Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 464
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० ४४७ ४३१३८. (+#) पिडंबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १७४०, कार्तिक कृष्ण, ५, रविवार, मध्यम, पृ. २, ले.स्थल. राजनगर, लिख. श्राव. मनजी गांधी, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२४.५४११, ११४३५). पिंडबत्रीसी सज्झाय, मु. सहजविमल, मा.गु., पद्य, आदि: सकल जिणेसर प्रणमुं; अंति: पिंडबत्रीसी करी, गाथा-३२. ४३१३९. ६२ मार्गणासुमोहनीयकर्म बंधोदयसत्ता भांगा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२६.५४१२.५, १६x२१-३६). ___६२ मार्गणास्थाने मोहनीयकर्म बंधोदयसत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३१४०. ६२ मार्गणासु नामकर्म बंधोदयसत्ता भांगा विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, दे., (२७४१२.५, १२४१८-३०). ६२ मार्गणास्थाने नामकर्म बंधोदयसत्तास्थान भांगा यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३१४१. ६२ मार्गणासु १४ गुणस्थानेषु अष्टकर्मणा १२२ उत्तरप्रकृतिना उदय यंत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, दे., (२७४१२.५, १३४७-४९). ६२ मार्गणास्थाने १४ गुणस्थानके १२२ उत्तरप्रकृति का उदय यंत्र, मा.गु., को., आदि: (-); अंति: (-). ४३१४२. (+#) महावीरनुपालj, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., संशोधित. मूल पाठ का अंश खंडित है, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४३). महावीरजिन पारj, मु. उत्तम, मा.गु., पद्य, आदि: माता त्रिसला झूलावे; अंति: (अपठनीय), (वि. गाथाक्रमांक अव्यवस्थित है. पत्र की किनारी खंडित होने से अंतिमवाक्य अपठनीय है.) ४३१४३. (#) सोलेसुपना, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.,प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, जैदे., (२५.५४१२.५, १३४२६-२८). चंद्रगुप्तराजा १६ स्वप्न सज्झाय, मु. जैमल ऋषि, मा.गु., पद्य, आदि: पडलिपुर नामे नगर; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-३५ अपूर्ण तक है.) ४३१४४. २० स्थानक विचारसार रास, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, पृ.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., दे., (२७४१२.५, १२४३६). २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, वि. १७४८, आदि: सकल सिद्धि संपतिकरण; अंति: (-), (पू.वि. गाथा-२९ तक है.) ४३१४५. ढंढणऋषि व ७ व्यसन सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. २, प्र.वि. पत्रांक अंकित नहीं है., अशुद्ध पाठ., दे., (२७.५४१२, १३४२५). १. पे. नाम. ढंढणऋषि सज्झाय, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. जिनहर्ष, मा.गु., पद्य, आदि: ढंढण रिषजीनें बंदणा; अंति: (-), (पूर्ण, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., गाथा-८ अपूर्ण तक लिखा है.) २. पे. नाम. ७ व्यसन सज्झाय, पृ. १अ-१आ, संपूर्ण. मु. धर्मसी, मा.गु., पद्य, आदि: सात विसननारे संग मत; अंति: कहै ध्रमसी सुखकार, गाथा-९. ४३१४६. (#) बंदित्तु प्रतिक्रमण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, प्रले. पं. माणेकचंद्र, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२५.५४११.५, १०-११४२९-३८). वंदित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: वंदित्तु सव्वसिद्ध; अंति: वंदामि जिणे चउवीसं, गाथा-५०. ४३१४७. (+#) संथारगपोरिसी व चउक्साय चैत्यवंदन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २, कुल पे. २, प्र.वि. संशोधित-पदच्छेद सूचक लकीरें. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, दे., (२८x१३, ८x२५-३०). १.पे. नाम. संथारगपोरिसी, पृ. १अ-२अ, संपूर्ण. संथारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंति: मिच्छामिदुक्कडं तस्स, गाथा-१७. २.पे. नाम. चउक्कसाय चैत्यवंदन, पृ. २आ, संपूर्ण, पे.वि. यह कृति किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा या बाद में लिखी गई है. पार्श्वजिन चैत्यवंदन, हिस्सा, प्रा., पद्य, आदि: चउक्कसायपडिमलुल्लरण; अंति: पासु पयच्छउ वंछिउ, गाथा-२. ४३१४८. (+2) प्रसन्नचंद्रराजर्षि आदि सज्झाय स्तवन संग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १, कुल पे. ४, प्र.वि. संशोधित-अशुद्ध पाठ. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२७.५४१२.५, १३४४४). For Private and Personal Use Only

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