). आदिजिन स्तुति, मु. कुमुदचंद्र कवि, सं., पद्य, आदि: मुदेवस्ताद्देवः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण तक है.) ७०४५०. अर्जुनमालीनी चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १७X४२). अर्जुनमालीमनिचौढालिया, रा., पद्य, आदि: सोदोगर हीग मिलै नही; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक ७०४५१. दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ तक है.) ७०४५२. (+) खरतरगच्छ पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १५४४०). खरतरपट्टावली, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. जिनचंद्रसूरि तक है.) ७०४५३. (+#) तिजयपहुत्तस्तोत्र व एकादशी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६). १. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी व्रत अति; अंति: संघ तणां निशदिश, गाथा-४. ७०४५४. (+) सूत्रकृत्रांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,१५४४१). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: बुज्झिज तिउट्टेज; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७०४५५. (+#) कायस्थिति प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २४४९). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण से है व ९ अपूर्ण तक लिखा है.) कायस्थिति प्रकरण-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण की अवचूरि से है व गाथा-११ अपूर्ण की अवचूरि तक लिखा है.) ७०४५६. (4) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ४४४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भूवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: भुवण क० तिन भुवन; अंति: (-). ७०४५७. आगमपरिमाण व योगविधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, २१४७५). १.पे. नाम. आगम परिमाण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आगमादि ग्रंथों व उनकी सूत्रवृत्ति आदि के ग्रंथपरिमाण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीआवश्यक श्रुत; अंति: एवं दिन २५ योग विधि. २. पे. नाम. योगोद्वहन विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. कालमांडलादि योगविधि-साधु, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ठवणी पडिलेही मांडीइ; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. ३.पे. नाम. योगोत्तारण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: कांबली उपरि ठणहीरी; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०४५८. (#) श्रावक के अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-३(१ से ३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४१२, १०x२८). श्रावकसंक्षिप्त अतिचार*, संबद्ध, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. विशेष स्थूल अपूर्ण से मृषावाद स्थूल __अपूर्ण तक है.) ७०४५९. (#) कुमतिउथापण चर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-३(२,४ से ५)=४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४४३). कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं., गद्य, आदि: मनोमती झूठी प्ररुपणा; अंति: लाभवको अर्थ कह्यौ है, (पू.वि. स्त्री को देखकर विकार उत्पन्न की चर्चा अपूर्ण से नरक निगोद के दुखों का वर्णन अपूर्ण तक एवं भगवान के पधारने पर देवताओं द्वारा तिगडा की रचना का वर्णन अपूर्ण से वेदों के उपशम की चर्चा अपूर्ण तक नहीं है.) ७०४६०. (+) सुभाषितानि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७४५२). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से ५७ अपूर्ण तक ७०४६१. मुक्तिगमन व सत्यासत्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. बीलाडा, अन्य. सा. श्रीकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, २२४५१). १. पे. नाम. मुक्तिगमन सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, ई. १९२८, आदि: तीर्थंकर महावीर; अंति: सब जीवन सुखपाईजी, गाथा-२०. २.पे. नाम. सत्यासत्य सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. राममुनि, पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम न बेसे पंचमै; अंति: सीचसे सेवकरे देवा, गाथा-८. ७०४६२. (+) योगप्रवेशविधि आदि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १८४५०-७०). १.पे. नाम. योगप्रवेश विधि, पृ. २अ, संपूर्ण.. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ठवणी वार ९ पडिलेही; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. नंदि विधि, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: मुंहपत्ती पडिलेहीस: अंति: देवा वंद्यते. ३. पे. नाम. अनुयोग विधि, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: वसतिशोधन प्रमार्जन; अंति: मिथ्याप्रकृतं देयं. ४. पे. नाम. उपस्थापना विधि, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपस्थापना विधि-दीक्षाविधिगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: खमासमण० मुहप० खमा०; अंति: (-), (पू.वि. प्रदक्षिणा के बाद ५ खमासना नवकार आदि विधि अपूर्ण तक है.) ७०४६३. (+) कल्पसूत्र-साधुसामाचारी का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४१५-४६). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम सूत्र है.) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे पर्युषणा; अंति: (-). ७०४६४. (2) संस्तारक विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पठ. ग. सत्यशेखर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३७). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंति: तिविहेण वोसिरीयं, गाथा-११. ७०४६५. समकितना ६७बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. सा. श्रीकुंवर, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, २०४४५). समकित के६७ बोलकीसज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: च्यार सदहणा ३ तिन; अंति: पामवानो उपाय छे, ढाल-६. For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २१९ ७०४६६. (+) आचारांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ५४४२). आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-४ अपूर्ण तक है.) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: श्रूत सांभल एम कहे; अंति: (-). ७०४६७. (+#) दशवैकालिकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६२०, माघ शुक्ल, १०, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, १२४३२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: जखणीइ० विबोहणट्ठाए, अध्ययन-१०, (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., विवित्तचरिया अध्ययन, गाथा-८ अपूर्ण से है., वि. चूलिका २) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ___ गाथा-८ अपूर्ण की अवचूरि से है व ११ अपूर्ण की अवचूरि तक लिखा है.) ७०४६८. (+) ज्योतिषचक्र विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६.५४११.५, २०४४०). ज्योतिषचक्र विचार, श्राव. हजारीमल लुंकड, रा., प+ग., वि. १९३१, आदि: श्रीगुरुदेवोने; अंति: (-), (पू.वि. जंबूपन्नति, द्वार-२ अपूर्ण तक है.) ७०४६९. (+) लोकनालद्वात्रिंशिका व चौदरज्जुलोकविवरण, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, २८४८०). १.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जंलोअं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. २.पे. नाम. चौदराजलोकविवरण यंत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.गु., यं., आदिः (-); अंति: (-). ७०४७०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-४९(१ से ४९)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२७.५४११.५, १३४५१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३५ गाथा-२१ अपूर्ण से अध्ययन-३६ गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) ७०४७१. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, स्तवन व दशार्णभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कनकविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधर स्वाम सेव; अंति: स्वामी तूम तणी ए, गाथा-१३. ३. पे. नाम. दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारदा बुधदायक सेवक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७०४७२. (+) जिनकुशलसूरिगुरु अष्टक, संपूर्ण, वि. १९८२, वैशाख शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लाडणु, पठ.पं. गणेशरत्न, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुषपिका सुधारी हुई है. अंत में वि. १९५० कार्तिक कृष्णपक्ष अमावस्या को गणेशरत्न के पढने के लिए प्रत लिखे जाने का उल्लेख है. खरतरगच्छ के साधुओं की कठोरता का वर्णन है., संशोधित., दे., (२५४११.५, १०४३१). जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: सुखं सर्वा सम्यद्वसत; अंति: चिरं स्थायिनी, श्लोक-९ ७०४७३. (+) सूक्तमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४४१). यं., आदिः (-); अंति: (-)..... बीच का ही एक पत्र है., For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृतवलीवृदं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक है.) ७०४७४. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, दे., (२५.५४१२, ११४३४). १.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: पंथडो निहालुंरे; अंति: रे आनंदघन मत अंब, गाथा-६. २. पे. नाम. अनंतजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: धारि तरवारनी सोहली; अंति: आनंदघन पद राज पावे, गाथा-७. ३. पे. नाम. धर्मजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: धरमजिणेसर गावू रंग; अंति: सांभलो ए सेवक अरदास, गाथा-८. ४. पे. नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: कुंथुजिन मनडु; अंति: आनंदघनजाणु हो कुंथु, गाथा-९. ७०४७५. (#) अभक्षगाथा विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५,११४३०). २२ अभक्ष्य विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: पंचुदर चउ १ पीपल २; अंति: नेकजंतु संसक्तत्वात्. ७०४७६. शत्रुजयादितीर्थ स्तुति संग्रह व ज्ञानपंचमी स्तुति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, पठ. श्रावि. चंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १३४५०). १.पे. नाम. शत्रुजयादितीर्थ स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शत्रुजयादितीर्थ स्तुतिः, प्रा., पद्य, आदि: श्रीनाभिरायामलवंसवंस; अंति: भत्तिझुआण संमं, श्लोक-१५. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमी स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७०४७८.(+) अतिचार काउसग्गगाथा सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४३२). साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणा १ सण२ अन्न ३; अंति: वितहायरणेअ अईयारो, गाथा-१. साधअतिचारचिंतवन गाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: सयणासणा० अस्या; अंति: विषयं यथा समितिषु. ७०४७९. (+) साधुवंदना, संपूर्ण, वि. १८४७, आश्विन, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जयपुर, प्रले. सा. ग्यानाजी (गुरु सा. लाछां आर्या); गुपि. सा. लाछां आर्या, अन्य. सा. माया; सा. गंगाजी (गुरु सा. माया); सा. वालाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १७X४७). साधुवंदना, मु. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदि: श्रीसीमंधरजी आददे; अंति: धन धन मोटा मुनिवरु, गाथा-९७. ७०४८०. प्रदेशीराजा चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १५४३६). प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु., पद्य, आदि: हाथ जोडी करै वीनती; अंति: (-), ढाल-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०४८१. (+) धंटाकर्ण मंत्र, चक्रेश्वरी स्तोत्र व नेमराजिमती संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, २३४५७). १. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. २. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: श्रीचक्रे चक्रभीमे; अंति: पाहि मां देवी चक्रे, श्लोक-८. ३. पे. नाम. नेमिनाथराजिमति संवाद, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: व्याहन को खूब आए; अंति: लालविनोद क्या भया है, दोहा-४८. ७०४८२. (+) जयदेव कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४२). For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २२१ जयदेव कथा- सम्यक्त्वशुद्धाशुद्धपालने, सं., गद्य, आदि: वसंतपुर नगरे; अंति: सुखं प्राप्स्यते. ७०४८३. (#) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७-४४(१ से ४२,४४ से ४५)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ६४३३-३७). जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. उद्देश-१३ मध्यभाग अपूर्ण व उद्देश-१५ अपूर्ण से १७ अपूर्ण तक है.) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०४८४. (+) गौतमकुलक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-त्रिपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४३०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ तक है.) गौतम कुलक-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, आदि: लुद्धा० लोभी नरा; अंति: (-). ७०४८५. (+) साधुप्रतिक्रमणविधि-खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १७४६०). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जय तिहुअण नमस्कार कह; अंति: (-), (पू.वि. पाक्षिक प्रतिक्रमणविधि अपूर्ण तक है.) ७०४८७. कल्याणमंदिर स्तोत्र व जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३६). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. २. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __ आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) ७०४८८. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १०४३०-३९). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१५ अपूर्ण से है.) ७०४८९. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३४-४०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. ७०४९०. (+) औपदेशिक व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, ११४३५). व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली पुष्कर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., जिनगुणवर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७०४९१. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(२)=३, जैदे., (२४.५४१२, ११४३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक नहीं है.) ७०४९२. (4) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. दधालीया, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ११४२७). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चौवीसं, गाथा-५०. ७०४९३. जैनधर्मोपदेशक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. रंगचंद्रगणि शिष्य (गुरु ग. रंगचंद्र), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रारंभ में प्रतिलेखक द्वारा श्री रंगचंद्रगणि को नमस्कार किया गया है., जैदे., (२५४११, १५४४२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक , प्रा.,सं., पद्य, आदि: नव्योद्वाहविधौ वधू; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "प्रस्तावसदृशं वाक्यं.. यो जानाति पंडितः" श्लोक तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०४९४. (#) सामायिक विधि, लघुशांति, बृहत्शांति व दुहा, अपूर्ण, वि. १९२३, भाद्रपद कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १४-१० (१ से १०)=४, कुल पे. ४, ले.स्थल. वांकली, प्रले. पं. दोलतरुचि (गुरु मु. लालरुचि); पठ. मु. शिवचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. • अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र. ले. श्लो. (७८०) लेखण मसी अरु डचडी, दे. (२५x११.५, ११x२७). १. पे. नाम. सामायिक विधि, पृ. ११अ, संपूर्ण. , सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि० इच्छाकारे; अंति: भंते सामायं केहवी. २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ११-१२आ, संपूर्ण. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१७. ३. पे नाम, बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, पृ. १२२आ-१४आ, संपूर्ण. सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत, अंतिः ध्यायमाने जिनेधरे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम, औपदेशिक दुहा, पृ. १४आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०४९५ (+) परमाणुभांगा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. वे. (२६११.५, २२X५१). परमाणुपरिणाम भांगा कोष्टक, ग. नयविजय, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: परमाणु पोग्गलेणं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, परमाणुसत्कभंग शतद्वय का प्रस्तार अपूर्ण तक लिखा गया है.) ७०४९६. (+) वसुधारा स्तोत्र व त्रिपुराभवानी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५x११, १५X४६). १. पे. नाम. वसुधारा स्तोत्र, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: वर्षतु स्वाहा. २. पे. नाम. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, पृ. ४अ ४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. लवाचार्य, सं., पद्य, आदि ऐंद्रस्यैव शरासनस्य अंति: (-) (पू.वि, श्लोक १० अपूर्ण तक है.) ७०४९७. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२६११.५, १२X५१). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., प+ग, आदि: प्रणम्य परमानन्द, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., संलेखणा के संदर्भ में मृत्यु के पश्चात जीव की इहलोक एवं परलोक की चर्चा अपूर्ण तक लिखा है.) ७०४९८. वीरस्तुति व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, बि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. जयानंद बसनजी जोशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५X१२, १२x२७-३०). १. पे. नाम. सूत्रकृतांगसूत्र- प्रा. हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. पद्य, आदि: पुछिसुणं समाणां अंतिः आगमिसंति तिमि गाथा २९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्र. ३अ-४आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुवय मूलं; अंतिः तिहाराणं जिनेश्वराणं, गाथा - २१. ७०४९९ भक्तामरस्तोत्र, मंत्राम्नायादि स्तोत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ६, जैवे. (२६४१२, ११४४०). १. पे. नाम. भक्तामर गुप्तकाव्य, पृ. १अ, संपूर्ण. " भक्तामर स्तोत्र - काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ आदिनाथमरूहंतरिहंत; अंति: सुदयामृतधर्मपालान् श्लोक-४ (वि. अन्य मंत्र सहित) २. पे. नाम. शक्रस्तवाम्नाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण, वि. १८९५, प्रले. मु. कल्याणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. संबद्ध, प्रा. सं., गद्य, आदिः अन्नमोत्थुण अरिहंताणं; अंतिः सर्वभयरक्ष भवति, गाथा- १६. ३. पे. नाम. शांतिकुंथुनेमिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिकुंथुनेमिजिन स्तुति - चक्षुपीडानिवारक, प्रा., पद्य, आदि: शांति कुंथुं अरहो; अंति: चक्खुरोगं पणासेई, गाथा - १. For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४. पे. नाम. उवस्सग्गहर स्तोत्र- गाथा-५ भंडारगाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा, संबद्ध, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दसणेण सामिअ; अंति: अट्ठ गणाधीसरं वदे, गाथा-२. ५. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र-भंडारगाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. जयतिहअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: चंद मह वंछिअपूरय, गाथा-२. ६. पे. नाम. पार्श्वपद्मावती स्तोत्र मंत्रसाधन विधि, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते श्रीशंख; अंति: निस्संदेह वस्यं भवति. ७०५००. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-१ से ३, संपूर्ण, वि. १८७०, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. गांगजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११, ५४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मोमंगलमुकट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०५०१. नागिला ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४२८). जंबूस्वामी ५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसारद प्रणमुंहो; अंति: होक जंबु नाम हुया, गाथा-२९, (वि. प्रतिलेखक ने चौथे भव के पश्चचात् कृति संपूर्ण कर दी है.) ७०५०२. चौरासी आराधना बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १०४३६). ८४ आराधना बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (पू.वि. ६० बोल तक है.) ७०५०४. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२६४१२, ९४२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-२ अपूर्ण तक है.) ७०५०५.(-) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५४११.५, १२४३३). शांतिनाथ चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदि: प्रणिपत्यार्हतः सर्व; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम भव अपूर्ण तक है.) ७०५०६. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्रीकथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ५४३६). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., आदि: धर्मतः सकलमंगलावली; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., गाथा-१० अपूर्ण तक है.) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., वि. प्रत का ऊपरी भाग घिसा हुआ होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ७०५०७. (#) संघपट्टक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१०.५, ११४३७). संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: वह्निज्वालावलीढं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) ७०५०८. भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पठ. श्राव. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक न लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक लिया गया है., दे., (२५४१२, १०४२९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३७ अपूर्ण से है.) ७०५०९. (+) योगशास्त्रप्रकाश-प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४५९). योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश१ से ४ की अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: मुखाधिकरणंच, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रकाश-४, गाथा-१२ अपूर्ण की अवचूरिसे है., वि. मूल का मात्र प्रतीक पाठ दिया गया है.) ७०५१०. सत्तरिसय स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८०८, फाल्गुन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्रले. पं. विवेकविजय (गुरु पं. राजविजय); गुपि.पं. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४४०). तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: निझंतं निच्चमच्छेह, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०५११. साधुप्रतिक्रमणसूत्र व जैनगाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, पठ. श्राव. दोला, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४३३). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. अन्तिम सूत्र अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. जैनधर्मिक औपदेशिक गाथा, प्रा.,सं., पद्य, वि. १९वी, आदि: जंच कामसुहलोए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ तक है.) ७०५१२. बृहत्शांति स्तोत्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४४२). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., अंतिम गाथा अपूर्ण तक है.) ७०५१३. (+) सातमांडलीतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४०). साधु७ मांडलीतप विधि, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सुत्ते अत्थे भोयणकाल; अंति: विगय पारणं करह. ७०५१४. (+) पन्नवणादि बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १६७५, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, प्रले. मु. गांगा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४४८). १.पे. नाम. जीवअल्पबहुत्व विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: पछिमइ विशेषाधिक, (पू.वि. बोल-१४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधु-साध्वी उपकरण, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रश्नव्याकरणसूत्र-साधुसाध्वी उपकरण, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: जं पिय समणस्स; अंति: दोसरहियं परिहरियव्वं. ३. पे. नाम. आर्य-अनार्यदेश नाम सह बालावबोध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा आर्यअनार्यदेश नाम, वा. श्यामाचार्य, प्रा., प+ग., आदि: से किं तं खेत्तारिया; अंति: चक्कीणं रामकिण्हाणं. प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा आर्यअनार्यदेश नाम का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: राय० मगधदेशनी रजग्रह; अंति: ७४ देश अनार्य छइ. ७०५१५. बृहच्छांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ११४४२). बृहत्शांति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., वर्तमानचौवीशी नाम अपूर्ण तक है.) ७०५१६. गुणावली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११, १३४५१-५४). गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-२३ से ढाल-१२, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७०५१७. जिनप्रतिमासंख्या विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६.५४१२, १६४३०). जिनप्रतिमासंख्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., रुचक पर्वत पर स्थापित प्रतिमाओं की संख्या अपूर्ण से है., वि. प्रतिलेखक ने अंतिमवाक्य नहीं लिखा है.) ७०५१८.(+) प्रज्ञापनासूत्र प्रथमपद, सूत्र-१६७ से१७५ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ६x४९). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-१७५ अपूर्ण तक लिखा है.) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७०५१९. (4) प्रदक्षिणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. साजन ऋषि; पठ. श्रावि. लाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४१०.५, ११४३४). For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २२५ प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: गोअम सुहम्म जंबू पभव; अंति: तइयं हवइ मंगलं, गाथा-१५. ७०५२०. भगवतीसूत्र की अभयदेवीया टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५.५४११.५, १०४३९). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२८, आदि: सर्वज्ञमीश्वरमनंत; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रास्तावनादि प्रारम्भिक अंश हैं.) ७०५२१. चतुःशरण प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३६-४७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४८ अपूर्ण तक है.) ७०५२३. (+) चत्वारि मंगल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२,१२४३९). औपदेशिक सज्झाय-दयासम्मत, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रीत आतमनै उद्धरीए, गाथा-१८, (पू.वि. गाथा-९ ___ अपूर्ण से है.) ७०५२४. जिनकुशलसूरि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. फलवर्द्धका (फलो, प्रले. मु. दीपसागर; पठ. श्राव. छोटमल गुलेछा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री माणीभद्रजी प्रसादात्., जैदे., (२४४१२.५, १४४४२). जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., पद्य, आदि: श्रीमज्जिनाधीश; अंति: गणैः संसेव्यमानः सदा, श्लोक-२२. ७०५२५. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, ९४२८-३४). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ से २७ अपूर्ण तक व ३९ अपूर्ण से नहीं है.) ७०५२६. (+) पार्श्वनाथविचारगर्भित स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४२). पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६६५, आदि: नमिय सिरि पास जिण; अंति: दिणयर सयलअतिसयसंजुओ, ढाल-३, गाथा-१९. ७०५२७. (+) बंधस्वामित्वकर्मग्रंथ व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १६४७, मुनिवेदरसेंदु, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. मल्लपुर, प्रले. पं. पुण्यविशाल; पठ. मु. चांपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४३७). १. पे. नाम. बंधस्वामित्व कर्मग्रंथ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: बंधविहाणविमुक्कं; अंति: तेअं कम्मत्थयं सोउं, गाथा-२६. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भाषा बुद्धि विवेक; अंति: सम्यक्त योग्यो भवेत्, श्लोक-१. ७०५२८. (+) भानुमंत्रि कथानक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४१२.५, १४४३६). भानुमंत्रि कथानक, सं., पद्य, आदि: श्रीमंगलपुरो राज्ञः; अंति: तत्र प्रतिबंधपराभवत्, श्लोक-३२. ७०५२९. (+) प्रज्ञापनासूत्रगत भाषापद सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधिसूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२५४११, १४५८). प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: (१)गोयमा आराहणीसव्वा, (२)जणवय सम्मय ठवणा नामे; अंति: वायड अव्वोयडा चेव, गाथा-५, संपूर्ण. प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा की वृत्ति, सं., गद्य, आदि: भगवान हे गौतम आराधणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. गाथा-४ तक की वृत्ति है.) ७०५३०. (#) नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, ४-१०४३७). For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: परियट्टो चेव संसारो, गाथा-२७, (वि. चिपके पत्र अलग करते वक्त स्याही उखड़ जाने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरं विश्वेश्वरं; अंति: वर्ताद्धं गृह्यते. ७०५३१. (2) पिंडविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १८४५३). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु अ, गाथा-१०३. ७०५३२. बृद्धशांति स्तवन व परमात्मदर्शन पच्चीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३३). १.पे. नाम. वृद्धशांति स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सुखी भवतु लोकः. २. पे. नाम. परमात्मदर्शन पच्चीशी, पृ. २आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजीगणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ॐ नमो परमात्मा परं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम श्लोक लिखा है.) ७०५३३. मौनएकादशीपर्व गणj, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, १२४४३). मौनएकादशीपर्व गणगुं, सं., को., आदि: महाजस सर्वज्ञाय नमः; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ७०५३४. (+) उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ६x४१). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइ सिच्छाए, गाथा-२६. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्ननो कोश; अंति: रमई मोक्ष पामें. ७०५३५. पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-८(१ से ८)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५२). ___ पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पंचम महाव्रत अपूर्ण से छ जीवनिकाय अपूर्ण तक है.) ७०५३७. (+) जीवविचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(२ से ५)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १५४४३). १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३४ अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. वर्द्धमानजिन स्तवन, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) ३. पे. नाम. दुरियरयसमीर स्तोत्र, पृ. ६आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीरं मोहपंको; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ __ अपूर्ण तक है.) ७०५३८. (4) शीलदृष्टांत व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२, १३-१६४३४-४७). १.पे. नाम. शीलदृष्टांत स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सीखामण खरी; अंति: उदयमांहे जश विस्तरे, गाथा-१०. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, पृ. १आ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंतारे सीख; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७०५३९. लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६६-१८६९, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्रले. मु. उदयचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. महावीर प्रसादात्, जैदे., (२६४११,५४३४). For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ૨૨૭ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रइया हरिभद्दसूरीहिं, गाथा-३०, (वि. १८६६, चैत्र कृष्ण, ३, _पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण से है.) लघुसंग्रहणी-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: संग्रहणी नीपजावीकोणि, (वि. १८६९, फाल्गुन शुक्ल, ४, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. महावीर प्रसादात्.) ७०५४०. प्रासंगिक सुभाषितसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, २३४४७). सुभाषित संग्रह, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण से ११० अपूर्ण तक है.) ७०५४१. (+) जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. ग. ज्ञानहस (गुरु ग. माणिक्यहस); गुपि.ग. माणिक्यहस (गुरु पं. ईश्वरहस पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ७४४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनतणुं दीठउ; अंति: सिद्धांत समुद्र थकी. ७०५४२. (+) जंबूद्वीपसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७६, माघ शुक्ल, ३, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. अखेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५.५४११, ४४३३). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिअजिण सव्वन्नु; अंति: रइया हरिभद्दसूरीहिं, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमिय क० नमस्कार करी; अंति: श्री हरिभद्रसूरिइहिं. ७०५४३. (+) महावीरस्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ३४३६). महावीरजिन स्तव-बृहत, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जइज्जा समणे भयवं; अंति: पढय कयं अभयसूरीहिं, गाथा-२३. महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंत हवउ कुण ते; अंति: अभयदेवसूरिनो कीधउ. ७०५४४. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-२(१,४)=४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, ७४४३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीस, (पू.वि. तीन विराधना अपूर्ण से बावीस परीषह अपूर्ण तक व तैतीस आशातना अपूर्ण से अंत तक है.) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वांदउ मंगलीक भणी छइ. ७०५४५. (+) सकलार्हत् स्तोत्र, सर्वजिन स्तवन व चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. पं. भाणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलाहत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: वीसं भवनिव्वुइ वंदे, श्लोक-३२. २.पे. नाम. शास्वताजिनभवन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके रवि; अंति: सततं चैत्यमानंधिकारे, श्लोक-१०. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७०५४६. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३४). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७०५४७. (+#) गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण शुक्ल, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, दे., (२५४१२, ४४३४). For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लद्धानरा अत्थपरा भवत; अंति: धम सेवते सुहं लहयते, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लु० लोभी न० मनुष्य; अंति: मनइझे असश्रव कनीपरी. ७०५४८. (+) वीरथुईअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, ६४३२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० नरकनां दुख; अंति: अर्थपूर्ववत जाणिवो, प्रतिपूर्ण. ७०५४९. (+) सम्यक्त्वसत्तिरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३३). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दसणसुद्धिपयास; अंति: दसणसुद्धिं धुवं लहइ, गाथा-७०. ७०५५०. मौनएकादशीनुं गणगुं, संपूर्ण, वि. १९१३, मार्गशीर्ष शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४१२, १३४२०-३३). मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणकगणणं, सं., को., आदि: श्रीमहाजश सर्वज्ञाय; अंति: श्रीवर्धमाननाथाय नमः. ७०५५१. (#) आषाढाभूति चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१ से ९)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३२). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७२४, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-९ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-११ गाथा-३ अपूर्ण तक हैं.) ७०५५२. (+) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १६९१, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२३४) जंज विहिणा लिहियं, जैदे., (२५.५४११, १५४४०). पार्श्वजिन स्तवन-१२ पर्षदा सहित, मु. हापराज, मा.गु., पद्य, आदि: जय निरूपमगुण निकलंक; अंति: हापराजें वीनव्यो, ढाल-३, गाथा-२०. ७०५५३. औपदेशिकश्लोकसंग्रह व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १५४४७). १.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: जयसिरिवंछिय सुहए; अंति: सीख हीइं नित राखीई, श्लोक-५. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-)... ७०५५५. पक्खीचोमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमणविधि सह टबार्थव पुद्गलपरावर्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटण, पठ. मु. गोकलचंद ऋषि (गुरु आ. शांतिसागरसूरि, विजयगच्छ); गुपि. आ.शांतिसागरसूरि (गुरु आ. जिनचंद्रसागरसूरि, विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, ३४४०). १. पे. नाम. पक्खीचोमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमणविधि सह मा.गु.टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्ति वंदणीय; अंति: पक्खिपडिक्कमणं. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम देवसी पडिकमणो; अंति: वृद्धशांति कहीजै. २. पे. नाम. पुद्गलपरावर्त, पृ. १आ, संपूर्ण. पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्य क्षेत्र काल; अंति: ते पिण लेखमे न दीइ. ७०५५६. काव्यषविंशिका, संपूर्ण, वि. १९६४, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. नागनेश, प्रले. श्राव. मोहनलाल उत्तमचंद्र शाह, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १७४७३). काव्यषत्रिंशिका, मु. तेजसिंह, सं., पद्य, आदि: ज्ञानप्रकाशो कवि; अंति: मयका प्रणीता, श्लोक-३७. ७०५५७. (+) पद्मावती गीत व घृतगुण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ९४३०). १.पे. नाम. पद्मावती गीत, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २२९ पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: मिच्छामि दुक्कडम्, ढाल-३, गाथा-३४, (पू.वि. गाथा-१४ से है.) २. पे. नाम. घृतगुण सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: भवियण भाव धरी घणो; अंति: लाल० घी नो गुण कह्यो, गाथा-१९. ७०५५८. (+#) चतुर्विंशतिजिनस्तुति संग्रह सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४११, १५४५८). १. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: यत्राखिलश्रीः श्रित; अंति: श्रुतदेवि तारम्, श्लोक-२८. २४ जिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: त्वयि अखिल सुरासुर; अंति: तथा हि श्रुतदायिके. २. पे. नाम. स्तुतिचतुर्विंशतिका सह टीका, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: जनेन येन क्रियते; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-५ अपूर्ण तक है.) २४ जिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि: पदं स्या० नंच भवति; अंति: (-). ७०५५९. राईसंथारासूत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, कुल पे. ५, जैदे., (२६४१२, १४४३४). १.पे. नाम. राईसंथारासूत्र, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-१९, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १०अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: पामै जे तसुनाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: महामंगलं अष्ट सोहे; अंति: संत वैसंत कल्याणदाता, गाथा-४. ४. पे. नाम. विहरमान २० जिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंत; अंति: जण मनवंछित सारै, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७०५६१. प्रतिष्ठासारोद्धार की प्रशस्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १२४३५). प्रतिष्ठासारोद्धार, श्राव. आशाधर, सं., पद्य, वि. १२८५, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-७ अपूर्ण तक है.) ७०५६२. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४३). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७०५६३. शोभन स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-४(१ से ४)=१, जैदे., (२६४११, १५४५०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. स्तुति-८२ अपूर्ण से है.) ७०५६४. (+) नेमराजिमती विवाहवर्णन, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४८-५०). नेमराजिमती विवाह वर्णन, अप.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "जिम टलवती" से "थोडइ पाणी माछली" पाठ तक है.) ७०५६५. (+) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८२-८१(१ से ८१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, ११४३७). For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-३ उद्देसा-२ अपूर्ण से उद्देसा-३ अपूर्ण तक है.) ७०५६६. (2) अर्हन्नकमुनिरास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १७४५९). अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १७०२, आदि: (१)सारद पाय प्रणमी करी, (२)सरसति सामिणि वीनवू; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-८ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७०५६७. प्रव्रज्या विधि व मृगापुत्र कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १३४५०). १.पे. नाम. प्रव्रज्या विधि, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: पछै नाम थापना कीजे, (पू.वि. "आरोवउ गुरु भणि आरोहेमि" पाठ से २. पे. नाम. मृगापुत्र कथा, पृ. १७अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आगमगत मृगापुत्र कथा, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: (-), (पू.वि. "एअमट्ठसुच्चा तच्छागए समण३" पाठ तक है.) ७०५६८. दरिअरयसमीर स्तोत्र व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४२-४७). १.पे. नाम. दुरियरयसमीर स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-२५ से है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तव, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७०५६९. (+) स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-५(१ से ५)=३, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, १८४४२). १.पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भगत भाव प्रसंसयो, ढाल३, गाथा-२५, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रोहीणी तप स्तवन, पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामणी; अंति: हिव सकल मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. ३. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बैठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. ४. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., पद्य, आदि: सबल भरोसा तेरा जिनवर; अंति: संत सेवग राखो नेरो, गाथा-३. ५. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. ८अ, संपूर्ण. मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: मनवंछित फल सिधोजी, गाथा-८. ६. पे. नाम. इलापुत्र सज्झाय, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. __ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नामेलापूत्र जाणीयै; अंति: लबधवीजे गुण गाए, गाथा-९. ७०५७०. विविधबोल संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, दे., (२६४११, १८४४२). For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org २३१ आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं। प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "अज्ञात कुल की गोचरी करे" तक लिखा है.) ७०५७१, (७) खरतरगच्छ पाटपरंपरा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २- १ ( १ ) = १, प्र. वि. पत्राकं नहीं है, कृति अपूर्ण दर्शाने हेतु अनुमानित पत्रांक लिये गये हैं., मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२६११.५, १४४४३). " , खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: आज्ञा प्रवत्त, (पू. वि. जिनचंदसूरि तक लिखा है) ७०५७२. (+) महानिशीथसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५X११, १४४४२). ७०५७३. महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. अध्ययन-५ सूत्र २९ से सूत्र ३२ अपूर्ण तक है.) . (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, १३X२०-३७). १. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३, (वि. अजितशांति आदि स्तवनों की छुटकर गाथाएँ हैं.) २. पे. नाम. प्रतिमा स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. , जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्म, आदि: श्रीजिनप्रतिमा हो; अंतिः समय० प्रतिमासुं नेह गाथा - ७. ३. पे. नाम. महावीरजिनविनती स्तवन, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन विनती स्तवन - जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज विनती, अंतिः समयसुंदर भुवनतिलो, गाथा- १९. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति समवसरणभावगभिंत, पृ. २अ संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: कि धुप मप; अंतिः दिशतु शासनदेवता, श्लोक-४, ७०५७४. (+) सूत्रकृतांगसूत्र अध्ययन - ६, संपूर्ण, वि. १८७३ श्रावण शुक्ल, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. जौडीयाबंदर, प्र. मु.शिवजी मालजी ऋषि, पठ. मु. लाधा (गुरु मु. शिवजी मालजी ऋषि); राज्यकालरा. सुंदरजी सवजी खत्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५.५x११, १३४३७) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति देवाहिव आगमिस्संति, गाथा २९. १०X३४). १. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ७०५७५. संथारा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., ( २६११, ५X३७). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि अंति: इय सम्मतं मए गहियं गाधा १४. ७०५७६. (+) उपदेशरत्नकोश व बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२३.५X१०, 2 आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि : उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं, गाथा-२६. २. पे. नाम. गोचरी आलोअण गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. गोचरी आलोयण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: अहो जिणेहिं सावज्जा; अंतिः वितहायरणे अइरो, गाथा २. For Private and Personal Use Only ३. पे. नाम. बोल संग्रह - जीवभेद, पृ. २आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., गद्य, आदि: पुढवीर आकर तेकर बाउ४; अंतिः (-) (पू.वि. "मणो- १५ वई १६ काए-१७" तक है.) ७०५७७, (+) ज्वालामालीनी स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८९६ फाल्गुन कृष्ण, १३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल, रामपुरा, प्रले. पं. पेमचंद (बृहत् खरतरगच्छ); पठ. पं. मोतीचंद (गुरु मु. प्रेमचंद); अन्य. श्राव. हीराचंद माणकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्री ऋषभदेवजी प्रसादात् टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६.५४१२, १४४४). ', ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते श्रीचंद, अंति: ज्ञापयति स्वाहा. Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०५७८. (+) स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)-४, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ११४३३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: थे भवजल तारो राज, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से २. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जात्रीडा भाई आबूजीनी; अंति: आवै रूपचंद बोलै रे, गाथा-२१. ३. पे. नाम. अर्बुदाचल स्तवन, पृ. ३आ-५अ, संपूर्ण.. अर्बुदगिरितीर्थस्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: आबुगिरंद सुहामणौ; अंति: रूपचंद तीरथना गुणगाव, गाथा-२२. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: ए धन सासन वीर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ तक है.) ७०५७९. पाक्षिक सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "तिक्कट्टउवसंपज्जित्ताणं विहरामि पाठ से परमरिसिदेसीए पसंथे" पाठ तक हैं.) ७०५८०. नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११, १२४४२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४३. ७०५८१. वीसस्थानकतप गणणाविधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. राधनपुर, जैदे., (२५४११, १३४३८). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं; अंति: ५ तथा १० नो काउसग्ग. ७०५८२. (+) चउवीसदंडक तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १५४४८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४३. ७०५८३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-९(१ से ७.९ से १०)२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, ६४३८-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "साधु सामाचारी,नोसेकप्पइ दोच्चंपिनोकप्पइ से उवायणावित्तए अज्झेण" पाठ तक है) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०५८४. (+) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १९४५४). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-२ गाथा-१५ अपूर्ण से प्रकाश-३ गाथा-३८ अपूर्ण तक है.) ७०५८५. (#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१२, आश्विन कृष्ण, ११, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. ग. तेजवर्द्धन (गुरु मु. वनीतलाभ, अंचलगच्छ); गुपि. मु. वनीतलाभ (गुरु ग. दयालाभ, अंचलगच्छ); ग. दयालाभ (अंचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४०-४४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भगतामर प्रणति मोलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७०५८६. पच्चक्खाणसूत्रसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, चैत्र शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, पठ. मु. हीरचंद (गुरु मु. रतनचंद्र); प्रले. मु. रतनचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, ५४४५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: वत्तिआगारेणं वोसिरइ. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्ये थके इतरे; अंति: उपरांत पचखुंछु. For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७०५८७. (+) गौतमपृच्छा,पर्यंताराधना व पच्चक्खाणादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४७०). १. पे. नाम. गौतमपृच्छा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न-४८, गाथा-६४. २. पे. नाम. पर्यंताराधना, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ एवं भयवं; अंति: सोम० ते सासयं सुक्खं, गाथा-७०. ३. पे. नाम. ब्रह्मचर्यव्रत उचरावण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमोअरिहंताण अरिहतो; अंति: अप्पाणं वोसिरामि. ४. पे. नाम. बारव्रत उचरावण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नवकार० इच्चेइअंसम्म; अंति: पज्जित्ताणं विहरामि. ५. पे. नाम, भवचरिम पच्चक्खाण, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: भवचरिमंपच्चखामि; अंति: अप्पसक्खियं वोसिरामि. ६.पे. नाम. २० स्थानकतपोच्चारण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, आदि: अहन्नं भंते तुम्हाणं; अंति: नित्थारग पारगा होह. ७०५८८. (+) आत्मानुशासन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. दानविमल (गुरु पं. वीरविमल गणि); गुपि.पं. वीरविमल गणि (गुरु आ. आनंदविमलसूरि); आ. आनंदविमलसूरि (गुरु उपा. धीरविमल), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४८). आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., पद्य, वि. १०४२, आदि: सकलत्रिभुवनतिलकं; अंति: भाद्रपदिकायाम, श्लोक-७७. ७०५८९. आउरपच्चक्खाण पइण्णा , अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ११४३८). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., प+ग., वि. ११वी, आदि: उदेसक्कंदस विरउ सम्म; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ अपूर्ण तक है.) ७०५९०. (+) गौतमकुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७४९, ?, चैत्र, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. बलुदा, प्रले. मु. सेषा (गुरु मु. वीकाजी ऋषि); गुपि.मु.वीकाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन मास-प्रीतवर्द्धन मासे का उल्लेख मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ५४३४-४३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: सेवितु सुहत्ति, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुख पामइ निसचइ करी. ७०५९१. संथाराविधिसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सेषपुर, प्रले. मु. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ४४२८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं तस्स, गाथा-१७, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निसीहि क० वांद्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम ३ गाथाओं का टबार्थ नहीं लिखा है.) ७०५९२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१से ९, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-४(१ से ४)=३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अध्ययन-५ गाथा-२६ अपूर्ण तक नहीं है.) ७०५९३. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४४५-५२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३४ ७०५९४ (+) अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-३ (१ से ३) - ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे (२४.५x११, ९४२१-३०). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि (-); अंति: जिणक्वणे आयरिअं कुणह, गाथा- ४०, ( पू. वि. गाथा २१ अपूर्ण से है.) (+#) ७०५९५. नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८३४, वैशाख कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. लाकडीयानगर, प्रले. मु. धनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीपार्श्वनाथाय प्रसादात्., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३X२५-३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: तिन्निवि एए उवाएया, गाथा-५७. ७०५९६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५X११, १०X३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. (७०५९७. (+) मौनएकादशी व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१२ (१ से १२) ४. पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२४.५x१०.५, १३४४९). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु. सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-) (पू.वि. ज्ञानमत्रदिने" से "अन्यान्यपि पुण्यकर्माणि चक्रु" पाठ तक है.) ७०५९८. (+४) नवतत्त्वप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. भावहर्ष (गुरु मु. धर्मसी, बृहत्खरतरगच्छ); गुपि. मु. धर्मसी (गुरु ग. दयाकीर्ति, बृहत्खरतरगच्छ); ग. दयाकीर्ति (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५X११, ५-१४x२१-२५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवा १ जीवा २ पुण्णं, अति: अणागवद्धा अनंतगुणा, गाथा- ३१. नवतत्त्व प्रकरण अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर, अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवंति ७०५९९. (+) गुरुवंदन व प्रत्याख्यान भाष्य, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६x११.५, ११x४३). १. पे. नाम. गुरुवंदन भाष्य, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुरुवंदनणमह तिविहं; अंतिः अणभिनिवेसी अमच्छरिणो, गाथा-४२. २. पे नाम, प्रत्याख्यान भाष्य, पृ. ३अ-४आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं, (२६X१२, १३X३० ). १. पे नाम, आदिनाथ वीनती, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दस पच्चक्खाण चउविहि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा- ४२ अपूर्ण तक है.) ७०६००. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. भक्तिविजय, पठ. सा. रलियातबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५.५x१२.५, १२४३२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह गाथा ४०. ७०६०१. वीरथुईअध्ययन व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल. दील्लीनगर, प्रले. मु. हरजीमल ऋषि (गुरु मु. रतनचंद); गुपि. मु. रतनचंद, पठ. सा. पन्नाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैये. (२५x११.५, १७४५०). १. पे. नाम. वीरथुई अध्ययन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा मारण, अंतिः हवइ आगमिसंति तिबेमि, गाथा - २९. २. पे. नाम. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि पंचमहव्वयसुव्वयमूलं अंति: हुति परित्तसंसारी, गाथा ६. ७०६०२. (*) आदिनाथ विनती व सिद्धचक्र स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे, ५. प्र. वि. संशोधित, जैदे For Private and Personal Use Only शत्रुंजयतीर्थ स्तवन- बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: बे करजोडी वीनवु जी; अंति: समयसुंदर गुण भणै, गाथा- ३०. Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमो वळी सिद्ध; अंति: नयविमलेसर वर आपो, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. महिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आसो चैत्र ओली तप; अंति: जस महिमा जगसारैजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. भूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नवपद ध्यान धरो भवि; अंति: भूपविजय गुण गेह जी, गाथा-४. ५.पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७०६०३. (2) ८४ आशातना विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, ११४२८). ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जिनबिंबादिक आशातना वर्णन अपूर्ण से सिद्धसंपदा के प्रगट होने का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७०६०४. सरस्वती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५२, ज्येष्ठ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, प्र.ले.श्लो. (१२५१) यद्यक्षर पदः भ्रष्टं, जैदे., (२५४११.५, १६४४०). सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, __ श्लोक-१३. ७०६०५. (#) धन्नाशालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३५). धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ अपूर्ण से ढाल-७ तक है.) ७०६०६. (+) गजसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११.५, ११४३९). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, सेवक, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिननायक वांदीयि; अंति: सेवक करइ प्रणाम, गाथा-१२. ७०६०७. शांतिकरं व नमिऊण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १२४३४). १. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: शांतिकरं शांतिजिण; अंति: मुणिसुंदर० पयं परमं, गाथा-१३. २.पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७०६०८. (+) वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गुणविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ८४४१). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ७०६०९. (+) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, ४१४९). पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरस्वामिनः केवल; अंति: श्री जिनहर्षसूरि. ७०६१०. (+) साधुसाध्वी उपकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २१४५८). साधुसाध्वी उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं पत्ताबंधो पाय; अंति: (-), गाथा-७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) साधुसाध्वी उपकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिन्निविहत्थी; अंति: २५ उपगरण हुई., संपूर्ण. ७०६११. स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२, १२४३८). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. ___ मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नेमिजिणेसर नित नमुं; अंति: जैनेंद्र० सुभ वाण हो, गाथा-७. २. पे. नाम. नथ पद, पृ. २अ, संपूर्ण. वज्रपजरस For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३६ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रा., पद्य, आदि: पांचारी धडावो मारी; अंति: छुनी लाज्यो च्यार, गाथा-३, (वि. यह पद राग रूप में दिया गया है.) ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती स्तवन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेम; अंति: चतुरकुशल इम बोले वाण, गाथा- ७. ४. पे नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेडुंजानो वासी, अंतिः ज्ञानवि० भव पार उतारे, गाथा - ६. ७०६१२ (+) पद, स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ५, ले. स्थल, स्वर्णगिरि, प्रले. मु. वल्लभ पठ. मु. गणेश, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२४.५४११.५, १४४४३) , १. पे. नाम ऋषभजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. आदिजिन पद, मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: बलीहारी दरीसण तारा, अंतिः पलक न छोडूं पाछो रे, गाथा-४. , २. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन पद- केसरीया, मु. मुलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: केसरिया वाला जो अंतिः भवभवमां सुख लेस्ये, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १अ संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., पद्य, आदि: नहि जानद्युउ रे नही; अंति: रंग रे उमंग से रहु, गाथा-५. ४. पे. नाम. नेमराजमति सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जसवंतसागर, मा.गु, पद्य, आदि उग्रसेन की ललिन; अंति भवना प्रभु बंधन छोड, गाथा- ७. ५. पे. नाम. एकादशीतिथि स्तवन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदिः भवियण एकादशी तप, अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. गाधा-७ अपूर्ण तक है.) ७०६१३. भगवतीसूत्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५३ ज्येष्ठ शुक्ल ८, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. मु. लालसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., - (२५.५X१२, १२X३६). भगवतीसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: वंदी प्रणमी, अंति: विनयविजय गुण गाय रे, गाथा २१. ७०६१४. पार्श्वनाथ व ६४ योगिनी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २, जैदे. (२५.५४११, १५४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र चिंतामणि, पृ. १अ - १ आ. संपूर्ण. आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस, अंतिः निर्वाण पद लब्धि, श्लोक ९. २. पे. नाम ६४ योगिनी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐ दिव्ययोगी महायोगी, अंति: सर्वोपद्रव नाशिनी, श्लोक-११. ७०६१५. उपस्थापना व अनुयोग विधि, संपूर्ण वि. १६९२, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले. स्थल, मेदिनी, जैदे. (२६.५४११.५, १५X३९). १. पे नाम. उपस्थापना विधि, पृ. ९अ १आ, संपूर्ण. उपस्थापना विधि- दीक्षाविधिगत, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नंदि मांडीनइ खमा०; अंतिः यथायोग्य नाम वीजे. २. पे नाम अनुयोग विधि, पृ. १आ, संपूर्ण प्रा. मा.गु., सं., गद्य, आदि: पूंजी काजउ उधरी, अंतिः उपस्थापना २ आलोचना. ७०६१६. (#) बिंबप्रवेश विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १६x५१). जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, आदि: भला मुहूर्त्त जोई, अंति: सर्व सिद्धि संपजइ. ७०६१७. (+) सिद्धदंडिका सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ग. दर्शनविजय (गुरु मु. मेरुविजय); गुपि. मु. मेरुविजय (गुरु मु. जयविजय): मु. जयविजय पठ. मु. लाभविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैवे. (२५x११, १२४४१). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा - १३, (वि. यंत्र सहित) For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७०६१८. गजसुकमालऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १६४३७-४४). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., पद्य, आदि: सोरठ देश मझार; अंति: सौभाग्य० राजीयो जी, गाथा-३५. ७०६१९. मुद्रापंचक विधि, पीठप्रस्थान-१ से५, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १०४२७). मुद्रापंचक विधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीँ नमो जिणाणं ॐ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०६२०. अर्बुदादितीर्थजिनबिंबप्रतिष्ठाघटनाक्रम, अवर्गादि वर्णज्ञान व अक्षौहिणीसैन्यमानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११, १५४५०). १.पे. नाम. अर्बुदादितीर्थजिनबिंबप्रतिष्ठा घटनाक्रम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अर्बुदादिजिनबिंबतीर्थ प्रतिष्ठाघटनाक्रम विचार, सं., गद्य, आदि: श्रीअर्बुदविमल; अंति: रायवीसल दे नइंदीधा. २. पे. नाम. अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक सह बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आए उइ हुंगरुड क ख; अंति: मीढउ ८ इत्यष्टवर्गा, श्लोक-२. अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जे तेहना पूछइ तेहना; अंति: च फलमादिशेत्. ३. पे. नाम. विरोधी जीवादि श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: गरुड सर्प पर वैरं; अंति: सिंघ मृग तथैव च, श्लोक-१. ४. पे. नाम. अक्षौहणी सैन्यमान, पृ. १आ, संपूर्ण. अक्षौहिणी सैन्यमान श्लोक, सं., पद्य, आदि: नागशहस्त्राणि नागे २; अंति: अश्व नवसिंकोडि नर, श्लोक-१. ७०६२१. (+) मौनएकादशीपर्व गणj, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२४३०). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः, (पू.वि. पौषधनाथ से पुरुखसर्वज्ञ तक की पाट परंपरा नहीं है.) ७०६२२. जिनस्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६४११.५, ९४२५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. संभवजिनस्तुति अपूर्ण से सुपार्श्वजिन स्तुति अपूर्ण तक है.) ७०६२३. () दसपच्चकखाण, संपूर्ण, वि. १८०७, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. पत्तन, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, १०४३३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गे अब्भत्तठं; अंति: वत्तियागारेणं वोसिरइ. ७०६२४. (+#) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८७६, कार्तिक शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले.ग. मोतीविजय; पठ. श्रावि. दलसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१९ अपूर्ण से है.) ७०६२५. (#) देरासर विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले.पं. भीमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४१). जिनचैत्यपूजा स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: घरनायक जव आवउ घरे; अंति: पूरव मुख्य पूजा करइ, गाथा-२७. ७०६२६. (+) सोलहसती स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, ले.स्थल. वढवाणशहेर, प्रले. श्राव. खीमचंद पोपटलाल गांधी; पठ.मु. लालचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२५.५४११.५, १७४५५). १. पे. नाम. सोलहसती स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. १६ सती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: आदौ सती सुभद्रा च; अंति: शं सततं मनुष्यः, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, सं., पद्य, आदि: नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २३८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन- ३४ अतिशय, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: तेषां च देहोद्भुतरूप, अंतिः त्रिंशच्च मीलिताः, श्लोक ८. ४. पे. नाम. पंचत्रिंशतवचनाअतिशय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. ३५ जिनवचनातिशय नाम, सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्व१ मौदात्य२ अंतिः पंचत्रिंशच्चवाग्गुणा. ५. पे. नाम. सरस्वतीदेवी के १६ नाम स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदा देवी; अंति: निस्सेसजाड्यापहा, श्लोक - ८. ६. पे. नाम. भक्तामरस्य प्राचीनचत्वारि काव्यानि, पृ. २आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र संबद्ध प्राचीन काव्यचतुष्क, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि विष्वग्विभोः , आदि: विष्वग्विभोः सुमनसः; अंतिः दतिडुडुभिरुच्चकैस्ते, श्लोक-४. (७०६२७. (*) मौनएकादशी गणणुं, अपूर्ण. वि. १८९१ श्रेष्ठ, पृ. ३-१ (१) २ ले स्थल. मादली, प्रले. श्राव. झवेरचंद भंडारी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५X१२, १२×३४). मौनएकादशी गणणुं, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: श्रीआरणनाथाय नमः, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., "पुष्करार्द्धपार्श्वमल" पाठ से है.) ७०६२८. (#) बृहत्क्षेत्रसमास सह टीका, अपूर्ण, वि. १५३२, जीर्ण, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ले. स्थल. योगिनीपुर, प्र. वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X१०.५, ११x४३). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४५ अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने गाथा-४५ लिखकर ही कृति संपूर्ण कर दी है.) बृहत्क्षेत्रसमास - टीका, सं., गद्य, आवि: ( अपठनीय); अंति: (-), (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य अवाच्य है.) ७०६२९_ (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम पू. ४-२ (१ से २ ) - २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे., (२५.५X११, ११३०-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४, (पू. वि. अंत के पत्र हैं., श्लोक-२५ अपूर्ण से है.) ७०६३०. (#) नेमनाथजीनवभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६८, कार्तिक कृष्ण, १० अधिकतिथि, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. सोझ, प्र. मु. हर्षसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५-१८४३९-५७). " नेमराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३७, आदि: नेमप्रभु आव्या रे; अंति: रे सहसावन के मेदान, गाथा- १७. ७०६३१. (+) भावार्थशतक, संपूर्ण, वि. १७१५, माघ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. ग. धर्मविजय (गुरु उपा. देवविजय); गुपि उपा. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६.५x११, १८४५७). " भावार्थशतक, सं., पद्य, आदि: वाग्देवी नमस्कृत्य; अंति: तथारं प्रवदंतु तज्ञा, श्लोक - १०१. ७०६३२. (+४) विचारपंचाशिका, चक्रवत्तीवैभवगाथा व आगमगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. हर्षविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १४४४१). १. पे. नाम. विचारपंचाशिका, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं देवा; अंति: विमलसूरिवराणं विणएण, गाथा-५०. २. पे नाम, चक्रवर्ती वैभव गाथा, प्र. २आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only प्रा., गद्य, आदि: चक्क १ असि २ छत्तदंड; अंति: वेयदृतलेयकरितुरया, (वि. आचारप्रदीप से संकलित ) ३. पे. नाम. आगमिक गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. पुष्पचुलिका से संकलित ) ७०६३३. वीरथुई अध्ययन व महावीरजिन स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५X११, १३X३४). Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १.पे. नाम. वीरथुई अध्ययन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछेसणं समणा माहणा; अंति: आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण है.) ७०६३४. साधारणजिन स्तोत्र, महावीरजिन स्तुति व जिनदर्शन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागपुर, प्रले. मु. मानविजय (गुरु पंडित. देवविजय कवि); गुपि. पंडित. देवविजय कवि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४५०). १. पे. नाम. साधारणजिन चैत्यवंदन सह अवचूरि, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रीजिनकल्याणवल्लि; अंति: श्रेयः सुखास्पदं, श्लोक-५. साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: श्रीजिनेत्यादीनि; अंति: पुरुषाद्यवचनं हीति. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: वीरः सर्वसुरासुरेंद; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जिनदर्शन स्तुति सह अवचूरि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. जिनस्तुत्यादि संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शनं देवदेवस्य; अंति: दर्शनं मोक्षसाधनम, श्लोक-२. जिनस्तुत्यादि संग्रह-अवचूरि*, सं., गद्य, आदि: देवस्य दर्शन; अंति: मानत्वात् शेष सुगमम्. ७०६३५. कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य की पीठिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४४५). कल्पसूत्र-अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदि: पुत्राः पंचमतिश्रुता; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., साधु आचार वर्णन अपूर्ण तक है.) ७०६३६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १२४४२). १.पे. नाम. प्रतिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनमंदिरकर्त्तव्य स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: करि निसिही देहरा; अंति: लाल नित मेवा रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रभु पास जिणंद की; अंति: प्रभु भवजल पार उतारो, गाथा-४. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सेवा सांति जिनेसरु; अंति: मंगल जयकारी वेलो, गाथा-१५. ७०६३७. (#) नवतत्त्वप्रकरण व साध्वाचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले.सा. कमलविजया (गुरु सा. कुशलविजया गणि); गुपि.सा. कुशलविजया गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री देवगुरू प्रसादात्., पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०). १.पे. नाम. नवतत्त्वप्रकरण सह बालावबोध, प्र. १अ-३अ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-५१, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष न थायइ, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., यत्र-तत्र बालावबोध लिखा है.) २.पे. नाम. साधु आचार विवरण, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनंतरनिक्षिप्त लग; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., भावक्रीतं तक लिखा ७०६३८. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह ऋद्धिमंत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ११४३५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-ऋद्धि, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहणमो; अंति: (-). ७०६३९ (#) जयतियण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ६४२३). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: (-), (अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ७०६४०. नवग्रह शांतिकारकस्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. भक्तिरूप, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३९). १. पे. नाम. नवग्रहशांतिकारक स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि श्रुतः, श्लोक-११. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. विनयशील, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मुरत श्रीपासतणि; अंति: नवनिध सदा आणंद घणे, गाथा-११. ७०६४१. दशवकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११.५, ५४४०). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-१ अपूर्ण से अध्ययन-४ सूत्र-१ अपूर्ण तक है.) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०६४२. (4) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४१०.५, १२४३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७०६४३. (#) भगवतीसूत्र-शतक-८, उद्देस-२, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१०, १८४४०). ___भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०६४४. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. रामचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, ८-१२४२७-५४). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५३. ७०६४५. (+#) वीरथुईअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१३, आश्विन शुक्ल, १३, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. सैवाडी, प्रले. मु. सांवलदास ऋषि (गुरु मु. गुलाबचंद ऋषि); गुपि.मु. गुलाबचंद ऋषि (गुरु मु. कल्याण ऋषि); मु. कल्याण ऋषि (गुरु मु. खीवराज ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, ६x४२). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: ___आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पूर्वोक्त एवहवा नरक; अंति: कहु मां भली तिम. ७०६४६. चतुर्शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले.पं. हीरसुंदर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ११४३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७०६४७. (+) पैंतीस वाणीगुण, चौंतीस अतिशय व आगमिक पाठ संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित, जैदे. (२५४१२.५, १४-२७४४३-७५), १. पे नाम. अर्हतां वाग्गुणाः, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अभिधानचिंतामणि नाममाला - ३५ जिनवाणी गुण, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: संस्कारवत्त्वं; अंति: वचनप्रमेयतेति. २. पे. नाम. समवायांगसूत्र- चतुखिंशदतिशय नामानि पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण ३. पे. नाम. आगमिकपाठ संग्रह, पृ. २अ ४आ, संपूर्ण, प्रा.,सं., गद्य, आदि: तएणं से खंदए कच्चायण; अंति: परलोकीभूत शब्दवदिति. ७०६४८ (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व कालिका स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै. (२५४११.५ १३४२६). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदिः चत्तारि मंगलं अरिहंत अंतिः वंदामि जिणे चडवीस, सूत्र- २१. २. पे. नाम. कालिका स्तोत्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, पुहिं., पद्य, आदि: अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०६४९. नवतत्त्व प्रकरणादि सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे. (२५x११, ६x४८). " १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं, अंति: १३ क्क१४ णिक्काय१५, गाथा-४७. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: १५ ए पनर भेद सिद्धना. २. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. " आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी, आदि भुषण पईवं वीरं नमिऊण, अंतिः (-) (पू. वि. गाथा- ६ अपूर्ण तक है.) ७०६५०. (+) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२५x११.५, १७३७). २४१ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊ अरिहंताई ठिइ, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १२२ अपूर्ण तक है.) ७०६५१. (*) कल्पसूत्र सह टबार्थ+ व्याख्यान + कथा, अपूर्ण, वि. १७२४, श्रेष्ठ, पृ. १२० ११९ (१ से ११९) = १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, २X४३). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि (-); अंति: उवदसेड़ त्ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६, (पू. वि. मात्र अंतिम सूत्र है.) कल्पसूत्र - टबार्थ + व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति (१) सोमविमल० वाच्छल्यमंतः, (२) एतलइ गुरुक्त जाणवु ७०६५२. (+#) आदिसर वीनती, संपूर्ण, वि. १७९१, कार्तिक शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, १३५७). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पामी सहिगुरु पसाय रे, अंतिः विनय करी विनवे ए, गाथा- ५७. ७०६५३. (*) सिद्धदंडिकास्तव सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे., (२५.५x११, १३x४१). For Private and Personal Use Only सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाओ; अंति: आदितु सिद्धि सुहं, गाथा- १३. सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोम सिद्धिदंडिका; अंति: दंडिकाः वाच्याः. ७०६५४. (*) पच्चक्खाणसूत्रसंग्रह व सोलसतीनाम सज्झाय, संपूर्ण वि. १७९९, भाद्रपद कृष्ण, ८, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पू. १, कुल पे. ४. प्र. वि. संशोधित. जैदे. (२६.५x१२, १६५३६). 1 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. २. पे. नाम. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसह; अंति: पोसहविहि अप्पमत्तोअ. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यान यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र-यंत्र, प्रा.,सं., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: पारि० मह० सव्व०९. ४. पे. नाम. सोलहसतीनाम सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ सतीनाम सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीने वंदी सोलसती; अंति: न्यानसागर शिवसुख होइ, गाथा-८. ७०६५५. सत्तरिसययंत्रसंबद्ध जिनस्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १०४३०). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ७०६५६. (#) चतुर्दशस्वप्नविचारादि व प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १५४४६). १. पे. नाम. चतुर्दशस्वप्न विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ स्वप्न विचार, सं., गद्य, आदि: चतुर्दंतगजदर्शनात्; अंति: लोकाग्रं प्रेष्यति. २. पे. नाम. भुवनपति आदि वाद्योपकरण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. विचार संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भगोर्कज्ञानमाहात्म्य; अति: किमाश्चर्यमतः परम्, श्लोक-२१. ७०६५७. (#) संतिकरं स्तव, पार्श्वनाथ स्तव व मांगलिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३४). १.पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं जग; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरि मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. ३. पे. नाम. मांगलिकस्तुति संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो; अंति: ते वंदू निसदीस, गाथा-५. ७०६५८. (+#) चतुर्विंशतिजिन नमस्काराः, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. प्रतिलेखक का नामोल्लेख नहीं है, परन्तु प्रारंभ में "महोपाध्याय कीर्तिविजयगणि गुरुभ्यो नम:" मंगल स्मरण करने से इनके किसी शिष्य द्वारा प्रत लिखे जाने की संभावना है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३५). २४ जिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: जिनर्षभप्रीणितभव्य; अंति: रागो हृदये ममास्ताम्, श्लोक-९. ७०६५९. गौतमस्वामीरास व प्रभाति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३४३८). १.पे. नाम. गौतमस्वामि छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस; अंति: गौतम तुटै संपति कोड, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन प्रभाति स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सेरी मांहि रमतो दीठो; अंति: शुभवि०भाग्य उघडिओरे, गाथा-९. ७०६६०.(+) औपदेशिक रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, १८४४८). औपदेशिक रास, मा.गु., पद्य, आदि: अढीदीपमाहे पछै; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ७०६६१. (+#) पार्श्वजिनस्तुति व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x१०.५, १२४३४) १. पे नाम, पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस, अंतिः शिवसुंदर सौख्यभरम्, लोक-७. २. पे. नाम. नेमीश्वर स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७०६६२. शंत्रुजयतीर्थं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, राधनपुर, प्रले. श्राव लवजी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे (२४.५x११.५, १३x२५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ गुणमाला, मु. सुखविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविमलाचल भेटीयइ; अंति: हो सुखविजय गुण गाय, गाथा - १४. ७०६६३. (+) तीर्थंकरवरसिदान स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. संशोधित कुल ग्रं. ४०, ११४३७). (+) जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लब्धि० वंछित पाया रे, गाथा-२७, (पू. वि. गाथा - १७ अपूर्ण से है . ) ७०६६४. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४१ - ४० (१ से ४० ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५X१०.५, १३x४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति (-), (पू. वि. अध्ययन-४ अपूर्ण से अध्ययन-५ ', .दे.. (२६४१२. अपूर्ण तक है.) ७०६६५. (+) अंतकृद्दशांगसूत्र सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. नम श्रावि. मूलीबेन पटेल, गृही. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पत्रांक-१ के हासिये में "संवत् १७९९ना वर्षे काति वदि २ दिने पटेल श्रीदेवसीनी बेन बाई मूली परत एकअंगआठमानी भिषाचार लालचंदजीने वोरावी छे श्री वीकानेर मध्ये" उल्लिखित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें जैदे. (२५x१०.५, ६४३८). " अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चंपा०: अंतिः (-) (पू. वि. प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक है.) अंतकृद्दशांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अंति: (-). ७०६६६. 'कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०७, श्रावण शुक्ल, ४, गुरुवार, मध्यम, पृ. १७० - १६९ ( १ से १६९ ) =१, प्रले. पं. इंद्रविजय (गुरु ग. मोहनविजय); गुपि. ग. मोहनविजय (गुरु पं. जीवविजय गणि); पं. जीवविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. कुल ग्रं. ५५००, जैदे., (२५.५X११.५, ६X३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: उवदंसिइत्ति बेमि, व्याख्यान ९ ग्रं. १२१६. (पू.वि. सूत्र- २६३ अपूर्ण से है.) कल्पसूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., गद्य, वि. १७९५, आदि: (-); अंति: (१)जीवविजय०कल्पसूत्रस्य, (२) भद्रबाहु उदयु ७०६६७, (+) पाक्षिक व भ्रमण अतिचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल २. पे. नाम. श्रमण अतिचार, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: विशेषतश्चारित्रारी, अंति: (-), (पू.वि. आलापाक-७ अपूर्ण तक है.) २४३ गयी है, जैदे., ( २६x१०.५, १३x४०). १. पे नाम, पाक्षिक अतिचार, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, पठ श्रावि, फूलाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि, अंतिः मिच्छामि दुक्कडम् For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०६६८.(+) चारप्रत्येकबुद्ध रास, जंबूकुमार चोढालियो व वैराग्यपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११, १७४३२). १.पे. नाम. चारप्रत्येकबुद्ध रास, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. ४प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: समय० नयर प्रसीद्ध, ढाल-५. २. पे. नाम. जंबूकुमार चौढालियो, पृ. ४अ-५अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर विहरताराज; अंति: होराज मुनीवर आया, ढाल-४. ३. पे. नाम. वैराग्यपच्चीसी, पृ. ५आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. सदारंग, मा.गु., पद्य, आदि: ए संसार अथिर करि जाण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ प्रारंभ तक है.) ७०६६९. विजयदानसूरिहीरविजयसूरिनाममिश्रितचउवीसजिन थूईनमस्कार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, ले.स्थल. जेसलमेर, प्रले. श्राव. पत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १२४३९). स्तुतिचतुर्विंशतिका-दानसूरि-हीरसूरिनामगर्भित, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहजविमल० पुहुवी जयउ, गाथा-२९, (पू.वि. अंत के पत्र हैं., गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ७०६७०. (#) चंदनमलयागिरि रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४६२). चंदनमलयागिरि रास, मु. भद्रसेन, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. कलिका-२ गाथा-६२ अपूर्ण से कलिका-४ गाथा-१२४ अपूर्ण तक है.) ७०६७१. (+) अंगुलविचारसत्तरी व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १९४५९-६१). १.पे. नाम. अंगुलविचारसप्तति, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. __ अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उसभसमगमणमुसभजिणमणि; अंति: रइअमिणं सपरगुणहेउं, गाथा-७०. २. पे. नाम. गर्भजमनुष्यसंख्या गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. गर्भज मनुष्यसंख्या गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सत्तेवय कोडीओ लक्खा; अंति: संखा गब्भय मणुस्साणं, गाथा-४, (वि. संख्या अंकों में-७९२२८१६२५१४२६४३३७५९३५४३९५०३३६.) ३. पे. नाम. द्वीपसमुद्र राजमान गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: मेल्हइ सोहम्माओ कोवि; अंति: दीवसमुद्दा हवंती य, गाथा-२, (वि. गाथासहस्री की गाथा-२९५-२९६ है.) ७०६७२. (+) नारीचरित्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४९). नारीचरित्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से २८ अपूर्ण तक है.) ७०६७३. (#) स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३८). स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वज्रधर स्तवन-११ गाथा-३ से महाभद्रजिन स्तवन-१८ गाथा-७ तक है.) ७०६७४. (#) आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३४३१). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: जोग न मांड्यो मै घर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ तक है.) ७०६७५. गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. वीरचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ५४३५). For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम कुलक, प्रा., पद्म, आदि: लुद्धा नरा अत्यपरा; अंतिः सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा २०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे लुबध ते लोभी नर; अंति: पालीनइ अनंतसुख पामइ. ७०६७६. (+) संतिकरस्तव व तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X११.५, ११४३२). १. पे. नाम. संतिकरं स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुह संपयं परमं, गाथा-१३. २. पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा. पद्म, आदि: तिजयपत्तपयासं अड्डु अंतिः निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा- १४. २४५ ७०६७७, (+) दंडक प्रकरण, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५.५४१२, १२X४० ). "" दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउं चउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा- ४३. ७०६७८. उत्तराध्ययनसूत्र - चउरंगी अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९३८, फाल्गुन शुक्ल, १०, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. श्राव सोमचंद, अन्य. श्राव. टोकरशी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., ( २६११.५, ८X३३). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण "1 ७०६७९. (+) आहार के ४२ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२८, माघ कृष्ण, ३, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. २, ले. स्थल. मेदेडा ग्राम, प्रले. मु. वीरचंद तेजसी ऋषि, पठ. मु. माणेकचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. दे. (२५.५x११, ४X३० ). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदिः आहाकम्मं १ उद्देसिय; अंति: रसहेउ दव्व संजोगा, गाथा-६. गोचरी दोष-बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकर्मि साधुने, अंतिः जोग मले तो दोष पाचमो. ७०६८०. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३- १ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., ( २६x११, ९x४२). , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. महावीरजिन गुणवर्णन प्रसंग अपूर्ण से २१ उपमा वर्णन अपूर्ण तक है.) ७०६८१. (+) विचारषट्त्रिंशिका सह वालाववोध, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. हर्षकीर्ति (गुरु पं. हर्षसिंहगणि); गुप. पं. हर्षसिंहगणि, पठ. वा. पद्मरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पंचपाठ- संशोधित टीकादि का अंश नष्ट है, जैये., (२५४११, ८-११४३९). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि नमिठं चउवीस जिणे, अंतिः विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा ३८. दंडक प्रकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: शरीर५ औदारिकशरीर१; अंति: वनस्पति अनंतगुणा. ७०६८२. (*) यतिप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५X१०, " १४X३९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करेमि, अंतिः वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र- २१. ७०६८३. (+) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५.५x११, ११४३८). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नवकारसहिअर पोरिसिन अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. ७०६८४. (+) लघुक्षेत्रसमास सह स्वोपज्ञटीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित., जै.., (२६४१०.५, १७४४४-४९). For Private and Personal Use Only 9 लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय पईडि अंतिः (-). (पू. वि. गाथा - १२ अपूर्ण तक है. ) "" लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं. गद्य वि. १५वी, आदि: अर्हमिति ब्रह्मपदं अंति: (-). ७०६८५. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५२-५० (१ से ४८, ५० से ५१) = २, पू. वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६५११, १३४४६). Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४६ www.kobatirth.org कथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. जरासंध, नेमिनाथ व श्रीषेण कथा का आंशिक भाग है., वि. जैनमहाभारत से सम्बद्ध कथा होने की संभावना है.) ७०६८७. (+) श्रावकाराधना, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण बुक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे. (२६४११, १८-२०४४८-५०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची "3 श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं. गद्य वि. १६६७, आदि: श्रीसर्वशं प्रपम्, अंति: (-), (पू.वि. अधिकार-५ अपूर्ण तक है.) ७०६८८. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६४११, ११४३३). बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि: भो भो भव्याः शृणुत, अंति: (-) (पू. वि. श्रीराजसन्निवेशानां शांति पाठ तक है.) ७०६८९. (#) जिनकल्पस्थविरकल्प विचारसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३-३०(१ से २९,३२)=३, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४१२, १६४४१-४५) " जिनकल्प स्थविरकल्प विचार संग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. मध्यभाग के पाठांश हैं.) ७०६९०. (#) चारित्रग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १९१६, आषाढ़ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. पुन्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., ( २६x१२, ११४३५-३८). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: नालिकेर १ प्रदक्षिणा३: अंतिः जिणाई नवकार धणिअं ७०६९१. (+) भयहरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, लिख. श्रावि. माना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जै., (२५.५X१०.५, ६X३८). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण, अंति: भय नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४, ग्रं. ३०. नमिऊण स्तोत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः नमिऊण कहीइ नमीने अंतिः गनु भय ते वेगलड़ जाइ, ग्रं. ५५. ७०६९२. (+) गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., जैवे. (२६११. २१४१४). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाह; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि, प्रश्न- ४८, गाथा- ६४. गौतमपृच्छा-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, वि. १५६९, आदि: तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः श्रीगौतमपृच्छा. ७०६९३. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., ( २५X१२, १२x२९-३३ ) . ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदिः आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३. ७०६९४. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, पठ. सा. वालाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूच लकीरें जैदे. (२५x१२, १२४३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४. ७०६९६ (+) शत्रुंजयतीर्थंकल्प सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. दे. (२५x११, ५X३९). शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: लहइ सेत्तुंजजत्तफलं, गाथा-२५. शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवली; अंति: यात्रा फल पामे. ७०६९७. आद्धप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-५ (१ से ५) = ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं, जैदे., (२५.५४१२, १३x२९). , " प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वे.मू. पू. * संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (-); अंति: (-) (पू. वि. वंदित्तुसूत्र गाथा - १ अपूर्ण से सामायिकसूत्र - २ अपूर्ण तक है.) ७०६९८. प्रज्ञापनासंग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे. (२४४११, १७४४१). For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २४७ प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि,प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: अभयदेव० संगहिय, गाथा-१३३, (पू.वि. गाथा-१०६ अपूर्ण से है.) ७०६९९. आश्रवसंवरद्वार छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक का अंश खंडित होने से अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२५४११.५, १३४३२). आश्रवसंवरद्वार छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. छंद-६ अपूर्ण से छंद-११ अपूर्ण तक है.) ७०७००. (+) उत्तराध्ययनसूत्र-नमिप्रव्रज्या अध्ययन-९, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. विकानेर, प्रले. मु. दोलतरामजी; पठ. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०७०१. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, पठ. मु. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक न लिखा होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३१). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. अंतिमसूत्र अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पंन्या. रविविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: सेवकनो रविनी पूरो आस, गाथा-२७. ७०७०२. कल्पसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१-९०(१ से ९०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १७४५२). कल्पसूत्र-टीका*, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. राजा नंदिवर्द्धन के द्वारा भगवान महावीर की दीक्षामहोत्सव के आयोजन का वर्णन है.) ७०७०४. प्रतिष्ठाकल्प मंत्रसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १३४४२). प्रतिष्ठाकल्पे-मंत्रसंग्रह, सं., गद्य, आदि: ॐ भूरसि भूतधात्री; अंति: (-), (पू.वि. आह्वानमंत्र अपूर्ण तक है.) ७०७०५. (+) चतुर्विधधर्मविषये वीरसेन कथानक, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. सोमसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १२४३३-४३). वीरसेन कथा, सं., गद्य, आदि: तहवि उवएस विसर; अंति: हे यास्यति मोक्षं च. ७०७०६. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधबीजं ददातु, श्लोक-११. ७०७०७. (+) प्रवज्या विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४५४). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा १ वासे २ चिइ; अंति: सत्तीए तवो कायव्वो. ७०७०८. (+#) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व-७ सर्ग-३, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६.५४११, १७४६०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-५० अपूर्ण तक है.) ७०७०९. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तोत्र व गाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (४६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा, (१२५३) ये लिखयंति नरा धन्या, जैदे., (२५४११.५, १४४३२-४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सेवो पास शंखेश्वरो; अंति: उदयरत्न० आप तूठा, गाथा-७. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: सर्व सिद्धि प्रदायकं, श्लोक-१४. ३. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गोकल, पुहिं., पद्य, आदि: आचार विचार अनोपम; अंति: जालम भेख सही जती कौ, पद-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: माणुसुत्तं वरो धम्मो; अंति: सामगीसव्वपाणिणं, गाथा-१. ७०७१०. गुडीपार्श्वनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक वाला भाग खंडित होने से पत्रांक अनुमानित दिया गया है., जैदे., (२५४११, १६४४३). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: विमल पास अभिराम जी, ढाल-५, गाथा-५५, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ की गाथा-१२ अपूर्ण से है.) ७०७११. नवकारमंत्र व शारदास्तुति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ८x२८). १. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. शाश्वत ,प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताण; अंति: पढम हवई मंगलं, पद-९. २. पे. नाम. शारदादेवी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रथमं भारती नाम; अंति: देवी शारदा वरदायिनी, श्लोक-८. ७०७१२. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१०.५, १४४३२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-२२ अपूर्ण तक है.) ७०७१३. पार्श्वनाथस्तवन, चैत्यवंदन व लग्नपत्रिका श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१२, ८x२९). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो नृणां श्रिये, श्लोक-२. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पडिमल्लयल्ल; अंति: जिण पास पयच्छउ वंछिय, गाथा-२. ३. पे. नाम. लग्नपत्रिका श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अभीप्सितार्थ सिद्ध्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र श्लोक-३ तक लिखा है.) ७०७१४. पच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११,७४५०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए नमुक्कार; अति: (-), (पू.वि. एकासणा बेआसणा के पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्या पछी; अंति: (-). ७०७१५. नेमिजिन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १६४३३). नेमिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: मैलासु उतरियो राजी; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७०७१६. वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६५, माघ कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. गेहरसर, प्रले. मु. भवानी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ऋषि चंद्रभाणजीरे प्रसादसु., जैदे., (२५.५४११,११४२९). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो परमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, गाथा-७. ७०७१७. (+) नवतत्त्वप्रकरण सह व्याख्या , अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४२). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ से २० तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २४९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७०७१८. (+) साधारणजिन स्तवन व पार्श्वजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ११४२४). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. मु. कीर्तिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कीर्तिविजय० नी कोडि, गाथा-७, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम पुरुष परमेसरु रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) ७०७१९. बीजतिथि सज्झाय व ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, ११४१८-४०). १.पे. नाम. बीजतिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीज कहे भवी जीवन रे; अंति: विजयलब्धि० विनोद रे, गाथा-८. २.पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: यशविजये० पोष लालरे, गाथा-५. ७०७२०. (+) सप्तनय स्वरूप, संपूर्ण, वि. १८५५, ज्येष्ठ शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्रले. उपा. क्षमामाणिक्य गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १६-१९४५२). सप्तनय स्वरूप, सं., गद्य, आदि: स्यात्कार मुद्रिता; अंति: दृष्टिभिर्नमन्यते. ७०७२१. (+) कालप्रमाण व मिथ्यात्वभेद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १६४५४). १.पे. नाम. अनुयोगद्वारसूत्र-कालप्रमाणादि निरूपण, पृ. ५अ, संपूर्ण. अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. मिथ्यात्वना बहत्तरि भेद, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७२ मिथ्यात्वभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमतउ हरिहर देवता; अंति: (-), (पू.वि. ६०वां भेद "भाद्रवा सुदि सूर्य छठ" तक का वर्णन है.) ७०७२२. (+) पार्श्वजिनस्तुति व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालीया; अंति: जिणप्पहसूरिन पीडंति, गाथा-१०. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: अरिहं थुणामि पास; अंति: संथुआहुति नरपवरा, गाथा-१२. ३. पे. नाम. मंत्राधिराज स्तोत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: मंत्राधिराजाक्षरवर्ण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७०७२३. (+#) उवसग्गहर स्तोत्र भंडारगाथादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८७९, माघ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्रले. मु. नगराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११, १३४३५). १.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र-भंडार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा*,संबद्ध, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दंसणेण सामिय; अंति: अट्ठगुणाधीसरे वंदे, गाथा-२. २. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसिरि पासनाह; अंति: चंद महवंछिय पूरिय, गाथा-२. ३. पे. नाम, भक्तामर स्तोत्र-भंडार गाथा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: गंभीरता रविपूरित; अंति: गुणैः प्रयोज्यः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चंद, पुहिं., पद्य, आदि: विराजत रूप भलो प्रभु; अंति: जिनवर जगजीवन सबही को, गाथा-३. ७०७२४. अढारहजार शीलांगरथ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४११, १७-१८४३२-५८). १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. दशविध चक्रवाल सामाचारी रथ तक है.) ७०७२५. (+) संथारापोरसी सूत्र, संपूर्ण, वि. १७८६, चैत्र शुक्ल, ९, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. श्रावि. अगरबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. विद्वान नाम मिटाया हुआ है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४३०). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-१४. ७०७२६. (+) ज्ञानपंचम्यादि स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. ग. मानकुशल; पठ. ग. अर्जुन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधिसूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४३७). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. २. पे. नाम. ऋषभदेव स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति बाद में लिखी गई है. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-४. ७०७२७. खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, ११४३०). पट्टावलीखरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: श्रीगौतमः स्तान्मुदे, श्लोक-१४. ७०७२८. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पठ. मु. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १४४४४). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्ता देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. ७०७२९. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति व शत्रुजयतीर्थ स्तुति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. मंडप महादुर्ग, प्र.वि. पत्रांक खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक लिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५४११, १२४४४). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: परमार्थसिद्धिम्, श्लोक-२५, (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण से २. पे. नाम. शत्रुजयप्रमुखतीर्थ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमुख्य; अंति: संतु भद्रंकराः, श्लोक-४. ७०७३०. (+#) महावीरजिन २७ भववर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४५२). महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपे पश्चिम; अंति: विंशति भवे श्रीवीरः. ७०७३१. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल ग्रं.७०, जैदे., (२६४११.५, १२४४६). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभते पदमव्ययम्, श्लोक-९३, (वि. प्रतिलेखक ने बीच के कुछ श्लोकों के संक्षिप्त पाठ लिखे हैं.) ७०७३२. (+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक-२ की जगह पत्रांक-१ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ५४३४). For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१, सूत्र-२५ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०७३३. (+#) पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४५०). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सरे नमुक्कार; अंति: तिहां अणंत नाणीहे. ७०७३४. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२६४१०.५, १२४३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भवन केता तीन भुवनने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा __अपूर्ण., वि. टबार्थ बालावबोध की शैली में लिखा है.) ७०७३५. पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१०,१५४३०-४२). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. "सव्वं राइभोयणं जावज्जीवाए" पाठांश अपूर्ण तक है.) ७०७३६. (+) पच्चक्खाणसूत्र व साधुसाध्वी उपकरण गाथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, ४-१५४३५-५५). १.पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गे सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं बोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, आदि: सूरिजना उदय हूंती; अंति: अनेरइ थानकि बोसिरइ. २. पे. नाम. साधुसाध्वी २५ उपकरण नाम, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधुसाध्वी उपकरण, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं पत्ताबंधो पाय; अंति: (-), (पू.वि. बीसवें उपकरण अपूर्ण तक है.) ७०७३७. (+) सुरप्रिय कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५४५०). सुरप्रिय कथा-आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदि: प्रणम्य महिमागारं; अंति: लिखिता शिवाय स्तात्, श्लोक-१२५. ७०७३८. अनाथीराजानी चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४४०). अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., पद्य, वि. १४वी, आदि: सिद्ध सवेनइ करूं; अंति: विरक्त ते विरवइ मही, गाथा-६३. ७०७३९. (+) दशवैकालिकसूत्र-अध्ययन-१ से ४, संपूर्ण, वि. १९३०, कार्तिक कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. राणीपुरा, प्रले. मु. छगनलाल ऋषि (नागोरीलुकागछ); अन्य. सा. कवराजी (गुरु सा. सूरजकुंवर आर्या); गुपि. सा. सूरजकुंवर आर्या (गुरु सा. छीलाजी महासती); सा. छीलाजी महासती, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२५.५४१२, १९४५४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०७४०.(+) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, ४४५१). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: (-), (पू.वि. लोगस्ससूत्र अपूर्ण तक है.) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार थाओ माहरौ; अंति: (-). ७०७४१. (+) कुम्मापुत्त चरित्तं, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, २१४५०). कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनंतहस, प्रा., पद्य, वि. १६वी, आदि: नमिउण वद्धमाणं असुरि; अंति: जिनमाणिक० चिरंजयउ, गाथा-१९१. For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०७४२. आगमसार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १७७५६). आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंति: (-), (पू.वि. द्रव्य का स्वरूप अपूर्ण तक है.) ७०७४३. (+#) पर्यंतआराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१२,१०४३०). पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण भणइ एवं भयवं; अंति: सोमसूरि०सासयं सुक्खं, गाथा-७०. ७०७४४. (+) विजयदानसूरि व जिनत्रयाणां स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १-३४१७). १.पे. नाम. सप्तजिनस्तुतिगर्भित विजयदानसूरिस्तुति सह अवचूरि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. दानसूरि स्तुति-सप्तजिनस्तुतिगर्भित, मु. विजयदानसूरि शिष्य, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभिनंदन जनेषु; अंति: जयदान ___ गुरो प्रसन्नः, श्लोक-१. दानसूरिस्तुति-सप्तजिनस्तुतिगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य श्रीजिनेश, (२)श्रीनाभिनंदन जनेषु; अंति: अनुग्रह कृत्वा. २.पे. नाम. अजितनाथवीरजिनसाधारणजिनानां स्तुति सह अवचूरि, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. अजितमहावीरसाधारणजिन स्तुति, आ. जिनराजसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानाजित; अंति: संमददाप्तसुंसां, श्लोक-१. अजितमहावीरसाधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीमत्सार्वत्र; अंति: वदेति षष्ठसुत्यर्थः. ७०७४५. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व मुहपत्तिबोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १३४३१). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं नमो; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. २. पे. नाम. मुहपत्ति रा ५० बोल, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र अर्थ सद्दहु१; अंति: छकायरी जैणा करूं. ७०७४६. (+) यंत्रसंग्रह व मौनैकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १७८२, ज्येष्ठ अधिकमास शुक्ल, १३, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. कास्माबाजार, प्रले. ग. राजसोम; पठ. मु. रामचंद (गुरु ग. राजसोम), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १४४४६). १.पे. नाम. शांतिपुष्टिकरादि यंत्रसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण... यंत्रसंग्रह, सं., प+ग., आदि: शाणपत्रे काकपिच्छेन; अंति: त्रिधातुवेष्टनं. २. पे. नाम. मौनैकादशी कथा, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदि: अन्यदा नेमिरीशाने; अंति: हम्मीरपुर संस्थितैः, श्लोक-११८. ७०७४७. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८२९, ज्येष्ठ कृष्ण, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. भक्तिविमल (गुरु मु. दोलतविमल); गुपि.मु. दोलतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १०४३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्ण; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५५. ७०७४८. (+) स्तुति व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १५, प्रले. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४३५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन निरेसर वामा; अंति: भक्तिसूरि० बहु वित्त, गाथा-४. २. पे. नाम. वीरप्रभुरी थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: दद्यात्सौख्यम, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २५३ ३. पे. नाम. महावीरजीरी थुई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: बाला पणै डावैपाय; अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वनाथजीरी थुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., पद्य, आदि: समदमोत्तम वस्तु; अंति: सा जिनशासन देवता, श्लोक-४. ५. पे. नाम. वेहिरमानजिन तीर्थंकरारी थुई, पृ. २अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: पंचविदेह विषै विहरंत; अंति: जन मन वंछिअसारै, गाथा-४. ६. पे. नाम. आठमरी थुई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमुं; अंति: जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ७. पे. नाम. आदीश्वरजीरी थुई, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सेजमंडण आदिदेव; अंति: नंदसूरि० पाय सेवता, गाथा-४. ८. पे. नाम. पर्जुषणारी थुई, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वलि वलि हंध्यावं; अंति: कहै जिनलाभसूरिंद, गाथा-४. ९. पे. नाम. समवसरणरी थुई, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: पामै जयति सुनाणी, गाथा-४. १०.पे. नाम. इगयारसरी थुई, पृ. ३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरजिननी दीक्षा; अंति: श्रीजिनचंद्रसूरीश, गाथा-४. ११. पे. नाम. पार्श्वजिन थुई, पृ. ३-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसाय पडिमल्ल; अंति: पहु पास पयच्छउ वंचिय, गाथा-२. १२.पे. नाम. चैत्यवंदनरी थुई, पृ. ४अ, संपूर्ण. जगचिंतामणि सूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., प+ग., आदि: जगचिंतामणी जगनाह; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम गाथा लिखि है.) १३. पे. नाम. ऋषभदेवजीरी थुई, पृ. ४अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: युगादिपुरुषंद्राय; अंति: कूष्मांडी कमलेक्षणा, श्लोक-४. १४. पे. नाम. बीजतिथि स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न; अंति: देहि मे सिद्धनाणं, गाथा-४. १५. पे. नाम. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: वरमोतीहार सतारगणं; अंति: वाण सुहाण कुणेसु सया, गाथा-४. ७०७४९. (+#) औपदेशिकगाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३९). औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: अणुकंपा संगहे चेव भय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० तक लिखा है., वि. प्रत्येक पत्र का गाथाक्रम स्वतंत्र रूप से है. अधिकांश गाथाएँ धर्मदास गणि रचित उपदेशमाला की है, प्रसंगानुसार स्थानांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययनसूत्र की व कुछेक गाथाएँ अज्ञात ग्रंथ की भी संकलित है.) औपदेशिकगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दीन दुखिया जीवनई दान; अंति: (-), अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७०७५०.(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५,११४५०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २५४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०७५१. (+#) जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैये. (२६४१२.५, १२४२९). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा. पद्य वि. ११वी आदि भुवणपईवं वीरं नमिऊण, अंति: (-). " " ( पू. वि. गाथा - १९ अपूर्ण तक है.) ७०७५२. (+*) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. ३०५ ३०४(१ से ३०४) = १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५X११, १४X३५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शतक - १८, उद्देश-३ अपूर्ण "नेरईयाणं भंते पाठ से "ठेण भंते एवं कुच्चई" पाठ तक है.) ७०७५३. पाक्षिक स्तुति व ज्ञानपंचमी स्तुति, अपूर्ण, वि. १७१९ कार्तिक शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. २१ (१) १, कुल पे. २, प्र. मु. विमलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक न लिखे होने के कारण अनुमानित पत्रांक लिया गया है. जैदे., (२५.५x११, १२X४०). . १. पे नाम, पाक्षिक स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि (-); अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४ (पू. वि. गाथा ३ अपूर्ण से है.) २. पे नाम ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. २अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप, अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. , ७०७५४. पार्श्वजिनस्तवन व मुसलमानी महीनों के नाम, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२६.५x१२, १०X३९). १. पे नाम, पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, पार्श्वजिन स्तवन- मंत्राम्नायगर्भित. ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु. सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वप्रभुः अंतिः सौभाग्य सुख कल्परे, गाथा-७. २. पे नाम, मुसलमानी महीनों के नाम, पृ. १आ, संपूर्ण उ., गद्य, आदि: रजब१ साबांन२ रमजान३; अंति: झुमादसानी १२. ७०७५५. (+) भयहराभिधपार्श्वनाथ स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पंचपाठ-संशोधित, जैदे., (२६११, ९३८). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण, अंति: परमपयत्थं फुडं पासं, गाथा- २३, संपूर्ण. नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आदौ कविर्मंगलाभिधान०, अंति: (-), (पूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम गाथा का टबार्य नहीं लिखा है.) ७०७५६. जैनश्लोकसंग्रह व अंगस्फुरण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५X११, ३३X१८). १. पे. नाम. जैन श्लोकसंग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: भवबीजांकुरजननां अंतिः शुद्धो गंगाविनाप्यसौ श्लोक ६. २. पे. नाम. अंगस्फुरण विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., सं., प+ग, आदि: शिरसः स्पंदने राज्य; अंति: स्त्री श्रेष्ठ. ७०७५७. उपासकदशांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६×११.५, ७x४१). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंति: (-) ( पू. वि. "जंबूणामं अणगारे जयसट्टे" पाठ तक है.) उपासक दशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु. गद्य, आदि: ते कालने विषे ते अंति: (-). ७०७५८. (+) दंडक प्रकरण सह स्वोपज्ञ अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, जैवे. (२५.५४११, १३४४१) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदि नमिठं चउवीस जिणे अंति (-) (पू. वि. गाथा ४ तक है.) " ', For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २५५ दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: श्रीवामेयं महिमामयं; अंति: (-)... ७०७५९. इरियावहीसाक्षिपाठ व स्त्रीपूजा निषेधाधिकार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १३४३०). १. पे. नाम. सामायिकसूत्रे इरियावही साक्षिपाठ, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: करेमि भंते पेला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "कथं आचार्य रचितं" पाठ तक लिखा है.) २.पे. नाम. स्त्रीपूजानिषेधाधिकार खरतरमते, पृ. १आ, संपूर्ण. स्त्रीजिनबिंब पूजानिषेध ३० बोल-खरतरमते, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: देहरे स्त्री नाचे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बोल-३० अपूर्ण तक लिखा है.) ७०७६१. (+) धनेजीअभिग्रहलीनो सुपदार्थव प्रास्ताविकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५८, कार्तिक शुक्ल, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. सा. जसु (गुरु सा. अमरा), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ६x४३). १. पे. नाम. धन्नाअणगार अभिग्रहग्रहण सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-हिस्सा धन्नाअणगार अभिग्रहग्रहण, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: अप्पाणं भावे माणस्स; अंति: झावनावखंति. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-हिस्सा धन्नाअणगार अभिग्रहग्रहण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० आपणी आत्मा प्रतइं; अंति: अयोग आहार न वांछइ. २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: स्वर्णस्थाले क्षिपति; अंति: फलं प्रीतिकरं नराणां, श्लोक-८. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्वर्णमय जे स्थाल; अंति: प्रीतिकारी वचन बोलइ. ७०७६२. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ५४४१). नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ के बालावबोध अपूर्ण से १३ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ७०७६३. (+) गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३१). गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. ७०७६४. (+) पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १७X४६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सुरे उग्गए अब्भत्त; अंति: नाम लेई नई पारिइं. ७०७६५. गोपीचंदरी राखी, संपूर्ण, वि. १९९६, कार्तिक शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सा. राजकुंवर महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, ११४३१). गोपीचंद की राखी, मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १९६६, आदि: समगत साची बैन भांणजी; अंति: जडाव० करता मंगलमाल, गाथा-९. ७०७६६. वर्द्धमानस्तुति, औषध व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. पं. माणिक्यविजय; पठ. श्रावि. सुजाण, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १२४४१). १.पे. नाम. खांसी व क्षय की औषध, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-).. २. पे. नाम. बारह राशि कालनक्षत्रादि कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: मेष वृष मिथुन कर्क; अंति: भाद्रवा आस्विन. ३. पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: नमदमर शिरोरुह; अंति: गजारावसन्नासि, श्लोक-४. ७०७६७. मरुदेवीमाता सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११, १४४३४). For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३७, आदि: नगर वनीता भली विराजे; अंति: पामे लील विलासो जी, गाथा-१४. ७०७६८. (#) बोल व थोकड़ा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४७, पौष शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. केकींद, प्रले. श्रावि. लीछमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२४.५४११, २३४५१). १. पे. नाम. सासउसासरो थोकडो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्वासोश्वास बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: मध्ये मगधदेस राजग्री; अंति: मठेरा सुख भोगवे छै. २. पे. नाम. रूपीअरूपीरो थोकडो, पृ. १आ, संपूर्ण. रूपीअरूपी बोल, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: १८ सूठार पाप८ कर्म१; अंति: पुर्काकार५ प्रकर्म. ३. पे. नाम. साधुना अतिचार, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुअतिचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: १४ ज्ञानरा ५समगतरा; अंति: एस4 मिली १२१. ४. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. संग्रामदास, रा., पद्य, आदि: मोटो हुं तो पापीयो; अंति: काम मच्छरको करडो, गाथा-१. ७०७६९. (+) षट्कर्मोपरि पार्श्वनाथाष्टक व सरस्वती अष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १४४४३). १.पे. नाम. षट्कर्मोपरि पार्श्वनाथाष्टक, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन अष्टक-महामंत्रगर्भित, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक-८, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाग्देवि; अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक-९. ७०७७०. (+) वीतराग स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. पं. लक्ष्मीरंग, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२.५, ११४३४). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: नातः परं ब्रुवे, प्रकाश-२०, (पू.वि. प्रकाश-१९, श्लोक-७ अपूर्ण से है) ७०७७१. (4) पुन्यकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, ५४२७). पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: संपुन्नं इंदियत्तं; अंति: लहंति ते सासयं सुहं, गाथा-१०. पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सं० संपूर्ण इं० इंद; अंति: तपणाने ते सीध मनुष्य. ७०७७२. सातकुव्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १८४४७). ७ व्यसन सज्झाय, मु. साधुजी, पुहिं., पद्य, आदिः (१)श्रीमहावीरजी का, (२)मति करो मति करो मति; अंति: साधुजी०करोजी प्रमाद, गाथा-१७. ७०७७३. होलिकापर्व ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. पेन्सिल से संशोधित है., जैदे., (२४.५४११.५, २३४५८). होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम पुर्ष राजा; अंति: विनेचंद कहे करजोरी, ढाल-४. ७०७७४. (+) रात्रिसंथारा गाथा व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रावण शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, ले.स्थल. समायलखान, प्रले. ग. सुखानंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४१०.५, ९४३३). १. पे. नाम. राईसंथारासूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: एवमहं आलोईयंति, गाथा-२४. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: परमिट्ठमंतसारं सार; अंति: देउ मुहपुन्नं, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: विदामटोपराद्राख आंबा; अंति: मतं बालमाश्रयः, श्लोक-४. For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २५७ ४. पे. नाम. नेमिनाथ नमस्कार सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमराजिमती ९ भव वर्णन श्लोक, सं., पद्य, आदि: लक्ष्म्यैस्ताद्धन; अंति: नेमिस्तु९ राजीमती९, श्लोक-१. नेमराजिमती ९भव वर्णन श्लोक-अर्थ, सं., गद्य, आदि: श्रीनेमिजीव राजीमती१; अंति: भवः नेमिराजीमती जातः. ७०७७५. (+) वीरत्थुत्तीनामज्झयण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. मोतीचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ-पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ८४४८). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: हिव आगमिसंति तिबेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नरकविभत्ति सांभली; अंति: इम हुं बे० कहुं ७०७७६. (+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १७२४, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. शिववर्द्धन (गुरु ग. लक्ष्मीवल्लभ, खरतरगच्छ); गुपि. ग. लक्ष्मीवल्लभ; गुभा. ग. सोमहर्ष (गुरु उपा. लक्ष्मीकीर्ति पाठक, खरतरगच्छ); गुपि. उपा. लक्ष्मीकीर्ति पाठक (खरतरगच्छ); पठ.पं. धर्मसेन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५,१५४६०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७०७७७. (+) सूरिमंत्रपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४२७). सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो जिणाणं; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., तृतीयपीठ पूजा अपूर्ण तक है.) ७०७७८. (+) होलीका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १४४४२). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे; अंति: क्षमाकल्याण० युग्मम्. ७०७८०. (+) प्रमाणनयसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४११, १३४५२). प्रमाणनयसूत्र संग्रह, सं., गद्य, आदि: प्रमाणं स्वपरव्यवसाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-५५ तक क्रमबद्ध है. पुनः सूत्र-१ से ६ तक लिखकर अंत में आंशिक टीका लिखी है.) ७०७८१. (+#) गोचरीदोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, अन्य. मु. पुजाजी स्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११.५, ५४४८). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु१ देसिय२; अंति: पायरासिय कप्पे, गाथा-५. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहा० आधाकर्मी आहार; अंति: घणीवार राख्या करे ते. ७०७८२.(+) इकवीस ठाणुं, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(२ से ५)=२, पठ. मु. गुणचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४१२, ९४३४). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा १ नयरी २; अंति: असेस साहारणा भणिया, गाथा-६६, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से ५६ अपूर्ण तक नहीं है.) ७०७८३. (+) चर्चानी ढाल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. रामचंद्र; पठ. सा. मगना आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४५). आचारांगसूत्र-साधुआचार सज्झाय, संबद्ध, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आचारांगसूत्र मध्ये; अंति: रामचंद्र० मे ताणी रे, गाथा-२२. ७०७८४. कल्पसूत्र- कल्पकिरणावलीटीका-निर्वाणकल्याणक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १५४४७). कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०७८५. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ११४४२). For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३४. ७०७८६. अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४१२, ९-१२४३२). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण तक है.) ७०७८७. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(२)=३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६x४६). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, ___ गाथा-६३, (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक नहीं है.) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सावज्जजोग कहता पाप; अंति: मूक्तिना सुख देणहारी. ७०७८८. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२४४११.५, १७X४४). १. पे. नाम. अरणिकमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगरथी चालीयोजी; अंति: रतनचंदजी० ए अधिकार, गाथा-१४. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, वि. १९२५, आदि: सिरिमिंदर दरसण; अंति: काई नाव भवाल चोमास, गाथा-८. ३. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, वि. १९४४, आदि: पोलासपुर नगरी का; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०७८९. (+) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४६.५, १३४३६). प्रत्याख्यानसूत्र, सबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अति: आगारेणं वोसिरामि. ७०७९०.(+) कल्याणमंदिर स्तोत्र का पद्यानुवाद, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम; अंति: वणारसी० समकित सुद्धि, गाथा-४४. . ७०७९१. (#) चतुर्विंशतिदंडकसूत्र व साधुआचार गाथा, संपूर्ण, वि. १७२९, वैशाख कृष्ण, ४, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. पंन्या. सुमतिविजय (गुरु पं.शुभविजय); गुपि.पं. शुभविजय (गुरु मु. हर्षविजय पंडित), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२६४११, ११४४२-४६). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिदंडकसूत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. परिमाण गाथा-४३ है. बालावबोध-३८ गाथा तक लिखा है. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: विन्नत्ति अप्पहिया, गाथा-४३, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्करी चउवीस तीर्थं; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बालावबोध-३८ गाथा तक लिखा है.) २. पे. नाम. साधुआचार गाथासंग्रह सह टीका, पृ. ३अ, संपूर्ण. साधुआचार गाथासंग्रह, प्रा., पद्य, आदि: हणतं ताणु जाणिज्जा; अंति: निव्वाणंपी उणति ते, गाथा-६. साधुआचार गाथासंग्रह-अर्थ, सं., गद्य, आदि: क्षुद्राणां तथा महता; अंति: ततोतुपालयमपि न वदेत्. ७०७९२. (2) श्रीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, १०४२३-२६). सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमंदरजी सुणजौ; अंति: लालचंद० अरदास जी, गाथा-७. ७०७९३. वडी शांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३२). For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २५९ बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: जैनं जयति शासनम्. ७०७९४. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, ५४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहता स्वर्ग; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ अपूर्ण तक का टबार्थ लिखा है.) ७०७९५. (+) रोहिणीतपफल कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष __पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४४२). रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: जं किं पिचं छइमाणे; अंति: (-), (पू.वि. विद्याधरपुत्री कथा तक है.) ७०७९७. (+) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि व षड्दर्शनसिद्धांत श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ६४४२). १.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह अवचूरि, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि,प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जिणदसणेति० जिनदर्शन; अंति: एवावचूरिर्विलोक्या. २. पे. नाम. षड्दर्शनसिद्धांत श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चार्वाकोध्यक्षमेकं; अंति: स्पष्टतः स्पष्टयश्च, श्लोक-१. ७०७९८. (4) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९०५, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पलिकानगर, पठ. श्रावि. चंपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर मिट गए हैं, दे., (२४.५४११, ११४३०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोवीस, गाथा-४९. ७०७९९. नमस्कारमहामंत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ९४२९-३१). नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहताण; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पद नहीं है.) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अति: (-). ७०८००. (+) कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११,१४४४१). कालिकाचार्य कथा, आ. जिनदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: मोहांधकारप्राग्भार; अंति: जिनदेवमुनीश्वरः, श्लोक-९७. ७०८०१. (+#) दशवैकालिक भास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३०-३६). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. राम, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन सिद्ध आचारिज; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ की प्रारंभिक गाथाएँ हैं.) ७०८०२. (#) नेमनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८-२१४५२). नेमिजिन चरित्र-नवभव वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: नवभव श्रीनेमनाथना; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-४ गाथा-५ तक एवं ९मा भव अपूर्ण तक लिखा है.) ७०८०३. भगवतीसूत्रगतकांक्षामोहनीयकर्मवेदन व पंचसंयतगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५-२५.५४१०.५, ५४३८). १. पे. नाम. श्रमणनिग्रंथ कांक्षामोहनीयकर्मवेदन प्रश्नोत्तर सह बालावबोध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१ उद्देश-३ श्रमणनिग्रंथ कांक्षामोहनीयकर्मवेदन प्रश्नोत्तर, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: अत्थि णं भंते समणा; अंति: कंखामोह०कम्मं वेदेति. For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६० www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक१ उद्देश३ श्रमणनिर्ग्रथ कांक्षामोहनीयकर्मवेदन प्रश्नोत्तर का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अ० छइणं० वाक्यालंकार, अंति: मोहनीय कर्म वेद . २. पे, नाम, संयतस्वरूप आलापक सह टवार्थ, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक २५ उद्देश ७ संयतस्वरूप गाथापंचक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: सामाइयम्मि उ कए चाओ, अंति: अहक्खाओ संजउ स खलु, गाथा - ५. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक२५ उद्देश७ संयतस्वरूप गाथापंचक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हवि सामायिक संयतादिक, अंतिः संयतनिश्चये जाणिवउ. ७०८०४. तेतलिपुत्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. करोडीमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २५x१२, १५X४२-४५). तेलीपुत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: हिव ते राजा कनकरथ; अंति: सांभलज्यो नरनारो रे, ढाल - ३, गाथा- ३२. ७०८०५. खंधकमुनिदाल व १४ स्वप्न स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी जीर्ण, पृ. २, कुल पे. २, जैदे. (२५x११.५, २१X५६ ). १. पे. नाम. खंधकमुनि ढाल, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: अरिहंतसिद्ध आचार्य; अंति: करज्यो हु करमन, ढाल ४. २. पे. नाम. १४ स्वप्न स्तवन, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. त्रिसलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशला हरष धरे; अंति: ठवीया अवतरियाजी, गाथा- १९. ७०८०६. (+) पद्मावती स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ 1 का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५४१२, १३४३७-४०). पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्रीर्वाणचक्र, अंति: (-), (पू.वि. गाथा २५ अपूर्ण तक है.) ७०८०७. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र शंखेश्वर व चिंतामणि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, पठ. मु. मेघा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४११, ११-१४४२५-३३). "" १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसकल सार सुरतरु; अंति: मेघराज० त्रिभुवन तिलो, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वचिंतामणी स्तोत्र, पृ. १आ- २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. ७०८०८. (+) पच्चक्खाणसूत्र सह टवार्थ नवकारपोरसी यंत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, ५-११x२२-४७). १. पे. नाम. दसपच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ २अ संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि उग्गएसूरे नवकारसहियं अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरह, प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सूरजना उदय हुती; अंति: अने २ थानक वोसर. २. पे. नाम. नवकार पोरसी यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण आगार यंत्र, प्रा., मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. नवकार पोरसी गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नवकार १ पोरिसीए २; अंति: छप्पाणे चरिम चत्तारि ७०८०९. (#) विचार षट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रावण कृष्ण, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. चारित्रसागर (गुरु पं. जससागर); गुपि. पं. जससागर, पठ. मु. प्रेमचंद (गुरु पं. चारित्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैसे. (२६४१२, १३x४०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य वि. १५७९, आदि: नमिठं चउवीस जिणे, अंतिः विन्नत्ति अप्पहिया, गावा- ४४. For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २६१ ७०८१०.(+) गुरुवंदनभाष्य व क्षायिकशुद्धाशुद्ध विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४११.५, १५४३५-४०). १.पे. नाम. गुरुवंदनभाष्य, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७०७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ६, ले.स्थल. जेसलमेर. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: गुरुवंदनणमह तिविहं; अंति: अणभिनिवेसीयमच्छरिणो, गाथा-३७. २. पे. नाम. क्षायिकशुद्धाशुद्धि विचार सह बालावबोध, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. नवपद प्रकरण-बृहद्वत्ति-संबद्ध क्षायिकशुद्धाशुद्ध विचार, सं., गद्य, आदि: श्रायिकस्य शुद्धा; अंति: सादिसपर्यवसाना चेति, (वि. नवपदप्रकरण बृहदवृत्ति (गाथा-१९ की वृत्ति) से उद्धृत) नवपद प्रकरण-बृहद्वत्ति-संबद्ध क्षायिकशुद्धाशुद्ध विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां क्षायिक शुद्धा; अंति: गया पछी वली आवइ. ७०८११. अक्षयतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १३४४१-४४). अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा.,रा.,सं., गद्य, आदि: अक्षतृतीयायां श्रेया; अंति: त्वेन प्रवर्तितं. ७०८१२. नेमीराजिमती चोढालियो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. श्राव. लीछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, ४४३३). रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५४, आदि: अरिहंत सिद्धने आयरिय; अंति: एकमना सारो जोय हो, ढाल-५. ७०८१३. पार्श्वजिन स्तुति, पंचपरमेष्ठिजिन स्तुति व सीमंधरजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२५.५४१२.५, ७४२०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का हिस्सा चउक्कसायसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पयउ पासपयत्थौ वंछिय, गाथा-२. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तव, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-स्तंभनतीर्थ, सं., पद्य, आदि: श्रीसेढीतटिनीतटे; अंति: नाथो शिवं श्रिये, श्लोक-२. ४. पे. नाम. गुरुवंदना- अंचलगच्छ, पृ. २अ, संपूर्ण. जयसिहसूरि स्तुति- अंचलगच्छ, प्रा., प+ग., आदि: अढाई जेसु दीवसमद्देस; अंति: अंचल गणनायक वंदे. ५. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण.. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पूर्व विदेह पुकलावती; अंति: जिनहरख घणे ससनेह, गाथा-५. ७०८१४. (+) देवसिराइप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो वंदि; अंति: पढीजै इत्यादि कहीजै. ७०८१५. (+#) नरक में उद्योत, ६ आराअधिकारादि विविधविचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २७४८२-८५). विविधविचार संग्रह*, गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरनइं जन्म१; अंति: पिंड हुइ ए वृद्ध वचन. ७०८१६. पच्चक्खाणसूत्र व प्रास्ताविकश्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ६x४७-५०). १.पे. नाम. पच्चक्खाणविधि, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उगइ थकइ; अंति: एतला थोकरा लीउरछाईं. For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. प्रस्ताविक श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दानं सुपात्रे विशुद; अंति: नरभवोरण्ये तथा मालती, गाथा-३, (वि. १८३९, फाल्गुन कृष्ण, १०) सुभाषित श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल क० समस्त कुसल; अंति: वृष्प ऊगइ निर्फल, (वि. १८३९, फाल्गुन कृष्ण, ११, गुरुवार) ७०८१७. (4) नवग्रहशांति स्तोत्र व पार्श्वजिन मंत्र मालाजाप, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रावण कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. बिलाडानगर, प्रले.ऋ. अमोलखचंद्रयति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ९४२६-२९). १. पे. नाम. नवग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगत्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: शांतिविधिं श्रुतम्, श्लोक-११. २.पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र मालाजाप, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वनाथ मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवते पार्श्व; अंति:रीय २ ॐह्रींश्री नमः. ७०८१८. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मार्गशीर्ष शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वालुचर, प्रले. पं. सदासुख, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४३७). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: सर्वमांगलमागल्यं. ७०८१९. (+) सातअवगाहणा बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, २३४४३-५०). जीवाभिगमसूत्र-संबद्ध ७ अवगाहना बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: अथ हवे रत्नप्रभा; अंति: जाणवी सात अवगाहणा, (वि. प्रतिपत्ति-३ उद्देशक-१ से उद्धृत.) ७०८२०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थव बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८-६६(१ से ५३,५५ से ६७)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११.५, ८४४८-५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. अध्ययन-३० की गाथा-९ अपूर्ण से ३४ अपूर्ण तक व अध्ययन-३६ की गाथा-१४४ अपूर्ण से १८३ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. १० संख्यक १६ पद तप यंत्र हासियों में दिया गया है.) ७०८२१. (+) तेतीस थोकड़ा, उत्तराध्ययनसूत्र के ३६अध्ययन नाम व भगवतीसूत्र बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २०४३६-५४). १.पे. नाम. तेतीस बोलसंग्रह, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: एक प्रकारे असंजम; अंति: आसण ऊँचो करे तो. २. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन नाम, पृ. ४अ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: अठे उत्तराध्ययनजीरा; अंति: जीवाविभंतीना के ३६. ३. पे. नाम. आऊखोबंध थोकड़ा, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: चालतो कह्यो छे गोतम; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक ___ द्वारा अपूर्ण., सातमी नारकी का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७०८२२. (+#) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, आदिजिन चैत्यवंदन व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १८४५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६-१९x४५). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वंदे देवाधिदेवं तं; अंति: कल्याण वितनोतु मे. २. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० www.kobatirth.org सं., पद्य, आदि: सुवर्णवर्ण गजराज, अंतिः कल्पतेव मूर्ति, श्लोक-४. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह में, सं., पद्य, आदि: (-) अंति: (-), श्लोक-३. *, , ७०८२३. (+०) लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८९६, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल. बिकानेर, प्रले. मु. हिंदुमल ऋषि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४१०.५, ११४३०-३३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ० " मु. हीरालाल, पुर्हि, पद्म, आदि: मुजी की पुजी रहत धरी अंति हीरालाल अपनी तीरी रे, गाथा- ७. ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु, अंति: रइया हरिभद्रसूरीहिं, गाथा-२९. ७०८२४. (+#) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, प्रले. ग. वीरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. त्रिपाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११, ९x४५-५०). " लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा. पद्य वि. २४वी, आदि जिणदंसण विणा जं लोअ; अंतिः यह जहा मह न इह भिसे, गाथा - ३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि जिण जिण दंसण कहतां, अंतिः कक्ष क्षुलक खडुक थाइ ७०८२५. औपदेशिक सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., ( २४.५x११.५, १६x४४). १. पे. नाम. श्रावकाचार स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावकाचार पद, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: मारि बनणा जेलो मेतो, अंति: हीरालाल० श्रावका साची, गाथा-५. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, पुहिं, पद्य, आदि: अरे मुजी अरे मुजी अंति हीरालाल० बाहर उठावेगा, गाथा- ७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय- मोहमाया परिहार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. शांतिजिन पद, मु. हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: अचला दे मइया शांति, अंति: हीरालाल० जाप जपइया रे, गाथा - ५. ५. पे. नाम, कृष्ण पद, पृ. ९आ, संपूर्ण. कृष्णभक्ति पद, हीरालाल, पुहिं., पद्य, आदि: बलदेवजी का भइया काहा; अंति: हीरालाल० बलभ जणेइया, गाथा - ५. ७०८२६. (*) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६११, १६x४६-५२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भगतामर प्रणति मोलि, अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७०८२७. औपदेशिक सज्झाय व नवकारमंत्र गीत, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५X१२, ७-११X३७-४१). १. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय - आयुष्य, मा.गु., पद्य, आदि: आऊखो टूटो ने सांधो; अंति: जयजयकार रे, गाथा-८. २. पे. नाम. नवकारमंत्र गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. २६३ रा., पद्य, आदि: जग में नवकार, अंति: दोनी छोड़ाइजु नवकार, गाथा-४. ७०८२८. महावीर स्तवन व महावीरउपसर्ग सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५X११.५, २५X४३). १. पे. नाम, महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: दसमा सुरग थकी चल्या; अंति: जो अशुभ करम करे हर, गाथा - २१. २. पे. नाम, महावीर उपसर्ग सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, महावीरजिन उपसर्ग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थकुल उपना, अंति: धन धन शासन नाथनी, गाथा-२६. ७०८२९. (७) गौतमपृच्छा सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x११. ६५३९). गौतमपृच्छा, प्रा. पद्म, आदि: नमिऊण तित्थनाहं अंति: (-) प्रश्न- ४८, गाथा ६४ (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १९ तक लिखा है.) गौतमपृच्छा - टवार्थ *, मा.गु. गद्य, आदि: नमस्कार करीन, अंति: (-), अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. , For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०८३०. (#) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४३५-४०). मौनएकादशी कथा, सं., गद्य, आदि: जंबूद्वीपवर विदेहे; अंति: चतुर्विध संघ परीमाणं. ७०८३१. (+#) श@जय कल्प, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९-१२४३०-४०). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुअधम्मकित्तिअंतं; अंति: सित्तुंजए सिद्धं, गाथा-४०. ७०८३२. औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सोजत, प्रले. श्रावि. लछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १५४४६). उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., पद्य, वि. १८७८, आदि: निठ निठ नर भो लह्यौ; अंति: रतनचंद दियो एम उपदेश, गाथा-२७. ७०८३३. सकलार्हत् स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४३२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., श्लोक ३३ अपूर्ण तक है.) ७०८३४. तिजयपाहुत्त व पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११४३१-३५). १.पे. नाम. तिजयपाहुत्त स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. तिजयपहत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तयासं अट्ठम; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: तेस प्रलभंतसस्तम्, गाथा-१०. ७०८३५. (+#) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४-१८४४१-४५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ७०८३६. (#) मौनएकादशी गणगुं, संपूर्ण, वि. १६९६, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. नयविजय (गुरु उपा. लाभविजय गणि', तपागच्छ); गुपि. उपा. लाभविजय गणि* (गुरु उपा. कल्याणविजय गणि', तपागच्छ); अन्य श्रावि. फूलागुणन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३६). __ मौनएकादशीपर्व गणj, सं., को., आदि: प्रथम भरत अतीत २४; अंति: श्रीआरणनाथाय नमः. ७०८३७. (+#) नवतत्त्व प्रकरण व साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १८७३, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. रतनचंद ऋषि (गुरु मु. विनयचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३३-३६). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: १३ क्क १४ णिक्काय, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: रिसह जिण पमुह चउवीस; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण तक ७०८३८. (+) गुणानुराग कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पठ. सा. माणेकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ८४३७-४०). गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., पद्य, आदि: सयल कल्लाणनिलयं नमिऊ; अंति: सोपावइ सव्वनमणिज्जं. गाथा-२८. गुणानुराग कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: सकलकल्याणनिलयं नत्वा; अंति: सर्व नमनीयम्. For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २६५ ७०८३९. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्रले. मु. जेठमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४१२-१२.५, १२४३२-३६). १.पे. नाम. जिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, म. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: वंदे धर्मजिनं सदा; अंति: संग्रंथितः सौख्यदः, श्लोक-४. २. पे. नाम. महावीर अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन अष्टक, मु. नेतृसिंह कवि, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्सुधीर; अंति: प्रजज्ञे मम जन्मसार, श्लोक-९. ३. पे. नाम. शात्यष्टक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शांतिजिन अष्टक, सं., पद्य, आदि: भक्त्या क्रमाब्ज; अंति: देहि देवेशसमीहित मे, श्लोक-८. ४. पे. नाम. नवग्रहगर्भित पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडति, गाथा-१०. ७०८४०. (+#) रत्नाकरपच्चीशी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७४३६-३९). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: कल्याण लक्ष्मी; अंति: निलय कल्याण करवा छउ. ७०८४१. (+#) गौतमकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३६-३९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थ; अंति: सेवीनइ सर्वसुख लहइ. ७०८४२. (+#) वज्रपंजर स्तोत्र व जिनपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२८, चैत्र शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, ११४४२). १.पे. नाम. पंचपरमेष्टी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-७. २.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२४. ७०८४३. (#) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३८). दरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपंको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ७०८४४. (#) उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९६४, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. रेवत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १६x६१-६९). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइऊण देवलोगाओ उवयन्न; अंति: जहा से नमी रासरिसि, गाथा-६२, (वि. गाथा-६२ अपूर्ण है शेष भाग पर कागज चिपकाए हुए हैं.) ७०८४५. थेरावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १८४३७-४०). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जग जग जोणी जाणी; अंति: केवलनाणंच पंचमयं, गाथा-५१. ७०८४६. सोकरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१२, १८४४३). औपदेशिक सज्झाय-शोक परिहार, मु. गुणसागर, रा., पद्य, आदि: सोकीतणौ दुख अती घणौ; अंति: गुणसागर० मीलसेसे रे, गाथा-२६. For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०८४७. सरस्वतीदेवी छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १४४४१-४५). सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मन आणी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६ अपूर्ण तक है.) ७०८४८. (+) प्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १३४४२). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-श्वेतांबर*, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., आदि: जयो सामी २ रिसह; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आयरउवज्झाए सूत्र गाथा-३ तक है.) ७०८४९. (#) मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १८४४१-४५). ___ मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: सुस्थिनो जज्ञिरे. ७०८५०. (+) दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४३८-४२). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: याहिण८ वास९ उसग्गो१०. ७०८५१. अनेकार्थ संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३-४२(१ से ४२)=१, प्रले. मु. लक्ष्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कुल ग्रं. १८२८,प्र.ले.श्लो. (४२) अदृष्ट दोषा मतिविभ्रमाश्च, जैदे., (२५.५४१०.५, १०४४५-४९). अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थसंग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: खेदामंत्रणयोरपि, (पू.वि. कांड-७, गाथा-५१ से है.) । ७०८५२. उपदेशमाला चयनितविषयवद्धप्रतीकात्मक गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक लिखित-"गच्छवास", जैदे., (२६४११.५, २१४५७). उपदेशमाला-चयनित विषयानुसार प्रतीकात्मक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिण०; अंति: रूवेण जुव्वणेण य. ७०८५३. (+) सीमंधरजिन स्तवन व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०७, ज्येष्ठ कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. वडलु, प्रले. मनीराम; पठ. रामुजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५.५४११.५, २२४५०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: जिनजी हो दिनदयाल; अंति: रत्नचंदजी गुण गावे, गाथा-१०. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-धर्म और देवगति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-धर्मफल, मा.गु., पद्य, आदि: दया रणशींगो वाजीओ रे; अंति: बाडी खूलीय गुलाब रे, गाथा-२२. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-स्त्रीत्याग विषये, मु. शंभुनाथ, मा.गु., पद्य, आदि: तिरिया को संग निवारो; अंति: सिंभुनाथ० कारज सारो, गाथा-३. ७०८५४. (+) औपदेशिक सज्झाय, अरणिकश्रावक सज्झाय व जीवकाया सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १५४३५-४२). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मु. सुखानंद, पुहि., पद्य, आदि: तेर सीर पर आया केस; अंति: सुखानंद० पद भज रे, गाथा-५. २. पे. नाम. श्रावकनो तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: चंपानगरथी चालीयोजी; अंति: रतनचंद० ए अहिकार, गाथा-१४. ३.पे. नाम. जीव काया संवाद सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: कायानी जीव सेती अर्ज; अंति: म्हेलमै मेरा देसा, गाथा-८. ७०८५५. (+) भयहर स्तोत्रं, संपूर्ण, वि. १८वी, वैशाख शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. नागपुर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४३३-३६). For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा. पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासं अड्डु अंतिः निब्भंत निच्चमच्चेह, गाथा- १४. ७०८५६. (+) लघुक्षेत्रसमास सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जै., (२५X११.५, १७X३८-४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपर्याय अंतिः (-), (पू. वि. गाथा- २ तक है) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अर्हमिति ब्रह्मपदं; अंति: (-). ७०८५८. देवकीपुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-२ (१ से २) -१, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५X११.५, १७x४२). देवकीपुत्र सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: (-): अंति: (-) (पू.वि. छः मुनियों के गोचरी जाने की पूर्व तैयारी वर्णन से गजसुकुमाल जन्मोत्सव वर्णन तक है.) १. पे नाम. अनुयोगद्वारसूत्र आवश्यकाधिकार व भावसामायिक गाथा, पृ. १अ संपूर्ण अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग, आदि: (-); अंति: (-). २. पे, नाम, ३३ सागर, दान, वैक्रियदेहस्थित्यादि आगमिक विचार संग्रह पृ. १आ, संपूर्ण ७०८५९. (#) अनुयोगद्वारसूत्र - आवश्यकाधिकार, भावसामायिकगाथा व आगमिक विचारसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, २०७०-७४). " कल्पसूत्र - बालावबोध #, मा.गु. रा. गद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, , २६७ विविधविचार संग्रह *, गु., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: एगिंदिय पंचिंदिय०; अंति: उक्तं मूलावश्यके. ७०८६०. (*) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४-६३(१ से ६३ ) - १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें जै. (२५X११, ७-१०X३६-४०). , 1 " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. वाचना-४ अपूर्ण से वाचना-५ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र - टवार्ध *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०८६१. महाप्रभाव स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९०२ ज्येष्ठ शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. १, दे. (२६११.५, ११x२७-३०). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपवासय अट्ट, अंति: निच्चेमच्चेह, गाथा- १४. ७०८६२. (#) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४४४२-४५). कल्पसूत्र - वालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य वि. १६८०, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक गुरूस्मरणपाठ "गाम गामे नगर नगरे" पाठांश तक है) ७०८६३. (*) सीमंधरजिन विनती, स्तवन व पच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे २ प्रले. सा. रतनकुंवर (गुरु सा. जडाव), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x१२, २०x४०) १. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६१, आदि: तिरभवन साहिब अरज; अंति: अगरचंद० वचन विलास, गाथा-२०. २. पे. नाम. दस पच्चक्खाण, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: दशविध प्रह ऊठी, अंति: तुमे नीत कल्यांण, गाथा-१३. ७०८६४. उपदेशमाला गाथा १३४, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२६११.५, १८x४५-५०% उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७०८६५. (#) चिंतामणिपार्श्वनाथमंत्रगर्भित स्तोत्रं संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. पं. भीमजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैदे. (२५४११.५, १०४३५). "" पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजं बोधिबीजं ददातु श्लोक-११. ७०८६६. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधिसूच चिह्न-संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. जैदे. (२५.५४११, ९४२५-३२). "" Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-१ गाथा-८ अपूर्ण तक है.) ७०८६७. २० विहरमानजिन व २४ जिनलांछन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, लिख. सा. फुल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४११.५, १२४२८). १. पे. नाम. विश विहरमान लांछनानि, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन लंछन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: सीमंधर वृषभ लांछन१; अंति: स्वस्तिक लांछन २०. २. पे. नाम. चउवीसजिन लांछिनानि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन लंछन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ वृषभ लांछन१; अंति: सिंह लांछन२४. ७०८६८. नवपदपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४०). नवपदपूजा विधि, सं., पद्य, आदि: अहँत ईशाः सकलाश्च; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दर्शनपदपूजा अपूर्ण तक है.) ७०८६९. (+2) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२६४१२,१९४५८). पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीमात मयाकरी आपो; अंति: भावविजय० जैजैकरण, गाथा-५६. ७०८७०. (+) जीवापेतीसीव कस्तूरचंदजीगीत, संपूर्ण, वि. १९६१, कार्तिक शुक्ल, ९, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कुचेरा, प्रले. मु. मूलचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२५.५४१२, १८४६५). १.पे. नाम. जीवापेतीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: मोह मिथ्यातरी नीदमै; अंति: श्रीजेमलजी कहे एम, गाथा-३५. २. पे. नाम. कस्तूरचंदजी गुरु गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: गुणगातां गुरू तणा; अंति: मूल० गुरांने पास हो, गाथा-१३. ७०८७१. (+) रीखबदेवजीरो छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२४४१२, १५४४०). ___ आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीरीषब जिनेश्वर जग; अंति: सुणी श्रीकीसन मुनी. ७०८७२. (+#) ५० पूछा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५४११.५, २२४४९). कर्मोदयफल सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: बेठी बारा परषदा; अंति: (अपठनीय), गाथा-५१. ७०८७३. (+) शांतिजिन स्तवन व १३ काठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. नागोरनगर, प्रले.मु. सबलदास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., जैदे., (२४.५४११, २१४५१). १. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. ऋ. सबलदास, मा.गु., पद्य, वि. १८६३, आदि: श्रीशांतिजिणेसर; अंति: सबलदास नागोर नगीनो, गाथा-१४. २. पे. नाम. १३ काठिया सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आसकरण ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६१, आदि: रतन चिंतामण जेहवो; अंति: आसकरण सेहर चंमास रे, गाथा-२०. ७०८७४. वर्द्धमानविद्याधिकार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, जैदे., (२६४११, २३४६२-७३). वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. वज्रस्वामि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अहँह; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., स्वप्नविद्या तक है.) ७०८७५. राईसंथारा गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२.५, १७४४०-४८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: मज्झ वि तेह खमंतु, गाथा-१६. ७०८७६. (#) लघुशांति स्तवन व सप्तत्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १४-१८४३८). १. पे. नाम. शांतिलघु स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. मु. सदासुख मुनि, पठ. मु. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य. For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २६९ लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. २. पे. नाम. सप्तत्युत्तरशतजिनचक्र स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निझंतं निच्चमच्छेह, गाथा-१४. ७०८७७. हिंडोलणा परमार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४१२, ६x२४). परमार्थ हिंडोलना, क. केसवदास, पुहि., पद्य, आदि: सहज हिंडोलना हरख; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) ७०८७८.(2) ब्रह्मचरी, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२६४१०.५, १६४३९-४२). १० ब्रह्मचर्य समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धारी पासचंदि नमंसिया, गाथा-४१. ७०८७९. (+) यमकबद्ध स्तवन सह अवचूरि व ज्योतिष विचार, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५.५४१०.५, ९४२२-२५). १. पे. नाम. यमकबंध स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसंवरसं वरसं वरस; अंति: विभवा विभवा विभवा, श्लोक-७. पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरं प्रधाना संवरस्य; अंति: अविभस्तस्य संबोधनं. २. पे. नाम. ज्योतिष विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: २९ घटी जन्म तउ वर्ष; अंति: स्त्री विषमे सुतः, (वि. आयुमान, काल विचार तथा गर्भपृच्छा से सम्बन्धित विचार हैं.) ७०८८०.(2) गुरु स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १७८२, आश्विन कृष्ण, ८, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पत्तन, प्रले. पं. दानचंद गणि; पठ. श्रावि. माणिकबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १२४३७). खिमासूरि पाटणचातुर्मास गुरूगुण सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चोमासेंजी पुज; अंति: भोजसागर पाट सहेज, गाथा-१३. ७०८८१. २४ मांडला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, ८-१०४३७). २४ मांडला, प्रा., गद्य, आदि: आघाडे आसन्ने उच्चारे; अंति: दूरे पासवणे अहियासे, (वि. साथ में मांडला विधि भी दी गई है.) ७०८८२. (+) सरस्वतीदेवी स्तवन व संख्यावाचीशब्द विचार, संपूर्ण, वि. १७५२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ५, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. कृष्णपुर, पठ. श्राव. हीरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखन स्थल-राजनगरासन्न कृष्णपुर *अंत में कुछ औषधियों का उल्लेख किया गया है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १०४२७-३०). १.पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावाति विभवेन, श्लोक-९. २. पे. नाम. संख्यावाचक शब्द विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: शशि नाग शैलांक; अंति: (-), (वि. अंतवाक्यांश हुंडीमें भी हो ऐसा प्रतित होता है.) ७०८८३. (2) भक्तामर स्तोत्र, २४ जिन स्तवन वदोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. कुल पे. ३, प्र.वि. अंत के दो पेटांक बाद मे लिखे गए है और उसकी लिखावट अशुद्ध व अस्पष्ट है., अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, १०४३४-३७). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ अपूर्ण से २० तक है.) २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. पुहि.,प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: स्वयंसिद्ध करतार करे; अंति: मेरे एही मनसा इहे. For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. __प्रा.,सं., पद्य, आदि: चउवीसं तित्थयरे; अंति: वर्द्धमानं च भक्त्या , गाथा-५. ७०८८४. (+) भमरगीता, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७४५६). नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतील; अंति: विनय० प्रभु सानुकूल, गाथा-२७. ७०८८५. (+) साधुसाध्वी उपकरण विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, ५४३९-४२). ओघनियुक्ति-हिस्सा साधुसाध्वी उपकरण अधिकार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पत्तं१ पत्ताबंधो२; अंति: अज्जा णं तु पणवीस, गाथा-७. ओघनियुक्ति-हिस्सा साधुसाध्वी उपकरण अधिकार-टबार्थ, मा.गु., पद्य, आदि: पात्रनी मर्यादा१; अंति: साधवीनेइ पचीवीस. ७०८८६. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ११४३०-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ७०८८७. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०-१०६(१ से १०६)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, ५४३०-३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२३ गाथा-३८ अपूर्ण से ७९ अपूर्ण तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). ७०८८८. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. सा. लाला (गुरु सा. वाल्हा, अचलगच्छ); गुपि.सा. वाल्हा (अचलगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ११४३५-४०). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७०८८९. (#) शंखेश्वर पार्श्वजिन स्तुति, गोडीपार्श्वजिन छंद व रोहिणीतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४२-४५). १. पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: सकल सुरासुरवंद्य; अंति: संसेवि हंसरत्नाय, श्लोक-९. २.