Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 461
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मा.गु, पद्य, आदि प्रणमी पास जिणेसर, अंति: गुणविजय रंगे मुणी, डाल-६, गाथा - ५०. ४३१११. (+) सीताजीनी सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७१२, १०X३०). सीतासती सज्झाय, मु. उदयरत्न, मा.गु, पद्य, आदि जनकसुता हुं नाम; अंतिः नीत नीत होजो प्रणाम, गाथा ८. ४३११२. (+) धन्नाशालिभद्र चौडालईड, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, वे., 1 (२६X१३, १३X३५). धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. रामचंद, मा.गु., पद्य, वि. १९३१, आदि: सुभद्रा आवी कहै सुण; अंति: भगवत वचने राख, डाल-६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३११३. (#) नवतत्व, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१३, १३X३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा, अंति: बोहिय इक्कणिक्काय, गाथा-४८. ४३११४. (f) जंबूस्वामिनि सीजा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२.५, १३x४१). जंबूस्वामी सज्झाय, आ. भाग्यविमलसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १७६६, आदि: सरसत सामीने विनवुं; अंति: नामे हो ज जयकार, गाथा - १५. ४३११५. (#) जिनपंजर महास्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७X१३, १२X४५). जिनपंजर स्तोत्र, आ. कमलप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ ह्रीं श्रीं अर्ह, अंति: मनोवांछितपूरणाय श्लोक-२४. ४३११६. शंखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. १, वे (२५४१३.५, ११४३२). पार्श्वजिन स्तवन- शंखेश्वरतीर्थ, ग. वीरविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८७८, आदि: नित्य समरुं साहिब, अंतिः शुभवीर वचनरस गावे रे, गाथा- १३. ४३११७. (+#) पार्श्वनाथजी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९२१, आषाढ़ शुक्ल, ६, गुरुवार, मध्यम, पृ. १, ले. स्थल. पाटणनगर, प्र. वि. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७४१३, १३४४८). पार्श्वजिन मंत्राधिराज स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: श्रीपार्थः पातु वो अंतिः सकलां श्रियं श्लोक-३३. ४३११८. (#) आदेसर विनति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२७१३, ११x२९). आदिजिनविनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थ, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, वि. १७३, आदि: पांनी सुगुरु पसाय रे, अंतिः विनय करी विनवे ए, गाथा - ५५. ४३११९. एकादशीनी स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. १, वे. (२७४१३, ११४२८). "" मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदि: श्रीभाग्नेमिर्बभाषें; अंतिः न्यस्तपादांबिकाख्या, श्लोक-४. ४३१२०. (+०) ज्ञानपंचमि सझाय, संपूर्ण वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. किसी आधुनिक विद्वानने भी संशोधन किया है.. संशोधित अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२७.५५१२.५ १२४४०). ज्ञानपंचमीपर्व सज्झाय, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीवासुपूज्य जिणेसर, अंति: संघ सयल सुखकारि रे, ढाल - ५, गाथा - १६. ४३१२१. (+) आंबेलतपनी सझाय, संपूर्ण, वि. २०वी मध्यम पू. १ प्रले. मणिलाल मूळचंद, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१३.५, १२x२९). नवपद सज्झाय, मु. मोहनविजय, मा.गु., पद्य, आदि: श्रीगुरु नमतां गुण; अंति: तारवा मोहन ससभाव, गाथा९. ४३१२२. (#) पार्श्वनाथाष्टक सह आम्नाय व जिनपिंजर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, कार्तिक शुक्ल, १०, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. २, प्रले. मयाचंद डुंगरजी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्वाही फैल गयी है, दे., (२७.५X१२, ११४४४). १. पे. नाम. पार्श्वनाथाष्टक सह आम्नाय, पृ. १अ - २आ, संपूर्ण. पार्श्वजिन अष्टक - महामंत्रगर्भित, सं., पद्म, आदि: श्रीमदेवेंद्रवृंदा अतिः तस्येष्टसिद्धिः, श्लोक ८. For Private and Personal Use Only

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