Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 492
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: पाडलीपुर नामे नगर, अंति: जेनधर्म साचौ जाणो रे, ढाल - २, गाथा - ३५. २. पे नाम. कुंथुजिन स्तवन, पृ. १२-१२आ, संपूर्ण. " पन्या, पद्मविजय, मा.गु., पद्य, वि. १९वी आदि: राति दिवस नित सांभरे, अंतिः पचने मंगलमालो लाल, गाथा-६. ३. पे. नाम. पार्श्वजिन स्तवन, पृ. १२आ, अपूर्ण, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तवन- सुरतमंडन, ग. जिनलाभ, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: सहसफणा प्रभु पासजी, अंति: (-), (पू. वि. गाथा ४ अपूर्ण तक हैं.) ७२८२७. विजयक्षमासूरिगुरु स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (१०X८.५, १८x१७). विजयक्षमासूरिगुरू स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नत्वा गुरो पादयुगं अंतिः चारित्रतो दुर्लभाः, श्लोक-१३. ७२८२८. (+) साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र सह अवचूरि व लोकसंग्रह, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र. वि. त्रिपाठ - संशोधित, जैदे., ( २६११, ३०X९०-९३). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रावरणरहितोन्यथायथा. २. पे. नाम. औपदेशिक श्लोक संग्रह, पृ. १अ, संपूर्ण. लोक संग्रह * पुहिं., प्रा., मा.गु. सं., पद्य, आदि (-); अंति (-), रोक-थ ५. 1 १. पे नाम, साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह सह अवचूरि. पृ. १अ संपूर्ण. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह - तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: ठाणे कमणे चकमणे; अंति: इयत्तं म गहिअं. साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह तपागच्छीय अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अथ देवसिक रात्रि, अंति ४७७ " ७२८२९. (+#) वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५X११.५, १३३१). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७२९, आदि: सकल सिद्धिदायक सदा, अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. डाल-८, गाथा १०२. ७२८३०. (४) भावारिवारण स्तव, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २, प्र. वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १३x४६). महावीर जिन स्तव- समसंस्कृतप्राकृत, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा.सं., पद्य, आदि: भावारिवारणनिवारणदारु, अंतिः वसदं दृष्टं दयालो मे श्लोक-३०. ७२८३३. (*) पंचमहाव्रत सज्झाय, अपूर्ण, वि. १९०३ श्रावण शुक्ल, १०, श्रेष्ठ, पृ. २१-२० (१ से २०) = १ ले. स्थल. द्रोणपुर, प्र. मु. चिमनसिंधु, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अंत में प्रथम महाव्रत सज्ज्ञाय किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है, सज्झाय२ से ४ अज्ञात प्रतिलेखक द्वारा तथा अनुपुरित पाठ उल्लिखित प्रतिलेखक द्वारा लिखी गई है. प्रतिलेखन पुष्पिका भी अनु प्रतिलेखक की है. संशोधित. जैवे. (२४४१०.५, १७४४८). ५ महाव्रत सज्झाय, मु. कांतिविजय, मा.गु., पद्य, आदि: सकल मनोरथ पूरवे रे; अंति: कंति०भणै ते सुखह लहै, बाल-५, संपूर्ण ७२८३४. () पार्श्वजिन स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६५११, ५०x२६-३०). १. पे. नाम. थंभणपुर पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन-स्तंभनतीर्थ, मा.गु., पद्य, आदि: थंभणपुर श्रीपास जिणं; अंति: पार्श्वनाथ चौसालो, गाथा -९. २. पे. नाम. पारस स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मा.गु., पद्य, आदि: श्रावण मास सुहामणो; अंति: ज्ञान० वंछित दायरे, गाथा- ९. ३. पे. नाम. गौडी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. मोहनविजय, रा., पद्य, आदि: मुजरौ तौ मानीने लीजै; अंति: मोहन० प्रणमीजै रे, गाथा-४. For Private and Personal Use Only

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