पे. नाम. गोडी पार्श्वजिन छंद बृहः देशांतरी नाम, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन आपोशारदा मया; अंति: पुण्यतवी छंद देशंतरी, गाथा-४७. ३. पे. नाम. रोहिणीतप सज्झाय, पृ. ४आ, संपूर्ण. मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वासुपूज्य नमी स्वामी; अंति: (-). ७०८९०. (+) जयतियण स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २०४६२-६७). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: अभयदेव० आणंदिअ, गाथा-३०.। जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदि: अत्रायं वृद्धसंप्रदा; अंति: त्रिलोक लोक श्लाघित, ग्रं. २५०. ७०८९१. जंबूद्वीप संग्रहणी व दशपच्चक्खाण स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६-३९). १.पे. नाम. जंबूद्वीपसंघयणी, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २७१ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३०. २. पे. नाम. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तपविधि भणइ, ढाल-३, गाथा-३३. ७०८९२. (+#) चातुर्मासिकपर्वव्याख्यानपद्धति व १२व्रत अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८-२३४४७-५०). १. पे. नाम. चातुर्मासिकपर्वव्याख्यान पद्धति, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, आदि: प्रणम्य परमानंदात; अंति: समयसुंदर० व्याख्याम्. २.पे. नाम. द्वादशव्रतानां १२४ अतीचारा, पृ. ४अ, संपूर्ण. १२४ श्रावकव्रत अतिचारभेद वर्णन, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ५ अतिचाराः संलेखनाया; अंति: सर्वेपि भवंति. ७०८९३. भक्तामर स्तोत्र व लघुशांति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ११४२९). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लघुशांति, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ७०८९४. (+) अंकलहरी सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९३४, चैत्र शुक्ल, १२, सोमवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्रले. मु. राम (गुरु मु. चंद्रसेन); गुपि. मु. चंद्रसेन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., दे., (२६४१२, १४४२३-३८). अंकलहरी, श्राव. दलपतिराय महेता, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: तह दलवइराएण गिहवइणा, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-७ से है.) अंकलहरी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्टक भी दिए गए हैं.) ७०८९५. (2) नवतत्त्व,जीवविचार व षट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १८४४४-४८). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण, वि. १८३९, आश्विन कृष्ण, १०, प्रले. मु. जयसोम (गुरु मु. मोहनसोम), प्र.ले.पु. सामान्य. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५४. ३. पे. नाम. विचार षट्त्रिंशिका, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: गजसागरेण० अप्पहिया, गाथा-४७. ७०८९६. इकबीसठाणा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. विद्यापुर, प्रले. मु. राजपाल ऋषि; पठ. सा. रहिया, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३०-३९). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवणविमाणं नयरी जणया; अंति: सिद्धसेणसूरि० भणिया, गाथा-६३. ७०८९७. (+#) विरहिणीकाव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६५, श्रावण शुक्ल, ६, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. आ. अमरकीर्तिसूरि (गुरु आ. मानकीर्तिसूरि, नागपूरीयतपागच्छ); गुपि. आ. मानकीर्तिसूरि (गुरु आ. चंद्रकीर्तिसूरि, नागपुरीयतपागच्छ); आ. चंद्रकीर्तिसूरि (गुरु मु. राजरत्न, नागपुरीयतपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-त्रिपाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, ७X४०-४५). विरहिणी काव्य, क. केलि, सं., पद्य, आदि: सा वोव्याद्भारती; अंति: केलि सज्जन योगतः, गाथा-५५. For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विरहिणी काव्य-वृत्ति, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, आदि: सा भारती वो युष्मान्; अंति: लक्ष्मि०प्रकर्षादिति. ७०८९८. (+) प्रास्ताविक श्लोक व गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. लाडणु, प्रले. मु. शिवदास ऋषि; पठ.पं. धनसुख, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १३४३१-३४). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: धर्माज्जन्म कुले; अंति: धर्मात्सर्व समीहितं, श्लोक-२८. २. पे. नाम. गौतम कुलक, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. ७०८९९. (#) दीक्षाविधि व उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, अन्य. मु. चेनसागर, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३३-३६). १.पे. नाम. दीक्षा विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पुच्छा१ वासे२ चिई३; अंति: नोकार गुणावीयै. २. पे. नाम. ४ दुर्लभता गाथा, पृ. ४अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगाणी; अंति: संयमम्मि विरियं, गाथा-१. ७०९०२. गौतम कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४१०.५,११४३८-४२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थिपरा; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ७०९०३. (+#) ज्ञानपहिरावणीगाथा व चौदनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ७४२१-२५). १. पे. नाम. ज्ञानपहिरावणी गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. ज्ञान पूजा, प्रा., पद्य, आदि: नमति सामति महीवनाह; अति: नाणस्स लाभाय भवखयाय, गाथा-२. २.पे. नाम. श्रावक १४ नियम गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त १ दव्व २ विगइ; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ७०९०४. (4) पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३६-४०). कल्पसूत्र-मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कालिकाचार्य कथा के प्रारंभिक पाठ तक लिखा है.) ७०९०५. (+) संथारापोरसि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चिल्हावास, प्रले.पं. भला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ७४४४-४७). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही २ नमो खमासमणा; अंति: इअसमत्तं मए गहिअं, गाथा-७, (वि. प्रारंभ में गाथांक नहीं लिखा है.) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुवै ३ वारने; अंति: ते सम्यक्त मे लीधो. ७०९०७. चतुर्विशतिजिन स्तवन व दूहा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५४१२, ९x४०-४५). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १९१२, माघ कृष्ण, ९, गुरुवार, प्रले. मु. सदानंद ऋषि (लूकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासम्, श्लोक-८. २.पे. नाम. औपदेशिक दूहा, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. रावतमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य. पुहिं., पद्य, आदि: सहुन ऐसा कीजीये; अंति: मूवां न छोडे संग, गाथा-१. ७०९०८. विचारषविंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२५.५४११, १२४३२-३६). For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण से है.) ७०९११. (+) पन्नवणासूत्र-प्रथमपद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १८४४५-५०). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. सूत्र-१६६ से आयरिया तक है.) ७०९१२. (+) संयोगीभांगागाथा सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३४१७-५२). संयोगी भांगा गाथा, प्रा., पद्य, आदि: गणियम्मि तिन्निलोगा; अंति: संयोगिय भंग करणमिण, गाथा-६. संयोगी भांगा गाथा- यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७०९१३. लघुसंथारा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ५४४३-४६). संथारासूत्र-लघु, प्रा., पद्य, आदि: एगोहं नत्थि मे कोई; अंति: वयर मुझ न केणई, गाथा-६. ७०९१४. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११, १४४५२). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: (-), (पू.वि. संतिकरं स्तोत्र से नमिऊण स्तोत्र गाथा ६ अपूर्ण तक है.) ७०९१५. (+) चैत्यवंदन सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १२४४४-५०). १. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंति: भोः श्रेयसे शांतिनाथ, श्लोक-१. सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (१)भो भव्या सततं निरंतर, (२)सकल कहिइ समस्त कुशल; अंति: हेतु नाम कारण छै. २. पे. नाम. औपदेशिक कथा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., गद्य, आदि: कृपण मरंतो कोइ लच्छी ; अंति: फेर न तेरे संग चलू. ७०९१६. सुभाषित श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १७४४०-४४). सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मोजगतःसारः सर्व; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२२ तक लिखा है.) ७०९१७. (+) चार सरणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). ४ शरणा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो शरणो अरिहंत; अंति: इम वीरधणा इम अराधणा. ७०९१८. (+#) स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४२-४५). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्राप्नोति स श्रियां, श्लोक-३३, (पू.वि. श्लोक-१६ से है.) २. पे. नाम. शाश्वतजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.. प्रा., पद्य, आदि: दीवे नंदीसरम्मि; अंति: सुप्पसन्ना हरंतु, गाथा-४. ७०९२०. (+) नारचंद्र ज्योतिष, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४२४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१६ अपूर्ण तक है.) ७०९२३. (+) जीवभेदगाथा सह अर्थ व भेदविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ४-१७४४६-५२). १.पे. नाम. ५६३ जीवभेद गाथा सह अर्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. जीवभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नारयतिरिनरदेवा चउद्द; अंति: ए ए सव्वेवि देवाणं, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २७४ www.kobatirth.org जीवभेद गाथा- अर्थ, मा.गु., गद्य, आदिः पृथिवी सूक्ष्म१ बादर, अंति: जीवना भेद ५६३ धया. २. पे. नाम. भेदविचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद विचार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, आदि: (१) संठाण वण्णरसया गंधे, (२) १०० संठाण परिमंडलर; अंति अनित्य५ ३० नित्य३०, ७०९२४. (+) बारव्रतपूजा विधिसहित अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २०-१६ (१ से ११,१३,१६ से १९) =४, प्र. वि. संशोधित. दे., (२४.५X११.५, ११X३४). १२ व्रतपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु., सं., पद्य, वि. १८८७, आदि: (-); अंति: (१) जग जस पडह वजायो रे, (२) टालवा १२४ दीवा करीइं, ढाल १३, गाथा - १२४, (पू.वि. द्वितीय मृषावाद विरमणव्रत से है, प्रारंभ व बीच-बीच के पाठांश नहीं हैं.) ७०९२५. पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी इतिहासवर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२५.५X१२, १५६२). पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४२ अपूर्ण तक हैं.) ७०९२६. (+) शत्रुंजय कल्प, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, पठ. पं. हरिराम प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १०X२५-३०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शत्रुंजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुअधम्मकित्तिअं तं; अंति: सित्तुंज्जए सिद्धं, गाथा-३९. ७०९२७. दिपोत्सव कल्प, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५४१२, १२४४२). दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., सं., प+ग., आदिः उप्पायविगमधुवमयमसेस, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., चंद्रगुप्त के १६ स्वप्न वर्णन गाथा १५ अपूर्ण तक हैं.) (२५X१२, १४X४०). १. पे. नाम. पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, पृ. १५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७०९२८. (+#) नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पू. १८-१५ (१ से १५) ३. पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५x११.५, ११४३५-४०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., पग, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अजितशांति गाथा ३७ अपूर्ण से भक्तामर स्तोत्र तक है.) ७०९२९. प्रतिक्रमणसूत्र, पगाम सज्झाच व संधारापोरसी, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १७-१४ (१ से १४) = ३, कुल पे. ३, वे., प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तह चरोत्थोभ वंदणया (पू.वि. पाक्षिक खामणा २ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, साधु प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १५आ- १७आ, संपूर्ण, वि. १९९४. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नवकरार करेमिभंतेसामा अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं ७०९३१. सिद्धचक्रपूजन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२५X१२.५, १०x४४-५०). ३. पे. नाम. संथारापोरसीसूत्र, पृ. १७आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: नवकार३ कही करेमिभंते; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - ९ अपूर्ण तक है.) ७०९३०. बृहत्शांति, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं, जैवे. (२४.५x१२.५, ९४२५) , बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "शिवादेवी तुम्ह नयरनिवासनी" पाठ तक हैं.) For Private and Personal Use Only सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, मा.गु., सं., गद्य, आदि: अथाष्टदलमध्याब्जकर्ण, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, द्वितीय वलय तक लिखा है.) Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २७५ ७०९३२. (+#) चारित्रमनोरथमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, माघ शुक्ल, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सुरतबंदर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ७४३९-४२). चारित्रमनोरथमाला, आ. धनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: केसिंच स उन्नाणं; अंति: भावं पावंति परमपयं, गाथा-३०. चारित्रमनोरथमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: केतली एक पुण्यवंत; अंति: परम पद मुक्ति पद. ७०९३३. (+#) भगवतीसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५५-१५२(१ से १५२)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५,११४२६-३०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. शतक-७ उद्देसा-६ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक ७०९३४. (+) स्तोत्र, स्तुति व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १४४३५). १. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, ____ आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३०. २. पे. नाम. चैत्यवंदना स्तुति, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. जिनचैत्यवंदना स्तुति, सं., पद्य, आदि: देवोनेकभवार्जितो जित; अंति: देव देवार्तितं क्षये, श्लोक-२२. ३. पे. नाम. सम्मेतशिखर स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: तोहि नमो नमो समेतसिख; अंति: भावसुं चैत्यवंदन करी, गाथा-७. ७०९३५. (+#) मौनएकादशी कथा व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४३०-३५). १. पे. नाम. मौनएकादशी कथा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरं नत्वा गौतमः; अंति: मोक्षसौख्यमनु भवेन. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., पद्य, आदि: वाघ्रसेवित काननं सूग; अंति: दीनूवद कूत्र हैतो, श्लोक-२. ७०९३६.(+) समवशरण स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. देवेंद्रसूरि आचार्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४१०.५, ५४३८). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थं; अंति: कुणउ सुपयत्थं, गाथा-२४. समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: स्तवीइ छइ केवलीनी; अंति: भला पदार्थ प्रतिइं. ७०९३७. (+#) अजितशांति स्तवन सह छाया, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ८४४८). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक नहीं है.) अजितशांति स्तव-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: जिनवचने आदरं कुरुत. ७०९३८. (+#) शत्रुजय कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ९४३०). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सुअधम्मकित्तिअंतं; अंति: लहुं सितुंजय सिद्धिं, गाथा-३९. ७०९३९. मेरुत्रयोदशी कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १६x४६). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. "त्रयोदशवर्षाणि यावन्मेरूत्रयो" पाठ तक है.) For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजित २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०९४०. (#) बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०, १२४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४७ अपूर्ण तक है.) ७०९४१. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, १०४२७-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण तक है.) ७०९४२. अजितशांति स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९४८, वैशाख कृष्ण, ९, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, ले.स्थल. सूर्यपुर, प्रले. श्राव. मगनलाल हेमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११.५, १५४६६). १. पे. नाम. अजितशांति स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख; अंति: जिणवल्लह० विथुणंतह, गाथा-१७. २. पे. नाम. सर्वाधिष्टायक स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंति: सुनिठि अठो सुही होई, गाथा-२६. ३. पे. नाम. गुरुपारतंत्र्य स्मरण, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: मयरहियं गुणगणरयणसायर; अंति: जिणदत्त पणयमुणि तिलओ, गाथा-२१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिग्घमवहरउ विग्धं; अंति: नमामि साहम्मिआ तेवि, गाथा-१४. ७०९४३. (+#) लघुशांति स्तोत्र सह टबार्थ व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८७, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४३२-३६). १. पे. नाम. लघुशांति स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांतं; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मानदेव कहइ शांति०; अंति: पदक स्थानिक पामे. २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण.. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिष्टारिष्टगुणं पुण; अति: जप्यते च अनुतकम्, श्लोक-२. ७०९४४. (+) प्रवचनसारोद्धार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, प्र.वि. संशोधित-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १७४४६). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण से २४१ अपूर्ण तक लिखा है., वि. चयनित गाथाओं का संग्रह है.) ७०९४५. पुन्यकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. पालीनगर, लिख. मु. कल्याणविजय; पठ. सा. देवश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ६४२३-३२). पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: भवियजण महिय मोहे; अंति: धम्मम्मि उज्जमह, गाथा-१९. पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: भविकजनारो म० मथ्यो; अंति: मनइ विषइ सावधान हुओ. ७०९४६. (+) जंबूद्वीप क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १५-१८४५५-६०). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. जंबूद्वीप वर्णन तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २७७ ७०९४७. (+) प्रतिलेखना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, ५४३७-४०). पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: पडिलेहणाविसेस; अंति: सीसेण विजयविमलेण, गाथा-२८. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: प्रतिलेखनाना विशेष; अंति: लेखणा विचार लख्यो. ७०९४८. (4) पचक्खाण व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. मु. खुश्यालचंद्र (गुरु ग. विनयसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४५). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गेसूरे पोरसीय साढ; अंति: गारेणं वोसिरामि. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सारद मात नमु सिरनामी; अंति: मनवंछित शिवसुख पावे, गाथा-२२. ३. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाती, पृ. ३अ, संपूर्ण. दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जैनधर्म कीजीय; अंति: समयसुंदर०तणा फल जाह, गाथा-५. ४. पे. नाम. आदिजिन विनती, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जगनायक जगगुरुजी; अंति: मुझ द्यो दरसण सुखकंद, गाथा-४. ५. पे. नाम. बाहुजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. कल्याणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अरज सुणो रुडा राजिआ; अंति: कल्याणसागर० दीनदयाल, गाथा-६. ६. पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअभिनंदण पाहुणो; अंति: धीर० मुगतनो दान तो, गाथा-५. ७०९४९. (+#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. लक्ष्मीधीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४२-४५). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: दृष्टिं दयालो मयि, श्लोक-३०. २. पे. नाम. दुरियरयसमीर स्तोत्र, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरिअरयसमीर मोहपको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ७०९५०. (+-#) दंडक प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३-१०(१ से १०)=३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४२६-३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-१९ से है., वि. गाथा संख्या अव्यवस्थित है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: आत्माने हितकारी, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७०९५१. प्रश्न शतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अष्टदलकमलबंधादि चित्रयुत., जैदे., (२५.५४१०.५, १९४६३). प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि: क्रमनखदशकोटीदीप्रदीप; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-४१ अपूर्ण तक लिखा है., वि. खाली जगहों पर अन्य छुटक श्लोक भी अपूर्ण रूप से लिखे गये हैं.) ७०९५२. उपदेशमालाशकुनगाथा सह शकुनविचार विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर माहिती अनियमित है।, जैदे., (२४.५४१०.५, १९४५४-५८). For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: सच्चं भासइ अरिहा; अंति: सव्वं सच्च पइट्ठियं, गाथा-१, (वि. उपदेशमालागाथा शकुन यंत्रसहित. गाथासंकेत-३६० तक है.) उपदेशमाला गाथा शकुन-शकुनज्ञान विधि, प्रा.,मा.ग.,सं., गद्य, आदि: तिथ्यांकरोगिणांक; अंति: कहिअं चूडामणीसारं. ७०९५३. ऋषभजिनस्तवन व अंबामाता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मथुराराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १४४४४). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. फतेकुसल, मा.गु., पद्य, वि. १८०८, आदि: सोहै ऋषभजिणेसर नाभि; अंति: फतेकुशल मुणिंद, गाथा-२०. २. पे. नाम. अंबिकादेवी छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सदा पूर्ण ब्रह्मांड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०९५४. (2) कल्पसूत्र की कल्पद्रुमकलिकाटीका सह बालाववोध, अपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४१२, १८x२५-६०). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्द्धमानस्य; अंति: (-), (प्र.वि. प्रारंभिक पीठिका भाग है.) कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका का बालावबोध, रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७०९५५. धर्मतरुफलदायक श्लोक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १३४४३). धर्मतरुफलदायक श्लोक, सं., पद्य, आदि: सकलजन्मविभूतिरनेकधा; अंति: धर्मतरोः फलमीदृशम्, श्लोक-१. धर्मतरुफलदायक श्लोक-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: धर्मतरो:० धर्मरूपीउ; अंति: मांगलकमाला पामउ. ७०९५६. ३७ द्वार असंख्यातभवनअसंख्यातप्रतिमाराजधानी कोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, २१४१८-५०). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७०९५७. महावीरनिर्वाणपश्चात् ऐतिहासिकघटनाचक्र कालमान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १५४४९). महावीरनिर्वाण पश्चात् ऐतिहासिक घटनाचक्र कालमान, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: श्रीपार्श्व० वीरनि०; अंति: वारै श्रीसागरगच्छ. ७०९५८. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५.५४११.५, १६४४४). महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३६, आदि: थे सुणजो हे आरजीयां; अंति: रायचंद०कोई रागने रीस, गाथा-२३. ७०९५९. सिद्धांतप्ररूपितलोकोत्तरमार्गवर्णन व चेटककोणिकराजा युद्धवर्णन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४११.५, २७४७८). १.पे. नाम. सिद्धांतप्ररूपित लोकोत्तरमार्ग वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धांतमांहि भगवंते; अंति: समकितनी प्रापति कही. २. पे. नाम. चेटककोणिकराजा युद्धवर्णन, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: संखित्ता विउल० विपुल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., युद्धवर्णनांश अपूर्ण तक लिखा है.) ७०९६१. (+) बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, २६४२५). १.पे. नाम. वासुदेव बलदेव च्यवन आयमानदेहमानादि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: त्रिपृष्ठ वासुदेव; अंति: वर्तमानमाहे हुया. For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २७९ २.पे. नाम. ९ असुर नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १आसिग्रीव २तारक; अंति: ८जरासंध ९रावण. ३. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती नामादि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ भरत ८४लाख पुरब आउष; अंति: अनइ बीच हुआ नरग गया. ४. पे. नाम. त्रसथावरजीवोत्पत्तिमरण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सस्थावरजीवोत्पत्तिमरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहलै भागै जेतली भूमि; अंति: ९भांगोळवली इमज जाणवा. ५. पे. नाम. पेढालपुत्र प्रश्न बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पेढालपुत्र कहै छै; अंति: नही आणतरासै झै१४. ६. पे. नाम. १४ स्वप्न बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ स्वप्न बोल-मोक्षगमन, पुहिं., गद्य, आदि: हाथी की घोड़े की; अंति: जाइ ते जानीवा सुपना. ७. पे. नाम. २५६३ मन मोतीमान बोल सर्वार्थसिद्धविमान, पृ. १आ, संपूर्ण. २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, आदि: एक मोती ६४ मननु; अंति: मणर्नु एवं दोइस तीरपन. ७०९६२. (#) अष्टप्रकारीपूजा व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४३७). १.पे. नाम. अष्टप्रकारी पूजा, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, आ. तिलकसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्नान करो भलभावसुं; अंति: मीठो तिलकसूरि सुखकार, ढाल-६, गाथा-२०. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-तिमरीपुरमंडन, मु. ज्ञानउदय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीतिमरीपुर पासजी; अंति: ग्यानउदे०बंछत काज हो, गाथा-७. ७०९६३. (+) पार्श्वनाथ स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२४.५४१०.५, १३४४५). पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: गो गुरूपयकज उत्तर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१४ तक लिखा है.) ७०९६४. (#) स्तवन, बारमासो व सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८०२, वैशाख कृष्ण, १२, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०-३९). १. पे. नाम. नवपल्लापार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८०२, वैशाख कृष्ण, १२, बुधवार, ले.स्थल. नांदसमा. पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५५८, आदि: (-); अंति: लावण्य जाति रसाली हे, गाथा-३७, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सरस श्रावण केरा सरवड; अंति: न्यैत्य गाया ए उछरंग, गाथा-१३. ३. पे. नाम. आत्मध्यान सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धरीय उमाहो हो रसभर; अंति: रे दिनदिन रंगरसाल, गाथा-११. ४. पे. नाम. एकार्गलकाल लक्षण दोहा, पृ. ३आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: रवि नक्षत्रथी आद दे; अंति: मिले तो एकार्गल होय, (वि. दोहा-१.) For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૦ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०९६५. औपदेशिकसज्झाय व प्रास्ताविक दोहा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. जयपुर, दे., (२५४११, १२४३९). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: बैठे साधु साध्वी; अंति: शंका नही छे काय के, गाथा-२२. २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), दोहा-१. ७०९६६. पक्खीय खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, ११४३८). क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अति: गुरुणो इमाई वयणाई, आलाप-४. ७०९६७. स्थूलखंडमान विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १२४४२). स्थूलखंडमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक लाख इकसठि सहस; अंति: स्थूलखंड० ६०००००००००. ७०९७०. सूतक, संमूर्छिम व पुरुष ३२ लक्षण विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १०४३०). १.पे. नाम. सूतक विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बेटो जनम्यां दिन १०; अंति: दूध दिन ८ पछई कलपइ. २.पे. नाम. संमूर्छिम जीवोत्पत्ति विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गोमुत्र मांहि २४ पोह; अंति: ८ दिन उपरांति ऊपजइ. ३. पे. नाम. पुरुष ३२ लक्षण विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. ३२ लक्षण विचार-पुरुष, मा.गु., गद्य, आदि: पांच वाना दीर्घ जोईय; अंति: ३२ लक्षण जाणवा. ७०९७१. धर्मस्थापनस्थल व अनुमानविवरण विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६.५४११.५, १७X५८). १.पे. नाम. धर्मस्थापनवाद स्थल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: सागरचंद्र: कालिका; अंति: स्वासनमशिश्रयत्. २.पे. नाम. अनुमानविवरण विचार, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., गद्य, आदि: श्यामः येनानुमानादपि; अंति: (-), (पू.वि. प्रत्यक्ष-परोक्ष विवरण अपूर्ण तक है.) ७०९७२. (#) कल्याणमंदिरभाषा व पकीस्याहीनिर्माण विधि, संपूर्ण, वि. १८५५, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. रतनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १४४२७-३०). १.पे. नाम. कल्याणमंदिर भाषा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम ज्योति परमातमा; अंति: कारण समकित शुद्धि, गाथा-४४. २. पे. नाम. पकी स्याहीनिर्माण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. स्याही पक्की निर्माण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: काजल पशगुद खेरी; अंति: पकी सइ हुवे सही. ७०९७३. ढुंढकमत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५,१३४३९). ढूंढकमत सज्झाय, रा., पद्य, आदि: ढुंढीया माहसं मुडीय; अंति: सघला नरक में जाई, गाथा-१४. ७०९७८. अनाथीमुनि रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४१०.५, २१४५६). अनाथीमुनि रास, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३५, आदि: वंदियै वीर जिणेसर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-५ तक है.) ७०९७९. सागरचंद्र कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १२४३८). सागरचंद्र कथानक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (१)आस्तां दासो मृगो हंस, (२)अयोध्यानगरी चंद्र; अंति: घातना हारि यतीइं कही. ७०९८०. शत्रुजयतीर्थोद्धार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, जैदे., (२५४११, १४४४३). For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६३८, आदि: (-); अंति: दर्शन जय करो, ढाल-१२, गाथा-१२२, (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण से है.) ७०९८१. औपदेशिक सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. श्राव. आशाराम उमेदराम, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १३४४४). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जीवोपरि, अखेराम, मा.गु., पद्य, आदि: ओ भवरत्न चीतोमण सरखो; अंति: कहे अखेराम० तरीया रे, गाथा-१३. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, रा., पद्य, आदि: हारे भाई नरक निगोद; अंति: नवे दास चरण बलीहारी, गाथा-१२. ७०९८२. (+) देवलोकादि विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर माहिती अनियमित है।, पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११). १.पे. नाम. देवलोक विमानविचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि.८ कृष्णराजी स्थापना व विमान प्रतर सचित्र आलेखित है. प्रा., पद्य, आदि: देवद्दीवे एगो दो नाग; अंति: खिज भणिअंपुप्फा०, गाथा-९. २. पे. नाम. स्तूप विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. सचित्र. सं., गद्य, आदि: अशोकप्रमाणं योजनानि; अंति: तत्तुल्य एव ज्ञेयः. ३. पे. नाम. जंबूद्वीपपरिधिमान विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. सचित्र. प्रा.,सं., गद्य, आदि: सोलस दहिमुह सेला; अंति: दोदो जक्ख० रयणामई. ७०९८३. (+) औपदेशिक बोल व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२३४११.५, ४४३१). १. पे. नाम. ३०० भेदबोल पद-औपदेशिक सह टबार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. ३०० भेदबोल पद-औपदेशिक, म. शिवचंद, पुहिं., पद्य, आदि: पंचदश दोको ध्यान पंच; अंति: सिवचंद० गुणसूरिस कुं, पद-१. ३०० भेदबोल पद-औपदेशिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवई पांच अने दस १५; अंति: सिवचंद० विचार लेवौ. २.पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-अध्याय-८ का हिस्सा औपदेशिक गाथा सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्याय ८ औपदेशिक गाथासंग्रह, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: जरा जावन्न पीलेइ; अति: मूलाइ पुणब्भवस्स, गाथा-५. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्याय ८ औपदेशिक गाथासंग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जरा कहैता अवस्था; ___अंति: केहना मूल ते कहै छइ. ३. पे. नाम. उत्तमपुरुषकथन गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ, संपूर्ण. उत्तमपुरुषकथन गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उत्तिमपुरसा त्रेसठ्ठ; अंति: पीयाएकावन्न बावन, गाथा-१. उत्तमपुरुषकथन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उत्तमपुरुष तीर्थंकर; अंति: वीरपिता २ तिणथी ५२. ४. पे. नाम. गर्भावास जीव श्वासोच्छ्वाससंख्या विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: जीव गर्भमांहि थको; अंति: तेहनी संख्या जाणिवी. ५. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: मजं विसय कसाया; अंति: ज्यु विवेक पहिचान, श्लोक-५. औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: पण विवेक नही. ७०९८४. तेवीसपदवी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, १४४३५). २३ पदवी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सयल जिणेसर पाय नमी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२० व प्रशस्तिभाग अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ૨૮૨ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७०९८५. (+) असज्झाय विचार औपदेशिक पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५२). १.पे. नाम. असज्झाय विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दसविहे अंतलिखिए० उका; अंति: पुणो चउथीइ सझायं, (वि. विविध आगमादि ग्रंथों से संकलित.) २.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद-मोह, मा.गु., पद्य, आदि: सउडिस पहिली ओढण चीर; अंति: तु मोहसेन दल मिलई, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. कृति पूर्णतासूचक संकेत नहीं है. औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मा.गु., पद्य, आदि: अजपा जपइ शून्यमनि; अंति: सिरि न सोहइ राखडी, गाथा-१२, (वि. साक्षिपाठरूप दृष्टांतगाथा संलग्न है.) ७०९८६. (+) षड्दर्शनसमुच्चय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२६, वैशाख शुक्ल, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, प्रले. मु. कीर्तिसमुद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १०x४५). षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: सुबुद्धिभिः, अधिकार-७, श्लोक-८७. षड्दर्शन समुच्चय-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदि: (१)श्रीमद्वीरजिनं नत्वा, (२)सत् शोभनं सामान्यावब; अंति: बुद्धिमद्भिरिति. ७०९८७. (+) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रावण शुक्ल, ७, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. पोहकरण, प्रले.पं. जीवणविजय (गुरु पं. ऋद्धिविजय); गपि.पं. ऋद्धिविजय (गुरु पं. तिलकविजय); पठ. श्राव. गुमानचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १२४३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७०९८८. होलीरज:पर्वसंबंधव होलीकथा, संपूर्ण, वि. १९२७, फाल्गुन कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. बालूचर (भागीरथी, प्रले.ऋ. नंदलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १७४४५). १.पे. नाम. होलीरज: पर्वसंबंध, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वंदे; अंति: विज्ञानं वाचनोचितः, श्लोक-८३. २. पे. नाम. होलीसंबंध, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: वर्द्धमानं जिनं; अंति: गम्यं महतामपि, श्लोक-३३. ७०९८९. (+) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ७०९९०.(+) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४२९). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: करेमि भंते० चत्तारि०; अंति: वंदामि जिण चउवीसं, सूत्र-२१. ७०९९२. (+) सज्झाय व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. १३, प्रले. मु. देवीचंद ऋषि (गुरु मु. जेसिंघ ऋषि); गपि.म. जेसिंघ ऋषि (गुरु मु. पताजी ऋषि); मु. पताजी ऋषि (गुरु मु. वलूजी ऋषि); मु. वलूजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १६x४४). १.पे. नाम. प्रतिक्रमण स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, ग. तेजसिंहजी, मा.गु., पद्य, आदि: पांच प्रमाद त्यजी; अंति: तेजसिंह०भवसायर तिरसी, गाथा-८. २.पे. नाम. क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८२३, माघ कृष्ण, १, शुक्रवार, ले.स्थल. रोहितनगर, प्रले. मु. करमचंद ऋषि (गुरु मु. जेसिंघ ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. महानंद, मा.गु., पद्य, वि. १८०२, आदि: समरी सरसति स्वामिनी; अंति: गालै लहै लील विलास, ढाल-४. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० www.kobatirth.org मु. कान कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तु तो महाविदेहनो, अंति: कान्ह० गावे ताहरा जी, गाथा- ९. ४. पे. नाम. प्रतिक्रमण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., पद्य, आदि: कर पडिकमणुं भावशुं; अंतिः धर्मसिघ० ध्यान लाल रे, गाथा - ५. ५. पे नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु, पद्य, आदिः सुविधिजिणेसर सुंदर, अंतिः संघ सहुने आणंद रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. केसराज, मा.गु., पद्य, आदिः आपणपो संभालीयइ रे; अंति: केशव सूविचार रे, गाथा - ११. ७. पे. नाम ऋषभजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. केसरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जयो जगनायक जग गुरे; अंति: केसर० दरसण सुखकंद, गाथा - ५. ८. पे. नाम. थुलभद्र सज्झाय, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. स्थूलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मेघमुनिजी, मा.गु, पद्य, आदिः प्रीतडी न कीजे रे, अंतिः मेघमुनि प्रभु रीत, गाथा- ७. ९. पे. नाम. अजितनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन- चोथा आरा, मु. तेजसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: चोथो आरो जिनवर वारो अंति: तेजसिंघ० गुण जुगते, गाथा-५. १०. पे नाम, सति सझाय, पृ. ३-४अ संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बालकुमारी चंदनबाला, अंति: सीस कुंवर करजोडी रे, गाथा - १३. ११. पे नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ४अ, संपूर्ण, वि. १८२३ माघ कृष्ण, ५, मंगलवार. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अजीतजीणंदसुं प्रीतडी, अंतिः वाचक यस० गुण गाय के (२५.५४११, १४४४२). १. पे नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अ० करेमि, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र- २१. २. पे नाम. श्रद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, २८३ गाथा - ५. १२. पे. नाम. अरनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह स्तवन बाद मे लिखा गया है. अरजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरनाथ आराहियै; अंति: महानंद० दाखो दीनदयाल, गाथा-५. १३. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण, पे. वि. यह स्तवन बाद मे लिखा गया है. मा.गु., पद्य, आदि: समरी सरसती सुहामणी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है. वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ७०९९३. (+) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जै.., वंदित्तसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे, अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा - ५०. ७०९९४. (+) रोहिणी तपफल कथा, संपूर्ण, वि. १८४६ चैत्र कृष्ण, ९, गुरुवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले. स्थल. राधनपुर, प्र. वि. अंत में प्रतिलेखक ने "लिपीकृतं गकारक्षर " मात्र लिखा है., संशोधित, जैदे., (२५.५X१२, १६३१). रोहिणीतपफल कथा, मा.गु., सं., गद्य, आदि: (१) जं किंचि वंछइ मणा तं, (२) श्रीवासुपूज्यमानम्य; अंति: सदा बोले केवल वाणि. For Private and Personal Use Only " " ७०९९५. बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. यंत्र- कोष्ठक सहित जैवे. (२६४११.५, ५४४१). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी आदि नमिकं अरिहंताई ठिइ अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १७ अपूर्ण तक लिखा है.) Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्संग्रहणी-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ अरिहंत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७०९९६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४२, आश्विन शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. आ. जिनबुद्धिवल्लभ सूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (२०१) कटी कूबड कर बेगडी, दे., (२५.५४१२, ८-१५४३२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७०९९७. औपदेशिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११, ४४३५). औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मे रागः श्रुतौ; अंति: संजमंमिय वीरियम्, श्लोक-२३. औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: धर्मे राग क० राग; अंति: आराधिवौ धर्म करिवौ. ७०९९८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. सताक, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १७४६३). पगामसज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा नमस्कारपूर्वं; अंति: संभवादित्यदोष इति. ७०९९९. साधुपाक्षिकादि अतिचार, पाक्षिकखामणा व छींक विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, दे., (२५.५४१०.५, १२४३७). १. पे. नाम. साधुपाक्षिक अतिचार, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि अचरण; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: नित्थारग पारगा होह, आलाप-४. ३. पे. नाम. छींक विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पखी पडिकमणां मांहि; अंति: क्रिया पुरि करइ. ७१०००. (+#) समयसारनाटक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-५(१ से ३,६,८)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३६-४२). समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १६९३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सवैया-८ अपूर्ण से १४ ___ अपूर्ण तक व २१ अपूर्ण से ४२ अपूर्ण तक है.) समयसार नाटक-टबार्थ, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१००१. (+) पार्श्वनाथअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४९). ___ पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ पार्श्वः१ पातु वो; अंति: भवति सुस्थिरा, श्लोक-३४. ७१००२. (+) मेतारजमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अंत में मेतार्यमुनि कथा का मात्र प्रारंभिक कुछ अंश लिखा है., संशोधित., दे., (२५४११.५, १४४४०). मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन धन मेतारज मुनि; अंति: वीरना परण मोकर छोड, गाथा-१२. ७१००३. श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५४१२, १३४३२). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि; अंति: (-), (पू.वि. दर्शनाचार प्रारंभ तक है.) ७१००४. दशपच्चक्खाणगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११.५, १०४२९-३५). १० पच्चक्खाणसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: देशावगासि अ०वोसिरामि. ७१००५. (4) स्तुति, स्तोत्र व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६४५४). १.पे. नाम. साधारणजिन स्तुति संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., पद्य, आदि: श्रियं दिशतु वो देवः; अंति: ज्योतिर्महामोहतमोपदं, श्लोक-२१. For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir C दो हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २८५ २. पे. नाम. आयुर्वेदिकदोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. दोहासंग्रह-आयुर्वेदिक, मा.गु., पद्य, आदि: जडीया छूटी उर उपास; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. वज्रपंजर स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ७१००६. (#) जिनपंजर स्तोत्र व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२४४१०.५, १३४३६). १. पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अहँ, अंति: मनोवांछितपूरणाय, श्लोक-२४. २. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐ नमो अरिहंताणं उदरं; अंति: सिद्धिर्भवतु स्वाहा. ७१००७. प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १३४३८). प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. देवसिप्रतिक्रमण अपूर्ण से पाक्षिक प्रतिक्रमण अपूर्ण तक है.) ७१००८. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२४.५४११, १३४३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ७१००९. (4) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४३३). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, म. शिवसंदर, सं., पद्य, आदि: वरसंवरसं वरसंवरस; अंति: शिवसुंदर सौख्यभरम, श्लोक-७. ७१०१०. (4) पच्चक्खाणसूत्र व चौदनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.पं. अमृतकुशल गणि; अन्य. मु. राजविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १६४३९). १.पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: तस्स मिछामि दुक्कडं. २. पे. नाम. श्रावकचौदनियम गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ____१४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सचित्त दव्व विगइ; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ७१०११. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, १५४३७-४०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: (-), (पू.वि. "शांतिमुद्घोषयित्वा शांतिपानीय" पाठ तक है.) ७१०१२. (4) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,५४२८-३२). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: देवपूजा दयादानं; अंति: दानेचाध्ययने तपे, गाथा-४. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: दिवस प्रते अरिहंतनी; अंति: भणवाथी तपस्याथी. ७१०१३. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १८५९, ज्येष्ठ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीजोबा, प्रले. मु. बुधविजय; पठ. मु. वजा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, ११-१४४३३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७. ७१०१४. (#) एषणा दोषादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१८(१ से १८)=१, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४१०, १५४४६-५०). For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २८६ ाि . कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. ४७ एषणा दोष, पृ. १९अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: खरउ चारित्रीय जाणिवउ, (पू.वि. उत्पाद दोष-१५ से है.) २.पे. नाम. उपगरणाधिकार, पृ. १९आ, संपूर्ण. साधु-साध्वी १४ उपकरण, प्रा., गद्य, आदि: पोत्तिय रयहरणंच्चिय; अंति: उपधि चत्तुर्दशा. ३. पे. नाम. तपमहिमा गाथा, प्र. १९आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: वदूरं च दुराराध्यः ; अंति: यं मुहण पम्माण, गाथा-४. ४. पे. नाम. गुरुवंदन विधि, पृ. १९आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: भयवंफासुएणं एसणिज्ज; अंति: अणुग्गहो कायव्वो. ५. पे. नाम. संघ आशीर्वाद, पृ. १९आ, संपूर्ण. संघ आशीर्वाद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), गाथा-३, (वि. पत्र घिसे हुए होने के कारण पाठ अवाच्य है.) ७१०१५. (4) पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "पछन्नकालेणं३ दिसामोहेणं४ साहुवयणेण५" पाठ तक लिखा है.) ७१०१६. वर्धमानविद्यामंत्र, लघु व बृहद्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ८४३८). १.पे. नाम. लघुवर्धमान विद्या, पृ. १आ, संपूर्ण. वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवउ अरहउ; अंति: ॐ ह्रीं स्वाहा. २. पे. नाम. वर्द्धमानविद्या, पृ. १आ, संपूर्ण. __ वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं ॐ नम; अंति: अणिहए ॐ ह्रीं स्वाहा. ७१०१७. (+#) योगशास्त्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ११४३०). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रकाश-१, श्लोक-३१ अपूर्ण से ५१ अपूर्ण तक है.) ७१०१८. (+#) ऋषभपंचाशिका व वीतराग स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने ऋषभपंचाशिका की प्रारंभिक ३ गाथाएँ लिखकर श्लोक-४ से क्रमशः वीतराग स्तव सम्पूर्ण कुल १३ श्लोक लिखा है. इस प्रकार कुल १६ गाथाएँ हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४२८). १.पे. नाम. ऋषभपंचाशिका-आद्यगाथात्रय, पृ. १अ, संपूर्ण... ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजंतुकप्पपायव चंदाय; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. वीतराग स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीवीतरागसर्वज्ञ; अंति: भक्तिर्मम केवलास्तु, श्लोक-१३. ७१०१९. (+#) शीलोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११,११४३३-३६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६९ अपूर्ण से ८८ तक है.) ७१०२०. (+) बावीसअभक्ष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ३४३६-३९). २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पंचुंबरि५ चउविगई४; अंति: वजहवज्जाणि बावीसं, गाथा-२. २२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पांच उंबरका नाम उंबर; अंति: बावीस अभक्ष जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २८७ ७१०२१. (4) ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०x२९-३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४४ अपूर्ण तक है., वि. बीच-बीच में कुछ श्लोकों को संक्षिप्त किया गया है.) ७१०२२. प्रत्याख्यान सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दाहिणोक, प्रले. मु. हरचंद (गुरु मु. महिमाहेम, खरतरगच्छ); गुपि.मु. महिमाहेम (गुरु वा. अमृतसुंदर, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ); वा. अमृतसुंदर (गुरु मु. अमरविमल, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ); मु. अमरविमल (गुरु मु. अमरचंद, कीर्तिरत्नसूरिशाखा गच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२४४११, १४४३८-४२). । प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गएसूरे नमुक्कार; अंति: सव्वसमा० वोसरइ. ७१०२३. लघुशांति, पजूषणारी स्तुति व पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८६२, आषाढ़ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. आसौप, प्रले. पं. भावविजय मुनि (गुरु पं. सत्यराज गणि); पठ. मु. रतनचंद (गुरु ग. राजेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४३६-४०). १.पे. नाम. लघुशांति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण... आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांतं; अंति: श्रीमानदेव० शासनम, श्लोक-१९. २. पे. नाम. पजूषणारी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुधविजै जयकारी जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७१०२५. वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४११, १२४३७-४०). २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पोषचैत्रादि षड्मास; अंति: मुक्तिसुख पामे. ७१०२६. (+#) समवसरणादि विचारगाथा संग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. समवसरणयंत्र-कोष्ठक युक्त., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ६x४०). विचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: बारजोजनमुसहो ऊसरणं; अंति: दसपेहाणुग्गए सूरे, गाथा-१५. विचारगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बार जोयण एतले; अंति: पहेला पडिलेहवा. ७१०२७. शक्रस्तव व जंकिंचि सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४४११.५, ४४२४). १. पे. नाम. शक्रस्तव सह टबार्थ, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहताण; अंति: संपत्ताणं नमो जिणाणं, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने गाथा संख्या नहीं लिखी है.) शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हओ थुणं; अंति: अरिहंतनि नमस्कार हो. २.पे. नाम. जंकिंचिसूत्र सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. जंकिंचिसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: जंकिंचि नामतित्थं; अंति: ताइ सव्वाइं वंदामि, गाथा-१. जंकिंचिसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जिहां लग तीर्थंकरखें; अंति: वादं समकीत पामु. ७१०२८. चातुर्मासिक व्याख्यानादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १८४३६-४०). १. पे. नाम. चातुर्मासिक व्याख्यान, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: सामायिकाश्वश्यक२ पौषध; अंति: इति श्रेयः. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: दरसण रहे है लुभाय; अंति: जगजाचित महाराय, गाथा-३. ३. पे. नाम. गोपीचंदजी दुहा, पृ. २आ, संपूर्ण. गोपीचंद, पुहिं., पद्य, आदि: आज स्हैर मै सहीया; अंति: गोपीचंद० सनेही रेलौ, दोहा-७. For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८८ www.kobatirth.org ४. पे. नाम औपदेशिक दूहा, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि; कनडी राग न कीजीये; अंतिः खिण बैरी खिण मित्र, दोहा-१. " मा.गु., गद्य, आदि: नर्पनो पीड्यो दोष, अंति: देइ प्राछित देवे. ३. पे. नाम. विविध विचार संग्रह, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. ७१०२९. (+) गोचरीदोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. चेना आर्या (गुरु सा. रतना आर्या); गुपि. सा. रतना आर्या (गुरु पं. वाघा ऋषि), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५x१०.५, २x२६-२९). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं उद्देसिअ; अंति: रसहेउं दव्व संजोगा, गाथा- ६. गोचरी दोष- बार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकरमी ते कहीह, अंतिः पणि भोगववड नाही. ७१०३०. (#) बोल विचार व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४१०.५, १६-१९४४६). १. पे. नाम. परमकल्याण के २६ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ बोल-परमकल्याण के, मा.गु., गद्य, आदि: तप करी नीयाणो न करे; अंतिः पांच पांडुनी परे. २. पे. नाम, आलोयणा के ५० बोल, पृ. १अ १ आ. संपूर्ण विचार संग्रह *, मा.गु., गद्य, आदि: जरासंधनो बाप, अंति: संख्यातावरसनिवात कहे. ४. पे. नाम. महावीरजीनी तपस्यानो तवण, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir बोल संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: मनुष्य शरीर ५ ते; अंति: सम्यक्त्व पामइ. २. पे. नाम औपदेशिक काव्य संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीर जिन तप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: गोतमसामी हो बुध दो; अंतिः टालो सामी दुख घणा, गाथा १६. ७१०३१. (#) शरीरादि बोल व काव्य संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९८, चैत्र अधिकमास शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जै., ( २४x११.५, ९४२४-२८ ) . १. पे. नाम. शरीरादि बोल संग्रह, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. काव्य संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, आदिः अब्दौ बिधू वधुमुखी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) ७१०३२. (*) पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैये. (२४.५X११, , १९३०-३३). प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उगे अब्भतठं, अंतिः बत्तियागारेणं वोसिरह. ७१०३३. (+) सिद्धदंडिकास्तव, १८ वनस्पतिमान व सुभाषित लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. रवि पठ. सा. वीरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५x११, ५X३३). १. पे. नाम, सिद्धदंडिकास्तव सह टवार्थ, पृ. १अ २आ, संपूर्ण सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ; अंति: दिंतु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. प्रत खंडित होने के कारण आदि अंतिमवाक्य अवाच्य हैं.) For Private and Personal Use Only २. पे. नाम. १८ भार वनस्पति मान, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., सं., गद्य, आदि: ३८११२७२८९७० एक भारनो; अंति: एतलइ १ भार एहवा १८. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दाता पंचदशो रत्न; अंति: पंचमो भगिनीसुतः, श्लोक-२. 3 ७१०३४. (+) सिद्धिप्रिय स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २९-२६ (१ से २६ ) - ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ९X३२). Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org २८९ सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., पद्य, ई. ६वी, आदि सिद्धिप्रियैः प्रति, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-२३ अपूर्ण तक है.) ७१०३५. प्रत्याख्यान सूत्र, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रावण कृष्ण, १०, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. अखैचंद, पठ. मु. दलीचंद (गुरु पं. अखैचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२४४११, १०X२६-३२). ', प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उगे सूरे नवकारसहियं, अंति: गारेणं वोसिरामि. ७१०३७. सूत्रकृतांगसूत्र का हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४X११, ६X३४). सूत्रकृतांगसूत्र- हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: कएरेमग्गे अक्खाते; अंतिः केवलिणोमयं त्ति बेमि, गाथा- ३८. सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: हिवे सुधर्मास्वामि; अंति: इम मोक्षमार्गनउ. ७१०३८. (+*) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३ ले स्थल, हुरडानगर, प्रले. मु. भक्तिकुशल, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४४११.५, १३X२८-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण, अंतिः संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५०. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१०३९ (+) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५x११, १३x४३). "" , पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., प+ग, आदिः ॐ अस्य श्रीमंत्रराज; अंति: क्षमस्व परमेश्वरि, श्लोक - ४०. ७१०४० (४) विजययंत्र आम्नायलेखन विधि सह वालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, १९५२). विजययंत्रआम्नायलेखन विधि, मा.गु., सं., प+ग, आदि: इंद्र प्रोवाच संतु०; अंति: (-), (पू.वि. यंत्र माहात्म्य वर्णन श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) विजययंत्रआम्नायलेखन विधि- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्र महाराज संतुष्ट, अंति: (-). ७१०४१. (*) पच्चक्खाण सूत्र, संपूर्ण वि. १८७३ भाद्रपद कृष्ण, २ शनिवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल, लाडनू, प्रले. मु. हंसराज ऋषि (कागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२४४११, ११x२५). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: मिच्छामि दुक्कडम् ७१०४२. सकलार्हत् स्तोत्र व लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैवे. (२४४११, १३४३२). १. पे. नाम. सकलाई स्तोत्र, पृ. १अ २आ, संपूर्ण, वि. १८७७, वैशाख कृष्ण, १. शुक्रवार, पठ. राम प्र.ले.पु. सामान्य. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलाहंत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंति: नमो नमो देव निरंजनाय श्लोक-३६. २. पे नाम, लघुशांति, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांत, अति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१९. 3 ७१०४३. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण वि. १८७४ माघ शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अंतिम पत्र पर स्वस्तिक व नंद्यावर्तक बनाया हुआ है, संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२४.५x११, १०x३०-३३). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. ७१०४४. (+#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x१२, १३X३५-४० ). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण, अंति: रुद्दाओ सुय समुदाओ, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१०४५. (#) जिनपंजर स्तोत्र व भक्तामर स्तोत्र बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८८९, कार्तिक कृष्ण, १, बुधवार, मध्यम, पृ. १७-१४(२ से १५)=३, कुल पे. २, ले.स्थल. थोभग्राम, प्रले. मु. अमरचंद (गुरु मु. तिलोकचंद, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); गुपि.मु. तिलोकचंद (गुरु मु. रायचंद, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); मु. रायचंद (गुरु मु. हितसमुद्र, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); मु. हितसमुद्र (गुरु उपा. कीर्तिधर्मजी गणी, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); उपा. कीर्तिधर्मजी गणी (गुरु वा. ज्ञानवल्लभजी गणी, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); वा. ज्ञानवल्लभजी गणी (गुरु उपा. क्षमाप्रमोद गणि, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); उपा. क्षमाप्रमोद गणि (बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा); पठ. मु. ताराचंद (गुरु मु. अमरचंद, बृहत्खरतरगच्छ श्रीजिनभद्रसूरिशाखा), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११.५, १४४२३-३०). १.पे. नाम. जिनपंजर स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: ओं ह्रीं श्रीं अहँ; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) २.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र का बालावबोध, पृ. १६अ-१७आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: लिक्ष्मी स्वयं वरै, (पू.वि. श्लोक-४१ अपूर्ण के बालावबोध से है.) ७१०४६. चतुःशरणप्रकीर्णक व चारशरण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४१०, १४४३६). १.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. २.पे. नाम. चारशरण सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति अन्य प्रतिलेखक के द्वारा बाद में लिखी हुई लगती है. ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो मंगलिक कहुं; अंति: वास जीवडो नवि लहै, गाथा-६. ७१०४७. (+#) पडिक्कमणासूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १३४३०-३३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: चत्तारि मंगलं अरिहंत; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१. ७१०४८. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ८-१०४२०-२३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: संति संति निसंत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ७१०४९. (+#) प्रास्ताविक श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १२-१५४३६). प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: दाणाणदाणं अभयप्पहाणं; अंति: (-), (पू.वि. "काकोयं क्रूरकर्मा.." श्लोक अपूर्ण तक है., वि. प्रतिलेखक ने श्लोक संख्या नहीं लिखी है व बीच-बीच के कुछ श्लोकों का बालावबोध लिखा ७१०५०. (4) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. पं. विनयचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२८). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ७१०५१. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १२-१५४३४-६०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र गाथा-१५७ ही लिखा है., वि. यंत्र सहित) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २९१ ७१०५२. (#) दीपोत्सव कल्प, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३-१२(१ से १२)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३५-४०). अपापाबृहत्कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३२७, आदि: (-); अंति: समथिओ एस समत्थिकरो, ग्रं. ४१६, __ (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पाठ-""पमाणदेहोजाउविराहुरिसी किरीड कुडलगया चक्क" से है.) ७१०५३. (+#) पाक्षिकसूत्र खामणा, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४७-५०). आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र व खामणासूत्र, प्रा., पद्य, आदि: तित्थंकरे य तित्थे; अंति: (-), (पू.वि. मृषावाद आलापक अपूर्ण तक है.) ७१०५४. (#) चतुरसीत्याशातना सह विवरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३२-३१(१ से ३१)=१, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६-३२-३६). जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: खेलं १ केलि २ कलिं ३; अंति: जुओ वज्जो जिणिंदालए, गाथा-४, संपूर्ण. जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-विवरण, सं., गद्य, आदि: कला धनुरेवेदादिका४; अंति: स्थानं तत्राकरोति वा, संपूर्ण. ७१०५५. (+) कुर्मापुत्र चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४२-४५). कुम्मापुत्तचरिअं, मु. जिनमाणिक्य; उपा. अनंतहंस, प्रा., पद्य, वि. १६वी, आदि: नमिऊण वद्धमाण असुरि; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) ७१०५६. जिनस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५४१२, ७-१०x२३-२६). १.पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: खंती खमंगुणकलिय; अंति: कुशल लच्छी लील करत. २. पे. नाम. सोलहसती नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदनबालिका; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. जिनदत्तसूरि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दासानुदासा इव सर्व; अंति: प्रधानो जिणदत्तसूरि, श्लोक-१. ४. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. मांगलिक श्लोक-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, आदि: सर्वमंगलमंगल्यं; अंति: साक्षात् सुरद्रुमः, श्लोक-३. ७१०५७. (+) पंचाचार अतिचार गाथा, १० आश्चर्य गाथा व १०कल्पवृक्ष गाथादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ६४३७-४०). १.पे. नाम. पंचाचार अतिचार गाथा सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नाणम्मि य दंसणम्मि य; अंति: नायव्वो विरियायारो, गाथा-८. पंचाचार अतिचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: ना० ज्ञानाचार१ दर्शन; अंति: जाणिवउ ए वीर्याचार ए. २. पे. नाम. १० आश्चर्य गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र-१० आश्चर्य गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्ग१ गब्भहरणं२; अंति: असंजयाण पूया य, गाथा-२. कल्पसूत्र-१० आश्चर्य गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उ० श्रीमहावीरजीनई; अंति: काल हुइ ते अछेरा१०. ३. पे. नाम. १० कल्पवृक्षनाम गाथा सह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मत्तंगया य१ भिंगा य२; अंति: गिहगारा९ अनिगिणा य१०, गाथा-१. १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जुगलीयाना दस; अंति: अ० वस्त्रना दातार१०. ४. पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. गणधरनामादि सूचक गाथा, प्रा., पद्य, आदि: इंदभुई१ अग्गी२; अंति: तेसिं अहेयं भवइ, गाथा-२. For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९२ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. . पु.ि, प्रा., मा.गु., पद्य, आदि: जंबू कहइ सुणरे अंतिः जिम ललतंगकुमार, गाथा-१ (वि. जंबूकुमार का नारीयाँ को उपदेश.) ६. पे नाम, चंद्रसूर्य ग्रहण विचार पृ. २आ, संपूर्ण ज्योतिष संग्रह, मा.गु., सं., हिं., प+ग, आदि: चंद्रमानो गहण अंति: ६ मा. उष्टो० ४५ वरस. ७१०५८. कल्पसूत्र की कल्पद्रुमटीका का बालावबोध, मांगलिकगाथा व पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२६४१२, १२४३२-३५) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. कल्पसूत्र के कल्पद्रुमकलिका टीका का बालावबोध, पृ. १अ १आ, संपूर्ण कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका का वालावबोध, रा. गद्य, आदि जयवंता हुवी पिण, अंतिः (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मात्र प्रथम श्लोक का बालावबोध है.) २. पे. नाम. मांगलिक गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: अरिहंता १ असरीरा २; अंति: पंचकरनिष्पन्नौ, श्लोक-१. ३. पे. नाम, पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः स्वः श्रियः श्रीमद; अंति: ते भवंति जिनप्रभा, श्लोक - ५. ७१०५९. (+#) सुभाषित संग्रह - ब्रह्मचर्यपालनादि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४X३७-४२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक *, प्रा., सं., पद्य, आदि: बुद्धे फलं तत्त्व, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक १७ अपूर्ण तक लिखा है.) २०४५०-५६). ७१०६०. दानशीलतपभावना कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X११.५, १४४४५). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि देवाहिदेवं नमिऊण अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२७ अपूर्ण तक है.) ७१०६१. अतिगहनस्त्रीचरित्रेचंडाप्रचंडाविद्युल्लता कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५-१४ (१ से १४) =१, जै. (२५.५X११, प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा संबद्ध अतिगहनस्त्रीचरित्रे चंडाप्रचंडाविद्युलता कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंतिः शुचो भविष्यथोच्चैः, (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अंतिम कथा अपूर्ण से है., वि. अंत में एक गूढार्थ श्लोक दिया गया है.) ७१०६२. (+) स्तुति व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५x१०.५, १२४३३). १. पे. नाम. नंदीस्तोत्र अष्टक स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदी स्तोत्राष्टक, मा.गु., पद्य, आदि: छंडि सवि हथियार सार; अंति: टलइ देव देखाडो सो ए, गाथा- ८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन चिंतामणी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) ३. पे नाम, साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदिः यस्यांत नाद्य मध्ये, अंति: (अपठनीय), श्लोक-३, (वि. प्रत का अंतिम भाग जीर्ण होने के कारण अंति (२६४११.५, ११४३६). १. पे. नाम. चौबीस तीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, प्रा. सं., पद्य, आदि: चडवीसं तित्थवरे, अंति: वर्द्धमानं च भक्त्या, गाथा ५. वाक्य अवाच्य है.) ७१०६३. चौवीसी, प्रास्ताविक श्लोक, दशवैकालिकसूत्र - अध्ययन १, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., For Private and Personal Use Only अंति: (-), Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २९३ २. पे. नाम. जिनस्तुति, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, आदि: वीरःसर्वसुरासुरेंद्र; अंति: नमः धर्ममापालय, श्लोक-७, संपूर्ण. ३. पे. नाम. दशवकालिकसूत्र- प्रथम अध्ययन, पृ. १आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७१०६४. जंबूद्वीपसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१०.५, १७४५५-६०). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा-३६. ७१०६५. (+#) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १४४३१). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: एवंकारे श्रीसाधुतणे; अंति: समत्तदेवसियं भणामि. ७१०६६. (+#) महावीरजिनस्तव सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-२ तक है.) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य, वि. १४६५, आदि: श्रेयो); अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७१०६७. (+) लघुक्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४४४७-५०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपयपयट्ठिय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७१०६८.(+) पच्चक्खाणआगार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, १४४४०). पच्चक्खाण आगार, प्रा., पद्य, आदि: अनथणा भोगेण १; अंति: (-), (पू.वि. आठवाँ आगार अपूर्ण तक है.) ७१०६९. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९५-१९४(१ से १९४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १५४४२-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. साधु समाचारी, सूत्र-६४ मात्र है.) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. टीकाकार की प्रशस्ति श्लोक-१ अपूर्ण है.) ७१०७०. (+#) सुभाषितसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६४३६-४०). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: तक्रं १ तैलं २; अंति: चिह्न नरगा भवंति, श्लोक-१९. ७१०७१. (+#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १०४२८). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: सकलभविजन चमत्कारी; अंति: रूप कहे प्रभुता वरो, गाथा-९. ७१०७३. महावीरनिर्वाण सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५४१२,११४३५). महावीरजिन सज्झाय-गौतम विलाप, मा.गु., पद्य, आदि: आधार जो हुतो रे एक; अंति: वरीयाशीवपद सार, गाथा-१५. ७१०७४. मांगलिक श्लोक, गौतमस्वामी छंद, नवग्रह स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, ले.स्थल. पालीनगर, जैदे., (२५४११, १४४३६-४०). For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९४ www.kobatirth.org १. पे. नाम. मांगलिक श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. मंगलाचरण, मा.गु., सं., पद्य, आदि: मंगलं भगवान वीरो अंति: कुसल लच्छी लीला करत, गाथा-७. २. पे. नाम गौतमस्वामी छंद. पू. १अ १आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजिणेसर केरोसीस, अंति: तूठां संपति कोडि, गाथा- ९. ३. पे, नाम, १६ सती नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. ७१०७६. इलाचीपुत्र चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६११, १४X३६-४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सं., पद्य, आदि: ब्राह्मीजी १ चंदनवाल, अंति: कुर्वंतु वो मंगलं. ४. पे. नाम, नवग्रह स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, सं., पद्य, आदि: अहिमगो हिमगो धरणीसुतः अंतिः सततं मम मंगलम् श्लोक-१. ७१०७५. नवपदगुण वर्णन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-१४ (१ से १४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५x११, १५४४५). नवपदगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अरिहंत के गुण- ६ अपूर्ण से साधु के गुण २० अपूर्ण तक है.) अंति: इलाचीकुमार चौपाई- भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७१९, आदि: सकल सिद्धदायक सदा; - (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल -३ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७१०७८. इलापुत्र कथा, मुँहपत्ति बोल, पार्श्वनाथ स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २-२ (१) = १, कुल पे. ४, जैदे., ज्योतिष लोक, मा.गु. सं., पद्य, आदि: भोग्याल्पकालेखगुणा, अंतिः कालोयदिलननूनं. ज्योतिष श्लोक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. मुहपति बोल, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. (२५.५X११, ११X३७-४५). १. पे. नाम. इलापुत्र कथा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: इलापुत्रनि परें, (पू.वि. पांचवे भव तक स्त्री-पुरुष संबंध की चर्चा अपूर्ण तक है.) २. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक सह बालावबोध, पृ. २अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: सकाम राग दोस भय मोह, अंतिः पाप धानिक पडिहरु. ४. पे नाम, शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तुति स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ते मुझ मोह महामद पाय; अंति मोहन० स्तुति लटकाली, गाथा ५. ७१०७९. (*) शीलव्रत बत्रीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५.५x११, १३४४०-४६). ३२ उपमा शीलव्रत, मा.गु., गद्य, आदि: जिम ग्रह नक्षत्र, अंति: व्रतमाहि शील मोटो. For Private and Personal Use Only ७१०८०. अभव्यकुलक व पुण्यपाप कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जै, (२५.५X११.५, १०x२८-३२). १. पे. नाम. अभव्यकुलक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. संबोध प्रकरण- हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., पद्म, आदि जह अभविय जीवेहिं अंति व दुहावि संनवत्ते, गाथा- ९. २. पे. नाम. पुण्यपाप कुलक, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. पद्य वि. १५वी, आदि (-) अंति: जिणकित्ति० उज्जमह (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १० अपूर्ण से लिखा है.) ७१०८१) बुद्धिप्रकारगाथा सह कथा संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पंचपाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, १६-१९X२६-३३). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, मात्र गाथा- ६२ " ही लिखा है.) Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २९५ नंदीसूत्र-कथा संग्रह *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चार प्रकार की बुद्धि से सम्बन्धित कथाओं का संकलन है.) ७१०८२. (+) अहिंसाकुलक सह टबार्थ व षड्लेश्या विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. पंचायण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ४४२६). १. पे. नाम. अहिंसाकुलक सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. अहिंसा कुलक, प्रा., पद्य, आदि: तत्थ पढमं अहिंसा; अंति: एसा भगवती अहिंसा. अहिंसा कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिहां पहेलो संवर; अंति: श्रीभगवती अहिंसा. २.पे. नाम. षड्लेश्या विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण.. ६लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सर्व थोडा सुकल लेश्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अणंतगुणी लेश्या विचार अपूर्ण तक लिखा है.) ७१०८३. (#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३२-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ७१०८४. (+) व्याख्यान संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११,१२४३०-३६). १. पे. नाम. पोषदशमी व्याख्यान, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, आदि: अभिनवमंगलमालाकरणं; अंति: आनंदमाला दायको भवतु. २. पे. नाम. होली व्याख्यान, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३५, आदि: फाल्गुनमास काश्चितः; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., होलिका के पुनः भाग्ययुक्त एवं प्रबल होने का वर्णन अपूर्ण तक लिखा है.) ७१०८५. (+#) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ५४३५-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२० अपूर्ण तक है.) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मु. कान्हजी, मा.गु., गद्य, आदि: (१)प्रणम्य प्रथमं देवं, (२)भक्तामर क०श्रीतीर्थं; अंति: (-). ७१०८६. (#) इकवीसठाणा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. सा. सरुपा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४.५४११, १३४४२-४५). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवणविमाणं नयरी जणया; अंति: असे साहणा भणिया, गाथा-६६. ७१०८७. एकादशी स्तुति सह टीका व आदिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५४११, ३-८४४८). १.पे. नाम, एकादशीस्तुति सह टीका, पृ. १आ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमि भाषे; अंति: न्यस्तपादांबिकाख्या, श्लोक-४. मौनएकादशीपर्व स्तुति-वृत्ति, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: श्रियं भजतीति; अंति: त्पर्य तुः पादपूरणो. २.पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: आनंदानम्रकम्रत्रिदश; अंति: विघ्नमर्दी कपर्दी, श्लोक-४. ७१०८८.(#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वीकानेर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,१०४३३-३६). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमुत्तमम्, श्लोक-६३, ग्रं.१५०. For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २९६ ७१०८९, (+) चतुःशरणप्रकीर्णक व जीवदयागाथा संपूर्ण वि. १८०२ भाद्रपद कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे, २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, ११×३४-३९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. चतुः शरण प्रकीर्णक, पृ. १आ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा- ६३. २. पे. नाम. चार रत्न गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ रत्न गाथा, प्रा., पद्य, आदि जीवदवा जिणधम्मो, अंतिः विना न पामंति, गाथा- १. ७१०९०. अनुत्तरीपपातिकदशांग सूत्र, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५X११, १७४५५-६०). अनुत्तरीपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं तेणं, अंतिः अयमठ्ठे पण्णत्ते, " अध्याय ३३, ग्रं. १९२. ७१०९१. (*) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले श्रावि गांगबाई, अन्य सा. भीमाईजी आर्या (गुरु सा. झबाईजी आर्या); गुपि. सा. झबाईजी आर्या, पठ. श्रावि. वाल्हाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११, ११x२७-३०). "" चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा. पद्य. वि. ११वी, आदि सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुई सुहाणं, " गाथा - ६३. ७१०९२. (+*) थंभणपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२६X११, ११x२७-३३). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प, अंति: विन्नवइ आनंदि " गाथा ३०. ७१०९३. (#) पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १७X५०-६०). पाशाकेवली, मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंति: स्थापिये पासाकेवलि, श्लोक-४४५. ७१०९४ () सुयहीलुप्पत्ती अज्झयणं, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२६x११. " ११-१५X४०-४५). वंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भक्तिभर नमिर सिरिसेह, अंतिः वढचित्ता होह पहविवह. ७१०९५. (#) पाक्षिकादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५-१ (४) = ४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६x११, २३X५४-५९). अक्षर विचारामृतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि, सं., प+ग, वि. १४७३, आदिः श्रीवर्द्धमानसूर्यो अंति: (-) (पू.वि. "उत्सर्ग व अपवाद की चर्चा" अपूर्ण से "१४ पूर्वी प्रशंसित जिनधर्म वर्णन" तक "जिनप्ररूपित धर्मप्रवहन" वर्णन अपूर्ण से "आलोचित अधिकार" वर्णन तक "पर्युषणाहार आलोचना अधिकार" से "पाक्षिक प्रतिक्रमण विचार अपूर्ण तक "चातुर्मासिक प्रतिक्रमण विचार अपूर्ण" से नहीं है.) " ७१०९६. दशवैकालिकसूत्र अध्ययन- १ ३ सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, दे. (२५.५x१०.५, ५४२९-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), प्रतिपूर्ण दशवैकालिकसूत्र - टवार्थ *, मा.गु. गद्य, आदिः नमस्कार हो सिद्धने; अंतिः (-), प्रतिपूर्ण ७१०९७. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९१२, ज्येष्ठ कृष्ण, ३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ५२-४८ (१ से ४८) = ४, पू.वि. बीच के पत्र हैं. प्रले. ऋ. गुलाबचंद (लॉकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले. नो. (१२४३) जब लग मेरु अडग है, दे., (२५x१२. " १३X३७-४० ). मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, वि. १८६०, आदि: मारुदेवं जिनं नत्वा, अंति साधनं भवतिः, ग्रं. १६५, संपूर्ण. ७१०९८. (+*) नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैये. (२४.५४१२, ४४२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा - १९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ* मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्व १ अजीवतत्व २; अंति: (-). ७१०९९. (+) बंधहेतूदयत्रीभंगी सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १६-२०४४३-५०). बंधहेतुउदयत्रिभंगीसूत्र, मु. सागरसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदि: बंधण हेओ विमुक्कं; अंति: सिरिसायरसूरिसीसेणं, गाथा-६६. ७११००. (+) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ४४३६-४०). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीननइ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक ही टबार्थ है.) ७११०१. २१ प्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२५.५४१२.५, १२४३५). २१ प्रकारी पूजा, मु. उद्योतसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८२३, आदि: स्वस्ति श्रीसुख पूरव; अंति: (-), (पू.वि. कुसुमपूजा, गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७११०२. (+) अभव्य कुलकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १६-१९४४४-४८). १.पे. नाम. अभव्य कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभविय जीवेटिं; अंति: तेसिंन संपत्ता, गाथा-९. २. पे. नाम. आचारभंग आलोयणा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. निशीथसूत्र-हिस्सा जिनालयादि में आचारभंग आलोयणा, प्रा., गद्य, आदि: से भयव्वं तहारूव समण; अंति: पायच्छितं उवदंसिज्जा. ३. पे. नाम. आवश्यकसूत्रसामायिक अध्ययन उपोद्घातनियुक्तिगत गाथा-५६९-५७० तीर्थंकर रूपाधिकार सह शिष्यहिता बृहद्वृत्ति, पृ. १आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. जैनगाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *,प्रा., पद्य, आदि: आरंभे नत्थिदया महिला; अंति: हवंति इंदस्स जम्ममि, गाथा-४. ७११०३. वर्धमानविद्या व उवस्सगहर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ७४३३). १.पे. नाम. वर्धमान विद्या, पृ. २आ, संपूर्ण. वर्धमानविद्या, प्रा., पद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: महाणसे महाबले स्वाहा. २.पे. नाम. उवसग्गहर स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा*,संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तुह दसणेण सामिय; अंति: अट्ठगुणाधीसरं वंदे, गाथा-२. ७११०४. (+#) पार्श्वनाथ चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४२९-३५). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरय मे वांछितं नाथ, श्लोक-५. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथ जगन्नाथ; अंति: शासनं ते भवे भवे, श्लोक-५. ३.पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: जयसिरिजिणवर तिहुअणजण; अंति: नियपय सुअदाणउ अइरा, गाथा-५. ४. पे. नाम. घंटाकर्ण स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ घंटाकर्णो महावीरः; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ७११०५. चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, दे., (२६४१२, ११४३२). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: दीनो छकायने दानो रे, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) ७११०७. (+#) सुतक विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. अजमेर, प्रले. करमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, ७४२३). सूतक विचार, सं., पद्य, आदि: सूतकं वृद्धिहानिभ्या; अंति: प्रवर्क्षक, श्लोक-६. सूतक विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुतक वृ० जन्म; अंति: पिछे दुध शुध जाणवो. ७११०८. (#) नमिप्रव्रज्या अध्ययन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १३४३९). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से ५६ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९ बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ के बालावबोध से गाथा-५६ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ७११०९. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १२४३३). आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: नाभिकुलगुरु नवीचंदसम; अंति: ग्यानचंद०से कोई तोले, ढाल-२, गाथा-२४. ७१११०. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९०९, वैशाख शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, प्र. १, प्रले. भोजाजी हरीचंदजी; पठ. श्राव. परसोत्तम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२,१३४३६-३९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-२०. ७११११. आहारना ९६ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४४१२, ७४३७). आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, आदि: आहाकम्मं १ उदेसियं २; अंति: निस्सय परिपसिप्पाए, संपूर्ण. आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आ० आधाकर्मी उ० उदेशी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७१११२. (#) उपदेश बहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६x४२). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: उत्पति जोज्यो आपणी; अंति: रत्नहर्ष० श्रीसार ए, गाथा-४१. ७१११३. भाव प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८४१, वैशाख कृष्ण, ६, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, पठ. मु. जीवण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, ३४३७). भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदि: (-); अंति: विजयविमल० पुव्वगंथाओ, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-२९ अपूर्ण से है.) ७१११४. नंदिषेणऋषि व अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. हीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१२.५, १७४३१). १.पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: मेरु० नहीं तोले हो, ढाल-३, गाथा-१०. २. पे. नाम. अनाथीमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक रयवाडि चढ्यो; अंति: वंदेरे बेकरजोडि, गाथा-९. ७१११५. (+) नवग्रहदिक्पाल कोष्ठक व शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४२६-४७). १.पे. नाम. नवग्रह व दशदिक्पाल कोष्ठक, पृ. १अ, संपूर्ण. नवग्रह दशदिक्पालपूजन कोष्टक, मा.गु., को., आदिः (-); अंति: (-). २.पे. नाम. शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: ॐ वरकणय संखविद्रुम; अति: उवसमंतु मम स्वाहा, गाथा-४. ७१११६. (-) गुणस्थान विचारगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४१३, ११४३३-३६). गुणस्थान विचारगाथा, प्रा., पद्य, आदि: मीचे सासणमीसे अविरइद; अंति: सठा रागदोसा बहूहथी, गाथा-२०. ७१११७. उपदेशशतक, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२६४१२, ११४३३-३६). __ उपदेशशतक, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से ४८ अपूर्ण तक है.) ७१११८. (+#) योगशास्त्र-प्रकाश ७, संपूर्ण, वि. १८८१, वैशाख कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३८). योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७१११९. (+) सिद्धाष्टकम्, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, ११४३०-३३). वीतरागाष्टक, सं., पद्य, आदि: शिवं शुद्धबुद्धं; अंति: श्रीमानभूदं च्युतो, श्लोक-९. ७११२०. (+#) विचारगाथा संग्रह व थापनाचार्य के १३ बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, १७४४६-५०). १.पे. नाम. विचारगाथा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: चत्वारं प्रहरायांति; अंति: तस्य जीविका, गाथा-२५. २. पे. नाम. थापणाचार्यनी पडिलेहणाना तेरै बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: शुद्ध स्वरूप धारु १; अंति: कायगुप्ति१३. ७११२१. मुखवस्त्रिका विवरणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२.५, १४४४८). १. पे. नाम. मुखवस्त्रिकाविवरणगाथा सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: चउरंगुलं विहत्थीएय; अंति: दुक्कडं पुरिमड्ड वा, गाथा-३. मुखवस्त्रिकाविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: चत्वारि अंगुलानि एका; अंति: दोरैणुर्न प्रविशतीति. २.पे. नाम. वचनगुप्ति विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: हिवे वचनगुप्ति बिहु; अंति: वयगुत्तौ विसमिओवि. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: प्रिय बोली जाणे नही; अंति: बोले चतुर सुजाण, गाथा-५. ७११२२. (+) वैरोट्या स्तोत्र व चंद्रप्रभ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १४४४५-४८). १. पे. नाम. वैरोट्या स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., पद्य, आदि: नमिऊण जिणपास; अंति: पारसनात्थी मुद्र, गाथा-३१. २. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: चंद्रप्रभ प्रभाधीश; अंति: लभते सुखसंपदा, श्लोक-५. ७११२४. (+) आवश्यकसूत्र की नियुक्ति सह टीका व भाष्य, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९३-१९२(१ से १९२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६.५४१३.५, ४४१७-३३). For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६९ अपूर्ण से ७१ अपूर्ण तक है.) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७११२५. (+#) खरतरगच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८९२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, ११४३०-३५). पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: संघ जयवंतौ प्रवर्ती, श्लोक-१९. ७११२६. (+#) सिद्धदंडिकास्तव व श्रावक के चौदप्रकार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. समदरडी, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १२४३४). १.पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १९१०, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, प्रले. मु. दोलतविजय (गुरु पं. देवविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसह केवलाओ अंतरमु; अंति: दिंतु सिद्धि सुह, गाथा-१३. २. पे. नाम. श्रावक के चौद प्रकार सह टबार्थ, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, वि. १९११, श्रावण कृष्ण, ३, सोमवार, ले.स्थल. समदरडी. १४ श्रावकभेद श्लोक, सं., प+ग., आदि: मृत्१ चालनी२ महिष३; अंति: २ सर्प१३ शिलोपमाना१४. श्रावक के १४ प्रकार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: माटीनी परि गुरुवचने; अंति: भूवि पृथ्वीनइ विषइ. ७११२७. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२७४१२, ९४२५). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७११२८. स्तोत्र व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६.५४१२, १३४२७-३०). १.पे. नाम. सकलार्हत् स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: श्रीवीरभद्रं दिस, श्लोक-२६. २.पे. नाम. त्रिगडा स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: मिल चौविह सुरवर; अंति: पांमै जे तसु नाणी, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: निरुपम सुखदायक; अंति: श्रीजिनलाभसूरिंदाजी, गाथा-४. ७११२९. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. १०, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२.५, १४४४०-४५). १.पे. नाम. पार्श्वप्रभु स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तुति-शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेरुमहीधर सुंदरशिखर; अंति: मोहन जिन हितकार, गाथा-४. २. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सौधर्म देवलोक पहिलो; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ३. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत नमुंवलि सिध; अंति: नयनेविमलेस्वर वर आपो, गाथा-४. ४. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधर मुझनै; अंति: शांतिकुशल सुखदाता जी, गाथा-४. ५. पे. नाम. अजितजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. म. मेरुविजय, सं., पद्य, आदि: धैर्योरुमेरुविजय; अंति: मेरुविजय० नितांतम, श्लोक-१. For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३०१ ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजः पदपद्म; अंति: दाता ददतां शिवं वः, श्लोक-१. ७. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: शुभारतीरा जिनवारयामा; अंति: शुभारतीया जिनवारयामा, गाथा-१. ८. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यामागमामयसुरा जिन; अंति: सुरा जिनवारतारा, श्लोक-१. ९. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसीमधरस्वामी; अंति: आवागमण नीवारि निवारी, गाथा-१. १०. पे. नाम. गुरु स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: दृष्टोद्य श्रुतकेवली; अंति: दृष्टं मया दर्शनम्, श्लोक-२. ७११३०. (#) वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, ३६x२१-२५). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-४३. ७११३१. (+#) भक्तामर स्तोत्र व जयतिहुअण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,११४३३-४०). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. ___ आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तिहुयण वरकप्प; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्णतक है.) ७११३२. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. गंभीरसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६-४०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ७११३३. (+#) पाखी चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२.५, १०४२५-२९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत्प्रतिष्ठानम; अंति: जिनसाक्षात्सुरद्रुम, श्लोक-३७. ७११३५. बृहत्शांति, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रावण कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४४१२.५, १२४३२-३५). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: पूज्यमानो जिनेश्वरः. ७११३७. (4) पाक्षिकअतिचार व दिनकृत्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२.५, १२४३४). १.पे. नाम. पाक्षिकचौमासिसंवत्सरी अतिचार, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दसणंमि०; अंति: तप करी पोसाडजो जी. २. पे. नाम. दिनकृत्य सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिथं; अंति: अंनिचं सुगुरू वएसेणं, गाथा-५. ७११३८. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-४(१ से ४)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४४०-४४). For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३, गाथा-१३ अपूर्ण से अध्ययन-७, गाथा-२३ अपूर्ण तक है.) ७११३९ (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९०१, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वेरावलबंदर, प्रले.मु. हीरजी प्रेमजी ऋषि; पठ. मु. लवचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२६४१२, १२४२७-३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुय समुद्दाओ, गाथा-५१. ७११४०. (#) मौनएकादसी गणगुं, संपूर्ण, वि. १८९०, माघ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सुरत, पठ. श्रावि. गंगाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, ११४३०-३३). मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अंति: आरणनाथाय नमः. ७११४१. (#) वीरस्तुति अध्ययन सह टबार्थ व वीरस्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, ६x४१-४४). १. पे. नाम. वीरस्तुतिअध्ययन सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: गमिस्संति त्तिव्वेमि, गाथा-२९. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पु० पुछता हुया; अंति: सांभलो तेहवो कहीओ. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमुलं; अंति: सारं सलेहणामरणं, गाथा-४. ७११४२. लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९३, माघ शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. भावनगर, प्रले. मु. राजेंद्रसोम; अन्य. आ. आणंदसोमसूरि (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७७१३, ४४३८-४२). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउंजिणसव्वन्नु; अंति: रईया हरिभदसूरिहे, गाथा-३०. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *मा.गु., गद्य, आदि: नमीय कहेता नमस्कार; अंति: रचि हरिभद्रसूरीइं.. ७११४३. (+) आहारनां ४२ दोष सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७X१२.५, २४२६). ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मु १देसिअ २; अंति: रसहेउ दव्वं संजी, गाथा-५. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: आधाकर्मीने जितीने; अंति: ते संयोजना जाणवी. ७११४४. (#) पासाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १३४३४-४०). पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: नत्वा जिनेंद्र सर्व; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-११७ अपूर्ण तक है.) ७११४५. (+) चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १३४३७-४०). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद; अंति: (-), (पू.वि. कालिकाचार्य कथा अपूर्ण तक है.) ७११४६. (#) योगसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ३४३०). योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., पद्य, आदि: निम्मलझाणपरठिआ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक व २३ अपूर्ण से नहीं है.) योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निर्मल ध्यानने विषइ; अंति: (-). ७११४७. (#) अंतरिक्षपार्श्वजिन छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३०). For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात मया करी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण तक है.) ७११४८. (+#) पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४२५-३०). __पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-२९. ७११४९. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४३५). __ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. ७११५०. (+) वसुधारा धारिणी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(२)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १४४३२-३५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भगवतो भाखितमभ्यदतीति, (पू.वि. "पर्यवाप्ता प्रवर्त्तिता" से "निविषिणि प्रवर्षिणी" तक का पाठ नहीं है.) ७११५१. (#) त्रिषष्टिशलाकापुरुष वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३२-३६). ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, आदि: तिपृष्टनामां वासदेव; अंति: करता कोडाकोड वर्स, (वि. वासुदेव, प्रतिवासुदेव, बलदेव तथा चक्रवर्ती का वर्णन है.) ७११५२. (#) निंदा पचीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १४४२८-३२). निंदापचीसी, सा. सुखा आर्या, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: सरसती देवी मा० काई; अंति: सुखा० पंचमी बुधवारजी, गाथा-२५. ७११५३. स्तवन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १२४४७-५०). १. पे. नाम. १५ तिथि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. डुंगरसी, रा., पद्य, आदि: चतुरनर ग्यान विचारो; अंति: डुंगर० भवमै सुख पावो, गाथा-१६. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण.. मु. अगरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: मारी वीनतडी अवधारो; अंति: अनोपम जिनपद वंदन भास, गाथा-२१. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमुसदगुरु; अंति: नीत आनंदघन सुख थाय, गाथा-१०. ७११५४. (#) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२९-३२). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिणेसर विनती; अंति: दान० दरशन करे निसेव, गाथा-५. २. पे. नाम. अइमत्तामुनि समास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अईमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. रत्नसागर, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद वांदीने; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७११५६. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १६४३२-३६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, वि. १०वी, आदि: आबालबंभयारि नेमि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४ तक है.) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., गद्य, वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७११५८. १४ पूर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, १२४३७-४०). For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८९६, आदि: जिनवर श्रीवर्धमान; अंति: हाजी संघनै आनंद करे, ढाल-३, गाथा-३३. ७११५९. (#) गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४३७). १. पे. नाम. जीवणदासजी गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. देउबाई, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: सरसत सामण सहीया वीनव; अति: देउबाई० हरख उलासजी, गाथा-११. २.पे. नाम. जीवणदासजी गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. सा. भागांजी शिष्या, रा., पद्य, वि. १७९८, आदि: अब म्हारा पूजजी हो; अंति: जोड संवत सतरेअठाणू, गाथा-७. ३. पे. नाम. हर्षचंद गुरुगुण गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. हर्षचंदजी गीत, गोडीदास, रा., पद्य, आदि: अरिहंतदेव आराधीये; अंति: गोडीदास गूण गाय, गाथा-९. ४. पे. नाम. जीवणदासजी गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रा., पद्य, वि. १८११, आदि: सरसत सामण वीनवु; अंति: बहु लोगादेरी जोड, गाथा-११. ७११६१. (#) लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९३३, फाल्गुन कृष्ण, ९, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. जवाहरमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२.५, ६x४९). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदंसणं विणा जंलोय; अंति: यह जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरना समकित विन; अंति: विषे इहा भमे नही. ७११६२. (+#) रत्नाकर पंचविंशतिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३७-४०). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ७११६३. (#) साधुवंदना संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, २२४४०-४४). १. पे. नाम. साधुवंदना, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८०७, आदि: नमो अनंत चौवीसी रिषभ; अंति: जयमल एही तिरणना दावो, गाथा-११०. २.पे. नाम. साधुवंदना, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जेमल, मा.गु., पद्य, वि. १८०६, आदि: श्रीसीमंधरजी आद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) ७११६४. रामचंद्रजीरी मुंदडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५.५४११, १४४३२-३६). रामचंद्रजी की मुंदरी, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामण वीनवं, अंति: दुर्जन हसन कोय, गाथा-३९. ७११६६. (+#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १३४३५-३८). १. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्माजन्मकुले शरीर; अंति: तस्सर्प किमसौनभयंकरः, गाथा-२४. २. पे. नाम. पुरुषघातचंद्र विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: मेषे आद्य वृषे पंच; अंति: मेषाद्या घातचंद्रमा, श्लोक-२. ७११६७. (+#) द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकस्वरूप स्तवन सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १०४४१). द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकस्वरूप स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रस्तुत वस्तु तणो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-३ गाथा-२ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३०५ द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकस्वरूप स्तवन-टिप्पण, मा.गु., गद्य, आदि: द्रव्यार्थिकनय परमार; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७११६९. (#) ६३ शलाकापुरुष, विचारादि बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४२९). १.पे. नाम. ६३ शलाका पुरुष विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १८७८, माघ शुक्ल, ५, ले.स्थल. घाणोरानगर, प्रले. मु. गौतम, प्र.ले.पु. सामान्य. ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उत्तम सरिर छट्ठी जिव; अंति: अरिट्ठ पासंतिइबज्झो, गाथा-७. २. पे. नाम. पासत्था प्रकार, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. __ पासत्था के बोल, मा.गु., गद्य, आदि: नववखाण कल्प वाचना; अंति: ते पासत्थउ महानिशीथे. ३. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंगुष्टात् घटीकाग्नी; अंति: मनवो घटीका स्मृताः, (वि. श्लोक-२.) ७११७०. षष्टिशतक प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १५४३७-४०). षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., पद्य, आदि: अरहं देवो सुगुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) षष्ठिशतक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७११७१. (#) नवकार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४४०). नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलोजी लीजीयई; अंति: जगमांहि नही कोई आधार, गाथा-२२. ७११७२. (+) १४ गुणस्थानक विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, २०-२३४१७-२५). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७११७४. (#) उपदेशमाला की गाथानुक्रमणिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. कुल ग्रं. ४, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३६-४०). उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जगचूडाम सवस्सर; अंति: जावयलव अक्खरम. ७११७५. (4) पुराणोद्धत जैनसिद्धांतसंदर्भ श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५४-६०). जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, सं., पद्य, आदि: इह केचिदशास्त्रज्ञाः; अंति: कीदृशो यज्ञधर्मः, श्लोक-७२. ७११७६. पापो की आलोचना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४११, १२४३६-३९). प्रायश्चित्तप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: देववंदन अकर्णे एकासण; अंति: माटी संघटे निवि६. ७११७७. सज्झाय संग्रह व अक्षरबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७६४, आषाढ़ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. ग. दयासागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१०.५, १२४५३-५८). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: कामिनी कहै निज कंतने; अंति: कारणे करो धर्म सवाई, गाथा-११. २. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. पुनो, रा., पद्य, आदि: श्रीवीरजिणंद समोसर्य; अंति: आज हे माईडी, गाथा-२१. ३. पे. नाम. अक्षरबत्रीशी, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. ___ मु. हिम्मतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: कका ते किरिया करो; अंति: मुनि महेस हित जाणि, गाथा-३५. ७११७९. मृगावती पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, १४४४७-५०). मृगावतीसती कथा, मा.गु., गद्य, आदि: सेतानिक राजा मृगावती; अंति: श्रीकीर्तिरत्नसरी. ७११८०. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२५४११.५, ११४४२-४५). For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्नात्रपूजा विधि, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने पत्रांक १ से ३ दिया है परंतु कृति ढाल २ गाथा ५१ से ढाल ६ तक लिखा है.) । ७११८१. (4) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ अध्ययन-३, संपूर्ण, वि. १९३८, फाल्गुन शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. मोतीचंद सामजी ऋषि; पठ. श्रावि. जमनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४१२, ५४२५). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: चत्तारि परमंगाणी; अंति: हवइ सासए त्तिबेमि, गाथा-२०, (वि. चौथे अध्ययन का "अथ असंखेय अज्झेण लिख्यते" लिखा है.) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: च्यार परम उत्कृष्टा; अंति: पामे इम हु कहुछु. ७११८२. सुभद्रासती सज्झाय व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, १४४३२). १.पे. नाम. सुभद्रासती सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रावण कृष्ण, ८, प्रले.मु. गौतम; पठ. गंगाराम, प्र.ले.पु. सामान्य. मु. भानु, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमुते सारद; अंति: भानो बोलि०मझने छोड, गाथा-४५. २. पे. नाम. शीरदर्द मंत्र संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद शुक्ल, प्रले. मु. ज्ञानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य. __ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐनमो आदेस गुरु कु; अंति: (-). ७११८३. (#) स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४३३). १.पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: दीठी हो दीठी प्रभु; अति: जस० सुख दर्शन तणो जी, गाथा-६. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर विनती; अंति: फलशेए मुज साचुरे, गाथा-५. ७११८८.() सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४५५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: मोह मिथ्यात की नींद; अंति: रिषि जैमल कहे एमजी, गाथा-३५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: काया नारी निज सीलें; अंति: पुरुष नारी सुख हवै, गाथा-४. ७११८९. गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, ९x४२-४७). १. पे. नाम. १८ लिपि नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: हंसलिवी१ भूअलिवी२; अंति: चाणक्की१७ मूलदेवीय१८, गाथा-२. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (वि. गाथा संख्या ६+३+१=१०.) ७११९०. (+#) वाणीस्तोत्र व लौकिकप्रयोग निष्पत्यादिवर्णन, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४-१८४५०-५५). १.पे. नाम. वाणी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रोपेंद्ररवींद; अंति: जिनवक्त्रकजैकवासा, गाथा-९. २.पे. नाम. लौकिकप्रयोग निष्पत्यादि वर्णन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३०७ सं., गद्य, आदि: लौकिकप्रयोग निष्पत्त; अंति: (-). ७११९१. आलोयणाछत्रीसी व मंत्रतंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १०४३०). १. पे. नाम. आलोयणा छत्रीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६९८, आदि: पाप आलोयु आपणा सिद; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभ की २ गाथा लिखा है.) २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: ॐनमो ईश्वर माहादेव; अंति: (-). ७११९२. (+#) कुंथुनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २०४५०-५३). कुंथुजिन स्तवन, मु. प्रागजी, मा.गु., पद्य, वि. १७६१, आदि: श्रीजिनवाणी शारदा; अंति: वंछित लहै मंगलमाल ए, ढाल-५. ७११९३. औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४११, ११४३५). औपदेशिक पद-जैन दशा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: परमगुरू जैन कहो केम; अंति: सिझे जैनदशा जस उंचि, गाथा-१०. ७११९४. ढुंढकमत सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १८४४९-५३). ढुंढकमत सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: कोई पोषै राग कौ कोई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखकने गाथांक क्रमबद्ध नहीं लिखा है व गाथा- ५४ तक लिखा है.) ७११९५. (+) धर्मोपदेश पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७७५७-६०). धर्मोपदेश पद, मु. हेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: ऋद्धि सिद्धि कारमी; अंति: धरम रागी रे हेमराज, गाथा-१७. ७११९७. (+#) आवश्यकसूत्र नियुक्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-३७(१ से ३७)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी: वंदनन० हुंडी: वंदनन० नवकारन० हुंडी: पडकम० नवकारन०, संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४३३-३६). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. वंदननियुक्ति गाथा-४५ अपूर्ण से प्रतिक्रमणनियुक्ति गाथा-५० अपूर्ण तक है.) ७११९८. (+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ४४३६-४०). औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: सकल कुशलवल्ली पुष्कर; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक २९ अपूर्ण तक हैं.) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सकल कहेतां समस्त; अंति: (-). ७११९९. तप विधि, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि., जैदे., (२५.५४११, १४४४४). तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पुरिमड्ड१ एकासणं२; अंति: (-), (पू.वि. तप २२ अपूर्ण तक है.) ७१२००. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व चैत्यवंदन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८३८, आषाढ़ शुक्ल, ११, गुरुवार, मध्यम, पृ. १९-१५(१ से १५)=४, कुल पे. २, ले.स्थल. महिसाणा, प्रले. मु. हर्षविजय (गुरु पं. पद्मविजय); गुपि.पं. पद्मविजय (गुरु पं. सुंदरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १२४३२). १.पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १६अ-१८अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, (पू.वि. "मणगुत्तिए वयगुत्तिए" पाठ से हैं.) २. पे. नाम. सकलार्हत स्तोत्र, पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: सीमंधरजिनपतिर्जयति, श्लोक-३३. ७१२०१. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, ९४२७). For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल भवन सिरसेहरो; अंति: सुबद० साम सहेली ए, गाथा-५. ७१२०३. हीरसूरिगुरूगुण गीत व नेमराजिमती गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १२४३८). १. पे. नाम. हीरसूरि गुरूगुण गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुखसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी मूरति मोहनगारी; अंति: सुखसागर० लबधि वरे, गाथा-७. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___पंडित. जयवंत, मा.गु., पद्य, आदि: ओ सखी अमीअरसाल कि; अंति: जयवंत० नेमिइं सम धरी, गाथा-५. ७१२०४. (+2) श्लोक संग्रह व स्याही विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७-२३४४१-५९). १.पे. नाम. साहीनी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह पेटांक पत्र १अके कोने में लिखा है. स्याही विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: काजलटं ९ गूंदट ९; अंति: दिन ३ लगी साही नीपजइ. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: तिथरागपाहारी सुखयणो; अंति: जे बारीमास फलंति, श्लोक-४८. ७१२०५. (+) अतीतचौवीसीजिन गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४३०). अतीतचौवीसीजिन गीत, मु. मणिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: पहइला प्रणमु; अंति: मणिचंद० आवे भवनो पार, गाथा-४. ७१२०६. नेमराजिमती सज्झाय व भीलडी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२७४१२, १९४४६). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: बैइ कर जोडी रे वीनउं; अंति: लवण० मुक्ति मझार, गाथा-२८. २. पे. नाम. भीलडी सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: सुरसत सामण बीनवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ तक है., वि. हासिए में भी लिखा है.) ७१२०७. ८ प्रकारीपूजा काव्य, आगम गहुंली व पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४१२, १२४४०). १. पे. नाम. ८ प्रकारी पूजा काव्य, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७२४, आदि: विमलकेवलभासनभास्कर; अंति: देवचंद्र० श्रयंति, श्लोक-९. २.पे. नाम. आगम सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आगम अमृत पीजीये बहुश; अंति: केवल ऋद्धि विसाल रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. पुण्य, पुहिं., पद्य, आदि: जिन से नेह बन्यो; अंति: इतनो हम तेरे पद पाय, गाथा-५. ७१२०८. गुरूणीगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. कस्तुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २०४३७). गुरुणीगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: सुणो आर्याजी अरदास; अंति: परसिद्ध जोड जाणम करी. गाथा-२१. ७१२०९. (+#) अष्टमीतिथि स्तुति, वृश्चिक मंत्र व ७ वार दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४२४-३०). १. पे. नाम. वृश्चिक उत्तारण मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., गद्य, आदि: कालो विछि करकरीयालो; अंति: मंत्र ईश्वरोवाचा, मंत्र-२. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: नय० कोडी कल्याण जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. ७ वार शृंगार दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३०९ __मा.गु., पद्य, आदि: आदीते गुण वेलडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दोहा-२ अपूर्ण तक है.) ७१२१०. (#) युगप्रधानसंख्यालक्षणादि विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २९-२८(१ से २८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४४७-५०). युगप्रधान संख्या लक्षणादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां पंचमारक माहि; अंति: न करवू इति लेशः, संपूर्ण. ७१२११. (+) केशवजीऋषिश्रमणसंघ नियमावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रावण शुक्ल, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. देवकरण ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत., जैदे., (२६४११.५, ३९४११-२६). केशवजी ऋषि श्रमणसंघ नियमावली, आ. केशव ऋषि, मा.गु., गद्य, वि. १७०४, आदि: (१)संवत १७०४ वर्षे, (२)श्री६ आचार्यजी ऋषि; अंति: वांचवो वंचाववो सही ३.. ७१२१२. (4) विविध विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११-१८४४९). १.पे. नाम. जैन संस्कार विचार, प्र. १अ, संपूर्ण. जैन १६ संस्कार विचार, सं., गद्य, आदि: गर्भाधारमासिक पंचमास; अंति: महोत्सवाः क्रियते. २. पे. नाम. श्रावकाचारविचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक आचारविचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: कयवयकम्म१ सुशीलो२; अंति: सुणमाणो सावओ भणिओ, गाथा-७. ३. पे. नाम. देवमनुष्यादि दैवसिक आयुष्योपार्जन विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ____ मा.गु., गद्य, आदि: नरएसु सुरवरउसुअरा१; अंति: कोडि योगुं उपार्जइ. ४. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदि: हस्त्यश्वरथ यानानि; अंति: न दृष्टं घृतं क्वापि, श्लोक-८. ५. पे. नाम. उगणत्तीस आंकप्रमाण मनुष्यसंख्या विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंक, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १एकं रदशं ३शतं ४सहस्; अंति: प्रमाण मनुष्यसंख्या. ७१२१३. १६ सती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११,११४३६-४०). १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: आदिनाथ आदे जिनवर; अंति: उदयरत्न० सुख संपदा ए, गाथा-१७. ७१२१४. वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १३४३५). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२४ तक लिखा है.) ७१२१६. आध्यात्मिक पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, ९४३२). १.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: क्या सोवे उठि जागि; अंति: आनंदघन० देव गाउंरे, गाथा-३. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: रेघरिआरे बाउरे मति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१२१७. अणसण विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३६). संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अणसण गाथा छ नोकार ३; अंति: (-), (वि. अंत में कोष्ठक दिया गया है.) ७१२१८. (#) महाविदेह विचार व दीपावलीपर्व कल्पगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ५४३८). १. पे. नाम. महाविदेहक्षेत्रे आहारमानादि विचार गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: बत्तीसं कवलाहारो; अंति: सीमधरसामी पासाओ, गाथा-४. २.पे. नाम. दीवाली कल्पो, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: वासाण वीससहस्सा; अंति: अक्खर अडयाल जिणधम्मो, श्लोक-१, (वि. पंचमारे जिनधर्म विद्यमानतासूचक दीपावली कल्प की इस गाथा का क्रमांक ६१ लिखा गया है.) ७१२१९. (4) अक्षर बत्रीशी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ६x२४). अक्षरबत्रीशी, श्राव. सुरत, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. छंद-७ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है.) ७१२२०. (+) १६ स्वप्न अर्थ, १४ नियमगाथा व रात्रिभोजन सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६.५४१२, ९४३७). १. पे. नाम. सोलै सुपनारो अरथ, पृ. २अ-३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुण राजा इण कानो रे, गाथा-३१, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चवदै नेम, पृ. ३अ, संपूर्ण. १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सच्चित्त दव्व विगई; अंति: दिसि न्हाण भत्तेसु, गाथा-१. ३. पे. नाम. रात्रिभोजन निवारण सज्झाय, पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: कंदणपुर भूपति भलोजी; अंति: सरीया उत्तम कामरे, गाथा-२१. ७१२२१. (#) जेमलजीऋषि संथारा गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. पांपाउनगर, प्रले. सा. गुतुजी; पठ.सा. कुसाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, २३४३५-३९). जेमलजी ऋषि संथारा गीत, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८५३, आदि: पूज संथारो कीयो; अंति: रायचंद० करडमतीय रे, गाथा-३३. ७१२२२. (#) २४ जिन स्तवन-मातापितानगरीलंछनादि गर्भित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १५४४२). २४ जिन स्तवन-माता पिता नगरी लंछनादि गर्भित, मु. उदयवर्द्धन, सं., पद्य, वि. १६६८, आदि: वृषभाकितंतु; अंति: उदय० कल्पवृक्षाः, गाथा-२७. ७१२२३. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पद व खिमासूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. इस प्रत की सभी कृतियां के कर्ता तपगच्छाधिपती क्षमासूरि के भोजसागर मुनि प्रतीत होते है., जैदे., (२५.५४११, १३४४४-४८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. भोजसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तुंघट आव गोडी प्रभु; अंति: भोजसागर०मे तेरा बंदा, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय तुं जगदीसर; अंति: भोजसागर गुण गाया रे, गाथा-६. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरमंडन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. भोजसागर, पुहि., पद्य, आदि: अंगीया अजब बनी मेरे; अंति: भोजसागर० सेव चरन की, गाथा-४. ४. पे. नाम. खिमासूरि पाटण चातुर्मास गुरूगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. खिमासूरि पाटणचातुर्मास गुरूगुण सज्झाय, मु. भोजसागर, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चोमासेंजी पुज; अंति: भोजसागर० पाट सहेज, गाथा-१३. ७१२२४. सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, ११४३०). सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., पद्य, आदि: बुद्धि विमलकरणी विबु; अंति: दयासूर० नमेवी गजपति, गाथा-९. ७१२२५. (+#) सीमंधरस्वामी स्तवनं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४३७). सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिरसुरअसुरनर वंदि; अंति: बोधिबीजह दायगो, गाथा-२१. ७१२२६. कल्लाणकंद स्तुति, महावीरजिन स्तुति व प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १५४५०). For Private and Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org १. पे नाम, कलाकंद स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणकंदं पढमं अंति: अम्ह सवा पसत्था, गाथा-४. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वीरं देवं नित्यं; अंति: सनो देवी दया दंबा, श्लोक-१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१९ ३. पे. नाम. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय, पृ. १अ १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहंताणं० पंचिं अंति (-) (पू. वि. जगचिंतामणिसूत्र की मात्र २ गाथा लिखी है व सूत्र गाथा-५ अपूर्ण तक है.) "" ७१२२८. डभोड़नगर जिनचैत्यादिवर्णन गीत, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५x११, १६x४५-४८). जिनचैत्यादिवर्णन गीत- डभोइनगर, मा.गु., पद्य, आदि: डभोइनगर खरो ससनेही; अंति: जो कोडी मिलै कवीस रे, ढाल - २, गाथा - २७. " ७१२२९. (*) राजप्रश्रीयसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४-२ (१,३ ) = २, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X११.५, १३x४६). राजप्रनीयसूत्र, प्रा. गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (त्रुटक, पू.वि. "आमलकप्पा नगरी के अंचसाल वन में स्थित महावीर " प्रभु को अवधिज्ञान से देख के सूर्याभदेव विकसीत नेत्र कमल युक्त होता है" यह अधिकार से "आभियोगीक देवों को प्रभु के आसपास जानु प्रमाण पुष्पवृष्टी आदेश" तक व "आभियोगीक देव प्रभु के चारों और संवर्तकवायु से शुद्धि करते है" अधिकार से "पदातिसेनाधिप द्वारा विमानवासी सभी देवो को प्रभु के दर्शनार्थ जाने की तैयारी का आ सुनाना" अधिकार अपूर्ण तक है.) ७१२३०. संकेतकौमुदी, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ४५-४४ (१ से ४४) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.. प्र. वि. हुंडी : संकेतकौमुदी., दे., (२५X११.५, २८x६६). संकेतकौमुदी, मा.गु, गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच के पाठांश है.) ७१२३१. पच्चक्खाणआगार यंत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५x११, १४-१९x१९-५४). १. पे. नाम. पच्चक्खाण आगार यंत्र, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. प्रा., मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि, कोष्ठक में लिखा गया है.) २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: प्रजापति सुतो; अंति: एकमूर्ति कथं भवेत्, श्लोक-२. ७१२३२. जलयात्रावरघोडा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., ( २६१२, १०X३५-३९). जलयात्रा वरघोडा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हवे सामग्री सवी सज; अंतिः शुभवीर० धरमनी टेक, गाथा - १५. ७१२३३. (W) १६ सती सज्झाय व नवकार छंद, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. पत्रांक १x२= १ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २५X१२, १८ - २६१४). १. पे नाम, १६ सती सज्झाय, पृ. १अ संपूर्ण. वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि आदिनाथ आदि जिनवर, अंति: उदयरतन० सुख संपदा ए, गाथा-१७. २. पे. नाम. नमस्कार महामंत्र छंद, पृ. १आ. संपूर्ण. उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: बंछित पुरो विविध परो अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only ७१२३४. ४ दुर्लभवस्तु सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५x११, १२४३२). , ४ दुर्लभ वस्तु सझाव, मु. रत्नचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, बि. १९११, आदि: श्रीजिणवचने जाणज्यो, अंतिः रत्नचंद० जिनवर कही, गाथा- १४. ७१२३५. स्तवनवीसी स्तवन १ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. जैवे., (२५.५x११.५, १३३७-४०). Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामि सीमंधर विनती, अंति: (-), (पू. वि. स्तवन ४ तक है.) ७१२३६. भक्तामरस्तोत्र, घंटाकर्णमंत्र व प्रास्ताविक कवित्त, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. मु. कुशल (गुरु मु. रामसिंघजी, नागोरीतपगछ); गुपि. मु. रामसिंघजी (नागोरीतपगछ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., ( २४.५X११, १०x२९-३२). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण, वि. १७९५, आषाढ़ कृष्ण, १, मंगलवार, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे. नाम. घंटाकर्णोमहा स्तोत्र मंत्र कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ घंटाकर्णो महावीर: अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. मान, मा.गु., पद्य, आदि दिन दोहरा दशवीश कहौ, अंतिः मान० माणस केहा चपडा, का. - १. ७१२३७. (+) विपाकसूत्र- श्रुतस्कंध -२ सुखविपाक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित, जैये. (२५x११, १७x४६-४९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंतिः सेसं जहा आयारस्स, प्रतिपूर्ण ७१२३८. रत्नाकरपच्चीसी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे (२४.५X११, ४४३२-३५). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. ९४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल, अंति: रत्नाकर० प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदिः श्रेय: कहतां मोक्ष, अंति: प्रार्थये मागं छं. ७१२३९. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पठ. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x११.५, १३X३०-३३). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजिअंजियसव्वभयं अंतिः जिणवयणे आवरं कुणह गाथा ४०. ७१२४० (+) भक्तामर स्तोत्र, लघुशांति व मांगलिक लोक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२४x११, १३x३२-३५). १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मीलि अंतिः मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. २. पे नाम, लघुशांति, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने अंत में लिखा है. मानतुंगाचार्य कृत श्रीशांतिनाथ स्तवनं सपूर्ण फिर उवसग्गहरं प्रतीकात्मक लिखा है. आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांतं अंतिः सूरिश्रीमानदेवश्च श्लोक-१७. ३. पे. नाम मांगलिक लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सर्वमंगल मांगल्य; अंति: सुखी भवतु लोकः, श्लोक-३. ७१२४१. दशविधपचखांण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, अन्य. श्राव. रायचंद; लगनसीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X११, ५x२५-३०) प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: असिथेण वा वौसर . ७१२४२. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. घडसी ऋषि (गुरु पं. उत्तमजी ऋषि); गुपि. पं. उत्तमजी ऋषि पठ श्रावि. रतनाचाई, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २४.५X११, ११X३०-३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं. पद्य वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, " लोक-४४. 3 ७१२४३ (+) ह्रीँकारकल्प व मंत्रसंग्रह, संपूर्ण वि. १८६७, माघ शुक्ल ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ३ ले स्थल, वीकानेर, प्र. ग. अमृतसुंदर, अन्य. ग. सुखलाभ गणी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. सुखलाभ गणि लिखित प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है.. संशोधित, जैदे., ( २४४१०.५, १२x६०-६३). १. पे. नाम. मायाबीज कल्प, पृ. १अ - ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३१३ ह्रींकार कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: कुमारिका पासे कोरइ; अंति: तिवारै प्रीति थाइ. २.पे. नाम. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण. जैन मंत्र संग्रह-सामान्य , प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो धरणेद्राय; अंति: कुरु कुरु स्वाहा, (वि. पद्मावतीदेवी व त्रिभुवनस्वामिनीदेवी का मंत्र है.) ३. पे. नाम. ह्रींकार कल्प, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमः एषा; अंति: गुरूपदेशात ज्ञेयः, (वि. अंत में होम सामग्री, विसर्जन व पंचामृत का उल्लेख किया गया है.) ७१२४४. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७४७, मार्गशीर्ष कृष्ण, ४, मंगलवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. गोधावी, पठ. ग. महिमाविजय (गुरु मु. रंग विजय, तपागच्छ); प्रले. मु.रंग विजय (गुरु मु. उदयविजय, तपागच्छ); गुपि. मु. उदयविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३०-३५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७१२४५. (+#) इक्कीस स्थान प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ४, अन्य.सा. नागश्री, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२९-३५). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवणविमाणा १ नयरी; अंति: रिद्धसेणसूरि० भणिया, गाथा-६६. ७१२४६. (+#) चौवीस दंडक बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-२३(१ से ८,१० से २४)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४४११, ११४२७-३०). २४ दंडक बोल संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आयुष्यद्वार प्रथम पाथडा अधिकार से सूक्ष्मबादरनिगोदआयु अपूर्ण तक व अवगाहना द्वार अपूर्ण से उपयोग द्वार अपूर्ण तक है.) ७१२४७. (+#) नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४३७). नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: सरसत चरणांबुज नमु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१३ के दोहे तक लिखा है.) ७१२४८. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह प्रक्षेपगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, ११४४०). १.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, वि. १८३०, मार्गशीर्ष शुक्ल, १५, ले.स्थल. सूरतिबंदर. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्ण पावा; अति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-६२. २. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरणमां प्रक्षेप गाथेयं, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-प्रक्षेप गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: पुग्गल परिअट्टो इह; अंति: नाहं मरणस्स बीयामि, गाथा-१३. ७१२४९. (+) चोराणवे बोल का बासटा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४८-१९). ९४ बोल का ६२ भांगा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ गरब विना जीवमाही; अंति: (-), (वि. कोष्ठक में लिखा गया है.) ७१२५१. (#) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३७-४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथं तमह; अंति: भ्यर्चनोभीष्टलब्ध्यै, श्लोक-१३. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: किं कर्पूरमयं सुधारस; अंति: बीजंबोधिबीज ददातु, श्लोक-११. ३. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: इंद्रभूतिं वसुभूति; अंति: लभंते सुतरां क्रमेण, श्लोक-१०. ७१२५२. सूत्रकृतांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) । ७१२५३. (#) गीत, कवित्त, सवैया व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, प्रले. लखुलाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ९-१२४३२-३६). १.पे. नाम. सुपखरो गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चेता कायबा अनंगा झप; अंति: आचांसांचा करे आघ, गाथा-४. २.पे. नाम. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कवित्त संग्रह, क. गद्द, मा.गु., पद्य, आदि: दाडिम चकई नलिन सिंघ; अंति: गद्द०ओलग मकर संदेसडे, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-जीरावला, मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: वदनप्रभा कहो कवन कवन; अंति: लाल० जयो पास जीरावला, पद-१. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लाल, पुहिं., पद्य, आदि: अश्वसेन नरिंदह इंद; अंति: लाल कहे० भज रे भज रे, सवैया-१. ५. पे. नाम. पश्चाताप दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण, पठ. मु. लालचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक दोहा संग्रह , पुहिं., पद्य, आदि: युद्ध संगम रित नेह; अंति: गहत फिर पीछे पिछतान, दोहा-१. ६. पे. नाम. १२ मासीय बादलबीजली विचार पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: आसाढी धुर पंचमी नही; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., चैतमास विचार तक लिखा है., वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है.) ७. पे. नाम. ८४ गच्छ पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गच्छ कहीये तपा, गाथा-१, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., पाद-१ नहीं लिखा ८.पे. नाम. ८४ लाख जीवयोनि पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नवलख जल में जीव दस; अंति: धनजीव समरे धरणीधरा, पद-१. ९. पे. नाम. १८ भार वनस्पति गाथा, पृ. २आ, संपूर्ण. क. शुभ, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम कोडि अडतीस; अंति: कवि शुभ०कहे मोटा यति, गाथा-३. ७१२५४. (+#) रामतियालाशिष्यप्रबंध, औपदेशिक श्लोकादि व चंद्रमासूर्यमांडला विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, २२४५६-६५). १. पे. नाम. रामतियाला शिष्य प्रबंध सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. फूलडा सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, आदि: बाई हे मई कउतिग दीठ; अंति: सुखि सुखीयउ किम यउ, गाथा-२३. फूलडा सज्झाय-टीका, सं., गद्य, आदि: श्रीवीरमुक्ति गमनतः; अंति: सौख्यभागी जज्ञे. २.पे. नाम. औपदेशिक श्लोक पद गाथादि संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह", पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कुल कलंक लगि हइ जगि; अंति: वाक्यात्प्रेरितो नरः. ३. पे. नाम. चंद्रमासूर्यमांडला विचार, पृ. २अ, संपूर्ण. चंद्रसूर्यमंडल विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पनरस चुलसी असयं इह; अंति: द्वीपमाहे थकउ चालइ. ७१२५५. पार्श्वजिन स्तवन व तिजयपहत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, ११-१६४३०-४२). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उतरा हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ___३१५ पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधु; अंति: एव लक्ष्मीविशेषाः, श्लोक-१३. २.पे. नाम. तिजयपहुत्त स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: ॐतिजयपहुत्तपयास; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ७१२५६. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन-१ विनयसुयं, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १४४४४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (-), ग्रं. २०००, प्रतिपूर्ण. ७१२५७. (#) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४३५-३९). जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहंताणं० तेणं; अंति: (-), (पू.वि. "भरतक्षेत्र के बीचोबीच वैताढ्य पर्वत" का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७१२५८. वैराग्यशतक सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१०(१ से १०)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, ५४३०-३३). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८२ अपूर्ण से ९८ अपूर्ण तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१२५९. (+#) दुरिअरयसमीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. माणेकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५). दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दुरियरयसमीर मोहपको; अंति: सया पायप्पणामो तुह, गाथा-४४. ७१२६०. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन-२८, संपूर्ण, वि. १९३५, आश्विन कृष्ण, १३, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मोरबी, प्रले. श्राव. कुशलचंद संघवी; पठ.सा. जीवीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, ११४३६-४०). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मोक्खमग्गइ तं च सुणे; अंति: महेसिणो त्तिबेमि, प्रतिपूर्ण. ७१२६१. (+#) संस्कृत परीपाटी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४४०). जैनधार्मिक परिपाटी, सं., गद्य, आदि: भो त्वया यदुक्तं; अंति: वा समागच्छ पश्चाद्वद. ७१२६२. (#) उक्तिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६४३८-४२). विविधशास्त्रोक्तविषयचर्चा वर्णन, सं., प+ग., आदि: श्रीमत्पूज्याचार्यो; अंति: यथा सुखं भवेत्. ७१२६३. शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२०, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कोटारामपुरा, दे., (२६४११.५, ८x१९). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७१२६४. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४१२, ११४२३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांतं; अंति: श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक-१९. ७१२६५. (+) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, ६x२३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अभत्तट्ठ; अंति: तस्स मिछामि दुक्कडं. ७१२६६. (+) दशवैकालिकसूत्र- अध्ययन १-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५४३७-४०). दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम एवं द्वितीय अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगल मुक्किट्ठ; अंति: पुरिसुत्तमो त्तिबेमि. दशवकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम एवं द्वितीय अध्ययन-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: धर्मः मंगलं उत्कृष्ट; अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१२६७. (*) नमस्कारचतुर्विंशति, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, १२x२५-२८). יי त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी, आदिः सकलार्हत प्रतीष्ठान, अंतिः तानि वंदे निरंतरम्, श्लोक-३५. ७१२६८. (*) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-९, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जी., (२५.५x१०.५, १८४४७-५२). उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि (-) अंति (-), ग्रं. २००० प्रतिपूर्ण ७१२६९ बयालीस दोष सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, जैवे. (२५.५४१२, ४४३३). " ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: अहाकम्मं उदेसिअ अंति: वारसहेउ दवसंजोगा, गाथा ६. गोचरी दोष -टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: साधनइ काझइ छकायनो; अंति: जैन आहार करवो साधु. ७१२७०. (*) क्षुल्लकभव प्रकरण व गाथा संग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-पंचपाठ-संशोधित अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६X११, ८x२८-३२). १. पे. नाम. क्षुल्लक प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्ता सिरिवीर, अंतिः सहेअव्वं सुअहरेहिं, गाथा-२५. क्षुल्लकभव प्रकरण- स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, आदि: वंदित्ता० सुगमा नवरं, अंति: संशोध्य श्रुतधरैरिति, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २. पे. नाम. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व सह अवचूरि, पृ. २आ, संपूर्ण दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पपुदउकमसो जीवा जलवणव, अंति: गामा दाहिणो झुस्त्रिं, गाथा-२. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: पपुवउकसो इति पश्चिमा, अंति: चुर्याद्वहुतमो वायुः ७१२७१. (+) सुभाषित श्लोक संग्रह व सप्तवार कथा विषयसंकेत सूची, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-२ (१ से २)=२, कुल पे. २, प्र. वि. पत्रांक अनुमानित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. दे., (२५X१२, १८x४५-५०). १. पे. नाम. सुभाषितश्लोक संग्रह, पृ. ३अ ४अ, संपूर्ण. सुभाषित लोक संग्रह * पुहिं प्रा. मा.गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). *, "" २. पे. नाम. सप्तवार कथा विषय संकेतसूची, पृ. ४आ, संपूर्ण. सप्तवार कथा विषय संकेत, सं., गद्य, आदि: सुयोधन कथा राजा; अंति: विरोधो न कर्त्तव्यः. ७१२७२. चडशरण, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)= २, जैवे. (२६४१२, १३x२३-२६). " चतुः शरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, (पू.वि. गाथा- ३९ अपूर्ण से है.) ७१२७३. (+) उपधान विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-१० (१ से १०) = २, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित., जैदे., (२५X१२, १३३८-४२). उपधानतप विधि, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "देववंदन विधि" अपूर्ण से "वीस स्थानकादिसर्वत उच्चार विधि अपूर्ण तक है.) ७१२७४. (#) पार्श्वजिन स्तोत्र व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११.५, १२x२९-३२). १. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २अ - २आ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " पार्श्वजिन स्तोत्र - चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि (-) अंति; बीजं बोधबीजं ददातु श्लोक-११, ( पू. वि. गाथा - ५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. रत्नकीर्ति, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पासनाहं विसहर; अंति: रणं संथवणं पासनाहस्स, गाथा-७. For Private and Personal Use Only Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३१७ ७१२७५. (+#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ६४३०-३३). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं करेमि; अंति: (-), (पू.वि. चार कषाय की चर्चा अपूर्ण तक पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: वांछउ निवर्तवा कहिता; अंति: (-). ७१२७७. (+#) चोवीसदंडक स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११, ६४३०). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपासनाह; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण तक है.) पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो दंडक नारकीनो; अंति: (-). ७१२७८. ऋषिमंडल स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, जैदे., (२५४११, १२४३१). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: स्तोत्रमुत्तमम्, श्लोक-१०३, ग्रं. १५०, (पू.वि. श्लोक-४८ अपूर्ण से है.) ७१२७९. (#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले.पं. लब्धिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४४०-४३). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामीगणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यंताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-८७, ग्रं. १५०. ७१२८०. (#) ठाणांगसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २४३३-३६). स्थानांगसूत्र- टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देशक ३ ज्ञात पद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: आहारण कहता जे अर्थ; ___अंति: एवं न्याय प्रकार, संपूर्ण. ७१२८१. (#) नवतत्त्व सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. आगरा, प्रले.ऋ. मांडा; पठ. श्रावि. कसऊबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३४-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ७१२८२. नवस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १०४२७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहताणं हवइ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., तिजयपहुत्त स्तोत्र गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७१२८३. (4) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. हेमराज ऋषि (विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४४०-४३). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: गारेणं वोसिरामि. ७१२८४. (+#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सवाराजपुर, प्रले. सा. रायकुंवरी (गुरु सा. म्हाकुवरी); गुपि. सा. म्हाकुवरी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४४). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि पडिक्कमिउ; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-३१. ७१२८५. (+) सिद्धदंडिका स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. त्रिपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ६४४८-५२). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जंउसभ केवलाउ; अंति: किंतु सिद्धिसुहं, गाथा-१३, (वि. यंत्र सहित) सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: व्युगानि कालमानविशेष; अंति: दंडिकासु भावनीयं. For Private and Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१२८६. अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१२, १३४४८-५२). अजितशांति स्तव , आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: पुव्वपन्ना बिनासंति, गाथा-३९. ७१२८७. मणिभद्र छंद व औषधि निर्माण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, १५४४०-४४). १.पे. नाम. माणिभद्रवीर छंद, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८६०, फाल्गुन कृष्ण, १, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. अमृतसोम (तपालोहडीपोसाल गच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति सामनी पाय; अंति: आपे मुझ सुख संपदा, गाथा-४०. २.पे. नाम. हेंगलोक मारवानी विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१२८८. (#) ऋषभदेवगर्भितसिद्धाचल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. गौतमविजय गणि, प्र.ले.प. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४५). शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, आदि: मुनींद्रैः सुरेंद्रै; अंति: भक्त्या भजध्वं च तं, श्लोक-३३. ७१२८९. (+#) सम्यक्त्वपच्चीसी सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पामापल्या, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२१-२८). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: होउसम्मत्त संपत्ती, गाथा-२५. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: यथा येनोपशमिकत्वादि; अंति: भवतु अन्यत्सुगमं. ७१२९१. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, पौष शुक्ल, १४, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, पठ. श्राव. गुलाबचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, ११४२५). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैनं जयति शासनम्, श्लोक-१७. ७१२९२. (+) दानशीलतपभावना कूलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ९४५३). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रज्जसारो; अंति: (-), (पू.वि. तप भावना के गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: परिहरिउंछाडिउ; अंति: (-). ७१२९३. मौनएकादशी गणj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १२४३७). अढीद्वीपे अतीतवर्तमानअनागतचौवीसी नाम, मा.गु., गद्य, आदि: जंबुद्वीपे भरत; अंति: श्री आरुणकनाथाय नमः. ७१२९४. (#) जंबूद्वीपसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. ताराचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १२४३३). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रइया हरीभद्दसूरिहि, गाथा-३०. ७१२९५. उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, १५४४७). उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जगचूडाम सवस्सर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३६६ तक है.) ७१२९६. (#) अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, पृ.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, ८x२३-२६). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से १३ अपूर्ण तक एवं गाथा-१९ अपूर्ण के पश्चात नहीं है.) ७१२९८. (#) उत्तराध्ययनसूत्र- नमिपव्वजा, संपूर्ण, वि. १८८०, आषाढ़ कृष्ण, ८, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. साहिपुरा, प्रले. मु. जगराम (गुरु मु. कनीराम); गुपि.मु. कनीराम (गुरु मु. गाढमल); मु. गाढमल (गुरु मु. सामीदास); मु. सामीदास (गुरु मु. दीपचंद), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १८४३४-३८). For Private and Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३१९ उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चइउणं देवलोगाओ उववन्; अंति: नमीरायरिसि त्ति बेमि, गाथा-६२. ७१२९९. (+) बृहत्संग्रहणी, गाथा-३२६-३३५ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ५४३०). बृहत्संग्रहणी, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ७पू, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. बृहत्संग्रहणी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७१३००. (+) स्थानांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. मात्र प्रथम पत्र में टबार्थ लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ६४३६-३९). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: सुयं मे आउसं तेणं भग; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., ठाणं-१, सूत्र-५१ अपूर्ण तक है.) स्थानांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: सुधर्मास्वामी जंबूने; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सूत्र-४७ ___ अपूर्ण तक ही टबार्थ लिखा है.) ७१३०१. (+) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२७.५४१२.५, १४४५०-५४). १.पे. नाम. युगादिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: चिंतातीत फलप्रदः स; अंति: जग्मुर्जगच्चक्षुषां, श्लोक-१. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वसन् शैवे मूर्ध्नि; अंति: भवतु भवशांति प्रशमनः, श्लोक-१. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: जयति यजिनेंद्रः; अंति: कुंठतामेत्य यस्मात, श्लोक-१. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: यज्जन्म स्नात्रकाले; अंति: तमामगिनामंगलानि, श्लोक-१. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: धर्मे निर्मल; अंति: पार्श्वनाथः श्रिये, श्लोक-१. ६.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं धरणो; अंति: नमामः कुशलं लभामः, श्लोक-५. ७१३०२. पार्श्वनाथना दशभव, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२-९१(१ से ९१)=१, ले.स्थल. समीनगर, प्रले.ग. खिमाविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने पार्श्वनाथ पंचकल्याणक का मात्र प्रारंभिक संकेत दिया है., प्र.ले.श्लो. (२०९) जलाद्रक्षे थलाद्रक्षे, (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा, जैदे., (२६४११.५, १९४५०). पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन*,सं., गद्य, आदि: पुतनपुरं नामनगर; अंति: च अग्रे कथयिष्यते, संपूर्ण. ७१३०३. क्षेत्रपाल छंद, सरस्वती स्तोत्र व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. देकावडा, जैदे., (२६४११.५, १२४४१-४४). १. पे. नाम. क्षेत्रपाल छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: भाठी भरमज भेरवो; अंति: पोहर चाचर चालो सुध, गाथा-२. २. पे. नाम. सरस्वतीमातानो स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: विपुलसौक्षमनंत धनागम; अंति: रिदये कमलापति, श्लोक-१५. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. राज, पुहि., पद्य, आदि: श्रीजिनराज के सतर; अंति: अवीचल सुख राज के, दोहा-६. ७१३०४. पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १३४३०-३४). ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहंता; अंति: सुश्रावक सुश्राविका. For Private and Personal Use Only Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१३०५. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२६४११.५, १३४३६) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांत; अंतिः श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक - १९. ७१३०६. (#) सिद्धसारस्वत स्तव व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४x११, १२x२७-३०). १. पे. नाम. सिद्धसारस्वत स्तव, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक - १० तक लिखा है.) २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पु,ि पद्य, आदि: राम किसीकु नहि मारते; अंतिः कर कर खोटा काम, दोहा १. ७१३०७. (+) चतुः शरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. जैवे. (२५.५x११, १०x३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा १६ तक लिखा है.) ७१३०८. (+) वर्द्धमानजिन स्तुति, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पवच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. कुल नं. ५६ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५.५४११, १८४४५-४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: जयति जय विराजित; अंति: भारती सर्वदा क्षेमदा, श्लोक-४. ७१३०९ (F) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे, ५. प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४१२, १५X४०). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामीजीनी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, आदि: महीमंडणं पुन्नसोवन्न, अंति देहि मे सुद्धनाणं, गाधा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच, अंतिः सिद्धायिका प्रायिका श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: चोवीसे जिनवर प्रणमु; अंति: जीवित जनम प्रमाण, गाथा-४. ४. पे. नाम. मौनएकादशी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि, अंति: प्लवः क्षितौ कल्याणा, श्लोक-४. ५. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः यदंहिनमनादेव देहिन, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ७१३१०. (#) चोवीसजिन स्तुति, महावीरजन्मकल्याण पद व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है. जैदे., (२५x११.५, १३४३६-४०). १. पे. नाम. चोवीसजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नतसुरेंद्रजिनेंद्र, अंति: जिनप्रभसूरि० मगहर, श्लोक ९. २. पे. नाम. महावीर जन्मकल्याणक पद, पृ. १आ, संपूर्ण महावीरजिन पद- जन्मकल्याण, मु. धर्मकल्याण, पुहिं., पद्य, आदि घरि घरि आज वधाई रे, अंति: धरमकल्याण० आज बधाई, गाथा-८. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. " आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: अखियां हरखन लागी अंतिः ज्ञानविमल० मोहि जागी, गाथा ५. ७१३११. अतिचार गाथा संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. ग. प्रभुहंस, सा. गुणा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५५११, ७X२३). पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि; नाणम्मि दंसणम्मिअ, अंतिः नायव्वो वीरियायारो, गाथा ८. For Private and Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३२१ ७१३१२, (७) स्तवन, सज्झाय व पदसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २१(१) = १, कुल पे ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X१२, १३x४२). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सुमतिजिन स्तवन- उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि (-); अंति मोहन कहे० जिनवर एह, गावा- ७, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम हितशिक्षा सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर तुं चाख मुज सीख, अंतिः ऋद्धिविजय सकल सीझे, गाथा ५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु, पद्य, आदि प्राण थकी प्यारो अंतिः मोहन० प्राणाधार के, गाथा- ७. ४. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. जयराम, पुहिं., पद्य, आदि: असरण सरण चरण कमल, अंति: जैराम० सीलवंत आज के, गाथा-४. ७१३१३. गौतमाष्टक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे. (२५.५४११ ९५३१-३५ ). गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., पद्य, आदि इंद्रभूति वसुभूति, अंति: देवानंद० क्रमेण श्लोक ८. ७१३१४. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११, १८X३६-३९). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: सिवं भवंतु स्वाहा. ७१३१५. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन- ३ चतुरंगिकाध्यचन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५.५४११.५, ११४२७-३५). , उत्तराध्ययन सूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, ७१३१६. (+) जीवोत्पत्ति विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित, जैवे., (२६११.५, १५X६६). जीवोत्पत्तिविचार संग्रह, रा. गद्य, आदि: स्त्री तणी नाभि हेठि अंतिः (-), (पू.वि. "मलमूत्र वायु सुखिई हुई" पाठ तक है.) " ७१३१७, (+) चैत्यवंदनविधि कुलक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, १५X३४). चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा., पद्य, आदि तिन्नि निसीही तिन्नि, अंति: (-), (पू.वि. गाथा ३४ अपूर्ण तक है.) ७१३१८. (+) सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२-२१(१ से २१) - १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५x११.५, १३X३८-४२). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अष्टम पाहुड के बीच के पाठ हैं) ७१३१९. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, जैवे. (२५.५x११.५, ११४४०-४३) 5 दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्ति, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन- ३, गाथा-१२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१३२०. (#) पिंडविशुद्धि प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११, १७५४-६०) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: बोहिंतु सोहिं तुया, गाथा-१०३, (पू. वि. गाथा - ५७ अपूर्ण से है . ) ७१३२१. महावीर स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पंचपाठ, जै, (२५.५x११, ४४४५-४८). महावीरजिन स्तवन, आ. गजसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: बुधजनैकजिनं कुरुनापर, अंति: गजसागर० चिह्नविदाविद, श्लोक-६. For Private and Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महावीर जिन स्तवन- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: बुध हे बुधजन, अंति: अक्षरं व्यंजनं वदति ७१३२२. २४ तीर्थंकरों के नाम-गण-योनि- नक्षत्र - राशी - लंछनयंत्रादि, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११.५, १५x५७). २४ तीर्थंकर के नाम - गण - योनि - नक्षत्र - राशि - लंछनयंत्रादि सहित, मा.गु., सं., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. च चि-३ सिंह वर्ग तक है.) ७१३२३. (*) मनुष्यभवसफलकरणश्रीजिनेश्वराणां नमस्कारः, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५X११.५, १२X३३-३६). साधारणजिन पद, प्रा. सं., पद्य, आदि: जयजय जिणिंद तियसिदवि, अंति: जिनसाक्षात् सुरद्रुम, गाथा - ११. ७१३२४. (+) जैनमंत्र संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ७-६ (१ से ६) = १. पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, १४x२८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैन मंत्र संग्रह- सामान्य, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "भूतबलि मंत्र" अपूर्ण से "अंगन्यास मंत्र" तक है.) प्र.ले.पु. सामान्य, " ७१३२५. (४) तिजयपहुत्त स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल, खांडप, प्रले. मु. दुलीचंद (तपागच्छ), प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५. ५x११, १४X३९). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अङ्क अंतिः निब्धंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. ७१३२६. (+#) संसारदावानल स्तुत्यादि सह टबार्थ व सरस्वती मंत्र, संपूर्ण, वि. १८८५ कार्तिक कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. जीवराज कनरसा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२६४१२.५, ६४३०-३५ ). " १. पे. नाम. संसारदावानल सह टबार्थ, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. सं., पद्य, आदिः संसारदावानलदाहनीर, अंति देहि मे देवि सारम्, "" लोक-४. संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसाररूप दावानल; अंति: सरस्वती तु प्रधान छे. २. पे नाम, पाक्षिकपर्व स्तुति सह टवार्थ, पृ. ९आ-२आ, संपूर्ण, पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्या प्रतिमस्य अंतिः कार्येषु सिद्धिम् श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नवराव्या ए शरखी नथी, अंतिः विषे सिद्धि प्रते. , ३. पे नाम, नेमिनाथ स्तुति सह टवार्थ, पृ. २आ- ३आ, संपूर्ण ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमि: पंचरूप, अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि लक्ष्मीवंत नेमिनाथ; अंतिः सावधान छे उपयोग सहित ४. पे नाम, सरस्वती मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण, सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ क्लीँ ब्लू, अंति: १०८ वार पूर्वाभिमुखे. ७१३२७ (+) अष्टक संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३ कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x१२.५ १०x३५-३८). 1 ', " १. पे नाम. सरस्वती अष्टक, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमस्त्रिदशवंदित अंतिः समधुरोज्ज्वलांगिरः, श्लोक- ९. २. पे. नाम. शारदाष्टक, पृ. १आ- ३अ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि राजते श्रीमती देवता, अंति: मेधावी बुद्धिविभवेन, श्लोक ९. ३. पे. नाम. गणपति अष्टक, पृ. ३अ ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि द्वे भायें सिद्धि: अंतिः येस्तुतिं संगिरंते, श्लोक ९. ७१३२८. (+#) लघुसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, अन्य मु. चैनसागरजी यति, प्र.ले.पु. सामान्य, , प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जै.. (२६४१२, ६३३-३६). For Private and Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंति: रईया हरिभद्दसूरिहिं, गाथा - ३०, , संपूर्ण. लघुसंग्रहणी - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी जिनप्रति; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा का बार्थ लिखा है.) ७१३२९. जैनस्तुति श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. नारायण नत्थुजी बारोट, प्र. ले. पु. सामान्य, दे., (२७४१२.५, १२X३६-३९). ७१३३१. जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५x१२, ११x२८-३२). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा. सं., पद्य, आदिः किंकर्पूरमयं सुधारस अंतिः देवो वीतरागस्त्वमेव श्लोक-४०. ७१३३०. (#) पंचमीतपउद्यापन विधि व दसपच्चक्खाण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२, १३४३०-३३). १. पे. नाम. ज्ञानपंचमीतप उजमणुं, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: तप करी उजमणुं कीजै; अंति: अनुमान सनमान कीजै. २. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. २अ- ३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि दो चैव नमुक्कारो अंति: (-), (पू. वि. एकासणा पच्चक्खाण अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण, अंतिः शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा ५१. ७१३३३. छत्रीसबोल थोकडो, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, दे. (२६४१२, ११४४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५ बोल- गति, मा.गु., गद्य, आदि; पेलै बोले गति च्यार, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, नौवें बोल अपूर्ण तक लिखा है.) ७१३३४. (+#) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९२७, कार्तिक कृष्ण, ९, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. बीकानेर, प्रले. श्राव. हरखचंद, पठ. मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x१२, १५X३५-३८). ग. पद्मविजय, मा.गु, पद्य, आदि: विमल केवल ज्ञान कमला; अंतिः पद्मविजय सुहितकरं, गाथा-७. २. पे. नाम. सामायिक लेने की विधि, पृ. १अ-३-अ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरु; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा - ७४. ७१३३५. शत्रुंजय चैत्यवंदन व सामायिक विधि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५X१२.५, १२X३५-३८). १. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जो गुरुस्थापना होय; अंतिः प्रगट ३ नोकार गणवा. ३. पे. नाम. सामायिक पारने की विधि, प्र. ३अ. ३आ, संपूर्ण, ३२३ संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमनि पेठे एक नोका; अंति: एक नोकार गणि उठवुं. ७१३३६, (+) वंदित्तुसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६५१२.५, ११४२८). दिसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदितु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ७१३३७. (+) होलीका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. कुल ग्रं. ४०१, जैदे., (२५.५x११.५, ११x४०-४३). होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३५, आदि: होलिका फाल्गुने मासे, अंति ', व्याख्यानमाख्यानभृत्. For Private and Personal Use Only ७१३३८. (+) साधारणजिन स्तवन सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३ ले. स्थल, पाटण, प्रले. पं. सिद्धसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में कः शब्द का रूप अपूर्ण लिखा है., त्रिपाठ - टिप्पण युक्त विशेष पाठ - अन्वय दर्शक अंकयुक्त पाठ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२६४११.५, २x४०-४३). "" साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि देवाप्रभोयं विधिना अंतिः वयानंदमव प्रदेवाः, श्लोक ९. साधारण जिन स्तव - वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: देवाः प्र० व्याख्या; अंति: कनककुशलेन० शताधिकम्. Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१३३९. (+#) आर्यवसुधारा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. प्रतिलेखक के द्वारा पत्रांक न लिखे जाने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३३). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "उपहृदयं ॐ लक्ष्मीभूतलनिवासिन्यै स्वाहा" पाठ से है व "ॐ वसुधारे सर्वार्थसाधने साधय उद्धर रक्ष" पाठ तक लिखा है.) ७१३४०. (+#) दंडक प्रकरण व आयुष्य विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४४३-४७). १.पे. नाम. दंडकप्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, वि. १७५२, फाल्गुन कृष्ण, ८, रविवार, ले.स्थल. ब्रह्मसर, प्रले. ग. रत्नसिंह; पठ.मु. अमीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउ चउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-३८. दंडक प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमीने चउवीस जिनेश्वर; अंति: आपने हितरइ वासरइ. २. पे. नाम. आयुष्यविचार सह बालावबोध, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १७५२, चैत्र शुक्ल, ८, सोमवार. आयुष्य विचार, अप., पद्य, आदि: मणुआण वीसुत्तरसय; अंति: पंचम अरए आऊ जिणादि, गाथा-५. आयुष्य विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मनुष्य वर्ष १२० गज व; अंति: वर्ष १ किंसारी मास ३. ७१३४१. (#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८७५, भाद्रपद कृष्ण, १०, बुधवार, मध्यम, पृ. ५-२(३ से ४)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १०४३०-३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणत मौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-१७ अपूर्ण से ३८ अपूर्ण तक नहीं है.) ७१३४२. (+#) अंबड चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पत्रांक वाला भाग खंडित होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १७४५३). अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. आदेश-५ अपूर्ण से ७ अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ७१३४३. (+#) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "चत्तदोसस्स गुणगाहियस्स" पाठ से "मोहयाए मंदयाए किड्डयाए" पाठ तक है.) ७१३४४. (+) पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११४-१११(१ से १११)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, ६४३७-४२). