Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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४८०
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची विचारगाथा संग्रह, प्रा., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-४६
अपूर्ण से गाथा-४९ के प्रारंभ तक लिखा है., वि. प्रवचनसार व विचारसार नामक ग्रंथ के अलग-अलग गाथाक्रम में
येगाथाएँ मिलती हैं.) ७२८५६. (#) पद्मावती आराधना, संपूर्ण, वि. १८९६, आश्विन कृष्ण, १३, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. सांडेरानगर, प्रले. मु. तीर्थसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११.५, ११४२६). पद्मावती आराधना, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, वि. १७वी, आदि: हवेराणी पद्मावती; अंति: विराधिया
चोरासी लाख, ढाल-३, गाथा-४१. ७२८५७. (+2) वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४, प्र.वि. संशोधित-टिप्पण युक्त विशेष पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२.५, १२४४८). वसुधारा स्तोत्र, सं., गद्य, आदि: संसारद्वयदैन्यस्य; अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., "समरके
सब्रह्मलोके सश्रमण ब्राह्मणिका" पाठांश तक लिखा है.) ७२८५८. (+) दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, पौष कृष्ण, १३, श्रेष्ठ, पृ. ३, प्रले. पं. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अंत में प्रतिलेखक ने "लहुगइणा (शीघ्रगत्या) लहियं" लिखा है., संशोधित., दे., (२५४१०.५, १०x४५).
दीक्षाग्रहण विधि, प्रा., गद्य, आदि: सावओ कयावि चरित्तमोह; अंति: पयाहिणवास उस्सग्गो. ७२८५९. (4) त्रिलोकप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४१२, १५४३६).
८४ गच्छ सज्झाय, मु. त्रिलोकसागर, मा.गु., पद्य, आदि: गच्छ चौरासी जग कहे; अंति: तिलोकसा० मंगल गाव्या,
गाथा-३८. ७२८६०. नेमनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १, प्रले. मु. गजेंद्रविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, जैदे., (१२४१०.५, ११४३०).
नेमराजिमती सज्झाय, मु. विनीतसागर, मा.गु., पद्य, आदि: समुद्रविजय सुत नेमि; अंति: विनीत० सुख पामे हो,
गाथा-२४. ७२८६१. (#) आदिनाथ देशनाद्वार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं.सुमतिचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१०.५, १३४४०-४५).
आदिनाथ देशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदि: संसारे नत्थि सुह; अंति: सिवं जंति, गाथा-८८. ७२८६२. पद्मावती स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२७४१२.५, १५४३५).
पद्मावतीदेवी अष्टक, सं., पद्य, आदि: श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: स्तुता दानवेंद्रैः, श्लोक-८. ७२८६३. (+) अवंतिसुकुमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें., जैदे., (२६४११.५, १५४४६-५०).
अवंतिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४१, आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ति; अंति: जीनहर्ष० सुख पावे रे,
ढाल-१३, गाथा-१०७. ७२८६९. (+#) महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५४११, १०x४०).
महावीरजिन स्तवन, पं. वीरविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चतुर चंपापुरी वनमा; अंति: शुभवीरपद अनुसरे ए, गाथा-७. ७२८७०. (#) रथनेमि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६४१२, १७४३६-४०). रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. दानविजय, मा.गु., पद्य, आदि: मेहि भीनी जइ गुफामा; अंति: गावेदानविजय उवझाया,
गाथा-३१.
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