Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७
४७३ २. पे. नाम. नवग्रह स्तोत्र, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
ग्रहशांति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंति: ग्रहशांतिविधि शुभं, श्लोक-११. ३. पे. नाम. नवग्रह वेदिकास्थापनादि विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., प+ग., आदि: कस्मिर्कायां रविं; अंति: मंडलान्येव मालिखेत, श्लोक-४. ४. पे. नाम. ज्योतिष श्लोक संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
__सं., पद्य, आदि: (-); अंति: (-), श्लोक-२. ७२७७८. (#) नेमराजिमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. अक्षर फीके पड गये हैं, जैदे., (२५४११.५, १३४४२).
नेमराजिमती बारमासो, मा.गु., पद्य, आदि: प्रेम विलुधी पदमणी; अंति: गढ नाथ सरे सुर नेम, गाथा-४५. ७२७७९. (+) गोडीजी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२५४११.५, १०x२८).
पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, म. वसता, रा., पद्य, आदि: जोर बन्यो बन्यो; अंति: मानीज्यो निजदामेव, गाथा-१६. ७२७८०. (#) स्तवन, पद व श्लोकादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ४, प्र.वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है,
जैदे., (२४४१०.५, १४४३३). १. पे. नाम. अतीतचौवीशी पद, पृ. १आ, संपूर्ण.
अतीतचौवीशीजिन पद, मा.गु., पद्य, आदि: नित नित अतीत चौवीशी; अंति: श्रीअरतागतमि सरनांम, गाथा-२. २.पे. नाम. अनागत चौवीसी स्तवन, पृ. १आ, संपूर्ण.
आ. जिनचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: जे भविसंति अणागए; अंति: साच करी सरदह्या, गाथा-९. ३. पे. नाम. समस्यागर्भित श्लोक संग्रह, पृ. २आ, संपूर्ण.
समस्या श्लोक संग्रह, सं., पद्य, आदि: कज्जले कमलं दृष्ट्वा; अंति: ऋत० आव वेग सुरराज, श्लोक-२. ४. पे. नाम. हनुमान स्तुति, पृ. २आ, संपूर्ण.
सं., पद्य, आदि: कुतोहतारण्ये कनक; अंति: सेर सालतरवः करोमिकं, श्लोक-५. ७२७८४. विमलमंत्रीश्वर सज्झाय व स्तवन चौवीशी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (२६४१२, १४४३०).
१.पे. नाम. विमलमंत्रीश्वर सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. ___ मा.गु., पद्य, आदि: जो इक मोरी अबाव आइ; अंति: पावै रे सुख संपदा, गाथा-१८. २. पे. नाम, स्तवन चौवीसी, पृ. १आ, संपूर्ण.
२४ जिन स्तवन, मु. कवियण, रा., पद्य, आदि: ऊँचा ऊँचा तो देरा; अंति: दोइ करजोडि लागु पाय, गाथा-१७. ७२७८५. (+#) ऋषभजिनस्तवन-चौदगुणस्थान विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. मेडतानगर,
प्रले.मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य,प्र.वि. संशोधित. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५४१२.५, १६४५६).
आदिजिन स्तवन-१४ गुणस्थानविचारगर्भित, वा. पद्मराज, मा.गु., पद्य, आदि: जगपसरंत अनंतकंत गुण; अंति:
पद्मसागर० सुखसंपदा, गाथा-२१. ७२७८७. (+) चतुर्विंशतिजिन स्तुति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पंचपाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ., जैदे., (२६४११, १५४५५). २४ जिन स्तुति-यमकमय, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: तत्त्वानि तत्त्वानि; अंति: पद्मास्यनु भारतीयः,
श्लोक-२७, (वि. प्रतिलेखक ने श्लोक-२७ पर ही कृति समाप्त कर दी है.)
२४ जिन स्तुति-यमकमय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: विस्तार्य विनीतेषु; अंति: अंतराय स श्री० पद्मा. ७२७८९. (+) जिनप्रतिष्ठानंतर थाली में अक्षतप्रक्षेप विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, आषाढ़ कृष्ण, ३, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले.स्थल. सत्यपुर, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित., जैदे., (२७४१२.५, १२४३४).
जिनप्रतिष्ठानंतर अक्षतप्रक्षेप विधि, प्रा.,सं., गद्य, आदि: श्रीजिनप्रतिष्ठानंतर; अंति: एते प्रतिष्ठा गुणाः. ७२७९१. (4) चंद्रप्रभु स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रावण कृष्ण, ५, मध्यम, पृ. ३, ले.स्थल. धाणेरानगर, प्रले. ग. मनोहरसागर,
प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५४११.५, २०४५०).
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