Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४२६९४. (+#) आषाढभूति सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१२.५, ११४३३).
आषाढाभूतिमुनि सज्झाय, मु. भावरत्न, मा.गु., पद्य, वि. १८वी, आदि: श्रीश्रुतदेवी हीयें; अंति: भावरत्न सुजगीसरे,
ढाल-५. ४२६९५. (4) इलाचीपुत्र व गजसुकुमालमुनि सज्झाय संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ३, प्र.वि. पत्रांक अंकित
नहीं है., अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, १३४३५). १. पे. नाम. इलाचीपुत्र सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. इलाचीकुमार सज्झाय, उपा. समयसुंदर गणि, मा.गु., पद्य, आदि: नाम एलापुतर जाणीए; अति: समयसुदर गुण गाय,
गाथा-८. २.पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
मु. रतन, मा.गु., पद्य, आदि: सीरीजन आया हो; अंति: फल पाइया जी, गाथा-१०. ३. पे. नाम. गजसुकुमालमुनि सज्झाय, पृ. १आ, संपूर्ण.
मा.गु., पद्य, आदि: सरिजीण आया मे सुण्या; अंति: बाइ दया यतण परसाद, गाथा-१२. ४२६९६. (#) नेमिजिन स्तवन व उपदेस सीज्झा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अक्षरों
की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२, २१४४३). १. पे. नाम. नेमजिन स्तवन, पृ. १अ, संपूर्ण.
नेमिजिन स्तवन, मु. चोथमल, रा., पद्य, वि. १८५२, आदि: श्रीनेमीसर साहबा; अंति: हिवे पुरो हमारी आस, गाथा-७. २. पे. नाम. उपदेस सीज्झा , पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय-नवघाटी, मु. चोथमल ऋषि, रा., पद्य, आदि: नवघाटी मे भटकतारे; अंति: भइया रहसी सहुरी
लाज, गाथा-१५. ४२६९७. जंबूस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२५.५४११.५, ९४२८).
जंबूस्वामी सज्झाय, मा.गु., पद्य, आदि: सरसत सामीने वीनवं, अंति: (-), (अपूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.,
ढाल-१ प्रारंभिक गाथा तक लिखा है.) ४२६९९. (+#) उपदेशमाला गाथा शुकनावली यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६४१२, १५४३०).
उपदेशमाला-उत्कृष्ट-मध्यम गाथा व अक्षरसंख्या यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-), (वि. अंत में विधि भी
लिखी गई है.) ४२७००. (+#) यमकबंधश्रीपार्श्वनाथ स्तवन सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, प्र.वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२६.५४१२.५, ११४४४). पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध, मु. शिवसुंदर, सं., पद्य, आदि: वरसं वरसं वरसं वरस; अंति: शिवसुंदरसौख्यभरम्,
श्लोक-७.
पार्श्वजिन चैत्यवंदन-यमकबद्ध-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वरा प्रधाना संवरस्य; अंति: संबोधनं शेषं सुगमं. ४२७०३. (+#) अध्यात्म स्वाध्याय व घनम्म्, संपूर्ण, वि. १९३२, मार्गशीर्ष शुक्ल, ३, बुधवार, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २,
ले.स्थल. पाली, प्रले. पोखरदत्त ब्राह्मण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. प्रतिलेखन काल हेतु 'प्रथम पोहरे' ऐसा लिखा है., संशोधित. मूल पाठ का अंशखंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४१२.५, १४४४०). १.पे. नाम. अध्यात्म स्वाध्याय, पृ. १अ, संपूर्ण.
औपदेशिक सज्झाय, मु. आनंदघन, मा.गु., पद्य, आदि: हुं तो प्रणमु सदगुरु; अंति: नित आनंदघन सुख थाय,
गाथा-१०. २. पे. नाम. धनम्म्, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण.
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