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-३, सूत्र-१५ अपूर्ण से २१ अपूर्ण तक है.) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१३४५. जयतिहुयण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२५, आषाढ़ शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. वाचनार्थे का नाम अस्पष्ट व संदेहास्पद है., दे.. (२५४१२.५, १५४२९). जयतिहअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: जय तियण वरकप्प; अंति: अभय विन्नवइ अणिंदिय, गाथा-३०. ७१३४६. (२) उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४५-५०). उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे इंद; अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., गाथा-६५ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७१३४७. (#) प्रश्नोत्तररत्नमाला व कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, अन्य. मु. बगसी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५ १५X४०-४५). १. पे. नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र, अंति: कंठगता कं न भूषयति, श्लोक-२९. २. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १. पे. नाम. वृद्धशांति, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. बृहत्शांति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., प+ग, आदि भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ७१३४९_ (**) जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. डुंगरशी, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., ( २६११, ७X५०-५३). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुदाइ सूअ समुदाउ, गाथा - ५१. जीवविचार प्रकरण- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: भुवनलोक मांहे प्रदीप, अंति: जिन परंपरायइ काउ ७१३५०. बृहत्शांतिस्तोत्र व चारमंगल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे. (२६१२, १३३४-३७). २. पे नाम, च्यार मंगल, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण, ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आविः सिद्धारथ भूपति सोहि अंति: उदयरत्न भाखे एम, गाथा - २०. ७१३५१. (#) आलोयणा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, २०५५०). " आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं ३ अंति: (-), (पू. वि. १४वें आगार तक है.) ७१३५२. दस प्रत्याख्याण सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, दे., ( २५X११.५, ११x२१). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रत्याख्याण- ९ अपूर्ण से है. ) ७१३५३. (#) आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १२४३६-४०). आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ज्ञान नइ विषइ जे; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ७१३५४. (+) तीर्थमाला स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. नरविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैवे. (२६४१२, १२x२७-३०). तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके अंतिः जायते मानवानाम्, श्लोक १०. ७१३५५ (+) लघुशांति स्तोत्र, संसारदावानल स्तोत्र व जगचिंतामणि सूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५X११, १३x४०-४३). ३२५ १. पे नाम, लघुशांति स्तोत्र, पृ. १अ ९आ, संपूर्ण लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि शांति शांति निशांत, अंतिः पूज्यमान० जयति शासनं, श्लोक १९. २. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देहि मे देवि सारम्, ३. पे नाम, जगचिंतामणि सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण For Private and Personal Use Only श्लोक-४. , संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर प्रा. प+ग, आदि (-); अंति: (-) (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा १ पूर्ण २ अपूर्ण तक लिखकर प्रतिलेखक ने संपूर्ण कर दिया है.) " Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३२६ www.kobatirth.org ७१३५६. (*) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-१, सज्झाय व गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र. वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १४४४३). १. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र - दुमपुप्फिया, पृ. १अ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि धम्मो मंगलमुक्किड, अंतिः (-), प्रतिपूर्ण मा.गु., पद्य, आदिः सरावग थोडा बोलजे तो; अंति: समजउ तेम पराणी जी, गाथा - ५. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. इलाकुमार सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. वैराग्यदृष्टांत सज्झाय, मा.गु., पद्म, आदि: इलाकुमार हिवे केवली अंति: (-), (अपूर्ण. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. गाथा - ७ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. आवकशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण मु. भूधर, पुहिं., पद्य, आदि: देख्या दुनियां बीचि, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ अपूर्ण क लिखा है.) ५. पे. नाम औपदेशिक गाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक गाथा संग्रह, पुहिं., मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है, वि. असंबद्ध पाठ.) ७१३५७. (+) पार्श्वजिन स्तुति व महावीरजिनेंद्र स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x१२, ११४३८). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तव, पृ. ८ अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: मालामालानबाहुर्दधददध; अंतिः वलयवलयश्यामदेहामदेहा, श्लोक-४. २. पे. नाम महावीरजिन स्तुति, पृ. ८अ ८आ, संपूर्ण महावीरजिनेंद्र स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: नमदमरशिरोरुहस्त्रस्त, अति: सिनीहारताराचनक्षेमदा, गाथा ४. ७१३५८. पंचमवाड सज्झाय, आत्म सज्झाय व वासुपूज्यजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १. कुल पे. ४, प्र. मु. माणभद्रजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५x१२, १७-२१४४२०५३). १. पे. नाम. नववाड सज्झाय- पंचमवाड, पृ. १अ, संपूर्ण. नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ. संपूर्ण. पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: करिज्यौ मत अहंकार, अंति: एक धर्म मन में धरो, गाथा - ११. ३. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: शीतल जिमनी सेवना; अंति: तु प्राण आधार हो, गाथा- ७. For Private and Personal Use Only ४. पे. नाम. वासुपूज्यजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: स्वामि तुमे कांइ, अंति: जस कहै हैजे हलस्युं, गाथा-५. ७१३५९. (#) अंबड चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४- २३ (१ से २३ ) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १५X४४). अंबड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. षष्ठ आदेश श्लोक ११३ अपूर्ण से १५१ तक है.) ७१३६०. (*) महावीरन्यात्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पू. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १६x४०-४३). महावीरजिन जातकर्म विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: चैत्रे सुदि तेरेसिना, अंति: (-), (पू.वि. बालक महावीर के शरीर में चंदन, कस्तूरी, केशरादि का विलेपण कर अपूर्व आभूषण पहनाने की विधि का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७१३६१. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५X११, ११४३३). Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, आदि: श्रीवर्धमानाय श्रीमत; अंति: (-). ७१३६२. (+#) नियंठा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६.५४११.५, १८-२२४४६-५१). भगवतीसूत्र-नियंठा विचार, हिस्सा, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: पण्णवय १ बेय २ रागे; अंति: नियंठानो यंत्र जाणवो, द्वार-३६, संपूर्ण. ७१३६३. (+) चैत्यवंदन व स्तुतिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. चिमन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४१२, १३४३८). १. पे. नाम. पर्युषण चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पर्व पज्जुसण गुणनीलो; अंति: शासने पामो जयजयकार, गाथा-९. २. पे. नाम. २० विहरमान स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: द्वीपेत्र सीमंधर; अंति: कर्मणामष्टकं च, श्लोक-४. ३. पे. नाम. वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्राणतथी इहां आवी; अंति: जिन नमतां सुख थाय, गाथा-३. ४. पे. नाम. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलि रास उद्धत, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धृत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: अरिहंत नमो भगवंत; अंति: ज्ञानविमलसुरीस नमो, गाथा-८. ५. पे. नाम. शाश्वतजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुदी आठम चंद्रानन; अंति: शासने करीए एक अवतार, गाथा-१. ७१३६४. घंटाकर्ण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९७२, वैशाख कृष्ण, ८, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. ऋ. शिवजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१२, ४४२३). घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: घंटाकर्णो महावीरः; अंति: ते ठः ठः ठः स्वाहा, श्लोक-४. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेना कानमां अथवा; अंति: निनो चोरनो भय न थाय. ७१३६५. क्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ११४३१-३६). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८३ अपूर्ण से २०२ अपूर्ण तक है.) ७१३६६. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनमांहि प्रदीप; अंति: (-). ७१३६७.(+) समवसरण स्तव सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ५-११४६२). समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदि: थुणिमो केवलीवत्थ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२३ अपूर्ण तक समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: तीर्थंकरं समवसरणस्थं; अंति: (-). ७१३६८. २० स्थानकपदगाथा व आहारप्रमाणगाथा सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२५.५४११, २-६४३६-४०). १.पे. नाम. २० स्थानकपद गाथा सह टीका, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २० स्थानकतपगाथा, प्रा., पद्य, आदि: अरिहंत सिद्ध पवयण; अंति: तित्थयरत्तं लहइ जीवो, गाथा-३, संपूर्ण. २० स्थानकतपगाथा-टीका, सं., गद्य, आदि: तत्राशोकाद्यष्टमहा; अंति: लभते जाव, संपूर्ण. २.पे. नाम. आहारप्रमाण गाथा सह टीका, पृ. ३आ, संपूर्ण. आहारप्रमाण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: निययाहारस्स सया; अंति: वयणं ततो तेसिं, गाथा-२. आहारप्रमाण गाथा-टीका, सं., पद्य, आदि: द्वात्रिंशतं कुकुड्य; अंति: संख्या द्रष्टव्या. ७१३६९. नेमराजिमती नवरसो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). नेमराजिमतीनवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउं विठला; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७१३७०. श्रावकदिनकृत्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, ७४२५-३०). मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: मन्हजिणाणं आणं मिच्छ; अंति: निच्चं सुगुरूवएसेणं, __ गाथा-५. ७१३७१. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३३-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण से गाथा-३२ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१३७३. (+) वर्द्धमानजिन स्तुति, चतुर्विंशतिजिन स्तुति व नवग्रह स्तोत्रादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १३४४१-४५). १. पे. नाम. वर्धमानजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: यदहिनमनादेव देहिन; अंति: नित्यममंगलेभ्यः, श्लोक-४. २. पे. नाम. नवग्रह रक्षा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरु नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिस्तवः, श्लोक-११. ३. पे. नाम. शनि मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. शनिमंत्रजापविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ खां खी खू खौँ खः; अंति: निवाणे नमः स्वाहा. ४. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यः श्रीऋषभस्ततो; अंति: सद्भक्तितः प्रत्यह, श्लोक-३. ५. पे. नाम. नमस्कारमहात्म्य श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: नमस्कारसमं मंत्र; अंति: न भूतो न भविष्यति, श्लोक-१. ६. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक- वैराग्य, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-).. ७१३७४. (+) वैराग्यशतक सहटबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५५१२,७४३१-३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारमि असारे नत्थि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ तक है.) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: संसार० असारे अप्रधान; अंति: (-). ७१३७५. २४ बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १४४३२). २४ बोल विचार-प्रमाद, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोल भणवा गुणवा; अंति: १३मा अध्यनरी साख. ७१३७६. (+) नवतत्त्वप्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११, २१४४६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. गाथा-८ से १२ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३२९ ७१३७७. (+#) शांतिजिन स्तुति, चतुर्विंशतिजिन स्तुति व पार्श्वजिन स्तुत्यादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४१०.५, १५४५१-५५). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण.. शांतिजिन स्तुति अर्द्धपदयमकमय, सं., पद्य, आदि: शांते तव स्वांतमनु; अंति: घनालिकांत मकरंदधानं, श्लोक-४. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: नाभेयाजितवासुपूज्यसु; अंति: नेताः प्रयच्छंतु नः, श्लोक-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकशलसूरि, सं., पद्य, आदि: हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंति: जिन स्वस्तिनिजाघः, श्लोक-४. ४. पे. नाम. चतुर्दशी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: अविरल कमल गवल मुक्ता; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अमरगिरिशिरस्थस्फार; अंति: श्रुतं नः श्रुतांगी, श्लोक-४. ६. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. सं., पद्य, आदि: पंचानंतक सुप्रपंच; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३ अपूर्ण तक है.) ७१३७८. मौनएकादशी गणना, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११.५, १२४३५). मौनएकादशी गणj, सं., गद्य, आदि: जंबुद्दीपे भरत; अंति: (-), (पू.वि. २४वाँ गणनना पुष्कर पूरव ऐरवत आनागत चौवीसी तक है.) ७१३७९. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८७, कार्तिक शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जयनगर, प्रले. पं. धर्मचंद्र गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १५४३७-४०). _पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-१३. ७१३८०. (+#) सिद्ध १५ भेद, ११ अंगपदसंख्या व पूर्वपदसंख्यादि विविध विचार गाथासंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १९४५७). विविधविचार संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: नागेसुय उसभपिया सेसा; अंति: सच्चिय होइ पव्वज्जा, (वि. विविध स्वतंत्र क्रम में गाथानुक्रम दिया गया है.) ७१३८१. पाक्षिक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४४१२, १४४२६). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मिदसणम्मि; अंति: (-), (पू.वि. स्थूल २ अपूर्ण तक है.) ७१३८२. (+#) वरदत्तगुणमंजरी कथा- कार्त्तिकपंचमी महात्म्यविषये, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्रले.पं. केसरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४३८). वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: प्रपाल्य मुक्तिं गतः, (पू.वि. पुत्र नहीं देने वाले को दोषी कहने __ वाले को मूर्ख कहा गया है- यह प्रसंग अपूर्ण से है.) ७१३८३. (#) देवअढारदोषरहितनामगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. पानाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, ३४२६). अरिहंत स्तुति-१८ दोष निवृत्तिरुप, प्रा., पद्य, आदि: अट्ठ दस दोश रहिउ०; अंति: नमामि देवाहिदेवं तम्, गाथा-३. अरिहंत स्तुति-१८ दोष निवृत्तिरुप-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अष्टादश जे अढार दोषे; अंति: नमस्कार करुं छु जी. ७१३८४. सप्ततिजिनशत स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ७४४०-४७). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निब्भंतं निच्चमच्चेह, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१३८५. (#) सीमंधरजिन स्तोत्र व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३८-४२). १.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. २० विहरमानजिन स्तवन, सं., पद्य, आदि: त्रैलोक्यपूज्यस्य; अंति: शांतिकारं कृतां मे, श्लोक-८. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह*, पृ. १आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुपात्र दाने भवति; अंति: जिह्वाग्रे परमं धनं. ७१३८६. (+) विक्रम कथा-जीवदयोपरि, संपूर्ण, वि. १९४६, वैशाख कृष्ण, १, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. हीरचंद्र ऋषि (बृहत्विजयगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२५.५४१२.५, १७४३८-४२). विक्रमकुमार कथा-जीवदयोपरि, सं., पद्य, आदि: प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति: दुखेभ्यः विमुच्यते. ७१३८७. दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १९९२, विधुखगांकनयनंप्रमिते, चैत्र शुक्ल, १४, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. चूरूपत्तन, दे., (२६४१२,११४२५-३१). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: संध्यायां चारित्रो; अंति: तपयाहिण९ वास९ उसगो१०, (वि. अंत में पाँच पीर का नाम लिखा गया है.) ७१३८८. () कल्पसूत्र-सामाचारीअध्ययन सह टबार्थ व व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रावण शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ४, अन्य. श्रावि. श्रीजीकुमर; श्राव. पुष्कर; श्रावि. चापुबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ४४२६-२९). कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प+ग., आदि: तेणं कालेणं तेणं समय; अंति: उवदसे त्तिवेमि. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: तिणि कालि तिणि समइ; अंति: स्व पोताना शिष्यनई. कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: तिणि काल चोथै० भगवंत; अंति: पारणा देते सुखी द्वै. ७१३८९. (+) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १०x२५-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., _श्लोक-३९ अपूर्ण तक है.) ७१३९०. (#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, आलोयणाविधि व संध्याप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६-१३४४२). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र-टबार्थ ,मा.गु., गद्य, आदि: वादी सर्व अर्हत सिद; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३१ तक टबार्थ लिखा है.) २. पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: आजुणा चिहुं परह दिवम; अंति: अतिचार आलोवू. ३. पे. नाम. रात्रिप्रतिक्रमण विधि, पृ. ४आ, संपूर्ण. प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जयतिहुअण० करेमि भंते; अंति: मंगलमंगल्यं कहीजइ. ७१३९१. (+#) पार्श्वनाथसहस्रनाम स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १६४३६-३९). For Private and Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org ३३१ पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: पार्श्वनाथो जिनः; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१४४ अपूर्ण तक है.) ७१३९२, (*) रोहिणीकथा व पार्श्वजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १३x३७-४०). १. पे. नाम. रोहिणीकथा, पृ. १अ ४अ, संपूर्ण. रोहिणी कथा, मा.गु., गद्य, आदि उच्चि सुंदरियं, अंतिः सदा बोलइ केवलनाण. २. पे नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ४-४आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तुति - समवसरणभावगभिंत, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ब्रेकि धुप मप, अंतिः विशतु शासनदेवता, श्लोक-४. ७१३९३. (+#) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अं खंडित है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२४.५x११, १०३०-३३ ). " भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४० अपूर्ण तक है.) ७१३९४. (+) भगवतीसूत्रपंचविधदेवप्रकार सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७३९, १ श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. त्रिपाठ संशोधित, जैदे., (२५X११.५, १२X३६). भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक १२ उद्देश ९ देवों के ५ प्रकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: कितिविहा देवा, अंतिः भावदेवा सेवं भंते. भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १२ उद्देश ९ देवों के ५ प्रकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: जे राजाननी चाउरंत कह, अंतिः सघलु विचार जाणिवड, (वि. बालावबोध आंशिक रूप से है.) ७१३९५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैवे. (२५.५४११.५, १७X ३७-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. पण, आदि: संजोगाविष्यमुक्कस्स, अंति: (-). (पू. वि. गया-१२ तक है.) उत्तराध्ययनसूत्र - सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., गद्य, वि. १९२९, आदि: प्रणम्य विघ्नसंघात, अंति: (-). ७१३९६. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११.५, ११४२८). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, श्लोक-४४. ७१३९७. रत्नाकरपच्चीशी, चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र व पार्श्वजिन स्तोत्रादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८८९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, ले. स्थल, पाटण, प्रले. पंन्या. मोहनविजय (गुरुग, कस्तुरविजय); लिख. पं. दीपक, पठ. सा. हेतश्रीजी (गुरु सा. रूपश्रीजी); गुपि. सा. रूपश्रीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे. (२५x११.५, १२४३२) १. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रिया मंगल, अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. २. पे. नाम. पंचतीर्थीजिन स्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. पंचतीर्थजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: प्रणतमानवदानवनायकः; अंति: द्रव्यदानेधिनेंद्रा, श्लोक - ६. ३. पे. नाम चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीआदिनाथाजितसंभवेश; अंति: दुरापन्नसुखं च सारम्, श्लोक-५. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रणमामि सदा प्रभुः अंतिः पार्श्वजिनं सिवं, श्लोक ७. ७१३९८. (+) भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १५३२, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल. राणपुर (राणकपुर, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५x११, १८x४७). For Private and Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१४८. ७१३९९. (+2) प्रतिक्रमण सूत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१२, १७४३०). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: जयउ सामी जयउ सामी; अंति: समुन्नय निमित्तं. ७१४००. (#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जालोर, प्र.वि. विक्रम संवत- १७२७ में लिखे गए प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४३४-३७). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३. ७१४०१. (#) शाश्वताजिनबिंब स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, पठ.पं. त्रिलोकचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३४-३९). शाश्वताजिनबिंब स्तवन, आ. जिनोदयसूरि, प्रा., पद्य, आदि: कल्लाणवल्लि जलहर; अंति: जिणोदय हुज मे सफलो, गाथा-४३. ७१४०२. (#) स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०४३५-३९). १. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कल्याणवल्लीवनवारिवाह; अंति: वीर गिरिसार धीरम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अन्या विहाय महिला; अंति: जिनराज पदानितानि, श्लोक-४. ३. पे. नाम. महावीर स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण.. संसारदावानल स्तुति-अंतिमपादपूर्तिमय, सं., पद्य, आदि: तावत्तृष्णाकुलितमतयः; अंति: सादरं साधु सेवे, श्लोक-४. ४. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेदुर्गाश्चोपसप; अंति: श्रीजिनो वर्द्धमानम्, श्लोक-५. ७१४०३. (+#) भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४५३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. ७१४०४. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४४. ७१४०५. (#) अजितशांति स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-४(१,३ से ५)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४२०-२५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा ८ अपूर्ण व गाथा १४ से ३१ अपूर्ण तक नहीं हैं.) ७१४०६. वज्रपंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, ८४३४). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: कदाश्चित, श्लोक-८. ७१४०७. (+) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १५४४३). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रऊठी रे पंचपरमेष्ट; अंति: सदशिव गुण सांभलो, ढाल-३. For Private and Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३३३ ७१४०८. (#) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३७-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. ७१४०९. (+) शांतिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८-६(१ से २,४ से ७)=२, पृ.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४४०). ___ शांतिनाथ चरित्र, आ. मुनिदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३२२, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के पाठ हैं.) ७१४१०. (+#) दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-९, अपूर्ण, वि. १८२९, कार्तिक, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, १६४५७-६०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., अध्ययन ९ उद्देश २ गाथा १० अपूर्ण से भिक्खु अध्ययन तक है.) ७१४११. (+) राजसिंहरत्नवती कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४१२, ९४२८). राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., पद्य, वि. १७५५, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दूहा ६ अपूर्ण से ढाल ३ गाथा १ "एक जीव दोय देह ललना" तक लिखा है.) ७१४१२. नमिऊण स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४११.५, ११४४०). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा २१ अपूर्ण तक है.) ७१४१३. (+) ३४ अतिशय, १८ दोष व पदादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८६६, माघ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३९). १.पे. नाम. ३४ अतिशय विवरण, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. __३४ अतिशय-तीर्थकर परमात्माके, पुहि., गद्य, आदि: (-); अंति: सो मतांतर जाणना, (पू.वि. अतिशय १९ अपूर्ण से २.पे. नाम. अढार दोष रहित तीर्थंकर परमात्मा, पृ. २अ, संपूर्ण. १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पुहि., गद्य, आदि: दानांतराय१ लाभांतराय; अंति: दोषरहित तीर्थंकर होय, अंक-१८. ३. पे. नाम. दादाजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: दादोजी दोलतदाता सुख; अंति: कनककीरत गुण गाता, गाथा-२. ४. पे. नाम. जिनकुशलसूरिजी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., पद्य, आदि: दादाजी दीठां दोलित; अंति: कुण करे दादाजीनी होड, गाथा-८. ५. पे. नाम. मणिधारी दादागुरू गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. जिनकुशलसूरि गीत-मणिधारी, मु. लालचंद, पुहि., पद्य, आदि: चरण शरण तुझ आयो हे; अंति: लालचंदगुण वर्णना हे, गाथा-७. ६. पे. नाम. जिनकुशलसूरि पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. लालचंद, पुहिं., पद्य, आदि: कुशल गुरु देखता; अंति: लालचंद सरण मोहि दीजै, गाथा-३. ४१४. (+) ज्ञानपच्चीसीव प्रस्ताविककवित्त- दहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सोझत, प्रले. पं. पद्मसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, २०४६०). १.पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ, संपूर्ण. जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: सुरनर तिरजग जोनमइ; अंति: कौ उदै करण के हेत, गाथा-२५. २. पे. नाम. प्रस्ताविक कवित्त संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रास्ताविक कवित संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: देव कहा दांने कहा; अंति: कपटी खाय पतासा, (वि. अलग-अलग गाथांक ७१४१५. (+) गौतमकुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ५४३५-४०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण से २० अपूर्ण तक हैं.) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१४१६. (+) आत्मावबोध कुलक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, ११४५०-५७). आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि *, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जेण जयसेहरो होसि, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा २४ अपूर्ण से हैं.) ७१४१७. वीरथुईअध्ययन व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९४७, मार्गशीर्ष शुक्ल, मंगलवार, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. नवानगर, प्रले. मु. गुलाबचंदजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४१२, १६४३०-३६). १. पे. नाम. वीरथुई अध्ययन, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुछिसुणं समणा माहणा; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: चोखे चीत तप करो दया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ तक लिखा हैं.) ७१४१८. (4) बंभणवाडिमंडणमहावीर स्तवन, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३७-४०). महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरथ सारदाये; अंति: श्रीकमलकलससूरीसर सीस, गाथा-२१.। ७१४२०. (+#) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३३-३३२(१ से ३३२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४१२, ६x४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम श्रुतस्कंध अध्ययन १७ गाथा १२ अपूर्ण से अध्ययन १८ के प्रारंभिक पाठ अपूर्ण तक हैं.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१४२१. () क्षेत्रसंग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ८४३७-४०). लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिन मोहं जय; अंति: उद्धरिया भद्दसूरीहिं, गाथा-२६. लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइ जिन; अंति: कीधी हरिभद्र आचार्यइ. ७१४२२.(+) नवग्रहगर्भितपार्श्वजिन स्तोत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ३४३२-३६). पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंति: जिणप्पहसूरि० पीडंति, गाथा-१०, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: दोस कहतांराग द्वेषा; अंति: ग्रह पीडइ पीडान करइ, संपूर्ण. ७१४२३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ-अध्ययनर, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, ४४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: संजोगा विप्पमुक्कस्स; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन १ गाथा १८ तक For Private and Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: संयोग बइ प्रकार रे; अति: (-). ७१४२४. (+) वीरथुई अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, ७४४०-४३). सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: गमिस्संति त्तिव्वेमि, गाथा-२९. ७१४२५. कथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४-१०२(१ से १०२)=२, प्र.वि. संवत १५०८ , ज्येष्ठ, सुदि, १० सोमवार को लिखी गई प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., दे., (२६४११, १६४४४). कथा संग्रह, सं.,प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., भरतबाहुबली कथा श्लोक ११ अपूर्ण से हैं., वि. अंत में कथाओं की सूची है.) ७१४२६. (4) भक्तामर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ११४३३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक १४ अपूर्ण से ३९ अपूर्ण तक हैं.) ७१४२७. सरस्वती अष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, जैदे., (२५४११.५, ६४३७). सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक-९, (पू.वि. श्लोक ७ अपूर्ण से ७१४२८. (+#) दंडक षट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३४-३८). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०. ७१४३०. नाममाला सूचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४०). नाममाला सूचनिका, पुहिं., पद्य, आदि: भाव पदारथ समय धन; अंति: जानी ऐ पचखाणज आन, गाथा-२०. ७१४३१. अष्टोत्तर स्नात्रविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २३-२२(१ से २२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५.५४११.५, १३४३२). अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र दसदिक्पाल आह्वाहन विधि अपूर्ण हैं.) ७१४३२. (4) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन ८, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४२७-३०). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ८ काविलीयं, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: अधुवे असासंयंमि संसा; अंति: दुवे लोगा त्तिबेमि, गाथा-२०. ७१४३३. प्रीतिछत्रीशी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १७X४१). प्रीतिछत्रीशी सज्झाय, वा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीत न किण ही जीती; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथआ २३ तक लिखा है.) ७१४३४. (4) पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३८). पार्श्वजिन स्तव-जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीवामेयं विधुमधु; अंति: श्रेय लक्ष्मीविशेषा, श्लोक-१३, (वि. प्रतिलेखकने श्लोकांक नहीं लिखा है.) ७१४३५. चतुर्विंशतिजिन स्तुत्यादि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १४४४७-५०). जिनस्तुतिस्तोत्ररत्न कोष, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., पद्य, आदि: जय श्रीऋषभ श्रेयः; अंति: श्रेयोचिराच्छाश्वतम्, श्लोक-३९. ७१४३६. (+#) गौतमस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३६). गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., पद्य, आदि: स्वर्णाष्टाग्रसहस्र; अंति: श्रेयांसि भूयांसि नः, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१४३७. (#) कायस्थिति प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १३४३७-४०). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुह दसणरहिओ काय; अंति: अकायपयसंपयं देसु, गाथा-२४. ७१४३८. (+) शांतिजिन स्तवन व बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १४-१९४३७-५९). १.पे. नाम. जीव आयुष्य विचार-भगवतीसूत्रगत, पृ. १अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. शतक-२०, उद्देश-१० सूत्र ५३५ है.) २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-राणपुरमंडण, मु. संकर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसांतिजिणेसर सोल; अंति: संकर० सहु जयकारु ए, ढाल-२, गाथा-२०. ७१४३९. नववाडीनीसज्झाय व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४१२, १२४३८). १.पे. नाम. नववाडि सज्झाय, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: हो तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०,गाथा-४३. २. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही जिनराय मलिये; अंति: मोहन कहे चरणे नमी जी, गाथा-७. ७१४४०. (+-) उपासकदशांगसूत्र-द्वितीयअध्ययन, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. हुंडी:उपासग., अशुद्ध पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४१०.५, २०४४७-५४). उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. "अट्ठमं कपइ उबारणं पारणसी" पाठ तक है., वि. मूलसूत्र से पाठ क्रमबद्ध नहीं मिलता है.) ७१४४१. (+#) कल्पसूत्र का व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४४०). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा , मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभजिनं नौमि; अंति: (-), (पू.वि. "पव्वाणं __ पजुसणपवं साहुणगो" पाठ तक हैं.) ७१४४२. लघुगोम्मटसार का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-३९(१ से ३९)=१, जैदे., (२५.५४१२, ६४३१). गोम्मटसार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: जीम जीव सुखी थाए, (पू.वि. "संजम आदरवो" पाठ से हैं.) ७१४४३. (+#) सूरिमंत्र पटलेखन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ३०x१७). सूरिमंत्र पटलेखन विधि, सं., प+ग., आदि: श्रीसूरिमंत्रपटे; अंति: यज्ञेय इति तत्त्वम. ७१४४४. (+#) भरहेसर सज्झाय व प्राचीन नगरी स्थापना इतिहास, अपूर्ण, वि. १६४६, माघ शुक्ल, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४३५-४०). १.पे. नाम. रिषि कुलक, पृ. १अ, संपूर्ण, वि. १६४६, माघ शुक्ल, २, प्रले.पं. माला, प्र.ले.पु. सामान्य. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जसपडहो तिहुयणे सयले, गाथा-१३. २.पे. नाम. प्रमुख ऐतिहासिक नगरो की स्थापना, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. प्रमुख राजाओं के द्वारा ऐतिहासिक नगरीयों की स्थापना का इतिहास, रा., गद्य, आदि: संवत १६१६ पातस्याह; अंति: (-), (पू.वि. राजा इंद्रसिंघ तक हैं.) For Private and Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३३७ ७१४४५. (+#) पट्टावली तपागच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, ११४२६-२८). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: देविंद्र०सोमसूरिजी, (पू.वि. परंपरा नं.४४ श्रीदेवेन्द्रसूरि से है.) ७१४४६. युगमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२८x१३, ११४३१). युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयुगमंधरजिन कहेजो; अंति: जिनविजये गायोजी रे, गाथा-९. ७१४४७. अभयदानोपरि दृष्टांत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, ११४३५). अभयदानोपरि दृष्टांत, सं., गद्य, आदिः यथा राजगृहे सभा; अंति: (-), (पू.वि. "एवमन्येपिभयदानबुद्धि" पाठ तक हैं.) ७१४४८. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४१२, १५४२२-४५). पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, आदि: वर्धमानस्वामी प्रथम; अंति: खिमासूरि विजयदयासूरि. ७१४४९. (+#) बृहत्संग्रहणीसह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१२, ८x२०-२५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा २६ अपूर्ण से ३५ अपूर्ण तक बृहत्संग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१४५०. (+) उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक २ अनुमानित लिया है., पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, १३४४०-४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन ९ गाथा ५४ अपूर्ण से अध्ययन १० गाथा २३ अपूर्ण तक हैं.) ७१४५१. इरियावही मिछामि दुक्कडम सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ शुक्ल, १३, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बशुग्राम, अन्य. श्राव. फूलचंद मेत्ता, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १३४३७). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: इरियावही पडिकमस्यु; अंति: मुक्तिफल अनुभवसे रे, गाथा-१८. ७१४५२. (4) स्तुत्यादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ११४३०-३५). १.पे. नाम. वर्द्धमान स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: नमोस्तु वर्द्धमानाय; अंति: मयि विस्तरो गिरा, श्लोक-३. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. विशाललोचनदल स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, आदि: विशाललोचनदलं; अंति: नौमि बुधैर्नमस्कृतम्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: वरकनक शखविद्रम; अंति: सर्वामर पूजितं वंदे, श्लोक-१. ४. पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सुअदेवया भगवई; अंति: सा देवी हरउ दुरियाई, गाथा-२. ५.पे. नाम. भवनदेवी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ज्ञानादिगुणयुतानां; अंति: सदा सर्वसाधुनाम्, श्लोक-१. ६. पे. नाम. क्षेत्रदेवता स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: यस्याः क्षेत्रं समा; अंति: भूयान्नः सुखदायिनी, श्लोक-१. ७. पे. नाम. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: संथारा उवट्टणकि परिय; अंति: मिच्छा मि दुक्कडं. For Private and Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१४५३. (+) रत्नाकरपच्चीशी व सीमंधरस्वामी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १६४३४). १.पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: सीमंधर जिनाधीशं नम्र; अंति: शासनं तेस्तु मे निशं, श्लोक-५. ७१४५४. (#) स्यावद्वादस्थल, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २२४५७). । स्याद्वादस्थापनवाद स्थल, सं., गद्य, आदि: वस्तुनामोत्पादव्यया; अंति: ध्रौव्य०वस्तुसिद्धम्. ७१४५५. (#) गुणठाणा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८६, भाद्रपद कृष्ण, १४, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. पं. विवेकविजय; राज्यकाल आ. विजयदिणिंदसूरि (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पंचासराप्रसादात् लखीतं., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४३२). गुणस्थानक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुगणि सनेहि आतम; अंति: रूपविजय लील वीलास के, गाथा-७. ७१४५६. उपदेश छत्रीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. शोभारामजी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११, १७४३९-४५). उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: सबद करी सतगुरु समझाव; अंति: रतनचंद० पातक नासे रे, गाथा-३६. ७१४५७. स्तुतिसंग्रह व देवसिकप्रतिक्रमण विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ५, दे., (२४.५४१२, १३४३९). १. पे. नाम. संसारदावानल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीर; अंति: देहि मे देवि सारम्, श्लोक-४. २. पे. नाम. आयरियउवज्झाय सूत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: आयरिय उवज्झाय सीसे; अंति: खमामि सव्वस अहयपि, गाथा-३, (वि. गाथा व्युतिक्रम है.) ३. पे. नाम. श्रुतदेवी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: सुअदेवया भगवई; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ती, गाथा-२, (वि. गाथा व्युतिक्रम है.) ४. पे. नाम. श्रावक देवसीय आलोयणासूत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, आदि: सातलाख पृथ्वीकाय; अंति: करी मिच्छामि दुक्कडं. ५. पे. नाम. देवसीपडिक्कमणा विधि, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम इरियावही; अंति: (-), (पू.वि. सिद्धाणं बुद्धाणं तक की विधि है.) ७१४५८. (4) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, संपूर्ण, वि. १७३१, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. सिंहसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, ८४३१). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. वृद्धि, मा.गु., पद्य, आदि: मुजरो छइ मुजरो छइ; अंति: वृद्धि नित आणे अनंदा, गाथा-७. ७१४५९. (+) माणिकदेवी रास-दानशीलतपभावनाधिकारे, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६७११.५, १५४४८). दानशीलतपभावना रास, मु. निहालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: श्रीगुरु गौतम पय; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रशस्ति का किंचित अंश नहीं है.) For Private and Personal Use Only Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३३९ ७१४६०. (#) विजयधर्मसूरिस्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३८). १. पे. नाम. विजयधर्मसूरि चातुर्मासविज्ञप्ति स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मूलचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति माता बीनवं; अंति: मूलचंद० गुणना गेहा, गाथा-७. २. पे. नाम. विजयधर्मसूरि पद, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयधर्मसूरि भास, म. दीपविजयशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: वालो माहरो दीपै छे; अंति: होज्यो मंगलमाल, गाथा-५. ७१४६१. (4) परमात्म छत्रीसी, चौदगुणस्थानकनी मार्गणा व सुभाषित श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्रले. श्राव.गोविंददास जोगीदास श्रीमाली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, ४२४३३). १.पे. नाम. परमात्मछत्रीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. चिदानंद, मा.गु., पद्य, आदि: परमदेव परमातमा परम; अंति: लालचंद०आतम के उद्धार, गाथा-३६. २. पे. नाम. चौदगुणस्थानक मार्गणा, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गुणस्थानकनी; अंति: ११३ मानी ११४ मानी०. ३. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह*, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: सुनन सुनावन कहन कौ; अंति: (-), गाथा-३. ७१४६२. (+) दंडकद्वार व लेश्याद्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४३३). १.पे. नाम. दंडक द्वार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ए मोक्षनाम जाणवा, (पू.वि. आयुष्य बंध अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. लेश्या द्वार, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: नाम १ वर्ण २ रस ३; अंति: (-), (पू.वि. लेश्या रस अपूर्ण तक है.) ७१४६३. लोभसज्झाय व उपदेशनी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पालीताणा, प्रले. मु. कुंअरविजय; पठ. मु. भवान, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री ऋषभदेव प्रशादात्., जैदे., (२५४१२, १२४३७). १. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उदयरतन० तेहने सदा रे, गाथा-७, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण.. अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., पद्य, आदि: उपदेशन लागे अभव्यने; अंति: उदय उतम संग निदान रै, गाथा-७. ७१४६४. (+) स्तवन व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५४११.५, १५४४३-४८). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर स्वामि सुनजो; अंति: लालचंद० ए अरदास जी, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नानक, पुहिं., पद्य, आदि: जगत में झूठी देखी; अंति: नानक० प्रभु के गीत, दोहा-५. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: हटडी कू छोड़ चला; अंति: कबीर० झूठा जग संसारा, दोहा-६. ४. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-औपदेशिक, पृ. १आ, संपूर्ण. मुरली, पुहिं., पद्य, आदि: दिल ने दुरमत से कहा; अंति: मुरलीनेम ब्रह्मचारी, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: मन राम सुमर सुख; अंति: नाम विना किम जावैगा, दोहा-६. For Private and Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१४६५. गुरुगुण गहुँली-तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १०४३३). गुरुगुण गहुंली-तपागच्छीय, उपा. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चकोरडि सहियरो क; अंति: कांति सकल सुख पावो ए, गाथा-७. ७१४६६. (+) उत्तराध्ययनसूत्रसज्झाय व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २३४५३-५९). १.पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: दब गए पांचसै चोर; अंति: समयसुंदर० ने तारीयो, गाथा-२८. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, म. वसंत, रा., पद्य, वि. १८२६, आदि: श्रीमंधरसामीजी समरु; अंति: बसंत० जिन गुण गाया, गाथा-८. ७१४६७. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४४१-४४). औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सतगुरु मानो जी सीख; अंति: फल जाण० धर्मे फलै जी, गाथा-१२. ७१४६८. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३७-४१). महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., पद्य, आदि: एक मन बह वीरजिणंद; अंति: जैत० मन वंछत फली, गाथा-२७. ७१४६९. औपदेशिकसज्झाय व नवकार सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १६४३८). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. रामदास, मा.गु., पद्य, आदि: मनवा रे चरण कमल लव; अंति: रामदास बीनती करी जी, गाथा-१५. २. पे. नाम. नवकार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. नवकारवाली स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार मन ध्याइये; अंति: रीषभदास० माथै जिन आण, श्लोक-१३. ७१४७०. मौनएकादशीपर्व स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १४४३७). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७८१, आदि: सांतिकरण श्रीसंतजी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१४७१. मनुष्यजघन्यपद परिमाणकोष्ठक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १६४५-६४). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७१४७२. प्रस्ताविकसवैया व पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२५.५४१२, १५४३९). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. क. गद, पुहिं., पद्य, आदि: रयण खांणपण गई गयो; अंति: गद० जातें एता गया, गाथा-२. २. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. स्त्रीस्वभाव कवित्त, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: लोयणभर निरखंत काममुख; अंति: जिनहर्ष० जाणीइं, गाथा-१. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, पुहि., पद्य, आदि: न मलि मीडालमसौ ससौ; अंति: लावण्यसमय० नमलि कदा, गाथा-१. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ हरिचरणदास , पुहिं., पद्य, आदि: कवण शायरपिं वडु कवण; अंति: हरिचरणदास० घट्ट मज्झ, पद-२. ५.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. भोज कवि, पुहिं., पद्य, आदि: इगलक्ख तीससहस्सा; अंति: भोज भणइ सहु कोय, दोहा-२२. For Private and Personal Use Only Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ६. पे. नाम औपदेशिक पद, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: कागसी कोकल स्याम; अंति: ध्रमसी प्रीत फलाई, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. केसवदास, पुहिं., सं., पद्य, आदि: कपटं कूटवाक्यं च, अंति: केसवदास० वल्लभ भाई, पद- ३. ७१४७३, (+) नवपद स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४११.५, ९४३२). www.kobatirth.org 1 יי (-) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु. सं., पद्य, आदि: अरिहंत पद ध्यातो थको अंतिः जस०कोई न थई अधूरी रे, गाथा - १४. ७१४७४. (+) ४५ आगमनुं स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. श्राव. खेमचंद, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X१२, १२३४). ४५ आगम स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु, पद्य, आदि इंदीवरासन तनयाबंदी, अंतिः वीरजिणंदे भाख्यारे, गाथा - १५. ७१४७५. (#) तेरकाठिया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १४४४३). १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदिः समरी गौतम गणधार बीजो; अंति: हेमविमलसूरी सीसइ कही, गाथा - १५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१४७७. जीवदया छंद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ये. (२५४१२, १३४२५-४० ). जीवदया छंद, मु. भूधर, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी पाए नमी अंतिः भूधर० वीतराग वाणी लहे, गाथा- ११. ७१४७९. (+#) बंधषट्त्रिंशिका बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, ३४१ जैदे., (२६X११, २२x५५). भगवतीसूत्र - टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः ८ प्रकार ओदारिक, अंतिः विसेसाहिया अधिक, ७१४८०. (+#) माणीभद्र छंद व मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५X१२, १४X३९). १. पे. नाम. माणीभजीरो छंद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, ले. स्थल. बीजापुर माणिभद्रवीर छंद, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन दें सारदा, अंति: दीप० लछी अती घणी, गाथा - १३. २. पे. नाम. माणीभद्र मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण प्रले. मु. खुशालविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो श्रीमाणिभद्राय, अंति: कुरु कुरु स्वाहा. ७१४८२. स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२६X१२, ११x२७). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. ज्ञान, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: ज्ञान कहुं० झुंलाझ, गाथा-५, (पू. वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सुबाहुजिन स्तवन, पृ. २अ संपूर्ण. मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि ठाकुरिया दरिसण दे रे; अंति: न्यायसागर प्रणमे रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. साधारणजिन होरी, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण मु. न्यायसागर, पुहिं., पद्य, आदि: फाग रमे रस रंग प्रभू, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- २ त लिखा है.) ४. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. प्रमोदसागर, पुहिं., पद्य, आदि: संतकी संतकी मने पीआर; अंति: परमोदसागर० मुरत संतकी, For Private and Personal Use Only गाथा-८. ७१४८३. जांबवती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७८४, चैत्र शुक्ल, ७, शनिवार, मध्यम, पृ. १० ९(१ से ९) = १, जै, ( २६५११, १३x४०). जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सूरसागर ० अविचल पाट तो, ढाल - १३, (पू.वि. ढाल १२, गाथा- १३ अपूर्ण से है.) Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३४२ " ७१४८५. मुंहपत्ति बोल, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, पठ श्राव युवारमल, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे. (२६४१२, ६x२० ). मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: सूत्र १ अर्थ २ तत्व; अंतिः छर्कयरी जिण करु. ७१४८६. (+) जमाली चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२६X११.५, १३×३३). जमाली चौपाई, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दीक्षाभिमुख जमाली प्रति माता के मोह प्रसंग अपूर्ण से है व जमाली का दीक्षार्थ प्रयाण अधिकार अपूर्ण लिखा है.) ७१४८८. (+) आदिजिन कलश, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११.५, १०४४०). आदिजिन कलश, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ( - ), ( पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - १ अपूर्ण है व ८ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१४८९. ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २६११.५, ८X३४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदिशी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा-७ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१४९०. (+) सा. अमा जयपालनी पोथीनी चर्चा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६ - १३ (१ से १३ ) = ३, प्र. वि. हुंडी : सा. जयपालनी पोथीनी चर्चा, संशोधित, जैदे. (२५.५४११.५, २२४५५). " आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पग, आदि (-); अंति: नाणुजाणिज्जा गाहा ६, (पू.वि. ३६३ पाखंडी अधिकार से है व इस के पूर्व अधिकार का अंतिम वाक्य मात्र है.) ७१४९३. सिद्धचक्र स्तवन व चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., ( २६१२, १५X४०). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो, अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा- २३. २. पे. नाम. चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः ॐ नमो चक्रेश्वरी, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मंत्र का उत्तरार्द्ध का कुछ भाग नहीं लिखा है.) ७१४९६. रत्नचूडकथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. ग. भीमविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैये., (२५.५X१२, १३X३५). रत्नचूड कथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इहां मनुष्यलोक नामा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कथा प्रारम्भ होने से पूर्व धर्मराजा के द्वारा अपने राज्य में मोहराजा को न आने देने हेतु अपनी सेनाओं को आज्ञा दिये जाने के वर्णन तक लिखा है.) मूल ७१४९७. (#) प्रतिमास्वरूप व संज्ञा विचारादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१६ (१ से १६) = १, कुल पे. ३, प्र. वि. पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे. (२६५११.५, १८४६१). १. पे नाम, प्रतिमा स्वरूप, पृ. १७अ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र अंतिम पत्र है. जिनप्रतिमाविचार श्लोकसंग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: कुलधण नासाइया जम्हा, श्लोक-२७, (पू.वि. श्लोक-२१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. संज्ञा विचार, पृ. १७अ, संपूर्ण. प्रा., सं., प+ग, आदि: संज्ञा० मनः पर्याप्त; अंतिः इदं संज्ञा. ३. पे. नाम. विविधविचार संग्रह, पृ. १७अ संपूर्ण. विविधविचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु. सं., गद्य, आदि: जईया होही पुच्छा, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एगेंदियघट्टणे तहवा" पाठ तक लिखा है.) ७१४९८. (#) उपदेश छत्तीसी, अपूर्ण, वि. १७३८, कार्तिक कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ५-४ (१ से ४) = १, ले. स्थल. सतिपुर, प्र. मु. मेघा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२४४११.५, १४४३३) For Private and Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३४३ उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सा बसि मोकुं दीजीइ, गाथा-३६, (पू.वि. गाथा-३० अपूर्ण से है.) ७१५००. पंचमी स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२४.५४११, १०४३७). ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७१५०१. दशवकालिकसूत्र व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मंगलापुर, प्रले. श्रावि. जमना, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, १०-१३४२०-३४). १. पे. नाम. संजमसूठी अध्ययन-दशवैकालिकसूत्र अध्ययन-३, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बृहत्शांति "शीवमस्तु सर्व जगतः" से तुम्हनयरनिवासिनी अम्ह" पाठांश तक है., वि. वैदिक लक्ष्मि स्तोत्र व बृहत्शांति शीवमस्तु से थोडा पाठांश लिखा गया है.) ७१५०२. वरसिंहऋषिगुरूगुण गीत व अंकावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, ११-२४४६-३१). १. पे. नाम. श्रीपूज्यजीनी भास, पृ. १अ, संपूर्ण. वरसिंहऋषि गुरूगुण गीत, मु. थोभण ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: सुंदरगच्छ सुंदरगच्छ; अंति: थोभण० नित्य थाए जी, गाथा-७. २. पे. नाम. अंकावली, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १२३४५६७८९; अंति: १३४० १३५० १३६० १३७०. ७१५०३. सिद्धपंचाशिका सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ७X४३). सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिद्ध सिद्धत्थसुअं; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण, गाथा-६ तक लिखा है.) सिद्धपंचाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नवरं सिद्धं; अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७१५०४. साधुवंदना, अपूर्ण, वि. १७९७, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ८,१० से १२)=२, ले.स्थल. बहरानपुर, प्रले. श्रावि. पानाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक गिनती कर के दिए हैं., जैदे., (२७.५४१२, ८x२४). साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: पासचंदे० आणंदे संथुआ, ढाल-७, गाथा-८८, (पू.वि. गाथा-५३ अपूर्ण से ६१ अपूर्ण तक व ८२ अपूर्ण से है.) ७१५०५. (+-) ऋषभजिन स्तुति व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. हेतविजय; पठ. मु. धर्मचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३२). १. पे. नाम. ऋषभजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयं योगिध्येय; अंति: कासार श्रीसारंग, श्लोक-४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोए जतन करी जीवडा; अंति: लबधि० केवल नाणि रे, गाथा-११. ७१५०६. संबोधपंचाशिका सह पद्यानुवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-८(१ से ८)=१, जैदे., (२७४११, ४४३६). संबोधपंचाशिका, आ. गौतमाचार्य, अप., पद्य, आदि: (-); अंति: पयडिज्जतं च सुबोह, गाथा-५०, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा-५० अपूर्ण से है.) संबोधपंचाशिका-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, मा.गु., पद्य, वि. १७५८, आदि: (-); अंति: द्यानत० सुध कर लेहु. ७१५०७. नरकविस्तार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४१२, १२४३०). For Private and Personal Use Only Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदि: १इच्छजि .पृ. ३अहि अंतिः पत्र नहीं है. दसरावणी तक ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: परम कृपाल उदार, ढाल-६, गाथा-३५, (पू.वि. ढाल-३ अंतिम गाथा-७ अपूर्ण से है.) ७१५०८. मोहनीयकर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १५४४२). मोहनीयकर्म सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सहगुरू सुशिष नामी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक लिखा है.) ७१५०९. (+) दिगंबरमत खंडन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३). दिगंबरमत खंडन विचार, सं., गद्य, आदि: किं च सर्वथा नाग्न्य; अंति: न पटिष्टतां प्रथयति. ७१५११. (+) योगविधि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२, २२४२६-५४). १. पे. नाम. अनुष्ठान विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ इच्छामि खमासमणो; अंति: (१)बइसणइ ठाशिउं, (२)आशातना मिच्छामि०. २.पे. नाम. शिष्यमंडली स्थापन विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: पहिलउ पाटली पडिलेहिइ; अंति: २१ क्षमाश्रमणानि. ३. पे. नाम. योगोद्वहनविधि संग्रह, पृ. ३आ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ठवणी कांबली पडिलेही; अंति: (-), (पू.वि. अविधि दिन पइसरावणी तक है.) ७१५१२. (+) शारदामाता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है-संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, १२४३८-४१). सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन समता मनि आणी; अंति: शांतिकुशल० ताहरी, गाथा-३५. ७१५१३. जसवंतजीऋषि गुरूगुणगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. राजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १२४३३). ____ जसवंतजीऋषि गुरूगुण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति शुभमति आपि; अंति: जसवंत जगि जयकरु, गाथा-७. ७१५१४. वरसंघऋषि गुरूगुणगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, १४४३६-३९). वरसिंहऋषि गुरूगुण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: सेवु तु सुदगुरू; अंति: वरसंघजीनी चलणे लागू, गाथा-१०. ७१५१५. (#) औपदेशिक लावणी व २४ जिन नाम, संपूर्ण, वि. १८९६, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, अन्य. मु. सेवगरामजी; मु. तुलसीराम; मु. गुलाबचंदजी; मु. धनसीराम; मु. डालूराम; प्रले. मु. शोभाराम (गुरु मु.डालुराम); अन्य. मु. सदाराम ऋषि; मु.ख्यालीराम ऋषि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०-३३). १.पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: तुम भजो निरंजन नाम; अंति: जिणदास लावणी गाइ, गाथा-४. २. पे. नाम. २४ जिन नाम-वर्त्तमान, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पहला श्रीआदिनाथजी १; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सुपार्श्वनाथ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१५१६. (-) साधुसंगति सज्झाय, आदिजिन स्तवन व मेघकुमार सज्झायादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १६x४०-४५). १.पे. नाम. साधुसंगति सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: परबचन सिद्धंत; अंति: गाव मुनि धरमदास रे, गाथा-९. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: इख्यागवंस का उपना; अंति: मुड मुडि लागुंपाय, गाथा-१३. ३. पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३४५ औपदेशिक दोहा संग्रह*, पुहि., पद्य, आदि: बोत गइ थोडी रयही; अंति: (-), दोहा-३. ४. पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. क. कसल, मा.ग., पद्य, आदि: वीरजणेसर आवी; अंति: कुशल सोजत नगर मझार, गाथा-१०. ७१५१७. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१.प्र.वि. प्रतिलेखक ने गाथाक्रम का उल्लेख नहीं किया है.,जैदे., (२५४१२, २५४५०). स्तवनचौवीसी, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कुंथुजिन स्तवन अपूर्ण से नमिजिन स्तवन अपूर्ण तक लिखा है.) ७१५१८. वैराग्य बावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६.५४१२, १८४३२-३५). वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १६९५, आदि: समझि समझिरे भोला; अंति: लालचंद० सुख अपार जी, गाथा-५३. ७१५१९. (+) पार्श्वजिन स्तुति व विमल श्लोको, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५, २१४४३-५९). १. पे. नाम. पार्श्वनाथ जिन स्तुति, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: ते धवली धंग गोडि धणी, गाथा-२०, (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. विमल श्लोको, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति समर बेकर जोडी; अंति: वनित गुण गायो, गाथा-१११. ७१५२०. (+-) मेघकुमार सज्झाय, शांतिजिन स्तवन, विहरमानजिन स्तवनादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिए गए हैं., संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२, ३२४७१-८०). १.पे. नाम. मेघकुमार सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणंद समोसर्या; अंति: पामसी भवनु पार, गाथा-२१. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर शांति; अंति: शरण थार संसार तीर, गाथा-१२. ३. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगर हथणापुर अत ही; अंति: नाव भव भव पाप हरो, गाथा-२८. ४. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनजी को नाम; अंति: थारी अव सेवा, गाथा-९. ५. पे. नाम. २० विहरमानजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमींदरस्वामी; अंति: जासी शीवपुर ठाम, गाथा-८. ६.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पुहिं., पद्य, आदि: पोह सम उजत भावसु; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३७ तक है., वि. कृति में प्रथम ८ गाथा नवकार विषयक तत्पश्चात् ४ गाथा आदिजिन संबंधी फिर अलग अलग उदाहरणबद्ध गाथाएं हैं. प्रत में गाथाएं क्रमशः दी गई हैं.) ७१५२१. (#) औपदेशिकहरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. चांद्राइ नगर, प्रले. अमरचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२७४११.५, ५४४३). औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: कहजो रे पंडित ते कुण; अंति: जस कहे ते सुख लहस्यइ, गाथा-१४. औपदेशिक हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देखे जाणे ते चेतना; अंति: ते मुगतिना सुख पामसइ. For Private and Personal Use Only Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१५२३. (+) थिरावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, अन्य. ग. जिनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक लिखित-"पंडितश्री श्रीजिनविजयनी पाछै"., संशोधित., जैदे., (२६.५४११.५, ११४३४).. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: केवलनाणं च पंचमयं, गाथा-५१, (पू.वि. गाथा-४२ अपूर्ण से है.) ७१५२४. (#) सीमंधरजिन स्तवन व सुभाषितसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३८). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीमधर जिनवर स्वामी; अंति: रंग अरज करे नीश दीस, गाथा-७. २. पे. नाम. सुभाषित श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. सुभाषित श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ग्यान वधे नर पंडित; अंति: आगउ आनत कौर. ७१५२५. (+) अनाथीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २१४५०-५५). अनाथीमुनि सज्झाय, मु. खेमकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: अरिहंत सिद्धने; अंति: खेमकीरत० की पाखी के, गाथा-६८. ७१५२७. ऋषभजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १०४३६). आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समकित द्वार गभारे; अंति: खेमाविजय० ___ आगम रीत रे, गाथा-६. ७१५२८. (+) क्रियाविधिसज्झाय व पोषहमांकहेवानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, ९४२९). १.पे. नाम. पोसहमा केहेवानी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई है महावीरजिन परिवार स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर सासनसार; अंति: वाचक कमलविजय जयकार, गाथा-५. २.पे. नाम. क्रियाविधि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति एक से अधिक बार जुडी हुई है महावीरजिन परिवार स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनेसर सासनसार; अंति: वाचक कमल जयजयकार, गाथा-५. ७१५२९. पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, ७५३२). पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. लाभउदय, मा.गु., पद्य, आदि: शा माटे साहेब साहमु; अंति: चढता लाभउदय घणेरो, गाथा-५. ७१५३३. (#) सुगमविवाहशोधन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. हुंडी:सोख्यमविधी., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १२४३७). विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरु वाणी; अंति: ज्योतिष तणो मर्म, गाथा-३८. ७१५३४. आनंदघन पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२, ११४३५). १. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: निसदिन जोउ तोरी वाट; अंति: आनंदघनसेजडी रंगरोला, गाथा-५. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: आस्या ओरन की क्या; अंति: आनंदघन० लोक तमासा, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जीउ जान मेरी सफल घरी; अंति: आनंदघन० माया क करी, गाथा-३. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: मोलडो थोडो रे भाईडा; अंति: आनंदघन० झालेजो जाइ, गाथा-३. ७१५३५. बृहत्संग्रहणी सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२७४१२, १७४५७). For Private and Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३४७ बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहंताई ठिइ१; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा बृहत्संग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., गद्य, वि. १६००, आदि: श्रीपार्श्वनाथं फल; अंति: (-). ७१५३६. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित लिया हैं., दे., (२७४१२, ११४३७). १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१ गाथा-७ अपूर्ण से ढाल-२ गाथा-१७ तक लिखा है.) ७१५३७. (+) स्तवनचौवीसी-स्तवन १ से ४, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संवत के अतिरिक्त प्रतिलेखन पुष्पिका अस्पष्ट है., संशोधित., जैदे., (२५.५४१२.५, १६४३५). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७१५३८. २० स्थानकतप विधिव औपदेशिक बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८८८, माघ शुक्ल, १, श्रेष्ठ, पृ. १२-११(१ से ११)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. मकसुदाबाद, प्रले. मु. हरसुख (तपगच्छ); मु. मोहनविजय (तपागच्छ); राज्ये गच्छाधिपति देवेंद्रसूरि (गुरु आ. विजयानंदसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. *स्थानक-१९ तक मोहन ने लिखा, बाद में हरसुख में लिखा है एसा उल्लेख प्रतिलेखन पुष्पिका में मिलता है. 'प्रतिलेखन पुष्पिका ६ दोहाबद्ध है. *प्रतिलेखक लिखित-श्रीमाणभद्रजी प्रसादात् 'लेखन स्थल-मकसुदाबाद भागीरथी के कंठ रेणुकपुर., जैदे., (२७.५४१२, २४x७३). १. पे. नाम. २० स्थानकतप विधि, पृ. १२अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है. प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: सुखानंत सुखानुभवै, (पू.वि. वृद्धानुगततीर्थ १८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक बोल, पृ. १२अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: क्रोध मान माया कपटा; अंति: सुध कर के व्रत लेणा. ७१५३९. गतागति २४ दंडक के ५६३भेद विवरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, २०४३८). गतागति २४ दंडक के५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: तीर्थंकरजी ३८ बोल का; अंति: (-), (पू.वि. विकलेन्द्रिय भेद गणना अपूर्ण तक है.) ७१५४२. स्तवन चौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., दे., (२५४१२, ८४३७). स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा ____ अपूर्ण., अभिनंदनजिन स्तवन अंतिम गाथा अपूर्ण से है व सुमतिजिन स्तवन गाथा-४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१५४६. (#) जैनधर्म स्वरूपविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित है., मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ६x४६). जैनधर्म स्वरूप विचार, पुहिं., गद्य, आदि: (-); अंति: उसी कुंजैन कहीइ, (पू.वि. "पृथ्वी के जीव सेती" पाठांश अपूर्ण से है.) ७१५४७. (4) सामुद्रिक शास्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. हुंडी:सामूद्रि प०., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७). सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, आदि: आदिदेवं प्रणम्यादौ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३६ स्त्रीलक्षण तक लिखा है.) ७१५५०. (4) ज्योतिषसार-प्रकरण १ से राजयोगप्रकरण तक, संपूर्ण, वि. १६३६, आषाढ़ शुक्ल, ११, बुधवार, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. जसविजय (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३४-३७). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१५५१. (+#) महादंडक स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४४०). महादंडक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंति: सामिणूत्तर पयंदेसु, गाथा-२०. ७१५५२. (#) उपदेशमाला गाथानुक्रमणिका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १६x४६). उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जगचूडाम सवस्सर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८० तक ७१५५३. औपदेशिक अनुभव चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२६४१२, १४४३७). औपदेशिक अनुभव चौपाई, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा __अपूर्ण., गाथा-७ अपूर्ण से है व प्रशस्तिगाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ७१५५४. (+) स्नातस्या स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत., जैदे., (२६४११.५, ७४३०). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७१५५५. उवसग्गहरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४२३-३०). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १०, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवस्सग्गहरं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-१०. ७१५५६. (+-) भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. दीवबिंदर, प्रले. मु. रविजी ऋषि; पठ. मु. विसरामजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ-संशोधित., दे., (२६४१२, १५४३६-३९). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: भय नासइ तस दुरेण, गाथा-२४. ७१५५७. उवसग्गहरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, १०४२७). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पास पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-७. ७१५५८. (+#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १६x४०). जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., आदि: नक्षत्र योनिश्च; अंति: शेषहीन बलेरपि. ७१५५९. अइमुत्ताऋषि सज्झाय व शिक्षारूप ढाल, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, दे., (२५.५४१२, १३४३१). १. पे. नाम. अइमुत्ताऋषि सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लिखमीरतन० ना पाया, गाथा-२३. २. पे. नाम. २० बोल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणहीसुंवादविवाद न; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१५ अपूर्ण तक है.) ७१५६०. () अइमुत्तामुनि सज्झाय, सुगुरुपच्चीसी व कमलावती सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-२५(१ से २४,२६)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांकन होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६.५४११, १५४३६). १. पे. नाम. अइमुत्तामुनि सज्झाय, पृ. २५अ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र हैं. आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लखमीरतन० अणगारो, गाथा-२१, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. सुगुरुपच्चीसी, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सुगुरु पीछाणो नर इण; अंति: कहइ जिणहर्षउछरंग जी, गाथा-२५. ३. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. २७अ-२७आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. For Private and Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३४९ कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: जइमल० सिवरा सुख लहो, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१३ से है.) ७१५६१. त्रैलोक्यसुंदरीरास व अगडदत्त रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., दे., (२५४१२,१०४३६). १. पे. नाम. त्रैलोक्यसुंदरीरास, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५२, आदि: (-); अंति: सबलदास०लील विलासोरे, ढाल-१२, (पू.वि. ढाल-१२, गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अगडदत्त रास, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. मनीराम, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: आदिनाथ आदे करी; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-१, गाथा-२ तक लिखा है.) ७१५६२. (+#) गणधरवलयमंत्र विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, २३४४५-५१). गणधरवलयमंत्र विधि, सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. "मिथ्यात्व कदाचन भविष्यति" पाठ से "व्रतधारण सामर्थ्यं घोरः" पाठ तक है.) ७१५६५. (4) स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ११४३२). स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., स्तवन-२,३,५ व ६ अपूर्ण मात्र लिखा है.) ७१५६६. (#) १८ नातरानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, १०४३४). १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुण गाय रे मन रंगीला, ढाल-३, गाथा-३५, (पू.वि. ढाल-२, गाथा-१४ अपूर्ण से है.) ७१५७०. (#) नेमराजिमती बारमासा व धन्ना सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११.५, १९४५५). १. पे. नाम. नेमराजिमती बारमासो, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. लालविनोद, पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: उत्तर लालविनोद गाये, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-२० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. धन्ना सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वचन प्रतिबोधीए; अंति: आवागवन नही कवही रे, ढाल-२, गाथा-१७. ७१५७१. वधावो, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, दे., (२५४१२,११४३०). १. पे. नाम. सौभाग्यसूरि वधावो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. वा. वल्लभ पाठक, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वल्लभ० कोडि बरिस रे, गाथा-५. २. पे. नाम. जिनसौभाग्यसूरि वधावो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ७१५७२. (#) होरीव पदसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. दोलतराम हरखचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्त में हीरवीजे राधणपरना लिखा है., अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५४१२, ११४३१). १. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन होरी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन होरी-शंखेश्वर, म. उत्तम, पुहिं., पद्य, आदि: आई वसंत रतु आजरे; अंति: उत्तम० मे तो खेलुंगी, गाथा-६. २. पे. नाम. आदिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: डारु गुलाल मुठी भरके; अंति: तार लीजे अपनो करकें. गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन होरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन पद, मु. भूषण, रा., पद्य, आदि: नेम निरंजन ध्यावो रे; अंति: भूषण जस लीनो रे, गाथा-५. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-कायोपरि, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५० www.kobatirth.org पुहिं., पद्य, आदि: काया मांजत कुनगुना अंतिः जिणे दाग दलुदो धोयो, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि जैसे जुर के जोर से, अंति: धर्मवचन न सोहाय, दोहा - १. ७१५७३. (+#) भोजराज दृष्टांतकथा संग्रह, परमात्म गीत व द्रव्यमहिमा गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६४११, १५४५४-६०). १. पे. नाम. राजा भोज व कविसंवाद कथा, पृ. १अ, संपूर्ण. भोजराज दृष्टांतकथा संग्रह, सं., गद्य, आदि: एकस्मिन्नगरे राज्ञौ, अंति: मौक्तिकरत्नानि २. पे. नाम. परमात्म गीत, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखन में यवनभाषया परमात्मगीतं लिखा है. मु. तीर्थजय, पुहिं., पद्य, आदिः एक अलेख दुनी का राजा, अंति: तीरथजय० परमपद पावीजइ, गाथा-७. ३. पे नाम. द्रव्यमहिमा गाधा, पृ. १आ, संपूर्ण धन महिमा गाथा, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: टकाथी कला होइ टकाथी, अंति: भणि खेम० नर जोइ टगमग, गाथा - १. ७१५७४. स्तवन व विचारसंग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे, ५, जैदे., (२५X१२, १३४३९). .पे. नाम. क्रखभदेव स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद; अंति: स्वामी वाचक मान कहे, गाथा ५. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उपा. मानविजय, मा.गु., पद्म, आदि: अजित जिनेसर चरणनी, अंति: हुओ मुज मन काम्यो, गाथा-७, ३. पे. नाम. बारभाव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२ भावफल श्लोक, सं., पद्य, आदि: तनधनसहजसुखसुतशत्रुः अंतिः धर्मकर्मलाभव्यय, श्लोक-१. ४. पे नाम, जन्मपत्री विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: रविर्मेष तुले; अंति: त्रिभी अस्तमतीजड, श्लोक ८. ५. पे नाम, वर्षाज्ञान विचार, प्र. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मा.गु., गद्य, आदि: पौसवदि १३ बावला होय, अंतिः बादल तो हस्त बरसे. ७१५७७, (+४) नारचंद्रज्योतिष सह यंत्रकोद्धार टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १. पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४११, १६x४२). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतं जिन, अंति: (-), (पू. वि. श्लोक - १८ तक है.) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य अंति: (-). ७१५७९. (+) उपदेश छतीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८ - १७ (१ से १७ ) = १, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४.५X११.५, ७x४८). कडवाछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८६०, आदि: (-); अंति: रतनचंद० तणे अनुसार, गाथा-४३, (पू. वि. गाथा - ३७ अपूर्ण से है . ) ७१५८१. (+#) गौतमस्वामी रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३- १ ( २ ) = २, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५.५x१२, १०x३३ ). ७१५८२. आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे. (२५x१२, १४४४४). " गौतमस्वामी रास, मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिनेसर चरण कमल, अंति: (-), (पू. वि. गाथा - १३ अपूर्ण से २६ अपूर्ण तक व ४१ अपूर्ण से नहीं है.) आध्यात्मिक सज्झाय, जै. क. खूब, मा.गु., पद्य, आदि: सहिज सरूप सुशील; अंति: खूब० विडारण सुखकरण, For Private and Personal Use Only गाथा - १२. ७१५८३. (#) शकुनसोलही व आनंदघन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५x११, १७४३२-४५) ', Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३५१ १. पे. नाम. शुकन सोलही, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वाग वाणि पणमुं मनशुद; अंति: धुकहे नित हिइ धरेयु, गाथा-१६. २.पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: बालुडी अबला जोर किश; अंति: चेतना आनंदघन अतिरंग, गाथा-५. ७१५८४. रतनकुवर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. नथमल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२४.५४१२, १९४४२). रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनकुंवर गुण आगला रे; अंति: आपेजेम तंबोल, गाथा-४१. ७१५८५. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४४१). १. पे. नाम. वीरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वीर सुणो मुज वीनती; अंति: लायककुशल० मुझ वास के, गाथा-९. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ऋषभकुशल शिष्य, मा.गु., पद्य, वि. १७९०, आदि: श्रीसाहिबशांतिजिणंद; अंति: ऋषभकुशल तुं ईस, गाथा-७. ३. पे. नाम. ऋषभजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., पद्य, आदि: नाभिनंदन गुण गावता; अंति: लायककुशल० भीर के, गाथा-७. ७१५८६. (#) कंसकृष्णविवरण लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४१२, २१४५७). कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहि., पद्य, आदि: गाफल मत रहरे गाफल; अंति: विनेचंद० मन आणंदे, गाथा-४२. ७१५८८. विवाहपडल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११.५, १६x४०). विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: वाणी पद वांदी करी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दशयोगफल तक लिखा है.) ७१५९३. (4) शारदीय नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१९(१ से १९)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१४४४३-४९). लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., कांड-३, श्लोक-३७४ अपूर्ण से ४५३ तक लिखा है.) ७१५९४. रतनगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक लिखा न होने के कारण अनुमानित पत्रांक दिया गया है., जैदे., (२४४१२,१२४४२). रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१३ तक लिखा है.) ७१५९९. मृगापुत्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२४.५४११.५, २३४५३). मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, वि. १८६५, आदि: (-); अंति: प्रमनाण खप कीजीए, ढाल-४, (पू.वि. ढाल-३, गाथा-२ अपूर्ण से है.) ७१६००.(+) रतनकुमार ढाल, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ कृष्ण, १०, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले.सा. लछमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत., दे., (२५.५४१२, २२४५१). रतनकुमार ढाल, सा. लछमा, मा.गु., पद्य, वि. १९०९, आदि: रतनगुरु गुण आगला रे; अंति: सुणज्यो चित्त लगाय, ढाल-५. For Private and Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१६०१. (+) कर्म छत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९६८, आश्विन शुक्ल, ९, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. फलोदी, पठ. श्रावि. अणदीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित.,प्र.ले.श्लो. (१२४०) पोथी अरी पदमणी, दे., (२५.५४११.५, २०४४५). कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सुत्र गिनाता मे कही; अंति: चंदजी हो कवगुरु पसाद, गाथा-३६. ७१६०३. (+#) भरतराजाऋद्धिवर्णन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११.५, १८४४४). भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३५, आदि: प्रथम सीमरीयै ऋषभजीण; अंति: आसकर्ण० भरतने होय ए, गाथा-२६. ७१६०४. (#) १८१ बोलनी हंडी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, २३४६०). १८१ हुंडी बोल, मा.गु., गद्य, आदि: साधु थइनै अणकल्पनी०; अंति: (-), (पू.वि. बोल-४० अपूर्ण तक है.) ७१६०५. पच्चक्खाण सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२६.५४११.५, १३४४८). __प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रत्याख्यान-३ अपूर्ण से ९ अपूर्ण तक है.) ७१६०६. (#) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. मूल व टीका का अंश नष्ट है, जैदे., (२७४१२, ३४४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: जीवनइ दस प्राण धरइ; अति: (-). ७१६०७. (+#) समवायांग सूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (२५४११, १३४४२). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. समवाओ-२९ के प्रारंभिक सूत्र अपूर्ण से समवायो-३० गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) ७१६०८. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थव दृष्टांतकथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १६४५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: (-), (पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., महाविजय पुष्पोत्तर प्रवर पुण्डरीक सौवस्तिक का वर्धमान नामक महाविमान से प्रयाण करने का वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: ते काल अवसर्पिणीनु; अंति: (-), पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. कल्पसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., नागकेतु कथा अपूर्ण है.) ७१६१२. पार्श्व, मुनिसुव्रत व अभिनंदनजिन पदादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ५, दे., (२५.५४१२, १३४४७). १.पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. उदयसागर, पुहिं., पद्य, आदि: अब हम कुं ज्ञान दीयो; अंति: रिद्ध दियो मुज कुं, पद-७. २. पे. नाम. मुनिसुव्रतजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. पुहिं., पद्य, आदि: मुनीसुव्रतनाथ जिणेसर; अंति: कीरत गावो महेसर की, पद-४. ३. पे. नाम. अभिनंदनजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: अभीनंदन जिनराय चलो; अंति: नित प्रत शीस नमाय, गाथा-६. ४. पे. नाम. गणेशजी पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. गणेशजी द्रुपद, तानसेन, पुहि., पद्य, आदि: जै गणेश जै गणेश जै; अंति: तानसेन सफल वाकी सेवा, गाथा-३. ५. पे. नाम. सवैया संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. भोलेशंकर सवैया, पुहिं., पद्य, आदि: भोलेनाथ भवानी शंकर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ तक लिखा है.) For Private and Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७१६१३. वीसस्थानकतप विधि, बोल व विचारादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२६४१२, १४-२०४४२-५०). १. पे. नाम. आठ आत्मा, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ आत्मा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ द्रव्यात्मा असंख्य; अंति: ते श्रीसिद्ध. २. पे. नाम. आलोयणा बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावक मोटकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, आदि: जलो मूक्यां जेतलीज; अंति: पुरिमट्ट १ करवो. ३. पे. नाम. आठ योग दृष्टि के नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. ८ योगदृष्टि नाम, सं., पद्य, आदि: मित्रा तारा बला; अंति: लक्षणानि बोधितः, श्लोक-३. ४. पे. नाम. वीसस्थानक विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानक तपविधि, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतभक्ति अष्ट; अंति: (१)कीजे नमोतित्थस्स, (२)खाजा वीस देहरे दीजे. ७१६१५. नवपद व वीसस्थानकतप गुणणो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, १३४९-३५). १. पे. नाम. नवपद गुणनो, पृ. १अ, संपूर्ण. नवपद गरj, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरीहंताण; अंति: १२ नो काउस्सग्ग करवो. २.पे. नाम. वीसस्थानकतप गुणनो, पृ. १आ, संपूर्ण. २० स्थानकतप गणगुं, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहताण; अंति: तित्थस्स लोगस्स ४. ७१६१८. (+) प्रतिक्रमणादिसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६.५४१२, ८४३७). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं० पंचिद; अंति: (-), (पू.वि. खमासणासूत्र अपूर्ण तक है.) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार हुमाहरु; अंति: (-). ७१६२०. (+) अर्बुदगिरि, अष्टापद व सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवनादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१८(१ से १८)=२, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७.५४११.५, १०४३७). १.पे. नाम. आबूतीर्थ स्तवन, पृ. १९अ-१९आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अर्बुदगिरितीर्थस्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: पद्मविजय कहे तेह, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. अष्टापद स्तवन, पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टापद अरिहंतजी; अंति: नमतां कोडी कल्याण, गाथा-८. ३. पे. नाम. समेतशिखर स्तवन, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: समेतशिखर जिन वंदीये; अंति: पास सामलनुं चेइ रे, गाथा-८. ४. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: जगचिंतामणि जगगुरु जग; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७१६२१. (+) अंबड चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-५९(१ से ५९)=३, प्र.वि. संशोधित., दे., (२६.५४१२, १०४२७). अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः (-); अंति: लेखकानाम्, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., उत्तर दिशा जाकर इंद्रजाल विद्या के द्वारा समवसरण बनाने की चर्चा अपूर्ण से है.) ७१६२२.(+) श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १७८९, चैत्र शुक्ल, १०, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ४७-४६(१ से ४६)=१, ले.स्थल. दिल्लीनगर, प्रले. ग. ऋद्धिविजय (गुरु मु. प्रमोदविजय); गुपि.मु. प्रमोदविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१२४१) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे, (१२४२) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा, जैदे., (२७४११.५, १४४४५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: ज्ञान विशाला जी, खंड-४, गाथा-१८२५, (पू.वि. खंड-४, ढाल-१३ गाथा-३ अपूर्ण से है., वि. ढाल ४१) For Private and Personal Use Only Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१६२३. ९ वाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८७८, वैशाख शुक्ल, २, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. वडोदरा, प्रले. मु. हेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, ११४३२). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहने जाउ भामणे, ढाल-१०,गाथा-४३. ७१६२४. (+) साधारणजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, २-३४४४-४८). साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., पद्य, आदि: देवाःप्रभोयं विधिना; अंति: ययानंदमय प्रदेयाः, श्लोक-९. साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., गद्य, आदि: हे प्रभो सत्वं मया; अंति: वृत्तिरीयंकनककुशलेन, ग्रं. १४२. ७१६२५. नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८८४, आश्विन कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १७-१६(१ से १६)=१, प्रले. मु. चिमनविजय (गुरु पं. सुखविजय); गुपि.पं.सुखविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ५४३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-६०, (पू.वि. गाथा-५८ अपूर्ण से है.) ७१६२६. (#) जिणदत्तसूरि व जिनकुशलसूरि अष्टक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ८x२८). १. पे. नाम. जिणदत्तसूरि अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., पद्य, आदि: नमाम्यहं श्रीजिनदत्त: अंति: सर्वाणि समीहितानि. श्लोक-९. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि अष्टक, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सं., पद्य, आदि: पद्म कल्याण विद्या; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१ अपूर्ण तक है.) ७१६२७. व्याख्यानश्लोकसंग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, २०४४७). व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२९ और ३० मात्र है.) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ के बालावबोध अपूर्ण से श्लोक-३० के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ७१६२८. पद्मावती आलोयणा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १३४३८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ७१६२९. नवग्रह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३८). ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: भद्रबाहु० विधीयते, श्लोक-११. ७१६३०. (4) पार्श्वजिनअमृतधुनी व औपदेशिक श्लोकादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८-२१४२७-४१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन अमृतध्वनि, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: चित्त धरि गुन ॐकार; अंति: जसराज० गूण की जपमाल, गाथा-४. २.पे. नाम. पार्श्वजिन अमृतधुनी, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अमृतधुन-गोडी, मु. जिनचंद, पुहिं., पद्य, आदि: झिगमिग झिगमिग जेहनी; अंति: पोहचंदह थुणै जीतचंदह, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोकदोहा कवित्तादि संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: उत्तमर्ण धनदानचिंतया; अंति: कथितं मुनींद्रैः, (वि. श्लोक, दोहा, कवित्तादि के विविध अलग-अलग क्रम में परिमाण है.) ४. पे. नाम. स्त्रीपुरुष शृंगारवर्णन श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ शृंगार नाम, सं., पद्य, आदि: क्षौर १ मंजन २ चारुच; अंति: १६ शृंगारसा षोडसा, श्लोक-२. For Private and Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३५५ ५.पे. नाम. कृमिरोगोपचार औषध, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१६३१. नयचक्र, संपूर्ण, वि. १९४०, चैत्र शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, दे., (२४.५४११.५, १४४३९). नयचक्र, आ. विजयसिंहसूरि, सं., पद्य, आदि: वर्धमान स्तुमः सर्व; अंति: जयसिंह गुरुश्चतुष्टौ, श्लोक-२३. ७१६३२. हस्तसंजीवन सिद्धज्ञान, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-९(१ से ९)=१, जैदे., (२५.५४१२, १०४३४). हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: यः श्रीरस्तु शाश्वती, श्लोक-२८३, ग्रं. ५२५, (पू.वि. विशेषाधिकार- ४ श्लोक- ४५ अपूर्ण से है.) ७१६३३. ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, १८४४६). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण तक है.) ७१६३४. हेमीनाममाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., दे., (२५४११.५, ११४३२). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२४ से ३७ अपूर्ण तक है.) ७१६३९. (4) गुराचार, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रावण कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. कोरठानगर, प्रले. मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,११४२८-३२). गुराचार, मा.गु., गद्य, आदि: मेष राशे गरू आवे; अंति: छ मास लगै पछै सुभा. ७१६४०. आचार्यजी सज्झाय व रोहिणीतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४४१). १. पे. नाम. आचार्यजी सज्झाय, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: धरम रंग करयो रंग चोल, गाथा-१६, (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन, पृ. ४अ-५आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवत सामिणी मुझ; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१९ अपूर्ण तक ७१६४२. (#) अनंतगमपर्याय श्लोक व अनुत्तरोपातिकदशांगसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४८-५५). १. पे. नाम. अनंतगमपर्याय श्लोक, पृ. १अ, संपूर्ण. अनंतगमपर्याय श्लोक-जिनोक्त, सं., पद्य, आदि: अनंत गम पर्याय जिनवर; अंति: नतु विधि सर्वथा, गाथा-१. २. पे. नाम. अनुत्तरोपपादिकदशांगसूत्र की टीका, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत में प्रतिलेखक ने देववास संबंधी चार स्थान वर्णन की दो आगमिक पंक्ति लिखकर छोड़ दिया है. अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंति: शेषमंतकृद्दशांगवदिति, वर्ग-३. ७१६४९. सचीयजीरो छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५). सचीयामाता छंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करण आइ समाँ आइयै, गाथा-४७, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., गाथा-३५ अपूर्ण से है.) ७१६५२. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४१२, १२४३०-३४). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिणेसर पय नमी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६९ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१६५४. (+) गुरुमहिमा स्तुति व शारदादेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४१२, १०४४२). १.पे. नाम. ॐकार गुरुमहिमा स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐकार बिंदुसंयुक्तं; अंति: गुरुं नित्यहं नमामि, गाथा-२. २. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामाह्वयति विभवेन, श्लोक-९. ७१६५६. (4) विद्वद्गोष्ठि प्रसंग, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. गजसागर (गुरु पं. राजसागर गणि); गुपि.पं. राजसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १५४४४-४७). विद्वद्गोष्ठीप्रसंग वर्णन, सं., प+ग., आदि: ननु प्राज्ञ प्रकांड; अंति: सरणं कुक्षिसंबल. ७१६५७. (#) तीसमोहणी ठाणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. मु. मान ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १३४३९). समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: तीसं मोहणीयठाणा प०; अंति: महामोहं पकुव्वई, गाथा-३४. ७१६५८. (#) कल्याणमंदिर भाषा, संपूर्ण, वि. १८६३, फाल्गुन शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जिरण, प्रले. मु. मयाचंद ऋषि; पठ. मु. गौतमचंद्र (गुरु मु. मयाचंद ऋषि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, वि. १७वी, आदि: परम जोति परमातमा परम; अंति: कारन समकित सुद्ध, गाथा-४४. ७१६५९. (+#) रात्रीभोजनत्यागनी स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १२४३२). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतर नगरी वसेंजी; अंति: हेमविमल० भोजन निवार, गाथा-३०. ७१६६४. पंचपरमेश्वर वंदणा, अपूर्ण, वि. १८५४, वैशाख कृष्ण, ५, रविवार, श्रेष्ठ, पृ. ५-१(१)=४, ले.स्थल. उजैन, प्रले. सा. धनाजी आर्या (गुरु सा. रुपाजी आर्या); गुपि.सा. रुपाजी आर्या (गुरु सा. रामुजी आर्या); सा. रामुजी आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४१२, १४४३७). पंचपरमेष्ठि वंदना, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: धरीने खमावूछु, (पू.वि. अरिहंत वंदना अपूर्ण से है.) ७१६६५. रत्नाकरपच्चीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ., (२७४१२, १५४३८). रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मु. जीवराज, मा.गु., गद्य, वि. १९२०, आदि: (१)सत्य चोवीसेजिन नमु, (२)श्रेयः जे मोक्ष; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., श्लोक-१ का टबार्थ अपूर्ण तक है.) ७१६६७. (+) दीपावलीपर्व कल्प, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-२(१ से २)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१२, १५४४४). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-७० अपूर्ण से १८० अपूर्ण तक है.) ७१६६८. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४,प्र.वि. प्रथम पत्र में पावरेखा नहीं है., दे., (२६४११, १३४३६). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजीणेसर चरणकमल; अंति: विनयवंत० कल्याण करो, गाथा-४५. ७१६६९. (+) पचवीस द्वार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६४३२). १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, आदि: चउद गुणठाणां ऊपरे; अंति: (-), (पू.वि. स्थिति द्वार अपूर्ण तक है.) ७१६७०. (+#) बंधोदयदयसत्तादि भांगासंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४११.५, १९४२९-५१). For Private and Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह ,मा.गु., को., आदि: पहिली २० रौ उदै ते; अंति: (अपठनीय), संपूर्ण. ७१६७१. १५० जिनकल्याणक चैत्यवंदन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १०४३१). १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., पद्य, आदि: शासननायक जगजयो; अंति: (-), (पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) ७१६७२. (#) सज्झाय व स्तवनादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४७, वैशाख, १, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ९४३५). १.पे. नाम. दानप्रतिबोध सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घर घोडा हाथीया जी; अंति: लावण्य०दीधाना फल जोय, गाथा-१२. २. पे. नाम. संप्रतिराजा स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. - पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, म. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: धनि धनि संप्रति साचो; अंति: कनक० तुम पाय सेवरे, गाथा-९. ३. पे. नाम. युगमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. युगमंधरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: तुं साहिब हुं सेवक, अंति: भविभवि देज्यो सेवजी, गाथा-५. ४. पे. नाम. जीवप्रतिबोध सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: जीवडा साचो जैणधर्म; अंति: समयसुंदर० लील विलास, गाथा-८. ७१६७३. आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १६४३७). आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., पद्य, आदि: जिन जीम जाणे होते; अंति: गुणसागर० आनंद रुली, गाथा-२४. ७१६७४. कल्पसूत्र- व्याख्यानपीठिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, दे., (२५४११.५, १४४३१). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: वंचाणी छे कल्पसूत्र, प्रतिपूर्ण. ७१६७६. (4) सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, २५४७२). १. पे. नाम. जीवदया सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. म. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजीवदया कै कारणये: अंति: ऋष जैमल कहे एम रे. गाथा-१४. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. किसन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीऋषभ जिणेसर जगत; अंति: इम मुनी कीसन भणी, गाथा-१८. ३.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: सुगण चिंतामण देव सदा; अंति: कीरत० पारस मुखै कीयै, गाथा-१५. ४. पे. नाम. दानशीलतपभावना प्रभाति, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रे जीव जिनधर्म कीजीय; अंति: समयसुंदर० फल त्यांह, गाथा-६. ५. पे. नाम. औपदेशिक लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: लाभ नहीं लिया जिनंद; अंति: जिनदास० कुगुर भज के, गाथा-४. ६. पे. नाम. धन्नाजी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. धन्नाअणगार सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: धन्नाजी रिख इम; अंति: आसकरण० जोयक, गाथा-७. ७. पे. नाम. धम्मोमंगल ढाल, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दशवकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., पद्य, आदि: धम्मो मंगलनै मानलो; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१६७७. भमरगीता, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १६४३६-४०). नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३६, आदि: समुद्रविजयनृप कुलतील; अंति: विनयविजय० स्वनीकूल, गाथा-२७. ७१६७९. (+#) कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप विवेचन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सिद्धपुर, प्रले. पं. देवविजय गणि; पठ. मु. सौभाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४२). कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप विवेचन, मा.गु., गद्य, आदि: ॐकारबिंदु संयुक्त; अंति: मंगलपद पामै. ७१६८०. नोकारवाली सज्झाय व वणिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, कुल पे. २, ., (२६.५४११.५, ११४३३). १. पे. नाम. नोकारवाली सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बार जपुंअरिहंतना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखा है.) २.पे. नाम. वणिक सज्झाय, पृ. ७अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., पद्य, आदि: वणीओ वणज करे छे रे; अंति: विसुधविमल० कमाणी साथ, गाथा-८. ७१६८१. (+) धन्नानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ११४३१). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: श्रीचंद जयजयकार हो, गाथा-१२. ७१६८३. (+#) पर्युषणस्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२, १३४३८). १.पे. नाम. पजुसण थोय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. सुगुणचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सुगुणचंद०लाह लीजो जी, गाथा-४, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम. पजुसण स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर अतिअलवेसर; अंति: बुद्धिविजय जयकारी जी. गाथा-४. ३. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: परव पजूसण; अंति: संतोषी गुण गाइंजी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सत्तरभेदे जिनपूजा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७१६८४. उठावणरीगाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४११.५, १५४५४). देशना भाव, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: अनित्यानि शरीराणि; अंति: मंगलीकमाला विस्तरंतु. ७१६८५. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १२४३२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिं शांतिनिशांत; अंति: सूरिः श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७१६८६. परमेष्ठि नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२५.५४१२.५, १२४४०). सिद्धपद स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: एह जगतभूषण विगतदूषण; अंति: पूज्या देव निरंजनं, गाथा-१४. ७१६८७. (+) प्रदेशीप्रश्न सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, ३४३०). प्रश्नव्याकरणसूत्र-प्रदेशी प्रश्न, प्रा., गद्य, आदि: अजयसुरीकंता १ तह; अंति: अयभारोराय संबोही ११. प्रश्नव्याकरणसूत्र-प्रदेशी प्रश्न काटबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: राजा प्रदेशी कहे छे; अंति: केशी गुरुए कह्या. For Private and Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३५९ ७१६८८. शारदा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१०, कार्तिक कृष्ण, ३०, मध्यम, पृ. १, प्रले. पं. कनकविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५). शारदाष्टक, सं., पद्य, आदि: ऊँ ह्रीं श्रीं मंत्र; अंति: सा जयति सरस्वतीदेवी, श्लोक-९. ७१६८९. ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३५-३३४(१ से ३३४)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५.५४११.५, ८X४८). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-२ वर्ग-१ काली नामक अध्ययन-१ प्रारंभिक पाठ अपूर्ण से काली द्वारा माता-पिता से दीक्षानुमति प्रसंग अपूर्ण तक है.) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१६९०. चैत्यवंदन चौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, जैदे., (२५४१२, १४४२७-३०). चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., पद्य, आदि: आददेव अरिहंत धनुष; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., नेमिजिन चैत्यवंदन तक लिखा है.) ७१६९२. (+#) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १४४५०-५५). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैनस्य; अंति: भाषितमभ्यनंदन्निति. ७१६९७. (+#) नारचंद्रज्योतिष व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अंत में कोष्ठकादि बने हैं., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४४). १. पे. नाम. नारचंद्र ज्योतिष, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअहँतजिनं नत्वा; अंति: कूल्पभाक् निरागता. २.पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण.. ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चपाजक्षे वृषेकुंभे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-५ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१६९८. (#) चारित्र के ५ भेद के ३६द्वार यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, ३५४५-१९). भगवतीसूत्र-चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-४ अपूर्ण से ८ अपूर्ण तक है.) ७१७०१. (+#) गुरु सज्झाय व गोडीजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८५३-१८५४, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४३४). १.पे. नाम. गुरु सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १८५३, फाल्गुन कृष्ण, १३, ले.स्थल. प्रहलादनपुर, पठ. श्राव. वखतमलजी; प्रले.मु. हरखधीर, प्र.ले.पु. सामान्य. गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: प्रगटे परम कल्याण रे, गाथा-५, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गोडीजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८५४, मार्गशीर्ष कृष्ण, १३, शनिवार, ले.स्थल. मालणग्राम, पठ. श्राव. वखतमलजी; प्रले. मु. मानविजय (गुरु ग. हीरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीगुरुचरण कमल; अंति: मानविजय __जयकारी, गाथा-१०. ७१७०२. (4) मौनएकादशीपर्व स्तवन, सवैया व कवित्तसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. ग. भाग्यविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४३७). १.पे. नाम. इग्यारस स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिका नगरी; अंति: कांति० मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-४७. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सवैया संग्रह* म. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं.,मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. कवित्त संग्रह-गूढार्थगर्भित, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ग. ज्ञानकुशल, पुहिं., पद्य, आदि: चरण उभय कर दोअ आठ; अंति: ग्यानकुशल० वंदन करे, का.-१. ७१७०३. (+#) वीरथुई व महावीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११, १७४५०). १.पे. नाम. वीरथुई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: विई आगमसंति त्तिबेमि, गाथा-२९. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रश्नव्याकरण की तीन गाथा. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंच महव्वय सुव्वयमुल; अंति: मोखपदस्स छडिसंगभूयं, गाथा-३. ७१७०७. औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५.५४१२, ११४३३). औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम शिखामण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७१७०८. पंचमी सज्झाय व धन्नाशालिभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९८१, आश्विन शुक्ल, ११, श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. मेदपुर, प्रले. पं. माणक विजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. लेखन स्थल "मेदपुर" संदिग्ध है., ., (२५४१२, १२४३४). १. पे. नाम. पंचमी स्वाध्याय, पृ. ६अ, संपूर्ण. पंचमीतिथिसज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसद्गुरू चरणे; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, पृ. ६आ, संपूर्ण. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: अजिया जोरावर करमे; अंति: उदय० भवजल तीर रे, गाथा-७. ७१७०९. विनीत के बोल, चरणसित्तरी व करणसित्तरी आदि बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९३३, वैशाख कृष्ण, ३, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. १५, ले.स्थल. बीलाडा, प्रले. मु. कुनणमल (गुरु मु. रामकृष्ण); गुपि. मु. रामकृष्ण; पठ. सा. वीरदु आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४१२, २१४४१). १. पे. नाम. विनीत ५० बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. ५० विनीत बोल, मा.गु., पद्य, आदि: १ वनीत होय तो धर्म; अंति: संसार अनर्थ जाणै. २. पे. नाम. ७० बोल चरणसित्तरीना, पृ. १अ, संपूर्ण. चरणसित्तरी ७० भेद, मा.गु., गद्य, आदि: ५ महाव्रत १० जतीधर्म; अंति: तपस्या ४ निग्रह. ३. पे. नाम. ७० बोल कर्णसित्तरीना, पृ. १अ, संपूर्ण. करणसित्तरी ७० भेद, मा.गु., गद्य, आदि: ४ पीडविशुद्ध ५ सुमत; अंति: एवं ७० बोल जाणवा. ४. पे. नाम. २८ शिखामण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, आदि: जीणरी सरदणा परुपणा; अंति: (१)वडा वाद वदूणो नही २८, (२)दोय गडी हर की ५. पे. नाम. आचारजनी ८ संपदा, पृ. १आ, संपूर्ण. आचार्य ८ संपदा, मा.गु., गद्य, आदि: १ आचार संपदा २ रूपसं; अंति: शरीरसंपदा संग्रसंपदा. ६. पे. नाम. १३ काठिया नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ आलस २ मोह ३ अवनीत; अंति: एवं १३ काठीया जाणवा. ७. पे. नाम. दयामाता ८ उपमा, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.ग., गद्य, आदि: १ बीहताने सरणानो आधा: अंति: जीवने दयामातानौ आधार. ८. पे. नाम. ८ प्रकारे श्रावक, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३६१ श्रावक उपमा प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: १ मातापिता समान; अंति: केसुलाना फुल समान. ९. पे. नाम. ४ प्रकारे सुख, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ सुख प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: १ निरवध भाषा बोले तो; अंति: विनो करे तो सुख होय. १०. पे. नाम. ४ बुध, पृ. १आ, संपूर्ण. ४ बुद्धिमान प्रकार, मा.गु., गद्य, आदि: समुद्र सरखी बुध; अंति: बुध स्मानीक साधुनी. ११. पे. नाम. ४ प्रकार सुखशय्या, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ पेली सुखसेज्या; अंति: गजसुखमालजीनी छे. १२. पे. नाम. ४ करडिया उपमा प्रकार, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ राजारा कंडीया समान; अंति: समान जाडा जपटा. १३. पे. नाम. १४ नेम, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: १ सचित २ धर्ब ३ विगे; अंति: १ ३नाहण १४ भतेसु, गाथा-१. १४. पे. नाम. ९ नारद नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ भीम २ माभीम ३ रुद; अंति: ८ नरकमुख ९ अखौमुख. १५. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. बोल संग्रह प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १ माहावर्तनी अवगाणा; अंति: फर्सइंद्री ९ जोजन. ७१७१०. मानपरिहार छत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८५८, कार्तिक कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. चोथमल; अन्य. मु. धीर सामीजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, १७४४१). मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., पद्य, आदि: मान न कीजै रे मानवी; अंति: बोल्यां जस थाय रे, गाथा-३६. ७१७१२. सज्झाय व हालडुं संग्रह, संपूर्ण, वि. १८५९, आश्विन शुक्ल, ९, मंगलवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. मेडता, प्रले. मु. सोडमल; अन्य. मु. दीपचंद ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६.५४१२, २०४२७-५७). १.पे. नाम. चंमरचंचानी ढालां, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय-चमरेंद्र अधिकार, संबद्ध, मु. चोथमल, मा.गु., पद्य, वि. १८२९, आदि: अनंत चोवीसी ___ वांदता; अंति: चोथमल० भगोती जोय, ढाल-१२, गाथा-१३३. २.पे. नाम. अर्जुनमुनि सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: अर्जुनमुनि तिण अवसरे; अंति: पाम्यो केवलज्ञान, गाथा-१८. ३. पे. नाम. वीरजीरो हालरो, पृ. ३आ, संपूर्ण. महावीरजिन हालरडुं, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशला हरख धरेने; अंति: पूर्व पुने ठवीयाजी, गाथा-१७. ७१७१४. पार्श्वनाथ छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, जैदे., (२६४१२, १०४३०). शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: गुणसागर शिव सुख पावई, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१४ अपूर्ण से है., वि. प्रत में गाथांक नहीं दिए है.) ७१७१५. संधिसूत्र व गुरूगुणगीत, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १०-१३४३५-४०). १.पे. नाम. संधीसूत्र-प्रथम संधि, पृ. १अ, संपूर्ण... संधीसूत्र, मा.गु., गद्य, आदि: सिद्धोवरणः समामनायाः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. गुरूगुण गीत, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गुरुगुण गीत, मु. सुमतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दादौ दौलति देइ सदा; अंति: सुमति० सुजस अपार की, गाथा-८. ७१७१६. जैन मंत्रसंग्रह-सामान्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२४.५४११.५, १४४३७). जैन मंत्र संग्रह-सामान्य प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. सविधिमंत्र क्रमांक ४२ अपूर्ण से ५० अपूर्ण तक है., वि. यंत्र भी दिए गए है.) ७१७१७. पच्चक्खाणफलादि विचारसंग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४११, ११४४२). For Private and Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विविधविचार संग्रह , गु.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: यनागयमयकंतो कोडसहि; अंति: (-), (पू.वि. नीवी फल विचार अपूर्ण तक है.) ७१७१८. (+) एकाक्षरनाममालिका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. मांडण ऋषि; अन्य. मु. हाथी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संधि सूचक चिह्न., जैदे., (२५४११, २०४४५-४९). एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: सुधाकलश०मालिकामतनोत्, श्लोक-५०. ७१७२१. (4) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(२ से ३)=३, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४१२, १४४३२). नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३०, आदि: श्रीगोडीपासजी नित; अंति: (-), (पू.वि. अरिहंतपद पूजा अपूर्ण तक व उपाध्यायपद पूजा अपूर्ण से ज्ञानपद पूजा अपूर्ण तक है.) ७१७२२. पांडव रास-रुक्मणी अधिकार, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,जैदे., (२५.५४१२, १७४३८). पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ढाल-४७ अपूर्ण तक है.) ७१७२३. १७ भेदी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५.५४११, १४४४२). १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६१८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पूजा-२ अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है.) ७१७२४. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६.५४१२, ११४४५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतक्षेत्रे रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक ७१७२५. (+) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १६४३९). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ओलगडी आदिनाथनी जो; अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अभिनंदनजिन स्तवन के अंतिम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ७१७२७. (4) पडिलेहणबोल गाथा, प्रतिक्रमणसूत्रसंग्रह व २० विहरमानजिन नामादिसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. टीकादि का अंश नष्ट है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४१२, ६४३६). १.पे. नाम. साधु उपकरण प्रतिलेखन बोल गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुउपकरण प्रतिलेखनबोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मुहपत्ती पन्नास; अंति: जप्पे दंडे य पंचेव, गाथा-२. २. पे. नाम. मुहपत्ति ५० बोल गाथा सह टिप्पण, पृ. १अ, संपूर्ण. मुहपत्ति ५० बोल गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सुत्तत्थं १ मोहतिगं; अंति: विराहणच्चाय पन्नासं, गाथा-२. मुहपत्ति ५० बोल गाथा-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. २० विहरमान नामानि, पृ. १अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीसीमधरस्वामी; अंति: श्रीअजितवीर्यजी २०. ४. पे. नाम. १६ सती नाम, पृ. १अ, संपूर्ण.. ___ सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी १ सुंदरी २; अंति: १५ दवदंती १६, श्लोक-१. ५.पे. नाम. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-जगचिंतामणिसूत्रगत कम्मभूमिहि आदिसूत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ठाणेकमणे सूत्र अपूर्ण तक है.) ७१७२९. पंचमीतप सज्झाय व गजसुकुमाल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. प्रहलादनपुर, जैदे., (२७४११, ११४४४). For Private and Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १.पे. नाम. पंचमीतप विषये पंचढालीया सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: लक्ष्मी० सुखदाया रे, (पू.वि. अंतिम गाथा अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: द्वारकानगरी ऋद्धि; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७१७३०. (+#) दशार्णभद्र सज्झाय, प्रसन्नचंद्र सज्झाय व श्लोकसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, ११४४१). १. पे. नाम. दशार्णभद्र ऋषिराज स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक, अंति: लालविजय निशदिश, गाथा-१८. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अग्निना पच्यते धान्य; अंति: पापी पाप न पच्यते, श्लोक-१. ३. पे. नाम. प्रसन्नचंद राजर्षि स्वाध्याय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राज छोडी रलीयामणो रे; अंति: ऋद्धिहर्ष० ए परतिख्य, गाथा-६. ४. पे. नाम. श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्यामामुखी न मंजारी; अंति: तस्याहं कुलवालिका, श्लोक-४. ७१७३३. (+) अष्टमीतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, ११४३२). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिनवर इम उपदिशै; अंति: कांति सुख पामै घणु, गाथा-१६. ७१७३४. (+) साधारणजिन स्तवन, शांतिजिन पद व दोहादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १३४३१). १. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: मै परदेशी दूर का; अंति: रूपचंद० गुण गाया, गाथा-४. २. पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. वीरमसागरशिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह ऊठीने ध्याइने; अंति: वीरम०शिस० रस लीजै, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन होली-प्रथम कडी, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन होरी, पुहि., पद्य, आदि: धूम मच्यौ जिनद्वार; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ४. पे. नाम. भाग प्रभागरो लेखो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दोहा संग्रह-गूढार्थ गर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: अंसैअंस गुणीजीयै छेद; अंति: अंक संख्या जाणीजै, (वि. गणित प्रश्नोत्तर ५. दोहा संग्रह-गूढार्थ गर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अठै चालीसरी अप्रवर्त; अंति: कीजै पछै अंस. ५. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: काइक सुहागण भार बैस; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७१७३५. कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-३(१ से ३)=२, दे., (२५४११.५, १३४५५). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ७१७३७. अरणिकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४०). अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणक मुनिवर चाल्या; अंति: रूपविजय० सुख सीधो जी, गाथा-८. For Private and Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१७३८. (1) नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे (२४-२६.०x१२, ९X२७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नेमिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पशु पुकार सुण्या पछै; अंति: उदयविजै० मुगत मझार, गाथा-५. ७१७३९. पुण्यछत्रीसी व दोहासंग्रह, संपूर्ण वि. १७९२ मध्यम, पृ. २. कुल पे. २, ले. स्थल, बोरावड, जैदे., (२५.५x११.५, १६३७). १. पे नाम, पुण्यछत्तीसी, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६९, आदिः पुण्यतणा फल परतखि, अंतिः समयसुंदर० परतक्ष जी, गाथा - ३६. २. पे. नाम. दोहा संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु, पद्य, आदि: वेश्या किसकी असतरी; अंतिः ऊभी रह खरो ७१७४५. (*) योगचिंतामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८-४(१ से ४) ४, पू. वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६X११, ७X३५-३८). योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. विजयचूर्ण श्लोक-१ से मधुपकहरीतकी पाक लोक ५ तक है.) योगचिंतामणि- टवार्थ, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति: (-). " ७१७४६. (#) बीजतिथि स्तवन व पत्र लेखनपद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैवे. (२५x११.५. १४४४३). "" १. पे. नाम, बीजतिथि स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य वि. १८१९, आदि: श्रीसुतदेवी पसाउले, अंति: गणेश० नित वांदु पाय, गाथा १७. २. पे. नाम. पत्रलेखन पद्धति, पृ. १आ, संपूर्ण. साधु भगवंत को पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, आदि: स्वस्ति० चतुर्विंशति, अंति: सर्वोपमा संयुक्त. ७१७४८. (*) वाक्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित, जैवे (२६४११.५ १४४४०-४३). " वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदि: प्रणम्यात्मविदं, अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१२३ अपूर्ण तक है.) ७१७४९. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित, जैदे., ( २६१२.५, १४X३१). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्म, वि. १३वी आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति (-), (पू.वि. देवाधिदेवकांड प्रथम तक है.) ७१७५०. (*) रमल शुकनावली, ग्रहशांति स्तोत्र व गूढार्थश्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्र. वि. अशुद्ध पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२६१२, १२३६-४०). १. पे. नाम. रमल शुकनावली, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण, पे. वि. शुकनावली कोष्ठक संलग्न है. पुहिं., गद्य, आदि: अरे यार बहुत दिन चिं, अंति: राजा प्रजा सुखी. २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. ४-४आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरु नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि शुभं, श्लोक ९. ३. पे. नाम. श्लोक संग्रह - गूढार्थगर्भित, पृ. ४आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वृक्षाप्रवासी न ही अंति: पूर्णाः न घटो न मेघ, श्लोक-१ ७१७५१. (**) सीखामणसज्झाय व आत्महित कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. रामविजय गणि प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे., (२५x११, १०-२१४४८-५२). For Private and Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १.पे. नाम. सिखामण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले.पं. रामविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मंगल करण नमी जिनचरण; अंति: विजयभद्र० नही अवतरे, गाथा-२४. २.पे. नाम. आत्महितकुलक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. आत्महित कुलक, प्रा., पद्य, आदि: कत्थ वि तवो नसीलं क; अंति: वंजे अप्पासुअंहोइ, गाथा-१२. ७१७५२. अभव्यकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६.५४१२.५, ६४५३). संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभविय जीवेटिं; अंति: हावि तेसिंन संपत्ता, गाथा-९. संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जेम अभव्यना जीवन; अंति: वारै प्राप्त न हौवे. ७१७५३. (#) लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १४४४२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांतिनिशांत; अंति: जैन जयति शासनम्, श्लोक-१९. ७१७५४. (+) जैन मंत्र-यंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. मंत्र सहित पंचषष्ठि यंत्र हैं., संशोधित.,जैदे., (२६४११.५, ६४८-२६). जैन मंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्रीं अर्हत; अंति: णमो लोय सव्व साहणं, (वि. यंत्र भी दिए गएँ हैं.) ७१७५५. तिथिनिर्णय विचार, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ.८८-८७(१ से ८७)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११.५, १८४४५-५०). तिथिनिर्णय विचार-विभिन्न शास्त्रोद्धृत, सं., प+ग., आदि: एतच्छ्रुतं मया विप्र; अंति: नसूतं मृतसूतके, संपूर्ण. ७१७५६. (+) कालिकाचार्य कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३३-३६). कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, आदि: श्रीवीरवाक्यानुमतं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-१८ अपूर्ण तक है.) ७१७५७. (+) सिंदूरप्रकर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १०४३०). सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण से १४ अपूर्ण तक है.) ७१७५८. (+#) प्रज्ञापनासूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०४-१०३(१ से १०३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४४०-४५). प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. पद-११ भाषापद के सूत्र-३८८ की टीका अपूर्ण से सूत्र-३९१ की टीका अपूर्ण तक है.) ७१७५९. (+) उत्तराध्ययन सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११.५, २१४४५-४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-३ गाथा-९ अपूर्ण से अध्ययन-५ गाथा-२९ अपूर्ण तक है.) ७१७६०. नवकारशांतियंत्रकल्प सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५४१२, १४४२६). नवकारशांति यंत्रकल्प, सं., पद्य, आदि: झलरीमुखं पूर्वे च नर; अंति: यंत्रस्य साधनात्, श्लोक-४. नवकारशांति यंत्रकल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: कांसानी थाली वा कांस; अंति: लिखवा अष्टगंधे, (वि. यंत्र संलग्न है.) ७१७६१. (#) नारिकेलकल्पविधि व जैनयंत्रसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४३१-४०). १.पे. नाम. नारिकल्प विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. नारिकेलकल्प-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं श्री; अंति: सर्वकामप्रदाय नमः. २. पे. नाम. जैन यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७१७६२. (#) कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है..प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९x१७-२२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पृ.वि. इन्द्र के द्वारा हरिणैगमेषी देव को गर्भ परावर्तन ___ का आदेश देने से गर्भ परावर्तन किए जाने तक का वर्णन है.) ७१७६३. (+) उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन-४, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न., दे., (२५.५४११.५,७४३५-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ अपूर्ण से है व गाथा-१० तक लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने भूल से गाथा-१० का चौथा पाद क्रमशः न लिखकर गाथा-५ लिखना शुरु कर दिया है तथा गाथा-७ की आधी पंक्ति लिखकर उसका शेष भाग पहली पंक्ति से लिखा है.) ७१७६४. (+2) पाक्षिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४४४-४९). पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महापुरिसोणुविण्णा पाठ से परिग्गहे अपग्घेव पाठ तक ७१७६५. (+#) अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५१-५०(१ से ५०)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक भाग नष्ट होने से पत्रक्रम अनुमानित दिया है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ५४४९). अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ९ काव्य रस वर्णन की गाथा-९ रौद्ररस अपूर्ण से ९ रस उपसंहार गाथा-२० अपूर्ण तक है) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१७६६. (+) अजितशांति स्तव सह छंदसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १७४४०-४५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से ११ तक है.) अजितशांति स्तव-छंद संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१७६७. (+) उवसग्गहरस्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, ५४३७). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: उवसग्गहरं पासं पास; अंति: भवे भवे पास जिणचंद, गाथा-५. उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पार्श्वनाथनिह; अंति: प्राप्ति मुझग्नि देइ. ७१७६८. (+) पाक्षिकखामणा व ग्रहशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १०-१३४३२-३९). १.पे. नाम. पाक्षिकखामणासूत्र, पृ. १अ, संपूर्ण, प्रले. ग. न्यानवर्धन; पठ. मु. बुद्धिवर्धन, प्र.ले.पु. मध्यम. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पिय; अंति: निथार पारगा होह, आलाप-४. २.पे. नाम. ग्रहशांति स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण, प्रले. मु. बुद्धिवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य. ___ आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधिश्रुतं, श्लोक-९. ७१७६९. (#) जैनस्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १९-२२४२८-६९). १.पे. नाम. चतुर्विंशति जिन चक्रिण: केशवा देहमान आयुमान आदि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ भरत ० धनुष ५००; अंति: हस्त ७ वर्ष ७२. २. पे. नाम. रत्नप्रभा पृथ्वी विचार, आहारअनाहारक व स्त्रीपुरुष नपुंसक वैदादि विचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१७७०. भवचरिमपच्चक्खाण, साधुकालधर्मविधि व अभक्ष्य सज्झायादिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११, २१४५४-५८). १. पे. नाम. अभक्षवस्तु सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. २२ अभक्ष्य विचार, प्रा.,सं., गद्य, आदि: सव्वाय कंद जाई सूरण; अंति: पातादि दोष संभवात्. २.पे. नाम. जिनप्रतिमा स्वरुप सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनप्रतिमाविचार श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आनीताब्दशतं यस्याद्य; अंति: कुलधण नासाइया जम्हा, श्लोक-२७. ३. पे. नाम. साधु कालधर्म विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. साधुकालधर्म विधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: विणठा पूविइ स्नान; अंति: ठावणिआ काउसग कीजइ. ४. पे. नाम. भवचरिम पच्चक्खाण, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., गद्य, आदि: भवचरिमं पच्चक्खामि; अंति: सक्खिअंवोसिरामि. ७१७७१. (#) जैनधार्मिक श्लोकसंग्रह सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, १६४४९). श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: दानं दुरितनाशाय शीलं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., श्लोक-४ तक है.) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-अर्थ , मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत उत्पन्न; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७१७७२. दशवैकालिक सूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४११.५, १०x२३-२६). दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७१७७३. संतिकरं स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १०४३५-३९). संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: संतिकरं संतिजिणं; अंति: स लहइ सुअसंपयं परमं, गाथा-१३. ७१७७४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३-७२(१ से ७२)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, ५-१२४४४-५०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. भगवान महावीर की दीक्षा कल्याणक वर्णन अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१७७५. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४१०.५, १२४२७-३०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: अणंतभागो असिद्धाओ, गाथा-६०. ७१७७६. (#) चतुर्विशितिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. फरसराम व्यास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५,८x२५). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, ___ आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंति: पक्षालनजलोपमा, श्लोक-३०. ७१७७७. विपाक सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११, १९४६०-६४). For Private and Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंति: सेसं जहा आयारस्स, श्रुतस्कंध-२, ग्रं. १२५० (वि. अध्ययन २०) ७१७७८, (A) सूत्रकृतांग सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११.५, २५४६०-६५). "" सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउज्ज; अंति: (-), अध्याय- २३ नं. २१०० (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन-४ इत्थिपरिण्णा उद्देशो - १ गाथा १२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७१७७९. (+) जंबूअध्ययन प्रकीर्णक सह कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५x१२, ५-१४४३१-३७). जंबू अध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं० रायगिहे अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रारंभिक पाठ चतुर्विध धर्मविस्तार अधिकार अपूर्ण तक लिखा है.) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि (-); अंति (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., " वि. दान प्रकार से जीव भेद संज्ञीपंचेन्द्रिय अपर्याप्ता वर्णन तक लिखा है.) 1 ७१७८०. (+) पट्टावली, मांगलिकश्लोक व ज्ञानपहिरावणी गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, प्रले. उपा. मतिमंदिर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ संशोधित. जैवे. (२५x१२, ११४३०). १. पे. नाम. खरतरगच्छीय पट्टावली, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. , , पट्टावली खरतरगच्छीय, सं. पद्य वि. १८९२, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंतिः जिनहेमसूरि० शतम्, श्लोक-१९२. पे. नाम मांगलिक श्लोक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि: अब्धिर्लब्धिकदंबकस्य, अंतिः वचायें यथाशक्तिः. ३. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. ३अ, संपूर्ण. ज्ञान पूजा, प्रा., पद्य, आदि: नमति सामंति महीवनाह; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा-२. ७१७८१. (+) योगनंदीसूत्र, नंदीस्तुति व नंदी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५x११. ११४२५-३० ). " १. पे. नाम. योगनंदीसूत्र, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र - योग, हिस्सा, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, आदि: नाणं पंचविहं पण्णत्त; अंतिः अणुष्णानंदीपवत्तई, सूत्र- ९. २. पे. नाम. नंदीसूत्र स्तुति, पृ. २अ - ३अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अर्हस्तनोतु स श्रेय, अंतिः विघ्नविघातदक्षाः, श्लोक ८. ३. पे. नाम. नंदि स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: ओमिति नमो भगवओ; अंति: जिणाइ नवकार उधरियं, गाथा-५. ७१७८२. चैत्यवंदन संग्रह, पार्श्वजिन स्तुति व आत्मरिख्या स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल. सिरियारी, प्रले. पं. खिमासौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५X११, १३३७). For Private and Personal Use Only १. पे. नाम, चैत्यवंदन संग्रह, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी-चैत्यवंदनपा, श्रीजिनेश्वरं प्रसादात् साधारण जिन चैत्यवंदन, प्रा.सं., पद्य, आदि: अट्ठावयंमि उसभो, अंतिः पातकेभ्यः प्रमुच्यते, लोक-५२. २. पे. नाम. संखेश्वरजिन स्तुति, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूरि, सं., पद्य, आदि: महानंदलक्ष्मीघना, अंतिः श्रीहंसरत्नायितं, श्लोक-११. ३. पे. नाम. आत्मरिख्या स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक- ८. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि, अंति: राधिश्चापि कदाचन, ७१७८३. (A) अजितशांति स्तवन, नमिऊण स्तोत्र व गणधर स्तुति, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे ३, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२५X११, २५-३०X१७). १. पे. नाम. अजितशांति स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३६९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ अजितशांति स्तवलघु-खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उल्लासिक्कमनक्ख; अंति: (-), गाथा-१७, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) २. पे. नाम. नमिउण स्तोत्र, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण.. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: सयलभुअनीवीअंजलीणो, गाथा-२१. ३. पे. नाम. गणधरदेव स्तुति, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तं जयउ जए तित्थं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ तक है.) ७१७८४. (+) चतुर्विंशतिदंडक प्रकरण सह टबार्थ व जैन श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ९४३६-४०). १. पे. नाम. लघुसंग्रहणी, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२ से ५ तक लिखा है., वि. संक्षिप्त विवरण भी दिया गया है.) २. पे. नाम. आप्तमीमांसा सह टीका, पृ. १अ, संपूर्ण. आप्तमीमांसा-हिस्सा श्लोक-११३, आ. समंतभद्र, सं., पद्य, आदि: विधेयमीप्सितार्थाग; अंति: स्याद्वादसंस्थितिः, श्लोक-१. आप्तमीमांसा-हिस्सा श्लोक-११३-टीका, सं., गद्य, आदि: विधेयमिति विधेय; अंति: तत्सत्पलक्षणयोगादिति. ३. पे. नाम. चौवीसदंडक प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउंचउवीस जिणे; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०, संपूर्ण. दंडक प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: चौवीस जिनराजने; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक टबार्थ लिखा है.) ७१७८५. (#) साधुअतिचार, सकलार्हत स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४५). १. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडम्. २. पे. नाम. सकलार्हत स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि: सकलार्हत प्रतीष्ठान; अंति: श्रीवीरजिन नेत्रयोः, श्लोक-२६. ३. पे. नाम. प्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्ति वंदणय; अंति: किंचि अप्पत्तियं, गाथा-३. ७१७८६. जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८७१, वैशाख कृष्ण, ९, गुरुवार, मध्यम, पृ. ६-३(१ से ३)=३, ले.स्थल. पालणपुर, प्रले. मु. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, ११४२९-३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: (-); अंति: रुदाउ सूयसमुद्दाओ, गाथा-५३, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७१७८८.(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २७-२४(१ से २४)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं..प्र.वि. संशोधित., दे., (२६४११, ५४२९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-२ मृषावाद अधिकार अपूर्ण से असत्य प्ररूपणाधिकार अपूर्ण तक है.) ७१७८९. (#) दशवैकालिकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२६४१२, ५४३०-३३). For Private and Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. अध्ययन- ६ गाथा-८ अपूर्ण से ३७ अपूर्ण तक है.) ७१७९०, गच्छाचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे. (२६११, १८५६-५९). "" गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं तिय; अंति: इच्छंता हियमप्पणो, गाथा-१३८. ७१७९१. (*) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x११, १४X३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४. ७१७९२. (+) स्वयंभूदशलक्षण, पार्श्वनाथमहामंत्र स्तोत्र व श्रावककर्त्तव्य गाथा, संपूर्ण, वि. १८०८, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले. स्थल. महीमापुर, पठ. मु. दयाहर्ष, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५X११, ९X३०-३४). १. पे. नाम. स्वयंभू दशलक्षण, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः येन स्वयं बोधमयेन, अंतिः स्वर्गापवर्गास्थिते श्लोक-२५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ महामंत्र स्तोत्र, प्र. ३अ- ३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र - जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंतिः सर्व सिद्धि प्रदायक, लोक-११. ३. पे. नाम. श्रावककर्त्तव्य गाथा, पृ. ३आ, संपूर्ण. जैनगाथा संग्रह *, प्रा. मा. गु. सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-२. ७१७९३. (#) पार्श्वनाथचैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, ९४२१). १. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ संपूर्ण. सं., पद्य, आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: पूरि मे वांछितं नाथ, श्लोक ५. २. पे. नाम. मांगलिक स्मरणीय श्लोक, पृ. १अ २आ, संपूर्ण. मांगलिक स्मरणीय श्लोक संग्रह, मा.गु., सं., पद्य, आदि: ब्राह्मी चंदन बालका; अंति: माथे परसी तुझ, श्लोक-११. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. मु. मान, मा.गु., पद्य, आदि: रीधसमपण दरद्रहरण; अंतिः दीय्य सूखोरी खोण, गाथा - १३, (वि. गौतम गणधर का उल्लेख भी मिलता है.) ४. पे. नाम. चौवीसतीर्थकर नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण २४ तीर्थंकर नाम, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीऋषभ १ अजीत २; अंतिः शंतीकरा भवंतु स्वाहा, ५. पे. नाम मांगलिक लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण सं., पद्य, आदिः सर्वमंगल मांगल्यं, अंतिः जैनं जयति शासनम्, लोक-१. , अंक- २४. ७१७९४. (+#) स्तोत्र,सज्झाय व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. श्रावि. पदमा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५×११, ११×३५-३८). १. पे नाम चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १अ २अ, संपूर्ण त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र - हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान, अंतिः श्रीवीर भद्रं दिश, श्लोक-३१. २. पे. नाम. चित्रसचित्र सज्झाय, प्र. २अ ३अ संपूर्ण. For Private and Personal Use Only असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: प्रणमुं श्रीगौतम, अंति: वीरव कर जोड़ी कहि, गाथा- १७. ३. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३७१ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह*, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ठगोरी भगोरी लगोरी; अंति: आनंदघन० नाव मरोरी, गाथा-३. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: निसाणी कहा बतावुरे; अंति: आनंदघन महाराज, गाथा-५. ६. पे. नाम. दुहा संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. दहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७१७९५. छंद व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. सीरोही, जैदे., (२५.५४११.५, ११४२५-२८). १.पे. नाम. परमात्मस्वरूप स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. मु. दानविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: चिदानंदरूपं सुरूपं; अंति: तच्छिशु दान नामा, गाथा-३२. २.पे. नाम. गोडीजी छंद, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण, ले.स्थल. सिरोहीनगर, प्रले. पं. देवेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, म. दानविजय, पुहिं., पद्य, आदि: वाणारसी राया पास; अंति: दानविजय तुम बंदा हो, गाथा-६. ३. पे. नाम. श्रेयांसजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. खिमाविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीश्रेयांसजिणंदनी; अंति: खीमाविजयजी नाम, गाथा-५. ७१७९६. (4) चौवीसजिन स्तुति-आदिजिन से वासुपूज्य, संपूर्ण, वि. १८३८, कार्तिक कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पालडीया, प्रले. ग. कपूरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय); पठ. मु. चतुरा (गुरु ग. कपूरविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १२४३१-३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ७१७९७. (+#) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४२९-३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाण, गाथा-६३. ७१७९८. (+#) स्तोत्र व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. देवपत्तन, प्रले.ऋ. श्रुतकीर्ति (गुरु पं. राजकीर्ति, अंचलगच्छ); गुपि.पं. राजकीर्ति (गुरु आ. धर्ममूर्तिसूरि, अंचलगच्छ); आ. धर्ममूर्तिसूरि (अंचलगच्छ); पठ. श्रावि. लाडिकाबाई देवदास (माता श्रावि. नाथीबाई); गुपि. श्रावि. नाथीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४११, १५४३७-४०). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तव-जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रभुजीरिकापल्लि; अंति: महेंद्रस्तवार्हाः, श्लोक-४५. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदि: ॐ नमो देवदेवाय नित्य; अंति: लभेत् ध्रुवम्, श्लोक-१४. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवनलिन कुवलय; अंति: दोसउ खय सव्वदुरियाणं, गाथा-६. ७१७९९. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२.५, १२४३५). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: जिणवयणे आयरं कुणह, गाथा-४०. ७१८००. () सूत्रकृतांगसूत्र अध्ययन-६वीरथुइनाम, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, अन्य. श्राव. हंसराज; श्राव. लखमीचंद नरखेडावाला, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४११, ८x२६). For Private and Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिस्सणं समणा; अंति: आगमिस्सति त्तिबेमि, गाथा-२९. ७१८०१. (4) सप्तविंशतिसाधुगुण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०४४९-५६). साधुगुण सज्झाय-२७ गुणगर्भित, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., पद्य, आदि: साधुजीना गुण वखाणुं; अंति: ज्ञानचंद ध्यान रे, गाथा-१२. ७१८०२. आचारांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७-२६(१ से २६)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, ५४५२). आचारांगसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रुतस्कंध-१ अध्ययन-६ उद्देश-१ अपूर्ण से उद्देश-२ अपूर्ण तक है.) ७१८०३. (#) ज्योतिषसार, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, ९४२४). ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हतजिनं नत्वा; अंति: (-), (पू.वि. सिद्धियोग तक है.) ७१८०४. (+) राजुलपच्चीसी, भक्तामर भाषा व २४जिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, २२४४७-५०). १. पे. नाम. राजुलपच्चीसी, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: लालचंद० कु मंगल करइ, गाथा-२६, (पू.वि. मात्र अंतिम गाथा है.) २. पे. नाम. भक्तामर भाषा, पृ. ४अ-५आ, संपूर्ण. भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., पद्य, आदि: आदिपुरूष आदिसजिन आदि; अंति: हेमराज० पावइ शिवखेत, गाथा-४९. ३. पे. नाम. २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: सयलजिणेसर पणमुपाय; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७१८०५. गोडी व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, पठ. श्राव. धनराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११,१३४४०-४३). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सकलमंजुलमंगलमालिनं; अंति: पठतां सुख हेतवे, श्लोक-९. २. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ अष्टक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिनाष्टक-शंखेश्वर, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीसद्मपद्मापतिपूजि; अंति: भावप्रभ०पार्श्वनाथम, श्लोक-९. ७१८०६. (+) संग्रहणीसह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पत्रांक भाग खंडित होने से पत्रक्रम अनुमानतः दिया गया है., संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१२, १२४४५). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ से १५ तक है.) बृहत्संग्रहणी-बालावबोध *मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१८०७. सूक्तमुक्तावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४१२, १३४३७-४०). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७५४, आदि: सकलसुकृत्यवल्लीवृंद; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-८ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३७३ ७१८०८. महावीरजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११, १४४४०-४४). महावीरजिन स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. "निलये बहु संसरंतो श्लोक-४ अपूर्ण से कुसुममयतरुमाला श्लोक-२६ अपूर्ण" तक है.) ७१८०९. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२६४११, १३४४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, आदि: (१)श्रीवर्द्धमानप्रभु, (२)ए पहिलउं नवतत्त्वना; अंति: (-). ७१८१०. (+#) अन्ययोगव्यवच्छेद द्वात्रिंशिका-श्लोक-६ ईश्वरजगत्कर्तृत्वनिरासस्थल सह स्याद्वादमंजरी टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, ३५४२२). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वामंजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, श. १२१४, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. सिद्धसेनोक्त साक्षिपाठ-सद्धर्मबीजवपन.. श्लोक अपूर्ण तक है.) ७१८११. (#) भगवतीसूत्र-शतक-९ उद्देशक-३३, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३७-४०). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ऋषभदत्त एवं देवानंदा ब्राह्मणी महावीर प्रभु की देशना श्रवणार्थ गमन प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७१८१२. दंडकविचारषट्विंशिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-७(१ से ७)=१, जैदे., (२५४११.५, ११४३०-३३). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४४, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ७१८१३. (+#) भक्तामरस्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पंचपाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ९४३२-३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग लक्ष्मीः , श्लोक-४४, ग्रं.८०. भक्तामर स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे जिनेंद्र किल इति; अंति: वर्णविचित्रपुष्पताम्, ग्रं. ३००. ७१८१५. सज्झाय संग्रह व आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४११.५, १८४५७). १.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-जैनधर्मपालन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: हाथी परखै घोडा परखै; अंति: अब तो मै पिण लाधौ, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. __ औपदेशिक सज्झाय-योगी, मा.गु., पद्य, आदि: जोगी ते जोगनी जुगत न; अंति: हुवै सौ परिखौ रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, रा., पद्य, आदि: वेरण जीभडीमार्ग नही; अंति: नही थारे परवेस कै, गाथा-७. ४. पे. नाम. आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३६, आदि: दर्शण परिसो बावीसमो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-१ तक है.) ७१८१६. (#) सज्झाय व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. उदयपुर, प्रले.ग. भोजविजय; पठ. श्रावि. चैना, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४३४). For Private and Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. विजयाराणीविजयसेठ सज्झाय, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ले.स्थल. उदैपुर, प्रले. ग. भोजविजय; पठ. श्रावि. चैना, प्र.ले.पु. सामान्य. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हर्षकीर्ति० घर अवतरै, ढाल-३, गाथा-२४, (पू.वि. ढाल-३ गाथा-२२ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चतुर्दशि कथन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: कार्येषु सिद्धिम्, श्लोक-४. ७१८१७. (+) स्तोत्र व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १८४५, मार्गशीर्ष शुक्ल, १२, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. भीलोडानगर, प्रले. मु. माणिक्यसौभाग्य; पठ. गुलाबचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १२४२७-३०). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तव, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: (-); अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४, (पू.वि. श्लोक-३७ के अंतिम शब्द से है.) २. पे. नाम. पंचमी स्तुति, पृ. ५आ, संपूर्ण.. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७१८१८. (+) शत्रुजय कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १२४३४). शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि: अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ; अंति: सित्तुंजजत्तफलं, गाथा-२४. ७१८१९. (+#) एगूणतीसी भावना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. प्रायः शुद्ध पाठ. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११, १३४४२). २९ भावना प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: संसारम्मि असारे; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं, गाथा-२९. ७१८२०. (+#) गौतमाष्टक व गौतमस्वामि स्तुति, संपूर्ण, वि. १९०६, वैशाख अधिकमास कृष्ण, १४, शुक्रवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. श्रीमालीया, प्रले. श्राव. गुलाबचंद; अन्य. आ. धनेश्वरसूरि (गुरु आ. विजयसुरेंद्रसूरि, आनंदसूरिंगच्छ); गुपि. आ. विजयसुरेंद्रसूरि (गुरु आ. विजयमहेंद्रसूरि, आनंदसूरिंगच्छ); आ. विजयमहेंद्रसूरि (गुरु आ. विजयदेवेंद्रसूरि, आनंदसूरिगच्छ); आ. विजयदेवेंद्रसूरि (गुरु आ. विजयलक्ष्मीसूरि, आनंदसूरिगच्छ); आ. विजयलक्ष्मीसूरि (आनंदसूरिगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्रीऋषभदेवजी प्रसादात्. प्रतिलेखन पुष्पिका श्लोक हेतु मात्र संकेत किया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, दे., (२६४११.५, ६४३९). १. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीइंद्रभूतिं वसु; अंति: लभते नितरां क्रमेण, श्लोक-९. गौतमस्वामी अष्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: मगधदेशने विषे गुब्बर; अंति: सुख अनुक्रमे पामइ. २. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. इस स्तुति को गौतमाष्टक के साथ ही श्लोकक्रम १० दिया है, परंतु यह श्लोक इसके न होने से अलग नाम दिया गया है. प्रा., पद्य, आदि: कणयमयसहस्सपत्ते कमलं; अंति: झायवो गोयम मुणिंदो, गाथा-१. ७१८२१. आराधना विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १६४४२). आराधना विधि, प्रा., गद्य, आदि: गंधार संधोर चिइ३; अंति: रयदिक्खंपि पडिवजइ. ७१८२२. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मंगलमुक्किट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अध्ययन-३ की गाथा-१ तक लिखा है.) ७१८२३. (+) समवायांगसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९२१, कार्तिक कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. १०२-१०१(१ से १०१)=१, ले.स्थल. आसपुर, प्रले. मु. गोकलचंद ऋषि; लिख. श्राव. चंद्रभाण लाभचंदजी संघवी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक अनुमानित दिया गया है., संशोधित. कुल ग्रं. ७०६८, दे., (२५४११.५, ७४५१). For Private and Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३७५ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: अज्झयणंति त्तिबेमि, अध्ययन-१०३, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६८, (पू.वि. अंतिम प्रकीर्णक समवाय की गाथा "विमले उत्तरे अरहा अरहाय महाबले" अपूर्ण पाठ से है.) समवायांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: विषइ बहुमानपणउ दिखीउ, ग्रं. ४४००. ७१८२४. (#) वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४३७-४०). २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: नमो अरिहंताणं अरिहंत; अंति: तथा ५ नोकार काउस्सग. ७१८२५. (4) शक्रस्तव सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ७४३९). शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: नमुत्थुणं अरिहताण; अंति: (-), (पू.वि. "ठाणं संपत्ताणं" पाठ तक है.) शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमोथुणं नमस्कार हुवो; अंति: (-). ७१८२६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ११-१०(१ से १०)=१, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, ८x२७-३०). पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, सूत्र-२१, (पू.वि. "पतिक्षतो रोअंतो फासंतो" पाठ से है.) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: तीर्थंकर देवने वांदु. ७१८२७. (+) भगवतीसूत्र सह टिप्पण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३९४-३९३(१ से ३९३)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२७४११, १२४३१-३५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गोसाला व मंखलीपुत्र प्रसंग अपूर्ण मात्र है.) भगवतीसूत्र-टिप्पणक *, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१८२८. अनागतजिनजीवाधिकार व सीखामण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१२, ६-११४२७-३०). १.पे. नाम. अनागतजिनजीवाधिकार प्रसंग, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२४ अपूर्ण से है __व श्लोक-२९ तक लिखा है., वि. चरित्रात्मक कोई कृति का अंश प्रतीत होता है.) २. पे. नाम. सीखामण सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मारूं मारूं मिथ्या; अंति: रूपचंद०माने न देर रे, गाथा-७. ७१८३०. (+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १२४३२). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., पद्य, वि. १८९२, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: यात्सुरूवा॒ सदा, श्लोक-१५. ७१८३१. अणसणपच्चक्खाण व प्रासंगिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३८). १. पे. नाम. तिविहार अणसण पच्चक्खाण, पृ. १अ, संपूर्ण. संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: भवचरिम पचखाय तिविह; अंति: वोसरे त्रिणवार कहीने. २.पे. नाम. प्रासंगिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: आवतो हेमगोपाल दंड; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ___ अपूर्ण., श्लोक-६ तक लिखा है.) ७१८३२. उववाईसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-६(१ से ६)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२६४११, १३४२७-३०). औपपातिकसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१० अपूर्ण से ११ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१८३३. (+#) स्थानांगसूत्र-स्थान४ सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११, १५४५०-५४). स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., निर्वेदनी कथा सूत्र अपूर्ण से है. व चतुर्विध मनुष्यप्रकारसूत्र अपूर्ण तक लिखा है.) स्थानांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७१८३४. (+) पर्युषणवाचना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४५). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: (-), (पू.वि. श्रीजिनचंद्रसूरि तक पट्टावली तक है.) ७१८३५. (#) कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७४-७३(१ से ७३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४१-४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. महावीर प्रभु का संयमावस्था में सचेलक-अचेलक समयावधि प्रसंग मात्र है.) कल्पसूत्र-टीका*,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१८३६. (+#) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अंत में यंत्र-कोष्ठक है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४३०-३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: दोषैर्विमुच्यते, श्लोक-८७, ग्रं. १५०. ७१८३७. (4) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-पगामसज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४४२-४५). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७१८३८. (+#) नवतत्त्वप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ४४२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: साचउ वस्तुनो स्वरूप; अंति: (-). ७१८३९. (+) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७२, आषाढ़ कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले.पं. कीर्तिविलास (बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ११४३१). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: पूज्यमाने जिनेश्वरे. ७१८४०. (4) सप्तस्मरण खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६१-५७(१ से ५७)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४३५-३८). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अजितशांति स्तोत्र गाथा-८ अपूर्ण से सिग्घमवहरउ स्तोत्र गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७१८४२. (4) कार्तिकसौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये वरदत्तगुणमंजरी कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १६x४८). वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: मेडतानगरे, श्लोक-१५२. ७१८४३. (2) वसुधाराधारिणीनाम महाविद्या, संपूर्ण, वि. १७३४, वेदगुणाद्रीला, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. विक्रमपुर, प्रले. मु. विद्याविलास, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १५४४८). For Private and Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३७७ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: भाषितमभिनंदन्निति. ७१८४४. (#) दंडक प्रकरण व गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, चैत्र कृष्ण, ७, मंगलवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सुजाणगढ, प्रले.पं. सुरत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मिटाई हुई है. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ८४३०). १.पे. नाम. विचारषत्रिंशिका, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिउण चउविसजिणे तसु; अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-४०. २.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. ४अ, संपूर्ण. गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, आदि: फासे रसेय गंधे नव; अंति: पंचमा नो विलब्भई, गाथा-२. ७१८४५. (#) खरतरगच्छीय सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३५-४०). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि: अजिअंजिअसव्वभयं; अंति: (-), (पू.वि. स्मरण-३ भयहरस्तोत्र गाथा-२ प्रारंभ तक है.) ७१८४६. वीरजन्माधिकार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८६६, श्रावण कृष्ण, ११, रविवार, मध्यम, पृ. ६-२(४ से ५)=४, ले.स्थल. बगसरा, प्रले. पं. उदेचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ६४३८-४२). कल्पसूत्र-हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार, आ. भद्रबाहस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: सुमिणा दीट्ठा जाव; अंति: आरुग्गं दारयं पयाया, (अपूर्ण, पू.वि. सूत्र-९२ अपूर्ण से ९५ अपूर्ण के बीच का पाठ नहीं है.) कल्पसूत्र-हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जे तीर्थंकरनी माता; अंति: पुत्र जन्मौ छै, संपूर्ण. ७१८४७. (+) चतुःशरण व आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४२९-३५). १.पे. नाम. चतु:शरण प्रकीर्णक, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण, वि. १६४५, आश्विन शुक्ल, १०, प्रले. मु. महीपाल (तपागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६४. २. पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, पृ. ४अ-४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रा., पद्य, आदि: अरहता मंगलं मज्झ; अंति: (-), (पू.वि. "जंपियइ सरीरं इ8 कंतं पियं मणुणं" पाठ अपूर्ण तक है.) ७१८४८. (2) देवसीप्रतिक्रमण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९-५(१ से ५)=४, पू.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १०४३६). देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. इच्छामिठामिसूत्र अपूर्ण से श्रुतदेवता स्तुति तक है.) ७१८४९. (4) स्तुतिचतुर्विंशतिका - आदिजिन से वासुपूज्यजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५१, भाद्रपद शुक्ल, १५, श्रेष्ठ, पृ. ४, ले.स्थल. जावालनगर, प्रले. पं. नायकविजय गणि; पठ. श्राव. किसना; श्राव. उत्तमचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीसुमतिनाथजी प्रसादात्. द्वितीय पठनार्थे बाद में लिखा गया है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १३४२८). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: भव्यांभोजविबोधनैकतरण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७१८५०. कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५१, कार्तिक कृष्ण, १२, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जावालग्राम, प्रले. मु. शांतिविजय (गुरु मु. कपुरविजय); गुपि. मु. कपुरविजय (गुरु पंन्या. केसरविजय); पंन्या. केसरविजय; पठ. श्राव. कंचनचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, जैदे., (२५४१२, १३४३२). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. For Private and Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१८७५. (#) मेघमाला व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७-२०४५३-५९). १.पे. नाम. मेघमाला, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. केवलिकीर्ति, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: हर्षेण हरिणा स्तुत्य; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. जलयोगाधिकार, श्लोक २९ तक लिखा है.) २. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष , मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: संक्रांतिस्याद्यदा; अंति: (-). ७१८७७. (+) चंद्रार्किसारणीसूत्र व ज्योतिष श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४१०.५, १४४५३). १. पे. नाम. चंद्रार्किपद्धति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. दिनकर गणक, सं., पद्य, आदि: सूर्यं चंद्रं सद्गुर; अंति: मौढज्ञातिसमुवद्भवः, श्लोक-२६. २. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-). ७१८८०. