Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची
चंद्रप्रभजिन स्तवन- सूत्रार्थं विचारगर्भित, मु. चारित्रसागर, मा.गु., पद्म, आदि: सरसती वरसती सगतिरूप; अंतिः चारित्र उदधि सुहंकरो, दाल- ११, गाथा ८१.
७२७९४. पडिलेहणाविचार कुलक, अष्टभंगी व पडिलेहणाविचारादि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १, कुल पे. ६, जैवे., (२५X११.५, १७x४९).
१. पे. नाम. पडिलेहणाविचार कुलक- गाथा १ से ५. पृ. १ अ. संपूर्ण.
पडिलेहण कुलक- हिस्सा गाथा १-५. ग. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि सुत्तत्यविधी १ अंति: निजतणत्वं मुणिबिंति, गाथा-५.
पडिलेहण कुलक- हिस्सा गाथा १ - ५ - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: सूत्रार्थतत्त्वदृष्ट; अंति: प्रतिलेखनाविज्ञेया, (वि. अंत में (मारुगुर्जर) मुंहपत्ति के ५० बोल एवं स्त्रियों के लिये मुंहप्तत्ति के ४० बोल के बारे प्रतिलेखक ने लिखा है.)
२. पे नाम. आवक-श्राविका मुँहपत्तिवोल विचार पृ. १अ, संपूर्ण.
मुखवस्त्रिकाप्रतिलेखन के ५० बोल, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: साधु श्रावकने, अंति: त्रीने बोल ४० जाणिवा. ३. पे. नाम. स्थापनाचार्य के १३ बोल, पृ. १अ, संपूर्ण.
स्थापनाचार्यजी पडिलेहण १३ बोल, मा.गु., गद्य, आदि: १ सुद्ध स्वरुपना, अंति: कायगुप्ति १३.
४. पे. नाम. पडिलेहणविचार संग्रह, पृ. १अ १आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: साधु श्रावकना ५० बोल; अंति: एउ परावी पडिलेहण छइ.
५. पे. नाम. स्थापनाचार्य पडिलेहण विधि, पृ. १आ, संपूर्ण.
सं., गद्य, आदि: शुद्धस्वरूपस्य चिंतन, अंतिः चिंतनीयं यदुक्तं (वि. धर्मरत्नप्रकरण-वृत्ति से उद्धृत)
६.
.पे. नाम. ज्ञान आदर पालन अष्टभंगी, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., गद्य, आदि: न जाणह न आदरइ न पालह, अंतिः सर्वविरति ५ आरांमाहे.
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७२७९९ (*) संबोधसप्ततिका, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४, प्रले. मु. विनयराज (बृहत्खरतर) पठ श्राव. लक्खु लुंभा (पिता श्राव. भा. प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे., ( २६.५x१२, १२४३३-३८).
संबोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं तिलोयगुरु; अंति: जयसेहर० नत्थि संदेहो, गाथा- ७५. ७२८००. नववाड सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. मु. अचलसुंदर, पठ. श्राव. आणंदरुप शेठ, प्र.ले.पु. सामान्य,
जैदे., (२७X१२, १४X३४).
९ वाड सज्झाय, उपा. उदयरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १७६३, आदि: श्रीगुरुचरण नमी करी; अंति: उदयरतन० राखो निरमली, ढाल - १०, गाथा- ४६.
७२८०१. (d) कल्याणमंदिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८५०, फाल्गुन शुक्ल, ४, बुधवार, मध्यम, पृ. ३, ले. स्थल सांडेरानगर, पठ. मु. हरचंद (गुरु ग. मोहनविजय), प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, ११×३३). कल्याणमंदिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकरसूरि, सं., पद्य, वि. १वी, आदि: कल्याणमंदिरमुदार, अंतिः कुमुद० प्रपद्यंते, लोक-४४.
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७२८०२, (+) दीक्षाग्रहण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १. प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२२.५४७.५, १३४५२). दीक्षा विधि, प्रा., मा.गु., सं., गद्य, आदि: पढिएअ कहिअ परिहरउट्ट, अंतिः तहा सत्तहामंडली जइणो. ७२८०३. प्रतिबोधगीत व दूहासंग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, जैदे., (१९.५x११.५, १३x२८).
१. पे. नाम. प्रतिबोध गीत पू. १अ १आ, संपूर्ण.
औपदेशिक भास, कीकु, मा.गु., पद्य, आदिः वणजारा रे उभउ रही, अंतिः कीकउ० करे विणजारा रे, गाथा १९. २. पे. नाम. जैनदूहा संग्रह, पृ. १आ, संपूर्ण.
जैनदुहा संग्रह, प्रा.,मा.गु., सं., पद्य, आदि: धरम न वाडी निपजै, अंति: जाइ गुज जीहांन, गाथा-३. ७२८०६. (+) आत्मनिंदाष्टक, संपूर्ण वि. १९०१ श्रावण कृष्ण, १२, मध्यम, पृ. १, प्रले. मु. चिमनसागर, प्र. ले. पु. सामान्य, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ- टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. दे. (२५x१२.५. १४४४०). आत्मनिंदाष्टक, सं., पद्म, आदिः श्रुत्वा श्रद्धाय: अंतिः कार्य हा कर्मभिः श्लोक-१०.
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