Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 17
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 440
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१७ www.kobatirth.org ३. पे. नाम. ९ वासुदेव नाम, पृ. १अ, संपूर्ण. मा.गु, गद्य, आदि: त्रिपृष्ठिर द्विपृ०; अंतिः दत्त७ नारायण८ कृष्ण९. ४. पे. नाम. ९ बलदेव नाम, पृ. १अ. संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अचल१ विजय२ भद्र३; अंति: नंदन७ पद्म८ राम९. ५. पे. नाम. ९ प्रतिवासुदेव नाम, पृ. १आ, संपूर्ण. मा.गु., गद्य, आदि: अग्रीवर तारकर अंतिः रावण८ जरासिंधुर. ७२३३४. (#) आराधना, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १, पू. वि. मात्र प्रथम पत्र है., प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२६×११.५, १६४३९-४४). आराधना, मु. हंस, मा.गु., पद्य, आदि: पहिलुं नमस्कार, अंति: (-), (पू.वि. गाथा - २९ अपूर्ण तक है.) ७२३३५. जिनकुशलसूरि स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, जैदे., (२५.५X११.५, १५X३७). जिनकुशलसूरि स्तवन, मु. विजयसिंह, मा.गु., पद्य, आदि: समरूं माता सरस्वती; अंति: (-), (पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., गाथा - २९ अपूर्ण तक है.) नवीनप्रासादस्थापन मुहूर्त, सं., गद्य, आदि: खातर पूरणर उंबर३: अंतिः संघभक्तिच क्रिवते. ३. पे. नाम. प्रासाद विचार, पृ. १आ, संपूर्ण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७२३३६. धन्नाअणगार सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १, दे., (२५X१२.५, १३×३९). धन्ना अणगार सज्झाय, मु. मेरु, मा.गु., पद्य, आदि: चरणकमल नमी वीरना; अंतिः मेरु नमे बारोबार रे, गाथा- ११. ७२३३७. गृहजिनबिंबप्रतिष्ठाविधिआदि संग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, जैदे., ( २४.५x१०.५, १८४५७). १. पे नाम. गृहविवस्थापना विधि, पृ. १अ संपूर्ण मा.गु.,सं., गद्य, आदिः पूर्वं भव्यमुहूर्त, अंति: पूजा प्रासादे. २. पे. नाम. नवीनप्रासादस्थापन पंचमुहर्त्तानि पृ. १अ १आ, संपूर्ण. सं., गद्य, आदिः कचिद द्वादशभागा अंति: तरत्वं ज्ञेयम्, (२५.५X१२, ६-९२०-२३). ७२३३८. (+#) साधुपंचप्रतिक्रमण सूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३-१ (१) = २, पू.वि. बीच के पत्र हैं., प्र. वि. टिप्पणयुक्त विशेष पाठ अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैदे. (२५.५४११, १८४४३-४८). "" साधुपंचप्रतिक्रमणसूत्र संग्रह- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मा.गु., पग, आदि: (-); अंति: (-), (पू.वि. श्रमणसूत्र अपूर्ण नमस्कार महामंत्र, तृतीयपद अपूर्ण तक है.) ७२३४०. (A) ऋषिमंडल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, जैवे. (२६११, १३४३५). ऋषिमंडल स्तोत्र, आ. गौतमस्वामी गणधर सं., पद्य, आदि आचंताक्षरसंलक्ष्य अंतिः दोषैर्विमुच्यते श्लोक -८५. ७२३४१. (#) श्रावकअतिचार, वंदित्तुसूत्र व आलोचना सूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२५.५X११, १७X५३). १. पे. नाम. श्रावक अतिचार, पृ. १अ - १आ, संपूर्ण. श्रावकपाक्षिक अतिचार - लघु, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीज्ञाननै विषै; अंति: तस मिच्छामि दुक्कडं. २. पे नाम, बंदिसूत्र, पृ. १आ-२आ, संपूर्ण, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वदेत्तु सव्वसिद्धे, अंतिः वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा ४३. ३. पे. नाम. आलोचनासूत्र, पृ. २आ, संपूर्ण आलोचनासूत्र-देवसिप्रतिक्रमणगत, प्रा., मा.गु., गद्य, आदि: इच्छाकारेण संदेसह, अंति: तस मिच्छामि दुक्कडम्. ७२३४२. बासठमार्गणा ४५ बोल यंत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पेज १x१२ = १. सारणीयुक्त ग्रंथ, जैदे., ४२५ ६२ मार्गणा ४५ बोल यंत्र, मा.गु., को. आदिः (-); अंति: (-). ७२३४३. खंडाजोयण बोल, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. ४-१ (१) -३, जै. (२६४१२, २१४४३-४६). "" For Private and Personal Use Only

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