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १८४४७-५०). प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अपठा पंडिताकेपि केचि; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-४५ तक है.) ७१८९०. (+) अनिटधातु कारिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१०.५, १५४३३-३६). सिद्धहेमशब्दानुशासन-सेट् अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १६६३, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति; अंति: हर्षकीर्तिसुसूरिभिः, श्लोक-२२. ७१९०१. (+#) साधुअतिचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-९(१ से २,४ से ७,९ से ११)-४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १०४२८). साधुअतिचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. पांच समिति तीन गुप्ति अपूर्ण से अतिचार अपूर्ण तक है व बीच-बीच के पाठ नहीं हैं.) ७१९०२. (#) चोवीसदंडक पचवीसद्वार विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २२-१८(१ से १८)=४, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ८x२५). २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. द्वार-२२ अपूर्ण से २५ अपूर्ण तक है.) ७१९०३. स्थुलिभद्र सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११, ११४३३). १. पे. नाम. थुलभद्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: आणे आंगण मैं पिउ; अंति: सहिजसुंदर० चोमासे रे, गाथा-१०. २.पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन-नांदेरमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: नांदेड सेहर वांदु, (वि. आदिवाक्य अवाच्य है तथा गाथा संख्या नहीं लिखी है.) ३. पे. नाम. आदि अने पार्श्व स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन व पार्श्वजिन स्तुति, मु. लब्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अने पार्श्व बे; अंति: लब्धि०कुसल कर नितमेव, गाथा-४. ७१९०४. नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११, ८४४६). नेमिजिन स्तुति, मा.गु., पद्य, आदि: सुर असुर वंदिय पाय; अंति: मंगल करो अंबक देवीयै, गाथा-४. ७१९०६. अर्जुनमालीको चोढाल्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, १६४३७). अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., पद्य, आदि: सोदागर मिलीयो नही नह; अंति: वरत्या जयजयकार हो, ढाल-६. For Private and Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३७९ ७१९०७. जीवविचार प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(२)=२, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२४.५४११, ४४३९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से ९ अपूर्ण व १३ अपूर्ण से नहीं है.) ७१९०८. (+) एकविंशतिस्थान प्रकरण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४१०, ११४३३). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., श्लोक-२९ अपूर्ण से ६८ अपूर्ण तक है.) ७१९०९. साधारणजिन स्तवन, नेमराजिमती पद व कायानो टपो आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, ले.स्थल. आडीसरनगर, लिख.पं. भेमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १८४४०-५३). १.पे. नाम. जिनप्रतिमा स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. आगम, मा.गु., पद्य, आदि: कुन करे वारी कुन करे; अंति: आगम अविचल सुख वरे, गाथा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., पद्य, आदि: खतरा दूर करणा दूर; अंति: ग्यानउद्योत० वर वरना, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमति पद, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. शिवरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: नेम न जाणे मोरी पीर; अंति: सिवरत्न० चीर चरररर, गाथा-४. ४. पे. नाम. कुमतिभंजन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भरथादिकने ओधार कीधो; अंति: वाचक जसनी वाणी हो, गाथा-१०. ५. पे. नाम. कायानोटपो, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. रूपचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि: पाणी को कोट पवन के अंति: रूपचंदज्ञान कबान है, गाथा-४. ६.पे. नाम. नेमनाथनोटपो, पृ. १आ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. अमृत, पुहि., पद्य, आदि: देखन दे रे मोइ नेम; अंति: अमृतरंग शिवसुख दानी, गाथा-४. ७१९१०. मार्गणादि बोल, अपूर्ण, वि. १७५८, भाद्रपद शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्रले.पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि. आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, २१४३५-४०). ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मात्र अंतिम पत्र है., अचक्षुदर्शन त्रिभंगी से है.) ७१९११. भगवतीसूत्र बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२५.५४११, ४४४१७). __ भगवतीसूत्र-बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवरा भेद १४ संसार; अंति: नपुंसक अनंतगुणा. ७१९१२. दीवालीरास व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १५४३२). १.पे. नाम. दीवाली रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दीपावलीपर्वरास, म. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवंत रोगुण; अंति: जैमलजी० दीवाली न मान, गाथा-४१. २. पे. नाम. दीपावली सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व सज्झाय, पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., पद्य, आदि: धीन धीन मंगल सुकल; अंति: हरखविजय० हरखे गाई रे, गाथा-१०. ७१९१४. शक्रस्तव विचार व तारंगापुरमंडनअजितनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १६०३, ज्येष्ठ कृष्ण, ८, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्रले.सा. रही, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११,१५४४५). १.पे. नाम. शक्रस्तव विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मन वचन कायाई वांदउं, (पू.वि. "अणतं अनंतइ कालि पुण" पाठ से है.) २.पे. नाम. तारंगपुरवर मंडन अजितनाथ स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८० www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितजिन स्तवन- तारंगपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: स्वामी तारंगगिरिवर, अंति: पासचंदिइं० शिवलही गाथा १३. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७१९१५. (#) नेमिजिन बारमासो व शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, अपूर्ण, वि. १८४५, चैत्र शुक्ल, ६, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) = १, कुल पे. २, ले. स्थल, जैतारणनगर, प्रले, मु. हेमा, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे, (२५.५४१२, ९-११४३३). १. पे. नाम. बारमासीयो नेमनाथराजीमतीरो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: कवियण० नवनिध पामी रे, गाथा-१३, ( पू. वि. गाथा - १२ अपूर्ण से है . ) २. पे. नाम. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं, पद्य, आदि आगे पूरब वार निनांणू अंतिः कारिज सीध हमारी जी, गाथा ४. " ७१९१६. (#) औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५, १९१४३३). "" औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., पद्म, आदि मंगल करण नमीजे चरण अंति: (-) (पू. वि. गाथा- १७ अपूर्ण तक है.) ७१९१८. (*) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४४११.५, १३x२४). १. पे. नाम. आदिसरजीरी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति- बीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु, पद्य, आदि: वीसलपुर बांदु श्री अंतिः देवकुसल० विधन निवार, गाथा ४. २. पे. नाम. पंचतीर्थीजिन स्तुति, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कलाकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि कलाकंद पडम, अंतिः अम्ह सयापसत्या, गाथा ४. ३. पे नाम, आदिजिन स्तुति शत्रुंजयतीर्थ, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. तत्त्वहंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला जिन पूजो, अंति: (-), (पू. वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७१९१९. (*) नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पृ. १० ९ (१ से ९) १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है. प्र. वि. संशोधित, जैदे., ( २४.५X१२, १०x२९). नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (पू. वि. आठवीं चारित्रपूजा, गाथा- २ अपूर्ण से नीवीं तपपदपूजा, कलश- १ अपूर्ण तक है.) ७१९२०. (#) विवाहपडल सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैवे. (२६११, १२x२७-३०). " विवाहपडल, सं., पद्य, आदि: जंभाराति पुरोहिते; अंति: (-), (पू. वि. श्लोक - १३ तक है.) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, आदि: प्रणम्य शिरसा अंति (-) (पू. वि, श्लोक १३ के बालावबोध अपूर्ण तक है.) ७१९२१. रथनेमिराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५X१२, ९×३३). रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहनेमि अंबर विण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१३ त है.) ७१९२२. (+) सिद्धचक्र स्तवन व नेमनाथ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३-२ (१ से २) = १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २४.५X१२, १२X३१). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मु. सुविधिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १४१७, आदि: (-); अंतिः सुविधि विजय सुविलास, गाधा-१३ (पू.वि. गाथा- १२ अपूर्ण से है.) २. पे नाम, नेमराजिमती स्तवन- १५ तिथिगर्भित, पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जे जिनमुखकमले राजे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१७ अपूर्ण तक है.) ७१९२३. मोरादेजी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९२७, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, बुधवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. भावी, प्रले. श्रावि. लीछमाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४११.५, १४४३७). मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: जंबु तो दीप हो भरत; अंति: रायचंदग्यान अभीयासै, गाथा-१७. ७१९२४. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १३४४४-५६). १.पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथजीरी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वर पार्श्व; अंति: धीरविजय० सुख थायजी, गाथा-४. २. पे. नाम. आठमरी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोडि कल्याण जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पर्युषण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व स्तुति, ग. रंगविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सासननायक प्रभु वीर ज; अंति: रंगविजय० सुखदेवी जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. पार्श्वजिनस्तुति-शंखेश्वर, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वरमंडन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेसर सिवसुख; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ७१९२५. खेताणुवई विचार, संपूर्ण, वि. १८५७, चैत्र कृष्ण, ५, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. आगरा, प्रले. जगराम, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, २१४४६). खेताणुवई विचार, मा.गु., गद्य, आदि: क्षेत्र आसरी २० बोल; अंति: तिर्यंच सासता छइ. ७१९२६. (+) पर्युषण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४१२, १०x१९). पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: परब पजूसण पुण्य; अंति: संतोषे गुण गायो जी, गाथा-४. ७१९२७. () श्रावक अतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-६(१ से ६)=१, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४१२, ११४३५). श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: मिच्छा मि दुक्कडम, (पृ.वि. "अणसण भणी उपवास पर" पाठ से है.) ७१९२८. (+) अढाईद्वीपवत्रेसठशिलाकापुरुष स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०६, फाल्गुन कृष्ण, १, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. मन्तार्दपुर, प्रले. मु. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्री पद्मप्रभुप्रसादात्. बाद में किसी ने प्रतिलेखक विवेकसागर के नाम को चमनसागर बनाने का प्रयास किया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२४४१२, २१४७३). १.पे. नाम. अढाईद्वीप स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदू मन सुध विहरमाण; अंति: नेह धरि ध्रमसी कहे, ढाल-३, गाथा-३६. २. पे. नाम. त्रेसठशलाकापुरुष स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरु चरणकमल मनधार; अंति: नमे मुनी वसतो सदा, गाथा-१८. ७१९२९. (+) इर्यापथिकी स्वाध्याय व विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४१२, १७४४७). १. पे. नाम. इर्यापथिकी स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल-२, गाथा-२३. For Private and Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २.पे. नाम. कृष्णभव विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: कल्लाणानि समुल्लसंतु; अंति: बारसमो अमम तित्थयरो. ३. पे. नाम. गुणस्थानक कालमान सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणठाणा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, आदि: होइ मिथ्यात्व अभ्यव; अंति: निश्चयने व्यवहार रे, गाथा-७. ४. पे. नाम. बारेपरिखदा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा स्तुति, सं., पद्य, आदि: आग्नेयां गणभृद्विमान; अंति: संभूषितं पातु वः, श्लोक-१. ७१९३०. अइमुत्ताऋषि सज्झाय व प्रास्ताविक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४३०). १. पे. नाम. अइमुत्ताऋषि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणंद वांदीने; अंति: लिखमीरतन० ना पाया, गाथा-१८. २. पे. नाम. प्रास्ताविकगाथा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: कर्णे पुष्पं सिरे; अंति: ज्यूं आप थीयो सहगांम, गाथा-३. ७१९३१. नेमजिन स्तवन व शत्रुजयतीर्थ स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५-४(१ से ४)=१, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११.५, १२४३३). १.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण. नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया है सखी कहे; अंति: जीतसागर नवनिध संपजे, गाथा-८. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. दोलत, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता हो नारी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण तक है.) ७१९३३. (+#) राजुलरहनेमि शीलोपरि स्वाध्याय व सीमंधर स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. व्यालपुर, प्रले. मु. चमनसागर (गुरु मु. देवेंद्रसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १२४४०). १.पे. नाम. राजुलरहनेमि सज्झाय-शिलोपरी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्ग व्रत रहनेमी; अंति: देव० सुख लहस्ये रे, गाथा-१२. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चमनसागर, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: अविन्यासी सुखवासी हो; अंति: चमन कहे० वंछित काज, गाथा-५. ७१९३४. (#) एकादशी स्तुति व चतुर्गतिअवगाहणा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १३४३५-४३). १.पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुयडी; अंति: गुणहर्ष० तणा निशदिश, गाथा-४. २. पे. नाम. चतुर्गतिअवगाहना विचार, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चतुर्गतिअवगाहणा विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जीव० ग्याना० अना०; अंति: अठावीस भेद मतीगनाना. ७१९३५. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १५४३२-३६). श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अरिहंदेवो सुगुरु; अंति: कउधम्मो कउतओ, श्लोक-३१. ७१९३६. सुमतिजिन स्तवन व संवर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १०-१३४३१-४५). For Private and Personal Use Only Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org १. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जसवंत - शिष्य, मा.गु, पद्य, आदि; सुमतिजिणेसर साहबाजी; अंति: जसवत० अविचल धाम गाथा ५. २. पे. नाम. संवर सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर गोयमने; अंति: सिवरमणी वैगा वरौ, गाथा-६. ७१९३७. औपदेशिक पद व ज्योतिष विचार संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५X११.५, ११-१८३१-५०). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. दिलहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८३२, आदि: मनधर सारद मातजी वली, अंतिः दलहर० गायो रे लाला, गाधा-८. २. पे. नाम. ज्योतिष विचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष मा.गु. सं., हिं., प+ग, आदि: अक्षरबिंदु उकारे, अंतिः शुक्र अस्त दिन ७५. ७१९३८. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, शीतलजिन स्तवन व औपदेशिक गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६x११.५, ११४३०). १. पे नाम, गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहिं., पद्य, आदि जय बोलो पास जिणेसर, अंति: जिनचंद्र० सुरतरु की, गाथा- ७. २. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सीतलजिन सहेज सुरंगा अंतिः (-) (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा - ३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे नाम, औपदेशिक गाधा संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण औपदेशिक गाथा संग्रह में पुहिं. मा.गु., पद्य, आदि: कागइ निर्बल खाय सिंह, अंति: (-). ७१९३९. ताजिकसार की टीका, अपूर्ण, वि. १७६९ श्रावण शुक्ल, ८, मंगलवार, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)-१, ले.स्थल. मेडतानगर, पठ. मु. नारायण ऋषि, मु. रामचंद्र (गुरु पं. उद्धव ऋषि); प्रले. पं. उद्धव ऋषि (गुरु आ. सुखमल्लजी); गुपि, आ. सुखमल्लजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे. (२६४११, १९५६२). ताजिकसार- कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., गद्य, वि. १६७७, आदि: (-); अंतिः रचिता तनुताच्चिरं, (पू. वि. अन्तिम अंश अपूर्ण है.) ७१९४१. हैमविभ्रम सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४, जैवे. (२५.५४११, २१४५७-६०). " हैमविभ्रम, सं., पद्म, आदिः कस्य धातोस्ति वादीना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-१९ तक लिखा है.) हैमविभ्रम- अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं. गद्य वि. १६२५, आदि: गिरतेरव पूर्वस्य अंति: (-), (अपूर्ण, " 7 ७१९५३. पुण्यपालगुणसुंदरी रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३६-३३ (१ से २६, २८ से ३०, ३२ से ३५) = ३, " १२x२७). ३८३ " पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१९ की अवचूरि तक लिखा है.) ७१९५२. सीतासती सज्झाय - शीलविषये, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, ले. स्थल. षोडनगर, प्रले. ग. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैवे., (२५x११.५, १२४३७). " सीतासती सज्झाय- शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जळजळती मिळती घणी रे; अंति: जिनहरष० प्रणम पाय रे, गाथा- ९. For Private and Personal Use Only जै.. (२४.५x११. पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: (-); अति: (-). ( पू. वि. बीच के पत्र हैं.. ढाल-१४ गाथा-२ अपूर्ण से ढाल १५ गाथा- २ अपूर्ण तक, ढाल १६ गाथा-२१ अपूर्ण से ढाल -१७ गाथा-१० अपूर्ण तक एवं ढाल - २० गाथा-२ अपूर्ण से ढाल २१ गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७९९५५. (४) मुनिगुण सवैया, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, वे., (२५.५४११, १६x४३) मुनिगुण सवैया, रा., पद्म, आदि: पाप पंथ परहर मोख पंथ, अंतिः ध्याउ थाको जाय है. Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७१९५६. (#) ऋषभजिन छंद व छप्पय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(१)=४, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १०४३०). १.पे. नाम. आदिजिन छंद, पृ. २अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. ___मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: चउ असमर आदि असरण सरण, गाथा-६४, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. छपय, पृ. ५आ, संपूर्ण. जैनदहा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७१९५७. (#) १२ आरा रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४११.५, १४४३६). १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६७८, आदि: सरसति भगवति भारती; अंति: (-), ढाल-१२, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-३ गाथा-६ तक लिखा है.) ७१९५८. (4) विजयजिनेंद्रसूरिगुरुगंहुली व भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४३१). १. पे. नाम. विजयजिनेंद्रसूरि गंहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. विजयजिनेंद्रसूरि गच्छरायगुरु गहुँली, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सजनी श्रीगुरु चरणकमल; अंति: माणिक० कर जोडि हो, गाथा-७. २. पे. नाम. गुरुभास, पृ. १आ, संपूर्ण. विजयजिनेंद्रसूरिगुरु भास, मु. विनय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मात पसाया गाउं; अंति: इम विनय दीइ आसीस रे, गाथा-९. ७१९५९. (#) नमिऊण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ११४४२-४५). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: वाहिअनासइ तसुदूरेण, गाथा-२४. ७१९६१. (+) पंचतीर्थस्तुति व औपदेशिक दोहा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, ९४३२). १.पे. नाम. पंचतीर्थ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आबू अष्टापद विमलाचल; अंति: कवि धीरम०तणा निस दिस, गाथा-४. २. पे. नाम. औपदेशिक दोहा, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदहा संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७१९६२. १६ सती सज्झाय, पंचतीर्थी सज्झाय व शांतिजिन छंदादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, २३४५३). १.पे. नाम. १६ सती सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. त्रिकम, मा.गु., पद्य, वि. १७७०, आदि: श्रीऋषभ तणी धुया; अंति: पुगी मननी कोड, गाथा-१६. २. पे. नाम. पंचतीर्थी सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: आदये आदये आदजिणेसरू; अंति: फल लाधीए, गाथा-६. ३. पे. नाम. शांतिजिन छंद-हस्तिनापुरमंडन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: संथनाथ नमु सिरनामी ह; अंति: वंछित फल निश्चइ पावइ, गाथा-२०. ४. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. जयमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नगर हथिणापुर अतिहि; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ तक है.) ७१९६३. (+) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ७, प्रले. श्रावि. लक्षमी; दत्त. मु. लखमीचंद; गृही. सा. चनणाजी चेली, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, १९४३६). १. पे. नाम. ३४ अतिशय वर्णन, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: केश श्मश्रु नख रोम; अंति: समै नवा हुय सकै नहीं. For Private and Personal Use Only Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ २. पे. नाम. ३५ वाणीगुण वर्णन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., गद्य, आदि: वाणी संस्कार सहित; अंति: करता अविछिन वचन बोले. ३. पे. नाम. १० पच्चक्खाण नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ नवकारसी २ पोरसी; अति: ९ अभिग्रह १० उपवास. ४. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. बोल संग्रह*, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ५. पे. नाम. १०० बोल संग्रह, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. पदार्थादि के १०० बोल, मा.गु., गद्य, आदि: समचै जीवमै जीवना; अंति: नो चरम नो अचरम. ६. पे. नाम. जीव के भेदप्रभेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. जीव भेद-प्रभेद बोल, पुहि.,मा.गु., गद्य, आदि: जीवना भेद २ कोड ९४; अंति: कोड १० इंद्री २ कोड. ७. पे. नाम. बोल संग्रह, पृ. ३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. विचार संग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: १ धरमरी उत्पत्ति किह; अंति: (-), (पू.वि. ४ राजा के कुंवर का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७१९६६. (+#) नय विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १८४४२). नयविचार संग्रह, पुहिं., गद्य, आदि: इस आत्मा कु कितनेक; अंति: (-), (पू.वि. सर्व भव्य मोक्ष क्यों नहीं जा सकता यह चर्चा अपूर्ण तक है.) ७१९६७. (-) वैराग्य व ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११.५, ७X४५). १.पे. नाम. जहती, पृ. १अ, संपूर्ण. वैराग्य सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कौशांबी उदाई; अंति: रतनचंद० सुख पामीयो, गाथा-१८. २. पे. नाम. रीखता, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहि., पद्य, आदि: रिषभादतन देवानंदा; अंति: वरस ऐसीय कीयोरे, गाथा-७. ७१९७१. (+#) अभिधानचिंतामणि नाममाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५-३३(१ से ३३)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १५४४५-४८). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. काण्ड-३ श्लोक-३९२ अपूर्ण से काण्ड-६ श्लोक-४७ अपूर्ण तक है.) ७१९७३. (+#) दशबलकारिका, अष्टमहाप्रतिहार्य स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,२०४५०-५६). १.पे. नाम. दशबलकारीका, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशबलकारिका, सं., पद्य, आदि: भूवादयोधातवः उपदेशे; अंति: तपदा मौलौ न भागीरथी, का.-४०. २. पे. नाम. अष्टमहाप्रातिहार्य स्तोत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तोत्र-अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., पद्य, आदि: स्वर्ण सिंहासन; अंति: श्रेणकस्येव चापि, श्लोक-३. ३. पे. नाम. श्लोक, पृ. २अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-३. ७१९७६. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १०४३१-३४). पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: शारद विधू अमृत; अंति: भाग्यदसा इम जागी रे, गाथा-६. ७१९७९. (+) करणीकरणप्रकार व द्रव्य के नित्यानित्य विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें., दे., (२५.५४११.५, १५४५०-५३). For Private and Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. करणीकरण प्रकार, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: करणी करण प्रकारो यथा; अंति: रायातीति करणीस्यात्. २. पे. नाम. द्रव्य के नित्यानित्य विचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. __ द्रव्य नित्यानित्य विचार, सं., गद्य, आदि: नित्या १ अनित्यै २; अंति: पिण मेरु में लाभै. ७१९८२. (4) धर्मरुचि स्तवन, अरणकमुनि सज्झाय व कलियुग सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४४११.५, २०४४७). १.पे. नाम. धर्मरूचिजी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८६५, आदि: चंपानगरी अनुपम सुंदर; अंति: रतनचंदजी भण उलासी हो, गाथा-१५. २.पे. नाम. अरणिक मुनि सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अरणिक मुनिवर चाल्या; अंति: रूपविजय० फल लीधो जी, गाथा-१२. ३. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदिः तारक धरम जीनेसर केरो; अंति: मे धर्मध्यान कीजोरे, गाथा-१२. ४. पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. ___ मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, आदि: मार्ग चलता भुंडो; अंति: धरा करो भाई रे हलाहल, गाथा-१०. ७१९८३. (+#) विजययंत्रलेखन विधि व स्मरणीय श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, प्र.वि. विक्रम १७७६ माघ शुद २ में लिखे गए प्रत की प्रतिलिपि प्रतीत होती है., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४१२, १७४२४-३९). १.पे. नाम. विजययंत्रलेखन विधि, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. विजययंत्रआम्नायलेखन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: ३० ह्रीं चमालनीन्मः, (पू.वि. सर्व त्रिपुरे त्रिनाम भगवती का मंत्र अपूर्ण सै है.) २. पे. नाम. स्मरणीय श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह*, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आसने सयने पानैः भोजन; अंति: उसनकालैषु सीतलैः. ७१९९१. चतुर्विंशतिजिन स्तवन व आदिसुमतिजिन स्तुति सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १८४५२). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. चतुर्विंशतिजिन स्तुति, ग. चारित्ररत्न, सं., पद्य, आदि: यस्ते श्रीऋषभस्तौमि; अंति: रित्रलक्ष्मी पराम्, श्लोक-२९. चतुर्विंशतिजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: परम आनंदो यस्मिन्; अति: दये ददामि इति संबंधः, श्लोक-२८ २.पे. नाम. आदिजिन व सुमतिजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.. आदिजिन सुमतिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदि: आनंदनम्र सुरनायक; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-६ अपूर्ण तक है.) आदिजिन सुमतिजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: भक्तांगिनां संघटितं; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२८ तक की ही अवचूरि है.) ७१९९४. (#) मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पृ.वि. बीच के पत्र हैं.,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ६४३५-३८). मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-२५ अपूर्ण से ५० अपूर्ण तक है.) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७१९९७. (#) कल्पसूत्र का बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२,१२४३३). For Private and Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org ३८७ कल्पसूत्र - बालावबोध *, मा.गु., रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कल्प- २ अपूर्ण से है व कल्प ७ ज्येष्ठ कल्प अपूर्ण तक लिखा है.) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ७१९९८. (४) रत्नगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२५X११.५, १४४३८). रतनकुमर सज्झाय, मा.गु, पद्य, आदि: रतनकवर गुण आगला आगला, अंति: उपजे रे उपेजेम तंबोल, ढाल १०, गाथा-४४. ७२००२. नमस्कारमहामंत्र स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. लूणसर, प्रले. सा. केसरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२२.५११, ६-१४४२६-३०). नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: प्रथम श्रीअरिहंतदेवा, अंतिः मंत्रजी को ध्यान करो, गाथा - १३. ७२००३. (#) वीरउपसर्ग स्तवन व महावीरजिनपारणा स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे. (२४.५४११.५, २१४५२). " १. पे. नाम. वीरउपसर्ग स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन उपसर्ग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धार्थकुल उपना, अंतिः धन धन शासनरा घणी गाथा-२८. २. पे. नाम. महावीरजिन पारणा स्तवन, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- पारणागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी इग्यारमी, अंति: गुरु तिसलानंदण वीर गाथा-२८. ७२००४. (+) उपदेश छत्तीसी, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित. दे. (२४४१२, १७३०). उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८६६, आदि: जगत जाल में लाल रहै; अंति: रतनचंद पा नासै रे, गाथा- ३६. ७२००६. गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २४ ११.५, १९x४७). गुरुगुण सज्झाय, मु. सिवलाल, मा.गु., पद्य, आदि: समरु सद्गुरु मनरलि, अंतिः कहे सेवक ने करो सहाय, गाथा-२२. ७२००७. औपदेशिक लावणी, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र शुक्र. १५. श्रेष्ठ, पृ. १, दे. (२५x११.५, १३४३७). " औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., पद्य, आदि: बल जाओ रे मुसापर प्य; अंति: जिनराज० आस तज मेरी, गाथा-५. ७२००८. (#) साधुगुण व कमलावतीसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x११. १६४३). १. पे. नाम. पांचइंद्री सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. साधुगुण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि पांचे इंद्री रे अह अंतिः विजयदेव० नवसेषोजी, गाथा- ९. २. पे. नाम. कमलावती सज्झाय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., पद्य, आदि: कह राणी कमलावती हो, अंति: हम बोले रे कमलावती. ७२००९. छेतालीसआहारदोष सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. त्रिपाठ, जैवे. (२३.५x११, २x४७)४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदिः आहा कम्म १ उदेसिय, अंति: रसहेउं दव्व संजोगा, गाथा-६. गोचरी दोष- बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः आधाकर्मी ते कहीई जे; अंतिः ठाम सूत्र मध्ये छ. ७२०१० (+४) महावीरजिन स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७२८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ४ शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, अंजारनगर, प्रले. मु. सोमनंदन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४X१०.५, ८X३७). महावीरजिन स्तव- बृहत् आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं अंतिः पढयकयं अभयसूरीहिं गाथा - २२. महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जयवंतउ हुवउ श्रमण; अंतिः श्रीअभयदेवसूरि तेहनउ. ७२०११. सुमतिजिन आरती, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे (२४४११.५, ९४२६). " 7 " सुमतिजिन आरती, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिजिणंदनें आगले, अंति: गुलाबे पूजोजी सवेरो, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२०१२. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२५४११, १६४३५). १. पे. नाम. नंदीषणमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: वेरागी संजम लीयो; अंति: बेगा जाय जो मोख, गाथा-१४. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: सोदा लीया माल देखीया; अंति: मोगत रमणी की आस रे, गाथा-७. ३. पे. नाम. सद्गुरुमहात्म पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनराज सरणो धरम; अंति: मुगत मेठा मस आनंद को, गाथा-५. ७२०१३. (+) पंचपरमेष्टि महामंत्रप्रयोगा:, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. मोहण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. यंत्र सहित., संशोधित., जैदे., (२३४१२, ३१४५५). नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा.,सं., गद्य, आदि: पंचानामादिपदानां पंच; अंति: (१)तओ पच्छा पउंजियव्वा, (२)शुभाशुभं वक्ति . ७२०१४. (#) सागरोपंपल्योपन पूर्वमान, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२१४११.५, १५४३२-३५). सागरोपमपल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: असंखाता समानि एक आवल; अंति: तारे एक पूर्व थाय. ७२०१५. भरतबाहुबली संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पंडित. लक्ष्मीविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२१४१०.५, १२४३९-४२). भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सारद माता समरिए सिर; अंति: कुशल प्रणमुं शिरनामी, गाथा-६३. ७२०१६. (#) पंचप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, पृ.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १७४४१). पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. क्षेत्रदेवता स्तुति अपूर्ण से वंदित्तुसूत्र गाथा-१० अपूर्ण तक है.) ७२०१८. (+#) माणिभद्र छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१२, ११४२३). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति नित सेवीत सुभ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१९ अपूर्ण तक है.) ७२०१९. (+#) सिद्धचक्र व सोलहविद्यादेवी स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१२, २७४५२). १. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सिद्धचक्र महिमापद्धति स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: अन्नं च सिद्धचक्क; अंति: सिद्धचक्कं, गाथा-३६. २. पे. नाम. सोलविद्यादेवी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १६ विद्यादेवी स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: संखक्खमालाधणुबाण; अंति: असोग चंदप्पहप्पणया, गाथा-२१. ३. पे. नाम. सोलविद्यादेवी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. १६ विद्यादेवी स्तवन, प्रा., पद्य, आदि: जिनसासणं व नमिऊण भाव; अंति: लहइ जहच्छियं सुक्खं, गाथा-६. ७२०२०. सिचिआयमाता छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२२.५४१०.५, ११४२५-२९). सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मनि आसा आज फली; अंति: सिद्धसूरि० प्रसन सही, गाथा-२१. ७२०२१. (+) चौवीसदंडकद्वार बोल, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., दे., (२२.५४११, ४७-५०४२७-३२). For Private and Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३८९ २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सरीरोगाहण संघयण; अंति: (-), (पू.वि. २४ आगति २४ गति का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७२०२२. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८-१७(१ से १७)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५.५४११, १९४४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अधययन-२ गाथा-१६ अपूर्ण से १७ तक उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अरति परिषह कथा अपूर्ण से स्त्री परिषह कथा अपूर्ण तक है.) ७२०२३. जंबुस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११.५, १५४४०). जंबूस्वामी सज्झाय, पं. शीलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजगृही नगरी भली; अंति: मोख तणा फल पायोजी, गाथा-१४. ७२०२५. संथारापोरसीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२१.५४११.५, ११४२५-२८). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: चउकसाय पडीमल लूरण; अंति: मिच्छामिदुक्कडं, गाथा-१४. ७२०२७. (+) सिद्धचक्र पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११.५, १४४४०). सिद्धचक्र पूजनविधि, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, आदि: सिद्धं शुद्ध; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१० __ अपूर्ण तक है.) ७२०२९. गुरुगुण गंहुली, संपूर्ण, वि. १८५२, चैत्र कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. किसनगढ, प्रले.सा.सीता (गुरु सा. गुमानाजी); गुपि. सा. गुमानाजी (गुरु सा. चनणा), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१.५४११, १९४३४). गुरुगुण गहुली, सा. चंदुबाई, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल सद्गुरु तणा; अंति: दुक्कडम् थाय, गाथा-३९. ७२०३२. (#) शीयल व भवदेवनागिला सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १०४२७). १. पे. नाम. सीयल सज्झाय, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रावण शुक्ल, २, ले.स्थल. खजवाणा, प्रले. श्राव. येमराज चोरडा, प्र.ले.पु. सामान्य. शील सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५०, आदि: गेरो रंग लागो हो; अंति: रायचंद० विचार सोभागी, गाथा-१९. २. पे. नाम. भवदेवनागिला सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८७२, आदि: भवदेव जागी मोहनी तज; अंति: रतनचंद० नित सीस नमाय, गाथा-११. ७२०३३. (#) तेवीसपदवी विचार, संपूर्ण, वि. १८९२, चैत्र शुक्ल, १५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. मु. रोडमल (गुरु मु. रामकसन); गुपि. मु. रामकसन (गुरु मु. हीरानंद); मु. हीरानंद (गुरु मु. सुखानंद); मु. सुखानंद (गुरु मु. देवचंद); मु. देवचंद (गुरु मु. प्रथीराज); मु. प्रथीराज, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२४४११.५, १६४३३). २३ पदवी विचार-पन्नवणासूत्रगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: चक्ररतन परडाने आकार; अंति: पदवी पावे. ७२०३४. (+) पुण्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१२, ९४२५). पुण्य सज्झाय, मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमी; अंति: धर्म करो सुखदाय, गाथा-२९. ७२०३५. (#) नवपद नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४१२, १५४४४). नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: नमोनंत संत प्रमोद; अंति: विश्व जयकार पावे, गाथा-२१. For Private and Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२०३६. (४) पार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैये., (२२.५x११, १५X४०) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसुगुरु चिंतामणि, अंतिः प्रभु पारसमुखै की गाथा १५. ७२०३७. (+) सर्वार्थसिद्धमान सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४×११.५, १०X३६). सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलो रे; अंति: गुणविजय आसरे, गाथा - १६. ७२०३८. (+#) आहारदोष, अठारहनातरासंबंध व चौवीस स्त्रीधर्म, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१X११.५, १४X३०). १. पे. नाम. आहार दोष सह भावार्थ, पृ. १अ, संपूर्ण. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्मु १ देसिय २; अंति: दोषा वज्जए साहुणो, गाथा- ६. आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा - भावार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: शुद्धाशुद्धाहार ३; अंति: छांटा डालता देवे. २. पे. नाम. १८ नातरा संबंध, पृ. १आ, संपूर्ण. १८ नातरा श्लोक-टीका, सं., गद्य, आदि: हे भ्रात मातृजनित्वे; अंति: द्वितीय भार्यत्वेन. ३. पे नाम, चौवीस स्त्रीधर्म, पृ. १आ, संपूर्ण, २४ स्त्रीधर्म विचार, सं., गद्य, आदि: प्रहर विवर्जनं करोति; अंति: पति उत्तम इति आगमः. ७२०३९. () अर्जुनमाली लावणी व आत्मसंयम सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२५x११, १८४४४) १. पे. नाम. अर्जुनमाली लावणी, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. श्राव सुरतराम, पुहिं, पद्य वि. १९३२, आदि: राजगरी नगरी रे अंदर, अंति: मोह ममता अलगी डारी, गाधा-६२. पे नाम, आत्मसंयम पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पु., पद्य, आदि: मेरा तो मारग केणा का; अंति: तेरा सदा न रेणे का, गाथा- ३. ७२०४० (+४) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अंतिम पत्र पर महासती कसलीबाई चेली कस्तुरबाई आर्या के नाम का उल्लेख है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५X११.५, १५X३४-३७). गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३४, आदि: गुण गाउ गौतम तणा; अंति: रतनचंद० चोमास जी, गाथा - १३. ७२०४१. (#) सीमंधरजिन स्तवन, खिमासूरिगुरुगुण सज्झाय व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, वैशाख कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्रले. मु. नंदजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, जैदे., ( २४.५X११, १३X३५). १. पे नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ २अ, संपूर्ण, वि. १९वी वैशाख कृष्ण, १. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं अंतिः भगतीलाभ० अम्ह तणी, गाथा - २०. २. पे नाम, खिमासूरिगुरु गुण सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण वि. १९वी वैशाख कृष्ण १४ शनिवार. खिमासूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. भोजसागर, पुहिं., पद्य, आदि थे सुमता रे राग भीना, अंति: सुहाया भोजसागर भणी, " و गाथा ६. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जिनराज जुहारण जास्या; अंतिः नयविमल० सुख सरस्याजी, गाथा-७. ७२०४३. शारदा स्तोत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४X९, ९×३५-३९). १. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १अ - १ आ. संपूर्ण. सरस्वती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अमोघ वचने सत्य वचने, अंति: शारदे वरदा भव श्लोक ५. २. पे. नाम. शारदा स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ सरस्वती स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: शशिकर वर ज्योतिर्माल; अंति: समर्पय शारदे, श्लोक-५. ३. पे. नाम. शारदा स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नमस्ते शारदादेवी; अंति: देवी सारदा वरदायिनी, श्लोक-६, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक-६ लिखकर ही कृति संपूर्ण कर दी है.) ७२०४४. आदिजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (१९.५४१०, १५४३७). आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीआदिसर हो सोबनकाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२ गाथा-२२ तक है.) ७२०४८. पार्श्वनाथ-गोडीजी वसाधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १३४३७). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. चारित्रकीर्ति, रा., पद्य, आदि: वा खास रसो है गोडी; अंति: चारितकीरत नित दीजिये, गाथा-७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नयणे जिनबिंब निरखिया; अंति: जसोवर्धन सांमि सवाया, गाथा-७. ७२०४९. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२१.५४११, १२४२८). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांतिशांतिनिशांत; अंति: सूरि श्रीमानदेवस्य, श्लोक-१७. ७२०५१. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४६). पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: नरेंद्र फणींद्र; अंति: (-), गाथा-९, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., कलश नहीं लिखा है.) ७२०५२. (+) दीपावलीपर्व रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२४४१२, २०४३८). दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवाननो गणधर; अंति: जैमलजी० दीवालीन मान, गाथा-४२. ७२०५३. (#) चतुर्विंशतिदंडक गत्यागति स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. भक्तिसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२३४१०.५, ५-८४३३-३६). पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुपासनाह; अंति: पासचंद० परमारथ लहे, गाथा-२३, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-२४ दंडकविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: मोक्ष पदवी पांमई, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-५ से टबार्थ लिखा है.) ७२०५४. पंचबोलगर्भितश्रीमहावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०३, आषाढ़ शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. देवचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (७६) मंगलं लेखकस्यापि, जैदे., (२३४१०.५, १४४३७-४०). ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३२, आदि: सिधारथसुत वंदीइ; अंति: विनय कहै आनंद ए, ढाल-६. ७२०५६. पद्मावती आराधना, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११,१६४३३-३६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिवे राणी पदमावती; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३३ तक है.) ७२०५७. पोसहगुणवरणन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४१२, १०x२९). पौषधव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलो संवर आणीइं; अंति: गुण० करमनी कोडी रे, गाथा-१४. ७२०५८. (+) सिद्धचक्रजी की विधिपूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., दे., (२१४११, १३४२८). सिद्धचक्रपूजन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं अमृते; अंति: (-), (पू.वि. नवग्रहपूजन अपूर्ण तक है.) ७२०५९. अठ्ठावीसलब्धिविचार स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११, १२४२७-३०). For Private and Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: प्रणमूं प्रथम जिनेसर; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१३ अपूर्ण तक है.) ७२०६१. मौनएकादशी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, जैदे., (२४४१२, १२४३४). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदिः (-); अंति: कांति० मंगल अति घणो, ढाल-३, गाथा-२६, (पू.वि. गाथा-१३ अपूर्ण से है.) ७२०६२. (+#) पार्श्वजिन स्तवन, सामायिक-पौषधदोष व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८९३, आषाढ़ अधिकमास कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. १५, ले.स्थल. विदासर, प्रले. मु. नेमचंद्र ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १९४४५). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, मा.गु., पद्य, आदि: म करि हो जीव परतात; अंति: भावसुंए हितसीख माने, गाथा-९. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: वलिहारी हुं उस पास; अंति: ऋद्धहरख० लागी आसकी, गाथा-५. ३. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., पद्य, आदि: सुजस तुम्हारो हो; अंति: जगरूप० फली मोरी आस, गाथा-७. ४. पे. नाम. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, वा. साधुहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: मुख निरख्यौ; अंति: साधुहरख० सिवराज को, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लब्धिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभुथी लागी प्रीतडी; अंति: लब्धि सदा चित्तनाम, गाथा-७. ६.पे. नाम. नेमिराजिमती पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, आ. जिनसिंह सूरि, मा.गु., पद्य, आदि: इवडो ग्यान धरो छो; अंति: जिनसिंह० मनोरथ कीधा, गाथा-६. ७. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: जास्यां जी जिनराज; अंति: नयविमल० ए सरास्या जी, गाथा-३. ८. पे. नाम. थुलभद्र गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, रा., पद्य, आदि: चंदवदनी कहि प्रीउ; अंति: जाउं वाल्हेसर, गाथा-८. ९. पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. न्यायसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राज निजरभर जोवत क्यु; अंति: न्यायसागर०सिवपुर वास, गाथा-५, (वि. प्रतिलेखक नेदो गाथा को एक गाथा गिना है.) १०. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: लगी लगी अंबीयाने रही; अंति: उदयरतन०तोसू लगन लगी, गाथा-९. ११. पे. नाम. सामायिकबत्रीसदोष सज्झाय, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमीय गौतम गणधर; अंति: श्रीकमलविजय गुरु सीस, गाथा-१३. १२. पे. नाम. पोषधस्याष्टदश दोषा, पृ. ३अ, संपूर्ण. १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, आदि: अणपोसातीनो आण्यो; अंति: संसारनी वात न करवी. १३. पे. नाम. सिद्धाचल स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३९३ शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८८३, आदि: सिद्धाचलगिरि भेट्या; अंति: खिमारतन० प्यारा रे, गाथा-५. १४. पे. नाम. सचित्तअचित्त वस्तु काल निर्णय, पृ. ३आ, संपूर्ण. सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, आदि: खीचनो काल प्रहर ४; अंति: शुद्ध उष्णजल प्रहर १. १५. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., पद्य, आदि: निसदीन जोऊ थारी; अंति: आनंदघन०सेजडी रंगरोला, गाथा-५. ७२०६३. १२ भावना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, दे., (२१.५४१२, १७-१९४३४). १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १६४६, आदि: आदिसर जिणवर तणा पद; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., ढाल-१३, गाथा-२ अपूर्ण तक है.) ७२०६४. (#) सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. सादडीनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११.५, १०४३१). सुमतिजिन स्तवन-पिंडस्थध्यानगर्भित, मु. शांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रूप अनूप निहाल सुमति; अंति: __ शांतिविजे० थइ एक मना, गाथा-५. ७२०६६. (#) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १९४४३). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: संघ सकल खुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ७२०६८. (4) आत्मा स्वाध्याय व दोहा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१५४५१). १.पे. नाम. आत्मा स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, मु. सयण, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामण नित; अंति: सयण० करसी सो सहसी रे, गाथा-१६. २.पे. नाम. औपदेशिक दोहा संग्रह-दानोपरि, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: नटीसौं नटणी भई; अंति: तिण अव्योम गिणज्ज, दोहा-२. ७२०६९. रहनेमजीरी सज्झाइ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १३४३६). नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: राजीमती नेम भणी चाली; अंति: कहे जिनहर्ष त्रिकाल, गाथा-९. ७२०७०. (4) महावीर स्तवन व नेमिनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८००, कार्तिक कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, पठ. सा. सोनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४४०). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. महावीरजिन चौढालियो, मु. उदेसींघ, मा.गु., पद्य, वि. १७६८, आदि: महावीर प्रणमुसदा; अंति: उदैसिंघल्लीला विलास ए, ढाल-४, गाथा-३४. २. पे. नाम. नेमिनाथ स्तवन, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. उदयसिंघ ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७६५, आदि: श्रीनेमीसर नित नमु; अंति: उदयसिंघ० प्रमाण ए, ढाल-४, गाथा-२८. ७२०७१. (+#) विजयसेठविजयासेठाणीरो चोढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, दे., (२४.५४११, १३४३२-३५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहि., पद्य, वि. १९१०, आदि: आदिनाथ आदिसरोसकल; अंति: (-), ढाल-४, (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने कलश नहीं लिखा है.) ७२०७३. (+) अनाथीमुनि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२२४११.५, १५४३३). For Private and Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मगधाधिप श्रेणिक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७२०७४. दिसाणुवाई थोकडा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १८४४७). दिसाणुवाई थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रभूती गोतमजेठे; अंति: दिसा असंख्यात गुणा. ७२०७५. धनदत्तरो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १६x४०-४३). धनमित्र चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: साधु धन संसार मे; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम दुहा अपूर्ण तक लिखा है.) ७२०७६. (+) अर्जुनमाली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४११, १९४४७). अर्जुनमाली ढाल, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२०, आदि: वर्धमान जिनवर नमुं; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-५, गाथा-४ अपूर्ण तक है.) । ७२०७७. (2) बुध रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे.. (२४४११.५, ११४२५-२८). बुधरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: पणमवि देवी अंबाई; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५२ तक है.) ७२०७८. (#) पार्श्वजिन निसाणी, प्रास्ताविक दोहा व गौतमस्वामि स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२६४११.५, १४४३३). १.पे. नाम. पार्श्वजिन निसाणी, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहिं., पद्य, आदि: सुखसंपति दायक सुरनर; अंति: कवि जिनहरख कहंदा है, गाथा-२६. २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: टोपी कोपन तुबडी झोली; अंति: भाषा भड संतर खेल्या, गाथा-१०, (वि. प्रतिलेखक ने दोहा संख्या नहीं लिखी है, गिनकर परिमाण लिखा गया है.) ३. पे. नाम. गौतमस्वामि स्तोत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: विजयशेखरकहे सुविलासे, गाथा-१३, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१० अपूर्ण से लिखा है., वि. प्रतिलेखक ने घग्घरनिसाणी कृति के बीच में ही यह कृति लिख दी है.) ७२०७९. (#) आत्महित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १४४३५). औपदेशिक सज्झाय, रा., पद्य, आदि: कडवा बोल्या अनरथ; अंति: मत कोई प्रकास्यो, गाथा-२४. ७२०८०. (+) वीसबोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४४१०.५, १४४४०). २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८३३, आदि: किणसुंबादि बिबादि न; अंति: रायचंदजी० ___मंझार जी, गाथा-१६. ७२०८१. नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११.५, १२४३०). नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी वखाणिये रे; अंति: पहोंता अविचल राज, गाथा-३३. ७२०८२. जंबुकुमार सज्झाय, पार्श्वजिन स्तवन व ज्योतिष श्लोक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२३.५४११.५, १४४३४). १.पे. नाम. जंबुकुमार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रेणिक नरवर राजीयौ, अंति: पुहता मुगति मझार, गाथा-१६. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: मोहन कहे० प्राण आधार, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३९५ ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: वारे च पूर्वे तिथ; अंति: शास्त्राणि भवंति पंच, श्लोक-१. ७२०८३. एलचीकुमारनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२३४११, १३४३७). इलाचीकुमार रास, मा.गु., पद्य, आदि: धनवंत सेठनो बेटडो; अंति: सांभले तेनी पुरसे आस, गाथा-३३. ७२०८४. दाणादिपंचाशक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, माघ शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्रले. मु. बालचंद्र (गुरु ग. महिमावल्लभ); गुपि.ग. महिमावल्लभ, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२३४१०.५, ७४४०-४५). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवादिदेवं नमिऊण; अंति: असोग० खमंतु तेणं, गाथा-५०. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: देवाधिदेव श्रीमहावीर; अंति: पूज्य अपराध खमज्यो. ७२०८६.(+) उपदेशमाला स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२३४११, १५४३६). पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिंदे; अंति: उपन्नं केवलं नाणं, गाथा-३४. ७२०८७. (+) सोलसती सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १२४३०). १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., पद्य, आदि: सील सुरंगी भातिक ओढण; अंति: कुल की शोभा शील, गाथा-१०. ७२०८८. गोडीपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १५४४२). पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वाणी ब्रह्मवादिनी; अंति: प्रीति अभिराम मंतै, ढाल-५, गाथा-५५. ७२०८९. (+#) स्तवन व स्वाध्याय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८२८, पौष कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, ले.स्थल. डभोईनगर, प्रले. ग. मुक्तिसौभाग्य, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१६४३७). १. पे. नाम. स्याद्वादगर्भित श्रीवीरजिन स्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-स्याद्वादगर्भित, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिशलामात सुजात जयो; अंति: पुण्यमहोप्रवचनसारजी, ढाल-३, गाथा-२७. २. पे. नाम. सम्यक्त्वस्वरूपगर्भित श्रीवीरजिनेश्वर स्तवन, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. __ महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वस्वरूपगर्भित, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि: समकितदायक वीरना पद; अंति: पुण्यमहो० सहजानंद रे, ढाल-३, गाथा-३५. ३. पे. नाम. गुणवर्ण स्वाध्याय, पृ. ३आ, संपूर्ण. गुणवर्ण सज्झाय, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., पद्य, आदि: ते मुनि धन्ना ते; अंति: पुण्यमहो०गुण गावेरे, गाथा-७. ७२०९०. (4) वीर स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १४४३६-४०). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: थुण्यो जिन चौविसमो, ढाल-८, गाथा-९०, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-५४ से है.) ७२०९१. भक्ष्याभक्ष्य विचार व नेमीश्वरजिन स्तवनादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. सुई नगर, प्रले.ग. कृष्णविमल; पठ.मु. शातिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १४४४४). १.पे. नाम. भक्ष्याभक्ष्य विचार, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: वधतो लेवो नही, (पू.वि. वासी वस्तुओं के नाम अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमीश्वरद्वाविंशतिमजिन स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगसोम, रा., पद्य, आदि: विनवे राजुल नारि रे; अंति: भावसुंरे जयरंग भणे, गाथा-१२. ३. पे. नाम. जैन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. अपूर्ण जैन काव्य/चैत्यवंदन/स्तवन/स्तुति/सज्झाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि* प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१). ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२०९२. समता सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२२४११, १६४३२-३५). समता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, आदि: चाखो रे नर समतारस; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७२०९३. (2) शीतलजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४२२). शीतलजिन स्तवन, मु. कल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १८२७, आदि: भविका सिद्धचक्रपद; अंति: गुण पभणे रे कल्याण, ढाल-२, गाथा-१८. ७२०९४. (#) कलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, १२४३७-४०). कलावतीसती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: नगरी कोसंबीनो राजा; अंति: पोहतां मुगती मझार रे, गाथा-१२. ७२०९५. (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, २१४४६). १.पे. नाम. वृद्धमान बासठीयो, पृ. १आ-४अ, संपूर्ण. वर्धमान बासठीयो, प्रा.,मा.गु., को., आदि: गरभ विना समचे जीवमे; अंति: आतमघोषमें. २. पे. नाम. ५५ करण गाथा सह बोल, पृ. ४अ, संपूर्ण. ५५ शरीरादिकरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: दव्वसरीरइंदियमणवय; अंति: तेयाला अणुत्तरेबयाला, गाथा-३. ५५ शरीरादिकरण गाथा-यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७२०९६. (+#) अगडदत्त चरित, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५-४(१ से ४)=१, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अवाच्य है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १३४३६). अगडदत्त चरित, मु. जिनदास, मा.गु., पद्य, वि. १८५४, आदि: (-); अंति: जिनदास० लछ अपार, (पू.वि. मात्र अंतिम ढाल है.) ७२०९७. (#) ब्राह्मणपीठकमंडनवीरजिन स्तवन सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. पंन्या. हंसविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४४०). महावीरजिन स्तवन-ब्राह्मणपीठ, आ. सिद्धसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीमन्महावीर हरे; अंति: सिद्ध० धर्मलक्ष्य, श्लोक-६. महावीरजिन स्तवन-ब्राह्मणपीठ-व्याख्या, सं., गद्य, आदि: हे श्रीवीर जिनेंद्र; अंति: सिद्धसूरि० पदयुगः. ७२०९८. दानशीलतपभावना चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५४११, ८४३२-३५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-३९ अपूर्ण तक है.) ७२०९९. (2) माणिभद्रवीरनो छंद, संपूर्ण, वि. १८३९, ?, चैत्र कृष्ण, ९, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. धोराजी, प्रले. ग. रत्नकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४३७-४०). माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वती सामनी पाय; अंति: शांतिसूरि० सुख संपदा, गाथा-४०. ७२१००. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८३९, कार्तिक कृष्ण, १३, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. वणारसी, प्रले. मु. भाग्यधीरगणि (गुरु ग. दर्शनराज, खरतरगच्छ); गुपि. ग. दर्शनराज (गुरु ग. राजतिलक, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १६x४०-४३). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-९१, ग्रं. १५०. ७२१०१. स्तवन, सज्झाय व श्लोक स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, दे., (२४.५४११, १०४३४-३७). For Private and Personal Use Only Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १.पे. नाम. दशपच्चक्खाण तप स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण, प्रले. करमचंद रामजी लहिया, प्र.ले.पु. सामान्य. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३१, आदि: सिद्धारथनंदन नमुं; अंति: रामचंद तप विधि भणे, ढाल-३, गाथा-३३. २.पे. नाम. चंदनबाला सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. चंदनबालासती सज्झाय, मु. नीतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धन चंदनबाला सति रे; अंति: नित्यविजय गुण गाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि नमस्कार स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., पद्य, आदि: अर्हतो भगवंत इंद्र; अंति: कुर्वंतु वो मंगलम्, श्लोक-१. ७२१०३. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७७६, फाल्गुन कृष्ण, १४, शनिवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पत्तननगर, प्रले. ग. पुण्यविजय (गुरु ग. भीमविजय); पठ.मु. जीवणविजय (गुरु ग. पुण्यविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४४११, १४४५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्ण; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५१. ७२१०४. स्तुति व स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४.५४११, ९४३५-३८). १. पे. नाम. साधारण स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: उठी सवारे समायक कीधु; अंति: भावप्रभ० पद भोगी जी, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर हमणे आवे छे मारे; अंति: सहेजे शिवसुंदरी वरीए, गाथा-९. ७२१०६. उदाईराजा चौढालियो, संपूर्ण, वि. १८२९, मध्यम, पृ. ३, प्रले. सा. लाछा (गुरु सा. लछमा आर्या); गुपि.सा. लछमा आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १७४३६). उदाईराजा चौढालियो, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी पधारीया; अंति: जैमल० दुकडोमोइ रे, ढाल-४. ७२१०७. कुगुरुलक्षण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १६४५५). ___ कुगुरु लक्षण सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुंप्रभु पारस; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-१० अपूर्ण तक हैं.) ७२१०८. (#) देवलोक हकीकत, संपूर्ण, वि. १९६८, भाद्रपद कृष्ण, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लालपुर, प्रसं. मीठालाल देवचंद; पठ. सा. वखतबाई; सा. गलालबाईस्वामी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११.५, १७४४०). देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: असंख्याता जोजननी; अंति: त्यां सिद्धसिला छे. ७२११०. दानशीलतपभावना संवाद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ.५-१(१)=४, ले.स्थल. महेश्वर नगर, प्रले. पं. ग्यानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १३४३१). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: (-); अंति: समयसुंद०सुप्रसादो रे, ढाल-४, गाथा-१०१, (पू.वि. ढाल-२ के दूहा-४ अपूर्ण से है.) ७२१११. बीज, पंचमी व एकादशीतिथि स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२४.५४१२, १९४४९). १. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरोमनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम स्तुति लिखा है.) ३. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादसी अति रूवडि; अंति: गुणहर्षसीस० निसदीस, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४. पे. नाम. शुक्लपंचमी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पंचमीतिथि स्तुति, मु. भावसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीयनेमिजिणेसर भुवन; अंति: भाव०पभणे दयो परमाणंद, गाथा-४. ७२११२. चोवीसजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८९९, चैत्र कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. अलायग्राम, पठ. मु. रामचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३.५४११.५, ९४२७). २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: (-); अंति: तास सीस पभणे आणंद, गाथा-२९, (पू.वि. गाथा-२५ अपूर्ण से है.) ७२११४. (+#) वैरागी गीत, संपूर्ण, वि. १८०७, आश्विन शुक्ल, १४, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ९४२४). ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: सुरतरुनी परि दोहिलो; अंति: श्रीविजयदेवसूरि कि, गाथा-१६. ७२११५. छकाय बोल विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२५४११.५, १४४४६). __ छकाय बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, आदि: अंदी थावरकाय बंभी; अंति: कोडी बारलाख जाणवी. ७२११६. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १३४३९-४२). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: श्रीनेमिसर नित नमु; अंति: खेम सदा गुरु हेत, गाथा-१०. २. पे. नाम. सकोसला सिझाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: कीरतधज राजान सूरज; अंति: खेम० करै भवसायर तिरइ, गाथा-१५. ७२११८. पंचमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४४११, १३४३२). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन नेमि जिनेसर; अंति: रत्नविमल जयमाला, गाथा-४. ७२११९. (4) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२१.५४१०.५, ९x१९). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (अपूर्ण, _पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१५ तक लिखा है.) ७२१२१. उपदेशकुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०८, कार्तिक कृष्ण, २, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले.ग. श्रीविजय; पठ. सा. धना (गुरु सा. सरूपाजी); गुपि.सा. सरूपाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४१०.५, ६४३६-३९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवित्तु सुहं लहति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थनइ; अंति: सेव्य भव्या सुख लभते. ७२१२३. (+#) मौनएकादशी स्तवन व पद, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. आणंदा; पठ. श्रावि. मेनाबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११,११४३६). १.पे. नाम. मौनएकादशी स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६८१, आदि: समवसरण बइठा भगवंत; अंति: समयसुंदर कहो द्याहडी, गाथा-१३. २.पे. नाम. योगीमहात्म्य पद, पृ. १आ, संपूर्ण. योगी माहात्म्य पद, मु. राज, मा.गु., पद्य, आदि: आली धन ओ पीओ; अंति: नखशिख उपर में वारी, गाथा-३. ७२१२४. (+#) गांगातेली कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पठ.सा. सुखाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १५४४८). गंगातेली दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, आदि: तिवार पछी सिद्धार्थ; अंति: संतोषी घरे पहुचायो. ७२१२६. रात्रिभोजन व रतनसागर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४१०.५, १५४४५). १.पे. नाम. रात्रीभोजन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ३९९ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: अवनीतल नयरी वसैजी; अंति: पोहतो शिवपुर ठाम रे, गाथा-२०. २. पे. नाम. रतनसागर सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रत्नसागर सज्झाय, मु. सोहमस्वामी, मा.गु., पद्य, आदि: नगर रतनपुर जाणिइ; अंति: सोमविमलसूरि इम भणइ ए, गाथा-८, (वि. कर्ता सोमविमल है.) ७२१२८. सूरज श्लोक व सोलस्वप्न सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, फाल्गुन कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. बाजोलीनगरे(ENTER)बाज, प्रले. मु. लालचंद्र ऋषि (गुरु मु. रामचंद्र ऋषि, लोंकागच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१०.५, १४४३०-३३). १.पे. नाम. सूरजजी को सिलोको, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. सूरज श्लोक, रामचंद, रा., पद्य, आदि: (-); अंति: रामचंदने० सदा सुखदाई, (पू.वि. "गणनारी देव कन्या" पाठ से है., वि. गाथांक नहीं लिखा है.) २. पे. नाम. सोलस्वप्न सज्झाय, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पाडलीपुर नामां नगर; अंति: (-), (पू.वि. ढाल १ गाथा ६ अपूर्ण तक हैं.) ७२१२९. दीक्षा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१२, १३४२७). दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम गृहस्थ वेषेज; अंति: करे पछे गुरु वांदे. ७२१३०. वीर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२४४११, १०४३०-३४). महावीरजिन स्तवन, वा. रत्नहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सो दिन हीया सोहामणो; अंति: रत्न० चउवीह सुख करो, ढाल-१, गाथा-९. ७२१३२. आसोसुदिपूनम पूजाविधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-७(१ से ७)=४, दे., (२५४१२, १३४३८-४२). आसोज सुदी पुनम पूजा विधि, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: प्रथम जितना स्नात्री; अंति: बलिबाकुला देणा, (संपूर्ण, वि. अंत में नवग्रह व १० दिक्पाल यंत्र दिया गया हैं) ७२१३३. (+) हिंगुल प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १५४३५-३९). हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर, सं., पद्य, आदि: श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य; अंति: (-), (पू.वि. माया प्रकम श्लोक ४ तक है.) ७२१३५. (#) बारभावना विचार, संपूर्ण, वि. १९३५, माघ कृष्ण, २, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२५४११.५, १८४४६). १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिली अनित भावना ते; अंति: धर्मरूचिजी भाई. ७२१३६. आणंदश्रावक ढाल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. जोधपुर, प्रले. बालाराम साधु, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११, १२४४६). आनंदश्रावक ढाल, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८२९, आदि: अनरी जात अनेक छै; अंति: रायचंद० भणे हुलास हो, ढाल-४. ७२१३७. (+) चतुर्थ कर्मग्रंथ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१२(१ से १२)=३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११, ९४३०). षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १३वी-१४वी, आदि: नमिअजिणं जिअ१ मग्गण; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३० अपूर्ण तक है.) ७२१३८. पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले.सा.चईना, प्र.ले.प. सामान्य, जैदे., (२४.५४११,१६४३६-४०). पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: तारक जीण तेईसमाजी अर; अंति: हरखत० कोड कल्याण, गाथा-२२. ७२१३९. सीलरी सीझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दे., (२१४११.५, १२x२०). For Private and Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीयलव्रत सज्झाय, मु. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८४४, आदि: श्रीअरीहत नीत समरी; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण तक है.) ७२१४०. पंचमी स्तवन व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२५.५४१०.५, ७-११४३४-४२). १.पे. नाम. पंचमीस्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचमीतप स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: पंचमीतप तुमे करोरे; अंति: माननो पंचमो भेदरे, गाथा-५. २. पे. नाम. जीव बोल संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: अनंतागुण पृथ्वी ए; अंति: भव्यने अनादिनो छे. ७२१४१. () वीर द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४३७-४०). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसाम्यात्सद; अंति: चक्रि शक्रश्चियः, श्लोक-३३. ७२१४२. स्तवन व गहली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, ले.स्थल. इंदोर, पठ. श्रावि. सुजनकवर बाई, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२२४११.५, ११४२४). १. पे. नाम. सुधर्मास्वामी गहुंली, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. शांतिरतन, मा.गु., पद्य, आदि: सोहम गणधर पटधारी; अंति: शांतिगाव मंगलमाल के, गाथा-६. २. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: जगत जीव वीसराम भवजल; अंति: रतन०अम ए हरख हीयेरी, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणी, पृ. २अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. रतनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९१४, आदि: अटक्यो मन महाराज लटक; अंति: रतन ___मुनी शीर सेहरीजी, गाथा-५. ४. पे. नाम. गुरुगुण गहुँली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. रतनविजय, रा., पद्य, आदि: सखी बोले सजनी आजे; अंति: गावे रतन मुनी आजे, गाथा-६. ५. पे. नाम. नेमिजिन गहुंली-श्रीकृष्ण पट्टराणी द्वारा, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: सखी नेमजीणंदहरी; अंति: मुनी रतन महोय माणेछे, गाथा-७. ७२१४३. (+) दीक्षाप्रकरण व मुहूर्तादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ३, ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. संशोधित., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२५४११, १५४४८). १.पे. नाम. दीक्षा प्रकरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनेंद्र; अंति: भदारेकोपि जीवोदयः, श्लोक-२४. २. पे. नाम. दीक्षा ग्रहजन्म मुहुर्तादि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. दीक्षाग्रहण मुहर्तादि विचार, सं., प+ग., आदि: भरणी भानुना चैव सोमे; अंति: उभयोरपि दिनम् दिनम्, श्लोक-५. ३. पे. नाम. जैन दीक्षा मुहूर्त- मुहूर्त, पृ. २अ, संपूर्ण. जैनदीक्षा मुहूर्त-मुहूर्तप्रदीपके, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: दीक्षायां स्थापनाया; अंति: कह्या ते कार्य करवा. ७२१४६. औपदेशिक व्याख्यान व दूहा संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११, ३-९४३९). १.पे. नाम. जैन व्याख्यान, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंत भगवंत देवाधि; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रारंभिक प्रवचन लिखा है.) २.पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: मृग मरे रस कान नैण; अंति: (-), (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) ७२१४७. सझायसंग्रह व साधु अतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, जैदे., (२५४११.५, १३४३२-३५). For Private and Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १.पे. नाम. क्रोधनी सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: कडवा रे फल छे क्रोध; अंति: नीर्मली उपसमरस लाइ, गाथा-६. २. पे. नाम. माननी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: रे जीव मान न कीजीए; अंति: मानने देजो देशवटो रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. मायानी सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: समकितनुं मूल जाणीइं; अंति: एछे मारगशुद्धि रे, गाथा-६. ४. पे. नाम. लोभ सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., पद्य, आदि: तमे ज्योजो ते लक्षण; अंति: उदयरतन०करु खामणां रे, गाथा-७. ५. पे. नाम. साधु अतिचार, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. साधु अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: चारित्राचारने विषे; अंति: पछे समणसूत्र कहीए. ७२१५०. १४ गुणस्थानक विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. पं. हेतसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १५४४२). १४ गुणठाणानाम गाथा, प्रा., पद्य, आदि: मिच्छे सासण मीसे; अंति: सजोगी अयोगिगुणा, गाथा-१. ७२१५१. (+) पंचमआरा ३०बोल दुढालिया-ढालर, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११.५, १५४३२). पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनय० अलगी टालो आपदा, प्रतिपूर्ण. ७२१५२. रेवतीश्राविका सज्झाय, स्थापनाचार्यजी पडिलेहन बोल व नेमिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. नाडोलनगर, प्रले. मु. विवेकसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखक लिखित-श्रीपदमप्रभु, जैदे., (२६४११.५, १०४३८). १.पे. नाम. रेवती प्रमुख दृष्टांत स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., पद्य, आदि: सोवन सिंघासणे रेवती; अंति: वल्लभ० भव तणो पार रे, गाथा-१०. २. पे. नाम. स्थापनाचार्यजीपडिलेहन १३ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: शुद्ध स्वरूपनो धारबो; अंति: कायगुप्ति१३, (वि. धर्मरत्नप्रकरणसूत्र वृत्ति का संदर्भ दिया गया है.) ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. मा.गु., पद्य, आदि: सरव सुख दायका नेम; अंति: तो बेई मुगती पोहता, गाथा-४. ७२१५३. (+) रावण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९०९, ज्येष्ठ शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. डालुराम, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., दे., (२४.५४११.५, १४४३२-३६). रावण सज्झाय, मु. जीतमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८७३, आदि: कहै भैभीछण सुन हो; अंति: जीतमल थे नरनारी, गाथा-१७. ७२१५४. पार्श्वजिन स्तवन व नेमराजिमती स्तवन, संपूर्ण, वि. १८५६, कार्तिक शुक्ल, ८, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, १५४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हरखकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रे जीव तुम; अंति: हरखकुशल०पसाइ रंग रली, गाथा-९. २. पे. नाम. नेमराजेमती स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. अंत का कुछेक पाठ बची हुई १अ की जगह में लिखा गया है. For Private and Personal Use Only Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नेमराजिमती गीत, ग. जीतसागर, पुहिं., पद्य, आदि: तोरण आया है सखी नेम; अंति: जितसागर०करे जी को जी, गाथा-९. ७२१५५. (#) नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक व पासाकेवली भाषा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३२). १. पे. नाम. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक-बाल्यावस्थाधिकार, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमगोपी संवाद-चौवीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८३९, आदि: समर्यां देवी सारदा; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २. पे. नाम. पाशाकेवली भाषा, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: ॐ नमो भगवतै कुषमंडनी; अंति: (-), (पू.वि. प्रश्नांक-११३ का फलादेश अपूर्ण तक है.) ७२१५६. (+) ज्ञाता-छट्ठा अंगरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. हुंडीः कथानकप., संशोधित., जैदे., (२४.५४१०, ११४३३). ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-आधारित धनश्रेष्ठि पुत्रवधू रोहिणी कथा-पंचमहाव्रत पालन विषये, सं., गद्य, आदि: मगध देशे राजगृह नगरे; अंति: व्रत विस्तारः कार्यः. ७२१५७. (-) सुमतिजिनपद, होरी पद व औपदेशिकादि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. १०, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२४.५४११, १४४३६-४०). १. पे. नाम. होरी पदं, पृ. १अ, संपूर्ण. आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसार, पुहिं.पद्य, आदि: आज रंग भीनी होरी आई; अंति: ज्ञानसार० होरी जगाई, गाथा-४. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहि., पद्य, आदि: (१)आतम अनुभौ आंबकौ नवलो, (२)बारौ नणदलवीर कहुं; अंति: ज्ञान० न रहै को पीर, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सदगुरूनै पकरी वाहि; अंति: कहत क्षमाकल्याण, पद-३. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: जगत मै कोण किसी कौ; अंति: ग्यानसारगायो आतमगीत, गाथा-४. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: रहे तुम आज क्युं जीव; अंति: ग्यानसार० कंठ लगाय, पद-३. ६. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: कंत चतुर दिन ल जानी; अंति: आनंदघन० जन प्राणी हो, पद-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मु. राजसमुद्र, पुहि., पद्य, आदि: नीके नाथ मै कवहून; अंति: राजसमुद्र० जनम गमायो, गाथा-३. ८. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद्य, आदि: तेरौ दाव बन्यौ है; अंति: ग्यानसार० पद निरवाण, गाथा-५. ९. पे. नाम. सुमतिजिन पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. गुणविलास, पुहिं., पद्य, आदि: तेरी गत तु ही जानै; अंति: गुणविलास वही है, गाथा-४. १०. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: कल्याण मोकुं कौउ; अति: आनंदघन० जनरावरो थकौ, गाथा-३. ७२१५९. (+#) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ११४३२). For Private and Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७२१६०. (+#) साधुगुण सज्झाय व मानवभवदुर्लभता सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १५४३०). १. पे. नाम. साधुगुण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. आसकरण, पुहिं., पद्य, वि. १८३८, आदि: साधुजीन वनणा नीत नीत; अंति: आसकरण दास रे प्राणी, गाथा-१०. २.पे. नाम. मानवभव दुर्लभता सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. _ नरसिंघदास, रा., पद्य, वि. १८७९, आदि: का तुम जावो हार जीवा; अंति: नरसींग० कीधो अभ्यास, गाथा-९. ७२१६१. वीरथुई अध्ययन, महावीरजिन स्तुति व नमिप्रवज्या अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १६x४८). १. पे. नाम. वीरथुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:पुच्छीसणो, सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिसुणं समणा माहण; अंति: आगमिस्संति त्तिबेमि, गाथा-२९. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: पंचमहव्वयसुव्वयमूलं; अंति: प्रभवस्वामी जाणीये, गाथा-८. ३. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-नमिपवजाज्झयण, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, पे.वि. हुंडी:नमि पव्व०. उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अति: (-), प्रतिपूर्ण. ७२१६२. (4) परमानंद स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७६६, आश्विन शुक्ल, ५, मंगलवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मद्यालपुर, प्रले. पं. राजशेखर; पठ.पं. विनयकुशल; राज्यकालरा. अजितसिंह, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४४०). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजीगणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंयुक्तं; अंति: चैतन्यं चिंतयाम्यहं, श्लोक-२८. ७२१६३. (+#) आदिजिन गीत, शेजय गीत व औपदेशिकादि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४११, ९४२७). १. पे. नाम. आदिजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: संघासण पदमासण बेठे; अंति: रूपचंद गुण गाय ले. २. पे. नाम. साधारणजिन गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन पद, मु. रूपचंद, पुहि., पद्य, आदि: तु ही निरंजन इष्ट; अंति: रूपचंद होवे फेरारे, गाथा-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक गीतं, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, पुहिं., पद्य, आदि: जाग जाग रेन गइ भूर; अंति: जूओ नीरंजन पावे, गाथा-४. ४. पे. नाम. चोद लोक, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सिद्धपद स्तवना, मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: लोक चउद के पार कनारे; अंति: रूपचंद० का दासा हे, गाथा-५. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: जाग ५ दल मेरा रे जिन; अंति: जम घटे दुख घेरा रे, गाथा-५. ६. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ गीतं, पृ. २आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चालोने प्रीतमजी; अंति: दानविजे० ए संभर लीजे, गाथा-४. ७२१६५. (2) चेलणासती चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १८४३५). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: अवसर जे नर अटकले ते; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४ गाथा-१ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०४ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . "" ७२१६८. (+) स्थूलभद्र चौमासा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२४.५४११.५, १८४३६-४० ). स्थूलभद्रमुनि चौमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु, पद्य, आदि: श्रावण आयो वालहा अंति: लही जगती जिनहरख भलाई, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाथा-५. ७२१७०. (+) संदेहदोलावली प्रकरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४-१ ( १ ) = ३, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४११, १५x५२-५५) " संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: जिणवल्लहसूरि सीसेणं, गाथा- १५१, ( पू. वि. गाथा- ४० अपूर्ण से है . ) ७२१७१. (+) महावीरजिन व प्रथमजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५x१२, १०X३०). १. पे नाम, महावीरजिन स्तवन- देवद्रव्य उपदेश गर्भित, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन- देवद्रव्यउपदेश गर्भित, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीर प्रभु हम बोले, अंतिः धर्मचंद्र ० मंगलमाल, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन पद-केशरीबाजीमंडन, पृ. १आ. संपूर्ण. मु. धर्मचंद्र, मा.गु, पद्य, आदिः लाखेणी पूजा ने रचावे; अंतिः धर्मचंद्र० घरे आवे, गाथा-५, ७२१७२. (+) फतेचंदजीमाहाराजनो कथन, संपूर्ण, वि. १९२२, आषाढ़ शुक्ल, ८, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४.५५११, १२X४४). फतेचंदजी महाराज रास, श्राव. जेष्ठाजी, मा.गु., पद्य, वि. १९१२, आदि: सासणपत श्रीबीरजी; अंति: ग्यानचंद ० धर्मरागसुं, डाल-५, गाथा ८९. ७२१७४ (+) पाशाकेवली, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३-१ ( १ ) -२, पू. वि. बीच के पत्र हैं. प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२५x११, १८४५०). पाशाकेवली. मु. गर्ग ऋषि, सं., पद्य, आदि (-); अंति: (-), (पू.वि. पाशांक १४२ के फलादेश अपूर्ण से ४९२ के फलादेश अपूर्ण तक है.) ७२१७७. (+) ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५X११, १९३७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, आदि आठ कर्म ते कहा, अंतिः विषे उद्यम करवी. ७२१७८. (#) अबयदी प्रश्न, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., 3 (२५.५x११, १७४५०) " अवयदी प्रश्न, पुहिं गद्य, आदिः ॐ विपुसिद्धीहि अमंथ, अंति: (-), (पू. वि. प्रश्नफल- दयअ ४३१ तक है.) ७२१७९. (+) पार्श्वजीनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., दे., (२४X११, १०X३१). पार्श्वनजिन स्तवन, मु. माणेक मा.गु., पद्य, आदि: कासी देश बनारसी सुख, अंतिः कहे माणक० कोटी कल्याण, गाथा - ९. ७२१८०. (+#) सीमंधरजिन स्तवन, शांतिजिन स्तवन व २४जिन बोल आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ६, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित संशोधित अशुद्ध पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल है, दे., (२४X१२, १८x४०). १. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सा. मानाजी, मा.गु., पद्य, वि. १९३७, आदि: कुडरीकणी नगरी भली जी; अंति: काई मानाजी करी अरदास, गाथा- ७. २. पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि सन प्रभुजी संत व्रते, अंतिः ० चंद० परभुजीने धावोजी, गाथा-५ (वि. कर्ता नाम के अंतिम अक्षर "पचंद" जैसे मिलते हैं.) ३. पे. नाम. २४ जिन पूर्वभव, दीक्षादि परिवार, मोक्ष प्रहरादि ८ बोल विचार, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४०५ मा.गु., पद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: रातरे समे मुगते गया, (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य नहीं भरा है. "माहाराज तीजे भव में चक्रवरत पदवी भोगवी" पाठ से है.) ४. पे. नाम. ११ गणधर स्तवना, पृ. २अ, संपूर्ण. ११ गणधर स्तवन, सा. मानाजी, मा.गु., पद्य, वि. १९३६, आदि: इंदरभुतीजी गुणधर; अंति: मानाजी० तान जोडी हो, गाथा-५. ५. पे. नाम. देवानंदा सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: दरसण आवयो हो; अंति: चोथमल० जासीजी मोख, गाथा-७. ६. पे. नाम. मुनि सेवा १० बोल सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. साधुसेवा १० बोल सज्झाय, मु. हीराचंदजी, मा.गु., पद्य, वि. १९९०, आदि: मुनिराज तणि सेवा; अंति: हीराचंद० भलो प्यासो, गाथा-११. ७२१८१. शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, अन्य. सीमरत, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४.५४११, १७४४२). शील सज्झाय, मु. मलुकचंद, रा., पद्य, वि. १८००, आदि: सारद माता समरु तो ही; अंति: मलुकचंद० का दुख हरो, गाथा-३२. ७२१८२. दीपमालिका सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९००, कार्तिक कृष्ण, १३, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. शंकरगिरि गुसाइ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, १८४६०-६३). दीपावलीपर्व रास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: भजन करो भगवानरो; अंति: जेमल० दिन मोटिकौ, गाथा-४५. ७२१८४. (+) संलेखना पाठ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३.५४११, १२४३६-४०). संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: अहं भंते अपच्छिम; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ७२१८५. निर्मोहीराजा पंचढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २, जैदे., (२४४११.५, १७४२७-३०). निर्मोहीराजा पंचढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८७४, आदि: निरमोही गुण वरणवू; अंति: रतनचंद० ढाल ___परसिधरे, ढाल-५. ७२१८६. पार्श्वजिन स्तवन, दोहाशतक व आध्यात्मिकादि पद संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ८, जैदे., (२५.५४१०.५, १७X७२-७५). १.पे. नाम. दोहा शतक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. क्षमासुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य. औपदेशिक दूहा संग्रह, ऋ. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: अपनो पद न विचार हूं; अंति: रूपचंद० पंथ दिखाय, गाथा-१०१. २. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहि., पद्य, वि. १८वी, आदि: आसा ओरनकी क्या कीजै; अंति: आनंदघन० लोक तमासा, गाथा-४. ३. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: माहरो बालूडो सन्यासी; अंति: साझ काज सवारी, गाथा-४. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी मेरो खेलइ; अंति: जीतइ कुबजा हार, पद-१. ५. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. म. आनंदघन, पुहिं., पद्य, आदि: प्राणी मेरो खेलै: अंति: आनंदघन जीतै जीवगाजी. पद-५. ६.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. आनंदघन, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: जग आशा जंजीर की गति; अंति: आनंदघन: निरंजन गावै, गाथा-५. ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २आ, संपूर्ण. कबीर, पुहिं., पद्य, आदि: रे जीव काहेकुं माया; अंति: फूकि दीयो ज्यु होरी, गाथा-३. ८.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. विनयचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपास जिणेसर सामी; अंति: विनयचंद्र गुण गाया, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२१८७. (4) अभिधानचिंतामणि नाममाला-मर्त्य कांड तृतीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-२७(१ से २७)=३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३६-३९). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-५०४ से है.) ७२१८८. (+) गौतमस्वामी रास वदोहा संग्रह, अपूर्ण, वि. १८०८, आषाढ़ अधिकमास शुक्ल, ३, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, कुल पे. २, प्रले. मु. विजा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. हूंडी में सफेदा से लिखा गया है., संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४३५-३८). १. पे. नाम. गौतमस्वामी रास, पृ. २अ-४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विनयभद्र० कल्याण करो, गाथा-७५, (पू.वि. गाथा-१६ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण.. प्रास्ताविक दोहा संग्रह *, मा.गु.,रा., पद्य, आदि: हर लख्या सो बहु; अंति: रहुरहु जीव निसंक, गाथा-१. ७२१८९. (+) बीकानेरचैत्यपरिपाटी स्तवन, आदिजिन स्तवन व शांतिजिन स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११,११४३०). १.पे. नाम. चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: चैत्यप्रवाडै चौवीसटै; अंति: ध्रमसी कहे सांज सवेर, गाथा-११. २.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, उपा. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशांतिजिनेसर सोल; अंति: कहै ध्रमसी उवझाय हो, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणपुरौरलीयामणौ रे; अंति: (-), (पू.वि. गाथा प्रथम अपूर्ण तक है.) ७२१९०. (+) सीमंधरजिन स्तवन व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४०). १.पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुँ; अंति: भगतिलाभ०आस्या मन तणी, गाथा-१८. २.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: समरवि समरवि सारदा ए; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७२१९१. (+) नेमनाथ राजमती रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-१(१)=३, ले.स्थल. श्रीलवेरानगर, पठ. श्रावि. चंद्रावती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५.५४१०.५, १२४४४-४८). नेमराजिमती रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु., पद्य, वि. १६६३, आदि: (-); अति: समयप्रमोद० जयकार कि, गाथा-९८, (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण से है.) ७२१९२. मेघरथराजा कवित्त, शिष्यहितशिक्षा सज्झाय व पैसा सवैया., संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२१x११.५, १४४३९). १. पे. नाम. शांतिजिन पूर्वभव मेघरथ राजा कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. शांतिजिन कवित्त-पूर्वभव मेघरथ राजा, मा.गु., पद्य, आदि: इंद्रलोक सुरसभा; अंति: पुफ व्रष्टी देवा करी, का.-५. २.पे. नाम. शिष्य हितशिक्षा सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. __औपदेशिक सज्झाय-शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: गुरू का कया मानले रे; अंति: सुखानंद कथा बोतेरा, गाथा-८. ३. पे. नाम. सवैया-पैसा, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदलाल, पुहिं., पद्य, आदि: पइसा विन माह कहे पुत; अंति: नंदलाल० की वडाइ हे, सवैया-१. ७२१९३. (+) ज्ञानसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-९(३ से ११)-४, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, ३४२८). For Private and Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४०७ ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: (-), (पू.वि. मग्नताष्टक श्लोक-१ अपूर्ण तक व इन्द्रियाष्टक श्लोक-२ अपूर्ण से त्यागाष्टक श्लोक-४ अपूर्ण तक है.) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, आदि: ऐंद्रवृंदनतं नत्वा; अंति: (-). ७२१९८. (#) तिजयपहुत्त स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, ६x४५-५०). तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदि: तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंति: निब्भत निच्चमच्चेह, गाथा-१४. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, सं., पद्य, आदि: स्मरामि जिनेंद्राणां; अंति: (१)भो लोकाः सुखार्थिनः, (२)साधकानि भवंतीति. ७२२०० (+) स्यादिसमुच्चय सूत्रं, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १६x४५). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीशारदां हृदि; अंति: (१)संख्या डतिस्तथा, (२)अमर० स्यादिशब्दानां, उल्लास-४. ७२२०१. पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रावण कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १७४३८). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: पापथी छटै तत्काल, ढाल-३, गाथा-३२. ७२२०२. (+) संबोधसत्तरी सह अवचूरी व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. बाल्हीनगर, प्रले.पं. देवेंद्रविजय; गुपि.ग. जयविजय (गुरु पंन्या. अमृतविजय); पंन्या. अमृतविजय (गुरु पंन्या. सिंहविजय); पठ. मु. भावसाधुविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४४५). १. पे. नाम. संबोध सत्तरी सह अवचूरी, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: जयसेहर०नत्थि संदेहो, गाथा-९२, (वि. १८०५, भाद्रपद कृष्ण, ७) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, सं., गद्य, आदि: नत्वा नमीकरी त्रैलोक; अंति: लभते नैवात्रे संदेह, (वि. १८२३, फाल्गुन कृष्ण, ७, ले.स्थल. नादीपुर, प्रले.पं. विनयविजय गणि (गुरु ग. देवेंद्रविजय), प्र.ले.पु. सामान्य) २.पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १८२३, चैत्र कृष्ण, ४, प्रले. पं. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य. श्लोक संग्रह **, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-५. ७२२०३. (+#) २४ जिन चैत्यवंदन व लग्न एवं तारा विचार, संपूर्ण, वि. १८३०, पौष शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. खांतोर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७X४५). १. पे. नाम. चौवीसजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पहिला प्रणमुंप्रथम; अंति: लहिं पामिं सुख अनंत, गाथा-८. २. पे. नाम. लग्न व तारा विचार, पृ. १आ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक- मलूकचंद द्वारा बाद में लिखी गई है. ज्योतिष*, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., आदिः (-); अंति: (-). ७२२०५. (+) गौतम कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. रंभा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५४११, १७४५०). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: निसेवितु सुहं लहंतु, गाथा-२०. ७२२०६. उत्तराध्ययन सूत्र, संपूर्ण, वि. १९६३, ज्येष्ठ कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. मु. मुनीलाल (गुरु मु. गणेशदास, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, ., (२५.५४११.५, १५४४०). उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवज्जा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., पद्य, आदि: चईऊण देवलोगाउ उववन्न; अंति: नमीरायरिसि त्ति बेमि, गाथा-६२. ७२२०८. भयहर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११, १०४२९). For Private and Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण पणय सुरगण; अंति: भय नासइ तस्स दूरेण, गाथा-२४. ७२२०९. (+) दसपच्चक्खाण विचार, संपूर्ण, वि. १८६८, आषाढ़ कृष्ण, ६, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. दूर्ग, प्रले. मु. कस्तुरचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१०.५, १३४४९). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: विचार शास्त्र मा छे. ७२२११. (#) संबोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १८६०, भाद्रपद शुक्ल, ७, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. ग्राणपुर, प्रले.पं. नरविजय पंडित; पठ.पं. सुंदरविजय (अज्ञा. पं. वनीतविजय गणि); गुपि.पं. वनीतविजय गणि (अज्ञा. ग. कनकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४४०). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोयगुरुं; अंति: जयसेहर नत्थि संदेहो, गाथा-९३. ७२२१२. (#) महावीरजन्मकल्याणक व साधारणजिन आरती, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३९-४३). १. पे. नाम. वीरजिन पंचकल्याणक वधावा, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. महावीरजिन पंचकल्याणक वधावा, क. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो मोही रे नंदला; अंति: दीपविजय० महाराज वाला, ढाल-५, गाथा-५९. २. पे. नाम. साधारणजिन आरती, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: इहविध मंगल आरती कीजे; अंति: स्वर्ग मुकति सुखदानी, गाथा-८. ७२२१३. (+#) नवतत्त्व सह टबार्थ, योगीनीचक्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, प्रले.ग. भला (गुरु ग. भीखा); गुपि.ग. भीखा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४४९). १.पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंति: अणीगयद्धा अणतगुणा, गाथा-४२. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व १ अजीव; अंति: छइ० आवतइ कालि. २.पे. नाम. योगिनीचक्र, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. ज्योतिषश्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक, सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७२२१४. (+#) परमानंदपच्चीसीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. अमदावाद, प्रले.पं. शांतिकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ५-१२४३०-३५). परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, वि. १८वी, आदि: परमानंदसंपन्नं; अंति: प्राप्य परमपदमात्मनः, श्लोक-२५. परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदिः (१)श्रीसुधास्वामी, (२)परम जे उत्कृष्टो; अंति: ते प्रतेइ पांमई. ७२२१५. यादवउत्पति वर्णन व अनागतचोवीसी नाम, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). १. पे. नाम. यादव उत्पति वर्णन, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. यादव उत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: सुख भोगवता रहै छै, (पू.वि. अष्टम तप कर के धरणेंद्र की आराधना करने की चर्चा अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. आवति चोवीसीरा नाम, पृ. ६आ, संपूर्ण. अनागत चौवीसी जिन आगमन गति विचार, मा.गु., गद्य, आदि: श्रेणिकरो जीव पेहली; अंति: पांचमे सरवारथसिधि. ७२२१६. (+) पौषध सज्झाय व पार्श्वजिन चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १३४३२). १. पे. नाम. पौषध सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४०९ पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जगचूडामणिभूओ उसभो; अंति: उप्पन्नं केवलं नाणं, गाथा-३३. २.पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण. हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: जिण पासु पयठीओ वंछिय, गाथा-२. ७२२१७. इगवीसस्थानक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. मु. जयकुशल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १४४५४). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवणविमाणा १ नयरी २; अंति: सिद्धसेणसूरि० भणिया, गाथा-७१. ७२२१८. (+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३०-३३). आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: विमलगिरि सिखर गजराज; अंति: पाठक सहजकीरति इम कहे, गाथा-१७. ७२२१९ (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३६-४०). महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंति: जिनवल्लभ० दयालो मयि, श्लोक-३०. ७२२२०. बृहत्संग्रहणी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-११(१ से ११)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., जैदे., (२५४११, ११४३३-३६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१८२ अपूर्ण से २३७ अपूर्ण तक ७२२२१. (+) श्रीपालराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-११(१ से ११)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १७४३८). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. खंड-२ ढाल-२ के दोहा-५ अपूर्ण से ढाल-४ की गाथा-२१ अपूर्ण तक है.) ७२२२२. (#) चतुर्विंशतिजिन स्तवन व सवैया, संपूर्ण, वि. १८२२, ज्येष्ठ शुक्ल, १३, शुक्रवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. ग. विनयविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४४७-५२). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. उदयकमल, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत अनंत भवंतर; अंति: विलाश जयंकर चित्तधरा, गाथा-२५. २. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन सवैया, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मसुता गिर्वाणी; अंति: धरी आनंद भणो नरनारी, गाथा-२७. ७२२२३. (+) संग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३८-३४(१ से ३२,३५ से ३६)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४४६). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२०८ से २२५ तक, २४४ अपूर्ण से २५८ तक है.) । बृहत्संग्रहणी-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७२२२४. शारदा स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-४(१ से ४)=२, जैदे., (२५.५४११.५, १४४३०-३३). सरस्वतीदेवी छंद, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, वि. १६७८, आदिः (-); अंति: होऊ सया अम कल्याणं, गाथा-४३, (पू.वि. गाथा-६ अपूर्ण से है.) ७२२२५. (#) स्तवन, गीत व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १५४५९). For Private and Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात पसाउले निज; अंति: दयाकुशल आणंद भयो, ढाल-३, गाथा-३०. २.पे. नाम. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. २अ, संपूर्ण. ग. लब्धिउदय, मा.गु., पद्य, आदि: मुनिवर रहण चोमासे; अंति: दिन दिन सुख सवाया हो, गाथा-११. ३. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. पुण्यरुचि, मा.गु., पद्य, आदि: महावीर मोटो जगनाथ; अंति: रूचिने दोलित करे, गाथा-४. ४. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: कागलीया करतार भणी; अंति: जिनराज०धर एही रीत का, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पं. मनरूपसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सोरीपुर नगर सोहामणो; अंति: मनरुप प्रणमें पाय, गाथा-१३. ७२२२६. अर्जुनमाली सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५५, फाल्गुन शुक्ल, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. माघरोलबंदर, प्रले.पं. धर्मसी ऋषि; पठ. श्रावि. चंपाबाई; अन्य. सा. कस्तूरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७४११.५, ११४२८). __ अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., पद्य, वि. १७४३, आदि: सहगुरु चरण नमी कहूं; अंति: सेवक कानजी गुणगाय, गाथा-१६. ७२२२८. (+#) स्तुतिचतुर्विंशिका, अपूर्ण, वि. १८१७, श्रावण कृष्ण, १४, रविवार, मध्यम, पृ. ६-२(१ से २)=४, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. पं. मुनिविजय गणि (गुरु ग. अमृतविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १३४३२-३५). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: हारताराबलक्षेमदा, स्तुति-२४, श्लोक-९६, (पू.वि. श्रेयांसजिन स्तुति श्लोक-१ अपूर्ण से है.) ७२२२९. (+#) नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९१३, ?, मध्यम, पृ. ३, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संवत अस्पष्टरूप से १६१३ जैसा दिखता है., पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२४.५४१२, ७४५४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्ण; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-४२, संपूर्ण. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: हुआ० अनंता गुणा छे, संपूर्ण. ७२२३०. (4) बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. ८, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १९४६२-६५). १.पे. नाम. दशाश्रुतस्कंधसूत्र-दसा-६११ उपासकप्रतिमा, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. ११वी प्रतिमा पाठ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. भाषाभेद बोल संग्रह, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: केवली असावद्य अपरो; अंति: ए व्यवहारभाषा कहीयइ. ३. पे. नाम. अजीव ५६० भेद विचार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम वर्ण तेहना भेद; अंति: षद्रव्यना एवं ५६०. ४. पे. नाम. षड्द्रव्य विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, आदि: १ धर्मास्तिकाय; अंति: अफरस ५वर्तमानलक्षण. ५.पे. नाम. १४ जीव भेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: लोक ढाई द्वीप बाहिर; अंति: ६ मेरुतइ विषइ १४भेद. ६. पे. नाम. ५ संस्थानभेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: (१)१ परिमंडलायवट्टा, (२)१परिमंडल संस्थान वलय; अंति: ५आयतन संस्थान वलयवत्. ७. पे. नाम. अंगचेष्टाभेद विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४११ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ विचार संग्रह *,मा.गु., गद्य, आदि: कानना विषै २ सचित्ता; अंति: एकेंद्रीने ८. ८. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: एषोंजलिः समससज्जन; अति: नितिपात्रभूतम, श्लोक-१. ७२२३१. भयहर स्तोत्र सह अवचूरी, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-१(२)=२, प्रले. सा. सहजश्री; पठ. ग. देवविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. त्रिपाठ., जैदे., (२६.५४११, २-७४४५-६०). नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण पणय सुरगण; अंति: परमपयत्थं फुडं पास, गाथा-२४, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से १५ तक नहीं है.) नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदो कवि मंगलाभिधान; अंति: स्फुटं श्रीपार्श्व. ७२२३२. (#) विजयशेठ सज्झाय, विजयप्रभसूरि पद व निदात्याग सज्झाय, अपूर्ण, वि. १७५८, मार्गशीर्ष शुक्ल, ९, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, ले.स्थल. पाटण, प्रले. मु. देवविजय (गुरु ग. दीपविजय); ग. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४४५). १.पे. नाम. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हरषकीरत नित अवतरै, ढाल-३, गाथा-२७, (पू.वि. गाथा-२४ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. विजयप्रभसूरि पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. जीतविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीविजयरत्नसूरि; अंति: जीत० पूरो मन तणी आस, गाथा-४. ३. पे. नाम. निंदात्याग सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, मा.गु., पद्य, आदि: म कर हो जीव परतात; अंति: भावसु ए हितशिख माने, गाथा-९. ७२२३३. स्तवन व स्तोत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९०३, पौष कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले.पं. चेनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६४११.५, १४४३६-३९). १.पे. नाम. पद्मावती स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तव, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पद्मावतीस्तोत्रम्, श्लोक-२८. २. पे. नाम. २४ जिन स्तोत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, म. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंति: मोक्षलक्ष्मीनिवासं, श्लोक-८. ३. पे. नाम. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: राजते श्रीमती देवता; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक-९, (वि. यंत्र सहित) ४. पे. नाम. रात्रिभोजन परिहार श्लोक, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७२२३४. (#) चउशरण व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ११४३७). १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावजजोग विरई; अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. २. पे. नाम. श्रुतोपकार महात्म्य श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. व्याख्यान संग्रह *, प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, आदि: देवपूजा दया दानं; अंति: मृत्युजन्मफलाष्टकं, (वि. मात्र एक श्लोक ७२२३६. (+) अभिधानचिंतामणि नाममाला-कांड ६ सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २७४८५-८८). For Private and Personal Use Only Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धारटीका, उपा. श्रीवल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६७, आदि: (-); अंति: च शास्त्राणि भवंतीति, (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. श्लोक-१६६ की टीका अपूर्ण से है.) ७२२३७. पावागिरि चेत्रप्रवाडि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. स्तंभ तीर्थ, प्रले.ग. अनंतकीर्ति; गुभा. ग. अनंतहस (गुरु ग. जिनमाणिक्य); गुपि.ग. जिनमाणिक्य (गुरु गच्छाधिपति लक्ष्मीसागरसूरि); पठ. श्राव. गोरा, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११,९४३२-३५). पावागिरि चैत्र प्रवाडि, ग. अनंतहंस, मा.गु., पद्य, आदि: सिरि सरसति सामिणि; अंति: जिनमाणिक्य मुणिंद वर, गाथा-२८. ७२२३८. बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. श्राव. प्रेमचंद नथुचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४१२, १०४३०-३३). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: जयनं जयति शासनं. ७२२४०. (+) प्रतिष्ठाऔषधी विगत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३४). अंजनशलाकाप्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधि सामग्री, मा.गु., गद्य, आदि: हलद्र १ जावंत्री २; अंति: ६० कोपरु ६१ मोरसीखा. ७२२४१. (#) स्तुति, स्तोत्र व चैत्यवंदनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३२, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. आहोरनगर, प्रले.पं. चतुरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३८). १.पे. नाम. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-१०. २. पे. नाम. प्रार्थना स्तुति, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: दर्शन देव देवस्य; अंति: पश्यति दिवसोदये, गाथा-३८. ३. पे. नाम. २४ जिननामगर्भित मंगलाष्टक, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत नरेंद्र जिणेंद्र; अंति: कुरु मंगलम्, श्लोक-९. ४. पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी, पृ. ३अ-४अ, संपूर्ण. __ . रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्करं प्रार्थये, श्लोक-२५. ७२२४२. (+#) समकित के सडसठबोल सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १७४४८). समकित के ६७ बोल की सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सेवू श्रीचौवीसमु; अंति: (-), (पू.वि. ६ स्थान अपूर्ण तक है.) ७२२४४. नेमिनाथराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १८९१, वैशाख शुक्ल, ८, शुक्रवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. पं. जसराज, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १३४३६-४०). नेमिजिन बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम बिलूधी पदमणी; अंति: अरज सुणोनी घरि आय, गाथा-४१. ७२२४५. (+) पुंडरीकगिरि नमस्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. कल्याणविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६.५४१२, ११४२९). शत्रुजयतीर्थस्तव, सं., पद्य, आदि: धरणेंद्रप्रमुखा नागा; अंति: लप्स्यते फलमुत्तमम्, श्लोक-१३. ७२२४६. स्थानांगसूत्र उपसर्ग४ प्रकार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११, २८x२९-५३). स्थानांगसूत्र-उपसर्ग ४ प्रकार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: उपसर्गना भेद ४ कह्या; अंति: हाथ पग उतरइ मोडखाइ. ७२२४८. (4) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १३४३०). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन; अंति: चोथमल० नित समरो भाई, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४१३ ७२२४९. (+#) जंबुस्वामी सज्झाय व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४११.५, १३४५२). १.पे. नाम. जंबुस्वामी स्वाध्याय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जंबुस्वामी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३८, आदि: समरीय सरसती विश्व; अंति: अधिक पूरयो मन जगीस, गाथा-२८. २. पे. नाम. वर्णमाला, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋल; अंति: ल व श ष स ह ळ क्ष. ७२२५०. (+) औपदेशिक, पद व सवैया संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, प्र.वि. द्विपाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, १५४४७-५०). १.पे. नाम. आध्यात्मिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. श्राव. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: उदै भयो भानि कोउ पंथ; अंति: बनारसीदास ऐसो कहीइं, सवैया-१. २. पे. नाम. श्रावक कर्त्तव्य पद, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: सचित्त द्रव विगय पान; अंति: श्रावक सो जानीयै, पद-१. ३. पे. नाम. २२ अभक्ष्य कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहि., पद्य, आदि: उंबरण विस अंजीर सहत; अंति: ते प्राणी सद्गति लहै, पद-१. ४. पे. नाम. साधुलक्षण कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: प्रथम पंच दृढ रहत रह; अंति: सकल एते लछन साध के, पद-१. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद कवित्त संग्रह, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. औपदेशिक दोहा संग्रह*, पुहि., पद्य, आदि: संख दांत हाड खम सींग; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., अंतिम पद-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ६.पे. नाम. गछराज मजलस, पृ. २अ-३आ, संपूर्ण. खरतरगच्छराज मजलस, पुहिं., पद्य, आदि: अहो आओ बेयार बेठो; अंति: पास रहणा तो० कहणा, (वि. गाथाक्रम का उल्लेख नहीं है तथा गच्छराजनाम वाले स्थान को खाली छोड़ा है.) ७. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहि., पद्य, आदि: गुंदी चवीजे चान कहो; अंति: तो कवण सपूता प्रारथै, पद-१. ८. पे. नाम. प्रास्ताविक पद, पृ. ३आ, संपूर्ण. सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: आवो चंद्रवदनी; अंति: सुंदर० तब गल लगी धाय, पद-३. ९. पे. नाम. प्रास्ताविक सवैया, पृ. ३आ, संपूर्ण. ___ सुंदर, पुहिं., पद्य, आदि: सुखासन सवारी गज घूमत; अंति: सुंदर आगै हुय आता है, सवैया-१. ७२२५१. (+) पांचमहाव्रत सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., दे., (२६४११.५, १०४२९-३१). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवेरे; अंति: कांतिभणै ते सुख लहे, ढाल-६, (संपूर्ण, वि. रात्रिभोजन व्रत सझाय सहित.) ७२२५३. विहरमानइकवीसठाणो व पर्याप्ति कालमानभेद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२६४११, १४४५१). १. पे. नाम. विहरमान इकवीसठाण, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संपइ वटुंताणं नाम; अंति: रइयं सम्मत्तलाभाय, गाथा-३८. २. पे. नाम. पर्याप्ति कालमान भेद, पृ. २अ, संपूर्ण. पर्याप्तिकालभेद गाथा, प्रा., पद्य, आदि: वेउव्विय पज्जत्ति; अंति: सेसा अंतमुहु ओराले, गाथा-१. 1 ). For Private and Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२२५४. अष्टमी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११, १०४३४-३६). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारै ठांम; अंति: कांति सुख पामे घj, ढाल-२, गाथा-२३. ७२२५६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०,१५-१७४५३). १. पे. नाम. रोहिणीतपस्तवन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, वि. १७२०, आदि: सासणदेवति सामणीए; अंति: श्रीसार०मन आस्या फली, ढाल-४, गाथा-२६. २. पे. नाम. गतिमाश्रीत्य अल्पबहुत्व स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: अरिहंत केवलन्यान; अंति: जिम देखु परतिखपणे, ढाल-३, गाथा-१८. ३. पे. नाम. पंचकल्याणक स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण. मु. पुण्यसागर, मा.गु., पद्य, आदि: नमिय पयकमल सुभ भावि; अंति: पुण्यसाग० आराहउ मुदा, गाथा-२१. ७२२५८. (+) जंबुद्वीपपरिधि विचार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १२४३२). जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: विखंभवग्गदह गुण; अंति: (-). जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: शकलेन समानेतव्यं; अंति: तत्वात्केलगम्यम्. ७२२५९. स्तवन संग्रह व सझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ६, जैदे., (२५४१०.५, १२४३७-३९). १. पे. नाम. आमलकी क्रीडानुंस्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-आमलकी क्रीडा, मु. बाथा ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: के वर्धमान खेलेरे; अंति: बाथा० सिवरमणी तदारे, गाथा-९. २.पे. नाम. शीतलजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. मोती ऋषि; पठ.सा. कुवरबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य. ग. मेघराज, मा.गु., पद्य, वि. १८२२, आदि: सीतलजिनवर देव सुणो; अंति: गणि मेघराज० मारा लाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. सीमंधरस्वामी स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मूझ हीयडो हेजालुवो; अंति: जिनराज० मुको विसार, गाथा-७. ४. पे. नाम. माया सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: माया वाहीया जगत वलुध; अंति: मुगत गया सहु साखी, गाथा-८. ५. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७८०, आदि: पासजी तोरा प्रणमीय; अंति: जपता वाधो छे प्रेम, गाथा-९. ६. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: जंबूदीपना भरथमा अजोध; अंति: रायचंद० क्रिपानाथ, गाथा-१९. ७२२६०. (#) साधुप्रतिक्रमण सूत्र-पगामसज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ.मु. देवीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४५). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७२२६१. सझाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, चैत्र कृष्ण, १, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. धनसी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १७X४२-४५). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. __उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, आदि: परम गुरू जैन कहो किम; अंति: जैनदशा जस ऊंची, गाथा-९. २.पे. नाम. रेन्टीयानी सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir x१८ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ रेंटिया सज्झाय, श्रावि. रतनबाई, मा.गु., पद्य, वि. १६३५, आदि: बाई रे अमनें रेंटीयो; अंति: रतनबाई० फली मन आशरे, गाथा-२५. ७२२६२. (+) उपदेशरत्नकोस सह टबार्थ व गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. गंभिरनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १०४५०). १.पे. नाम. उपदेश रत्नकोस सह टबार्थ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: वच्छयले रमइ सच्छाए, गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्नकोश; अंति: स्वेच्छाइ रमइ. २.पे. नाम. धर्मपरिवार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. सम्यक्त्वादिधर्मपरिवार गाथा, मा.गु., पद्य, आदि: समकित तात क्षमा मात; अंति: पुत्र विवेक, गाथा-१. ७२२६३. द्रुमपत्राध्ययन स्वाध्याय-उत्तराध्ययन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, प्र.वि. प्रत्रांक अंकित नहीं है, कृति के आधार से काल्पनिक पत्रांक २ दिया है., जैदे., (२५४११.५, ९४३९). उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., १ से ९ अध्ययन तक की सज्झाय नहीं है व १०वें अध्ययन की सज्झाय तक लिखा है.) ७२२६४. (4) आराधना, पच्चक्खाण व अणसण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १३४३८). १. पे. नाम. आराधना, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. अंतिम आराधना संग्रह, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: इच्छामि खमासमणो०; अंति: तेहनी स्मरणा करवी. २.पे. नाम. दशपच्क्खाणना नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, आदि: उपवास१ एकासणउ२; अंति: एकलघर९ अलेवाडनिवी१०. ३. पे. नाम. अणसण विधि, पृ. ३आ, संपूर्ण. संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जो गरढो हुवै तो देव; अंति: अ०५ पछे वोसिरामि. ७२२६५. (-) नेमराजिमती सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., दे., (२६४१२, २०४३६). १.पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: समुदविजयसुत लाडलो; अंति: चोथमल० परम संतोष, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: च्यार पहर को दिन; अंति: विचारने चेतजोरे, गाथा-११. ७२२६६. अभिधानचिंतामणीनाममाला शेषसंग्रहसारोद्वार शेषनाममाला, संपूर्ण, वि. १८२५, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पाथेडी, प्रले. पं. मनोरविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, २०४५०). अभिधानचिंतामणि नाममाला-शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: निपात्यंते पदे पदे, श्लोक-२०४. ७२२६७. (+) अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १०x४०). ८ प्रकारीपूजा दहा, प्रा.,मा.गु., पद्य, आदि: अह पडिभगापसरं पयाहिण; अंति: गुरोर्दह धूपमुदारं, गाथा-२६, (वि. अलग-अलग गाथाक्रम में है. अष्टप्रकारी पूजा, चैत्यवंदन, मंगलदीवो व आरती सहित.) ७२२६८. (+#) सिचियायदेवी छंदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४७-५०). १. पे. नाम. सिचियायजीरी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: मुझ मन आस्या आज फली; अंति: सिद्धसूरि० प्रसन सही, गाथा-२१. २.पे. नाम. भवानी स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., पद्य, आदि: सानिध साचल मात तणी; अंति: हेम कहे सिचियाय तणा, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिचीयायदेवी स्तुति, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहि., पद्य, वि. १७७२, आदि: आज सफल दिन आया गढ; अंति: जुगति० साचलमात भवानी, गाथा-७. ४. पे. नाम. साचलदेवी गीत-सिचियाय, पृ. २अ, संपूर्ण. साचलदेवी गीत, चूहड, रा., पद्य, आदि: सरसति गणपति वीनवुने; अंति: चूहड० हसकर घूमर गावे, गाथा-५. ५. पे. नाम. साचल गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. साचलदेवी गीत, मु. तुलसी, रा., पद्य, आदि: साचल ज्यौति सवाई; अंति: गुणीयण तुलछै गाई, गाथा-६, (वि. प्रतिलेखकने गाथांक नहीं लिखा है.) ६. पे. नाम. देवीरो सोहलो, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: आगलि ओयण आंवलो तल; अंति: माहरी जात मनेवी, गाथा-७. ७. पे. नाम. सिचियायदेवी स्तुति, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मु. जयरतन, रा., पद्य, वि. १७६४, आदि: मन सुध ज्यां महिर कर; अंति: जैरतन० साचलमात कही, गाथा-३३. ८. पे. नाम. ओसियामाता छंद, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: देवी सेवी कोडिकल्याण; अंति: करजोडी सेवक हेम कहै, गाथा-५. ९. पे. नाम. भवानीदेवी गीत, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. मेघराज, रा., पद्य, आदि: आजसु आणंद वरतीया; अंति: मेघराज० गुण उधो गाई, गाथा-३. ७२२६९. (+) ऋषिमंडल स्तोत्र व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११.५, ११४३५). १.पे. नाम. ऋषिमंडल स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., पद्य, आदि: आद्यताक्षरसंलक्ष्य; अंति: लभ्यते पदमव्ययम्, श्लोक-७१. २.पे. नाम. आह्वाहन क्षमापनादि श्लोक संग्रह, पृ. ३आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह **, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: शांतिकंपुष्टीकश्चैव; अंति: क्षमस्व परमेश्वरि, श्लोक-३. ७२२७०. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, ११४३०-३३). १. पे. नाम. पंचमेरू कर्मभूमि स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: वंदु मन सुध विहरमाण; अंति: धरमसी०धरी ध्रमसी नमे, ढाल-३, गाथा-२६. २. पे. नाम. नमिजिन गीत, पृ. ३अ, संपूर्ण. नमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: षटदरसण जिनअंग भणीजे; अंति: जिन आनंदघन लहीये रे, गाथा-११. ७२२७१. (#) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-पक्खीसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३५-४०). साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. अंत ___ के पत्र नहीं हैं., प्रथम महाव्रत आलापक अपूर्ण तक है.) ७२२७४. आलोचना संग्रह, अपूर्ण, वि. १८८४, आश्विन शुक्ल, ३, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, प्रले. ग. मनरुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १८-२२४५०-५५). आलोयणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: (-); अंति: (अपठनीय), (पू.वि. प्रथम आलोचना अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४१७ ७२२७५. आहार दोष संग्रह, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २, दे., (२६.५४११, ५४२३). १. पे. नाम. आहार ९६ दोष सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. ४२ गोचरी दोष, प्रा., पद्य, आदि: आहाकम्म १ उद्देसिय; अंति: ९५ निसिहिए पारसीय ९६, गाथा-५. गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: अहा० आधाकर्मि ते; अंति: करी लिये ते दोष९६. २. पे. नाम. आहार दोष, पृ. ३अ, संपूर्ण. आहारदोष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: ते आहार केहवो पोते; अंति: पानभोजननो अर्थ कह्यो. ७२२७६. बोलसंग्रह- लघुसंग्रहणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२६४११.५, ११४३०-३५). लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: खंडद्वार जंबूद्वीपरा; अंति: (-). ७२२७७. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९५३, आश्विन शुक्ल, १५, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. बीकानेर, प्रले. उपा. कल्याणनिधान, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५४११, १४४३६). __ महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., प+ग., वि. १७२९, आदि: सकलसिधदायक सदा चोवीस; अंति: नामे पुन्यप्रकाश ए, ढाल-८, गाथा-७९. ७२२७८. (4) पार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४५५). पार्श्वजिन छंद, मु. खेतसी ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: विमल बुधदायक ब्रह्मा; अंति: सोईज देव असरण सरण, ___ गाथा-१४. ७२२७९. (+) जिनचंद्रसूरिगुरुगुण गीत व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ९, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १५४४५-४८). १. पे. नाम. जिनचंद्रसूरिगुरु गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि गीत, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसुरिंदनइ; अंति: कमलहरष सुख थाइरे, गाथा-९. २. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि वर्तमान गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरिगीत, मु. कान्ह, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरीसर वंद; अंति: कान्ह करइ निसदिस, गाथा-७. ३. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि वर्तमान गीत, पृ. १आ, संपूर्ण. जिनचंद्रसूरि गीत, वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरिंदा आव; अंति: गुरु गाया पातक नासइ, गाथा-९. ४. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरीसरू रे; अंति: कमलहरष सुखकार, गाथा-९. ५. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. विद्याविलास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरीसरू रे; अंति: पभणइ विद्याविलास रे, गाथा-७. ६.पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कान्ह, मा.गु., पद्य, आदि: समर्यां सुख साजसमापइ; अंति: कान्ह० लगि अविचल राज, गाथा-५. ७. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि दोधक, पृ. २आ, संपूर्ण. __मा.गु., पद्य, आदि: इलि उपरि अखियात; अंति: धर धूजत सिर धूणतां, गाथा-४. ८. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: मउज महिराण मानइ वडा; अंति: कमलहरष सहु लोक भाखइ, गाथा-४. ९. पे. नाम. जिनचंद्रसूरि गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. वा. कमलहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनचंदसूरिंद; अंति: कमलहरष० सफलउ थयउ देह, गाथा-८. ७२२८०. १४ गुणस्थानक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ३०४२९-३५). ६२ मार्गणास्थाने १४ गुणस्थानके १२२ उत्तरप्रकृति का उदय यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७२२८१. विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-२(१ से २)=१, कुल पे. ६, जैदे., (२६४११, १४-१७४३५-४०). १.पे. नाम. बासठमार्गणानामादि भंग यंत्र, पृ. ३अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. For Private and Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. मार्गणा ४२ से है.) २.पे. नाम. १४ गुणठाणा यंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण.. १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. मोहनीयकर्म बंधोदयसत्ता स्थान भांगा यंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. जीव स्थानके छकर्म भांगा यंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ५.पे. नाम. मोहनिय कर्म भांगा यंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. मोहनीयकर्म भांगा यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ६. पे. नाम. १४ जीवस्थाने नाम करम प्रकृति बंधोदय सत्तास्थान भांगा यंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. १४ जीवस्थाने नाम कर्मप्रकृति बंधोदय सत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ७२२८२. (+) विविध बोल संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११.५, ४४४२२). १.पे. नाम. बासठमार्गणानामादि भंगयंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. उपशमश्रेणि रचना यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: संज्वलन लोभः; अंति: अनंतानुबंधी लोभः. ३. पे. नाम. क्षपकश्रेणी रचना यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. मा.गु.,सं., यं., आदि: संज्वलन लोभः; अंति: अनंतानुबंधी लोभः. ४. पे. नाम. बासठमार्गणा मोहनीय करम बंधोदय सत्ता स्थान भांगा यंत्र, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है. ६२ मार्गणास्थाने मोहनीयकर्म बंधोदयसत्तास्थानभांगा यंत्र, मा.गु., गद्य, आदि: अथ बासठमार्गणाये; अंति: (-), (पू.वि. मार्गणा ३८ तक है.) ७२२८३. (+) चौदगुणठाणे आठकर्मप्रकृति भांगा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, ४७४२६-४०). १४ गुणस्थानक मे ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७२२८४. गुरुवंदनविचार व विधिसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १७X४०). १. पे. नाम. वांदणा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. __ संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वांदणा तीन प्रकारे; अंति: गुरुने पगे दीजे. २.पे. नाम. आवश्यकसूत्र का हिस्सा वंदनक अध्ययन का बालावबोध, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनक अध्ययनका बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: मुहणतय२५ देहा२५; अंति: कृष्ण परे क्षय गमाडे. ३. पे. नाम. नंदी विधि, पृ. ४अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: प्रथमं पवित्र नेपथ्य; अंति: भणे करेमो इच्छम्. ७२२८५. (+) प्रकरण व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४२). १.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, प्रले.पं. विनय, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. २.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. २आ-४आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: अणंतभागो य सिद्धि गओ, गाथा-५२. ३. पे. नाम. जिन मातापिता गति विचार गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४१९ सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., पद्य, आदि: नागेसु उसभपिआसेसाणं; अंति: माहिंदे अट्ठ मुचंति, गाथा-२. ४. पे. नाम. जिन जन्माभिषेक कलश संख्या, पृ. ४आ, संपूर्ण. जिनजन्माभिषेक कलश संख्या, प्रा., पद्य, आदि: पणविसजोयणंतुगो बारस; अंति: कोडिसत्तसट्ठीलक्खा य, गाथा-१. ७२२८६. वीसवीहरमानजिन नाम, वर्ण, आयु, शरीरादि विवरण यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११, ११४४४). विहरमान २० जिन परिवारादि कोष्टक, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७२२८७. रोहिणी तप व अष्टापदतीर्थ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३३-३६). १.पे. नाम. रोहिणीतपस्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. __ मु. दीपविजय कवि, मा.गु., पद्य, वि. १८५९, आदि: हां रे मारे वासुपूज; अंति: दीप० गुण गावीया, ढाल-६, गाथा-३१. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो अष्टापद मोह्यो; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है.) ७२२८९. गौतमस्वामी रास, ज्वर छंद व रोहिणीतपस्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४११.५, ११४३३-३८). १.पे. नाम. गाथा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., पद्य, वि. १४१२, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा लिखी है.) २. पे. नाम. ज्वर छंद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. रोहणीतप स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. ४. पे. नाम. रोहिणीतप स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मासपति रोहिणीतप कीजै; अंति: लालविजै० हृदय विचारौ, गाथा-४. ७२२९०. (+) आत्मावलोकन सह छाया व अन्यव, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित., दे., (२५४११, १२४३६). आत्मावलोकन, श्राव. दीपचंद शाह, अ.भा., गद्य, आदि: दप्पणदसणेण यससरुवं; अंति: मिस्सधम्म भणइ जिणो, गाथा-१४. आत्मावलोकन-छाया, सं., पद्य, आदि: दर्पण दर्शनेन च; अंति: मिश्रधर्मं भणति जिनो, श्लोक-१४. आत्मावलोकन-अन्यव, सं., गद्य, आदि: यथा कोपि नर: दर्पण; अंति: जिनो भणति कथयति. ७२२९२. मौनएकादशी गणनु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४१०.५, १२४५०). मौनएकादशीपर्व गणणं, सं., को., आदि: जंबूद्वीपे भरते; अंति: अरण्यनाथनाथाय नमः. ७२२९३. १८ नातरा सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४१०.५, ११४४०). कुबेरदत्तकुबेरदत्ता सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पेहलाने समरूं रे पास; अंति: हीतविजै गुण गाय रे. ढाल-३, गाथा-३०. ७२२९४. (+) रेखता व पदादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११,१२४३०). १. पे. नाम, औपदेशिक रेखता, पृ. १अ, संपूर्ण. जादुराय, पुहिं., पद्य, आदि: खलक एरेणका सुपना; अंति: कह जगराम जिन तेरा, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ऋषभजिन पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आदिजिन रेखता, पुहिं., पद्य, आदि: मुझे है चाव दरसन का; अंति: कुमत के० क्या होयगा, गाथा-५. ३. पे. नाम. साधारणजिन रेखता, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नवल, पुहिं., पद्य, आदि: करु आराधना तेरी हिये; अंति: नवल चेरा तुमारा है, गाथा-५. ४. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, पुहि., पद्य, आदि: प्रभु वीर हमारी क्या; अंति: जिनचंद ऊर तिहारी, गाथा-३. ५. पे. नाम. नेमिजिन पद, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., पद्य, आदि: राजुल पुकारै नेम; अंति: तुम्मरे चरण अनुसर, गाथा-४. ६. पे. नाम. महावीरजिन पद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. औपदेशिक पद, मु. जयराम, पुहिं., पद्य, आदि: श्रीजिनराज के असरन; अंति: समकितधर सीलवंत आज के, गाथा-४. ७. पे. नाम. चंद्रप्रभजिन पद, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. राजनंदन, पुहि., पद्य, आदि: छबि चंद्राप्रभु की, अंति: राजनंदन० गुण समरै, गाथा-३. ८. पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण.. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ७२२९५. (+) पच्चक्खाण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, ३४२६). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: (-), (पू.वि. पच्चक्खाण पारने का सूत्र अपूर्ण तक है.) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उगवा थिकउ आरंभ; अंति: (-). ७२२९६. (+) २४ दंडक यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १३४५६). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७२२९७. स्याद्वाद विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११.५, १५४५०-५६). स्याद्वाद विचार, सं., प+ग., आदि: चत्वार्येव प्रमाणानि; अंति: इत्यागमप्रमाणम्. ७२२९८. (2) श्लोक व बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५.५४७.५, ७X४८). १. पे. नाम. श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह-, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-३. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: बारस गुण अरिहंतना १२; अंति: साहु सगवीस अट्ठसयं. ३. पे. नाम. नवकारवाली १०८ गुण, पृ. १अ, संपूर्ण. ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: बार गुण अरिहंतना; अंति: थइ १०८ नोकारवाली. ४. पे. नाम. औपदेशिक पद-परनारी त्याग, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: परनारी परहरे; अंति: कहे ते पुरुष धन, गाथा-१. ७२२९९. करम छत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. *अबरख युक्त पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १२४२९). ___ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६८, आदि: करमथी को छूटे नही; अंति: धरमतणै परमाण जी, गाथा-३६. ७२३००. सूत्रकृतांगसूत्र-वीरस्तुति अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. २, प्रले. लज्जाराम मोढ ब्राह्मण; पठ. सा. रूपबाई आर्या, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५४१०.५, १२४३७). सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण.. ७२३०१. (+) ज्ञानप्रकाश व ज्योतिष विचारसंग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११.५,१४४४१-४५). For Private and Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ १. पे. नाम. ज्ञानप्रकाश, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानप्रदीप, सं., पद्य, आदिः (१)पढमो बारसमत्तो बीओ, (२)चरे लग्नेचरे सूर्ये; अंति: विद्यालाभं धनागमम, गाथा-२७. २. पे. नाम. ज्योतिष विचार संग्रह, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: दशराहै जे वार होय; अंति: (-), (पू.वि. मेषादिक बार लग्न विचार अपूर्ण तक है.) ७२३०२. (+) नवपदओलीनी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १४४४३-४८). सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: प्रथम प्रभातरी; अंति: पूजा साहमीवछल करवो. ७२३०३. (+) सम्यक्त्वपच्चीसी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, ५४३३-३६). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: जह कहितां यथा जेणे; अंति: (-). ७२३०४. (+#) नवतत्त्व प्रकरण व जीवलक्षण, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ४४३०). १.पे. नाम. नवतत्त्वे बंधमोक्षतत्त्व सह टबार्थ, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा बंधमोक्ष प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: नवतत्तालेसओ भणिआ, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-८ अपूर्ण से है.) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा बंधमोक्ष प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: कहिता काउ भण्यउ. २.पे. नाम. जीवस्सलक्खणंसह टबार्थ, पृ. २आ, संपूर्ण. जीवलक्षण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: नाणं च दंसणं चैव; अंति: एअंजीवस्स लक्खणं, गाथा-१. जीवलक्षण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निगोदिया जीवथी मांडी; अंति: जीवना लक्षण हुयइ. ७२३०५. (#) सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, अन्य. पं. चारित्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १४४३५-३८). नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६२, आदि: सकल कुशल कमलानो; अंति: दानविजय जयकार रे, गाथा-२३. ७२३०६. (+) इगवीसस्थानक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४५, माघ शुक्ल, ३, जीर्ण, पृ. ३, ले.स्थल. जेसलमेरनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४४०-४३). २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण१ विमाणार नयरी३; अंति: सिद्धसेणसूरि० भणिया, गाथा-७१. ७२३०७. नमस्कार पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१२, ९४३०). वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: पंचपरमेष्ठि नमस्कार; अंति: राधिश्चापि कदाचन, श्लोक-८. ७२३०८. (+#) ज्योतिष सारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८:५९). ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदि: तं नमामि जिनाधीशं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१०६ तक लिखा है.) ७२३११. देशांतरी छंद श्रीपार्श्वनाथजीनो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४.५४११, १८४४९). पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: स्तवीउंछंद देसंतरी, गाथा-४७. ७२३१२. वींटीविधि व वीतरागाष्टक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११, १०-१२४३२-३५). १.पे. नाम. वींटी विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. अंगूठीअभिमंत्रण विधि, मा.गु., गद्य, आदि: मेष संक्रांति हुवा; अंति: धार्यते दक्षिणे करे. २. पे. नाम. वीतरागाष्टक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: शिवं सिद्धिबुद्धिं; अंति: श्रीमानभूर्दर्चित, श्लोक-९. For Private and Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२३१३. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३०-३३). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमी पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ७२३१६. नंदीसूत्र सज्झाय व भोज्यपदार्थ नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४११, १३४३६-४०). १. पे. नाम. नंदीसूत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र स्वाध्याय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ तक लिखा है.) २.पे. नाम. भोज्यपदार्थ नाम, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.. मु. ऋषभ, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., बीच का कुछ अंश लिखा है.) ७२३१८. (+#) नवतत्व प्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, ५४३९-४४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुन्नं पावा; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-४३ अपूर्ण तक है.) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: साचो वस्तुनो स्वरूप; अंति: (-). ७२३१९. (+#) उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. त्रिपाठ-संशोधित. टीकादि का अंश नष्ट है, जैदे., (२५४११, ३-५४३३-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. अध्ययन-२ गाथा-१९ अपूर्ण से ४२ तक उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह , मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. चर्यापरिषहे संगमस्थविर कथा अपूर्ण से सत्कारपरिषहे इन्द्रदत्त पुरोहित कथा अपूर्ण तक है.) ७२३२०. (-) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-९(१ से ९)=४, कुल पे. ३, प्र.वि. अशुद्ध पाठ., जैदे., (२५४११.५, १३४२७-३०). १.पे. नाम. चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तोत्र, पृ. १०अ-११अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: प्राप्नोति सश्रियम्, श्लोक-३३, (पू.वि. श्लोक-७ अपूर्ण से २. पे. नाम. फलवृद्धि पार्श्वनाथ छंद, पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: परतापूरण प्रणमीयै; अंति: सेवकनइ सानिधि करि, गाथा-२१. ३. पे. नाम. पार्श्वजिनपद-गोडीजी, पृ. १२अ-१३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन द्यो सरसति; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२८ अपूर्ण तक है.) ७२३२१. (+) जीव आयु-देहमान, १०पच्चक्खाण व १२ पर्षदादि विचार संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, कुल पे. १३, पठ. श्राव. भेरुदान सेठी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११.५, ६-९४२९). १. पे. नाम. नारकी देहमानादि विचार, पृ. ३अ, संपूर्ण. नारकीआयुमान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: रत्नप्रभा साडा सात; अंति: तेत्रीस सागरोपम, (वि. कोष्ठकयुक्त.) २. पे. नाम. देवलोक देहमान-आयुमान विचार, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: सौधर्मदेवलोक सात; अंति: त्रण हाथ सात सागरोपम. ३. पे. नाम. सिद्ध के १५ भेद, पृ. ४अ, संपूर्ण. १५ भेद सिद्ध विचार, मा.गु., गद्य, आदि: जिनसिद्ध ते ऋषभादि; अंति: पुत्रादिक घणा सिद्ध. ४. पे. नाम. १० पच्चक्खाण फल, पृ. ४आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पच्चक्खाणना नाम नवका; अंति: वर्ष नरकायु तूटे. For Private and Personal Use Only Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ५. पे. नाम. समवसरण १२ पर्षदा विचार, पृ. ४आ, संपूर्ण. १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, आदि: एक गणधरनी बीजी; अंति: परषदा इशान कूणे बेसे. ६. पे. नाम. दश श्रावक तथा तेमनाग्रामादिक नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. महावीरजिन दशश्रावक नाम, नगरी, ऋद्धि आदि वर्णन कोष्ठक, मा.गु., को., आदि: आनंद वाणीज्यग्राम; अंति: १२ क्रोड धन ४ गोकुल. ७. पे. नाम. धर्म अंतराय तेरकाठीया नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, आदि: आसल १ मोह २ अवर्णवाद; अंति: तीव्र विषयाभिलाष, (वि. कोष्ठकयुक्त.) ८. पे. नाम. जीव की अल्पायु के ३ कारण, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: जीवहिंसा करतो थको; अंति: आहारादिक देतो थको. ९. पे. नाम. ५ प्रमाद नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मद्यपान विषय कषाय; अंति: निद्रा विकथा. १०. पे. नाम. ५ आश्रव नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: मिथ्यात्व १ अविरति २; अंति: ४ कषाय ५ योग. ११. पे. नाम. ५ संवर नाम, पृ. ५अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: १ सम्यक्त्व २ विरति; अंति: ४ अकषाय ५ अयोग. १२. पे. नाम. १२ दुर्लभता नाम, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., को., आदि: १ मनुष्यभव २ आर्य; अंति: १२ धर्मने विषे उद्यम. १३. पे. नाम. जीव निकलने के पांच स्थानक, पृ. ५आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: पग थकी निकले ते जीव; अंति: ते जीव मोक्षे जाय. ७२३२२. (+#) स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ७,९)=२, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १२४२९-३२). स्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदिः (-); अंति: (-), (पू.वि. कुंथुजिन स्तवन, गाथा-५ अपूर्ण से मुनिसुव्रतजिन स्तवन, गाथा-१ अपूर्ण तक व नेमिजिन स्तवन, गाथा-२ अपूर्ण से पार्श्वजिन स्तवन, गाथा-३ अपूर्ण तक नहीं है.) । ७२३२३. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १७४३९). स्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद; अंति: (-), (पू.वि. सुविधिजिन स्तवन व शीतलजिन स्तवन नहीं लिखा है व विमलजिन स्तवन अपूर्ण तक है.) ७२३२४. (#) जिनरक्षा स्तोत्र व लक्ष्मी स्तोत्र, संपूर्ण, वी. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३९-४२). १. पे. नाम. जिनरक्षा स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: श्रीजिनं भक्तितो; अंति: संपदश्च पदे पदे, श्लोक-१७. २. पे. नाम. लक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. प्रसन्नवरदा लक्ष्मी स्तोत्र, ऋ. अगस्त्य, सं., पद्य, आदि: जय कमलपत्राक्षि जय; अंति: चतुर्वर्ग फलप्रदम्, श्लोक-२९. ७२३२५. (+#) वास्तुप्रकरण, तपविधि व कालमांडला, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १८४५३-५६). १.पे. नाम. ज्योतिषरत्नमाला-वास्तुप्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ज्योतिषरत्नमाला, श्रीपति भट्ट, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ज्योतिषरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. २.पे. नाम. पंचमीतप विधि, पृ. २आ, संपूर्ण.. पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम तीर्थंकरनइं; अंति: उपवास इतरौ फेर. For Private and Personal Use Only Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. कालग्रहण विधि, पृ. २आ, संपूर्ण. कालमांडला विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: हिवत्रीजा प्रहरनी; अंति: मांडला करी राखइ. ७२३२६. (+) बासठमार्गणा यंत्र कोष्ठक, औषध संग्रह व वीसविहरमानजिन संख्या, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ३७४१०). १. पे. नाम. बासठमार्गणायंत्र कोष्ठक, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: १ नरकगति में; अंति: नो चरम नो अचरमशरीरी. २.पे. नाम. खांसी की गोली व अंजन बनाने की विधि, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक-१असे २अतक दाहिनी ओर के हाशिये में लिखी हुई है. औषध संग्रह **, सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. वीशविहरमानजिन संख्या, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति पत्रांक-२अपर हाशिये में लिखी हुई है. २० विहरमानजिन संख्या, मा.गु., गद्य, आदि: जंबूद्वीप भरते त्रीण; अंति: १०२४ विहरमान जिन २०. ७२३२७. स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, १४४२६-२९). १. पे. नाम. आदीश्वर स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशत्रुजयमंडण; अंति: नंदसूरि पाय सेवता, गाथा-४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. ___मा.गु., पद्य, आदि: बालापणे डावइ पाय; अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: हरखनता सुर निर्जर; अंति: मर्जन शसत निजाघ, श्लोक-४. ७२३२९. चतुर्विंशतिजिन सवैया, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५,१४४३६-३९). २४ जिन सवैया, मु. हरिसागर, मा.गु., पद्य, वि. १८१४, आदि: सेवी माता सरसती वचन; अंति: (-), (पू.वि. अंत के ___ पत्र नहीं हैं., चंद्रप्रभजिन स्तुति तक है.) ७२३३०. (#) अर्जुनमाली रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १८४३५-३८). अर्जुनमाली चौढालीयो, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल-४, गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७२३३१. शीलगुप्ति कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, ६x४२). शीलगुप्ति कुलक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं भणामिह; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) शीलगप्ति कलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: नमस्कार करी; अंति: (-), पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ७२३३२. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, ११४४०-४५). १.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जिनचंद, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेनरायजीरा बावा; अंति: प्रेमसदा जिनचंद, गाथा-६. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. धर्मसीह, मा.गु., पद्य, आदि: मोयो मोयो री पास; अंति: ध्रमसी० हित घरगट कै, गाथा-७. ७२३३३. जीवआयुमान व चक्रवर्ती नामादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. अंत में २४तीर्थंकर नाम शीर्षकमात्र देकर छोड़ दिया है., जैदे., (२४.५४१०.५, ३५४११-१४). १. पे. नाम. देवता मनुष्यादि आयुमान, पृ. १अ, संपूर्ण. विविध जीव आयुष्य विचार*, मा.गु., गद्य, आदि: देवतानो आउखो सागर ३३; अंति: चातक वर्ष ३०. २. पे. नाम. १२ चक्रवर्ती नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: भरथ १ सगर २ मघवा ३; अंति: जय११ ब्रह्मदत्त१२. For Private and Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. ९ वासुदेव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु, गद्य, आदि: त्रिपृष्ठिर द्विपृ०; अंतिः दत्त७ नारायण८ कृष्ण९. ४. पे. नाम. ९ बलदेव नाम, पृ. १अ. संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अचल१ विजय२ भद्र३; अंति: नंदन७ पद्म८ राम९. ५. पे. नाम. ९ प्रतिवासुदेव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अग्रीवर तारकर अंतिः रावण८ जरासिंधुर. ७२३३४. (#) आराधना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६×११.५, १६४३९-४४). आराधना, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं नमस्कार, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २९ अपूर्ण तक है.) ७२३३५. जिनकुशलसूरि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३७). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं माता सरस्वती; अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा - २९ अपूर्ण तक है.) नवीनप्रासादस्थापन मुहूर्त, सं., गद्य, आदि: खातर पूरणर उंबर३: अंतिः संघभक्तिच क्रिवते. ३. पे. नाम. प्रासाद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२३३६. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X१२.५, १३×३९). धन्ना अणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल नमी वीरना; अंतिः मेरु नमे बारोबार रे, गाथा- ११. ७२३३७. गृहजिनबिंबप्रतिष्ठाविधिआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५x१०.५, १८४५७). १. पे नाम. गृहविवस्थापना विधि, पृ. १अ संपूर्ण मा.गु.,सं., गद्य, आदिः पूर्वं भव्यमुहूर्त, अंति: पूजा प्रासादे. २. पे. नाम. नवीनप्रासादस्थापन पंचमुहर्त्तानि पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः कचिद द्वादशभागा अंति: तरत्वं ज्ञेयम्, (२५.५X१२, ६-९२०-२३). ७२३३८. (+#) साधुपंचप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, १८४४३-४८). "" साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रमणसूत्र अपूर्ण नमस्कार महामंत्र, तृतीयपद अपूर्ण तक है.) ७२३४०. (A) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १३४३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आचंताक्षरसंलक्ष्य अंतिः दोषैर्विमुच्यते श्लोक -८५. ७२३४१. (#) श्रावकअतिचार, वंदित्तुसूत्र व आलोचना सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १७X५३). १. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार - लघु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीज्ञाननै विषै; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम, बंदिसूत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वदेत्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा ४३. ३. पे. नाम. आलोचनासूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह, अंति: तस मिच्छामि दुक्कडम्. ७२३४२. बासठमार्गणा ४५ बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पेज १x१२ = १. सारणीयुक्त ग्रंथ, जैदे., ४२५ ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को. आदिः (-); अंति: (-). ७२३४३. खंडाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ (१) -३, जै. (२६४१२, २१४४३-४६). "" For Private and Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: ९०० नदी जाणवी, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., द्वार-४ अपूर्ण से है.) ७२३४४. महावीरजिन पारणादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १८४४३). १. पे. नाम. वीरवर्द्धमानस्वामीजी का पारणा, पृ. १अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: चोमासी इग्यारमी; अंति: विनाजी उत्तमजन संबंध, गाथा-१९, (वि. प्रतिलेखक ने दो गाथा को एक गिना है.) २. पे. नाम. चंदनबालासंबंध सज्झाय, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: नगर कोशंबी पधारीया; अंति: रूप वाजिंत्र वजारी, ढाल-३. ३. पे. नाम. १३ अभिग्रह के छुटे नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. महावीरजिन अभिग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: राजा की बेटी१ विकीभई; अंति: देहली पर रुदन१३. ७२३४६. (4) शनिछंद व अष्टकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२.५, १४४३८-४२). १. पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहिनर असुर सुरांपति; अंति: हेम०सुप्रसन्न शनीसवर, गाथा-१७. २. पे. नाम. शनि अष्टक, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ सूर्य १ सोमं २; अंति: पीडान भवेत् कदाचन, श्लोक-११. ३. पे. नाम. शनि जाप, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शनिभार्या नाम, सं., पद्य, आदि: धामिनी१ धखनी चैव२; अंति: पीडा न भवेच्च कदाचन, श्लोक-२. ४. पे. नाम. शनि स्तोत्र., पृ. २आ, संपूर्ण. शनि स्तोत्र, दशरथ राजा, सं., पद्य, आदि: कोणोंतको रौद्र यमोथ; अंति: निर्वाणपदं तथाते, श्लोक-९. ७२३४७. (#) भगवतीसूत्र व विचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १७४४०). १.पे. नाम. भगवतीसूत्रशतक-१२ उद्देश-५ पुद्गलशरीरादि विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-विचार संग्रह , संबद्ध, मा.गु., को., आदि: पांच शरीर आश्री१; अंति: पुद्गलादि १६ गुणलाभइ. २. पे. नाम. यात्राशकुनश्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: मार्जारयुद्ध कलह; अंति: च सिद्धिः कदाचित्, श्लोक-३. ३. पे. नाम. ज्योतिषविचार संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. ___ ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, आदि: खंजरीटे प्रथम; अंति: सुखं सौभाग्यं च. ४. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: स्वश्रियंश्रीमदहँत; अंति: ते भवंति जिनप्रभा, श्लोक-५. ७२३४८. पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन-अरिहंत गुण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. देवकर्ण (गुरु मु. नूणकरण); पठ. सा. डाई (गुरु सा. अजबाई); गुपि.सा. अजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३५-३८). पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, प्रा.,सं., प+ग., आदि: बारस गुण अरिहता; अति: (-), प्रतिपूर्ण. ७२३४९. (+) सिद्धचक्रआराधनविधि आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ८, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४१२, १६x४२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र आराधन विधि, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: आसोज सुदि ७ तथा; अंति: सहस्राणि गुणनौ. २. पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. २अ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण; अंति: नमोतिव्वत वोहरस्स, गाथा-५. ३. पे. नाम. देववंदन विधि, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० www.kobatirth.org ४. पे. नाम. पच्चक्खाण पारण विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: देहरै जाय निस्सही; अंति: कही आपरै घरे जाय. पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: एक खमासण देई, अंति: आंबिल प्रमुख करे. ५. पे. नाम. राईसंथारा विधि, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमंत सामंत महीवनाह; अंति: लाभाय भवक्षयाय, गाथा- २ . ३. पे. नाम. पंदरीया यंत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. संधारा विधि, प्रा. मा. गु, गद्य, आदि हिवै रात्रि सबै अंतिः प्रभाति पडिक्कमण करे. ६. पे. नाम. विसर्जन श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. देव क्षमापना श्लोक सं., पद्य, आदिः आह्वानं नैव जानामि, अंतिः प्रसीद परमेश्वरी, श्लोक-२. " ७. पे. नाम. ज्ञान पूजा, पृ. ३अ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: नमंति सामंत महीवनाणं; अंति: लाभाय भवक्खयाय, गाथा - २. ८. पे. नाम. ज्ञानधूप, पृ. ३अ, संपूर्ण. धूपपूजा श्लोक, सं., पद्य, आदि: मीनकुरंगमदागरसारं, अंति: गुरोर्दहधूपमुदारम्, श्लोक - १. ७२३५०, (+*) कल्पसूत्र व्याख्यानपीठिका आदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X१२, ११४३५-३८). १. पे. नाम. कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. कल्पसूत्र - पीठिका, संबद्ध, मा.गु., सं., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय, अंति: जयवंतो प्रवर्त्तो. २. पे. नाम. ज्ञान पहिरावणी गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनयंत्र संग्रह, मा.गु., पं., आदि: (-) अंति: (-). ७२३५१. (+) उपदेश बत्तीसी, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अशुद्ध पाठ. वे. (२५४१२, १०x३०-३४). उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आतमराम सयाने तु; अंति: वरु सीख सुनाई जी, गाथा-३२. ७२३५२. पार्श्वनाथ स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५. ५X१२, १२X४४). पार्श्वजिन छंद, मु. चानत, पुहिं, पद्य, आदि: नरेंद्र फणींद्र, अंतिः करज्यो आप समान, गाथा-१०. " ७२३५५ (+) बोल संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ४२७ ४१-४७४१०-२४). १. पे. नाम. अनागत २४ जिन नाम, आयु, देहमान, चक्रि, वासुदेव समय कोष्टक, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. अनागत २४ जिन नाम, पूर्वभव, आयु, देहमान, चक्रि, वासुदेव समय कोष्टक, मा.गु., को., आदि (-); अंति: (-). २. पे नाम, रूद्र विवरण, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only ११ रूद्र नाम, मा.गु., को. आदि: (-): अंति: (-). ७२३५६. () संबोधसत्तरी प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पठ उपा. गांगजी गणि (गुरु उपा. आसा गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२, १५X३७-४०) संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरुं अंतिः जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा- ७७. ७२३५७, () चैत्यवंदन, स्तवन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३. कुल पे ६ प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X१२, १२४३९). १. पे, नाम, नेमी स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: नेमजी चालो तो तुमने, अंति: रूपविजय जयकार जो, गाथा-७, (वि. प्रतिलेखक ने चार पदों को एक गाथा गिना है.) २. पे. नाम. पंचमी स्तवन, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. पच, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय अंतिः भगवंत भाव प्रशंसीउ, डाल-३, गाथा २१. " Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. पंचपरमेष्ठिगुणगर्भितजिन चैत्यवंदन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८पू, आदि: बार गुण अरिहंत देव; अंति: नय प्रणमै जग सार, गाथा-३. ४. पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. ३अ, संपूर्ण. २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: प्रथम तीर्थंकरतणा; अंति: नय प्रणमे धरी नेह, गाथा-३. ५. पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. ३अ, संपूर्ण. मु. जसवंत-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिजिणेसर साहबाजी; अंति: सीसने अविचल धाम, गाथा-६. ६. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: चंपक केतक पाडल जाई; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ७२३५८. स्तोत्र, मंत्र व औषध संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, १२४३७-४०). १. पे. नाम. जयतिहुअण स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: परमेसर सिरिपासनाह; अंति: चंद महवंछिय पूरिय, गाथा-२. २.पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. मंत्र संग्रह*, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: ॐ नमो कालियो गणि करि; अंति: कालानल तैल कह्यौ. ३. पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. औषध संग्रह*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७२३५९. (#) छंद, गीत व आरती संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. शिक्षा स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., पद्य, आदि: भगवति भारति चरण; अंति: धरम रंग ते रातो चोल, गाथा-१६. २. पे. नाम. जिनकुशलसूरि आरती, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गुरु राजा सारै; अति: सुत रिद्धि तन ताजा, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण... जै.क. बनारसीदास, पुहिं., पद्य, आदि: दरवाजे तेरे खोल; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ तक लिखा है, कर्तानाम वाली अंतिम गाथा नहीं लिखी है.) ७२३६०. (#) रुपकमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. वीरा ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पत्रांक नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १६४५०-५३). रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., पद्य, आदि: आदि जिणेसर आदिसउ; अंति: पभणइ श्रीपुण्यवंदे, गाथा-३२. ७२३६२. (२) रोहिणीतप स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १०४२८). रोहिणीतप स्तुति, मु. कांति, मा.गु., पद्य, आदि: सीव सुखदायक नायक ए; अंति: जे जिनभक्ति राचे जी, गाथा-४. ७२३६३. चौवीसतीर्थंकर स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५४११.५, २०४४६). १.पे. नाम. चौवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: वांदु श्रीआदिजिनंद; अंति: रिष० प्रभु दरसण दीजइ, गाथा-२६. २.पे. नाम. चौवीसतीर्थंकर स्तवन, पृ.१आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: नमु श्रीआदि अजितनाथ; अंति: ऋष० जंजाल मे नही जात, गाथा-१४. For Private and Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२९ . . हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२३६५. (#) साधुप्रतिक्रमणसूत्र व क्षमापना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १४४४६). १. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. ९अ-१०आ, संपूर्ण. पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहताणं० इच्छा; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, सूत्र-२१. २. पे. नाम. क्षमापना, पृ. १०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ८४ लाख जीवयोनि क्षमापना विचार, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: जो को विह पाणगणो; अंति: (-), (पू.वि. अंत के कुछ अंश नहीं हैं.) ७२३६६. (+#) जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,५४३०). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२२ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: भुवन कहतां विश्व; अंति: (-). ७२३६७. बलभद्र सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-३(१ से ३)=२, जैदे., (२५.५४११,११४३४). बलभद्रमुनि सज्झाय, मु. मयाचंद, मा.गु., पद्य, आदि: द्वारामतिथी; अंति: मुनि गुण हिअडे धरी, गाथा-१८, संपूर्ण. ७२३६८. (+#) अतीतचउवीसजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३-२(१ से २)=१, ले.स्थल. पट्टणा, प्रले. ग. लब्धिविजय (गुरु वा. रत्नविशाल, खरतरगच्छ); गुपि.वा. रत्नविशाल (गुरु मु. गुणरत्न, खरतरगच्छ); पठ. श्रावि. सिंदूरो कर्मचंद, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११,११४२७). २४ अतीतजिन स्तोत्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अतीत चउवीसी जिनवरराय; अंति: सदाई वंदइ जिन करजोडी, गाथा-४, संपूर्ण. ७२३६९. (+#) पद्मावती आराधना व श्लोकसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १२४३६). १. पे. नाम. पद्मावती आराधना, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हिव राणी पदमावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३४. २.पे. नाम. क्रिया गुप्ति श्लोक, पृ. २आ, संपूर्ण. क्रियापदगुप्ति श्लोक, सं., पद्य, आदि: श्रीनाभेयजिनाधीश; अंति: विनिष्ट विधिवशात, श्लोक-८. ३. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रा.,सं., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), श्लोक-१. ७२३७०. (+#) महावीर, शत्रुजय व आदिजिन स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४४०-४३). १.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७३, आदि: शासननायक शिवकरण चंद; अंति: नामे लहे अधिक जगीस ए, ढाल-३, गाथा-२७. २. पे. नाम. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. शत्रुजयतीर्थस्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धाचलमंडण; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-६ अपूर्ण तक है., वि. पाठांतरयुक्त है.) ३. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. आ. हीररत्नसूरि, पुहिं., पद्य, आदि: एसा जिन एशा जिन एशा; अंति: करजोड खडा इक दम है, गाथा-६. ४. पे. नाम. रहनेमी सझाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काउसग्गवृत रहनेम; अंति: सुख लेहस्ये रे, गाथा-१०. For Private and Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२३७१. जिनशासनसर्वज्ञ अधिकार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८७६, फाल्गुन शुक्ल, १३, मध्यम, पृ. ६-४(१ से ४)=२, जैदे., (२५.५४११.५, १४४४०-४३). पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सयाति परमांगता, (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., ऋषभदेव के पुत्र भरत के जन्म प्रसंग अपूर्ण से है., वि. मूल प्रतीक पाठ है.) पुराणहंडी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: छेदी परमगति पांमई, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ७२३७३. (#) जीव विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४५). