Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 10
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 502
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.१० www.kobatirth.org (+) २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मा.गु., पद्य, वि. १८४५, आदि: श्रीअरिहंत पद ध्याईइ, अंति: (-), (प्रतिपूर्ण, पू.वि. ढाल-५ पंचम पद तक है.) ४३४३४. चतुःसरण प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९५४, चैत्र कृष्ण, १ मध्यम, पृ. ४, प्रले. पुनमचंद बोडा ब्रामण, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. संशोधित., दे., (२७X१३, ११४३३). चतुःशरण प्रकीर्णक, ग. वीरभद्र, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: सावज्जजोग विरई, अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, गाथा-६३, ग्रं. ८१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४३४३५. (+०) जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७२ कार्तिक शुक्ल, १२, मध्यम, पृ. ४, ले. स्थल विसलनगर, प्रले. ग. मोतीविजय; अन्य. पं. मुक्तिविजय गणि; पठ. श्राव. अचरत, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र.वि. संख्यासूचक शब्दों के ऊपर अंक लिखे हैं एवं पत्रों में यत्र तत्र खाली जगह पर रंगीन चित्र हैं. कल्याणपार्थ प्रसादात् संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ-पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, जैदे., (२८x१२.५, ६x४२). जीवविचार प्रकरण, आ. शांतिसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति : रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ, गाथा - ५०. जीवविचार प्रकरण-वार्थ, मा.गु, गद्य, आदि: भुवण कहेता त्रिण्य; अंतिः भणवाने अर्थ कह्यो. १. पे. नाम. पर्युषणपर्व गहुली, पृ. १अ, संपूर्ण. मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: पुण्यवंता तुमे सांभल, अंति: दान सुपात्रे दिजे, गाथा- ६. २. पे. नाम. पर्युषण पर्व गहुली, पृ. १अ १आ, संपूर्ण. मु. हुकम, मा.गु, पद्य, आदि: पजुसण आव्यां रे, अंतिः टाली भवनो पार जो, गाथा ५. ३. पे नाम, पर्युषण पर्व गहुली, पृ. १आ-२अ, संपूर्ण मु. हुकम, मा.गु, पद्य, आदि: पजुसण हवे आवियां अंतिः तस पर मगले माल रे, गाथा-६, , ४. पे. नाम. पर्युषण पर्व गहली. पू. २अ २आ, संपूर्ण. ४८५ ४३४३६. (१) छ आवश्यकविचार व साधारणजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पू. ३, कुल पे. २, अन्य श्रावि. दीवालीबाई, प्र.ले.पु. सामान्य, प्र. वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, दे., (२८x१३, १३४३४). १. पे. नाम छआवश्यकविचार स्तवन, पृ. १आ-३ आ. संपूर्ण. ६ आवश्यकविचार स्तवन, उपा. विनयविजय, मा.गु., पद्य, आदि: चौवीसई जिन चीतवी, अंति: तेह सिवसंपद लहे, ढाल - ६. २. पे. नाम. साधारणजिन स्तवन, पृ. ३आ, संपूर्ण. मा.गु., पद्य, आदि: लागी लगन मने तारी अंतिः सेवकजी साधुरी, गाथा- ९. ४३४३७. (+#) पर्युषणपर्व गहुंली संग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, कुल पे. ५, प्र. वि. संशोधित. अक्षरों की स्याही फैल गयी है. दे. (२७१२, १०x३०). मु. हुकम, मा.गु., पद्य, आदि: कलपसुत्रने सांभलो रे; अंतिः ते तो पामे भवनो पार, गाथा- ७. ५. पे. नाम. पर्युषण पर्व गोली, पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण. पर्युषणपर्व गहुली, मु. हुकम, मा.गु, पद्य, आदि: पजुसण आव्यां सुखकारि अंतिः जे काइ शीवरमणी वरिए, गाथा-६, ४३४३९. (+) २४ दंडक यंत्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ३, प्र. वि. संशोधित, जैदे. (२७x९२.५, १६x२१-५४). २४ दंडक २४ द्वार विचार, मा.गु., को. आदि (-); अंति: (-). " . ४३४४०. साधारणजिन पद, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १, प्र. वि. पत्रांक अंकित नहीं है., दे., (२७X१३, ९X३२). साधारणजिन स्तवन, मु. अमर, मा.गु., पद्य, आदि: मुज पापीने तार जिनंद; अंति: वली अमरपद सार, गाथा-६. ४३४४१. (+) पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, अपूर्ण, वि. २०वी मध्यम, पृ. २. पू. वि. प्रारंभ के पत्र हैं. प्र. वि. प्रतिलेकखने पत्रांक २अ पर ३ लिखा है., संशोधित. दे., (२७१३, १२X४६). पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. नेमविजय, मा.गु., पद्य, वि. १८१७, आदि: प्रणमुं नीत परमेसरी; अंति: (-), (पू.वि., दाल-४ गाथा १ अपूर्ण तक है.) For Private and Personal Use Only

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