Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 482
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ ४६७ ७२७१६. (*) नवतत्त्वप्रकरण व सिद्धों के पंद्रहभेद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३, कुल पे. २. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ-संशोधित. जैवे. (२५.५४१२, १३४३२) १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण. प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: अनंतभागो य सिद्धि गओ गाथा- ४७. 1 २. पे नाम, सिद्धों के १५ भेद उदाहरण, पृ. ३आ, संपूर्ण १५ भेद सिद्ध उदाहरण गाथा, प्रा., पद्य, आदि: जिणसिद्धा अरिहंता, अंति: पनरस भेया उदाहरणं, गाथा-४. ७२७१७. (+) पार्श्वजिनस्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, आश्विन शुक्ल, ६, सोमवार, मध्यम, पृ. २, प्रले. ग. सौजन्यसागर (गुरु ग. हेतुसागर), प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, जैदे. (२६४१२, ६- ९३९-४७). " पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित, आ. पार्श्वचंद्रसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: प्रणमुं पासनाह; अंति: पासचंद० परमारथ लहे, गाथा- २३. पार्श्वजिन स्तवन- २४ दंडकविचारगर्भित टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: पहिलो १ दंडक नारकी, अंति: नामची मोक्षपदवी पामइ. ७२७१८. (+) जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें- अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, जैदे. (२५.५X११.५, १३४३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवण पईवं वीरं नमिऊण, अंतिः संतिसूरि०सुयसमुद्दाओ, गाथा-५१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२७२०. (+) पाखीखामणा विधि व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. १८३०, वैशाख अधिकमास शुक्ल, ५, रविवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्रले.ग. रत्नविजय, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ., जैदे., (२४X१२, ८४३५). १. पे. नाम. पाखीखामणाविधि सह टवार्थ, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. क्षामणकसूत्र, हिस्सा, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो पियं; अंति: मणसा मत्थएण वंदामि, आलाप-४. क्षामणकसूत्र - टबार्थ, मा.गु., गद्य, आदि: इच्छउं हे क्षमाश्रमण; अंति: वचने करी वांदउं छउं . २. पे नाम, क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, पृ. १आ, संपूर्ण. संबद्ध, सं., पद्य, आदि: सर्वे यक्षांबिकाद्या, अंति: द्रुतं द्रावयंतु नः, श्लोक-१. ७२७२१. पाखीपडिक्कमणादिविधि संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैवे. (२३.५४१०.५, १६x४८). १. पे. नाम. पाखीपडिकमणा विधि, पृ. १अ, संपूर्ण. पाक्षिकचौमासीसंवत्सरी प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा. मा. गु., पग, आदि मुहपत्तिर्वदणय अंतिः सव्वे पक्खिपडिक्कमणं, गाथा-३, (वि. विधि सहित) २. पे. नाम. राईपडिकमणा विधि, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. राई प्रतिक्रमण विधि, संबद्ध, प्रा., मा.गु., प+ग, आदि: प्रथम इरियावही; अंति: पडिलेहण करी. ३. पे. नाम. देववांदणा विधि, पृ. १आ, संपूर्ण. देववंदन विधि, संबद्ध, मा.गु., गद्य, आदि: इरियावहि नोकार; अंति: चैत्यवंदन पूरो कही. ७२७२२. (*) ब्रह्मचर्य सज्झाय व औपदेशिक कवित्त, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १. कुल पे. २. प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२१X१०.५, ८-११X३६). १. पे नाम, ब्रह्मचर्य सज्झाय, पृ. ९अ संपूर्ण. उत्तराध्ययनसूत्र - अध्ययन- १६ बंभचेरसमाहिठाणं सज्झाय, संबद्ध, उपा. उदयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: ब्रह्मचर्यना दश; अंति: उदयविज० गुरु धन्य रे, गाथा- ६. २. पे. नाम. औपदेशिक कवित्त, पृ. १आ, संपूर्ण. पुहिं., पद्य, आदि: एक पंखी बोलीयो सब; अंति: सरकिण हीन संधीयो, गाथा-२. ७२७२३. योगशास्त्र-पंचमप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २, जैवे. (२३.५x१०, ११४३३). יי For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612