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पइवं वीरं नमिउण; अंति: शांतिसूरि० समुद्दाओ, गाथा-५१. ७२३७५. नमस्कार महामंत्र छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १४४४२). नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: वंछितपूरण विध परे; अंति: कुशल रिद्ध ___ वंछित लहै, गाथा-१३. ७२३७६. (+#) अजितशांति स्तोत्र, पंचांगुली मंत्र व ज्वालामालिनि मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६-५(१ से ५)=१, कुल पे. ६, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १२४३५-३८). १.पे. नाम. अजितशांति स्तोत्र, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., पे.वि. अंतिम दो गाथाएँ-४१ एवं ४२ पत्रांक ६ के अंतिम भाग पर हैं. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (१)जिणवयणे आयरं कुणह, (२)अजिअसंति जिणनाहस्स, गाथा-४०, (पू.वि. गाथा-३८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पंचांगुलीदेवी मंत्रजपसाधन विधि, पृ. ६अ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: ॐ नमो ह्रीं श्रीं; अंति: जाप विधि गुरुगम्यं. ३. पे. नाम. घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, पृ. ६अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं घंटाकर्णो; अंति: नमोस्तु ते स्वाहा, श्लोक-४. ४. पे. नाम. ज्वालामालिनी मंत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण. ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं ऐं भयं घटीते; अंति: ह्रीं ह्रीं स्वाहा. ५. पे. नाम. उवसग्गहरं स्तोत्र, पृ. ६आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा.,सं., पद्य, आदि: उवसग्ग०१विसहर०२; अंति: पास जिणंद नमसीमि, गाथा-९. ६. पे. नाम. मंत्र संग्रह, पृ. ६आ, संपूर्ण. मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह , प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (अपठनीय). ७२३७७. (+) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. क्रमशः विधि तथा सूत्रों का प्रतीकरूप संकेत दिया गया है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४६५-७०). प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: प्रभात गुरू समीप आवी; अंति: मुहपती __ पडिलेहे. ७२३७८. (#) अहँनाम व लक्ष्मीनृसिंह स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. मु. जसकीर्ति, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १६x४४). १. पे. नाम. अर्हतनामस्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते परमात्म; अंति: प्रसादात्त्वयिस्थितं. २. पे. नाम. लक्ष्मीनृसिंह स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. शंकराचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीमत्पयोनिधि; अंति: सिंहोशरणं प्रपद्यैः, श्लोक-१६. For Private and Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४३१ ७२३७९. (2) कल्याणमंदिर स्तोत्र, मौनएकादशी स्तुति व मंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३६). १. पे. नाम. कल्याणमंदिर स्तोत्र, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: कुमुद० प्रपद्यते, श्लोक-४४. २.पे. नाम. मौनएकादशीपर्व स्तुति, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ३. पे. नाम. पद्मावतीदेवी मंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ आँएँ क्राँ ह्रीं; अंति: कीजै० वार २१ गुणवौ. ७२३८०. (#) नवकारमहामंत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४३६-३९). नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, आदि: अरिहंतनइ माहरउ; अंति: भणी सिद्ध वडा कहीयइ. ७२३८२. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०६, माघ कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १३४३८-४२). मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७६९, आदि: द्वारिका नगरी; अंति: मंगलमाला महेमहे जी, ढाल-३, गाथा-२५. ७२३८४. एकादशी व बीज स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, दे., (२६४११.५, १०४३०). १.पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: इग्यारसि अती रूअडी; अंति: संघ तणा निसदिस, गाथा-४. २. पे. नाम. बीज स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पूर मनोरथ माय, गाथा-४. ७२३८६. (#) आदीश्वरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, १७X४६). आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलउ पणमिय देव; अंति: विजयतिलय निरंजणो, गाथा-२१. ७२३८७. (+) नंदीश्वरद्वीप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४४३). नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप.,मा.गु., पद्य, आदि: सिरिनिलय जंबूदीपोय; अंति: मेरु सुभत्तइ बोलइ, गाथा-३६. ७२३८८. (+) अष्टोत्तरीस्नात्रविधि व सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १९४४२). १. पे. नाम. अष्टोत्तरीस्नात्र विधि, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: तिहां प्रथम उपगरण; अंति: (१)जण जणनइ चालि अरहियइ, (२)काउसग्ग कीजै. २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: गौतम गणधर प्रणमी; अंति: श्रीकमलविजयगुरु शीश, गाथा-१३. ७२३८९. (2) भाष्य त्रय, संपूर्ण, वि. १७४०, पौष शुक्ल, ६, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. नारदपुरीनगर, पठ.पं. गंभीरविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १५४४७-५२). भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: वंदित्तु वंदणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाह, भाष्य-३, गाथा-१४८. ७२३९१. (+) आदिजिन हरियाली सहटबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४११.५, ७X४२). For Private and Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३२ सत कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आदिजिन हरियाली, मा.गु., पद्य, आदि: एक अचंभो उपनो कहो जी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-९ अपूर्ण तक लिखा है.) आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: निमित्तइ शिष्य गुरु; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७२३९२. अष्टकर्म विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२६४११.५, १४४५२). ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदि: आठकर्म केस्या पहिलौ; अंति: वीर्य गुणने रोके. ७२३९३. (+#) मौनएकादशी गणर्नु, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १८४५३). मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, आदि: श्रीमहाजससर्वज्ञाय; अंति: अरण्यदेवनाथाय नमः. ७२३९४. सप्तनयस्वरुप विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, जैदे., (२५.५४११,१५४६०-६४). सप्तनय स्वरूप, सं., गद्य, आदि: स्यात्कार मुद्रिता; अंति: दृष्टिभिर्नमन्यते. ७२३९५. (#) माणिभद्र छंद, संपूर्ण, वि. १८७७, भाद्रपद कृष्ण, ४, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. कालद्रीनगर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १६x४५). माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति तत सेवित सुभ; अंति: राजरतन पाठक० जय करण, गाथा-२१. ७२३९६. (#) कमलावती सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३२). कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., पद्य, आदि: महिला में बेठी राणी; अंति: नित नित मंगलमाल, गाथा-३८. ७२३९७. (#) पच्चक्खाणसूत्र, पच्चखाणआगार संख्या, दसपच्चक्खाणसूत्र विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३३-३६). १.पे. नाम. पच्चक्खाणसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: साइमं० सव्वस वोसिरइ. २. पे. नाम. प्रत्याख्यानआगार संख्या गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: इम गंठिस्सहि मुठसहि; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-३. ३. पे. नाम. दसपच्चक्खाण विचार, प्र. २अ-२आ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण विचार सूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: जे श्रावक चउदे नियम; अंति: विचार शास्त्र में छै. ७२३९९. (+) अष्टान्हिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११.५, १७४४७). अष्टाह्निकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा गुरुं गिरं; अंति: तंस्तात्पुण्यवृद्धये. ७२४००. लघुशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२६४११, ११४३०-३३). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांता शंतनीशांता; अंति: श्रीमानदेव० शासनम्, श्लोक-१९. ७२४०३. बारमासा, गंहुली व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११.५, १२४३७). १. पे. नाम. नेमिनाथ बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. उत्तमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वाल्हा श्रावण मासे; अंति: कहे उत्तमविजय विलास, गाथा-१४. २. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुणो स्वामि हमारा रे; अंति: लीउंसुखदिन बलियो रे, गाथा-८. ३. पे. नाम. गुरु गहुंली, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण.. उदयविमलसोमसूरिगुरुगुण गहुली, मु. रंगसोम, मा.गु., पद्य, आदि: सरस्वति मात संभारि; अंति: मंगल कारज करस्ये रे, गाथा-११. For Private and Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२४०४. (+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४२९-३२). औपदेशिक श्लोक संग्रह*, पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: धर्मे रागः श्रुतौ; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दान की महिमा अपूर्ण तक है.) ७२४०५. लघुशांति, पार्श्वजिन स्तवन व कल्याणमंदिर स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४१०.५, १३४३०-३५). १.पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. १०अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: (-); अंति: सूर श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७, (पू.वि. श्लोक-१० अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो पार्श्वनाथाय; अंति: पूरिय मे वंछितं नाथ. ३. पे. नाम. पद्मप्रभजिन पद, पृ. १०आ-१२आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: (-), (पू.वि. श्लोक-३६ अपूर्ण तक है.) ७२४०८. (#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १६८७, भाद्रपद कृष्ण, ९, जीर्ण, पृ. २, प्रले. ग. विनयवर्द्धण (खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३७-४०). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवे राणी पद्मावती; अंति: कहइ पापथी छुटइ ततकाल, ढाल-३, गाथा-३३. ७२४०९. (#) नंदीसूत्र, षट्लेश्या लक्षण व संबोधसप्ततिकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, फाल्गुन कृष्ण, ७, सोमवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, ले.स्थल. भिन्नमाल, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४४५-४८). १.पे. नाम. नंदीसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी वियाणओ; अंति: नाणस्स परूवणा वुच्छं, गाथा-५०. २.पे. नाम. संबोधसप्ततिका, पृ. २अ-४आ, संपूर्ण. आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: सो लहई नत्थि संदेहो, गाथा-९१. ३. पे. नाम. षट्लेश्या लक्षण, पृ. ४आ, संपूर्ण. षट्लेश्या लक्षण श्लोक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: आर्त्तरौद्र सदा; अंति: भणियं अत्थं जिणंदेहि, श्लोक-६. ४. पे. नाम. जैनधार्मिक श्लोक संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७२४११. (+) भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. पंथेडीग्राम, प्रले.पं. तीर्थविजय गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४१२, ९x४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः, श्लोक-४४. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: भक्ते करीने देवा; अंति: मानतुंगं अवशा सिघ्रं. ७२४१२. (+) नारदऋषि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४११, १७४४०). नारदऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तिण कालै नेते समै; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१७ तक लिखा है.) ७२४१७. (+#) हितशिक्षाबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ११४३५-४०). For Private and Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद्य, आदि: सकल विमल गुन कलित; अंति: क्षमादिकल्यान सुबंदन, गाथा-३३. ७२४१९. (4) सज्झाय, पद व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. १०, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५-३९). १. पे. नाम. नेमिजिन बारमासो, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावणमासे स्वामि; अंति: कवियण. नवनिध पामीरे, गाथा-१३. २. पे. नाम. नमस्कारमंत्र स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंगे; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. २अ, संपूर्ण. मु. आनंदराम, पुहिं., पद्य, आदि: छोटी सी जान जरा से; अंति: संपति बहु करणा वै, गाथा-३. ४. पे. नाम. सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. गुणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जगदानंदन गुणनीलोरे; अंति: गुणविजय० फली आसरे, गाथा-१६. ५. पे. नाम. वैरकुमार सज्झाय, पृ. ३अ, संपूर्ण. वज्रस्वामी सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: कहइ सुनंदा बांह पसार; अंति: भुवनकीरत०जिनशासन थयौ, गाथा-९. ६. पे. नाम. चार विकथानिवारण गीत, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. ४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., पद्य, आदि: वृथा करम बांधत जीउ; अंति: करो भवभय विस्तारी, गाथा-३. ७. पे. नाम. ४ कषाय परिहार, पृ. ३आ, संपूर्ण. परनिंदात्याग पद, भैया, पुहि., पद्य, आदि: परनिंदा त्याग करि मन; अंति: निगोद तेरो घर रे, पद-१. ८. पे. नाम. निंदात्याग सज्झाय, पृ. ३आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: निंदा म करिस्यो __ कोई; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-५. ९. पे. नाम. स्वार्थ सज्झाय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-स्वार्थविषये, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: सैं मुख जिनवर उपदिसै; अंति: श्रीसार० पर उपगार रे, गाथा-२०. १०. पे. नाम. चार शरणा, पृ. ४आ, संपूर्ण. ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: (-); अंति: भवनो हूं पारो जी, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रतिलेखक ने मात्र अंतिम तीन गाथाएँ ही लिखी हैं.) ७२४२१. स्तवन, पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, जैदे., (२५४१२, १९x४२-४५). १.पे. नाम. जिनगुण स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. साधारणजिन स्तवन, रा., पद्य, आदि: प्रभु तुम तारिक छो; अंति: तुम गुण पारि उतारी, गाथा-५. २.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. श्रावकाचार सज्झाय, रा., पद्य, आदि: म्हारे पैरण लज्या; अंति: तप भाव सिंहासण बैसणो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: ज्ञान जिनवरजी आणै; अंति: पाम्या केवलज्ञानोरे, गाथा-६. ४. पे. नाम. आध्यात्मिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: आरण अजब बनाया हो; अंति: लोहे पारस पाया, गाथा-४. ५. पे. नाम. चवदै सै बावन गणधर स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. 6 . For Private and Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४३५ १४५२ गणधर स्तवन, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम जिनेसर ऋषभ जिण; अंति: रोग सोग नवि होय लगार, गाथा-८. ७२४२२. (#) कामदेव श्रावक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११,१३४३४). कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., पद्य, वि. १८८६, आदि: एक दिन इंद्रे; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७२४२३. औपदेशिक व गुरुगुण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. शायमल ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४११.५, १६४३७-४०). १. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: जाग रे सुग्यानी जीव; अंति: लहिज्यो सुख खेम, गाथा-१८. २.पे. नाम. गुरुगुण सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: हम भोरे पथक दुरमति; अंति: भव थित पाकी भव तणी, गाथा-१०. ७२४२४. (#) चार मंगल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १९४४५-४८). ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: अनंत चोवीसी जे नमु; अंति: (-), ढाल-४, (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३८ तक लिखा है.) ७२४२६. शांतिजिन पद, आदिजिन स्तवन व पार्श्वजिन पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२४४११.५, १३४३५-३८). १.पे. नाम. शांतिजिन पद, पृ. १अ, संपूर्ण.. शांतिजिन स्तवन, पुहि., पद्य, आदि: प्रात को समयो भयो; अंति: को मेटे दुःखि फंदरे, गाथा-६. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. शिवकीर्ति, पुहिं., पद्य, आदि: दरसण द्यो प्रभु ऋषभ; अंति: टालो दुःख का फंदा, गाथा-७. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. शिवकीर्ति, पुहि., पद्य, आदि: आज प्यारा पासजी तोसु; अंति: शिवकीर्तिः माहि, गाथा-४. ७२४२७. सुगुरु पच्चीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४०-४३). सुगुरुपच्चीशी, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सांभलजो सहूऐ मन आण; अंति: रूप०गुणै नमता पुरीसा, गाथा-२५. ७२४२९. (#) युगप्रधान विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. जैदे., (२५४११.५, १३४४५-४८). युगप्रधान संख्या लक्षणादि विचार, मा.गु., गद्य, आदि: इहां पंचमारक माहि; अंति: (-), (पू.वि. "तीर्थंकर वचन" प्रसंग अपूर्ण तक है.) ७२४३०.(+) पच्चक्खाणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, आश्विन अधिकमास शुक्ल, १३, शुक्रवार, श्रेष्ठ, पृ. ३, ले.स्थल. खंभातबंदर, प्रसं. पंडित. देवकरणजी (गुरु पं. दुलीचंद-शिष्य), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१२, ५४३७). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए नमुक्कार; अंति: आगारेणं वोसिरामि. प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ",मा.गु., गद्य, आदि: सूर्य उग्या थकि उगइ; अंति: तज्यु छू. ७२४३२. (+2) पट्टावली व अठारहगोत्र नाम, संपूर्ण, वि. १६२७, वैशाख शुक्ल, २, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. उमियापुर, प्रले. मु. पद्मसुंदर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १३४३०-३४). १. पे. नाम. उपकेशगच्छीय पट्टावली, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. पट्टावली-उपकेशगच्छीय, आ. सिद्धसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनौमि; अंति: पास्तेनास्ति संदेहः, गाथा-४९. २. पे. नाम. अठारहगोत्र नाम, पृ. ३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १८ गोत्र नाम, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथम गोत्र तातहड; अंति: जाती १८ एवं गोत्र १८. ७२४३४. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-९ नमिपवज्जा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, १६४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१९ प्रतीक पाठ तक लिखा है.) ७२४३५. (#) पुद्गलपरावर्तन विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२४.५४११.५, १७४३६-३९). पुद्गलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, आदि: हवै धर्मध्याननी पहिल; अंति: (-), (पू.वि. महाशक्तिवंत इंद्रादिक लोकपाल __ का वर्णन अपूर्ण तक है.) ७२४३७. (+#) पिंडविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११, १४४४५-४८). पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविंदविंदवंदिय पयार; अंति: बोहिंतु सोहिंतु अ, गाथा-१०३. ७२४३८. (#) नेमराजिमतीरास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४०-४३). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाये पणमी करी; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ७२४३९. (#) पच्चक्खाणसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २.प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे.. (२४.५४११, १२४३७-४०). १.पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: आगारेणं वोसिरामि. २. पे. नाम. धारणा प्रत्याख्यान, पृ. १आ, संपूर्ण. धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: अरिहंतसक्खियं सिद्ध; अंति: मह० सव्व० वोसिरामि. ७२४४०. लघुशांति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६.५४११.५, १०४४१). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांत; अंति: सूरि श्रीमानदेवश्च, श्लोक-१७. ७२४४१. () स्तवन व सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-२(१,३)=३, कुल पे. ११, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०, १३४४०-४५). १.पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, रा., पद्य, आदिः (-); अंति: उदयरत्न० श्रीमहावीर, गाथा-६, (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, पृ. २अ, संपूर्ण, पे.वि. प्रतिलेखक ने अदासीरजिन स्तवन नाम दिया है. ग. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: आदीसर अष्टापद सीधा; अंति: जिनहरख चैत्यवंदन करी, गाथा-६. ३. पे. नाम. सोलसती सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. १६ सती सज्झाय, मु. खेमराज, मा.गु., पद्य, आदि: सील सुरंगी भांत कै; अंति: खेमराज० सदा पद्मावति, गाथा-७. ४. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. पं. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पास जिनेसर माहरै मन; अंति: विनयविजय० दोलत थाय, गाथा-५. ५. पे. नाम. नेमराजुल स्तवन, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: तोरण आया साहिबा हो; अंति: (-), (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण मात्र है.) ६. पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: (-); अंति: सहु थास्यै नेमजी कै, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण से है.) For Private and Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७. पे. नाम. हीरविजयसूरि सज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बेकर जोडीजी वीनवू; अंति: होजो मुझ आणंद, गाथा-११. ८.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: थलपति प्राण आधार, गाथा-५. ९. पे. नाम. पद्मप्रभु स्तवन, पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण. पद्मप्रभुजिन स्तवन, मु. कनक, मा.गु., पद्य, आदि: सूरत ताहरी देखनें; अंति: कनक० तुम पाय सेवरै, गाथा-९. १०. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७६, आदि: राणिकपुर रलियामणोरे; अंति: समयसुंदर सुख थाय, गाथा-७. ११. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमविसयल जिणंद; अंति: (-). ७२४४२. (#) तीर्थावली गीत व हीरविजयसूरि सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १२४२७-३०). १.पे. नाम. तीर्थावली गीत, पृ. ४अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-१५, (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से है.) । २. पे. नाम. हीरविजयसूरि स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीजी वीनवं, अंति: होजो मुझ आणंद, गाथा-१५. ७२४४३. (4) सरस्वती छंद, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १०x२२-२५). . सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकार धरा उधरणं वेद; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१२ अपूर्ण तक ७२४४७. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११.५, १८४४७). १.पे. नाम. संथारापच्चक्खाणविधि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: अरहंता मंगलं मज्झ; अंति: सव्वं तिविहेण वोसिरे, गाथा-१६. २. पे. नाम. समाधिमरण, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. समाधिमरण भाषा, जै.क. द्यानतराय, हिं., पद्य, आदि: गौतम स्वामी वंदों; अंति: मारी जैन धरम जैवंता, गाथा-१०. ३. पे. नाम. आतुरकाल आराधना, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: प्रथम इरियावहीपडिकमी; अंति: सव्वं तिविहेणं वोसरे, गाथा-१४. ७२४४८. (+) स्तवन व गीत संग्रह, संपूर्ण, वि. १७८४, फाल्गुन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, ८x२९). १.पे. नाम. शांतिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पं. रंगवल्लभ गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शांतिजिणेसर साहिब; अंति: रंगवल्लभ गुण गाया रे, गाथा-७. २.पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पं. रंगवल्लभ गणि, मा.गु., पद्य, आदि: सफल दिवस हु तौ; अंति: त्रिभुवन धणी जी, गाथा-५. ३. पे. नाम. जिनकुशलसूरि गीत, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पं. रंगवल्लभ गणि, मा.गु., पद्य, आदि: श्री जिनकुशलसूरी; अंति: अधिक आणंद, गाथा-७. ७२४४९. पार्श्वजिन स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५). For Private and Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., पच, आदि धरणोरगेंद्र सुरपति, अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा २८ अपूर्ण तक है.) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२४५१. (+) कृष्णवासुदेव व द्रौपदीसती लावणी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, अन्य. सा. चुनाजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, दे., (२६x१२, १७५२). १. पे. नाम. कृष्णवासुदेव लावणी, पृ. १अ - २अ, संपूर्ण. मु. हीरालाल, रा., पद्य, वि. १९५५ -१९५६, आदि: पुरी दुवारका बासुदेव, अंति: हीरालाल मंगल गावे. २. पे नाम, द्रौपदीसती लावणी, पृ. २अ २आ, संपूर्ण, मु. हीरालाल, रा., पद्य, आदि: पांडव मथुरा बसी है; अंति: (१) हीरालाल गुण गावे, (२) संग हुइ हे व्रतधारी (वि. गाथांक नहीं लिखा है.) ७२४५२, (#) साधुआतिचार व पचक्खाणादि गाथा संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५. ५X११.५, १३x४४). १. पे. नाम. साधुअतिचारचिंतवन गाथा, पृ. १अ संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: सयणासणन्न पाणे, अंति: वितहायरणेय अइयरो, गाथा- १. י' २. पे. नाम. गोचरी आलोअण गाथा, पृ. १अ संपूर्ण, प्रा., पद्य, आदि: कालो गोअचरिया थंडिल, अंति: जंकिंजिमणुअत्तं, गाथा- १. ३. पे. नाम. प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, पृ. १.अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: दोचेव नमुक्कारे आगार; अंति: हवंति सेसेसु चत्तारि, गाथा-२. ४. पे. नाम. प्रत्याख्यानसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार, अंति: वत्तियागारेण वोसिरइ, (वि. अंत में पाणी के पच्चक्खाण पारने की गाथा-विधि लिखा है.) 1 ७२४५३. (+) जलयात्राविधि व स्तुति, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-५(१ से ५)= १, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x११, १३x२९). १. पे नाम, जलयात्रा विधि, पृ. ६अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं है. मा.गु., सं., गद्य, आदि (-); अंति: संघ सहित आनय (पू. वि. श्रुतदेवता स्तुति अपूर्ण से हैं.) २. पे. नाम. विमलाचल स्तुति, पृ. ६अ ६आ, संपूर्ण शत्रुंजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., पद्य, आदि आगे पूरव वार निवाणु, अंतिः सिद्धि हमारी जी, गाधा ४. ७२४५४. (+) धन्नाअणगार सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, जैवे. (२५४१२, १३३४-४०). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर वचन चित्तधारी; अंति: अमर० नमतां होय नवनिध, गाथा - १९, संपूर्ण. , ७२४५५. (+) अजितशांति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित., जैदे., ( २६११.५, १२X३३-३६). अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जियसव्वभयं संत अंतिः जिणववणे आयरं कुणह गाथा ४०. ७२४५६. (+#) संघयणी सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ- संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२५४१२, १९४४०-४५), " वृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि प्रा. पद्म, वि. १२वी आदि नमिठं अरिहंताई ठिइ अंति: (-). ( पू. वि. गाथा- ११६ अपूर्ण तक है.) "" ७२४५७, (F) हमची सीख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४१०.५, १४४३७). औपदेशिक हमची - जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतीनइ चरणे नमी रे; अंतिः व्रधमान अजुयालइ रे, गाथा- २३. For Private and Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२४५९. दशवैकालिकसूत्र की सझाय, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., दे., (२५४१२, १३४२९). दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., पद्य, वि. १७१७, आदि: धरम मंगल महिमा नीलो; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-३ गाथा-४ अपूर्ण तक है.) ७२४६०. (+#) महावीर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ११४३३). महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयज्जा समणे भयवं; अंति: पढह कयं अभयसूरीहिं, गाथा-२२. ७२४६१. नवकारमंत्ररी सीझाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२४.५४१०.५, १२४४२-४५). नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: लभर्देविजै० मंगलमालै, गाथा-७. ७२४६३. (+#) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १४४३३). पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., आदि: मुहपत्तिवंदणय; अंति: सदा ए पडिकमणो छइ. ७२४६५. (#) नवतत्त्व प्रकरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११,१५४४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्णं; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ७२४६६. (2) भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ९४२५). भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पडहा तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ७२४६७. (+#) ढुंढकमतनिरसन चर्चा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. जालोरदुर्ग, प्रले. मु. सुखसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १३४३२). ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि.,प्रा., गद्य, आदि: दुढियो कहे हु; अति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "एक दिन पुरिमतालनगर वाहिर वीरस्वामी इति इत्यर्थ बोल अधुरा छे" इतना लिख कर प्र.ले. नाम व स्थल लिख दिया है.) ७२४६८. (+#) सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४-२(१ से २)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. हुंडी में प्रतिलेखक ने सात स्मरण ऐसा लिखा है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नमिउण स्तोत्र श्लोक-२२ अपूर्ण से अजितशांति गाथा-३१ अपूर्ण तक है.) ७२४७०. (4) चौबोलीवार्ता व सझाय, अपूर्ण, वि. १७८३, भाद्रपद कृष्ण, ३, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. वडलुनगर, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१०.५, १५४४५-४८). १.पे. नाम. चौबोली वार्ता, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., वि. १७८३, भाद्रपद कृष्ण, ३, ले.स्थल. वडलूनगर. चोबोल प्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: उजेणीपुर आवीयो, गाथा-२१, (पू.वि. गाथा-१५ से है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: सुगुणां केरी प्रीतडी; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-२१ तक लिखा है.) ७२४७१. विविध बोलसंग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ७, जैदे., (२५४११.५, १६४५०). १. पे. नाम. दश बोल दुर्लभता, पृ. १अ, संपूर्ण.. १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलै बोलै मनुष्यभव; अंति: वीर्य फेरवणो दुर्लभ, अंक-१०. २. पे. नाम. ११ बोल आरंभपरिग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. ११ आरंभपरिग्रह बोल, रा., गद्य, आदि: पहिलै बोले जीव आरंभ; अंति: केवलज्ञान पामें, अंक-११. For Private and Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३. पे. नाम. ब्रह्मचर्यनी नववाड, पृ. १अ, संपूर्ण. ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, आदि: पहली वाडि ब्रह्मचारी; अंति: तो रतनरो दृष्टांत. ४. पे. नाम. अयोग्य जीव के ५ लक्षण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ५ बोल-धर्म रहित अयोग्य जीव के लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले अहंकारी; अंति: जीव धरम पावे नही, अंक-५. ५. पे. नाम. वीतरागधर्म प्राप्ति के आठ बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. धर्मी जीव के ८ लक्षण, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले हासोदमे; अंति: तो वीतरागरो धरम पावे, अंक-८. ६.पे. नाम. तीर्थंकरगोत्रबंध के २० बोल, पृ. १आ, संपूर्ण. तीर्थंकरनामकर्मबंध के २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले तीर्थंकर; अंति: मारग दीपावेतो. ७. पे. नाम. दया के आठ बोल, पृ. १आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. दयामाता ८ उपमा, मा.गु., गद्य, आदि: पहिले बोले भयवंत जीव; अंति: (-), (पू.वि. बोल-३ अपूर्ण तक है.) ७२४७२. (+) पौषधविधिसंग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११, ५४३५). संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसीहि निसीहि निसीहि; अंति: इअसमत्तं मए गहिरं, गाथा-१४. संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: बाह्याभ्यंतर परिग्रह; अंति: उचरवी सम्यक्त्व लीइ. ७२४७३. (#) स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. वाल्हीनगर, प्रले. पं. प्रेमसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १२४२७). स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदिः (१)पूर्वे बाजोट ऊपर, (२)मुक्तालंकार विकार; अंति: जिण जायो रहि दुखि, कुसुमांजलि-५. ७२४७६. देहरावंदन विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १४४४०). जिनवंदनफल स्तवन, मु. कीर्तिविमल, मा.गु., पद्य, आदि: जिन चोवीसे करी; अंति: कीरतविमल सुखचार, गाथा-११. ७२४७९. सनतकुमारचक्रवर्ती प्रबंध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १४४४३-४८). सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, आदि: सणंकुमारेणं भंते; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "संयुतं परमाणं पडिलाभेता भवइ इति भगवतीसूत्रे वाक्यं" पाठ तक लिखा है.) ७२४८२. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र व साधारणजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. द्विपाठ., जैदे., (२५.५४११.५, १२४३८). १.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. राजनगर, प्रले. ग. प्रेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. आ. कल्याणसागरसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: ऋषभदेवजिनं जिननायकं; अंति: कल्याणसागरसूरि जयकरी, गाथा-२७. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: श्रीअरिहंत जिनेश्वर; अंति: जो तू सो देवी अंबाई, गाथा-४. ७२४८३. (#) अमीझरा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, १२४३०). पार्श्वजिन स्तवन-अमीझरा, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: परतखि पास अमीझरौ भेट; अंति: दिन अधिकई दावइ रे, गाथा-९. ७२४८४. (+) विषयपच्चीसी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२५४११, १५४४०). विषयपच्चीसी, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जी हो वीर कहइ गोतम; अंति: भविअण छंडउ काम विकार, गाथा-२५. ७२४८५. नागिलानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२६४१२, १२४५०). नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: भूदेव भाई घर आवीया; अंति: समयसुंदर सुखकार रे, गाथा-१७. For Private and Personal Use Only Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२४८६. मधुबिंदु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., ( २४४९.५, ११x४०). मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसति मुझ रे माता, अंति: परमै सुखमै पाइयो, गाथा - १०. ७२४८७. अष्टमीतिथी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १. दे. (२६४१२, १०x३२). יי गाथा - १०. ७२४८९. स्वरोदय शास्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ४, दे., (२५.५x११. ९४२४). अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: अष्टमी जिन चंद्रप्रभ; अंति: राज० अष्टमी पोसह सार, गाथा- ४. ७२४८८. पडीकमणुसामायिकपोसहफल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. महिमाविजय (गुरु मु. हीरविजय); पठ. श्रावि. सूर्यबाई. प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२५.५x११.५, ११४३०). पौषधसामाइक सज्झाय, पं. सुमतिकमल, मा.गु., पद्य, आदि विरजिणवर रे पासे अंतिः सुमती० संपतिते जन लहे, , स्वरोदय शास्त्र, मु. कपुरचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९०७, आदि: नमो आदी अरिहंत देव, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा- ३० अपूर्ण तक लिखा है.) ७२४९२. सकलकुशलवल्लिचैत्यवंदनसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, जैवे. (२५x११.५, १३४३३)सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., पद्य, आदि: सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे शांतिनाथः, श्लोक-१. सकलकुशलवलि चैत्यवंदनसूत्र- बालावबोध, मा.गु, गद्य, आदिः सभवतू० क० थाउ संघने, अंतिः भवतु एवं श्रीवीतराग. 1 ७२४९३. (+#) तीर्थवंदना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, १४४३५-४०). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्रमानंदकारी, श्लोक-१०. ७२४९४. (+#) सीमंधरस्वामि स्तोत्र व शीतलनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैवे. (२५x१०.५. १७४५४). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामि स्तोत्र, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु, पद्य, आदि: सफल संसार अवतार हुं, अंतिः भगतिलाभै० मन तणी, गाथा - १८. २. पे नाम, शीतलनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. शीतलजिन स्तवन- अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., पद्य, आदि: मोरा साहिब हो सुणि; अंति समयसुंदर जनमनमोह ए, गाथा- १५. ७२४९५. (#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैसे., (२३.५X११.५, १४X३२-३५). गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., पद्य वि. १८५८, आदि: गजसुखमाल देवकीनंदन, अंतिः चोथमल नित समरो भाई, गाथा- १७. , ७२४९६. (+) वैरागी गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५X१०.५, १२x२५). ७२४९७. सवैया व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६X११.५, १६x४०). १. पे नाम, जैनदुहा संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण गौतमस्वामी वैराग्य गीत, वा. मतिशेखर, मा.गु., पद्य, आदि: समोवसरण सिंघासणइ जी; अंति: मतिशेखर० सुप्रसंन, गाथा - ९. जैनदुहा संग्रह, प्रा.मा.गु. सं., पद्य, आदिः उड जान की बात, अंतिः सप्त सुखावहा, गाथा- ४. २. पे नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. १अ संपूर्ण. ४४१ क. सुंदरदास, पुहिं., पद्य, आदिः यार एक तार धर सांइ, अंति: तुहि तुहि बोल मेना, गाथा-४. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पार्श्वजिन स्तुति-गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परम प्रभु परमेस; अंति: भाणनी जयत करेवी, गाथा-४. ७२४९८. काया मायानी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४१०.५, १५४४८). औपदेशिक सज्झाय-काया, मा.ग., पद्य, आदि: मम करो काया माया; अंति: कबडी मागे हाटोहाटरे, गाथा-३६. ७२४९९. (-2) जंबुद्विपविचार व दूहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, २०४३८). १. पे. नाम. अढीद्वीपे ज्योतिष विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: जंबुदीपमे दोय सुरज; अंति: भरतखेत दोय इरवयखैतर. २.पे. नाम. दूहा संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. काव्य/दहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७२५००. (#) आठकर्मभेद विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १७४६०). ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, आदिः (१)इहां सुशिष्य पूछइ, (२)प्रथम ग्यानावर्णी१; अंति: विचार सद मनथी चिंतवू. ७२५०१. दृष्टांत संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५४११.५, १३४४३). दृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, आदि: जिम मेघनी ४ भेद; अंति: न माने ते दुखी जाणवा. ७२५०२. (+) थावच्चाकुमार चोढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं..प्र.वि. संशोधित., जैदे.. (२५.५४१२, १४४३६). थावच्चाकुमार चौढालियो, मु. हर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७९५, आदि: द्वारामती नगरी वसे; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-४, गाथा-१ अपूर्ण तक है.) ७२५०३. नेमराजेमती सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १८७५, फाल्गुन कृष्ण, ८, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. आंबाराम पटेल; पठ. सा. अजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११.५, १५४३५). १. पे. नाम. राजेमतीनी सज्झाय, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं., वि. १८७५, फाल्गुन कृष्ण, ८, ले.स्थल. पोरबंदर, प्रले. अंबाराम पटेल; पठ.सा. माहासती अजबाई, प्र.ले.पु. सामान्य. दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन २, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: वृद्धिविजे० भासी रे, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-१० से है.) २. पे. नाम. नेमराजुल सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, प्रले. श्राव. मेघजी कुंअरजी, प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती सज्झाय, मु. सोमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: नेम जिणेसर केसर भीन; अंति: सोमचंदजी० इम भणे रे, गाथा-१२. ७२५०४. (+) खरतरगच्छीय पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४१२, १३४३५-३८). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि: श्रीगौतमस्वामी गृहे; अंति: (-), (पू.वि. खरतरगच्छीय श्रीजिणसिंहसूरि सं. १६५४ तक है.) ७२५०५. (#) नववाड सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०, १३४३९). नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. ढाल-२, गाथा-२ से ढाल-३, दोहा-१ अपूर्ण तक है.) ७२५०६. (4) प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४३७). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६७२, आदि: प्रणमु सद्गुरु पाय; अंति: (-), (पू.वि. ढाल-५, गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७२५०७. कथा कोष, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२७.५४१२, ९x४२-४९). For Private and Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४४३ कथा संग्रह**प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: ननोक्कार अक्खरेणं; अंति: (-), (अपूर्ण, पृ.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम कथा, श्लोक-६ तक लिखा है.) ७२५०८. (+) ६२ मार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२६.५४१२.५, २२४३७-४०). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: नरकगति देवगति; अंति: पंचेंद्रिय पर्याप्तो, संपूर्ण. ७२५०९. (+#) नवतत्त्व बोल, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७४१२.५, १५४३०-३३). नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: जीवतत्त्वना १४ भेद; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., पापतत्त्व के भेद अपूर्ण तक है.) ७२५१०. (#) लघुशांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८७१, भाद्रपद शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. कृष्णगढ, प्रले.पं. हेमविजय; पठ. मु. जीवा (गुरु पं. रुपसागर); गुपि.पं. रुपसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, ९४३२). लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: शांति शांति निशांति; अंति: जिनेश्वरे, श्लोक-१८. ७२५१२. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रावण कृष्ण, ५, रविवार, जीर्ण, पृ. ४, ले.स्थल. शिवगंज, प्रले. मोरेश्वर शर्मा लक्ष्मीनारायण त्रिवेदी, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२६.५४१२, १०४४०). पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणसासण अवधाक करेवि; अंति: भुवणि जिणप्पहसूरि, गाथा-४०. ७२५१३. (#) तमाकुनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६.५४११.५, १३४२५-३०). औपदेशिक सज्झाय-तमाकू परिहार, ग. उत्तमचंद, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतम सेती वीनवइ; अंति: उत्तम कहइ __ आणंद, गाथा-२३. ७२५१४. आलोचना विचार, यंत्र व बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, दे., (२६४१२, ११-१४४३४-४६). १.पे. नाम. आलोचना विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. साधु आलोयणा, सं., गद्य, आदि: ज्ञानाशातनाया; अंति: कोलिका पुटोत्पाटनै. २. पे. नाम. आलोचना प्रायश्चित यंत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. आलोचना उपवास ६१ बोल, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, आदि: वरस नानइ आलोचना; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आलोचना-५६ तक लिखा है.) ७२५१५. (+) चौवीसद्वार यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-६(१ से ३,५,८ से ९)=४, पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, २४४१०-२२). जैनयंत्र संग्रह*, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. बीच-बीच के अंश हैं.) ७२५१७. (+) पंचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित., जैदे., (२५४११, १३४४३). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ परवेरे; अंति: (-), (पृ.वि. चौथे महाव्रत की सज्झाय तक है.) ७२५१८. (+) बासठ मार्गणाद्वार विचार व यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, १८४४४-५३). १.पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वार विचार, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: गइ ४ इंदिय ५ काए ६; अंति: श्या ५ शुक्ललेश्या ६. For Private and Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २. पे. नाम. ६२ मार्गणा यंत्र, पृ. १अ-१आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: (-), (पू.वि. २५ वें लोभ द्वार तक है.) ७२५१९. (+) चोवीशजिन स्तवन व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११, १५४३४). १.पे. नाम. चोविशजिन स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२२, आदि: निजगुरु पदपंकज नमी; अंति: तत्त्व०स्तविया चोवीस, गाथा-२७. २.पे. नाम. शत्रुजय आदीश्वर स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन-शत्रुजयतीर्थमंडन, मु. तत्त्वविजय, मा.ग., पद्य, आदि: श्रीसेत्तुंजे तीरथ; अंति: तत्त्व नमई करजोडि. गाथा-१५. ७२५२०. वृद्धिशांति स्तोत्र व अजितशांति स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३-१(१)=२, कुल पे. २, जैदे., (२५४१२, १६४३७). १.पे. नाम. वृद्धिशांति स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र हैं. बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: (-); अंति: जैनं जयति शासनम्, (पू.वि. "दुरितानि शम्यंतु" पाठ से है.) २.पे. नाम. अजितशांति स्तोत्र, पृ. २अ-३आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अजियं जियसव्वभयं संत; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण तक है.) ७२५२१. सिद्धचक्र चैत्यवंदन व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२६४११.५, ११४४२). १.पे. नाम. सिद्धचक्र चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण.. मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीसिद्धचक्र आराधता; अंति: सीस नमे करजोडि, गाथा-५. २. पे. नाम. एकादशी स्तुति, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: अरस्य प्रव्रज्या नमि; अंति: विस्मतहृदः क्षितौ, श्लोक-४. ३. पे. नाम. साधारणजिन स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अविरल कुवल गवल; अंति: देवी श्रुतोच्चयम्, श्लोक-४. ७२५२२.(+) भक्तामर स्तोत्र व प्रास्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १६६९, मार्गशीर्ष शुक्ल, ८, रविवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. चाटसूनगर, प्रले. ग. महाणंद (गुरु मु. विवेकहर्ष, तपागच्छ); गुपि.मु. विवेकहर्ष (गुरु पंन्या. हर्षानंद, तपागच्छ); राज्यकालगच्छाधिपति विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरसूरि , तपागच्छ); पठ. श्रावि. दमावीर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२५४११, ११४२६). १.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. आ. मानतुंगसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलि; अंति: मानतुंग० लक्ष्मीः , श्लोक-४४. २. पे. नाम. प्रास्ताविक श्लोक, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ सं., पद्य, आदि: कश्चिच्चक्रे कृत; अंति: विलसत्कानने रामशीले, श्लोक-१. ७२५२३. शक्रस्तव, संपूर्ण, वि. १७२४, चैत्र शुक्ल, ५, सोमवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. मेदनीपुर पेरेथानगर, प्रले. मु. वर्धमान ऋषि (गुरु मु. रामचंद्रजी ऋषि); गुपि. मु. रामचंद्रजी ऋषि (गुरु मु. जगमालजी ऋषि); मु. जगमालजी ऋषि (गुरु मु. जीवाजी ऋषि); मु. जीवाजी ऋषि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११, १४४४२). शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., आदि: ॐ नमोर्हते भगवते; अंति: महासुखाय स्यादिति. For Private and Personal Use Only Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४४५ ७२५२४. (+#) विजयरत्नसूरि रास, संपूर्ण, वि. १७८३, ज्येष्ठ कृष्ण, ११, मध्यम, पृ. ४, ले.स्थल. द्वीपबंदर, प्रले. ग. जिनविजय (गुरु पंन्या. हितविजय', तपागच्छ); अन्य. आ. विजयलक्ष्मीसूरि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत-ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४५). विजयरत्नसूरीश्वरिनिर्वाणरूप सज्झाय, ग. जिनविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: प्रणमी श्रीश्रुतदेव; अंति: जिनविजये० सवाया रे, ढाल-७. ७२५२५. (+#) बासठमार्गणा यंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२६४११.५, ६४४१६). १. पे. नाम. बासठमार्गणा यंत्र, पृ. ३अ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक. २. पे. नाम. षड्शीति जीवस्थानक यंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. षड्शीति गुणस्थानक यंत्र, पृ. ३आ, संपूर्ण. षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-गुणस्थानक यंत्र, संबद्ध, मा.गु., यं., आदि: (-); अंति: (-). ४. पे. नाम. उपशमश्रेणिगत १५ भेद, पृ. ३आ, संपूर्ण. उपशमश्रेणिगत मनुष्यीय पंचदश भेदाः, प्रा.,सं., गद्य, आदि: उवसम१ खयर मीसो३ दय४; अंति: षडपिपंचदशमं जातः. ७२५२६. चौदगुणस्थानक यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. सारणीयुक्त ग्रंथ., जैदे., (२५४११, १२४१९). १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., आदि: मिथ्यात्व सास्वादन; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम पत्र है., मात्र प्रारम्भिक अंश है.) ७२५२७. वर्द्धमानदेशना-आरामशोभा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५४११, १३४४०-४३). वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., गद्य, आदि: नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू.वि. 'मम शरीरं अद्य भव्यं नास्ति' पाठ तक है.) ७२५२८. सोमसुंदरसूरि बिरुदावली कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, पठ. मु. लब्धिविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११, १०४३३). सोमसुंदरसूरि बिरुदावली कुलक, प्रा., पद्य, आदि: सिरिससिगण नहमंडण; अंति: जाउ गई सूरचंद, गाथा-४४. ७२५२९. (#) स्थूलीभद्र नवरसो, संपूर्ण, वि. १८१८, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, २२४४५-४८). स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७५९, आदि: सुखसंपति दायक सदा; अंति: उदय० भणतां मंगलमाल, ढाल-९, गाथा-७४. ७२५३०. (+#) सुभाषित दूहा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, १२४३२). औपदेशिक सुभाषित संग्रह, मा.गु., पद्य, आदि: जीव सवे ते आतमा धरम; अंति: मित्र शत्रु तव जोय, गाथा-६२. ७२५३१. (+) स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्रले. पं. उत्तमविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १३४४३-४६). १.पे. नाम. निश्चयव्यवहार स्तवन, पृ. १अ-३अ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: शांतिजिणेसर केसर; अंति: वाचक जसविजय सिर लही, ढाल-६, गाथा-४८. २. पे. नाम. सीमंधरजिन विनती स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., पद्य, आदि: सफल संसार अवतार ए; अंति: श्रीभगति आस्यो मनतणि, गाथा-१८. For Private and Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३.पे. नाम. वैराग सिज्झाय, पृ. ४अ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जोइ जतन करी जीवडा आई; अंति: प्रेमे० केवलनाणी रे, गाथा-११. ४. पे. नाम. गौडीपार्श्वजिन छंद, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय गोडि पास धणी; अंति: दीपविजय० हित्तधरी, गाथा-११. ७२५३२. पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५.५४१२, १६x४२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: उग्गए सूरे नमुक्कार; अंति: अप्पाणं वोसरामि. ७२५३३. ८ कर्मप्रकृति बोलविचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., जैदे., (२५४११.५, १७-२०४४२-५५). ८ कर्मप्रकृति बोल विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. नामकर्म उदय स्थाने भंग संख्या यंत्र से तीर्यंच बंध विचार तक है.) ७२५३४. (#) योनिभेद, १५ योग व १४ गुणस्थाने ध्यानभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२५.५४११.५, १२-१६x४२). १.पे. नाम. योनि भेद विचार कोष्ठक, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. योनिभेदविचार कोष्टक, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. १५ जोगनो अधिकार, पृ. १आ, संपूर्ण. १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ३. पे. नाम. १४ गुणठाणा ध्यान ४ ना भेद, पृ. १आ, संपूर्ण. १४ गुणस्थानक ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (वि. कोष्टक में लिखा गया है.) ७२५३५. थुलिभद्र सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. वटग्राम, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, दे., (२३.५४११,११४२८). स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: अकल अरूपी आतमा; अंति: मेरू हो नामे आणंद के, गाथा-९. ७२५३६. (+) विविधतप व यंत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पेज १४२=१, संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १३४२४). विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ७२५३७. (+) विचारषविंशिका सह स्वोपज्ञअवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५-२(१ से २)=३, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरे-संशोधित., जैदे., (२६४११, ११४२०-२५). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: गजसारेण० अप्पहिआ, गाथा-२८, (पू.वि. गाथा-११ अपूर्ण से है.) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदि: (-); अंति: मत्वेदं बालचापल्यम्. ७२५३८. अक्षरबत्रीसी व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १८वी, ज्येष्ठ शुक्ल, ५, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. जिहानावाद, प्रले.ग. अनोपसागर; पठ. मु. मयगलसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१०.५, १९४५३-५९). १.पे. नाम. अक्षरबत्रीशी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग. ज्ञानसुंदर, मा.गु., पद्य, वि. १६८६, आदि: सरसति माता समरीने; अंति: ज्ञानसुंदर० दुइ जेह, गाथा-३९. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, पुहिं., पद्य, आदि: उमगि उमगि कर्यो धर्म; अंति: मानव को भव पायो, सवैया-१. ७२५३९. (+#) बृहत्शांति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १०४२६-३०). बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., आदि: भो भो भव्याः शृणुत; अंति: शिवं भवतु स्वाहा. For Private and Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ___ ४४७ ४४७ ७२५४०. (+) एकाक्षर नाममाला संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४४७-५०). १.पे. नाम. एकाक्षर नाममाला, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., पद्य, आदि: श्रीवर्धमानमानम्य; अंति: नाममालिकामतनोत्, श्लोक-५०. २.पे. नाम. एकाक्षर नाममाला, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: अः कृष्णः आः स्वयं; अंति: मालाप्राक्सूरि समता, श्लोक-१९. ७२५४१. जगदंबा स्तोत्र व त्रिपुरा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, ले.स्थल. टीकर, प्रले. ग. उत्तमविजय (गुरु ग. वनीतविजय); पठ. मु. अमरसी कानजी (गुरु ग. उत्तमविजय), प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५४११, २१४५०-५३). १.पे. नाम. जगदंबा स्तोत्र, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण.. सं., पद्य, आदि: ॐ नमो नारायणी; अंति: अरज कान्ह मति उदो, श्लोक-९६. २. पे. नाम. त्रिपूरा स्तोत्र, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. त्रिपुरामाता स्तोत्र, मु. सुमतिसेन, मा.गु., पद्य, आदि: आई आदि अलखगति अपरंपर; अंति: सुमति त्रिभुवनरंजनी, गाथा-५१. ७२५४२. (+#) दशार्णभद्र सज्झाय व स्तुति संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,११४३७). १.पे. नाम. दशार्णभद्रऋषराय सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुद्धिदायक सेवक; अंति: लालविजय निसदीस, गाथा-१४. २. पे. नाम. शाश्वतजिन थुई, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण, वि. १८०३, कार्तिक शुक्ल, ७. शाश्वतजिन स्तुति, मु. जसवंतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरासुर सेवित; अंति: जसवंतसागर इम भासे जी, गाथा-५. ३. पे. नाम. आदिजिन स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., पद्य, आदि: वरमुक्तियहार सुतार; अंति: सुहाणि कुणेसु सया, गाथा-४. ७२५४३. (+) सीमंधरस्वामिलेख व शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. ग. वीरविजय पंडित, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५.५४११, १३४२७-३०). १. पे. नाम. सीमंधरस्वामी लेख, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण.. सीमंधरजिनलेख, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: स्वस्तिश्री पुंडरगिण; अंति: जयवंत माझिम रातिइ रे, ढाल-५, गाथा-३७. २. पे. नाम, शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीशंखेश्वरपासजिणंद; अंति: वृद्धिविजय उल्लास रे, गाथा-७. ७२५४४. पार्श्वनाथगीत व छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले.स्थल. चंडूर, जैदे., (२६४१२, १४४३३). १.पे. नाम. गोडिपार्श्वनाथ गीत, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., पद्य, आदि: जगत भविक कीजे मेहर; अंति: रूपविजेय. परमानंदा, गाथा-१६. २. पे. नाम. पार्श्वनाथनो छंद, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सार सुरति जग जाण; अंति: मेघराज त्रिभुवन तिलो, गाथा-५. ७२५४५. (+#) कलियुग सज्झायादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१५४४५-४८). For Private and Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४४८ TO. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.पे. नाम. कलियुग सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. प्रीतिविमल, पुहि., पद्य, आदि: यारो कूडो कलियुग आयो; अंति: प्रीतविमल न पायो रे, गाथा-११. २. पे. नाम. नेमराजिमती गीत, पृ. १अ, संपूर्ण. आ. रत्नसागरसूरि, रा., पद्य, आदि: समुद्रविजय को नेम; अंति: रतनसागर० समझावो ने, गाथा-७. ३. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पूरव दिसि ईसान; अंति: हरखै० पूरो संघ जगीस, गाथा-८. ४. पे. नाम. शांतिजिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, आदि: शांति जिणेसर समरीइं; अंति: सांभलो ऋषभदासनी वाणि, गाथा-४. ५.पे. नाम. २४ जिन चैत्यवंदन, पृ. १आ, अपर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ मु. ऋद्धिचंद, मा.गु., पद्य, आदि: आदि अजित ने संभवनाथ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-५ अपूर्ण तक है.) ७२५४६. (+) विजयदेवसूरि लेख, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १५४३८). विजयदेवसूरि लेख, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७७५, आदि: सुगुण सवाइ श्रीगुरू; अंति: लिखिओ विनये लेखरे, ढाल-२, गाथा-३४. ७२५४७. (+#) रत्नाकरपच्चीसीसह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ६४३२). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १४वी, आदि: श्रेयः श्रियां मंगल; अंति: श्रेयस्कर प्रार्थये, श्लोक-२५. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: कल्याणलक्ष्मी मंगलीक, अंति: कल्याण करुं वांछउं. ७२५४८. (+#) बासठमार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१०.५, २४४१४). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: असन्नी आहारक अणाहारी. ७२५४९. (#) बासठमार्गणा यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११, ३६४१६). ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: देवगति मनुष्यगति; अंति: आहारक अणाहारक, (वि. अंत में बासठमार्गणा गाथा दी गई है.) ७२५५०. (#) सिद्धदंडिकास्तव सह यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४६). सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसभ केवलाउ; अंति: आदितु सिद्धि सुह, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोम सिद्धिदंडिका; अंति: दंडिकाः स्वयं ज्ञेया. ७२५५१. चतुर्दशगुणस्थान के सत्तायंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. प्रले. मु. हर्षचंद्र; पठ. मु. गुमानचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२६४११.५, ३१४२१). १४ गुणस्थानक सत्ता यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), संपूर्ण. ७२५५२. (+#) बासठमार्गणायंत्र व बोलसंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२, १९४३८). १. पे. नाम. ६२ मार्गणाद्वार विचार, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). २. पे. नाम. कर्मबंध भेद, पृ. २आ, संपूर्ण. ___मा.गु., गद्य, आदि: १ मिथ्यात्व २ अविरत; अंति: ४ वचनना ७ कायाना. ३. पे. नाम. चार भाव भेद नाम, पृ. २आ, संपूर्ण. उपशमादिभावना प्रभेद, मा.गु., को., आदि: उपसम भावना २ भेद; अंति: ३ भेद उत्तरभेद जाणवा. For Private and Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२५५३. बुध रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३, ले. स्थल. वडग्राम, प्रले. पं. योग्यसागर (गुरु पं. भक्तिसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. शांतिनाथजी प्रसादात, जैवे. (२५x१२ १२४३५-३९). प्र.वि. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी देवी अंबाई पं, अंति: तेहना टलै कलेस तो, गाथा- ६३. ७२५५५. (#) औपदेशिक पद व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १८६८, पौष कृष्ण, २, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ६, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे. (२५x११.५, १९३२-४५). १. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तु निरंजन इष्ट हमेरा; अंति: रूपचंद० होवे फेरा रे, गाथा-३. ४. पे. नाम. वीतराग पद, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: तुम गरीबन के नीवाज; अंति: रूपचंद० चरण तेरे आए, गाथा - ३. २. पे नाम, साधारणजिन पद, पृ. १अ १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने 'औपदेशिक सज्झाय' नाम लिखा है. मु. भानुचंद, पुहिं., पद्य, आदि: बहोत रोज से जस्ते, अंति: भानुचंद० घर आया बे, गाथा- ६. ३. पे नाम, साधारणजिन गीत, पृ. १आ, संपूर्ण, पे. वि. प्रतिलेखक ने 'औपदेशिक पद नाम लिखा है. मु. आनंदघन, पु,ि पद्य वि. १८वी, आदि रे धरिया रे बाउरे, अंतिः आनंदघन० कोइक पावे, पद-३. " 7 ६. पे. नाम औपदेशिक लोक, पृ. १आ, संपूर्ण पठ. मु. मूढशिक्षा पद, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे मूरख जन बाउ रे; अंति: जिनसमुद्र० गुण गावे, गाथा-४. ५. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. . कनिराम, ४४९ सं., पद्य, आदि: जिनेंद्रपूजा गुरु; अंति: वृक्षस्य फलान्यमूनि, श्लोक - १. ७२५५६. (#) सामान्यविशेषात्मक वस्तुव्यवस्थापनिकाद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११, १३X३८). सामान्यविशेषात्मक वस्तुव्यवस्थापनिकाद्वात्रिंशिका, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानामित: अंति: परतीर्थिकास्ते, द्वात्रिंशिका - २, श्लोक - ६४. " ७२५५७. (#) द्वाषष्ठिमार्गणा यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३-१२ (१ से १२) = १, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जीवे. (२५.५x१०.५, ३५x१६-२२). ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, आदि: गइ१ इंदिअ२ काए३ जोए४; अंति: ६ सन्नि २ आहारे २, संपूर्ण. ७२५५८. (#) पार्श्वनाथसंवेगरस चंद्रउला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल पाटण, प्रले. पं. रविवर्द्धन, पठ. ग. धनवर्धन, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे (२४१०५ १६x४९). संवेगरस चंद्रावला, मु. लींबो, मा.गु., पद्य, आदि: सकल सुरिंद नमई सदा, अंति: लीछा नइ आपो भगवंत, गाथा-४९. ७२५५९. (४) दशार्णभद्र व पार्श्वजिन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप For Private and Personal Use Only गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५X११.५, १२X३०). १. पे नाम, दशार्णभद्र सज्झाय, पृ. १अ ३अ, संपूर्ण मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आविः सारदा बुधदायक सेवक, अंतिः बोले लालविजय निस वीस, गाथा- १८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्राण थकी प्यारो; अंति: कवि रूपनो० प्राण आधार, गाथा - ५. ७२५६०. (#) विजयदेवसूरीश्वर भास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पठ. सा. पानबाई महासती, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२५४११ ९x१८-२२) विजयदेवसूरि भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: कामणगारो रे गुरुजी; अंति: रायनो रंगकुशल करजोडि, गाथा-६. ७२५६१. सिद्धचक्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, जैवे. (२४.५x११.५, १४४४०). "" सिद्धचक्र उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, आदि: रूपाना पूजणा; अंतिः इत्यादि सर्व करवा. ७२५६२. चित्तोडगढ गजल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पुष्पिका पद्यमय है., जैदे., (२५.५X११, २०X५०-५३). Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., पद्य, वि. १७४८, आदि: चरण चतुर्भुज धार चित; अंति: गढ चीतोड की खूब गाई, गाथा-५७. ७२५६३. (+) मोक्षतत्त्वविवरण कवित्त व औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १८१५, ज्येष्ठ शुक्ल, ११, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४१०.५, १४४४९). १. पे. नाम. मोक्षतत्त्वविवरण कवित्त, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मोक्ष सज्झाय, पुहिं., पद्य, आदि: मन अधर्म मन धर्म मन; अंति: जो आणे घर मेर, गाथा-९. २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मु. गुलाल, पुहि., पद्य, आदि: विद्याकृतम दान कर; अंति: गुलाल० कदी न कहीयै, गाथा-१. ७२५६४. वाहण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२४.५४११, १३४३८-४२). श्रीपूज्य वाहण गीत, उपा. कुशललाभ, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलो प्रणमुंप्रथम; अंति: गीत सुणतां मन रमइ रे, गाथा-६७. ७२५६५. (#) तीसचौवीसीजिन नामसंग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, आश्विन शुक्ल, ७, गुरुवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. सा. फतु आर्या (गुरु सा. अखु); गुपि.सा. अखु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२४.५४११.५, २६४५०-५३). ३० चौवीसी जिननाम गणणं, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: १ निर्वाणजी २ सागरजी; अंति: २४ सूर्द्धनाथजी. ७२५६६. (4) पंचपरमेष्ठीनवकार स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १७४४७-५०). नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १२वी, आदि: किं कप्पतरु रे अयाण; अंति: तणी सेवा देज्यो नित, गाथा-१३. ७२५६७. (+#) नेमराजिमतीशील रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १३४३७). नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पय पणमी करी; अंति: पुण्यरतन० जिणंद कि, गाथा-६६. ७२५६८. (+#) साधुअतिचार व बीसस्थानक नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३०-३६)... १. पे. नाम. साधुअतिचार, पृ. १अ-३आ, संपूर्ण. साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणमि दंसणमि आचरणं; अंति: अनेरोजे कोई अतिचार. २. पे. नाम. बीसस्थानक नाम, पृ. ३आ, संपूर्ण. २० स्थानक नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नमो अरिहंता १ सिद्ध; अंति: (अपठनीय). ७२५६९. (2) सीमंधरस्वामी लेख, संपूर्ण, वि. १७०४, फाल्गुन शुक्ल, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, १२४२७-३०). सीमंधरजिन लेख, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: स्वस्ति श्रीपुंडरगिण; अंति: लिखीओ माझिम राति रे, ढाल-५, गाथा-३८. ७२५७०. (+#) शारदा छंद व चतुषष्ठीयोगिनी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, २०४६०-६६). १.पे. नाम. सारदा छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. जोजावर, प्रले. मु. दीपचंद ऋषि (गुरु मु. लालचंद), प्र.ले.पु. सामान्य. सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: सरस वचन सारद मन आणी; अंति: शांतिकुश० फलसे ताहरी. २.पे. नाम. चतुषष्ठीयोगिनीस्तोत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: ॐ ह्रीं दिव्ययोगी; अंति: सर्वोपद्रव नाशिनी, श्लोक-११. For Private and Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४५१ ७२५७१. (2) आदिजिन, नेमजिन व नंदिषेण सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १५४४०). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: होजी मोरा आदिजिनदेव; अंति: तणो वंदे बेकरजोडि, गाथा-८. २.पे. नाम. नेमिजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल छोडि नेमजी; अंति: इम जपै सीस जिणंद, गाथा-८. ३. पे. नाम. नंदिषेणमुनि स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: रहो रहो रहो वालहा; अंति: रूपविजय जयकार लाल रे, गाथा-५. ७२५७२. (4) अक्षरबावनी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११, ११४३०). अक्षरबावनी लघु, मु. उदैराज, मा.गु., पद्य, आदि: ॐकाराय नमो अकल अवतार; अंति: उदैराज० मांगै लीयो, गाथा-१७. ७२५७३. पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२३.५४१०.५, ११४३०). १.पे. नाम. शंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सामी सुणो मुज वीनती; अंति: रिद्धहरख०करे आपणी आस, गाथा-८. २. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु प्रणमी पाया; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण तक लिखा है.) ७२५७४. (+#) रोहिणी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०४, चैत्र अधिकमास कृष्ण, १, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. सिवसागर (गुरु पं. नरेंद्रसागर); गुपि.पं. नरेंद्रसागर (गुरु मु. अनोपसागर); मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४३५-३८). रोहिणीतप स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७४४, आदि: स्वस्ति श्रीदायक सदा; अंति: ऋषभ० सुहकरो, ढाल-४,गाथा-३९. ७२५७५. प्रत्याख्यानसूत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५४११, १५४३२). प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः (-); अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, वि. तिविहार उववास, चौविहार उपवास, आयंबिल एवं एकासणा है.) ७२५७६. तपाखरतरोत्पत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४१०.५, १४४४५-५०). तपाखरतरोत्पत्ति विचार, सं., गद्य, आदि: अतिशयेन खराः खरतराः; अंति: तिरकारन वृद्धयः. ७२५७७. द्रोपदीमहासती चौपाई, अपूर्ण, वि. १७८५, कार्तिक शुक्ल, १०, गुरुवार, मध्यम, पृ. ४०-३६(४ से ३९)-४, ले.स्थल. सीयाणी, प्रले. पं. दीपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, जैदे., (२४४१०.५, १५४४४). द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., पद्य, वि. १६९३, आदि: पुरिसादाणी पासजिण; अंति: कनककीरति सुखकार, ढाल-३९, गाथा-१११७, (पू.वि. ढाल-४ गाथा-९ अपूर्ण से ढाल-३९ गाथा-१३ अपूर्ण तक नहीं है.) ७२५७८. (+) प्रश्नोत्तर रत्नमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित., जैदे., (२६४११, १६x४०-४५). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदि: प्रणिपत्य जिनवरेंद्र; अंति: कंठगता कंन भूषयति, श्लोक-२८. ७२५७९. () वरदत्तगुणमंजरी कथा व अइमुत्तामुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७४७, ?, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, ले.स्थल. सेनापुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०, १४४४२). १. पे. नाम. वरदत्तगुणमंजरी कथा, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण, वि. १७४७, ले.स्थल. सेनापुर. For Private and Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वरदत्तगुणमंजरी कथा-सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्वजिन; अंति: कनककुसल० मेडता नगरे, श्लोक-१५२. २. पे. नाम. अयमत्ताऋषि स्वाध्याय, पृ. ४आ, संपूर्ण. ____ अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: परमपुरुष प्रणमु; अंति: मुनिमेरु नमइ मुनिभाण, गाथा-२१. ७२५८०. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४९, १०४४०-४५). ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन नेमि जिनेसर; अंति: रत्नविमल जयमाला, गाथा-४. ७२५८२. (#) रुक्मिणी सज्झाय व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२०.५४११, १२४३६). १. पे. नाम. रुक्मणि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., पद्य, आदि: विचरता गामोगाम नेमि; अंति: राजविजय रंगे भणे, गाथा-७. २.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. वीर, मा.गु., पद्य, आदि: आदिजिनेसर विनती; अंति: इम वीर नमे करजोडी रे, गाथा-५. ७२५८३. (+#) गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, ११४३६). गौतमस्वामीरास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वीरजिणेसर चरणकमल कमल; अंति: वह विद्या निलउऐ, गाथा-७२. ७२५८४. (#) अभिधानचिंतामणि नाममाला-देवाधिदेवकांड, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२४११, १२४३४). अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: प्रणिपत्यार्हतः; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७२५८६. माणिभद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १०x४०-४३). १.पे. नाम. माणिभद्र स्तोत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सुरपति नित सेवीत सुभ; अंति: राजरत्न० जय जयकरण, गाथा-२०. २. पे. नाम. माणिभद्र स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीमणिभद्र सदा समरो; अंति: शिवकीर्ति० सुजस कहे, गाथा-१०. ७२५८७. (#) शीयलनववाड सज्झाय, सामयिक ३२ दोष व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९४-१७९५, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ३, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १४४४०-५०). १.पे. नाम. शीयल नववाड सज्झाय, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण, वि. १७९४, वैशाख शुक्ल, १, ले.स्थल. मढाहड नगर. ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: सहगुरुने चरणे नमी; अंति: तेहेने जाउं भामणी, ढाल-१०, गाथा-४१. २. पे. नाम. सामयिक के ३२ दोष, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: वस्त्रइ करी पलाठी; अंति: (१)देख करे ए दुसण दसमो, (२)दूसण सामयकना टालवा. ३. पे. नाम. द्वितीयजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण, वि. १७९५, भाद्रपद शुक्ल, १४, ले.स्थल. कांकडोलीनगर, प्रले. मु. मतिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य. अजितजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: कमल वने भमरो रमे रे; अंति: ऋद्धिहर्ष० नमावी सीस, गाथा-६. ७२५८८. (+#) गौतमस्वामी छंद व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रावण कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. मु. उमेदहस, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १२४३९). For Private and Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org १. पे. नाम गौतमस्वामी छंद, पृ. १अ, संपूर्ण, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: वीरजणेसर केरोसीस, अंति: लावण्य० संपति कोड, गाथा- ९. २. पे. नाम. गौतमस्वामी स्तुति, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अंगुठे अमृत वसे लब्ध; अंतिः कैवनाजीनो सुख सोभाग, गाथा- १. ७२५९०. (+४) जयतिहुयण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. विनयकुशल, पठ. श्रावि. नाकू, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२५x११, १३x४५-५०). " जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी, आदि जब तिहुयण वरकप्प, अंतिः अभवदेव० विनवइ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अणिदिअ, गाथा- ३१. ७२५९१. (#) आंतरिकपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४.५x१२, १४X३३). पार्श्वजिन छंद - अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५८५, आदि: सरस वचन दियो सरसति; अंतिः लावण्य० पास सुखवास, गाथा- ४८. ७२५९२. तीर्थमाला व शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, ले. स्थल. सादडीनगर, जैदे., (२५.५x११, १३x४४). १. पे. नाम. तीर्थमाला स्तव, पृ. १अ २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पंचाणुत्तरशरणा; अंतिः भावतोहं नमामि श्लोक-२४. २. पे नाम. मंगल स्तोत्र, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. " शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., पद्य, आदि: नित्ये श्रीभुवना, अंति: श्रीधर्मसूरिभिः, श्लोक-१५. ७२५९४. पार्श्वनाथ कलश, संपूर्ण, वि. १८५३, चैत्र शुक्ल, १ बुधवार, मध्यम, पृ. ४, प्रले. प्रभात, प्र. ले. पु. सामान्य, जैदे., " (+) १०x३५). ४५३ (२५.५x१२, १०x२५-२८). पार्श्वजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ अनाथ; अंतिः प्रणमे बे कर जोड, ढाल - ६. ७२५९५. (#) पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६X११, १५X४६). पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वनाथ नाम; अंतिः अहिछत्ता एहवो हवो. " ७२५९६. (F) नेमिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६११.५, १५४४९). नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, आदि: अरहा अरिट्ठनेमि एकदा, अंति: पहला मुक्ति पुहता. पजुसणकल्पदृष्टांत संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे. (२२४९.५, For Private and Personal Use Only पर्युषणपर्व व्याख्यानमाला, मा.गु., गद्य, आदि: जिम कोई करा जानै १; अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दृष्टांत ३ तक लिखा है.) ७२५९९. () औपदेशिक लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५x१२. १९४४५-४८). श्लोक संग्रह **, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: शशि न खलु कलंक, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "वानराचल चित्तां च किं जाणे किं भविष्यसि पाठांश तक लिखा है.) " ७२६०० () सरस्वतीदेवी छंद, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२४४११, १६x४९). " सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.गु, पद्य, आदिः ॐकार धरा उधरणं वेद, अंतिः वंदै हेम इम वीनती, गाथा- १२. ७२६०२. () आदेश्वरजीनी विनती, संपूर्ण वि. १९०३ आषाढ शुक्ल, ६, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल पाटडीनगर, प्रले. प्रेमचंद जेठाचंद भोजक, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. श्रीशांतिनाथ प्रसादात्, मूल पाठ का अंश खंडित है, दे. (२६४१३.५, १७४०-४३). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १५६२, आदि: अंति: मुनि लावण्यसमे ', भणे ए, गाथा-४७. Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२६०३. षड्द्रव्य संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ४-१(१)=३, पृ.वि. बीच के पत्र हैं., दे., (२७४१३, ६४३०). द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१० अपूर्ण से ३२ अपूर्ण तक है.) ७२६०४. (#) गीत, स्तवन, सज्झाय व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ५, प्रले. ग. धनविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७X१२.५, ३०४२१-२५). १.पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. माणेक, मा.गु., पद्य, आदि: समज जा गुमानि बो दिल; अंति: ज्यैन धरम ने तोले, गाथा-३. २.पे. नाम. आदिजिनगीत, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. रूपचंद, पुहिं., पद्य, आदि: सब जीव जीन बोलो; अंति: एतो रुपचंद गुण गाया, गाथा-५. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: नीलडी बुटीनो जासो; अंति: उदय० पामे भवनो पार, गाथा-५. ४. पे. नाम. स्थूलिभद्र सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रीतडली न की रे; अंति: रेसमयसुंदरनी रीत, गाथा-५. ५. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. __ सं., पद्य, आदि: मेषवृषमिथुनेवडा कर्क; अंति: मकरकुंभमीने सारः, श्लोक-१. ७२६०५. (+#) अजितनाथजी को स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१(१)=२,प्र.वि. संशोधित. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (१३४१२, १०x१६). अजितजिन स्तवन, मु. विजयानंदन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: विजयानंदन० जिन जगपती, गाथा-१२, (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण से है.) ७२६०६. (#) नंदीसूत्र थीरावली, संपूर्ण, वि. १८९७, आश्विन कृष्ण, १४, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. ऐनलारागुढाग्राम, पठ. मु. उदेचंद; प्रले.मु. उमेदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२.५, १८४३०). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणो; अंति: नाणस्स परूवणा वुच्छं, गाथा-५०. ७२६०८. पुराणहुंडी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, दे., (२६४१४, २२४४०). पुराणहंडी, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: अहिंसासत्यमस्तेय; अंति: पुनर्जन्म न विद्यते, श्लोक-४६. ७२६०९. (#) ३४ अतिशयवर्णन व ऋतु नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, प्र. २, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१३, १३४३७). १.पे. नाम. चौत्रीस अतिशय वर्णन, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण.. ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: पहेलो अतिशय तीर्थंकर; अंति: सहित देवदंदभी वाजै. २. पे. नाम. ऋतु नाम, पृ. २अ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: चैत्र वैशाख वसंत जेठ; अंति: माहा फागुण शिशिर. ७२६१०. (+#) नवतत्त्व प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, ८४३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवा १ जीवा २ पुण्ण; अंति: अणागयद्धा अणंतगुणा, गाथा-६०. ७२६११. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३.५४१३, १७४४०-४४). १. पे. नाम. पनर तिथि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. १५ तिथि सज्झाय, मु. गंगदास, मा.गु., पद्य, आदि: सकलविद्या वरदायणी; अंति: सहु कहे सेवक गंगदास, गाथा-२१. २.पे. नाम. सातवार सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ गाथा - १०. ७ वार सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीब्रांमी प्रणमुं, अंति: धरमदास० राधणपुर मझार, ३. पे. नाम. शालिभद्रधन्ना सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४. पे नाम, औपदेशिक सवैया, पृ. ९आ, संपूर्ण. सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, आदि: जबथे तुपुटी चपटी, अंति: बिन रंग तरंग किस्यो, सवैया - १. ५. पे. नाम. सप्तव्यसन सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु, पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ कुल, अंतिः रतनकुशल० सवि आस, गाथा- ११. .पे. नाम. बावीस अभक्ष्य सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि अजिया जोरावर करमे जे अंतिः उदय० जे भवजल तीर रे, गाथा- ७. २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: देव गुरूनुं लीजे नाम, अंति: नंदसूरि० लहस्यें तेह, गाथा - २१. ७. पे नाम, सामायिक सज्झाय, पृ. २आ, संपूर्ण. मु. देवविजय, मा.गु, पद्य, आदि मन वचन कायाई पालो अंति: देवविजये सुख दीजे, गाथा-८. ७२६१२. (+) आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२३१३, १२४३२). आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं., पद्य, आदि: एसा ज्ञान विचारो; अंति: चिदानंद० नवि टाले रे, गाथा - ७. ७२६१३. (४) अजितजिन कलश, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., (२७.५x१३, ११४३९). अजितजिन कलश, पंन्या. रूपविजय, मा.गु. सं., पद्य, आदि: चक्रे देवेंद्रवृंदैः अंतिः जिन अजीतनाथ गुणधाम, ४५५ ढाल - ६. ७२६१५. (#) स्तोत्र, सज्झाय व उपासना विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५- २ (१, ४) = ३, कुल पे. ४, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (१६.५X१३, १५X१५). " १. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. २अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: सहेजेसुंदर० सरस्वती, ढाल-३, गाथा-१४, (पू. वि. अंतिम गाथा अपूर्ण मात्र है.) २. पे. नाम औपदेशिक सज्झाय, पृ. २अ २आ, संपूर्ण. मु. लावण्यसमय, मा.गु, पद्य, वि. १६वी, आदि: तुं तो धरम म मुकीस, अंति: लावणवसमय० आनंदोरे, गाथा- ६. ३. पे नाम, बरडावीर छंद, पृ. ५अ, अपूर्ण, पू. वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. हेमविमल, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: हेमविमलेन० दिने दिने, गाथा-६, (पू. वि. गाथा- २ अपूर्ण से है.) ४. पे नाम वरडाक्षेत्रपाल उपासना विधि, पृ. ५अ ५आ, संपूर्ण बरडावीर उपासनाविधि, मा.गु., सं., गद्य, आदिः ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ, अंति: (-), (अपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., आहुति विधि अपूर्ण तक लिखा है.) ७२६१६. स्तवन व स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (१८४१२.५, २७४१४). १. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि तिरथ अष्टापद नित, अति: जैनेंद्र बघते नेह रे, गाथा-८. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनराजसूरि, मा.गु, पद्य, आदि: मुझ हीयडो हे जालवो अंतिः जिन्राज०मत मुको वेसार, गाथा ७. ३. पे. नाम. सुरप्रभजिन स्तुति, पृ. १आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनराजसूरि, मा.गु., पद्य, आदि कीजै छै जेहना सहजी अंति: (-), (पू.वि. गाथा ४ अपूर्ण तक है.) ७२६१८. (+) आठ प्रवचनमाता व हितशिक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण वि. १९९७ कार्तिक शुक्ल, ४, मध्यम, पृ. ४. कुल पे. २, ले. स्थल, खेवांडीनगर, प्रले. ग. चिमनसागर गणि, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित. दे. (२६४१२.५, १५x५४). १. पे. नाम. आठ प्रवचन माता स्वाध्याय, पृ. १-४अ, संपूर्ण. " For Private and Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: सुकृत कल्पतरु श्रेणि; अंति: देवचंद० मंगल संपदा, ढाल-९, गाथा-१३०. २. पे. नाम. हितशिक्षा स्वाध्याय, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: चेतन ज्ञान अजुआलीये; अंति: लहे सुयश रंग रेल रे, गाथा-२९. ७२६१९. (#) गौडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, ., (२६४१३, १५४२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., पद्य, वि. १६६७, आदि: वदन अनोपम चंदलो गोडि; अंति: शांतिकुशल० सुख लहै, गाथा-३५. ७२६२१. (#) पार्श्वजिनछंद व औषध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१४११, १३४३५-३८). १.पे. नाम. पार्श्वजिन छंद, पृ. १अ-४आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., पद्य, आदि: सुवचन संपो सारदा मया; अंति: इम तवीयौ छंद देसंतरी, गाथा-४६. २.पे. नाम. औषध संग्रह, पृ. ४आ, संपूर्ण. औषधवैद्यक संग्रह , पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, आदि: (अपठनीय); अंति: (अपठनीय), (वि. पानी से विवर्ण हो जाने के __ कारण अक्षर अवाच्य हैं.) । ७२६२२. सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२५.५४११.५, १४४२६-३२). सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुणि सुणि सरसति; अंति: संतोषी० पायो रे, ढाल-७, गाथा-४०. ७२६२३. ग्यानपंचमीरी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. खीमेल, प्रले. चमनचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२.५४१२, १३४३५-३८). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर; अंति: लक्ष्मी० सुखदाय रे, ढाल-५, गाथा-१६. ७२६२४. साधुपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण, वि. १८४३, माघ शुक्ल, ५, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. लाकडीआनगर, प्रले. मु. उत्तमविजय; पठ. श्राव. लालजी, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२२४१२, १३४३२). साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, आदि: नाणंमि दंशणंमिय; अंति: मिच्छामि दुक्कडं. ७२६२५. (#) विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १६७४, कार्तिक कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. समयसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १५४४०-४५). विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., पद्य, आदि: भरतखेत्रिरे समुद्र; अंति: कुशल नित घर अवतरइ, ढाल-४, गाथा-२८. ७२६२७. (+#) आदिजिन स्तवन व नेमराजिमती सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१.५४१०.५, १२४३८). १. पे. नाम. आदिजिनविनती स्तवन, पृ. १आ-४आ, संपूर्ण. क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., पद्य, वि. १६६६, आदि: श्रीआदीसर वंदुं पाय; अंति: ऋषभ० पाप आलोउं आपणा, ढाल-५, गाथा-५७. २. पे. नाम. नेमराजिमती सज्झाय, पृ. ४आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., पद्य, आदि: उंचो गढ गिरनारिनौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-७ अपूर्ण तक है.) ७२६२९. (#) सप्तभंगीस्वरूपगाथा सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. ग. कुशलविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४११.५, ११४३०). १.पे. नाम. सप्तभंगीस्वरुप गाथा, पृ. १अ, संपूर्ण. . For Private and Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ सप्तभंगीस्वरूप गाथा, प्रा., पद्य, आदि: सिया अत्थि १ सिया; अंति: सव्वभावे सुसम्मया, गाथा-३. २. पे. नाम. सप्तभंगीस्वरूपगाथा विवरण, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. सप्तभंगीस्वरूप गाथा-विवरण, पं. दानचंद्रगणि, मा.गु., गद्य, आदि: सकल पदार्थ आप आपणै; अंति: पदार्थनइ विषेसम्मत. ७२६३१. (+) नेमिजिनफाग व गीत, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १३-१५४३०). १.पे. नाम. नेमिजिन फाग, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. मु. राजहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: राजहरख० फाग रसालो रे, गाथा-३०, (पू.वि. गाथा-१८ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. नेमिजिन गीत, पृ. २आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सेवादेवी मात सुत; अंति: रुचिरवि० सुख पाया रे, गाथा-५. ७२६३३. (#) बारमासा व वैराग्यशतक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४१२, १२४३७-४०). १.पे. नाम, बारमासो, पृ. २अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है. बारमासा वर्णन, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-३ अपूर्ण से है व १५ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. वैराग्यशतक-प्रथम गाथा सह बालावबोध, पृ. २आ, संपूर्ण. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. वैराग्यशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: अहँत भगवंत असरण; अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७२६३४. सीतारी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११, १४४४०). सीतासती सज्झाय, मु. मतिसागर, मा.गु., पद्य, आदि: दशरथ नरवर राजीयो; अंति: मतिसागर० तणो हुंदास, गाथा-१७. ७२६३६. (+#) आदिजिन स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, ८४५०-५३). आदिजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि, फा., पद्य, आदि: अल्ला ल्लाहि तुराह; अंति: चंदिने मे दिहीति, श्लोक-११. आदिजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे पूज्य तव अहं; अंति: मैत्री इवदेव देवाः. ७२६३७. भृगुपुरोहित सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२०४११, १६x४२-४६). भृगुपुरोहित सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., पद्य, आदि: ०० जन्मा जग उच्छाह; अंति: खेम० घरे वेगा आवो रे, गाथा-२१, (वि. पत्र खंडित होने के कारण आदिवाक्य का प्रारंभिक अंश अवाच्य है.) ७२६३८. वैराग्य सज्झाय व औपदेशिक सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११.५, १५४३९). १.पे. नाम. वैराग्य सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. गुलालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सीहगुरु प्रणमी पाय; अंति: गुलाल० धरम एक सतो, गाथा-११. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पं. धर्मसिंह पाठक, पुहि., पद्य, आदि: करयो मती अहंकार तन; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण तक है.) ७२६४०. (+) गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१८, श्रेष्ठ, पृ. २, ले.स्थल. कर्णपुरनगर, प्रले. मु. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४४११, ६४३५-३८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: सेवंति सुखं लहंति, गाथा-२०. गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, आदि: लोभीया मनुष्य अर्थे; अंति: सः सुखान् लभेत्. ७२६४१. (#) सिद्धार्थराजा का भोजनसमारंभ वर्णन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११,१६-१९४४२-५०). For Private and Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धार्थराजा का भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, आदि: हिवि भोजननी युक्ति; अंति: प्रभूत जिमण करइ छइ. ७२६४३. नेम नवरसो, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रावण शुक्ल, ५, गुरुवार, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. चांणोदनगर, जैदे., (२५४११.५, १३४३०). नेमराजिमती नवरसो, म. रूपचंद, मा.गु., पद्य, आदि: वारी जाउं विठला; अंति: रूपचंद० उतारो भवपार, ढाल-९, गाथा-४०. ७२६४४. सज्झाय संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-८(१ से ८)=२, कुल पे. ४, जैदे., (२६४११.५, १२४३८). १. पे. नाम. दीपावली स्तवन, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: मार्ग देशक मोखनारे; अंति: देवचंद्र पद लीधोरे, गाथा-९. २. पे. नाम. सीमंधरजिन चैत्यवंदन, पृ. ९आ, संपूर्ण. उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदि: श्रीमंदिर वीतराग; अंति: विनय धरे शुभ ध्यान, गाथा-३. ३.पे. नाम. पंचतीर्थ चैत्यवंदन, पृ. ९आ, संपूर्ण. ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., पद्य, आदि: धुरि समरु श्रीआदिदेव; अंति: कमलविजय० जयजयकार, गाथा-६. ४. पे. नाम. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, पृ. १०अ-१०आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अति भली; अंति: (-), (पू.वि. तृतीय प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, गाथा-२ तक है) ७२६४५. (+) स्तवन, चैत्यवंदन व सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. ९, प्रले. पं. चिमनसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२३४११.५, २०४५२). १.पे. नाम. ठाणांगसूत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थानांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: त्रीजो अंग जिनजी कहे; अंति: नित्य नमे नितमेवरे, गाथा-७. २.पे. नाम. समवयांगसूत्र स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. समवायांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: वीर कहे गौतम सुणो; अंति: नित्यविजय गुण गाय रे, गाथा-५. ३. पे. नाम. पंचमांग स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. भगवतीसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसमा श्रीवीर; अंति: नित्यविजय शिवराज हो, गाथा-११. ४. पे. नाम. आचारना सूचिका स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. आचारांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसतिमात नमीने; अंति: नित्यने परमाणंदरे, गाथा-७. ५.पे. नाम. सूयगडांगसूचिका स्वाध्याय, पृ. १आ, संपूर्ण. सूत्रकृतांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: बीजू अंग अनोपम दीपतु; अंति: नित्यविजय शुभकाल, गाथा-७. ६. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल-२, गाथा-२५. ७. पे. नाम. जैनतीर्थमाला स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. तीर्थवंदना चैत्यवंदन, सं., पद्य, आदि: सद्भक्त्या देवलोके; अंति: सततं चित्तमानंदकारि, श्लोक-९. ८.पे. नाम. जैनतीर्थमाला स्तवन, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४५९ तीर्थवंदना, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: संसारतारयाणं तियसा; अंति: सिद्ध० सुहं देत्तुं, गाथा-३४. ९.पे. नाम. गोशालक मतानुयायी श्लोक, पृ. ३अ, संपूर्ण. जैन श्लोकसंग्रह, सं., पद्य, आदि: प्राप्तव्यो नियति; अंति: भवति भाविनोस्ति नाशः, श्लोक-१. ७२६४६. (#) विंशतिस्थानकतपगणणुंव औपदेशिक सवैया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. सत्यपुरनगर, प्रले. मु. कृष्णविमल (गुरु ग. कांतिविमल); गुपि.ग. कातिविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, १५४३९). १. पे. नाम. वीशस्थानक तप गणj, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. २० स्थानकतपगणj, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीअरिहंतभक्ति; अंति: तित्थस्स २००० लोगस्स. २.पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. जसराज, मा.गु., पद्य, आदि: एहजि दीप में खेत भरत; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., सवैया-२ अपूर्ण तक लिखा है.) ७२६४७. नंदीसूत्र स्तुति व श्लोक संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५.५४११, १३४२७-३०). १.पे. नाम. नंदीसूत्र स्तुति, पृ. १अ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: अर्हस्तनोतु स श्रेय; अंति: विघ्नविघातदक्षाः, श्लोक-८. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ऋणदेवस्य यज्ञेन; अंति: धावयित्वा परिव्रजेत्, श्लोक-१. ३. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: पूर्णिमायां; अंति: शुक्राद्वादशके शनिः, श्लोक-१. ७२६४८. (#) स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ४-३(१ से ३)=१, कुल पे. ४, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५४११.५, १३-१५४३८). १. पे. नाम. तेरस स्तुति, पृ. ४अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. त्रयोदशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: नयविमल दुख हरणी, गाथा-४, (पू.वि. गाथा-१ अपूर्ण से है.) २. पे. नाम. चउदस स्तुति, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: वासपुज्य जिनेसर शिव; अंति: नयविमल सदा सुख अखंडा, गाथा-४. ३. पे. नाम. अमावस्या स्तुति, पृ. ४आ, संपूर्ण. अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अमावस्या थई उजली वीर; अंति: नयविमल० करो नित नित, गाथा-४. ४. पे. नाम, पूर्णिमा स्तुति, पृ. ४आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जिनपति संभव संजम; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७२६४९. (4) पासाकेवली व सवैया संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५-१(४)=४, कुल पे. ५, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, १६x४६). १.पे. नाम. पासाकेवली, पृ. १अ-५आ, अपूर्ण, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., पद्य, आदि: ॐ नमो भगवती; अंति: यामेन तथैक दिवसेन तु, श्लोक-१९६, (पू.वि. पासा अंकसंख्या-३४२ अपूर्ण से ४४२ अपूर्ण तक नहीं है.) २. पे. नाम. औपदेशिक सवैया, पृ. ५आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: तेरे नेनकमल में; अंति: मेरो जीवन सफल है, पद-३. ३. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. ५आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक श्लोक संग्रह *, पुहिं., प्रा., मा.गु., सं., पद्य, आदि: जाइजे तिवार ए पाखे; अंति: भजते न नम॑तिश्च, श्लोक-३. ४. पे नाम, तत्त्वज्ञान सवैया, पृ. ५आ, संपूर्ण हुसेन कवि, पुहिं, पद्य, आदि आज के जमाने में अंति: हुसेन० ईद की निवाज को, सवैया- १. ५. पे. नाम. शृंगाररस सवैया, पृ. ५आ, संपूर्ण. मु. गंग कवि, पुहिं., पद्य, आदिः प्यार करे सब नारिसुं अंति: गंग०तु काजी कहा करहै, सवैया- १. ७२६५०. (#) पंचमआरानी सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३- २ (१ से २ ) = १, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, जैदे., (२५x१२, ६x२३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: भाख्या वचन रसाल, गाथा - २१, (पू.वि. मात्र अंतिम ३ गाथाएँ हैं., वि. प्रतिलेखक ने पांचों आरा के अलग-अलग परिमाण दिया हुआ संभवित है.) ७२६५२. (+) स्थापना कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११, १२X३५). स्थापनापरीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, आदि: श्रीभद्रबाहुस्वामी; अंति: तो अतिसार रोग मिट . ७२६५३. (*) खंधकमुनि चौढालियो, संपूर्ण, वि. १९बी, मध्यम, पू. ३, प्र. वि. संशोधित, जैवे. (२६११.५, १७९४०)खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा., पद्य, वि. १८११, आदि: वीरजिणंद सासणधणीजी अंति हो मिच्छामिदुक्कडम, डाल-४. " ७२६५४. (+) चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२५X११, १५X४०). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंति: कारणं निव्वुई सुहाणं, गाथा-६३. ७२६५५. () पार्श्वजिन सलोको, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (२६४१२, १५X४५-४८). पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., पद्य, वि. १८५१, आदि: प्रणमुं परमातम अविचल, अंति: पंचौली जोरावर मल्लो, गाथा - ५८. ७२६५६. (+#) दंडक प्रकरण संपूर्ण वि. १७७९ श्रावण अधिकमास शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. २, ले. स्थल, नार्दपूरी, 7 प्रले. ग. दयालरूचि (गुरु ग. गोकलरूचि); गुपि. ग. गोकलरूचि, पठ. मु. चतुरा, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १५X४२-४६). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा. पद्य वि. १५७९, आदिः नमिउण चढविसजिणे तसु अंतिः विन्नत्ति अप्पहिया, " गाथा- ४४. ७२६५८. (#) महालक्ष्मी स्तोत्र व औषधादिनाम संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैवे. (१२.५x१०.५, १३x२०-२४) " १. पे. नाम, महालक्ष्मी स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण. महालक्ष्मी स्तव, सं., पद्य, आदि: आद्यं प्रणवस्ततः, अंति: सर्वदाभूतिमिच्छति, श्लोक-११. २. पे नाम औषधादि संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. औषध आदिसंग्रह, मा.गु. सं., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७२६५९. भरहेसर सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५. ५X११, ११x२४-३०). भरसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय अंति; जस पडो तिहुणे सयले, गाथा- १३. ७२६६२. २४ दंडक यंत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५X१२, २७x४०-४५). २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को. आदि (-); अंति (-), संपूर्ण ७२६६३. भावनाविलास व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण, वि. १९१८, ज्येष्ठ कृष्ण, १२, बुधवार, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. २, प्रले. चिमनलाल, प्र.ले.पु. सामान्य, दे. (२६.५x१२. १४४४२-४५). पे. नाम भावना विलास, प्र. १अ ४अ संपूर्ण. १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., पद्य, वि. १७२७, आदि: प्रथम अनित्त भावइ, अंतिः बुद्धि न होय विरुद्ध. For Private and Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४६१ २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. ४आ, संपूर्ण. क. जयकृष्ण, पुहिं., पद्य, आदि: पूत कपूत बुरी करतूत; अंति: धन तासो रहत दूर, (पू.वि. कदकद, वि. सवैया-२) ७२६६४. (+) सिद्धदंडिका स्तव सह टीका, गाथा व यंत्र, संपूर्ण, वि. १६४२, मार्गशीर्ष कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित., जैदे., (२६४११.५, १४४२४). १.पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव सह टीका, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जं उसहकेवलाओ अंत; अंति: आदितु सिद्धि सुहं, गाथा-१३. सिद्धदंडिका स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: आदित्ययशोनृपप्रभृतयो; अंति: दंडिकासु भावनीय. २. पे. नाम. सिद्धदंडिका स्तव गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: चउदसलक्खा सिद्धाणिवई; अंति: गुणनी संपुणा छवीसाए, गाथा-५. ३. पे. नाम. सिद्धदंडिकास्थापना यंत्र, पृ. १आ, संपूर्ण. सिद्धदंडिका स्तव-यंत्र, सं., को., आदि: अनुलोम सिद्धिदंडिका; अंति: अपियावद संख्यवारान्. ७२६६५. रोहिणी स्तुति व सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४११.५, १२४३४). १.पे. नाम. रोहिणी थुई, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रोहिणीतप स्तुति, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी, आदि: नक्षत्र रोहिणी जे; अंति: पद्मविजय गुण गाय, गाथा-४. २. पे. नाम. सामायिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. नेमसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सामायक मन शुद्ध करो; अंति: सामायिक पालो निसदीस, गाथा-५. ७२६६७. चौराjबोल यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पेज-१४४=१, दे., (२०.५४८, ४७४११-२०). ९४ बोल का ६२ भांगा बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ गरभ विना जीव; अंति: ९४ सोपकरमी परत में. ७२६६८. कल्पसूत्र व सीमंधरस्वामी स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५-४४(१ से ४४)=१, कुल पे. २, प्र.वि. प्रतिलेखक ने पत्रांक १ लिखा है., त्रिपाठ., जैदे., (२५४१२, ९-१६४३०-३६). १.पे. नाम. कल्पसूत्र, पृ. ४५अ, अपूर्ण, पू.वि. बीच के पत्र हैं. आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., तृतीय व्याख्यान, सूत्र-१०० अपूर्ण से १०२ अपूर्ण तक लिखा है.) कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २.पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. ४५आ, संपूर्ण. मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजीकुं वंदणा; अंति: जिनेंद्र सुणिंदो रे, गाथा-६. ७२६६९. महावीर द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १२४३४). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात; अंति: (-), (अपूर्ण, ___ पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-१९ तक लिखा है.) ७२६७१. (+#) स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-६(१ से ६)-४, कुल पे. ६, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १२x२८). १.पे. नाम. नवकारमहिमा स्तवन, पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सुखकारण भवियण समरो; अंति: प्रभुसुरवर सीस रसाल, गाथा-७. २. पे. नाम. अष्टापदतीर्थ स्तवन, पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: मनडो ते मोह्यो; अंति: प्रह उगमते सुर जो, गाथा-५. ३. पे. नाम. नवकारमहिमा स्तवन, पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण. नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीनवकार जपो मनरंग; अंति: जास अपार री माई, गाथा-९. ४. पे. नाम. जिनधर्म स्तवन, पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: रेजीव जिनध्रम कीजिय; अंति: मुगतना फल माहरे, गाथा-६. ५.पे. नाम. २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, पृ. ९अ-१०अ, संपूर्ण. उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: शत्रुजे ऋषभ समोसर्य; अंति: समयसुंदर कहै एम, गाथा-८. ६. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. महमद, मा.गु., पद्य, आदि: भुलो मन भमरा काइ; अंति: महमद कहे० साहिब हाथ, गाथा-९. ७२६७३. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-९(१ से ९)=२, कुल पे. ८, जैदे., (२६४१२, १३४४३). १. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १०अ, अपूर्ण, पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मा.गु., पद्य, आदि: (-); अंति: करो अंबिका देवीये, गाथा-४, (पू.वि. प्रथम गाथा अपूर्ण है.) २. पे. नाम. महावीरजिन स्तुति, पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: बालपणे डाबो पाय; अंति: मेलइ मुगति साथ, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: गिरनारसिहरि पर नेमि; अंति: जिनलाभसूर०फले सुजगीस, गाथा-४. ४. पे. नाम. समवसरण स्तुति, पृ. १०आ, संपूर्ण. मु. जयत, मा.गु., पद्य, आदि: मिलि चौविह सुरवर; अंति: पामै जयति सुनाणी, गाथा-४. ५. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदि: ट्रेनें किधप मधु; अंति: दिशतु शासन देवता, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तुति, पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण. आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अश्वसेन नरेसर वामा; अंति: जिनभक्तिसूरि० वित्त, गाथा-४. ७. पे. नाम. दीवाली स्तुति, पृ. ११आ, संपूर्ण. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सिद्धारथ ताता जगत; अंति: जिनचंद० एहवी वाणी, गाथा-४. ८. पे. नाम. शीतलजिन स्तुति, पृ. ११आ, अपूर्ण, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: त्रिभुवन जिननायक; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३ अपूर्ण तक है.) ७२६७४. आदि व अजितजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४१०-१०.५, २४४१५). १. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिन जग आधार मरु; अंति: स्थिति एही मोटा, गाथा-५. २.पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: जयकारी अजित जिनेसर; अंति: मेघ०सर साहिब होवैरे, गाथा-५. ७२६७५. (+2) सज्झाय, कुलक व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९१५, मध्यम, पृ. ४, कुलपे. ५, ले.स्थल. कोसेलाव ग्राम, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने एक अपूर्ण दोहा लिखा है., संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४४७). १. पे. नाम. रात्रिभोजन सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. मु. प्रमाणहंस, मा.गु., पद्य, वि. १८२१, आदि: श्रुतदेवी सरसती; अंति: प्रमाणहंस प्रभणे एह, ढाल-३, गाथा-१४. २. पे. नाम. महाऋषि महासती कुलक, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: भरहेसर बाहुबली अभय; अंति: जस पढहो तिहुअणे सयले, गाथा-१३. ३. पे. नाम. अक्षयनिधि तप स्तवन, पृ. २आ-४अ, संपूर्ण, वि. १९१५, माघ शुक्ल, १४, ले.स्थल. कोसेलाव ग्राम, प्रले. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७१, आदि: श्रीशंखेश्वर शिर; अंति: नाचवा घर बारणे, ढाल-५, गाथा-५१. For Private and Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४६३ ४. पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: ससनेही जिनराय मलिये; अंति: मोहन कहे चरणे नमी जी, गाथा-७. ५. पे. नाम. शांतिनाथ स्तवन, पृ. ४आ, संपूर्ण. शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: साहिब० तुज आगल विनती; अंति: मोहन तोसु हित भणेजी, गाथा-९. ७२६७७. (#) औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (१९४११.५, १६४३२). औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., पद्य, आदि: करिज्यौ मत अहंकार; अंति: धरमसीह०धरम मन मै धरो, गाथा-११. ७२६७८. २० स्थानकतप स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, जैदे., (२६४१२, ९४३०). २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: वीशस्थानक तप सेवीयै; अंति: भावै० वसतो मुनिवरो, ढाल-३, गाथा-१८, संपूर्ण. ७२६७९. (#) घडपण व औपदेशिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. मूल पाठ का अंशखंडित है, जैदे., (१९४९, १५४४२-४५). १.पे. नाम. घडपण सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: घडपण आवीउंजीव समर; अंति: रुपविजय गुण गाय, गाथा-७. २. पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, वि. १६वी, आदि: एक घरि घोडा हाथीआरे; अंति: लावण्य० परभाव रेजी, गाथा-१२. ७२६८१. नंदीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९३, आश्विन कृष्ण, ४, सोमवार, मध्यम, पृ. २, जैदे., (२४४१२, १४४४३). नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., पद्य, आदि: जयइ जगजीवजोणी विआणओ; अंति: णाणस्स परूवणं वोच्छं, गाथा-४९. ७२६८३. अभव्यकुलक व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. २, ले.स्थल. पाटणनगर, प्रले. मु. जीतविमल, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४१२, ११-१४४३६). १.पे. नाम. अभव्यकुलक, पृ. १अ, संपूर्ण. संबोधप्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., पद्य, आदि: जह अभविय जीवेटिं; अंति: तेसिंन संपत्ता, गाथा-९. २. पे. नाम. अभव्यकुलक का बालावबोध, पृ. १आ, संपूर्ण. संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्यकुलक का बालावबोध, मा.गु., गद्य, आदि: इंद्रपणुंन पामे १; अंति: भाव अभव्य जीवन पामइ. ७२६८४. (+#) अध्यात्म स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१०.५, १३४३६-५७). औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., पद्य, आदि: कामिनी कहै निज कंतने; अंति: जयसोम० करउ धर्म सखाई, गाथा-११. ७२६८५. (+#) ज्ञानपच्चीसी व सिद्धाचल स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५,१५४४६). १.पे. नाम. ज्ञानपच्चीसी, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, वि. १७९३, आषाढ़ कृष्ण, १. ज्ञानपंचविंशति, मु. उदयकरण, मा.गु., पद्य, आदि: सुरनर तिरिजग योनि मे; अंति: आप कौं उदैकरन कहे, गाथा-२५. २. पे. नाम. सिद्धाचल स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. आदिजिन स्तवन, मु. लाभसागर, पुहिं., पद्य, आदि: सेक्रूज गिर क्यु; अंति: लाभ० जनम जरा नहीं उर, गाथा-५. For Private and Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२६८६. (+) समवायांगसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४७-४५(१ से ४५)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५.५४११.५, १५४४८). समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः (-); अति: (-), (पू.वि. प्रकीर्णक समवाय गाथासूत्र-२७५ अपूर्ण से सूत्र-३२७ किंचित् अपूर्ण तक है.) ७२६८७. सज्झाय व स्तवनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४११, १७४४०). १.पे. नाम. शालिभद्रमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाला तणइ भवइ; अंति: सहससुंदर समान सुभागी, गाथा-१२. २.पे. नाम. पच्चक्खाण फल, पृ. १अ, संपूर्ण. १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, आदि: नउकारसीनउ वर्ष१००; अंति: दस लाख करम कीधा छुटे. ३. पे. नाम. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. अमीसुंदर शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: भारति चरणकमल नमी वली; अंति: ___अमीसुंदरसीस सुरतरु, गाथा-१५. ७२६८९. (+#) पार्श्वजिन लावणी व सिद्धचक्र स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्रले. पं. हेमसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १४४३६). १.पे. नाम. पार्श्वजिन लावणी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहि., पद्य, आदि: जगत भविकज महिर अनंत; अंति: पामे चिद परमानंदा, गाथा-१६. २. पे. नाम. सिद्धचक्र स्तुति, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. ग. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पहिले पद जपीइ अरिहंत; अंति: कांतिविजय गुण गाय, गाथा-४. ७२६९०. (#) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१०.५, २३४५५). प्रज्ञाप्रकाशषविंशिका, मु. रूपसिंह, सं., पद्य, आदि: प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन; अंति: पंडितो प्रेतरूपवत, श्लोक-२८. ७२६९२. शनिश्चर छंद, मूढशिक्षा पद व औपदेशिक सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, जैदे., (२५.५४१२, १५४४६). १.पे. नाम. शनिश्चर छंद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. क. हेम, मा.गु., पद्य, आदि: अहि नर असुर सुरपति; अंति: हेम० अलगी टाले आपदा, गाथा-१७. २. पे. नाम. मूढशिक्षा पद, पृ. १आ, संपूर्ण.. आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे मूरख जन बाउरे; अंति: जिनसमुद्र० गुण गावे, गाथा-४. ३.पे. नाम. औपदेशिक सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, पिंगल, मा.गु., पद्य, आदि: वंश त्रिण वाजिंत्र; अंति: वडा बंध कवित्त अय, का.-१. ४. पे. नाम. प्रहेलिका संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), गाथा-१. ७२६९५. १२ व्रतटीप व महावीरजिन पंचकल्याणक विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २,प्र.वि. प्रत के प्रारंभ व अंत में संवत् १७७३ में सुश्रावक शाह जयतसी के द्वारा ये व्रत लिए जाने का उल्लेख मिलता है., जैदे., (२४४११, १८४५७). १.पे. नाम. बारह व्रत टीप, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: प्रथमदेव अरिहंत अढार; अंति: (१)नोकारवाली १ गुणवी, (२)५ कल्याणक दिन आराधवा. २.पे. नाम. महावीरजिन पंचकल्याणक विवरण, पृ. ४अ, संपूर्ण. रा., गद्य, आदि: श्रीमहावीरजीरा पांच; अंति: (१)केवलनाणं ए५ आराधवा, (२)जैनं जयति शासनम्. For Private and Personal Use Only Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२६९६. (#) सरस्वतीदेवी अष्टक, संपूर्ण, वि. १८१५, माघ शुक्ल, १, मध्यम, पृ. १, प्रले. श्राव. चतुराभाई सोभाचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १२४३७-४०). सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., पद्य, आदि: प्राग्वाग्देवि; अंति: वश्य मे सरस्वती, श्लोक-९. ७२६९८. लीलावती चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, जैदे., (२५.५४१२, १५४४९). लीलावती चौपाई, म. लाभवर्द्धन, मा.गु., पद्य, वि. १७२८, आदि: तेवीसमो त्रिभुवन; अंति: (-), (पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., गाथा-११ तक है.) ७२६९९. (4) इरियावही सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८८७, पौष कृष्ण, १२, रविवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. चांणोदनगर, प्रले. मु. सोभाचंद ऋषि (गुरु मु. भीमजी ऋषि); पठ.ग. विवेकसागर (गुरु मु. मयासागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, १४४४४). इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३४, आदि: श्रुतदेवीना चरण नमी; अंति: विनयविजय उवज्झाय रे, ढाल-२, गाथा-२५. ७२७००. (+) कल्पसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०-६८(१ से ६८)=२, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२४.५४११, १४४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र- ८१ अपूर्ण से ८२ अपूर्ण तक है.) कल्पसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). कल्पसूत्र-बालावबोध*, मा.गु.,रा., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७२७०१. (+) पाक्षिकस्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. सप्तच्छदीनगर, प्रले. ग. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (९.५४८.५, १०४५). पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्ध, श्लोक-४. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: (१)हिवे थुईमां च्यार, (२)स्नात क० स्नातने; अंति: सिद्धिं कहतां मनोरथइ. ७२७०२. (#) जिनप्रतिमारास व सीमंधरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११, २२४५६). १.पे. नाम. जिनप्रतिमाहंडिरास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १७५९, प्रले.ग. सुजाणहंस (गुरु ग. ललितहस), प्र.ले.पु. सामान्य. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवि हियडइ धरी; अंति: जिनहरष कहत कि, गाथा-६७. २. पे. नाम. सीमंधरजिन स्तवन, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. वा. सकलचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधरजिन त्रिभुवन; अंति: सेवक सकलचंद दया करो, गाथा-३०. ७२७०३. (+#) जीवविचारप्रकरण सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४११.५, ५४३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-१४ अपूर्ण तक है.) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ*मा.गु., गद्य, आदि: त्रिभुवनने विषइ दीवा; अंति: (-). ७२७०५. (#) दानशीलतपभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १३४३०-३५). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: परिहरिय रजसारो; अंति: देविंद० सिद्धिसुहं, वक्षस्कार-४, गाथा-८१. ७२७०६. (+#) नंदीसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५९-५८(१ से ५८)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. मूल पाठ का अंश खंडित है, दे., (२५.५४११.५, ७X५४). नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग., आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. सूत्र-१५४ अपूर्ण से १५७ अपूर्ण तक है.) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). For Private and Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२७०९. (+#) श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ५, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४१२, १५४४६). १.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, ले.स्थल. नारदीपुर, प्रले. पं. मनोहरसागर; पठ. पं. सोभाचंद (गुरु पं. किसनदास), प्र.ले.पु. सामान्य. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. २.पे. नाम. समूर्छिमपंचेंद्रियमनुष्य उत्पत्तिस्थान गाथा, पृ. २अ, संपूर्ण. १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, आदि: उच्चारे१ पासवणे२; अंति: समुच्छिम मणुयपंचेंदी, गाथा-२. ३.पे. नाम. स्त्रीना सोलशृंगार, पृ. २अ, संपूर्ण. १६ शृंगार नाम, सं., पद्य, आदि: आदौ मज्जनचारुहारतिलक; अंति: शृंगारका षोडशकाः, श्लोक-१. ४. पे. नाम. पुरुषरा सोलशृंगार, पृ. २अ, संपूर्ण. १६ शृंगारनाम श्लोक-पुरुष, सं., पद्य, आदि: क्षौर मईन; अंति: शृंगारका षोडशा, श्लोक-१. ५.पे. नाम. औदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. २अ, संपूर्ण. औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदि: शशिनमुदितं रेखामात्र; अंति: अर्द्धकूपी जलोयथा, श्लोक-७. ७२७११. समकित चौढालियो, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४-२(१ से २)=२, जैदे., (२६४१२, २१४३९). चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., पद्य, वि. १८३३, आदि: (-); अंति: रायचंद० वचन प्रमाण, ढाल-४, गाथा-३७, (पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है., ढाल-३, गाथा-१ अपूर्ण से है.) ७२७१२. नेमिजिन बारमासो वसुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४१०.५, १५४४७-५०). १.पे. नाम. नेमराजुल बारमासा, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. नेमिजिन बारमासो, मु. सुजस, मा.गु., पद्य, आदि: घन गुघुहिर कारी घटा; अंति: सुजस सगले होत, गाथा-१२. २.पे. नाम. सुमतिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सुमतिजिनेसर साहिबो; अंति: मेघविजय०लोक बधाइ लाज, गाथा-७. ७२७१३. (+#) उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. ग. गुलालविजय (गुरु पंन्या. तिलकविजय, तपगच्छ); गुपि.पंन्या. तिलकविजय (तपगच्छ), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, ६४३५). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: उवएसरयणकोसं नासिअ; अंति: हियए रमइ संसारे, गाथा-२५. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: उपदेशरूप रत्ननो कोश; अंति: सदा रमे श्रीये करी. ७२७१५. (2) स्तोत्र संग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ४, प्रले. पंडित.सामलचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, १४४३४-३८). १. पे. नाम. सारदा स्तोत्र, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, वि. ९वी, आदि: कलमरालविहंगमवाहना; अंति: रंजयति स्फुटम्, श्लोक-१३. २.पे. नाम. सारदा स्तोत्र, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: राजमती देवता भारती; अंति: मेधामावहति सततमिह, श्लोक-९. ३. पे. नाम. पद्मावती स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण. पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., पद्य, आदि: जय जय जिनशासन सामिनी; अंति: करजोडी कवियण विनवइ, गाथा-१५. ४. पे. नाम. परमेष्टि नमस्कार, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: परमेष्ठिनमस्कार; अंति: राधिस्थापि कदाचन, श्लोक-८. For Private and Personal Use Only Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४६७ ७२७१६. (*) नवतत्त्वप्रकरण व सिद्धों के पंद्रहभेद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. जैवे. (२५.५४१२, १३४३२) १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: अनंतभागो य सिद्धि गओ गाथा- ४७. 1 २. पे नाम, सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, पृ. ३आ, संपूर्ण १५ भेद सिद्ध उदाहरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धा अरिहंता, अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-४. ७२७१७. (+) पार्श्वजिनस्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, आश्विन शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. सौजन्यसागर (गुरु ग. हेतुसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१२, ६- ९३९-४७). " पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासनाह; अंति: पासचंद० परमारथ लहे, गाथा- २३. पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो १ दंडक नारकी, अंति: नामची मोक्षपदवी पामइ. ७२७१८. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. (२५.५X११.५, १३४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण, अंतिः संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२७२०. (+) पाखीखामणा विधि व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.ग. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१२, ८४३५). १. पे. नाम. पाखीखामणाविधि सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. क्षामणकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छउं हे क्षमाश्रमण; अंति: वचने करी वांदउं छउं . २. पे नाम, क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या, अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ७२७२१. पाखीपडिक्कमणादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२३.५४१०.५, १६x४८). १. पे. नाम. पाखीपडिकमणा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरी प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा. गु., पग, आदि मुहपत्तिर्वदणय अंतिः सव्वे पक्खिपडिक्कमणं, गाथा-३, (वि. विधि सहित) २. पे. नाम. राईपडिकमणा विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. राई प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: पडिलेहण करी. ३. पे. नाम. देववांदणा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि नोकार; अंति: चैत्यवंदन पूरो कही. ७२७२२. (*) ब्रह्मचर्य सज्झाय व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X१०.५, ८-११X३६). १. पे नाम, ब्रह्मचर्य सज्झाय, पृ. ९अ संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन- १६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचर्यना दश; अंति: उदयविज० गुरु धन्य रे, गाथा- ६. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक पंखी बोलीयो सब; अंति: सरकिण हीन संधीयो, गाथा-२. ७२७२३. योगशास्त्र-पंचमप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२३.५x१०, ११४३३). יי For Private and Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४६८ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १३वी, आदि: (-); अंति: (-), (प्रतिअपूर्ण, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण श्लोक-४४ अपूर्ण तक लिखा है.) ७२७२४. (+#) वंदित्तुसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २- १ (१) = १, पू. वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२७४११.५ १२४३५). " वंदित्सूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू. वि. गाथा ६ अपूर्ण से ३२ तक है.) ७२७२५. दानशीलतपभावना चौढालियो संपूर्ण, वि. १८४७, आषाद कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल आठवा, प्र. मु. खुश्यालहंस, प्र. ले. पु. सामान्य, जैवे. (२६४११, १६४३८). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १६६२, आदि: प्रथम जिनेसर पाय; अंति: वृद्धि सुप्रसादोरे, ढाल ४, गाधा- १०१. (#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. मोहनसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२५४११.५, १२४४४). महावीरजिन स्तवन- उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७उ, आदिः श्रीवीरजिणेसर सुपरि; अंतिः विनय मुझ भव भवइ, गाथा-२७. ७२७२८. (४) उत्तराध्ययन सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे ३, प्र. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फेल गयी है, जैवे. (२४४११.५, १३x४०). १. पे. नाम. प्रथम स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र- अध्ययन १ विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पवयण देवी चीत धरीजी, अंतिः विनय सवल सुखकंद, गाथा ८. २. पे. नाम. चतुर्थ अध्ययन स्वाध्याय, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-४ प्रमादवर्जन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि अजरामर जग को नहि, अंति: सीस उदय० परमाणंदो रे, गाथा- ७. ३. पे. नाम. प्रबोध लावणी, पृ. १आ, संपूर्ण. औपदेशिक लावणी, अलाबगस, पुहिं, पद्य, आदि: वडे सजन बइमान दगाकर, अंतिः अलाचगस० पर बीतेगी ऐसी, गाथा-४. ७२७२९. (# ) सीतारामसर्वायुमान विचार संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५X११.५, १३X३३). सीताराम सर्वायुमान विचार, सं., गद्य, आदि: त्रिभिः वर्ष सहस्राणि अंतिः जिनो भविष्यति, ७२७३१. (+) नेमिजिनरास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२६×११.५, १८X५४). १. पे. नाम. नेमिजिन रास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण, वि. १८२६, प्रले. ग. सौजन्यसागर (गुरु ग. हेतुसागर), प्र.ले.पु. सामान्य. नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: सारद पाय प्रणमी करी; अंति: पुन्यरतन० नेमजिणंद, गाथा- ६८. २. पे नाम, नेमिजिन श्लोक, पृ. २आ-३आ, संपूर्ण. मु. कुशलकल्याण, मा.गु., पद्य, वि. १७९८, आदि: वाणी वरसति सरसति, अंति: कुसलकल्याणी० जिनवाणी, गाथा - ७२. ७२७३२. (+) मिध्यात्वनिराकरण पट्त्रिंशिका, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२६४१२, १५X४४-४८). For Private and Personal Use Only महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: प्रशांत दर्शनं यस्य अंतिः जिनो वा नमस्तस्मै, श्लोक-३७. ७२७३३. अक्षर बत्रीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., जैदे., (२५.५x११.५, १४X३६). अक्षरबत्रीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु., पद्य, आदि: कका थे किरिया करौ; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२७ अपूर्ण तक है.) Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४६९ ७२७३४. (#) बृहत्संग्रहणी सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२-६१(१ से ६१)=१, पू.वि. मात्र बीच का ही एक पत्र है., प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ४४२७). बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२६९ अपूर्ण से २७४ अपूर्ण तक है.) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, आदि: (-); अंति: (-). ७२७३७. बारव्रतटीप, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४१०.५, १७X५८). १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, आदि: देव श्रीअरिहंत अढार; अति: ए बारव्रत टीप जाणवी. ७२७३८. आदिजिन स्तवन व शृंगारिक पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. पं. रूपविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२१४११.५, १३४३१). १.पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: आदेश्वर पहेला नमूरे; अंति: मोहन० तु प्राणाधार, गाथा-५. २.पे. नाम. शृंगारिक पद, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. रा., पद्य, आदि: कठडैव वाडु हो भमर; अंति: देरे दरिया पाररा, पद-४. ७२७४०. (#) सौभाग्यपंचमी स्तवन व महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २,प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, १३४३५-३८). १.पे. नाम. सौभाग्यपंचमीस्तवन, पृ. १अ-२आ, संपूर्ण. नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., पद्य, आदि: शारद मात पसाउले निज; अंति: दयाकुशल आणंद थयो, ढाल-३, गाथा-३४. २. पे. नाम. महावीरजिन स्तवन, पृ. २आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी श्रीगुरु पाय; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., प्रथम वाक्य अपूर्ण से ढाल-२, गाथा-७ अपूर्ण तक व अन्तिम कलश नहीं लिखा है.) ७२७४१. (4) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८६२, चैत्र कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. रामविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १२४३७). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार; अंति: मोक्षं प्रपद्यते, श्लोक-४४. ७२७४२. (4) बुध रासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. लालसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६.५४११.५, १६x४६). बुद्धिरास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमी देवी अंबाई; अंति: सालभद्र० टलै कलेस तो, गाथा-६३. ७२७४३. (+) दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १५४५, आषाढ़ शुक्ल, ८, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२५.५४११, १७४४०-४५). दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., पद्य, आदि: पय पणमिय सरसति वरसति; अंति: लावण्यसम० सिद्धिगामी, गाथा-१२. ७२७४४. (+) वीसस्थानकतप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१०.५, १३४३७). २० स्थानकतप विधि, सं., गद्य, आदि: ॐ ह्रीं नमो अरिहंताण; अंति: तुभ्यं नमो नमः. ७२७४५. (4) श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, संपूर्ण, वि. १८७०, आषाढ़ कृष्ण, ६, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. ध्राणपुर, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १३४४०). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदेतु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चउवीस, गाथा-५०. ७२७४७. (#) खंधकमुनि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४०). For Private and Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची खंधकमुनि सज्झाय, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीजिनवाणी सदगुरु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ढाल-२, गाथा-१४ तक लिखा है.) ७२७४८. महावीरद्वात्रिशिंका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १७४३६-३९). महावीरद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: सदा योगसात्म्यात्; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक-२० अपूर्ण तक लिखा है.) ७२७४९. (+#) स्याद्वाददृढकरण स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४११.५, १७४३५). १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: स्यादवादमत श्रीजिन; अंति: श्रीसार० रतन बहुमोल, गाथा-२१. ७२७५०. (+) पंचपरमेष्ठि स्तोत्र अवचूरि व विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले. ग. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२६४११, १८४४५-५०). १.पे. नाम. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र अवचूरि, पृ. १अ, संपूर्ण. पंचपरमेष्ठि स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: संसारभयहरणं; अंति: पततितेन पुस्तकभरितेन. २. पे. नाम. पंचपरमेष्ठि विवरण, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: ॐ नमो अरिहंताणं; अंति: साधवः सदा स्मरतः. ७२७५१. चौवीसजिन देहमान, आयुमान, चक्रिण आदि विवरण व चतुर्विंशतिजिन अंतराण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२५.५४११, १३-३३४१६-४३). १. पे. नाम. चौवीसतीर्थंकर चक्रिण, केसवा,देहमान,आयुमान आदि विवरण, पृ. १अ, संपूर्ण. २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, आदि: ऋषभ भरत धनुष ५००; अंति: हस्त ७ वर्ष ७२. २.पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन आंतरा, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, आदि: निर्वाण आंतरु; अंति: वीर स्वामी आंतरु २४. ७२७५२. (+) आध्यात्मिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, ११४३७). आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दयानंद, मा.गु., पद्य, आदि: अणसमज्यां दिलमें; अंति: अब मे पण चाकर छांजी, गाथा-३०. ७२७५३. चौदनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १,प्र.वि. अंत मैं जीवविचार, गाथा-२ का उत्तरार्द्ध बालावबोध के साथ दिया गया है., जैदे., (२३४१०.५, ११४२६). १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, आदि: सचित्त वस्तु ते फल; अंति: एचउद नियम गाथा. ७२७५४. रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२३४११, ११४२७). रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अवनितल नयरी वसे जी; अंति: ते नरनारी धन्य रे, गाथा-३१. ७२७५५. (#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४३७). १.पे. नाम. विजयसेठविजया सेठाणी सज्झाय, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठीरे पंच; अंति: हर्षकीर्ति० घर अवतरै, ढाल-३, गाथा-२४. २. पे. नाम. कर्म सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: देव दाणव तीर्थंकर; अंति: कर्मजी राजरे प्राणी, गाथा-१८. ३. पे. नाम. मधुबिंदु सज्झाय, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: सरसती मुझरो मत दीयो; अंति: परमसुख में मांगीइं, ढाल-५, गाथा-१०. ४. पे. नाम. दशार्णभद्रऋषि सज्झाय, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४७१ दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सारद बुधदाइ सेवक, अंति: लालविजय निसिदीस, गाथा-१८. ७२७५६. (+#) आलाप पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. पादलिप्तनगर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११.५, ३०४६२). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., पद्य, वि. १०वी, आदि: गुणानां विस्तर; अंति: यथा जीवस्य शरीरमिति, अधिकार-१९, सूत्र-२२८. ७२७५७. सिद्धांतसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, जैदे., (२५४११, १५४४१). सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, आदि: ५२६ योजण ६ कला; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ४ महाव्रत का विवरण अपूर्ण तक लिखा है.) ७२७५८.(#) १२ भावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७५८, ज्येष्ठ शुक्ल, २, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. गुलालविजय गणि (गुरु पं. रतनविजय गणि), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४११, २०४५२). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., पद्य, वि. १७०३, आदि: पास जिणेसर पाय नमी; अंति: वन भणी जेसलमेरू मझार, ढाल-१३, गाथा-१३०, ग्रं. २००. ७२७५९. (4) सीमंधर व आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२२.५४११, १०४२६). १.पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: पुक्खलवइ विजया जयो; अंति: रे भयभंजण भगवंत, गाथा-७. २. पे. नाम. आदिजिन स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजीगणि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: जगजीवन जगवाल हो; अंति: यशविजये० पोष लालरे, गाथा-५. ७२७६०. पुद्गलसंख्या स्तवन व कोडिशिला विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पंचपाठ., जैदे., (२६४११, ११४३०). १.पे. नाम. पुद्गलसंख्या स्तवन सह अवचूरि, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पुद्गलसंख्या स्तवन, सं., पद्य, आदि: श्रीवीतराग भगवंस्तव; अंति: श्रेयः श्रियं प्रापय, श्लोक-११. पुद्गलसंख्या स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: हे श्री वीतराग हे; अंति: श्रियं प्रापयः. २.पे. नाम. कोडिसिलाविचार गाथा, पृ. १आ, संपूर्ण. कोटिशिला विचार गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जो अणपिहलाद्यामा; अंति: देविव्व कोडिसिला, गाथा-६, (वि. विचारसप्ततिका एवं पद्मचरित्र से उद्धृत) ७२७६६. पार्श्वजिन स्तोत्र व मंत्रादि संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २-१(१)=१, कुल पे. ३, जैदे., (२३४११, १२४३३). १.पे. नाम. गौडीपार्श्वनाथ, पृ. २अ, अपूर्ण, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., पद्य, आदि: (-); अंति: रामेण सर्वदा, गाथा-१४, (पू.वि. गाथा-९ अपूर्ण से है.) २.पे. नाम. पार्श्वजिन मंत्र, पृ. २अ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: ह्रींकारे चंद्रमध्ये; अंति: पातुमां पार्श्वनाथ, श्लोक-१. ३. पे. नाम. लघुस्तोत्र, पृ. २आ, संपूर्ण.. पार्श्वजिन लघुस्तोत्र, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदि: कुरु कुरु रसने गुण; अंति: लक्ष्मीवल्लभ जिनयागे, श्लोक-७. ७२७६७. (+) हितोपदेश अधिकार व शील सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. २, प्रसं.मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४११, १२४४०-५०). १.पे. नाम. हितोपदेश अधिकार, पृ. १अ२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: सुण सुण कंता रे सीख; अंति: कर्मचंद कहे जग निलो, गाथा-१०. २. पे. नाम. शील सज्झाय, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. मु. कर्मचंद, मा.गु., पद्य, आदि: एक अनोपम सीखामण खरी; अंति: कर्मचंद इम उच्चरै, गाथा-१०. ७२७६८. धरणेंद्रसूरिगुरुगुण गीत, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२६४११.५, ११४४२). धरणेंद्रसूरिगुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, आदि: स्वस्तिश्री गुज्जर; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-१२ तक लिखा है.) ७२७६९. (+#) लोकद्वात्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पंचपाठ-संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, ९४३६). . लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि: जिणदसण विणा जं लोअं; अंति: यह जहा भमह न इह भिसं, गाथा-३२. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, आदि: जिनदर्शनं विना; अंति: अत्यर्थं न भ्रमत. ७२७७३. (+#) चिंतामणिपार्श्वनाथ स्तवन, गुरुगण पद व नेमराजुल पद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, १४४४०). १.पे. नाम. चिंतामणी पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-चिंतामणि, मु. चिमनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु मुझ तारो रे; अंति: चिमन० कारिब सारी ने, गाथा-६. २. पे. नाम. गुरुगुण पद, पृ. १आ, संपूर्ण. चिमनसागरगुरुगुण पद, मु. चिमनसागर शिष्य, पुहिं., पद्य, आदि: गुरुजी मोहे ग्यान; अंति: सेवत श्रुतरस पावोरी, गाथा-४. ३. पे. नाम. नेमराजिमती पद, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. चिमनसागर, मा.गु., पद्य, आदि: तेने कैसी मोहनी नारी; अंति: चिमन मुगति मझार रे, गाथा-५. ७२७७४. स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, ले.स्थल. डीसा, प्रले. चिमनसिंधु, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५.५४११,११४४०). १. पे. नाम. सुविधिजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, पुहिं., पद्य, वि. १८वी, आदि: दिन दिन वान चढत गुन; अंति: तामे दीजो भक्ति सराग, गाथा-५. २. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तुति, मु. जिनपद्म, सं., पद्य, आदि: तमालनीलच्छविपिच्छला; अंति: सहितं सहितं समंतात्, श्लोक-७. ३. पे. नाम. पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-जीरापल्लि, म. मेरुनंदन, सं., पद्य, आदि: असुरनरसुरेंद्रश्रेणि; अंति: मेरुनंदिन श्रीसनाथ, श्लोक-८. ७२७७६. शनिश्चर स्तोत्र व करकंडू सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२२४११, ८-११४३०-३५). १. पे. नाम. शनिश्वर स्तोत्र, पृ. १अ, संपूर्ण.. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंति: वृद्धिं जयं कुरु, श्लोक-११. २. पे. नाम. करकंडू सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: चंपानगरी अतिभली हुं; अंति: (१)प्रणम्या पातक जाय रे, (२)करुं वंदना हुवारी, गाथा-६. ७२७७७. (+) आदिनाथ चरित्र व नवग्रह वेदिकास्थापनादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संशोधित-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १७४४०). १. पे. नाम. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र- पर्व-१ श्लोक ७३५ से ७४३, पृ. १अ, संपूर्ण. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४७३ २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि शुभं, श्लोक-११. ३. पे. नाम. नवग्रह वेदिकास्थापनादि विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., प+ग., आदि: कस्मिर्कायां रविं; अंति: मंडलान्येव मालिखेत, श्लोक-४. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. __सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७२७७८. (#) नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११.५, १३४४२). नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम विलुधी पदमणी; अंति: गढ नाथ सरे सुर नेम, गाथा-४५. ७२७७९. (+) गोडीजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १०x२८). पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. वसता, रा., पद्य, आदि: जोर बन्यो बन्यो; अंति: मानीज्यो निजदामेव, गाथा-१६. ७२७८०. (#) स्तवन, पद व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४४१०.५, १४४३३). १. पे. नाम. अतीतचौवीशी पद, पृ. १आ, संपूर्ण. अतीतचौवीशीजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: नित नित अतीत चौवीशी; अंति: श्रीअरतागतमि सरनांम, गाथा-२. २.पे. नाम. अनागत चौवीसी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे भविसंति अणागए; अंति: साच करी सरदह्या, गाथा-९. ३. पे. नाम. समस्यागर्भित श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण. समस्या श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: कज्जले कमलं दृष्ट्वा; अंति: ऋत० आव वेग सुरराज, श्लोक-२. ४. पे. नाम. हनुमान स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. सं., पद्य, आदि: कुतोहतारण्ये कनक; अंति: सेर सालतरवः करोमिकं, श्लोक-५. ७२७८४. विमलमंत्रीश्वर सज्झाय व स्तवन चौवीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४३०). १.पे. नाम. विमलमंत्रीश्वर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जो इक मोरी अबाव आइ; अंति: पावै रे सुख संपदा, गाथा-१८. २. पे. नाम, स्तवन चौवीसी, पृ. १आ, संपूर्ण. २४ जिन स्तवन, मु. कवियण, रा., पद्य, आदि: ऊँचा ऊँचा तो देरा; अंति: दोइ करजोडि लागु पाय, गाथा-१७. ७२७८५. (+#) ऋषभजिनस्तवन-चौदगुणस्थान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडतानगर, प्रले.मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२.५, १६४५६). आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरंत अनंतकंत गुण; अंति: पद्मसागर० सुखसंपदा, गाथा-२१. ७२७८७. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५५). २४ जिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि तत्त्वानि; अंति: पद्मास्यनु भारतीयः, श्लोक-२७, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक-२७ पर ही कृति समाप्त कर दी है.) २४ जिन स्तुति-यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: विस्तार्य विनीतेषु; अंति: अंतराय स श्री० पद्मा. ७२७८९. (+) जिनप्रतिष्ठानंतर थाली में अक्षतप्रक्षेप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४३४). जिनप्रतिष्ठानंतर अक्षतप्रक्षेप विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिष्ठानंतर; अंति: एते प्रतिष्ठा गुणाः. ७२७९१. (4) चंद्रप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. धाणेरानगर, प्रले. ग. मनोहरसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २०४५०). For Private and Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची चंद्रप्रभजिन स्तवन- सूत्रार्थं विचारगर्भित, मु. चारित्रसागर, मा.गु., पद्म, आदि: सरसती वरसती सगतिरूप; अंतिः चारित्र उदधि सुहंकरो, दाल- ११, गाथा ८१. ७२७९४. पडिलेहणाविचार कुलक, अष्टभंगी व पडिलेहणाविचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैवे., (२५X११.५, १७x४९). १. पे. नाम. पडिलेहणाविचार कुलक- गाथा १ से ५. पृ. १ अ. संपूर्ण. पडिलेहण कुलक- हिस्सा गाथा १-५. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि सुत्तत्यविधी १ अंति: निजतणत्वं मुणिबिंति, गाथा-५. पडिलेहण कुलक- हिस्सा गाथा १ - ५ - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सूत्रार्थतत्त्वदृष्ट; अंति: प्रतिलेखनाविज्ञेया, (वि. अंत में (मारुगुर्जर) मुंहपत्ति के ५० बोल एवं स्त्रियों के लिये मुंहप्तत्ति के ४० बोल के बारे प्रतिलेखक ने लिखा है.) २. पे नाम. आवक-श्राविका मुँहपत्तिवोल विचार पृ. १अ, संपूर्ण. मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: साधु श्रावकने, अंति: त्रीने बोल ४० जाणिवा. ३. पे. नाम. स्थापनाचार्य के १३ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण. स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ सुद्ध स्वरुपना, अंति: कायगुप्ति १३. ४. पे. नाम. पडिलेहणविचार संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: साधु श्रावकना ५० बोल; अंति: एउ परावी पडिलेहण छइ. ५. पे. नाम. स्थापनाचार्य पडिलेहण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदि: शुद्धस्वरूपस्य चिंतन, अंतिः चिंतनीयं यदुक्तं (वि. धर्मरत्नप्रकरण-वृत्ति से उद्धृत) ६. .पे. नाम. ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: न जाणह न आदरइ न पालह, अंतिः सर्वविरति ५ आरांमाहे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२७९९ (*) संबोधसप्ततिका, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. विनयराज (बृहत्खरतर) पठ श्राव. लक्खु लुंभा (पिता श्राव. भा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५x१२, १२४३३-३८). संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं तिलोयगुरु; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा- ७५. ७२८००. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. अचलसुंदर, पठ. श्राव. आणंदरुप शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२७X१२, १४X३४). ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुचरण नमी करी; अंति: उदयरतन० राखो निरमली, ढाल - १०, गाथा- ४६. ७२८०१. (d) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल सांडेरानगर, पठ. मु. हरचंद (गुरु ग. मोहनविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११×३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४. "" ७२८०२, (+) दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२.५४७.५, १३४५२). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पढिएअ कहिअ परिहरउट्ट, अंतिः तहा सत्तहामंडली जइणो. ७२८०३. प्रतिबोधगीत व दूहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५x११.५, १३x२८). १. पे. नाम. प्रतिबोध गीत पू. १अ १आ, संपूर्ण. औपदेशिक भास, कीकु, मा.गु., पद्य, आदिः वणजारा रे उभउ रही, अंतिः कीकउ० करे विणजारा रे, गाथा १९. २. पे. नाम. जैनदूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण. जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: धरम न वाडी निपजै, अंति: जाइ गुज जीहांन, गाथा-३. ७२८०६. (+) आत्मनिंदाष्टक, संपूर्ण वि. १९०१ श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२५x१२.५. १४४४०). आत्मनिंदाष्टक, सं., पद्म, आदिः श्रुत्वा श्रद्धाय: अंतिः कार्य हा कर्मभिः श्लोक-१०. " "" . For Private and Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४७५ ७२८०८. (#) शंखेश्वरपार्श्वजिन स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८४९, फाल्गुन कृष्ण, ७, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १६x४८). पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., पद्य, वि. १७१२, आदि: जय जय जगनायक; अंति: लब्धि० मुदा प्रणम्य, गाथा-३२. ७२८०९. (+) अष्टमीतिथि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२४.५४१२, १५४४३). अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: हां रे मारे ठाम धर्म; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., कलश अपूर्ण तक है.) ७२८११. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९१, ज्येष्ठ कृष्ण, ९, मध्यम, पृ. १, प्रले. ग. ग्यानविजय पं. प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२४४११.५, १०x४०). महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चउमासी पारणुं आवे; अंति: शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा-८. ७२८१२. सिद्धचक्र स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२२.५४१२, १४४२८). सिद्धचक्र स्तवन, उपा. वीरसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: नवपदनो रे ध्यान धरी; अंति: समो तप नही तोले हो, गाथा-१८. ७२८१३. (+#) सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५४११.५, १६x४७). १.पे. नाम. नंदिषेणमुनि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. मेरुविजय, मा.गु., पद्य, आदि: राजग्रही नगरीनो वासी; अंति: साधु नै कुण तोले हो, ढाल-३, गाथा-१३. २.पे. नाम. ढंढणऋषि स्वाध्याय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण, ले.स्थल. ध्राणपुरनगर, प्रले. पं. चतुरसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण ऋषिजीनै वंदणा; अंति: कहै जिणहरष सुजाण रे, गाथा-९. ३. पे. नाम. इरियावही सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण. मु. मेघचंद्र, मा.गु., पद्य, आदि: नारी रे मी दीठी एक; अंति: एहनी करो घणी सेवरे, गाथा-७. ७२८१४. बीजतिथि स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४.५४११.५, १६x४०). बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., पद्य, वि. १८१९, आदि: श्रीश्रुतदेवि पसाउले; अंति: गणेशरूचि० वंदु पाय, गाथा-१९. ७२८१५. शांतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पठ. मु. चमना (गुरु पंन्या. फतेंद्रसागर गणि); प्रले. पंन्या. फतेंद्रसागर गणि, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४११.५, १५४३६). शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, आदि: अचिरानंदन प्रणमीये; अंति: जिनेंद्रसागर गुणगाया, गाथा-२५. ७२८१६. स्तुति संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ७, जैदे., (२६४१२, १४४३६). १.पे. नाम. बीजरी थुई, पृ. १अ, संपूर्ण. बीजतिथि स्तुति, म. लब्धिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: दिन सकल मनोहर बीज; अंति: कहे पुरो मनोरथ माय, गाथा-४. २. पे. नाम. पंचमीरी थूइ, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीनेमिः पंचरूप; अंति: कुशलं धीमतां सावधाना, श्लोक-४. ३. पे. नाम. अष्टमीरी थुई, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करी जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याणो जी, गाथा-४. ४. पे. नाम. एकादशीरी थुई, पृ. २अ, संपूर्ण. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: एकादशी अति रुअडी; अंति: निवारो संघतणा निशदिश, गाथा-४. ५.पे. नाम. चतुर्दशीतिथि थुइ, पृ. २अ-२आ, संपूर्ण. पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: स्नातस्या प्रतिमस्य; अंति: सर्वकार्येषु सिद्धं, श्लोक-४. ६. पे. नाम. पूनमरी थुई, पृ. २आ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., पद्य, आदि: पुंडरिकमंडण पाय; अंति: दे सुखकंदा जी, गाथा-१. ७. पे. नाम. अमावस्यातिथि स्तुति, पृ. २आ, अपूर्ण, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ___ आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: अमावस्या तो थइ उजली; अंति: (-), (पू.वि. मात्र प्रथम गाथा अपूर्ण तक है.) ७२८१७. सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १८४५१). १.पे. नाम. ढंढणरिषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढणरिषिने वंदणा; अंति: कहे जिनहर्ष सुजाण रे, गाथा-९. २.पे. नाम. दशश्रावक सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., पद्य, आदि: प्रह उठि प्रणमुं; अंति: कहे मुनि श्रीसार रे, गाथा-१४. ३. पे. नाम. शालिभद्र सज्झाय, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण. शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम गोवाल तणे भवे; अंति: सहजसुंदरनी वाण, गाथा-२०. ७२८१८. व्याख्यान पद्धति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५४११.५, १२४४०). व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, आदि: भगवंत वीतरागनी वाणी; अंति: ते संबंधना वाचना. ७२८१९. चौवीसदंडकप्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, दे., (२०x१०.५, २४२७-३०). दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, वि. १५७९, आदि: नमिऊंचउवीस जिणे तसु; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा ७ तक लिखा है.) दंडक प्रकरण-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, आदि: नमिउ क० नमस्कार करी; अंति: (-), अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ७२८२०. चैत्यवंदन व स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२४४१२, ९४२१-२७). १.पे. नाम. ऋषभजिन चैत्यवंदन, पृ. १अ, संपूर्ण. आदिजिन चैत्यवंदन, मु.रूपविजय, मा.गु., पद्य, आदि: प्रथम नमु श्रीआदि; अंति: धणी रुप कहे गुणगेह, गाथा-३. २.पे. नाम. संभवजिन स्तवन, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७३०, आदि: संभव जिनवर वीनती; अंति: वाचक जस० साचुरे, गाथा-५. ७२८२१. (2) मेवाडदेशवर्णन छंद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११, १३४३३). मेवाडदेशवर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., पद्य, वि. १८१४, आदि: मन धरी माता भारथी; अंति: जैनेंद्र० चिर नंद, गाथा-१२. ७२८२३. (+) आलोयणा विधि व तपसंज्ञा गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४, कुल पे. २, अन्य. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रायश्चित विधान हेतु गुरूमास, चतुर्लघु, चतुर्गुरू, षड्लघुव षड्गुरू का चिह्न दिया गया है., संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रायः शुद्ध पाठ-टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२६४११, १३४४४-४८). १.पे. नाम. आलोयणा विधि, पृ. १अ-४अ, संपूर्ण. प्रा.,सं., गद्य, आदि: सामान्येन सूत्रस्य; अंति: मासा एवेति षण्मासिकं. २.पे. नाम. संबोध प्रकरण-तप संज्ञा गाथा, पृ. ४आ, संपूर्ण. ___ संबोध प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), प्रतिपूर्ण. ७२८२४. (-) उपदेशबत्तीसी, संपूर्ण, वि. १९०५, फाल्गुन शुक्ल, ९, शनिवार, श्रेष्ठ, पृ. १, ले.स्थल. लाठानगर, प्रले. पं. फतेंद्रसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. श्रीचंद्रप्रभुजी प्रसादात्., अशुद्ध पाठ., दे., (२७४१२, १७४४५). उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं., पद्य, आदि: आत्मराम सयानि तु जतै; अंति: सदगुरु शीख सुणीजै, गाथा-३२. ७२८२५. (+#) सोलस्वप्न सज्झाय व स्तवन संग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२-९(१ से ९)=३, कुल पे. ३, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२३४११, ११४३०). १.पे. नाम. चंद्रगुप्तराजा सोलस्वप्न सझाय, पृ. १०-१२अ, संपूर्ण. For Private and Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर, अंति: जेनधर्म साचौ जाणो रे, ढाल - २, गाथा - ३५. २. पे नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. " पन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि: राति दिवस नित सांभरे, अंतिः पचने मंगलमालो लाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन- सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: सहसफणा प्रभु पासजी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक हैं.) ७२८२७. विजयक्षमासूरिगुरु स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१०X८.५, १८x१७). विजयक्षमासूरिगुरू स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरो पादयुगं अंतिः चारित्रतो दुर्लभाः, श्लोक-१३. ७२८२८. (+) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि व लोकसंग्रह, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित, जैदे., ( २६११, ३०X९०-९३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रावरणरहितोन्यथायथा. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. लोक संग्रह * पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), रोक-थ ५. 1 १. पे नाम, साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह अवचूरि. पृ. १अ संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: ठाणे कमणे चकमणे; अंति: इयत्तं म गहिअं. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अथ देवसिक रात्रि, अंति ४७७ " ७२८२९. (+#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X११.५, १३३१). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. डाल-८, गाथा १०२. ७२८३०. (४) भावारिवारण स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३x४६). महावीर जिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु, अंतिः वसदं दृष्टं दयालो मे श्लोक-३०. ७२८३३. (*) पंचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९०३ श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २१-२० (१ से २०) = १ ले. स्थल. द्रोणपुर, प्र. मु. चिमनसिंधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में प्रथम महाव्रत सज्ज्ञाय किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है, सज्झाय२ से ४ अज्ञात प्रतिलेखक द्वारा तथा अनुपुरित पाठ उल्लिखित प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. प्रतिलेखन पुष्पिका भी अनु प्रतिलेखक की है. संशोधित. जैवे. (२४४१०.५, १७४४८). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: कंति०भणै ते सुखह लहै, बाल-५, संपूर्ण ७२८३४. () पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६५११, ५०x२६-३०). १. पे. नाम. थंभणपुर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ चौसालो, गाथा -९. २. पे. नाम. पारस स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मास सुहामणो; अंति: ज्ञान० वंछित दायरे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. गौडी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरौ तौ मानीने लीजै; अंति: मोहन० प्रणमीजै रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ७२८३५. ज्योतिष, स्तोत्र व सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., (२५४१२, १५४४८). १. पे. नाम. शकुनविचार संग्रह, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, आदि: यत्र संप्रविस्थित; अंति: पयाहिणे सव्व संपत्ती, श्लोक-२२. २. पे. नाम. पार्श्व स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: अहँ श्रीपार्श्वनाथ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., श्लोक ३ तक लिखा है.) ३. पे. नाम. औपदेशिक पद, पृ. १आ, संपूर्ण. आत्महितशिक्षा सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, आदि: प्रभु साथे जो प्रीत; अंति: उदयरतन इम बोले रे, गाथा-६. ७२८३८. हीरविजयसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८५४, भाद्रपद शुक्ल, ११, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२४४११, १३४३४). हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., पद्य, आदि: बे कर जोडीजी वीनवू; अंति: होज्यो मुझ आणंद, गाथा-१६. ७२८३९. (#) रास, स्तवन व सज्झायादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ६, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४१२, १९४५०). १.पे. नाम. प्रतिमाहुंडीरास, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. जिनप्रतिमाहंडिरास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७२५, आदि: सुयदेवी हीयडै धरी; अंति: जिनहरष कहंत कि, गाथा-६७. २. पे. नाम. महावीर स्तवन, पृ. २अ-३अ, संपूर्ण. महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., पद्य, वि. १७२६, आदि: श्रीश्रुतदेवी तणे; अंति: मुजने सदगुरू तूठो रे, गाथा-३९. ३. पे. नाम. कवित संग्रह, पृ. ३अ, संपूर्ण. काव्य/दुहा/कवित्त/पद्य*, मा.गु., पद्य, आदिः (-); अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा २ अपूर्ण तक लिखा है.) ४. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण. मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: काइ रथ वालो हो राज; अंति: मोहन पंडित रूपनो, गाथा-७. ५. पे. नाम. नेमराजिमती स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मु. मोहन, मा.गु., पद्य, आदि: राजुल कहे रथ फेरो हो; अंति: तस मोहन द्येस्या बास, गाथा-७. ६.पे. नाम. संभव स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. संभवजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: संभवजिन प्यारा मोनु; अंति: आनंदघन० पदवी पायाजी, गाथा-१०. ७२८४१. (+) प्रतिक्रमणसूत्र, स्तुति व पचक्खाण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२५४१२, १३४४३). १. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमण सूत्र, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्धे; अंति: वंदामि जिणे चोवीसं, गाथा-५०. २. पे. नाम. अष्टमीतिथि स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण. आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: मंगल आठ करें जस आगल; अंति: तपथी कोड कल्याणो जी, गाथा-४. ३. पे. नाम. पचक्खाण सूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: सूरे उग्गए अभत्तट्ठ; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., वि. मात्र उपवास का पचक्खाण लिखा है.) ७२८४२. माणिभद्र स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२३४१२, ९४३२). माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु., पद्य, आदि: चित समरु हु; अंति: माणिभद्र समरो सदा, गाथा-२२. For Private and Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ७२८४३. विधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, कुल पे. ४, जैदे., (२३×१०.५, १३X३१). १. पे. नाम. पोसह विधि, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु, गद्य, आदि: इरियावही पडिक्कमी, अंतिः भणु० सामायवयजुत्तो. २. पे. नाम. देववांदवा विधि, पृ. १आ-२अ संपूर्ण वि. १८८३ भाद्रपद कृष्ण, १०, ले. स्थल, सांडेरानगर, प्रले. मु. नंदसागर, प्र.ले.पु. सामान्य. देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावही पडिक० नोकार; अंतिः आ० उ० सर्व्वसाधू ने ०. ३. पे. नाम. प्रातः संध्या पडिलेहण विधि, पृ. २अ २आ, संपूर्ण आवश्यक सूत्र- प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छामि० इच्छाका०; अंति: पडि० पछे काजो काडीजे. ४. पे. नाम. पौषध पचक्खाण, पृ. २आ, संपूर्ण. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: करेमि भंते पोसहं, अंतिः अप्पाणं वोसिरामि ७२८४४. (*) धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे. (२१.५x१०.५, ११×३२). धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., पद्य, आदि: जिनवचने वयरागी हो; अंति: होये जय जयकार रे, गाथा-१३. ७२८४५. आदिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४६, चैत्र शुक्ल, १५, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पालीनगर, प्रले. पं. सदारुचि, पठ. श्राव. मोतीचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (२५X११, १२३३ ). ४७९ शत्रुंजयतीर्थ स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: सहियां मोरी चालो अंतिः अरिहंत श्री आदिनाथ है, गावा- १३. ७२८४६. स्तवन संग्रह, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैवे. (२२.५x११.५, १४x२७). १. पे. नाम. सीमंधर स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, आदि: सीमंधर करजो मया धरजो; अंति: कहे मत मुको वीसार, गाथा- ७. २. पे. नाम. अजितजिन स्तवन, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. अजितजिन स्तवन- तारंगागढ, मु. आगम, मा.गु, पद्य, आदि: साहिबा अजितजिणेसर, अंति: शिवसुख पामीयो रेलो, गाथा-७. ७२८४७. लौंकागच्छ पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., ( २६.५X१२.५, १४-१८x४५-४८). लुकागच्छउत्पत्ती पट्टावली, रा. गद्य, आदि: संवत १५२५ कालूपुर मध, अंति: ९ दिने पदवी दीधी है. ७२८४८. (*) १६ बोल सिखामण, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैवे. (१०.५४८.५, १७X१९). १६ बोल-औपदेशिक, रा., गद्य, आदि: जेहनी सर्धा सुधी होय; अंति: घडी आपणी जीवरी कीजे, अंक-१६. ७२८५२. (+) बासठ मार्गणा, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ (१) - ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे., (२५x११, १२५३३). For Private and Personal Use Only ६२ मार्गणा बोल, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., पद्य, वि. १७८३, आदि: गुरुवचन लही करी आगम, अंति: (-), (पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ढाल - १३ गाथा- ६९ अपूर्ण तक है.) ७२८५३. (+) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार व न्यायावतारसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्र. वि. संशोधित., जैदे., (२५.५X११.५, २५४६०). १. पे. नाम प्रमाणनयतत्वालोकालंकार पृ. १अ ३अ, संपूर्ण. आ. वादिदेवसूरि, सं., प+ग., वि. १९५२-१२२६, आदि: रागद्वेषविजेतारं; अंति: स्फूर्ति च वाच्यम्, परिच्छेद-८, सूत्र- ३७९. २. पे. नाम. न्यायावतारसूत्र, पृ. ३अ - ३आ, संपूर्ण. आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः प्रमाणं स्वपराभासि अंतिः प्रकीर्तिता, श्लोक-३२. ७२८५४. धार्मिकबोल विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २, जैये. (२५.५४११, १३४३५-४०). धार्मिकबोलविचार संग्रह- आगमिक, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: १ वंदित्तुनी ७ गाथा, अंति: अणुगमे अनुयोगद्वारे. ७२८५५. विचारगाथा संग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २- १ (१) १, प्र. वि. पत्रानुक्रम का उल्लेख न होने से काल्पनिक दिया गया है., दे., ( २४.५X११.५, ४X३५). Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४६ अपूर्ण से गाथा-४९ के प्रारंभ तक लिखा है., वि. प्रवचनसार व विचारसार नामक ग्रंथ के अलग-अलग गाथाक्रम में येगाथाएँ मिलती हैं.) ७२८५६. (#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८९६, आश्विन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवेराणी पद्मावती; अंति: विराधिया चोरासी लाख, ढाल-३, गाथा-४१. ७२८५७. (+2) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १२४४८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "समरके सब्रह्मलोके सश्रमण ब्राह्मणिका" पाठांश तक लिखा है.) ७२८५८. (+) दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने "लहुगइणा (शीघ्रगत्या) लहियं" लिखा है., संशोधित., दे., (२५४१०.५, १०x४५). दीक्षाग्रहण विधि, प्रा., गद्य, आदि: सावओ कयावि चरित्तमोह; अंति: पयाहिणवास उस्सग्गो. ७२८५९. (4) त्रिलोकप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३६). ८४ गच्छ सज्झाय, मु. त्रिलोकसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गच्छ चौरासी जग कहे; अंति: तिलोकसा० मंगल गाव्या, गाथा-३८. ७२८६०. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२४१०.५, ११४३०). नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेमि; अंति: विनीत० सुख पामे हो, गाथा-२४. ७२८६१. (#) आदिनाथ देशनाद्वार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं.सुमतिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०-४५). आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८. ७२८६२. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १५४३५). पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-८. ७२८६३. (+) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १५४४६-५०). अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: जीनहर्ष० सुख पावे रे, ढाल-१३, गाथा-१०७. ७२८६९. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०x४०). महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चंपापुरी वनमा; अंति: शुभवीरपद अनुसरे ए, गाथा-७. ७२८७०. (#) रथनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १७४३६-४०). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेहि भीनी जइ गुफामा; अंति: गावेदानविजय उवझाया, गाथा-३१. For Private and Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ॐकार गुरुमहिमा स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदुसंयुक्तं), ७१६५४-१(+) ४ दुर्लभता गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (चत्तारि परमंगाणी),७०१९२-८,७०८९९-२(#) ४ निक्षेप विचार, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (नाम निक्षेप स्थापना), ६९०१४-३५(+), ७०१९२-६ (२) ४ निक्षेप विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (नामजिनने नाम थकी जाण), ७०१९२-६ ४ रत्न गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवदया जिणधम्मो), ७१०८९-२(+#) ५ तीर्थजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमुख्य),७०७२९-२(+) ५ परमेष्ठि १०८ गुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ६९७५०-१(+), ७१३०४, ७२२९८-३(#) ५ परमेष्ठि नमस्कार स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अर्हतो भगवंत इंद्र), ७०८१३-२, ७२१०१-३ ५ परमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमिट्ठमंतसारं सारं), ७०७७४-२(+) ५ प्रमादनाम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मजं विषय कषाया), ६९०१४-५१(+) ५ मिथ्यात्वभेद नाम, सं., गद्य, श्वे., (मिथ्यात्वं पंचधा आभि), ६९६३७-३ (२) ५ मिथ्यात्वभेद नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (हवइ मिथ्यात्वना ५), ६९६३७-३ ५ समवाय विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (काल सभाव नियति पुव्व), ७०१६८-१(क) ६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (परिणामि जीव मुत्ता), ६९८२४ (२) ६ द्रव्यपरिणाम विचार गाथा-विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (षटद्रव्य मध्ये जीव१), ६९८२४ ७ गरणा गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (सुद्धो सावय गेह वर), ६९०१४-७५(+) (२) ७ गरणा गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मीठापाणीनो १ खारा), ६९०१४-७५(+) ७ धातु नामादि विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (अय १ तंब २ तओ ३ सीसग), ६९०१४-४०(+) ८ कर्मविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (इह नाण सणावरण वेय), ६९०१४-५३(+), ७०१९२-३ ८ कर्मस्थिति विचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (नाणे दसणावरणे वेयणि), ६९६२८-६(+) ८ जीवभेद नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (अंडया१ पोउआर जराउआ३), ६९०१४-६८(4) ८ पर्वत नाम, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे.?, (विंध्य पारिजात शुक्त), ६९८४६-१३(+) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु.,सं., ढा. ८, श्लो. ८, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गंगा मागध क्षीरनिधि), ६९६००-२(+), ६९४५२-२, ७१२०७-१ ८ प्रकारीपूजा दहा, प्रा.,मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (अह पडिभगापसरं पयाहिण), ७२२६७(+) ८ योगदृष्टि नाम, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (मित्रा तारा बला),७१६१३-३ ८ सिद्धगुण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नाणंच १ दसणंचेव २), ६९०१४-७०(+) ९निधान स्वरूप विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (निधान माहे जयवंता), ६९०१४-२(+) ९निधानादि विचार गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, म्पू., (नवजोयण वित्थिन्ना), ६९०१४-४(+) १० कल्पवृक्षनाम गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तेसिमत्तंग १ भिंगा २), ७१०५७-३(+) (२) १० कल्पवृक्षनाम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मितगनामा भ्रंगनामे), ७१०५७-३(+) १० पच्चक्खाण विचार सूत्र, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथम चवदै), ७२३९७-३(+#) १० प्रकार अजीवपरिणाम, प्रा., गद्य, मूपू., (बंधण परिणामे१ गइ), ६९०१४-६७(+) १० प्रकार जीवपरिणाम, प्रा., गद्य, म्पू., (गइ परिणामे१ इंदि), ६९०१४-६६(+) १० लक्षण उद्यापन पूजाविधि, मु. सुमतिसागर, पुहिं.,सं., पद्य, दि., (विमलगुणसमृद्धं ज्ञान), ६९१७०(#$) १२ पर्षदा स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (आग्नेयां गणभृद्विमान), ७१९२९-४(+) परिशिष्ट परिचय हेतु देखें खंड ७, पृष्ठ ४५४ For Private and Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ४८२ १२ भावफल लोक सं., श्लो. १, पद्य, वे (तनु १ धन २ सहज ३), ७१५७४-३ " १२ व्रत उच्चारण विधि, प्रा. मा.गु. सं., गद्य, मूप.. (बारखतना पोसह वहि, ७०५८७-४(+) १२ व्रतपूजा विधि, पं. वीरविजय, मा.गु. सं., ढा. १३, गा. १२४, वि. १८८७, पद्य, मूपू., (उच्चैर्गुणैर्यस्य), ६८४८३ (+#), ६९१४९(+), ७०९२४(+४) १३ काठिया गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू (आलस मोह अवन्ना थंभा), ६९०१४५२(+) ७००००-३(+) १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उच्चारे १ पासवणे २), ६९०१४-३९(+), ७२७०९-२(+#) १४ गुणठाणानाम गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, भूपू (मिच्छे सासण मीसे). ७०१९२-४, ७२१५० "" १४ रत्ननाम श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लक्ष्मी कौस्तुभ), ६९८४६-८ (+), ७०१०७-३(+) " १४ विद्यानाम लोक, सं., श्लो. १, पद्य, जै. वै., बी. (शिक्षा १ कल्प), ६९८४६-१०१) १४ आवकभेद श्लोक सं., श्लो. १, पद्य, मूपू (मृता चालिणी महिष हश), ६९८६६-२ 1 " (२) १४ श्रावकभेद श्लोक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु, (सुखे भेदवा योग्य), ६९८६६-२ १४ श्रावकभेद श्लोक सं., प+ग, भूपू (मृत् चालनी महिष हंस), ७११२६-२(+) (२) श्रावक के १४ प्रकार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माटीनी परि गुरुवचने), ७११२६-२(+#) १४ स्थान समुर्च्छिममनुष्योत्पत्ति विचार, प्रा. मा.गु., गद्य, मूपू., (उच्चारेसु वा क०), ६९६३४-५ (+) १४ स्वप्नफल श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (गजेन विश्वस्योडीरो), ७०१६५ (२) १४ स्वप्नफल श्लोक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (गजेन० गज हस्तिनइ), ७०१६५ १४ स्वप्न विचार, सं., गद्य, वे (चतुदैतगजदर्शनात्), ७०६५६-१ (क) १५ भेद मनुष्य के - उपशमश्रेणिगत, प्रा., सं., गद्य, मूपू., ( उवसम१ खयर मीसो३ दय४), ७२५२५-४(+#) १५ भेद सिद्ध उदाहरण गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिणसिद्धा अरिहंता), ७२७१६-२(+) יי १६ कारण श्लोक -असत्यादि, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (असत्यसहिताहिंसा), ६९९१६-१(+) १६ विद्यादेवी स्तवन, प्रा., गा. ६, पद्य, मूप, (जिनसासणं व नमिऊण भाव), ७२०१९-३(+) १६ विद्यादेवी स्तोत्र, प्रा. गा. २१, पद्य, मूपू (संखक्खमालाधणुचाण), ७२०१९-२ (०) " १६ शृंगार नाम, सं., श्लो. १, पद्य, (आदौ मज्जनचारुचीरतिलक), ७०१०७-२ (+), ७२७०९-३ (+#), ७१६३०-४(#) १६ शृंगारनाम श्लोक - पुरुष, सं., श्लो. १, पद्य, (क्षौरं मर्द्दन), ७२७०९-४ (+#) १६ सती स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू १६ सती स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., १७ धान्य गावा, प्रा. सं., गा. ३, पद्य, י १७ संयमभेद नाम, प्रा. सं., गद्य, मूपू (सत्तरसविहे संजमे), ६९०१४-६५ (न (ब्राह्मी चंदनबालिका) ७०००८-२ ७१०५६-२, ७१०७४-३, ७१७२७-४(२), ६९३५५-१(#) (आदौ सती सुभद्रा च), ७०६२६-१(+) श्वे. (कणानां लक्षप्रमाण), ६९०३०-२(+) (+) " १८ दोषरहित अरिहंत विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (अग्यानरहित १ क्रोध), ७००६४-३(+), ६९३५७-२(#) १८ नातरा श्लोक सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू (भ्रातासितनुर्जन्मासि), प्रतहीन. (२) १८ नातरा लोक- टीका, सं., गद्य, मृपू, (भ्राता एकमातृकत्वात् ७२०३८-२(४०) १८ पुराणनाम लोक सं., लो. ४, पद्य, वै., (अष्टादश पुराणानि ), ६९८४६.९(*) १८ भार वनस्पति मान, मा.गु., सं., गद्य, खे, (३८ अडत्रीस कोड ११), ६९०१४- २४(१), ७१०३३-२(+) १८ लिपि नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (हंसलिवी१ भूअलिवी२), ६९८४६-१२ (+), ७११८९-१ १८ हजार शीलांगरथ, प्रा., गा. १८, पद्य, मृपू., (जे नो करंति मणसा), प्रतहीन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) १८ हजार शीलांगरथ-यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (--), ७०७२४($) २० विहरमानजिन स्तवन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (त्रैलोक्यपूज्यस्य), ७१३८५-१(७) २० स्थानकतप आराधनाविधि, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ७०००४-१, ७१८२४(#) २० स्थानकतप आलापक, प्रा., गद्य, म्पू, (अहनं भंते तुम्हाणं). ७०५८७.६ (*) २० स्थानकतप उच्चारणविधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू. (प्रथम इरियावहि पडिकम), ७०२४१-१ For Private and Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ४८३ २० स्थानकतपगाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (अरिहंत सिद्ध पवयण), ६९०१४-१४(+),७१३६८-१ (२) २० स्थानकतप गाथा-टीका, सं., गद्य, मूपू., (तत्राशोकाद्यष्टमहा),७१३६८-१ २० स्थानकतप विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताण), ७२७४४(+), ६९११०-२ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (१ नमो अरिहंताणं २०००), ७०५८१ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नालिकेरादि), ६९०१४-१५(+), ७१०२५ २० स्थानकतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीदयदर्हत्पदवीदवी), ७१५३८-१(६) २० स्थानक नाम, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं १२), ७२५६८-२(+#) २१ मिथ्यात्त्व भेद, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे लौकिक देवता हरिहर), ६९७५०-२(+) २१ श्रावक गुण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स जुग्गो), ६९८६७(+#) (२) २१ श्रावक गुण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मनै जोग्य ते), ६९८६७(+#) २१ स्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, मूपू., (चवण विमाणा नयरी जणया), ७०३४६(+), ७०७८२(+$), ७१२४५(+#),७१९०८(+$),७२३०६(+),७०८९६, ७२२१७,७१०८६(#) (२)२१ स्थान प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (चोवीस तीर्थंकरना २१),७०३४६(+) २२ अभक्ष्य गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पंचुंबर चउविगई हिम), ६९६२८-९(+), ७१०२०(+), ६९९४७-२ (२) २२ अभक्ष्य गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वड पीपल उंबरि अंजीर),७१०२०(+), ६९९४७-२ २२ अभक्ष्य विचार, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (पंचोदंबरी वटपिप्पलो),७०००९-४(+),७१७७०-१,७०४७५ (2) २२ परिषह नाम, प्रा., गद्य, मूपू., (खुहा पिवासा सीत उण्ह), ७०३८२-३(+) (२) २२ परिषह नाम-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भूख त्रिषा सीतोष्ण), ७०३८२-३(+) २३ पदवी गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (चऊदस्स रयणा चक्की), ६९८०८(+) (२) २३ पदवी गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (चौदरत्न १४ चक्रवर्ति), ६९८०८(+) २४ जिन १२० कल्याणक कोष्ठक, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कार्तिकसुदि १ सुविधि), ६९०१४-१२(+) २४ जिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जिनर्षभप्रीणितभव्य), ७०६५८(+#) २४ जिनभवगाथा-भरतक्षेत्र, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (उसह १ ससि र संति ३), ७०३५२-३(+) २४ जिनभवसंख्या श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (श्रीनाभेयजिने त्रयो), ६९०३०-३(+#) २४ जिन स्तव, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (आद्यः श्रीऋषभस्ततो), ७१३७३-४(+#) २४ जिन स्तवन, प्रा.,सं., गा. ५, पद्य, मूपू., (चउवीसं तित्थयरे), ७१०६३-१, ७०८८३-३(-2) २४ जिन स्तवन-माता पिता नगरी लंछनादि गर्भित, मु. उदयवर्द्धन, सं., श्लो. २७, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (वृषभाकितं तु), ७१२२२(2) २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (नाभेयाजितवासुपूज्यसु),७१३७७-२(+#),७०२९२-३($) २४ जिन स्तुति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (आनम्रनाकिपतिरत्न),७०७२९-१(+) २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (जनेन येन क्रियते), ७०५५८-२(+#$) (२) २४ जिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पदं स्या० नं च भवति), ७०५५८-२(+#$) २४ जिन स्तुति, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (यत्राखिलश्रीः श्रित), ७०५५८-१(+#) (२) २४ जिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (यत्राखिलेति यत्र), ७०५५८-१(+#) २४ जिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (तत्त्वानि तत्त्वानि), ७२७८७(+) (२) २४ जिन स्तुति-यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (विस्तार्य विनीतेषु), ७२७८७(+) २४ जिन स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (नतसुरेंद्रजिनेंद्र), ७१३१०-१(२), ७२२४१-३(१) २४ जिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथाजितसंभवेश), ७१३९७-३ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्टियंत्रगर्भित, मु. सुखनिधान, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (आदौ नेमिजिनं नौमि), ६९०२८-११(+), ६९६५४-३(+), ६९९०७-२(+),७००३७(+),७०१२९-२(+),७०१६३-१(+),७०९०७-१,७२२३३-२,७०१२७-२(#) For Private and Personal Use Only Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ २४ जिन स्तोत्र-पंचषष्ठियंत्रगर्भित, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (वंदे धर्मजिनं सदा), ७०८३९-१(+) २४ तीर्थंकर के नाम-गण-योनि-नक्षत्र-राशि-लंछनयंत्रादि सहित, मा.गु.,सं., को., मूपू., (--), ६८६०२-१(+), ७१३२२($) २४ तीर्थंकर सिद्धिगमन आसनवर्णन गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (उसभे नेमी विरोः तिनी), ६९०१४-४५(+) २४ दंडक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (रुचितरुचिमहामणि), ७०२९२-२ २४ भेद कषाय वर्णन, प्रा., गद्य, मूपू., (अनंतानुबंधी क्रोध१), ७०३६४-१ २४ मांडला, प्रा., गद्य, मूपू., (आघाडे आसन्ने उच्चारे), ६९७०५-२, ७०८८१ २४ स्त्रीधर्म विचार, सं., गद्य, मूपू., (प्रहर विवर्जनं करोति), ७२०३८-३(+#) २६ बोल श्रावक मर्यादा, प्रा., गद्य, मूपू., (उल्लणियाविहं १ दंतणव), ६९८३४-१(+) २७ भवनिबद्ध संक्षिप्त महावीरजिन चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम महाविदेहे), ६९७०४-१(+) २८ लब्धिविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (आमोसहि विप्पोसहि), ७०४२४($) २९ भावना प्रकरण, प्रा., गा. ३०, पद्य, श्वे., (संसारम्मि असारे), ७०१२१(+), ७०३२२-२(+), ७१८१९(+#), ७००७३ (२)२९ भावना प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ए संसार असार रूप छइ), ७०१२१(+) (२) २९ भावना प्रकरण-टबार्थ , मा.गु., गद्य, श्वे., (संसार असाररूप छइ),७०३२२-२(+),७००७३ ३० अतिरत्नजाति नाम, सं., गद्य, श्वे., (पद्मराग १ पुप्फराग २), ६९८४६-४(+) ३० चौवीसी जिननाम गणj, मा.गु.,सं., गद्य, मपू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ७२५६५(#) ३२ अनंतकाय गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (सव्वाउ कंदजाई सूरण), ६९६२८-८(+), ६९९४७-३ (२)३२ अनंतकाय गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (सर्व कंदजाति अणंतकाय), ६९९४७-३ (२) ३२ अनंतकाय गाथा-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (सर्वापि कंदजातिरनंतक), ७०००९-३(+) ३२ लक्षण श्लोक-पुरुष, सं., श्लो. १, पद्य, (छत्रं तामरसं धनुषवरो), ६९८४६-२(+) (२) ३२ लक्षण श्लोक-पुरुष-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, (नख १ चरण २ पाणि ३ रस), ६९८४६-२(+) ३५ जिनवचनातिशय नाम, सं., गद्य, मूपू., (संस्कारवत्वश्मौदात्यर), ७०६२६-४(+) ३५ वाणीगुण वर्णन, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संस्कारत्वं संस्कृत), ७१९६३-२(+) ३५ वाणीगुण श्लोक, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (संस्कारवत्वं१ औदात्य), ७००३४(+) (२) ३५ वाणीगुण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संस्कृतादिक लक्षणे), ७००३४(+) ३६ प्रकार आचार्यगुण वर्णन, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (पडिरूवाई चउदस१४ खंती), ६९९२३-१ ३६ प्रकार के युद्ध नाम, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, जै., वै., (सेल्ल१ भल्ल२ बावल्ल३), ६९८४६-५(+) ४२ गोचरी दोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्मु १देसिअ २), ६९६४७(+), ७०६७९(+), ७०७८१(+#), ७१०२९(+), ७११४३(+), ७१२६९,७२००९,७२२७५-१ (२) गोचरी दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आधाकर्मी ते कहीई), ६९६४७(+), ७२००९ (२) गोचरी दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी ते कहीइ), ७०६७९(+), ७०७८१(+2), ७१०२९(+), ७११४३(+), ७१२६९, ७२२७५-१ ४५ आगम कुलश्लोक संख्यामान गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पणयालिसं आगम समग्गा), ६९०१४-९(+) ४५ आगम श्लोक संख्या, सं., गद्य, मूपू., (१ आचारांग २५००२), ६९७२९-२(+) ४७ एषणादोष विचार, सं., गद्य, मपू., (अत्र प्रथमायां), ६९९५२(+) ५१ ज्ञानगुण विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीश्रोत्रंद्रिय), ६९७७५ ५५ शरीरादिकरण गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दव्वसरीरइंदियमणवय), ७२०९५-२(+) (२) ५५ शरीरादिकरण गाथा-यंत्र, मा.गु., को., म्पू., (--), ७२०९५-२(+) ५७ भेद कर्मबंधगाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पणमीच्छवार अवीरई), ७०१९२-२ ६३ शलाकापुरुष विचार गाथा, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (भरहो१ सगरो२ मघवं३), ६९७१२-१(+#), ७११६९-१(2) For Private and Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ४८५ ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ दिव्ययोगी महायोगी), ६९४७६-२(+), ७०१६३-२(+), ७२५७०-२(+), ६८७२७-६, ७०६१४-२ ७२ कला नाम श्लोक - पुरुष, सं., श्लो. ३, पद्य, श्वे. (लिखित १ पठित २ संख्य), ६९८४६-६ (+) ७२ स्वप्न विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (इत्थि वा पुरिसो वा), ६९८३७-२(+) ८४ आराधना बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही), ७०५०२ ($) ८४ लाख जीवयोनि क्षमापना विचार, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (जो को विह पाणगणो), ७२३६५-२(#$) ८४ लाख नरकावास गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तीस पणवीस पनरस दस), ७०१९२-५ १०८ एकसमयसिद्ध गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (रिसहो रिसहस्स सुया), ६९०१४-४७(+) १२४ श्रावकव्रत अतिचारभेद वर्णन, प्रा. सं., गद्य, मृपू. (अध ५ अतिचाराः अध), ७०८९२-२(+) " ५६० अजीव भेद विचार, प्रा., मा.गु. सं., प+ग, भूपू (प्रोक्ता वर्णरसाकृति) ७०९२३-२ (+) " . ५६३ जीव भेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, म्पू, (नारयतिरि नरं देवा चउ), ६९०१४-११४(१) (२) ५६३ जीव भेद गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (प्रथवी सूक्ष्म बादर२), ६९०१४-११४(*) ५६३ जीवभेद श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (प्रोक्ता नैरयिका), ६९८०२-१ (+) अंकलहरी, श्राव. दलपतिराय महेता, प्रा., गा. ६०, पद्य, म्पू, (--), ७०८९४(+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) अंकलहरी - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ७०८९४(+$) अंगस्फुरण विचार, मा.गु., सं., प+ग., वै., (शिरसिस्पंद ते राज्या), ७०७५६-२ , " " अंगुलसप्ततिका, आ. मुनिचंद्रसूरि प्रा. गा. ७०, पद्य, म्पू, (उसभसमगमणमुसभजिणमणि), ७०६७१-१ (+) अंतकृद्दशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. अ. ९२, ग्रं. ८९९, गद्य, मूपू (तेणं कालेणं० चंपा०) ७०६६५ (+) (२) अंतकृदशांगसूत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (ते कालने विशे), ७०६६५ (+४) अंतिम आराधना संग्रह, प्रा. मा.गु., प+ग, थे. (प्रथम इरिवावही), ७२२६४-१(२) ७०१५० ४) अंबड चरित्र, ग. अमरसुंदर, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (धर्मात् संपद्यते), ७१३४२(+#$), ७१६२१(+$) अंबड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., आदेश ७, श्लो. १२२०, ग्रं. १११६, पद्य, भूपू (धर्मात् संपद्यते), ७१३५९(#$) अक्षयतृतीयापर्व व्याख्यान, प्रा. रा., सं., गद्य, मूपू., (उसभस्सय पारणए इक्खु), ६९११८-१, ७०८११, ६९१२८-१(#) अक्षौहिणी सैन्यमान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., ( दशलक्षदंति त्रिगुणां), ७०६२०-४ - अजितजिन कलश, पंन्या, रूपविजय, मा.गु. सं., ढा. ६, पद्य, भूपू (चक्रे देवेंद्रवृंदैः), ७२६१३ (*) अजितजिन स्तुति, मु. मेरुविजय, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (धैर्योरुमेरुविजय), ७११२९-५(+) अजितमहावीरसाधारणजिन स्तुति, आ. जिनराजसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानाजित) ७०७४४-२ (+) (२) अजितमहावीरसाधारणजिन स्तुति- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ( श्रीमत्सार्वत्र), ७०७४४-२ (+) अजितशांति स्तव, आ. नंदिषेणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., (अजियं जियसव्वभयं संत), ६९०२१(+#), ६९६०३(+), ६९७९३९ (+३) ७००९३(+), ७०४३१(+), ७०५९४(+३) ७०६०० (+), ७०८३५ (+#) ७०९३७(+#5), ७१२३९ (+), ७१७६६ (+5) ७१७९९(+), ७२३७६-१ (+#$), ७२४५५ (+), ७१२८६, ७१२९६ (#$), ७१४०५ (#$), ७०७८६ ($), ७२५२०-२($) (२) अजितशांति स्तव टीका * सं., गद्य, भूपू (अजितनामकं जिनं जित स), ७०२१९ (+३) ७०३८५ (MAS) " (२) अजितशांति स्तव - टिप्पण, सं., गद्य, म्पू, (अजितं जितसर्वभयं ७०९३७/**४) (२) अजितशांति स्तव-छंद संग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नेयामत्ताछंदे दुतिचउ), ७१७६६(+$) (२) अजितशांति स्तव-हस्वादि छंदपरिमाण गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (बायालीसं वत्ता, ७०३८५ (5) अजितशांति स्तवलघु - खरतरगच्छीय, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १७, पद्य, मूपू., ( उल्लासिक्कमनक्ख), ६९४७८-१ (+$), ७०९४२ १. ७१७८३-१ (२७) अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू (सत्तादि नवदि दो दो), ६९०१८-२(*) (२) अढीद्वीप मनुष्यसंख्या गाथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., ( ७९२२८१६२५१४२२६४३३७५९), ६९०१८-२(+) अणगल जलविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मृपू., (अणणलेणं नीरणं वत्थं), ६९०१४-९३(+) For Private and Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ अधममध्यमोत्तम देहमान श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (अधमो नवति प्रोक्तो), ६९०१४-९१(+) अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., द्वात. ४, श्लो. १२८, पद्य, मूपू., (ब्रूमः किमध्यात्ममहत), ६९४६१(+$) (२) अध्यात्मबिंदुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, उपा. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, मूपू., (वयमध्यात्ममहत्व), ६९४६१(+६) अनंतगमपर्याय श्लोक-जिनोक्त, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (अनंत गम पर्याय जिनवर), ७१६४२-१(2) अनशन आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाणं), ६९७१३(+) अनाथीमुनि कुलक, प्रा., गा. ३६, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (पणमिअसामिअवीर जिणि), ७०११७ अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. ३३, ग्रं. १९२, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० नवमस्स), ६९०५८(#), ६९००४, ७१०९०, ७०३९४(६) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., वर्ग. ३, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथानुत्तरौपपातिकदशा), ७१६४२-२(#) (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते काल चउथा आराने), ६९००४ (२) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-हिस्सा धन्नाअणगार अभिग्रहग्रहण, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (अप्पाणं भावे माणस्स), ७०७६१-१(+) (३) अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र-हिस्सा धन्नाअणगार अभिग्रहग्रहण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अ. आपणी आत्मा प्रतइ), ७०७६१-१(+) अनुमानविवरण विचार, सं., गद्य, श्वे., (श्यामः येनानुमानादपि), ७०९७१-२(६) । अनुयोगद्वारसूत्र, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., प्रक. ३८, ग्रं. २०८५, प+ग., मूपू., (नाणं पंचविह), ६९७९६(+$), ७०७२१-१(+), ७१७६५(+#$), ७०८५९-१(#) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं. ५९००, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (सम्यक्सुरेंद्रकृत), ६९७९६(+$) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ना० ज्ञान पंच प्रकार), ७१७६५(+#$) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार, आ. आर्यरक्षितसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (कट्ठकमे १ पोत्थकमे २), ६९०१४ ५८(+) (३) अनुयोगद्वारसूत्र-हिस्सा स्थापनावश्यकसूत्राधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (दस प्रकारे स्थापना), ६९०१४ ५८(+) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-संख्यात असंख्यात अनंत मान विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाला ४ ते मध्ये पाला), ६९०१४-२८(+) अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू, (मुहपत्ती पडिलेही), ७०६१५-२ अनुयोग विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (वसतिशोधन प्रमार्जन),७०४६२-३(+) अन्नपूर्णा स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (नित्यानंदकरी पराभयकर), ६८७२७-५ अन्नपूर्णा स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (नमो कल्याणदे देवि नम), ६८५७९-२(+#) अन्नायउंछ कुलक, प्रा., गा. ३१, पद्य, मूपू., (अन्नायउंछगहणे कयचित), ७०३०५(+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ३२, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (अनंतविज्ञानमतीत), ६९४०१(+), ७१८१०(+#) (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वा_जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., श. १२१४, गद्य, मूपू., (यस्य ज्ञानमनंतवस्तु), ६९४०१(+), ७१८१०(#$) अन्योक्तिमुक्तावली, ग. हंसविजय, सं., परि. ८, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (ॐनमः शाश्वतानंद), प्रतहीन. (२) अन्योक्तिमुक्तावली-टीका*,सं., गद्य, मूपू., (--), ६९८३५(+) अपराजिता मंत्र-जाप विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ अजिए अपराजिए), ६९६७८-२ अपापाबृहत्कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., ग्रं. ४१६, वि. १३२७, गद्य, मूपू., (पणमिअवीरं वुच्छ), ७१०५२(#$) अपूर्ण जैन काव्य/चैत्यवंदन/स्तवन/स्तुति/सज्झाय/रास/चौपाई/छंद/स्तोत्रादि, प्रा.,मा.गु.,सं.,हिं., पद्य, जै.?, (--), ७२०९१-३ For Private and Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ४८७ अभयदानोपरि दृष्टांत, सं., गद्य, मूपू., (यथा राजगृहे सभा),७१४४७($) अभिधानचिंतामणि नाममाला, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., कां. ६, ग्रं. १४५२, वि. १३वी, पद्य, म्पू., (प्रणिपत्यार्हतः), ६९०४५(+-), ६९१८३(+),७१७४९(+$), ७१९७१(+#$), ७२१८७(#$), ७२५८४(#), ७१६३४($) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-सारोद्धारटीका, उपा. श्रीवल्लभ वाचक, सं., ग्रं.८०००, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीमदर्हतमानम्य), ७२२३६(+$) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-३५ जिनवाणी गुण, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (संस्कारवत्त्व),७०६४७-१(+) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-अनेकार्थ संग्रह, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ.६+१, श्लो. १९३१, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (ध्यात्वार्हतः कृतै), ७०८५१(६) (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-शेष नाममाला, संबद्ध, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २०४, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः), ७२२६६ (२) अभिधानचिंतामणि नाममाला-बीजक, सं., पद्य, मूपू., (--), ७०४१९-१(+$) अमरसेनवज्रसेन कथा, सं., गद्य, मूपू., (दानं सुपात्रे विशद),७००९४(+#) अरिहंत स्तुति-१८ दोष निवृत्तिरुप, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अन्नाण१ कोहर मय३ माण), ६९०१४-३८(+),७१३८३(१) (२) अरिहंत स्तुति-१८ दोष निवृत्तिरुप-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अष्टादश जे अढार दोषे), ७१३८३(#) अरिहंतादि वंदना स्तोत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (सिरि उसहाइ जिणंदा), ६९७२४(#$) अर्बुदादिजिनबिंबतीर्थ प्रतिष्ठाघटनाक्रम विचार, सं., गद्य, स्पू., (श्रीअर्बुदविमल), ७०६२०-१ अर्हन्नामसहस्र समुच्चय, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १०, वि. १२वी-१३वी, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामापि कर्ण), ६९०६८ ५(+#, ६९४७६-५(+#), ६८९८६ अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक, मा.गु.,सं., श्लो. २, पद्य, वै., (अवर्गो गरुडो ज्ञेयो), ६९८८०-२(+), ७०६२०-२ (२) अवर्गादि वर्णज्ञान श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (जे तेहना पूछइ तेहना),७०६२०-२ अशनअनंतकाय विचार, प्रा., गा. ३२, पद्य, मूपू., (असणं पाणगं चेव खाइम), ७०३३३ (२) अशनअनंतकाय विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चतुर्विध चिहु), ७०३३३ अष्टमीतिथि स्तुति, पंन्या. मुक्तिविमल, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीमद्वीरजिनेश्वरेण), ६९६४३-२ अष्टांगयोगस्वरूप विचार, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अहिंसादि पंचम महा), ६९०१४-६०(+) अष्टाह्निकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा गुरुं गिर), ७२३९९(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., (शांतीशं शांतिकर्ता), ७००११(+$) अष्टोत्तरी स्नात्रविधि, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (ते माहिली शांतिकविध), ७२३८८-१(+), ७१४३१(६) असज्झाय विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (महिया जाव पडंति),७०९८५-१(+) अहिंसा कुलक, प्रा., पद्य, मूपू., (तत्थ पढम अहिंसा), ६९८४१(+), ७१०८२-१(+) (२) अहिंसा कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां पहेलो संवर), ६९८४१(+), ७१०८२-१(+) आगमगत मृगापुत्र कथा, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं), ७०५६७-२($) आगमगत विविध प्रश्नोत्तरादि बोल संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (सर्वथी थोडा चरित), ६९०१४-७८(+), ६९४४०(+#), ७१४९०(+8), ७०५७०() आगमनामादिविचार संग्रह *, मा.गु.,प्रा.,सं., पद्य, म्पू., (सूत्र ८४ नां नाम), ६९०१४-५९(+) आगमादि ग्रंथों व उनकी सूत्रवृत्ति आदि के ग्रंथपरिमाण, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (एगारस अंगाइं बार), ६९८५७(+$), ७०४५७-१ आगमिक गाथा संग्रह, प्रा., पद्य, मूपू., (जे भिक्खूवा भिखूणी), ७०६३२-३(+#), ७०१८१-३ आगमिकपाठ संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (कप्पइ निग्गंथाण वा), ६९६८७(+$), ७०६४७-३(+), ६९९२४-१ आगमिकविविधविषयविचार टिप्पण, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (सिरिरिसहाइ जिणंद), ६९४४४(६) आचारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., उद. ४०, प+ग., मूपू., (तत्त्वज्ञानमयो लोके), प्रतहीन. (२) आचारदिनकर-नक्षत्रग्रहशांतिक विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग., मूपू., (कुग्रहै: क्रूरवेधे), ६९६१४-१ For Private and Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४८८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) आचारदिनकर-शांतिकमहापूजन विधि, हिस्सा, आ. वर्द्धमानसूरि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तिहां प्रथम शुभदिने), ६९६८६(+$) आचारांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. २५, ग्रं. २६४४, प+ग., मूपू., (सुयं मे आउसं० इहमेगे), ६९०३३(+#), ६९०३६(+), ६९९७१(+s), ७०४१६(+$), ७०४६६(+$), ७०२७५(६), ७१८०२(5) (२) आचारांगसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ६९०३३(+#) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मु. धर्मसी, मा.गु., ग्रं. १२५५४, गद्य, मूपू., (भगवंत श्रीसुधर्मा), ६९०३६(+) (२) आचारांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागने नमस्कार), ७०४६६(+$) (२) आचारांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसतिमात नमीने), ७२६४५-४(+) (२) आचारांगसूत्र-साधुआचार सज्झाय, संबद्ध, मु. रामचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (आचारांगसूत्र मध्ये), ७०७८३(+) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, वि. ११वी, प+ग., मूपू., (देसिक्कदेसविरओ), ६९६१५(+), ७०५८९(5) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (अरहंता मंगलं मज्झ), ७१८४७-२(+$), ७२४४७-१ आत्मनिंदाष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रुत्वा श्रद्धाय), ७२८०६(+) आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प्रका. ४, श्लो. १८१, वि. १८३३, प+ग., मूपू., (अनंतविज्ञानविशुद्ध), ६९१८४-१(+) (२) आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (तत्राद्य प्रकाशे यथा), ६९१८४-२(+) आत्महित कुलक, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (कत्थ वि तवो न सीलंक),७१७५१-२(+#) आत्मानुशासन, ग. पार्श्वनाग, सं., श्लो. ७७, वि. १०४२, पद्य, दि., (सकलत्रिभुवनतिलक), ६९८९२-१(+), ७०५८८(+) आत्मावबोध कुलक, आ. जयशेखरसूरि *, प्रा., गा. ४३, पद्य, मूपू., (धम्मप्पहारमणिज्जे), ७१४१६(+$) आदिजिन चरित्र, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपे पश्चिमविद), ७०३२७(+$) आदिजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (सुवर्णवर्ण गजराज),७०८२२-२(+#) आदिजिनदंडक स्तुति, मु. सौभाग्यसागर, सं., श्लो. ४, पद्य, श्वे., (--), ६९७९५-१(+5) आदिजिन सुमतिजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (आनंदनम्र सुरनायक), ७१९९१-२($) (२) आदिजिन सुमतिजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भक्तांगिनां संघटित), ७१९९१-२(5) आदिजिन स्तवन, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (महानंद लीलासरो), ६९८६५-१(+) आदिजिन स्तवन-अर्बुदगिरिमंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (श्रीअर्बुदाचल विभूषण),७०१२०-१(2) आदिजिन स्तुति, मु. कुमुदचंद्र कवि, सं., श्लो. ३२, पद्य, दि., (मुदेवस्ताद्देवः), ७०४४९(+$) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (आनंदानम्रकम्रत्रिदश), ७०७२६-२(+), ६८९८०-५, ७१०८७-२ आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (चिंतातीत फलप्रदः स), ७१३०१-१(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरुषंद्राय),७०७४८-१३(+) आदिजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनाभेयं योगिध्येय), ६९७९५-२(+), ७१५०५-१(+-) आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमंडन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (वरमुक्तियहार सुतार), ७०७४८-१५(+),७२५४२-३(+#) आदिजिन स्तोत्र-शत्रुजयतीर्थमंडण, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (पूर्णानंदमयं महोदयमय), ७०१९०-१ आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, म्पू., (संसारे नत्थि सुह), ७२८६१(2) आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (आहाकम्मु १ देसिय २), ७२०३८-१(+#) (२) आधाकर्मी ४७ आहारदोष गाथा-भावार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुद्धाशुद्धाहार ३), ७२०३८-१(+#) आप्तमीमांसा, आ. समंतभद्र, सं., परि. १०, श्लो. ११५, पद्य, दि., (देवागमनभोयानचामरादि), प्रतहीन. (२) आप्तमीमांसा-हिस्सा श्लोक-११३, आ. समंतभद्र, सं., श्लो. १, पद्य, दि., (विधेयमीप्सितार्थाग),७१७८४-२(+) (३) आप्तमीमांसा-हिस्सा श्लोक-११३-टीका, सं., गद्य, दि., (विधेयमिति विधेय),७१७८४-२(+) आयुर्वेदसार संग्रह, पुहिं.,सं., पद्य, मूपू., वै., (श्रीसर्वज्ञंच नम), ६९०८३-१(+#) आयुष्यलक्षण श्लोक, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (लक्ष्मं लक्षणो लक्षत), ६९७६१-२ आयुष्य विचार, अप., गा. ५, पद्य, मूपू., (मणुआण वीसोत्तरसय), ७१३४०-२(+#) (२) आयुष्य विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुष्य १२० वर्ष आयु),७१३४०-२(+#) For Private and Personal Use Only Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ४८९ आराधना विधि, प्रा., गद्य, श्वे., (गंधा संघो चिइ संति), ७१८२१ आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., अधि. १९, सू. २२८, वि. १०वी, पद्य, दि., (गुणानां विस्तर), ७२७५६(+#) आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदेसह), ७२३४१-३(#) आलोयणा आराधना, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (एगेंदियाण जंकहवी), ७००८४-१(+#), ७२२७४(६) आलोयणा विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (पणगं १ मासलहुं २), ७२८२३-१(+) आवश्यकसूत्र, प्रा., अध्य. ६, सू. १०५, प+ग., मूपू., (णमो अरहताणं० सव्व), ७०३२१(+$) (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, ग्रं. ३१००, पद्य, मूपू., (आभिणिबोहियनाणं), ६९०१४ १११(+), ६९७६२(+S), ७११०२-३(+),७११२४(+5), ७११९७(+#$), ७०११९() (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, मूपू., (अवरविदेहे गामस्स), ७११२४(+$), ७००७९(5) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ७००७९(5) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका #, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं. २२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ७११०२-३(+), ७११२४(+$) (२) आवश्यकसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, भूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), ७०३२१(+$) (२) आयरियउवज्झायसूत्र-प्रतिक्रमणसूत्रगत, हिस्सा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयरिय उवज्झाय सीसे),७१४५७-२ (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा करेमिभंते सूत्र, प्रा., प+ग., मूपू., (करेमिभंते सामाइ), ६९९७६-१(+-) (३) आवश्यकसूत्र-हिस्सा करेमिभंते सूत्र काटबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (करसु भक्त करी सामाइक), ६९९७६-१(+-) (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनकअध्ययन, प्रा., सू. ०१, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो वंदि), प्रतहीन. (३) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वंदनक अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अवग्रह बाहिर रह्यो), ७२२८४-२ (३) वांदणा विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरियावही पडिकम),७२२८४-१ (२) आवश्यकसूत्र-हिस्सा सामाइअवयजुत्तो सूत्र, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सामाइझ वयजुत्तो जाव), ६९९७६-२(+-) (३) आवश्यकसूत्र-हिस्सा सामाइअवयजुत्तो सूत्र का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइक मेइ जुतो लेउ), ६९९७६-२(+-) (२) शक्रस्तव, हिस्सा, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (नमुत्थुणं अरिहंताणं), ७०४१५, ७१०२७-१,७१८२५ (#$) (३) शक्रस्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो अरिहंतने), ७०४१५, ७१०२७-१, ७१८२५(#S) (३) शक्रस्तव विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७१९१४-१(३) (३) शक्रस्तवाम्नाय, संबद्ध, प्रा.,सं., मंत्र. १६, गद्य, मूपू., (ॐनमोत्थुण अरिहताण),७०४९९-२ (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र, हिस्सा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सकलकुशलवल्ली),७०९१५-१(+), ६९९१५,७२४९२, ६९३५५-२(2) (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-टीका, सं., पद्य, मूपू., (युस्माकं क० तुमारे), ६९९१५ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत भगवंत), ७०९१५-१(+), ७२४९२ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवंदनसूत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहां श्रीअरिहंत), ६९९१५ (२)६ आवश्यक विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार आवश्यक थया कर्म), ६९०१४-२९(+) (२) १४ श्रावक नियम गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त दव्व विगई), ६९०१४-५०(+), ६९६२८-५(+), ७०९०३-२(+#), ७१२२०-२(+), ६९८६६-१, ७१७०९-१३, ७१०१०-२(#), ६९६१६-५(2) (३) १४ श्रावक नियम गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बीज दातण ते), ६९८६६-१ (२) अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आजुणा चौपहुर दिवसमाह), ७१३९०-२(#) (२) आवश्यकसूत्र-पौषध विधि-चउप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां जिणै प्रथम चौ), ६९००७-३ (२) आवश्यकसूत्र-लोंकागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताण), ६९४७३(#) (३) आवश्यकसूत्र-लोंकागच्छीय प्रतिक्रमणादिविधि संग्रह काबालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो क० अरिहंतने ते), ६९४७३(2) (२) आवश्यकसूत्र-प्रतिलेखन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावही पडिकमी), ७२८४३-३ For Private and Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ६९४४८(+#$), ६९९३८ (३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीतराग १२ गुण विराजम), ६९४४८(+#$) (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (इरियावही पडिक्कमशु),७१४५१ (२) इरियावही सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (श्रुतदेवीना चरण नमी), ७१९२९-१(+),७२६४५-६(+), ७२६९९(2) (२) कल्लाणकंद स्तुति, संबद्ध, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकंदं पढम),७००५४-१(+),७१९१८-२(+),७१२२६-१ (२) क्षेत्रदेवता स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यस्याः क्षेत्रं समा), ७१४५२-६(#) (२) जगचिंतामणि सूत्र, संबद्ध, आ. गौतमस्वामी गणधर, प्रा., गा.७, प+ग., मूपू., (जगचिंतामणी जगनाह), ७०७४८-१३(+), ७१३५५-३(+#$) (२) देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम दोय गाथारो नम), ६९११४, ७२७२१-३, ७२८४३-२ (२) देवसिप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., म्पू., (नमो अरिहंताणं), ७१८४८(#S), ७१४५७-५(5) (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताणं नमो), ६९४८७, ६९३६८($) (२) देसावगासिक पच्चक्खाण, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (अहन्नं भंते तुम्हाण), ६९६५७-३(+) (२) पंचप्रतिक्रमण विधि संग्रह, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छामि० इरियावहि०), ६९४२७($) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अंचलगच्छीय, संबद्ध, गु.,प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम संध्या समये), ७१७२७-५(#$) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० जयउ),७०८१४(+), ६८६१४-३(2) (३) श्रावकअतिचार-खरतरगच्छीय, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणंमि सणम्मिअ), ६८५४६($) (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), ६८४८६(+$), ६९४७९(#), ६९४९३-१(+), ७१६१८(+$), ६९५८५(#$), ७२०१६(#$) (३) पंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वामेयमानम्य), ७१६१८(+$) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (करेमि भते पोसह),७०६५४-२(+),७२८४३-४ (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मन्हजिणाणं आणं मिच्छ), ७१३७०, ७११३७-२(#) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीतप आलापक, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छाकारेण संदिसह), ७१०६५(+#) (२) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (मुहपत्तिवंदणय), ६९९८२(+#), ७२४६३(+#), ६९७९८-१,७०५५५-१, ७२७२१-१,७१७८५-३(2) (३) पाक्षिकचौमासीसंवत्सरीप्रतिक्रमण विधि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम देवसी पडिकमणो), ६९७९८-१, ७०५५५-१ (३) क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्षांबिकाद्या), ७२७२०-२(+) (३) छींक विचार, संबद्ध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पाखी पडिकमणा करता), ७०९९९-३ (२) पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, पुहि.,प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (देवसिय आलो० इच्छाकार),७०१६२-३(+) (२) पौषधभेद विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, मूपू., (सोयं पोसहो आहाराइभेए), ७०१४०-२ (२) पौषध विधि*,संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि पडिकमिइं), ६९००७-२ (२) पौषधविधि-अष्टप्रहरी, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (रात्रि पिछली घडी २), ६९००७-१ (२) पौषधविधि संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (इरियावहि चार नवकारनो), ७००००-१(+), ७२८४३-१ (२) प्रतिक्रमण विधि*, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीप्रवचनसारोद्धार), ६९६२८-२(+), ६९९१०(+), ६९३३६(#5), ७०९२९ १६), ६८६१३-६(#$) (२) प्रतिक्रमणविधि संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (पाछिली रात्रइ शय्या), ६९७९९(+#), ७२३७७(+#), ७१३९०-३(#) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, ग. तेजसिंहजी, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पांच प्रमाद त्यजी), ७०९९२-१(+) (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, संबद्ध, मु. धर्मसिंह मुनि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कर पडिकमणुंभावशु), ७०९९२-४(+) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह , संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं नमो), ७१००७(६) For Private and Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra #$) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. * संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., पग, मूपू., नमो अरिहंताणं नमो), ६९६३३(३), ६९७६६ (+5), ७०१०२-४(+), ७०४०७ (+), ७०७०१-१(+#$), ६९९८७, ६९६२० (#$), ६९११७ ($), ७०५११-१($), ७०६९७ (s), ६९६१६-१ www.kobatirth.org (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूरिजना उदय हूंती), ७०७३६-१(+) (३) प्रत्याख्यानसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूर्य उग्ये थके इतरे), ७०५८६ (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - .मू. पू. बालावबोध, मा.गु, गद्य, म्पू, (चउदराज० पंचिंदिय) ७०४०७ (+5) (३) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - श्वे. मू. पू. -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागदेव तुमे), ६९६२० (4) (२) प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - वेतांबर संबद्ध, प्रा.सं., प+ग. म्पू, नमो अरिहंताणं० करेमि ७०८४८ (६), ७०२७६(४), ६८६१३१(45) (२) प्रतिलेखनकालमान गाधा, संबद्ध, प्रा., गा. २२, पद्य, भूपू (२) प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, भूपू. (उगए सूरे नमुक्कार) ७००३६(*) ७०४०३-१ (+), ७०६५४-१(१) ७०६८३(+), (आसाढे मासे दुष्पवा), ६९७५१(+) " ७०७३३(+#), ७०७३६-१(+), ७०७६४ (+), ७०७८९(+), ७०८०८-१(+#), ७१२६५ (+), ७२२०९ (+), ७२२९५(+$), ७२३९७१(+), ७२४३० (+), ७२८४१-३ (+३), ६९६७३-३, ७०३०४-१, ७०४४५, ७०५८६, ७०८१६ १, ७१००४, ७१०२२, ७१०३५, ७१२४१, ७२५३२, ७००३८, ७२५७५, ६९६८५(#), ७०४०१-२(#S), ७०६२३ (# ), ७०९४८-१(#), ७१०१०-१(#), ७१०१५(#$), ७१०३२(#), ७१०४१(#), ७१२८३ (#), ७१३३०-२(#$), ७२४३९-१(#), ७२४५२-४(#), ७०७१४($), ७१३५२ ($), ७१६०५०) , (३) प्रत्याख्यानसूत्र- टबार्ध", मा.गु., गद्य, भूपू (सूर्यनइ उदये चै घटिक) ७०८०८-१(१०), ७२२९५ (+३) ७२४३०(*) ७०८१६.१. ७०७१४($) (३) प्रत्याख्यानसूत्र- विवरण, सं., वि. १२४४, गद्य, मूपु. ( तत्र पीरुषी पूर्व) ७०१०३(+) (३) प्रत्याख्यान आगारसंख्या गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (दो चेव नमोक्कारे), ६९६२८-७(+), ७२३९७-२(+#), ७२४५२(३) י: - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 13 (३) प्रत्याख्यानसूत्र-यंत्र, प्रा., सं., गद्य, मूपू., ( उग्गए सूरे नमुक्कार), ७०६५४-३(+) (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., ( नमोस्तु वर्द्धमानाय), ७०७२६-३(+), ७१४५२-१(#) ४९१ (२) महावीरजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ३, पद्य, भूपू (विशाललोचनवल), ७१४५२-२(७) "1 (२) मुखवत्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, म्पू, (तत्त्वदृष्टि सम्यक्त) ७०७४५-२(+), ७१०७८-३, ७२७९४-२, ६८६१३-५(#) (२) राईप्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम इरियावही पडिक), ७२७२१-२ (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु. सं., प+ग., मूपू., ( नमो अरिहंताणं नमो), प्रतहीन. (३) भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, म्पू, (भरहेसर बाहुबली अभय), ६९७९३-८(+) ७०२५९(+), ७१४४४-१(+), ७२६७५-२(+#), ७००३९-१, ७२६५९, ७२४६६ (#) (४) भरहेसर सज्झाय वृत्ति, ग. शुभशील, सं., अधि. २, वि. १५०९, गद्य, मूपु. ( युगादी व्यवहाराध्वा) ७००३५-३ (५) कालिकाचार्य कथा, हिस्सा, ग. शुभशील, सं., वि. १५०९, गद्य, मूपू (जितशत्रुरन्यत्र) ७००३५-२ "" (५) कालिकाचार्य कथा, हिस्सा, ग. शुभशील, सं., वि. १५०९, प+ग., मूपू., (दत्तेन भूभुजा यागफलं), ७००३५-१($) (२) वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (वंदित्तु सव्वसिद्धे), ६८९८२-१ (+), ६९७८२ (+#), ६९७८८(+), ७०२४८(+#$), ७०३२८(*), ७०४४७(*१, ७०९९३-२(*), ७१३३६(*), ७२७०९-१(+), ७२७२४(***), ७२८४१-१(*), ६९६५६ ६९८३१. ७०१६१, ६९८३९(#), ७०४९२ (#), ७०७९८(#), ७११३० (#), ७१३९०-१(#), ७२३४१-२(#), ७२७४५(#) (३) वंदितुसूत्र टीका, सं. गद्य, मृपू (--) ७०२४८(+#$) " (३) बंदिसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (वंदितु क० वांदीने), ७१३९०-१(MS) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., सं., प+ग, मूपू., (णमो अरिहंताणं णमो ), ६९८९८(+#$), ७१३९९ (*), ६९६२३ For Private and Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) पौषध सज्झाय-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (जगचूडामणिभूओ उसभो), ७२०८६(+), ७२२१६-१(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं० पंचि), ६९१८८(+), ६९७०५-४, ७१२२६-३(६) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ+बालावबोध, मु. जिनविजय, मा.गु., वि. १७५१, गद्य, मूपू., (बार गुणे करि सहित), ६९१८८(+) (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह (श्वे.मू.पू.), संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहं० सव्वसाहूण), प्रतहीन. (३) पंचाचार अतिचार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (नाणम्मि दसणम्मिअ),७१०५७-१(+),७१३११ (४) पंचाचार अतिचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (ना० ज्ञानाचार१ दर्शन), ७१०५७-१(+) । (३) श्रावक देवसिकआलोयणासूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, मा.गु., पद्य, मूपू., (सातलाख पृथ्वीकाय), ७१४५७-४ (३) श्रावकपाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणमि दसणमि०), ६८५०२(+), ६८६६४-१(+), ७०६६७-१(+#), ६८४७३-१, ७०३५१, ६८५५९(२), ७११३७-१(२), ७१९२७(#$), ७००४२($), ७१००३($), ७१३८१(६) (२) श्रावकसंक्षिप्त अतिचार ,संबद्ध, मा.गु., प+ग., म्पू., (पण संलेहणा पनरस),७०४५८(#$) (२) संसारदावानल स्तुति, संबद्ध, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (संसारदावानलदाहनीरं), ६९७९३-४(+#), ६९८५१ २(+),७१३२६-१(+#), ७१३५५-२(+#),७१४५७-१, ७०२१८(६) (३) संसारदावानल स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (वीरं वर्द्धमानस्वामि), ६९८५१-२(+) (३) संसारदावानल स्तुति-टीका*,सं., गद्य, मूपू., (--),७०२१८(३) (३) संसारदावानल स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसाररूपीउ दावानलनो), ७१३२६-१(+#) (२) सप्ततिशतजिन स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. १, पद्य, पू., (वरकनक शंखविद्रुम), ७१४५२-३(4) (२) साधुअतिचार संग्रह*, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., स्था., (१४ ज्ञानरा ५समगतरा), ७१९०१(+#5), ७०७६८-३(2) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० करेमि), ७०४८५(+$) (२) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (नमो अरिहताण), ७२३३८(+#$), ७२८२८-१(+), ६९८१८(#S), ७१८३७(१), ७२२६०(#), ७२२७१(#S), ६९७२८-१(६) । (३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ६९८१८(#$) । (३) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-तपागच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अंतः प्रतिक्रमण), ७२८२८-१(+) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं० आवस्स), ६९४१९-१(+#),७००१७(+#$) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो० नमस्कार होवउ), ६९४१९-१(+#), ७००१७(+#$) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताणं), ६९४१९-२(+#), ७०१२३(+) (३) साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवसही कहेतउ सावधान), ६९४१९-२(+#) (३) आवश्यकसूत्र-साधुप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह का हिस्सा पाक्षिकसूत्र वखामणासूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ७१०५३(+#$) (३) क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., आला. ४, गद्य, मूपू., (इच्छामि खमासमणो पियं), ६९५९७-२(+), ६९६२८-१(+), ६९६९९-२(+#), ७०२५३-१(+),७१७६८-१(+),७२७२०-१(+), ६९१९३-२,७००१९-२,७०३५८,७०९६६,७०९९९-२ (४) क्षामणकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (इच्छुछुवाछु), ७२७२०-१(+), ७०३५८ (३) पगामसज्झायसूत्र, हिस्सा, प्रा., सू. २१, गद्य, मूपू., (करेमि भंते० चत्तारि०), ६८९८२-२(+), ७०२१६(+#), ७०५४४(+#$), ७०६४८-१(#), ७०७४५-१(+), ७०७७६(+), ७०९९०(+), ७०९९३-१(+), ७१०४७(+#), ७१२७५(+#$), ७१२८४(+#, ७०४००, ७०९२९-२, ६९४७५-१(२), ७०६८२(२), ७१२००-१(#$), ७२३६५-१(#), ६९८१६(६), ७१८२६($) (४) पगामसज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वं नमस्कारपूर्व),७०९९८ (४) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा वाछुउ), ६९४७५-१(#), ७१८२६($) (४) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चार बोल तेम मंगलिक), ७०५४४(+#$), ७१२७५ (+#$) For Private and Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ४९३ (३) पाक्षिकसूत्र, हिस्सा, प्रा., प+ग., मूपू., (तित्थंकरे य तित्थे), ६९५९७-१(+), ७०२३४-१(+), ७०२४६(+$), ७१३४३(+#$), ७१७६४(+#$), ६९५०८(#), ७०१७५(#$), ६९१९३-१(६), ७०५३५(६), ७०५७९(5), ७०७३५() (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर प्रते वांदउ), ६९५०८(2) (३) साधुअतिचारचिंतवन गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मपू., (सयणासणन्न पाणे),७०४७८(+),७०४१७-३,७२४५२-१(2) (४) साधुअतिचारचिंतवन गाथा-टीका, सं., गद्य, भूपू., (शयनीयं संस्तारकादि १), ७०४७८(+) (३) साधुदेवसिप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ठाणे कमणे चंकमणे), ७०४१७-१ (३) साधुपाक्षिक अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नाणम्मि दसणम्मि०), ६९६९९-१(+#), ७०४२१(+$), ७२५६८ १(2), ६९३२९, ६९७५३, ७००१९-१, ७०९९९-१, ७२६२४, ७१७८५-१(2) (३) साधुराईप्रतिक्रमण अतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (संथारा उवट्टणकि परिय), ७०४१७-२,७१४५२-७(#), ६९७०५-३(5) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र-स्थानकवासी, संबद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., स्था., (नमो अरिहताणं० तिखूत), ७००७१(#$) (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (नमो अरिहंताण), ६९४७४-१ (३) पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (चउक्कसायपडिमलुल्लरण), ७०७४८-११(+), ७२२१६-२(+), ६९८५८-२, ७०७१३-२,७०८१३-१ (४) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भुवनत्रयस्वामी पार्श), ६९८५८-२ (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (णमो अरिहंताणं), ७०७४०(+5), ७००६३-१(-) (३) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह-खरतरगच्छीय-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हउ आठकम), ७०७४०(+$) (२) सामायिक ३२ दूषण, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम १० मन संबंधी), ६९७९८-२, ७२५८७-२(2) (२) सामायिक ३२ दोष गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (पालद्धी अथिरासण दिसि), ६९६६६(+), ६९८८८-३(+5), ६९९४७-१ (३) सामायिक ३२ दोष गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पालखीइंन बेसीइं), ६९६६६(+६), ६९८८८-३(+$), ६९९४७-१ (२) सामायिक पारने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम खमासमण देई), ७१३३५-३ (२) सामायिक लेने की विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम वस्त्र उतारी), ७१३३५-२, ६८६१२-१२(#), ७०४९४-१(-2) आशीर्वाद श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (दीर्घायुभव भण्यते), ६९९२३-२ आसोज सुदी पुनम पूजा विधि, पुहि.,मा.गु.,सं., प+ग., श्वे., (प्रथम जितना स्नात्री), ७२१३२ आस्रवत्रिभंगी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., अ. ३, गा. ६२, वि. १४वी, पद्य, दि., (पणमिय सुरिंदपूजिय), ७०१८३($) आहार के ९६ दोष, प्रा., गद्य, मूपू., (आहाकम्मे१ उद्देसिकर), ७११११, ६९४७५-२(#) (२) आहार के ९६ दोष-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागदेवे ९६), ६९४७५-२(#) (२) आहार के ९६ दोष-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आ० आधाकरमी आहा), ७११११(६) आहारप्रमाणगाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (निययाहारस्स सया),७१३६८-२ (२) आहारप्रमाण गाथा-टीका, सं., पद्य, श्वे., (द्वात्रिंशतं कुकुड्य), ७१३६८-२ आह्वान विसर्जन मंत्र, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (आवाहनं न जानामि न), ७२३४९-६(+) इंद्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, म्पू., (सुच्चिअसूरो सो), ६९८७९(+$) इरियावही कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (चउदस पय अडचत्ता तिगह), ६९८८८-१(+), ६९६४८ (२) इरियावही कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चौदह नारकी ४८ तीर्यच), ६९८८८-१(+६), ६९६४८ उत्तमपुरुषकथन गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (उत्तिमपुरसा त्रेसट्ठ), ७०९८३-३(+) (२) उत्तमपुरुषकथन गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (उत्तमपुरुष तीर्थंकर), ७०९८३-३(+) For Private and Personal Use Only Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्य. ३६, ग्रं. २०००, प+ग., मूपू., (संजोगाविप्पमुक्कस्स), ६८९६८(+#s), ६९०७२(+), ६९५८१(+$), ६९६२७(+), ६९६३८+), ६९६७०(+s), ६९६९३(+s), ६९६९७(+$), ६९८४३(+S), ६९९३५(+$), ६९९६१(+), ७०१७३(+#), ७०२७८(+#$), ७०३१३(+), ७०३३८८), ७०३५९(+#s), ७०३८०(+), ७०३८७(+$), ७०४४२(+$), ७०४७०(+#$),७०५९२(+#$), ७०७००(+),७०८६६(+$),७११३८(+#$), ७१२६८+#),७१४२३(+$),७१४५०(+$), ७१७५९(+$), ७१७६३(+$), ७२०२२(+#$), ७२३१९(+#$), ६९१३४, ६९८२१, ६९९०६, ६९९११, ७०६७८, ७१२५६, ७१३१५, ७२१६१-३, ६९९२८($), ७०१३४(६), ७०२२३(5), ७०३२५(६),७०८२०(६), ७०८८७($), ७१३९५(६), ७२४३४(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्य.३६, गा. ६०७, पद्य, मूपू., (नामंठवणादविए), प्रतहीन. (३) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति का २२ परिषह उदय हेतुभूत कर्म विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पन्नाअन्नाणपरिसह), ६९०१६-१(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा टीका, आ. नेमिचंद्रसूरि, सं., ग्रं. १२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य विघ्नसंघात), ७१३९५() (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिकाटीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं., ग्रं. १५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अर्हतो ज्ञानभाजः), ६९५८१(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध*,मा.गु., गद्य, मपू., (संसारतणा संबंधथी),७०८२०($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ७०३२५(६) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (संयोग बे प्रकारे), ६९०७२(+), ६९६९७(+5), ६९९३५(+$), ७०२७८(+#s), ७०३३८(+#),७०३८७(+$), ७१४२३(+$), ७२०२२(+#S), ७२३१९(+#$), ७०८२०(६), ७०८८७(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, मा.गु., कथा. ४, गद्य, मूपू., (एक आचार्यनइं एक चेलो), ७२०२२(+#$), ७२३१९(+#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा संग्रह*, सं., पद्य, मूपू., (एकस्य आचार्यस्य), ७०३२५($) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-१० दुमपत्तयं, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग., मूपू., (दुपपत्तए पंडुअए जहा), ७०४२९(+$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन २८ मोक्षमार्गगति, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (मोक्खमग्गइ तं च सुणे), ७१२६० (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (चत्तारि परमंगाणी), ७११८१(#) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ३ चतुरंगिकाध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चत्तारि च्यारि परमाग), ७११८१(2) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-६, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. १८, प+ग., मूपू., (जावंतिविजा पुरिस्सा), ७०३१४(+) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन-६ का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जा० जेतला अविजा०), ७०३१४(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन ८ काविलीयं, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. २०, प+ग., मूपू., (अधुवे असासंयंमि संसा), ७१४३२(2) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा अध्ययन- ९ नमिपवजा, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (चइऊण देवलोगाओ उवयन्न), ७२२०६, ७०८४४(#), ७११०८(#$), ७१२९८(#), ७०४०९($) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-हिस्सा नमिप्रव्रज्याध्ययन ९ बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७११०८(#$) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-३६ अध्ययन नाम, संबद्ध, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (पहिलौ विनय अध्ययन), ७०८२१-२(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ब्रह्मचर्यना दश), ७२७२२-१(२) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-१विनयसुत्तं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (पवयण देवी चीत धरीजी), ७२७२८-१(#) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन-४ प्रमादवर्जन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजरामर जग को नहि), ६९८७२-१, ७२७२८-२(#) For Private and Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विनयादि ३६ अध्ययन सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., सज्झा. ३६, पद्य, मूपू., (पवयणदेवी चित्त धरी ज), ६९०२०(+$), ६८६१६-१(#$), ७२२६३(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (धुवक कही पांचसइ), ७१४६६-१(+) उदायनराजा कथा-क्षमापना विषये, सं., गद्य, मूपू., (वीतभये नगरे महसेनादि), ६९७०४-२(+) उपदेशमाला, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे इंद), ६९५२४(+),७००८२(+$), ७०१२६(+$), ७०८६४,७१३४६(#$) (२) उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, ग. सिद्धर्षि गणि, सं., ग्रं. ९५००, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (हेयोपादेयार्थोपदेश), ६९५२४(+) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहीइ नमीनइ), ७००८२(+$) (२) उपदेशमाला-चयनित गाथा संग्रह, ग. धर्मदासगणि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (भद्दो विणीयवणिओ पढम), ७०१७१-२(+) (२) उपदेशमाला-चयनित विषयानुसार प्रतीकात्मक गाथा संग्रह, प्रा., गा. २२०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिण०), ७०८५२ (२) उपदेशमाला गाथा शकुन, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चं भासइ अरिहा), ७०९५२ (३) उपदेशमाला गाथा शकुन-शकुनज्ञान विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (उपदेसमालानी गाथाना),७०९५२ (२) उपदेशमाला-गाथानुक्रमणिका, प्रा., गद्य, मूपू., (नमिऊण जगचूडाम सवस्सर), ७११७४(#), ७१५५२(#$), ७१२९५(६) उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (उवएसरयणकोसं नासिअ),७०५३४(+),७०५७६-१(+),७२२६२ १(+), ७२७१३(2), ७०२९१, ७०२२८(5) (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर चउवीसमु), ७०२२८($) (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप रतन तेहनो), ७०५३४(+), ७२२६२-१(+), ७२७१३(+#) उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा.,सं., अधि. ३ अंश १६, पद्य, मूपू., (जयसिरि वंछिअसुहए अण), प्रतहीन. (२) उपदेशरत्नाकर-स्वोपज्ञवृत्ति, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (तत्रादौ स्वेष्टसिद्ध), प्रतहीन. (३) उपदेशरत्नाकर-स्वोपज्ञवृत्ति-चयनित, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (एवं केषु वि जीवेषु), ६९७६८(+$) उपदेशशतक, सं., पद्य, मूपू., (--),७१११७(६) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलुं नवकारनु), ६८५२५(+) उपधानतप विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रथम शुभदिवसइ पोषध),७१२७३(+$) उपधानमालारोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (शुभमुर्हते पूर्व), ६९६३१(+$) उपधान विधि-सप्तोपधान, प्रा.,मा.गु.,सं., अ.७, प+ग., मूपू., (ननु सप्तसु उपधानेषु), ६९९९३(+) उपस्थापना अधिकार-दीक्षाविधिगत, प्रा., गद्य, मूपू., (इयाणिं मुंडावणा सोहण), ६९६४९-२ उपस्थापना विधि-दीक्षाविधिगत, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासमण० मुहप० खमा०), ७०४६२-४(+$), ७०६१५-१ उपाधि प्रकरण, सं., गद्य, मूपू., (उपाधिस्तु साधना), ७०३३५(+#) उपासकदशांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०, ग्रं. ८१२, प+ग., मूपू., (तेणं० चंपा नामं नयरी), ६९१९९(+), ७१४४०(+-$), ७०७५७(5) (२) उपासकदशांगसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमानमानम्य), ६९१९९(+), ७०७५७(5) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १०, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (उवस्सग्गहरं पास), ७१५५५ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा १३, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं० ॐ), ६९२७६-४, ६९६४२-१, ७०२६७-१(#) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ७०२१५(+#), ७१७६७(+) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की पार्श्वदेवीय टीका, ग. द्विजपार्श्वदेव, सं., गद्य, मूपू., (अहँ आवश्यकादि), ७०२१५(+#$), ६९५३१ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपसर्गजे विघ्न तेहन),७१७६७(+) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (वंशाब्जश्रीकरोहसो), प्रतहीन. (३) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की प्रियंकरनृप कथा के चयनित काव्य, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (चित्तानुवर्तिनी), ६८४८७(+$) For Private and Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४९६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ की भंडारगाथा*, संबद्ध, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (तुह दसणेण सामिय), ७०७२३-१(+#), ७०४९९-४,७११०३-२ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ०७, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं०० ॐ),७०३११-१(#) (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ७-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अहो बुधाः अह),७०३११-२(#) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ९, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पास पास०),७१५५७ ऋषभपंचाशिका, क. धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (जयजंतुकप्पपायव चंदाय), ७१०१८-१(+#) ऋषिमंडल पूजा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभाय नमः), ६९११०-१ ऋषिमंडल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं. २५९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरनमिरसुरवर), प्रतहीन. (२) ऋषिमंडल प्रकरण-टीका, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीपार्श्वनाथ), प्रतहीन. (३) ऋषिमंडल प्रकरण-टीका का देवकीपुत्र स्वरूप विचार, संबद्ध, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (अनाकजसा१ अनंतसेन२), ६९०१४-१९(+) ऋषिमंडलमंत्र कल्प, मु. गुणनंदि मुनींद्र, सं., ग्रं. ३८०, प+ग., दि., (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ६९२०२(#) ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ९२, ग्रं. १५०, पद्य, मपू., (आद्यताक्षरसंलक्ष्य), ६९७१७(+-), ७०१६०(+), ७०६९३(+), ७०७३१(+), ७१८३६(+#), ७२१००(+), ७२२६९-१(+),७००८६, ७१०२१(#S), ७१०८८(#), ७१२७९(२), ७२३४०(#), ७००६७(), ७१२७८(5) (२) ऋषिमंडल स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (आदिको अक्षर अंतको),७००६७($) एकाक्षर नाममाला, मु. सुधाकलश मुनि; आ. हिरण्याचार्य, सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (श्रीवर्धमानमानम्य), ६९६८२-१(+#$), ६९८८१(+),७०३५५-१(+),७१७१८(+),७२५४०-१(+) एकाक्षर नाममाला, सं., श्लो. १९, पद्य, श्वे., (अः कृष्णः आः स्वयं), ७२५४०-२(+) ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., (अरहते वंदित्ता चउदस), प्रतहीन. (२) ओघनियुक्ति-हिस्सा साधुसाध्वी उपकरण अधिकार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (पत्त१ पत्ताबंधो२), ७०८८५(+) (३) ओघनियुक्ति-हिस्सा साधुसाध्वी उपकरण अधिकार-टबार्थ, मा.गु., पद्य, मूपू., (पात्रनी मर्यादा१), ७०८८५(+) औपदेशिक गाथा, प्रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (माणुसुत्तं वरोधम्मो), ७०७०९-४ औपदेशिकगाथा संग्रह, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जंज समयं जीवो), ७०७४९(+#$), ७०१९२-९ (२) औपदेशिकगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे जे समयने विषइ), ७०७४९(+#$) औपदेशिक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु., गा. ३२, पद्य, मूपू., (धणमिव चिंतइ धम्म),७०१६६-२(+) औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (काम वली सवही पुरहे), ७१०५७-५(+), ७०२९८-३(#), ७०८८३-२(2) औपदेशिक-धार्मिक दृष्टांतश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (विशेषैर्वस्त्र भोज्य), ६८६१२-९(#$) औपदेशिक पद, मु. केसवदास, पुहिं.,सं., पद. ३, पद्य, श्वे., (कपटं कूटवाक्यं च), ७१४७२-७ औपदेशिक रेखता, पुहि.,सं., गा. ५, पद्य, श्वे., (डेढ जात रेड्ढीया), ६९३४०-५(2) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (क्रोध मान यथा लोभ), ६९८९२-२(+), ७२६४७-२, ७२२३०-८(#) औपदेशिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरु), ७२५५५-६(2) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५०, ग्रं. ५६८, पद्य, मूपू., (किं लक्ष्मी गजवाज), ७०१०७-५(+), ७०२०४(+), ७००५९-३ औपदेशिक श्लोक संग्रह , पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ६१, पद्य, श्वे., (धर्मे रागः श्रुतौ), ७०९८३-५(+), ७१२५४-२(+#), ७२४०४(+#5), ७०१०४-२, ७०५५३-१, ७०९९७, ६९३४०-२(#$), ६९७३१-२(१), ७१६३०-३(#), ७२६४९-३(#) (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अहँत भगवंत असरणसरण), ७०९८३-५(+), ७०९९७ औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २६९, पद्य, जै., वै., (महतामपि दानानां काले), ७१०७०(+#), ७२७०९-५(+#) औपदेशिक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (सकल कुशलवल्ली पुष्कर), ७११९८(+#$) For Private and Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ४९७ (२) औपदेशिक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल कहेता समस्त), ७११९८(+#S) औपपातिकसूत्र, प्रा., सू. ४३, ग्रं. १६००, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० चंपा०), ६८९६०(+#), ६९०७५(+#), ६९१९०(+),७०३१५(६), ७१८३२($) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), ६८९६०(+#), ६९१९०(+) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. राजचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वंदित्वा श्रीजिन), ६९०७५ (+#) (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (चउथा आरानइ विषइ वरस), ७०३१५(६) (२) औपपातिकसूत्र-अंतिम २२ गाथा, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (कहिं पडिहया सिद्धा), ७०३३६(+#$) (३) औपपातिकसूत्र-अंतिम २२ गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७०३३६(+#$) औषधवैद्यक संग्रह, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, (अनार दाणा टां.८०), ६९२३६-२(#), ६९८६५-३(+), ७०४१९-५(+), ६८७२७-१, ७२६२१-२(२) औषध संग्रह *,सं., गद्य, (--), ७२३२६-२(+), ६८६०९-३(#) औषधादि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, (अथ दाडमाष्टकाम छे), ७२६५८-२(#) कटुवचन कथा- चंद्रसूर्य, सं., गद्य, मूपू., (मातृपुत्रयो चंद्रसूर), ६९९४४-१(+) कथा संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिम विदेहे गंधिला), ६९१९४(+#$), ७०६८५(६) कथा संग्रह, सं.,प्रा., पद्य, श्वे., (येनादौ नयसंपदः प्रकट), ७१४२५(5) कथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (हिवे छ आरानु नाम), ६८९६९(+$), ७०२८१(+$), ७२५०७($) कर्णिकागणना श्लोक, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (विषमात्पदतस्स), ६९७९४-२(+) कर्पूर चक्र, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (पणमिय पयारवंदे तिलुक), ६९९४१-१($) कर्म कुलक, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (तेलुक्किक्किस्स मल्ल), ६९८८२-१ कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., गा. ११२, पद्य, जै., (नमिऊण सुयहराणं वोच्छ), प्रतहीन. (२) कर्मप्रकृति-यंत्र-भांगा संग्रह*, मा.गु., को., मूपू., (पहिली २० रौ उदै ते), ७१६७०(+#) कर्मविपाक आयुर्वेदशास्त्र, सं., पद्य, मूपू., वै., (रोगकर्मोद्भवाः), ६९०८३-२(+#) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-१, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६०, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ६९३९४-१(+), ६९४०७-१(+), ६९६३५ (+s), ७०१३०(+8), ७०३९७-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मपू., (श्रियाष्टप्रतिहार्य),७०१७७-१(+$) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयोमार्गस्य वक्ता), ६९३९४-१(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन वांदी), ६९४०७-१(+$) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-२, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४, वि. १३वी-१४वी, पद्य, म्पू., (तह थुणिमो वीरजिण), ६९३९४-२(+), ६९४०७-२(+), ७००१२(+), ७०३९७-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा वीरजिनं स्तुम), ७०१७७-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (वीरं बोधनिधिं धीर), ६९३९४-२(+) (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (बंध ते स्यु कहीयइ), ७००१२(+) । कल्पद्रुम मंत्राम्नाय, सं., गद्य, मूपू., (कल्पद्रुम मंत्ररुचेव), ६९४६२-४(+#) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., व्याख. ९, ग्रं. १२१६, गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० समणे), ६९०६७(+#), ६९१९७(+), ६९४०३(+$), ६९४०९(+$), ६९४२८(+#$), ६९४३०(+#$), ६९४९५(+#), ६९५१४(+#$), ६९५१७(+#$), ६९५२०(+), ६९५८०(+), ६९९१९(+5), ७००६८(+#s), ७०६५१(+$), ७०६६६(+$), ७०८६०(+६), ७१६०८(+s), ७२७००(+६), ६९५४७, ६९५८२, ६८९७०(#S), ६८९७६(#), ६९४२३(#), ६९५२३(#$), ६९५४४(#$), ६९५४८(#), ७०३६६(#$), ७१७६२(#S), ७१८३५(45), ६९९५४(६), ७०१२५(s),७०१९६(5), ७०५०४(s), ७०५८३($), ७०६८०(5), ७१०६९(), ७१७७४(६), ७२६६८ १(६), ६९५४३(-) (२) कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं. ५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य प्रणताशेष), ७०७८४ For Private and Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४९८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ " (२) कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, ग. लक्ष्मीवल्लभ, सं. ग्रं. ४१०९, गद्य, भूपू (श्रीवर्द्धमानस्य), ६९१९७(*), ६९४३० (+), ६९५१८(०३), ७०९५४(५६), ६९४८४(३) ', " 19 (३) कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका का वालावबोध, रा. गद्य, भूपू (वर्द्धमान जिनेसररा) ७०९५४(४), ७९०५८-१(४) (२) कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुंदर गणि, सं., ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ६९५२०(+), ७१०६९(३) (२) कल्पसूत्र टीका * सं., गद्य, भूपू (प्रणम्य प्रणताशेष), ६९४२३०), ७१८३५ (३) ७०७०२ (६) 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., प्र. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, म्पू., (प्रणम्य परमश्रेयस्कर), ६९५८२ (२) कल्पसूत्र - बालावबोध, आ. शांतिसागरसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योतिः), ६९४३९-१ (२) कल्पसूत्र-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६८०, गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ६९९७७ (+$), ७०८६२(#$) (२) कल्पसूत्र वालाववोध *, मा.गु. रा. गद्य, म्पू, नमो अरिहंताणं), ६८५३४/**७), ६९४०३(७) ७०८६० (+४), ७२७००(१४), ६९४२३१), ७१९९७(१३), ६९५०५(३), ६९५४३) (२) कल्पसूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मा.गु., वि. १७९५, गद्य, मूपू., (--), ७०६६६(+$) (२) कल्पसूत्र टवार्थ #, मा.गु., गद्य, म्पू., (अरिहंतन माहरो ), ६९४०३ (+३), ६९४०९ (+३) ६९४२८(+), ६९४९५ (+), ६९५८०(+), ७००६८(+#$), ७०८६० (+$), ७१६०८ (+$), ७२७०० (+$), ६८९७६ (#), ६९५४४(#$), ६९९५४ ($), ७०५८३ (६), ७१७७४६) (२) कल्पसूत्र - टवार्थ + व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (सकलार्थसिद्धिजननी), ७०६५१(३) (२) कल्पसूत्र - अनुवाद, पुहिं., गद्य, म्पू. (हे श्रोतागणो मेरी), ६९४३८ (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान+कथा सं., गद्य, मृपू. (तत्रादी श्रीऋषभदेव), ६९४३० (+), ६९८७८(*४) ७०१२५(४) ७०१९६ (४) (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा *, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ६९४२८ (+#$), ६९४९५ (+#), ६९५८०(+), ७००६८(+#$), ६८९७० (#$), ६८९७६(#), ६९५४४(#$), ७१७७४(१), ७२६६८-१ ($) (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा ( वार्तिक), मु. उत्तम ऋषि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभजिनं नौमि ), ७१४४१(+#$) (२) कल्पसूत्र - कथा संग्रह, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (बलदेव बलिदेव वासुदेव), ६९४०९ (+), ७१६०८ (+$), ६९५४३ () (२) कल्पसूत्र - हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, मूपु., (सुमिणा दीडा जाव), ७१८४६ (३) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा महावीरजिनजन्माधिकार का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे तीर्थंकरनी माता), ७१८४६ (२) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पग, मूपु. ( तेणं कालेणं तेणं समय), ७०३६१ (+३), ७०४६३(०३), ७१३८८(*) (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे वर्षाकाल आव्ये), ७०३६१(+$), ७०४६३(+६), ६९०१० (३) कल्पसूत्र-हिस्सा सामाचारी अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (तेणे कालनै विषइ तेणे), ७०३६१(+$), ७१३८८(#) (३) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन का व्याख्यान, मा.गु., गद्य, भूपू (तिणि काल चोथे० भगवंत), ७१३८८ (*) (२) कल्पसूत्र - १० आश्चर्य गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू (उवसग्गर गव्हाण२) ७१०५७-२०१ (३) कल्पसूत्र-१० आश्चर्य गाथा का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( उ० श्रीमहावीरजीनई), ७१०५७-२(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकलार्थ सिद्धिजननी), ७०४३९(+) (२) कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अर्हंत भगवंत उत्पन्न), ७१६७४ (२) कल्पसूत्र पीठिका, संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, मूपु. ( नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७१८३४(*४), ७२३५०-१(+४) - (२) कल्पसूत्र - मांडणी, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिनं), ७०९०४(#$) (२) कल्पसूत्र- अंतर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, मूपू., (पुत्राः पंचमतिश्रुता), ७०६३५ ($) कल्पिकासूत्र, प्रा., अध्य. १०, गद्य, मूपू.. तेणं कालेणं तेणं०), ६९२०३(०) ७०३९० (३) (२) कल्पिकासूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, मृपू (श्रीवीतरागदेवने नम), ६९२०३ (+) ७०३९० (5) For Private and Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ४९९ कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ४४, वि. १वी, पद्य, मूपू., (कल्याणमंदिरमुदार), ६९५९४(+), ६९८९०(+#$), ६९८९१-२(+$), ६९९०५(+),७००७४-१(+#), ७००७८(+s),७०१०८-१(+$), ७०५४६(+#), ७०५९३(+#), ७०६९४(+), ७०७५०(+), ७०८८८(+#), ७०९८७(+), ७१२४२(+#), ७१२४४(+#), ७१३९६(+#), ७१८१७-१(+$), ७२१५९(+#), ७०३६२, ७०४३४, ७०४८७-१, ७१८५०, ६९९८८(२), ७००२७(#), ७००२९(#), ७०६४२(#), ७१३४७-२(#), ७१७९१(#), ७२३७९-१(१), ७२७४१(१), ७२८०१(), ६९३६२-२(5), ६९६२१(६), ६९६३०(s), ७०२९९(७), ७०३७०-२(5),७१७३५($), ७२४०५-३($), ६९६०५(#) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथजीरा चरण), ६९५९४(+), ६९८९०(+#$) (२) कल्याणमंदिर स्तोत्र-पद्यानुवाद, जै.क. बनारसीदास, पुहि., गा. ४४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., दि., (परम ज्योति परमातमा), ७०७९०(+), ७०९७२-१(१), ७१६५८(१), ६९५५३-१(६) कविशिक्षा, श्राव. अरिसिंह , सं., प्रता. ४, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (वाचं नत्वा महानंदकर), ६९८१४(+$) (२) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, य. अमरचंद्र, सं., ग्रं. ३३५७, वि. १३वी, गद्य, मूपू., (विमृश्य वाङ्मय), ६९८१४(+$) कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमंडनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (जह तुह दसणरहिओ काय), ६९८८७(+#5), ७०४३२(+), ७०४५५(+#$), ७१४३७(#) (२) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमंडनसूरि, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ६९८८७(+#$ (२) कायस्थिति प्रकरण-अवचूर्णि, सं., गद्य, म्पू., (सामान्यतो जीवत्व), ७०४५५(+#$) (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे दर्शनइ), ७०४३२(+) कालग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (योगकालिक अने उत्कालि), ६९९६०(+) कालग्रहण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (वाघाई अहुरत्ती दक्षि), ७०२१२ कालज्ञान आम्नायसहित, सं., प+ग., मपू., (दीपोत्सवस्य कृष्ण), ६९७६१-१ कालभैरवाष्टक-काशीखंडे, सं., श्लो. ११, पद्य, जै., वै., (यं यं यं यक्षरूपं दश), ६८७२७-७ कालभैरवाष्टक स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (देवराजसेव्यमानपावनां), ६८६२०-६(2) कालमांडलादि योगविधि- साधु, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ मोटा जोग वहे तेने),७०४५७-२ कालमांडला विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम पाटलि पडिलेहि), ७२३२५-३(+#) कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ७४, पद्य, मपू., (देविंदणयं विजाणंद), ७००१३(+), ७००६५(+#) (२) कालसप्ततिका-अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (--), ७००६५(+#) कालिकाचार्य कथा, आ. जिनदेवसूरि, सं., श्लो. ९७, वि. १४वी, पद्य, म्पू., (मोहांधकारप्राग्भार), ७०८००(+) कालिकाचार्य कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (श्रीवीरवाक्यानुमत), ६९९५०(+), ७१७५६(+$) काव्यषविंशिका, मु. तेजसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (ज्ञानप्रकाशो कवि), ७०५५६ काव्य संग्रह, मा.गु.,सं., गा. ४, पद्य, श्वे., (अ० विधौ विधुमुखी फणि), ६९०१७-१(+), ७१०३१-२(#$) कुम्मापुत्त चरिअ, मु. जिनमाणिक्य, उपा. अनंतहस, प्रा., गा. १९८, ग्रं. १०००, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं असुर), ७०७४१(+), ७१०५५(+$) कूलकचक्रादि विवरण श्लोक, सं., पद्य, मूपू., (--), ६९९४१-२($) कृष्णभव विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (कल्लाणानि समुल्लसंतु), ७१९२९-२(+) केवली आहारादि प्रश्नोत्तर, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (केवली आहार करइ किं), ६९०१४-८०(+) कोटिशिला विचार गाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जो अणपिहुलाद्यामा), ७२७६०-२ क्रियापदगुप्ति श्लोक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीनाभेयजिनाधीश), ७२३६९-२(+#) क्षपकश्रेणी रचना यंत्र, मा.गु.,सं., यं., श्वे., (संज्वलन लोभः), ७२२८२-३(+) क्षमापना गाथा संग्रह, प्रा., गा. ८४, पद्य, मूपू., (संसारम्मि अणते परभव), ६९६५७-१(+) क्षुल्लककुमार कथा, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (जयंति जितमत्सराः), ६९६९८-२(+#) क्षुल्लकभव प्रकरण, ग. धर्मशेखर, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदित्ता सिरिवीर), ७१२७०-१(+) For Private and Personal Use Only Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) क्षुल्लकभव प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, ग. धर्मशेखर, सं., गद्य, मूपू., (वंदित्ता० सुगमा नवरं),७१२७०-१(+) खरतरगच्छ पट्टावली, सं., गद्य, मूपू., (श्रीगौतमस्वामी), ७०४५२(+9), ७०५७१(#$), ७१३६१(६) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर), ७१७९० गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (हुनदेद्रियरूद्रकाल), ६९८४६-७(+) गणधरदेव स्तुति, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (तं जयउ जए तित्थं), ६९४७८-२(+-), ७०९४२-२, ७१७८३-३(#$) गणधरनामादि सूचक गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (इंदभुई१ अग्गी२), ७१०५७-४(+) गणधरवलयमंत्र विधि, सं., गद्य, मूपू., (--), ७१५६२(+#$) गणपति अष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (द्वे भार्ये सिद्धि),७१३२७-३(+), ६९७५५-२(5) गणित विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अगुणसट्ठिसयसहस्सा), ६९०१४-२५(+) गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (वुच्छं बलाबलविहिं), ७००७७ गणेशाष्टक, शंकराचार्य, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (उमांगजं कर्णवक्र), ६८७२७-९ गर्भज मनुष्यसंख्या गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तेवय कोडीओ लक्खा), ७०६७१-२(+), ६९९२४-२ गांगेयभंग प्रकरण, मु. श्रीविजय, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (वंदित्तु वद्धमाण), ६९५०७-१(+#), ७०२७९(+) (२) गांगेयभंग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वंदित्तु इति), ६९५०७-१(+#), ७०२७९(+) गाथा संग्रह *, प्रा., पद्य, श्वे., (सत्तइ रत्ता मत्तइ), ६९०१४-३१(+), ६९०१४-९४(+), ६९०१४-११५(+), ७००६९-२(+#), ७०१७१ ३(+),७०६७१-३(+), ७११०२-४(+), ६९९५६-२,७१२१८-२(2), ७१८४४-२(#) गाथासहस्री, मु. समयसुंदर, प्रा.,सं., श्लो. १०१३, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (पडिरुवायचउद्दस), ६९४००-१(+) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (चउदुरिक्क दुप्पण पंच), ६९०१४-१०९(+) (२) गुणस्थान आरोहावरोह विचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउ कहतांच्यार पैडा), ६९०१४-१०९(+) गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लो. १३५, वि. १४४७, पद्य, मूपू., (गुणस्थानक्रमारोह), ६९६७६(+$) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. १४४७, गद्य, भूपू., (अहँ पदं हृदि), ६९६७६(+$) गुणस्थान विचारगाथा, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (मिच्छे सासणमीसे), ७१११६(-) गुणानुराग कुलक, मु. जिनहर्ष, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (सयल कल्लाणनिलयं नमिऊ), ७०८३८(+) (२) गुणानुराग कुलक-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (सकलकल्याणनिलयं नत्वा),७०८३८(+) गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., उल्ला. ४, गा. ९०५, ग्रं. ८०००, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पणमिय पासजिणिंद), ६९५९९(+$) (२) गुरुतत्त्वविनिश्चय-स्वोपज्ञटीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., उल्ला. ४, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणिनतं नत्वा), ६९५९९(+$) गुरुपारतंत्र्य स्मरण-खरतरगच्छीय, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (मयरहियं गुणगणरयणसायर), ७०९४२-३ गुरुवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू., (गुरुवंदनणमह तिविह), ७०५९९-१(+), ७०८१०-१(+) गुरुवंदन विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छकारि भगवन पसाउ), ७१०१४-४(+#) गुरु स्तुति, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू., (दृष्टोद्य श्रुतकेवली), ७११२९-१०(+) गृहबिंबस्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पूर्वं भव्यमुहूर्त), ७२३३७-१ गोचरी आलोअण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कालेणय गोअरिआ), ६९६२८-१०(+),७२४५२-२(2) गोचरी आलोयणगाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अहो जिणेहिं असावज्जा), ७०५७६-२(+) गोम्मटसार, प्रा., पद्य, जै., (अरिसिद्धाण वंदित्ता), प्रतहीन. (२) गोम्मटसार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., (पेला श्रीअरिहंतजीने), ७१४४२(5) गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा अत्थपरा), ७०११५(+),७०१८७(+), ७०२८०(+), ७०४८४(+$), ७०५४७(+#), ७०५९० (+$), ७०८४१(+#), ७०८९८-२(+), ७१४१५(+$), ७२२०५(+), ७२६४०(+), ६९६३६, ७०३१०, ७०६७५, ७०९०२, ७२१२१, ७०२२५ (), ६९८८४($) For Private and Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५०१ (२) गौतम कुलक-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (लुद्धा० लोभी नरा), ७०४८४(+$) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (लुभिया मनुष्य अर्थ), ७२६४०(+) (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनुष्य अर्थनइ), ७०११५(+), ७०१८७(+), ७०२८०(+), ७०५४७(+-#), ७०५९०(+$), ७०८४१(+#),७१४१५(+$), ६९६३६,७०६७५, ७२१२१, ७०२२५(#), ६९८८४($) गौतमपृच्छा, प्रा., प्रश्न. ४८, गा. ६४, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित्थनाह), ७०५८७-१(+), ७०६९२(+), ७०८२९(#$), ६९६९०६६) (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं. १६८२, वि. १७३८, गद्य, मूपू., (वीरजिनं प्रणम्यादौ), ६९६९०(5) (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध , मा.गु., वि. १५६९, गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर),७०६९२(+) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ श्रीमहावीर), ७०८२९(#$) गौतमस्वामि स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (कणयमयसहस्सपत्ते कमलं), ७१८२०-२(+#) गौतमस्वामी अष्टक, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (श्रीइंद्रभूतिं वसु), ७१८२०-१(+#) (२) गौतमस्वामी अष्टक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेशने विषे गुब्बर), ७१८२०-१(#) गौतमस्वामी मंत्र-जाप विधि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अह), ६९६७८-१ गौतमस्वामी मंत्र-यंत्र जापविधि सहित, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ भगवो गोयमसामिस्स), ६९०६१-१(+5) गौतमस्वामी स्तव, आ. वज्रस्वामि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (स्वर्णाष्टाग्रसहस्र), ६९६६४(+), ७१४३६(+#) गौतमस्वामी स्तुति, मा.गु.,सं., गा.५, पद्य, मूपू., (अंगुठे अमृत वसे लब्ध), ७२५८८-२(+#) गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिजगन्नेतु), ६९०६१-२(+), ६९६४२-२ गौतमस्वामी स्तोत्र, आ. देवानंदसूरि, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (इंद्रभूतिं वसुभूति), ७०२९६(+), ७०७६३(+), ६९७३४, ६९८०६, ७१३१३, ६९६६८-३(#S), ७१२५१-३(#) ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं नमस्कृत्य), ६९४९४-५(+), ६९७४५-१(+),७१३७३-२(+#), ७१७६८-२(+), ७२७७७-२(+), ६९६२४-२, ६९६६९-२, ७०६४०-१, ७१६२९, ७१७५०-२(2) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र, सं., श्लो. ४, पद्य, म्पू., (ॐ घंटाकर्णो महावीरः),७०४८१-१(+),७११०४-४(+#),७२३७६-३(#), ७१२३६-२, ७१३६४ (२) घंटाकर्णमहावीरदेव स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जेना कानमा अथवा), ७१३६४ चंद्रप्रभजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (ॐ चंद्रप्रभः), ७११२२-२(+) चंद्रसूर्यमंडल विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (पनरस चुलसी असयं इह), ७१२५४-३(+#) चंद्रार्किपद्धति, दिनकर गणक, सं., श्लो. ३७, पद्य, (सूर्यं चंद्रं सद्गर), ७१८७७-१(+) चक्रवर्ति ऋद्धि विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (छ खंड भरतक्षेत्र), ७०१६६-१(+) चक्रवर्ती वासुदेवादि गत्यादि विचार, प्रा.,मा.गु., गा. ९, प+ग., मूपू., (अद्वैव गया मुक्ख), ६९०१४-१(+) चक्रवर्ती वैभव गाथा, प्रा., गद्य, मूपू., (चक्क १ असि २ छत्तदंड), ७०६३२-२(+#) चक्रेश्वरीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मपू., (ॐनमो चक्रेश्वरीदेवी),७१४९३-२($) चक्रेश्वरीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, मप., (श्रीचक्रे चक्रभीमे), ७०४८१-२(+) चक्षुहीन को केवलज्ञानप्राप्ति प्रश्न विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्षुहीननै केवलज्ञान), ६९०१४-१०५(+) चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. ६३, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सावज्जजोग विरई), ६९४२६(+), ६९७४६(+), ६९९३०(+$), ७००१५(+), ७०२१४(+), ७०२४२(+$), ७०४८८(+$), ७०४८९(+), ७०७८७(+#$), ७१०८९-१(+#), ७११३२(+#), ७१३०७(+$), ७१७९७(+#),७१८४७-१(+),७२६५४(+),७००८७,७०२८९,७०६४६, ७१०४६-१, ७००२४(#),७०२३२(2),७१०९१(#), ७१४००(2), ७२२३४-१(२), ६९४९१(६), ६९९५५(६),७०५२१(६),७१२७२(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं परमपद), ७०२४२(+$) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १७३२, गद्य, मूपू., (सावद्य योगनी विरति), ६९४९१(६) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चउसरणपइनाना अर्थ०), ६९४२६(+), ७०७८७(+#$), ६९९५५(5) चतुर्विंशतिजिन स्तुति, ग. चारित्ररत्न, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (यस्ते श्रीऋषभ स्तौमि), ७१९९१-१ For Private and Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५०२ 3 (२) चतुर्विंशतिजिन स्तुति- अवचूरि, सं., गद्य, भूपू (वस्ते श्रीपरम आनंदो), ७१९९१-१ चतुर्विंशतिजिन स्तुति, मु. सागरचंद्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मृपू, (जगति जडिमभाजि व्यंजि), ६९७४७(*) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, श्वे., (वंदे देवाधिदेवं तं), ७०८२२-१(+#) चयनित गाथा संग्रह, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (पुढवी आउ वणस्सइ बारस), ६९०१४-१८(+$) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ चरणसत्तरी- करणसत्तरी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., ( एवय समणधम्म १० संजम), ७०१०७-४ (+) चातुर्मासिक अभिग्रह, प्रा., गा. २५, पद्य, मृपू. (नाणे तह दंसणे चरित) ७०१४३-१(+) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं. ग्रं. ४०१, गद्य, म्पू, (स्मारं स्मारं स्फुरव), ६९१८६ (+), ७०२८४(१७), " ७११४५(*), ७१०२८-१ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, मा.गु. सं., पग, मूपू ( सामाइकावश्यक पीषधानि ), ६९९२१ (+४) ७०४९७(+$) + " चातुर्मासिकपर्व व्याख्यान, उपा. समयसुंदर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, भूपू (प्रणम्य परमानंद), ६९१०२ (4) ७०८९२-१ (क) चातुर्मासिक श्रावक नियम गाथा, प्रा. सं., गा. ७, पद्य, मूपू., (यथा द्विस्त्रिपूजा), ६९०१४-९० (+), ७०१४३-२(+) चारित्रमनोरथमाला, आ. धनेश्वरसूरि प्रा. गा. ३०, पद्य, भूपू (केसिं च स उन्नाण), ७०९३२(+) (२) चारित्रमनोरथमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( केतली एक पुण्यवंत), ७०९३२(+#) " चारित्र विधि, प्रा., मा.गु., प+ग, मूपू., (प्रथम सचित्त वस्तु), ६९६८० (+) चारित्रसागर गृहीता नियम, पं. चारित्रसागर, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनेंद्राणां गुर), ७०२६४ (+#) चिंतामणिकल्प, आ. धर्मघोषसूरि, सं., श्लो. ४७, पद्य, मूपू., (किंचिद् गुरूणां वदन), ६९४६२-१(+#) चिंतामणिवृहत्कल्प विशेषाम्नाय, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (प्रथम श्रीपार्श्वनाथ), ६९४६२-८ (*) + चिंतामणि संप्रदाय, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ६९४६२-२(+#) चिंतामणीमंत्र राजकल्प, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir יי (नत्वा प्रणतनागेंद्र, ६९७८०-२ (+) चेटककोणिकराजा युद्धवर्णन, प्रा. सं., गद्य, वे "" " "" (संखित्ता विउल० विपुल) ७०९५९-२ (३) चैत्यवंदनभाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., ( वंदित्तु वंदणिज्जे), प्रतहीन. "" (२) चैत्यवंदनभाष्य- हिस्सा कायोत्सर्ग के १२ आगार, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा. गा. ३, पद्य, भूपू (अन्नत्थ आइ बारस), ६९९४७-५ (३) चैत्यवंदनभाष्य- हिस्सा कायोत्सर्ग के १२ आगार-टबार्थ, मा.गु. सं., गद्य, म्पू. (अन्नत्ध आदइ देइनह), ६९९४७-५ चैत्यवंदनविधि कुलक, प्रा. गा. ३५, पद्य, भूपू (तिन्नि निसीही तिन्नि), ७१३१७(+#$) " चैत्री पूर्णिमापर्व देववंदन विधि, प्रा. मा.गु. सं., पग, भूपू. (उस्सप्पिणीहि पढमं), ६९६४०-१ जं किंचिसूत्र, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जं किंचि नामतित्थं), ७१०२७-२ (२) जं किंचिसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे कांई तीर्थ एहवुं), ७१०२७-२ जंबूअध्ययन प्रकीर्णक, ग. पद्मसुंदर, प्रा. उ. २१, गद्य, म्पू., (तेणं कालेणं० रायगिहे), ७१७७९(+१), ७०४८३(७६) (२) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवे चोथा आराने विषे), ७१७७९(+$) (२) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (ते काल चउथो आरो तेवा), ७०४८३(७) (२) जंबू अध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुप्रभावं जिनं नत्वा), ६८४६९(#) "" जंबूद्वीपपरिधिमान विचार, प्रा. सं., गद्य, वे. (सोलस दहिमुह सेला) ७०९८२-३(+) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (विक्खंभवग्गदह गुण), ७२२५८(+) " (२) जंबूद्वीपपरिधि विचार गाथा- अवचूरि, सं., गद्य, म्पू.. (करणी करण प्रकारो यथा), ७१९७९-१(+), ७२२५८(*) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., वक्ष ७, ग्रं. ४१४६, गद्य, म्पू., ( नमो अरिहंताणं० तेणं), ६९९७५ (६) ७०२७०(+), ७१२५७/(45) (२) जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति - टवार्थ *, मा.गु., गद्य, म्पू, (ते ते काल चउथा आरा), ६९९७५ (+), ७०२७० (+) जंबूस्वामी चरित्र, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, सं. स. ११. ग्रं. ३०००, पद्य, दि. (श्रीवर्द्धमानतीर्थेश, ७००४१(३) जगदंबा स्तोत्र, सं., श्लो. ९६, पद्य, वै., ( ॐ नमो नारायणी), ७२५४१-१ जघन्योत्कृष्ट चक्रि वासुदेवादि मान गावा, प्रा., गा. १, पद्य, भूपू (जंबूदीवे चक्की), ६९०१४-६ (+) जन्मपत्री विचार, सं., श्लो. ८, पद्य, (रविर्येष तुले), ७१५७४-४ "" " For Private and Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५०३ जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (जय तिहुयण वरकप्प), ६९४७८-३(+-5), ६९६५९ १(+), ६९९९२(+#),७०८९०(+), ७१०९२(+#), ७११३१-२(+#S), ७२५९०(#), ७०४४०,७१३४५, ६९३५७-५(#s), ७००८८ १(१), ७०६३९(#$), ७०२४०(5), ७०३९२(5), ७०४८७-२($) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं. २५०, गद्य, मूपू., (अत्रायं वृद्धसंप्रदा),७०८९०(+) (२) जयतिहुअण स्तोत्र-भंडार गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (परमेसर सिरिपासनाह), ७०७२३-२(+#), ७०४९९-५, ७२३५८-१ जयदेव कथा- सम्यक्त्व शुद्धाशुद्धपालने, सं., गद्य, मूपू., (वसंतपुर नगरे), ७०४८२(+) जयसिंहसूरिलिखित पत्र, आ. जयसिंहसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (दुर्वादिगर्व सर्वस्व), ७०००९-१(+) जयसिहसूरिस्तुति- अंचलगच्छ, प्रा., प+ग., मूपू., (अढाई जेसु दीवसमद्देस), ७०८१३-४ जलबिदु आदि में स्थित जीव परिमाणादिगाथा, प्रा., गा.८, पद्य, मूपू., (अमलग पमाणे पुढवीकाए), ६९०१४-३६(+) जलयात्रा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जलयात्रा योग्य उपगरण),७२४५३-१(+$) जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लो. ९३, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वदेवेश), ६९०९८(+#), ६८८३०(-#S) (२) जातकपद्धति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणाम करीने), ६९०९८(+#) जिनअपराधक्षमापन स्तोत्र, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (ॐकार आद अविगत अतीत), ६९४७६-३(+#) जिनकल्प स्थविरकल्प विचार संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (--), ७०६८९(#$) जिनकुशलसूरि अष्टक, आ. जिनपद्मसूरि, सं., श्लो. ९, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सुखं सर्वा संपद्वसति), ७०४७२(+) जिनकुशलसूरि अष्टक, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीधरालक्ष्मीसौभाग), ६९९८३-१(+#) जिनकुशलसूरि अष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (पद्म कल्याण विद्या), ७१६२६-२(#$) जिनकुशलसूरि स्तोत्र, मु. क्षमाकल्याण, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (श्रीमज्जिनाधीश), ७०५२४ जिनचैत्यवंदना स्तुति, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (देवोनेकभवार्जितो जित), ७०९३४-२(+) जिनजन्माभिषेक कलश संख्या, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पणविसजोयणंतुगो बारस), ७२२८५-४(+) जिनदत्तसूरि अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (नमाम्यहं श्रीजिनदत्त), ७१६२६-१(#) जिनदत्तसूरिस्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (दासानुदासा इव सर्व), ७१०५६-३ जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ श्रीँ अर्ह), ६९०२८-६(+), ६९४९४-४(+), ७०८४२-२(+#), ७०१०६, ७०३१९, ६९६६५(#), ६९९३२-१(), ७१००६-१(२),७१०४५-१(६), ६९७०८-१($) जिनप्रतिमाविचार श्लोकसंग्रह, प्रा.,सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (आनीताब्दशतं यस्याद्य),७०००९-२(+), ७१७७०-२,७१४९७-१(#S) जिनप्रतिष्ठानंतर अक्षतप्रक्षेप विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनप्रतिष्ठानंतर), ७२७८९(+) जिनप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., मूपू., (विषमैरंगुलैर्हस्तैः), ७०२३६(+) जिनबिंबप्रतिष्ठा कल्प, उपा. सकलचंद्र गणि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ६९५१०, ६९४३४(#) जिनबिंबप्रतिष्ठा विधि, सं., प+ग., मूपू., (नत्वा जिनं महावीर), ७१५५८(+#) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, उपा. देवीचंद, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणम्य स्वस्तिऋद्धि), ६९४५९(+#) जिनबिंब प्रतिष्ठाविधि संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य स्वस्ति), ६८५००(+$), ६९४४९(+#) जिनबिंबप्रवेश विधि, सं., गद्य, मूपू., (सुमुर्हते गृहसन्मुख), ६८५१३(+) जिनबिंबप्रवेश स्थापना विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पहिलु मुहूर्त भलु), ७०२५४($) जिनभवन १० आशातना गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तंबोल पाण भोयण वाहण), ७०१९२-७, ७०२०८-१ (२) जिनभवन १० आशातना गाथा -टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पान सोपारी अजमो प्रम),७०१९२-७ जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (खेलं १ केलि २ कलि ३), ६९६४०-२, ६९९४७-४, ७०२०८-२, ७१०५४(2) (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा१ क्रीडा२), ६९६४०-२() (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा १ क्रीडां), ६९९४७-४ For Private and Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) जिनभवन ८४ आशातनाविचार गाथा-विवरण, सं., गद्य, मूपू., (कला धनुरेवेदादिका४), ७१०५४(#) जिनमत मुनिलिंगवेष प्रबोधक सूत्र, मु. बुद्धिविजय, पुहि.,प्रा., सू. ७३, पद्य, मूपू., (तत्तेणं से भगवं गोयम), ६९५०४(+#$) जिनमूर्तिपूजामत सिद्धिगाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जो कारवइ जिणाणं ति), ६९०१४-४९(+) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनं भक्तितो), ६९०२८-७(+), ६९७०८-२, ७२३२४-१(2) जिनरक्षा स्तोत्र, सं., श्लो. १७, पद्य, मपू., (सर्वातिशयसंपूर्णान),६९०६८-३(+#) जिनलाभसूरिस्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अगण्य पुण्य पीयूष), ६९७२८-२ जिनस्तुतिस्तोत्ररत्न कोष, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., अ. २, श्लो. ७५, ग्रं. ८१, पद्य, मूपू., (जय श्रीऋषभ श्रेयः), ७१४३५ जिनस्तुत्यादि संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतो भगवंत),७०६३४-३ (२) जिनस्तुत्यादि संग्रह-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (देवस्य दर्शनं), ७०६३४-३ जिनापराधक्षमापना स्तोत्र, मु. मूलचंद, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (ॐकारं आदं अविगत अतीत), ६९०२८-१०(+) जिनाभिषेक कलश, मा.गु.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्री परमात्म), ७०२४७-२(+$) जिनेंद्रदर्शनाष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अद्य मे सफलं जन्म), ६९०२८-८(+) जीव १० स्थान द्वार विचार, मु. धर्मसी, प्रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (जीव ठाणं नाम लक्खाणं), ६८४८८-१(+#) (२) जीव १० स्थान द्वार विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहेलो चउद प्रकारना), ६८४८८-१(#) (२) जीव १० स्थान द्वार विचार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (जी० जीवनुं स्थानक), ६८४८८-१(+#) जीवद्रव्यादि लक्षण, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (तत्वातत्व स्वरुपज्ञ), ७०१७९(+), ७००४९($) (२) जीवद्रव्यादि लक्षण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवादिक पुद्गलादिक), ७०१७९(+) जीवनिर्गमन आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (पंचविहे जीवसनिजाण),७०३८२-१(+) (२) जीवनिर्गमन आलापक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव निकलवाना स्थानक), ७०३८२-१(+) जीवभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (नारयतिरिनरदेवा चउद्द), ७०९२३-१(+) (२) जीवभेद गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पृथिवी सूक्ष्म१ बादर), ७०९२३-१(+) जीवलक्षण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नाणं च दंसणं चैव), ७२३०४-२(+#) (२) जीवलक्षण गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (निगोदिया जीवथी मांडी), ७२३०४-२(+#) जीवविचार प्रकरण, आ.शांतिसूरि, प्रा., गा. ५१, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (भुवणपईवं वीरं नमिऊण), ६९००२(+), ६९०१७-३(+$), ६९४६८(+#$),६९५०३(+), ६९९३६(+$), ७०२१०(+),७०२८७(+),७०३८९(+$), ७०४४४(+$),७०५३७-१(+$),७०५४१(+), ७०६२४(+#s),७०६४४(+),७०७५१(+#$),७१०३८(+#),७१०४४(+#),७११३९(+),७१३४९(+#),७१३६६(+#$), ७१३७१(+#$), ७२२८५-१(+), ७२३६६(+#$), ७२७०३(+#$), ७२७१८(+), ६९५०९, ६९९०१, ६९९३९, ७१३३१, ७०४५६(#$), ७०८९५-१(#), ७१०८३(#), ७१४०८(4), ७२११९(#s), ७२३७३(१), ६८४७३-२(६), ६९९३१-२(s), ७०६४९ २(६), ७०७३४(६), ७०७९४(६), ७१७८६(s), ७१९०७(s) (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (भुवनमाहि मिथ्यात्व), ६९००२(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., (कैसे हैं भगवान महावी), ६९९३६(+$) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीन भुवन रै विष), ६९०१७-३(+s), ६९४६८(#$), ६९५०३(+), ७०३८९(+s), ७०४४४(+$), ७०५४१(+), ७१३४९(+#), ७१३६६(+#$), ७१३७१(+#$), ७२३६६(+#), ७२७०३(+#$), ६९५०९, ७०४५६($),७०७३४(६),७०७९४(६) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वजिन), ६९००२(+) (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मारं गुरो), ७०२८७(+) (२) जीवविचार प्रकरण-हिस्सा गाथा २३-२६, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. ४, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सव्वे जलथलखयरा समुछि), ६८५४३(+) (३) जीवविचार प्रकरण-हिस्सा गाथा २३-२६-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्मभूमि १ दर्शन २), ६८५४३(+) (३) जीवविचार प्रकरण-हिस्सा गाथा २३-२६-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे पूरवला तिर्यंचन), ६८५४३(+) For Private and Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०५ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ जीवस्थापनाविचार प्रकरण, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जीवो अणाइनिहणो), ७०२५६(+) जीवादिगणित संग्रह गाथा, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (जोयण सहस्स नवगं), ७०१५७(+) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., प्रतिप. १०, सू. २७२, ग्रं. ४७५०, गद्य, मूपू., (णमो उसभादियाणं चउवीस), ६९०७०(+), ६९०७१(+#) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मा.गु., ग्रं. ९३००, वि. १७७२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य ज्ञानविज्ञान), ६९०७०(+) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. २००००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिनं नत्वा), ६९०७१(+#) (२) जीवाभिगमसूत्र-संबद्ध ७ अवगाहना बोलसंग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ हवे रत्नप्रभा), ७०८१९(+) जीवोत्पत्ति विचार गाथा, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (अंडजाः पक्षिसर्पाद्य), प्रतहीन. (२) जीवोत्पत्ति विचार गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंखीजात सर्पजाति ए), ६९०१४-२१(+) जैन १६ संस्कार विचार, सं., गद्य, श्वे., (गर्भाधारमासिक पंचमास), ७१२१२-१(#) जैनगाथा संग्रह ,प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (सललमथघ्रतकाज निक्खु), ६८९७९-२(#),७०१३८-२(+#),७०२८८-३(+), ७१७९२ ३(+),७०१३७, ७०२५०(#), ६९९४७-६(६), ६८६१३-७(-2) (२) जैनगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनधर्म जीवानइ), ६९९४७-६($) जैनदीक्षा मुहूर्त-मुहूर्तप्रदीपके, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (दीक्षायां स्थापनायां), ७२१४३-३(+) जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, श्वे., (चिहु नारी नर नीपजइ), ७१९६१-२(+), ६९७७२-४, ७०४०८-३, ७२४९७-१, ७२८०३-२, ७१९५६-२(#) जैनधर्मिक औपदेशिक गाथा, प्रा.,सं., गा. २०, वि. १९वी, पद्य, श्वे., (एगग्गचित्ता जिणसासणं), ७०५११-२(६) जैनधार्मिक परिपाटी, सं., गद्य, मूपू., (भो त्वया यदुक्तं), ७१२६१(+#) जैन पंचांग, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (चेत्र सित्तात्० १८७९), ६८६५२(+#) जैन मंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अहँत), ७१७५४(+) जैन मंत्र संग्रह-सामान्य, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताण), ६९९८३-२(+#), ७१२४३-२(+), ७१३२४(+$),७१७१६(5) जैन श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (दर्शनज्ञानचारित्रात), ७२६४५-९(+), ७०७५६-१ जैनसम्मतशैवमार्गीय श्लोकसंग्रह, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., वै., (तथायजुर्वेदे वैश्व), ६९९०८(+) जैनसिद्धांत संदर्भश्लोक-पुराणगत, सं., श्लो. ७२, पद्य, श्वे., वै., (अहिंसा १ सत्य २),७११७५(4) जैनाचारवर्णन- उमामहेश संवादगत, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., वै., (दक्षिणे नरसिंहे), ६९९२७-३(+) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १९, ग्रं. ५५००, प+ग., मूपू., (तेणं कालेणं० चपाए), ६९४८३(+$), ६९८६३(+$).६९८७६(+$),७०७३२(+$),७१४२०(+#s), ६९६४९-१, ६९८२८(६), ७०६६४(5), ७१६८९(5) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., अध्य. १९, ग्रं. ३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (नत्वा श्रीमन्महावीर), ६९४८३(+$) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार श्रीमहावीरने), ७०७३२(+$), ७१४२०(+#$), ६९८२८(३), ७१६८९(5) (२) ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र-आधारित धनश्रेष्ठि पुत्रवधूरोहिणी कथा-पंचमहाव्रत पालन विषये, सं., गद्य, मूपू., (मगध देशे राजगृह नगरे), ७२१५६(+) ज्ञानक्रिया संवाद, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः कानि कानि), ६९७९७(+#$) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (पंचानंतक सुप्रपंच), ७१३७७-६(+#$), ७०२९२-१,७१३०९-२(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिः पंचरूप), ६८५५६-२(+$), ७००५२(+), ७०६६१-२(+#), ७०७२६-१(+), ७१३२६-३(+#), ७१८१७-२(+), ७०१०५, ७०४७६-२, ७०७५३-२, ७१०२३-३, ७२३१३, ७२८१६-२, ७२१११-२, ७०४११-१(2) (२) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (श्रीनेमीनाथ पांच), ७००५२(+), ७१३२६-३(+#) ज्ञानपंचमी स्तोत्र, मु. कीर्तिराज, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (वंदामि नेमिनाहं पंचम), ६९७२२(#) For Private and Personal Use Only Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ज्ञान पहिरावणी गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (नमंत सामंतमही विनाह), ६९६२८-४(+),७०९०३-१(+#),७१७८०-३(+),७२३४९ ७(+), ७२३५०-२(+#) ज्ञानप्रदीप, सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (चरे लग्ने चरे सूर्ये), ७२३०१-१(+) ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., अष्ट. ३२, श्लो. २७३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रीसुखमग्नेन), ७२१९३(+$) (२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रवदनतं नत्वा), ७२१९३(+$) ज्योतिष, मा.गु.,सं.,हिं., प+ग., जै., वै., (--), ६८६०२-२(+), ६९०२७-२(+), ७०८७९-२(+), ७१०५७-६(+), ७१८७७-२(+), ७२२०३-२(2), ६९७७२-३,७१९३७-२,७०९६४-४(#),७१८७५-२(#) ज्योतिषरत्नमाला, श्रीपति भट्ट, सं., प्रक. २०, श्लो. ५०४, पद्य, वै., (प्रभवविरतिमध्यज्ञान), ७२३२५-१(+#) (२) ज्योतिषरत्नमाला-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (अहं श्रीपति भट्टः), ७२३२५-१(+#) ज्योतिष श्लोक, मा.गु.,सं., पद्य, वै., (ज्येष्ठार्क पश्चिमो), ७१६९७-२(+#S), ७१०७८-२ (२) ज्योतिष श्लोक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, वै., (--), ७१०७८-२ ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, (त्रिषडेएकादशी राहू), ७२६०४-५(#) ज्योतिष श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ध्रुवघटी पुटपंक्ति), ६८९५०-१(#), ७२२१३-३(+#), ७२०८२-३, ७२६४७-३ ज्योतिष श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., पद्य, मूपू., (अच्चिबुहविहप्पिसणि), ७११६९-३(#) ज्योतिष श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २५, पद्य, वै., (इष्टस्यावधिसंस्थितौ), ७२७७७-४(+), ७२३४७-२(2) ज्योतिषसार, आ. नरचंद्रसूरि, सं., श्लो. २९४, पद्य, मूपू., (श्रीअर्हतजिनं नत्वा),७०७१२(+$), ७०९२०(+$),७१५७७(+#$),७१६९७ १(+#), ६९०९९(#), ७१५५०(#), ७१८०३(#s), ७१६३३() (२) ज्योतिषसार-यंत्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचंद्रसूरि, सं., गद्य, म्पू., (सरस्वतीं नमस्कृत्य), ६९८८०-१(+$), ७१५७७(+#S) ज्योतिषसार, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. ३३४, पद्य, मूपू., (लग्न लग्नपतिर्बलान), ६८९१०(+#$) (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (लग्नरौ स्वामी लग्न), ६८९१०(+#$) ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ३, श्लो. ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मूपू., (तं नमामि जिनाधीश), ७२३०८(+#$) ज्वालामालिनीदेवी स्तोत्र-सबीज, सं., गद्य, मप्., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ७२३७६-४(+#) ज्वालामालिनी स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्रीचंद), ७०२०९(+#s), ७०५७७(+) ढुंढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहि.,प्रा., ग्रं. २४०, गद्य, मूपू., (ढुंढियो कहे हु), ७२४६७(+#$) तत्त्वार्थसार, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ८, पद्य, दि., (जयत्यशेषतत्त्वार्थ), ६९४७२(+) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., अ.१०, गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शनशुद्ध), ६९१९८-१(+), ६९४१८(+), ६९१७१(#), ६९६२२(#), ७०२४९-४(६), ७०२८३(६) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति (दि.), आ. देवनंदी, सं., अ. १०, वि. ५वी, गद्य, मूपू., दि., (मोक्षमार्गस्य नेतार), प्रतहीन. (३) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धिवृत्ति (दि.) की भाषाटीका, पुहि., गद्य, मूपू., दि., (मोक्षमार्गस्य नेतार), ६९१९८-१(+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ , पुहिं., गद्य, मूपू., दि., (सम्यग्दर्शन सम्यग्ज), ६९४१८(+$), ६९१७१(#) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-बीजक, पुहिं., गद्य, मूपू., दि., (पहली ध्याय मैं दर्शन), ६९१९८-२(+) तपमहिमा गाथा, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (वदूरं च दुराराध्यः), ७१०१४-३(+#) तपविधि संग्रह, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदल मांडीजे), ७११९९(६) तपाखरतरोत्पत्ति विचार, सं., गद्य, मूपू., (अतिशयेन खराः खरतराः), ७२५७६ तपागच्छीय १८ शाखा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (भूयास्युर्विजयप्रभा), ७०००४-२ ताजिकसार, हरिभट्ट, सं., द्वा. ४४, श्लो. ४००, श. ११०५, पद्य, वै., (श्रीरामस्य पदारविंद), प्रतहीन. (२) ताजिकसार-कारिका टीका, ग. सुमतिहर्ष, सं., वि. १६७७, गद्य, मूपू., वै., (श्रीसूर्यचंद्रारबुधे), ७१९३९($) For Private and Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५०७ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ), ६९४९४-६(+), ६९७३२-२(+#), ७०००२(+), ७०३०८-२(+$), ७०४५३-१(#), ७०६७६-२(१), ७०८५५(+), ७००६०-१, ७०२९३, ७०६५५, ७०८३४-१, ७०८६१, ७१२५५-२, ७१३८४, ७०८७६-२(2),७१३२५ (#), ७२१९८(2),७०१९४-१(६),७०५१०(६), ६९९८५-१(-) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (कृत्वा चतुर्णा), ७०००२(+), ७०२३८-१(+) (२) तिजयपहुत्त स्तोत्र-टबार्थ, सं., पद्य, मूपू., (स्मरामि जिनेंद्राणां), ७२१९८(#) तिथिनिर्णय विचार-विभिन्न शास्त्रोद्धृत, सं., प+ग., श्वे., (एतच्छ्रुतं मया विप्र), ७१७५५ तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि बलवर्णन गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सोलस रूय सहस्सा), ७०४२८-१ (२) तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि बलवर्णन गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिव वीर्यांतराय क्षय),७०४२८-१ तीर्थंकरदानविचार श्लोक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (एवं दलति हाणं जिणवर), ७०१७१-१(+) (२) तीर्थंकरदानविचार श्लोक-अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (वखान वेलातिशय ४ वेरन),७०१७१-१(+) तीर्थमाला स्तव, सं., श्लो. २३, पद्य, मूपू., (पंचानुत्तरशरणा), ७२५९२-१ तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेंद्रसिंहसूरि, प्रा., गा. १११, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (अरिहंत भगवंत), ६९६८१(+$) (२) तीर्थमाला स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६९६८१(+$) तीर्थवंदना, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसारतारयाणं तियसासु), ७२६४५-८(+) तीर्थवंदनाचैत्यवंदन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सद्भक्त्या देवलोके), ६९७१९(+#), ७०५४५-२(+), ७१३५४(+), ७२४९३(+#), ७२६४५-७(+), ६९७३५, ७०७२८,७२२४१-१(#) । तुंगियानगर जिनभक्ति श्रावकोपदेश वर्णन, प्रा., गद्य, मूपू., (तेणं कालेणं तेणं समए), ६९८११-१ त्रिदंडी विवरण श्लोक, सं., श्लो. ६, पद्य, श्वे., (अथात्र समये प्राप्त), ७०२४५-२(+) त्रिपुरादेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ईश्वरी त्रिपुरा चंडी), ६८५७९-३(+#) त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लो. २४, पद्य, वै., (ऐंद्रस्यैव शरासनस्य), ६९४७६-१(+#), ७०४९६-२(+$), ६८७८२-१(2) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पर्व. १०, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान),७०७०८(+#$), ७२७७७-१(+) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २६, वि. १२वी, पद्य, म्पू., (सकलार्हत्प्रतिष्ठान), ६९७८१(+), ६९७९३-२(+#$), ६९८२७-१(+), ६९९८६-१(+#), ७०५४५-१(+), ७०९३४-१(+), ७११३३(+#), ७१७९४-१(+#), ६९६१०-१, ६९६५१, ६९६८३, ७०२३९, ७१०४२-१, ७११२८-१, ६९८९४(#), ७१२०० २(#), ७१२६७(#),७१७७६(#),७१७८५-२(#), ६९९१८(६),७०८३३(5) (३) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-हिस्सा सकलार्हत् स्तोत्र काटबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ६९८९४(#), ६९९१८(६), ७०२३९() त्रिषष्ठिशलाकापुरुष स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नाभेयादि जिनः), ६८६०५-२(#) थोकडा संग्रह, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (--), ६८४८८-२(+#) दंडक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, वि. १५७९, पद्य, मूपू., (नमिउंचउवीस जिणे), ६९४३७(+$), ६९५१२-२(+#$), ६९५९२ २(+$), ६९८४४(+), ६९८४८(+), ६९९४३(+#), ७०२७२(+#$), ७०३४३-३(+), ७०५८२(+), ७०६७७(+#),७०६८१(+#), ७०७५८(+$), ७०९५०(+#s), ७१३४०-१(+#), ७१४२८(+#), ७१७८४-३(+), ७२५३७(+5), ७२६५६(+#), ७०२८६, ७०७९१ १(4), ७०८०९(), ७०८९५-३(२), ७१८४४-१(२),७०९०८(),७१८१२(s), ७२८१९(5) (२) दंडक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं महिमामय), ७०३४९(+), ७०७५८(+६), ७२५३७(+६), ६९९२०($) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्करी चउवीस तीर्थ), ६९४३७(+), ७०७९१-१(#$) (२) दंडक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर५ औदारिकशरीर१), ७०६८१(+#) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मु. नेतृसिंह, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करीनइ चउवीस), ६९९४३(+#) हेमचंद्रसूरि कलिका ७०५४५-१९१, ७०९८९४(२), ७१२०० For Private and Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४ जिननै), ६९५१२-२(+#$), ७०३४३-३(+), ७१३४०-१(+#), ७१७८४-३(+s), ७२८१९(६) (२) दंडक प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (चोवीस तीर्थंकरोने), ७०२७२(+#s), ७०९५०(+-#$) दशबलकारिका, सं., का. ४०, पद्य, (ये धातवः संति गणांतर),७१९७३-१(+#) दशवकालिकसूत्र, आ. शय्यभवसूरि, प्रा., अध्य. १० चूलिका २, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुक्किट्ठ), ६८९६३(+), ६८९७८(+#), ६९०३७(+), ६९०७३(+), ६९५२९(+#), ६९५९०(+$), ६९६०६-३(+), ६९६७९(+s), ६९७६७(+#$), ६९७७९(+), ६९८०७(+), ६९९३४(+$), ७००५३(+), ७००९५(+), ७०११३(+#$), ७०१४९(+), ७०३४७(+$), ७०३६७(+$), ७०३९८(+६), ७०४६७(+#S), ७०७३९(+), ७१४१०(+#$), ६९८५५-३, ७०१४६, ७०२९०, ७०५००, ७१०६३-३, ७१०९६, ७१५०१-१, ७०२९८-१(#), ७१७८९(#s), ७००४३(६),७०४५१(६), ७०६४१(६), ७१३१९(), ७१७७२(७), ७१८२२(६), ७१३५६-१(#) (२) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ४४५, पद्य, मूपू., (सिद्धिगइमुवगयाणं), ६९४१३(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्य. १० चूलिका २, ग्रं. ६८५०, गद्य, मूपू., (जयति विजितान्यतेजाः), ६९९८१(६) (२) दशवकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धम्मो मंगलमुत्कृष्ट), ७०४६७(+#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वोत्तम मांगल), ७००४३($) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ दुर्गति), ६९०३७(+), ६९०७३(+), ६९५२९(+#$), ६९७६७(+#S), ६९७७९(+), ७००९५(+), ७०३६७(+$), ७१०९६, ७०६४१(६) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्याय ८ औपदेशिक गाथासंग्रह, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ५, वी. रवी, पद्य, मूपू., (जरा जावन्न पीलेइ), ७०९८३-२(+) (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा अध्याय ८ औपदेशिक गाथासंग्रह का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जरा कहैता अवस्था), ७०९८३ २(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा चूलिका, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गद्य, मूपू., (इह खलू भो पवइण्ण), ७०१७८+) (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा चूलिका का टबार्थ, आ. शय्यंभवसूरि, मा.गु., गद्य, पू., (इह खलु निश्चिइ भो), ७०१७८+) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम एवं द्वितीय अध्ययन, आ. शय्यंभवसूरि, प्रा., गा. ११, वी. रवी, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगल मुक्किट्ठ), ७१२६६(+) (३) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम एवं द्वितीय अध्ययन-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (धर्मः मंगलं उत्कृष्ट), ७१२६६(+) (२) दशवैकालिकसूत्र-धम्मोमंगल सज्झाय, संबद्ध, मु. जेतसी, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (धम्मो मंगल महिमा),७१६७६-७(#$) (२) दशवकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. जैतसी, मा.गु., अ. १०, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (धर्ममंगल महिमा निलो), ६९०६९-२, ७२४५९() (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. राम, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिन सिद्ध आचारिज), ७०८०१(+#$) (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., सज्झा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपदपंकज नमीजी), ६९४२५ (२) दशवैकालिकसूत्र सज्झाय-अध्ययन २, संबद्ध, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा.१५, पद्य, मूपू., (नमवा नेमि जिणंदने), ७२५०३ १(5) दशाश्रुतस्कंधसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., दशा. १०, ग्रं. १३८०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० हवइ), ७२२३०-१(#$), ७०२९५($) (२) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-हिस्सा नवमदसा ३०महामोहनीय कर्मस्थान, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३५, पद्य, मूपू., (तेणं कालेणं० मोहणि), ७००९८(+) (३) दशाश्रुतस्कंधसूत्र-हिस्सा नवमदसा ३०महामोहनीय कर्मस्थान का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (महामोह कहतां अष्ट), ७००९८(+) दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, स्था., (देवाहिदेवं नमिऊण), ६९९०२, ७२०८४, ७१०६०(5) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, स्था., (देवाधिदेवनई नमस्कार), ६९९०२, ७२०८४ For Private and Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५०९ दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., वक्ष. ४, गा. ८१, पद्य, मूपू., (परिहरिय रजसारो), ७१२९२(+$), ७२७०५ (2), ७०२६२८६),७०४४८($) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिहरिउंछाडिउ), ७१२९२(+$) दानषट्त्रिंशिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., श्लो. ३६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (दातुरिधस्य), ७०१३६(+) दानसूरि स्तुति-सप्तजिनस्तुतिगर्भित, मु. विजयदानसूरि शिष्य, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिनंदन जनेषु), ७०७४४-१(+) (२) दानसूरि स्तुति-सप्तजिनस्तुतिगर्भित-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीजिनेश), ७०७४४-१(+) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (पपुदउ कमसो जीवा जल), ७१२७०-२(+) (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व गाथा-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (पपुदउकसो इति पश्चिमा), ७१२७०-२(+) दिगंबरमत खंडन विचार, सं., गद्य, मूपू., (किं च सर्वथा नाग्न्य), ७१५०९(+) दीक्षाग्रहण मुहुर्तादि विचार, सं., श्लो. ५, प+ग., मूपू., (भरणी भानुना चैव सोमे), ७२१४३-२(+) दीक्षाग्रहण विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (सावओ कयावि चरित्तमोह),७२८५८(+) दीक्षा प्रकरण, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., (प्रणिपत्य जिनेंद्र), ७२१४३-१(+) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (दीक्षा लेतां एतला), ७०५६७-१(६) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (पुच्छा वासे चिइ वेसे), ७०१९८(+), ७०७०७(+),७२१२९, ७०८९९-१(#) दीक्षा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मूलपुनर्वसुस्वाति), ७००३३(#) दीक्षा विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (संध्यायां चारित्रो), ७०८५०(+), ७२८०२(+), ७१३८७, ७०६९०(#) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ४३७, ग्रं. १५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमांगल्य), ७१६६७(+$) (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध+कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुखदातार), ६८५३७-२(#$) दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. २७८, पद्य, मूपू., (संतु श्रीवर्द्धमान), ६९५२५(+$) दीपावलीपर्व कल्प, प्रा.,सं., गा. १३७, प+ग., मूपू., (उप्पायविगमधुवमयमसेस), ७०२८८-१(+), ७०९२७($) दीपावलीपर्व स्तुति, गच्छा. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (पापायां पुरि चारु), ६९७२८-५ दुरिअरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, मूपू., (दुरिअरयसमीरं मोहपंको), ६९८९५-२(+$),७०३३७(+#), ७०५३७-३(+s),७०९४९-२(2), ७१२५९(+),७०८४३(#), ७०५६८-१($) (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दुरिय० दुरित कहतां), ७०३३७(+#) दुसमदंडिका-लघु, आ. मतिप्रभसूरि, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (अवसप्पिणि उसप्पिणि), ७०३९९(+) दुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २५, पद्य, ?, (अनमिलनी बहुतई मिलई), ७१७९४-६(+#), ६९९३२-२(#) दूसमदडिका-बृहत्, आ. मतिप्रभसूरि, प्रा., गा. ६१, पद्य, मूपू., (अवसर्पिणि उस्सपिणि),७०१११-२ देवगतिविचार गाथा संग्रह, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (एगदिणे जे देवा चवंति), ६९०१४-७(+) देव मूलोत्तरदेहकार्य विचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (जे देवता देवलोकमाहे), ६९०१४-१०३(+) देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण कथानक, सं., गद्य, श्वे., (एकदा राजगृहनगाँ), ६९७४९(+$) देवलोक विमानविचार गाथा, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (देवद्दीवे एगो दो नाग), ७०९८२-१(+) देववंदन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमोत्थुणं कहीने भगवन), ७२३४९-३(+) देशना भाव, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अनित्यानि शरीराणि),७१६८४ ।। द्रव्यगुण विचार, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (लक्षणानि कानि अस्तित), ६९०१४-१०(+) द्रव्य नित्यानित्य विचार, सं., गद्य, मूपू., (नित्या १ अनित्यै २),७१९७९-२(+) द्रव्य संग्रह, आ. नेमिचंद्र सिद्धांत चक्रवर्ती, प्रा., अधि. ३, गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं दव्वं जिणवर), ७२६०३(5) द्रव्यसप्ततिका, वा. लावण्यविजय, प्रा., द्वा. ७, गा.७१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिरिवीरजिणं वंदिय), ६९४५५(+) (२) द्रव्यसप्ततिका-छाया, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानजिन), ६९४५५(+) द्वात्रिंशिकाकल्प, सं., प+ग., मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीर), ७००५९-१(६) द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू., (कूर्मवामनमीनाद्यैरवत), ७००९१(+) For Private and Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ द्विविधवनस्पति विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (वणस्सइ काइया दुविहा), ६९७६९(+) द्वीपवर्णन, सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे., (संध्याकारो मनोल्हादः), ७०२४५-३(+$) धनंजयनाममाला, जै.क. धनंजय, सं., श्लो. २११, पद्य, दि., (तन्नमामि परं ज्योति), ७०२२२(+$) धन्यकुमार चरित्र, मु. ब्रह्मनेमिदत्त, सं., अधि. ४, श्लो. ३८४, पद्य, दि., (श्रीमंतं जिनं नत्वा), ६९४१५(+) धर्मतरुफलदायक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (सकलजन्मविभूतिरनेकधा), ७०९५५ (२) धर्मतरुफलदायक श्लोक-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (धर्मतरोः० धर्मरूपीउ), ७०९५५ धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति दिगंबर, सं., परि. २०, पद्य, दि., (श्रीमान्नभस्वत्त्रय),७०३४८() (२) धर्मपरीक्षा-पद्यानुवाद, मनोहरदास सोनी खंडेलवाल, पुहि., वि. १८वी, पद्य, दि., वै., (प्रणमौं अरिहंत), ६९२९९(5) धर्ममूल श्लोक-जिनोपदिष्ट, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (त्रैकाल्यं द्रव्यषड), ७०२४९-१ धर्मरत्न प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., गा. १४५, पद्य, मूपू., (नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर), ७०४०५(#S) (२) धर्मरत्न प्रकरण-सुखबोधा टीका, आ. देवेंद्रसूरि, सं., ग्रं. ९७००, गद्य, मूपू., (सज्ज्ञानलोचनविलोकित), ६९८६८(+$) (२) धर्मरत्न प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. शांतिसूरि, सं., वि. १२७१, गद्य, मूपू., (सिद्ध सर्वज्ञमानम्य), ७०४०५ (#$) धर्मलाभ श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (देवानामपि दुर्लभो), ६९४१०(#) (२) धर्मलाभ श्लोक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (अस्माकं अस्मत्संबंधि), ६९४१०(#$) धर्मस्थापनवाद स्थल, सं., गद्य, मूपू., (सागरचंद्र: कालिका), ७०९७१-१ धारणा प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., गद्य, श्वे., (अरिहंतसक्खियं सिद्ध),७२४३९-२(2) धार्मिकबोलविचार संग्रह-आगमिक, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (१ वंदित्तुनी ७ गाथा), ७२८५४ धूपपूजा श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (मीनकुरंगमदागरसार), ७२३४९-८(+) । धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., आख्या. ५, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे तिअ), ७०३८४(5) (२) धूर्ताख्यान-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--), ७०३८४($) (२) धूर्ताख्यान-पद्यानुवाद, आ. संघतिलकसूरि, सं., श्लो. ४२६, वि. १५वी, पद्य, मूपू, (समस्ति भारते वर्षे), ६९४८०(+) नंदि विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (नांदि मांडीइ खमासमण),७०४६२-२(+) नंदी विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (नमोर्ह अहस्तनोतु), प्रतहीन. (२) शांतिजिनादि कायोत्सर्ग आराधना विधि, संबद्ध, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (यदहि० शांतिनाथआरा), ७०१४२(+$) नंदी विधि, सं., पद्य, मूपू., (प्रथमं पवित्र नेपथ्य), ७२२८४-३ नंदीश्वरदीप पूजा, पुहिं.,सं., प+ग., मूपू., (यहूकर दीपसु मध्य भाग), ६९१५४ नंदीश्वरद्वीप स्तोत्र, मु. मेरु, अप.,मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सिरि निलय जंबुदीवो), ७२३८७(+) नंदीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र. ५७, गा. ७००, प+ग., मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ७२७०६(+#s), ६९५२७, ६९९७३(#$),७१०८१(६),७०३६४-२(5) (२) नंदीसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नंदी ते आनंदनी देण), ७२७०६(+#$) (२) नंदीसूत्र-कथा संग्रह *, मा.गु., कथा. ८९, गद्य, पू., (नंदनंदि प्रमोदो), ७१०८१(#$) (२) नंदीसूत्र-योग, हिस्सा, आ. देववाचक, प्रा., सू. ९, गद्य, मूपू., (नाणं पंचविहं पण्णत्त), ७१७८१-१(+#) (२) नंदीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (अहँस्तनोतु स श्रेय), ७१७८१-२(+#), ७२६४७-१ (२) नंदीसूत्र-स्थविरावली, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणी वियाणओ), ७१५२३(+s), ६९८४५, ७०८४५, ७२६८१, ७२४०९-१(#),७२६०६(#) (२) नंदीसूत्र स्वाध्याय, संबद्ध, आ. देववाचक, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (जयइ जगजीवजोणीवियाणओ), ७२३१६-१(६) नपुंसकदीक्षामोक्षादि विचार, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीभगवत्याद्यभिप्रा), ६९७३७(2) नमस्कार महामंत्र, शाश्वत , प्रा., पद. ९, पद्य, मूपू., (णमो अरिहंताण), ६९७६४(+), ७०४३७(+), ७०७११-१, ६८६१४-१(2), ६९३६१-१(#), ७०७९९() (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनइ माहरउ),७०४३७(+),७०७९९(६) For Private and Personal Use Only Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ (२) नमस्कार महामंत्र-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारसगुण अरिहंता), ६९०१४-३७(+), ६९७६४(+5), ७२३८०(#) (२) नमस्कार महामंत्र-अर्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (माहरओ नमस्कार अरिहंत), ७०४४१-२(+) (२) नमस्कार महामंत्र-कथा संग्रह, मा.गु., कथा. ६, गद्य, मूपू., (एह श्रीनउकार भावसहित), ६८९६२(१), ७०२५१(#$) (२) नमस्कार महामंत्र-हिस्सा नमो अरिहंताणं, शाश्वत , प्रा., पद. १, पद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) नमस्कार महामंत्र-हिस्सा नमो अरिहंताणं पद का अरिहंतपद पुरश्चरण विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ओं नमो अरिहंताणं ए), ६९६४२-३ नमस्कारमहामंत्र कल्प, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (पंचादिपदानां परमेष्ट), ७२०१३(+) नमस्कारमाहात्म्य श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (नमस्कारसमं मंत्र),७१३७३-५(+#) नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. ३३, पद्य, मूपू., (परमिट्टि नमुक्कार),७०२२९(+) नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (नमिऊण पणय सुरगण), ६९७३२-३(+#$), ७०६९१(+), ७०७५५(+), ७१५५६(+-), ७००६०-२, ७००८९, ७२२०८, ६९६१३(#), ७१७८३-२(#), ७१९५९(#), ७०१९४-२(६), ७०४२३(६), ७०६०७ २(६), ७१४१२(६), ७२२३१(६), ७०३४४-२(-) (२) नमिऊण स्तोत्र-टीका*, सं., गद्य, मूपू., (--), ७०४२३($) (२) नमिऊण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आदौ कविर्मंगलाभिधान०),७०७५५(+), ६९६१३(#), ७२२३१(5) (२) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करी चरण कमल), ७०६९१(+), ७००८९ (२) नमिऊण स्तोत्र-भयहर स्तोत्र मंत्राम्नाय, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (श्रीस्तंभन स्तंभन), ६९४६२-३(+#) नयचक्र, आ. विजयसिंहसूरि, सं., श्लो. २३, पद्य, जै., (वर्धमानं स्तुमः सर्व),७१६३१ नवकारशांति यंत्रकल्प, सं., श्लो. ४, पद्य, मपू., (झलरीमुखं पूर्वे च नर),७१७६० (२) नवकारशांति यंत्रकल्प-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (कांसानी थाली वा कांस), ७१७६० नवग्रह वेदिकास्थापनादि विधि, सं., श्लो. ४, प+ग., मूपू., (वृत्तमंडलमादित्ये), ७२७७७-३(+) नवग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लो. २८, पद्य, मूपू., (जगत्गुरुं नमस्कृत्य), ७०८१७-१(१) नवग्रह स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, वै., (अहिमगो हिमगो धरणीसुत),७१०७४-४ नवग्रह स्तोत्र, ऋ. वेद व्यास, सं., श्लो. १२, पद्य, वै., (जपाकुसुमसंकाशं), ६९७५५-३ नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुण्णं पावास), ७०७६२(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७०७६२(+#$) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. ६०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा पुण्णं पावा), ६९०१७-२(+), ६९४७१(+#), ६९४८८(+#), ६९५९२-१(+), ६९६२९(+#$). ६९९२६(+), ७०३७२(+$),७०५९५(+#),७०५९८(+#),७०६३७-१(+#),७०७१७(+$),७०७४७(+#), ७०८३७१(+#$), ७१०९८(+#$), ७१२४८-१(+#), ७१३७६(+$), ७१४०४(+#),७१७७५(+#), ७१८३८(+#$), ७२१०३(+#), ७२२२९(+#), ७२२८५-२(+),७२३१८(+#$), ७२६१०(+#),७२७१६-१(+), ६९५४०,७०१८८-१,७०५८०,७०६४९-१,७००८८-२(2), ७०३३०(#), ७०५३०(#), ७०८९५-२(२), ७१२८१(२), ७१६०६(#$), ७२४६५(#s), ६९९३१-१(६), ७१६२५(६), ७१८०९(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, सं., गद्य, म्पू., (जयति श्रीमहावीरः), ७०७१७(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयति श्रीमहावीर), ७०५९८(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरं विश्वेश्वर), ७१३७६(+$), ७०५३०(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, ग. हर्षवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानप्रभु), ७१८०९($) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ६८६१४-४(#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध*, रा., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा० जीवतत्त्व), ६९११३(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, मूपू., (सम्यक् दृष्टि जीवनइ), ७०६३७-१(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध , मा.गु., गद्य, म्पू., (हिवे विवेकी सम्यग), ६९६२९(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गद्य, मूपू., (साचउ वस्तुनउ स्वरूप), ७०३७२(+$) For Private and Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव कहतांच्यार), ६९०१७-२(+$), ६९४७१(+#), ६९४८८(+#), ७१०९८(+#s), ७१८३८(+#S), ७२२२९(+), ७२३१८(+#$), ६९५४०, ७०६४९-१,७१६०६(#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, रा., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व अजीवतत्त्व), ६९५९२-१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा बंधमोक्ष प्रकरण, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (--), ७२३०४-१(+#$) (३) नवतत्त्व प्रकरण-हिस्सा बंधमोक्ष प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७२३०४-१(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-प्रक्षेप गाथा, संबद्ध, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (पुग्गल परिअट्टो इह), ७१२४८-२(+#) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेलो जीवतत्त्व बीजो), ७२५०९(+#$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-रूपी अरूपी मिश्र भेद, संबद्ध, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जीवो संवर निर्जर), ६९०१४-११६(+) नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापुन्नं पावा), ६९५३५(+६), ७०१८५(+), ७२२१३-१(+#), ६९४७०, ६९६०४ १(2), ७१००८(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, मु. नेतृसिंह कवि, सं., गद्य, मूपू., (अत्र जैनशासने नवतत्त), ६९५३५(+$) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व जे प्राणनइ), ७२२१३-१(+#) नवपद गरj, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीँ नमो अरिहंताण), ७१६१५-१ नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,मा.गु.,सं., पूजा. ९, पद्य, मूपू., (उपन्नसन्नाणमहोमयाणं), ६९६०८(#), ७०३९५ नवपदपूजा विधि, स., पद्य, मूपू., (अर्हत ईशाः सकलाश्च),७०८६८(क) नवपद प्रकरण, आ. देवगुप्तसूरि, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं मिच्छ), प्रतहीन. (२) नवपद प्रकरण-बृहद्वृत्ति, उपा. यशोविजयजी गणि', सं., ग्रं. ९५००, गद्य, मूपू., (शुद्धध्यानधनप्राप्त), प्रतहीन. (३) नवपद प्रकरण-बृहद्वृत्ति-संबद्ध क्षायिकशुद्धाशुद्ध विचार, सं., गद्य, मूपू., (श्रायिकस्य शुद्धा), ७०८१०-२(+) (४) नवपद प्रकरण-बृहद्वृत्ति-संबद्ध क्षायिकशुद्धाशुद्ध विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां क्षायिक शुद्धा), ७०८१० २(+) नवपद स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, मूपू., (अरिहंत पद ध्यातो), ७१४७३(+) नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., स्मर. ९, प+ग., मूपू., (नमो अरिहताण० हवइ), ६८९८१-१(+$), ६९०२८-१(+), ६९४८१ १(+#), ६९५२१(+#), ६९९००(+$), ७०९२८(+#$),७२४६८(+#s), ६९५३२-१, ६८९९९(#), ६९८३८(#s),७०९१४(६), ७१२८२(8) (२) नवस्मरण-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतनई माहरो), ६९५२१(+#$), ६८९९९(#$) नवीनप्रासादस्थापन मुहूर्त, सं., गद्य, मूपू., (खात१ पूरण२ उंबर३), ७२३३७-२ नारिकेलकल्प-विधिसहित, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), ७१७६१-१(#) नारीयोनि जीवोत्पत्ति विचार, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (जिम मनुष्यनी स्त्री), ६९०१४-१०७(+) निर्वाणकांड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अद्वावयमि उसहो चंपा), ६८५०५-१(#$) निशीथसूत्र, प्रा., उ. २०, ग्रं. ८१५, गद्य, मूपू., (जे भिखु हत्थकम्म), प्रतहीन. (२) निशीथसूत्र-हिस्सा जिनालयादि में आचारभंग आलोयणा, प्रा., गद्य, मूपू., (से भयव्वं तहारूव समण), ७११०२-२(+), ६९८११-२ नीतिशतक, भर्तृहरि, सं., श्लो. १०९, पद्य, वै., (दिक्कालाधनवच्छिन्न), ६९०६८-२(+#) नेमराजिमती ९ भव वर्णन श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (लक्ष्म्यैस्ताद्धन), ७०७७४-४(+) (२) नेमराजिमती ९भव वर्णन श्लोक-अर्थ, सं., गद्य, मूपू., (भगवतः केवलज्ञान), ७०७७४-४(+) नेमराजिमती विवाह वर्णन, अप.,सं., गद्य, म्पू., (--),७०५६४(+$) नेमिजिन चरित्र, प्रा., गद्य, मूपू., (अनया कयाइ सिरिअरिट्ठ), ७०२३०(+$) नेमिजिन स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सुविशाल शिवालयजात), ७०४१३(+) नेमिजिन स्तुति, रा. भरतचक्रवर्ती, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (श्रीशैवेय जयामेयगुण), ६९४९७(+) नेमिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मपू., (जयति यजिनेंद्रः), ७१३०१-३(+) For Private and Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५१३ नेमिजिन स्तोत्र, आ. सुदर्शनसूरि, सं., श्लो. २२, पद्य, मूपू., (शुभात्मनां लोचन गोचर), ६९४९८ नेमिजिन स्तोत्र-गिरिनारमंडन, आ. सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. १७, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भवतकाभिधान), ७०१२०-२(#) न्यायावतारसूत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३२, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (प्रमाणं स्वपराभासि), ७२८५३-२(+) पंचचक्र स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (प्रालेयामल बिंदु), ६८७२७-११ पंचज्ञान विचार, प्रा., अ. ५, गा. ४४२, पद्य, मपू., (नमिउण जिणवरिंद), ६९०२४(+$) पंचतीर्थजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ६, पद्य, म्पू., (प्रणतमानवदानवनायकः),७१३९७-२ पंचपरमेष्टि स्तोत्र, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (स्वश्रियं श्रीमद), ७१०५८-३, ७२३४७-४(#) पंचपरमेष्ठि अनुलोम विलोम मंत्रसाधन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं अरिहंताण), ६९२७६-३ पंचपरमेष्ठि आदि आशातना विचार, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (तत्र अरहताणं आसायणा), ६९९६५(2) पंचपरमेष्ठिगुण वर्णन, प्रा.,सं., प+ग., मूपू., (बारस गुण अरिहंता), ७२३४८ पंचपरमेष्ठिपद आम्नाय, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो अरिहंताणं),७२७५०-२(+) पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (स्तुवेहं समतावासान्), प्रतहीन. (२) पंचपरमेष्ठि स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (समताया सम्यावस्थायाः), ७२७५०-१(+) पंचमकाल अंतस्थिति विचारगाथा, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (सपाप लोक १स्त नरेंद), ६९०१४-४१(+) पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु आगल आवी), ७२३२५-२(+#) पंचमीतिथि स्तुति, पंन्या. मुक्तिविमल, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नम्राखंडलमंडलैः कृतम), ६९६४३-१ पंचसंग्रह, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., गा. ९९१, पद्य, मूपू., (नमिउण जिणं वीरं सम्म), प्रतहीन. (२) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., पद्य, मूपू., (मिच्छा अविरय देसा), ६९०१४-११०(+) (३) पंचसंग्रह-हिस्सा बंधकद्वारे जीवाश्रितगुणस्थानकसमयविद्यमानता गाथा की व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (मिथ्यादृष्ट्यविरतदेश), ६९०१४-११०(+) पंचांगुलीदेवी मंत्रजपसाधन विधि, सं., प+ग., मूपू., वै., (अज्ञानतिमिरध्वंसि), ७२३७६-२(+#) पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पंचा. १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्धमाणं सावग), प्रतहीन. (२) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा भिक्षुप्रतिमा पंचाशक-गाथा-१३, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (पच्छागच्छमईई एन), ७०१११-१ (३) पंचाशक प्रकरण-हिस्सा भिक्षुप्रतिमा पंचाशक-गाथा-१३ की टीका, सं., गद्य, मूपू., (पश्चान्मास पूरणानंतर), ७०१११-१ पच्चक्खाण आगार गाथा, प्रा., पद्य, मूपू., (नवकार १ पोरिसीए २), ७०८०८-३(+#), ७१०६८(+$) पच्चक्खाण आगार यंत्र, प्रा.,मा.गु., को., मूपू., (--),७०८०८-२(+#), ७१२३१-१ पच्चक्खाण आगार विवरण, प्रा.,मा.गु., प+ग., मूपू., (उग्गए सूरे नमुक्कार), ७०२२४(+) पच्चक्खाण पारने की विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (खमा० इरिया० पडिक्कमी),७२३४९-४(+) पट्टावली-उपकेशगच्छीय, आ. सिद्धसूरि, सं., श्लो. ४९, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनौमि), ७२४३२-१(+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुंदर गणि, सं., गद्य, मूपू., (गौतमादि गुरु नत्वा), ७०६०९(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १५, वि. १८९२, पद्य, मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७१७८०-१(+), ७१८३०(+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, मा.गु.,सं., श्लो. १९, प+ग., मूपू., (नमः श्रीवर्द्धमानाय), ७११२५(+#) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., श्लो. १४, पद्य, म्पू., (नमः श्रीवर्धमानाय), ६९६२६, ७०७२७ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीगौतमस्वामी गृहे), ७२५०४(+$) पडिलेहण कुलक, ग. विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., (पडिलेहणाविसेस), ७०९४७(+) (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखनाना विशेष), ७०९४७(+) (२) पडिलेहण कुलक-हिस्सा गाथा १-५, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सुत्तत्थदिट्ठी १), ७२७९४-१ (३) पडिलेहण कुलक-हिस्सा गाथा १-५-अवचूरि, सं., गद्य, भूपू., (सूत्रार्थतत्त्वदृष्ट), ७२७९४-१ For Private and Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ७१३७९, ७२८६२ ।। पद्मावतीदेवी आराधन विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (ॐ आँ क्रौँ ह्रीं ऐं), ६९६४५-२ पद्मावतीदेवी चौपाई, आ. जिनप्रभसूरि, अप., गा. ३७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणसासण अवधाक करेवि), ७२५१२ पद्मावतीदेवी छंद, मु. हर्षसागर, मा.गु.,सं., गा. १०, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं कलिकुंडदंड), ६९३५३-३(+) पद्मावतीदेवी जापमंत्र संग्रह, सं., गद्य, म्पू., (ॐ ह्रीं क्लीं ब्लौं), ६९६८९(+#$) पद्मावतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ आँ क्रॉ ही ए), ७२३७९-३(#) पद्मावतीदेवी स्तव, सं., श्लो. २७, पद्य, मूपू., (श्रीमद्गीर्वाणचक्र), ७०८०६(+#$), ७११४८(+#), ७२२३३-१, ६८७८२-२(2), ७०१७४(#), ६९६४५-१() पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ४१, प+ग., मूपू., (ॐ अस्य श्रीमंत्रराज), ७१०३९(+) पद्मावतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, म्पू., (श्रीमद्गीर्वाण), ६९५७५(#) पद्मावती मंत्र व जापविधि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ ह्रीं क्लीं क्री), ६९३५३-१(+) पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., शत. १०, श्लो. ११६, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), ६९४६३ पद्मावतीसहस्रनाम स्तोत्र, सं., श्लो. १३५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या ), ६९३५३-२(+) पद्मावती स्तोत्र-समहिमान्वित मंत्रयुक्त, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीमत्पार्श्वस्यमहि), ६९८०९-१ परब्रह्मोत्थापनस्थल, आ. भुवनसुंदरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इह हि मुक्तिकलापालोल), ६९४६६(5) परमाणुपरिणाम भांगा कोष्टक, ग. नयविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (परमाणु पोग्गलेणं), ७०४९५(+$) परमात्म स्तुति, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (दर्शनं देवदेवस्य), ६९९१३-४(#) परमात्मस्वरूप स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु.,सं., गा. ३२, पद्य, मूपू., (चिदानंदरूपं सुरूप), ६९८६५-२(+), ७१७९५-१ परमानंद स्तोत्र, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. २५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (परमानंदसंपन्न), ७२२१४(+#), ७२१६२(#), ७०५३२ २४) (२) परमानंद स्तोत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (परमात्माने नमस्कार), ७२२१४(+#) पर्यंताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, ग्रं. २४५, पद्य, मूपू., (नमिउण भणइ एवं भयवं), ७०५८७-२(+), ७०७४३(+#), ६८९९४, ६९०२६(#), ६९१४५(#), ७०२११(६) (२) पर्यंताराधना-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस्करीनई), ६८९९४ (२) पर्यंताराधना-टबार्थ ,मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार करिने), ६९०२६(#) (२) पर्यंताराधना-अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीजिनेश्वर प्रत्य), ६९१४५(2) पर्याप्तिकालभेद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (वेउव्विय पज्जत्ति), ७२२५३-२ पर्यायवाची शब्दकोश, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यतिश्चंद्रो मृगः), ७०३५५-२(+$) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नंदलाल, सं., श्लो. ६२४, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा पार्श्व), ६९४०८(+#) पाक्षिक स्तुति, आ. बालचंद्रसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (स्नातस्या प्रतिमस्य), ६९७९३-६(+#), ६९८५१-३(+),७०१८०(+s), ७१३२६-२(+#), ७१५५४(+), ७२७०१(+), ६९४७४-५, ७२८१६-५, ७०४११-२(#, ७१८१६-२(2), ७०७५३-१(६) (२) पाक्षिक स्तुति-अवचूरि, ग. विवेकहर्ष, सं., वि. १६वी, गद्य, मूपू., (स्नातस्या० स श्रीवर), ७०१८०(+5) (२) पाक्षिक स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (स श्रीवर्द्धमानो जिन), ६९८५१-३(+) (२) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्नान कराव्यु छे), ७१३२६-२(+#), ७२७०१(+) पात्रकेसरि स्तोत्र, आ. विद्यानंदस्वामी, सं., श्लो. ५०, पद्य, दि., (जिनेंद्र! गुण संस्तु), ७००२५ पात्रविचार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (तुंविय१ दासयर महीय३), ६९०१४-४३(+) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक, सं., प+ग., मूपू., (धर्मतः सकलमंगलावली), ७०५०६(३) (२) पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री कथानक-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७०५०६(5) पार्श्वचंद्रसूरि पट्टपरंपराप्रशस्ति पत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ७०१३९(#) पार्श्वजिन १० भव संक्षिप्तवर्णन*, सं., गद्य, श्वे., (पासे नामति भ्रातराव), ७१३०२ For Private and Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (श्रीमद्देवेंद्रवृंदा), ७०७६९-१(+$), ७०१०४-१ पार्श्वजिन चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू, ॐ नमः पार्श्वनाथाय ६९०२८-३(*), ६९७४३-४(+), ७००४५-१(+), ७००७४-२(+), ७११०४-१(+#), ७०४०८-२, ७२४०५-२, ७०६५७-२(#), ७१७९३-१(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - चिंतामणि, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य), ६९५३३-२ (#) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - चिंतामणि- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे पार्श्वनाथ नमस्तु), ६९५३३-२ (#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (वरसं वरसं वरसं वरसं), ७००४५-२ (+), ७०६६१-१(+#), ७०८७९-१(+), ७१००९) (२) पार्श्वजिन चैत्यवंदन - यमकबद्ध - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वरं प्रधाना संवरस्य), ७०८७९-१(+) पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वर, आ. हंसरत्नसूर, सं. श्री. ९, पद्य, मूपू (सकलसुरासुरवंद्यं), ७०८८९-१(७) पार्श्वजिनद्वात्रिंशिका-चिंतामणि, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं जगद्देवं), ७२३२०-१(-$) " पार्श्वजिन नमस्कार-स्तंभनक, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (जय महायस जय महायस), ६९६५९-२(+), ७००६३-२(-) "" पार्श्वजिन पद- चिंतामणि, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू (चिंतामणि जिनराय सुमण), ७०३४३-१(०) पार्श्वजिन पद्मावतीदेवी छंद, मा.गु. सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (कलिकुंडंदंड), ७०२६१-१($) पार्श्वजिन मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (ह्रींकारे चंद्रमध्ये), ७२७६६-२ " पार्श्वजिन स्तवन, मु. रत्नकीर्ति, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (नमिऊण पासनाहं विसहर), ६९४६२-६ (+), ७१२७४-२ (क) पार्श्वजिन स्तवन, सं., श्लो. १०, पद्य, मूप, (जय जय जगत उधारणं शिव), ६९९१३-१(४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पार्श्वजिन मंत्राक्षर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (अर्ह श्रीपार्श्वनाथ), ७२८३५-२(३) "" पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वः पातु वो), ७०२५५ (+$), ७०९१८-१(+#S), ७१००१(+), ६९६५५-१ पार्श्वजिनमहिम्न स्तोत्र, आ. रघुनाथ, सं., श्लो. ४१, वि. १८५७, पद्य, स्था., (महिम्नः पारं ते परम), ७०३२९(+) पार्श्वजिन माहात्म्य- अंतरिक्ष, ग. भावविजयगणि, सं., श्लो. १४४, वि. १७१५, पद्य, मूपू.. (प्रणम्य परमानंद), ६९५९५, ६९६११(३) पार्श्वजिन लघुस्तोत्र, मु. लक्ष्मीवल्लभ, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (कुरु कुरु रसने गुण), ७२७६६-३ ७ पार्श्वजिन लघुस्तोत्र - रावण सं., श्लो. ७, पद्य, भूपू (पार्श्वपदांबुजातं). ७०१६२-१(*) पार्श्वजिन वृद्धस्तवन, मु. रत्नसोम, सं., श्लो. १४, पद्य, मूपू., (श्रीगीर्वाणप्रणतां), ६९७४०(#$) "" पार्श्वजिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. १५०, पद्य, मूपू (पार्श्वनाथ जिनः), ७१३९१ (७), ६९०६० पार्श्वजिन स्तव अट्टेमट्टेमंत्रयुक्त, सं., श्लो. १०, पद्य, म्पू., (कल्याण कारण गण प्रथम), ७०२६८-४(+) पार्श्वजिन स्तव - अट्टेमट्टेमंत्राम्नाय गर्भित, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते श्री), प्रतहीन. (२) पार्श्वजिन स्तव अट्टेमने॒मंत्राम्नाय गर्भित मंत्रसाधन विधि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू. (कुंकुमगोरोचनकर्पूर), ६९७८०-१(+४) पार्श्वजिन स्तव-करहेटक, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (आनंदभंदकुमुदाकरपूर्ण), ७०१०८-३(+) "" पार्श्वजिन स्तव जीरापल्ली, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू (श्रीवामेवं विधुमधु), ७१२५५-१, ७१४३४(#) पार्श्वजिन स्तव - जीरावला, आ. महेंद्रप्रभसूरि, सं., श्लो. ४५, पद्य, मूपू., (प्रभुं जीरिकापल्लि), ७१७९८-१(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कमलप्रभ, प्रा. गा. ७, पद्य, म्पू, (जस्स फणिंद फणो होई), ६९४६२-७(+) "" " , - ५१५ पार्श्वजिन स्तवन- जीरापलि, मु. मेरुनंदन, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू (असुरनरसुरेंद्रश्रेणि), ७२७७४-३ पार्श्वजिन स्तवन-जेसलमेरमंडन चौदगुणस्थानकविचारगर्भित, मु. राजसमुद्र, प्रा., मा.गु., डा. ३, गा. १९. बि. १६६५, पद्य, मू, (नमिअ सिरिपासजिण सुजण), ७०५२६ (+) पार्श्वजिन स्तवन मंत्राम्नायगर्भित, ग. सुजयसौभाग्य वाचक, मा.गु., सं., गा. ७, पद्य, मूपू, (ॐ नमः पार्श्वप्रभु, ७०७५४-१ पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरमंडन, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., ( नमः पार्श्वनाथाय), ७०६२६-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शृंखलाबंध, मु. जैनचंद्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (सर्वदेवसेवितपदपद्मं), ६९६६८-१(#) पार्श्वजिन स्तव बीजमंत्रयुक्त, मु. कुलप्रभ कवि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू (नत्वोपासित चरणं कमठे), ७०२६८-३(+) पार्श्वजिन स्तव स्तंभनतीर्थ, सं., श्लो. २, पद्य, मूपू (श्रीसेढीतटिनीतटे) ७०७१३-१, ७०८१३-३, ७००६३-३(-) पार्श्वजिन स्तव स्तंभन मंत्रगर्भित, ग. पूर्णकलश, प्रा. सं., गा. ३७, ई. १२००, पद्य, मूपू (जसु सासणदेवि वएसकया), ६९६१४-२ For Private and Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ पार्श्वजिन स्तुति, मु. जिनपद्म, सं., श्लो. ७, पद्य, मपू., (तमालनीलच्छविपिच्छलां), ७२७७४-२ पार्श्वजिन स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (मालामालानबाहर्दधददध), ७१३५७-१(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अमरगिरिशिरस्थस्फार),७१३७७-५(+#) पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (गो गुरूपयकज उत्तर),७०९६३(+६) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (धर्मे निर्मल), ७१३०१-५(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (विदामटोपराद्राख आंबा), ७०७७४-३(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक), ७२३२७-३ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबंध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हेंद्रे कि धप), ७२६७३-५, ६९६६७($) पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञ ज्योति), ६९६७३-१ पार्श्वजिन स्तुति-पलांकित जेसलमेरमंडन, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शमदमोत्तमवस्तुमहापणं), ७०२३४-३(+), ७०७४८-४(+), ६९६७३-२ पार्श्वजिन स्तुति-समवसरणभावगर्भित, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुरनिर्जरलोक),७०५७३-४(+), ७१३७७-३(+#), ७०२५७, ७०२५८, ७०४१२-१,७१३९२-२(२) । पार्श्वजिन स्तुति-स्तंभन, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सिरिथंभणयट्ठिय पास), ७००६३-४(-) पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. जयसागर, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (धर्ममहारथसारथिसारं), ७०१०८-२(+), ६८६२६-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लो.५, पद्य, मपू., (ॐ ह्रीं श्रीं धरणो),७१३०१-६(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (सिग्घमवहरउ विग्घ),७०९४२-४ पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. धर्मघोष, सं., श्लो. १६, पद्य, मूपू., (कस्तूरीतिलकं भुवः), ६९५००(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, आ. शिवनाग, सं., श्लो. ३९, पद्य, मूपू., (धरणोरगेंद्र सुरपति), ७२४४९(5) पार्श्वजिन स्तोत्र, प्रा.,सं., गा. १७, पद्य, मूपू., (उवसग्गहरं पासं पास), ७२३७६-५(+#) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, मपू., (केवललोकितलोकालोक), ७०१६२-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथं नमस्तु), ६९०२८-९(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (प्रणमामि सदा प्रभु), ७१३९७-४, ६९९१२-२(२), ७०१२७-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-कलिकुंड, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं तं नमह), ७०२६१-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (सकल मंगल मंजुल मालिन), ७१८०५-१ पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, मु. रामविजय, मा.गु.,सं., गा. १४, पद्य, भूपू., (नमु सारदा सार), ७२७६६-१(६) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूरमयं सुधारस), ६९७४५-२(+), ६९८३६(+), ७०२६६(+), ७०५४५-३(+$), ७१०६२-२(+$), ६८७२७-१०,७०१५५,७०६१४-१, ७०७०६, ७०८०७-२(#), ७०८६५(२), ७१२५१-२(#), ७१२७४-१($) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणि देवकुलपाटकस्थ, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (नमो देवनागेंद्रमंदार), ६९६८४(+), ७००५४-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-चिंतामणिमहामंत्रगर्भित, धरणेद्र, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह), ६९२७६-५ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला महामंत्रमय, आ. मेरुतुंगसूरि, सं., श्लो. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (ॐ नमो देवदेवाय नित्य), ७१७९२ २(+),७१७९८-२(#),७०७०९-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, प्रा., गा. १२, पद्य, मूपू., (अरिहं थुणामि पास), ७०७२२-२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गा. १०, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (दोसावहारदक्खो नालिया), ६९७२०(+), ७०७२२-१(+), ७०८३९-४(+),७१४२२(+),७०८३४-२ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहस्तुतिगर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (दोस कहतां राग द्वेषा), ७१४२२(+) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, मु. लब्धिरूचि, मा.गु.,सं., गा. ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., (जय जय जगनायक), ७२८०८(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-शंखेश्वर, आ. हसरत्नसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (महानंदलक्ष्मीघना), ७१७८२-२ पार्श्वजिन स्तोत्र-समस्याबंध, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथं तमह),७१२५१-१(2) For Private and Personal Use Only Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५१७ पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभन, आ.सोमसुंदरसूरि, सं., श्लो. २५, वि. १५वी, पद्य, मपू., (स्फुरत्केवलज्ञानचारु), ७०१२०-३(#) पार्श्वजिन स्तोत्र-स्तंभनतीर्थ, आ. तरुणप्रभसूरि, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीस्तंभनस्तंभन), ६९४६२-५(+#) पार्श्वजिनाष्टक-शंखेश्वर, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीसद्मपद्मापतिपूजि), ७१८०५-२ पार्श्वधरणेद्रपद्मावती स्तोत्र, सं., गद्य, म्पू., (नमोभगवते श्रीपार्श्व), ७०४९९-६ पार्श्वनाथ मालामंत्र स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू., (ॐ नमो भगवते पार्श्व), ७०८१७-२(2) पाशाकेवली, मु. गर्गऋषि, सं., श्लो. १९६, पद्य, श्वे., (महादेवं नमस्कृत्य), ६९०३२(+), ६९२५१-१(+), ६९९९१(+$), ७२१७४(+s), ६८५६५-२(#S), ७१०९३(#), ७११४४(#$), ७२६४९-१(#s) (२) पाशाकेवली-भाषा*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, श्वे., (१११ उत्तम थानक लाभ), ६८५६३, ६९२२०, ६९२२१, ६९२६२, ६८६५५(#), ६८६९४(#),७२१५५-२(#5), ६९३६९-५(2) पिंडविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मपू., (देविंदविंदवंदिय पयार), ७०५३१(+#), ७२४३७(+#), ७१३२०(#$) पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, म्पू., (संपुन्न इंदिअत्त), ७०७७१(#) (२) पुण्य कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरु पंचिन्द्रियपणो), ७०७७१(2) पुण्यपाप कुलक, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा., गा. १६, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (छत्तीसदिवस सहस्सा), ६९७३६-१(+), ६९८८८-२(+), ६९९६३(+), ७०९४५, ७१०८०-२($) (२) पुण्यपाप कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवै सो वर्षना दिन), ६९८८८-२(+), ६९९६३(+), ७०९४५ पुद्गलपरावर्त विचार गाथा, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (दव्वे खित्ते काले०), ७००३२(+) (२) पुद्गलपरावर्त्त विचार गाथा-टीका, सं., गद्य, मूपू., (कम्मा० सर्वस्तोकः), ७००३२(+) पुद्गलसंख्या स्तवन, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (श्रीवीतराग भगवंस्तव), ७२७६०-१ (२) पुद्गलसंख्या स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे श्री वीतराग हे), ७२७६०-१ पुराणहुंडी, मा.गु.,सं., श्लो. २७८, पद्य, श्वे., वै., (श्रूयतां धर्मः),७२६०८, ७२३७१(६) (२) पुराणहुंडी-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., वै., (--), ७२३७१(६) पुरुषघातचंद्र विधि, सं., श्लो. २, पद्य, श्वे., (मेषे आदि १ वृषे पंच),७११६६-२(+#) पुरुष लक्षण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., बौ., (कुलीन शीलवान् दाता), ६९८४६-३(+) पूर्ववर्षमान विचार, मा.गु.,सं., गा. १, प+ग., मूपू., (दशसून्यसमायुक्तै रस), ६९०१८-३(+) पेढालपुत्र प्रश्न बोल, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (पेढालपुत्र कहै छै), ७०९६१-५(+) पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथ), ७०३३१ (२) पौषदशमीपर्व कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पार्श्वनाथां), ७०२३७(2) पौषदशमीपर्व कथा, मु. जिनेंद्रसागर, सं., श्लो. ७५, पद्य, मूपू., (ध्यात्वा वामेयमहँत), ७०१३२(+) पौषदशमीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभिनवमंगलमालाकरण), ७१०८४-१(+) पौषधप्रतिक्रमण स्थापन गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (पाणिवह मुसावाए अदत्त), ६९३५७-३(#$) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., पद. ३६, सू. २१७६, ग्रं. ७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं० ववगय), ६९५४५(+), ७०५१८(+s), ७०९११(+), ७१३४४(+$), ७०१४५(5) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., पद. ३६, ग्रं. १६०००, गद्य, मूपू., (जयति नमदमरमुकुटप्रति), ६९५४५(+), ७१७५८(#$) (३) प्रज्ञापनासूत्र-टीकागत ४२ भाषाभेद विचार, हिस्सा, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊण वीरनाह), ६९७४२(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७०५१८(+$), ७१३४४(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा, हिस्सा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (जणवय सम्मय ठवणा नामे), ७०५२९(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र-४२ भाषाभेद गाथा की वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (भगवान हे गौतम आराधणी), ७०५२९(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-संज्ञा पद, हिस्सा, प्रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (भत्तिपणमंतसुरवरकिरीड), ६९८७३-१(+#) For Private and Personal Use Only Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५१८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (३) प्रज्ञापनासूत्र-संज्ञा पद की टीका, सं., गद्य, मूपू., (भत्तीति सुगमं आहारस), ६९८७३-१(+#$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा आर्यअनार्यदेश नाम, वा. श्यामाचार्य, प्रा., प+ग., मूपू., (से किं तं खेत्तारिया), ७०५१४-३(+) (३) प्रज्ञापनासूत्र-हिस्सा आर्यअनार्यदेश नाम का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (राय० मगधदेशनी रजग्रह),७०५१४-३(+) (२) २३ पदवी विचार-पन्नवणासूत्रगत, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर चक्रवर्ति), ७२०३३(#) (२) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (दिसि १ गइ २ इंदिअ ३),७०१०१(+$) (२) प्रज्ञापनासूत्र-तृतीयपदसंग्रहणी, संबद्ध, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (दिसि १ गइ २ इंदिय ३), ७०६९८($) (२) प्रज्ञापनासूत्र-बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुक्षलोक मध्ये), ६९०१४-८५(+), ७०५१४-१(+$) प्रज्ञाप्रकाशषत्रिंशिका, मु. रूपसिंह, सं., श्लो. ३७, पद्य, श्वे., (प्रज्ञाप्रकाशाय नवीन), ७२६९०(#), ६९८५२८) (२) प्रज्ञाप्रकाशपत्रिंशिका-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुद्धि प्रकाशने अर्थ), ६९८५२(-) प्रतिक्रमण सामाचारी-विधिपक्षगच्छीय, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (तत्रादावनगारस्य दैवस), ६९४५१(2) प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लो. १०४, पद्य, मूपू., (ऐंद्रश्रेणि नता), ६९४०५ (२) प्रतिमाशतक-लघुवृत्ति, आ. भावप्रभसूरि, सं., वि. १७९३, गद्य, मूपू., (लक्ष्मीपुण्यगृहेणहिल), ६९४०५ प्रतिष्ठाकल्पे-मंत्रसंग्रह, सं., गद्य, मूपू., (ह्रीं अर्ह भूर्भुव),७०७०४(६) प्रतिष्ठाशास्त्र, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (प्रणम्य भक्त्या ऋषभ), ६९४९२(#$) प्रतिष्ठासारोद्धार, श्राव. आशाधर, सं., अ. ६, वि. १२८५, पद्य, दि., (जिनान्नमस्कृत्य जिन), ७०५६१(६) प्रत्याख्यान भाष्य, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस पच्चक्खाण चउविहि), ७०५९९-२(+$) प्रद्युम्नचरित्र महाकाव्य, उपा. रत्नचंद्र, सं., स. १७, ग्रं. ३५६९, वि. १६७४, पद्य, मूपू., (राज्यलक्ष्मीाय), ६९२००(+) प्रभात पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (उग्गएसूरे नमुक्कार), ६८६१३-३(-#$) प्रभातिमंगल स्तुति, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (गोयम सोहम जंबूपभवो), ७०२०७(+), ७०५१९(#) प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., परि. ८, सू. ३७९, वि. ११५२-१२२६, प+ग., मूपू., (रागद्वेषविजेतार), ७२८५३-१(+) प्रमाणनयसूत्र संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (प्रमाणं स्वपरव्यवसाय), ७०७८० (+$) प्ररूपणाविचार संग्रह, सं., गद्य, मूपू., (अविभागपरिच्छेद), ७०३१७ प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., द्वा. २७६, गा. १५९९, ग्रं. २०००, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगाइजिणं), ६९४०० ),७०९४४(+$) (२) प्रवचनसारोद्धार- भावितीर्थंकरजीव गाथा, हिस्सा, आ. नेमिचंद्रसूरि, प्रा., गा. २४, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (पढमंच पउमनाहं सेणिय), ६९८३४-२(+) प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अ. १०, गा. १२५०, ग्रं. १३००, प+ग., मपू., (जंबू अपरिग्गहो संवुड), ६८९६५(+#), ६९००३(+), ७१७८८(+$) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हे जंबू एह प्रत्यक्ष), ६८९६५(+#) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-साधुसाध्वी उपकरण, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (जं पिय समणस्स), ७०५१४-२(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-प्रदेशी प्रश्न, प्रा., गद्य, मूपू., (अजयसुरीकंता १ तह), ७१६८७(+) (३) प्रश्नव्याकरणसूत्र-प्रदेशी प्रश्न का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दादो मोह करतो ते मरि), ७१६८७(+) प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लो. २९, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्य जिनवरेंद्र), ६९९३७(+), ७०२७७(+#), ७२५७८(+), ७००८१, ७१३४७-१(#) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमी करी श्रीमहावीर), ६९९३७(+), ७०२७७(+#) (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इहैव जंबूद्वीपप्रज्ञ), प्रतहीन. (३) प्रश्नोत्तररत्नमाला-कथा-संबद्ध अतिगहनस्त्रीचरित्रे चंडाप्रचंडाविद्युल्लता कथा, आ. देवेंद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (--), ७१०६१(६) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, उपा. क्षमाकल्याण, सं., प्रश्न. १५१, वि. १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं नत्वा), प्रतहीन. For Private and Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., प्रश्न. १५१, वि. १८५३, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै तीर्थंकर), ६९१८५(+#) प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. १६१, पद्य, मूपू., (क्रमनखदशकोटीदीप्रदीप),७०९५१(६) प्रसन्नवरदा लक्ष्मी स्तोत्र, ऋ. अगस्त्य, सं., श्लो. ३३, पद्य, वै., (जय पद्मपलाशाक्षि जय), ७२३२४-२(#) प्रस्ताविक श्लोकसंग्रह-, मा.गु.,सं., गा. ११३, पद्य, मूपू., (विद्या भल पण अधांग), ७१८८०($) प्राकृतलक्षण, क.चंड कवि, सं., विधा. ४, गद्य, जै.?, (प्रणम्य शिरसा वीर), ६९५३८(+), ६९७९२($) (२) प्राकृतलक्षण-टीका, सं., गद्य, जै., (प्रकर्षेण नत्वा प्रण), ६९५३८(+) प्रायश्चितविधान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अखंडिअचारित्तो वय), ६९०१४-७७(+) (२) प्रायश्चितविधान गाथा-अर्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (अखंड अविराधिक), ६९०१४-७७(+) प्रासाद विचार, सं., गद्य, वै., (क्वचिद द्वादशभागा), ७२३३७-३ प्रास्ताविक गाथा संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. २८, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ६९८५५-२, ७०४९८-२, ७०६०१-२, ७१९३०-२ प्रास्ताविक श्लोक, सं., श्लो. १८१, पद्य, मूपू., (नमोस्तु देवदेवाय),७२५२२-२(+), ७१०६३-२, ६९३५५-४(2) प्रास्ताविक श्लोक-अन्नमहिमा, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (राज्यं कुंजर चामरादि), ७०२६०-३ प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११०, पद्य, श्वे., (कोटंच बूटं च पतलून), ७०१०७-१(+$) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. ५७, पद्य, जै.?, (दाता दरीद्री कृपणो), ६८९७१(+#S), ७०८९८-१(+), ७१०४९(+#s), ७२३६९-३(+#),७१२१२-४(#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ६१, पद्य, मूपू., (धर्माजन्मकुले शरीर), ६९८५३(+$), ७११६६-१(+#), ७१०१२(#) (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मपू., (धर्म थकी भला कुलनइ),७१०१२(#) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह, सं., श्लो. २४, पद्य, श्वे., (श्रिष्टे संगः श्रुते), ७०७६१-२(+), ७०६५६-३(#) (२) प्रास्ताविक श्लोक संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वर्णमय जे स्थाल), ७०७६१-२(+) फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., वि. १७८२, गद्य, मूपू., (नत्वा पार्श्वजिनेशाय), ६९४३२($) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. २५, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (बंधविहाणविमुक्कं), ६९३९४-३(+), ६९४०७-३(+), ६९५३६-१(+$), ७००२१-१(+), ७०३९७-३(+),७०५२७-१(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (सम्यग्बंधस्वामित्व), ७०१७७-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (सर्वशर्मप्रदं नत्वा), ६९३९४-३(+) (२) बंधस्वामित्व नव्य कर्मग्रंथ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (कर्म बंधना प्रकारथी), ७००२१-१(+) बंधहेतुउदयत्रिभंगीसूत्र, मु. सागरसूरि-शिष्य, प्रा., गा. ६५, पद्य, मूपू., (बंधण हेउ विमुक्कं),७१०९९(+) बरडावीर उपासनाविधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीं क्ली), ७२६१५-४(#$) बलदेववासुदेव चक्रवर्तिबोल गाथा, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (पंचसय अद्धपंचम बायाल), ७०१००(+) बाहुबली मंत्रजाप साधन विधि, सं., गद्य, श्वे., (--), ६९०६१-३(+$) बिंबप्रवेश विधि, मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (पहिलुं मूहर्त), ७०११४-१ बीजतिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमंडणं पुन्नसोवन्न), ७०७४८-१४(+),७१३०९-१(#) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., उ. ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ निग्गंथाण), ६९०५२ (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित नगरं), ६९०५२ बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., अधि. ५, गा. ६५५, वि. ६वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ७०९४६(+),७०६२८(#$), ७१३६५($) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, सं., गद्य, मूपू., (--),७०६२८(#$) (२) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलजलहरनिभस्सण), ६९२०४(+#s), ६९६३९(+) (३) बृहत्क्षेत्रसमास-जंबूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेतां नमस्कार), ६९२०४(+#$) For Private and Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. अ. ५, गा. ८८, पद्य, म्पू (नमिऊण सजल जलर) ७००१८(+), ७०३२६(# ) , " (३) वृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू, (नमिऊण कहता नमीनइ) ७०३२६ (ड) बृहत्शांति स्तोत्र - खरतरगच्छीय, सं., पण., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ६९४८१-३(+), ७०५१५(३) बृहत्शांति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., प+ग., मूपू., (भो भो भव्याः शृणुत), ६९४९४-३ (+), ६९६५३ (+#), ७०३९६-२(+), ७०६८८(+$), ७१०११(+5), ७१०४३ (+) ७१३१४(*), ७१८३९(*), ७२५३९(+#), ६९६१०-२, ७०५१२, ७०५३२-१, ७०७९३, ७०८१८, ७११३५, ७१३५०-१, ७२२३८, ७१०५० (#), ७०९३० ($), ७२५२०-१($), ७०४९४-३(#) बृहत्संग्रहणी, आ. चंद्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई ठिइ), ६९०२९(+#), ६९०३०-१(+#), ६९३९१(+), ६९४०४(*#६), ६९५१२-१(+), ६९६०२(*), ६९७५४-२ (+), ७००९० (+), ७०३७८(+#5), ७०५६२(+४), ७०६५०(+$), ७१०५१(+), ७११०० (+), ७१४४९ (+#$), ७१८०६ (+#S), ७२२२३ (+$), ७२४५६ (+#$), ६९५९३, ६९७७८ (#$), ७०९४०(AS), ७२७३४(३) ६९४१२ (३), ६९५८८ (5) ७०५२५ (३) ७०९९५ (३), ७१५३५(३), ७२२२० (३) (२) बृहत्संग्रहणी - टीका, आ. देवभद्रसूरि सं. ग्रं. ३५००, गद्य, भूपू (अत्यद्भुतं योगिभि), ७१४४९(+) (२) बृहत्संग्रहणी - अवचूर्णी, सं., गद्य, मूपू., (नमिऊ० आदौ शास्त्रकार), ७००९९(+$) (२) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध, मु. शिवनिधान, मा.गु., वि. १६००, गद्य, म्पू. (श्रीपार्श्वनाथं फल), ७१५३५(३) (२) बृहत्संग्रहणी- बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा अरिहंतादी), ६९३९१ (+), ६९४०४ (+#$), ७१०५१ (+$), ७१८०६(+#$), ७२२२३ (+$) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) बृहत्संग्रहणी-टबार्थ में, मा.गु, गद्य, म्पू, (नमस्कार अरिहंता), ६९३९१(२), ६९४०४७), ६९५१२-१(+), ६९६०२ (+०७), ७१०५१(+$), ७११००(+), ७२७३४ (#$), ६९४१२ ($), ७०९९५ (5) बृहत्संग्रहणी, आ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. गा. ३५३, वि. ७यू, पद्य, मूपु (निड्डवियअट्टकम्म), ७१२९९०) "" (२) बृहत्संग्रहणी - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७१२९९(+) बृहत्स्वयंभू स्तोत्र, आ. समंतभद्र, सं., स्तु. २४, श्लो. १४४, पद्य, दि., (स्वयंभुवा भूतहितेन), ६९६१७-१(+) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पतिः सुरा), ६९०२८-५ (+), ६९६५४-२(+) बेइंद्रिय रुधिरप्रश्न विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (बेंद्री माहे लोइ), ६९०१४-१०२(+) बोल संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (जीवाय १ लेसा ८ पाखीय), ६८५३३(३), ६९०१४-४२ (०), ६९०१४-९५(*), ६९६३४-६(+), ६९८४६-१४(+), ७०११६-१(+s), ७०३७७-२ (+), ७०५७६-३ (+), ७१९६३ - ४ (+), ६९३४७, ७१७०९-१५, ७१०३१-१(#), ६९३८७६) बोल संग्रह से, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, वे (हिवे शिष्य पूछे), ६९०१४-८६ (+), ६९१३६(७), ६९३८६ (5) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., ( प्रथम इरियावही), ६९७२१ (+), ७०५८७-३ (+), ७०२६९ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४४, पद्य, मूपू ( भक्तामर प्रणतमौलि), ६९३९६ (३), ६९४९४-७(*), ६९५३४(+३), ७ ६९६१८(+०), ६९८७४(+४), ६९८९१-१(+४), ६९८९७(*) ७०००६(+) ७०१०८-४(०४), ७०२१३ (+४) ७०२८२ (०३), ७०३१८(+#), ७०३२३(+#), ७०३२४ (+), ७०५९६ (+), ७०६२९ (+$), ७०६३८ (+#$), ७०८२६ (+), ७०८८६ (+), ७०९४१ (+$), ७०९८९(*), ७१०८५(*#S), ७११३१-१(+), ७११४९(+), ७१२४०-१(+), ७१३८९ (+), ७१३९३(+), ७१४०३(+), ७१८१३(+#), ७२४११(+), ७२५२२-१(+), ६९६२४-१, ७०९९६, ७१२३६-१, ६९३७३(७), ६९४६४(१) ७००२२(१ ७१३४१(#$), ७१४२६(#S), ६९३६२ - १($), ६९५८६ ($), ६९८१७($), ७०१३३($), ७०४०८-१($), ७०४९१(s), ७०५०८ ($), ७०८९३-१(३) ७०५८५८०) ७०८८३-१२-१७) 1 (२) भक्तामर स्तोत्र - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत्ये अहमपि), ७१८१३(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र - टिप्पण, पुहिं., गद्य, मूपू., (पुनः कथंभूतः जिनपाद), ६९३९६(+$) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., वि. १५२७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीमहावीरं), ६९३७३(#$) " (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु. सं., गद्य, मूपू (किल इति सत्ये), ७०३२३(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, मा.गु, गद्य, मूपू (किल इसी संभावनाई), ७१०४५-२(१६) ७ + For Private and Personal Use Only Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ (२) भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू (भक्तिवंत ने देवता), ६९८७४(+5) ७०२८२(+३) ७०३२४(+३), ६९४६४(२), ७००२२(#) (२) भक्तामर स्तोत्र - टबार्थ, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (भक्ते करीने देवा), ७२४११(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-पद्यानुवाद, श्राव. हेमराज पांडे, पुहिं., गा. ४८, पद्य, मूपू., दि., (आदिपुरूष आदिसजिन आदि), ७१८०४-२(+), ६९५५३-२($), ७०३७०-१ (६) (२) भक्तामर स्तोत्र - बालावबोध, मु. कान्हजी, मा.गु., गद्य, मूपू (प्रणम्य प्रथमं देवं), ७१०८५ (+#5) (२) भक्तामर स्तोत्र - शेषकाव्य, हिस्सा, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, मू, दि., (गंभीरताररविपुरि ७०७२३-३(+) (२) भक्तामर स्तोत्र - ऋद्धि, संबद्ध, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अहणमो), ७०६३८(+#$) - (२) भक्तामर स्तोत्र-काव्यचतुष्क, संबद्ध, आ. मानतुंगसूरि, सं. वो ४, पद्य, भूपू (ॐ आदिनाथामर सेवित), ६९१३५-३ (+), "" "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०४९९-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्र, संबद्ध, सं., मंत्र. ४८, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ अह णमो ), ६९५३४ (+#), ६९५८६ ($) (२) भक्तामर स्तोत्र-मंत्राम्नाय संबद्ध, मा.गु. सं., गद्य, मृपू., (33 नमो वृषभनाथाय), ६९३५४(७), ६९६०७ (MS), ७०३०२ (६) स्तोत्र-संबद्ध (२) भक्तामर स्तोत्र संबद्ध प्राचीन काव्यचतुष्क, आ. मानतुंगसूरि, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (विष्वग्विभोः सुमनसः), ७०६२६-६(*) (२) भक्तामर स्तोत्र-यंत्र, सं., ., भूपू (--), ६९५८६(४) भगवती आराधना, आ. शिवार्य, सं., श्लो. २१७०, वि. २वी, पद्य, दि., (सिद्धे जयप्पसिद्धे), ७०२४९-२($) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. शत. ४१ सू. ८६९, ग्रं. १५७५२, गद्य, म्पू, नमो अरहंताणं सव्व) ७०११८ (१३), "" " " ७०२७१(*), ७०३३४(+5), ७०३५३ (+5), ७०३७३ (+), ७०४२७(AS), ७०५६५ (+5), ७०७५२ (+#5), ७०९३३ (+#5), ७१८२७ (१६), ७००२३) ७०६४३(A), ७९१८११ (३) (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., शत. ४१, ग्रं. १८६१६, वि. १९२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश्वरमनंत), ७०५२० ($) (३) भगवतीसूत्र - टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, म्पू., (लोगस्सेगपएसे जहंणवपय), ६९७३० (+) (४) भगवतीसूत्र टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण का बालावबोध, मा.गु., गद्य, भूपू (लोक चउदरज्वात्मक छह, , (२) भगवतीसूत्र - टिप्पणक, सं., गद्य, मूपू., (--), ७१८२७(+$) (२) भगवतीसूत्र - टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (ते कालनइ विषइ ते), ७०३४२-२(+) (२) भगवतीसूत्र - नियंठा विचार, हिस्सा, प्रा. मा.गु., डा. ३६, गद्य, भूपू. (पण्णवय १ बेय २ रागे), ७१३६२(+) " ६९७३०(+) (३) भगवतीसूत्र- टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (ओरालसव्वबंधा थोवा), प्रतहीन. (४) भगवतीसूत्र- टीका का हिस्सा बंधषट्त्रिंशिका प्रकरण का बोल संग्रह, संबद्ध, मा.गु., गद्य, भूपू (८ प्रकारई ओदारिक), ७९४७९(*४) "" ५२१ (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक - १२ उद्देश-४, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (--), प्रतहीन. (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक- १२ उद्देश ४ गत पुनलपरावर्त विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार१ गुण२ डंड), ६९६३४-१ (+) - (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १२ उद्देश ९ देवों के ५ प्रकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, मूपू (कइ विहेणं भंते देवा), ७१३९४(*) ७०३१३-२ יי For Private and Personal Use Only (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १२ उद्देश ९ देवों के ५ प्रकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे राजाननी चाउरंत कह), ७१३९४(+) (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक १२ उद्देश ९ देवों के ५ प्रकार का टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (केतला प्रकारना है), ७०३१३-२ (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक-१ उद्देश-३ श्रमणनिग्रंथ कांक्षामोहनीयकर्मवेदन प्रश्नोत्तर, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मृपू, (अत्थि णं भंते समणा), ७०८०३-१ (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक१ उद्देश३ श्रमणनिर्ग्रथ कांक्षामोहनीयकर्मवेदन प्रश्नोत्तर का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अ० छहणं०] वाक्यालंकार), ७०८०३-१ (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक - १ उद्देश - ७ विग्रहगति व देवच्यवन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (देवे णं भंते, ७०३४२(१(+) Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५२२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ (३) भगवतीसूत्र-हिस्सा शतक-१ उद्देश- ७-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (दि० देवता णइ ते), ७०३४२-१(+) (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक २५ उद्देश ७ संवतस्वरूप गाथापंचक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ५, गद्य, मूपु (सामाइयम्मि उ कए चाओ), ७०८०३-२ (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक२५ उद्देश७ संयतस्वरूप गाथापंचक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवि सामायिक संयतादिक), ७०८०३-२ (२) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक ९ उद्देश ३३ गत गांगेयभांगा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (-), ७००१६ (+४) (३) भगवतीसूत्र - हिस्सा शतक९ उद्देश ३३गत गांगेयभांगा का - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (गांगीया अणगारना भांग), ६९५०७-२(+#), ७००१६ (+$) (२) भगवतीसूत्र- बोल संग्रह, संबद्ध, प्रा., मा.गु., गद्य, मूषू, (तिविहं तिविहेणं न), ७१४३८-१(+) (२) भगवतीसूत्र - चारित्र के ५ भेद के ३६ द्वार यंत्र, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (पनवणा १ वेद २ रागे ३), ७१६९८(#$) (२) भगवतीसूत्र - बोलसंग्रह *, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एक मासनी दिक्षा सुभ), ६९०१४-८८ (+), ७०८२१-३(+$), ७१९११ (२) भगवतीसूत्र-विचार संग्रह, संबद्ध, मा.गु., को., मूपू., (अत्थिणं भंते समणवि), ७२३४७-१(#) (२) भगवतीसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (चौवीसमा श्रीवीर), ७२६४५-३(+) (२) भगवतीसूत्र - सज्झाय, संबद्ध, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २०, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (वंदि प्रणमी प्रेमस्य), ७०६१३ (२) भगवतीसूत्र-सज्झाय-धमरेंद्र अधिकार, संबद्ध, मु. चोथमल, मा.गु., डा. १२ गा. १३३, वि. १८२९, पद्य, भूपू. (अनंत चोवीसी बांदता), ७१७१२-१ *, भद्रापुत्र तपवर्णन गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू (वद्धमानजिण सीसो भद्द) ७०४१९-३(+) भरटकद्वात्रिंशिका, ग. आनंदरन, सं., वि. १५वी, गद्य, मूपू., (देवदेवं नमस्कृत्य), ६९४६७(*) भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, म्पू, (भवचरिमं पच्चखामि, ७०५८७-५ (+), ७१७७०-४ भवनदेवी स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू., (ज्ञानादिगुणयुतानां), ७१४५२-५ (#) भानुमंत्रि कथानक, सं., श्लो. ३२, पद्य, मूपू (श्रीमंगलपुरो राज्ञः), ७०५२८ (*) भावना कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (निसाविरामे परिभावयाम), ७००६४-१(+) (२) भावना कुलक-वार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू (नि० रात्रीनइ अंतिइ) ७००६४-१(*) " भाव प्रकरण, ग. विजयविमल, प्रा., गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., ( आणंदभरिय नयणो आणंद), ७०१८६-१(+), ७१११३($) (२) भाव प्रकरण- टिप्पण में, सं., गद्य, म्पू, (--), ७०१८६-१(+) भावार्थशतक, सं. श्री. १०१, पद्य, वे (सरस्वतीं नमस्कृत्य). ७०६३१(+) יי יי भाष्यत्रय, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. भाष्य. ३, गा. १४५, वि. २४वी, पद्य, मूपू (वंदितु वंदणिज्जे), ६९५९१ (+३), ७१३९८(१) ६९४६९(*), ७००६१(७) ७२३८९(क) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुंदरसूरि सं., गद्य, मूपू (वंदि० वंदनीयान् सर्व) ७०११० (+5) (२) भाष्यत्रय-टवार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (वंदितु क० वांदीने), ६९५९१ (७), ६९४६९() भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि सं., श्लो. १७० वि. १३५, पद्य, भूपू (सारस्वतं नमस्कृत्य), ६८६८९ (+३), ६८९५०-२ (०४), ६८९५६ (s) יי ! For Private and Personal Use Only भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचंद्रसूरि मलधारि, प्रा. गद्य, मूपू. (सिरिरिसहपहु पणमिय), प्रतहीन. " (२) भुवनभानुकेवली चरित्र बालावबोध, मु. हरिकलश, मा.गु., गद्य, मूपू (सिरिवीरं नमीअ जिणं), ६९३४५ (+#5) भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., ग्रं. १८००, गद्य, मूपू., (अस्तीह जंबूद्वीपे ), ६९५१५ (+) भैरवपद्मावती कल्प, आ. मल्लिषेण, सं., परि. १०, श्लो. ४००, पद्य, दि., (कमठोपसर्गदलनं), ६९९२९($) (२) भैरवपद्मावती कल्प- टीका, मु. बंधुषेण, सं., गद्य, दि. ( श्रीमत्थारुनिकायामरव), ६९९२९(३) भोजराज दृष्टांतकथा संग्रह, सं., गद्य, वै., (मालवदेशे श्रीधारानगर), ७१५७३-१(०) मंगलाचरण, मा.गु.,सं., गा. ७, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ७१०७४-१ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, प्रा. मा.गु. सं., प+ग, भूपू (श्री अर्हत) ७२३७६-६(+), ७१००६-२ (#) Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ मंत्र-तंत्र-यंत्र संग्रह, उ.,पुहि.,प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., वै., (श्री ॐ नमः आदि सुदिन), ७००५४-३(+), ७१७९४-३(+#), ६८७२७-३, ७००४६-२, ७०५५३-२, ७११८२-२, ७११९१-२ मंत्र संग्रह ,मा.गु.,सं., गद्य, जै., वै., बौ., (ॐ नमः काली नै),७२३५८-२ मंत्र संग्रह, सं., गद्य, म्पू., (संग्राम सागर करींद्र), ६९९८५-२(-) मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (मंत्राधिराजाक्षरवर्ण), ७०७२२-३(+$) मकरध्वज चरित्र, सं., पद्य, मूपू., (--), ६९८७५(+#$) मदनश्रेष्ठी चरित्र, मु. छगन मुनि, पुहि.,सं., खं.७, गा. १२९१, वि. १९८४, पद्य, स्था., (दानं ख्यातिकरं सदा), ६८९९३(+$) मनुष्यसंख्याप्रमाण २९ अंक, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (२ एकं १॥ रदसं १०।३), ७१२१२-५(2) महादंडक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्मि भमिओ), ७००६९-१(+#), ७१५५१(+#) (२) महादंडक स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भीमे भवेति०१ गब्भ०),७००६९-१(+#) महादेव स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ४४, पद्य, मपू., (प्रशांत दर्शनं यस्य), ६९७०९(+#$),७२७३२(+) महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्य. ६ चूलिका २, ग्रं. ४५४४, गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित्थस्स ॐ), ६९०७४(+), ७०३७६(+$), ७०५७२(+$) (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ, मा.गु., ग्रं. ७५००, गद्य, मूपू., (ते सुमति हे भगवंत), ६९०७४(+) (२) महानिशीथसूत्र-टबार्थ , मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७०३७६(+$) महाभारत, ऋ. वेद व्यास, सं., पर्व. १८, ग्रं. १०००००, प+ग., वै., (नारायणं नमस्कृत्य), प्रतहीन. (२) महाभारत-अहिंसादिसुभाषित संग्रह, सं., श्लो. २७३, पद्य, जै., वै., (--), ६९६१९-१(+$) (३) महाभारत-अहिंसादिसुभाषित संग्रह का बालावबोध, मा.गु., गद्य, जै., वै., (--), ६९६१९-१(+$) महालक्ष्मी स्तव, सं., श्लो. ११, पद्य, मूपू., (आद्यं प्रणवस्ततः), ७०२६८-१(+), ७२६५८-१(#) महालक्ष्मी स्तुति-मंत्रमय, आ. गौतमस्वामी गणधर, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं श्रीचंद्र),७०२६८-२(+) महाविदेहक्षेत्रे आहारमानादि विचार गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (बत्तीस कवलाहारो), ७१२१८-१(#) महावीरजिन २७ भव वर्णन, सं., गद्य, श्वे., (जंबूद्वीपापरविदेहे), ७०७३०(+#) महावीरजिन अष्टक, मु. नेतृसिंह कवि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमत्सुधीर), ७०८३९-२(+) महावीरजिन जातकर्म विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मपू., (चैत्रे सुदि तेरेसिना),७१३६०(#$) महावीरजिनद्वात्रिंशिका स्तव, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., श्लो. ३३, वि. १वी, पद्य, मूपू., (सदा योगसात्म्यात्), ७२१४१(२), ७२६६९(६), ७२७४८(६) महावीरजिन पश्चात् समययुक्त विच्छेदादिभाव गाथा, प्रा., गा.७, पद्य, मूपू., (चउरासीइसहस्सा वासा), ६९०१४-४८(+) महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (जयइ नवनलिन कुवलय), ७१७९८-३(+#) महावीरजिन स्तव, सं., श्लो. १०, पद्य, मूपू., (सिद्धपुराभिध नगर), ७०४१९-२(+) महावीरजिन स्तवन, आ. गजसागरसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (बुधजनैक जिनं कुरुनाय), ७१३२१ (२) महावीरजिन स्तवन-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (बुध० हे बुधजन),७१३२१ महावीरजिन स्तवन-ब्राह्मणपीठ, आ. सिद्धसूरि, सं., श्लो. ६, पद्य, म्पू., (श्रीमन्महावीर हरे), ७२०९७(+#) (२) महावीरजिन स्तवन-ब्राह्मणपीठ-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (हे श्रीवीर जिनेंद्र),७२०९७(+#) महावीरजिन स्तव-बृहत्, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. २२, पद्य, म्पू., (जइज्जा समणे भगवं), ६९८४०(+), ६९८४७(+), ७०२०३(+), ७०५४३(+), ७२०१०(+#), ७२४६०(+#), ६९७४१-२() (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-टबार्थ, मा.गु., गद्य, पू., (जइज्जा समणेनो अर्थ), ६९८४७(+), ७०५४३(+), ७२०१०(+#) (२) महावीरजिन स्तव-बृहत्-शब्दार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (कल्याण वर्तो पणि), ६९८४०(+) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.,सं., श्लो. ३०, पद्य, मूपू., (भावारिवारणनिवारणदारु), ६९८९५-१(+), ६९९४५(+),७०२७४(+#),७०५३७-२(+s),७०९४९-१(+#), ७१०६६(+#$), ७२२१९(#),७२८३० (#),७०५६८-२() (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., वि. १४६५, गद्य, मूपू., (श्रेयोथ),७१०६६(+#s) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरं नुवामि णूत स्तव), ६९९४५(+) (२) महावीरजिन स्तव-समसंस्कृतप्राकृत-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भाव अंतरंग वयरी), ७०२७४(+#) For Private and Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२४ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ महावीरजिन स्तुति, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरः सर्वसुरासुरेंद), ७०६३४-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (कल्याणवल्लीवनवारिवाह), ७१४०२-१(2) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (जयति जय विराजित), ७१३०८(+#) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नताऽशेषलेष कृतद्वेष), ७००४६-१ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमदसरसीरोरूह सवस्स), ७०७६६-३ महावीरजिन स्तुति, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. ११, पद्य, मूपू., (पंचमहव्वयसुव्वयमूल), ६९६०६-२(+), ७१७०३-२(+2), ७२१६१-२, ७११४१-२(#), ६९६३२-२(६), ७०१८१-२($), ७०६३३-२($) (२) महावीरजिन स्तुति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पंच महाव्रतरूप सु०), ७०१८१-२($) महावीरजिन स्तुति, प्रा.,सं., गा.४, पद्य, मूपू., (परसमयतिमिरतरणिं भव),७०२३४-२(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (यज्जन्म स्नात्रकाले),७१३०१-४(+) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (यदह्रिनमनादेव देहिन),७१३७३-१(+#),७१३०९-५ (#$) महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वीरं देवं नित्यं), ७०७४८-२(+), ७१२२६-२ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (श्रीनेदुर्गाश्चोपसप), ७१४०२-४(#) महावीरजिन स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा.५, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (जयसिरिजिणवर तिहुअणजण), ७११०४-३(+#) महावीरजिन स्तोत्र, सं., पद्य, मूपू., (--), ७१८०८($) महावीरजिन स्तोत्र-पाखंडीविचारगर्भित, प्रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (सिरिवजसेण पणयंति), ६९८७३-२(+#) महावीरजिनेंद्र स्तुति, मु. शोभनमुनि, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (नमदमरशिरोरुहस्त्रस्त), ७१३५७-२(+) महावीरनिर्वाण पश्चात् ऐतिहासिक घटनाचक्र कालमान, मा.गु.,सं., गद्य, श्वे., (श्रीपार्श्व० वीरनि०), ७०९५७ मांगलिक श्लोक, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (ॐकार बिंदु संयुक्तं),७१०५६-१ मांगलिक श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (सर्वमंगल मांगल्य), ७१२४०-३(+),७१७९३-५(2) मांगलिक श्लोक-खरतरगच्छीय, सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (सर्वमंगलमंगल्य),७१०५६-४ मांगलिक स्मरणीय श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., श्लो. ६२, पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्रीनतनाकि), ७१७९३-२(4) माणिभद्रवीर जाप मंत्र, सं., श्लो. १, पद्य, म्पू., (ह्रीं श्रीं क्लीं),७१४८०-२(+#) मुखवस्त्रिकाविचार गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (चउरंगुलं विहत्थीएय), ७११२१-१ (२) मुखवस्त्रिकाविचार गाथा-बालावबोध, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (चत्वारि अंगुलानि एका), ७११२१-१ मुद्रापंचक विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमो जिणाणं ॐ), ७०६१९ मुहपत्ति ५० बोल गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (सुत्तत्थं १ मोहतिग), ७१७२७-२(#) (२) मुहपत्ति ५० बोल गाथा-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ७१७२७-२(#) । मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, प्रा.,सं.,मा.गु., अ. १२, पद्य, दि., (तियसिंदनरिंदनयं पणमि), ६९९०४() मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, मा.गु.,सं., श्लो. २९६, पद्य, दि., (हर्षेण हरिणा स्तुत्य), ७१८७५-१(#) मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण पाठक, सं., ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं जिनं नत्वा), ७१०९७, ७०९३९($) मेरुपर्वत ४ शिला जिनजन्माभिषेकस्थान वर्णन, सं., गद्य, मूपू., (तत्र चूलकायं पांडक), ६९०१४-९२(+) मौनएकादशी कथा, सं., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीपवर विदेहे),७०८३०(2) मौनएकादशी गणना, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमहाजससर्वज्ञाय), ७०६२७(+$), ७२३९३(+#), ७११४०(#), ७१३७८(5) मौनएकादशीपर्व कथा, पं. रविसागर, सं., श्लो. २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋषभदेव),७१९९४(#$) (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमीने चरणकमल), ७१९९४(#S) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनंदिसूरि, सं., श्लो. ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेमिरीशाने), ७०७४६-२(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (अथ मार्गशीर्ष), ६९६५८(+) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, स्पू., (अरस्य प्रव्रज्या नमि),७०८४९(+#) मौनएकादशीपर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं नत्वा गौतमः), ६९८४९(+#), ७०३२०(+#), ७०९३५-१(+#),७०३४५(#) For Private and Personal Use Only Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ मौनएकादशीपर्व गणणं. सं., को. मूपू.. (जंबूद्वीपे भरते). ७०६२१ (+), ६९६५२, ७०५३३, ७२२९२, ७०८३६(४) मौनएकादशीपर्वदिने १५० कल्याणक गणणं. सं., को. म्पू., (जंबूद्वीपे भरते अतीत), ६९०१४-११ (+) ७०५५० मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (--), ७०५९७(+$) " मौनएकादशीपर्व व्याख्यान- सुव्रतश्रेष्ठिकथायां, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू (सिरिवीरं नमिकण), ६९१२८-२(#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू (अरस्य प्रव्रज्या नमि), ६९७६०, ७२५२१-२, ७१३०९-४/१ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (श्रीभाग्नेमिर्बभाषे), ७१०८७-१ "3 (२) मौनएकादशीपर्व स्तुति वृत्ति, मु. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, भूपू (श्रियं भजतीति) ७१०८७-१ यंत्रसंग्रह, सं., प+ग, भूपू., ( शाणपत्रे काकपिच्छेन), ७०७४६-१(१) योगचिंतामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अ. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (यत्र वित्रासमायांति), ७१७४५ (+$), ६९७५२ ($) (२) योगचिंतामणि- टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७१७४५ (+$) योगप्रवेश विधि, प्रा.मा.गु.. गद्य, म्पू., (ठवणी कांबलीइं पडिलेड), ७०४६२-१(+) योगशास्त्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. १२, श्लो. १०००, वि. १३वी, पद्य, मूपू., ( नमो दुर्वाररागादि), ६९४८६(+), ७०५८४(१६), ७१०१७(+*S), ७१११८(+), ६९०६३(७), ७२७२३(१) (२) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, मूपू., ( नमो दुर्वाररागादि), प्रतहीन. (३) योगशास्त्र - हिस्सा प्रकाश १ से ४ की अवचूरि, सं., प्रका. ४, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस्तु कचिनराग), ७०५०९ (+5) योगसार, मु. योगींद्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि., (णिम्मलझाणपरिट्ठया), ७११४६(#$) (२) योगसार-टबार्थ, मा.गु., गद्य, दि., (निर्मल ध्यानने विषइ), ७११४६(#$) योगोत्तारण विधि, प्रा., मा.गु, गद्य, भूपू (खमासण देई मुहपुत्ती ७०४५७-३ योगोद्वहन विधि, प्रा., सं., गद्य, मृपू., (पसत्थे खित्ते जिणभवण), ७०१४१ (MS), ७०११४-२(४) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., गा. ५, पद्य, भूपू (ओमिति नमो भगवओ), ७१७८१-३(४) योगोद्वहनविधि संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (श्रीआवश्यक सुअक्खंधो), ७१५११-३(+$), ६८५३८(#) योग्यचिंतामणि, मा.गु., सं., पद्य, श्वे. (प्रणम्य शारदादेवी), ६९५२६ (+३) . " (२) योग्यचिंतामणि-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे. (प्रणम्य० नमस्कार), ६९५२६(+$) रजोहरणमुखवस्त्रिका विचार, प्रा.सं., गद्य, मूपू., (बत्तीसंगुल दीहं), ६९७५९ रत्नचूड कथा, सं., गद्य, भूपू (मनुष्य लोकानिधे), प्रतहीन, (२) रत्नचूड कथा - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू, ( इहां मनुष्यलोक नामा), ७१४९६ (३) रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणवरिंदे उवया), प्रतहीन. (२) रत्नसंचय - हिस्सा गाथा ३६० से ३६५ सर्वजीव की १० संज्ञा, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, भूपू ७ (आहारभयपरिग्गहमेहूणतह), ७०१७०-१(+) रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि सं., श्लो. २५, वि. २४वी, पद्य, मूपू (श्रेयः श्रियां मंगल), ६९९७८ (+#5), ७०१५९ (+), " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०३५६(+), ७०८४०(+#), ७११६२ (+#), ७१४५३-१(+), ७२५४७ (+#), ७१२३८, ७१३९७-१, ७०००७(#), ७२२४१-४(#) (२) रत्नाकरपच्चीसी - बालावबोध, मु. जीवराज, मा.गु., वि. १९२०, गद्य, मूपू (सत्य चोवीसेजिन नम्), ७१६६५ (३) (२) रत्नाकरपच्चीसी - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपु. ( श्रीलक्ष्मी तणउ), ६९९७८ (+#5) , (२) राजप्रश्नीयसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., ग्रं. ३७००, गद्य, मूपू., (प्रणमत वीरजिनेश्वर), ६९७२७(+$) (२) राजप्रनीयसूत्र - टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (नमस्कार हुवड० चउथा) ७००२८(+४) " (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू. (अहो कल्याणक लक्ष्मी, ७०८४० (+), ७१२३८ (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रेयः कल्याण अनइ), ७०३५६ (+), ७२५४७ (+#), ७०००७(#) राजप्रश्रीयसूत्र, प्रा. सू. १७५, ग्रं. २१००, गद्य, भूपू, नमो अरिहंताणं० तेणं) ७००२८(+5), ७०१५८(+), ७१२२९ (७), ६९८३०(5) " राजलोक मान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (मेल्हेड सुउमाओ को वि) ६९०१४-८(*) राजेंद्रसूरि स्तुति, आ. विजयक्षेमसूरि, सं., श्लो. ८+१, पद्य, मूपू. ( ध धों धिधिकतां). ७०१५३-१(+) " राज्य की २७ शोभा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (वापी १ व २ विहार), ७०२६०-२ ५२५ For Private and Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५२६ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (धम्माधम्मागासा तिय), ६९८०२-३(+$), ६९९५३-२(+#$) (२) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (धर्मास्तिकाय १ अधर्म), ६९९५३-२(+#$) (२) रूपीअरूपी जीवअजीव भेद गाथा-टबार्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (कर्म ८ पाप १८ मन जोग), ६९८०२-३(+$) रोहिणीतपफल कथा, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवासुपूज्यमानम्य),७०७९५(+$),७०९९४(+), ६९६४१(5) रौद्ररूप कथा-हिंसाविचार विषे, सं., गद्य, मूपू., (कोपि रंकः पुरालोके), ६९९४४-२(+) लक्ष्मीनृसिंह स्तोत्र, शंकराचार्य, सं., श्लो. १३, पद्य, वै., (श्रीमत्पयोनिधि), ६८७२७-८,७२३७८-२(2) लग्नपत्रिका श्लोक, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (अभिप्रेतार्थ सिद्धा),७०७१३-३($) लग्नशुद्धि, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३३, पद्य, मूपू., (अविहतसव्वाएसं नमिउं), ६९४६०(+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., अधि. ६, गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (वीरं जयसेहरपयपट्ठिय), ७०६८४(+$), ७०८५६(+5),७१०६७(+$), ६९४५४(#) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., अ. ६, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (अर्हमिति ब्रह्मपद), ७०६८४(+$), ७०८५६(+$) | लघुनाममाला, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., कां. ३, श्लो. ४६१, ग्रं. ५५०, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमात्मान), ७१५९३(#$) लघुशांति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., (शांति शांतिनिशांत), ६८९८१-२(+), ६९०२८-२(+), ६९४८१-२(2), ६९४९४-२(+), ६९७०२(+), ६९७०६(+#), ६९७४४(+#), ६९७९३-१(+#$), ६९९९८(+), ७०१२८(+), ७०२३८-२(+$), ७०३४०(+), ७०३९६-१(+), ७०९४३-१(+#), ७१२४०-२(+), ७१३५५-१(+#), ६९६५०-२, ६९७७७, ७०४२५, ७१०१३, ७१०२३-१, ७१०४२-२, ७१११०, ७१२६३, ७१२६४, ७१२९१, ७१३०५, ७२०४९, ७२४००, ७२४४०, ६९६९४(#), ६९७०७(#), ६९९९९(#),७०८७६-१(), ७१६८५(२), ७१७५३(#), ७२५१०(१), ७०४१०($), ७०८९३-२(६), ७२४०५-१(६), ७०३४४-१(-), ७०४९४-२(#), ७१०४८(2) (२) लघुशांति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपू., (सर्वं सर्वसिद्ध्यर्थ), ७०२३८-२(+$), ७०३४०(+) (२) लघुशांति-बालावबोध, ग. दयाकीर्ति वाचक, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमानदेवाचार्य), ६९६९४(#) (२) लघुशांति-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६९९९९(#) (२) लघुशांति-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीशांतिनाथ शांति), ६९७०२(+), ७०९४३-१(+#) (२) लघुशांति स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमानदेव आचार्य), ६९९९८(+), ६९९९९(#) लघुसंग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं सव्वन्न), ६९७०३(+), ६९७९४-१(+), ६९८५०(+$), ७०५४२(+), ७०८२३(+#), ७१३२८(2), ७१७८४-१(+$), ६९६४४, ६९७४१-१,७०८९१-१, ७१०६४, ७११४२, ७१२९४(2), ७१४२१(2), ७०५३९() (२) लघुसंग्रहणी-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिय क० नमस्कार करी), ६९७९४-१(+), ७०५४२(+), ७१३२८(+#S), ७११४२, ७१४२१(4), ७०५३९(5) (२) लघुसंग्रहणी-खंडाजोयण बोल*, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (लाख जोयणनो जंबूद्वीप), ७२३४३($) (२) लघुसंग्रहणी-जंबूद्वीप विचार*,संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबुद्वीपमाहि केतल),७२२७६ लघुस्वयंभू स्तोत्र, सं., श्लो. २५, पद्य, दि., (येन स्वयं बोधमयेन), ७१७९२-१(+) ललितांगकुमार कथा-धर्म विषयक, मा.गु.,सं., गद्य, म्पू., (त्रिवर्गसंसाधनमंतरेण),७००३१(#$) लीलावती, भास्कराचार्य, सं., श्लो. २७९, प+ग., वै., (प्रीतिं भक्तजनस्य), प्रतहीन. (२) लीलावती-भाषानुवाद, मु. लालचंद, मा.गु., अ. १६, गा. ७०७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., वै., (सोभित सिंदूर पुर), ६९०४३, ६९२१४(#$) लोकतत्त्वनिर्णय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लो. १४५, पद्य, मूपू., (प्रणिपत्यैकमनेक), ६९४१६(+) लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ३२, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (जिणदंसणं विणा जं), ६९७०१(+), ७०४६९-१(+), ७०७८५(+), ७०७९७-१(+), ७०८२४(+#), ७२७६९(+#), ७००९६, ६८९९१(), ७११६१(#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टीका, सं., गद्य, म्पू., (जिणदसणं गाथा जिन),७२७६९(+#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जिणदसणेति० जिनदर्शन), ७०७९७-१८+), ७००९६ For Private and Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मु. सहजरत्न, मा.गु., गद्य, मूपु. ( श्रीमदासी प्रणम्या), ६८९९१( (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (तीर्थंकरना समकित विन), ७११६१(#) (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतरागीना दर्शन), ७०८२४(+#) लौकिकप्रयोग निष्पत्यादि वर्णन, सं., गद्य, वै.? (लौकिकप्रयोग निष्पत्त), ७११९०-२(+) . बंगचूलिका प्रकीर्णक, आ. यशोभद्रसूरि प्रा. पद्य भूपू (भत्तिब्भरनमियसुरवर) ७०३८१ (+३), ७१०९४१ '. 7 वचनगुप्ति विचार, प्रा., मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवे वचनगुप्ति बिहु), ७११२१-२ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लो. ८, पद्य, भूपू (ॐ परमेष्ठि), ७००५७-१ (+) ७०६०८(+), ७०८४२-१ (+४) ७०७१६, ७१४०६, ७१७८२ १. ३. ७२३०७, ७१००५-३(४) ७२७१५-४(१) वनमाला कथानक - धर्मप्रभावोपरि सं., श्लो. १५९, पद्य, मूपू., (सम्यक्त्वरत्नं यत्ने), ६९७८३-१(७) वरदत्तगुणमंजरी कथा, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (ज्ञानं सारं सर्व), ७१३८२ (+) वरदत्तगुणमंजरी कथा - सौभाग्यपंचमीमाहात्म्यविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १५०, वि. १६५५, पद्य, मूपू. ( श्रीमत्पार्श्वजिन), ७१८४२ (#), ७२५७९-१(१) ७१२१४(३) वर्द्धमानदेशना, ग. राजकीर्ति, सं., उल्ला. १०, ग्रं. ४३००, गद्य, मूपू., ( नमः श्रीपार्श्वनाथाय), ६९५५० (+#), ७२५२७($) वर्द्धमान मंत्र जाप विधि, सं., गद्य, मूपू., (ॐ वीरे वीरे महावीरे), ६९६७८-४ वर्द्धमानविद्या कल्प, आ. वज्रस्वामि, प्रा. सं., गद्य, म्पू, (ॐ ह्रीं अहं हूं, ७०८७४) वर्द्धमानविद्या जापमंत्र, प्रा. सं., गद्य, भूपू (ॐ नमो भगवओ अरहओ), ७१०१६-१ वर्द्धमानविद्या मंत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीँ नमो अरिहंता), ७१०१६-२ ', वर्धमान बासठीयो, प्रा., मा.गु., को., मूपू., (भावगइइंद्रीकाए जेए), ७२०९५-१(+) वर्धमानविद्या, प्रा., पद्य, भूपू (ॐ नमो अरिहंताणं). ७११०३-१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९५४६(*) (२) वासुपूज्यजिन चरित्र - बीजक, सं., गद्य, मूपू., (विमलबोध मंत्री), ७०३०६(+) वासुपूज्य मंत्र जाप विधि, सं., गद्य, मूपू, (ॐ नमो भगवते), ६९६७८-३ वर्षप्रबोध, उपा. मेघविजय, सं., अ. १३, श्लो. ३५००, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थनाथवृषभं), ६९५४१ वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, मूपू. बी. (संसारद्वयवैन्यस्य), ६९४२२(*), ६९८९६ (*) ७०४९६- १(+), ७११५० (+३), ७१३३९(+#5), ७१६९२(**), ७१८४३(+४), ७२८५७(+४७), ६८७८१(४), ६९१०६(४) वाक्यप्रकाश, ग. उदयधर्म, सं., श्लो. १२५, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात्मविदं), ७१७४८(+$) वागर्थसंबंधस्थापनवाद स्थल, सं., गद्य, श्वे., वै., (अनुदिनमखर्वसर्वान), ७००५८(+) " "" वाग्भटालंकार, जैक, वाग्भट्ट, सं. परि. ५, वि. (२) वाग्भटालंकार- अवचूरि", सं., गद्य, मूपू १२वी, पद्य, भूपू (श्रियं दिशतु), ६९५९६ (+5) (--), ६९५९६ (+) वाणी स्तोत्र, आ. जिनचंद्रसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (इंद्रोपेंद्ररवींदु), ७११९०-१(+#) वासुपूज्यजिन चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं. स. ४, श्लो. ५४४७, ग्रं. ५४९४, वि. १२९९, पद्य, मूपू., (अर्हतं नौमि नाभेयं), "9 " " वास्तुमंजरी, सूत्रधार नावजी खेतजी, सं., अधि. ३, पद्य, मूपू वै. (उद्यदादित्यसंकाशं), ६८७७६ वास्तुराज, श्राव, राजसिंह सूत्रधार, सं., गद्य, म्पू, वै., (ध्याते यस्मिन्नमोहो), ६९४३३-१(+) वास्तुविद्या, विश्वकर्मा, सं., गद्य, मूपू., वै., (मेरुणां च तथा शृंग), ६९४३३-२(+) विक्रमकुमार कथा - जीवदयोपरि, सं., पद्य, मृपू, (प्रणम्य श्रीजिनाधीश), ७१३८६(+) विक्रमनृप चरित्र, मु. राजमेरु, सं., पग, मूपू., (सुवर्ण गजराजगामिनं), ६९४०२(*) विगय विचार, प्रा., सं., गा. २, पद्य, मूपू., (क्षीर१ दधी२ नवनीतां३), ६९०१४-९९(+) विचारगाथा संग्रह, प्रा., गा. ९९, पद्य, श्वे., (दव्वत्थएण पावइ आराहे), ७१०२६(+#), ७२८५५ (5) (२) विचारगाथा संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, वे (बार जोवण एतले), ७१०२६ (क) विचारगाथा संग्रह, प्रा., सं., गा. ३, गद्य, मूपू., (बत्तीसं कवलाहारो), ७११२०-१(+#) विचारपंचाशिका. ग. विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू. ( वौरपयकयं नमिउं देवा), ७०६३२-१(+४) " ५२७ , י For Private and Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ www.kobatirth.org ५२८ विचार संग्रह, प्रा. सं., गद्य, मूपू., (जोअणसयं तु गंता अणहा), ६९८७० (+#$) विचार संग्रह, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू., (समरवीर राजा महावीरनउ) ७०२०० +#5), ७०३८३ (+३) ७०१४०-४, ७०६५६-२(#) विचारसार प्रकरण, प्रा., गा. ५७६, पद्य, मूपू., (बारस गुण अरिहंत सिद), ७०३५२-१(+) विचारामृतसार संग्रह, आ. कुलमंडनसूरि सं. वि. १४७३ प+ग, भूपू (श्रीवर्द्धमानसूयों), ७१०९५ (७) , " विचारामृतसार संग्रह, ग. जिनहर्ष, सं., कथा. २०, ग्रं. २८००, वि. १५०२, पद्य, मूपू., (श्रीभूर्भुवः स्व), ६९५५१ विजयक्षमासूरिगुरू स्तोत्र, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (विदित तत्त्वं घनं), ७२८२७ विजययंत्रआम्नायलेखन विधि, मा.गु., सं., प+ग, मूपू., वै., (इंद्र प्रोवाच संतु० ), ६९४१७(+), ७००९७(+), ७१९८३-१(+#$), ७१०४०(MS) יי " (२) विजययंत्र आम्नायलेखन विधि- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मृपू., वै. (इंद्र महाराज संतुष्ट), ७१०४०(३) विद्वगोष्ठी, पंडित. सुधाभूषण गणि, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (येषां न विद्या न तपो), ६९७३१-१(#) विद्वगोष्ठीप्रसंग वर्णन, सं., पग, भूपू (ननु प्राज्ञ प्रकांड), ७१६५६ (०) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी, आ. जिनप्रभसूरि प्रा. ग्रं. ३५७४, वि. १३६३, पद्य, मूपू., (नमिय महावीरजिणं सम्म), " प्रतहीन. + (२) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी हिस्सा प्रव्रज्या विधि, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा. वि. १३६३, पद्य, भूपू (-) प्रतहीन. (३) विधिमार्गप्रपा नाम सुविहितसमाचारी- हिस्सा प्रव्रज्या विधि की छाया, सं., गद्य, म्पू, (ननु दीक्षादान विधि), ६९९५१(+) विनय, स्थानपद व कर्मपदादि व्याख्यान संग्रह - विविधग्रंथोद्धृत, प्रा.सं., पग, मूपू., (दव्वं पञ्जवविजय दव्ब, ७००८५ (१६) (+$) विनय कुलक, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (विनयो जिणसासणे मूल), ७०३६३ (+) विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. श्रु २ अध्ययन २० नं. १२५०, गद्य, म्पू, (तेणं कालेणं तेणं), ६९१३३(+), ६९८९३(०), ७०४३३(+$), ७१२३७ (+), ७१७७७, ७०३०३ (#$), ६९९१४($) " (२) विपाकसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ विपाकश्रुत किसउ), ७०४३३ (+$), ६९९१४($) (२) विपाकसूत्र - हिस्सा सुखविपाक द्वितीयश्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अ. १०, गद्य, म्पू, (तेणं कालेणं तेणं), , ७००२० (+) विमलजिन स्तोत्र, मु. विमल, सं., श्लो. ५०, पद्य, मृपू. (अधान्यदा मया युक्तो), ६९४९९ विरहिणी काव्य, क. केलि, सं., श्लो. ५५, पद्य, (सा वोव्याद्भारती), ७०८९७(+#) (२) विरहिणी काव्य-वृत्ति, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, मूपू (सा भारती वो युष्मान्), ७०८९७ (+) 23 विवाहपडल, सं., श्लो. १६०, पद्य, वै., (जंभाराति पुरोहिते), ७१९२० (#$) "1 (२) विवाहपडल-बालावबोध, मु. अमरसुंदर, मा.गु., गद्य, भूपू. वै., (प्रणम्य शिरसा), ७१९२० (MS) " (२) विवाहपडल-पद्यानुवाद, वा. अभयकुशल, मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., वै., (वाणी पद वांदी करी), ७१५८८($) विविध गच्छोत्पत्ति कालनिर्णय, प्रा.सं., गद्य, वे. (स्व रक्षणे केचिदेव), ६९८१९(+) "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विविध दर्शन गच्छ गोत्र जाति विचार, मा.गु., सं., गद्य, श्वे. (श्वेतांबर १ दिगंबर २), ६९९५६-१ "" "י विविधविचार संग्रह, गु., प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (जईया होही पुच्छा), ६९९२५ (+S), ७०१७०-३(+$), ७०८१५(+#), ७०८५९ २(२), ७१४९७-३(AS), ७१७१७(8) विविधविचार संग्रह, प्रा. सं., पद्य, मृपू, (तस जीवाणविधा तेह), ६९६७१ (+३) विविधविचार संग्रह, प्रा., गा. ११०, पद्य, मूपू., (वासासु सगदिण उवरि), ७१३८०(+#) विविधशास्त्रोक्तविषयचर्चा वर्णन, सं., प+ग., मूपू., ( श्रीमत्पूज्याचार्यो), ७१२६२(#) विविध स्तुतिसंग्रह - प्रार्थना, सं., श्लो. १४, पद्य, भूपू (दर्शनं देवदेवस्य) ७०२४९-३ विश्वकर्मावतार, सं., पद्य, भूपू. वै., (-), ६९९२७-१(*) " विषापहार स्तोत्र, जै.क. धनंजय कवि, सं., श्लो. ४०, ई. ७वी, पद्य, दि., (स्वात्मस्थितः सर्वगत), ७०१३१(+) विहरमान २० जिन स्तव, सं., श्लो. ४, पद्य, भूपू (द्वीपेत्र सीमंधर), ७१३६३-२ (९) ७०४७१-१ "" विहरमानजिन २१ स्थानक प्रकरण, आ. शीलदेवसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, भूपू (संपइ वहंताणं नाम), ७२२५३-१ विहरमानजिनलंछन गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, श्वे., (वसह १ गय २ हरिण), ७०३५२-२(+) , For Private and Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ वीतराग स्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (श्रीवीतरागसर्वज्ञ), ७१०१८-२(+#) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., प्रका. २०, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (यः परात्मा परं), ७०१९९(+#$), ७०७७०(+$) वीतरागाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (शिवं शुद्धबुद्ध), ७१११९(+), ७२३१२-२ वीरशासने प्रमुख घटना व काल, प्रा.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरात् २९१), ७०११६-२(+) वीरसेन कथा, सं., गद्य, मूपू., (तहवि उवएस विसउ), ७०७०५(+) वृष्णिदशासूत्र, प्रा., अध्य. १२, गद्य, मूपू., (जइ णं भंते० पंचमस्स), ७००७५ (#) वैद्यजीवन, क. लोलिंबराज, सं., विला. ५, पद्य, वै., (प्रकृति सुभगगात्र), ६८८१२(+#) (२) वैद्यजीवन-टिप्पण, मु. रूपसौभाग्य, सं., गद्य, मूपू., वै., (स्वभावेन शोभायमान), ६८८१२(+#) वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., विला. ९, श्लो. ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं हृदि), ६९०५१(#$), ६९०८९(#) (२) वैद्यवल्लभ-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीसरस्वती देवता), ६९०५१(#$), ६९०८९(#) वैराग्यशतक, प्रा., गा. १०५, पद्य, मूपू., (संसारंमि असारे नत्थि), ६९५२८(+#), ६९६८८(+$), ६९९४०(+$), ७०२३३(+$), ७१३७४(+$), ७०१९५(#s), ७२६३३-२(#), ७१२५८(६) (२) वैराग्यशतक-टीका, पं. गुणविनय गणि, सं., ग्रं. ९९५, वि. १६४७, गद्य, मूपू., (असारे अप्रधाने संसार), ६९६८८(+$) (२) वैराग्यशतक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (संसारेस्मिन् नास्ति), ७०२३३(+$) (२) वैराग्यशतक-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एह संसारमाहि सार नथी), ७२६३३-२(#) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू., (संसार असारने विषे), ६९९४०(+$) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (संसार असारमाहि नथी), ६९५२८(+#), ७१३७४(+), ७१२५८($) वैरोट्यादेवी स्तोत्र, अप., गा. ३२, पद्य, मूपू., (नमिउण पासनाहं असुरिं), ७११२२-१(+) व्याख्यान वाचन विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम इरियावहियं), ७०४०३-२(+$) व्याख्यानश्लोक संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., गा. १००, पद्य, मूपू., (जिनेंद्रपूजा गुरू), ६८५१२(+#), ७१७८०-२(+), ७१६२७($) (२) व्याख्यानश्लोक संग्रह-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (एहवो एक धर्मोपदेश), ६८५१२(+#), ७१६२७(६) व्याख्यान संग्रह प्रा.,मा.गु.,रा.,सं., गद्य, मूपू., (देवपूजा दया दान), ६९१३५-१(+#),७०४९०(+$), ६९५३३-१(2), ७२२३४-२(#) (२) व्याख्यान संग्रह-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतनी पूजा), ६९५३३-१(#) व्रतआरोपण विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., प+ग., मूपू., (तच्छाईए सम्मत्तारोवण), ६९८३७-३(+) शकुनविचार संग्रह, प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. २२, पद्य, श्वे.?, (यत्र संप्रविस्थित),७२८३५-१ शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., प+ग., मूपू., (ॐ नमोर्हते भगवते), ७२५२३, ७२३७८-१(१) शतक नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १००, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूप., (नमिय जिणं धुवबंधोदय), ६९४०७-५(+), ६९५३७(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नमिअजिण० मिथ्यात्व), ६९५३७(+$) (२) शतक नव्य कर्मग्रंथ-टिप्पण, पुहिं., गद्य, मूपू., (श्री तीर्थंकर), ६९५३७(+$) शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (सुअधम्मकित्तिअंतं),७००५०-१(+#), ७०८३१(+#), ७०९२६(+#), ७०९३८(+2) शत्रुजयतीर्थ चैत्यपरिपाटिका, सं., श्लो. २४, पद्य, मूपू., (नमेंद्रमंडलमणिमय), ७००५०-२(+#) शāजयतीर्थ चैत्यवंदन, सं., श्लो. ५, पद्य, म्पू., (श्रीआदिनाथ जगन्नाथ), ७११०४-२(+#) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ),७०६९६(+), ७१८१८(+) (२) शत्रुजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अइमुत्तइ केवलीइ), ७०६९६(+) शत्रुजयतीर्थस्तव, सं., श्लो. १३, पद्य, मूपू., (धरणेंद्रप्रमुखा नागा), ७२२४५(+) शत्रुजयतीर्थ स्तोत्र, आ. विबुधविमलसूरि, सं., श्लो. ३३, पद्य, मूपू., (मुनींद्रैः सुरेंद्रै), ७१२८८(2) शत्रुजय माहात्म्य, सं., पद्य, मूपू., (किं तपोभिर्जपैः किं), ७०२२७(+$) . शत्रुजयादितीर्थ स्तुतिः, प्रा., श्लो. १५, पद्य, श्वे., (श्रीनाभिरायामलवंसवंस), ७०४७६-१ शनि अष्टक, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (ॐ सूर्य १ सोमं २),७२३४६-२(#) For Private and Personal Use Only Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३० संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ शनिभार्या नाम, सं., श्लो. २, पद्य, वै., (ध्वजनी धामनी चैव), ७२३४६-३(#) शनिमंत्रजापविधि, मा.गु.,सं., गद्य, वै., (ओं शनिश्चराय आँ क्रो), ७१३७३-३(+#) शनिश्चर स्तोत्र, सं., श्लो. १०, पद्य, वै., (यः पुरा राज्यभ्रष्टा), ६९०२८-४(+), ६९६५४-१(+), ७२७७६-१ शनि स्तोत्र, दशरथ राजा, सं., श्लो. ११, पद्य, वै., (कोणांतको रौद्र यमोथ), ७२३४६-४(#) शांतिक विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (अथात्र श्रीनंदीश्वर), ६९४३५ शांतिकुंथुनेमिजिन स्तुति-चक्षुपीडानिवारक, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (शांति कुंथु अरहो), ७०४९९-३ शांतिजिन अष्टक, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (भक्त्या क्रमाब्ज), ७०८३९-३(+) शांतिजिन चरित्र, आ. भावचंद्रसूरि, सं., प्र.६, वि. १५३५, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्यार्हतः सर्व), ७०५०५ (-६) शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (अंही कूर्मयुगं करौ), ६९८५८-१ (२) शांतिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (एनं जिनं ऐऋध्वमिति), ६९८५८-१ शांतिजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (वसन् शैवे मूनि), ७१३०१-२(+) शांतिजिन स्तुति अर्द्धपदयमकमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (शांते तव स्वांतमनु), ७१३७७-१(+#) शांतिजिन स्तोत्र, मु. गुणभद्र, सं., श्लो. ९, पद्य, म्पू., (नाना विचित्रं बहुदुख), ६९७७१(+) शांतिनाथ चरित्र, आ. मुनिदेवसूरि, सं., ग्रं. ४८५५, वि. १३२२, पद्य, मूपू., (वेश्मरत्न निशारत्न), ७१४०९(+$) शांतिपूजा विधि, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (ननु संघादीनां विघ्नो), ६९६१२(#) शांतिस्नात्र गाथाचतुष्क, प्रा.,सं., गा. ४, पद्य, मूपू., (ॐ तं संति संतिकर), ७१११५-२(+) शारदादेवी स्तुति, सं., श्लो. ८, पद्य, वै., (प्रथम भारती नाम), ७०७११-२ शारदाष्टक, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ऐं ह्रीं श्रीं मंत्र), ७१६८८ शाश्वतजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवे नंदीसरम्मि), ७०९१८-२(+#) शाश्वताजिनबिंब स्तवन, आ. जिनोदयसूरि, प्रा., गा. ४३, पद्य, मूपू., (कल्लाणवल्लि जलहर), ७१४०१() शाश्वताशाश्वतजिन स्तव, आ. धर्मसूरि, सं., श्लो. १५, पद्य, मूपू., (नित्ये श्रीभुवना), ७२५९२-२ शिष्यमंडली स्थापन विधि, प्रा.,मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती पडिलेही), ७१५११-२(+) शीतलाष्टक, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (अस्य श्रीशीतला), ६९४७६-४(+#) शीतलाष्टक, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (वंदेहं शीतला देवी), ६९०६८-६(+#) शीतोष्णजल लवणादिविचार गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (खइयं खओवसमियं वेअग), ६९९२४-३ शीलगुप्ति कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महावीर भणामिह), ७२३३१(६) (२) शीलगुप्ति कुलक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (भणु हुं शिलगुप्तीनो), ७२३३१(६) शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., कथा. ४३, गा. ११५, वि. १०वी, पद्य, मूपू., (आबालबभयारि नेमि), ६९५८३(+), ७१०१९(+#$),७११५६(s) (२) शीलोपदेशमाला-शीलतरंगिणी वृत्ति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, मूपू., (यस्योपदेशसमये दशनांश), ६९५८३(+) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध कथा, ग. मेरुसुंदर, मा.गु., ग्रं. ६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयममेय), ७११५६($) शृंगारवैराग्यतरंगिणी, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, वि. १३वी, पद्य, मूपू., (धर्मारामदवाग्निधूम), ६९४११(+#), ६९४१४(+) (२) शृंगारवैराग्यतरंगिणी-सुखबोधिका टीका, मु. नंदलाल, सं., वि. १७८०, गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ), ६९४११(2), ६९४१४(+) श्रमण अतिचार, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (विशेषतश्चारित्रारी), ७०६६७-२(+#S) श्रावक आचारविचार गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (कयवयकम्म१ सुशीलो२), ७१२१२-२(#) श्रावक आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, सं., अधि. ५, ग्रं. १६६, वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत), ६९४८२(+#), ७०४३५(+), ७०४४१-१(+),७०६८७(+$), ६८५१४ श्रावक आलोयणा विधि, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (स्मारं स्मार), ६९०५४ श्रीपाल चरित्र, ग. जयकीर्ति, सं., प्र. ४, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सिद्धचक्र), ६९४०६(+#), ६९५१३(+#), ६९४८९() श्रुतदेवी स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सुयदेवयाय जक्खो कुंभ), ७१४५७-३, ७१४५२-४(#) श्रुतस्कंधमंडलविधान पूजन, मु. हजारीमल, पुहि.,सं., प+ग., ते., (श्रीजिनवाणी भवतिरण), ६९२९०(+#$) For Private and Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ श्लोक संग्रह, मा.गु.,सं., पद्य, वै., (अज्ञानतिमिरांधानां), ६९७९५-५(+) श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ११, पद्य, (अस्मान् विचित्रवपुषि), ६९८४६-११(+) श्लोक संग्रह *, पुहिं.,प्रा.,मा.गु.,सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (कलकोमलपत्रयुता), ६९०६८-४(+#), ६९६९१-२(+), ६९६९५-३(+), ६९९८३-३(+#), ७००६४-४(+$),७०३४३-२(+),७०५७३-१(+),७०९४३-२(#), ७१२०४-२(+-2),७१७३०-२(१), ७२२०२२(+),७२२६९-२(+),७२८२८-२(+), ६९७१०,७००३९-३,७०६२०-३,७१०५८-२,७११८९-२,७१२३१-२,७१९३५, ७२२३३-४, ७१३८५-२(2), ७२५९९(#$), ६९८३३(5), ७००४७-२(६), ७१५०१-२(६), ७१८३१-२(5) श्लोक संग्रह-, सं., श्लो. १००, पद्य, जै., वै., (जिनेंद्र पूजा गुरु), ६९३५५-५(२) श्लोक संग्रह-, मा.गु.,सं., गा. ५०, पद्य, (--), ७२२९८-१(२) । श्लोक संग्रह, प्रा.,सं., श्लो. १०, पद्य, (--), ६८५१९-२(+), ७१९७३-३(+#), ७१९८३-२(+#) श्लोक संग्रह-गूढार्थगर्भित, सं., श्लो. २५, पद्य, मूपू., वै., (गोश्रावः किमयंग),७१७३०-४(+#), ७१७५०-३(2) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक, प्रा.,सं., श्लो. ५०, पद्य, श्वे., (देहे निर्ममता गुरौ), ६९८५४(+), ७१०५९(#$),७१३७३-६(+#), ७१३२९, ७१७७१(#$), ७२४०९-४(१), ७०४९३(७), ७११२७(६),७१८२८-१(६) । (२) श्लोक संग्रह जैनधार्मिक-अर्थ, मा.गु., गद्य, श्वे., (अरिहंत भगवंत उत्पन्न), ७१७७१(#$) षट्काय जीवविचार, प्रा.,सं., गद्य, श्वे., (--), ७०००९-५(+) षट्पुरुष चरित्र, ग. क्षेमकर, सं., गद्य, मूपू., (श्रीअर्हतश्चतु), ६९५५९(+) षट्लेश्या लक्षण श्लोक, प्रा.,सं., श्लो. ६, पद्य, मूपू., (अतिरौद्र सदा क्रोधी), ७०१७०-२(+), ७२४०९-३(#) षडदर्शन विचार, सं., श्लो. ६६, पद्य, मूपू., (जैन मैमासिकं बौद्ध), ६९९९०(६) (२) षडदर्शन विचार-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (जिन मिमासिक बौद्ध), ६९९९०($) । षडशीति नव्य कर्मग्रंथ, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. ८६, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (नमिय जिणं जियमग्गण), ६९३९४-४(+), ६९४०७-४(+), ६९५३६-२(+$), ७००२१-२(+$), ७०३९७-४(+), ७२१३७(+$) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-बालावबोध, मु. मतिचंद्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य शिरसा वीरं), ६९३९४-४(+) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रंथ-गुणस्थानक यंत्र, संबद्ध, मा.गु., यं., मूपू., (देवगति २ ४ ११९६), ७२५२५-३(+#) षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अधि. ७, श्लो. ८७, पद्य, मूपू., वै., बौ., (सद्दर्शनं जिनं नत्वा),७०९८६(+) (२) षड्दर्शन समुच्चय-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., वै., बौ., (श्रीमद्वीरजिनं नत्वा),७०९८६(+) षड्दर्शनसिद्धांत श्लोक, सं., श्लो. १, पद्य, श्वे., (चार्वाकोध्यक्षमेक),७०७९७-२(+) षष्ठिशतक प्रकरण, श्राव. नेमिचंद्र भंडारी, प्रा., गा.१६१+४, पद्य, मूपू., (अरिहं देवो सुगुरू), ७००७६(+s), ७११७०(5) (२) षष्ठिशतक प्रकरण-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंत क० वीतरागदेव),७११७०(5) (२) षष्ठिशतक प्रकरण-शब्दार्थ, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञदेव सुसाधुगुर), ७००७६(+$) संकाशश्रावक कथा, प्रा.,सं., गा.७१, पद्य, म्पू., (पमायमित्त दोसेणं), ६९६९८-१(+#) संख्यावाचक शब्द विचार, सं., गद्य, जै., वै., बौ., (शशि नाग शैलांक), ७०८८२-२(+) संघ आशीर्वाद गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (--), ७१०१४-५(+#) संघपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लो. ४०, पद्य, म्पू., (वह्निज्वालावलीढं), ७०५०७(#$) संज्ञा विचार, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (संज्ञा० मनःपर्याप्त), ७१४९७-२(2) संतिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुंदरसूरि, प्रा., गा. १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., (संतिकरं संतिजिणं), ६९७३२-१(+#), ७०२०२(+), ७०३०८ १(+),७०६७६-१(+),७०६०७-१,७१७७३, ७००४४-१(#),७०६५७-१(#) संथारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसीहि निसीहि निसीहि), ६९७००(+),७००००-२(+),७००९२(+),७०७२५(+), ७०७७४-१(+),७०९०५(+), ७२४७२(+), ६९७०५-१,७०१२४, ७०५७५, ७०५९१, ७०८७५, ७२०२५, ७२४४७-३, ७०४६४(2),७०५५९-१(६),७०९२९-३($) (२) संथारापोरसीसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम पौरुष्यां स्वा),७०१२४ (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार विना बीजो), ७००९२(+), ७२४७२(+), ७०५९१(६) (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुउ क्षमा), ६९७००(+) For Private and Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३२ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) संथारापोरसीसूत्र-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हुवै ३ वारने),७०९०५(+) संथारा विधि, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नवकार तीन भणी), ६९६५७-२(+), ७२३४९-५(+), ७१८३१-१, ७२२६४-३(#), ७१२१७६) संथारासूत्र-लघु, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (एगोहं नत्थि मे कोई),७०९१३ संदेहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, मूपू., (पडिबिंबिय पणय जय), ७२१७०(+$) संदेह समुच्चय, आ. ज्ञानकलशसूरि, सं., श्लो. ४४५, पद्य, मूपू., (सद्भूतभावप्रविकाशनैक), ७०२९४(६) संबोधपंचाशिका, आ. गौतमाचार्य, अप., गा. ५०, पद्य, दि.?, (णमिऊण अरहचरण),७१५०६(१) (२) संबोधपंचाशिका-पद्यानुवाद, जै.क. द्यानतराय, मा.गु., वि. १७५८, पद्य, दि.?, (--), ७१५०६(5) संबोध प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अधि. ११, गा. १६१७, पद्य, मूपू., (नमिऊण वीयरायं सव्वन), ७२८२३-३+) (२) संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (जह अभविय जीवेहि), ७११०२-१(+), ७१०८०-१, ७१७५२, ७२६८३-१ (३) संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्यकुलक का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनादि कालमैं अभव्य), ७२६८३-२ (३) संबोध प्रकरण-हिस्सा अभव्य कुलक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह क० जिम अभव्यनो),७१७५२ संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५, पद्य, मूपू., (नमिऊण तिलोअगुरु), ७१३३४(+#), ७२२०२-१(+), ७२२११(#), ७२३५६(#), ७२४०९-२(#),७२७९९(#) (२) संबोधसप्ततिका-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा नमीकरी त्रैलोक), ७२२०२-१(+) संयोगी भांगा गाथा, प्रा., गा.६, पद्य, श्वे., (गणियम्मि तिन्निलोगा), ७०९१२(+) (२) संयोगी भांगा गाथा- यंत्र, मा.गु., को., श्वे., (--), ७०९१२(+) संलेखना पाठ, प्रा.,मा.गु., गद्य, मूपू., (अहं भंते अपछिम मारणं), ७२१८४(+) संवेगमकंदली, आ. विमलाचार्य, सं., श्लो.५२, पद्य, मूपू., (दूरीभूतभवार्तिभिः), ६९७८६ संसारदावानल स्तुति-अंतिमपादपूर्तिमय, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (तावत्तृष्णाकुलितमतयः), ७१४०२-३(#) संस्तारक प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., (काऊण नमुक्कारं जिणवर), ६९४५०, ७०२८५(5) (२) संस्तारक प्रकीर्णक-विवरण, आ. भुवनतुंगसूरि; आ. रक्षितसूरि आर्य, सं., गद्य, मूपू., (अहँ नमः शसितति शेष), ६९४५० सगरचक्रवर्ती प्रतिबोध-अनित्यता, सं., गद्य, श्वे., (राजन् सगर पश्यत्व), ७०२४५-१(+) सचित्त अचित्त गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, श्वे., (पंच अभिगमण करी वंदवू), ७०३८२-२(+) सनत्कुमारचक्रवर्ती प्रबंध, प्रा., गद्य, श्वे., (सणकुमारेण भंते), ७२४७९(६) सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, प्रा., कां. ३, गा. १६८, वि. ११वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध सिद्धट्ठाणं), ६९५१६(+#) (२) सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., कां. ३, गद्य, मूपू., (शास्यते जीवादयः), ६९५१६(+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ, प्रा., गा. ७२, वि. १३वी-१४वी, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं महत्थ), ६९४०७-६(+), ७००१४(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धं प्रतिष्ठित), ७००१४(+) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-विचार, मा.गु., गद्य, स्पू., (बंधोदय सत्ता भांगा), ६९४४६(+#) सप्ततिका कर्मग्रंथ-६, आ. चंद्रमहत्तराचार्य, प्रा., श्लो. ९१, पद्य, म्पू., (सिद्धपएहिं महत्थं), ६९४९६(+#$) (२) सप्ततिका कर्मग्रंथ-बालावबोध, मा.गु., गद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६९४९६(+-#$) सप्ततिशतस्थान गाथा-जिनमातापिताविषये, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (अट्ठण्हं जणणीओ तित्थ), ६९०१४-४६(+), ७२२८५-३(+) सप्तनय स्वरूप, सं., गद्य, मूपू., (स्यात्कार मुद्रिता), ७०७२०(+), ७२३९४ सप्तभंगीस्वरूपगाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, म्पू., (सिया अत्थि १ सिया), ७२६२९-१(२) (२) सप्तभंगीस्वरूप गाथा-विवरण, पं. दानचंद्र गणि, मा.गु., गद्य, म्पू., (सकल पदार्थ आप आपणे), ७२६२९-२(#) सप्तवार कथा विषय संकेत, सं., गद्य, श्वे., (सुयोधन कथा राजा), ७१२७१-२(+) सप्तसंधान महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., स. ९, ग्रं. ४४२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिजन्मान्वयपद), ६९४३१(+) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., स्मर. ७, पद्य, मूपू., (णमो अरिहताणं० हवइ), ६९४४७(+$), ६९४९४-१(+$), ६९८२०(+$), ७१८४०(#$), ७१८४५(#$) For Private and Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ समंतभद्रप्रशस्ति श्लोक, सं., श्लो. ४, पद्य, दि., (श्रीवर्द्धमानमकलंक), ६९६१७-२(+) समयसार, आ. कुंदकुंदाचार्य, प्रा., अधि. ९, गा. ४१५, पद्य, दि., (वंदितु सव्वसिद्धे), प्रतहीन. (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. ९, श्लो. २७८, प+ग., दि., (नमः समयसाराय स्वानुभ), प्रतहीन. (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचंद्राचार्य, सं., अधि. १२, श्लो. २७८, पद्य, दि., (नमः समयसाराय), ६८४५७(+s), ६९४८५(+#) (४) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका-बालावबोध, मा.गु., गद्य, दि., (--), ६८४५७(+$) (४) समयसार नाटक, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., अधि. १३, गा. ७२७, ग्रं. १७०७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग तिमिर हरन), ६८४६५(+#$), ७१०००(+#s), ६९११५(#) (५) समयसार नाटक-टबार्थ, पुहि., गद्य, मूपू., दि., (--), ७१०००(+#$) (५) समयसार नाटक-अर्थ, पुहिं., गद्य, दि., (--), ६८४६५(+#$) समवसरणविस्तार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (रिसहो बारस जोयण), ६९०१४-४४(+) समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (थुणिमो केवलीवत्थं), ७०९३६(+), ७१३६७(+$), ६९५०१ (२) समवसरण स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तीर्थंकर समवसरणस्थ), ७१३६७(+$) (२) समवसरण स्तव-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (अह्मे स्तवस्युं केवल), ७०९३६(+), ६९५०१ समवायांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १०३, सू. १५९, ग्रं. १६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे० इह खलु समणे), ६९९४२(+#$), ७०६४७-२(+),७१६०७(+#$), ७१८२३(+$), ७२६८६(+$) (२) समवायांगसूत्र-टबार्थ*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६९९४२(+#$), ७१८२३(+$) (२) समवायांगसूत्र-हिस्सा १७ प्रकार मरणाधिकार सूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, मूपू., (सतरसविहे मरणे), ६९०१४-७२(+) (३) समवायांगसूत्र-हिस्सा १७ प्रकार मरणाधिकार सूत्र का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आवायमरणे कहता), ६९०१४ ७२(+) (२) समवायांगसूत्र-हिस्सा ३४ अतिशय समवाय, प्रा., गद्य, मूपू., (चउत्तीसं बुधा सेसा), ६९६४६(+), ६९६३७-१, ६९८०३ (३) समवायांगसूत्र-हिस्सा ३४ अतिशय समवाय की टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, मूपू., (चतुस्त्रिंशन्स्थानक), ६९६४६(+) (३) समवायांगसूत्र-हिस्सा ३४ अतिशय समवाय का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (बुद्ध कहिता), ६९६३७-१ (२) समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (तीसं मोहणीयठाणा प०), ७००८०(+),७१६५७(#) (३) समवायांगसूत्र-हिस्सा समवाय ३० मोहनीयस्थानक का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जे जीव त्रसप्राण आदि), ७००८०(+) (२) समवायांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीर कहे गौतम सुणो), ७२६४५-२(+) समस्या श्लोक संग्रह, सं., श्लो. ४४, पद्य, श्वे., (वंध्याः योंधः कुहनि), ७२७८०-३(2) सम्यक्चारित्र विचार, प्रा.,सं., प+ग., श्वे., (सम्मत्तचरणसहिया सव्व), ६९९९४-२ सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद, प्रा.,मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहण तिलिंग), ७०१९२-१(5) (२) सम्यक्त्व के ६७ बोलभेद-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७०१९२-१($) सम्यक्त्व कौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद. ४४४, ग्रं. १६७५, वि. १४५७, पद्य, म्पू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ६९७२६(+$) सम्यक्त्व कौमुदी कथानक, सं., स.७, ग्रं. ३३५२, पद्य, मूपू., (सम्यक्त्वशुद्धये), ६९५८४(+) सम्यक्त्व पच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्तसरूव), ७१२८९(+#), ७२३०३(+$) (२) सम्यक्त्व पच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (यथा येन औपशमिकत्वादि), ७१२८९(+#) (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जह कहतांजे उपशमादिक), ७२३०३(+$) सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (दसणसुद्धिपयास), ७०५४९(+) सम्यक्त्व स्वरूप, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य परया भक्त्या), ६९५४२(+) (२) सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मा.गु., वि. १८१३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य कहेता), ६९५४२(+) सरस्वतीदेवी अष्टक, मु. धर्मवर्द्धन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (प्राग्वाग्देवि जग), ७०७६९-२(+), ७२६९६(१), ७१४२७(5) For Private and Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३४ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - १ सरस्वतीदेवी छंद, प्रा., मा.गु. सं., गा. ४४, वि. १६७८, पद्य, श्वे. (सकलसिद्धिदातार), ७२२२४ (३) सरस्वतीदेवी बीजमंत्र, सं., गद्य, मृपू., (ऍ की हाँ वद वद), ६९५३२-२ सरस्वतीदेवी मंत्र, सं., गद्य, जै., वै.?, ( ॐ नमो ऐं ह्रीँ), ७१३२६-४(+#) सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं. लो. १२, पद्य, जे.? (नमस्ते शारदादेवी), ७२०४३-३ "" सरस्वतीदेवी षोडशनाम स्तोत्र, सं. श्री. ९, पद्य, भूपू. वै., (नमस्ते शारदा देवी, ७०६२६-५ (+) सरस्वतीदेवी स्तवन, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (राजते श्रीमती देवता), ७०८८२-१(+) सरस्वतीदेवी स्तुति संग्रह, सं., श्लो. ६, पद्य, वै., (सरस्वती महाभागे वरदे), ६९६१६-४(#) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, बृहस्पति, सं. लो. १२, पद्य, वै.. (शुभ्र शुभविचार), ६९८०९.२ ', सरस्वतीदेवी स्तोत्र, आ. हेमाचार्य, सं., श्लो. ११, वि. १५२७, पद्य, मूपू., (कमलभूतनया मुखपंकजे), ६९७१८(+#) " सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. ९, पद्य, वै., (राजते श्रीमती देवता), ७१३२७-२(+), ७१६५४-२ (+), ७२२३३-३, ७२७१५-२(-) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लो. १५, पद्य, क्षे. (विपुलसीक्षमनंतधनागमं), ७१३०३-२ सरस्वतीदेवी स्तोत्र-मंत्रगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (ॐ नमस्त्रिदशवंदित), ७१३२७-१(+) सरस्वतीसूत्र, सं., पद्य, वै., (--), प्रतहीन. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, वै., (प्रणम्य परमात्मानं ), प्रतहीन. (३) सारस्वत व्याकरण- टीका, सं., गद्य, वे., (सूत्रसप्तशति यस्मै ७०१६८-२(६) (२) सिद्धांतचंद्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, वै., (नमस्कृत्य महेशानं मत), ६८८४१(+#) " " ', (३) सिद्धांतचंद्रिका सुबोधिनी वृत्ति, ग. सदानंद, सं. प्रक. १९. वि. १७९९, गद्य, मूपू वै. (पुराणपुरुषं ध्यात्वा), ६८६६८ (+३), ६८८४१(+#), ६८९०५(+) सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (अमोघ वचने सत्य वचने), ७२०४३-१ सरस्वती स्तोत्र, सं., श्रो. १४, पद्य, भूपू (प्रणम्य शारदादेवी) ६९६५५-२ , सरस्वती स्तोत्र, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू. (शशिकर वर ज्योतिर्माल), ७२०४३ २ सागरचंद्र कथानक, मा.गु., सं., गद्य, मृपू., (आस्तां वासो मृगो हंस), ७०९७९ साधारणजिन चैत्यवंदन, आ. मुनिसुंदरसूरि, सं., श्लो. ७, पद्य, मूपू., (जयश्रीजिनकल्याणवल्लि), ६९८५१-१(+), ७०६३४-१ (२) साधारणजिन चैत्यवंदन-अवचूरि, ग. कनककुशल, सं., गद्य, भूपू (श्रीजिनेत्यादीनि) ७०६३४-१ (२) साधारणजिन चैत्यवंदन- अवचूरि, सं., गद्य, मूपु. ( हे श्रीजिन त्वं जय), ६९८५१-१(*) " साधारणजिन चैत्यवंदन, प्रा. सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू., (श्रीशैत्रुंजय मुख्य), ७१७८२-१ साधारणजिन चैत्यवंदन ३४ अतिशय आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लो. ८, पद्य, मूपू., (तेषां च देोद्धरूप) ७०६२६ (३(+) साधारणजिन नमस्कार-स्तुति संग्रह, सं., श्लो. १७, पद्य, मूपू., ( कल्याणपादपारामं), ७१००५-१(#) साधारण जिन पद, प्रा., सं., गा. ११, पद्य, श्वे., (जयजय जिणिंद तियसिदवि), ७१३२३(+) " साधारणजिन स्तव, श्राव. कुमारपाल महाराजा, सं., श्लो. ३३, वि. १२वी, पद्य, भूपू (नम्राखिलाखंडलमौलि), ६९७७० (+) साधारणजिन स्तव, आ. जयानंदसूरि, सं., श्लो. ९, पद्य, मूपू., (देवाः प्रभो यं), ७१३३८(+#), ७१६२४(+) (२) साधारणजिन स्तव-वृत्ति, ग. कनककुशल, सं., ग्रं. १४२, गद्य, मूपू., (हे प्रभो सत्वं मया), ७१३३८ (+#), ७१६२४(+) साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (श्रीतीर्थराजः पदपद्म), ७११२९-६(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मृपू, (अन्या विहाय महिला), ७१४०२-२(क) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ४, पद्य, मूपू., (अविरल कमल गवल मुक्ता), ७१३७७-४(+#), ७२५२१-३ साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू., (यस्यांतं नाद्य मध्ये), ७१०६२-३(+) साधारणजिन स्तुति, सं., श्लो. १, पद्य, भूपू (यामागमामवसुरा जिन), ७११२९-८(*) साधारणजिन स्तुति, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., ( शुभारतीरा जिनवारयामा), ७११२९-७(+) साधारण स्तुति प्रार्थना संग्रह, प्रा., मा.गु., सं., गा. ८, पद्य, मूपू., (मंगलं भगवान वीरो), ६९८२७-२ (+), ७००४५-३(+), ७०००८-३, ७०१९०-२, ७०६५७-३(१) ७२२४१-२(१ For Private and Personal Use Only Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ " साधारण जिन स्तोत्र - अष्टमहाप्रातिहार्यगर्भित, सं., श्लो. ३, पद्य, मूपू (स्वर्ण सिंहासनं), ७१९७३-२(+०) साधु ७ मांडलीतप विधि, प्रा., मा.गु., पद्य, श्वे. (सुत्ते अत्थे भोयणकाल, ७०५१३(+) साधुआचार गाथासंग्रह, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू., (जिणआणाए कुणंताणं), ६९४००-३(+$) साधु आचार गाथासंग्रह, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हणतं ताणु जाणिज्जा), ७०७९१-२(#) (२) साधुआचार गाथासंग्रह - अर्थ, सं., गद्य, मूपू., (क्षुद्राणां तथा महता), ७०७९१-२(#) साधु आचार विवरण, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (अत्र केचन जिनशासन), ७०६३७-२(+४७) साधु आलोयणा, सं., गद्य, मूपू., (ज्ञानाशातनायां), ७२५१४-१ साधुउपकरण प्रतिलेखनबोल गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (मुहपत्ती पन्नासं), ७१७२७-१(#) साधुकालधर्म विधि, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (ज्यारे साधु काल करे), ७१७७०-३ साधु-साध्वी १४ उपकरण, प्रा., गद्य, मूपू., (पोत्तिय रयहरणंच्चिय), ७१०१४-२(+#) साधुसाध्वी उपकरण, प्रा. गा. ७, पद्य, भूपू (पत्तं पत्ताबंधी पाय), ७०६१० (+5), ७०७३६-२(+३), ६९६३७-२ " (२) साधुसाध्वी उपकरण- बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू (तिन्निविहत्थी ७०६१०(+) (२) साधुसाध्वी उपकरण - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (पात्रानी मर्यादा), ६९६३७-२ साधुसाध्वी उपकरण संबद्ध आगमिकपाठ संग्रह, प्रा., गद्य, वे., ( जंपिय समणस्स सुविहिं), ७००७२(७) , साधु हेतु भिक्षाग्रहण योग्य अयोग्य कुलजाति विचार, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, मूपू., ( वरीयति कहेता), ६९६६१(*) सामाचारी व्यवस्थापत्र- खरतरगच्छीय, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु. सं., वि. १७१८, गद्य, मूपू., (तत् श्रीखरतरगणवासि), ६९९७९ १ (+) सामान्यविशेषात्मक वस्तुव्यवस्थापनिकाद्वात्रिंशिका, सं., द्वात. २, श्लो. ६४, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानामित), ७२५५६(#) सामायिकसूत्रे इरियावही साक्षिपाठ, प्रा., मा.गु. सं., गद्य, भूपू (श्रीमहानिशीथसूत्रनो) ७०७५९-१(३) सामुद्रिकशास्त्र, सं., अ. ३६, श्लो. २७१, पद्य, मूपू., (आदिदेवं प्रणम्यादौ), ६९३९३(+#), ६८९०४, ७१५४७(#$) (२) सामुद्रिकशास्त्र - बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरुष खीना लक्षण), ६९३९३ +*$) (२) सामुद्रिकशास्त्र टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू. (आदिनाथ जे चतुर्विंशत), ६८९०४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सारंगशब्द पर्यायश्लोक, ग. भावसागर, सं., श्लो. १, पद्य, मूपू., (स्वर्णाश्वहस्ति मृग), ६९७९५-४ (+) ', सिंदूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं. द्वा. २२, श्लो १००, वि. १३वी, पद्य, मूपू (सिंदूरप्रकरस्तपः), ६८९७७ (+), ६९०२७-१(+), ६९०६८-१(+), ६९४७७(+), ६९५६०-१(+), ६९५७३(+), ६९५८७(+), ६९८६९ (३), ६९८९९(+), ७०४३८(+8), ७१७५७(+३), ६९५९८, ६९१५३(०) (२) सिंदूरकर - टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (--), ६९०६८-१(+#), ६९५६०-१(+$) (२) सिंदूरकर - बालावबोध+कथा, पा. राजशील, मा.गु. सं., गद्य, म्पू, (शारदाचरणयुग्ममतीतपाप), ६९४७७(+$) सिंहमर्कट कथा, सं., पद्य, वै. (पंडितोपि वरं शत्रु), ६९६९५-२(+३) सिद्धचक्र आराधना विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (प्रथमवर्ष मास दिन), ७२३०२(+), ६९९४९-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्रा., मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (उप्पन्नसन्नाणमहोमयाण), ६९०१४-१६(+), ६९७४३-१(+), ७०२०६-१(*), ७२३४९-२(+), ६९७३८-२ सिद्धचक्र चैत्यवंदन, प्रा., गा. ८, पद्य, मूपू., (जियंतरंगारिगणेसुनाणे), ७०२४७-१(+) सिद्धचक्र पूजनविधि, आ. शुभचंद्र, सं., पद्य, मूपू., (सिद्धं शुद्ध), ७२०२७ (+$) " सिद्धचक्र महापूजन विधि सहित, मा.गु. सं., गद्य, भूपू (अधाष्टदलमध्याजकर्ण, ७०९३१(३) सिद्धचक्र महिमापद्धति स्तवन, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (अन्नं च सिद्धचक), ७२०१९-१(+) सिद्धचक्र मूलमंत्र, सं., गद्य, म्पू., (ॐ ह्रीं अहीं, ६९७३८-१ सिद्धचक्र यंत्र संक्षिप्त पूजनविधि, मा.गु., सं., प+ग., मूपू., (--), ६८७२७-४ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा. गा. ४, पद्य, मूप, (जिणसिद्धसूरिउवज्झाय), ६९७४३-३(*) " सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्ताण सत्ताण), ६९७४३-२ (+), ६९७३८-३ सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मृपू, (विजाहर किन्नर असुर), ६९७३८-४ For Private and Personal Use Only ५३५ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३६ www.kobatirth.org संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ सिद्धजीव संख्या, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ( जइबा होइ सि पुच्छा), ६९७३६-२(+5) सिद्धदंडिका स्तव, आ. देवेंद्रसूरि, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (जं उसहकेवलाओ अंत), ७०२६५ (+), ७०६१७(+), ७०६५३(+), ७१०३३-१(+), ७११२६-१(+#), ७१२८५ (+), ७२६६४-१ (+), ७०१६७, ७२५५० (#) (२) सिद्धदंडिका स्तव अवचूरि, सं., गद्य, भूपू., ( आदित्वयशोनृपप्रभृतवो), ७२६६४-१(*) (२) सिद्धदंडिका स्तव - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्युगानि कालमानविशेष ), ७१२८५ (+) (२) सिद्धदंडिका स्तव - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (जं क० जे उसभ क० ऋषभ), ७१०३३-१(+) (२) सिद्धदंडिका स्तव यंत्र, सं., को. भूपू (अनुलोम सिद्धिदंडिका) ७०६५३(+), ७२६६४-३ (+), ७२५५णक सिद्धदंडिकास्तव गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (चउदसलक्खा सिद्धाणिवई), ७२६६४-२(*) יי יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धपंचाशिका प्रकरण, आ. देवेंद्रसूरि प्रा. गा. ५०, पद्य, मूपू (सिद्धं सिद्धत्वसुआं), ७०२८८-२(१) ७०३५७/**S), ७१५०३(७) (२) सिद्धपंचाशिका प्रकरण - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नवरं सिद्धं निष्ठिता), ७०३५७ (+#$), ७१५०३ ($) सिद्धसारस्वत स्तव, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., श्लो. १३. वि. ९वी, पद्य, मूपू., (करमरालविहंगमवाहना) ७०६०४, ७१३०६-१ (MS), ६९७५५-१(३), ७२७१५-१(क) सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचंद्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अ. ८, सू. ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अहँ सिद्धिः स्थाद), प्रतहीन (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन सेट् अनिट्कारिका, संबद्ध, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., श्लो. २२, वि. १६६३, पद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति, ७०३६०-२ (+), ७१८९०) " (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन - हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं., वि. १७१०, गद्य, मूपू., (अर्हमित्यक्षरं ध्येय), ६८८७१(s) सिद्धांत प्ररूपित लोकोत्तरमार्ग वर्णन, प्रा., मा.गु., गद्य, श्वे., (सिद्धांतमांहि भगवंते), ७०९५९-१ सिद्धांतनिका व्याकरण आ जिनचन्द्रसूरि, सं. गद्य, म्पू. (श्रीमद्गुरुपदाम्भोजं), ६८८५२ सिद्धांतसारशतक, पं. विवेकविजय, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (चत्तारि परमंगाणि), ६९६०९($) सिद्धांत स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लो. ४६, पद्य, मूपू (नत्वा गुरुभ्यः श्रुत) ७०१२९-१(+) सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनंदी, सं., श्लो. २६, ई. ६वी, पद्य, दि., (सिद्धिप्रियैः प्रति), ७१०३४(+) सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, ग्रं. १६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवपयाई झायित), ६९१५९(*), ६९७८५७) (२) सिरिसिरिवाल कहा- टबार्थ, मु. सत्यसागर, मा.गु., वि. १८०६, गद्य, मूपू., ( स जयति सिद्धसमूहो ), ६९१५९(+) सीताराम सर्वायुमान विचार, सं., गद्य, म्पू, (त्रिभिः वर्ष सहस्राणि), ७२७२९(# ) सीमंधरजिन स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनाधीशं नम्र), ७१४५३-२(+) सीमंधरजिन स्तोत्र, प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिरसुर असुर नरवंदि), ७१२२५ (+#) सुभाषित श्लोक सं., श्लो. २, पद्य, वे., (दुरितवनघनालीशोककासार) ७०५२७-२(+), ७१०३३-३(*) सुभाषित श्लोक संग्रह, पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., गा. ४०, पद्य, श्वे. (दानं सुपात्रे विशुद), ७००३० (+), ७०४१९-४(+), ७०४६०(+$), " ७१२७१-१(+), ६९९२३-३, ७०८१६-२, ७१४६१-३(#), ७१५२४-२(#), ७०३१६-२($), ७०९१६($) (२) सुभाषित लोक संग्रह- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू (सकल क० समस्त कुसल ) ७००३०(+) ७०८१६-२ सुभाषित श्लोक संग्रह *, सं., श्लो. ४५, पद्य, (विद्यालक्ष्मीसंपन्ना), ६९९१६-२ (+5), ७०१५३-३ (+), ७०८२२-३ (+#), ७०९३५-२ (+#), ७०३०४-२ सुभाषित संग्रह, सं., श्लो. ४०६, पद्य, श्वे., (सामायिकं स्तवः), ७०५४० ($) सुरप्रिय कथा- आत्मनिंदाविषये, ग. कनककुशल, सं., श्लो. १२५, वि. १६५६, पद्य, मूपू., (प्रणम्य महिमागार) ७०७३७(+) सुसढ चरित्र, प्रा., गा. ५१६, पद्य, मूपू., (जे परमाणंदमय परप्पमा), ६९३९९(+) सूक्तमाला, मु. केशरविमल, मा.गु., सं., वर्ग. ४, श्लो. १७६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., (सकलसुकृत्यवल्लीवृंद), ६९१३१(+), ७०४७३(+६), ६९४४२(AS), ६८५३५(३), ७१८०७(5) (२) सूक्तमाला-बालावबोध *, मा.गु., गद्य, मूपू., (सकल सर्व जे शुभ करणी), ६८५३५ ($) सुक्तावली, सं., श्लो. १३८, पद्य, वे (राज्यं निःसचिवं गत), ६९६०१ For Private and Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ सूतक विचार, सं., श्लो. ६, पद्य, भूपू (सूतकं वृद्धिहानिया), ७११०७(+) (२) सूतक विचार - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुतकवृ० जन्महा० तक), ७११०७(+#) सूत्रकृतांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. अ. २३. ग्रं. २१०० प+ग म्पू, (बुज्झिज्ज तिउज्ज), ६९५१९(+), ६९६०६-१(+), " ७००८३(+), ७०३७५ (+5), ७०३७७-१ (+5) ७०४५४ (६), ७२३००, ७१७७८(३) ७०३८६ (३) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-बृहद्वृत्ति #, आ. शीलांकाचार्य, सं., ग्रं. १२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार्थसूचकमनंत), וא יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७००८३(+#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मू., (बुज्झि० छकाय जीवना) ७०३७५ (+5), ७०३७७-१(+४), ७०३८६ (४) (२) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्य. १६, प+ग, मूपू (बुझेज्झ), ६९५२२(+) (३) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा प्रथम श्रुतस्कंध का टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (छकावनुं स्वरूप जाणी), ६९५२२ (+#) (२) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. ३८ प+ग, भूपू (कएरेमग्गे अक्खाते), ७१०३७ (३) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा मोक्षमार्ग अध्ययन का टवार्थ, मा.गु., गद्य, भूपू., (हिवे सुधर्मास्वामि), ७१०३७ (२) सूत्रकृतांगसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुच्छिसुणं समणा माहण), ६९९६२(+$), ७०४०२(+#$), ७०४१८(+#), ७०४४३ (+$), ७०५४८ (+), ७०५७४(+), ७०६४५(+#), ७०७७५(+), ७१४२४(+), ७१७०३-१(+४), ६९६३२-१, ६९८५५-१, ६९८६२, ७०१८१-१, ७०१८४, ७०३१६-१, ७०४९८-१, ७०६०१-१, ७०६३३-१, ७१४१७-१, ७२१६१-१, ७११४१-१०० ७१८००(१) ७१२५२(३) (३) सूत्रकृतांगसूत्र - हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन का टबार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (पु० पुछता हवा कोण), ७०४०२ (+#S), ७०४४३ (+४), ७०५४८(+), ७०६४५(+#), ७०७७५ (+), ७०१८१-१, ७११४१-१ (# ), ७०१८४ ($) (२) सूत्रकृतांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (बीजू अंग अनोपम दीपतु), ७२६४५-५११ सूरिमंत्र पटलेखन विधि, सं. प+ग. मूपू (श्रीसूरिमंत्रपटे), ७१४४३ (१) ! सूरिमंत्रपूजा विधि, प्रा. सं., गद्य, भूप, (ॐ क्रीं ह्रीं श्री, ७०७७७ (+४) सूर्यचंद्रमंडल विचार, सं., गद्य, मूपू., (जंबूदीवे १८० योजनान्), ६९८२२-१ सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा. प्राभु. २०, प्र. २२०० गद्य, भूपू (नमो अरि० तेणं० मिथिल), ७१३१८(+) सूर्याष्टक, क. सिंह, सं., श्लो. १५, पद्य, वै., (रक्तवर्णं महातेजो), ६८६१२-११(#) सोमवती अमावस्या कथा, सं., श्लो. ११९, पद्य, वै., ( शरतल्पगतं भीष्मं), ६९७८३-२(#$) ५३७ सोमसुंदरसूरि बिरुदावली कुलक, प्रा. गा. ४४, पद्य, भूपू (सिरिससिंगण नहमंडण), ७२५२८ , सौभाग्यपंचमी कथा, सं., गद्य, मूपू., ( श्रीमत्पार्श्वजिन), ६९५८९ (+) स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., स्तु. २४, श्लो. ९६, पद्य, मूपू., (भव्यांभोजविबोधनैकतरण), ६९९७४ (+S), ७०००५ (+S), ७०१८२(+), ७२२२८(+#S), ६९०६५ (#), ७१७९६(#), ७१८४९ (#), ७०५६३($), ७०६२२ ($) (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू (धनपालपंडितबांधवेन०) ७०१८३(०) ७ स्तूप विचार, सं., गद्य, मूपू., (अशोकप्रमाणं योजनानि), ७०९८२-२ (+) स्त्री ६४ कला नाम, सं., गद्य, जै. ?, (नृत्यौ ऊचित्ये चित्र), ६९८४६-१(+) स्त्रीजिनबिंब पूजानिषेध ३० बोल- खरतरमते, मा.गु., सं., गद्य, मूपू., (देहरे स्त्री नाचे), ७०७५९-२ ($) " स्थानांगसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. स्था. १०, सू. ७८३, ग्रं. ३७०० प+ग, भूपू (सुवं मे आउस तेणं), ६९७२५(+), ६९८८९(+), ७१३००(+$), ७१८३३(+#$), ६९५४९(#$), ७०४४६ (#S) ', For Private and Personal Use Only " (२) स्थानांगसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं. स्था. १०, ग्रं. १४२५०, वि. १९२०, गद्य म्पू, (श्रीवीरं जिनं नाथ), ७१८३३(+) (२) स्थानांगसूत्र- टीकानुसारी बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवीर जिनं नाथ), ६९५४९ (#$), ७१२८०(#) (२) स्थानांगसूत्र- टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपु. ( श्रीसुधर्मा कहि हे), ७१३०० (+), ६९५४९ (MS) 15 1 (२) स्थानांगसूत्र-आश्वास पद, हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (भारण्णं वहमाणस्स), ७०३१३-१ (३) स्थानांगसूत्र- आश्वास पद-टबार्थ, मा.गु, गद्य, मूपू. (भारवाहक ते पुरुष), ७०३१३-१ " , (२) स्थानांगसूत्र - हिस्सा धर्मध्यान अधिकार, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. प+ग, भूपू (धम्मे चडव्विहे), ६९९५३-१ (+#) (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा धर्मध्यान अधिकार का बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६९९५३-१(+#) Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५३८ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देशक ३ ज्ञात पद, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग., मूपू., (चउविहे णाते पण्णत्ते), प्रतहीन. (३) स्थानांगसूत्र-हिस्सा स्थानक ४ उद्देशक ३ ज्ञात पद-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारण कहता जे अर्थ), ७१२८०(2) (२) स्थानांगसूत्र-उपसर्ग ४ प्रकार विचार, संबद्ध, मा.गु., गद्य, मूपू., (उपसर्गना भेद ४ कह्या),७२२४६ (२) स्थानांगसूत्र-सज्झाय, संबद्ध, ग. नित्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (त्रीजो अंग जिनजी कहे), ७२६४५-१(+) स्थापनाचार्य पडिलेहण विधि, सं., गद्य, मूपू., (शुद्धस्वरूपस्य चिंतन), ७२७९४-५ स्नात्रपूजा, श्राव. देपाल भोजक, प्रा.,मा.गु., कुसु. ५, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक लेइ अंग), ७२४७३(#) स्नात्रपूजा विधिसहित, पंन्या. रूपविजय, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (मुक्तालंकार विकारसार), ६९११२(2) स्नात्रपूजा विधिसहित, प्रा.,मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रथम नित्य विछई), ७०३९१(+) स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचंद्रसूरि, सं., उल्ला. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशारदां हृदि), ७२२००(+#) स्याद्वाद विचार, सं., प+ग., मूपू., (चत्वार्येव प्रमाणानि),७२२९७ स्याद्वादस्थापनवाद स्थल, सं., गद्य, मूपू., (वस्तुनामोत्पादव्यया), ७१४५४(#) स्वप्नविचार श्लोकसंग्रह-आगमोक्त, सं., श्लो. ३४, पद्य, मूपू., (स्वप्न पाठकेषु एगयउ), ६९८३७-१(+) हनुमान स्तुति, सं., श्लो. ५, पद्य, वै., (कुतोहतारण्ये कनक),७२७८०-४(2) हर्षकलगणिनां शतार्थीबिरुदधारीनां रिषिमतिउत्पत्ति विवरण, सं., गद्य, मूपू., (संवत् १५८६ वर्षे पं.), ६९६९२(#S) हस्तसंजीवन, उपा. मेघविजय, सं., श्लो. २८३, ग्रं. ५२५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीभरण), ७१६३२(६) हिंगुल प्रकरण, उपा. विनयसागर, सं., श्लो. १८०, पद्य, मूपू., (श्रीमच्छ्रीवासुपूज्य), ७२१३३(+$) हैमविभ्रम, सं., श्लो. २१, पद्य, मूपू., (कस्य धातोस्ति वादीना), ६९९६४(+), ७०३६०-१(+#), ७०३३२($), ७१९४१(६) (२) हैमविभ्रमसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य परमं ज्योति), ७०३३२($) । (२) हैमविभ्रम-अवचूरि, ग. चारित्रसिंह, सं., वि. १६२५, गद्य, मूपू., (नत्वा जिनेंद्र), ६९७१४(+$), ७१९४१(5) होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुंदरसूरि, सं., श्लो. ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिनं नत्वा), ७०१७३ (२) होलिकापर्व कथा-टबार्थ*,मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीरजिन प्रते), ७०१७३ होलिकापर्व कथा, सं., श्लो. ६५, पद्य, मूपू., (ऋषभस्वामिनं वंदे), ६९६९१-१(+), ७०९८८-१ (२) होलिकापर्व कथा-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिश्वर प्रणमीकै), ६९९९६(+) होलिकापर्व कथा , सं., श्लो. ५०, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानं जिन), ७०९८८-२ होलिकापर्व प्रबंध, ग. पुण्यराज, सं., श्लो. ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम्यक् परमा), ६९४९०(+#) (२) होलिकापर्व प्रबंध-टबार्थ, मु. कांतिविजय, मा.गु., वि. १७९२, गद्य, मूपू., (हे भविन हे प्राणिन), ६९४९०(+#) होलिकापर्व व्याख्यान, उपा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३५, गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ७०७७८(२), ७१०८४-२(+$), ७१३३७(+) होलिकापर्व व्याख्यान, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (होलिका फाल्गुने मासे), ६९११८-२ होलीरजपर्व प्रबंध, ग. फतेंद्रसागर, सं., श्लो. १३९, वि. १८२२, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्धमानमानम्य), ७०३५०(+#) ह्रींकार कल्प, सं., गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं नमः एषा),७१२४३-३(+) ह्रींकार कल्प, मा.गु.,सं., गद्य, मूपू., (कुमारिका पासे कोरइ), ७१२४३-१(+) For Private and Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ३ तत्त्व सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु., गा. २८, पद्य, श्वे., (परम पुरुष परमेश्वर), ६९३६९-१४(-2) ३ प्रकार प्रशस्त अप्रशस्त राग, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रशस्त तीन३ राग छै), ६९०१४-१००(+) ४ करंडिया उपमा प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ राजारा कंडीया समान), ७१७०९-१२ ४ चौवीशी जिननाम स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (जागि सवारौ समरि तु), ६९३५७-७(#$) ४ दुर्लभ वस्तु सज्झाय, मु. रत्नचंद ऋषि, मा.गु., गा. १४, वि. १९११, पद्य, श्वे., (श्रीजिणवचने जाणज्यो), ७१२३४ ४ प्रकार सुखशय्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ पेली सुखसेज्या), ७१७०९-११ ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (नगर कंपिलानो धणी रे), ७०६६८-१(+), ७२६४४-४($) ४ बुद्धिमान प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (समुद्र सरखी बुध), ७१७०९-१० ४ मंगल ढाल, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (चौथो मंगल चीत्त धरो), ६८४७५-३(+#) ४ मंगल पद, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ भूपति सोहे), ७१३५०-२ ४ मंगल रास, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ११०, पद्य, श्वे., (अनंत चोवीसी जे नमु), ७२४२४(#$) ४ विकथानिवारण गीत, मु. रत्ननिधान, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वृथा करम बांधत जीउ), ७२४१९-६(#) ४ शरण सज्झाय, क. विजयभद्र, मा.गु., गा.६, पद्य, मूपू., (पहिलो मंगलिक कहु), ७१०४६-२ ४ शरणा, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., अ. ४, गा.१२, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (मुजने चार शरणा होजो), ७२४१९-१०(#$) ४ शरणा, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलो शरणो अरिहंत),७०९१७(+) ४ श्रावक प्रकार पद, मु. मोतीचंद, मा.गु., गा. ३६, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (वर्धमान शासनधणी गणधर), ७०१६४(#S) ४ सुख प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ निरवध भाषा बोले तो), ७१७०९-९ ५ आश्रव नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मिथ्यात्व १ अविरति २), ७२३२१-१०(+) ५ इंद्रिय चौपाई, पुहिं., ढा. ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रणमी जिनदेव), ६९१२४-१(#S) ५ इंद्रिय विषय, मा.गु., गद्य, मूपू., (जघन्यतो अंगलुनो), ६९०१४-३०(+) ५ इंद्रिय सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काम अंध गजराज अगाज), ६९९६६-३(+), ६८४५९-९ ५ कारण छ ढालिया, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ६, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (सिद्धारथसुत वंदिये), ७२०५४ ५ चारित्र विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सामाइक विशेष विना), ६९०१४-८१(+) ५ जिन स्तुति, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अपराजितथी आवि उपना), ६९१०४-६ ५ तीर्थजिन चैत्यवंदन, मु. कमलविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धुर समरु श्रीआदिदेव), ७२६४४-३ ५ तीर्थजिन स्तवन, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आदि हे आदिजिणेसरु ए), ७१९६२-२, ६९३६१-३(#) ५ निग्रंथ प्रकार विचार-पुलाकादि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम पुलागनिग्रंथ), ६९०१४-८४(+) ५ पांडव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (हस्तिनापुर नगर भलो), ६९०६४-१३ ५ प्रमाद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (मद्यपान विषपान कषाय), ७२३२१-९(+) ५ बोल-धर्म रहित अयोग्य जीव के लक्षण, मा.गु., अंक. ५, गद्य, मूपू., (पहिले बोले अहंकारी), ७२४७१-४ ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवैरे), ७२२५१(+), ७२५१७(+$), ७२८३३(+), ६९०६४-२३ ५ महाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सुरतरुनी परि दोहिलो), ७२११४(+#) ५ मूलभाव ५३ उत्तरप्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम उदयिकभाव), ७०१८६-२(+) ५ संवर नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ सम्यक्त्व २ विरति), ७२३२१-११(+) ५ संस्थानभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (संस्थान ५ प्रकारना), ७२२३०-६(#) ६ द्रव्य भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू, (मुठी माहे जीवना भेद), ६९०१४-३४(+) ६ द्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मद्रव्य शुद्ध लोक),७२२३०-४(2) For Private and Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ६ पर्याप्ति नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आहारपर्याप्ति १ शरीर), ६९००९-२(-) ६ लेश्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (कृष्णलेस्या १ सर्व), ७१०८२-२(+$) ७ कुलकर स्त्रीनाम देहमान आयु वर्णादि कोष्ठक, मा.गु., को., मूपू., (--), ७०१३८-१(+#) ७ जीवी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूयगडांग), ६९०१४-९८(+) ७ रत्न विचार-वासुदेव, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्र धनुष खड्ग मणि), ६९०१४-५(+) ७ वार शृंगार दोहा, मा.गु., गा. ८, पद्य, (आदीतइ गुण वेलडी), ७१२०९-३(+#$) ७ वार सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (श्रीब्राह्मी प्रणमी), ७२६११-२(#) ७ व्यसन सज्झाय, मु. साधुजी, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (श्रीमहावीरजी का), ७०७७२ ८ अनंताद्रव्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधना जीव अनंता १), ७०४२८-२ ८ आत्मा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (दिव्य आत्मा१ कषाये), ७१६१३-१ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म आठ तेहनी), ७२१७७(+), ६९१९५ ८ कर्म नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावर्णनी १), ६९९२२(+) (२) ८ कर्म नाम-बालावबोध, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी कर्म किम), ६९९२२(+) ८ कर्मप्रकृति विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम ज्ञानावरणी), ६८५१९-१(+) ८ कर्मभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणीयकर्म), ७२३९२,७२५००(#), ७२५३३(5) ८ जिन पद, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जुगलाधर्म निवार्यो), ६९१०४-१० ८ प्रकारी पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८१३, पद्य, मूपू., (श्रुतधर जस समरें सदा), ६८६०८-१(#) ८ प्रकारी पूजा, आ. तिलकसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. २०, पद्य, मूपू., (स्नान करो भलभावसु), ७०९६२-१(#) ८ प्रवचनमाता सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. १३०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुकृत कल्पतरु श्रेणि), ७२६१८-१(+) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ८, गा. ७६, पद्य, मूपू., (शिवसुख कारण उपदेशी), ७१४८९(5) ८ लक्षण-धर्मी जीव, मा.गु., अंक.८, गद्य, मूपू., (पहिले बोले हासोदमे),७२४७१-५ ९ असुर नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (१आसिग्रीव २तारक), ७०९६१-२(+) ९ नारद नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ भीम २ माभीम ३ रुद), ७१७०९-१४ ९ प्रकार अनंता, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र माहे नव अनंता), ६९०१४-७९(+) ९ प्रतिवासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अश्वग्रीव१ तारकर),७२३३३-५ ९ बलदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (अचल१ विजय२ भद्र३), ७२३३३-४ ९ वाड ब्रह्मचर्य, मा.गु., गद्य, श्वे., (वसति १ स्त्रीनी कथा),७२४७१-३ ९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., ढा. १०, गा. ४३, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुने चरणे नमी), ७१४३९-१, ७१६२३, ७२८००, ७२५८७-१(१) । ९ वासुदेव नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपृष्ठि१ द्विपृ०), ७२३३३-३ १० का ३५ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहले बोले १० यतिधर्म), ६९१६१ १० पच्चक्खाण नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (नवकारसी सागार पोरसी), ७१९६३-३(+), ७२२६४-२(#) १० पच्चक्खाण फल, मा.गु., गद्य, मूपू., (पच्चक्खाणना नाम नवका),७२३२१-४(+), ७२६८७-२ १० पच्चक्खाणफल सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (दसविह प्रह उठी),७०८६३-२(+) १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनंदन नमु), ७०८९१-२, ७२१०१-१, ७१५३६(६) १० प्राण नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्पर्शन १ रसन २), ६९००९-३(-) १० बोल सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (स्यादवादमत श्रीजिनवर), ७२७४९(+#), ६९०६४-२ १० ब्रह्मचर्य समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४२, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर पाय),७०८७८(#$) १० मनुष्यजन्म दुर्लभ बोल, मा.गु., अंक. १०, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै मनुष्यभव), ७२४७१-१ For Private and Personal Use Only Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ १० श्रावक सज्झाय, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (प्रह उठि प्रणमुं), ७२८१७-२ ११ अंग नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (आचारांगसूत्र १), ६९६३४-३(+) ११ आरंभपरिग्रह बोल, रा., अंक. ११, गद्य, मूपू., (पहिलै बोले जीव आरंभ), ७२४७१-२ ११ गणधर स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु.,रा., गा. १२, वि. १८४३, पद्य, स्था., (इंद्रभुतिना लीजे), ६९३४९-५(#) ११ गणधर स्तवन, सा. मानाजी, मा.गु., गा. ५, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (इंदरभुतीजी गुणधर), ७२१८०-४(+-2) ११ गुणस्थानक आरोहअवरोह कोष्टक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनादि मिथ्यात१), ६९०१४-११३(+) ११ रूद्र नाम, मा.गु., को., श्वे., (--), ७२३५५-२(+) १२ आरा रास, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., ढा. १२, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति भारती), ६८४५९-१, ७१९५७(#$) १२ चक्रवर्ती आयुमान देहमान बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भरत चक्रवर्ति), ६९६३४-४(+), ७०९६१-३(+) १२ चक्रवर्ती नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (प्रथम भर्थजी१ सगर२),७२३३३-२ १२ दर्लभता नाम, मा.गु., को., मूपू., (१ मनुष्यभव २ आर्य),७२३२१-१२(+) १२ पर्षदा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अग्निकूण में पर्षदा), ६९०१४-३२(+) १२ पर्षदा समवसरण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पूर्व दिसिने बारणे), ७२३२१-५(+), ६८६१२-६(#) १२ भावना, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १२, गा. ७२, वि. १६४६, पद्य, मूपू., (आदिसर जिणवर तणा पद),७२०६३ १२ भावना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिली अनित भावना ते),७२१३५(#) १२ भावना विलास, ग. लक्ष्मीवल्लभ, पुहिं., गा. ५२, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमि चरणयुग पास), ६९८२९, ७२६६३-१ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मा.गु., ढा. १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., (पास जिणेसर पाय नमी), ६९१२५, ६९०५९(#), ७२७५८(4) १२ मासीय बादलबीजली विचार पद, मा.गु., पद्य, वै., (आसाढी धुर पंचमी नही), ७१२५३-६(#S) १२ राशि वर्णमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (चुचे चो ला लि लु), ६९३५५-३(#) १२ व्रत टीप, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम सम्यक्त्व देव), ७२६९५-१, ७२७३७ १२ व्रत सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवाणी धन वुठडो भवि), ६९८७२-६ १३ काठिया नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (आलस १ मोह २ बने ३), ७२३२१-७(+), ७१७०९-६ १३ काठिया सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुंगौतम), ७१४७५ () १३ काठिया सज्झाय, मु. आसकरण ऋषि, रा., गा. २२, वि. १८६१, पद्य, श्वे., (रतन चिंतामण जे एवोजी), ७०८७३-२(+) १३ द्वार बोल-नवतत्वरूपीअरूपी, रा., द्वा. १३, ग्रं. ३१०, गद्य, श्वे., (गाथा मूल द्रष्टांत), ६८५५८($) १४ गुणठाणा २१ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार १ लखण २), ६८५०७(+) १४ गुणठाणा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (होइं मिथ्यात्व अभव्य), ७१९२९-३(+) १४ गुणस्थान अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (थोडा उवशांत ११माना), ६९०१४-७४(+) १४ गुणस्थानक २५ द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नामद्वार लक्षणद्वार), ७१६६९(+$) १४ गुणस्थानक चौपाई, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ६९५५५(-) १४ गुणस्थानक ध्यान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहिलै बीजै गुण ठाणै), ७२५३४-३(2) १४ गुणस्थानक मार्गणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुणस्थानकनी), ७१४६१-२(2) १४ गुणस्थानक मे ८ कर्म १२० प्रकृति विचार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७२२८३(+$) १४ गुणस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ७२२८१-२ १४ गुणस्थानक विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (बंधप्रकृतयस्तासां), प्रतहीन. (२) १४ गुणस्थानक विचार-यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (मिथ्यात्व सास्वादन), ७११७२(+), ७२५२६(5) १४ गुणस्थानक सत्ता यत्र, मा.गु., को., मूपू., (--),७२५५१ १४ जीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुक्ष्म एकंद्री बादर), ७२२३०-५(#) १४ जीवस्थाने नाम कर्मप्रकृतिबंधोदय सत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., यं., म्पू., (--), ७२२८१-६ For Private and Personal Use Only Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १४ नियम विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सचित ते कोने कहीइ), ७२७५३ १४ पूर्व स्तवन, आ. सौभाग्यसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३३, वि. १८९६, पद्य, मूपू., (जिनवर श्रीवर्धमान),७११५८ १४ रत्न विचार-चक्रवर्ती, मा.गु., गद्य, मूपू., (चक्र छत्र दंड ए तीन), ६९०१४-३(+), ६९७२९-३(+$) १४ राजलोक नाम, मा.गु., गद्य, श्वे., (साते नरगे सात राज), ७००६४-२(+) १४ राजलोक विवरण यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (--), ७०४६९-२(+) १४ श्रोता चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, श्वे., (--), ७०४३०(#$) १४ स्वप्न बोल-मोक्ष गमन, पुहि., गद्य, श्वे., (हाथी की घोड़े की), ७०९६१-६(+) १५ कर्मभूमि विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (पनर कर्मभूमि कहीइ), ६९०१४-६१(+) १५ तिथि सज्झाय, मु. गंगदास, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सकल विद्या वरदायणी), ७२६११-१(#) १५ तिथि सज्झाय, डुंगरसी, रा., गा. १६, पद्य, श्वे., (चतुरनर ग्यान विचारो), ७११५३-१ १५ भेद सिद्ध विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जिनसिद्ध ते ऋषभादि),७२३२१-३(+) १५ योग नाम-मनवचनकाया के, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत्यमनोयोग १ असत्य), ७२५३४-२(2) १६ बोल-औपदेशिक, रा., अंक. १६, गद्य, श्वे., (जेहनी सर्धा सुधी होय), ७२८४८(2) १६ सतीनाम सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सतसतिनै वंदी सोल), ७०६५४-४(+) १६ सती सज्झाय, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि जिनवर), ७१२१३, ७१२३३-१(#) १६ सती सज्झाय, मु.खेमराज, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सील सुरंगी भांत कै),७२४४१-३(2) १६ सतीसज्झाय, मु. त्रिकम, मा.गु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, श्वे., (श्रीऋषभ तणी धुया),७१९६२-१ १६ सती सज्झाय, मु. प्रेमराज, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (सील सुरंगी भांलि ओढी), ७२०८७(+) १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (पाडलिपुर नामे नगर), ७२१२८-२($) १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुपन देखी पेहलडे), ७१२२०-१(+$) १७ भेद जीवअल्पबहुत्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. १८, पद्य, मूपू., (अरिहंत केवलज्ञान), ७२२५६-२ १७ भेदी पूजा, वा. सकलचंद्र, मा.गु., ढा. १७, पद्य, मूपू., (अरिहंत मुखपंकजवासिनी), ६९१२३(+#$) १७ भेदी पूजा, वा. साधुकीर्ति, मा.गु., ढा. १७, वि. १६१८, पद्य, मूपू., (भाव भले भगवंतनी पूजा), ७१७२३(5) १८ गोत्र नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (गर्गगोत्र१ गोयलगोत्र), ७२४३२-२(+#) १८ दोषरहित अरिहंत परमात्मा, पुहिं., अंक. १८, गद्य, मूपू., (अरिहंत प्रभु १८ दोष),७१४१३-२(+) १८ नातरा सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (पहिलो प्रणमुंपास), ७१५६६(#$) १८ नातरा सज्झाय, मु. हेतविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, पद्य, मूपू., (पहेला ते समरूं पास), ६९०६४-२६ १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., सज्झा. १८, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक पहिलं कहि), ६९८७२-४ १८ पौषध दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बोले पोसानी रातने), ७२०६२-१२(+#) १८ भार वनस्पति गाथा, क. शुभ, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम कोडि अडतीस), ७१२५३-९(2) १९ औपदेशिक बोल, रा., गद्य, म्पू., (१ बोलीये बंध नहीं), ६९०१६-४(+) १९ औपदेशिक बोल, रा., गद्य, मूपू., (१ वात करतां आपने), ६९०१६-३(+) २० जिन स्तवन-समेतशिखर, मु. आनंद, मा.गु., गा. ११, वि. १८९१, पद्य, मूपू., (तीरथपति शिखरजी भजीये), ६८६०६-६ २० बोल सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८३३, पद्य, स्था., (किणसुंवाद विवाद न),७२०८०(+),७१५५९-२(६) २० विहरमानजिन लंछन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमंधर वृषभ लांछन१), ७०८६७-१ २० विहरमानजिन संख्या, मा.गु., गद्य, म्पू., (जंबूद्वीप भरते त्रीण), ७२३२६-३(+) २० विहरमानजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जगजयवंता जाणीये), ६९३७९-७(#) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. ९, पद्य, म्पू., (श्रीजिनजी को नाम),७१५२०-४(+-2) २० विहरमानजिन स्तवन, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सीमंधर स्वामी प्रमुख), ७१५२०-५(+-#) For Private and Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५४३ २० स्थानकतप आराधनाविधि, पं. भोजसागर पाठक, मा.गु., वि. १७९४, प+ग., मूपू., (पंचतीर्थी पधरावे पंच), ६८४९९-१ २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, श्वे., (ॐ नमो अरिहंताणं), ७१६१५-२ २० स्थानकतप गणj, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतभक्ति), ७२६४६-१(#) २० स्थानकतप विधि, मु. ज्ञानसागर-शिष्य, पुहिं., प+ग., मूपू., (तिहां प्रथम शुभ दिन), ६८४६८(+), ६९१६०(+) २० स्थानक तपविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहतभक्ति ३ कालजा),७१६१३-४ २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा. ८१, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (जिनमुखपंकजवासिनी), ६९११०-३ २० स्थानकतप स्तवन, मु. वखतचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (वीशस्थानक तप सेवीय), ७२६७८ २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., पूजा. २०, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (सुखसंपतिदायक सदा), ६९१२१() २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. २०, वि. १८४५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ६९१८९(#) २१ औपदेशिक बोल, रा., गद्य, मूपू., (१ वहीखाता मे खतपांना), ६९०१६-६(+) २१ औपदेशिक बोल-धार्मिक, रा., गद्य, मूपू., (१ चतुर्विध संघरा), ६९०१६-५(+) २१ प्रकारी पूजा, मु. उद्योतसागर, मा.गु., ढा. २१, गा. ७१, वि. १८२३, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीसुख पूरव), ७११०१(६) २१ श्रावकगुण सज्झाय, मु. समयसुंदर, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (क्यारे मिलसे रे), ६८४५९-३९ । २२ अभक्ष्य ३२ अनंतकाय सज्झाय, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (देव गुरु केरुं लीजि), ७२६११-६(#) २२ अभक्ष्य कवित्त, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (उंबरण विस अंजीर सहत), ७२२५०-३(+) २२ अभक्ष्य नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (वडोलीया पीप पीपर), ७२०९१-१(६) २२ परिसह उदयहेतुभूत कर्म विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (चार कर्म ने उदै २२), ६९७१२-२(+#) २२ परिसह सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८२२, पद्य, स्था., (श्रीआदेसर आद दै), ७०४२२(+$) २३ औपदेशिक बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ धर्म ठिकाणे झूठ न), ६९०१६-७(+) २३ पदवी विचार, मा.गु., गद्य, पू., (सात एकेंद्री रत्ननी), ६९०१४-५६(+) २३ पदवी सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर पाय नमी),७०९८४($) २३ शीघ्र मोक्षगामी बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मोक्षनी अभिलाषा), ६९६३४-२(+) २४ अतीतजिन स्तोत्र, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (अतीत चउवीसी जिनवरराय),७२३६८(+#) २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा, रामचंद्र, पुहिं., प+ग., मूपू., (वृषभआदि अंति वीर), ६९३४३-१(#$) २४ जिन अष्टप्रकारी पूजा-प्रत्येकजिनभिन्नभिन्न, रामचंद्र, पुहि., प+ग., पू., (सुषमदखम थिति मेटी), ६९३४३-२(#S) २४ जिन आंतरा, मा.गु., गद्य, मूपू., (५० कोडि लाख सागर), ७२७५१-२ २४ जिन आयुष्य विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीरीषभदेव आउखू), ६८४५२-१(+$) २४ जिन चैत्यवंदन, मु. ऋद्धिचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदि अजित संभवनाथ), ७२५४५-५(+#$) २४ जिन चैत्यवंदन, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६४, पद्य, म्पू., (आदिदेव अलवेसरु), ६९२१६($) २४ जिन चैत्यवंदन-भवसंख्यागर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकरतणा), ७२३५७ २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (शत्रुजे ऋषभ समोसर्य), ७२६७१-५(+#), ७२४४२ १(#s) २४ जिन नाम-वर्तमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेवजी अजित), ६८६१४-२(4), ७१५१५-२(#$) २४ जिन पंचकल्याणक बावनी, मु. पार्श्वचंद्र, मा.गु., ढा. २४, गा. ५२, वि. १६०१, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुपाय प्रणमउं), ६९०३१(+) २४ जिन पूर्वभव, दीक्षादि परिवार, मोक्ष प्रहरादि ८ बोल विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७२१८०-३(+#) २४ जिन पूर्वभवकृत सुकृत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभदेव धन घी दान), ६९०१४-५४(+) २४ जिन प्रभाति, ग. तेजजी, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सासनपति चोवीसना जे), ६९३६९-६(-#) २४ जिन मातापिता, आयु, देहमान, पर्याय, शासनकाल, शासनदेव, संपदादि बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (श्रीरीषभनाथसामी सरवा), ६९५७८ For Private and Personal Use Only Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ २४ जिन लंछन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीऋषभ वृषभ लांछन१), ७०८६७-२ २४ जिन सवैया, मु. हरिसागर, मा.गु., गा. २५, वि. १८१४, पद्य, मूपू., (सेवी माता सरसती वचन),७२३२९($) २४ जिन स्तवन, मु. उदयकमल, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (अरिहंत अनंत भवंतर), ७२२२२-१(2) २४ जिन स्तवन, मु. ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (नमु श्रीआदि अजितनाथ), ७२३६३-२ २४ जिन स्तवन, मु. ऋषि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (वांदु श्रीआदिजिनंद), ७२३६३-१ २४ जिन स्तवन, मु. कवियण, रा., गा. १७, पद्य, मूपू., (ऊँचा ऊँचा तो देरा), ७२७८४-२ २४ जिन स्तवन, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुप्रथम), ७२२०३-१(2) २४ जिन स्तवन, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७२२, पद्य, म्पू., (निजगुरु पदपंकज नमी), ७२५१९-१(+) २४ जिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ऋषभजिणंदा ऋषभजिणंदा), ६८५२२(2) २४ जिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, श्वे., (रिषभ अजित संभव), ६९६१६-३(#) २४ जिन स्तवन-मातापितानामादिगर्भित, मु. आणंद, मा.गु., गा. २९, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (सयल जिणेसर प्रणमु), ७१८०४ ३(+s), ७२११२(६) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता गिर्वाणी), ७२२२२-२(#) २४ ठाणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (गइ इंद्रि काय जोग), ६९११९(+#) २४ तीर्थंकर नाम, मा.गु., अंक. २४, गद्य, मूपू., (श्रीरिषभनाथजी), ७०००८-१, ७०३०७-२, ७१७९३-४(#) २४ तीर्थंकर नाम, आयुमान, देहमान, वर्ण, राज्यकाल, तपकाल आदि विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीआदिनाथ को आउखो), ७२७५१-१, ७१७६९-१(२) २४ दंडक २३ द्वार यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ६८५४९(+) २४ दंडक २३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नारकीमाहे शरीर ३),७१४६२-१(+$) २४ दंडक २५ द्वार विचार, मा.गु., गा. २, प+ग., मूपू., (सरीरोगाहणा संघयण),७१९०२(#$) २४ दंडक २६ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (शरीर अवगाहणा संघयण), ६८४९५(+), ६९७८७(+), ७२०२१(+$) २४ दंडक २९ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम नामद्वार बीजु), ६८९७२(+) २४ दंडक ३० द्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक लेश्या ठित्ति), ६८४८४(+), ६८४९२(+#S), ६९४५६(+$), ६९०५३ २४ दंडक बोल संग्रह*,मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक २४ ना शरीर ५),७१२४६(+#$), ६९९९४-१, ६८४८२(2) २४ दंडक यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७०२३१(+), ७२२९६(+), ७२६६२ २४ बोल-परमकल्याण के, मा.गु., अंक. ३०, गद्य, मूपू., (तप करी नीयाणु न करवु), ७१०३०-१(2) २४ बोल विचार-प्रमाद, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहिलै बोल भणवा गुणवा),७१३७५ २४ स्थानक मार्गणाद्वार कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (गइंदिय काए जोए वेए), ६८४९४(#) २८ शिखामण बोल, रा., गद्य, मूपू., (जीणरी सरदणा परुपणा), ७१७०९-४ ३१ गुण सिद्ध के, मा.गु., गद्य, श्वे., (लांबउ १ बादलउ २), ६९०१४-६९(+) ३२ उपमा शीलव्रत, मा.गु., गद्य, मूपू., (ग्रह नक्षत्र तारा),७१०७९(+) ३२ लक्षण विचार-पुरुष, मा.गु., गद्य, वै., (पांच वाना दीर्घ जोईय),७०९७०-३ ३३ बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात्त भये इहलोक भय),७०८२१-१(+) ३४ अतिशय-तीर्थकर परमात्माके, पुहि., गद्य, मूपू., (--), ७१४१३-१(+9) ३४ अतिशय वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहंताणं अरिहंत), ७१९६३-१(+), ७२६०९-१(2) ३५ बोल-गति, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहेले बोले गति चार),७१३३३(5) ४५ आगम स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (इंदीवरासन तनयावंदी), ७१४७४(+) ४७ एषणा दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (सोलस उग्गमदोसा सोलस), ७१०१४-१(+#$) ५० विनीत बोल, मा.गु., पद्य, मूपू., (१ वनीत होय तो धर्म), ७१७०९-१ ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७२२८२-१(+),७२३४२,७१९१०(६), ७२२८१-१(5) For Private and Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ६२ मार्गणाद्वार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (नमिउं अरिहंताई बोले),७२५१८-१(+),७२५५७(2) ६२ मार्गणा बोल, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८३, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (गुरुवचन लही करी आगम), ७२८५२(+$) ६२ मार्गणा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (देवगति मनुष्यगति), ७२३२६-१(+), ७२५०८(+), ७२५१८-२(+5),७२५२५-१(#), ७२५४८(+#), ७२५५२-१(+2), ७२५४९(#) ६२ मार्गणास्थाने १४ गुणस्थानके १२२ उत्तरप्रकृति का उदय यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७२२८० ६२ मार्गणास्थाने मोहनीयकर्म बंधोदयसत्तास्थानभांगा यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ बासठमार्गणाये), ७२२८२-४(+8) ६३ शलाकापुरुष नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२ चक्री १ दिर्घदंत), ७११५१(-१) ६३ शलाकापुरुष स्तवन, मु. वसतौ, मा.गु., ढा. ५, गा. १८, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरणकमल मनधार), ७१९२८-२(+) ६७ समकित बोलनाम, मा.गु., गद्य, म्पू., (सद्दहणा ४ लिंग ३ एवं),७०१८८-२(5) ७२ मिथ्यात्वभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथमतउ हरिहर देवता), ७०७२१-२(+$) ८४ आशातना विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्लेष्मा नाखवो १ राम),७०६०३(#$) ८४ गच्छ पद, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (विजय विमलरूच सार), ७१२५३-७(#$) ८४ गच्छ सज्झाय, मु. त्रिलोकसागर, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू, (गच्छ चौरासी जग कहे), ७२८५९(#) ८४ लाख जीवयोनि पद, मा.गु., पद. १, पद्य, श्वे., (नवलख जल में जीव दस), ७१२५३-८(#) ९४ बोल का ६२ भांगा बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ गरब विना जीवमाही), ७१२४९(+), ७२६६७ ९७ कर्मउत्तरप्रकृति, मा.गु., गद्य, मूपू., (५ ज्ञानावरणी), ६९०१४-७१(+) ९९ प्रकारी पूजा-शत्रुजयमहिमागर्भित, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ११, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजी), ६९४५७(+#$) १५० जिन कल्याणक चैत्यवंदन, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (शासननायक जगजयो), ७१६७१(६) १७० जिन विजयतपविधि गणj, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूद्वीप प्रथम), ६९०१४-१७(+) १७१ बोल संग्रह-धर्मअधर्म, मा.गु., गद्य, श्वे., (थीरी गति कांइ मनुष्य), ६८५११-२ १७९ रूपीअरूपी बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव रूपी के अरूपी), ६८५११-१ १८१ हुंडी बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु थइनै अणकल्पनी०), ७१६०४(#$) २५३ मण मोतीमान बोल-सर्वार्थसिद्ध विमान, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक मोती ६४ मननु), ७०९६१-७(+) ३०० भेदबोल पद-औपदेशिक, मु. शिवचंद, पुहिं., पद. १, पद्य, मूपू., (पंचदश दोको ध्यान पंच), ७०९८३-१(+) (२) ३०० भेदबोल पद-औपदेशिक-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (हिवइं पांच अने दस १५), ७०९८३-१(+) ३६३ पाखंडी मत विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूयगडेणं असीयस्स), ६९०१४-३३(+) ५६० अजीव भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (धर्मास्तिकाय खंध), ६९०१४-११७(+), ७२२३०-३(#) ५६३ जीव भेद यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ६९४५८($) १४५२ गणधर चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (गणधर चोराशी कह्या), ६८५५६-४(+) १४५२ गणधर स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर ऋषभ जिण), ७२४२१-५ अंगूठीअभिमंत्रण विधि, मा.गु., गद्य, (मेष संक्रांति हुवा), ७२३१२-१ अंगस्फुरण विचार, मु. हीररत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (माथै फुरके पुहवीराज), ६९२५१-२(+) अंगुलमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अनुयोगद्वारमध्ये), ६९०१६-२(+) अंजनशलाकाप्रतिष्ठा पंचकल्याणकविधि सामग्री, मा.गु., गद्य, पू., (च्यवन कल्याणक इंद्र), ७२२४०(+) अंजनासुंदरी चौपाई, मा.गु., गा. १५०, पद्य, मूपू., (अंजणा मोटी सती पाल्य), ६८५४२(2) अंजनासुंदरी रास, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ५७१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., (सरस वचन वर वरसती), ६८४६०(2) अंजनासुंदरी रास, मा.गु., ढा. २२, गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड को नही), ६९०५७(+#) अंतिम आराधना विधि, मा.गु., प+ग., श्वे., (नाणम्मि दंसणमि चरणम),७००८४-२(+#) अंबिकादेवी छंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, वै., (सदा पूर्ण ब्रह्मांड), ७०९५३-२($) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर प्रणमी), ७२५७९-२(#) For Private and Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अइमुत्तामुनि सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद वांदीने), ७१५५९-१, ७१९३०-१, ६९३६९-१३(____#),७१५६०-१(#$) अइमुत्तामुनि सज्झाय, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. १४, वि. १९४४, पद्य, श्वे., (एवंतामुनिवर नाव तराइ), ६९३४९-९(#s), ७०७८८ अईमुत्तामुनि सज्झाय, उपा. रत्नसागर, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद वांदीने), ७११५४-२(#S) अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५१, वि. १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर शिर), ७२६७५-३(+#) अक्षरबत्रीशी, ग.ज्ञानसुंदर, मा.गु., गा. ३९, वि. १६८६, पद्य, मूपू., (सरसति माता समरीने),७२५३८-१ अक्षरबत्रीशी, श्राव. सुरत, पुहि., पद्य, श्वे., (--), ७१२१९(#$) अक्षरबत्रीशी, मु. हिम्मतविजय, मा.गु., गा. ३५, वि. १७२५, पद्य, म्पू., (कका ते किरिया करो), ६८५९१-२,७११७७-३ अक्षरबत्रीसी-आत्महितशिक्षागर्भित, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (कक्का तें किरिया), ७२७३३($) अक्षरबावनी, वा. किसनदास, पुहिं., गा. ६१, वि. १७६७, पद्य, श्वे., (ॐकार अमर अमार अज), ६९२९१(#$) अक्षरबावनी लघु, मु. उदराज, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (ॐकाराय नमो अकल अवतार), ७२५७२(#) अगडदत्त चरित, मु. जिनदास, मा.गु., वि. १८५४, पद्य, श्वे., (--), ७२०९६(+#$) अगडदत्त रास, मु. मनीराम, मा.गु., ढा. ६, गा. ९२, वि. १९०९, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदि करी चवीस), ७१५६१-२($) अजितजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पंथडो निहालु रे), ७०४७४-१,६८६२४-५(2) अजितजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कमल वने भमरो रमे रे), ७२५८७-३(#) अजितजिन स्तवन, मु. खुशालमुनि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (अजित जिणेसरदेव मोरा), ६९३६९-२१(-2) अजितजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अजित जिणेसर चरणनी),७१५७४-२ अजितजिन स्तवन, उपा. मेघविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, पू., (जयकारी अजित जिनेसर), ७२६७४-२ अजितजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ओलग अजित जिणंदनी), ६९३५९-६(2) अजितजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अजित जिणंदस्यु प्रीत), ७०९९२-११(+) अजितजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, पद्य, स्था., (जंबूदीपना भरत मे), ७२२५९-६ अजितजिन स्तवन, मु. विजयानंदन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (अजित जिणंद दयाल सुणो),७२६०५(+#$) अजितजिन स्तवन-चोथा आरा, मु. तेजसिंह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (चोथो आरो जिनवर वारो), ७०९९२-९(+), ६९३६९-११(#) अजितजिन स्तवन-तारंगपुरमंडन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू., (स्वामी तारंगगिरिवर), ७१९१४-२ अजितजिन स्तवन-तारंगागढ, मु. आगम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (साहिबा अजितजिणेसर), ७२८४६-२ अजितसिंहजी महाराज गीत, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (त्रिकुटबंध आचार चिहु), ६८६१६-२०(#) अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ४३, गा. ७५८, ग्रं. १०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (वीणापुस्तकधारणी), ६९३०३(#s) अढीद्वीपे अतीतवर्तमानअनागतचौवीसी नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम भरत तीर्थंकर), ७१२९३ अढीद्वीपे ज्योतिष विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (जंबूधीप मै २ चंद्रमा), ७२४९९-१(-2) अतीतअनागतवर्तमानचौवीशीजिन स्तवन, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (पणमी गणहर गोयम पाय), ६९८४२-२(+) अतीतचौवीशीजिन पद, मा.गु., गा. २, पद्य, मूपू., (नित नित अतीत चौवीशी), ७२७८०-१(#) अतीतचौवीसीजिन गीत, मु. मणिचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पहिला प्रणमुकेवलना), ७१२०५(+) अतीतचौवीसीजिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (केवलज्ञानी निर्वाणी), ६९४९३-२(+$) अध्यात्मगीता, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (प्रणमियै विश्वहित), ६९५०२(5) (२) अध्यात्मगीता-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रणमियै कहतां अहो), ६९५०२(६) अध्यात्मगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ९, गा. २४२, ग्रं. ३३०, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (इष्टदेव प्रणमी करी), ६८४८५(2) अध्यात्मबत्तीसी, मु. बालचंद मुनि, पुहि., गा. ३३, वि. १६८५, पद्य, स्था., (अजर अमर पद परमेसर), ७०१५१(६) अनंतजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (धार तलवारनी सोहली), ७०४७४-२ For Private and Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५४७ अनंतजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (तारक तुं त्रिण्य), ६८६१६-८(#) अनंतजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अनंतजिनशुंकरो), ६९३५९-११(2) अनागत २४ जिन नाम, पूर्वभव, आयु, देहमान,चक्रि,वासुदेव समय कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ६९७१२-३(+#), ७२३५५-१(+) अनागत चौवीसी जिन आगमन गति विचार, मा.गु., गद्य, मूप., (श्रेणिकरो जीव पेहली), ७२२१५-२ अनागत चौवीसी स्तवन, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (जे भविसंति अणागए), ७२७८०-२(#) अनाथीमुनि चौपाई, मा.गु., गा. ६३, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (सिद्ध सवेनइ करूं), ७०७३८ अनाथीमुनिरास, मु.खेमो ऋषि, मा.गु., ढा. ८, वि. १७३५, पद्य, मूपू., (वंदियै वीर जिणेसर), ७०९७८($) अनाथीमुनि सज्झाय, मु.खेमकीर्ति, मा.गु., गा. ६८, वि. १७४३, पद्य, पू., (श्रीअरिहंत सिद्ध), ७१५२५(+) अनाथीमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (मगधाधिप श्रेणिक), ७२०७३(+$) अनाथीमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (संवेगी साधु सोहामणा), ६८९८५-१५(#) अनाथीमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रेणिक रयवाडी चड्यो),७१११४-२ अनुष्ठान विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (खमासमण देई इच्छाकारि), ७१५११-१(+) अबयदी प्रश्न, पुहिं., गद्य, जै.?, (एच्यारि अक्षर पाशे), ७२१७८(#$) । अभव्य सज्झाय, मु. उदय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (उपदेश न लागे अभव्यने), ७१४६३-२ अभिनंदनजिन पद, पुहिं., गा.५, पद्य, मूपू., (अभीनंदन जिनराय चलो), ७१६१२-३ अभिनंदनजिन स्तवन, मु. धीरविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीअभिनंदण पाहुणो),७०९४८-६(#) अभिनंदनजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (दीठी हो प्रभु दीठी), ७११८३-१(#) अमावस्यातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.४, पद्य, मपू., (अमावस्या तो थई उजली),७२६४८-३(2), ७२८१६-७($) अमृतवेल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (चेतन ज्ञान अजुवालीए), ७२६१८-२(+) अरजिन स्तवन, मु. महानंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीअरनाथ आराहिये), ७०९९२-१२(+) अरणिकमुनि रास, मु. आणंद, मा.गु., ढा. ८, वि. १७०२, पद्य, मूपू., (सरसति सामिणि वीनवू), ७०५६६(#$) अरणिकमुनि सज्झाय, आ. कीर्तिसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (--), ६९९६६-७(+$) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. कीर्तिसोम, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (इक दिन अरणक जाम), ६९९७२-५(+) अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १५, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (चंपानगरथी चालिया),७०८५४-२(+),७०७८८-१ अरणिकमुनि सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ७०५६९-५(+), ७१७३७,७१९८२ २(#), ६९३६९-१२(१) अरणिकमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (अरणिक मुनिवर चाल्या), ६८४५९-२४ अरनाथजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुताहरो ताग न), ६८६१६-१५(2) अर्जुनमाली चौढालीयो, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, पद्य, मूपू., (राजगृही नगरी अती), ७२३३०(#$) अर्जुनमाली ढाल, मु. जेमल ऋषि, रा., ढा. ९, गा. ११६, वि. १८२०, पद्य, स्था., (वर्धमान जिनवर नमु), ७२०७६(+$) अर्जुनमालीमुनि चौढालिया, रा., ढा. ६, पद्य, श्वे., (सोदागर मीलीया पछ नयी), ७१९०६, ७०४५०(६) अर्जुनमाली लावणी, श्राव.सुरतराम, पुहि., गा.६, वि. १९३२, पद्य, श्वे., (राजग्रही नगरी के),७२०३९-१(-) अर्जुनमाली सज्झाय, मु. कानजी, मा.गु., गा. १६, वि. १७४३, पद्य, श्वे., (सदगुरु चरण नमी कहू), ७२२२६ अर्जुनमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (अर्जुनमुनि तिण अवसरे), ७१७१२-२ अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीमरुदेवीमातना केश), ६९८२३-२(2) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (आबु अचल रलिआमणो रे), ७१६२०-१(+$) अर्बुदगिरितीर्थ स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (आबुगिरंद सुहामणौ), ७०५७८-३(+) अर्बुदगिरितीर्थस्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (जात्रीडा भाई आबूजीनी), ६९३५६(+), ७०५७८-२(+) अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. १३, गा. १०७, वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर्य सुहस्ति), ७२८६३(+) For Private and Personal Use Only Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (ए संसार असार छ साचो), ६९०६४-३३ अवंतिसुकुमाल सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, स्था., (श्रीगणहर गौतमसामजी), ७०१४८($) अष्टमीतिथि चैत्यवंदन, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (आराधो दिन अष्टमी), ६९१०४-९ अष्टमीतिथि सज्झाय, उपा. देवविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिने चरणे), ६९३७०-४(+#) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (त्रिशलासुत प्रभुवीर), ६९१०४-१२ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कातिविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (वीर जिनवर इम उपदिशे), ७१७३३(+) अष्टमीतिथि स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. २, गा. २४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (हां रे मारे ठाम धर्म), ६९९५९-१(+s), ७२८०९(+),७२२५४ अष्टमीतिथि स्तवन, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रुत देव्या सुगुरु), ६९१०४-११ अष्टमीतिथि स्तुति, आ. जिनसुखसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चोवीसे जिनवर प्रणमुं), ७०७४८-६(+), ७१३०९-३(2) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मंगल आठ करी जिन आगल),७१२०९-२(+#), ७२८४१-२(+), ६९४७४-३, ७२८१६-३, ७१९२४-२(#) अष्टमीतिथि स्तुति, उपा. राजरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमीदिन चंद्रप्रभु), ७२४८७ अष्टमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामंगलं अष्ट सोहै), ६९७२८-४, ७०५५९-३ अष्टापदतीर्थ रक्षा विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (अष्टापद पर्वते सगरचक), ६९८११-३ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (तिरथ अष्टापद नित), ७२६१६-१ अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (अष्टापद अरिहंतजी), ७१६२०-२(+) अष्टापदतीर्थस्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मनडो अष्टापद मोह्यो), ७२६७१-२(+#), ७२२८७-२(5) असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसति माता आदे नमीइ), ६९०६४-४ असन पान खादिम स्वादिम अणाहारी वस्तु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीरु भाक्षप्रवचन), ६९०१४-२०(+) असनादिक कालप्रमाण सज्झाय, मु. वीरविमल, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमुं श्रीगौतम), ७१७९४-२(+#) आगम गहूंली, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आगम अमृत पीजीये बहुश), ७१२०७-२ आगमसारोद्धार, ग. देवचंद्र, मा.गु., वि. १७७६, गद्य, पू., (हिवै भव्यजीवने), ६९३९५(), ७०७४२($) आगम स्तवन, उपा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रुत अतिहि भलो संघ), ६८६२४-१(#) आचार्य ८ संपदा, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ आचार संपदा २ रूपस),७१७०९-५ आत्मनिंदा भावना, मु. ज्ञानसार, रा., गद्य, मूपू., (हे आत्मा हे चेतन ऐ), ६८६६३ आत्मसंयम पद, पुहिं., गा.३, पद्य, मूपू., (मेरा तो मारग केणा का),७२०३९-२(-) आत्महितशिक्षा सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभु संघाते प्रीत), ६९८६४-२, ७२८३५-३ आत्महितशिक्षा सज्झाय, मु. भीमविजय, मा.गु., गा. ६२, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (दोहिलो मुगतीनो घाट), ६८४५९-१९ आत्मावलोकन, श्राव. दीपचंद शाह, अ.भा., गा. १४, गद्य, दि., (दप्पणदसणेण य ससरुवं), ७२२९०(+) (२) आत्मावलोकन-छाया, सं., श्लो. १४, पद्य, दि., (दर्पण दर्शनेन च), ७२२९०(+) (२) आत्मावलोकन-अन्वय, सं., गद्य, दि., (यथा कोपि नरः दर्पण), ७२२९०(+) आदिजिन कलश, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७१४८८(+$) । आदिजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहि., गा. २, पद्य, मूपू., (सब जीआ जीन बोलो २), ७२६०४-२(#) आदिजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (सिंहासण पद्मासन बैठे),७२१६३-१(+#) आदिजिन चैत्यवंदन, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम तिर्थंकर आदि), ७२८२०-१ आदिजिन चैत्यवंदन-चंद्रकेवलिरासउद्धत, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, वि. १८वी, पद्य, म्पू., (अरिहंत नमो भगवंत), ७१३६३-४(+) आदिजिन चौपाई, मु.रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ४७, वि. १८४०, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनै आयरिय), ६८४७२(#) आदिजिन छंद, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (--), ७१९५६-१(#$) For Private and Personal Use Only Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org י कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ "" (अब मोहि तारोगे), ६९१२६-३१ आदिजिन छंद-धुलेवामंडन, आ. गुणसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रमोदरंगकारणी कला), ६९३४०-१३(#) आदिजिन पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (बाबो ऋषिभ बेठे अलबेल), ७१५७२-२(#) आदिजिन पद, मु. आनंदवर्द्धन, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( आदि जिणंद मया करो), ६९१२६-४३ आदिजिन पद, मु. खुशालचंद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू (देखो आदिस्वर स्वाम्म), ६९१२६-३५ आदिजिन पद, मु. गुणविशाल पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू. आदिजिन पद, ग. महिमराज, मा.गु, गा. ३, पद्य, थे. (जाग जगमुगटमणि नाभि), ६९१२६-२८ आदिजिन पद, मूलचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बलीहारी दरीसण तारा), ७०६१२-१(+) आदिजिन पद, पं. रत्नसुंदर, मा.गु., गा. ६, वि. १८६६, पद्य, मूपू., (भेट्या रे नाभीकुमार), ६९१२६-१४ आदिजिन पद, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जयो स्वामी ऋषभ जिणंद), ६९१२६-१० आदिजिन पद, मु. विमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (चालो सखी वंदन जाइये), ६९१२६-१३ " , आदिजिन पद, मु. साधुकीर्ति, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (आज ऋषभ घर आवे देखो), ६९१२६-२३ आदिजिन पद, मु. हर्षचंद, पुहिं, गा. ४, पद्य, मूपू (उगत प्रभात नाम जिनजी), ६९१२६-२९ आदिजिन पद-केशरीयाजीमंडन, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (लाखेणी पूजा जे रचावे), ७२१७१-२(+) आदिजिन पद- केसरीया, मु. मुलचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (केसरिया वाला जो), ७०६१२-२(+) आदिजिन पद- विक्रमपुरमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (ऋषभजिनंद सुखकंद आनंद), ६९१२६-३० आदिजिन बृहत्स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. प्रेमविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमवि सरल जिणंद), ७२४४१-११ (०३) आदिजिन मरुदेवीमाता पद, मु. रूपविजय, पुहिं. गा. ३, पद्य, भूपू (ललाजी तुम्ह ती भले), ६९१२६-२७ आदिजिन रेखता, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुझे है चाव दरसन का), ७२२९४-२(+) आदिजिन लावणी - केसरियाजी, मु. लालदास, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू (सुणीये रे वाता सदा), ६८६६२-३०) आदिजिन लावणी-धुलेवामंडन, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (-), ६८५५६-१(३) + आदिजिन व पार्श्वजिन स्तुति, मु. लब्धिहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आदि अने पार्श्व बे), ७१९०३-३ आदिजिनविनती स्तवन, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., डा. ५, गा. ५७, वि. १६६६, पद्य, मूपु. ( श्रीआदीसर बंदु पाय), ७२६२७ आदिजिन स्तवन आ जिनराजसूरि, मा.गु गा. ५, पद्य, मूपू (मन मधुकर मोही राउ), ६९३७९-६ (*) , , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १(+), ६९९६७-२(६) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, मु. लावण्यसमय, मा.गु, गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, म्पू., (जय पदम जिणेसर), ७२६०२ (४) आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ५७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (आदिश्वरप्रभुने विनंत), ७०६५२ (+#) आदिजिन विवाहलो, मु. प्रेम, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीप्रणमुं आदेसर), ६९३६९-२९(#) , आदिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणेसर प्रीतम ), ६८६२४-४(#) आदिजिन स्तवन, मु. आसकरण, मा.गु. गा. ८. वि. २९वी, पद्य, म्पू, (ऋषभजिणेसर तुमैन ), ६९७५७-२(क) आदिजिन स्तवन, मु. उत्तम, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे. (जिनवर हो जिनवर ऋषभजि), ७००५७-२(१) आदिजिन स्तवन, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू., (मोरा आदिजिन देव दीठे), ७२५७१-१०) आदिजिन स्तवन, मु. किसन, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे. (श्रीऋषभजिणेसर जगत) ७०८७१(*), ७१६७६-२ (म) " " आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (जे जगनायक जगगुरु जी). ७०९४८-४(४) आदिजिन स्तवन, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जयो जगनायक गुरु रे), ७०९९२-७(+) आदिजिन स्तवन, आ. जिनप्रभसूरि फा., श्लो. ११, पद्य, मूपू. (अल्ला ल्लाहि तुराह), ७२६३६ (*) (२) आदिजिन स्तवन - अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (हे पूज्य तवाहं कर्मक), ७२६३६(+#) आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. २, गा. २६, वि. १८वी, पद्य, वे., ( श्रीनाभिकुलगुर), ७११०९ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञान, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ७१४८२-१($) आदिजिन स्तवन, उपा. दानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., ( आदिजिणेसर विनती), ७११५४-१(७) For Private and Personal Use Only ५४९ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ आदिजिन स्तवन, मु. दीपसौभाग्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जय जय आदि जिनंद आज), ६९३६१-२(#) आदिजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (जगचिंतामणि जगगुरु जग),७१६२०-४(+$) आदिजिन स्तवन, मु. फतेकुसल, मा.गु., गा. २०, वि. १८०८, पद्य, मूपू., (सोहै ऋषभजिणेसर नाभि), ७०९५३-१ आदिजिन स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), ७१५७४-१ आदिजिन स्तवन, उपा. मेघविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीजिन जग आधार मरु), ७२६७४-१ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आदीसर जगदीसरू रे), ७२७३८-१ आदिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पीउडा जिनचरणानी सेवा), ६९९५९-४(+$) आदिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा.५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवाल हो), ७०७१९-२, ७२७५९ आदिजिन स्तवन, पंन्या. रविविजय, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (सरस वचन द्यो सरसति),७०७०१-२(+#) आदिजिन स्तवन, मु. लाभसागर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्युन भए हम मोर), ७२६८५-२(+#) आदिजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नाभिनंदन गुण गावता), ७१५८५-३(2) आदिजिन स्तवन, मु. विक्रम, मा.गु., गा. ४, वि. १७२१, पद्य, मूपू., (प्रथम आदिजिनंद वंदत), ६९३७९-४(#) आदिजिन स्तवन, मु. वीर, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (आदिजिनेसर विनती), ७२५८२-२(2) आदिजिन स्तवन, मु. शिवकीर्ति, पुहि., गा.७, पद्य, मूपू., (दरसण द्यो प्रभु ऋषभ),७२४२६-२ आदिजिन स्तवन, उपा. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (विमलगिरि सिखर गजराज), ७२२१८(+#) आदिजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल भवन सिरसेहरो), ७१२०१ आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज उमंग छे रे अधिको), ६९३५९-९(-2) आदिजिन स्तवन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदिपुरष श्रीआदिस जिन), ६९७७४-२(+) आदिजिन स्तवन, आ. हीररत्नसूरि, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (एसा जिन एशा जिन एशा), ७२३७०-३(+#) आदिजिन स्तवन, पुहि., गा. १३, पद्य, मूपू., (अंस बंस का उपना सामी),७१५१६-२(-) आदिजिन स्तवन, मा.गु., गा. २६, पद्य, मपू., (जोगन मांड्यो मै घर),७०६७४(#$) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्यारो लागे आछो लागे), ६९४७४-६($) आदिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर हो सोबनकाय), ७२०४४($) आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जगपसरंत अनंतकंत गुण), ७२७८५(+#) आदिजिन स्तवन-२८ लब्धिगर्भित, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं प्रथम जिनेसर), ७२०५९(s) आदिजिन स्तवन-अष्टापदतीर्थ, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रीअष्टापद ऊपरे जाण), ६९७४८(+) आदिजिन स्तवन-आडंपुरमंडन, मु. गुणसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (जिन जीम जाणे होते), ७१६७३ आदिजिन स्तवन-जन्मबधाई, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आज तो बधाइ राजा नाभि), ६९३६९-१६(#) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित, उपा. विजयतिलक, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (पहिलु पणमिअ देव), ६९४१९-३(+#), ७२३८६(#) (२) आदिजिन स्तवन-देउलामंडन विज्ञप्तिविचारगर्भित-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीविजयतिलक महोपाध), ६९४१९-३(+#) आदिजिन स्तवन-धुलेवामंडन, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतीने सुपसाय), ६९७७४-१(+) आदिजिन स्तवन-राणकपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (राणपुरे रलीयामणो रे), ७२१८९ ३(+s), ७२४४१-१०(१) आदिजिन स्तवन-राणपुरमंडन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (हो प्रिऊडा रांणपुरार), ६९९८४-३ आदिजिन स्तवन-श@जयतीर्थमंडन, मु. तत्त्वविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीसेत्तुंजे तीरथ), ७२५१९-२(+) आदिजिन स्तवन-सम्यक्त्वगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकित द्वार गभारे), ७१५२७ For Private and Personal Use Only Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ आदिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रह उठी वंदु ऋषभदेव), ६९७९३-७(+#), ६९३६१(११(७) आदिजिन स्तुति, मु. रंग, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (आदि जिणंद नमे निरवंद), ६८९८०- १० आदिजिन स्तुति-वीसलपुरमंडन, मु. देवकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विसलपुर वांदु), ७१९१८-१(+) आदिजिन स्तुति - शत्रुंजयतीर्थ, मु. तत्त्वहंस, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू (पहिला पूजो श्रीआदि), ७१९९८-३ (+३) आदिजिन स्तुति-सुधर्मदेवलोकभावगर्भित, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (सुधर्म देवलोक पहिलो), ७११२९-२(+), ६८९८०.६ זי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन हरियाली, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अचंभो उपनो कहो जी), ७२३९१(+$) (२) आदिजिन हरियाली-टवार्थ, मा.गु., गद्य, म्पू, (पुरुष कउ आउखु हवडा), ७२३९१ (+) आदित्यवार कथा, मा.गु, गा. १५७, पद्य, श्वे. (रिसहणाह प्रणमु जिणंद), ६९१४६-१(#), ६९४४५ (६) आध्यात्मिक कवित्त, देवरूप, पुहिं., दोहा. १०, पद्य, वै., (बाजंदा पुठ पठाण), ७०४२०-४(#) आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, पुहिं, गा. ५, पद्य, मूपू., (जब लगे विषय घटा न घट), ६८५०१-२ क आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मृपू., (आस्था औरन की कहा), ७१५३४-२, ७२१८६-२ " आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. पद ५, पद्य, मूपु.. (कंत चतुर दिल जानी), ७२१५७-६ (-) " 1 आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (क्या सोवै उठि जाग), ७१२१६-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ५, पद्य, मूपू., (खेले चतुर्गति चौपर प), ७२१८६-५ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जिया जानै मेरी सफल), ७१५३४-३ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ठगोरी भगोरी लगोरी), ७१७९४-४(+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (निसदीन जोउं थांरी), ७२०६२-१५(+#), ७१५३४-१ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ५. वि. १८वी, पद्य, मूपू., (निसाणी कहा बतावु रे), ७१७९४-५ (+#) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं, गा. ३. वि. १८वी, पद्य, मूपू. (मुदल थोडो रे भाईडा), ७१५३४-४ आध्यात्मिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं. गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मृपू., (मोकुं कोड हंसे हुत), ७२१५७-१०/-) आध्यात्मिक पद, मु. आनंदवन, पुहिं. पद ३, वि. १८वी, पद्य, भूपू (रे घरिवारी बाउ रे मत), ७१२१६-२(६) आध्यात्मिक पद, मु. चिदानंद, पुहिं. गा. ७, पद्य, मूपू. (एसा ज्ञान विचारो), ७२६१२(*) आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (आतम अनुभौ आंबकौ नवलो), ७२१५७-२(-) (बालुडी अबला जोर किश), ७१५८३-२ (#) . " आध्यात्मिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद. ३, पद्य, श्वे., (रहे तुम आज क्युं जीव), ७२१५७-५ (-) आध्यात्मिक पद, मु. भूधर, पुहिं, गा. ४, पद्य, से., (देख्या दुनियां जीचि), ७१३५६-४(*) आध्यात्मिक पद, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (अविनाशीनि सेजडीयें), ६८४५९-४२ आध्यात्मिक पद, पुहिं. गा. ४, पद्य, मूपू., ( आरण अजब बनाया हो), ७२४२१-४ आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद. १, पद्य, जै. ?, (प्राणी मेरो खेलइ), ७२१८६-४ आध्यात्मिक पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (माहरो बालूडो सन्यासी), ७२१८६-३ आध्यात्मिक सज्झाय, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( धरिय उमाहो रस भरी), ७०९६४-३(#) आध्यात्मिक सज्झाय, जै. क. खूब, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सहिज सरूप सुशील), ७१५८२ आध्यात्मिक सज्झाय, मु. दयानंद, मा.गु., गा. २९, पद्य, वे (अणसमज्यां दिलमें), ७२७५२(*) आध्यात्मिक सवैया, श्राव. बनारसीदास, पुहिं., सवै. १, पद्य, दि., (उदै भयो भानि कोउ पंथ), ७२२५०-१(+) आध्यात्मिक होरी, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद. ४, पद्य, श्वे., (आज रंग भीनी होरी आई), ७२१५७-१(-) आनंदघन पद संग्रह, मु. आनंदघन, पुहिं. पद. १०८, पद्य, मूपू., (क्या सोवे उठ जाग), ६८५०१-१ (४) " आनंदश्रावक ढाल, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, वि. १८२९, पद्य, श्वे., (अनरी जात अनेक छै), ७२१३६ आनंदश्रावक संघ, मु. श्रीसार, मा.गु., डा. १५, गा. २५२, वि. १६८४, पद्य, मूपू. (वर्द्धमानजिनवर चरण), ६९०५६(+) For Private and Personal Use Only ५५१ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५५२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ आयंबिलत सज्झाय, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १७३, पद्य, मूपू., (समरी श्रुतदेवी सारदा) ७०१७६-२(क) आराधना, मु. हंस, मा.गु., गा. ९६, पद्य, मूपू., (पहिलउ नमस्कार अरिहंत), ७२३३४(#$) आर्द्रकुमार चौपाई, मु. मानसागर, मा.गु., ढा. ३, गा. २६, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (संतिकरण संतीसरु), ६८५४८-१, ६९७३९(#) आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०१, ग्रं. ४५१, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर जेहना ), ६९१४७ आर्द्रकुमार सज्झाय, क. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू (प्रीउडा प्रीतडली इम), ६८९८५-१(क) आलोचना विचार, मा.गु., गा. २७, पद्य, ओ., (सिद्ध श्रीपरमातमा), ६९०६६-२ (*) आलोयणा के ५० बोल, मा.गु., गद्य, श्वे., (कंदर्पनो पीड्यो दोष), ७१०३०-२(#) , आलोयणाछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, वि. १६९८, पद्य, भूपू (पाप आलोय आपणां सिद), ७११९१-१ (३) आलोयणा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., ( नमो अरिहंताणं ३), ७१३५१(#$), ७१३५३(#) आश्रवसंवरद्वार छंद, मा.गु., पद्य, वे (--) ७०६९९(5) . आषाढभूति पंचढालिया सम्यक्त्वविषये, रा. डा. ५, गा. ११६, पद्य, ओ., (आषाढभूतनी वारता कहु), ६८४७५-२(५०) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मा.गु, ढा. १६ गा. २१८, ग्रं. ३५१, वि. १७२४, पद्य, भूपू (सकल ऋद्धि समृद्धिकर). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६९०१५, ७०५५१ (#S) आषाढाभूतिमुनि पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (दरसण परिसोह बावीसमो), ७१८१५-४($) आहारदोष विचार, मा.गु., गद्य, श्वे. (ते आहार केहवो पोते), ७२२७५-२ "" इरियावही सज्झाव, मु. मेघचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपु. ( नारी रे मी दीठी एक), ७२८१३-३(+) इलाचीकुमार कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७१०७८-१($) इलाचीकुमार चौपाई भावविषये, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., डा. १६, गा. १८७, ग्रं. २९९ वि. १७१९, पद्य, मृपू (सकल सिद्धदायक सदा), ६९०२५(२) ७१०७६(5) " इलाचीकुमार छडालि, मु. माल, मा.गु., डा. ६, वि. १८५५, पद्य, स्था., (मात मया करो सरस्वती), ६९३४६ (४) इलाचीकुमार रास, मा.गु, गा. ३३, पद्य, भूपू (धनवंत सेठनो बेटडो), ७२०८३ इलाचीकुमार सज्झाय, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (नामे एलापुत्र जाणीए), ६९३६९-३(#) इलाचीकुमार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., ( नाम इलापुत्र जाणीए), ६९९६८-६ (+), ७०५६९-६(+), ६९३४२२(#) 1 इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू (नाम इलापुत्र जाणीये), ६९०६४-३५ ६९१२२-४नक उदयविमलसोमसूरिगुरुगुण गहुंली, मु. रंगसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू (सरस्वति मात संभारि ७२४०३-३ उदयस्वामित्व यंत्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी दर्शनावरण), ६९१४३ उदाईराजा चौडालियो, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., ढा. ४, पद्य, स्था., (चंपानगरी पधारीया), ७२१०६ उपदेशक बारमास सज्झाय, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (जीव सवे ते आतमा धरम), ७२५३० (+#) उपदेशछत्रीसी, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सकल सरूप यामें), ७१४९८(#$) י: उपदेशछत्रीसी, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु, गा. ३६, वि. १८६६, पद्य, स्था. (सबद करी सतगुरु समझाव), ७२००४(*), ७१४५६ , "" उपदेशपच्चीसी, मु. रतनचंद, रा., गा. २७, वि. १८७८, पद्य, श्वे., (निठ निठ नर भवे लहो), ७०८३२ उपदेशबत्तीसी, मु. राज, पुहिं. गा. ३०, पद्य, मूपु. ( आतमराम सवाने तें), ७२३५१(+), ७२८२४/-) " उपशमश्रेणि रचना यंत्र, मा.गु., यं., श्वे., (संज्वलन लोभः), ७२२८२-२(+) उपशमादिभावना प्रभेद, मा.गु., को.. भूपू (उपसम भावना २ भेद), ७२५५२-३(क ऋतु नाम, मा.गु., गद्य, श्वे. (चैत्र वैशाख वसंत जेठ), ७२६०९.२ (४) " ऋषभदत्तदेवानंदा सज्झाय, मु. रतनचंद, पुहिं., गा. १४, पद्य, श्वे., ( रिषभादतन देवानंदा), ७१९६७-२ ( ) ऋषिदत्तासती चौपाई, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., ढा. ५७, वि. १८६४, पद्य, श्वे., (सासणनायक सिमरतां), ६८४७८(#) एकादशी तिथि चैत्यवंदन, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू. (पशु अनुकंपा करी), ६९१०४-१३ एकादशीतिथि सज्झाय, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (तिथि एकादशी मगसर सुद), ६९१०४-१६ For Private and Personal Use Only Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ एकादशीतिथि स्तवन, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (एकादसी तप किजीये), ७०६१२-५(+) एकादशी तिथि स्तवन, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. २४, वि. १९५८, पद्य, मुपू. (प्रणमुं पद युग जेहना ), ६९१०४-१५ एकादशी तिथि स्तुति, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (हरी प्रश्न जिननेम), ६९१०४-१४ ओसवंशगच्छाधिपति सज्झाय, रा. गा. ७, पद्य, म्पू, (मारी अरज सुणीजे हो), ६९८२५ 1 3 יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओसियामाता छंद. मु. हेम, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (देवी सेवी कोड कल्याण), ७२२६८-८(+) औपदेशिक अनुभव चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७१५५३ ($) " " औपदेशिक कथा, पुहिं., गद्य, जी., वै., बी., (कृपण मरतो कोइ लच्छी), ७०९१५-२(५) औपदेशिक कवित-धडाबद्ध, पिंगल, मा.गु., का. १, पद्य, वै., (वंश त्रिण वाजिंत्र), ७२६९२-३ औपदेशिक कवित्त, क. जयकृष्ण, पुहिं. गा. ६, पद्य, वै.. (पूत कपूत बुरी करतूत), ७२६६३-२ औपदेशिक कवित्त, पुहिं. गा. १, पद्य, वे (रावण राज करे त्रि), ६८६२००५(४) ७२७२२-२(M) औपदेशिक कवित्त संग्रह, पुहिं., पद. ४, पद्य, वै., (ग्यान घटै नरमूढ की), ७२२५०-७(+) औपदेशिक कुंडलिया, क. गिरधर, मा.गु., गा. २१, पद्य, वै., (हंसा तो सरवर गया), ६८६२०-१(७) औपदेशिक गाथा, मु. केसवदास, मा.गु., पद्य, श्वे., (कामनी कंत चलो परदेस), ६९८८२-२ ($) औपदेशिक गाथा संग्रह में पुहिं. मा.गु., पद्य, खे, (अजो कृष्ण अवतार कंस), ६९४३९-२, ७१९३८-३, ६८६१३-४(१), ७१३५६ " (#5) औपदेशिक गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जीवडा जाणे जिनधरम), ७१६७२-४(#) औपदेशिक चौपाई - काम क्रोध लोभादि परिहार, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६८५७९-१(+#$) औपदेशिक छंद, पंडित. लक्ष्मीकल्लोल, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भगवति भारति चरण), ७२३५९-१(#), ७१६४०-१ ($) औपदेशिक दूहा, पुहिं., दोहा. ८, पद्य, श्वे. (प्यावैथा जब पीया नही), ७१०२८-४ " औपदेशिक दूहा, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., (सहुन ऐसा कीजीये), ७०९०७-२ औपदेशिक दूहा संग्रह, ऋ. रूपचंद, पुहिं., गा. १००, पद्य, मूपू., (अपनौ पद न विचारहु), ७२१८६-१ औपदेशिक दोहा, पुहिं, दोहा १, पद्य, वै., (सिद्ध कसिवै कुं काल), ७१३०६-२(१), ७१५७२-५ () औपदेशिक दोहा संग्रह, पुहिं. दोहा ४६, पद्य, वै., (चोपड खेले चतुर नर), ६९६१९-२(*), ७२२५०-५(*), ६९३४९-४(१), " " , ७००४४-२(४), ७१२५३-५(१), ६९३५५-९(१), ६९६१६-२ (-), ७१५१६-३) औपदेशिक दोहा संग्रह - दानोपरि, पुहिं. दोहा २, पद्य, श्वे. (नटीसी नटणी भई), ७२०६८- २(१) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (करि करिने शुभ काम), ६८५३०-१० (+#) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, भूपू., (तजी तजीने खरु तत्त्व), ६८५३०-१२ (+) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (धरि धरिनें निज धर्म), ६८५३०-११(+) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नथी नथी कोईनो नेह), ६८५३०-७(+#) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (भणी भणीने मत भूल रे), ६८५३०-६(+) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (भुंडा धरी धरी भेख रे), ६८५३०-१५(+#) औपदेशिक पद, मु, अमृतविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूषू, (मननो माय मरे पोते), ६८५३०-१ (+४) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, पुहिं., मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मानु में वाकुं मुनी), ६८५३०-३(+#) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, भूपू (मुंडे भुंडाने मुंडे), ६८५३०-१६ (+) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, पुहिं., मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (विषय तें जोहे बच्चो), ६८५३०-४(१०) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वेगलो छे वेराग रे), ६८५३०-१९(+#) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, भूपू (साचा समरथो तेओ ज), ६८५३०-१४००) औपदेशिक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (साधु ते तो साचो रे), ६८५३०-१८(+#) औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ए जिनके पइया लाग रे), ६९१२६-९ औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जग आशा जंजीर की गति), ७२१८६-६ 13 ७ For Private and Personal Use Only ५५३ Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५४ www.kobatirth.org औपदेशिक पद, मु. आनंदघन, पुहिं., पद. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रे धरिया रे बाउरे), ७२५५५-५ (#) औपदेशिक पद, मु. आनंदराम, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (छोटीसी जान जरासा), ७२४१९-३(#) औपदेशिक पद, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रिय बोली जाणे नही), ७११२१-३ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं. दोहा ९, पद्य, वै., (कर गुजरान गरीबी में). ७०१९१-५ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं. पद. ३, पद्य, वै., (रे जीव काहेकुं माया), ७२१८६-७ " " , भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक पद, कबीर, पुहिं., दोहा, ६, पद्य, वै.. (हटडी कूं छोड़ चला), ७१४६४-३(*) औपदेशिक पद, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., पद. ३, पद्य, मूपू., (सद्गुरुने पकरी बाह), ७२१५७-३) औपदेशिक पद, क. गद, पुहिं., गा. १, पद्य, श्वे., ( गई मान मरजाद गई लोड), ७१४७२-१ औपदेशिक पद, मु. जयराम, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे., ( असरण सरण चरण कमल), ७२२९४-६(+), ७१३१२-४(#) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., गा. ४, पद्य, खे, (जगत में कोण किस को), ७२१५७-४) औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसार, पुहिं., पद. ५, पद्य, थे. (तेरौ दाव बन्यौ है), ७२१५७-८ " औपदेशिक पद, मु. दिलहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८३२, पद्य, श्वे. (मनधर सारद मातजी वली), ७१९३७-१, ६८६२०-३(#) " औपदेशिक पद, मु. धर्मसी, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे. (कागसी कोकल स्याम), ७१४७२-६ औपदेशिक पद, नानक, पुहिं., दोहा. ५, पद्य, वै., (जगत में झूठी देखी), ७१४६४-२(+) औपदेशिक पद, मु. माणेक मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (समज जा गुमानि जो दिल), ७२६०४-१(७) औपदेशिक पद, उपा. यशोविजयजी गणि पुहिं. गा. १०, पद्य, मूपु (परम गुरु जैन कहो), ७२२६१-१ 1 " औपदेशिक पद, मु. राजसमुद्र, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपू. (निके नाथने कबहुन), ७२१५७-७/-) औपदेशिक पद, मु. रामरतन शिष्य, पुहिं, गा. ४, पद्य, श्वे. (लारे लागो रे यो पाप), ६९३४९-१(७) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम गरीबन के नीवाज), ७२५५५-१(#) औपदेशिक पद, मु. रूपचंद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (पाणी के कोट पवन के), ७१९०९-५ औपदेशिक पद, मु. लावण्यसमय, पुहिं. गा. १, पद्य, मूपू (न मलि मीडालमसौ ससौ, ७१४७२-३ औपदेशिक पद, हरिचरणदास, पुहिं., पद. २, पद्य, वै., (कवण शायरपिं वडुं कवण), ७१४७२-४ औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ५, पद्य, श्वे. (जाग ५ दल मेरा रे जिन), ७२१६३-५ (क) औपदेशिक पद, पुहिं, गा. ३, पद्य, श्वे. (जागि जागि रेन गइ भोर), ७२१६३-३ (*#) औपदेशिक पद, पुहिं. गा. ३, पद्य, मूपु (प्रभु नाम की उपवी), ६९५३२-३ औपदेशिक पद, पुहिं, दोहा ६, पद्य, वै., (मन राम सुमर सुख), ७९४६४-५ (*) " "" " १. औपदेशिक पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, वे., (बटाउडा गुजर गई सारी), ६९३८०-५) " औपदेशिक पद, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (वेरण जीभडी मार्ग नही), ७१८१५-३ औपदेशिक पद, मा.गु, गा. ८, पद्य, वे. (श्रीअह रीत सुमाडो), ६९३६९-८ (#) " औपदेशिक पद - कपटविचार परिहार, कबीर, पुहिं., दोहा. ४, पद्य, वै., ( थारा गट माहे नारी), ७०१९१-६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक पद-कायोपरि, पुहिं. गा. ४, पद्य, भूपू (काया मांजत कुन गुना), ७१५७२-४(४) 1 " औपदेशिक पद- जीवकाया, कबीर, पुहिं. दोहा. ४, पद्य, वै., (वेलु की भीत तन का) ७०१९१-९ औपदेशिक पद - जैन दशा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परमगुरू जैन कहो केम), ७११९३ औपदेशिक पद- निद्रात्याग, मु. कनकनिधान, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (निंदरडी वेरण हुई), ६८४५९-१० औपदेशिक पद - परनारी त्याग, मु. धरमसी, मा.गु., गा. १, पद्य, श्वे., (परनारी परहरे), ७२२९८-४(#) औपदेशिक पद - पुण्योपरि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड मत कर रे), ६८६२४-२(#) औपदेशिक पद मनचंचल परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, म्पू, (जानिये सुध सती तबगुण), ६८५३०-२ (५०) - औपदेशिक पद- मिथ्याभिमान परिहार, कबीर, पुहिं. दोहा ५, पद्य, वै., (तेरा तन का तनक भरोसा) ७०१९१-८ " औपदेशिक पद-मोह, मा.गु., गा. ३, पद्य, वे (सउडिस पहिली ओढण चौर, ७०९८५-२(+) " औपदेशिक पद - युवावस्था, मु. रतनचंद, रा. गा. ६, पद्य, वे., (जोबनीयारी मोजा फोजा), ६९३८०-८(+) , For Private and Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ औपदेशिक पद-वृद्धावस्था, क. आसो, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (बालपणो तोरे रामत मे), ६९३४२-३(#) औपदेशिक पद-स्त्रीत्याग विषये, मु. शंभुनाथ, मा.गु., गा. ३, पद्य, ओ., (तिरिया को संग निवारो) ७०८५३-३(+) औपदेशिक बोल, उपा. भद्रसार, रा., गद्य, मूपू., (१ इष्टदेव ऊपरी मन ), ६९९७९-२(+$) औपदेशिक बोल, मा.गु, गद्य, म्पू., (जीवदयाने विशे रमवु), ७१५३८-२ औपदेशिक भास, कीकु, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( वणजारा रे उभउ रही), ७२८०३-१ औपदेशिक रास, मा.गु., पद्य, श्वे., (अढीदीपमाहे पछै), ७०६६०(+$) औपदेशिक रेखता, जादुराय, पुहिं., गा. ५, पद्य, श्वे. (खलक इक रेणका सुपना), ७२२९४-१(*) (खबर नही आ जगमे पल), ७०३०७-१ ($) (वडे सजन बहिमान वगा), ७२७२८-३(१) (गइ सब तेरी शील समता), ६८६२२-३(+४) औपदेशिक लावणी, अखेमल, पुहिं., गा. ११, पद्य, श्वे. औपदेशिक लावणी, अलाबगस, पुहिं, गा. ४, पद्य, वे., औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, पद्य, म्पू. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं, गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (तुम भजो निरंजन नाम), ७१५१५- १(क) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ५, पद्य, म्पू, (बल जावो रे मुसाफर), ७२००७ " औपदेशिक सज्झाय, मु. नथमल रा. गा. १५, पद्य, वे (सुणो नरनारी वाता मत) ७०१६९-२ (+) "" "" 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (लाभ नहि लियो जिणंद), ७१६७६-५ (#) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू (--), ६८६२२-१(*७) औपदेशिक लावणी- आत्मोपरि, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( मरणमय कूप को न जाने), ६८६२२-२ (+$) औपदेशिक व्याख्यान, मा.गु., गद्य, श्वे., (णमो अरिहंताणं० णमो ), ७२१४६-१($) औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ११, पच, मूपू., (हुं तो प्रणमुं सदगुर), ६९०६४-२५, ७११५३-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चतुर तुं चाख मुज हित ), ७१३१२-२ (#) औपदेशिक सज्झाय, मु. केसराज, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आपणपो संभालीयइ रे), ७०९९२-६(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (जाग रे सुग्यानी जीव), ७२४२३-१ औपदेशिक सज्झाय, जिनदास, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (तने संसारी सुख किम), ६९०६४-१७ औपदेशिक सज्झाय, मु. दयाशील, मा.गु. गा. ११, पद्य, म्पू. (नाहलो न मांने रे), ६८४५९-४१ औपदेशिक सज्झाय, पं. धर्मसिंह पाठक, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (करयो मती अहंकार तन), ७१३५८-२, ७२६७७(#), ७२६३८ २ ($) औपदेशिक सज्झाय, ग. प्रेमविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जोय जतन करी जीवडा,), ७२५३१-३(+) औपदेशिक सज्झाय, मु. भाण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू (मारग वहे रे उतावलो), ६९८०५-६ औपदेशिक सज्झाय, महम्मद, मा.गु., गा. १८, पद्य, (भूलो मन भमरा कांइ), ६९१२२-२(#) ७ औपदेशिक सज्झाय, उपा यशोविजयजी गणि, मा.गु. गा. ४१, पद्य, म्पू, (चढ्या पयानो अंतर), ६९४२९-१(*) . औपदेशिक सज्झाय, मु. रामदास, मा.गु., दोहा १५, पद्य, वे. (मनवा रे चरण कमल लव), ७१४६९-१ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अणसमजुजी सीखामण वीजे), ६९८८३-३ औपदेशिक सज्झाय, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, थे. (मारुं मारूं मिथ्या), ७१८२८-२ , औपदेशिक सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जोय यतन करी जीवडा), ७१५०५-२ (+) औपदेशिक सज्झाय, मु. लालचंद, रा., गा. १२, पद्य, स्था., (हां रे भाई नरक निगोद), ७०९८१-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (सुधो धर्म मक्सि विनय), ७२६१५-२शक औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मा.गु., गा. २५, पद्य, भूपू (मंगल करण नमीजे चरण), ७१७५१-१ (+), ७१९१६ (MS) औपदेशिक सज्झाय, मु. सयण, मा.गु, गा. १६, पद्य, मूपू (सरसत सांमण नित), ७२०६८-१(३) " "" पदेशिक सज्झाच, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धोबीडा तुं धोजे मननु), ६९८०५-५ औपदेशिक सज्झाय, मु. हीरालाल, रा., गा. ५, वि. १९३६, पद्य, श्वे., (गुराजीने ग्यान दियो), ६९३४९-२(#) औपदेशिक सज्झाय, रा., गा. २४, पद्य, मूपू., (कडवा बोल्यां अनरथ), ७२०७९(#) For Private and Personal Use Only ५५५ Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (काया नारी निज सीलें), ७११८८-२(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, श्वे., (केवल जन राम हरि रे), ७०१०२-३(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (चोखे चीत तप करो दया),७१४१७-२($) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (च्यार पहर को दिन), ७२२६५-२(८) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., पद्य, मूपू., (पोह सम उजत भावसु), ७१५२०-६(+-#$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (बैठे साधु साध्वी), ७०९६५-१ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (विषिया लालच रस तणो),७०१०२-१(+$) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सतगुरु मानो जी सीख),७१४६७(#) औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सुखकर हितकारी रे सुण), ६८४५९-३३ औपदेशिक सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (सुगुणां केरी प्रीतडी), ७२४७०-२(#$) औपदेशिक सज्झाय, पुहिं., गा.७, पद्य, मूपू., (सोदा लीया माल देखीया), ७२०१२-२ औपदेशिक सज्झाय-आत्मपरिग्रह, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मपू., (द्वोरांरांद्वोरिहे), ६९६६०-१(+#) औपदेशिक सज्झाय-आत्मप्रतिबोध, मु. नित्यलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (मायाने वश खोटं बोले), ६८४५९-२९, ६९८२३ औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ८, पद्य, श्वे., (आउखु तुट्याने सांधो), ६८६२२-४(+), ७०१९१-१५ औपदेशिक सज्झाय-आयुष्य, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (आऊखौ तुटै नै सांधो), ७०८२७-१, ६९१२२-३(#) औपदेशिक सज्झाय-कर्मोदये सुखदुख विषये, मु. ज्ञान, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुख दुख सरज्या पामीय), ६९९६८-७(+) औपदेशिक सज्झाय-कायदृष्टांत गर्भित, मु. रतनचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (तेरी फुल सी देह पलक), ६९०६४-२९ औपदेशिक सज्झाय-काया, मु. जीवतिलक, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (काया रेवाडी कारमी), ६८४५९-३२ औपदेशिक सज्झाय-काया, मा.गु., गा. ३६, पद्य, श्वे., (म म करो काया माया), ७२४९८ औपदेशिक सज्झाय-कायाजीवशिखामण, मु. जयसोम, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (कामनी कहे निज कंतने), ७२६८४(+#), ७११७७-१ औपदेशिक सज्झाय-कायाविषे, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भुलो मनभमरा काई भम्य), ६९३४२-५(2) औपदेशिक सज्झाय-कायोपरि, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर पाटण मोकलौ), ६८४५९-३६, ६९८७२-२ औपदेशिक सज्झाय-काल महिमा, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (इण कालरो भरोसो भाई),७०१९१-३ औपदेशिक सज्झाय-क्रोधपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कडवां फल छे क्रोधनां), ६८४५९-४, ७२१४७-१ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज्यो आपणी), ६८४५९-३, ६८६१८, ६९३५१ २(#s), ७१११२(#) औपदेशिक सज्झाय-घृत विषये, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (भवियण भाव घणो धरी), ७०५५७-२(+) औपदेशिक सज्झाय-जीवोपरि, अखेराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (ओ भवरत्न चीतोमण सरखो), ७०९८१-१ औपदेशिक सज्झाय-जैनधर्मपालन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (हाथी परखै घोडा परखै), ७१८१५-१ औपदेशिक सज्झाय-तमाकुत्याग, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवे), ६८९८५-११(२) औपदेशिक सज्झाय-तमाकू परिहार, ग. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रीतम सेती वीनवइ),७२५१३(#) औपदेशिक सज्झाय-दयासम्मत, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (--), ७०५२३(+$) औपदेशिक सज्झाय-दानफल, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १४, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (एक घर घोडा हाथीया जी), ६९९६६ २(+), ६९३६१-६(#$), ७१६७२-१(#), ७२६७९-२(#) औपदेशिक सज्झाय-दान शील तप भावना, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (मानो पिया मोरी बात), ६८६२४-३(2) औपदेशिक सज्झाय- दुराचार परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लालचि ललनाना लाखो), ६८५३०-२०(+#) औपदेशिक सज्झाय-धर्मफल, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (दया रणशींगो वाजीओ रे), ७०८५३-२(+) औपदेशिक सज्झाय-नरभव दुर्लभता, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चेतन चेतो चितहिं), ६८९८५-८(#) For Private and Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५५७ औपदेशिक सज्झाय-नारी, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे., (मुरख के मन भावे नही), ६९०६४-१४ औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुण छे पुरा रे), ६९९६६-१(+$) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्याग विषये, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (निंदा म करजो कोईनी), ७२४१९-८(2) औपदेशिक सज्झाय-निंदात्यागविषये, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (म कर हो जीव परतांत), ६९९६६-६(+$), ६९९६८-१(+s), ७२०६२-१(+#), ७२२३२-३(4) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पसु परे पासमांते), ६८५३०-२१(+#) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. कर्मचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (सुण सुण कंता रे सीख), ७२७६७-१(+) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, ग. कुमुदचंद्र, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंतारे सिख), ७०५३८-२(#$) औपदेशिक सज्झाय- परनारी परिहार, ऋ. जेतसी, मा.गु., वि. १८७३, पद्य, मूपू., (--), ७०१९१-१(६) औपदेशिक सज्झाय-परनारी परिहार, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जीव वारु छु मोरा), ६९८७२-५ औपदेशिक सज्झाय-परस्त्री त्याग, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (नर चतुर सुजाण परनारी), ६९५३३-४(#) औपदेशिक सज्झाय-बुढापा, मु. सुखानंद, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेर सीर पर आया केस), ७०८५४-१(+) औपदेशिक सज्झाय-ब्रह्मचर्य, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (अजपा जपइ शून्यमनि),७०९८५-३(+) औपदेशिक सज्झाय-मनस्थिरीकरण, मु. आनंदघन, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्यां करुं मन स्थिर), ६९०६४-४० औपदेशिक सज्झाय-मानपरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (रे जीव मान न कीजीए), ६८४५९-५, ७२१४७-२ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समकितनुं मुल जाणीये), ६८४५९-६, ७२१४७-३ औपदेशिक सज्झाय-मायापरिहार, महमद, मा.गु., गा. ११, पद्य, जै.?, (भूलो ज्ञान भमरा काई), ६९३८०-४(+), ७२६७१-६(#), ६८४५९-१८ औपदेशिक सज्झाय-मिथ्या प्रदर्शन परिहार, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रगट्या बहु पाखंड), ६८५३०-१७(+#) औपदेशिक सज्झाय-मोहमाया परिहार, मु. हीरालाल, पुहिं., गा.७, पद्य, श्वे., (मुजी की पुजी रहत धरी), ७०८२५-३ औपदेशिक सज्झाय-योगी, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (जोगी ते जोगनी जुगत न), ७१८१५-२ औपदेशिक सज्झाय- रागद्वेष परिहार, भर्तृहरि, पुहि., दोहा. ६, पद्य, वै., (ऊँचा मिंदर धवलसकेरा), ७०१९१-१० औपदेशिक सज्झाय-लोभपरिहार, मु. उदयरत्न कवि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (तमे लक्षण जो जो लोभ), ६८४५९-८,७२१४७ ४,७१४६३-१(६) औपदेशिक सज्झाय-लोभ परिहार, पं. दोलतरुचि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वाणिया का जीवने जप), ६८५३०-२२(+#) औपदेशिक सज्झाय-लोभोपरि, पंडित. भावसागर, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (लोभ न करीये प्राणीया), ६८४५९-७ औपदेशिक सज्झाय-वाणिया, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वाणीओ वणज करे छे रे), ७१६८०-२ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. गुलालविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सीहगुरु प्रणमी पाय), ७२६३८-१ औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. ३५, पद्य, स्था., (मोह मिथ्यात की नींद), ७०८७०-१(+),७११८८-१(2) औपदेशिक सज्झाय-वैराग्य, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (आप अजावालजो आतमा एनो), ६८९८५-७(#) औपदेशिक सज्झाय- वैराग्य, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ७, पद्य, श्वे., (अरे मुजी अरे मुजी), ७०८२५-२ औपदेशिक सज्झाय- व्यसन विकार परिहार, मा.गु., पद्य, मूपू., (हणीया होक्का पीवता), ६८५१६-२($) औपदेशिक सज्झाय-शिष्य, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (गुरू का कह्या मान ले), ७२१९२-२ ।। औपदेशिक सज्झाय-शील विषये, मु. कर्मचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (एक अनोपम सीखामण खरी), ७२७६७-२(+) औपदेशिक सज्झाय-शीलविषये स्त्रीशिखामण, मु. उदयरत्न, मा.गु.,गा.१०, पद्य, मपू., (एक अनोपम शिखामण कही), ७०५३८-१(#), ७१७०७($) औपदेशिक सज्झाय-शोक परिहार, मु. गुणसागर, रा., गा. २६, पद्य, मूपू., (सोकीतणौ दुख अती घणौ), ७०८४६ औपदेशिक सज्झाय-श्रावक के १४ नियम, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भक्ति रूप जे भगवति), ६९१०४-१८ औपदेशिक सज्झाय-सप्तव्यसन परिहार, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जिनवाणी कादंबिनी), ६९१०४-१७ For Private and Personal Use Only Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५८ www.kobatirth.org भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ औपदेशिक सज्झाय- स्वार्थ विषये, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सैं मुख जिनवर उपदिसै), ७२४१९-९(#) औपदेशिक सवैया, मु. गंग, पुहिं., सबै १, पद्य, वे. (कहा काभर को खेत काहा), ६९५३३- ३(क) " "" " औपदेशिक सवैया, मु. गुलाल, पुहिं., गा. १, पद्य, मूपू., ( विद्याकृतम दान कर), ७२५६३-२(+) औपदेशिक सवैया, मु. गोकल, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (आचार विचार अनोपम), ७०७०९-३ औपदेशिक सवैया, मु. जसराज, मा.गु., गा. ६, पद्य, मृपू. (तन की तृष्णा सह लहे), ७२६४६-२ (३) औपदेशिक सवैया, मु. धर्मसी, पुहिं सबै ५, पद्य, मूपू (धंधाही में नित्य धावत), ७२५३८-२ औपदेशिक सवैया, भोज कवि, पुहिं., दोहा. २२, पद्य, जै., वै.?, (इगलक्ख तीससहस्सा), ७१४७२-५ औपदेशिक सवैया, मु. संग्रामदास, रा. गा. १, पद्य, से. (कहे दास संग्राम काम), ७०७६८-४(#) औपदेशिक सवैया, क. सुंदरदास, पुहिं. गा. ४, पद्य, जै.? (वार एक तार घर सांइ), ७२४९७-२ . " " 1 औपदेशिक सवैया, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (तेरे नेनकमल में), ७२६४९-२(#) औपदेशिक सवैया संग्रह *, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, पुहिं., मा.गु., पद्य, जे. वै. 2, (पांडव पांचेही सूरहरि, ७१७०२-२(०) औपदेशिक सवैया संग्रह *, पुहिं., गा. १७, पद्य, श्वे. (हां रे राजा वीर भार), ७०१५३-२(+) औपदेशिक स्तुति, आ. भावप्रभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (उठी सवेरे सामायिक), ७२१०४-१ औपदेशिक हमची-जीवहितशिक्षा, मु. वर्धमान, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसती सामिण पाये नमी), ७२४५७(#) औपदेशिक हरियाली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (कहेयो रे पंडित ते), ७१५२१(#) (२) औपदेशिक हरियाली - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., ( दिसे जाणिदं ते चेतना), ७१५२१(#) औषध संग्रह, मा.गु., गद्य, वै., (--), ७०७६६-१, ७१२८७-२, ७२३५८-३, ७१६३०-५(#) " कंसकृष्ण विवरण लावणी, मु. विनयचंद ऋषि, पुहिं., डा. २७ गा. ४३, पद्य, ओ., (गाफल मत रहे रे मेरी), ७१५८६) कडवाछत्रीसी, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ४३, वि. १८६०, पद्य, श्वे. (सूत्र न्याय परूपणा), ७१५७९(+$) कपिसैन्यमान गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, वै., (रावण ऊपर राम कटक), ६९९१३-२(४) " " कमलावतीसती सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, पुहिं., गा. २९, पद्य, श्वे., (महिला में बेठी राणी), ७२३९६ (#), ७१५६०-३(#$) कमलावतीसती सज्झाय, मु. सुगुणनिधान, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू, (कहे राणी कमलावती), ६८६६४-२(१), ६८५५५-२, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२००८-२ (#) करकंडुमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपानगरी अतिभली हु), ६८७५७-३, ७२७७६-२ करणसित्तरी ७० भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (४ पींडविशुद्ध ५ सुमत), ७१७०९-३ कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु.. गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू (कर्म थकी छूटे नही), ७२२९९ "" कर्मप्रश्नोत्तर बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव समय समय प्रतै कर), ६९०१४-६४(+) कर्मबंध भेद, मा.गु., गद्य, भूपू (१ मिथ्यात्व २ अविरत), ७२५५२-२ (०) יי कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव तीर्थंकर), ६९३४०-१२(#), ७२७५५-२(#) कर्मविपाकफल सज्झाय, पं. कुशलचंद, पुहिं., गा. ३५, पद्य, श्वे., (सुत्र गीनाण मे कह्यो), ७१६०१(+) कर्मोदयफल सज्झाय, मा.गु गा. ५१, पद्य, मूपू (बेठी बारा परषदा) ७०८७२ (१) , कलावतीसती सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नगरी कोसंबीनो राजा), ७२०९४(#) कलियुग सज्झाय, मु. प्रीतिविमल, पुहिं गा १२, पद्य, भूपू., (वारो कूडो कलियुग), ७२५४५-१(०) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (तारक धर्म जिनेश्वर), ७१९८२-३(#) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू. (मार्ग चलता भुंडो), ७१९८२-४(१) कलियुग सज्झाय, मु. रामचंद, रा., गा. १०, पद्य, मूपू., ( हलाहल कलजुग चल आयो), ६९०६४-३२ कवित्त संग्रह, क. गद्द, मा.गु., गा. १२, पद्य, जै. ?, (पंडित वस्यौ कुं वास), ६८६१६-२१(#), ७१२५३-२(#) कवित्त संग्रह- गूढार्थगभिंत, ग. ज्ञानकुशल, पुहिं. का. १, पद्य, मूपू., (चरण उभय कर दोअ आठ), ७१७०२-३(०) " कस्तूरचंदजी गुरुगीत, मु. मूलचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, पद्य, श्वे., (गुणगातां गुरू तणा), ७०८७०-२(+) काउसमा १९ दोष, मा.गु., गद्य, मृपू., (घोडानी पर एक पग), ६९०१४-२२(+) For Private and Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ कान्हडकठियारा रास- शीयलविशे, मु, मानसागर, मा.गु, ढा. ९, वि. १७४६, पद्य, मूपू (पारसनाथ प्रणमुं सदा), ७०२५२शा कामदेव श्रावक सज्झाय, मु. खुशालचंद, मा.गु., गा. १६, वि. १८८६, पद्य, श्वे. (एक दिन इंद्रे), ७२४२२ (#$) कालिका स्तोत्र, शंकराचार्य, पुडिं, गा. ६, पद्य, वै.. (कृपाली काली के), ७०६४८-२ (+#$) " काव्य / दुहा/कवित्त / पद्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, ? (मृग मरे रस कान नैण), ६९५६० २(+), ७२१४६-२, ७२८३९-३(७), ७२४९९रस्ता कुगुरुसाधु पद, मु. अमृतविजय, पुहिं., मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू., (कछु कछु साधु कहे तब), ६८५३०-१(+) " कुदेवकुगुरुकुधर्मस्वरूप विवेचन, मा.गु., गद्य, ओ., (देवधरमगुरु बंदी पद), ७१६७९ (m) कुबेरदत्तकुबेरदत्ता सज्झाय, मु. ऋद्धिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, पद्य, मृपू. (पहेलाने समयं रे पास), ७२२९३ 1 " कीर्तिध्वजराजा ढाल, मु, हीरालाल, पुष्टिं गा. ७४ वि. १९३१, पद्य, श्वे. (श्रीआदि जिनेश्वरू), ६९१११-४ कीर्तिध्वजराजा सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (कीरतधज राजान सूरज), ७०१८९-३, ७२११६-२ कुंथुजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., ( कुंथुजिन मनडुं किमहि), ७०४७४-४ कुंथुजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १९वी, पद्य, मूपू., ( रात दिवस नित सांभरो), ६८९८३-१ (+), ७२८२५-२(+#) कुंबुजिन स्तवन, मु, प्रागजी, मा.गु. डा. ५. वि. १७६१, पद्य, म्पू, (जिनवाणी सारदा प्रणमी), ७११९२(+) कुगुरुपच्चीसी, मु. रत्नविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सद्गुरु केरि परिक्षा), ६९०६४-३ कुगुरु लक्षण सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे. (प्रणमुं प्रभु पारस), ७२१०७($) " कुमतिउत्थापन चर्चा, पुहिं. गद्य, मूपू., (मनोमती झूठी प्ररूपणा), ६९१५०, ७०४५९ (লड) कुमति सज्झाय, मु. राममुनि, मा.गु, गा. १४, पद्य, मूपू., (अबके जोग मील्बो छे), ६९०६४-६ कृष्णभक्ति पद, मीराबाई, पुहिं. पद. ५, पद्य, वै., (कौन करे पती आरो) ७०४२०- १(क) , कृष्णभक्ति पद, हीरालाल, पुहिं. गा. ५, पद्य, वै., (बलदेवजी का भइया काहा) ७०८२५-५ कृष्णवासुदेव ऋद्धिवर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (सात रत्न आठ सहस्र), ७०१४०-१ कृष्णवासुदेव रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७०३००($) 7 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०८०५-१ खंधकमुनि चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, गा. १०३, पद्य, मूपू., (मुनिवर सासणनो धणीजी), ६८४७५-१(+#) खंधकमुनि सज्झाय, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु. गा. १९, पद्य, म्पू, (नाम लीई सवि पाप), ६८९८५-४(४) खंधकमुनि सज्झाय, मु. चिमन, मा.गु., पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाणी सदगुरु), ७२७४७(#$) खरतरगच्छराज मजलस, पुहिं., पद्य, मूपू., (अहो आओ बेयार बेठो), ७२२५०-६(+) ५५९ कृष्णवासुदेव लावणी, मु. हीरालाल, रा. वि. १९५५-१९५६, पद्य, वे (पुरी द्वारिका), ७२४५१-१(+) " केशवजी ऋषि श्रमणसंघ नियमावली, आ. केशव ऋषि, मा.गु., वि. १७०४, गद्य, श्वे., (संवत १७०४ वर्षे), ७१२११(+) केशीगणधर प्रदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., ढा. ४१, गा. ५९४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीअरिहंत), ६८६२५($) केशीगौतमगणधर संवाद रास, मु. अदेसंगजी, मा.गु., ढा. १४, गा. २१६, वि. १८४८, पद्य, श्वे. (वांदी जिन चोवीसने), ६९०५५, ६८५१७($) केशीगौतमगणधर संवाद सज्झाय, उपा. उदयविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सीस जिणेसरपासना केशी), ६९८०५-७ केशीगौतमगणधर सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (ए दोय गणधर प्रणमीये), ६९०६४-३६ क्रोधमानमायालोभ सज्झाय, मु. महानंद, मा.गु., ढा. ४, वि. १८०२, पद्य, श्वे., (समरी सरसति स्वामिनी), ७०९९२-२ (+) क्षमाछत्रीसी, उपा समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू. (आदर जीव क्षमागुण), ६८४५९-२१, ७०३४१ 11 क्षमासूरि गुरुगुण सज्झाय-पाटणचातुर्मास, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (चतुर चोमासेंजी पुज), ७१२२३-४, ७०८८०(#) क्षेत्रपाल छंद, पुहिं., गा. २, पद्य, वै., (भाठी भरमज भेरवो), ७१३०३-१ क्षेत्रसमास विचार, मा.गु., गद्य, मूपु., (हवे कांइएक बोल जंबूद), ६८४९६ (*) " खंधकमुनि चौढालिया, मु. जैमल ऋषि, रा. डा. ४, वि. १८११, पद्य, स्था. (नमुं वीर सासनधणीजी), ७२६५३(*), ६९१११-१०, For Private and Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ खिमासूरिगुरुगुण सज्झाय, मु. भोजसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (थे सुमता रे राग भीना), ७२०४१-२(2) खेताणुवई विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (क्षेत्र आश्री २० बोल), ७१९२५ । गंगातेली दृष्टांत कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (कोई एक ब्राह्मण), ७२१२४(+#) गजसिंघकुमार रास, मु. सुंदरराज, मा.गु., खं. ४, गा. ४३४, वि. १५५६, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर पाय नमी), ६८४७७(#) गजसिंहनृप रास-सीलमहात्म्ये, मु. देवरत्न, मा.गु., खं. ४ ढाल ५१, गा. १५००, वि. १८१५, पद्य, भूपू., (प्रथम इष्ट पदेष्ट), ६८४६३(+#), ६९१४१(+) गजसुकुमालमुनि चौपाई, मा.गु., ढा. १२, पद्य, मूपू., (अरीठ नौमी नेम हुवै), ६९११६(4) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. २३, वि. १८५८, पद्य, श्वे., (गजसुखमाल देवकीनंदन), ७०४०६-१(+#), ६८६१२-१०(#$), ७२२४८(#), ७२४९५(2) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पं. जिनहर्ष गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गजसुकुमाल वैरागीयोस), ६९३४०-२०(#) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ३, गा. ३८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (द्वारिकानगरी ऋद्धि), ७१७२९-२(5) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मु. सिंहसौभाग्य, मा.गु., गा. ५०, पद्य, मूपू., (सोरठ देश मझार), ७०६१८ गजसुकुमालमुनि सज्झाय, सेवक, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक वांदीयि), ७०६०६(+) गजसुकुमालमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. ४१, पद्य, मूपू., (वाणी श्रीजिनराजतणी), ६९०६४-१० गणधरवंदन गहुंली, आ. दीपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जीरे कामनी कहे सुणो), ६९७७६(2) गणेशजी द्रुपद, तानसेन, पुहि., गा. ३, पद्य, वै., (जै गणेश जै गणेश जै), ७१६१२-४ गतागति २४ दंडक के ५६३ भेद विवरण, मा.गु., गद्य, मूपू., (सप्त नरके समुचे गति),७१५३९(5) गति अपेक्षा मृत्यु परिभाषा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (देवता मरै तिवारे), ६९०१४-५७(+) गर्भावास जीव श्वासोच्छ्वाससंख्या विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव गर्भमांहि थको), ७०९८३-४(+) गुणमंजरी चौपाई, मा.गु., पद्य, मूपू., (परम पंच परमेष्ठिको), ६९१२४-२(#$) गुणवर्ण सज्झाय, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ते मुनि धन्ना ते), ७२०८९-३(+#) गुणस्थानक सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुणि सुगणि सनेहि आतम), ७१४५५(4) गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मा.गु., ढा. १६, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (प्रणमुचउवीसे जिनरा), ७०५१६(5) गुराचार, मा.गु., गद्य, जै., (मेष राशे गरू आवे), ७१६३९(#) गुरुगुण गहुली, सा. चंदुबाई, मा.गु., गा. ३९, पद्य, स्था., (चरणकमल सद्गुरु तणा),७२०२९ गुरुगुण गहुंली, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (गुहली करो गुरु आगले), ६८९८३-११(+) गुरुगुण गहुली, मु. रतन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (जगत जीव वीसराम भवजल),७२१४२-२ गुरुगुण गहुली, मु. रतनविजय, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (सखी बोले सजनी आजे), ७२१४२-४ गुरुगुण गहुंली, मु. विवेक, मा.गु., गा. ७, पद्य, श्वे., (श्रीगुरूजयणाथी चाले), ६८७५७-४ गुरुगुण गहुंली-तपागच्छीय, उपा. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चतुर चकोर चरडि सहीयर), ७१४६५ गुरुगुण गीत, मु. सुमतिसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (दादा दोलति देइ सदा), ७१७१५-२ गुरुगुण पद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सो गुरुदेव लिपैनछि), ७०१६२-४(+) गुरुगुण सज्झाय, मु. सिवलाल, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (समरु सद्गुरु मनरलि), ७२००६ गुरुगुण सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आज आनंद मुज अतिघणौ), ७०१५४-२(+%), ७१७०१-१(+#S) गुरुगुण सज्झाय, रा., गा. १०, पद्य, श्वे., (हम भोरे पंथक दुरमति), ७२४२३-२ गुरुणीगुण सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २१, पद्य, श्वे., (सुणो आर्याजी अरदास),७१२०८ गुरुवंदना विधि, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (इरियावहिआ गम्मणो मुह), ६९६२८-३(+) गोचरी ४२ दोष, मा.गु., गद्य, मूपू., (उद्गम दोष श्रावकथी), ६८५३९ गोपीचंद की राखी, मु. जडावचंद ऋषि, मा.गु., गा. ९, वि. १९६६, पद्य, मूपू., (समगत साची बैन भांणजी), ७०७६५ गोपीचंदजी दुहा, गोपीचंद, पुहि., दोहा. ७, पद्य, वै., (आज स्हैर मै सहीया), ७१०२८-३ For Private and Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. १२९, वि. १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ पूरवे), ६८९६७(+#), ६८५५५-१ गौतमस्वामी चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नमो गणधर नमो गणधर), ६८५५६-११(+$) गौतमस्वामी छंद, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ९, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनेश्वर केरो शिष),७२५८८-१(+#),७०६५९-१, ७१०७४-२, ६८६१३-२(-2) गौतमस्वामी रास, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा.१४, वि. १८३४, पद्य, स्था., (गुण गाउ गौतम तणा), ७२०४०(+#) गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मा.गु., ढा. ६, गा.६६, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ६९९४८(+$), ७२५८३(+#) गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मा.गु., गा. ६३, वि. १४१२, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर चरणकमल कमल), ६९९९७(+#), ७१६६८, ६८६२३-१(#), ६९३५०(#), ६९३५७-६(#$), ६८६०७(६),७२२८९-१(६) गौतमस्वामी रास, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (वीर जिनेसर चरण कमल), ६९१३५-४(+#), ७१५८१(+#$), ७२१८८-१(+$) गौतमस्वामी वैराग्य गीत, वा. मतिशेखर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समोवसरण सिंघासणइ जी),७२४९६(+) गौतमस्वामी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर मधुरी वाणी भाखे), ६८५५६-१२(+$) गौतमस्वामी स्तोत्र, ग. विजयशेखर, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीगौतम गुरु प्रभात), ७२०७८-३(#$) घडपण सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (घडपण तुझ केणे तेडिओ), ७२६७९-१(#) चंदनबालासंबंध सज्झाय, मा.गु., ढा. ३, पद्य, मूपू., (नगर कोशंबी पधारीया), ७२३४४-२ चंदनबालासती चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. १४, गा. ९२, पद्य, मूपू., (फणीमणीमंडित निलतन), ६९१११-१ चंदनबालासती सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, पू., (बालकुंआरी चंदनबाला), ७०९९२-१०(+) चंदनबालासती सज्झाय, मु. नीतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (धन चंदनबाला सति रे), ७२१०१-२ चंदनमलयागिरिरास, मु. भद्रसेन, पुहिं., अ.५, गा. १९९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीविक्रम), ६९१४६-३(#), ७०६७०(#S) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. ४०, पद्य, स्था., (पाडलीपुर नामे नगर), ७११०५(5) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (चोथो आरो थाकता), ६८५३७-१(#) चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. ३५, पद्य, मूपू., (पाडलीपुर नामे नगर), ७२८२५-१(+#) चंद्रप्रभजिन पद, मु. राजनंदन, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (छबि चंद्राप्रभु की), ७२२९४-७(+), ६९१२६-५ चंद्रप्रभजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (दरसण रहे है लुभाय), ७१०२८-२ चंद्रप्रभजिन स्तवन, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मंगल कलागुण नीलउ), ७००४०-३(+$) चंद्रप्रभजिन स्तवन-सूत्रार्थ विचारगर्भित, मु. चारित्रसागर, मा.गु., ढा. ११, गा. ८१, पद्य, मूपू., (सरसती वरसती सगतिरूप), ७२७९१(१) चंद्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., उल्ला. ४ ढाल १०८, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराधव तीम), ६८४६४(+#$), ६९०२३(+), ६९३८२(+#$) चंद्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मा.गु., खं. ६ ढाल १०३, गा. २५०५, ग्रं. ३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननायक समरीइं), ६९७५८(६) चंद्रराजा लावणी, मु. हीरालाल, पुहिं., वि. १९५६, पद्य, स्था., (मुनिसुव्रत माहाराज), ६९३८०-१(+) चंद्रावतीभीमसेन सज्झाय, मु. विवेकहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (जिन मुख सोहे सरस्वति), ६८९८५-१३(#) चक्रवर्तीकृत १३ स्थानक अट्ठम विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (चक्रवर्ति १३ ठामे), ७०१४०-३ चतुराई की वात, पुहि.,मा.गु., गद्य, वै., (एक दिन माघ पंडित ने), ६९८८३-१ चतुर्गतिअवगाहणा विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीव० ग्याना० अना०), ७१९३४-२(#) चतुर्दशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वासुपूज्य जिनेसर), ७२६४८-२(2) चतुर्विंशतिजिन स्तोत्र, आ. कल्याणसागरसूरि, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (ऋषभदेवजिनं जिननायक), ७२४८२-१ चरणसित्तरी ७० भेद, मा.गु., गद्य, मूपू., (५ महाव्रत १० जतीधर्म), ७१७०९-२ चरणसित्तरी के ७० व करणसित्तरी के ७०बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (५ महाव्रत १० जतिधर्म), ७०३२२-१(+$) For Private and Personal Use Only Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ चर्चाशतक, जै.क. द्यानतराय, पुहि., दोहा. १०३, पद्य, दि., (परमेष्ठी पांचौ), ६९१५८(#) (२) चर्चाशतक-अनुवाद, श्राव. हरजीमल, पुहि., गद्य, दि., (जै कहिये जैवंत), ६९१५८(#) चामुंडादेवी गीत, मा.गु., पद्य, वै., (सरसति सुप्रसन्न मुझ), ६९९१२-३(#$) चित्तोडगढ गजल, क. खेताक यति, पुहिं., गा. ५७, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (चरण चतुरभुज घाईऐ चित), ७२५६२ चित्रसंभूति सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (चित्त कहे ब्रह्मराय), ६९०६४-१८ चिदानंदबहोत्तरी, मु. चिदानंद, मा.गु., अ.७२, पद्य, मूपू., (पिया परघर मत जावो), ६९४४१(+$), ६९३३५($) चिमनसागरगुरुगुण पद, मु. चिमनसागर शिष्य, पुहिं., गा. ४, पद्य, पू., (गुरुजी मोहे ग्यान), ७२७७३-२(+#) चेलणासती चौढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ४, गा. ३७, वि. १८३३, पद्य, स्था., (अवसर जो नर अटकलो ते), ७२१६५(#$), ७२७११(६) चेलणासती चौपाई, मु. दयाचंद ऋषि, मा.गु., ढा. १३, पद्य, श्वे., (चोवीसमा महावीरजी), ६९१११-२ चैत्यपरिपाटी स्तवन-बीकानेर आठ जिनालय, मु. धर्मसी, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चैत्यप्रवाडै चौवीसटै), ७२१८९-१(+) चैत्यवंदनचौवीसी, क. ऋषभ, मा.गु., चैत्यव. २४, पद्य, मूपू., (आदिदेव अरिहंत नमु), ७१६९०(5) चोबोल प्रबंध, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सभापुरि विक्रमराय), ७२४७०-१(#$) चौमासी देववंदन सविधि, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४२५, पद्य, मूपू., (प्रथम ईरियावहि पछे), ६८४६६-१(#S) चौमासीपर्व देववंदन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (विमलकेवलज्ञान कमला), ६८४६६-३(#), ६८४७४(5), ६८४९०(5) छकाय बोल थोकडा, मा.गु., गद्य, स्था., (अंदी थावरकाय बंभी), ७२११५ जंबुस्वामी सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. २९, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (समरीय सरसती विश्व), ७२२४९-१(+#) जंबूकुमार चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर विहरता राज), ७०६६८-२(+) जंबूद्वीपगणित विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (परिधि गणितपद इखुबाण), ६९१८४-३(+) जंबूवती चौपाई, मु. सूरसागर, मा.गु., ढा. १३, पद्य, मूपू., (पहिली ढाल सोहामणी), ७१४८३(5) जंबूस्वामी५ भव सज्झाय, मु. राम, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमुहो के), ७०५०१ जंबूस्वामी गहुंली, पं. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोल वरसें संयम लिओ), ६९८६० जंबूस्वामी चरित्र, श्राव. आणंद जेठमल, मा.गु., ढा. ३५, वि. १९२०, पद्य, मूपू., (शासनपति वर्धमाननो), ६९१०७(+) जंबूस्वामी चौपाई,मा.गु., ढा. ४६, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (तिण कालै ने तिण समै), ६८४९३(+) जंबूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ३५, गा. ६०८, ग्रं. १०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (प्रणमी पासजिणंदना), ६९१०८(+#$) जंबूस्वामी रास, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ११३, वि. १५१६, पद्य, मूपू., (सरसति सामणि सारदा ए), ६८५१०(4) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. गंग, मा.गु., ढा. ४, गा. ४७, वि. १७६५, पद्य, श्वे., (श्रीगुरु पदपंकज नमी), ६९३६९-१९(2) जंबूस्वामी सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (संयम लेवा संचर्या), ६९०६४-१६ जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., गा. १४, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (सरसत सामीने विनवू), ६९०६४-३१ जंबूस्वामी सज्झाय, पं.शीलविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (राजगृह नगरी वसै ऋषभ), ७२०२३ जंबूस्वामी सज्झाय, मु.सहसकिरण ऋषि, मा.गु.,गा. ११, पद्य, श्वे., (सयल जिणेसरने हुं पाय), ६९३६९-२३(2) जंबूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (राजग्रही नगरी वसे), ६८४५९-३० जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (श्रेणिक नरवर राजिओ), ७२०८२-१ जन्मकल्याणकादि दिन तिथि संख्या, मा.गु., गद्य, श्वे., (चवण जम्मण२ चउथ सवि), ६९०१४-१३(+) जन्मकुंडली विचार, पुहि.,मा.गु., गद्य, (--), ६९३४०-१८(2) जमाली चौपाई, मु. जिनराज, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७१४८६(+$) जमाली सज्झाय, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (शासन नायक श्रीवीर), ७०१९७-२ जलयात्रा वरघोडा स्तवन, मु. वीरविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (हवे सामग्री सवी सज), ७१२३२ जसवंतजीऋषि गुरूगुण गीत, मा.गु., गा.७, पद्य, स्था., (सरसति शुभमति आपि),७१५१३ For Private and Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ जिनकुशलसूरि अष्टप्रकारी पूजा, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., ढा.८, वि. १८५३, पद्य, मूपू., (स्मृत्वा गुरुपदांभोज), ६९३६५-१(+$) जिनकुशलसूरि आरती, मु. लाभवर्द्धन, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (जय जय सद्गुरु आरती), ६९३६५-२(+) जिनकुशलसूरि आरती, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जय जय गुरु राजा सारै), ७२३५९-२(#) जिनकुशलसूरि गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दादाजी दीठांदोलित), ७१४१३-४(+) जिनकुशलसूरि गीत, पं. रंगवल्लभ गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्री जिनकुशलसूरी), ७२४४८-३(+) जिनकुशलसूरि गीत-मणिधारी, मु. लालचंद, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (चरण शरण तुझ आयो हे), ७१४१३-५(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. कनककीर्ति, पुहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (दादो दोलत दाता सुख), ७१४१३-३(+) जिनकुशलसूरि पद, मु. लालचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (कुशल गुरु देखतां), ७१४१३-६(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. कुसल कवि, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (हांजी काइ अरज करुं), ६९३६५-६(+$) जिनकुशलसूरिस्तवन, ग. दयाभक्ति, पुहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., (आज हर्ष भयौ संघसकल), ६९३६५-५(+) जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (समरु माता सरसती), ६९३५७-१(६), ७२३३५($) जिनकुशलसूरि स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दादा सुख दीयै जाणी), ६९३६५-४(+) जिनगुण गरबो, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (हां रे हुं पूजीसुरे), ६९३५९-३(-2) जिनचंद्रसूरि गीत, वा. कमलहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसुरिंदनइ), ७२२७९-१(+) जिनचंद्रसूरि गीत, वा. कमलहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसूरिंद), ७२२७९-९(+) जिनचंद्रसूरि गीत, वा. कमलहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसूरिंदा आव), ७२२७९-३(+) जिनचंद्रसूरि गीत, वा. कमलहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसूरीसरू रे), ७२२७९-४(+) जिनचंद्रसूरि गीत, मु.कान्ह, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसूरीसर वंद),७२२७९-२(+) जिनचंद्रसूरि गीत, मु. कान्ह, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (समाँ सुख साजसमापइ), ७२२७९-६(+) जिनचंद्रसूरि गीत, मु. विद्याविलास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनचंदसूरीसरू रे), ७२२७९-५(+) जिनचंद्रसूरि दोधक, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (इलि उपरि अखियात), ७२२७९-७(+) जिनचंद्रसूरिनिर्वाण रास, मु. समयप्रमोद, मा.गु., ढा. ४, गा. ७०, पद्य, मूपू., (गुणनिधान गुरु पाय), ७००४७-१(६) जिनचंद्रसूरि स्तुति, वा. कमलहर्ष, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मउज महिराण मानइ वडा), ७२२७९-८(+) जिनचैत्यपूजा स्तवन, मा.गु., गा. २७, पद्य, मूपू., (घरनायक जव आवउ घरे), ७०६२५(#) जिनचैत्यादिवर्णन गीत-डभोइनगर, मा.गु., ढा. २, गा. २७, पद्य, मूपू., (डभोइनगर खरो ससनेही),७१२२८ जिनदत्तसूरि पद, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (दादा चिरंजीवो सेवक), ६९३६५-३(+) जिनपालजिनरक्षित चौढालियो, रा., ढा. ४, गा. ६८, पद्य, मूपू., (अनंत चोवीसी आगे हुई), ६९१११-७ जिनप्रतिमासंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७०५१७(६) । जिनप्रतिमा स्तवन, मु. आगम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कुन करे वारी कुरे), ७१९०९-१ जिनप्रतिमा स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीजिनप्रतिमा हो), ७०५७३-२(+) जिनप्रतिमाहुंडि रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६७, वि. १७२५, पद्य, मूपू., (सुयदेवी हीयडै धरी), ७२७०२-१(#), ७२८३९-१(#) जिनबिंबप्रवेश विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (हवें पूर्वोक्त शुभ), ७०६१६(#) जिनबिंबस्थापन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (भरतादिके उद्धारज), ७१९०९-४ जिनमंदिरकर्त्तव्य स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (करि निसिही देहरा), ७०६३६-१ जिनमंदिरफल स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरसतू देव नमी मन रंग), ६९३७०-२(+#) जिनलाभसूरि स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (गछपत तुझ श्रावक घणा), ६९७२८-३ जिनवंदनफल स्तवन, मु.कीर्तिविमल, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिन चोवीसे करु), ७२४७६ जिनवरसीदान स्तवन, मु. लब्धिअमर, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (श्रीवरदाईना चरण नमी), ७०६६३(+$) जिनाज्ञा सज्झाय, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जिनआणा सिर वहीय), ७०१५४-१(+) जीव काया संवाद सज्झाय, मा.गु., गा.८, पद्य, मपू., (कायानी जीव सेती अज),७०८५४-३(+) For Private and Personal Use Only Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६४ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " की अल्पायु ३ कारण, मा.गु., को., मूपू., (जीवहिंसा करतो थको), ७२३२१-८ (+) जीवणदासजी गीत, देउबाई, रा. गा. ११. वि. १८१४, पद्य, वे (सरसत सामण सहीया वीनव) ७११५९-१ जीवणदासजी गीत, सा. भागांजी शिष्या रा. गा. ७. वि. १७९८, पद्य, वे (अब म्हारा पूजजी हो), ७११५९-२ (क) जीवणदासजी गीत, रा., गा. ११, वि. १८११, पद्य, श्वे., (सरसत सामण वीनवु), ७११५९-४(#) , जीवदया छंद. मु. भूधर, मा.गु गा. ११, पद्य, वे (श्रीजिनवाणी पाए नमी), ७१४७७ " " जीवदया सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, स्था. (श्रीजीवदया के कारणये), ७१६७६-१(०) जीव निकलने के पांच स्थानक, मा.गु., गद्य, मूपू., (पग थकी निकले ते जीव), ७२३२१-१३(+) जीव भेद-प्रभेद बोल, पुहिं., मा.गु., गद्य, मूपू., (दोय कोड चोराणवे लाख), ७१९६३-६ (*) जीवभेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवरा २ भेद एक मुक्त), ७२१४०-२ जीवभेद सज्झाय, मु. जिनविजय, मा.गु., ढा. २ गा. २०, पद्य, मूपु (श्रीसारद चितमें धरी), ६८४५९-११ जीव स्थानके छकर्म भांगा यंत्र, मा.गु., को., मूपू., (--), ७२२८१-४ जीवति सज्झाय गर्भावासगर्भित, मु. क्षमाविजय, मा.गु, गा. ८, पद्य, भूपू (गरभावासमे चिंतवह है), ६८९८३-५ (०), ६९३४० יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४(#S) जीवोत्पत्तिविचार संग्रह, रा., गद्य, श्वे. (स्त्री तणी नाभि हेठि), ७१३१६(+$) जेमलजी ऋषि संधारा गीत. मु. रायचंद ऋषि, रा. गा. ३३. वि. १८५३, पद्य, वे., (पूज संवारो कीयो), ७१२२१(क) जैनधर्म स्वरूप विचार, पुहिं. गद्य, म्पू., (-), ७१५४६ (MS) י जैनयंत्र संग्रह (कोष्ठक), मा.गु. यं., म्पू, (--), ७२३५०-३(०), ७२५१५ (+४) ७०९५६, ७१४७१, ७२५१४-२, ७०२६७-२(४७), " ७१७६१-३०) ज्ञाताधर्मकथा की साढ़े तीन करोड कथा का विचार, मा.गु, गद्य, म्पू, (धर्मकथा के वरग), ६९०१४-११२(*) ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी, मा.गु., गद्य, मूपू., ( न जाणइ न आदरइ न पालइ), ६९७५०-३ (+), ७२७९४-६ ज्ञान चोपड, मा.गु., को., मूपू., (एह माहें जे ऊँचू आवि), ६९१३०(#) ज्ञानपंचमीतपउद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, भूपू (बिंब ५ पुस्तक ५ झलमल), ७१३३०-१ (A) ज्ञानपंचमीपर्व देववंदन विधिसहित आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पूजा. ५, गा. १५, पद्य, मूपू. (श्रीसौभाग्यपंचमी), ६८५५७(+१६), ६९२०५, ६८४६६-४(#) ज्ञानपंचमीपर्व महावीरजिन स्तवन- बृहत् उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., डा. ३, गा. २५, पद्य, मूपू (प्रणमुं श्रीगुरु पाय), ७०५६९१(+३), ६८६०४-१ (४), ६८६६२-२) ७२३५७-२(४) ७२७४०-२ (AS), ७१५०० (5) ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. १६, पद्य, मूपू., ( श्रीवासुपूज्य जिणेसर), ६९८०० (+#), ६९८१३(+), ७२६२३, ७२०६६(४) ७१७२९-१(३) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., डा. ६, गा. ६८, वि. १७९३, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धारध भूपनो) ६९१०९(*), ६८५०८-२(#) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन- लघु उपा. समवसुंदर गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (पंचमीतप तुमे करो रे), ६९६५०-१, ६८६०४-२(०) ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. गौतम, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भाव भले भवि पांचमी), ६९८८५ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीजिन नेमि जिनेसर), ७२११८, ७२५८० ज्ञानपंचमी स्तवन, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपु., (पर उपगारी सुगुरु बता), ६८६२६-२(५) ज्ञानपंचविंशति, मु. उदयकरण, मा.गु. गा. २४, पद्य, मृपू. (शुरनर तिरीजग योनी), ७२६८५-१ (३) ज्ञानपच्चीसी, जे.क. बनारसीदास पुहिं. गा. २५, वि. १७वी, पद्य, दि., (सुरनर तिर्यग जग जोनि), ७१४१४-१(+) " ज्ञानविलास, मु. ज्ञानानंद, मा.गु., पद. ७५, पद्य, मूपू., ( चारित्रपति श्रीचारित), ६८४७६-१(#$) " " ज्योतिषचक्र विचार, श्राव. हजारीमल लुंकड, रा. द्वा. ७. वि. १९३१, प+ग. वे. (श्रीगुरुदेवोने) ७०४६८ (६) ज्योतिष विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (चंद्रमानी आठखो), ७२३०१-२ (+), ७२३४७-३(०) ज्वर छंद, मु. कांति, मा.गु., गा. १६, पद्य, भूपू (ॐ नमो आनंदपुर अजयपाल), ७२२८९-२ (३) " For Private and Personal Use Only Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५६५ झाझरियामुनि चौपाई, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १६९८, पद्य, मूपू., (आदीसर जिनवर तणा चरण), ६८६६०-२(६) । झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू., (सरसति चरणे शीश नमावी), ६९८६४-१ ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (ढंढणऋषिने वंदणा), ७२८१३-२(+#), ६८७५७-१, ७२८१७-१ ढुंढकमत सज्झाय, पुहि.,रा., पद्य, श्वे., (कोई पोषै राग कौ कोई), ७११९४(६) ढुंढकमत सज्झाय, रा., गा. १४, पद्य, श्वे., (ढुंढीया माहसं मुडीय), ७०९७३ ढुंढक हितशिक्षा स्तवन, मु. भद्रबाहु, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवीतणे), ७०३६८(+$) ढोलामारु चौपाई, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ७००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सामिनी), ६९२५०(+#$) तंदुल मत्स्य विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (तुंदली मछ सातमी नरग), ६९०१४-६३(+) तत्त्वज्ञान सवैया, हुसेन कवि, पुहि., सवै. १, पद्य, (आज के जमाने में), ७२६४९-४(#) तपपद सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, पुहि., गा. १४, पद्य, श्वे., (तप वडो रे संसार में), ६९३८०-२(+) तप भावना, रा., गद्य, मूपू., (धनसामी अठारेइ अधगवी), ७०१५२ तपावली, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुरिमढ१ एकासणां२), ६९३७५(+#) तारादेवी सज्झाय-शीलपालनविषये, मु. कनकसुंदर, मा.गु., ढा. १३, गा. १८, पद्य, मूपू., (वचन सुण्या ब्राह्मण), ६९३४०-२५($), ६९३६१-१०(2) तिथिप्रमुख तपविधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुभ दिन राई प्रायच्छ), ७०२४१-२($) तीर्थंकरनामकर्मबंध के २० बोल विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरिहंतजी गुणगीराम), ७२४७१-६ तृष्णा सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (क्रोध मान मद मच्छर), ६९९७२-१(+$) तेतलीपुत्र रास, मा.गु., ढा. ३, गा. ३२, पद्य, मूपू., (हिव ते राजा कनकरथ),७०८०४ त्रयोदशीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पढम जिनेसर शिवपद), ७२६४८-१(#S) त्रसस्थावरजीवोत्पत्तिमरण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहलै भागैजेतली भूमि), ७०९६१-४(+) त्रिकालभाव वंदना, मा.गु., पद. १, पद्य, मूपू., (पढो मंत्र नवकार ताप), ७००४०-१(+) त्रिपुरामाता स्तोत्र, मु. सुमतिसेन, मा.गु., गा. ५१, पद्य, मूपू., (आई आदि अलखगति अपरंपर), ७२५४१-२ त्रिसलामाता १४ स्वप्न स्तवन, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (त्रिशला हरष धरे), ७०८०५-२ त्रैलोक्यसार चौपाई, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., गा. २०५, वि. १६२७, पद्य, दि., (सरसति सद्गुरू सेवु), ६८५२६(#) त्रैलोक्यसुंदरी चौपाई, मु. कनीराम ऋषि, मा.गु., ढा. २२, वि. १८११, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्ध अनंतगुण), ६९३७२(६) त्रैलोक्यसुंदरी रास, मु. सबलदास ऋषि, मा.गु., ढा. १२, वि. १८५२, पद्य, श्वे., (विहरमान वीसे नमुं), ७१५६१-१(६) थावच्चाकुमार चौढालियो, मु. हर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ५६, वि. १७९५, पद्य, श्वे., (द्वारामती नयरी वसो),७२५०२(+$), ६८५४८-२, ६९३६९-३०(#$) थावच्चामुनि चौपाई, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २, गा. ४३७, ग्रं. ६५०, वि. १६९१, पद्य, मूपू., (नेमिनाथना पाय नमु), ६८५२०(+#$) थुलिभद्र सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (अकल अरूपी आतमा अविना), ७२५३५ दमयंतीसती रास, उपा. सुमतिहस, मा.गु., गा. १२३, वि. १७१३, पद्य, मूपू., (सानिध जस कविता सगत), ७०३७१(+$) दयापच्चीसी, मु. विवेकचंद, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सयल तीर्थंकर करु रे), ६८९८५-१२(#) दयामाता ८ उपमा, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ बीहताने सरणानो आधा), ७१७०९-७, ७२४७१-७($) दशार्णभद्रराजर्षि चौपाई, मु. कुशल, मा.गु., ढा. ४, वि. १७८६, पद्य, मूपू., (सारदमात मनरली समरु), ६९१११-९ दशार्णभद्र सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (सारद बुधदाइ सेवक), ६९९७२-६(+),७१७३०-१(+#), ७२५४२ १(+#), ६८६०४-३(2), ६८६१६-१९(#),७२५५९-१(2), ७२७५५-४(#), ७०४७१-३($) दानशीलतपभावना प्रभाति, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (रे जीव जिन धरम कीजीय), ६९३८० ६(+), ७२६७१-४(+#), ७०९४८-३(4), ७१६७६-४(#) दानशीलतपभावना रास, मु. निहालचंद, मा.गु., ढा. ५, गा. १२१, वि. १७९८, पद्य, भूपू., (श्रीगुरु गौतम पय), ७१४५९(+) For Private and Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ४, गा.१०१, ग्रं. १३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिनेसर पाय), ६९१२०(+), ६९१११-८, ७२७२५, ६८५५४(s), ७१६५२($), ७२०९८($), ७२११०(5), ६९३४२-१(2) दानशीलतपभाव सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (धन धन समुद्र वीजै), ७०१६९-१(+$) दान सज्झाय, मु. तिलकविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (रसीया राचै दान तणे), ६९९६८-८(+$), ६९८७२-३ दामनक चरित्र, रा., गद्य, मपू., (जीवन मारै दया पालै), ६९३८३ दिशा आदि २७ द्वार अल्पबहुत्व विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दिसि गति इंदिय काए), ७२०७४ दीपावलीपर्व के आधार से वर्षफल, मा.गु., गद्य, मूपू., (दीवाली आदित्यवारी), ६९८२६-१(+) दीपावलीपर्व चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपु., (दुःखहरणी दीपालिका रे), ६८५५६-१३(+) दीपावलीपर्व देववंदन विधिसहित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीरजिनवर वीरजिनवर), ६८५५६-७(+), ६९०४८(#) दीपावलीपर्वरास, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, श्वे., (भजन करो श्रीभगवंतरो),७२०५२(+),७१९१२-१,७२१८२ दीपावलीपर्व सज्झाय, पं. हर्षविजय गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (धन धन मंगळ सकल तरेस),७१९१२-२ दीपावलीपर्व स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीमहावीर मनोहरु), ६८५५६-१०(+) दीपावलीपर्व स्तवन, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मारे दिवाळी थइ आज), ६८५५६-१६(+) दीपावलीपर्व स्तुति, मु. चंद्रविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सिद्धारथ ताता जग), ७२६७३-७ दीपावलीपर्व स्तुति, पंडित. देवचंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दीवाली दिन पर्व), ६८९८०-४ दुविहार ग्राह्य वस्तु नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सुठ१ मीरची२ पीपल३), ६९०१४-२३(+) दृढप्रहारीमुनि सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (पय पणमीअसरसति सरसति), ७२७४३(+) दृष्टांत संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (वित्तेणं० वित्तते), ७२५०१ देवकी ६ पुत्र रास, मा.गु., ढा. १९, गा. ३०७, पद्य, मूपू., (नेमजिणंद समोसा), ६८५०३(+#), ६९२०६(#$) देवकीपुत्र सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७०८५८(६) देवमनुष्यादि दैवसिक आयुष्योपार्जन विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (नरएसु सुरवरउसुअरा१), ७१२१२-३(#) देवलोक देहमान-आयुमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सौधर्मदेवलोक सात), ७२३२१-२(+) देवलोक व नारकीजीवादि भांगासंग्रह, मा.गु., को., मूपू., (--), ६८५८९(#) देवलोक विचार संग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे., (पहलो सोधर्म देवलोकेइ), ७२१०८(2) देवसीप्रतिक्रमण समय विचार, मा.गु., गद्य, म्पू., (साजे पडिकमणो की वारै), ६९०१४-९६(+) देवानंदामाता सज्झाय, उपा. सकलचंद्र गणि, पुहिं., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवर रूप देखी मन), ६९०६४-२१ देवानंदा सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. ७, पद्य, श्वे., (दरसण आव हो देवानंदा), ७२१८०-५(+-#) देवीरो सोहलो, रा., गा.७, पद्य, श्वे., (आगलि ओयण आंवलो तल), ७२२६८-६(+#) दोहा संग्रह, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (दसे बालो वीसे भोलो), ७१७३४-५ (+$), ७१७३९-२ दोहा संग्रह, मा.गु., दोहा. ५०, पद्य, (सजन तोरा गुण घणा), ७०४९४-४(#) दोहासंग्रह-आयुर्वेदिक, मा.गु., पद्य, (जडीया छूटी उर उपास),७१००५-२(#$) दोहा संग्रह-गूढार्थगर्भित, मा.गु., गा. ६७, पद्य, श्वे., (पृथवी मंडण तास पति,), ७१७३४-४(+) (२) दोहा संग्रह-गूढार्थ गर्भित-बालावबोध, मा.गु., गद्य, श्वे., (अठै चालीसरी अप्रवर्त), ७१७३४-४(+) द्रव्यप्रकाश, ग. देवचंद्र, पुहिं., द्वा. ३, गा. २६८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (अज अनादि अक्षयगुणी), ६८४८९(2) द्रव्यलक्षण विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (सत द्रव्यलक्षण जे), ६९०१४-८३(+) द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकस्वरूप स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (प्रस्तुत वस्तु तणो), ७११६७(+#$) (२) द्रव्यार्थिकपर्यायार्थिकस्वरूप स्तवन-टिप्पण, मा.गु., गद्य, मूपू., (द्रव्यार्थिकनय परमार), ७११६७(+#$) द्रौपदीसती चौपाई, वा. कनककीर्ति, मा.गु., ढा. ३९, गा. १११७, वि. १६९३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी पासजिण), ७२५७७($) द्रौपदीसती लावणी, मु. हीरालाल, रा., पद्य, श्वे., (पांडव मथुरा बसी है),७२४५१-२(+) For Private and Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ धन महिमा गाथा, मु.खेम, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (टकाथी कला होइ टकाथी), ७१५७३-३(+#) धनमित्र चौपाई, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., ढा. ३, पद्य, श्वे., (साधु धन्य संसार मे), ७२०७५ धन्नाअणगार चौपाई, मु. जयजश, मा.गु., ढा. ३९, वि. १९३१, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदे करी), ६८४७९(+) धन्नाअणगार श्वासोश्वास प्रमाण, मा.गु., गद्य, म्पू., (धन्ना अनगारना दिक्षा), ६९०१४-७३(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर वचन चित्तधारी), ७२४५४(+) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. ७, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (धन्नाजी रिख मन चिंतव), ७१६७६-६(#) धन्नाअणगार सज्झाय, आ. कल्याणसूरि, मा.गु., ढा. २, गा. १५, पद्य, मूपू., (काकंदीवासी सकज भद्रा), ६९३७१-१(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मु. ठाकुरसी, मा.गु., गा. २२, पद्य, श्वे., (जिनवाणी रे धना अमीय), ६९०६४-१२ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (चरणकमल नमी वीरना), ७२३३६ धन्नाअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (जिनवचने वयरागी हो),७१६८१(+), ७२८४४(#) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., ढा. २, गा. १७, पद्य, मूपू., (वीर वचन प्रतिबोधीए), ७१५७०-२(-#) धन्नाअणगार सज्झाय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सरसती सामीने वीनहु), ६९०६४-२२ धन्नाऋषि सज्झाय-काकंदी, मा.गु., गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीजिनवाणी रे धन्ना), ७०१९१-१७(5) धन्नाकाकंदी चौढालिया, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., ढा. ७, वि. १८५९, पद्य, श्वे., (पुजजी पधारीया नगरी), ६९१११-३ धन्नाशालिभद्र रास, मा.गु., पद्य, मूपू., (--),७०६०५(#$) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा.७, पद्य, मपू., (अजिया मुनि० वेभारगिर),७१७०८-२,७२६११-३(2) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (धन धन धन्ना सालिभद्र), ६८९८५-३(#) धरणेंद्रसूरिगुरुगुण गीत, मा.गु., पद्य, मूपू., (स्वस्तिश्री गुज्जर), ७२७६८($) धर्मजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (धरमजिनेश्वर गाउं रंग), ७०४७४-३ धर्मजिन स्तवन, ग. खिमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सूरति धरमजिणंदनी), ६८९८३-९(+) धर्मजिन स्तवन-आत्मज्ञानप्रकाश, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. १३८, वि. १७१६, पद्य, मूपू., (चिदानंद चित चिंतQ), ६८४५६ धर्मधुतारासाधु पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (धीग धीग तेओने ते), ६८५३०-५(+#) धर्मरुचिअणगार सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, रा., गा. १५, वि. १८६५, पद्य, स्था., (चंपानगरनी रुप सुंदर), ७१९८२-१(२) धर्मोपदेश पद, मु. हेमराज, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (ऋद्धि सिद्धि कारमी),७११९५(+) नंदमणियार सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बहुगुण पूरण जे हुइ), ६८९८५-१६(#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु. मेरुविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, पद्य, मूपू., (राजगृही नयरीनो वासी), ६९९६६-९(+), ७२८१३-१(+#), ६९०६४-२०, ७१११४-१ नंदिषेणमुनि सज्झाय, मु.रूपविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रहो रहो रहो वालहा), ७२५७१-३(#) नंदिषेणमुनि सज्झाय, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (वेरागी संजम लीयो), ७२०१२-१ नंदी भास, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वेशाख सुदि एकादसी), ६८९८३-६(+), ६९३३४-५(+) नंदी स्तोत्राष्टक, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (छंडि सवि हथियार सार), ७१०६२-१(+) नथ पद, रा., गा. ३, पद्य, जै., (पांचारी धडावो मारी),७०६११-२ नमस्कार महामंत्र छंद, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. १८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (वंछित० श्रीजिनशासन), ६८६२२-६(+$), ७२३७५, ७१२३३-२(#$) नमस्कार महामंत्र पद, आ. जिनवल्लभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १२वी, पद्य, मूपू., (किं कप्पतरु रे आयाण), ७२५६६(#) नमस्कार महामंत्र रास, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो लीजि), ६८६१६-२(2), ७११७१(#) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. प्रभुसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुखकारण भवियण समरो), ७२६७१-१(+#), ७२४६१, ६९३४०-६(2) नमस्कार महामंत्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (बार जपु अरिहंतना), ७१६८०-१(६) नमस्कार महामंत्र स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, स्था., (प्रथम श्रीअरिहंतदेवा), ७२००२ For Private and Personal Use Only Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५६८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नमस्कार महामंत्र स्तोत्र, मु. पद्मराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार जपो मनरंग), ७२२९४-८(+), ७२६७१-३(+#), ७२४१९ २(2) नमिजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा.११, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (षट् दरिसण जिनअंग भणी), ७२२७०-२ नमिराजर्षि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (जी हो मिथीला नगरीनो), ६९९७६-३(+-$) नयविचार संग्रह, पुहिं., गद्य, श्वे., (इस आत्मा कु कितनेक), ७१९६६(+#$) नरकविस्तार स्तवन, मा.गु., ढा. ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानजिन विनवू), ७१५०७(६) नरभवरत्नचिंतामणि सज्झाय, मु. अभयराम, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (आ भव रत्नचिंतामणी), ६९३८०-९(+) नवकारजाप फल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जपत अरिहंत जे हाथ), ७०३५२-४(+) नवकारमंत्र गीत, रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जग में नवकार),७०८२७-२ नवकार रास, मु. राजरत्न, मा.गु., ढा. ४५, गा.७०२, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (श्रीरिषभादि चउवीस), ६९१०३(+#) नवकारवाली स्तवन, मु. ऋषभदास, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीनवकार मन ध्याइये), ७१४६९-२ नवकार सज्झाय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (नवकार तणी महिमा सुणौ), ७०१९१-२ नवग्रह दशदिक्पालपूजन कोष्टक, मा.गु., को., श्वे., (--), ७१११५-१(+) नवग्रहद्वादशराशि फल, सार कवि, पुहि., दोहा. १०८, पद्य, वै., (यु विचार ज्योतिष), ६९३७९-१०(4) नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (जीव चेतन १ अजीव), ६८५३६(+) नवतत्त्व २७६ भेद विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व १४ भेद), ६९०१४-८७(+), ६९००९-१(-) नवतत्त्व चौपाई, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, गा. २०४, पद्य, मूपू., (सकल जिनेसर प्रणमी), ६८४५९-२ नवतत्त्व चौपाई, मु. भावसागरसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. ९५१, ग्रं. १३०५, वि. १५७५, पद्य, मूपू., (आदि नमी आणंदहपूरि), ६९०७६(+) नवतत्त्व स्तवन, ग. भाग्यविजय, मा.गु., अ. ९, गा. १६७, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंतना पायजुगल), ६८५४० नवपद आराधन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (आसो सुदि सातमी तथा), ७२३४९-१(+) नवपद ओली विधि, मा.गु., प+ग., मूपू., (प्रथम पडिकमणां बे), ६८४९९-२ नवपदगुण वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (पेले पदे नमो अरिहंता), ७१०७५(६) नवपद नमस्कार, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमोनंत संत प्रमोद), ७२०३५(१) नवपद पूजा, मु. उत्तमविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (श्रीगोडी पासजी नीति), ६८६०८-२(#$), ७१७२१(#$) नवपद पूजा, मु. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ९, पद्य, मूपू., (परम मंत्र प्रणमी), ७१९१९(+$) नवपद पूजा, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., ढा. ९, वि. १८३८, पद्य, मूपू., (श्रुतदायक श्रुतदेवता), ७००५५(६) नवपद महिमा सज्झाय, मु. विमलविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरसती माता मया करो), ६९३३४-३(+), ६९८०१ नवपद सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुरतरुने सुरमण थकी), ६९०६४-५ नवपद स्तवन, मु. जीतरंग, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (जीया चतुर सुजाणी), ६९१२६-३२ नवपद स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ७, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (भवि भक्ति धरी नवपद), ७०२०६-२(+) नवपद स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. २३, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (सकल कुशल कमलानो), ७१४९३-१, ७२३०५(#) नवपद स्तुति, आ. जिनहससूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रणमुसुखकारी), ६९९८३-४(+#) । नववाड सज्झाय, मु. केशरकुशल, मा.गु., ढा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर इम भणे), ६९९६६-८(+), ७१३५८-१ नववाड सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., ढा. ११, गा. ९७, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश्वर चरणयुग), ६९०१९(+), ७२५०५ (#$) नागिलाभवदेव सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (भवदत्त भाइ धरि आविओ), ६८९८५-१४(#) नागिलाभवदेव सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (भवदेव भाई घेर आवीया), ७२४८५ नागेश्वरीब्राह्मणी सज्झाय, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (चंपानगरी सोहामणी रे), ७२०८१ नाममाला सूचनिका, पुहिं., गा. २०, पद्य, श्वे., (भाव पदारथ समय धन), ७१४३० नारकीआयुमान विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (रतनप्रभा जघन्य १००००), ७२३२१-१(+) For Private and Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ नारकीभवनद्वार विचार, मा.गु., गद्य, म्पू, (नरक ७ ना भवन सासता), ६८४९१(३) नारदऋषि सज्झाय, मा.गु., पद्य, वे., (तिण काले ने ते समै), ७२४१२(-*७) www.kobatirth.org नारीचरित्र रास, मा.गु., पद्य, श्वे. (--) ७०६७२(+) निंदात्याग सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मम कर जीवडा रे), ६८४५९-३१ नेमराजमति सज्झाय, मु. जसवंतसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( उग्रसेन की ललिन), ७०६१२-४ (+) नेमराजिमती गीत, पंडित जयवंत, मा.गु गा. ३, पद्य, भूपू (ओ सखी अमीय रसाल कड़), ७९२०३-२ 1 नेमराजिमती गीत. ग. जीतसागर, पुहिं. गा. १५, पद्य, मूपू. नेमराजिमती गीत, आ. रत्नसागरसूरि, रा. गा. ८, पद्य, म्पू. " ', " निंदापचीसी, सा. सुखा आर्या, मा.गु., गा. २५, वि. १८५२, पद्य, श्वे. (सरसती देवी मा० कांई), ७११५२(#) निर्मोहीराजा पंढालीयो, मु. रतनचंद, मा.गु., ढा. ५, वि. १८७४, पद्य, श्वे., (निरमोही गुण वरणवुं), ७२१८५ नेमगोपी संवाद- चौबीस चोक, मु. अमृतविजय, मा.गु., चोक २४, वि. १८३९, पद्य, मूपू.. (एक दिवस बसे नेमकुंवर), ६९३५८(१), ७१२४७(+#$), ७२१५५-१(#) י #) राजिमती गीत, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मोहल चढि माहरा नाथनी), ७०४२०-३(#) मराजिमती नवभव स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १७, वि. १७३७, पद्य, मूपू., (नेमजी आव्यारे सहसाव), ७०६३० (४) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (तोरण आया हे सखी कहे). ६९९६८-२ (०), ७१९३१-१, ७२१५४-२ (समुद्रविजय को नेम), ७२५४५-२(+४) राजिमती नवरसो, मु. रूपचंद, मा.गु. डा. ९, गा. ४०, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत चंदलो), ७२६४३, ७१३६९ (३), ६९३६९-२/ राजिमती पद, मु. अमृत, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (देखन दे मुझ नेम), ७१९०९-६ राजिमती पद, मु. चिमनसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेने कैसी मोहनी नारी), ७२७७३-३(+#) नेमराजिमती पद, मु. चेनविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (राजुल पोकारे नेम), ७२२९४-५ (+) नेमराजिमती पद, आ. जिनसिंह सूरि, मा.गु, गा. ६, पद्य, भूपू (इवडो ग्वान धरो छो), ७२०६२-६(+#) " ५६९ राजिमती पद, मु. रंगविजय, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., ( नहि ज्याने दुगी मे), ७०६१२-३(+) मराजिमती पद, मु. शिवरत्न, मा.गु, गा. ३, पद्य, मूपू (नेम न जाणे मोरी पीर), ६९१२६-३३, ७१९०९-३ "" नेमराजिमती बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. १३, पद्य, भूपू., (सांवण मासे स्वाम), ७१९१५-१(३) ७२४१९-१(#) नेमराजिमती बारमासो, मु. लालविनोद, पुहिं., गा. २६, पद्य, मूपू., (विनवे उग्रसेन की), ७१५७०-१(#$) नेमराजिमती बारमासो, मा.गु. गा. ५०, पद्य, भूपू (प्रेम गहेली पदमणी), ७२७७८ (क) नेमराजिमती रास, मु. पुण्यरत्न, मा.गु., गा. ७०, पद्य, मूपू., (सारद पय पणमी करी), ७२५६७(+#), ७२७३१-१(+), ७२४३८(#$), ६९३४२.७(*) नेमराजिमती रास, मु. समवप्रमोद, मा.गु., गा. ९८, वि. १६६३, पद्य, मूपू (--), ७२१९१(०३) नेमराजिमती लेख, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीरेवंतगिर ), ६९३६९-२६(#) नेमराजिमती संवाद, मु. लालविनोद, पुहिं., दोहा. ४८, पद्य, मूपू.. (व्याहन को खूब आए), ७०४८१-३(*) नेमराजिमती सज्झाय, मु. आनंदवर्द्धन, मा.गु., गा. ८, पद्य, म्पू, (उंचो गढ गिरिनारनी), ७२६२७-२ (+) मराजिमती सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. १५. वि. १७७१, पद्य, म्पू. (राणी राजुल करजोडी), ६९०६४-१९ नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (नेम कांइ फिर चाल्या), ६९७१६-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (हो राजमती नेम तणी), ७२०६९ नेमराजिमती सज्झाय, दानमल, रा., ढा. १, गा. ९, पद्य, वे., (श्रीजादुपतजीरी सुरत), ६९९७० नेमराजिमती सज्झाय, वा. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (जल थल जलधर पूरवै सखी), ६९९५९-२(+) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रंगसोम, रा., गा. ११, पद्य, मूपू., (विनवे राजुल नारी हो), ७२०९१-२ " नेमराजिमती सज्झाय, मु. खेमो ऋषि, मा.गु., गा. १५, वि. १७३०, पद्य, श्वे. (श्रीनेमिसर नित नमु), ७२११६-१, ७२४४१-६(#$) नेमराजिमती सज्झाय, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. ११, पद्य, वे (समुदविजयसुत लाडलो), ७२२६५-१/-) नेमराजिमती सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, मृपू., ( कांइ रिसाणो हो नेम), ६९३५२-४१०) , For Private and Personal Use Only Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ नेमराजिमती सज्झाय, श्राव. रुपचंद, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (अणसमजूंजी सी सीखामण), ६८४५९-२७ नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (नेमजी जाओ तो तुमने), ७२३५७-१(#) नेमराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पियुजी पियुजी रे), ६८४५९-१४ नेमराजिमती सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (बेकर जोडीने वीनवू), ७१२०६-१ नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेमि), ७२८६० नेमराजिमती सज्झाय, मु. सोमचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (नेम जणेसर केसर), ७२५०३-२ नेमराजिमती सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (कपूर हुवे अति उजलो), ६९३६९-७(#) नेमराजिमती सज्झाय, रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (ज्ञान जिनवरजी आणै), ७२४२१-३ नेमराजिमती सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (तोरण आया साहिबा हो), ७२४४१-५(#$) नेमराजिमतीस्तवन, मु. चतुरकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय सुत नेम), ७०६११-३ नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (राजुल कहे रथ वालो), ७२८३९-५(4) नेमराजिमती स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (का रथ वाळो हो राज), ७२८३९-४(#) नेमराजिमती स्तवन, मु. शिवचंद, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., (जउ थे चाले शिवपुरी), ६९९६८-३(+) नेमराजिमती स्तवन-१५ तिथिगर्भित, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (जे जिनमुखकमले विराजे),७१९२२-२(+$) नेमराजिमती स्तवन-लघु, मु. हर्षचंद, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (कांइ हठ मांड्यो छे), ६९९५९-३(+) नेमिजिन गहुंली-श्रीकृष्ण पट्टराणी द्वारा, मु. रतन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सखी नेमजीणंदहरी), ७२१४२-५ नेमिजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (अरहा अरिट्ठनेमि एकदा), ७२५९६(#) नेमिजिन चरित्र, मा.गु., पद्य, मूपू., (एकदिवस संखराजान रे), ६८५२१(+$) नेमिजिन चरित्र-नवभव वर्णन, मा.गु., पद्य, मूपू., (नवभव श्रीनेमनाथना), ७०८०२(#$) नेमिजिनचोमासुंस्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मोरा सम मा जावो रे), ७००३९-२ नेमिजिन पद, मु. भूषण, रा., गा. ४, पद्य, श्वे., (नेम निरंजन ध्यावो रे), ७१५७२-३(#) नेमिजिन पद, मु.रूपचंद, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (घरे आवोरे पूछु एक), ७०४२०-२(2) नेमिजिन पद, पुहि., दोहा. ४, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय राजा तिहा), ७०३०७-४ नेमिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सांवलो मानु भावदा), ६९१२६-२१ नेमिजिन फाग, मु. राजहर्ष, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (भोगी रैमन भावीयो रे), ७२६३१-१(+$) नेमिजिन बारमासो, मु. उत्तमविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (वाल्हा श्रावण मासे), ७२४०३-१ नेमिजिन बारमासो, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (प्रेम बिलूधी पदमणी), ७२२४४ नेमिजिन बारमासो, मु. सुजस, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (घन गुहिरे कारी घटा), ७२७१२-१ नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजयरा पुत), ६९७५६ नेमिजिन बारमासो, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस श्रावण केरो सखडा), ७०९६४-२(#) नेमिजिन भ्रमरगीता, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय कुलचंदलो),७०८८४(+), ७१६७७ नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (तुम तजीय कर राजुल), ६९३४९-७(#) नेमिजिन विवाहलो, मु. वीर, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (हवे विवाह सामग्री), ६९३३४-७(+) नेमिजिन श्लोक, मु. कुशलकल्याण, मा.गु., गा. ७२, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (वाणी वरसति सरसति), ७२७३१-२(+) नेमिजिन सज्झाय, मु. ज्ञानप्रवीण, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (--), ६९३५२-६(#$) नेमिजिन सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (मैलासु उतरियो राजी), ७०७१५(६) नेमिजिन स्तवन, वा. उदयविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू., (पशु पुकार सुण्या), ६९३४०-१०(#), ७१७३८(2) नेमिजिन स्तवन, मु. उदयसिंघ ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, वि. १७६५, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर नित नमु), ७२०७०-२(#) नेमिजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (गिरवर मह जिम सुरगिरि), ६८७२७-२ नेमिजिन स्तवन, आ. जयदेवसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सहेलि तोरण आयो हे), ६९३४०-१९(#) For Private and Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५७१ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (नेमिजिणेसर नित नमुं), ७०६११-१ नेमिजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (राजुल छोडी नेमजी), ७२५७१-२(2) नेमिजिन स्तवन, ग. देवकुशल, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हां रे वाहला नेमीसरि), ६९९०७-३(+) नेमिजिन स्तवन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रीतम तोरण आवीने), ६८९८३-२(+) नेमिजिन स्तवन, पं. मनरूपसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सौरीपुर नगर सुहामणो), ७२२२५-५(#) नेमिजिन स्तवन, मु. रूचिरविमल, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिवादेवी सुत सुखदाया), ७२६३१-२(+) नेमिजिन स्तवन, मु. रूपचंद, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (घेर आवोने नेम वरणागी), ६९३५९-१०(#) नेमिजिन स्तवन, मु. लब्धिसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुथी लागी प्रीतडी), ७२०६२-५(+#) नेमिजिन स्तवन, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (धन धन नेमकुमर समुद्र), ६९०६४-३७ नेमिजिन स्तवन, मु. सुंदर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विनतडी अवधारो हो), ६९६६०-२(+#) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (समरी सरसती सुहामणी),७०९९२-१३(+$) नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (सुणो स्वामि हमारा रे), ७२४०३-२ नेमिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (--), ६९८४२-१(+$) नेमिजिन स्तवन-औपदेशिक, मुरली, पुहिं., गा. ६, पद्य, श्वे., (दिल ने दुरमत से कहा), ७१४६४-४(+) नेमिजिन स्तवन-ज्ञानपंचमीपर्व, ग. दयाकुशल, मा.गु., ढा. ३, गा. ३४, पद्य, मूपू., (शारद मात पसाउले निज), ७२२२५-१(4), ७२७४०-१(2) नेमिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (श्रावण सुदि दिन), ६९७९३-३(+#$) नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सरव सुख दायका नेम), ७२१५२-३ नेमिजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुर असुर वंदित पाय), ६९८८३-२, ७१९०४, ७२६७३-१(६) नेमिजिन स्तुति-गिरनारमंडन, आ.जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू, (गिरनारसिहरि पर नेमि), ७२६७३-३ पंचकल्याणक मंगल, मु. रूपचंद्र, मा.गु., ढा. ५, गा. २५, पद्य, श्वे., (पणमवि पंच परम गुरु), ६८५०५-२(#5), ६८६०५-१(#) पंचकल्याणक स्तवन, मु. पुण्यसागर, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (नमिय पयकमल सुभ भावि), ७२२५६-३ पंचतीर्थ स्तुति, मु. धर्मविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आबू अष्टापद विमलाचल), ७१९६१-१(+) पंचपरमेष्ठि गुण, मा.गु., गद्य, मूपू., (बारगुण अरिहंता सिद्ध), ७२२९८-२(2) पंचपरमेष्ठि वंदना, मा.गु., गद्य, श्वे., (नमो अरिहंताणं नमो),७१६६४(६) पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. २, गा. ३०, पद्य, स्था., (धर्मकथा हिरदे धरो), ७२१५१(+) पंचमआरा सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर कहै गोयम सूणो), ६९०६४-१ पंचमआरा सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (पंच आराना भाव रे), ६८४५९-२२, ७२६५०(#$) पंचमीतप स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (पंचमीतप तुमे करोरे), ७२१४०-१ पंचमीतिथि चैत्यवंदन, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पंचमी दिन परपंचने), ६९१०४-५ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, भूपू., (सद्गुरू चरण पसाउले), ७१७०८-१ पंचमीतिथि सज्झाय, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (जी रेम्हारे प्रणमी), ६९१०४-८ पंचमीतिथि स्तवन, मु. राजेंद्र, मा.गु., ढा. २, गा. ४७, वि. १९५८, पद्य, मूपू., (समरि श्रुतदेवी सूरि), ६९१०४-७ पंचमीतिथि स्तवन, मु. वर्धमान ऋषि, मा.गु., ढा. ४, गा. ४३, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (सारद प्रणमी पाये सकल), ६९४२१(#$) पंचमीतिथि स्तुति, मु. भावसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेमि जिनेसर भुवन), ७२१११-४ पंचमीतिथि स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचरूप करि मेरुशिखर), ६९८१२-१ पंचमेरु पूजा विधान, जै.क.टेकचंद, पुहिं., पूजा. ५, पद्य, दि., (वानी पूजौ देवां केरी), ६९१३२(+#) पंचेंद्रिय स्तवन, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रोतेंद्रि नीज बस),७०२४४(-#$) पक्षीशकुन विचार, मा.गु., प+ग., (पंथा धायवो खगेस जोडा), ६९३४०-२३(#) पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (तिहां गुरु परपाटि), ६८४५२-२(+) For Private and Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पट्टावली तपागच्छीय, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमान), ७०३३९(+), ७१४४५(+#$), ७१४४८ पडिलेहणविचार संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (साधु श्रावकना ५० बोल), ७२७९४-४ पदार्थादि के १०० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (समचै जीवमै जीवना), ७१९६३-५(+) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (कागलीयु करतार भणी), ७२२२५-४(#) पद्मप्रभजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (प्रह उठी प्रभाते), ६९३५५-६(#) पद्मप्रभजिन स्तवन-नाडोलमंडन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीपद्मप्रभु जिनराय), ६९९६७-१(६) पद्मप्रभजिन स्तवन-संप्रतिराजावर्णनगर्भित, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (धन धन संप्रति साचो), ७१६७२-२(#) पद्मप्रभुजिन स्तवन, मु. कनक, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (सूरत ताहरी देखने), ७२४४१-९(#) । पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (हवे राणी पद्मावती), ६९१३५-२(+#), ६९६७२(+#),७०३८८(+),७०५५७-१(+$), ७२३६९-१(+#), ६८४५९-२०, ७२२०१, ६८६१७-२(#), ६९१२२-१(#), ७२४०८(२), ७२८५६(#), ७१६२८(६), ७२०५६(६) पद्मावतीदेवी स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (जय जय जिनशासन सामिनी), ७२७१५-३(2) पद्मिन्यादि नारीलक्षण कवित्त, पुहिं., गा. ४, पद्य, वै., (पुष्पगंध पद्मनी सेहज), ७००५९-४ परनारी परिहार सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (नेह न कीजे रे जीव पर), ६९३६९-१५(-2) परनारीपरिहार सज्झाय, रा., गा. २८, पद्य, श्वे., (सुण मेरा चुत्र सुजाण), ७०२९७(+) परनिंदात्याग पद, भैया, पुहि., पद. १, पद्य, श्वे., (परनिंदा त्याग करि मन), ७२४१९-७(#) परमात्म गीत, मु. तीर्थजय, पुहिं., गा. ७, पद्य, भूपू., (एक अलेख दुनी का राजा), ७१५७३-२(+#) परमात्मछत्रीसी, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (परमदेव परमातमा परम), ७१४६१-१(2) परमार्थ हिंडोलना, क. केसवदास, पुहि., गा. ८, पद्य, दि.?, (हरख हिंडोलना झूलत), ७०८७७($) पर्युषणपर्व चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (पर्व पर्युषण गुणनीलो), ६८५५६-३(+$), ६९७७३(+),७१३६३-१(+) पर्युषणपर्व नमस्कार, मु. धीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडणो), ७०२०५(#) पर्युषणपर्व व्याख्यानमाला, मा.गु., गद्य, श्वे., (जिम कोई करा जानै १), ७२५९८(+$) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. अमीविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, म्पू., (कल्पसुत्र पूजो उछरंग), ६९३३४-४(+) पर्युषणपर्व स्तवन, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सुणजो साजन संत पजुसण), ६८५५६-१४(+$) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परव पजुसण पुण्ये), ६८९८०-७ पर्युषणपर्व स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वली वली हुंध्यावं),७०७४८-८(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (वरस दिवसमां अषाड), ६८५५६-१५(+$) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. बुधविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वीरजिणेसर अतिअलवेसर),७१६८३-२(+#), ७१०२३-२ पर्युषणपर्व स्तुति, मु. मानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सत्तरे भेदे जिन पूजा), ७१६८३-४(+#s) पर्युषणपर्व स्तुति, ग. रंगविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मपू., (सासन नायक वीरजिनेसर),७१९२४-३(#) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण पुण्ये), ७१६८३-३(+#), ७१९२६(+) पर्युषणपर्व स्तुति, मु. सुगुणचंद, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (--),७१६८३-१(+#$) पहाडा, मा.गु., गद्य, वै., (एक कां एकउ बिइ का), ७१५०२-२, ६८६१२-२(#$) पहाडा, अज्ञा., को., (--), ६८६२०-४(4) पांडव रास, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., खं. ९ ढाल १५१, ग्रं. ५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू., (श्रीजिन आदिजिनेश्वरू), ६९१०५ (#$), ६९१२९(#$), ७१७२२(६) । पाक्षिकप्रतिक्रमण विधि, मा.गु., गद्य, म्पू., (देवसी अर्धनु वंदेतु), ७००१०-१($) पाक्षिकप्रतिक्रमण सज्झाय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (देवसिउं वंदेतु कहीने), ७००१०-२ पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमंत्री रास, मु. लालचंद, मा.गु., ढा. ३९, गा. ५३५, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणेसर परगडो), ६९१९२(+#) For Private and Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ पार्श्वजिन अमृतधुन-गोडी, मु. जिनचंद, पुहि., गा. ८, पद्य, मूपू., (झिगमग झिगमग जेहनी), ७१६३०-२(#) पार्श्वजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ अनाथ), ७२५९४ पार्श्वजिन चरित्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श्वनाथ दीधा), ७२५९५(#) पार्श्वजिन चैत्यवंदन-शंखेश्वरतीर्थ, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (सकल भविजन चमत्कारी), ७१०७१(+#) पार्श्वजिन चौढालिया, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., ढा. ४, गा. ३६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन माहरो रे), ६८४५४-२(+#) पार्श्वजिन छंद, मु. खेतसी ऋषि, मा.गु., गा. १४, पद्य, श्वे., (विमल बुधदायक ब्रह्मा), ७२२७८(#) पार्श्वजिन छंद, मु. द्यानत, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (नरेंद्र फणींद्र), ७२३५२ पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, वा. भावविजय पं., मा.गु., गा. ६३, पद्य, मूपू., (सरसत मात मना करी), ७०८६९(+#), ६९३८८(१), ७११४७(#s) पार्श्वजिन छंद-अंतरीक्षजी, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा.५५, वि. १५८५, पद्य, मूपू., (सरस वचन दियो सरसति), ६९३६१-७(#5), ७२५९१(#), ६९७११(६) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (सरसति सुमति आप), ७१५१९-१(+$) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दानविजय, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (वाणारसी राया पास), ७१७९५-२ पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जय जय गोडि पास धणी),७२५३१-४(+) पार्श्वजिन छंद-गोडीजी, मा.गु., गा. ४६, पद्य, मूपू., (सुवचन आपो शारदा मया), ७२३११, ७०८८९-२(#), ७२६२१-१(#) पार्श्वजिन छंद-नाकोडातीर्थ, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ८, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (आपण घर बेठा लील करो), ६९३७९ पार्श्वजिन छंद-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सेवो पास शंखेश्वरो), ७०७०९-१, ६८६२०-२(#), ६९३६९-९ पार्श्वजिन छप्पय, पुहिं., पद्य, म्पू., (बुझरक पारसनाथ तुरा०), ६९३५२-५(#$) पार्श्वजिन थाल, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (माता वामादे बोलावे), ६९०६४-३८ पार्श्वजिन निसाणी-घग्घर, मु. जिनहर्ष, पुहि., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुखसंपत्तिदायक सुरनर), ६८६६१(+), ६९६९५-१(+$), ६९३४० ७#$), ६९३४०-११(२), ७२०७८-१(#) पार्श्वजिनपंचकल्याणक पूजा, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ८, वि. १८८९, पद्य, मूपू., (संखेश्वर साहेब सुर), ६८५२३(+#) पार्श्वजिन पद, मु. अमृतधर्म, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन त्रिभुवनपति), ६८६२६-५(2) पार्श्वजिन पद, मु. आनंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सांवरीया हो नाथ डोरी), ६८६०६-२ पार्श्वजिन पद, मु. उदयसागर, पुहिं., पद. ७, पद्य, मूपू., (अब हम कुंज्ञान दीयो), ७१६१२-१ पार्श्वजिन पद, मु. गुणविलास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रभु मेरे कर एसी), ६९१२६-१६ पार्श्वजिन पद, मु. चंद, पुहि., गा.३, पद्य, श्वे., (रूप भलौ जिनजी कौ),७०७२३-४(+#), ६९१२६-२४ पार्श्वजिन पद, मु. धर्मसी, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मेरे मन मानी साहिब), ६९१२६-२६ पार्श्वजिन पद, जै.क. बनारसीदास, पुहिं., गा. ४, पद्य, दि., (दरवाजे तेरेखोल), ६९१२६-१७, ७२३५९-३(2) पार्श्वजिन पद, मु. लालचंद, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (मेरो मन वश कर लीनो), ६९१२६-६ पार्श्वजिन पद, मु. शिवकीर्ति, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज प्यारा पासजी तोसु), ७२४२६-३ पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जालम जोगीडासु लागी), ६९१२६-४ पार्श्वजिन पद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु पास जिणंद की), ७०६३६-२ पार्श्वजिन पद-गोडीजी, मु. धरमसी, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सरसती एह),७०४१४,७२३२०-३(-5) पार्श्वजिन पद-गोडीजी, वा. साधुहर्ष, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मुख निरख्यो), ७२०६२-४(+#) पार्श्वजिन पद-जन्मोत्सव, मु. मान, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (बहु हुवो उछाह वणारसी), ६९३५२-३(#) पार्श्वजिन पद-जीरावला, मु. लाल, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (वदनप्रभा कहो कवन कवन), ७१२५३-३(#) For Private and Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन पद-वाराणसीमंडन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (बनारसी प्रभु पासजी), ६८६०६-८ पार्श्वजिन पद-शंखेश्वरमंडन, मु. भोजसागर, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगीया अजब बनी मेरे), ७१२२३-३ पार्श्वजिन प्रभाति, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सारद वदन अमृतनी वाणी), ७१९७६ पार्श्वजिन बारमासो, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रावण पावस उलह्यो), ६९३५२-१(#S) पार्श्वजिन लावणी-गोडीजी, पंन्या. रूपविजय, पुहिं., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगत भविक जिन पास), ७२६८९-१(+#), ७२५४४-१ पार्श्वजिन विवाहलो, मु.रंगविजय, मा.गु., ढा. १८, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक), ६९३७६(+-$) पार्श्वजिन सलोको, जोरावरमल पंचोली, रा., गा. ५६, वि. १८५१, पद्य, श्वे., वै., (प्रणमुं परमातम अविचल), ६९८५६(+), ७२६५५(#) पार्श्वजिन सवैया, मु. लाल, पुहिं., सवै. १, पद्य, श्वे., (अश्वसेन नरिंदह इंद), ७१२५३-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वंदीजे प्रभुपास जाय), ६८६०६-५ पार्श्वजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मुझ सरीखा मेवासीने), ६८६१६-१८(2) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (नीलडी बुटीनो जामो), ७२६०४-३() पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. २२, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (तारक देव त्रेवीसमो),७२१३८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (बलिहारी हुँ उस पास), ७२०६२-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (गुरु प्रणमी पाया गाउ),७२५७३-२($) पार्श्वजिन स्तवन, ग. कान्हजी, मा.गु., गा.५, पद्य, श्वे., (वंछित पूरण पास नंदन), ६९३६९-२०(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. कीरत, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (श्रीसुगुरु चिंतामणि),७१६७६-३(#), ७२०३६(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (निरमल होय भजले प्रभु), ६९१२६-८ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (अश्वसेनजीरा वावा), ७२३३२-१ पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुगण सनेही जिनजी अरज),७०५७८-१(+$) पार्श्वजिन स्तवन, मु. जिनचंद्र, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (जय बोलो पास जिनेसर), ७१९३८-१ पार्श्वजिन स्तवन, आ. जिनहर्षसूरि, पुहि., गा.५, पद्य, मूपू., (जिनराज नाम तेरा राखु), ६९१२६-२ पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंखीयां हरखण लागी), ७१३१०-३(#) पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन पास बडे धमचक्कु), ६९८१५-२(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रावण मास सुहामणो), ७२८३४-२(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. धर्मसीह, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मोयो मोयो री पास), ७२३३२-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. भोज, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (प्रणमुंपासजिणंद), ६९३७९-५(2) पार्श्वजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू., (श्रीपासजी प्रगट), ६९३५९-२(2) पार्श्वजिन स्तवन, पं. रंगवल्लभ गणि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सफल दिवस हुतो तेहिज), ७२४४८-२(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (पासजिणेसर तुमने), ६८६१२-७(#) पार्श्वजिन स्तवन, मु. विनयचंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीपास जिणेसर सामी), ७२१८६-८ पार्श्वजिन स्तवन, पं. विनयविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (पास जिनेसर माहरै मन), ७२४४१-४(#) पार्श्वजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सेरी मांहि रमतो दीठो), ७०६५९-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. शोभाचंद, मा.गु., गा. ९, वि. १७८९, पद्य, मूपू., (प्रभु अरज करुं करजोड), ६९३४२-६(2) पार्श्वजिन स्तवन, मु. हितविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एक पुरुष मे नवलो), ६९९८४-५ पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (आस तुमारी हो पासजी), ६९९१३-३(2) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (नरेंद्र फणींद्र),७२०५१(६) पार्श्वजिन स्तवन, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्यारी पास की देखी), ६९१२६-४१ पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, म्पू., (वामानंद जगजन वंदन), ६८४७६-५(#$) पार्श्वजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सकल पदारथ पूरवइ), ६९७६५(+$) For Private and Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ पार्श्वजिन स्तवन- १२ पर्षदा सहित, मु. हापराज, मा.गु., ढा. ३, गा. १९, पद्य, मूपू., (जय निरुपमगुणि निकलंक), ७०५५२(+) पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु गा. २४, पच, मूपू (प्रणमुं पारसनाथ प्रह), ७१२७७(+३), ७२७१७(*), ७२०५३(क) " (२) पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित - टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रह समै पारस्वनाथजी), ७१२७७(+#$), ७२७१७(+), ७२०५३(MS) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुर गोडीजी इतिहास वर्णन, मु. प्रीतिविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ५५, वि. १७वी, पद्य, मू., ( ब्रह्मवादिनी), ६९८८६ (+), ६९३७८, ७२०८८, ६८६६२-१(०६) ७०७१०(३) ७०९२५ (३) पार्श्वजिन स्तवन- अमीझरा, मु. जिनराज, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (परतखि पास अमीझरौ भेट), ७२४८३(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. उदयरतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (गोडी पासजी दरीसण), ६८६१६-१४(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारो पारसनाथ पूजा), ६८६१६-१३(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. कनकसुंदर, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (साचो साहिब निरधारी), ६९१२६-११ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. केसरविमल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (लाखेणो सोहोवे जनजी), ६९३६९-२७(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. चारित्रकीर्ति, रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (वा खास रसो है गोडी), ७२०४८-१ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. जगरूप, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुजस तुमारो हो श्रवण), ७२०६२-३(+#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. जिनचंद्र, पुहिं. गा. ९. वि. १७२२, पद्य, भूपू. ( अमल कमल जिम धवल), ६९१२६-४४ " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. जीवणविजय, मा.गु., ढा. २, गा. १०, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (साहिब गोडी पासजिणंद), ६९९८४-४ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. दीपविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (लाखीणो सोहावें जिनजी), ६९९६९-१( पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मूरति मननी मोहनी सखी), ६९३५२-२शक पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. भोजसागर, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (तुं घट आव गोडी प्रभु), ७१२२३-१ " पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मानविजय, मा.गु., गा. १०, वि. १८५१, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचरण कमल), ७१७०१-२(+#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (लाखेणो सोहावो जिनजी), ६९३४०-३(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्राण थकी प्यारो), ७२०८२-२, ७१३१२-३(०), ७२४४१ ८(०) ७२५५९-२००१ पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (मुजरो थें मानो हो), ७२८३४-३(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. वसता, रा., गा. १५, पद्य, श्वे., पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी मु. वृद्धि, मा.गु गा. ७, पद्य, मृपू (जोर बन्यो जोर बन्यो), ७२७७९(+) (मुजरो छह मुजरो छइ), ७१४५८(१) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४१, वि. १६६७, पद्य, मूपू., ( वदन अनोपम चंदलो गोडि), ७२६१९(#) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीगोडीचा रे तु), ६९३६९-२५(#) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. कमलरत्न, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (भवियण श्रीचिंतामणि), ६९३५२-७(#) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. चिमनसागर, मा.गु, गा. ६, पद्य, मृपू, (प्रभु मुझ तारो रे), ७२७७३-१ (+) ५७५ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. मोहन, पुहिं., पद्य, मूपू., (मोहन पास को मुख नीको), ६९३५२-८(#S) पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. रतनविजय, मा.गु., गा. ५, वि. १९१४, पद्य, मूपू.. (अटक्यो मन महाराज लटक), ७२१४२-३ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मु. वखता, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीचंतामण पासजिन), ६९६६९-१ पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू (आणी मनसुध आसता देव), ६९९६९-२८ ) For Private and Personal Use Only पार्श्वजिन स्तवन- चिंतामणि, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीपास चिंतामणि जेम), ७०४०६-२(+#$) पार्श्वजिन स्तवन- जिनप्रतिमास्थापनगर्भित, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, म्पू, (जिनप्रतिमा हो जिन), ७००६६-१, ६८६१२-४(#) Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जीराउलि मंडण श्रीपास), ६९८०४(2) पार्श्वजिन स्तवन-तिमरीपुरमंडन, मु. ज्ञानउदय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (श्रीतिमरीपुर पासजी), ७०९६२-२(4) पार्श्वजिन स्तवन-दक्षण करहेटक, मु. खेमकलश, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (महिमंडल श्रुणि श्रवण), ६९३४०-१६(2) पार्श्वजिन स्तवन-नवपल्लव, मु. लावण्यसमय, मा.गु., गा. ३७, वि. १५५८, पद्य, मूपू., (ए तु सुपन देई पन्नर), ७०९६४-१(#S) पार्श्वजिन स्तवन-पल्लविया, मु. रंगविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष परमेसरु), ७०७१८-२(+$), ६८६६२-५(4), ६९८१५ १(#) पार्श्वजिन स्तवन-पुरुषादानी, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहि., गा.८, पद्य, मूपू., (दीनानाथ को दयारस), ६८६१६-१०(#) पार्श्वजिन स्तवन-प्रभाति, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (उठो रे मारा आतमराम), ६९१२६-३८ पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ५, वि. १९०८, पद्य, मूपू., (वामानंदन नितप्रति), ६८४७६-३(2) पार्श्वजिन स्तवन-फलवर्द्धितीर्थ, मु. श्रीसार, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (परतापूरण प्रणमीइ अरि),७२३२०-२(-) पार्श्वजिन स्तवन-बहिपुर, मु. जिनचंद, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नंदन जगजन), ६८४७६-४(#) । पार्श्वजिन स्तवन-बीबडोद मंडण, मु. गोडीदास, मा.गु., गा.७, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (सुणो हो सांवलीया), ६८६१२-८(2) पार्श्वजिन स्तवन-बोरनगर मंडण, मु. केसरविजय, रा., गा.१०, वि. १९४१, पद्य, मूपू., (पारस थारि निरखण दो), ६९०६४-३९ पार्श्वजिन स्तवन-भाभा, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालाजी पांच मंगलवार), ६९३५९-१५(2) पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. लाभउदय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शा माटे साहेब साहमु), ७१५२९ पार्श्वजिन स्तवन-भीडभंजन, मु. हंस, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (भीडभंजन पासजी प्रभु), ६८६१६-७(२) पार्श्वजिन स्तवन-मनमोहन, मु. पुण्य, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनसे नेह बन्यो), ७१२०७-३ पार्श्वजिन स्तवन-लोद्रवपुरमंडन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. १३, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (--), ६९६२५-१($) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, आ. जिनहर्षसूरि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुं मन), ६९३७९-१(2) पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन, मु. हरखकुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काइ रे जीव तुम), ७२१५४-१ पार्श्वजिन स्तवन-वरकाणामंडन पुरुषादानी, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ५, वि. १९०९, पद्य, मूपू., (पुरिसादानी पासजिनेसर), ६८४७६-२(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. अमीसुंदर शिष्य, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (भारति चरणकमल नमी वली), ७२६८७-३ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरतन, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आप अरुपी होय नय प्रभ), ६८६१६-६(#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, वा. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, वि. १७८०, पद्य, मूपू., (पासजी तोरा पाय पलक), ७२२५९-५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा.११, पद्य, मूपू., (लगी लगी आंखीआने रही),७२०६२-१०(+#) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (सामी सुणो मुज वीनती), ७२५७३-१ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, आ. जिनचंदसूरि, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर पासजिन),७००४०-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. धर्मविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. १२८, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वर समरीने), ६८४५३(+#$) (२) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वर-टबार्थ, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीउपासगदशांगसूत्र), ६८४५३(+#S) पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (रहिने रहिने रहिने), ७१०७८-४ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. विनयशील, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सकल मुरत श्रीपास), ७०६४०-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरतीर्थ, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (श्रीसंखेसर पासजी तुझ), ६९७१५ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. भोजसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जय जय तुंजगदीसर), ७१२२३-२ पार्श्वजिन स्तवन-शंखेश्वरमंडन, मु. वृद्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीशंखेश्वरपासजिणंद), ७२५४३-२(+) पार्श्वजिन स्तवन-सम्मेतशिखरतीर्थ, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (समेतशिखर जिन वंदीये), ७१६२०-३(+) पार्श्वजिन स्तवन-सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., गा. ९, वि. १८१७, पद्य, मूपू., (सहसफणा प्रभु पासजी), ७२८२५-३(+#$) पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (थंभणपुर श्रीपास जिण), ६९३७९-८(१), ७२८३४-१(#) For Private and Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१० पार्श्वजिन स्तुति, आ. जिनभक्तिसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अश्वसेन नरेसर वामा), ७०७४८-१ (+), ७२६७३-६, ७०५५९-५($) पार्श्वजिन स्तुति - गोडीजी, मु. भाणविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (परम प्रभु परमेश्वर), ६९८१२-२, ७२४९७-३ पार्श्वजिन स्तुति - घोघाविंदरमंडन नवखंडा, मु. खिमाविजय, मा.गु, गा. १, पद्य, मूपू (घोघाबिंदर गुणमणि), ६८९८३-१०(+) पार्श्वजिन स्तुति-शंखेश्वरमंडन, मा.गु., पद्य, मूपू., ( श्रीशंखेसर सिवसुख), ७१९२४-४ (#S) पार्श्वजिन स्तुति - शामला, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरु महीधर सुंदर), ७११२९-१(+) पार्श्वजिन स्तोत्र - शंखेश्वरतीर्थ, मु. मेघराज, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसकल सार सुरतरु), ६९९८४-२, ७२५४४-२, ७०८०७ (#) पार्श्वजिन होरी - शंखेश्वर, मु. उत्तम, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (आई वसंत रतु आज रे), ७१५७२-१(#) पार्श्वनजिन स्तवन, मु. माणेक, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (काशी देश वाराणसी सुख), ७२१७९ (+) पार्श्वनाथ अमृतध्वनि, मु. जसराज, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (चित्त धरि गुन ॐकार), ७१६३०-१(#) पावागिरि चैत्र प्रवाडि, ग. अनंतहंस, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (सिरि सरसति सामिणि), ७२२३७ पासत्था के बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (आधाकर्मीपिढ फलग भोग), ७११६९-२(#) पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु. गा. ३६, वि. १६६९, पद्य, मूपू (पुण्यतणां फल परतखि), ७१७३९-१ ', " पुण्यपाप सज्झाय, पुहिं., ढा. २, पद्य, मूपू., (चारुं गत में भटकतां), ७०१०२-२(+$) पुण्यपालगुणसुंदरी रास, मु, मोहनविजय, मा.गु, डा. पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा. ८ ७०४०१-१(०३), ७२०९० (5) י: पुण्य सज्झाय, मु. माणेक, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर प्रणमीं), ७२०३४ (+) पुद्गलगीता, मु. चिदानंद, मा.गु., गा. १०८, पद्य, मूपू., (संतो देखीयें बे), ६८५०९ (+) पुद्रलपरावर्तन विचार, मा.गु., गद्य, भूपू (द्रव्य क्षेत्र काल), ७०५५५-२, ७२४३५ (३) " י' יי Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ३६ गा. ७७५ वि. १७६३, पद्य, भूपू (सकलसिद्धि दायक सदा), ७१९५३(३) गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, भूपू (सकल सिद्धिदायक सदा), ७२८२९(+*), पुद्रलबत्तीसी, पं. दोलतरुचि, मा.गु., गा. ३३. वि. १९५५, पद्य, मूपू (हो जीउरा पुद्गल संग), ६८५३० २३(*) (जिनपति संभव संजम), ७२६४८- ४(३) (श्रीजिनवीर जिणेसरु), ७०१४७ + पूर्णिमातिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु. गा. ४, पद्य, मूपू पृथ्वीचंदसागरचंद चौढालिया, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, पद्य, वे., पृथ्वीचंद्रगुणसागर सज्झाय, पंडित जीवविजय, मा.गु., डा. ३, गा. ६८, पद्य, भूपू (शासननायक सुखकरु वंदी), ६९०६४-२७(5) पौषदशमीपर्व स्तुति, मु. धीरविजय, मा.गु, गा. ४, पद्य, मूपू (श्रीसंखेश्वर पास), ७१९२४-१(क) पौषव्रत सज्झाय, मु. गुणलाभ, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (पहिलु समरण आणीयइ), ७२०५७ पौषधसामाइक सज्झाय, पं. सुमतिकमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (वीर जिणवर रे पासि), ७२४८८ प्रदेशीराजा चौढालियो, मा.गु., ढा. ४, पद्य, मूपू., (हाथ जोडी करै वीनती), ७०४८० ($) प्रदेशीराजा चौपाई, मु. जैमल ऋषि, मा.गु. दा. २२, वि. १८७७, पद्य, स्था. (तिण कालने तिण समै), ६८५३१ (क) प्रमुख राजाओं के द्वारा ऐतिहासिक नगरीयों की स्थापना का इतिहास, रा., गद्य, जै. ?, (संवत १६१६ पातस्याह), ७१४४४ 2(+as) " प्रसन्नचंद्रराजर्षि सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं तुमारा पाय), ७१७३०-३(+#) प्रहेलिका संग्रह, पुहिं., गा. ४, पद्य, श्वे. (पवन को करें तोल गगन), ६९७७२-२, ७२६९२-४ प्रहेलिका संग्रह, मा.गु., गा. ८, पद्य, जै. ?, (सरोवर पाय पखारति), ६९६६८-४(#) प्रात:मंगल पद, मु. पद्म, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (प्रणमी ते निज गुरु), ६८९८३-४(+) प्रायश्चित्तप्रदान बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, मूपू., (ज्ञान आसातनाई जघन्य), ७११७६ प्रास्ताविक कवित संग्रह, पुहिं. पद. ११, पद्य, वे. (माता पिता जुवती सुत) ७१४१४-२ (*) प्रास्ताविक कवित्त, क. मान, " , 19 मा.गु. का. १, पद्य, वै.? (दिन दोहरा दशवीश कहौ), ७१२३६-३ ५७७ יי For Private and Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५७८ www.kobatirth.org देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ " प्रास्ताविक दोहा संग्रह, पुहिं., मा.गु., गा. ७१, पद्य, श्वे. (पडिवन्नइ माछा भला, ७०९६५-२, ६९२१७(#$) प्रास्ताविक दोहा संग्रह में, मा.गु. रा., गा. २५, पद्य, वै., (बुरी प्रीत भमर की), ७२१८८-२(+), ७२०७८-२(१) प्रास्ताविक पद, सुंदर, पुहिं., पद. ३, पद्य, वै., (आवो चंद्रवदनी), ७२२५०-८(+) " प्रास्ताविक सवैया, सुंदर, पुहिं., सवै. १, पद्य, वै., (सुखासन सवारी गज घूमत), ७२२५०-९ (+) प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद्गुरु पाय), ७२५०६ (MS) (२) फूलडा सज्झायटीका, सं., गद्य, मूपू "" Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रीतिछत्रीशी सज्झाय, वा. सहजकीर्ति, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (प्रीति न किणही जीती), ७१४३३ (६) फतेचंदजी महाराज रास, श्राव. जेष्ठाजी, मा.गु., ढा. ५, गा. ८९, वि. १९१२, पद्य, श्वे., (सासणपत श्रीबीरजी), ७२१७२(+) फूलडा सज्झाब, पुहिं. रा. गा. २२, पद्य, मूपू. (बाई रे कोलिंग दीठ), ७१२५४-१००) (श्रीवीर निर्वाणात्), ७१२५४-१(क) "" बरडावीर छंद, मु. हेमविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (--), ७२६१५-३(#$) बरासज्ञानपूजन भास, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (वाणुं वाऊणे उग्यो), ६८९८३-८(+), ६९३३४-६(+) बलभद्रमुनि सज्झाय, मु, मयाचंद, मा.गु., गा. १८, पद्य, वे (द्वारामतिथी), ७२३६७ बारमासा वर्णन, मा.गु., पद्य, जै, वै.2, (आया मास असाढ धूरां), ७२६३३-१(MS) ', बाहुजिन स्तवन, मु. कल्याणसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू. (अरज सुणो रुडा राजिआ), ७०९४८-५ () बीजतिथि चैत्यवंदन, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (राग द्वेष बे अरिहणी), ६९१०४-१ बीजतिथि सज्झाय, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (बीज दिने भवी बीजनुं), ६९१०४-४ बीजतिथि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( बीज कहे भव्य जीवने), ६९७७२-१, ७०७१९-१ बीजतिथि स्तवन, ग. गणेशरुचि, मा.गु., गा. १९, वि. १८१९, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवि पसाउले), ७२८१४, ७१७४६-१(#) बीजतिथि स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. १६, वि. १८७८, पद्य, मूपू., (सरस वचन रस वरसती), ६९८०५-१ बीजतिथि स्तवन, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद पादांबुजे), ६९१०४-३ बीजतिथि स्तुति, मु. राजेंद्र, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (बीज दिने शुभ उदये), ६९१०४-२ बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन सकल मनोहर बीज), ६९४७४-२, ७२१११-१, ७२३८४-२, ७२८१६-१ बीजतिथि स्तुति, मु. वीरसागर, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू (पूर्वदिसि उत्तरविशि) ७०१४४-२(४) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं देवी अंबाई), ७२५५३, ६९३४०-१७ (#$), ७२७४२(#) बुध रास, आ. शालिभद्रसूरि, मा.गु., गा. ६६, पद्य, भूपू. (पणमवी देवी अंबाई), ७२०७७/१६) भरतबाहुबली संवाद, मु. कुशल, मा.गु., गा. ६४, पद्य, मूपू., (सारद माता समरीयेँ), ७२०१५ भारतबाहुबली सज्झाय, मु. विमलकीर्ति, मा.गु., गा. १२, पद्य, भूपू (बाहुबल चारित लीयो), ६९९६८-५ (खा " भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १७वी, पद्य, भूपू., (राजतणा अति लोभीया), ६८४५९-२५ भरतराजा ऋद्धिवर्णन सज्झाय, मु. आसकर्ण ऋषि, मा.गु., गा. २६, वि. १८३५, पद्य, श्वे. (प्रथम सीवरीये ऋषभजिण), ७१६०३ (+#) भवदेवनागिला सज्झाय, मु. रतनचंद ऋषि, मा.गु., गा. ११, वि. १८७२, पद्य, स्था., (भवदेव जागी मोहनी तज), ७२०३२-२ (७) भवानीदेवी गीत, मु. मेघराज, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (आजसु आणंद वरतीया), ७२२६८-९(+#) भाषाभेद बोल संग्रह, मा.गु., गद्य, वे., (केवली असावद्य अपरो), ७२२३०-२(७) भीलडी सज्झाब, मा.गु., गा. २५, पद्य, म्पू, (सरसति सामण विनवुं), ७१२०६-२(७) भृगुपुरोहित सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (०० जन्मा जग उच्छाह), ७२६३७ भैरवजी स्तोत्र - रतनपुरीमंडन, मु. गोविंद, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (करणभीर जन रिद्धिकरण), ७०३६९ (+) भोज्यपदार्थ नाम, मु. ऋषभ, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७२३१६-२($) , For Private and Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ भोलेशंकर सवैया, पुहिं, पद्य, वै., (भोलेनाथ भवानी शंकर), ७१६१२-५ (5) " मंगलकलश रास, मु. दीप्तिविजय, मा.गु., वि. १७४९, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सरसति स्वामी), ६९३४४(#) मधुबिंदु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद शिष्य, मा.गु. दा. ५. गा. १०, पद्म, मूपू (सरसति मुझने रे मात) ६९९६८-४(३), ७२४८६, ', ', ६९३४०-१५(#), ७२७५५-३(#) . मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु.. गा. १६. वि. १८५०, पद्य, स्था. (जंबुदीपै हो भरत), ७१९२३ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, श्वे., (नगरी वनीतां भली वीर), ७०७६७ मरुदेवीमाता सज्झाय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मरुदेवी माता कहे ), ६९०६४-१५ मलयासुंदरी रास, मु, जिनहर्ष, मा.गु खं. ४ ढाल १४८, गा. ३००६, वि. १७५१, पद्य, भूपू (श्रीशांतिसर सोलमो) ६९२८९(*) " महादंडक ३० द्वार, मा.गु., गद्य, मूपू., (दंडक १ लेस्या २ ठिती), ६८५१५ (+#$) महावीरजिन २७ भव वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (अथ हिवइ श्रीमहावीर), ७०१३५ ($) महावीरजिन अभिग्रह, मा.गु., गद्य, श्वे. (द्रव्य थकी अडदना), ७२३४४-३ . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरजिन उपसर्ग सज्झाय, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ कुल उपना), ७०८२८-२, ७२००३-१ (#) महावीरजिन चौढालियो, मु. उदेसींघ, मा.गु., ढा. ४, गा. ३४, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (महावीर प्रणमुं सदा), ७२०७०-१(#) महावीरजिन तप स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (गौतमस्वामीजी बुद्धि), ७१०३०-४(#) . "" " महावीरजिन दशभावक नाम, नगरी, ऋद्धि आदि वर्णन कोष्ठक, मा.गु., को. मूपु. ( आनंद वाणीज्यग्राम), ७२३२१-६ (+) महावीरजिन पंचकल्याणक वधावा, क. दीपविजय, मा.गु., ढा. ५, गा. ५९, पद्य, मूपू., (हुं तो मोही रे नंदला), ७२२१२-१(#) महावीरजिन पंचकल्याणक विवरण, रा. गद्य म्पू (श्रीमहावीरजीरा पांच), ७२६९५-२ " " " महावीरजिन पद, मु. खेम, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू (सिद्धारथसुत सांभली), ६९१२६-२२ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज हमारे भाग वीर), ६९१२६-३६ महावीरजिन पद, मु. जिनचंद, पुर्हि, गा. ३, पद्य, मूपू (प्रभु वीर हमारी क्या) ७२२९४-४(*) महावीरजिन पद, मु. भुवनकीर्ति, पुहिं, गा. ३, पद्य, मूपू., (मो मन वीर सुहावै), ६९१२६-२५ " महावीरजिन पद-जन्मकल्याण, मु. धर्मकल्याण, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (त्रिसलादे कूख जन्म), ७१३१०-२(#) महावीरजिन पद पावापुरीतीर्थ, मु. नवल, पुहिं. गा. ५, पद्य, श्वे. (पावापुरी मुकरा), ६९१२६.१५ - " , महावीरजिन परिवार स्तवन, क. कमलविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वीरजिनेसर सासनसार), ७१५२८-१(+), ७१५२८-२(+), יי ६९८०५-८ महावीरजिन विनती स्तवन- जेसलमेरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज विनती), ७०५७३ ३ (+) महावीरजिन सज्झाय गौतम विलाप, मा.गु. गा. १५, पद्य, मूपु (आधारज हुतो रे एक), ७१०७३ महावीरजिन स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ६, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मन बांध्युं महावीरजी), ७०१४४-१(#) महावीरजिन स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (पावापुरी महावीर रे), ६८६०६-९ (नीजरां रहस्यांजी), ७२४४१-१(७) " " महावीरजिन स्तवन, मु. उदवरत्न, रा. गा. ७, पद्य, भूपू महावीरजिन स्तवन, मु. कुशलचंद ऋषि, रा. गा. ५, पद्य, वे महावीरजिन स्तवन, वा. कुसलसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (आव सहेलीनी थाय बहेली), ६९३५९-७(*) महावीरजिन स्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ७, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (प्रभूगुण प्रीत ए ताह), ६९८०५-४ महावीरजिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, मा.गु., गा. १५. वि. १९वी पद्य, वे. (श्रीमहावीर अंतर्यामी, ७०१०९-२ महावीर जिन स्तवन, मु. चोथमल ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे. (सासननायक सुखकारी), ७०१०९-१ महावीरजिन स्तवन, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (म्हारे भले उगो रे), ६९३५९-१३(#) महावीरजिन स्तवन, पंन्या. पद्मविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर हमणां आवे छे), ७२१०४-२ , (महावीर स्वामीने सीवर) ६९३८०-g(7) ५७९ For Private and Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ महावीरजिन स्तवन, वा. रत्नहर्ष, मा.गु., ढा. १, गा. ९, पद्य, मूपू., (सो दिन हीया सोहामणो), ७२१३० महावीरजिन स्तवन, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. २३, वि. १८३६, पद्य, श्वे., (थे सुणजो हे आरजीया), ७०९५८ महावीरजिन स्तवन, मु. लायककुशल, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो मुज वीनती), ७१५८५-१(#) महावीरजिन स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., ढा.८, गा.७९, वि. १७२९, प+ग., मूपू., (सकलसिधदायक सदा चोवीस),७२२७७ महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चतुर चंपापुरी वनमा), ७२८६९(+#) महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (दसमा सुरग थकी चल्या), ७०४२६(+), ७०८२८-१ महावीरजिन स्तवन, मा.गु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमण संघ तिलकोपम), ६८५५०(#) महावीरजिन स्तवन-१४ स्वप्नगर्भित, क. जैत, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (एक मन वंधु श्रीवीर), ७१४६८(+#) महावीरजिन स्तवन-२७ भवविचारगर्भित, मु. हंसराज, मा.गु., ढा. १०, गा.१००, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसति भगवति दिओ मति), ६९१९१(+) महावीरजिन स्तवन-५ कल्याणक, मु. रामविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. ५६, वि. १७७३, पद्य, मूपू., (शासननायक शिवकरण वंदु), ७२३७०-१(+#), ६९०३५ (#$) महावीरजिन स्तवन-अतिचारगर्भित, उपा. धर्मसी, मा.गु., ढा. ४, गा. ३०, पद्य, मपू., (ए धन सासन वीर जिनवर), ७०५७८-४(+$) महावीरजिन स्तवन-आमलकी क्रीडा, मु. बाथा ऋषि, मा.गु., गा. ९, पद्य, श्वे., (के वर्धमान खेले रे), ७२२५९-१ महावीरजिन स्तवन-उपधानतपविधिगर्भित, मु. विनयविजय, मा.गु., गा. २७, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीवीरजिणेसर सुपरे), ७२७२६(2) महावीरजिन स्तवन-कुमतिउत्थापन सुमतिस्थापन, श्राव. शाह वघो, मा.गु., गा. ४०, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (श्रीश्रुतदेवीनें चरण), ७२८३९-२(#) महावीरजिन स्तवन-तपवर्णन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (कीयो छे मास पांच दिन), ६९०६४-११ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मारग देशक मोक्षनो रे),७२६४४-१ महावीरजिन स्तवन-दीपावलीपर्व निर्वाणमहिमा, मु. गुणहर्ष, मा.गु., ढा. १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., (श्रमणसंघतिलकोपम), ६९४२४(+) महावीरजिन स्तवन-देवद्रव्यउपदेश गर्भित, मु. धर्मचंद्र, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (वीर प्रभु इम बोले), ७२१७१-१(+) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मु. माल, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत अनंत गुण), ६८६०४-४(#) महावीरजिन स्तवन-पारणागर्भित, मा.गु., गा. २८, पद्य, मूपू., (चोमासी इग्यारमी), ७२३४४-१, ७२००३-२(2) महावीरजिन स्तवन-पारणाविनती, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (चोमासी पारणो आवे), ७२८११ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, मु. कमलकलशसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ सारदा), ७२१९० २(+$), ७१४१८(2) महावीरजिन स्तवन-मुनरामंडन, मु. कल्याण, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माहरी वीर प्रभूजीने), ६९३५९-१४(#$) महावीरजिन स्तवन-सम्यक्त्वस्वरूपगर्भित, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., ढा. ३, गा. ३५, पद्य, मूपू., (समकित दायक वीरना पद), ७२०८९-२(+#) महावीरजिन स्तवन-स्याद्वादगर्भित, मु. पुण्यमहोदय, मा.गु., ढा. ३, गा. २७, पद्य, मूपू., (त्रिशलामात सुजात जयो), ७२०८९-१(+#) महावीरजिन स्तुति, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (वरधमान जीनवर वलि), ६९८०५-३ महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जय जय भवि हितकर वीर), ६८५५६-९(+) महावीरजिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (मनोहर मुरति महावीर), ६८५५६-८(+) महावीरजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महावीर मोटो जगनाथ), ७२२२५-३(#) महावीरजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, पू., (बालपणे डाबो पाय), ७०७४८-३(+), ७२३२७-२, ७२६७३-२ महावीरजिन स्तुति-गांधारमंडन, मु. जसविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गंधारे श्रीवीरजिणंद), ६८९८०-२ For Private and Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५८१ महावीरजिन हालरई, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (त्रिशला हरख धरेने),७१७१२-३ माणिभद्रवीर छंद, क. दीपविजय, मा.गु.,गा. १२, पद्य, मूपू., (सरस वचन दे सारदा),७१४८०-१(+#) माणिभद्रवीर छंद, आ. शांतिसूरि, मा.गु., गा. ४३, पद्य, म्पू., (सरसति सामनि पाय), ६९२७६-२ माणिभद्रवीर छंद, मु. शांतिसोम, मा.गु., गा. ४४, पद्य, भूपू., (सरस्वती स्वामनी पाय), ७१२८७-१, ७२०९९(#) माणिभद्रवीर छंद, मु. शिवकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (श्रीमाणिभद्र सदा), ७२५८६-२ माणिभद्रवीर छंद-मगरवाडामंडन, पा. राजरत्न, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (सूरपति सेवित शुभ खाण), ७२०१८(+#s), ७२५८६-१, ७२३९५(#) माणिभद्रवीर स्तोत्र, उपा. उदय वाचक, मा.गु., गा. २२, पद्य, मूपू., (नित समरं त्रिपुरा), ७२८४२ मान उन्मान प्रमाण, मा.गु., गद्य, श्वे., (पाणीइ भरी कुंडमाहे), ६९०१४-२६(+) मानतुंगमानवती रास, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (गुण गिरूयो धणी प्रबल), ६८४८०(#$) मानपरिहारछत्रीसी, मा.गु., गा. ३७, पद्य, मपू., (मान न कीजे रे मानवी),७१७१० मानवभव दुर्लभता सज्झाय, नरसिंघदास, रा., गा. ९, वि. १८७९, पद्य, स्था., (दुलभ लाधो मानवभव का), ७२१६०-२(+#) माया सज्झाय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया कारमी रे माया), ७२२५९-४ मुक्तिगमन सज्झाय, पुहिं., गा. २०, ई. १९२८, पद्य, श्वे., (तीर्थंकर महावीर), ७०४६१-१ मुद्राहारी दरिद्र व द्रमक कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (विशाला नगरी मे कोइक), ६८७५७-२ मुनिगुण गरबो, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, पू., (मनने वश करे ते मुनी), ६८५३०-१३(+#) मुनिगुण सवैया, रा., गा. ३६, पद्य, श्वे., (पाप पंथ परहर मोख पंथ), ७१९५५(#) मुनिमालिका स्तवन, ग. चारित्रसिंह, मा.गु., गा. ३६, वि. १६३६, पद्य, मूपू., (ऋषभ प्रमुख जिन पय), ६८६०४-५ (2) मुनिसुव्रतजिन पद, पुहिं., पद. ४, पद्य, मूपू., (मुनीसुव्रतनाथ जिणेसर), ७१६१२-२ मुनिसुव्रतजिन स्तवन, मु. हंसरतन, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वरसे वरसे वचन सुधा), ६९६७५-१(4) मुसलमानी महीनों के नाम, उ., गद्य, (रजब१ साबांन२ रमजान३), ७०७५४-२ मुहपत्ति ५० बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (सूत्र अर्थ तत्त्व),७१४८५ मुहपत्ती विचार, मा.गु., पद्य, मूपू., (सुगुरु तणा पय प्रणमी), ६८५७९-६(+#$) मूढशिक्षा पद, आ. जिनसमुद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जे मूरख जन बाउरे), ७२६९२-२, ७२५५५-४(#) मृगापुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (पुरसुग्रीव सोहामणो), ६९३६१-८(4) मृगापुत्र सज्झाय, मु. खेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सुगरीपुर नगर सोहामणौ), ७०१०९-३ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मा.गु., गा. २४, पद्य, मूपू., (सुग्रीवनयर सुहामणो), ६८४५९-२३ मृगापुत्र सज्झाय, मा.गु., ढा. ४, वि. १८६५, पद्य, मूपू., (--), ७१५९९($) मृगावतीजेवंती सज्झाय, मु. चोथमल, मा.गु., गा.१७, पद्य, श्वे., (कहे जे वती भोजाइ), ७०१९१-१२ मृगावतीसती कथा, मा.गु., गद्य, श्वे., (सेतानिक राजा मृगावती), ७११७९ मेघकुमार चौढालिया, रा., ढा. ७, पद्य, मूपू., (ऋषभादिक चौवीसनै वांद), ७०२४३($) मेघकुमार सज्झाय, क. कुसल, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (वीर जिणेसर आवी समोसर), ७१५१६-४(-) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुण्यविजय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीरजिणंद समोसा), ७०२२६(+#) मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, रा., गा. २२, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद समोसर्या जी), ७११७७-२ मेघकुमार सज्झाय, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (धारणी मनावे रे मेघ), ६८४५९-२६ मेघकुमार सज्झाय, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर जिणंद समोसा), ७१५२०-१(+#) मेघरथराजा सज्झाय-पारेवडाविनती, मा.गु., गा. ३४, पद्य, मूपू., (दया बरोबर धर्म नहीं), ६९९७२-३(+) मेतारजमुनि सज्झाय, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (श्रेणिक राजा तणौ रे), ६८६१२-३(#) For Private and Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ मेतारजमुनि सज्झाय, मु. राजविजय, पुहि., गा. १४, पद्य, मूपू., (समदम गुणना आगरु जी), ६८४५९-३७, ६९०६४-७ मेतारजमुनि सज्झाय, पंन्या. रामविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (धन धन मेतारज मुनि), ६९९७२-४(+), ७१००२(+) मेरुपर्वतमान, मा.गु., गद्य, मूपू., (धरतीनइ तलइ पहोलो), ६९०१४-९७(+) मेवाडदेशवर्णन छंद, क. जिनेंद्र, रा., गा. १२, वि. १८१४, पद्य, श्वे.?, (मन धरी माता भारती), ७२८२१(#) मोक्ष सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (मोक्षनगर माहरु सासरु), ६९०६४-३० मोक्ष सज्झाय, पुहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन अधर्म मन धर्म मन), ७२५६३-१(+) मोहनीयकर्म बंधोदयसत्ता स्थान भांगा यंत्र, मागु., को., मूपू., (--), ७२२८१-३ मोहनीयकर्म भांगा यंत्र, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७२२८१-५ मोहनीयकर्म सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (सहगुरू सुशिष नामी), ७१५०८($) मौनएकादशीपर्व देववंदन, पंन्या. रूपविजय, मा.गु., पद्य, मूपू., (नगर गजपूर पुरंदर), ६८४६६-२(4) मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. कांतिविजय, मा.गु., ढा. ३, गा. २५, वि. १७६९, पद्य, मूपू., (द्वारिकानयरी समोसर्य), ७२३८२, ६९३६६-१(२),७१७०२-१(), ६८६०६-११(६), ७००४८(s), ७२०६१(६) मौनएकादशीपर्व स्तवन, पंन्या. जिनविजय, मा.गु., ढा. ४, गा. ४२, वि. १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक नेमिजिणंद), ६९३५१ मौनएकादशीपर्व स्तवन, मु. विशुद्धविमल, मा.गु., ढा. ५, गा. ४२, वि. १७८१, पद्य, मूपू., (शांतिकरण श्रीशांतिजी), ७१४७०($) मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. १३, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (समवसरण बेठा भगवंत), ६९३७०-३(+#), ७०५६९-३(+), ७२१२३-१(+#) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (एकादशी अति रुअडी), ६९७९३-५(+#), ७०४५३-२(+#), ६९४७४-४, ७२१११-३, ७२३८४-१, ७२८१६-४, ७१९३४-१(२), ७२३७९-२(#$) मौनएकादशीपर्व स्तुति, आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरजिननी दीक्षा), ७०७४८-१०(+) मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (गौतम बोले ग्रंथ), ६८९८०-९, ६९७६३-२ यंत्रफल चौपाई, पंडित. अमरसुंदर, मा.गु., गा.१६, पद्य, मूपू., (जिन चउविसइ पाय प्रणम), ६९८२६-२(+$) यतिधर्मबत्रीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ३२, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (भाव यति तेने कहो), ६९४२९-२(+) यादव उत्पत्ति वर्णन, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ७२२१५-१(६) । युगप्रधान संख्या लक्षणादि विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (इहां पंचमारक माहि), ७१२१०(#), ७२४२९(#$) युगमंधरजिन गीत, वा. समयसुंदर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुं साहिब हुसेवक),७१६७२-३(2) युगमंधरजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (युगमंधरने कहेजो),७१४४६ योगिनीचक्र, मा.गु., यं., (--), ७२२१३-२(+#) योगी माहात्म्य पद, मु. राज, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (याली धनओ पीउ धनउ), ७२१२३-२(+#) योनिभेदविचार कोष्टक, मा.गु., गद्य, मूपू., (--),७२५३४-१(2) रघुवंशीय ३५ राजा पट्टावली सज्झाय, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (आहे जेसलमेरी जाणीइं), ६८९८५-१०(#) रतनकुमर सज्झाय, मा.गु., ढा. १०, गा. ५३, पद्य, मूपू., (रतनगुरु आगलीजी आगली), ७१५८४, ७१९९८(#) रतनकुमार ढाल, सा. लछमा, मा.गु., ढा. ५, वि. १९०९, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे),७१६००(+) रत्नगुरु सज्झाय, मा.गु., गा. ३८, पद्य, श्वे., (रतनगुरु गुण आगला रे), ७१५९४() रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मा.गु., खं. ४ ढाल ६६, गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि में दुर), ६९३३९(2) रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मा.गु., खं. ३ ढाल ३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक जिनवर नमु), ६९४४३(#$) For Private and Personal Use Only Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५८३ रत्नसागर सज्झाय, मु. सोहमस्वामी, मा.गु., गा.७, पद्य, श्वे., (नगर रतनपुर जाणिइ), ७२१२६-२ रत्नागर भास, शिवजीकुमार, मा.गु., ढा. १०, गा. ४५, पद्य, श्वे., (रत्नगुरु गुण मीठडा), ६९३६९-१(#$) रथनेमिराजिमती पंचढालियो, मु. रायचंद ऋषि, रा., ढा. ५, वि. १८५४, पद्य, श्वे., (अरिहंत सिद्धनें आयरी),७०८१२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, पुहिं., गा. १९, पद्य, मूपू., (देखी मन देवर का), ६९९७२-२(+) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (मेहि भीनी जइ गुफामां), ७२८७०(2) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. दीपविजय, मा.गु., गा.१०, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रह्यो रे), ७२३७०-४(+#) रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (काउसग व्रत रहनेम), ७१९३३-१(+#), ६८४५९-१२ रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (काउसग्ग ध्याने मुनि), ६९९८९(5) रथनेमिराजिमती सज्झाय, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४०, पद्य, म्पू., (रहनेमि अंबर विण), ७१९२१(६) रमल शुकनावली, पुहि., गद्य, श्वे., (अरे यार वहुत दिन), ६९३४८(#), ७१७५०-१(2) राजसिंघ रास, ग. कपूरविजय, मा.गु., ढा. ५३, गा. १३८५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (ऋषी पडिलाभे भावथी), ६९९८०(+#$) राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मा.गु., ढा. २४, गा. ६०५, ग्रं. ८८५, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सारद शुभमतिदायिनी), ७१४११(+$) राजारानीसंवाद सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (--), ६८५७९-४(+#$) राजावली, मा.गु., गा. ५३, पद्य, श्वे., (--), ६९३४०-२४(2) राजिमतीपच्चीसी, मु. लालचंद, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (प्रथम हि समरु), ७१८०४-१(+$) राजिमतीरथनेमि सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (अगनिकुंडमां निज तनु), ६८६१६-४(#) रात्रिभोजन चौपाई, उपा. सुमतिहस, मा.गु., ढा. २४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (सुबुधि लबधि नव निध), ६९१२७(#$) रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. पुनव, मा.गु., गा. २१, पद्य, श्वे., (अवनीतल वारु वसै जी), ६८४५९-३५ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मु. वसता मुनि, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (ग्यान भणो गुण खाणी), ६८४५९-३४ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, आ. हेमविमलसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (अवनितल नयरी वसे जी), ६८६२२-५(+$), ७१६५९(2), ७२७५४ रात्रिभोजनत्याग सज्झाय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (अवनितलि वारू वसइजी), ६९९६६-५(+), ७१२२०-३(+), ७२१२६-१ रात्रिभोजन सज्झाय, मु. प्रमाणहंस, मा.गु., ढा. ३, गा. ३०, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (सरसति श्रुतदेवी नमी), ७२६७५-१(+#) रामचंद्रजी की मुंदरी, मा.गु., गा. ३१, पद्य, श्वे., (सरसत सामण विनउं), ७११६४ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मा.गु., अधि. ४ ढाल ६२, गा. ३१९१, ग्रं. ४३७५, वि. १६८३, पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रतस्वामीजी), ६८४७१(६) रामविनोद, पं. रामचंद्र गणि, मा.गु., समु. ७, गा. १६१७, ग्रं. ३३२५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सिद्धबुद्धदायक सलहीय), ६९२३६ १(+#), ६९२५५(६) रावणमंदोदरी सज्झाय, मु. सोभागमल मुनि, रा., गा. १७, वि. १९४०, पद्य, स्था., (कहे मंदोदरी सुण पिया), ६९३४९-३(#) रावणमंदोदरी सज्झाय, पुहिं., गा. १७, पद्य, मूपू., (कहै मंदोदरी सुण हो), ६९७५७-१(#$) रावण सज्झाय, मु. जीतमल ऋषि, रा., गा. १७, वि. १८७३, पद्य, श्वे., (कहै भमीछण सुन हो), ७२१५३(+) राशितिथिनक्षत्रादि कोष्ठक, मा.गु., को., जै., (मेष वृष मिथुन कर्क), ७०७६६-२ रुक्मणीसती सज्झाय, मु. राजविजय, मा.गु., गा. १४, पद्य, मूपू., (विचरता गामोगाम नेमि), ६८४५९-२८, ६९०६४-२४, ७२५८२ रूपकमाला-शीलविषये, मु. पुण्यनंदि, मा.गु., गा. ३२, पद्य, मपू., (आदि जिणेसर आदिसउ), ७२३६०(#) रूपीअरूपी बोल, मा.गु.,रा., गद्य, श्वे., (कर्म ८ पाप १८ मन), ६९०१४-११८(+), ७०७६८-२(2) रेंटिया सज्झाय, श्रावि. रतनबाई, मा.गु., गा. २५, वि. १६३५, पद्य, मूपू., (बाई रे अमनें रेंटीयो), ७२२६१-२ For Private and Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ५८४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट - २ रेवतीश्राविका सज्झाय, मु. वल्लभ, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सोवन सिहासन रेवति), ७२१५२-१, ६९३६९-२४(#) रोहिणी कथा, मा.गु., गद्य, मूपू., (चंपानगरीयै श्रीवासु), ७१३९२-१(#) रोहिणीतप सज्झाय, मु. अमृतविजय, मा.गु. गा. २१, पद्य, भूपू (वासुपूज्य नमी स्वामी), ७०८८९-३ (*) रोहिणीतप स्तवन, पंन्या. ऋषभसागर, मा.गु., ढा. ४, गा. ३९, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीदायक सदा), ७२५७४(+#) रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय कवि, मा.गु., ढा. ६, गा. ३१, वि. १८५९, पद्य, मूपू., (हां रे मारे वासुपूज), ७२२८७-१ रोहिणीत स्तवन, मु. श्रीसार, मा.गु., ढा. ४, गा. ३२, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सासणदेवता सामणीए मुझ), ७०५६९-२(+), ७२२५६-१, ७१६४०-२(६) रोहिणीतप स्तुति, मु. कांति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू (शिवसुखदायक नायक ए), ७२३६२ (१) रोहिणीतप स्तुति, पंन्या पद्मविजय, मा.गु., गा. ४. वि. १९वी पच, मूपू (नक्षत्र रोहिणी जे), ७२२८९-३, ७२६६५-१, ६८५०८ " (05) रोहिणीतप स्तुति, ग. रत्नविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू. (रोहिणी नक्षत्र जे), ६८९८०-३ रोहिणीतप स्तुति, मु. लालविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मासपति रोहिणीतप कीजै), ७२२८९-४ लीलावती चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मा.गु., ढा. २९, गा. ६१९, वि. १७२८, पद्य, मूपू., (त्रेवीसमो त्रिभुवन), ६८६६०-१($), ७२६९८(३) लीलावतीसुमतिविलास रास, उपा. उदयरत्न, मा.गु., डा. २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपु. ( परम पुरुष प्रभु पास), ६९३०२ (५४) लुकागच्छउत्पत्ती पट्टावली, रा., गद्य थे. (संवत १५२८ श्री अणहिल), ७२८४७ 1 लेश्या ११ द्वार विचार, मा.गु., गद्य, वे., (नामाई पण रस गंध फरस), ७१४६२-२(*७) . वकचूल चौपाई, मु. रतनचंद, मा.गु., डा. ६, वि. १८९१, पद्य, वे. (वंकचूल भाखी कथा जथा, ७०२६०-१ , वज्रसेठ चौडालियो, मु. चंद्रभाण ऋषि, मा.गु., डा. ४, वि. १८६९, पद्य, भूपू (शील वडो संसार सुरतरु), ६९१११-६ वज्रस्वामी - रूखमणी सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूप. (पदमिणी पोईणी पातली), ६८९८५-२(१) वज्रस्वामी सज्झाय, मु. भुवनकीर्ति, मा.गु., गा. ९, पद्य, भूपू., (कहे सुनंदा बांह पसार), ७२४१९-५(१) वनमाली सज्झाव, मु. पद्मतिलक, मा.गु., गा. १०, पद्य, भूपू (काया रे वाडी कारमी), ६९३४२-४(का वरसिंहऋषि गुरूगुण गीत, मु. थोभण ऋषि, मा.गु., गा. ७, पद्य, स्था., (सुंदरगच्छ सुंदरगच्छ), ७१५०२-१ वरसिंहऋषि गुरूगुण गीत, मा.गु, गा. १०, पद्य, श्वे. (सेव तु सदगुरू), ७१५१४ " वरसीदान मान, मा.गु, गद्य, म्पू., (एक कोडिने आठ लाख दिन), ६९०१४ २७(*) वर्णमाला, मा.गु., गद्य, वे. (अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ), ७२२४९-२(+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्षाज्ञान विचार, मा.गु., गद्य, वै., (जिये वरस दिनरा जितरा), ७१५७४-५ वासक्षेप भास, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (झमकारो रे मादल वाजे), ६८९८३-७(*) वासुदेव बलदेव च्यवन आयुमान देहमानादि विवरण, मा.गु., गद्य, श्वे., (त्रिपृष्ठ वासुदेव), ७०९६१-१(+) वासुपूज्यजिन चैत्यवंदन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, पद्य, भूपू (प्राणतथी इहां आवी), ७१३६३-३(*) वासुपूज्यजिन पद, मु. आनंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चंपापुरी वासपूज्य रे), ६८६०६-७ वासुपूज्यजिन पद, मु. आनंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, म्पू, (वासुपूज्य बलिहारी हो), ६८६०६-१० वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. जीतचंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू (वासुपूज्य जिन बारमा), ६८६१६-१६ (०) 23 वासुपूज्यजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मृपू, (स्वामि तुमे कांइ), ७१३५८-४ विक्रमचौबोली रास - पुण्यफलकथने, वा. अभवसोम, मा.गु., डा. १७, ग्रं. ३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्तक धारणी). ६९३८१(५) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मा.गु., डा. ६४, वि. १७२४, पद्य, मूपू (परम ज्योति प्रकास), ६९०४९(+#S) י: For Private and Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ विक्रमादित्य चौपाई, उपा. लाभवर्द्धन पाठक, मा.गु., ढा. २७, गा. ५८५, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी प्रणमीइ), ६८९८७(+#) विचार संग्रह *मा.गु., गद्य, श्वे., (ठाणांगमाहिंत्रीजे),७१०३०-३(#),७१७६९-२(#), ७२२३०-७(2) विचार संग्रह, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (समजवा हेतु सूत्रमाहि),७१९६३-७(+5) विजयजिनेंद्रसूरि गच्छरायगुरु गहुंली, पं. माणिक्यविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सजनी श्रीगुरु चरणकमल), ७१९५८-१(#) विजयजिनेंद्रसूरिगुरु भास, मु. विनय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सरसति मात पसाया गाउं), ७१९५८-२(#) विजयदेवसूरि भास, ग. रंगकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (कांमणगारो रे गुरुजी), ७२५६०(#) विजयदेवसूरि लेख, मु. विनयविजय, मा.गु., ढा. २, गा. ३४, वि. १७७५, पद्य, मूपू., (सुगुण सवाइ श्रीगुरू), ७२५४६(+#) विजयदेवसूरि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्रेमि प्रणमो रे सगु), ६८९८५-९(#) विजयधर्मसूरि चातुर्मासविज्ञप्ति स्तवन, मु. मूलचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सरसति माता बीनवू), ७१४६०-१(#) विजयधर्मसूरि भास, मु. दीपविजयशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (वालो माहरो दीपै छे), ७१४६०-२(2) विजयप्रभसूरि पद, मु. जीतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीविजयरत्नसूरि), ७२२३२-२(2) विजयरत्नसूरीश्वरिनिर्वाणरूप सज्झाय, ग. जिनविजय, मा.गु., ढा. ७, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीश्रुतदेव), ७२५२४(+#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. कुसल, मा.गु., ढा. ४, गा. २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्रे रे), ७२६२५(#),७१७२४(६) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, मु. रामचंद, पुहि., ढा. ४, वि. १९१०, पद्य, श्वे., (आदिनाथ आदिसरु सकल), ७२०७१(+#) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, आ. हर्षकीर्तिसूरि, मा.गु., ढा. ३, गा. २४, पद्य, मूपू., (प्रह उठी रे पंच), ७१४०७(+), ७१८१६ १(#S), ७२२३२-१(#S), ७२७५५-१(१), ६९९८४-१(5) विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुंदर, मा.गु., गा. ३६३, वि. १५१६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर पय नमी), ६८४६७ विद्याविलास चौपाई, ग. राजसिंह, मा.गु., ढा. १९, गा. ६४२, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवर मुखवासिनी), ६८९९२(+#) विमलमंत्री श्लोक, पंन्या. विनीतविमल, मा.गु., गा. १०९, पद्य, मूपू., (सरसति समरूं बे करजोड), ६८५२९(+#),७१५१९-२(+), ६८५२८(#), ६९३४०-१(#) विमलमंत्रीश्वर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (जो इक मोरी अबाव आइ), ७२७८४-१ विवाहपडल भाषा, मु. रूपचंद, मा.गु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (सदगुरु वाणी समरि), ७१५३३(4) विविध जीव आयुष्य विचार *, मा.गु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो आयु १२०), ७२३३३-१ विविध जीवों के आयुप्रमाण, मा.गु., गद्य, मूपू., (मनुक्ष १२० वर्ष हंस), ६८६१२-५(#) विविधतप यंत्र संग्रह, मा.गु., को., मूपू., (--), ७२५३६(+) विषयपच्चीसी, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु., गा. २६, पद्य, मूपू., (जी हो वीर कहइ गोतम), ७२४८४(+) विहरमान २० जिन नाम, मा.गु., गद्य, मूपू., (सीमधरस्वामी श्रीजुग),७१७२७-३(#) विहरमान २० जिन परिवारादि कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ७२२८६ विहरमान २० जिन स्तवन, पं. धर्मसिंह पाठक, मा.गु., ढा. ३, गा. ३६, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (वंदु मन सुध विहरमाण), ६८६५८(+), ७१९२८-१(+), ७०१८९-१, ७२२७०-१ विहरमान २० जिन स्तवन, मु. वसंत, रा., गा. ८, वि. १८२६, पद्य, श्वे., (सीमंधर स्वामीजी समरु), ७१४६६-२(+) विहरमान २० जिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पंचविदेह विषय), ७०७४८-५(+), ७०५५९-४ विहरमानजिन स्तवनवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (मुज हीयडौ हेजालूवौ), ६९६२५-३(+$), ६८९६६-२(#$) विहरमानजिन स्तवनवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ६९१४२, ६८६५७() विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुखलवई विजये जयो रे), ६९००५(+), ६८५५१(#) वीर्यभेदविचारसंग्रह-विविध आगमोद्धृत, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभगवतिसूतरें लब्ध), ६८५५३(5) For Private and Personal Use Only Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ वैकुंठपंथ सज्झाय, मु. भीम, मा.गु., गा. ५९, वि. १६९९, पद्य, श्वे., (वैकुंठ पंथ बीहामणो), ६८६१७-१(#) वैराग्यदृष्टांत सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (इलाकुमार हिवे केवली), ७१३५६-२(#$) वैराग्यपच्चीसी, मु. सदारंग, मा.गु., ढा. २, गा. २५, पद्य, मूपू., (ए संसार अथिर करि जाण), ७०६६८-३(+$) वैराग्यबावनी, ग. लालचंद, मा.गु., गा. ५१, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (समज समजरे भोला),७१५१८ वैराग्य सज्झाय, कबीरदास संत, पुहि., दोहा. ५, पद्य, वै., (रनवन सेती जडीयम गाई),७०१९१-७ वैराग्य सज्झाय, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. ११, पद्य, श्वे., (नगरी खूब बनी छैजी), ७१९६७-१(-) वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (कां नवि चिंते हो चित), ६८९८५-६(#) वैराग्य सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (ते गिरूआ भाइ ते), ६८९८५-५(#) व्याख्यान पीठिका, मा.गु., गद्य, मूपू., (भगवान वीतराग देव), ७२८१८ शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुंदर, मा.गु., ढा. १२, गा. १२०, ग्रं. १७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिवर विमल), ६८४५४ १(#$), ६९३६७(+#$), ६९३७४, ६८५१८(१), ७००५६(#$), ७०९८०($) शत्रुजयतीर्थगुणमाला, मु. सुखविजय, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (श्रीविमलाचल भेटीई),७०६६२ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, ग. पद्मविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (विमलकेवल ज्ञानकमला),७१३३५-१ शत्रुजयतीर्थ चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सिद्धाचल शिखरे चढी), ६८५५६-५(+$) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरंग, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वाहला वारु), ६८५२७(६) शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतविजय, मा.गु., ढा. १०, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (जगजीवन जालम जादवा), ६८५५२() शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू., (श्रीरिसहेसर पाय नमी), ६८६२१(२), ६८६२३-२(#s), ७०३७९(s) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (आंखडीये रे में आज), ६८६१६-५(#) शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (सहीयां मोरी चालो), ७२८४५, ६९३४०-८(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. क्षमारत्न, मा.गु., गा. ५, वि. १८८३, पद्य, मूपू., (सिद्धाचलगिरि भेट्या), ७२०६२-१३(+#), ६९१२६-४० शत्रुजयतीर्थस्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (अंग उमाहो अति घणो), ६८६६२-४(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (शत्रुजय नो वासी), ६९३४०-९(#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (इण डुगरीयानी झिणी),७००५९-२,७०६११-४ शत्रुजयतीर्थस्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (गिरिराज कुं सदा मेरी), ६८६१६-९(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दानविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चालोने प्रीतमजी), ७२१६३-६(+#) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. दोलत, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सुण सुण कंता हो नारी), ७१९३१-२($) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (प्यारी ते पीउडाने), ६९३६९-१८(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, श्राव. लींबो, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्यारी ते प्रीउने), ६९३५९-८(2) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-९९ यात्रागर्भित, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. १५, पद्य, म्पू., (श्रीसिद्धाचलमंडण), ६९६२५-२(+$), ७२३७० २(+#$) शत्रुजयतीर्थ स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ३१, पद्य, मूपू., (बे करजोडी विनवू जी), ७०६०२-१(+) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, आ. नंदसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुजयमंडण), ७०७४८-७(+), ७२३२७-१ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मु. सौभाग्यविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (पुंडरिकमंडण पाय), ७२८१६-६, ६९३६६-२(#) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (आगे पूरव वार नीवाणु), ७२४५३-२(+), ७१९१५-२(2) शत्रुजयतीर्थे मोतीशाट्क स्तवन- इतिहासयुक्त, पं. वीरविजय, मा.गु., ढा. ७, पद्य, मूपू., (उठी प्रभाते प्रभु), ६९९०९(5) शनिश्चर चौपाई, पंडित. ललितसागर, मा.गु., गा. ४७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (सरसती सामिणी मन दियो), ६९२७६-१ शनिश्चर छंद, क. हेम, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (अहि नर असुर सुरपति), ७२६९२-१, ७२३४६-१(#) For Private and Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ शनिश्चर स्तुति, क. हेम, मा.गु, पद्य, मूप, (समरदेव शनिराव थाये), ६९७१६-१(*) शांतिजिन कवित्त-पूर्वभव मेघरथ राजा, मा.गु., का. ५, पद्य, मूपू., (इंद्रलोक सुरसभा), ७२१९२-१ , शांतिजिन छंद - हस्तिनापुरमंडन, आ. गुणसागरसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू ( सारद माय नमुं सिरनाम), ६९३३४-१(३), ७१९६२-३, ६८६२६-४ (#), ७०९४८-२(#), ७१७१४ ($) शांतिजिन पद, मु. हीरालाल, पुहिं. गा. ५, पद्य, वे. (अचला दे मझ्या शांति) ७०८२५-४ " शांतिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुणो शांतिजिणंद), ६८६१६-१७(#) शांतिजिन स्तवन, मु. ऋषभकुशल शिष्य, मा.गु., गा. ७, वि. १७९०, पद्य, मूपू (श्रीसाहिब शांतिजिणंद), ७१५८५-२शक्क शांतिजिन स्तवन, मु. कवियण, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर सोलमा रे), ६९३५९-१२(#$) शांतिजिन स्तवन, मु. जयमल ऋषि, मा.गु., गा. २९, पद्य, श्वे., (नगर हथिणापुर अतिहि), ७१९६२-४ ($) शांतिजिन स्तवन, मु. जैनेंद्रसागर, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (अचिरा नंदनंदन प्रणमी), ७२८१५ शांतिजिन स्तवन, उपा. धर्मसी, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीशांतिजिनेसर सोल), ७२१८९-२(+) शांतिजिन स्तवन, मु. प्रमोदसागर, पुहिं., गा. ८, पद्य, मूपू., (संतकी संतकी मने पीआर), ७१४८२-४(-) शांतिजिन स्तवन, मु. भावसागर, मा.गु., गा. १५, पद्य, मूपू., (सेवा शांतिजिणेसर की), ७०६३६-३ शांतिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (साहिब शांतिजिणंद), ७२६७५-५ (+#) शांतिजिन स्तवन, पं. रंगवल्लभ गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर साहिब), ७२४४८-१(+) शांतिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मा.गु गा. ५, पद्य, भूपू (समरो संत जिणंद सखी), ६८६०९-२ (# ) शांतिजिन स्तवन, मु. वीरमसागरशिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रह ऊठीने ध्याइने), ७१७३४-२(+) शांतिजिन स्तवन, ऋ. सबलदास, मा.गु. गा. १४. वि. १८६३, पद्य, वे (श्रीशांतिजिणेसर) ७०८७३-१ (+) " " " शांतिजिन स्तवन, मा.गु.. गा. २८, पद्य, भूपू (नगर हथणापुर अत ही), ७१५२०-३(+#) शांतिजिन स्तवन, पुहिं. गा. ६, पद्य, श्वे. " (प्रात को समयो भयो), ७२४२६-१ शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू (शांतिजिणंद जुहारी), ६९९४९-१ " शांतिजिन स्तवन, मा.गु. गा. १२, पद्य, भूपू (शांतिजिणेसर शांति), ७१५२०-२(+A) , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शांतिजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (सन प्रभुजी संत व्रते ), ७२१८०-२(+#) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., पद्य, मूपू., (सांत करो श्रीसिंघ मै), ७००६६-२ ($) शांतिजिन स्तवन, मा.गु., गा. ११, पद्य, भूपू (हस्तिनगरपुर दीपतो रे), ६९३६१-४(क) "" शांतिजिन स्तवन-निश्चयव्यवहारगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ६, गा. ४८, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (शांतिजिणेसर अरचित जग) ७२५३१-१(*) शांतिजिन स्तवन- राणपुरमंडण, मु. संकर, मा.गु., ढा. २, गा. २०, पद्य, श्वे., (श्रीसांतिजिणेसर सोल), ७१४३८-२(+) शांतिजिन स्तुति, क. ऋषभदास संघवी, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति जिणेसर समरीइं), ७२५४५-४ (+#) शांतिजिन स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (शांति सुहंकर साहिबो), ६८९८०-१ शालिभद्र सज्झाय, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (गोवाल तेणें भव खीरनो), ६८५१६-१ शालीभद्रमुनि सज्झाव, मा.गु., पद्य, थे. (राजा सेणक घरे आया), ६९३४९-८ (६) "" शाश्वतजिन चैत्यवंदन, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुदी आठम चंद्रानन), ७१३६३-५(+) ५८७ शांतिप्रकाश, पुहिं., गा. १२५, वि. १९३६, पद्य, श्वे. (प्रेम सहित वंदौ ), ६९०६६-३(+) " शालिभद्रमुनि चौपाई, मु. मतिसार, मा.गु., ढा. २९, गा. ५१०, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक समरियै), ६८५०४(+), ६९३५७-४) ६९३७७-१ (२) शालिभद्रमुनि सज्झाय, मु. सहजसुंदर, मा.गु, गा. १७, पद्य, मूपू (प्रथम गोवाल तणे भवे), ६८४५९-१३, ७२६८७-१, ७२८१७-३ शालिभद्रमुनि सज्झाव, रा. गा. १७, पद्य, श्वे. (मे तो पूरब सुक्रत न), ७०१९१-१६ "" ', For Private and Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८८ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ शाश्वतजिन स्तुति, मु. जसवंतसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ७२५४२-२(+#) शाश्वताचैत्य जिनबिंबसंख्या कोष्टक, मा.गु., को., मूपू., (--), ६९८२२-२ शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (अहो सिधसिला सगला), ६८४७५-४(+#) शिवपुरनगर सज्झाय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (गोतमस्वामी पुछा करी), ६८४५९-३८,७०१९१-१३, ६९३४९-६(2) शीतलजिन स्तवन, मु. कल्याण, मा.गु., ढा. २, गा. १८, वि. १८२७, पद्य, मूपू., (भविकां सिद्धचक्रपद), ७२०९३(#) शीतलजिन स्तवन, मु. जिनविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शीतलजिन सहजानंदी थयो), ६९३५९-४(2) शीतलजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (निजरी भरी जोवो कयु), ७२०६२-९(2) शीतलजिन स्तवन, ग. मेघराज, मा.गु., गा.६, वि. १८२२, पद्य, श्वे., (शीतल जिनवर देव सुणो), ७२२५९-२ शीतलजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सितलजिननी सेवना), ७१३५८-३ शीतलजिन स्तवन, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सीतल जिन सहज सूरंगा), ६९३६१-५(#$) शीतलजिन स्तवन, मु. सुबुद्धिकुशल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सीतलजिन सहेज सुरंगा), ७१९३८-२(5) शीतलजिन स्तवन, मु. हर्ष, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (सखी नवी नवेरी भगति), ६९९०७-१(+) शीतलजिन स्तवन-अमरसरपुरमंडन, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. १५, पद्य, मूपू., (मोरा साहेब हो), ७२४९४-२(+#) शीतलजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (त्रिभुवन जननायक दायक), ७२६७३-८($) शीयलव्रत सज्झाय, मु. उत्तमचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८४४, पद्य, मूपू., (श्रीअहँत नीत नमु), ७२१३९(६) शीलनववाड ढाल, मु. अगरचंद, मा.गु., ढा. १०, वि. १८३६, पद्य, मूपू., (प्रणमुं पंचपरमेष्ठि), ६९०६९-१ शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मा.गु., गा. ६८, ग्रं. २५१, पद्य, मूपू., (पहिलुं प्रणाम करूं), ६९००१(+$), ६९१४६-२(4), ६९३७७-२(#S) शील सज्झाय, मु. मलुकचंद, रा., गा. ३२, वि. १८००, पद्य, श्वे., (सारद माता समरु तो ही), ७२१८१ शील सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, मा.गु., गा. १९, वि. १८५०, पद्य, स्था., (गेरो रंग लागो हो), ७२०३२-१(2) शुकन सोलही, मा.गु., गा. १६, पद्य, वै., (वाग वाणि पणमुमनशुद), ७१५८३-१(#) शृंगाररस सवैया, मु. गंग कवि, पुहिं., सवै. १, पद्य, मूपू., (प्यार करे सब नारिसुं), ७२६४९-५(#) शृंगारिक कवित्त, पुहि., पद्य, वै., (केशरी की खोल मांही), ७०४२०-५(#$) शृंगारिक पद, रा., पद. ४, पद्य, (कठडैव वाडु हो भमर), ७२७३८-२ श्रावक आलोयणा, रा., गद्य, मूपू., (अणगल जल वावर्यै लाख),७२५१४-३($) श्रावक उपमा प्रकार, मा.गु., गद्य, मूपू., (१ मातापिता समान),७१७०९-८ श्रावककरणी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २३, पद्य, मूपू., (श्रावक तुं उठे परभात), ६८६०९-१(4), ६८६१२-१(#s), ६९३७१ २(2) श्रावक कर्तव्य पद, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (सचित्त द्रव विगय पान), ७२२५०-२(+) श्रावक के घर में ९ चंद्रवा का विधान, मा.गु., गद्य, म्पू., (पाणीहारे १ उखले २), ६९०१४-७६(+) श्रावक द्वादशव्रत अतिचारनिरूपणगर्भित सज्झाय, मा.गु., पद्य, श्वे., (भविमन मानस हंसना), ६९१०४-१९(5) श्रावकपाक्षिक अतिचार-लघु, मा.गु., पद्य, श्वे., (श्रीज्ञाननइ विषैइ), ७२३४१-१(#) श्रावक मोटकाबोल की आलोयणा, मा.गु., गद्य, मूपू., (अगलित जल व्यापारे), ७१६१३-२ श्रावकशिक्षा सज्झाय, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सरावग थोडा बोलजे तो),७१३५६-३(2) श्रावकाचार पद, मु. हीरालाल, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (मारि वनणा जेलो मेतो), ७०८२५-१ श्रावकाचार सज्झाय, पुहि., दोहा. ७, पद्य, मूपू., (भर्म गाँठ नही भांगी), ७०१९१-११ श्रावकाचार सज्झाय, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (म्हारे पैरण लज्या), ७२४२१-२ श्रीपालमयणा सज्झाय, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ६९९५७(+$) For Private and Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ ५८९ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय; उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., खं. ४ ढाल ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., (कल्पवेल कवियण तणी), ६९१४०(+), ७१६२२(+$), ७२२२१(+$), ६८४५८(#), ६९१०१(#$) (२) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६९१०१(#$) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ *, मा.गु., गद्य, मूपू., (त्रीजो खंड पूरो थयो), ६९१४०(+$), ६९१०१(45) श्रीपूज्य वाहण गीत, उपा. कुशललाभ, मा.गु., गा. ६७, पद्य, मूपू., (पहिलो प्रणमुप्रथम), ७२५६४ श्रुत बाराखडी, पुहि., गा. ७७, पद्य, श्वे., (प्रथम जपो अरहंत कौ), ६८५९१-१(६) श्रेणिकराजा रास*, मा.गु., पद्य, मूपू., (समगधदेशना अधिपति), ६८४५५(#$) श्रेयांसजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीश्रेयांसजिणंदनी), ७१७९५-३ श्वासोश्वास बोल संग्रह-प्रज्ञापनासूत्रगत, मा.गु.,रा., गद्य, मूपू., (राजगरी नगरी सीणकराजा), ७०७६८-१(#) षड्द्रव्य स्वरूप, मा.गु., गद्य, मूपू., (पहीलों जीवद्रव्य), ६९०१४-८२(+) षड्शीति जीवस्थानक यंत्र, मा.गु., यं., म्पू., (--),७२५२५-२(+#) संकेतकौमुदी, मा.गु., गद्य, श्वे., (--), ७१२३०($) संजया विचार-भगवतीसूत्रे-शतकर५उद्देश, मा.गु., द्वा. ३६, गद्य, मूपू., (पन्नवणा १ वेयरागे), ६८५२४ संधीसूत्र, मा.गु., गद्य, (सिधो वरणां समानाया), ७१७१५-१ संभवजिन स्तवन, म. आनंदघन, मा.ग., गा. १०, पद्य, मप., (संभवजिन प्यारा मोन), ७२८३९-६(#) संभवजिन स्तवन, मु. आनंदघन, मा.गु., गा. ६, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (संभवदेव ते धुर सेवो), ६८६२४-६(2) संभवजिन स्तवन, मु. ऋद्धिकीर्ति, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (साहिबारे संभव जिनरी), ६९६६८-२(#) संभवजिन स्तवन, मु. जिनभद्र, मा.गु., गा. १२, पद्य, मूपू., (संभवजिनसुं प्रीतडी), ६९३६९-२८(-2) संभवजिन स्तवन, उपा. मानविजय, मा.गु., गा. ८, पद्य, मूपू., (साहिब सांभलो विनति), ७०२३५, ६९३५९-१(2) संभवजिन स्तवन, मु. मोहन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (ससनेही जिनराय मलिये),७२६७५-४(+#),७१४३९-२ संभवजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ५, वि. १७३०, पद्य, मूपू., (संभव जिनवर विनती), ७२८२०-२, ७११८३ २(#) संमूर्छिम जीवोत्पत्ति विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (गोमुत्र मांहि २४ पोह), ७०९७०-२ संयमश्रेणिविचार स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. २, गा. २१, पद्य, मूपू., (प्रणमी श्रीगुरुना), ६९४३६(+) (२) संयमश्रेणिविचार स्तवन-टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रवृंदनतं नत्वा), ६९४३६(+) संयोगी भांगा, मा.गु., गद्य, जै., (क१ खर ग३ घ४ च५ छ७ ज८), ७०३५४(#$) संवर सज्झाय, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर गौतमने), ७१९३६-२ संवेगरस चंद्रावला, मु. लींबो, मा.गु., गा. ४९, पद्य, मूपू., (सकल सुरिंद नमइ सदा), ७२५५८(#) संशयवचनविच्छेदन रास, आ. सुमतिकीर्तिसूरि, मा.गु., अधि. ५, गा. २३७, पद्य, दि., (देव निरंजन ध्याईइ), ६९०१८-१(+) संसार असारतानिरूपक पद, मु. अमृतविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नथी नथी कोई नथी सगु), ६८५३०-८(+#) सचित्त अचित्त जल पच्चक्खाण विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (सुगडांग सातमा७), ६९०१४-८९(+) । सचित्त अचित्त वस्तु काल निर्णय, मा.गु., गद्य, श्वे., (आषाढे चोमासामांहे), ७२०६२-१४(+#) सचित्त अचित्त विचार सज्झाय, मु. विनयविमल, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रवचन अमरी समरी सदा), ६९०१४-१०८(+) सचीयामाता छंद, मा.गु., गा. ४७, पद्य, श्वे., (--), ७१६४९($) सत्यासत्य सज्झाय, मु. राममुनि, पुहिं., गा. ११, पद्य, स्पू., (प्रथम नवेसे पंच में), ७०४६१-२ सद्गुरुमहात्म पद, मु. हीरालाल, मा.गु., गा. ५, पद्य, स्था., (श्रीजिनराज सरणो धरम), ७२०१२-३ सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सांभलि सनतकुमार हो), ६९३४०-१४(#s), ६९३४० २२(48) For Private and Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९० देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु. कवियण, मा.गु., गा. १६, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (सुरनर परसंशा करे), ६९०६४-८ सनत्कुमारचक्रवर्ती सज्झाय, मु.खेम, मा.गु., गा. १७, वि. १७४६, पद्य, मूपू., (सुरपति प्रशंसा करे), ७०१८९-२, ७०१९१-१४, ७०१९७-१ सप्तव्यसन सज्झाय, पं. रत्नकुशल गणि, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (श्रीसिद्धारथ कुल), ७२६११-५(4) समकित के ६७ बोल की सज्झाय, मा.गु., ढा. ६, पद्य, मूपू., (चउसदहणा तिल्लिंग दस), ७२२४२(+#$), ७०४६५ समकित सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (चाखोरे नर समकित), ७०२५३-२(+) समता सज्झाय, मु. रायचंद ऋषि, रा., गा. १३, पद्य, श्वे., (चाखो रे नर समतारस), ७२०९२६) समवसरणद्वार-भगवतीसूत्रे-शतक ३०, मा.गु., गद्य, स्था., (जीवाय १ लेस २ पखी ३), ६८५४७ समवसरण स्तुति, मु. जयत, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिलि चौविह सुरवर), ७०७४८-९(+), ७२६७३-४ समाधिमरण भाषा, जै.क. द्यानतराय, हिं., गा. १०, पद्य, दि., (गौतम स्वामी वंदों), ७२४४७-२ समुद्रसंख्या विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (--), ६९७२९-१(+$) सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. आनंद, मा.गु., गा. ५, पद्य, मपू., (आज गई थी सिखरगिर ऊपर), ६८६०६-४ सम्मेतशिखरतीर्थ पद, मु. नवलदास, पुहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (सीखरगीर वांदन जाना), ६९१२६-१८ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ७, वि. १८९९, पद्य, मूपू., (समेतसिखरगिर ध्यावो), ६८६०६-१ सम्मेतशिखरतीर्थ स्तवन, मु. आनंद, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सेवामें सिखर गिर), ६८६०६-३ सम्मेतशिखरतीर्थस्तवन, मु. ऋद्धिहर्ष, मा.गु., गा. १०, वि. १७४४, पद्य, मपू., (तोह नमो तोह नमो समेत),७०९३४-३(+), ६९८६१(#) सम्मेतशिखरतीर्थस्तवन, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ६, वि. १७४४, पद्य, मूपू., (अष्टापद आदिसर सीद्धा), ७२४४१-२(#) सम्मेतशिखर माहात्म्य, मु. धर्मदासजी ब्रह्मचारी क्षुल्लक, पुहि., पद्य, दि., (--), प्रतहीन. (२) सम्मेतशिखर माहात्म्य-प्रश्नोत्तरात्मक वार्तिकरूप वचनिका, संक्षेप, पुहिं., प+ग., दि., (स्वयं सिद्ध परमातमा), ६९१६७-२ (२) सम्मेतशिखर माहात्म्य-प्रस्तावना, संबद्ध, पुहिं., गद्य, दि., (हम निश्चय करिकै लिखत), ६९१६७-१ सम्यक्त्वधारी व्यवहार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रावकनै सम्यक्त्वनै), ६९०१४-१०४(+) सम्यक्त्वादिधर्मपरिवार गाथा, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (समकित तात क्षमा मात), ७२२६२-२(+) सरस्वतीदेवी छंद, आ. दयासूरि, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (बुद्धि विमल करणी), ७१२२४ सरस्वतीदेवी छंद, मु. मनरूप कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (वरदायक ब्रह्मासुता), ६९३७९-११(#) सरस्वतीदेवी छंद, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरस वचन समता मन), ६९३३४-२(+), ७०८४७($) सरस्वतीदेवी छंद, मु. सहजसुंदर, मा.गु., ढा. ३, गा. १४, पद्य, मूपू., (शशिकर जिनकर समुज्व), ७२६१५-१(#$) सरस्वतीदेवी छंद, ग. हेमविजय, मा.ग.,गा. १६, पद्य, मप., (ॐकार धरा उच्चरण), ६९३७९-९(#), ७२४४३(#s), ७२६००(#) सरस्वतीदेवी छंद-अजारीतीर्थ, मु. शांतिकुशल, मा.गु., गा. ३५, पद्य, मूपू., (सरसति सरस वचन समता), ७१५१२(+), ७२५७० सर्वार्थसिद्धविमानवर्णन सज्झाय, मु. गुणविजय, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (जगदानंदन गुणनीलो रे), ७२०३७(+), ७२४१९-४(#) सवैया-पैसा, नंदलाल, पुहि., सवै. १, पद्य, (पइसा विन माह कहे पुत), ७२१९२-३ सवैया संग्रह, पुहिं., पद्य, वै., (अली आय खरी सन्मुख), ७२६११-४(#) सांबप्रद्युम्न प्रबंध, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., खं. २ ढाल २२, गा. ५३५, ग्रं. ८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीसर गुणनिलउ), ६८४९७ सागरोपमपल्योपम पूर्वमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (तीखै सस्त्रै देवतानी), ७२०१४(2) साचलदेवी गीत, चूहड, रा., गा. ५, पद्य, श्वे., वै., (सरसति गणपति वीनवुने), ७२२६८-४(+#) साचलदेवी गीत, मु. तुलसी, रा., गा. ६, पद्य, श्वे., (साचल ज्यौति सवाई),७२२६८-५(+#) For Private and Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ साढापच्चीस आर्यदेश विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगध देश राजगृही बे), ६९०१४-६२(+) साढापच्चीस देशनाम व ग्रामसंख्या, मा.गु., गद्य, मूपू., (मगधदेस राजग्रहीनगर), ६९०१४-५५(+) साधारणजिन आंगी स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मपू., (झमक जोर बनी छे रे), ६८६१६-१२(#) साधारणजिन आरती, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (इहविध मंगल आरती कीजे), ७२२१२-२(#) साधारणजिन गीत, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (तु निरंजन इष्ट हमेरा), ७२१६३-२(+#), ६९१२६-३७, ७२५५५-३(#) साधारणजिन चैत्यवंदन-पंचपरमेष्ठिगुणगर्भित, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ३, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (बार गुण अरिहंत देव), ७२३५७-३(#) साधारणजिन पद, मु. पद्मविजय, पुहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो दिल वस कीयो), ६९१२६-७ साधारणजिन पद, मु. भानुचंद, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (बहोत रोज से जस्ते), ७२५५५-२(2) साधारणजिन पद, मु. रामचंद्र, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टद्रव्य को मैथान), ६८६०५-३(#) साधारणजिन पद, उपा. समयसुंदर गणि, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (रूप वण्यो अति नीको), ६९१२६-१ साधारणजिन पद, मु. सेवक, बं., पद. ७, पद्य, मूपू., (तोमी देखो जिनराज), ६९१२६-२० साधारणजिन पद, पुहिं., गा. ४, वि. १८३९, पद्य, श्वे., (लागो मारो वीर जिणंदा),६९१२६-३ साधारणजिन पद-औपदेशिक, आ. दयासूरि, पुहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (क्यूं न भजो भगवंत), ६९३४०-२१ (4) साधारणजिन प्रभाती, मु. देवकरण, पुहिं., गा. १०, पद्य, मूपू., (जाकी रखा करे भगवंतजी), ६९३६९-२२(2) साधारणजिन रेखता, मु. नवल, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (करु आराधना तेरी हिये), ७२२९४-३(+) साधारणजिन स्तवन, मु. कीर्तिविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (--), ७०७१८-१(+$) साधारणजिन स्तवन, मु. जिनलक्ष्मी, मा.गु., गा. ५, पद्य, भूपू., (सबल भरोसो तेरो जिनवर), ७०५६९-४(+) साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानउद्योत, पुहिं., गा. ६, पद्य, मूपू., (खतरा दूर करणा दूर), ७१९०९-२ साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, पुहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (जिनराज जुहारण जास्या), ७२०६२-७(+#), ६८६१६-११(#), ७२०४१-३(#) साधारणजिन स्तवन, वा. भक्तिसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभुजी रे प्रभुजी), ६८४५९-१५ साधारणजिन स्तवन, मु. मान, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (रीधसमपण दरद्रहरण), ७१७९३-३(२) साधारणजिन स्तवन, मु. राज, पुहिं., दोहा. ६, पद्य, म्पू., (श्रीजिनराज के सतर),७१३०३-३ साधारणजिन स्तवन, मु.रूपचंद, पुहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (मे परदेसी दूरका दरसन),७१७३४-१(+) साधारणजिन स्तवन, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नयणे जिनबिंब निरखिया), ७२०४८-२ साधारणजिन स्तवन, रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (प्रभु तुम तारिक छो), ७२४२१-१ साधारणजिन स्तवन, पुहिं., गा.८, पद्य, श्वे., (प्रभु मेरी विनती), ७०३०७-३ साधारणजिन स्तवन-नांदेरमंडन, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७१९०३-२ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चंपक केतकी पाडल जाई), ७२३५७-६(#s) साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मिल चौविह सुरवर), ७०५५९-२, ७११२८-२ साधारणजिन स्तुति, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहंत जिनेश्वर), ७२४८२-२ साधारणजिन होरी, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. १२, पद्य, मपू., (फाग रमे रस रंग प्रभू), ७१४८२-३(-६) साधारणजिन होरी, पुहिं., गा. ३, पद्य, श्वे., (धूम मचावो प्रभु के), ७१७३४-३(+) साधु अतिचार विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (चारित्राचारने विषे), ७२१४७-५ साधुगुण सज्झाय, आ. आनंदविमलसूरि, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवरने करु), ७०३६५(+) साधुगुण सज्झाय, मु. आसकरण, पुहि., गा. १०, वि. १८३८, पद्य, श्वे., (साधुजीने वंदना नीत), ७२१६०-१(+#) साधुगुण सज्झाय, मु. कुशलकल्याण, मा.गु., ढा. ५, गा. ४०, पद्य, मूपू., (ईण कलिकाले एहवा मुनि), ६८५७९-५(+#) For Private and Personal Use Only Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९२ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मा.गु., गा. १५, पद्य, श्वे., (सकल देव जिणवर अरिहंत), ६९३७९-२(#) साधगण सज्झाय, आ. विजयदेवसूरि, मा.ग., गा. ९, पद्य, स्पू., (पांचे इंद्री रे अह), ६८४५९-४०,७२००८-१(#) साधुगुण सज्झाय-२७ गुणगर्भित, मु. ज्ञानचंद, मा.गु., गा. १२, पद्य, श्वे., (साधुजीना गुण वखाणु), ७१८०१(#) साधु भगवंत को पत्रलेखन पद्धति, मा.गु., गद्य, श्वे., (स्वस्ति श्रीपार्श्व), ७१७४६-२(2) साधुलक्षण कवित्त, पुहिं., पद. १, पद्य, श्वे., (प्रथम पंच दृढ रहत रह), ७२२५०-४(+) साधुवंदना, मु. जेमल, मा.गु., गा. ९७, वि. १८०६, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधरजी आददे), ७०४७९(+), ७११६३-२(#$) साधुवंदना, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., ढा. ७, गा. ८८, पद्य, मूपू., (रिसहजिण पमुह चउवीस), ६८९७३(#), ७०८३७-२(+#$, ७१५०४($) साधुवंदना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., ढा. १८, गा. ५१९, ग्रं. ७५०, वि. १६९७, पद्य, मूपू., (शांतिनाथ जिन सोलमउ), ६८९७९ १(2) साधुवंदना बडी, मु. जेमल ऋषि, मा.गु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, स्था., (नमुं अनंत चोवीसी), ७११६३-१(-#) साधुसंगति सज्झाय, मु. धर्मदास, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रवचन वचन सोहामणां), ७१५१६-१(-) साधुसेवा १० बोल सज्झाय, मु. हीराचंदजी, मा.गु., गा. ११, वि. १९९०, पद्य, श्वे., (मुनिराज तणि सेवा), ७२१८०-६(+#) साधुस्तुति सवैया, जै.क. बनारसीदास, हिं., गा. २, वि. १७वी, पद्य, दि., (ग्यान्न को उजागर), ७०२९८-२(#) साध्वाचारदोष सज्झाय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सरसती भगवती भारती), ६९४२९-३(+) सामायिक पौषधादि में द्रव्यपूजागीत प्रश्न विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पौषध सामाइक लीधे), ६९०१४-१०६(+) सामायिक सज्झाय, मु. कमलविजय-शिष्य, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (प्रणमिय श्रीगौतम), ७२०६२-११(+#), ७२३८८-२(+) सामायिक सज्झाय, मु. देवविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (मन वचन कायाई पालो), ७२६११-७(#) सामायिक सज्झाय, मु. नेमसागर, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सामायिक मन सुधे करो), ७२६६५-२ सामायिक सझाय, मु. कुसालचंद ऋषि, मा.गु., गा. १८, पद्य, श्वे., (सद्गुर संगत करो भव), ७०१९१-४ सारंगशब्द पर्यायविचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (स्वर्ण १ तुरंगम २), ६९७९५-३(+) सावध निरवद्य क्रिया परिणाम चतुर्भंगी, मा.गु., गद्य, मूपू., (सावधक्रिया सावद्य), ६९०१४-१०१(+) सिचियायदेवी स्तुति, मु. जयरतन, रा., गा. ३३, वि. १७६४, पद्य, मूपू., (मन सुध ज्यां महिर कर), ७२२६८-७(+#) सिचियायमाता छंद, आ. सिद्धसूरि, मा.गु., गा. २१, पद्य, मूपू., (मुज मन आस्था अज फली), ७२२६८-१(+#), ७२०२० सिचीयायदेवी छंद, हेम, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सानिधि साचल मात तणी), ७२२६८-२(+#) सिचीयायदेवी स्तुति-ओसिया, मु. जुगति पाठक, पुहि., गा.७, वि. १७७२, पद्य, मूपू., (आज सफल दिन आया गढ), ७२२६८ सिद्धचक्र उद्यापन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (वलय ३ प्रथम वलये), ६९७३८-५, ७२५६१, ६८५०६-२($) सिद्धचक्र चैत्यवंदन, मु. साधुविजय शिष्य, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र आराधता), ७२५२१-१ सिद्धचक्रजीनी स्तुति, मु. रामविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (जिनशासन वंछित पूरण), ६८५५६-६(+$) सिद्धचक्रपूजन विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम उष्ण जल करके), ७२०५८(+$) सिद्धचक्र स्तवन, मु. अमरविजय, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समरी सारद माय प्रणमी), ७०१७६-१(#$) सिद्धचक्र स्तवन, उपा. वीरसुंदर, मा.गु., गा. १८, पद्य, मूपू., (नवपदनो रे ध्यान धरी), ७२८१२ सिद्धचक्र स्तवन, मु. सुविधिविजय, मा.गु., गा. ११, वि. १४१७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासुर सेवित), ७१९२२-१(+$) सिद्धचक्र स्तुति, उपा. उदयरत्न, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अंगदेश चंपापुरी वासी), ६८९८०-८ सिद्धचक्र स्तुति, ग. कांतिविजय, मा.गु., गा. ४, वि. १८वी, पद्य, भूपू., (पहिले पद जपीइ अरिहंत), ७२६८९-२(+#) सिद्धचक्र स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, भूपू., (निरुपम सुखदायक), ७०६०२-५(+$), ७०४१२-२, ७११२८-३ सिद्धचक्र स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अरिहंत नमो वळी सिद्ध),७०६०२-२(+),७११२९-३(+) For Private and Personal Use Only Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ सिद्धचक्र स्तुति, मु. भूपविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू, (नवपद ध्यान धरो भवि), ७०६०२-४(+) सिद्धचक्र स्तुति, मु. महिमाविजय, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आसो चैत्र ओली तप), ७०६०२-३(+) सिद्धचक्र स्तुति, पं. वीरविजय, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सिद्धचक्र नमी पूजा), ६८५५६-१७(+) सिद्धपद स्तवन, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (जगतभूषण विगत दूषण), ७१६८६, ६९९१२-१(#) सिद्धपद स्तवना, मु. रूपचंद, पुहि., गा. ५, पद्य, श्वे., (लोक चउद के पार कनारे), ७२१६३-४(+#) सिद्धांतसारोद्धार, मा.गु., गद्य, मूपू., (प्रथम जंबूद्वीपविचार), ६८४६१(+#$), ७२७५७(६) सिद्धार्थराजा का भोजनसमारंभ वर्णन, मा.गु., गद्य, श्वे., (हिवे मांड्यो उत्तंग), ७२६४१(#) सिद्धिवधूसज्झाय, पं. लब्धिविजय गणि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (सिद्धवधूनी वात रे हु), ६९९८४-६ सीतासती गीत, मु. जिनरंग, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (छोडी हो पिउ छोडि), ६९९६६-४(+) सीतासती सज्झाय, मु. मतिसागर, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (दशरथ नरवर राजीयो), ७२६३४ सीतासती सज्झाय-शीलविषये, ग. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जलजलती मिलती घणी रे), ६९३८०-३(+), ७१९५२ सीमंधरजिन चैत्यवंदन, उपा. विनयविजय, मा.गु., गा. ३, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर वीतराग),७२६४४-२ सीमंधरजिन लेख, आ. जयवंतसूरि, मा.गु., ढा. ५, गा. ३७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., (स्वस्ति श्रीपुंडरगिण), ७२५४३-१(+),७२५६९(२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. १७, गा. ३५०, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर साहिब), ६९२०७(+#), ६९९३३(+$), ६८४६२(#) (२) सीमंधरजिन विज्ञप्ति स्तवन-३५० गाथा-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., ग्रं. १२०१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य श्रीपार्श्व), ६९२०७(+#), ६९९३३(+$) सीमंधरजिन विनती स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २१, वि. १८६१, पद्य, मपू., (त्रिभुवनस्वामी अरज),७०८६३-१(+) सीमंधरजिन विनतीस्तवन, मु. चतुरविजय, मा.गु., गा. ९, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (श्रीमंदिरजीनी वीनती), ६९८०५-२ सीमंधरजिन विनती स्तवन, ग. देवचंद्र, मा.गु., गा. ९, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर जिनवर), ६९१२६-४५ सीमंधरजिन विनती स्तवन, उपा. भक्तिलाभ, मा.गु., गा. १९, पद्य, मूपू., (सफल संसार अवतार हु), ७२१९०-१(+), ७२४९४-१(+#), ७२५३१-२(+), ७२०४१-१(#) सीमंधरजिन विनती स्तवन-१२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., ढा. ११, गा. १२५, ग्रं. १८८, वि. १८वी, पद्य, मपू., (स्वामी सीमंधर विनती), ६९१८७ सीमंधरजिन स्तवन, मु. अगरचंद, मा.गु., गा. २३, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (मारी वीनतडी अवधारो),७११५३-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कनकविजय, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर स्वाम सेव), ७०४७१-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. कान कवि, मा.गु., गा. ९, पद्य, मूपू., (महाविदेह क्षेत्रनो), ७०९९२-३(+), ६९६७५-२(१), ६९३६९-१०(-2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. चमनसागर, मा.गु., गा. ५, वि. १९वी, पद्य, मूपू., (अविन्यासी सुखवासी हो), ७१९३३-२(+#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (सुगुण सनेही साजन), ६८६२६-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनराज, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सीमंधर करजोड मया), ७२८४६-१ सीमंधरजिन स्तवन, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (मुज हीयडु हेजालवू), ६९१२६-३९, ७२२५९-३, ७२६१६-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पूर्वविदेह विजये), ७०८१३-५ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर साहिबा), ६९१२६-३४ सीमंधरजिन स्तवन, मु. जिनेंद्रसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमधरजीकु वंदणा), ७२६६८-२ सीमंधरजिन स्तवन, क. पद्मविजय, मा.गु., गा.७, पद्य, मूपू., (सुणो चंदाजी सीमंधर), ६९३५५-८(2) सीमंधरजिन स्तवन, सा. मानाजी, मा.गु., गा. ७, वि. १९३७, पद्य, श्वे., (कुडरीकणी नगरी भली जी), ७२१८०-१(-2) सीमंधरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., गा. ७, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (पुष्कलवइ विजये जयो), ७२७५९-१(#) For Private and Personal Use Only Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९४ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादिक्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ सीमंधरजिन स्तवन, मु. रंगविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सीमंधर जिनवर स्वामी), ७१५२४-१(#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. रतनचंद, मा.गु., गा. १०, पद्य, श्वे., (जिनजी हो दिनदयाल),७०८५३-१(+) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा.८, वि. १८७०, पद्य, श्वे., (श्रीमंदरजिन वंदु), ६९३५५-७(-#) सीमंधरजिन स्तवन, मु. लालचंद, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधरजी सुणजो), ७१४६४-१(+), ७०७९२(2) सीमंधरजिन स्तवन, मु. विजयदेवसूरि शिष्य, मा.गु., ढा. ७, गा. ४०, पद्य, मूपू., (सुणि सुणि सरसती भगवत), ७२६२२ सीमंधरजिन स्तवन, वा. सकलचंद्र, मा.गु., गा. ३०, पद्य, मूपू., (सीमंधरजिन त्रिभुवन), ७२७०२-२(2) सीमंधरजिन स्तवन, श्राव. सबलसिंह, मा.गु., गा. ४, पद्य, श्वे., (सुनिये सीमंधर स्वामि), ६९१२६-४२ सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (पूरव पुष्कलावती हो), ६९७५४-१(+#) सीमंधरजिन स्तवन, रा., गा. ८, वि. १९२५, पद्य, श्वे., (सिरिमिंदर दरसण), ७०७८८-२ सीमंधरजिन स्तुति, मु.शांतिकुशल, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीसीमधर मुझनै),७११२९-४(+) सीमंधरजिन स्तुति, मु. हर्षविजय, मा.गु., गा.८, पद्य, मूपू., (पूरव दिशि इशान कुण),७२५४५-३(#) सीमंधरजिन स्तुति, मा.गु., गा. १, पद्य, मूपू., (सीमंधरस्वामी केवला), ७११२९-९(+) सुगुरुपच्चीशी, मु. रूपविजय, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (साभलजो सहूऐ मन आण), ७२४२७ सुगुरुपच्चीसी, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा. २५, पद्य, मूपू., (सुगुरू पिछाणो एणे), ६९०६४-३४, ७१५६०-२(2) सुदर्शनशेठ सज्झाय, मु. प्रेममुनि, मा.गु., ढा. ४, गा. २१, पद्य, श्वे., (वीरजिणंद विराजता), ७०१२७-१(2) सुधर्मास्वामी गहुँली, मु. शांतिरतन, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सोहम गणधर पटधारी), ७२१४२-१ सुपखरो गीत, मा.गु., गा. ४, पद्य, वै., (ध्रुवे मादलां मृग), ७१२५३-१(#) सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. गजमुख, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेरो हुसेवक तुम्ह), ७००८४-३(+#) सुबाहुजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, पुहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (ठाकुरिया दरिसण दे रे),७१४८२-२(-) सुभद्रासती सज्झाय, मु. भानु, मा.गु., गा. ४५, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुंते सारद), ७११८२-१ सुमतिजिन आरती, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (सुमतिजिणंदने आगले), ७२०११ सुमतिजिन चैत्यवंदन, मु. पद्मविजय, मा.गु., गा. ३, पद्य, मूपू., (सुमतिनाथ सुहंकर), ६८९८३-३(+) सुमतिजिन पद, मु. आनंदरूप, रा., गा. ३, पद्य, श्वे., (सुमति महाराज म्हांनु), ६९१२६-१२ सुमतिजिन पद, मु. गुणविलास, पुहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., (तेरी गति तुंही जाणे), ७२१५७-९(-) सुमतिजिन व शांतिजिन स्तवन, मु. रामसागर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (भवि तमे वंदो रे सुमत), ६९३५९-५(2) सुमतिजिन स्तवन, मु. जसवंत-शिष्य, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुमती जिणेसर साहिबा), ७१९३६-१, ७२३५७-५(2) सुमतिजिन स्तवन, मु. मेघविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुमतिजिनेसर साहिबो), ७२७१२-२ सुमतिजिन स्तवन-उदयापुरमंडण, मु. मोहनविजय, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रभुस्युं तो बांधी), ७१३१२-१(#$) सुमतिजिन स्तवन-पिंडस्थध्यानगर्भित, मु. शांतिविजय, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (रूप अनुप निहारी), ७२०६४(#) सुरप्रभजिन स्तुति, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (काजइ छइ जेहना सहु), ७२६१६-३($) सुरसुंदरी चौपाई, मु. धर्मवर्धन, मा.गु., खं. ४ ढाल ४०, गा. ६१३, वि. १७३६, पद्य, मूपू., (सासण जेहनउ सलहियइ), ६८५३२(5) सुलसाश्राविका सज्झाय, मु. कल्याणविमल, मा.गु., गा. १०, पद्य, मूपू., (धन धन सुलसा साची), ६८४५९-१६, ६९६०४-२(#) सुविधिजिन पद, मु. रूपचंद, पुहिं., गा. ३, पद्य, म्पू., (मुजरा साहिब मेरा रे), ६९३६९-१७(2) सुविधिजिन पद, मा.गु., गा. ४, पद्य, मूपू., (वांके गढ फोज चढी है), ६९१२६-१९। सुविधिजिन स्तवन, मु. तेजसिंह ऋषि, मा.गु., गा. ५, पद्य, श्वे., (सुविधिजिणेसर सुंदरु), ७०९९२-५(+) सुविधिजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, पुहि., गा. ५, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (में कीनो नहीं तुम), ७२७७४-१ सूतक विचार, मा.गु., गद्य, मूपू., (पुत्र जन्म्यां १०), ७०९७०-१ सूरज श्लोक, रामचंद, रा., पद्य, जै., वै., (--), ७२१२८-१(६) For Private and Personal Use Only Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.१७ सूर्य सलोको, मा.गु., गा. १७, पद्य, श्वे., (सरसति सामणि करोने), ६९३६१-९(#) सौभाग्यसूरि त्रिभंगी छंद, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (यौ तपगच्छनायक सुंदर), ६९८०२-२(+) सौभाग्यसूरि वधावो, वा. वल्लभ पाठक, मा.गु., गा. ५, पद्य, मूपू., (--), ७१५७१-१(5) स्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., अ. २४ स्तवन, गा. ८८, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणंदा ऋषभ जिणंद), ७२३२२(+#S), ७२३२३() स्तवनचौवीसी, मु. आनंदघन; आ. ज्ञानविमलसूरि, मा.गु., स्त. २४, वि. १८पू, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम), ६९०६२(+$), ६९३७०-१(+#), ७१५६५ (#S) स्तवनचौवीसी, मु. खोडीदास ऋषि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, श्वे., (--), ७१५१७($) स्तवनचौवीसी, आ. जिनराजसूरि, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (मनमधुकर मोही रह्यो), ६८९६६-१(#$), ७१५४२(5) स्तवनचौवीसी, ग. देवचंद्र, मा.गु., स्त. २४, वि. १७७६, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिंदसु प्रीतडी), ६८४८१(2) स्तवनचौवीसी, मु. मोहनविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर्थंकर सेवना), ६८५४१(+#) स्तवनचौवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २४, गा. १२१, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (जगजीवन जगवालहो), ६९३८४(६) स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मा.गु., स्त. २४, पद्य, मूपू., (ओलगडी आदिनाथनी जो), ७१५३७+),७१७२५(+$) । स्तवनचौवीसी, श्राव. विनयचंद्र गोकलचंद कुमट, मा.गु., स्त. २४, वि. १९०६, पद्य, श्वे., (श्रीआदिश्वर सामी हो), ६९०११(+), ६९०६६-१(+) स्तवनवीसी, आ. जिनसागरसूरि, मा.गु.,स्त. २०, पद्य, मूपू., (सामि सीमंधर विनती), ७१२३५(5) स्तवनवीसी, उपा. यशोविजयजी गणि, मा.गु., स्त. २०, पद्य, मूपू., (पुक्खलवई विजये जयो), ७०६७३(#$) स्तुतिचतुर्विंशतिका-दानसूरि-हीरसूरिनामगर्भित, मु. सहजविमल, मा.गु., गा. २९, पद्य, मूपू., (सरस कोमल वाणी निरमली), ७०६६९() स्त्रीस्वभाव कवित्त, मु.जिनहर्ष, मा.गु., गा.१, पद्य, मूपू., (लोइणभर निरखंति), ७१४७२-२ स्त्रीहितशिक्षा गुंहली, मु. विबुधविमल, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सोल करी सणगार सोहागण), ६९७६३-१ स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, मूपू., (शुद्ध स्वरूपने ध्याउ), ७११२०-२(+#), ७२१५२-२, ७२७९४-३ स्थापनापरीक्षा विधि, मा.गु., गद्य, मूपू., (श्रीभद्रबाहुस्वामी), ७२६५२(+) स्थुलिभद्र सज्झाय, मु. उत्तमसागर, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (हं तो तुम गुणे), ६८६१६-३(2) स्थुलिभद्र सज्झाय, मु. ऋषभ, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू, (श्रीस्थूलिभद्र मुनि), ६९०६४-२८ स्थूलखंडमान विचार, मा.गु., गद्य, श्वे., (एक लाख इकसठि सहस), ७०९६७ स्थूलिभद्र नवरसो, उपा. उदयरत्न; मु. दीपविजय, मा.गु., ढा. ९, गा.७४, वि. १७५९, पद्य, मूपू., (सुखसंपति दायक सदा), ६९००६ २(+#), ६९७२३(१), ७२५२९(4), ६९३६९-४(#) स्थूलिभद्रमुनि कथा, रा., प+ग., मूपू., (सरसती सामण पाय नमि), ६९००६-१(+#) स्थूलिभद्रमुनि चौमासा, मु. जिनहर्ष, मा.गु., गा.५, पद्य, मूपू., (श्रावण आयो वालहा), ७२१६८(+) स्थूलिभद्रमुनि रास, मु. विनयप्रभु, मा.गु., ढा. १७, वि. १७९८, पद्य, मूपू., (वंदु वीर जिणंदना), ६८९६१(4) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. कनककुशल, मा.गु., गा. १३, पद्य, मूपू., (थूलभद्रमुनिसर मंदिर), ६९६८२-२(+#) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. मेघमुनिजी, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडी न कीजै रे), ७०९९२-८(+) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मा.गु., गा. १७, पद्य, मूपू., (लाछल दे मात मल्हार), ६९९६६-१०(+$), ६८४५९-१७ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, ग. लब्धिउदय, मा.गु., गा. ११, पद्य, मूपू., (मुनिवर रहण चोमासे), ७२२२५-२(2) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., गा. ७, पद्य, मूपू., (प्रीतडली न किजीये), ७२६०४-४(2) स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, क. सहजसुंदर, मा.गु., गा. ६, पद्य, मूपू, (चंदलीया तुं वेहलो), ७१९०३-१ स्थूलिभद्रमुनि सज्झाय, रा., गा.७, पद्य, मूपू., (चंदवदनी कहे पीउ पाए), ७२०६२-८(+#) For Private and Personal Use Only Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५९६ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ स्नात्रपूजा विधि, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, मूपू., (--), ७११८०(६) स्नात्रपूजा विधिसहित, ग. देवचंद्र, मा.गु., ढा. ८, गा. ६०, वि. १८वी, पद्य, मपू., (चोतिसे अतिसय जुओ वचन), ६९६००-१(+), ६९८७१(+$), ६८५०६-१, ६९०२२, ६९४५२-१, ६८६१५(#)६८५४४(६) स्नेहलीला, रसकराय, पुहि., गा. १२०, पद्य, वै., (एक समैं व्रज वासकी), ६८५६५-१(#$) स्याही पक्की निर्माण विधि, मा.गु., गद्य, (पईसा पांच (५) भार), ७०९७२-२(2) स्याही विधि संग्रह, मा.गु., गद्य, जै., वै., (भोडल री स्याही भोडल), ७१२०४-१(+-#) स्वरोदय शास्त्र, मु. कपुरचंद, मा.गु., गा. ३८१, वि. १९०७, पद्य, मूपू., (नमो आदी अरिहंत देव), ७२४८९($) हंसराजवत्सराज चौपाई, आ. जिनोदयसूरि, मा.गु.,खं. ४ ढाल ४८, गा. ९०५, वि. १६८०, पद्य, मपू., (आदिसर आदे करी चोवीसे), ६८४७०(2) हर्षचंदजी गीत, गोडीदास, रा., गा. ९, पद्य, श्वे., (अरिहंतदेव आराधीये), ७११५९-३(#) हितशिक्षाबत्रीसी, वा. क्षमाकल्याण, मा.गु., गा. ३३, पद्य, मूपू., (सकल विमल गुन कलित),७२४१७(2) हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. विजयसेनसूरि-शिष्य, मा.गु., गा. २०, पद्य, मूपू., (बे कर जोडीजी वीन), ७२८३८, ७२४४१-७(#), ७२४४२-२(4) हीरसूरि गुरूगुण गीत, मु. सुखसागर, पुहि., गा. ७, पद्य, मूपू., (तेरी मूरति मोहनगारी), ७१२०३-१ होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचंद, मा.गु., ढा. ४, पद्य, श्वे., (प्रथम पुरुष राजा), ६९१११-५, ७०७७३ होलिकापर्व सज्झाय, मु. वीर, मा.गु., गा. १६, पद्य, मूपू., (नवगाटी नवल वर पाया), ६९०६४-९ For Private and Personal Use Only Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Essenceleased ALLERestaphataractel JaipayaSHREBRULEpapers Pr (22nurksAUR atap areICTIANDEकरणाका ndनयाm BreManmadino wa RARA A सादिमानवीय शिक्षकशिनि.Ram. विविधाविसमीनीगर नdmarmdarasi Renfor jammcwmयामा सन आराधना महावीर कोबा. श्री 卐 // अमतं तु विद्या तु Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.org Website : www.kobatirth.org ISBN: 978-81-89177-68-3 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